अनीतियोंसेपरहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जोजितावहसिकंदर (नहेरुवीयनकोंगरहस्य)-६
(इसलेखको“अनीतियोंसेपरहेजक्यों? जोजितावहसिकंदर-५” केअनुसंधानमेंपढें)
२०१४केचूनावमेंनहेरुवीयनकोंग्रेसकारवैयाकैसारहेगा?
कोंगीसमझतीहैकिजबतकदेशमेंगरीबी, निरक्षरता, कोमवादऔरजातिवादरहेगातबतकहमारेलियेजितनेकीसंभावनाज्यादारहेगी.
कोंगी,वहीवटमेंसुधारलानेमें मानतीहीनहींहै. क्योंकिवहीवटमेंसुधारआजाय, तो इसकामतलबहोताहैकिप्रणालीहीऐसीबनेकिसिफारीसकरनेकीकिसीकोजरुरतहीनपडे. अगरऐसाहोजायतोजनप्रतिनीधियोंकानिम्नऔरउच्चस्तरोंपरदबावलानाजरुरीहीनबने. यह तो खुदका महत्व घटानेकी बात हुई. अपने ही पांव पर कुल्हाडी मारने जैसा है.
माहितिअधिकारकोबेअसरकरनेकाकोंगीकामकसदरहाहै. पर्याप्तहदतकउसकोबेअसरकियाभीहै. खेमकाऔरवाड्राकाएपीसोडहमारेसामनेहै.
१९६९से कोंगीका संस्कार बना है कि भ्रष्ट लोगोंको ही पक्षमें लो,
अगर कोई हमारे पक्षमें नीतिमान है तो उसको अनीतिमान बनाओ
नंबरवन पोस्ट हमेशा नहेरुवीयन के लिये आरक्षित रक्खो,
विरोधीयों पर चार आंख रक्खो,
उसको ब्लेकमेल करके उसका सपोर्ट लो, अगर कोई विरोधी नीतिमान है या तो उसको नंबरवन पोस्टकी ईच्छा आकांक्षा है, या तो अपनी सफलताओंका श्रेय वह नहेरुवीयनों को देनेके बजाय खुद लेता है तो उसके विरुद्ध अफवाहें फैलाओ, उसको बदनाम करो और उसको पक्षमें से निकाल दो. राजगोपालाचारी, मोरारजी देसाई, बहुगाणा, चरणसिंग, वीपी सिंग, ऐसे कई उदाहर है. लेकिन विपक्षमें ऐसा कोई असाधारण नेता है तो उसको सत्ताका भूखा, सरमुखत्यार, आपखुद, ऐसा कहेते रहो.
यह तो कोंगीका इन्दिरा स्थापित सामान्य संस्कार है.
२०१४का चूनाव कोंगी कैसे अपने पक्षमें लायेगी?
कोंगीके शस्त्र कया है? पैसा, जातिवाद, भाषावाद, कोमवाद, ब्लेकमेल, एक-सुरता, अफवाहें और समाचार माध्यम.
एक-सुरमें बोलना.
कोंगीका एक लक्षण है कि उसके सभी नेता एक ही सुरमें बोलेंगे. और बोलते ही रहेंगे. समाचार माध्यमको भी मालुम है कि, यथा कथित शब्दोंमें कोंगी नेताओंके निवेदनोंको प्रसिद्धि देना एक अच्छा धंधा है.
जातिवाद और कोमवाद
जातिवादसे लोगोंको विभाजित करनेवाला शस्त्र अब कमजोर पड गया है. इसको कमजोर करनेका प्रयास सबसे प्रथम वीपी सिंगने किया. मायावती, मुलायम, ममता और लालुने ऐसे शस्त्रोंका उपयोग करना चालु कर दिया. जातिवादके शस्त्रका हाल भी गरीबीके शस्त्रके जैसा हो गया है.
अब बच जाते है कोमवाद और ब्लेकमेल.
समाचार माध्यमका साथ मिल जाय तो ही कोमवाद और ब्लेकमेलवाले शस्त्र असरदार बनाया जा सकता है. समाचार माध्यमको अगर अपने पक्षमें ले लिया जाय तो विरोध पक्षोंके नेताओंके बारेमें अफवाहे फैलानेका एक और शस्त्र मिल जयेगा.
समाचार माध्यमसे ब्लेकमेल करो और अफवाहें फैलाओ
कोंगीको डर नहीं है.
शरद पवार, जयललिता, मायावती, मुलायम, लालुप्रसाद, और डीएमके का कोई डर कोंगी को नहीं है. नीतीशकुमारको अफवाहें फैलाके निरस्त्र करदिया जा सकता है. वे अगर जिते तो भी उनके बारेमें पर्याप्त काले पन्नेकी जानकारी कोंगीके पास है. अजित सिंह, बहुगुणा, चौटाला ये सब तो अपने पास है ही.
शरद पवारक्र बारेमें क्या है?
अगर शरद पवारको पपेट प्रधान मंत्री बनाया जाय तो एमएनएस और शिवसेना भी निरस्त्र हो सकते है. शरद पवार सिर्फ पैसे बनानेमें रुचि रखते है. शरद पवार को प्रधान मंत्री पद देना खतरेसे खाली नहीं है. लेकिन शरद पवार की उम्र और स्वास्थ्य कोंगीके लिये आशिर्वाद रुप है ऐसा कोंगी समझती है.
कोंगीकी सबसे बडी समस्या है उसकी सर्व क्षेत्रीय विफलताएं और अनीतिमत्ता. इसको कैसे हल किया जाय?
कोंगीने इसका निवारण कर दिया है.
कोंगीकी विफलताएं यह एक एन्टीइंकम्बन्सी परिबल (फेक्टर) है. इसके कारण बीजेपीको काफी मत मिल सकते है. बीजेपी के कमिटेड मत भी है. बीजेपीको, पूर्वोत्तर, तामिलनाडु, बंगाल और केरलमें एक भी बैठक न मिले तो भी अगर कोंगीकी विफलतासे मिलने वाले वोट और बीजेपीके कमिटेड वोट इन दोनोंको मिला दें तो बिजेपीको ३५० बैठक आसानीसे मिल सकती है.
बीजेपीके कमिटेड वोटको कोंगी छू नहीं सकती. लेकिन एन्टीइनकम्बन्सी मतको विभाजित करनेमें उसने पाकिस्तान और अमेरिकाका सहारा लिया है.
पाकिस्तान कैसे बीचमें आता है?
पाकिस्तानका भारतमें पारिवारिक संबंध है. आई.एस.आई. का भारतमें नेट वर्क है. दाउद-गेंगका भारतमें नेट वर्क है. इस कारण फर्जी करन्सी नोट, तस्करी, और काले-लाल धनका उत्पादन और उसकी हेराफेरी आसन है. हसन अली के बारे में पढो तो पता चल जायेगा कि, हवालासे क्या क्या हो सकता है. शरद पवार और कोंगी नेता इसमें सीमापारसे संयुक्त साहसी है (जोईन्ट वेन्चरमें है). कुछ हद तक कोंगीके सह्योगी पक्ष भी सामेल है. इसके कारण कुछ मत इन लोगोंके लिये भी कमिटेड है.
यु.एस. को क्या चाहिये?
