क्या ये लोग मुंह दिखानेके के योग्य रहे हैं?
May 20, 2014 by smdave1940
क्या ये लोग मुंह दिखानेके के योग्य रहे हैं?
नरेन्द्र मोदीकी देश में सर्वव्यापक जित हुई. भारतकी जनताने उसको बहुमतसे विजय दिलाई.
लेकिन उसके पहेले क्या हुआ था?
ऐसा माना जाता है कि एक “मोदी रोको आंदोलन” सामुहिक ढंगसे मिलजुल कर चल रहा था, तथा कुछ मूर्धन्य द्वारा, “हम कुछ हटके है” ऐसी विशेषता का आत्मप्रदर्शन और आत्मख्यातीके मानसिक रोगसे पीडित विद्वानोंने इस आंदोलनमें अपना योगदान दिया करते थे.
नरेन्द्र मोदीके विरोधी कहां कहां थे और है?
दृष्य श्राव्य माध्यम टीवी चेनल
कोई न कोई क्षेत्रमें ख्यात (सेलीब्रीटी) व्यक्ति विशेष.
कोंगी और उनके साथी नेतागण
अखबारामें कटार लिखनेवाले (कोलमीस्ट)
दृष्य श्राव्य समाचार माध्यमः
इन माध्यमोंने कभी मुद्दे पर आधारित और माहितिपूर्ण संवाद नहीं चालाये. नरेन्द्र मोदीने कहा कि धारा ३७० से देशको या कश्मिरको कितना लाभ हुआ इसकी चर्चा होनी चाहिये. तो इसके उपर फारुख, ओमर आदि नेताओंने जो कठोर शब्द प्रयोग किये और इन शब्दोंको ही बार बार प्रसारित किया गया. चेनलोंने कभी उन नेताओंको यह नहीं पूछा कि धारा ३७० से क्या लाभ हुआ उसकी तो बात करो.
चेनलोंका चारित्र्य ऐसा रहा कि जो मूलभूत सत्य है और समस्या है वह दबा दिया जाय. ऐसा ही “गुजरात मोडल”के विषय पर हुआ. जिन नेताओंने बिना कोई ठोस आधार पर कडे और अपमान जनक शब्दोंसे “गुजरात मोडल”की निंदा की, चेनल वाले सिर्फ शब्दोंको ही प्रसिद्धि देते रहे. चेनलोनें कभी उन नेताओंसे यह पूछा नहीं कि आप कौनसे आधार पर गुजरात मोडलकी निंदा कर रहे हो? चैनलोंने बुराई करने वाले नेताओंकी प्रतिपरीक्षा (क्रोस एक्जामीनेशन) भी नहीं की. उनका बतलब ही यही था कि नरेन्द्र मोदीको ही बिना आधार बदनाम करो और नरेन्द्र मोदीके और बीजेपीके बारेमें बोले गये निंदाजनक शब्दों को ही ज्यादा प्रसिद्धि दो. ऐसे तो कई उदाहरण है.

सिझोफ्रेनीयासे पीडित
इन लोगोंको पहेचानो जो सिझोफ्रेनीयासे पीडित है(Schizophrenia एक ऐसी बीमारी है जिसमें खुदके विचारका खुदके आचारके साथ संबंध तूट जाता है और सिर्फ उनकी भावना अभद्र शब्दोंसे प्रकट होती है)
पी चिदंबरः
ये महाशय अपनेको अर्थ शास्त्री समझते है. वे अर्थ मंत्री भी रहे. अगर चाहते तो नरेन्द्र मोदीने जिस विकासके लिये जिन क्षेत्रोंको प्राथमिकता दी, और गुजरातका विकास किया, उसमें अपना तर्क प्रस्तूत कर सकते थे. ऐसा लगता है कि, ऐसा करना उनके बसकी बात नहीं थी या तो वे जनताको गुमराह करना चाहते थे.
पी चिदंबरंने क्या कहा? उन्होने कहा कि, “नरेन्द्र मोदीका अर्थशास्त्रका ज्ञान पोस्टेज स्टेंप पर लिख सके उतना ही है”. हो सकता है यह ज्ञान उनके खुदके ज्ञानका कद हो.
महात्मा गांधीने कहा था “सर्वोदय”. उनका एक विस्तृतिकरण है “ओन टु ध लास्ट”.
