नरेन्द्र मोदी के विरोधीयोंमें, दंभी सेक्युलरोमें और बीजेपी और उसके सपोर्टरोंको, कोमवादी कहेनेवालोंमें एक बात जरुर समान है कि जब भी कभी मौका मीले तो सांप्रत बातको अयोग्य तरीकेसे प्रस्तुत करके आम जनताको गुमराह करें और जो मूलभूत बात है उसको जानबुझकर दबाकर, अपनी राजकीय रोटी यानी कि, मतबेंककी राजनीति को उजागर करें.
नितीशकुमारकी वॉटबेंककी राजनीति
आसाममें बंगला देशी घुसपैठीओने स्थानिक बोडोवासीयों के प्राकृतिक हक्क पर असीम आक्रमण किया तो बोडो वादीयों ने सरकारकी प्रलंब निस्क्रीयताके कारण प्रतिकार किया. और दंगे शुरु हुए. उसमें घुसपैठी मुस्लिम समुदायको भी नुकशान हुआ. लेकिन घुसपैठी मुस्लिम समाज भी तो आम मुस्लिम समाजकी तरह नहेरुवीयन कोंग्रेसकी वॉट बेंक है, और नहेरुवीयन कोंग्रेस की नीति रही है कि, सेक्युलर नीति के नाम की आडमें यह वोट बेंककी रक्षा करना. वॉट बेंक की नीतिको हवा आलिंगन करने वालेलोंका संस्कार रहा है कि, कोई भी बात अगर घुमा फिराके, लोगोंमें विभाजन करवा सकतें है तो कोई भी किमत पर ऐसी बातोंको बढावा देना.
नहेरुवीयन कोंग्रेसकी ऐसी विभाजन वादी और अंधापन वाली सेक्युलर नीतिके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ताको कायम कर पायी है और देशको बरबाद करती आयी है. ऐसी वोटबेंक वाली शैली अन्य पक्षोंने भी चालु कि है और उनको सफलता भी मिलती रही है. मायावती, मुलायम, लालु, ममता, इसके उदाहरण है. तो नितीश कुमार भी क्यों ऐसी नीति को क्यूं न अपनाएं?
भक्ष्यका क्षेत्र और फैलाओ
मुंबई (महाराष्ट्र)में और गुजरात पहेलेसे ही विकासके राह पर होनेके कारण मजदुरीके लिये उत्तर भारत और अन्य कई राज्योंसे लोग आते हैं. उनमें चोरी चपाटी करने वाले, आतंकवादी और घुसणखोर मुस्लिम भी आते हैं. इन्ही मुस्लिमोंकी सहायतासे कुछ मुस्लिम नेताओंने “आसाम”के दंगेको लेकर मुंबईमें सभा की, और साथमें आये हुए मुस्लिम आतंकीओने हिंसा की. इन मुस्लिम नेताओंने क्या भाषण दिया उसके बारेमें समाचार प्रसार माध्यम गण संपूर्ण मौन है. इस सभामें सामिल कई लोग शस्त्र लेके आये थे. इन लोगोंने हिंसक व्यवहार किया और पूलिस फोर्सको भी जख्मी किया. एक मुस्लिमने शहिद स्मारकको नुकशान किया.
नितीशकुमारकी नोन-गवर्नन्स
इस शख्सका फोटो भी अखबारमें आया था. नितीशकुमारकी बिहारकी लोकल इन्टेलीजन्स को मालुम होना चाहिये कि अपने राज्यमें असामाजिक तत्व कौन है और उनमेंसे मुंबई कौन कौन गये है. लेकिन नितीशकुमारकी इन्टेलीजन्स जानबुझकर या असफल गवर्नन्सके कारण मौन रही. तो मुंबई पूलीसने बिहार जाकर उस शख्सको पकडा.
अब देखो नितीशने क्या किया?
क्योंकि वह मुस्लिम था, नितीशकुमारकी वॉटबेंकका हिस्सा था. और उसका बचाव करने से मुस्लिम समुदाय के वोटमें वृद्धि कर सकने की शक्यताओ देखते हुए इस नितीश कुमारने मुंबई पूलीसकी तत्कालिन कार्यशैली का जमकर विरोध किया.
हिन्दीभाषी असामाजिक तत्व
गुजरात और महाराष्ट्रमें आके गुन्हा करके अपने राज्यमें भाग जाना यह बात सामान्य है. कइ बार इसमें परराज्यके जो अफसर गुजरात और मुंबई में उनके (अपनके) ऐसे लोगोंके प्रति भी सोफ्ट कोर्नर भी रखते है ऐसी शक्यता नकार नहीं सकते. आप अगर चोरी और डकैतीके किस्सोंको ध्यानसे देखेंगे तो आपको परप्रांतीय लोगोंकी प्रमाणसे अधिक ही ठीक ठीक ज्यादा ही संख्या देखाइ देगी. और जब भी कभी कोई आतंकवादी किस्सा बनता है या तो उनकी कोई योजना पकडी जाती है तो उसका उत्पत्तिस्थान कोंग्रेस शासित और उसके सहयोगी पक्ष वाला राज्य ही ज्यादातर होता है और मुस्लिम ही होता है. इस परिस्थिति पर सरकारको गौर करना चाहिये.
मूलभूत बात क्या है?
