अनीतियोंसेपरहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जोजितावहसिकंदर (नहेरुवीयनकोंगरहस्य)-६
(इसलेखको“अनीतियोंसेपरहेजक्यों? जोजितावहसिकंदर-५” केअनुसंधानमेंपढें)
२०१४केचूनावमेंनहेरुवीयनकोंग्रेसकारवैयाकैसारहेगा?
कोंगीसमझतीहैकिजबतकदेशमेंगरीबी, निरक्षरता, कोमवादऔरजातिवादरहेगातबतकहमारेलियेजितनेकीसंभावनाज्यादारहेगी.
कोंगी,वहीवटमेंसुधारलानेमें मानतीहीनहींहै. क्योंकिवहीवटमेंसुधारआजाय, तो इसकामतलबहोताहैकिप्रणालीहीऐसीबनेकिसिफारीसकरनेकीकिसीकोजरुरतहीनपडे. अगरऐसाहोजायतोजनप्रतिनीधियोंकानिम्नऔरउच्चस्तरोंपरदबावलानाजरुरीहीनबने. यह तो खुदका महत्व घटानेकी बात हुई. अपने ही पांव पर कुल्हाडी मारने जैसा है.
माहितिअधिकारकोबेअसरकरनेकाकोंगीकामकसदरहाहै. पर्याप्तहदतकउसकोबेअसरकियाभीहै. खेमकाऔरवाड्राकाएपीसोडहमारेसामनेहै.
१९६९से कोंगीका संस्कार बना है कि भ्रष्ट लोगोंको ही पक्षमें लो,
अगर कोई हमारे पक्षमें नीतिमान है तो उसको अनीतिमान बनाओ
नंबरवन पोस्ट हमेशा नहेरुवीयन के लिये आरक्षित रक्खो,
विरोधीयों पर चार आंख रक्खो,
उसको ब्लेकमेल करके उसका सपोर्ट लो, अगर कोई विरोधी नीतिमान है या तो उसको नंबरवन पोस्टकी ईच्छा आकांक्षा है, या तो अपनी सफलताओंका श्रेय वह नहेरुवीयनों को देनेके बजाय खुद लेता है तो उसके विरुद्ध अफवाहें फैलाओ, उसको बदनाम करो और उसको पक्षमें से निकाल दो. राजगोपालाचारी, मोरारजी देसाई, बहुगाणा, चरणसिंग, वीपी सिंग, ऐसे कई उदाहर है. लेकिन विपक्षमें ऐसा कोई असाधारण नेता है तो उसको सत्ताका भूखा, सरमुखत्यार, आपखुद, ऐसा कहेते रहो.
यह तो कोंगीका इन्दिरा स्थापित सामान्य संस्कार है.
२०१४का चूनाव कोंगी कैसे अपने पक्षमें लायेगी?
कोंगीके शस्त्र कया है? पैसा, जातिवाद, भाषावाद, कोमवाद, ब्लेकमेल, एक-सुरता, अफवाहें और समाचार माध्यम.
एक-सुरमें बोलना.
कोंगीका एक लक्षण है कि उसके सभी नेता एक ही सुरमें बोलेंगे. और बोलते ही रहेंगे. समाचार माध्यमको भी मालुम है कि, यथा कथित शब्दोंमें कोंगी नेताओंके निवेदनोंको प्रसिद्धि देना एक अच्छा धंधा है.
जातिवाद और कोमवाद
जातिवादसे लोगोंको विभाजित करनेवाला शस्त्र अब कमजोर पड गया है. इसको कमजोर करनेका प्रयास सबसे प्रथम वीपी सिंगने किया. मायावती, मुलायम, ममता और लालुने ऐसे शस्त्रोंका उपयोग करना चालु कर दिया. जातिवादके शस्त्रका हाल भी गरीबीके शस्त्रके जैसा हो गया है.
अब बच जाते है कोमवाद और ब्लेकमेल.
