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Archive for March, 2014

खुशवंत सिंह जो शेरकी खालमें शृगाल था

khushvant

खुशवंत सिंह को कुछ लोग खुशामतसिंह भी कहते थे.

क्या खुशवंत सिंह शेर थे यानी कि निडर थे?

क्या ऐसा भी हो सकता है?

अगर दुधपाकमें सर्कराकी जगह नमक डले तो वह क्या दुधपाक माना जायेगा?

अगर महाराणा प्रतापका घोडा चेतक युद्धभूमिमें घुसनेसे इन्कार करे तो राणा प्रताप उसको प्यार करते?

अगर देशप्रेमकी बांगे पूकारने वाला कोई सरदार, दुश्मनके आगे घुटने टेक दें तो वह क्या वह सरदार कहेलायेगा?

क्या कोई वीर अपने देशके अपमानका बदला लेनेकी प्रतिज्ञा ले और उसका पालन भी करे तो वह क्या रघुवंशी कहेलायेगा?

अगर खुदको शूरवीर प्रस्तुत करनेवाला चोर आने पार दूम दबाके भाग जाय या चोरसे जिवंत पर्यंत दोस्ती करले तो क्या वह शूरवीर माना जायेगा?

इस बात पर यही कहेना पडेगा कि जो शेर कुत्तेसे डरकर भाग जाता है वह शेर नहीं कहेलाता.

बकरीकी तीन टांग

तो यह खुशवंत सिंह जिसको समाचार माध्यमोंके कई मूर्धन्योंने सदाकाळ और उसकी मृत्युके अवसर पर तो खास, एक निडर पत्रकार लेखक घोषित किया उसमें कितना तथ्य और कितनी वास्तविकता?

जिनको नहेरुका और उनकी लडकी इन्दीरा गांधीका शासन काल और कार्य शैलीका ज्ञान नहीं और उस समय खुशवंत सिंह कहां थे वह मालुम ही नहीं हो उसके लिये खुशवंत सिंहकी निडरताकी बातें बकरीके तीन टांग जैसी है. लेकिन उसका मतलब यह नहीं कि वे लोग अपनी अज्ञानता उनके विवेकशून्यता का कारण बता दें.

खुशवंत सिंहको निडर कहेना क्या मजाक है या वाणी विलास है?

नहेरुका समर्थन करना नहेरुकी रुस और चीन परस्तीवाली विदेश नीतिको समर्थन करनेके बराबर है. नहेरु अपनेको जन्म मात्र से हिन्दु समझते थे. कर्म और विचारसे नहीं. धार्मिक विचार धारा कैसी पसंद करनी है, यह अपनी अपनी पसंदगीका विषय है. लेकिन जब अगर कोई नेता राजकीय प्रवृत्तिमें है और जन विकासके लिये अपनी नीतियां बनाता है तब उसको अपनी नीतियोंके बारेमें आज और कलका ही नहीं परसोंका भी सोचना चाहिये. अगर नेता इस बारेमें सोचता नहीं है तो वह नेताके योग्य नहीं. उसके समर्थकों बारेमें भी हमें वैसा ही सोचना चाहिये.

नहेरुकी विदेशनीति देशके लिये विद्ध्वंशकारी थी. उसका व्यापक प्रभाव है

नहेरुका सर्वग्राही समर्थनमें उनकी परिपेक्षित विदेश नीति का समर्थन भी हो जाता है.  

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि सरदार पटेलने जो चेतावनी दी थी वह गलत थी उसका स्विकार करना.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि राजगोपालाचारी और जेबी क्रिपलानी, महावीर त्यागी आदि कई नेतागण संसदमें जो समाचार देते रहे थे उसको नहेरु गलत मानते रहेते थे और उनके सुझावोंकी अवमानना करते थे तो इस बातमें उन सभी महानुभावोंको गलत समझना और नहेरुको सत्यवादी समझना.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि जब सत्य सामने आया और चीनने भारत पर हमला करके भारतकी ९०००० (नब्बे हजार चोरस मील) भूमि पर कबजा जमा लिया), तो भी १९६७के चूनाव में नहेरुकी पूत्री इन्दीरा गांधीका समर्थन करना ऐसा ही सिद्ध होता है.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि, इन्दीरा गांधी नहेरुकी नीतियोंकी समर्थक थी. इस कारण इन्दिराका और उसके साथीयोंका समर्थन करना यह ही सिद्ध करता है कि भारतको नहेरुवीयनोंकी आत्मकेन्द्री और देशको बरबाद करनेवाली नीतियोंका अगर आप समर्थन करते है.

इस कारण से नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि तो शायद आपकी दिमागी खराबी है या तो आप भी आत्मख्यातिकी प्रच्छन्न ध्येय के सामने देश हितको गौण समझते है.

नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी (नहेरु, इन्दिरा आदिकी विदेश नीतियोंके कारण भारतके हजारों जवान बेमौत मारे गये और  देशकी आर्थिक विनीपात आपकी कोई गिनतीमें नहीं.

अगर ऐसा नहीं है तो आप कभी खुशवंत सिंह को निडर पत्रकार कभी नहीं मान्य रखते.

निडर कौन है?

निडर वह है जो यातनाओंसे डरता नहीं है. साथ ही साथ कमजोर आदमी भी वह निडर आदमीसे डरेगा नहीं. क्यों कि कमजोर आदमी भी निडरके पास सुरक्षित है.

निडरता वैसे तो एक सापेक्ष सदगुण है

जब नहेरुकी पुत्रीने अपनी सव्रक्षेत्रीय प्रशासनीय निस्फलताको छिपानेके लिये आपातकालकी घोषणा की, तो जिन मूर्धन्योंने इन्दीराके आपातकालका समर्थन किया उन डरपोक मूर्धन्योंमे खुशवंत सिंह भी थे.

जब कोई व्यक्ति आपातकालका समर्थन करता है तब उसके खुदके बारेमें कई और बातें भी सिद्ध हो जाती है.

अगर आप आपतकालका समर्थन करते है तो आप अपने आपमें यह भी सिद्ध मान लेते हो;

महात्मा गांधीके वैचारिक और निवासीय अंतेवासी जय प्रकाश नारायण पथभ्रष्ट थे और उनको जेलमें भेजना आवश्यक था.

देशकी समस्याओंका कारण इन्दिराका शासन नहीं था, लेकिन जो लोग इन्दिरा गांधीकी विफलताका विरोध कर रहे थे वह विरोध ही विफलताका कारण था.

लोकशाहीमें विरोधी सुर उठानेवाले और जन जागृतिके लिये मान्य प्रक्रियाका सहारा लेनेवाले देश द्रोही है.

यह भी कम है. आगे और भी देखो;

जिन लोगोंने आपातकालका विरोध किया नहीं था, लेकिन भूतकालमें इन्दिराका विरोध किया था और (और ही नहीं या भी लगा लो) या तो भविष्यमें विरोध कर सकते है, उनको भी जेलमें बंद कर दो. इसकाभी आप समर्थन करते है.

समाचार माध्यम पर शासकका पूर्ण निरपेक्ष अधिकार और शासकका अफवाहें फैलानेका अबाधित अधिकार और सुविधा इसका भी आप समर्थन करते है.

मतलब की आप (खुशवंत सिंघ), शासकको संपूर्ण समर्पित है. आपका शरीर एक शरीर नहीं एक रोबोट है, जिसका कोई जैविक अस्तित्व नहीं है. आप एक अस्तित्व हीन निःशरीरी है. यह बात आपने पहेले से ही सिद्ध कर दी है.

खुशवंत सिंह की दाढी और धर्म की चर्चा हम नहीं करेंगे.

