खुशवंत सिंह जो शेरकी खालमें शृगाल था
खुशवंत सिंह को कुछ लोग खुशामतसिंह भी कहते थे.
क्या खुशवंत सिंह शेर थे यानी कि निडर थे?
क्या ऐसा भी हो सकता है?
अगर दुधपाकमें सर्कराकी जगह नमक डले तो वह क्या दुधपाक माना जायेगा?
अगर महाराणा प्रतापका घोडा चेतक युद्धभूमिमें घुसनेसे इन्कार करे तो राणा प्रताप उसको प्यार करते?
अगर देशप्रेमकी बांगे पूकारने वाला कोई सरदार, दुश्मनके आगे घुटने टेक दें तो वह क्या वह सरदार कहेलायेगा?
क्या कोई वीर अपने देशके अपमानका बदला लेनेकी प्रतिज्ञा ले और उसका पालन भी न करे तो वह क्या रघुवंशी कहेलायेगा?
अगर खुदको शूरवीर प्रस्तुत करनेवाला चोर आने पार दूम दबाके भाग जाय या चोरसे जिवंत पर्यंत दोस्ती करले तो क्या वह शूरवीर माना जायेगा?
इस बात पर यही कहेना पडेगा कि जो शेर कुत्तेसे डरकर भाग जाता है वह शेर नहीं कहेलाता.
बकरीकी तीन टांग
तो यह खुशवंत सिंह जिसको समाचार माध्यमोंके कई मूर्धन्योंने सदाकाळ और उसकी मृत्युके अवसर पर तो खास, एक निडर पत्रकार लेखक घोषित किया उसमें कितना तथ्य और कितनी वास्तविकता?
जिनको नहेरुका और उनकी लडकी इन्दीरा गांधीका शासन काल और कार्य शैलीका ज्ञान नहीं और उस समय खुशवंत सिंह कहां थे वह मालुम ही नहीं हो उसके लिये खुशवंत सिंहकी निडरताकी बातें बकरीके तीन टांग जैसी है. लेकिन उसका मतलब यह नहीं कि वे लोग अपनी अज्ञानता उनके विवेकशून्यता का कारण बता दें.
खुशवंत सिंहको निडर कहेना क्या मजाक है या वाणी विलास है?
नहेरुका समर्थन करना नहेरुकी रुस और चीन परस्तीवाली विदेश नीतिको समर्थन करनेके बराबर है. नहेरु अपनेको जन्म मात्र से हिन्दु समझते थे. कर्म और विचारसे नहीं. धार्मिक विचार धारा कैसी पसंद करनी है, यह अपनी अपनी पसंदगीका विषय है. लेकिन जब अगर कोई नेता राजकीय प्रवृत्तिमें है और जन विकासके लिये अपनी नीतियां बनाता है तब उसको अपनी नीतियोंके बारेमें आज और कलका ही नहीं परसोंका भी सोचना चाहिये. अगर नेता इस बारेमें सोचता नहीं है तो वह नेताके योग्य नहीं. उसके समर्थकों बारेमें भी हमें वैसा ही सोचना चाहिये.
नहेरुकी विदेशनीति देशके लिये विद्ध्वंशकारी थी. उसका व्यापक प्रभाव है
नहेरुका सर्वग्राही समर्थनमें उनकी परिपेक्षित विदेश नीति का समर्थन भी हो जाता है.
नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि सरदार पटेलने जो चेतावनी दी थी वह गलत थी उसका स्विकार करना.
नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि राजगोपालाचारी और जेबी क्रिपलानी, महावीर त्यागी आदि कई नेतागण संसदमें जो समाचार देते रहे थे उसको नहेरु गलत मानते रहेते थे और उनके सुझावोंकी अवमानना करते थे तो इस बातमें उन सभी महानुभावोंको गलत समझना और नहेरुको सत्यवादी समझना.
नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि जब सत्य सामने आया और चीनने भारत पर हमला करके भारतकी ९०००० (नब्बे हजार चोरस मील) भूमि पर कबजा जमा लिया), तो भी १९६७के चूनाव में नहेरुकी पूत्री इन्दीरा गांधीका समर्थन करना ऐसा ही सिद्ध होता है.
नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि, इन्दीरा गांधी नहेरुकी नीतियोंकी समर्थक थी. इस कारण इन्दिराका और उसके साथीयोंका समर्थन करना यह ही सिद्ध करता है कि भारतको नहेरुवीयनोंकी आत्मकेन्द्री और देशको बरबाद करनेवाली नीतियोंका अगर आप समर्थन करते है.
इस कारण से नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि तो शायद आपकी दिमागी खराबी है या तो आप भी आत्मख्यातिकी प्रच्छन्न ध्येय के सामने देश हितको गौण समझते है.