यु.एस. खुद प्रजासत्ताक देश है. लेकिन उसकी प्राथमिकता यु.एस.का खुदका लाभ है. इसलिये भारत, पाकिस्तान जैसे अल्प विकसित या तो अविकसित देशमें कमजोर और परावलंबी सरकार या तो आपखुद सरकार रहे उसमें यु.एस.को ज्यादा दिलचस्पी है. युएस की खुफिया एजन्सीको पता चला था कि, नरेन्द्र मोदी एक इमानदार, कडक और कुशल मुख्य मंत्री है.
भूकंपसे पीडित और इजाग्रस्त गुजरातको सही करनेमें और सरकारी कर्मचारीयोंको सुधारनेमें नरेन्द्र मोदीने शिघ्र कदम उठाये थे. कोंगीके एक स्थानिक नेताने साबरमती के अयोध्यासे आने वाले रामभक्तोंका रेलका डीबा जलानेका सफल षडयंत्र पार किया तो दंगे भडक उठे. नरेन्द्र मोदीने उसको सफलतासे सम्हाला. नरेन्द्र मोदीने जिस कुशलतासे गुजरातको विकसित कर दिया इससे युएसको पता चल गया था कि वह आगे चलकर प्रधान मंत्री बन सकता है. अगर ऐसा होगा तो वह युएसके दबावमें नहीं आयेगा. इसलिये उसको कमजोर करनेके लिये उसको बदनाम करना पडेगा. कोंगी तो यु.एस.को साथ देनेके लिये तैयार ही थी. २००२ के दंगे के बारेमें बडा विवाद खडा कर दिया गया. लेकिन गुजरातके चूनावमें वह बुमरेंग साबित हुआ. कोंगी और युएसने मिलकर नरेन्द्र मोदीके विसा का एक नाटक रचा. २००२ के दंगे की बातको वे पूरे देशके मुसलमानोंको भ्रमित करनेके लिये उपयुक्त समते है.
नरेन्द्र मोदी लगातार गुजरातमें जितते गये है. और उन्होने गुजरातमें राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम रचाये तो परप्रांतके लोग भी गुजरातका विकास देखने लगे. नरेन्द्र मोदी पूरे देशमें लोक प्रिय हो गये है.
कोंगीको जो भय था वही सामने आया. बीजेपी की मध्यस्थ नेतागीरीको भी जनताकी आवाजके सामने झुकना पडा और मोदीको प्रधान मंत्री पदका प्रत्याशी घोषित करना पडा.
वैसे तो नरेन्द्र मोदीको २००९के चूनावमें ही प्रधान मंत्री पदका प्रत्याशी घोषित करनेके सुझाव आये थे. लेकिन मध्यस्थ नेतागीरीके जादातर सदस्य अडवाणीको मोका देना चाहते थे. अडवाणीका नाम प्रधान मंत्री पदका प्रत्याशीके रुपमें घोषित किया गया. लेकिन अडवाणीमें इतनी सक्षमता नहीं थी. अडवाणी कोंगीकी सुरक्षाक्षेत्रकी विफलताओंको उजागर करके लाभ नहीं ले पाये. अडवाणी चूनावी व्युह रचनामें और कई बातोंमें असरकारक कदम नहीं ले पाये.
इस कारण कोंगीकी और उसके वांजिंत्रोंकी विभाजनवादी प्रचार नीति सफल रही. कोंगीकी व्युहरचनाके अनुसार सेलीब्रीटी लोग सडक पर उतर आये.
सेलीब्रीटीयोंने क्या किया? “सब राजकीय पक्ष एक समान भ्रष्ट और समान प्रमाणसे अकुशल है ऐसी हवा फैलाके कोंगी की विफलतासे उत्पन्न एन्टीईन्कम्बन्सी असरको डाईल्युट (पतला, कमजोर) कर दिया.
लेकिन कोंगी चूनावी व्युह रचनामें आगेसे सोचती है. कोंगीने साम्यवादीयोंकी प्रचार-नीति और युएसके प्रचारकी व्युह रचनाका समन्वय किया है.
साम्यवादीयोंकी व्युहरचना क्या होती है?
विरोधीयोंके बारेमें अफवाहें फैलाओ.
अपने सभी नेताओंको बोलो कि वे एक एक करके हर उछाली हुइ बात पर लगातार एक ही सूरमें विरोधीके उपर आक्रमण करें.
विरोधीयोंके आक्रमण के मुद्दोंपर डीफेन्सीव मत बनो. उसके मुद्दोंका कभी भी जवाब मत दो. लेकिन जवाबमें सिर्फ गालीयां दो.
जो विरोधी व्यक्ति जोरदार है उसके उपर मध्यमस्तरीय से लेकर निम्न स्तरीय गालीप्रदान करो.
विरोधी व्यक्तिके बारेमें अफवाहें और विवाद फैलाओ. और जो विवादास्पद है उसको ही आधार बनाके और विवाद उत्पन्न करो.
कोंगीने नरेन्द्र मोदीके बारेमें क्या किया? कैसी अफवाहें फैलायी?
२००२के दंगेमें मोदीका कोंगी द्वारा यथा कथित प्रभाव, उसका आर एस एस से संबंध, आरएस एस का गोडसे से संबंध, आर एस एस कोमवादी, मोदी कोमवादी, मोदी सरमुखत्यार, किसीको आगे आने देता नहीं है, जो जो पहेले आगे थे उनको मोदीने पीछे कर दिया, उनको मोदी विरोधी घोषित कर दो. जो लोग बीजेपी को छोड कर गये वे लोग मोदीके कारण गये, जो टीकीटसे वंचित रह गये वे मोदीके कारण वंचित रह गये, मोदी उनके खिलाफ था, मोदी विरोधीयोंको खतम कर देता है, जो खतम हो गये उनको मोदीने खतम किया, अब किस किसकी बारी है, उसकी अफवाहें फैलाओ.
अडवाणी नहीं आये? मोदीके कारण नहीं आये.
अडवाणी आये तो देर से आये, तो अफवाह फैलावो कि वे तो आना नहीं चाहते थे, लेकिन फिर उनको मनाना पडा.
अडवाणी जल्दी आ गये तो अफवाह फैलाओ कि मोदी देरसे आया.
मोदी आना नहीं चाहता था क्योंकि अगर आये तो उसको उनके साथ बैठना पडे.
अगर वे बोले तो कहो कि दिखावे के खातिर बोले.
अगर वे नहीं बोले तो तो क्या मजेदार बात है? मीडीया को तो अच्छा मसाला मिल गया कि अडवाणी आये तो सही लेकिन वे आर एस एसके दबावमें आये थे. लेकिन अडवाणीने, नरेन्द्र मोदीसे बात तक नहीं की.
अगर ऐसा नहीं हुआ और, अडवाणीने मोदीकी तारिफ भी की? तो कहो कि उन्होने अपना बडप्पन दिखाया.
अगर तारिफ नहीं कि, तो कहो कि वे ज्यादा अपमान सहन करनेको तैयार नहीं थे.
ऐसी तो हजारों अफवाहें फैलायी है कोंगी और मीडीयाने अपने जोईन्ट वेन्चरमें.
इन सबकी वजह क्या है वह हम बादमें देखेंगे.
लेकिन कोंगी ऐसी अफवाहें मोदीको संशय ग्रस्त करनेके लिये नहीं फैलाती. नरेन्द्र मोदी, कोंगी की सभी चालाकियां जानता है.
युएस स्टाईल व्युह रचना क्या है? कोंगीने उस दिशामें क्या किया?