समाचार माध्यमका साथ मिल जाय तो ही कोमवाद और ब्लेकमेलवाले शस्त्र असरदार बनाया जा सकता है. समाचार माध्यमको अगर अपने पक्षमें ले लिया जाय तो विरोध पक्षोंके नेताओंके बारेमें अफवाहे फैलानेका एक और शस्त्र मिल जयेगा.
समाचार माध्यमसे ब्लेकमेल करो और अफवाहें फैलाओ
कोंगीको डर नहीं है.
शरद पवार, जयललिता, मायावती, मुलायम, लालुप्रसाद, और डीएमके का कोई डर कोंगी को नहीं है. नीतीशकुमारको अफवाहें फैलाके निरस्त्र करदिया जा सकता है. वे अगर जिते तो भी उनके बारेमें पर्याप्त काले पन्नेकी जानकारी कोंगीके पास है. अजित सिंह, बहुगुणा, चौटाला ये सब तो अपने पास है ही.
शरद पवारक्र बारेमें क्या है?
अगर शरद पवारको पपेट प्रधान मंत्री बनाया जाय तो एमएनएस और शिवसेना भी निरस्त्र हो सकते है. शरद पवार सिर्फ पैसे बनानेमें रुचि रखते है. शरद पवार को प्रधान मंत्री पद देना खतरेसे खाली नहीं है. लेकिन शरद पवार की उम्र और स्वास्थ्य कोंगीके लिये आशिर्वाद रुप है ऐसा कोंगी समझती है.
कोंगीकी सबसे बडी समस्या है उसकी सर्व क्षेत्रीय विफलताएं और अनीतिमत्ता. इसको कैसे हल किया जाय?
कोंगीने इसका निवारण कर दिया है.
कोंगीकी विफलताएं यह एक एन्टीइंकम्बन्सी परिबल (फेक्टर) है. इसके कारण बीजेपीको काफी मत मिल सकते है. बीजेपी के कमिटेड मत भी है. बीजेपीको, पूर्वोत्तर, तामिलनाडु, बंगाल और केरलमें एक भी बैठक न मिले तो भी अगर कोंगीकी विफलतासे मिलने वाले वोट और बीजेपीके कमिटेड वोट इन दोनोंको मिला दें तो बिजेपीको ३५० बैठक आसानीसे मिल सकती है.
बीजेपीके कमिटेड वोटको कोंगी छू नहीं सकती. लेकिन एन्टीइनकम्बन्सी मतको विभाजित करनेमें उसने पाकिस्तान और अमेरिकाका सहारा लिया है.
पाकिस्तान कैसे बीचमें आता है?
पाकिस्तानका भारतमें पारिवारिक संबंध है. आई.एस.आई. का भारतमें नेट वर्क है. दाउद-गेंगका भारतमें नेट वर्क है. इस कारण फर्जी करन्सी नोट, तस्करी, और काले-लाल धनका उत्पादन और उसकी हेराफेरी आसन है. हसन अली के बारे में पढो तो पता चल जायेगा कि, हवालासे क्या क्या हो सकता है. शरद पवार और कोंगी नेता इसमें सीमापारसे संयुक्त साहसी है (जोईन्ट वेन्चरमें है). कुछ हद तक कोंगीके सह्योगी पक्ष भी सामेल है. इसके कारण कुछ मत इन लोगोंके लिये भी कमिटेड है.
यु.एस. को क्या चाहिये?
यु.एस. खुद प्रजासत्ताक देश है. लेकिन उसकी प्राथमिकता यु.एस.का खुदका लाभ है. इसलिये भारत, पाकिस्तान जैसे अल्प विकसित या तो अविकसित देशमें कमजोर और परावलंबी सरकार या तो आपखुद सरकार रहे उसमें यु.एस.को ज्यादा दिलचस्पी है. युएस की खुफिया एजन्सीको पता चला था कि, नरेन्द्र मोदी एक इमानदार, कडक और कुशल मुख्य मंत्री है.