तात्विक और विचार और संवाद की बात यह है कि, अगर मुंबई पूलीसने एक मुस्लिम असामाजिक शख्सको बिहारमें जाके पकडा और उसको मुंबई ले आयी तो उसमें मुंबई पूलीससे और मुंबई (महाराष्ट्र सरकार) से झगडा करके झगडेकी भाषामें प्रतिभाव देने की और विरोध करने की नितीशकुमारको क्या अवश्यकता है?
आवश्यकतो यह सोचने की है कि, बिहार सरकारने, ऐसे आतंकी और गद्दार व्यक्तिको क्यों न पहेचान पाई? बिहारमें ऐसे कई लोंगोको क्यों पनाह दिया?
ऐसे लोगोंमेंसे एक को, अगर मुंबई पूलिस, अपने राज्यमें आके गुन्हा और हिंसा करने के कारण पहेचान पायी और उसके भाग जाने पर उसको पीछे पडके पकड लिया, तो उसमें बुरा क्या है?
नितीशको अपने गवर्नन्सके बारेमें आत्मखोज करनी चाहिये. और जो गद्दार, घुसणखोर और आतंकी बिहारमें बस रहे है उनको पकडके उनके उपर कार्यवाही करनी चाहिये क्यों कि बिहारकी अराजकता, देशकी अराजकता का एक हिस्सा है.
ऐसी सीमापारसे आयी हुई अराजकता तो क्या स्थानिक कर्मण्यहीनतासे विकसित अराजकता, दूसरे राज्यवाले अपने यहां घुसने नहीं देंगे, इस बातको नितीश को समझना चाहिये.
नितीशकुमार अपनी अक्षमता छिपाना चाहते है
अगर नितीशकुमार, सीमापारसे आये घुसणखोरोंकों रोकनेमें और पहेचाननेमें अक्षम है तो उन्हे केन्द्र सरकार पर आक्रमक वलण अखत्यार करना चाहिये और यह बात खुल्ले आम घोसित करनी चाहिये.
नितीशकुमारको प्रतिक्रिया और संस्कार का भेद समझना चाहिये
प्रतिक्रीया हमेशा असामाजिक, अयोग्य और अलग अलग मापदंडकी प्रणालीके सामने होती है.
भूमिपूत्रोंके साथ अन्याय और उसके जिवन-आधार पर अतिक्रमण होनेसे हमेशा प्रतिक्रिया होती ही है. अगर कोई बिहारी मुस्लिम घुसणपैठ हो या न हो और अगर वह दुसरे राज्यमें जाके शहिदोंका अपमान करे, और बिहार राज्यका शासक अगर उस असाजिक तत्वका परोक्ष या प्रत्यक्ष पक्ष ले तो पीडित राज्यके हर व्यक्तिका प्रतिक्रिया करनेका हक्क ही नहीं फर्ज भी बनता है. यह एक प्रतिकारकी प्रक्रीया है. राजनीतिके संस्कार के साथ इसको जोडना नहीं चाहिये.
बंबईमें रहेने वाले बिहारके लोग घुसणखोर है या नहीं यह एक लंबा विषय है. लेकिन कोई भी राज्य ऐसी बातको स्विकार नहीं करेगा कि, परप्रांतके लोग मुंबईमें आकर मुंबईकी समस्या में वृद्धि करें. ऐसी स्थितिमें महाराष्ट्र तो क्या कोई भी राज्यके नेतागण और जनता प्रतिक्रिया दर्ज करेगी ही.
अगर बिहारमें परराज्यसे लोग आके बिहारकी समस्याओमें वृद्धि करेंगे तो क्या नितीश कुमार सहन कर पायेंगे?
नितीश कुमारको चाहिये कि वे ऐसी बातोंको ठंडे दिमागसे सोचकर अक्ल चलायें. नितीशकुमारको समक्झना चाहिये कि, वॉटबेंककी राजनीति तो गद्दारीका काम है, ऐसी राजनीतिको त्याग देनी चाहिये.
अगर एक राज्यके लोग दूसरे राज्यमें जाके दूसरे राज्य की समस्या बढायेंगे या असामाजिक प्रवृत्तियां करेंगे को उनको घुसणखोर ही माने जायेंगे. ऐसी सोच स्वाभाविक है. महाराष्ट्र कि जनता सुसंस्कृत है और महेमान नवाजीमें पीछे रहने वाली नहीं है. लेकिन अगर परप्रान्त के लोग समस्याएं और अराजकता फैलायेंगे तो महाराष्ट्र की जनता हि क्यों कोई भी प्रान्तकी जनता प्रतिक्रिया करेगी ही.
नितीशकुमार को अलग अलग मापदंड और संकुचितता छोड के देशके हितमें सोचना चाहिये.
यह घटना समाचार प्रसारण माध्यमोंकी मानसिकता पर संशोधन करनेका विषय भी है. सभी माध्यमोने राजठाकरेकी बातको तोडमरोड कर प्रसिद्ध करके आमजनतामें भेदभावकी बात को उकसाई, राज ठाकरेकी निंदा की, और मूलभूत बात को दबा दी है. भारतीय मीडीया भारतके लिये अवनतिका एक कारण बन गया है.
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः बिहारी, मुस्लिम, आतंकवादी, मुंबइ पूलीस, प्रतिक्रिया, संस्कार, आत्मखोज, मीडीया, राजठाकरे, नितीश कुमार, घुसणखोर, चोरी
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