इसको भी समझना है तो “ईशावास्य वृत्ति रखो. इसमें हर शास्त्र आ जाता है.
नरेन्द्र मोदीने यह समझ लिया है. नरेन्द्र मोदी राजशास्त्री ही नहीं विचारक भी है.
कपिल सिब्बलः “नरेन्द्र मोदी सेक्टेरीयन है. उसने फेक एन्काउन्टर करवाये है. नरेन्द्र मोदी लघुमतियोंके लिये कुछ भी करता नहीं है. नरेन्द्र मोदी कोई भी हालतमें प्रधान मंत्री बन ही नहीं सकता. वह स्थानिक है और वह स्थानिक भी नहीं रहेगा. वह शिवसेनाके नेताओंके जैसे लोगोंके साथ दारुपार्टी करता है.”
अब ये सिब्बल महाशय खुद गृह मंत्री थे. उन्होने क्या किया? अगर नरेन्द्र मोदी संविधानके अनुसार काम करता नहीं है तो उनकी पार्टी की सरकार कदम उठा सकती थी. वे क्युं असफल रहे? यह कपिल सिब्बल भी सिझोफ्रेनीया नामवाला मानसिक रोगसे पीडित है.
मनमोहन सिंहः वैसे यह महाशय प्रधान मंत्री है तो भी रोगिष्ठ है. उन्होने कहा नरेन्द्र मोदी अगर प्रधान मंत्री बने तो भारतके लिये भयजनक है. कैसे? वे खुद प्रधान मंत्री है तो भी उनके लिये वे यह आवश्यक नहीं समजते है कि वे यह बताये कि किस आधार पर वे ऐसा बता रहे है. क्या गुजरातकी हालत भय जनक है? अगर हां, तो कैसे? वास्तवमें उनकी यह रोगिष्ट मानसिकता है. अगर प्रधानमंत्री जनताको गुमराह करेगा तो वह देशके लिये कितना भयजनक स्थितिमें पहोंचा सकता है? आगे चल कर यह प्रधान मंत्री यह भी कहेते है कि मोदी उनके पक्षके पक्षके लिये बेअसर है.
“मोदी तो बिना टोपींगवाला पीझा है” अनन्त गाडगील कोंगीके प्रवक्ता
“मोदी तो फुलाया हुआ बलुन है” वह शिघ्र ही फूटने वाला है” शरद पवार.
“मोदी हिटलर है और पॉलपोट (कम्बोडीयन सरमुखत्यार) है” शान्ताराम नायक कोंगी एम.पी.
“मोदी कोई परिबल ही नहीं है. वह समाचार माध्यमका उत्पादन है. मोदी तो भंगार (स्क्रॅप) बेचनेवाला है. मोदी तो गप्पेबाज यानी कि “फेकु” है, बडाई मारनेवाला है” दिग्विजय सिंह जनरल सेक्रेटरी कोंगी.
“नरेन्द्र मोदी तो बंदर है. लोग मोदी बंदरका खेल देख रहे है. नरेन्द्र मोदी नपुंसक है” सलमान खुर्शिद कोंगी मंत्री.
“नरेन्द्र मोदी भस्मासुर है” जय राम रमेश कोंगी मंत्री
“नरेन्द्र मोदी मेरी गीनतीमें ही नहीं है. “ राहुल कोंगी उप प्रमुख
“हमारे पक्ष के लिये मोदी बेअसर है. हमारे लिये उसका कोई डर नही” गुलाम नबी आझाद. कोंगी मंत्री
“नरेन्द्र मोदी? एक दिखावा है. बीके हरिप्रसाद, राज बब्बर, शकील एहमद, कोंगी नेता.
“नरेन्द्र मोदी एक कोमवादी चहेरा है” चन्द्रभाण. कोंगी प्रमुख राजस्थान
“मोदी एक निस्फलता है” अजय माकन कंगी जनरल सेक्रेटरी
“मोदी एक चमगादड है” ईन्डो एसीअन न्युज सर्वीस (ई.ए.एन.एस)
“मोदी लघुमतियोंका दुश्मन है” सुखपाल सिंग खेरा कोंगी पंजाब प्रमुख
“मोदी रेम्बो बनना चाहता है” मनीश तिवारी कोंगी मंत्री
“मोदी बीजेपीको जमीनमें ८ फीट नीचे गाड देगा. यह निश्चित है.” फ्रान्सीस्को कोंगी प्रमुख गोवा
“मोदी धर्मांधताका प्रतिक है.” रमण बहल कोंगी कारोबारी सदस्य.