स्वर्ण मंदिर पर हमले की बात भी कभी बादमें (२५वी जुन पर) करेंगे.

ईशावास्य उपनिषदमें लिखा हैः

असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता,

तांस्ते प्रेत्याभि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ()

जो लोग विवेकशील बुद्धिका अभाव रखकर अंधकारसे आवृत रहते है वे लोग आत्माको जानते नहीं और वे हमेशा अंधकारमें ही रहेंगे क्यों कि उन्होने अपनी आत्माको नष्ट किया है.

निडरता सापेक्ष है

आपतकालमें जो लोग निडर रहे उसके प्रमाणित निडरता क्या क्या थी? हम उनको इस प्रकार गुण (मार्क्स) देंगे;

१०० % गुण; ऐसे लोग, वैसे तो इन लोगोंका काम शासनका विरोध था ही नहीं, लेकिन क्यूं कि मानव अधिकार का हनन हुआ तो उन्होने खूल्ले आम विरोधका प्रारंभ किया.

उदाहरण; भूमिपूत्रके संपादक गण. नानुभाई मजमुदार, कान्तिभाई शाह

१०० % गुण; जो लोग वास्तवमें महात्मा गांधीकी परिभाषा के हिसाब से निडर थे उन्होने लोक जागृतिकी प्रवृत्ति खुल्लेआम चालु रखी और कारावासको भूगतनेके लिये हमेशा सज्ज रहे.

उदाहरण;ओपीनीअनके मालिक पदत्यागी आईसीएस अधिकारीगोरवाला

९९ % गुण; जेल जानेसे डरते नहीं थे लेकिन जनता सत्यसे विमुख रहे इसलिये भूगर्भ प्रवृत्तिद्वारा समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिये अपनी जिंदगीभरकी पूरी बचतको खर्च कर दिया.

उदाहरण; भोगीभाई गांधी  

७५% गुण; वे लोग जेल जानेसे डरते थे या तो व्यर्थ ही जेल जाना चाहते नहीं थे इस लिये भूगर्भ प्रवृत्ति जितनी हो सके उतनी करने वाले.

उदाहरण; नरेन्द्र मोदी और उसके कुछ साथी, सुब्रह्मनीयन स्वामी, जोर्ज फर्नाडीस, आदि कई लोग

५०% गुण; वे लोग जेल जानेसे डरते थे लेकिन शासनके विरोधी तो बने ही रहने चाहते थे लेकिन कुछ समयावधिके लिये निस्क्रीय हो गये.

उदाहरण; विनोबा भावे और सर्वोदयी मित्रगण

४०% गुण; वे लोग जो जेल जानेसे डरते थे लेकिन शासनके विरोधी तो बने ही रहने चाहते थे लेकिन निस्क्रीय हो गये.

उदाहरण; सुज्ञ जनता, सुज्ञ मूर्धन्यगण

३०% गुण; वे लोग जो सरकारी माध्यमोंके द्वारा किये गये प्रचारसे द्विधामें पड गये और मौन हो गयेः उदाहरण; आम जनता

२०% गुण; वे लोग जो समाचार पत्रमें शासन के बारेमें गतिविधियोंका विश्लेषण करते थे और अपनी कोलम चलाते थे, उन्होने अपनी कोलम चालु रखनेके लिये कोई और विषय पर चर्चा चलाने लगे. या तो असंबद्ध बातें लिखने लगे.

उदाहरण; ख्याति प्रिय स्वकेन्द्री अखबारी मूर्धन्य गण

००% गुण; वे लोग जो समझने लगे कि सियासतसे दूर ही रहो.

उदाहरण; आम जनता

अब सब ऋणात्मक गुण प्राप्त करने वाले आते हैः

(५० % गुण); वे लोग जो मानते थे कि इन्दिरा को पछतावा होता था और वह डर डर कर रहेती थी,

(६०% गुण); वे लोग जो कहते थे अरे उसने तो आपातकाल हटा लिया था. और बादमें उसने घर घर जाके अफसोस जताया था.

उदाहरण; अखबारी मूर्धन्य कान्ति भट्ट (जंगलमें मोर नाचाहा पस्तावा, विपूल झरना, स्वर्गसे नीकला हैपापी उसमे  गोता लगाके पूण्यशाली बनेगा)

(७० % गुण); वे लोग जो बोलते थे कि आपात काल घोषित करने कि इन्दिराकी तो ईच्छा नहीं थी और वह अस्वस्थ थी                         

(८० % गुण); वे लोग जो बोलते थे कि, क्या करती वह इन्दिरा? सब उसके पीछे पड गये थे. इसलिये उसने आपात काल घोषित किया

(९० % गुण); वे लोग जो बोलते थे “लोकशाहीने क्या किया. कुछ नही. अब इन्दिराको अपने तरिके से काम करने दो”.

(९५ % गुण); हम भारतीय, लोकशाहीके लायक ही नहीं है.

उदाहरण; शिवसेना,

(९९ % गुण); वे लोग जो बोलते थे अरे भाई हमारा तो नहेरुसे कौटूंबिक नाता है. हमें तो उसका अनुमोदन करना ही पडेगा.

उदाहरण; जिसनेसूतकी मालालिखके महात्मा गांधीको अंजली दिया था, उसने आपात कालमेंजूठकी मालालिखनी चाहिये थी और उसको इन्दिराको पहेनानी चाहिये थी. अमिताभ बच्चन के पिता 

(९९. % गुण); अरे भाई, इन्दिरा और मैं तो साथमें पढे थे,

उदाहरण; बच्चन कुटुंब

(१०० % गुण); जो लोग बोलते थे; वाह वाह इन्दिरा गांधी वाह वाह. इन्दिरा गांधी तूम आगे बढो हम तुम्हारे साथ है.

उदाहरण; साम्यवादी नेतागण, नहेरुवीयन कोंग्रेसके बंधवा, खुशवंत सिंघ, आदि.

खुशवंत सिंह पर कुछ मूर्धन्य इसलिये फिदा है कि खुशवंत सिंह चिकनी चुकनी बातें लिखते थे. क्या चिकनी और गुदगुदी कराने वाली बातें लिखनेसे आदमी निडर माना जाता है?

अरे भाई, खुशवंत सिंह की मौत हुई है. मौतका तो मलाजा रक्खो?

क्या वह कभी जिन्दा भी था? उपर पढो; “(तांस्ते प्रेत्याभि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः)”

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः खुशवंत सिंह, नहेरु, इन्दिरा, लोकशाही, आपातकाल, गुण, ऋणात्मक गुण, निडर  

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સમસ્યાઓનું નિરાકરણ એટલે નવ્ય ગાંધીવાદ -૧

વાદ વિષે વાત કરવી એટલે એક શુષ્ક વિષય વિષે વાત કરવી એવું લાગે છે. અને એટલે સામાન્ય માણસ અને મોટેભાગે જેને આપણે મૂર્ધન્ય એટલે કે જ્ઞાની કે સુજ્ઞ કહીએ છીએ તેમને પણ થોડે કે ઘણે અંશે આ વાત લાગુ પડે છે. પણ આપણે એની વિગતો માં નહીં જઈએ. કારણ કે આ લેખમાળાનું તે ક્ષેત્ર રાખ્યું નથી.

વાદ એ શું છે?

વૈજ્ઞાનિક સાહિત્યનું એક વલણ છે કે જ્યારે તમે કોઈ એક શબ્દ વાપરો તેનો અર્થ તમે શું કરો છો તેની વાચકને જાણ કરી દેવી જોઇએ. જેથી વાચક, તે અર્થને ધ્યાનમાં રાખી લેખકના વિચારોને સમજે.