भूकंपसे पीडित और इजाग्रस्त गुजरातको सही करनेमें और सरकारी कर्मचारीयोंको सुधारनेमें नरेन्द्र मोदीने शिघ्र कदम उठाये थे. कोंगीके एक स्थानिक नेताने साबरमती के अयोध्यासे आने वाले रामभक्तोंका रेलका डीबा जलानेका सफल षडयंत्र पार किया तो दंगे भडक उठे. नरेन्द्र मोदीने उसको सफलतासे सम्हाला. नरेन्द्र मोदीने जिस कुशलतासे गुजरातको विकसित कर दिया इससे युएसको पता चल गया था कि वह आगे चलकर प्रधान मंत्री बन सकता है. अगर ऐसा होगा तो वह युएसके दबावमें नहीं आयेगा. इसलिये उसको कमजोर करनेके लिये उसको बदनाम करना पडेगा. कोंगी तो यु.एस.को साथ देनेके लिये तैयार ही थी. २००२ के दंगे के बारेमें बडा विवाद खडा कर दिया गया. लेकिन गुजरातके चूनावमें वह बुमरेंग साबित हुआ. कोंगी और युएसने मिलकर नरेन्द्र मोदीके विसा का एक नाटक रचा. २००२ के दंगे की बातको वे पूरे देशके मुसलमानोंको भ्रमित करनेके लिये उपयुक्त समते है.
नरेन्द्र मोदी लगातार गुजरातमें जितते गये है. और उन्होने गुजरातमें राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम रचाये तो परप्रांतके लोग भी गुजरातका विकास देखने लगे. नरेन्द्र मोदी पूरे देशमें लोक प्रिय हो गये है.
कोंगीको जो भय था वही सामने आया. बीजेपी की मध्यस्थ नेतागीरीको भी जनताकी आवाजके सामने झुकना पडा और मोदीको प्रधान मंत्री पदका प्रत्याशी घोषित करना पडा.
वैसे तो नरेन्द्र मोदीको २००९के चूनावमें ही प्रधान मंत्री पदका प्रत्याशी घोषित करनेके सुझाव आये थे. लेकिन मध्यस्थ नेतागीरीके जादातर सदस्य अडवाणीको मोका देना चाहते थे. अडवाणीका नाम प्रधान मंत्री पदका प्रत्याशीके रुपमें घोषित किया गया. लेकिन अडवाणीमें इतनी सक्षमता नहीं थी. अडवाणी कोंगीकी सुरक्षाक्षेत्रकी विफलताओंको उजागर करके लाभ नहीं ले पाये. अडवाणी चूनावी व्युह रचनामें और कई बातोंमें असरकारक कदम नहीं ले पाये.
इस कारण कोंगीकी और उसके वांजिंत्रोंकी विभाजनवादी प्रचार नीति सफल रही. कोंगीकी व्युहरचनाके अनुसार सेलीब्रीटी लोग सडक पर उतर आये.
सेलीब्रीटीयोंने क्या किया? “सब राजकीय पक्ष एक समान भ्रष्ट और समान प्रमाणसे अकुशल है ऐसी हवा फैलाके कोंगी की विफलतासे उत्पन्न एन्टीईन्कम्बन्सी असरको डाईल्युट (पतला, कमजोर) कर दिया.
लेकिन कोंगी चूनावी व्युह रचनामें आगेसे सोचती है. कोंगीने साम्यवादीयोंकी प्रचार-नीति और युएसके प्रचारकी व्युह रचनाका समन्वय किया है.
साम्यवादीयोंकी व्युहरचना क्या होती है?
विरोधीयोंके बारेमें अफवाहें फैलाओ.
अपने सभी नेताओंको बोलो कि वे एक एक करके हर उछाली हुइ बात पर लगातार एक ही सूरमें विरोधीके उपर आक्रमण करें.