कोंगी और उसके साथीगणने इतना भ्रष्टाचार किया कि उसको छिपाना अशक्य बना. वैसे तो सुब्रह्मनीयन स्वामीने पर्दाफास किया और वह भी सर्वोच्च न्यायालयका जांचका आदेश भी लाया गया. अब इन भ्रष्टाचारके आरोपोंको कैसे बेअसर किया जाय? इसका फायदा तो बीजेपीको मिलनेका ही था.
कोंगीने बीजेपीके कुछ नेताओंके विवादास्पद भ्रष्टाचारको उजागर किया. जैसे कि येदुरप्पा. इसको लगातार उछाला गया. मोदीने जो जमीन ताताको नेनो के लिये दी उसको भी लगातर हर कोंगी नेता द्वारा उछाला गया. ऐसी हवा फैलायी कि सभी उद्योगगृहोंको उसने मुफ्तके बराबर जमीन दीं.
बीजेपी इसका तो जवाब दे सकता है. तो भी जो लोग अनपढ और मझदुर है वे भ्रममें पड सकते है. इस लिये कोंगी राहुल, सोनीया और प्रियंका गरीबोंकी बस्तीमें जाने लगे. ताकि उनका भ्रम वोटमें बदल सके. ऐसा प्रयोग कोंगी नेतागण हर चूनावके समयमें करते है. उनको मालुम है कि ये मतोंमें वृद्धि जरुर कर सकते है, लेकिन इतना नहीं कि हम चूनाव जित सकें.
कोंगीने अमेरिकासे मिलकर एक सडयंत्र बनाया.
अन्ना हजारे जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कर रहे थे उसकी बागडोर केज्रीवालने धीरे धीरे विदेशी पैसे (जो अलग अलग कहेजाने वाले सत्कर्मोके लिये दान में मिलते है) की मददसे अपने हाथ कर लिया. जब अन्ना हजारेको लगा कि उनके संगठन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है तो वे दूर हो गये. दुसरे लोग भी निकल गये लेकिन संगठन चालु रहा और कुछ नये लोग भी आये. एक पक्ष भी बनाया गया. समाचार माध्यामोंने केज्रीवाल और उनके साथीयोंको भरपूर प्रसिद्धि दी. दिल्ली के चूनावमें यह पक्ष भौगोलिक स्थितिके कारण भ्रष्टाचारके विरुद्धका मत तोडने में महद अंश तक सफल भी रहा.
प्रसवासन्न सगर्भामें अगर जोर न हो तो लेडी डॉक्टर क्या कर सकती है?
(गुजराती मुंहावरा है कि, जणनारीमां जो जोर न हो तो सुयाणी बिचारी शुं करे? मतलबकी लेडी डोक्टर कुछ नहीं कर सकती.)
पुरुष और डोक्टर (युएस और कोंग्रेस), स्त्रीमें(आम आदमी पक्षमें) बीज रोपण कर सकता है, और प्रसव भी करवा सकता है, लेकिन गर्भका विकास और पालन तो बालक का प्रसव तो स्त्रीको खुदको करना पडता है. दिल्ली में आमआदमी पक्षका मीस डीलीवरी हो गया.
कोंगीने सोचा कि गर्भ मर गया है. लेकिन मादा तो मरी नहीं है. पुनर्गर्भ धारण भी कुछ न कुछ फायदा तो जरुर करेगा ही. आम आदमी पार्टी ने पहेले बकरेका बीज लिया था अब हाथीके कई बीज लिये है.
कोंगीको मालुम है कि यह पर्याप्त नहीं है.
मोदी विकासके नाम पर मत मांगता है तो उसने जो विकास किया है उसको बिलकुल नकार दो. चाहे कितना ही जुठ क्यों न बोलना पडे.
मोदी खेती और छोटे किसानोंकी मददके लिये मेले करता है, कुटिर उद्योग और महिला मंडल द्वारा स्त्री अर्थिक सशक्ति करण करता है, जमीन सुरक्षा और पशु चिकित्सा भी अमलमें लायी गई है. बीजली, रास्ते, शिक्षण केन्द्र और प्रशिक्षण केन्द्रों द्वारा रोजगार निर्माण किया जाता है. कुदरती श्रोतोंके द्वारा उर्जा निर्माण में तरक्की की जा रही है. लेकिन कोंगी और साथीगण इन सब बातोंके अंदर नहीं जायेंगे. सामान्यीकरण का एक शब्द है गुजरात मोडल. गुजरात मोडल व्यर्थ है. बस यही वाक्य बोलते रहो. गुजरात मोडल व्यर्थ है ऐसा अनेकों द्वारा लगातार बोलनेसे वह एक सत्य बन जायेगा.
मोदीके उपर सीधा आक्रमण करो. गुजरात मोडल का अर्थ है दंगा और फसाद और डर.
कोमवादको चूनावमें लाये बिना कोई उद्धार नहीं है. इसलिये सभी दंगे मोदीके नाम कर दो.
मोदी आयेगा तो पूरे देशमें दंगे भडकेंगे. कोंगी और उसके सहयोगी इसके लिये तैयार भी है. लेकिन अगर मोदी चूनावमें जित जाता है तो कोंगीयोंको और उसके साथीयोंको लेनेके देने पड जा सकते है.
चूनावके पहेले दंगा क्या नहीं करवा सकते? करवा सकते है. लेकिन कहां? बीजेपी शासित राज्यमें करवायेंगे तो लेनेके देने पड जायेंगे. और कोंगी या कोंगीके सहयोगी शासित राज्यमें दंगे करवायेंगे तो पता नहीं “मत” का प्रवाह किस ओर मोड लेगा.
लेकिन क्या दंगोंका आभास उत्पन्न करवा सकते है?
ओमर अब्दुलाने ऐसा ही किया. फारुख अब्दुलाने भी उसी रागमें गुस्सा किया.
मोदी का सुत्र है सबका साथ सबका विकास. तो उसमें जम्मु-कश्मिर भी आजाता है. पैसे बहुत खर्च होते है. उसका विकास नहीं होता है. क्यों कि भारतीय संविधान की कलम ३७० उसको विशिष्ठ अधिकार देती है. फारुख, ओमर और साथी मालामाल है. कोई जांच आयोग नहीं बैठा सकते. वहां जाके कोई उद्योग लगा नहीं सकता. वहां जाके कोई धंधा नहीं कर सकता. यह बात तो छोडो वहांसे जो हिन्दु लाखोंकी संख्यामें निकाले गये वे कैसे निकाले गये?
अखबारोमें खुल्ले आम लगातार विज्ञापन छपे कि हिंदुलोग या तो इस्लाम कबुल करे या तो जान बचानेके लिये कश्मिर छोड दे. अगर नहीं छोडेंगे तो कत्ल कर दिया जायेगा. गांव कस्बोंमें और श्रीनगरमें भी दिवारो पर खुल्ले आम बडे बडे इसी प्रकारके पोस्टर चीपकाये गये. ओमर और फारुख उस समय लंडनमें मजा ले रहे थे. उनके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. ३०००+ हिन्दुओंकी कत्ल कर दी गई. और ५-७ लाख के करीब हिन्दु कश्मिर छोड कर भाग निकले. यह बात १९८९-९० की है. आज तक ये सब हिन्दु नागरिक अपने राज्यके बहार तंबुओंमें जिवन गुजार रहे है. न तो अति संवेदन शील, अमेरिकाका मानव अधिकार पंच, न तो फिल्मी सेलीब्रीटीयां, न तो नहेरुवीयन कोंग्रेस, न तो फारुख, न तो ओमर, न तो मुफ्ति महेबुबा, न तो समाचार माध्यम, न तो राजकीय विश्लेषक, न तो कोई धर्मनिरपेक्षक इन हिन्दुओंकी यातनाओंसे संवेदन शील है नतो वे चाहते हैं कि ओमर, फारुख, कोंगी नेताओंके उपर इनकी इन अमानवीय और संवेदनहीन दूर्लक्षताके उपर कोई कार्यवाही की जाय. इतना ही नहीं इनमेंसे कोई, हिन्दुओंको अपने घरमें पूनर्वसन किया जाय इस बात पर सोचते ही नहीं है. इस बात को ये लोग समस्याकी लीस्ट तकमें नहीं रखते है. उनके लिस्टमें है, सुरक्षा सैनिकोमें कमी करना और कश्मिरको ज्यादा स्वायत्तता देना या तो स्वतंत्र कर देना इसपर चर्चा करना.