શબ્દના અર્થને ક્યારેક વ્યાખ્યા કહેવામાં આવે છે. વ્યાખ્યા એટલે આમ તો ટૂંકામાં ટૂંકામાં ટૂંકું વર્ણન. એટલે આપણે ફક્ત વાદનું વર્ણન જ કરીશું. અને તે પણ સામાજીક સમસ્યાના પરિપેક્ષ્યમાં જ વર્ણન કરીશું

વાદ ત્રણ જાતના છે. મૂડીવાદ, સામ્યવાદ અને સર્વોદયવાદ. આ ત્રણેયનું ધ્યેય સમગ્ર સમાજને તંદુરસ્ત અને સુખી  કરવાનું છે. દરેક વાદ ની અંતર્ગત જે પ્રણાલીઓને પ્રબોધવામાં આવી છે. તે પ્રણાલીઓ ની સમજણ એટલે જે તે વાદ એમ સમજવું.

વાદ એ એક સંક્રાંત વ્યવસ્થા છે.

સંક્રાંત અને વ્યવસ્થા એટલે શું?

સંસ્ક્રાંત એટલે વચ્ચેનો ગાળો.

કોની વચ્ચેનો ગાળો?

પરિસ્થિતિ અને ધ્યેય ને જોડતી  વ્યવસ્થા એટલે સંક્રાંત. જેને આપણે ઈન્ટરફેસ કહી શકીએ.

આ ઈન્ટરફેસ કે સંસ્ક્રાંત વાસ્તવમાં શું છે?

ધારોકે બે વ્યક્તિ છે. પાસે પાસે છે. બંનેને વિચારનો વ્યવહાર કરવો છે તો વિચારનો વ્યવહાર એ તેમનું ધ્યેય થયું. અને તેમની ભૌતિક ઉપસ્થિતિ એ તેમની પરિસ્થિતિ થઈ. અને સમાન ભાષા એ એક સંક્રાંત પ્રણાલી કે ઇન્ટરફેસ સીસ્ટમ થઈ. જોકે ભૌતિક માધ્યમ એટલે કે હવા પણ તેની અંતર્ગત આવી જાય છે હવા ઈશ્વર દત્ત છે.

હવે ધારો કે બે વ્યક્તિ એક બીજાથી ઘણી દૂર છે. તો હવાનું માધ્યમ કામ લાગતું નથી. એટલે ટેલીફોન ની વ્યવસ્થા કરવામાં આવી.

ટેલીફોન શું કરે છે?

એક વ્યક્તિ બોલે એટલે હવામાં સ્પંદન થાય. આ સ્પંદનોને આપણે બીજી વ્યક્તિ સુધી પહોંચાડવાના છે. માણસે બોલવું તો પડશે. તે હવામાં બોલશે. હવામાં સ્પંદનો થશે. હવે આ સ્પંદનોને દૂર સુધી પહોંચાડવા શું કરવું જોઇએ?

આ એક બીજું ધ્યેય કે ઉપધ્યેય થયું.

આપણા જ્ઞાનનો આપણે ઉપયોગ કર્યો. એક ચૂંબક લીધું અને તેની આગળ એક સ્પંદિત થઈ શકે તેવી પાતળી લોખંડની પતરી લીધી. એ સ્પંદિત થઈ. ચૂંબક અને આ લોખંડની પતરીની વચ્ચેના અંતરમાં વધઘટ થઈ. આ બે વચ્ચે વિદ્યુત ભાર મુક્યો. તાર દ્વારા જોડીને મુક્યો. એટલે આ તારમાં વહેતા વિદ્યુત પ્રવાહમાં સ્પંદનો રુપાંતરિત થયા. ધાતુના તારને બીજી વ્યક્તિ સુધી લંબાવી દીધા કારણ કે વિદ્યુત તરંગો ધાતુના તારમાં આગળ ગતિ કરી શકશે. બીજી વ્યક્તિ પાસે વિદ્યુત પ્રવાહના સ્પંદનો પહોંચી ગયા. પણ બીજી વ્યક્તિ આ વિદ્યુત પ્રવાહના સ્પંદનોને સમજી ન શકે. તેટલે એક વ્યક્તિ આગળ જે પ્રક્રિયા કરવામાં આવી તેથી ઉંધી ક્રિયા કરવાની જરુર પડી. આ તારને એક ચૂંબક સાથે વિંટાળ્યા અને તેની સામે લોખંડની પતરી રાખી. આમ વિદ્યુત પ્રવાહના સ્પંદનો લોખંડની પતરીમાં રુપાંતરિત થયા અને તે પતરીએ હવામાં સ્પંદનો ઉત્પન્ન થયાં આમ બીજી વ્યક્તિ પાસે સ્પંદનો પહોંચી ગયા અને તે બધું સાંભળવા લાગ્યો. આ ટેલીફોન વ્યવસ્થાને આપણે આપણા ધ્યેયને પામવા માટેનું ઈંન્ટરફેસ કહી શકે. આ ઇન્ટરફેસ નું કામ પરિસ્થિતિ અને ધ્યેયને જોડવાનું છે.

વિચારો મગજમાં ઉત્પન્ન થાય છે. વિચારોને વ્યક્ત કરવા માટે આપણું મોઢું કે જેમાં જીભ, હોઠ, દાંત છે. આપણા વિચારો મોઢાદ્વારા વ્યક્ત કરીએ છીએ. આ મોઢું એ આપણા વિચારો અને હવા વચ્ચેનો ઈન્ટરફેસ છે. આ હવાના સ્પંદનોને મોઢું સમજી શકતું નથી. તેને માટે કાન છે. જે હવાના સ્પંદનોને મગજમાં મોકલે છે. અને સમાન ભાષા તેને ઉકેલે છે. આ ઈશ્વરીય ઇન્ટરફેસ છે.

દરેક વ્યવસ્થાઓમાં અનેક ઉપપ્રણાલીઓ હોય છે. ટેલીફોન પ્રણાલીમાં પણ અનેક પ્રણાલીઓ વિકસી છે. મોઢાથી મગજ અને મગજ થી કાન સુધી પણ ઈશ્વરે અનેક પ્રણાલીઓ મુકી છે.

ઈશ્વરની પ્રણાલીમાં ક્ષતિ આવે તેને આપણે રોગ તરીકે ઓળખીએ છીએ. તેને માટે ઉપચાર કરીએ છીએ. આ ઉપચાર એક ઈન્ટરફેસ છે.

મનુષ્યનું ધ્યેય શારીરિક તંદુરસ્તીનું છે. અને જ્યારે ક્ષતિ આવે ત્યારે ઉપચાર કરીએ, આ ઉપચારની પ્રક્રિયાને આપણે “પથી” કે “શાસ્ત્ર” કહીએ છીએ.

જે પ્રક્રિયા કે પ્રણાલી, આપણને ધ્યેય સુધી પહોંચાડે તે પ્રક્રિયાને આપણે વાદ કે શાસ્ત્ર કહી શકીએ. ટૂંકમાં વાદ એક ઈન્ટરફેસ છે. અને તેની વિગતો એ એક પ્રણાલી છે. ઇન્ટરફેસ એ એક એવી પ્રણાલી છે જે ધ્યેય અને વ્યક્તિ બંનેને સમજે છે.

એક સવાલ ઉભો થશે.

આપણે આ સાધન કે વ્યવસ્થા કે શાસ્ત્રને સંક્રાંત વ્યવસ્થા કેમ કહીએ છીએ?

એવી તે શી જરુર પડી કે આપણે તેને સંક્રાંત કે ઈન્ટરફેસ કહેવી પડે? શું આમાં કોઈ ભાષા ક્ષતિ છે?