नहेरुकी विदेश नीतिका समर्थन करना मतलब है कि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी (नहेरु, इन्दिरा आदिकी विदेश नीतियोंके कारण भारतके हजारों जवान बेमौत मारे गये और देशकी आर्थिक विनीपात आपकी कोई गिनतीमें नहीं.
अगर ऐसा नहीं है तो आप कभी खुशवंत सिंह को निडर पत्रकार कभी नहीं मान्य रखते.
निडर कौन है?
निडर वह है जो यातनाओंसे डरता नहीं है. साथ ही साथ कमजोर आदमी भी वह निडर आदमीसे डरेगा नहीं. क्यों कि कमजोर आदमी भी निडरके पास सुरक्षित है.
निडरता वैसे तो एक सापेक्ष सदगुण है
जब नहेरुकी पुत्रीने अपनी सव्रक्षेत्रीय प्रशासनीय निस्फलताको छिपानेके लिये आपातकालकी घोषणा की, तो जिन मूर्धन्योंने इन्दीराके आपातकालका समर्थन किया उन डरपोक मूर्धन्योंमे खुशवंत सिंह भी थे.
जब कोई व्यक्ति आपातकालका समर्थन करता है तब उसके खुदके बारेमें कई और बातें भी सिद्ध हो जाती है.
अगर आप आपतकालका समर्थन करते है तो आप अपने आपमें यह भी सिद्ध मान लेते हो;
महात्मा गांधीके वैचारिक और निवासीय अंतेवासी जय प्रकाश नारायण पथभ्रष्ट थे और उनको जेलमें भेजना आवश्यक था.
देशकी समस्याओंका कारण इन्दिराका शासन नहीं था, लेकिन जो लोग इन्दिरा गांधीकी विफलताका विरोध कर रहे थे वह विरोध ही विफलताका कारण था.
लोकशाहीमें विरोधी सुर उठानेवाले और जन जागृतिके लिये मान्य प्रक्रियाका सहारा लेनेवाले देश द्रोही है.
यह भी कम है. आगे और भी देखो;
जिन लोगोंने आपातकालका विरोध किया नहीं था, लेकिन भूतकालमें इन्दिराका विरोध किया था और (और ही नहीं या भी लगा लो) या तो भविष्यमें विरोध कर सकते है, उनको भी जेलमें बंद कर दो. इसकाभी आप समर्थन करते है.
समाचार माध्यम पर शासकका पूर्ण निरपेक्ष अधिकार और शासकका अफवाहें फैलानेका अबाधित अधिकार और सुविधा इसका भी आप समर्थन करते है.
मतलब की आप (खुशवंत सिंघ), शासकको संपूर्ण समर्पित है. आपका शरीर एक शरीर नहीं एक रोबोट है, जिसका कोई जैविक अस्तित्व नहीं है. आप एक अस्तित्व हीन निःशरीरी है. यह बात आपने पहेले से ही सिद्ध कर दी है.
खुशवंत सिंह की दाढी और धर्म की चर्चा हम नहीं करेंगे.
स्वर्ण मंदिर पर हमले की बात भी कभी बादमें (२५वी जुन पर) करेंगे.
ईशावास्य उपनिषदमें लिखा हैः
असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता,
तांस्ते प्रेत्याभि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः (१–३)
जो लोग विवेकशील बुद्धिका अभाव रखकर अंधकारसे आवृत रहते है वे लोग आत्माको जानते नहीं और वे हमेशा अंधकारमें ही रहेंगे क्यों कि उन्होने अपनी आत्माको नष्ट किया है.
निडरता सापेक्ष है
आपतकालमें जो लोग निडर रहे उसके प्रमाणित निडरता क्या क्या थी? हम उनको इस प्रकार गुण (मार्क्स) देंगे;
१०० % गुण; ऐसे लोग, वैसे तो इन लोगोंका काम शासनका विरोध था ही नहीं, लेकिन क्यूं कि मानव अधिकार का हनन हुआ तो उन्होने खूल्ले आम विरोधका प्रारंभ किया.
उदाहरण; भूमिपूत्रके संपादक गण. नानुभाई मजमुदार, कान्तिभाई शाह
१०० % गुण; जो लोग वास्तवमें महात्मा गांधीकी परिभाषा के हिसाब से निडर थे उन्होने लोक जागृतिकी प्रवृत्ति खुल्लेआम चालु रखी और कारावासको भूगतनेके लिये हमेशा सज्ज रहे.
उदाहरण; “ओपीनीअन” के मालिक पदत्यागी आईसीएस अधिकारी “गोरवाला”
९९ % गुण; जेल जानेसे डरते नहीं थे लेकिन जनता सत्यसे विमुख न रहे इसलिये भूगर्भ प्रवृत्तिद्वारा समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिये अपनी जिंदगीभरकी पूरी बचतको खर्च कर दिया.