नरेन्द्र मोदीने कहा कि धारा ३७० से कश्मिरको क्या लाभ मिला उसके उपर चर्चा किया जाय. तो फारुख और ओमर को पदभ्रष्ट कर दिया हो इस प्रकार गुसा हो गये. और मोदीको गालीयां सुनाने लगे. मोदीको हम हर हालतमें प्रधान मंत्री बनते रोकेंगे.
एक बीजेपी नेताने कहा कि मोदी संविधानकी प्रक्रियासे गुजरकर प्रधान मंत्री बनेंगे. किस पक्षको मत देना, और किस पक्षकी केन्द्रमें सरकार बनने देना भारतीय जनताका संवैधानिक अधिकार है. अगर कोई मोदीको प्रधान मंत्री बनते नहीं देख सकता तो वह पाकिस्तान चला जाय. इसमें कुछ गलत नहीं है.
फारुखने कहा कि जो मोदीके पक्षमें हो उनको समुद्रमें डूबो दो.
चूनाव आयोगने बीजेपीके सदस्य पर गैर जमानती वारंट जारी किया. लेकिन फारुख के उपर कुछ भी कदम नहीं उठाये.
नरेन्द्र मोदीने कहा कि कश्मिरकी दुर्दशा और हिन्दुओके मानव अधिकार हनन और उनकी यातनाओंके लिये कोंग्रेस और फारुख और ओमर जिम्मेवार है.
आपको लगा होगा कि हिन्दुओंकी दशा सुधारनेके लिये ओमर और फारुख कदम उठानेके बारेमें बोलेंगे, और क्षमा याचना प्रस्तुत करेंगे. नहीं जी, ऐस कुछ नहीं किया. उन्होने कहा कि मोदीने इतिहास पढा नहीं है. हमारे दादाने स्वातंत्र्य संग्राममें कई त्याग दिये है. हिन्दुओंको जब खदेड दिया तब हम नहीं थे.
इसका मतलब यह है कि अगर शेख अब्दुला स्वातंत्र्यकी लडतमें सामिल थे तो उनके वारस दारोंको पूर्ण और मनमाना हक्क मिल जाता है. और उनका फर्ज तभी बनता है जब उनके शासनमें ही हिन्दुओंको खदेडा गया हो तभी वे उनके पूनर्वासके लिये कदम उठाना उनका फर्ज बनता है. इससे तो यह भी निस्कर्ष निकलता है कि अगर २००२के दंगेमें गुजरातके हिन्दुओंने गुजरातके मुस्लिमोंको गुजरातके बाहर खदेड दिया होता और नरेन्द्र मोदीने पदत्याग किया होता तो नया कोई भी मुख्य मंत्री आये तो वह भी कह सकता है कि मेरे समयमें मुस्लिमोंको खदेड दिया गया नहीं है तो मेरा फर्ज नहीं बनता है कि मैं उनको वापस लाउं.
ओमर और फारुखको यह मालुम नहीं कि, शेख अब्दुलाकी स्वकेन्द्री और देशहितके खिलाफ गतिविधियोंके कारण उनको बंदी बनाके जेल भेजना पडा था. जवाहरकी ईच्छा नहीं थी तो भी. शेख अब्दुल्लाके फरजंदोंको ज्यादा चापलुसी करनेकी जरुरत नहीं है.

एक बात याद रक्खो कि फारुख और ओमर नया मोरचा खोल रहे है. कोंगी इनलोंगोंके साथ नया गेम खेल रही है.
कोंग्रेस और उसके साथीयोंने वोटींग मशीनमें गडबडी की है. सावधान.
इन सबके बावजुद अगर नरेन्द्र मोदी जित गये और संपूर्ण बहुमत भी प्राप्त कर लेते है तो कोंगी और उसके साथी क्या करेंगे?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे.
टेग्झः २०१४, मत, चूनाव, कोंगी, फारुख, ओमर, शेख अब्दुल्ला
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Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अपहरण, असफल, असमंजस, आतंकवाद, आतंकी, कंदहार, कत्ल, कश्मिर, कश्मिरी हिन्दु, खदेड, चिन, जनता, जातिवाद, नहेरुवीयन कोंग्रेस, पानी, प्रमाणभान, प्रशिक्षण, बिजली, बीजेपी, बेकारी, भूमिखंड, भूमिगत संचरना, महेबुबा, मार्ग, मुक्ति, विकास, विफल, विभाजन, विमान, विश्लेषक, समाचार माध्यम, हमला, हिमालय, हिरो-हिरोईन on April 20, 2014|
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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-५
(इस लेखको “अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-४” के अनुसंधानमें पढें)
नहेरुवीयन कोंग्रेसने २००४का चूनाव कैसे जिता?
अटल बिहारी बाजपाइने अच्छा शासन किया था. उन्होने चार महामार्ग भी अच्छे बनाये थे जो विकसित देशोंकी तुलनामें आ सकते थे. बीजेपीका गठबंधन एनडीए कहा जाता था. उसमें छोटे मोटे कई पक्ष थे. एनडीएके मुख्य पक्ष जेडीयु, बीएसपी (मायावती), टीएमसी (ममता), डीएमके (करुणानिधि), एडीएमके (जयललिता जिसने समर्थन वापस ले लिया था), टीडीपी, शिवसेना आदि थे.
मायावती, ममता और डीएम न्युसंस वेल्यु रखते थे. बिहार, युपी और आन्ध्रमें स्थानिक गठबंधन पक्षका एन्टीइन्कंबन्सी फेक्टर बीजेपीको नडा. इससे एनडीए को घाटा हुआ और बीजेपीको भी घाटा हुआ. राजस्थानमें और गुजरातमें भी थोडा घाटा हुआ.
लेकिन घाटा किन कारणोंसे कैसे हुआ?
देशके सामने सबसे बडी समस्याएं क्या है?
बेकारीः यानी कि आर्थिक कठीनायीयोंसे जीवन दुखमय
विकासका अभावः भूमिगत संरचनाका (ईन्फ्रास्ट्रक्चरका) अभाव, और इससे उत्पादन और वितरणमें कठिनायीयां,
शिक्षा और प्रशिक्षाका अभावः इससे समस्याको समझनेमें, उसका निवारण करके उत्पादन करनेमें कौशल्यका अभाव,
अभाव तो हमेशा सापेक्ष होता है लेकिन समाजकी व्यवस्थाके अनुसार वह कमसे कम होना चाहिये.
बाजपाई सरकारने बिजली, पानी और मार्गकी कई योजनायें बनायी और लागु की, लेकिन पूर्ण न हो पायी. वैसे तो हर रोज औसत १४ किलोमीटरका पक्का मार्ग बनता था जो कोंग्रेसकी सरकारमें एक किलोमिटर भी बनता नहीं था.