विरोधीयोंके आक्रमण के मुद्दोंपर डीफेन्सीव मत बनो. उसके मुद्दोंका कभी भी जवाब मत दो. लेकिन जवाबमें सिर्फ गालीयां दो.
जो विरोधी व्यक्ति जोरदार है उसके उपर मध्यमस्तरीय से लेकर निम्न स्तरीय गालीप्रदान करो.
विरोधी व्यक्तिके बारेमें अफवाहें और विवाद फैलाओ. और जो विवादास्पद है उसको ही आधार बनाके और विवाद उत्पन्न करो.
कोंगीने नरेन्द्र मोदीके बारेमें क्या किया? कैसी अफवाहें फैलायी?
२००२के दंगेमें मोदीका कोंगी द्वारा यथा कथित प्रभाव, उसका आर एस एस से संबंध, आरएस एस का गोडसे से संबंध, आर एस एस कोमवादी, मोदी कोमवादी, मोदी सरमुखत्यार, किसीको आगे आने देता नहीं है, जो जो पहेले आगे थे उनको मोदीने पीछे कर दिया, उनको मोदी विरोधी घोषित कर दो. जो लोग बीजेपी को छोड कर गये वे लोग मोदीके कारण गये, जो टीकीटसे वंचित रह गये वे मोदीके कारण वंचित रह गये, मोदी उनके खिलाफ था, मोदी विरोधीयोंको खतम कर देता है, जो खतम हो गये उनको मोदीने खतम किया, अब किस किसकी बारी है, उसकी अफवाहें फैलाओ.
अडवाणी नहीं आये? मोदीके कारण नहीं आये.
अडवाणी आये तो देर से आये, तो अफवाह फैलावो कि वे तो आना नहीं चाहते थे, लेकिन फिर उनको मनाना पडा.
अडवाणी जल्दी आ गये तो अफवाह फैलाओ कि मोदी देरसे आया.
मोदी आना नहीं चाहता था क्योंकि अगर आये तो उसको उनके साथ बैठना पडे.
अगर वे बोले तो कहो कि दिखावे के खातिर बोले.
अगर वे नहीं बोले तो तो क्या मजेदार बात है? मीडीया को तो अच्छा मसाला मिल गया कि अडवाणी आये तो सही लेकिन वे आर एस एसके दबावमें आये थे. लेकिन अडवाणीने, नरेन्द्र मोदीसे बात तक नहीं की.
अगर ऐसा नहीं हुआ और, अडवाणीने मोदीकी तारिफ भी की? तो कहो कि उन्होने अपना बडप्पन दिखाया.
अगर तारिफ नहीं कि, तो कहो कि वे ज्यादा अपमान सहन करनेको तैयार नहीं थे.
ऐसी तो हजारों अफवाहें फैलायी है कोंगी और मीडीयाने अपने जोईन्ट वेन्चरमें.
इन सबकी वजह क्या है वह हम बादमें देखेंगे.
लेकिन कोंगी ऐसी अफवाहें मोदीको संशय ग्रस्त करनेके लिये नहीं फैलाती. नरेन्द्र मोदी, कोंगी की सभी चालाकियां जानता है.
युएस स्टाईल व्युह रचना क्या है? कोंगीने उस दिशामें क्या किया?
कोंगी और उसके साथीगणने इतना भ्रष्टाचार किया कि उसको छिपाना अशक्य बना. वैसे तो सुब्रह्मनीयन स्वामीने पर्दाफास किया और वह भी सर्वोच्च न्यायालयका जांचका आदेश भी लाया गया. अब इन भ्रष्टाचारके आरोपोंको कैसे बेअसर किया जाय? इसका फायदा तो बीजेपीको मिलनेका ही था.
कोंगीने बीजेपीके कुछ नेताओंके विवादास्पद भ्रष्टाचारको उजागर किया. जैसे कि येदुरप्पा. इसको लगातार उछाला गया. मोदीने जो जमीन ताताको नेनो के लिये दी उसको भी लगातर हर कोंगी नेता द्वारा उछाला गया. ऐसी हवा फैलायी कि सभी उद्योगगृहोंको उसने मुफ्तके बराबर जमीन दीं.
