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Archive for March, 2017

बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

याद करो पाकिस्तानी शासकोंकी संस्कृति “भारतकी पराजय ही हमारी विजय है”

जब हम क्रिकेटकी बात करते हैं तो पाकिस्तानके जनमानसमें यह बात सहज है कि चाहे पाकिस्तान विश्वकपकी अंतिम स्पर्धामें पराजित हो जाय, या पाकिस्तान सुपरसीक्समेंकी अंतिम स्पर्धामें भी हार जाय, तो भी हमें हमारी इन पराजयोंसे दुःख नहीं किन्तु भारत और पाकिस्तानकी जब स्पर्धा हो तो भारतकी पराजय अवश्य होनी चाहिये. भारतकी पराजयसे हमें सर्वोत्तम सुखकी अनुभूति होती है.

TRAITOR

ऐसी ही मानसिकता भारतमें भी यत्‌किंचित मुसलमानोंकी है. “यत्‌ किंचित” शब्द ही योग्य है. क्यों कि मुसलमानोंको भी अब अनुभूति होने लगी है है कि उनका श्रेय भारतमें ही है. तो भी भारतमें ओवैसी जैसे मुसलमान मिल जायेंगे  जो कहेंगे कि “यदि पाकिस्तान भारत पर आक्र्मण करें, तो भारत इस गलतफहमीमें न रहे कि भारतके मुसलमान भारतके पक्षमें लडेंगे. भारतके मुसलमान पाकिस्तानी सैन्यकी ही मदद करेंगे.” ओवैसीका और कुछ मुल्लाओंका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहासका ज्ञान कमज़ोर है, क्यूं कि भारतका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहास ओवैसीकी मान्यताको पुष्टि नहीं करता. जब हम ओवैसी को याद करें तो हमें तारेक फतह को भी याद कर लेना चाहिये.

 उपरोक्त मानसिकताके पोषणदाता नहेरुवीयन्स और नहेरुवीयन कोंग्रेस है. ऐसी मानसिकता  केवल मुसलमानोंकी ही है, ऐसा भी नहीं है. अन्य क्षेत्रोमें यत्‌किंचित भीन्न भीन्न नेतागणकी भी है.

ऐसी मानसिकता रखनेवालोंमें सबसे आगे साम्यवादी पक्ष है.

साम्यवादी पक्ष स्वयंको समाजवादी मानता है. समाजवादमें केन्द्रमें मानवसमाज होता है. और तत्‌ पश्चात मनुष्य स्वयं होता है. इतना ही नहीं साम्यवादके शासनमें पारदर्शिता नहीं होती है. साम्यवादी शासनमें नेतागण अपने लिये कई बातें गोपनीय रखते हैं इन बातोंको वे राष्ट्रीय हितके लिये गोपनीय है ऐसा घोषित करते है. इन गोपनीयताको मनगढंत और मनमानीय ढंगसे गुप्त रखते हैं.

दुसरी खास बात यह है कि ये साम्यवादी लोग साधन शुद्धिमें मानते नहीं है. तात्पर्य यह है कि ये लोग दोहरे या अनेक भीन्न भीन्न मापदंड रखते हैं और वे अपनी अनुकुलताके आधार पर मापदंडका चयन करते है. उनका पक्ष अहिंसामें मानता नहीं है, किन्तु दुसरोंकी तथा कथित या कथाकथित हिंसाकी  निंदा वे बडे उत्साह और आवेशमें आकर करते हैं. उनका स्वयंका पक्ष वाणी-स्वातंत्र्यमें मानता नहीं है, किन्तु यदि वे शासनमें नहीं होते हैं तो वे  कथित वाणी स्वातंत्र्यकी सुरक्षाकी बातें करते है और उसके लिये आंदोलन  करते हैं. यदि उनके पक्षका शासन हो तो वे विपक्षके वाणी स्वातंत्र्य और आंदोलनोंको पूर्णतः हिंसासे दबा देतें हैं.

