जे.एन.यु. जीन्ना नहेरु युनीवर्सीटी, मार दिया जाय, न कि, छोड दिया जाय. पार्ट – ४
यह कोई योगानुयोग घटना या छूटपूट घटना नहीं है.
कुछ समाचार माध्यम जेनएनयु की घटनाको एक “छूटपूट घटना”, या “बीजेपी और एन्टी-बीजेपी पक्षोंके बीचकी” घटना और “बीजेपीका उल्टा पासा पडा”, या बीजेपी विपक्षके साथ नीपटनेकी विफलता, आदि तारतम्य स्वयंसिद्ध है ऐसा समज़के इस घटनाका विश्लेषण करते है.
इसमें कोई शक नहीं कि नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके कुछ सांस्कृतिक पक्ष खास करके साम्यवादी (साम्यवादी पक्षको लेफ्टीस्ट माना जाता है और इस लेफ्टीस्टमें कुछ और जुथोंका भी समावेश होता है) पक्षोंका सुनियोजित एजन्डा हो सकता है.
जेएल नहेरुसे तो ये लोग अभिभूत थे इसलिये उस नहेरुके जो फ्रोड थे उसको ब्लन्डर समज़के अपना पल्ला छूडा लेते थे या तो वितंडावादसे वे स्वयं गलत नहीं थे ऐसा सिद्ध करने की कोशिस करते थे. ये ही लोग जेएल नहेरुकी फरजंद इन्दिरा गांधीकी वाहवाह (१९७३-१९७५ को छोडकर) किया करते थे. इन्दिरागांधी द्वारा घोषित आपातकालमें तो इन्दिरा गांधीने ईनको नमन करनेका बोला तो ये लोग साष्टांग दंडवत प्रणाम करने लगे. जनता पार्टीको गिरानेमें भी इन लोगोंका हिस्सा कम नहीं था. वैसे तो इनको पता होने चाहिये था कि देशको कितना नुकशान हो रहा था. राजिव गांधी जो बिना कुछ प्रभावशाली काम किये प्रधान मंत्रीका शपथ लेने लगे तो ये ही लोग उनको मीस्टर क्लीनकी उपाधि देने लगे थे.
दिव्यभास्कर नामका एक अखबार है.
उसके समाचार पत्रोंके अधिकतर कोलमीस्ट भी जे. एन. यु. की घटनाका ऐसा ही विश्लेषण करते है. पता नहीं चलता है कि एन्टी-बीजेपीयोंकी जालके नेटवर्कने कितने मूर्धन्योंको फसाया है?
हो सकता है कि कई सारे मूर्धन्य स्वयं ही फंसनेके लिये तयार हो. आप कहोगे कि ऐसा थोडा हो सकता है? हां जि ऐसा हो सकता है. स्वयंके ताटस्थ्यकी और ख्यातिकी धून जब मनके उपर सवार हो जाती है तब कई लोग पथ भ्रष्ट हो जाते है. जे. एन. यु. की घटना पर हो रहा विवरण इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है.
दिव्यभास्करके अनेक कटारीया लेखकोंमेंसे प्रकाशभाई कोठारी एक कटारीया लेखक है.
उनके हिसाबसे जे. एन. यु. की घटना के एक विवादास्पद विषय पर आक्षेप-प्रतिआक्षेपोंकी स्पर्धा है.
साम्यवादी मीडीया का चरित्र
साम्यवादी मीडीया का एक चरित्र है कि विरोधीकी बातको न्यूनतम महत्व देना और स्वयंकी बातको अधिक महत्व देना. सामने वालेको नीचा दिखाना.
एक रनींग रेस थी. उसमें दो ही हिस्सेदर थे. एक यु.एस.ए. और दुसरा रशिया. यु.एस.ए. रेसमें प्रथम आया. और रुस सेकंड आया. तो रुस के समाचारपत्रमें यह समाचार कैसे छपा?
“रुसने रेसमें द्वितीय स्थान हांसिल कर दिया. युएसएका प्रतिस्पर्धी अंतिम दौडनेवाले से थोडासा ही आगे रहा.”
कुछ ऐसा ही मेसेज प्रकाशभाईने दिया है. शब्द और विशेषण सिर्फ अलग है.
निर्दोष कन्हैया
कन्हैया कुमारको चूंकि कन्हैयाकुमारने स्वयंने कोई देशविरोधी सूत्रोच्चार नहीं किया, इसलिये उनको निर्दोष दिखाने की चेष्टा की गई. वैसे तो शुरुसे अंततककी वीडियो क्लीप टीवी चेनलो पर किसीने नहीं दिखाया, इस लिये उन्होने अपनको पसंद तारतम्य को उद्धृत कर दिया.
और देखो कटारीया भैयाने छुपाया क्या?