“मोदी अपनेको सुपरमेन समजता है. मोदी तो रेम्बो है. मोदी रावण है” सत्यव्रत कोंगी नेता
“मोदी त्रास फैलानेवाला है. रेम्बो बनने के लिये दिमाग जरुरी नहीं है” रेणुका चौधरी कोंगी नेता.
“मोदी और बीजेपीको मानने वालोंको समूद्रमें डूबो दो” फारुख अब्दुला
“मोदी और बीजेपीको मानने वालोंके टूकडे टूकडे करदो” आझमखान
“नरेन्द्र मोदी धर्मांध जुथका प्रतिक है, नरेन्द्र मोदी कोमवादी है उसको हराओ. अगर मोदी प्रधान मंत्री बन गया तो देश विभाजित हो जायेगा. यह समयका तकाजा है कि मोदीको रोका जाय” महेश भट्टा, इम्तीआझ अली, विशाल भारद्वाज, नन्दिता दास, गोविन्द निहलानि, सईद मिर्झा, झोया अख्तर, कबीर खान, शुभा मुद्गल, अदिति राओ हैदरी, आदिने एक निवेदन करके जनहितमें प्रकाशित करवाया.
“अगर नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन गया तो मैं बोलीवुड छोड दूंगा और जाति परिवर्तन (सेक्स चेन्ज) करवा लुंगा” बोली वुडका कमाल खान
“अगर नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन गया तो मैं राजकारण छोड दूंगा” देव गौडा पूर्व प्रधान मंत्री.
इन नेताओंने ऐसी छूट कैसे ली? क्यों कि उनकी शिर्ष नेता सोनीया (एन्टोणीया)ने नरेन्द्र मोदीको मौतका सोदागर और गुजरातकी जनताको गोडसे की ओलादें कहा था.
मीडीयाके मूर्धन्य जो अपनी कोलम चलाते है. उनका नैतिक कर्तव्य है राजकीय गतिविधियोंका और विचारोंका विश्लेषण करना और जनताको जागृत करना. लेकिन क्या उन्होने यह कर्तव्य निभाया?
ये कोलमीस्ट कौन थे?
उदाहरण के लिये हम गुजरातकी बात करेंगें. दिव्य भास्कर एक नया नया समाचार पत्र है और कुछ वर्ष पहेले ही उसने पादार्पण किये है लेकिन उसने पर्याप्त वाचकगण बना लिया है. उसके कोलमीस्ट को देखें. जो बीजेपी और नरेन्द्र मोदीके विरोधी थे उनका वैचारिक प्रतिभाव और तर्क कैसा रहा?
सनत महेताः
जो खुद नहेरुवीयन कोंग्रेसके होद्देदार थे. सरकारमें १९६७-१९६९, १९७१-९७५, १९८१-१९९५ गुजरात सरकारमें मंत्री भी रह चूके है. यह सनत महेता का इतिहास क्या है? सर्व प्रथम वे पीएसपी (प्रजा सोसीयालीस्ट पक्षमें थे).
नहेरु भी अपनेको समाजवादीके रुपमें प्रस्तूत करते रहते थे. उन्होने खुदकी विचारधाराका नाम बदलते बदलते “लोकशाहीवादी समाज रचना” का नामकरण किया. स्वतंत्र-पक्ष अपना जोर जमाने लगा. इस स्वतंत्र पक्षमें दिग्गजनेता थे. चीनकी भारत पर “केकवॉक” विजयके बाद और नहेरुकी मृत्युके बाद इन्दिराने खुदको और पिताजीकी यथा कथित विचारधाराको मजबुत करनेके लिये इस प्रजा सोसीयालीस्ट पक्षको पटा लिया.
भारतमें उस समय एक और समाजवादी पक्ष भी था जो “संयुक्त समाजवादी पक्ष” नामसे जाना जाता था. उसके नेता डॉ. राममनोहर लोहिया थे. उनको नहेरुवीयनोंका वैचारिक दंभ मालुम था इस लिये उनका पक्ष इन्दिराके पक्षमें संमिलित नहीं हुआ.