बीजेपी इसका तो जवाब दे सकता है. तो भी जो लोग अनपढ और मझदुर है वे भ्रममें पड सकते है. इस लिये कोंगी राहुल, सोनीया और प्रियंका गरीबोंकी बस्तीमें जाने लगे. ताकि उनका भ्रम वोटमें बदल सके. ऐसा प्रयोग कोंगी नेतागण हर चूनावके समयमें करते है. उनको मालुम है कि ये मतोंमें वृद्धि जरुर कर सकते है, लेकिन इतना नहीं कि हम चूनाव जित सकें.
कोंगीने अमेरिकासे मिलकर एक सडयंत्र बनाया.
अन्ना हजारे जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कर रहे थे उसकी बागडोर केज्रीवालने धीरे धीरे विदेशी पैसे (जो अलग अलग कहेजाने वाले सत्कर्मोके लिये दान में मिलते है) की मददसे अपने हाथ कर लिया. जब अन्ना हजारेको लगा कि उनके संगठन में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है तो वे दूर हो गये. दुसरे लोग भी निकल गये लेकिन संगठन चालु रहा और कुछ नये लोग भी आये. एक पक्ष भी बनाया गया. समाचार माध्यामोंने केज्रीवाल और उनके साथीयोंको भरपूर प्रसिद्धि दी. दिल्ली के चूनावमें यह पक्ष भौगोलिक स्थितिके कारण भ्रष्टाचारके विरुद्धका मत तोडने में महद अंश तक सफल भी रहा.
प्रसवासन्न सगर्भामें अगर जोर न हो तो लेडी डॉक्टर क्या कर सकती है?
(गुजराती मुंहावरा है कि, जणनारीमां जो जोर न हो तो सुयाणी बिचारी शुं करे? मतलबकी लेडी डोक्टर कुछ नहीं कर सकती.)
पुरुष और डोक्टर (युएस और कोंग्रेस), स्त्रीमें(आम आदमी पक्षमें) बीज रोपण कर सकता है, और प्रसव भी करवा सकता है, लेकिन गर्भका विकास और पालन तो बालक का प्रसव तो स्त्रीको खुदको करना पडता है. दिल्ली में आमआदमी पक्षका मीस डीलीवरी हो गया.
कोंगीने सोचा कि गर्भ मर गया है. लेकिन मादा तो मरी नहीं है. पुनर्गर्भ धारण भी कुछ न कुछ फायदा तो जरुर करेगा ही. आम आदमी पार्टी ने पहेले बकरेका बीज लिया था अब हाथीके कई बीज लिये है.
कोंगीको मालुम है कि यह पर्याप्त नहीं है.
मोदी विकासके नाम पर मत मांगता है तो उसने जो विकास किया है उसको बिलकुल नकार दो. चाहे कितना ही जुठ क्यों न बोलना पडे.
मोदी खेती और छोटे किसानोंकी मददके लिये मेले करता है, कुटिर उद्योग और महिला मंडल द्वारा स्त्री अर्थिक सशक्ति करण करता है, जमीन सुरक्षा और पशु चिकित्सा भी अमलमें लायी गई है. बीजली, रास्ते, शिक्षण केन्द्र और प्रशिक्षण केन्द्रों द्वारा रोजगार निर्माण किया जाता है. कुदरती श्रोतोंके द्वारा उर्जा निर्माण में तरक्की की जा रही है. लेकिन कोंगी और साथीगण इन सब बातोंके अंदर नहीं जायेंगे. सामान्यीकरण का एक शब्द है गुजरात मोडल. गुजरात मोडल व्यर्थ है. बस यही वाक्य बोलते रहो. गुजरात मोडल व्यर्थ है ऐसा अनेकों द्वारा लगातार बोलनेसे वह एक सत्य बन जायेगा.