बिजलीकी योजना बनानेमें और पावर हाउस बननेमें समय लग जाता है.
भारत विकसित देशोंसे १०० सालसे भी अधिक पीछे है.
स्थानिक नेतागण और सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट होनेसे हमेशा अपनी टांग अडाते है यह बात विकासकी प्रक्रियाको मंद कर देते है. तो भी बाजपाईके समयमें ठीक ठीक काम हुआ लेकिन ग्रामीण विस्तार तक हवा चल नहीं पायी.
जब ऐसा होता है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ग्रामीण जनताको और शहेरकी गरीब जनताको विभाजित करनेमें अनुभवी और कुशल रही है. गुजरातमें ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस ज्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन इसका प्रभाव जरुर पडा. अन्य राज्योंमें वह जरुर सफल रही.
समाचार माध्यमोंकी बेवकुफी या ठग-विद्या
समाचार माध्यमोंका भी अपना प्रभाव रहेता है, भारतके समाचार माध्यमके कोलमीस्ट, विश्लेषण करनेमें प्रमाणभानका ख्याल न रखकर अपनी (विवादास्पद) तटस्थता प्रदर्शित करनेका मोह ज्यादा रखते है. भारतमें समाचार माध्यमोंका ध्येय जनताको प्रशिक्षित करनेका नहीं है. भारतके समाचार माध्यम हकिकतके नाम पर जातिवादी और धार्मिक भेदभाव के बारेमें किये गये उच्चारणोंको ज्यादा ही प्रदर्शित करतें है. “नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें पटेल नेताओंको अन्याय किया है…. गुजरातमें ब्राह्मण अब मंत्रीपद पर आने ही नहीं देंगे…. मुस्लिमोंको टिकट ही नहीं दी है…” आदि..
समाचार माध्यमों को चाहिये कि वे जातिवाद और धर्मवादकी भ्रर्स्तना करें. लेकिन ऐसा न करके इन लोंगोंका चरित्र ऐसा रहता है कि मानो, मंत्रीपद और टिकट देना एक खेरात है.
२००९ का चूनाव नहेरुवीयन कोंग्रेसने कैसे जिता?
२००९का चूनाव बीजेपीको जितनेके लिये एक अच्छा मौका था.
२००८में सीमापारके और भारतस्थ देशविरोधी आतंकीयोंने कई शहेरोंमें बोम्ब ब्लास्ट किये, और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सतर्क और सुरक्षा संस्थायें विफल रही थीं, यह सबसे बडा मुद्दा था.
लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेसने रणनीति क्या बनायी?
नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने उसका सामान्यीकरण कर दिया. वह कैसे? वह ऐसे …
“बोंम्ब ब्लास्ट तो बीजेपी शासित राज्योंमें भी हुआ है,
“संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था, तब केन्द्रमें बीजेपीका ही तो शासन था,
“बीजेपीके मंत्री विमान अपहरण के किस्सेमें यात्रीयोंको मुक्त करनेके लिये खुद बंधक आतंकीयोंको लेकर कंदहार गये थे और आतंकीयोंको, विमान अपहरणकर्ताओंको सोंप दिया था.
इन सबको मिलाके जनताको यह बताया गया कि, आतंकवाद एक अलग ही बात है और इसके उपर सियासत नहीं होनी चाहिये.
दूसरी ओर, फिलमी हिरो-हिरोईन और अखबारी मूर्धन्यों और महानुभाव जो प्रच्छन रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसके तरफदार थे वे लोग सडकपर आ गये. उन्होने प्रदर्शन किये कि पूरा शासक वर्ग निकम्मा है और हमारी सुरक्षा व्यवस्था मात्र, असफल रही है चाहे शासकपक्ष कोई भी हो.
वास्तवमें यह सब बातें आमजनताको असमंजसमें डालनेके लिये थी.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्धमें क्या था जिसको दबा दिया गया?
नहेरुवीयन कोंग्रेस कश्मिरमें सत्ताकी हिस्सेदार थी तो भी ३००० हिन्दुओंका खुल्लेआम कत्ल कर दिया जाता था. ऐसा करनेसे पहेले सीमापारके और स्थानिक आतंकीयोंने खुल्लेआम दिवारोंपर पोस्टर चिपकाये थे, अखबारोंमें लगातार सूचना दी गई और खुल्ले आम लाऊड-स्पीकरोंसे घोषणा करवाने लगी कि हिंदु लोग या तो इस्लाम कबुल करे या तो जान बचाने के लिये कश्मिर छोड कर भाग जावे. कश्मिर सिर्फ मुस्लिमोंका है. न तो स्थानिक सरकारने उस समय कुछ किया न तो केन्द्रस्थ सरकारने कुछ किया. क्यों कि केन्द्रस्थ सरकार दंभी धर्मनिरपेक्षता वाली थी. नरसिंहरावकी कोंग्रेस सरकार जो केन्द्रमें आयी थीं उस सरकारने भी कुछ किया नहीं था. इस कारणसे आतंकवादका अतिरेक हो गया और मुंबईमें सीरीयल बोंब ब्लास्ट हुए. नहेरुवीयन कोंग्रेसने कहा कि यह तो बाबरी मस्जिद ध्वंशके कारण हुआ. लेकिन वह और समाचार माध्यम इस बात पर मौन रहे कि कश्मिरी हिन्दुओंको क्युं मार दिया गया और उनको क्युं अपने घरसे और राज्यसे खदेडा गया? वास्तवमें बाबरी ध्वंश तो एक बहाना था. आतंकवादी हमले तो लगातार चालु ही रहे थे.
खुदके स्वार्थके लिये देशकी सुरक्षाका बलिदान और आतंकीयोंसे सहयोग.
कश्मिरके मंत्रीकी लडकी महेबुबाका अपहरण आतंकवादीयोंने किया था. यह एक बडी सुरक्षाकी विफलता थी जिसमें राज्यकी सरकार और केन्द्रकी नहेरुवीयन कोंग्रेसी सरकार भी उत्तरदायी थी. इस लडकीके पिता जो शासक पक्ष के भी थे और मंत्री भी थे. उनको चाहिये था कि वे अपनी लडकीका बलिदान दे. लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया और उन्होने पांच बडे आतंकवादी नेताओंको मुक्त किया. उनको पकडनेकी कोई योजना भी बनाई नहीं. यह एक बडा गुन्हा था. क्योंकि खुदके स्वार्थके लिये उन्होने देशकी सुरक्षाके साथ समझौता किया. बीजेपीकी सरकारने जो आतंकीयोंकी मुक्ति की थी वे आतंकी तो अन्य देशके और उनको मुक्त भी दुश्मन देशमें किया था, और अपहृत विमानयात्रीयोंको छूडानेके लिये किया था. उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं था.
लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षने जो मुक्ति की थी वह तो अपने ही देशमें की थी. मुक्ति देनेसे पहेले नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षकी सरकार आतंकीयोंके शरीरमें विजाणु उपकरण डालके उसका स्थान निश्चित करके सभी आतंकवादीयोंको पकड सकती थी.
कोंगी और उसके साथी पक्षने की हुई आतंकीयोंकी मुक्ति तो बीजेपी की विफलतासे हजारगुना विफल थी उतना ही नहीं लेकिन आतंकीयोंसे मिली जुली सिद्ध होती है.