लेकिन यह सनतकुमार का जुथ (अशोक महेता इसके नेता थे) नहेरुकी कोंग्रेसमें विलयित हो गया. इन्दिरा ने देखा कि अपने पिताजीने अपनी बेटीको सत्ता पर लानेके लिये जो सीन्डीकेट बनायी थी वह तो खुदके उपर हामी हो रही है और उसमेंसे कुछ लोग तो दक्षिण पंथी है तब उसने पक्षमें फसाद करके एक नया पक्ष बनाया जो कोंग्रेस आई (कोंग्रेस इन्दिरा) नामसे प्रचलित था. जो मूल कोंग्रेस पक्ष था, जिसके उपर संस्थाकी पकड थी यानी की जिनमें कारोबारीके ज्यादा सदस्य थे उस पक्षका प्रचलित नाम था कोंग्रेस (संस्था). इस तरह कोंग्रेस तूटी. गुजरातमें मोरारजी देसाई जो कोंग्रेस (संस्था)में थे. और कोंग्रेस (संस्था) गुजरातमें राज करती थी.
एक पक्षमेंसे दुसरे पक्षमें कूदनेमें सर्व प्रथम
अविभाजित कोंग्रेसमेंसे कोंग्रेस (आई)में कूदके जाने वालोंमें सनतकुमार और उनके दो तीन मित्र (रसिकलाल परिख, रतुभाई अदाणी, छबीलदास महेता) थे. बादमें कोंगीकी सरकारें ही ज्यादातर गुजरातमें आयी और उसमें यह महाशय मंत्री के रुपमें हमेशा शोभायमान रहेते थे. ये महाशय अविभाजित कोंग्रेसमें भी मंत्री थे. यह महाशय २२+ वर्ष तक मंत्री रहे. उस समय भी गुजरातके पास समूद्र था, समूद्र किनारा था, कच्छका रण था, नर्मदा नदी भी थी. नर्मदा डॅम की योजना भी थी. प्राकृतिक गेस भी था, जंगल भी था, गरीबी भी थी. विकासके लिये जो कुछ भी चाहिये वह सबकुछ था. जंगल तो उनके समयमें सबसे ज्यादा कट गये. समाजवादी होनेके नाते यहां सरकार द्वारा कई योजनाएं लागु करनेकी थी. हररोज एक करोड रुपयेका गेस हवामें जलाया जाता था, क्यों कि गेस भरनेके सीलीन्डर नहीं थे. गेसके सीलीन्डर आयात करनेके थे. आयात करनेमें इन्दिराका समाजवाद, अनुज्ञापत्र(परमीट), अनुज्ञप्ति (लायसन्स) का प्रभावक कैसे धनप्राप्तिके लिये उपयोगमें लाया जाय यह एक भ्रष्ट समाजवादीयोंके लिये समय व्ययवाली समस्या होती है.
नर्मदा डेम, मशीन टूल्सकी फेक्टरी, बेंकोका राष्ट्रीयकरणका राजकीय लाभ कैसे लिया जाय यह सब में ये समाजवादी लोग ज्यादा समय बरबाद करते है. इन प्रभावकोंका ये लोग लोलीपोप की तरह ही उपयोग किया करते है. तो यह सनत महाशय अपनी २३ सालकी सत्ताके अंतर्गत जो खुद कुछ नहीं कर पाये, वे अपने को एक अर्थशास्त्रके विशेषज्ञ समझने लगे है, और सरकार (बीजेपी सरकार) को क्या करना चाहिये और क्या क्या नहीं कर रही है और क्या क्या गलत कर रही है ऐसा विवाद खडा करने लगे, ताकि एक ऋणात्मक वातावरण बीजेपी सरकारके लिये बने.
मल्लिका साराभाईः
कितने हजार घारोंमें बिजली नहीं पहोंची, महिला सशक्ति करण क्यों नहीं हो रहा है, जंगलके लोग कितने दुःखी है, आदि बेतूकी बाते जिसमें कोई ठोस माहिति न हो लेकिन भ्रम फैला सके ऐसे विवाद खडे करती रहीं. हकारत्मक बातें तो देखना ही वर्ज्य था.