इनका पूरा लेख करीब १००० शब्दोंका है. कन्हैया कुमार जो कटारीया भाईकी दृष्टिसे निर्दोष है. तो भी उसको गिरफ्तार किया गया है, इस बातका वर्णन आपको इस लेखमें मिलेगा. लेकिन जिसने नारे लगाये और जो भगौडा है उस उमर खालिदका नाम पूरे लेखमें नहीं मिलेगा. उसका प्रच्छन्न या अप्रच्छन्न कारण क्या हो सकता है? या तो उमर खालिदने देश विरोधी सूत्रोच्चार किये ही नहीं ऐसा कटारीयाभाईका मानना है या तो वे इस बातको छूपाना चाहते है. इतना ही नहीं पूरे समाचार पत्रमें उमर खालिदके नाम मात्रका उल्लेख नहीं है. १००० शब्दोंमें उमर खालिदका नाम तक नहीं.
दर्शकोंने २२ तारिख रातको कुछ चेनलोंपर उमर खालिदको जो अबतक भगौडा था उसको जे.एन.यु. में कल (२२-०२-२०१६), देखा था.
यह उमर खालिद, जे.एन. यु. में अपने छात्र समूहके सामने भाषणबाजी करते दिखाई देता है. लेकिन हमारे इस अखबारमें तारिख २२को घटी इस घटना का तारिख २३-०२-२०१६के प्रकाशनमें नाममात्रका भी उल्लेख नहीं है. इस घटना पर पूरा अंधार पट है. हमारे समाचारपत्रके हिसाबसे उमर खालिद की उपरोक्त घटना घटी ही नहीं है.
ओमर खालिदने क्या कहा उस बातका विवरण हम आगे चलके करेंगे.
कटारिया भाईने खूलकर कहा है कि पूलिस किसीके (सरकारको खुश रखने के लिये) इशारे पर काम कर रही है. चौपट राजाकी तरह पूलिसने, जिसने सूत्रोच्चार नहीं किया उस तंदुरस्त मोटे नरको पकडा है, पूलिसने नारेवाले किसीको भी पकडा नहीं है. (हो सकता है कि पूलिस आये तब तक वे भाग गये हो, लेकिन ऐसी धारणा करना शायद कटारीया भाईके लिये अक्षम्य है).
वह जो कुछ भी हो, इस बातमें आंशिक सत्य हो सकता है और नहीं भी हो सकता है. पूलिसकी कोई व्यूहरचना हो सकती है. लेकिन उमर खालिदने भारतके विरुद्ध नारे लगाये ही नहीं और कन्हैया बिलकुल निर्दोष है ऐसा प्रदर्शित करना ठीक नहीं है.
उमर खालिदने और उसकी गेन्गने जो नारे लगाये उसकी वीडीयो क्लीप तो है ही. कुछ समाचार माध्यमवाले इस क्लीपको फर्जी दिखाने की कोशिस कर रहे है. किन्तु सिर्फ कहेनेसे कोई क्लीप फर्जी नहीं हो जाती. यदि आप उसको फर्जी मानते है तो मौन रहीये और धैर्य रक्खे. अपने आपको अविश्वसनीय मत बनाईये.
कन्हैया कुमार किस आधार पर बेगुनाह नहीं है
कन्हैया कुमार किस आधार पर बेगुनाह नहीं है वह हमने इसी ब्लोगके पार्ट-२ में देखा है. कन्हैया खुद उमर खालिदके पास खडा है. उमर खालिद देशविरोधी सुत्रोच्चार करता रहता है. कन्हैया उसको सून रहा है. आरामसे सुन रहा है और तालियां भी बजाता है. कन्हैया न तो उसको पीटता है, न तो वह उसके उपर गुस्सा होता है, न तो वह उसको धक्के मारके दूर करता है, न तो वह उसके उपर नाराजगी व्यक्त करता है, न तो वह उसे रोकता है, न तो वह असंजस है, न तो उस समय वह कोई टीका करता है, न तो वह बादमें युनीवर्सीटीके एडमीनीस्ट्रेशनको जा कर फरियाद करता है. वयस्क लडका इतना बेसमज़ तो नहीं हो सकता. किन्तु कुछ मूर्धन्योंने अपना उलु सीधा करने के लिये उसके विरुद्ध जानेवाली इस बातको उपेक्षित की. वास्तवमें जब कन्हैयाको लगा कि पूलिस एक्सन होने वाला है और वह गिरफ्तार हो सकता है तब उसने ११ तारिखको नारोंके खिलाफ बोला. वह भी अर्ध सत्य. जब उसकी पूछताछ करने लगे तभी उसने अपनेको बचाने के लिये ऐसे नारे उसको पसंद नहीं है ऐसा कहा है. यह उसकी “आफ्टर थॉट” है. “अन आईडॅन्टीफाईड लोगों”का शब्द प्रयोग जूठ है. इस बातको मूर्धन्योंको समज़ना चाहिये. कुछ मूर्धन्य मुस्लिम तूष्टिकरणकी मानसिकता क्यूँ रखते है?