હોઈ શકે છે. વિદ્વાનો તેની ઉપર વિચાર કરી શકે છે. કારણ કે શબ્દનો અર્થ એ વર્ણન છે. અને આપણે વર્ણન તો કર્યું જ છે. એક પરિસ્થિતિમાંથી બીજી પરિસ્થિતિમાં જ્યારે જઈએ ત્યારે વચ્ચેના સમયને સંક્રાંતસમય કહેવામાં આવે છે. અને સંસ્ક્રાંત સમય એ એક એવો સમય છે જે તમને એક પરિસ્થિતિમાંથી બીજી પરિસ્થિતિમાં લઈ જાય છે. આ સંક્રાત સમયને આપણે રસ્તો, શાસ્ત્ર, પ્રણાલી કે સાધન કહીએ તો શું ખોટું છે? રસ્તો એ એક અંતર છે. અંતર અને સમય જુદા નથી. અંતરને શરીર માપે છે. સમયને મગજ માપે છે. શરીર અને મગજ એક જ છે.

તો હવે કહો કે નવ્ય ગાંધીવાદને કેવી રીતે સમજીશું?

આ વસ્તુ સમજતાં પહેલાં આપણે બહુ જ ટૂંકામાં ત્રણે વાદને સમજી લેવા જોઇએ.

ત્રણેનું ધ્યેય શું છે?

ત્રણેયનું ધ્યેય તંદુરસ્ત અને સુખી સમાજ તરફ જવાનું છે.

તંદુરસ્ત એટલે શું અને સુખી એટલે શું?

શરીરને ક્યારે તંદુરસ્ત કહેવાય?

જો શરીરમાં કશી ક્ષતિ ન હોય અને તેના અંગ ઉપાંગો બરાબર કામ કરતા રહે તો તેને તંદુરસ્ત કહેવાય. જેમ શરીર તંદુરસ્ત તેમ તેનું ટકાઉપણું વધારે. એટલે કે આયુષ્ય વધારે.

INTERFACIAL HYPOTHESIS

સુખી એટલે શું?

સુખ એટલે આનંદ. આનંદ શારીરિક પણ હોય અને બૌદ્ધિક પણ હોય. અંતે તો મન જ આનંદિત થાય છે. બુદ્ધિ પણ શરીરનું અંગ છે. બુદ્ધિનું કામ જ્ઞાન મેળવવાનું છે. એટલે જેમ જ્ઞાન વધારે તેમ આનંદ વધારે.

જે પરિસ્થિતિ ઉભી કરવાથી વધુ આનંદ અને લાંબા સમયનો આનંદ મળે તે પરિસ્થિતિએ પહોંચવા માટે જે સામાજિક વ્યવસ્થા શાસ્ત્ર કામ લાગે તેને વાદ કહેવાય.

મૂડીવાદ શું કહે છે?

માનવ સમાજ માનવોનો બનેલો છે. પણ બધા માનવોના વલણો એક સમાન ન હોવાથી, દરેક માનવ પોતાની ઈચ્છા પ્રમાણે કાર્યની પસંદગી કરે. કાર્યની પસંદગીની સ્વતંત્રતા દરેક માનવને હોવી જોઇએ. કાર્ય દ્વારા તેને બદલો મળે છે. જે વધુ ઉપયોગી કાર્ય (જેની માંગ વધુ હોય તેને વધુ ઉપયોગી ગણવું) કરશે તેને વધુ બદલો મળશે. આ બદલાનો સંચય કરવાની પણ તેને સ્વતંત્રતા રહેશે.

એક માનવ બીજા માનવને નુકશાન ન કરી શકે તે માટે માનવોનો સમૂહ નીતિ નિયમો બનાવી તેને નિયંત્રિત કરશે.. જનપ્રતિનિધિઓ, માનવની ક્ષમતા વધે તે માટેની વ્યવસ્થા પ્રણાલીઓ સ્થાપશે અને તેનું  નિયંત્રણ કરશે. જનપ્રતિનિધિની દ્વારા થતી વહીવટી વ્યવસ્થા પારદર્શક રહેશે.

સામ્યવાદ શું કહે છે?

માનવ એ સામાજીક પ્રાણી છે. અને તે સમાજને આધિન છે. તેથી સમાજને કેન્દ્રમાં રખાશે. આ વિચાર ધારાને માન્ય રાખનારાઓનું જનપ્રતિનિધિત્વ બનશે. તે વ્યવસ્થા ગોઠવશે. આ વ્યવસ્થા, ઉપયોગી વસ્તુનું ઉત્પાદન અને વહેંચણી કરશે. તે માટેની પ્રણાલીઓ અને વ્યવસ્થા ગોઠવાશે. કામની વહેંચણી કરાશે, ઉત્પાદન અને વિતરણ ઉપર નિયંત્રણ રાખાશે. વહીવટી વ્યવસ્થા જનહિતમાં, સ્થાપિત હિતોને ડામવા માટે હોવાથી, આ વહીવટી વ્યવસ્થાઓને પારદર્શક રાખવામાં આવશે નહીં

સર્વોદયવાદ શું કહે છે?

માનવ એ સમાજનો એક અંશ છે. સમાજમાં ફક્ત મનુષ્ય જ નહીં પરંતુ એક બીજાના આધાર ઉપર નભતી સમગ્ર ઈશ્વરીય સૃષ્ટિના દરેક સજીવ નિર્જીવ પદાર્થો ઈશ્વરીય વ્યવસ્થાનો અંશ છે. આ ઈશ્વરીય વ્યવસ્થા એ સમાજ છે. આ એક વૈશ્વિક સમાજ છે. આ સમાજનું સંતુલન જળવાઈ રહે અને મનુષ્ય સૌની સાથે સામુહિક આનંદ ભોગવી શકે તેવી જ વ્યવસ્થા ગોઠવાવી જોઇએ.

અત્યાર સુધીની દરેક વ્યવસ્થાઓએ સૃષ્ટિમાં અને માનવસમાજમાં પણ માનસિક અને ભૌતિક અસમાનતા સર્જી છે. તેથી વ્યવસ્થા અહિંસક અને શોષણહીન હોવી જોઇએ. ઉત્પાદન અને વહેંચણીના એકમોનો વહીવટ જેટલો વિકેન્દ્રિત રખાશે તેટલો અનુત્પાદક ખર્ચ ઘટશે.

ગામડાઓને મોટા અંશે સ્વાવલંબી બનાવવા પડશે. તેથી માનવ અને માલનો સ્થળાંતર કરવા માટેનો અનુત્પાદક ખર્ચ ઘટશે. વ્યવસ્થા એવી ગોઠવવી પડશે કે શહેરો અને ગામડાં એક બીજાના પૂરક બને. અસમાનતા એટલી હદે નહીં વધવા દેવામાં આવે કે જેથી એક માનવનો બીજા માનવ વચ્ચે કે અને એક  માનવનો સંસ્થા સાથે કે અને સંસ્થાનો માનવ  સાથે અસંવાદ કે વિસંવાદ ઉત્પન્ન થાય.

માનવના ઉત્કર્ષની શરુઆત છેવાડેના માણસના હિતને પ્રાથમિકતા ઉપર રાખી કરવામાં આવશે.

મનુષ્ય શું છે? ઉત્કર્ષ શું છે? સમાજ શું છે? ધ્યેય શું છે? સુખ શું છે? આનંદ શું છે? આ બધું જો વિસ્તારથી સમજવું હોય તો આજ બ્લોગ સાઈટ ઉપર ગાંધીવાદ અને અદ્વૈતવાદ ઉપરના લેખો સમય મળે તો વાંચવા.