प्रकाशभाई शाहः
यह भाईसाब अपनेको गांधीवादी या अथवा तथा सर्वोदयवादी या अथवा तथा ग्रामस्वराज्यवादी समझते है. विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधाराने एक उपोत्पादन (बाय-प्रोडक्ट) बनाया है. प्रकाशभाई जैसे व्यक्ति ऐसा ही एक उपोत्पादन (उप- उत्पादन) यानी कि बाय प्रोडक्ट है. बाय प्रोडक्ट बाय प्रोडक्ट में फर्क होता है. गेंहु, चावल, चने आदिका जब पाक (क्रॉप) होता है तो साथ साथ बावटा, बंटी, अळशी, और कुछ निक्कमी घांस भी उग निकलती है. तो विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधाराकी जो मानसिकता होती है उसके साथ साथ कुछ ऐसे (वीड=weed, गुजरातीमें वीड को निंदामण कहेते है) मानसिकतावाली बाय प्रोडक्ट (वीड) भी उग निकलती है. कोई वीड उपयोगी होती है, कोई वीड हवामें फैलके हवा बिगाडती है. वीड एलर्जीक भी होती है. हमारे प्रकाशभाई विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधारासे उत्पन्न हुई एक वीड है. इस वीडको नरेन्द्र मोदीकी एलर्जी है.
प्रकाशभाईके लेखको आपको समझना है? तो कागज और कलम लेके बैठो. उन्होनें जो वाक्य बनाये है उनके शब्दोंकों लेकर वाक्य को विभाजित करो. और फिर अर्थ निकालो. आपको तर्क मिलेगा नहीं. लेकिन आप उस वाक्यको कैसे सही माना जाय, उस विषय पर दिमाग लगाओ. आपको संत रजनीशकी याद आयेगी. लेकिन आप ऐसा तो करोगे नहीं. आप सिर्फ उसमेंसे क्या संदेश है, क्या दिशा सूचन है वही समझोगे. बस यही प्रकाशभाईका ध्येय है.
मतलबकी लेखमें नरेन्द्र मोदीको एक पंच मारना आवश्यक हो या न हो, एक पंच (punch) अवश्य मारना. पंच मारनेका प्रास्त्युत्य (रेलेवन्स) हो या न हो तो भी.
ऐसा क्युं? क्योंकी हम अहिंसाके पूजारी है. विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधाराके अनुयायी है. नरेन्द्र मोदी २००२ वाला है.
कान्तिभाई भट्टः
ये भाईसाब शीलाबेनके पति है. वैसे तो वे भी ख्यातनाम है. जबतक आरोग्यके बारेमें लिखते है तब तक अच्छा लिखते है. कुदरती चिकित्सा (नेचरोपथी)का खुदका अनुभव है इसलिये उसमें सच्चाईका रणकार मिलता है.
लेकिन अगर हम कटार लेखक (कोलमीस्ट) है तो सब बंदरका व्यापारी बनना पडेगा ही. राजकारण को हाथमें लेना आसान होता है.
कटार लेखन की शैली ऐसी होनी चाहिये कि हम वाचकोंको विद्वान लगे.
विद्वान हम तभी लगेंगे कि हम बहुश्रुत हो.
बहुश्रुत हम तभी लगेंगे कि हमारा वाचन विशाळ हो.
वाचकोंको हमारा वाचन विशाल है वह तब लगेगा कि हमने जो वाक्य उद्धृत किये हो उनमें हम लिखें कि फलां फलां व्यक्तिने यह कहा है. इसमें हम मान लेते हैं कि यह तो कोई महापुरुषने कहा है इसलिये यह तो स्वयं सिद्ध है. तर्क की कोई आवश्यकता नहीं. प्रास्तूत्य होना यह भी आवश्यक नहीं है.
समजमें नहीं आया न? तो आगे पढो…
मेगेस्थीनीसने अपने “फलां” पुस्तकमें लिखा कि सिकंदर एक ऐसा महापुरुष था कि वह हमेशा चिंतनशील रहेता था. एक शासकको चाहे छोटा हो या बडा, उसके लिये चिंतन करते रहेना अति आवश्यक है. खुदने जो काम किया वह अच्छी तरह किया था या नहीं? अगर अच्छी तरह किया था तो क्या उससे भी अच्छा किया जा सकता था या नहीं? उसका चिंतन भी करना जरुरी है. नरेन्द्र मोदीको आगे बढने कि घेलछा है, लेकिन क्या उसने कभी चिंतन किया है? यह उसकी मनोवृत्ति कभी बनी है क्या?
कान्तिभाईको इससे आगे सिद्ध करेनी जरुरत नहीं है. उनके हिसाबसे जो कहेना था वह अपने आप सिद्ध हो जाता है ऐसा वे मानते है.