उदाहरण; भोगीभाई गांधी
७५% गुण; वे लोग जेल जानेसे डरते थे या तो व्यर्थ ही जेल जाना चाहते नहीं थे इस लिये भूगर्भ प्रवृत्ति जितनी हो सके उतनी करने वाले.
उदाहरण; नरेन्द्र मोदी और उसके कुछ साथी, सुब्रह्मनीयन स्वामी, जोर्ज फर्नाडीस, आदि कई लोग
५०% गुण; वे लोग जेल जानेसे डरते थे लेकिन शासनके विरोधी तो बने ही रहने चाहते थे लेकिन कुछ समयावधिके लिये निस्क्रीय हो गये.
उदाहरण; विनोबा भावे और सर्वोदयी मित्रगण
४०% गुण; वे लोग जो जेल जानेसे डरते थे लेकिन शासनके विरोधी तो बने ही रहने चाहते थे लेकिन निस्क्रीय हो गये.
उदाहरण; सुज्ञ जनता, सुज्ञ मूर्धन्यगण
३०% गुण; वे लोग जो सरकारी माध्यमोंके द्वारा किये गये प्रचारसे द्विधामें पड गये और मौन हो गयेः उदाहरण; आम जनता
२०% गुण; वे लोग जो समाचार पत्रमें शासन के बारेमें गतिविधियोंका विश्लेषण करते थे और अपनी कोलम चलाते थे, उन्होने अपनी कोलम चालु रखनेके लिये कोई और विषय पर चर्चा चलाने लगे. या तो असंबद्ध बातें लिखने लगे.
उदाहरण; ख्याति प्रिय स्वकेन्द्री अखबारी मूर्धन्य गण
००% गुण; वे लोग जो समझने लगे कि सियासतसे दूर ही रहो.
उदाहरण; आम जनता
अब सब ऋणात्मक गुण प्राप्त करने वाले आते हैः
(–५० % गुण); वे लोग जो मानते थे कि इन्दिरा को पछतावा होता था और वह डर डर कर रहेती थी,
(–६०% गुण); वे लोग जो कहते थे अरे उसने तो आपातकाल हटा लिया था. और बादमें उसने घर घर जाके अफसोस जताया था.
उदाहरण; अखबारी मूर्धन्य कान्ति भट्ट (जंगलमें मोर नाचा… हा पस्तावा, विपूल झरना, स्वर्गसे नीकला है… पापी उसमे गोता लगाके पूण्यशाली बनेगा)
(–७० % गुण); वे लोग जो बोलते थे कि आपात काल घोषित करने कि इन्दिराकी तो ईच्छा नहीं थी और वह अस्वस्थ थी
(–८० % गुण); वे लोग जो बोलते थे कि, क्या करती वह इन्दिरा? सब उसके पीछे पड गये थे. इसलिये उसने आपात काल घोषित किया
(–९० % गुण); वे लोग जो बोलते थे “लोकशाहीने क्या किया. कुछ नही. अब इन्दिराको अपने तरिके से काम करने दो”.
(–९५ % गुण); हम भारतीय, लोकशाहीके लायक ही नहीं है.
उदाहरण; शिवसेना,
(–९९ % गुण); वे लोग जो बोलते थे अरे भाई हमारा तो नहेरुसे कौटूंबिक नाता है. हमें तो उसका अनुमोदन करना ही पडेगा.
उदाहरण; जिसने “सूतकी माला” लिखके महात्मा गांधीको अंजली दिया था, उसने आपात कालमें “जूठकी माला” लिखनी चाहिये थी और उसको इन्दिराको पहेनानी चाहिये थी. अमिताभ बच्चन के पिता
(–९९.९ % गुण); अरे भाई, इन्दिरा और मैं तो साथमें पढे थे,
उदाहरण; बच्चन कुटुंब
(–१०० % गुण); जो लोग बोलते थे; वाह वाह इन्दिरा गांधी वाह वाह. इन्दिरा गांधी तूम आगे बढो हम तुम्हारे साथ है.
उदाहरण; साम्यवादी नेतागण, नहेरुवीयन कोंग्रेसके बंधवा, खुशवंत सिंघ, आदि.
खुशवंत सिंह पर कुछ मूर्धन्य इसलिये फिदा है कि खुशवंत सिंह चिकनी चुकनी बातें लिखते थे. क्या चिकनी और गुदगुदी कराने वाली बातें लिखनेसे आदमी निडर माना जाता है?
अरे भाई, खुशवंत सिंह की मौत हुई है. मौतका तो मलाजा रक्खो?
क्या वह कभी जिन्दा भी था? उपर पढो; “(तांस्ते प्रेत्याभि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः)”
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः खुशवंत सिंह, नहेरु, इन्दिरा, लोकशाही, आपातकाल, गुण, ऋणात्मक गुण, निडर