હાલની પ્રવર્તમાન સ્થિતિને તંદુરસ્ત અને સુખી સમાજ તરફ કેવી રીતે લઈ જવો તે નવ્ય ગાંધીવાદ બતાવશે.

હાલ કેટલાક મૂર્ધન્યો “નવ્ય મૂડીવાદ” વિષે વિચારી રહ્યા છે. આપણા સામ્યવાદી ભાઈઓ “નવ્ય સામ્યવાદ” અમલમાં મુકી રહ્યા છે એમ કહી રહ્યા છે. તો આપણે નવ્ય ગાંધીવાદ વિષે વિચારીશું.

(ક્રમશઃ)

શિરીષ મોહનલાલ દવે

ટેગ્ઝઃ જ્ઞાન, સુખ, આનંદ, સમાજ, વાદ, ઉત્કર્ષ, તંદુરસ્ત, મૂડીવાદ, સામ્યવાદ, સર્વોદયવાદ, પ્રણાલી, સાંપ્રત, ઈન્ટરફેસ, સમય, અંતર, વ્યાખ્યા, વર્ણન, ઉત્પાદન, વહેંચણી,  ઈશ્વરીય, વ્યવસ્થા

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APPLOGY IS A TRAP:

Apology is vague term being used to trap BJP and NaMo.

LOCAL NEHRUVIAN CONG LEADER’S PLAN

It is nothing but decisive stupidity to give exclusive treatment to 2002 riots of Godhra Aftermath.

These riots had taken place as a reaction of blazing of Railway coach where 59 Hindus were burnt alive, under a planned conspiracy of a local leader of nehruvian congress of Godhra (this local leader had run away in Pakistan soon after blazing the coach). If on account of Godse, the whole of RSS is Godse, then it is beyond doubt that whole Nehruvian Congress and its allies are terrorists. Godse at least was devoted to his (decisive) thoughts, he did not ran away from the spot he killed MK Gandhi. But here in case of the blazing of the railway coach conspiracy of Nehruvian Congress leader, ran away to a country which is the source of production of terrorists.

HOW CAN WE EXPECT ONLY GUJARATIS SHOULD BE SAINTED?

Only individuals are not only the living organism. Each group of living organism is also a living organism with different properties, behavior and aims. Refer “One and One only Not even Two” on “Advait” at treenetramDOTwordpressDOTcom.

How can one expect Gujaratis to behave like saints, in this India whose atmosphere has been spoiled as a result of Nehruvian Congi’s rule of 60 years with anarchy?

ONE HAS TO GET QUALIFIED

Who is qualified to ask Gujaratis to behave like saints? No one is qualified.

Now look here. As for every terrorists act, Muslims and the pseudo secular use to say, it was a reaction of Muslims, due to demolition of Babri mosq at Ayodhya. Such reactions are in multiples in numbers, and appears to remain for unlimited times, right from 1993 Bombay blasts to 2008 multiple blasts.

Then how do the Muslims and the pseudo secular can qualify them selves, to defame others?

BE AWARE:

Look if Nehruvian Congress would continue to rule, the Muslims are likely to see worst situation for them due to the double standards of pseudo secular and nehruvian congress.

Soon India would get converted into a communal country like Pakistan. Pakistan is horrible for other other religions.

NARENDRA MODI IS A MAN OF FULL WISDOM:

Narendra Modi knows very well that for the common mass, the main problem is the monetary problem. Development can solve all problems. That is why people go to Gulf countries, European countries and America. Why poor mass from Bangladesh, infiltrates into India? They infiltrate mostly for searching some job, barring some political reasons.

Fortunately Narendra Modi is becoming popular and most likely to take over the rein of India is good for Muslims in India, because under the 11 year rule of NaMo, Gujarat is peaceful and does not show any reaction even the Muslim terrorists had attacked Akshardham Temple and some other places with several blast thereafter. If nehruvian cong and pseudo secular cannot have culture to appreciate this, hell is ready for them. When the God wants to destroy some body, he makes them to get lost by their brain. 

The irrational Muslims and pseudo secular should be thankful to NaMo and the people of Gujarat that they decided to remain in peace despite of several odds. Why don’t you call them saint? They have stopped reacting despite of the decisive role of Nehruvian congress in governance.

वचने किं दरिद्रता

A TRAP  IS LINKED WITH APOLOGY

I do have the reply. It is just like a question to put a person into a trap, against his NO FOUL or principles.

One should compare this episode just like Nehruvian Cong and its allies along with some secular ask Narendra Modi (to trap him), as to why Narendra Modi does not submit apology for the Godhra After Math?

According to this pseudo Secular gang, the GANG wants Modi, to make Modi responsible for the killings, on the plea that Narendra Modi was the CM, and thereby he was responsible for the Godhra Aftermath.

But Modi is clever enough to void the trap. He knows that this pseudo secular gang wants to trap him, by picking him up, exclusively. He puts a question. He says if I am guilty hang me. How one can relieve a guilty person on his apology?

This is because; many riots have taken place in India and also in Gujarat. Many of them were even bigger than 2002 of Gujarat. None of the CMs was asked to submit apology. Why only Narendra Modi exclusively is being asked to submit apology?

Similar is the case with Capital punishment to Bhagat Singh.

British asked Gandhi to request British government to reduce the punishment from capital punishment to some lower one. By asking MK Gandhi like this, they wanted to trap MK Gandhi on his principle of nonviolence. If Gandhi requests the British Government the way it wanted, the British were very much ready to trap Gandhi, to contradict him and can abuse him for his double standards. Off course MK Gandhi was the last person to deviate from his faith. He said bluntly that he is in principle against the capital punishment. Otherwise also, Gandhi had said very clearly on many occasion that British government had proved not trust worthy. British government had failed in keeping their words.

However at this moment of time, it is not desirable to favor the floating of such controversial or even any matter that can defame Mahatma Gandhi, because according to many the call of the current period is to concentrate to defeat Nehruvian Congress.

MK Gandhi is widely honored all around the world. He has become a man of inspiration of many great people. If he would be abused by some body, the group to which the critics belong, would become unauthentic and unreliable. Similar would be for Modi where Modi will be honored equally.

Shirish Mohanlal Dave

Tags: Trap, Narendra, Modi, 2002 riots, Nehruvian Congress, Local leader, conspiracy, Godhra, Railway Coach, Living organism, Group, Bhagat Singh, Gandhi, Capital punishment

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झिम्बो कम्स टु टाउन यानी केज्रीवाल कम्स  टु गुजरात

झिम्बो कम्स टु टाउन

टीवी चेनल

एक पेईड टीवी चेनल वालेने कहा मोदी गभरा (डर) गया है. अब तक मोदी सवाल पूछता था. अब मोदी गभरा गया है उसको लगा, अरे ये सवाल पूछने वाला और कहांसे पैदा हो गया?

टीवी चेनल पर टीपणी करना व्यर्थ है. उनको अपने पेटके लिये पाप करने पडते है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंको और टीवी चेनलोंको अपने अस्तित्वको सिद्ध करनेके लिये या बनाये रखने के लिये कुछ न कुछ व्यर्थ और अर्थहिन बातें करनी पडती है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस वाले पैसे देतें है. चेनलवाले अगर पैसे मिलते है तो क्यूं छोड दें? सवाल पूछना कोई बडी बात नहीं है.