अगर लेटेस्ट उदाहरण चाहिये तो आजका (ता. २०-०५-२०१४ का दिव्यभास्कर देखो).
लेखकी शिर्ष रेखा है “नरेन्द्र मोदी आनेसे किसान बनेगा बेचारा, और विदेशी कंपनियां न्याल हो जायेगी”.
हो सकता है कि यह लेखकी शिर्ष रेखा समाचार पत्रके संपादकने बनायी हो. अगर ऐसा है तो संपादककी मानसिकताको भी समझ लो.
कान्तिभाई अपने लेखमें क्या लिखते है?
“भावनगर राज्यके कृष्णकुमार सिंह किसानका बहुत खयाल रखते थे,
“शरद पवार अरबों पति किसान है. महाराष्ट्र के एक जिलेमें २०१०में एक ही महिनेमें ३७ किसानोंने आत्म हत्या की.
“मुंबईसे सिर्फ १२७ मील दूरस्थ यवतमाल गांव में मारुति रावने लोन लेके महंगे बीटी कोटन और विलायती खाद खरीद किया. फसल निस्फल हुई तो उसने आत्महत्या की, उसकी पत्नी उषाने ऋण अदा करनेके लिये १४ एकर जमीन बेच दी. और वह खेत-मझदुर बन गई. महाराष्ट्र सरकारने राहतका काम किया लेकिन बाबु लोग बीचमें पैसे खा जाते है. जंतुनाशक दवाईयां जो विकसित देशमें प्रतिबंधित है लेकिन शरद पवारके महाराष्ट्रमें वे सब कुछ चलती है. यह दवाईयां विषयुक्त है, और खुले पांव आपको खेतमें जाना मना है, फिर भी किसान खुले पांव जाता है. और मौतका शिकार होता है.
आगे चलकर लेखक महाशय, यह कीट नाशक दवाईयां, विदेशी जेनेटिक बीज आदि के भय स्थानका वर्णन करते है.केन्द्र की बुराईयां और अमेरिकाकी अच्छाईयां की बात करते है. भारतमें ईन्ट्रनेट व्याप्ति की बात करते है.
फिर मोदी के चूनाव प्रचारकी बात करते है फिर मोदीको एक पंच मारते है कि मोदी जनता को क्या लाभ कर देने वाला है? (मतलब की कुछ नहीं). फिर एक हाईपोथेटीकल निष्कर्ष निकालते है. नरेन्द्र मोदी द्वारा कायदा कानुन आसान किया जायगा और अंबाणीको फायदा होगा. नयी सरकार (मोदी सरकार), विदेशी कंपनीयोंके साथ गठबंध करेगी और उनको न्याल करेगी. कहांकी बाते और कहां का कही निष्कर्ष?
पागल बननेकी छूट
चलो यह बात तो सही है और संविधान उन लेखकोंकी स्वतंत्रता की छूट देता है कि वे बिना कोई मटीरीयल और तर्क, गलत, जूठ और ऋणात्मक लिखे, जब तक वह खुद, अपने लाभसे दूसरेको नुकशान न करें वह, क्षम्य है. लेकिन गाली प्रदान करना और अयोग्य उपमाएं देना गुनाह बनता है. यह बात मोदीके सियासती विरोधीयोंको लागु पडती है. इनमें ऐसे वितंडावाद करनेवाले मूर्धन्य भी सामेल है.
ये ऐसे मूर्धन्य होते है जो ६०सालमें जिन्होंने देशको पायमाल किया, उसके बारे में, एक लाईनमें लिख देते है, लेकिन जो सरकार आने वाली है और जिसके नेताने अभी शपथ भी ग्रहण किया नहीं उसके बारेमें एक हजार ऋणात्मक धारणाएं सिद्ध ही मान लेते है.
जनता को गुमराह करनेवालोंको आप कुछ नहीं कर सकते. क्यों कि लोकतंत्रमें पागल होना भी उनका हक्क है.
जिन महानुभावोंने घोषणा की, कि, अगर मोदी प्रधान मंत्री बना तो वे पाकिस्तान चले जायेंगे. इन लोगोंकी मानसिकता और तर्क का निष्कर्ष निकालें.
ये महानुभाव पाकिस्तानको क्यों पसंद करते है?