इन सभी बातोंको उजारगर करनेमें समाचार माध्यमके पंडित या तो कमअक्ल सिद्ध होते है या तो ठग सिद्ध होते है. समाचार माध्यम का प्रतिभाव दंभी और बिकाउ इस लिये लगता है कि उन्होने बीजेपीके नेताओंके बयानोंको ज्यादा प्रसिद्धि नहीं दी.
भारतीय संसद – कार्गील पर हमला और बीजेपी
कश्मिर – हिमालय पर हमला और नहेरुवीयन कोंग्रेस
बाजपाई सरकारको सुरक्षा और सतर्कता विभाग जो मिला था वह नहेरुवीयन कोंग्रेस की देन थी. बीजेपी सरकार इस मामलेमें बिलकुल नयी थी. बीजेपीकी इमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता था.
कार्गील बर्फीला प्रदेश है. वहां पर जो बंकर है उनको शर्दीके समयमें हमेशा खाली किया जाता था. दोनों देशों की यह एक स्थापित प्रणाली थी. भारतीय सुरक्षा दलोंने १९९९में भी ऐसा किया. पाक सैन्यने पहेले आके भारतीय बंकरोंके उपर कब्जा कर लिया. बाजपायी सरकारने युद्ध करके वह कब्जा वापस लिया.
अब देखो नहेरुवीयन कोंग्रेसने अबतक क्या किया था?
१९४८में भारतीय सैन्यने पूरे कश्मिर पर कब्जा किया था, नहेरुवीयन कोंग्रेसने १/३ कश्मिर, पाकिस्तानको वापस किया.
१९६२ चिनके साथके युद्धमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने, भारतका ७१००० चोरसमिल प्रदेश गंवाया. संसदके सामने उस प्रदेशको वापस लेनेकी कसम खानेके बावजुद भी आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेसने उस प्रदेशको वापस लेनेका सोचा तक नहीं है.
१९६५ नहेरुवीयन कोंग्रेसने छाडबेट (कच्छ) का प्रदेश पाकिस्तानको दे दिया. १९७१में पाकिस्तानके साथके युद्धमें हमारे सैन्यने पाकिस्तानके कबजे वाले कश्मिरका जो हिस्सा जिता था और उसके उपर भारतके संविधानके हिसाबसे भारतका हक्क था, वह हिस्सा, इन्दिरा गांधीने सिमला समझौते अंतर्गत पाकिस्तानको वापस दे दिया.
बंग्लादेशी घुसपैठोंने उत्तरपूर्व भारतमें कई भूमिखंडोपर कब्जा कर लिया है.
आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने शासनकालमें खोये हुए भूमिखंडोंको वापस लानेमें सर्वथा विफल रही है. वह सोचती भी नहीं है कि इनको वापस कैसे लें.
बीजेपी ही एक ऐसा शासक रही कि उसने अपने शासनकालमें जो भूमिखंड गंवाये वे वापस भी लिये.
संसदको उडानेका आतंकी हमला बीजेपी की सरकारने विफल बनाया.
इस फर्कको समझनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस तो समझनेको तयार न ही होगी, वह उसके संस्कारसे अनुरुप है, लेकिन समाचार माध्यम क्यों विफल रहा या तो बुद्धु साबित हुआ है? तो ऐसे समाचार माध्यमोंसे हम जनता प्रशिक्षणकरणकी अपेक्षा कैसे रख सकते है?
आज भी कई अखबारी मूर्धन्य है जो तटस्थताकी आडमें आम जनताको असमंजसमें डालते है. ऐसे वातावरणमें जनता निस्क्रीय बन जाती है.
२०१४के चूनावमें नहेरुवीयन कोंग्रेस का रवैया कैसा रहेगा?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः भूमिगत संचरना, विकास, बेकारी, बिजली, पानी, मार्ग, जातिवाद, विभाजन, समाचार माध्यम, विश्लेषक, प्रमाणभान, प्रशिक्षण, कंदहार, आतंकी, आतंकवाद, बीजेपी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, हिरो-हिरोईन, असफल, विफल, असमंजस, जनता, कश्मिर, कश्मिरी हिन्दु, हिमालय, भूमिखंड, चिन, हमला, कत्ल, खदेड, महेबुबा, कंदहार, विमान, अपहरण, मुक्ति
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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-४
(इसको अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-३ के अनुसंधानमें पढें)
आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध
इन्दिरा गांधीने करवाया आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध हो गया.
निजी सीयासतीय स्वार्थके लिये असामाजिक तत्वोंको बढावा देनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस और खासकरके इन्दिरा गांधीका अति विशेष योगदान रहा. १९६९में जब कोंग्रेसका विभाजन हुआ तो इन्दिरा गांधीने घोषित किया कि सबके लिये उसकी कोंग्रेसके द्वार खूले है. विनोबा भावेने इन्दिराकी इस घोषणाकी मजाक उडाके कहा था कि अगर संख्या ही बनानी है तो बंदरोंको भी कोंग्रेसमें सामेल करो.
मूर्धन्योंका बौद्धिक प्रमादः
१९८०के चूनावमें समाचार माध्यमोंकी इन्दिरा परस्त नीति और सुज्ञ मूर्धन्योंके बौद्धिक प्रमादके कारण इन्दिरा कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. इस बहुमतसे अगर इन्दिरा गांधी चाहती तो देशमें चूनाव और सरकारी कामकाजमें भ्रष्टाचारको रोकने लिये बंधारणीय सुधार बहुत आसानीसे कर सकती थीं. वैसे तो ऐसा मोका तो नहेरुके पास भी था. किन्तु इन दोंनोंने ऐसा नहीं किया, और उसके बदले अपनेको और अपने पक्षको मजबुत करनेके ही कदम उठाये.
खुदके पक्षकी राजकीय सत्ता बढानेके लिये, भींदरानवालेको बढावा देना एक कदम था. असमको तोडके उसके ६ छोटेछोटे राज्य बनाना भी एक दूसरा कदम था. इसके कारण अलगाववादी शक्तियोंको बढावा मिला. सीमापारसे भी इन अलगाववादी शक्तियोंको मदद मिलने लगी. खालिस्तानके आतंकवादको, पाकिस्तानसे बौद्धिक, अस्त्र-शस्त्र और प्रशिक्षण मिलता था. इससे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जो अमेरिकाके इशारे पर अफघानिस्तानमें व्यस्त थे, उनको खालिस्तानके आतंकवादके आधार पर भारतमें भी अपना नेटवर्क स्थापित करनेमें आसान रहा. १९७३का सिमला करार एक व्यर्थ और व्यंढ करार सिद्ध हो गया था. इन्दिरा गांधीने या तो भूट्टोसे सिमलामें अंडरटेबल डील किया था या तो इन्दिरा गांधी महामूर्ख और अज्ञानी थी.
रानीके मरने पर शाहजादेका राज्याभिषेकः
१९८४ में अराजकता स्पष्ट रुपसे दिखाई देने लगी थी. पंजाबका जिवन अस्तव्यस्त हो गया था. इन्दिराका खून हो गया. उसके बाद भी खालिस्तानी आतंकवाद बढ गया. इन्दिरा गांधीने झैल सींग को राष्ट्रप्रमुख बनाया था. झैल सिंह, इन्दिरा गांधी चाहे तो झाडू लगानेको भी तैयार था. तो इन्दिराकी मौतके बाद बिना मंत्रीमंडल या लोकसभासे प्रस्ताव पास किये इन्दिराके पूत्रका प्रधान मंत्रिपदका शपथ करवाना क्या चीज है? इसलिये तो नहेरुवीयन संतानको शाहजादे कहे जाते है.