अखबारी कटारीया (Columnist)

केजरीवाल जटायु इसलिये नरेन्द्र मोदी रावण

यह कटारीया महाशय वैसे तो नरेन्द्र मोदीको कटारीया, पंच (मुक्का) मारने का मौका ढूंढते ही रहते है, और अगर मौका न मिले तो भी नरेन्द्र मोदीको विशेष्य बनाके एक पंच लगा ही देते है. इस महाशयने केज्रीवालको जटायु का नामाभिकरण करके नरेन्द्र मोदीको रावण घोषित कर दिया. नरेन्द्र मोदीने कौनसी सीताका अपहरण किया है, इस बात पर यह भाईसाब मौन है. ऐसा व्यवहार वैसे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसी संस्कार है. नहेरुवीयन कोंग्रेसी कल्चर यह है कि बस कथन करते जाओ और कैसा सुंदर कहा ऐसा गर्व लेते जाओ. इन्दीरा गांधीने भी १९६८में कहा था कि मेरे पिताजी तो बहूत कुछ करना चाहते थे लेकिन ये सब बुढे लोग उनको करने नहीं देते थे. उस समयके समाचार माध्यमोंने और मूर्धन्योंने तालीयां बजायी थी. ईसी कारणसे तो इन्दीर गांधीका होसला बढा था और भारतीय जनताको नहेरुवीयनोंकी आपखुदी देखनी पडी थी और देशको हरेक क्षेत्रमें पायमाली देखनी पडी थी.  

सवाल है थ्री नोट थ्री

खुदको एक गांधी वादी और सर्वोदयी मानने वाला कटारीयाने [कटार लेखकने (प्रकाश शाहने)] दिव्यभास्कर ८, मार्च में अपनी कटारमें (कोलममें) कहा, केजरीवालने नरेन्द्र मोदी को थ्री नोट थ्री टाईप सवाल पूछे.

कटारीया लेखकश्रीको शायद मालुम नहीं है, कि, थ्री नोट थ्री का मतलब क्या होता है. शब्दों पर बलात्कार करना मूर्धन्योंको शोभा नहीं देता. कटारीया लेखकश्रीजीको मालुम होना चाहिये कि थ्री नोट थ्री लगने पर आदमी जिंदा रहेता नहीं है. और जो सवाल केज्रीवालने पूछे वे सब सवाल देशकी सभी सरकारोंको पूछा जा सकता है. अगर सवालोंके पीछे भ्रष्टाचारोंकी सच्चाई है तो केन्द्रमें नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकार है. उसको पहेले पूछो. अगर वह भी भ्रष्ट है तो पब्लिक ईन्टरेस्ट पीटीशन दाखिल करनेसे किसको कौन रोकता है?    

उसने यह भी कहा जो सुत्र हमने उससे ही पढा कि, “शीला दिक्षितको हराया है अब मोदीकी बारी है.” प्रासानुप्रास से सत्य तो सिद्ध नहीं होता है लेकिन हमारे कटारीया लेखक इसमें भावी संभावना देखते है और खुश होते है.  कटारिया लेखकश्री लिखते है; “एक (भ्रष्टाचारकी) प्रतिमा (शीला दिक्षित)को खंडित किया है. इसलिये दुसरी प्रतिमा (नरेन्द्र मोदी) भी खंडित हो सकती है.” इति सिद्धम्‌. महात्मा गांधी स्वर्गमें शायद अपने अनुयायी के ऐसे तर्कसे आहें भरतें हो गये होगे.

इमानदारी निश्चित करनेका केज्रीवालके पास यंत्र है

नहेरुवीयन कोंग्रेस तो भ्रष्ट है ही, इसलिये केज्रीवाल नहेरुवीयन कोंग्रेसके नहीं है. केज्रीवाल को बीजेपी का साथ भी नहीं चाहिये क्यों कि, बीजेपी भी भ्रष्ट है. आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार मात्रके विरुद्ध है. इसलिये वह अपने पक्षमें सभी उम्मिदवारोंकी पार्श्व भूमि देखके जांच करके उनका चयन करती है. जब तक सत्ता नहीं होती है, सब लोग इमानदार होते है. बच्चा अपने जन्मके साथ भ्रष्टाचारी होता नहीं होता है. शायद इस बात केज्रीवालको मालुम नहीं होगी.

जे एल नहेरु भी इमानदार थे. भ्रष्टाचार केवल आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं हो सकता. अविधेय और अनीतिमान तरिकोंसे सत्ता प्रप्त करना, जूठ बोलना, छूपाना, दूसरोंका हक्क छीन लेना, अपमान करना, भेदभरम करना, वेतन लेना किन्तु काम कम करना, देरसे आना, आदि सब भ्रष्टाचार ही है. भ्रष्टाचारके बारेमें नहेरुवीयन खानदानसे ज्यादा अच्छी मिसाल नहीं मिल सकती.

भ्रष्टाचार एक सापेक्ष होता है. प्रमाणभान की प्रज्ञासे ही ज्ञात हो सकता है कि किसको प्राथमिकता देनी चाहिये. हमारी गति ज्यादासे कम भ्रष्टाचारी की दिशामें होनी चाहिये. क्यों कि निरपेक्षता पूर्ण नीतिमत्ता वाला कोई होता ही नहीं है. जैसे अहिंसा सापेक्ष है वैसे ही भ्रष्टाचार भी सापेक्ष है. लेकिन केज्रीवाल को शायद यह बात मालुम नहीं है.

समय मिलने पर कौन कब भ्रष्टाचारी बन जायेगा इस बातका किसीको भी पता नहीं है. महात्मा गांधी खुद नहेरुको पहेचान नहीं पाये थे कि, वह सत्ताके लोभमें देशके अर्थ तंत्रको और देशकी शासन व्यवस्थाको गर्तमें ले जायेगा. तो यह केज्रीवाल कौन चीज है?

देखो नहेरु, गांधीजीके बारेमें कैसा सोचते थे? पढो निम्न लिखित पैरा.

नहेरु की दृष्टिमें महात्मा गांधीः
कुछ लोग समझते है कि महात्मा गांधी को नहेरु बहुत प्रिय थे. वास्तवमें ऐसा नहीं था. लेकिन गांधी तत्कालिन कोंग्रेसको तूटनेसे बचाना चाहते थे. खण्डित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गांधीजीके बारे में कहा था – ” ओह दैट आफुल ओल्ड हिपोक्रेट ” Oh, that awful old hypocrite – ओह ! वह ( गांधी ) भयंकर ढोंगी बुड्ढायह पढकर आप चकित होगे कि क्या यह कथन सत्य हैगांधी जी के अनन्य अनुयायी दाहिना हाथ मानेजाने वाले जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा कहा होगाकदापि नहींकिन्तु यह मध्याह्न के सूर्य की भाँति देदीप्यमान सत्य हैनेहरू ने ऐसा ही कहा था प्रसंग लीजियेसन 1955 में कनाडा के प्रधानमंत्री लेस्टर पीयरसन भारत आये थेभारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ उनकी भेंट हुई थी भेंट की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तक इन्टरनेशनल हेयर्समें की है
सन 1955 में दिल्ली यात्रा के दौरान मुझे नेहरू को ठीकठीक समझने का अवसर मिला थामुझे वह रात याद हैजब गार्डन पार्टी में हम दोनों साथ बैठे थेरात के सात बज रहे थे और चाँदनी छिटकी हुई थीउस पार्टी में नाच गाने का कार्यक्रम थानाच शुरू होने से पहले नृत्यकार दौडकर आये और उन्होंने नेहरू के पाँव छुए फिर हम बाते करने लगेउन्होंने गांधी के बारे में चर्चा कीउसे सुनकर मैं स्तब्ध हो गयाउन्होंने बताया कि गांधी कैसे कुशल एक्टर थेउन्होंने अंग्रेजों को अपने व्यवहार में कैसी चालाकी दिखाईअपने इर्दगिर्द ऐसा घेरा बुनाजो अंग्रेजों को अपील करे गांधी के बारे में मेरे सवाल के जबाब में उन्होंने कहा – Oh, that awful old hypocrite नेहरू के कथन का अभिप्राय हुआ – ” ओह ! वह भयंकर ढोंगी बुड्ढा( ग्रन्थ विकास , 37 – राजापार्कआदर्शनगरजयपुर द्वारा प्रकाशित सूर्यनारायण चौधरी की ‘ राजनीति के अधखुले गवाक्ष ‘ पुस्तक से उदधृत अंश )

नेहरू द्वारा गांधी के प्रति व्यक्त इस कथन से आप क्या समझते है?