उमर खालिदका सफेद जूठ
उमर खालिद अपने गुटके लोगोंको कहेता है कि मैं कैसे पाकिस्तान जा सकता हूँ!! मेरे पास तो पासपोर्ट ही नहीं है. अरे भाई, भूपत क्या कोई पासपोर्ट लेके पाकिस्तान गया था? पाकिस्तानमे आर्मी, आएसआई और आतंकी गुटोंका क्या प्रभाव है वह मुस्लिमोंको और उसमें भी पाकपरस्त मुस्लिमोंको मालुम है. पासपोर्ट विसाकी आवश्यकता नहीं.
उमर खालिद कहता है कि मैं मुस्लिम हूँ इसलिये देशद्रोही माना जाता हूँ. (उसके आठ साथी गैर-मुस्लिम और शायद हिन्दु है तो भी वह ऐसा जूठ बोल सकता है क्यूँ कि वह मुस्लिम है?) खालिद आगे चलकर कहता है, हिन्दुस्तानमें जो गरीब है उनके उपर माओवादीका लेबल लगता है. या नक्षलवादीका लेबल लगता है… जो मुस्लिम है उसके उपर टेरेरीस्टका लेबल लगता है … आदि … खालिद कहेता है मैंने कोई नारे नहीं लगाये.
यदि वह अपने आपको सही बताता है तो वह पूलिसके सामने अपनेको प्रस्तूत क्यों नहीं करता? यदि बाहरके लोगोंने नारे लगायें तो उनको किसने बुलाया था? वे लोग कहां ठहेरे थे? वह स्वयं क्यों भाग गया? वह कहां कहां भागा था? कहां कहां ठहेरा था? दूसरे साथी कहां है? आदिका पूरा विवरण जनताके सामने वह क्यों प्रस्तूत करता नहीं है?
इस उमर खालिदके पिता कहेते है कि उसका (क्रांतिकारी) बेटा डरा हुआ है. उसको यदि सुरक्षाका अहेसास दिलाया जाय तो वह उसको संदेश भेज सकता है.
शायद उमर खालिदके पिता और कई अखबारी मूर्धन्य एक आंखसे (“अकबर” जो हिन्दु और मुस्लिम को एक आंखसे देखता था) नहीं लेकिन एकांगी नजरसे देखना चाहते है और वे डीडी, झी-टीवी आदि कुछ देखना पसंद नहीं करते है और लुझ टोंकींग करना ही पसंद करते है.
जे. एन. यु. किसका अड्डा है?
२०१० के दांतीवाडामें नक्षली हमलेमें ७५ भारतीय सुरक्षा जवानोंकी मौतको जे. एन. यु. ने विजय दिवसके जश्नके तौर पर मनाया था.
दुर्गा पूजाके दिवस पर महिषासुर दिवस मनाया जाता है,
बिफ पार्टीका आयोजन किया जिस पर उच्च अदालतने रॉक लगाई,
यौन पीडनके मामले १०१ जिनमें ५० प्रतिशत जे एनयु से संबंधित, जे एनयु में यौन उत्पिडनके हर वर्ष १७ मामले दर्ज होते है,
जनता इस कारणसे भी परेशान है
हर छात्र पर वर्षमें ३ लाख जनताकी जेबसे जाता है, सरकार हर वर्ष २४४ करोड रुपये खर्च होते है,
दुनियाकी टोप २०० युनीवर्सीटीयोंमें जे एनयु का नामोनिशान नहीं.
एक लंबी कहानी है….
मामला बीजेपी और एन्टी-बीजेपीका है ऐसा बकवास चलाना
जे एन यु की घटना सिर्फ बीजेपी और एन्टी-बीजेपी के परिपेक्ष्यमें मर्यादित करके नहीं सोचना चाहिये.
नरेन्द्र मोदीका शासनका प्रारंभ और उसके बाद उठाये गये और उछाला गये बनावटी असहिष्णुताका विवाद, संसदका न चलना, बिहारके चूनावमें जातिवादी और कोमवादी किस्सोंको उछालना और उनको बढावा देना, उसमें बीजेपी की भर्त्सना करना, गुजरातमें पाटीदारोंके आंदोलनको बढावा देना, उनकी हिंसाकी भर्त्सना न करना, जाट आंदोलन की हिंसाकी भर्त्सना न करना, इन जातिवादी आंदोलनोंको बढावा देना, नरेन्द्र मोदीने विदेशोंके साथ भारतके संबंध अच्छे बनाये और भारतका नाम रोशन किया इसके उपर कभी समाचार माध्यम द्वारा शैक्षणिक चर्चा नहीं करना, ये सब एक पूर्वनियोजित एजंडे के अनुसार हो सकता है. इसकी संभावना न कारी नहीं जा सकती.