जब साम्यवादी पक्षका शासन होता है, तब ये साम्यवादी लोग, अपना शासन अफवाहों पर चलाते है. साम्यवादी शासित राज्योंमें उनके निम्नस्तरके नेतागण तक भ्रष्टाचार करते हैं. साम्यवादीयोंकी अंतर्गत बातें राष्ट्रीय गोपनीयताकी सीमामें आती है. किन्तु यही लोग जब विपक्षमें होते है तो पारदर्शिताके लिये बुलंद आवाज़ करते है.

साम्यवादका वास्तविक स्वरुप क्या है?

वास्त्वमें साम्यवाद, “अंतिमस्तरका पूंजीवाद और निरंकुश तानाशाहीका अर्वाचीन मिश्रण है.” इसका अर्थ यह है कि शासकके पास उत्पादन, वितरण और शासनका नियंत्रण होता है. यह बात साफ है कि एक ही व्यक्ति सभी कार्यवाही पर निरीक्षण नहीं कर सकता. इसके लिये पक्षके सारे नेता गण अपने अपने क्षेत्रमें मनमानी चलाते है और भ्रष्टाचार भी करते हैं. भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी अंतिम स्तर तक पहूंच जाती है. किन्तु साम्यवादीयोंको इसकी चिंता नहीं होती है. क्यों कि वे पारदर्शितामें मानते नहीं है, इस लिये साम्यवादके शासनमें सभी दुष्ट बातें गुप्त रहती है.

हमने देखा है कि पश्चिम बंगालमें २५ साल नहेरुवीयन कोंग्रेसका और तत्‌पश्चात्‌ ३३ साल साम्यवादीयोंका शासन रहा. इनमें नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रच्छन्न साम्यवादी सरकार थी और ज्योतिर्‍ बसु और बुद्धदेव बसु तो स्वयं सिद्ध नामसे भी साम्यवादी थे. १९४७में भी पश्चिम बंगाल राज्य एक बिमारु राज्य था और आज भी वह बिमारु राज्य है. १९४७में भी पश्चिम बंगालमें, रीक्षा आदमी अपने हाथसे खिंचता था और आज २०१७में भी रीक्षा आदमी खिंचता है.

आप पूछेंगे कि जिस देशमें साम्यवादी शासन विपक्षमें है तो वहां साम्यवादी पक्ष क्या कभी  शासक पक्ष बन सकता है?

हां जी. और ना जी.

साम्यवादी पक्ष की विचार प्रणालीयोंका हमें विश्लेषण करना चाहिये.

जब कहीं साम्यवादी पक्षका शासन नहीं होता है तो वे क्या करते हैं?

साम्यवादीयोंका प्रथम कदम है कि देशमें असंतोष और अराजकता फैलाना

असंतोष कैसे फैलाया जा सकता है?

समाजका विभाजन करके उनके विभाजित अंशोंमें जो बेवकूफ है उनमें इस मानसिकताका सींचन करो कि आपके साथ अन्याय हो रहा है.

भारतीय समाजको कैसे विभाजित किया जा सकता है?

भारतीय समाजको ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र, हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, घुसपैठी, शिख, दलित, भाषावादी, पहाडी, सीमावर्ती, ग्राम्य, नगरवासी, गरीब, मध्यम वर्गी, धनिक, उद्योगपति, श्रमजिवी, कारीगर, पक्षवादी, अनपढ, कटार लेखक (वर्तमान पत्रोंके कोलमीस्ट), युवा, स्त्री, आर्य, अनार्य, काले गोरे,  आदिमें विभाजित किया जा सकता है.  इन लोगोंमें जो बेवकुफ और नासमज़ है उनको उकसाया जाता है.

कैसे फसाया जाता है?

यादव, जाट, ठाकुर, नीनामा, दलित आदि लोगोंने जो आंदोलन चलाये वे तो सबने देखा ही है.