महात्मा गांधी जैसा महान आर्षदृष्टा भी नहेरु कभी ऐसा बोल सकते है वह समझ नहीं पाये. यह बात सही है कि शायद नहेरुके पागलपनसे ही उन्होने कोंग्रेसको समाप्त करनेकी सलाह दी थी. लेकिन जो नहेरु क्रीप्स कमीशनका बहिष्कार नही कर सकता था वह सत्ता देनेवाली कोंग्रेसका कैसे विलोप कर सकता है. सरदार पटेल नहेरुके भरोसे कोंग्रेसको और देशको छोडना नहीं चाहते थे. इसलिये जब तक सरदार पटेल थे तब तक न तो तिबत्त पर चीन हमला कर सका न तो भारत सरकारने चीन का सार्वभौमत्व तिबत्त पर स्विकारा, न तो भारत सरकारने पंच शील का करार चीनके साथ किया.       

सवालों के आधार पर केज्रीवालका ग्लोरीफीकेशन?

छोटे बच्चे भी कई सवाल करते है. सवाल करके अपना ज्ञान बढाते है और दुनियाको समझते है. लेकिन जब मनुष्यकी उम्र बढती है तो वह वह सवाल कम पूछता है और जवाब अपने आप ढूंढता है. और जवाब ढूंढनेके लिये दूसरोंसे सलाह मशवरा करता है.

केज्रिवालने क्या किया?

उसने गुजरातमें आनेसे गुजरातकी पोल खोलनेका मनसुबा बना लिया था. केज्रीवाल के एक साथीने तो उद्घोषित भी कर दिया कि, नरेन्द्र मोदी यह बताये कि वह कहांसे चूनाव लडने वाला है. हमारे केज्रीवाल वहांसे ही चूनाव लडेंगे. हमारे उपरोक्त खुदको गांधीवादी मनानेवाले कटारीया लेखश्रीने तो लिख ही दिया जब नरेन्द्र मोदीको पता चला कि अगर वह बनारससे चूनावके लिये खडा रहेगा तो केज्रीवाल उसके सामने खडा रहेगा. तो नरेन्द्र मोदीने अब बनारससे चूनाव लडना रद कर दिया है. वैसे नरेन्द्र मोदीके बारेमें और उसके व्यावहारोंके बारेमें उसके विरोधींयोंने अफवाहें फैलानेका बडा शौक बना रखा है. वे अफवाहोंवाली भविष्यवाणी भी करते हैं और खुदको खुश करते हैं.

अफवाहें फैलाओ और तत्कालिन खुश रहो

गुजरातीमे एक मूंहावरा है. मनमें ही मनमें शादी करो (खुशी मनाओ) और बादमें रंडापा भी भुगतो. क्योंकि वास्तविक शादी तो की ही नहीं है.  [मनमांने मनमां परणो अने मनमांने मनमां पछी रांडो].

वैसे तो सियासतमें ऐसी प्रणाली नहेरुने चालु की थी. ईन्दीराने सरकारी तौरसे अफवाहें फैलानेका बडे पैमाने पर चालु किया था. आपतकाल इन्दीराई सरकारके लिये अफवाहें फैलानेका सुवर्णकाल था. यह तो नहेरुवीयन कोंग्रेसीयों की आदत ही बन गई है. तो उनके साथमें वैचारिक या मानसिकता से साथ रहनेवाले कैसे अलिप्त रहें? “अगर गैया भी गधोंके साथ रहें तो कमसे कम लात मारने की आदत बना ही देती है”. वैसे तो ये नहेरुवीयन कोंग और उसके साथी गैया जैसे नहीं है. वैसे तो ये सब नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह वृकोदर ही है.

मान न मान मैं तेरा महेमान?

गुजरातकी नहेरुवीयन कोंगीनेता नेताने कहा कि नरेन्द्र मोदीको केजरीवालको मिलना चाहिये था.  केजरीवाल तो गुजरातका महेमान था. महेमानको मिलनेसे इन्कार करना महेमानका अपमान है.  केज्रीवालने भी यह बात दोहराई है.

गुजरातके महेमान केज्रीवाल

यह एक ऐसा महेमान है, जिसने नरेन्द्र मोदीको कहा ही नहीं कि मुझे तुम्हे मिलना है. केज्रीवालने यह अवश्य कहा कि, मैं गुजरातकी पोल खोलने वाला हुं. चलो इस बातका स्विकार करते है कि, महेमान तिथि बताके आते नहीं है. लेकिन क्या कभी महेमान, पहेले पूरा घुमघामके यजमान की भरपेट बुराई करके यजमानके पास जाते है? 

महेमानने क्या किया?

केज्रीवालने सबसे पहेले तो भरपेट रेलीयां की. वैसे रेलियों की गुजरातमें कमी नहीं. क्यों कि नहेरुवीयन कोंग्रेस यही काम ११ सालोंसे गुजरातमें कर रही है. जब पूरे देशमें आपतकाल था और सभा सरघसकी पाबंदी थी, तब गुजरातमें कुछ समय तक जनता मोरचेकी महात्मा गांधीवादी बाबुभाई जशभाईकी सरकार थी. बाबुभाई जशभाईने लोकशाही मूल्योंको नष्ट किया नहीं था. तब ये नहेरुवीयन कोंग्रेसी बाबुभाई जशभाई पटेलकी सरकारके विरुद्ध प्रदर्शन करते ही रहते थे. इन्दीरा गांधी विपक्षको खुदके विरुद्ध किये गये प्रदर्शन के कारण गालीयां देती रहती थीं, उसका मापदंड अपनोंके लिये अलग ही था. पूरे देशमें आपतकालकी नहेरुवीयन आपखुदी चल रही और लोकशाही मूल्योंका गला घोंट दिया था. तब बाबुभाईने गुजरातमें लोकशाही को जिन्दा रक्खी था.

जनता यह खूब समजती हैं कि रेलियां मुफ्तमें नहीं होती है यह बात रेली करने वाले भी सब लोग जानते है. केज्रीवालकी रेलीयां भी मुफ्तमें होती नहीं है. अगर घीसेपीटे आक्षेप ही करना है और सूत्रोच्चार ही करने है तो अखबार वालोंको और टीवी वालोंको फोटु खींचवाने के लिये बुलाना ही पडेगा. बेनर और प्लेकार्ड भी बनाना पडेगा. रेलीयोंमे इस गुजरातके महेमानने नरेन्द्र मोदीको बिना विवरण वाले आक्षेप किये. और बादमें नरेन्द्र मोदीको मिलने गये. केज्रीवाल वैसे तो खुदको आम आदमी है वैसा समझानेकी भरपूर कोशिस करते है, लेकिन नरेन्द्र मोदीके पास खुदको भूतपूर्व सीएम बताया. अगर केज्रीवाल भूत पूर्व सीएम भी है, तो उनको अपनी मुलाकात पूर्वनिश्चित करने चाहिये थी.