नरेन्द्र मोदीवाले भारतकी अपेक्षा पाकिस्तानी सियासत भारतसे अच्छी है.
सर्व प्रथम निष्कर्ष तो यह निकलता है न? क्यों? क्यों कि नरेन्द्र मोदी कोमवादी है. वह अल्पसंख्यकोंका दुश्मन है.
पाकिस्तान कैसा है?
आझादी पूर्व इस प्रदेशमें १९४१में ४० प्रतिशत हिन्दु थे. १९५१ तक भारतमें १.५ करोड हिन्दुओंने स्थानांतर किया. जो १९४१ में २५ प्रतिशतसे ज्यादा थे अब वे २ प्रतिशत या उससे भी कम रह गये हैं. उसके बाद भी हिन्दु वहांसे निकाले जाने लगे.
यह वह पाकिस्तान है जिसका आई.एस.आई. और मीलीटरी मिलकर भारतमें आतंकवादी सडयंत्र चलाते हैं.
इन्होने हमारे कश्मिरमें ३००० हिन्दुओंको १९८९-९० की कत्लेआममें मौतके घाट उतार दिया. और ५-७ लाख हिन्दुओंको भगा दिया.
यह वह पाकिस्तान है जहां पर ज्यादातर लश्करी शासन रहा है.
ऐसा पाकिस्तान, इन मूर्धन्योंको गुजरातके नरेन्द्र मोदीके भारतसे अच्छा लगता है.
क्यों कि इस गुजरातमें मोदीके शासनमें एक भी मुसलमान बेघर रहा नहीं.
एक भी मुसलमान हिन्दुओंके डर की वजहसे पाकिस्तान भाग गया नहीं.
इस गुजरातमें अक्षरधाम पर आतंकवादी हमलावरोंने ३० को मौतके घाट उदार दिया था और कईयोंको जक्ख्मी किया,
२००८में कई बोम्बब्लास्ट किया, जिनमें ५६ को मौतके घाट उतारा और ३०० जक्ख्मी किया,
उसके बावजुद,
नरेन्द्र मोदीने परिस्थितिको सम्हाला और एक भी मुसलमान न तो मारा गया और न तो डरके मारा कोई पाकिस्तान भाग गया.
तो अब आप निर्णय करो किसके दिमागमें कीडे है?
संविधानमें संशोधन अनिवार्य लगता है कि जो लोग इस प्रकार बेतूकी बातें करके खुदकी कोमवादी और लघुमतिको अलग रखनेकी, वोटबेंककी नीति उकसानेकी और कोम कोमके बीच घृणा फैलानेका काम करते है और जो वास्तवमें मानवता वादी है ऐसे नेता पर कोमवादी होनेका आरोप लगाते हैं उनके उपर कानूनी कर्यवाही करके कारावासमें बंद कर देना चाहिये.
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः नरेन्द्र मोदी, जीत, मोदी रोको, मूर्धन्य, कोलमीस्ट, कोंगी, धारा ३७०, ओमर, फारुख, गुजरात, मोडल, अभद्र शब्द, चिदंबर. कपिल सिब्बल, गुमराह, शरद पवार, सनत मेहता, कान्ति भट्ट
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Davebhai, Just compare leadership of the Congress which has Chidambaram, Kapil Sibble, Digvijay, Tiwari, Soniya and Rahul with that of BJP’s Cadre containing Advaniji, Sushma Svaraj, Arun Jetley, Rajnathsingh, Narendra Modi etc. And you will feel the difference in respect of Integrity, dedication and outlook. Congress is zero in this respect and BJP is 100%. Similar is the case of NCP with Pawar at its head who are totally corrupt vote bank politicians who have come to politics to make money. They have wealth which is bigger than the Industrialists like Tata Birla etc..The God has sent Narendra Modi and his team to rescue us from the calamity of corrupt UPA rulers. Modi has also saved the country from the culprits like Mulayam, Mayawati, Mamta, Lalu and Nitishkumar.Let us pray that Modiji can clean country from these evil persons alongwith Ganga river. Regds. Rasikbhai.
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Yes, Rasikbhai, There is a cultural difference between Cong togather with its allies and BJP. India has very bright future ahead under the leadership of Narendra Modi. NaMo will change the culture of politics.
Regards.
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[…] સાથે આ લેખને નીચેની લીંક ઉપર વાંચો . क्या ये लोग मुंह दिखानेके के योग्य रहे… […]
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