मोदीके उपर सीधा आक्रमण करो. गुजरात मोडल का अर्थ है दंगा और फसाद और डर.
कोमवादको चूनावमें लाये बिना कोई उद्धार नहीं है. इसलिये सभी दंगे मोदीके नाम कर दो.
मोदी आयेगा तो पूरे देशमें दंगे भडकेंगे. कोंगी और उसके सहयोगी इसके लिये तैयार भी है. लेकिन अगर मोदी चूनावमें जित जाता है तो कोंगीयोंको और उसके साथीयोंको लेनेके देने पड जा सकते है.
चूनावके पहेले दंगा क्या नहीं करवा सकते? करवा सकते है. लेकिन कहां? बीजेपी शासित राज्यमें करवायेंगे तो लेनेके देने पड जायेंगे. और कोंगी या कोंगीके सहयोगी शासित राज्यमें दंगे करवायेंगे तो पता नहीं “मत” का प्रवाह किस ओर मोड लेगा.
लेकिन क्या दंगोंका आभास उत्पन्न करवा सकते है?
ओमर अब्दुलाने ऐसा ही किया. फारुख अब्दुलाने भी उसी रागमें गुस्सा किया.
मोदी का सुत्र है सबका साथ सबका विकास. तो उसमें जम्मु-कश्मिर भी आजाता है. पैसे बहुत खर्च होते है. उसका विकास नहीं होता है. क्यों कि भारतीय संविधान की कलम ३७० उसको विशिष्ठ अधिकार देती है. फारुख, ओमर और साथी मालामाल है. कोई जांच आयोग नहीं बैठा सकते. वहां जाके कोई उद्योग लगा नहीं सकता. वहां जाके कोई धंधा नहीं कर सकता. यह बात तो छोडो वहांसे जो हिन्दु लाखोंकी संख्यामें निकाले गये वे कैसे निकाले गये?
अखबारोमें खुल्ले आम लगातार विज्ञापन छपे कि हिंदुलोग या तो इस्लाम कबुल करे या तो जान बचानेके लिये कश्मिर छोड दे. अगर नहीं छोडेंगे तो कत्ल कर दिया जायेगा. गांव कस्बोंमें और श्रीनगरमें भी दिवारो पर खुल्ले आम बडे बडे इसी प्रकारके पोस्टर चीपकाये गये. ओमर और फारुख उस समय लंडनमें मजा ले रहे थे. उनके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. ३०००+ हिन्दुओंकी कत्ल कर दी गई. और ५-७ लाख के करीब हिन्दु कश्मिर छोड कर भाग निकले. यह बात १९८९-९० की है. आज तक ये सब हिन्दु नागरिक अपने राज्यके बहार तंबुओंमें जिवन गुजार रहे है. न तो अति संवेदन शील, अमेरिकाका मानव अधिकार पंच, न तो फिल्मी सेलीब्रीटीयां, न तो नहेरुवीयन कोंग्रेस, न तो फारुख, न तो ओमर, न तो मुफ्ति महेबुबा, न तो समाचार माध्यम, न तो राजकीय विश्लेषक, न तो कोई धर्मनिरपेक्षक इन हिन्दुओंकी यातनाओंसे संवेदन शील है नतो वे चाहते हैं कि ओमर, फारुख, कोंगी नेताओंके उपर इनकी इन अमानवीय और संवेदनहीन दूर्लक्षताके उपर कोई कार्यवाही की जाय. इतना ही नहीं इनमेंसे कोई, हिन्दुओंको अपने घरमें पूनर्वसन किया जाय इस बात पर सोचते ही नहीं है. इस बात को ये लोग समस्याकी लीस्ट तकमें नहीं रखते है. उनके लिस्टमें है, सुरक्षा सैनिकोमें कमी करना और कश्मिरको ज्यादा स्वायत्तता देना या तो स्वतंत्र कर देना इसपर चर्चा करना.