नरेन्द्र मोदीने क्या कहा?

“साक्षीभावसे मिलनेके लिये आये होते तो जरुर मिलता”

यह नरेन्द्र मोदीका उच्च संस्कार है कि उसने केज्रीवाल को यह नहीं बताया कि रेलीयोंमे मुझ पर आक्षेपबाजी करके अब महेमान बनके कैसे आ रहे हो?

नरेन्द्र मोदीने परोक्षरुपसे यह संदेश दिया, कि देखो भाई देशमें कई समस्या है. उसका समाधान निकालना एक शैक्षणिक कार्य है. इसके बारेमें बिना आक्षेप किये, चर्चा हो सकती है. यह चर्चा तटस्थ रुपसे और विवेकपूर्ण होनी चाहिये. ऐसा करना भारतीय संस्कृतिकी परंपरा है. शंकराचार्यने भी तत्वज्ञानकी चर्चा ऐसे ही की थी. उन्होने किसीके उपर आक्षेपबाजी करके चर्चा नहीं की थी. जब हमें सत्यको ढूंढना है तो खुदके मनको समस्यासे अलिप्त रखना चाहिये. इसको गीतामें साक्षीभाव कहा गया है. हे केज्रीवालजी आप अगर   साक्षीभावसे आये होते तो मैं आपको अवश्य मिलता और चर्चा भी करता.

नरेन्द्र मोदीके और केज्रीवालके संस्कारके इस भेदको समझना अखबारी मूर्धन्योंके लिये, और खुद केज्रीवालके लिये बसकी बात नहीं. समस्याके समाधानके लिये साक्षीभाव लानेकी बात इनके दिमागके बाहर की बात है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः महेमान, गुजरात, भूतपूर्व, सीएम, आम आदमी, केज्रीवाल, नरेन्द्र मोदी, मुलाकात, नहेरुवीयन संस्कार, प्रदर्शन, बुराई, लोकशाही मूल्य, गलाघोंटना, साक्षीभाव, अखबारी, कटार  लेखक, मूर्धन्य, दिमागके बाहर  

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर

(नहेरुवीयन कोंग रहस्य)

के अनुसंधानमें इसको पढें

नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लिये, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.

नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थी, वह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लिया. नहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थे. उन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लिया. उनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थी. लेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था तो समाधान कारी टीका कर सकता था.

नहेरुकी तरह  ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.

मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थे. इस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई

ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थी. चूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचके) देनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहोजनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहो. समाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.

जर्क देने वाली प्रवृत्तिः

पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः

१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः

आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार

ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?

ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थे. मुझे गरीबी हटानी है. इसलिये मेरा नारा हैगरीबी हटाओ”.

समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दी. क्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करें, वे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.

राष्ट्र प्रमुख का चूनाव पडा था. सींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुख. पक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थे. ईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थीं. उन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दिया. वह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.

ईन्दीरा गांधीनेआत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया कि, राष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहिये. आत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देना. राजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव है. विपक्ष बिखरा हुआ था. जो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनाया. कोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते है, उनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहित, जरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.

ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने  संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाई. यह बात गैर कानुनी थी. फिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गया. कोई रोक टोक हुई नहीं.

राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान है. उस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गये. इस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुए. ईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवाया. इसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त की. कथा तो बहुत लंबी है. असली कोंग्रेस कौन? क्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थी. जो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.

ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगा. क्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थे. मूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एन) से उल्लेखित किया गया. दुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस (ओर्गेनीझेशन).   

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.

जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः

१९६९-७०का चूनाव

जनताको कैसे विभाजित करें?

गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं था. लेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था कि, नहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०-६५के उपरके हो गये थे) नहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थे. इसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ कि, अब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास आ गया है. अब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.

युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग था, राजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें आ गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते है. साधानशुद्धि, प्रमाणभान, प्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.

नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थे. जो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गये. इन नामोंमे जगजिवनराम, यशवंतराव चवाण, ललित मिश्रा, बहुगुणा, वीपी सिंग आदि कई सारे थे.

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा

गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया था. लेकिन वह पर्याप्त नहीं था. १९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय है. यह एक लंबी कहानी है. परिणाम यह हुआ कि, मोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गया. और १९६९७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें भी उसको २४मेंसे बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थीं. यह हो सकता है कि, मुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था. १९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्ष, संयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थे. लेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता

जितके कारण और विधानसभा चूनाव

१९७१में पाकयुद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिली. उसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया. १९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजाय, अन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.

मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दिया. नवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती है, इसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.

चूनाव प्रपंच और गुड  गवर्नन्स अलग अलग है     

इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थीं, लेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थीं. विदेश नीति रुस परस्त थी. सिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया था. इन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थींमहंगाई और करप्शन बहुत बढ गये. इन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थीं, इसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गया. समाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थीं. गुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्र, नहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गये. सर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.

इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा था. गुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा था. ईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है. गुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थी. और नया चूनाव भी देना पडा था. उसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीय, आदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थी. गुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा था. विपक्ष एक हो रहा था. इन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.

सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा की, और विरोधियोंको जेल भेज दिया. समाचार के उपर सेन्सरशीप लागु की. सभा, सरघस पर प्रतिबंध लागु कर दिया. क्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा कि, समाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा है. आपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा था, क्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं था. गवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता है. यह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम है. यह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं है.

सियासतमें लचिलापन चल सकता है. गवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं है. इन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थीं. जो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकते. इन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते है, और सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको  ही मतदान करेगी. आपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा था. इन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास किया. लेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार किया. इतना ही नहीं यह भी पता चला कि, भारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज सके.

१९८०का चूनाव

इन्दीरा गांधीने १९६९  से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.

गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२७३में इन्दिरा की ईच्छा होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थी, कि इन्दीरा गांधीने तेलमीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया था. उत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश था. अंकूश पैसेसे बिकते थे. युनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था. १९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे. १९७९८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थी. आपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है कि, जमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थे. आज जो राजकारणमें पैसेकी, शराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती है, उसके बीज नहीं, लेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.

१९७७ में जब खिरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं है, तो उसने उम्मिदवारोंको राम भरोसे छोड दिया. नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी कि इन्दीराने पैसे भेजना बंद कर दिया था.

१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आये. चरण सिंह, जिन्होने खुदको महात्मा गांधीवादी मनवाया था, वे इन्दीराको बिक गये. मोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिराया. नये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगे. समाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा की. ईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.

आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध

१९८०१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआ. पंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा किया. इन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थीं. इन्दीरा गांधीने जैसी अनिर्णायकता बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें रखी थी वैसी अनिर्णायकता और कमजोरी इसने आतंकवादके उपर कदम उठानेमें रक्खी, वैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें किया. ईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातार शस्त्रोके साथ घुसने दिया और आश्रय लेने दिया.

दुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को पकड सके. भारतमें भी अगर कोई गुनाहगार धार्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकती, ऐसा कोई कानुन नहीं है. लेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लिये, एक कानुन पास किया कि, अगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती है. जब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गया. लेकिन बहुत देर हो चूकी थी. कई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे. आतंकवादीयोंका होसला बढ गया था. पाकिस्तानने इन खालीस्तानी आतंकवादीयोंकी मददसे भारतमें इस्लामिक आतंकवादका संगठन का बीज बो दिया. और पाकिस्तानको यह इस्लामिक नेटवर्क द्वारा भारतमें आतंकवाद फैलानेमें बहुत मदद मीली. सिमला करार नपुंसक सिद्ध हो गया.

क्रमशः

शिरीष मोहनलाल दवे

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