चूनाव जितनेके लिये एक कार्यपद्धति नहेरुवीयन कोंग्रेसमें एक स्वभावगत हो गई थी. वह थी
१ ज्यादातर जनताको गरीब ही रक्खो,
२ जितना हो सके उतने बुद्धिजिवीयोंको खरीद लो,
३ जो भ्रष्ट है उनको अपने साथ मिला दो और उनको भ्रष्टाचार करने दो और जब जरुर पडे तो उनको उनके भ्रष्टाचार पर ब्लेकमेल करके काबुमें रक्खो,
४ न्यायिक प्रक्रियाओंको विलंबित करो ताकि जिन साथीयोंको बचाना है उनको बचा शको,
५ जब निस्फलताएं उजागर हो जाये तब चर्चाको ऐसे मोडपर ले जाओ कि सामान्य जन द्विधामें या असमंजतामें पड जाय और नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकी कमियां और दुराचार अधिकतर मात्रामें अप्रभावकारक हो जाय,
६ अन्य पक्षोंके तथाकथित कमीयांको बारबार प्रसिद्ध करो और चर्चा उसीकी दिशामें चलाओ कि जनता प्रामाणिकतासे निर्णय ही कर न पाये और उस कारणसे वह ऐसा सोचने लगे कि “सभी पक्ष भ्रष्ट और एक समान ही है”
७ जनता को धर्म, जाति, ज्ञाति और भाषाके आधार पर विभाजित करो और जहां जाओ वहांकी प्रभावशाली जातिके पक्षमें बोलो.
१९८९का चूनावः
राजिव गांधीने एक और नारा दिया कि देशको २१वीं सदीमें ले जाना है. भारतकी देहातोंकी जनता १८ वीं सदीमें जीती थी. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने ही प्रगति रोकके रक्खी थी.
नहेरुवीयन कोंग्रेसने राजिव गांधीके नया नाराके आधार पर और इन्दिरा गांधीके मृतदेहको बार बार दूरदर्शन पर दिखाकर और इन्दिरा गांधीकी तथा कथित शहादतके आधार पर १९८४का चूनाव जित लिया था.
लेकिन राजिवगांधीकी वहीवटी निस्फलताके कारण और दिर्घ दृष्टिके अभावके कारण खालिस्तानी आतंकवाद बलवत्तर हो गया था. कश्मिरमें सीमा पारका आतंकवाद भी जोर पकडने लगा था. राजिव गांधी बोफोर्स रिश्वत केसमें फंस गये थे. इन कारणोंसे लोकसभाका जनादेश खंडित मिला.
वीपी सिंघने एक मिलीजुली सरकार बनायी. वीपी सिंघ काबिल थे लेकिन चंद्रशेखरको भी प्रधानमंत्री बनना था. एक फायदा यह हुआ कि दोनोंने मिलकर खालिस्तानी आतंकवाद खतम किया. लेकिन पाकिस्तानने काश्मिरमें आतंकवाद पैदा कर दिया था. पूर्वोत्तर राज्योंमें भी हर जगह अलगतावाद बढ गया था.
एक और चूनाव आ पडा क्योंकि फिर एक बार गैर कोंगी मिली जुली सरकार टीक नहीं पायी.

१९९१में फिरसे संसदका चूनाव हुआ. जनादेश खंडित था. लेकिन कोंग्रेसका चहेरा बदला हुआ था. नरसिंह राव नहेरुवीयन वंशके नहीं थे न तो वे नहेरुवीयनोंकी पद्धतियोंसे उनका तालमेल था. उन्होने देखा कि नहेरुवियनोनें विकास को रोकके रक्खा था. इसलिये उन्होने उदारीकरण और निजीकरणकी नीतियां अपनाई.
इन्दिरा गांधीकी नीतियां इससे बिलकुल उलटी थी. गरीबोंको और आम जनताको आसानीसे ऋण मिले इस कारण इन्दिराने बडी बेंकोका राष्ट्रीय करण किया था. जिसके कारण निम्न स्तरमें खास करके कोंग्रेसमें निम्नस्तरतक भ्रष्टाचार फैल गया था.
नरसिंह रावने बिना राष्ट्रीय करण किये, निजी बेंकोको बढावा दिया. निजी बेंकोने अपना धंधा बढा दिया. वैसे भी सरकारी बेंको के वहीवटसे जनता संतुष्ट नहीं थी. अब उनको निजी बेंकोसे स्पर्धा करनेका समय आ गया था. नरसिंह रावके सलाहकार सुब्रह्मनीयन स्वामी थे. आर्थिक मामलोंमे जो सुधार हुए वे सुब्रह्मनीअन स्वामीके सुझावोंके कारण था. लेकिन चूंकि मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे इस लिये उनको सुज्ञलोगोंमें व्यापक मानपान मिला.
चूंकि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी निम्न स्तरीय नेतागीरीका सरकारी तौरपर छूटपुट ऋणमें खुदका लागा खतम हो गया था, वे लोग नरसिंह रावको हटाना चाहते थे. नरसिंहराव नहेरुवीयनोंकी बातोंको ज्यादा महत्व देते नहीं थे. इस लिये नहेरुवीयन के प्रति बंधवाजुथ कमजोर हो रहा था. चूं कि नहेरुवीयनोंके पास पक्षकी जमा राशी रहती थी उन्होनें एक एक करके अवांच्छिंत नेताओंको दूर किया. नरसिंहराव को लालुभाई पाठकके केसमें बदनाम कर दिया. सिताराम केसरीको भौतिक रुपसे उठाके फैंक दिया. सोनिया गांधीको पक्ष प्रमुख बना दिया. लेकिन इन सब हल्लागुलामें कोंगी बहुत बदनाम हो गई.
१९९६ का चूनावः
कोंग बदनाम हो गई थी लेकिन उसका संगठन ध्वस्त नहीं हुआ था. जनता दल का एलायन्स एक बडे दलके रुपमें उभरा. बीजेपी मजबुत हुआ था लेकिन बीजेपी को कोमवादी पक्ष कहेनेका सीलसिला चालु था. कई प्रधान मंत्री बने. और सरकारें तोडी गई.
१९९८ का चूनावः
फिरसे खंडित जनमत वाली संसद बनी. बीजेपी की सरकार बनी और सब अन्य पक्षोंने मिलकर उसको तोड दिया.
१९९९ का चूनावः
बीजेपीके जुथको बहुमत मिला और एक अच्छी सरकार बनी जिसने कई सारे विकासके काम किये.
राष्ट्रीय मार्ग आंतर्राष्ट्रीय कक्षाके बने. हिमालयमें जलश्रोतोंसे विद्युत पावर हाउस बने. उसकी और कई योजनायें बनी. गुजरातमें पवन उर्जाकी कई वीन्ड-मीलें बनी, बंदरोंका विकास किया गया. बीजेपी के नेतागण अत्यधिक आत्मविश्वासमें रहे.
नहेरुवीयन कोंग्रेसने और अन्य पक्षोंने एक शिख लेली की अगर चूनावमें बैठकोंके बारेमें समाझौता नहीं करेंगे और बीजेपीको कोमवादका नारा लगाके खतम करनेकी व्यूह रचना नहीं अपनायेंगे तो हम खतम हो जायेंगे.