नरेन्द्र मोदीने कहा कि धारा ३७० से कश्मिरको क्या लाभ मिला उसके उपर चर्चा किया जाय. तो फारुख और ओमर को पदभ्रष्ट कर दिया हो इस प्रकार गुसा हो गये. और मोदीको गालीयां सुनाने लगे. मोदीको हम हर हालतमें प्रधान मंत्री बनते रोकेंगे.
एक बीजेपी नेताने कहा कि मोदी संविधानकी प्रक्रियासे गुजरकर प्रधान मंत्री बनेंगे. किस पक्षको मत देना, और किस पक्षकी केन्द्रमें सरकार बनने देना भारतीय जनताका संवैधानिक अधिकार है. अगर कोई मोदीको प्रधान मंत्री बनते नहीं देख सकता तो वह पाकिस्तान चला जाय. इसमें कुछ गलत नहीं है.
फारुखने कहा कि जो मोदीके पक्षमें हो उनको समुद्रमें डूबो दो.
चूनाव आयोगने बीजेपीके सदस्य पर गैर जमानती वारंट जारी किया. लेकिन फारुख के उपर कुछ भी कदम नहीं उठाये.
नरेन्द्र मोदीने कहा कि कश्मिरकी दुर्दशा और हिन्दुओके मानव अधिकार हनन और उनकी यातनाओंके लिये कोंग्रेस और फारुख और ओमर जिम्मेवार है.
आपको लगा होगा कि हिन्दुओंकी दशा सुधारनेके लिये ओमर और फारुख कदम उठानेके बारेमें बोलेंगे, और क्षमा याचना प्रस्तुत करेंगे. नहीं जी, ऐस कुछ नहीं किया. उन्होने कहा कि मोदीने इतिहास पढा नहीं है. हमारे दादाने स्वातंत्र्य संग्राममें कई त्याग दिये है. हिन्दुओंको जब खदेड दिया तब हम नहीं थे.
इसका मतलब यह है कि अगर शेख अब्दुला स्वातंत्र्यकी लडतमें सामिल थे तो उनके वारस दारोंको पूर्ण और मनमाना हक्क मिल जाता है. और उनका फर्ज तभी बनता है जब उनके शासनमें ही हिन्दुओंको खदेडा गया हो तभी वे उनके पूनर्वासके लिये कदम उठाना उनका फर्ज बनता है. इससे तो यह भी निस्कर्ष निकलता है कि अगर २००२के दंगेमें गुजरातके हिन्दुओंने गुजरातके मुस्लिमोंको गुजरातके बाहर खदेड दिया होता और नरेन्द्र मोदीने पदत्याग किया होता तो नया कोई भी मुख्य मंत्री आये तो वह भी कह सकता है कि मेरे समयमें मुस्लिमोंको खदेड दिया गया नहीं है तो मेरा फर्ज नहीं बनता है कि मैं उनको वापस लाउं.
ओमर और फारुखको यह मालुम नहीं कि, शेख अब्दुलाकी स्वकेन्द्री और देशहितके खिलाफ गतिविधियोंके कारण उनको बंदी बनाके जेल भेजना पडा था. जवाहरकी ईच्छा नहीं थी तो भी. शेख अब्दुल्लाके फरजंदोंको ज्यादा चापलुसी करनेकी जरुरत नहीं है.
एक बात याद रक्खो कि फारुख और ओमर नया मोरचा खोल रहे है. कोंगी इनलोंगोंके साथ नया गेम खेल रही है.
कोंग्रेस और उसके साथीयोंने वोटींग मशीनमें गडबडी की है. सावधान.
इन सबके बावजुद अगर नरेन्द्र मोदी जित गये और संपूर्ण बहुमत भी प्राप्त कर लेते है तो कोंगी और उसके साथी क्या करेंगे?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे.
टेग्झः २०१४, मत, चूनाव, कोंगी, फारुख, ओमर, शेख अब्दुल्ला
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