एक और बकवास “ये तो बच्चे हैं या युवान है उनके जोश दोषको नजर अंदाज करो”
कुछ मूर्धन्य लोग ऐसा मानते है कि इस नारोंवाली घटनाको जरुरतसे ज्यादा ही महत्व दिया जा रहा है. इन तथा कथित बच्चोंमें युवानोंमें जवानीका जोश है गलती कर बैठते है. तो कुछ मूर्धन्य लोग, इन देशविरोधी नारोंको समज़ते हैं कि पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाते है तो शायद वह देशद्रोहकी बाते बनती नहीं है.
यदि पाकिस्तान एक मित्र देश होता, यदि पाकिस्तानके दिलमें और व्यावहारमें भारतके प्रति मैत्रीपूर्ण संबंध होते, यदि पाकिस्तान जिन्दाबादके नारे आइसोलेशनमें लगे होते. लेकिन यह पाकिस्तान एक ऐसा देश है जिसने हिन्दुस्तानके टूकडे करवाये. इस बातको आप भूल भी सकते हैं. लेकिन जिस पाकिस्तानने भारतसे चार युद्ध किये, और लगातार भारतको आतंकित करनेके लिये आतंकीयोंको सशस्त्र भेज रहा है और कई बार सफलता पूर्वक आतंकी हमले किये, हाजारोंका कत्ल किया, उस पाकिस्तानके जिन्दाबाद नारोंके साथ साथ हिन्दुस्तान मुर्दाबादके नारे भी लगाता है और भारतके टूकडे टूकडेके नारे भी लगते है तो ऐसे नारे लगानेवाला देशद्रोही ही बन जाता है. कोई नारा कभी आईसोलेशनमें अर्थघटित नहीं किया जाता. याद करो ये लोग १८ सालसे उपरके है भारतके ईन्टेलीजन्सका रेकोर्ड ये बोलता है कि इनकी पाकिस्तानसे आवन जावन है. खास करके उमर खालिदकी. इस उमर खालिदके साथ किसी भी तरहकी सहानुभूति और चेष्टा गद्दारीके दायरेमें आती है.
अमेरिकाने क्या किया?
याद करो एक अमेरिकी बच्चेने “पिस्तोल” शब्द मात्र अपनी कोपी बुकमें लिख दिया तो अमेरिकाने उसकी घनीष्ठ पूछताछ शृंखला चलायी थी.
अमेरिका सतर्क है और अपने देशके हितके विषयमें कभी “दया माया”का अवलंबन नहीं लेता. इसीकारण ९/११ के बाद अमेरिकामें आतंकवादकी घटना घटती नहीं है. हमारे देशमें जो मूर्धन्य लोग “दया माया” और “वाणीस्वातंत्र्य”की बातें करते हैं वे या तो बेवकुफ है या तो गद्दार है.
मोदी फोबीयासे पीडीत मूर्धन्य लोगोंसे सावधान
यदि कोई नरेन्द्र मोदीके सरकारके पक्षमें बोले तो उसको “मोदी भक्त” मान लेना यह कोई तार्किक बात नहीं है. भक्त कभी चर्चाके लिये नहीं होता है. किन्तु यहां पर दुसरोंको भक्त कहेनेवाले लोग स्वयंको अफज़ल गुरुके और गदारोंके भक्त सिद्ध कर रहे है उसका क्या?
शैक्षणिक संस्थाका कार्य क्षेत्र
शैक्षणिक संस्थाका अपना कार्य क्षेत्र है, और उसकी सीमा है. जे. एन. यु. भारतकी सीमासे बाहर नहीं है. न तो उसके शिक्षकगण भारतकी सीमासे बाहर है. भारतका संविधान जे. एन. यु. सहित पूरे भारत पर लागु पडता है. यदि कोई अपराधी उसके अंदर है तो पूलिसको जे. एन. यु. एडमीनीस्ट्रेशनकी परमीशन लेना जरुरी नहीं. आपराधिक मामलएकी जांच करना पूलिसका कर्तव्य है और अपराधीको सज़ा देना न्यायालयका काम है. इसमें जे.एन.यु. हस्तक्षेप नहीं कर सकती. बेशक जो कोई व्यक्ति चाहे वह राजकीय पक्षका हो, मूर्धन्य हो या शिक्षा-संस्थाका हो, यदि वितंडावाद करता है और नर्मीकी बात करता है उसके उपर सख्तिसे ही आना चाहिये.
शिरीष मोहनलाल दवे