कोंगीने और उसके अन्य साथी पक्षोंने इस व्युहरचनाको अपनायाः
मुस्लिमोंको बीजेपीसे भडकाओ.
बीजेपीके हरेक कदमको कोमवादका नाम दो.
बीजेपी अगर राम मंदिरकी बात न करे तो आप इसके उपर बीजेपीको प्रश्न करो कि वह क्यों राममंदिर को भूल गई? क्या उसके लिये यह एक चूनावी मुद्दा ही था? अगर वह राम मंदिरके बारेमें कुछ बोले, तो कहो कि बीजेपी कोमवादी है.
अगर बीजेपी हिन्दुत्वकी या सांस्कृतिक विरासतकी कोई भी बात करें तो कहो कि, वह देशमें भगवाकरण करता है.
बीजेपीके तथा कथिक भ्रष्टाचारको शतशत बार दोहराओ.
देहातोंमें जाके उनको महेसुस कराओ कि विकास तो सिर्फ शहेरोंका हुआ है और वह भी आपकी कमाईसे हुआ है. आपके हित को तो नजर अंदाज ही किया है.
बीजेपी की चूनावी टिकटोंके बारेमें ज्ञातिवादी और धार्मिक भेदभावकी अफवाहें फैलावो.
जातिवादी आंदोलनोंको बढावा दो.
कोमी दंगे करवाओ और मुस्लिमोंको महेसुस करवाओ कि वे बीजेपीके राजमें सुरक्षित नहीं है.
बीजेपी शासित राज्योंमे हुए दंगोंको हजार बार दोहराओ और कोंगके शासनके दंगोंके बारेमें वितंडावाद फैलाओ.
२००४ का चूनाव कोंग्रेसने कैसे जिता?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः खालिस्तान, पाकिस्तान, सीमापार, आतंकवाद, प्रशिक्षण, नेटवर्क, निजी, सत्ता, नरसिंह राव, सुब्रह्मनीयन, मनमोहन, आर्थिक सुधार, विकास, बौद्धिक प्रमाद, अंडरटेबल डील, सिमला करार, व्यंढ
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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर-2
के अनुसंधानमें इसको पढें
नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लियेनहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.
नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थी, वह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लिया. नहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थे. उन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लिया. उनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थी. लेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था न तो समाधान कारी टीका कर सकता था.
नहेरुकी तरह ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.
मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थे. इस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई.
ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थी. चूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचके) देनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहो. जनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहो. समाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.
जर्क देने वाली प्रवृत्तिः
पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः
१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः
आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार:
ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?
ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थे. मुझे गरीबी हटानी है. इसलिये मेरा नारा है “गरीबी हटाओ”.
समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दी. क्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करें, वे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.
राष्ट्र प्रमुख का चूनाव आ पडा था. सींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुख. पक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थे. ईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थीं. उन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दिया. वह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.
इन्दिराका फतवा
ईन्दीरा गांधीने “आत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया कि, राष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहिये. आत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देना. राजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव है. विपक्ष बिखरा हुआ था. जो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनाया. कोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते है, उनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहित, जरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.
ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाई. यह बात गैर कानुनी थी. फिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गया. कोई रोक टोक हुई नहीं.
राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान है. उस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गये. इस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुए. ईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवाया. इसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त की. कथा तो बहुत लंबी है. असली कोंग्रेस कौन? क्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थी. जो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.
ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगा. क्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थे. मूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एन) से उल्लेखित किया गया. दुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस ओ (ओर्गेनीझेशन).
सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?
यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.
जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः
१९६९–७०का चूनाव
जनताको कैसे विभाजित करें?
गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं था. लेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था कि, नहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०–६५के उपरके हो गये थे) नहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थे. इसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ कि, अब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास आ गया है. अब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.
युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग था, राजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें आ गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते है. साधानशुद्धि, प्रमाणभान, प्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.
नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थे. जो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गये. इन नामोंमे जगजिवनराम, यशवंतराव चवाण, ललित मिश्रा, बहुगुणा, वीपी सिंग आदि कई सारे थे.
सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?
गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा
गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया था. लेकिन वह पर्याप्त नहीं था. १९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय है. यह एक लंबी कहानी है. परिणाम यह हुआ कि, मोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (ओ), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गया. और १९६९–७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें भी उसको २४मेंसे ८ बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थीं. यह हो सकता है कि, मुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था. १९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्ष, संयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थे. लेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता.
जितके कारण और विधानसभा चूनाव
१९७१में पाक– युद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिली. उसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया. १९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजाय, अन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.
मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दिया. नवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती है, इसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.
चूनाव प्रपंच और गुड गवर्नन्स अलग अलग है
इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थीं, लेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थीं. विदेश नीति रुस परस्त थी. सिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया था. इन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थीं. महंगाई और करप्शन बहुत बढ गये. इन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थीं, इसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गया. समाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थीं. गुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्र, नहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गये. सर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.
इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा था. गुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा था. ईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है. गुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थी. और नया चूनाव भी देना पडा था. उसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीय, आदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थी. गुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा था. विपक्ष एक हो रहा था. इन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.
सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा की, और विरोधियोंको जेल भेज दिया. समाचार के उपर सेन्सरशीप लागु की. सभासरघस पर प्रतिबंध लागु कर दिये. क्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा कि, समाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा है. आपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा था, क्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं था. गवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता है. यह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम है. यह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं है. सियासतमें लचिलापन चल सकता है. गवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं है. इन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थीं. जो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकते. इन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते है, और सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको ही मतदान करेगी. आपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा था. इन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास किया. लेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार किया. इतना ही नहीं यह भी पता चला कि, भारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज न सके.
१९८०का चूनाव
इन्दीरा गांधीने १९६९ से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.
गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२–७३में इन्दिरा की ईच्छा न होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थी, कि इन्दीरा गांधीने तेल-मीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया था. उत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश था. अंकूश पैसेसे बिकते थे. युनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था. १९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे. १९७९–८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थी. आपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है कि, जमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थे. आज जो राजकारणमें पैसेकी, शराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती है, उसके बीज नहीं, लेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.
१९७७ में जब आखीरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं है, तो उसने उम्मिदवारोंको उनके भरोसे छोड दिये थे. नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी.
१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आये. चरण सिंह जिन्होने खुदको महात्मा गांधी वादी मनवाया था, वे इन्दिरासे बिक गये. मोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिराया. नये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगे. समाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा की. ईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.
१९८०–१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआ. पंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा किया. इन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थीं. इन्दीरा गांधीने जैसी उसने बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें अनिर्णायकता और कमजोरी रक्खी, वैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें किया. ईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातरा शस्त्रोके साथ घुसने दिये और आश्रय लेने दिया. दुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को न पकड सके. भारतमें भी अगर कोई चोर धर्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकती, ऐसा कोई कानुन नहीं है. लेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लिये, एक कानुन पास किया कि, अगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती है. जब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गया. लेकिन बहुत देर हो चूकी थी. कई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे.
(क्रमशः)
शिरीषमोहनलालदवे
टेग्झः नहेरुवीयन, चूनावी, प्रपंच, रणनीति, सत्ता, गरीबीहटाओ, समाचारमाध्यम, इन्दिरा, आत्माकीआवज, मोरारजीदेसाई, कोमीदंगा, भ्रष्टाचार, आंदोलन, आपातकाल, चरणसिंग, स्वर्णमंदिर, आतंकवाद, सीमापार
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