वैश्योंमें जैनोंको कहा गया कि तुम हिन्दुओंसे भीन्न हो. तुम अल्पसंख्यकमें आ जाओ.

मुस्लिमोंको कहा कि ये घुसपैठी लोग तो तुम्हारे धर्मवाले है, उनका इस देशमें आनेसे तुम्हारी ताकत बढेगी.

पहाडी, वनवासी, सीमावर्ती क्षेत्रवासी, दलित आदि लोगोंको कहा कि तुम तो इस देशमे मूलनिवासी हो, इन आर्यप्रजाने तुह्मारा हजारों साल शोषण किया है. हम दयावान है, तुम ईसाई बन जाओ और एक ताकतके रुपमें उभरो. वॉटबेंक तुम्हारी ताकत है. तुम इस बातको समज़ो.

“दुश्मनका दुश्मन मित्र”

चाणक्यने उपरोक्त बात देशके हितको ध्यानमें रखके कही थी. किन्तु प्रच्छन्न और अप्रच्छन साम्यवादी लोगोंने यह बात स्वयंके और पक्षके स्वार्थके लिये अमल किया और यह उनकी आदत है.

ऐसी कई बातें आपको मिलेगी जो देशकी जनताको विभाजित करनेमें काम आ सकतीं हैं.

युवा वर्गको बेकारीके नाम पर और उनकी तथा कथित परतंत्रिता पर बहेकाया जा सकता है. उनको सुनहरे राजकीय भविष्यके सपने दिखाकर बहेकाया जा सकता है.

जो कटार लेखक विचारशील और तर्कशील नहीं है, लेकिन जिनमें बिना परिश्रम किये ख्याति प्राप्त करनी है, उनको पूर्वग्रह युक्त बनाया जाता है. उन लोगोंमें खास दिशामें लिखनेकी आदत डाली जाती है और वे नासमज़ बन कर उसी दिशामें लिखने की आदतवाले बन जाते है.

जैसे कि, 

डीबी (दिव्य भास्कर)

डीबी (दिव्य भास्कर)में ऐसे कई कटार लेखक है जो हर हालतमें बीजेपीके विरुद्ध ही लिखनेकी आदत बना बैठे हैं. उनके “तंत्री लेख”के निम्न दर्शित अवतरणसे आपको ज्ञात हो जायेगा कि यह महाशय कितनी हद तक पतित है.

आपने “कन्हैया”का नाम तो सुना ही होगा, जो समाचार माध्यमों द्वारा पेपरका शेर (पेपर टायगर) बना दिया गया था.  कन्हैयाके जुथने (जो साम्यवादीयोंकी मिथ्या विचारधारासे  बना है) भारतके विरुद्ध विष उगलने वाले नारे लगाये थे.

उमर खालिद और कई उनके साथी गण “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा, आदि कई सारे सूत्रोच्चार किये थे. कन्हैया उसके पास ही खडा था. न तो उसके मूंहपर नाराजगी थी, न तो उसने सूत्रोच्चार करने वालोंको रोका था, न तो उसने इन सूत्रोच्चारोंसे विपरित सूत्रोच्चार किये, न तो इसने इन देश द्रोहीयोंका विवरण पूलिसको या युनीवर्सीटी के संचालकोंको दिया, न तो इसने बादमें भी ऐसे सूत्रोच्चार करनेवालोंके विरुद्ध कोई उच्चारण किया. इसका मतलब स्पष्ट है कि उसने इन सूत्रोंको समर्थन ही किया.

अब हमारे डीबीभाईने “१ मार्च २०१७” के समाचार पत्र पेज ८, में क्या लिखा है?

तंत्री लेखका शिर्षक है “राष्ट्रप्रेम और गुन्डागर्दी के बीचकी मोटी सीमा रेखा”

विवरणका संदेश केवल  एबीवीपी की गुन्डागर्दीका विषय है.

संदेश ऐसा दिया है कि “सूचित विश्वविद्यालयमें बौधिकतावादी साम्यवादीयोंका अड्डा है और बौद्धिकता जिंदा है. ये लोग जागृत है…

दुसरा संदेश यह है कि “गुजरात यदि शांत है तो यह लक्षण अच्छा नहीं है.” इन महाशयको ज्ञात नहीं कि नवनिर्माणका अभूतपूर्व, न भूतो न भविष्यति, आंदोलन गुजरातमें ही हुआ था और वह कोई स्वार्थ के लिये नहीं किन्तु भ्रष्टाचार हटानेके लिये हुआ था. इतना ही नहीं वह संपूर्ण अहिंसक था और जयप्रकाश नारायण जैसे महात्मा गांधीवादीने इस आंदोलनसे प्रेरणा ली थी. डी.बी. महाशय दयाके पात्र है.

डी.बी. भाई आगे चलकर लिखते है कि “जागृत विद्यार्थीयोंके आंदोलन एनडीए के शासनमें  बढ गये हैं. डीबीभाईने  गुरमहेरका नामका ज़िक्र किया है. क्योंकि एबीवीपीके विरोधियोंको बौद्धिकतावादी सिद्ध करनेके लिये यह तरिका आसान है.

यदि गुरमहेरने कहा कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं मारा लेकिन युद्धने मारा है” तो इसमें बौद्धिकता कहांसे आयी? यदि इसमें “डी.बी.”भाईको बौद्धिकता दिखाई देती है तो उनके स्वयंकी बौद्धिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता ही है. भारतीय बल्लेबाज युवराजने गुरमहेरकी इस बातका सही मजाक उडाया है, कि “शतक मैंने नहीं मारा… शतक तो मेरे बल्लेने मारा है”.

पाकिस्तान

एक देश आक्रमणखोर है, वही देश आतंकवादी भी है, उसी देशने भारत पर चार दफा आक्रमण भी किया होता है, उसी देशका आतंक तो जारी ही है. इसके अतिरिक्त भारतीय शासन और भारतके शासक पक्षोंने मंत्रणाओंके लिये कई बार पहेल की है और करते रहते हैं इतना ही नहीं यदि बीजेपीकी बात करें, तो बीजेपीने भारत पाकिस्तानके बीच अच्छा माहोल बनानेका कई बार प्रयत्न किया, तो भी भारत देशमें जो लोग कहेते रहेते है कि “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ और पाकिस्तानको समर्थन देनेका संदेश देना और कहेना कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं लेकिन युद्धने मारा है” इस बातमें कोई बौद्धिकता नहीं है. जब आपने “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ इन सूत्रोंका विरोध न किया हो और भारत विरोधी सूत्रोंकी घटनाके बारेमें प्रश्न चिन्ह खडा किया हो, तो समज़ लो कि आप अविश्वसनीय है. गुरमहेरका कर्तव्य था कि वह ऐसे सूत्र पुकारने वालोंके विरोधमें खुलकर सामने आतीं.

वास्तवमें ट्रोल भी ऐसे दोहरे मापदंडों रखने वाले होते है. कन्हैया, उमर खालिद, गुरमहेर आदि सब ट्रोल है. ऐसे बुद्धिहीन लोगोंको ट्रोल बनाना आसान है. समाचर पत्र वाचकगण बढानेके लिये और टीवी चेनलके प्रेक्षकगण बढानेके लिये और अपना एजंडा चलाने के लिये उनके तंत्री के साथ कई कटारीया (कटार लेखक), और एंकर संचालक स्वयं ट्रोल बननेको तयार होते हैं.

डी.बी.भाईने आगे लिखा है “गत वर्षमें देश विरोधी सूत्रोच्चार विवाद के करनेवालोंकी पहेचान नहीं हो सकी है.” डी.बी. भाईके हिसाबसे सूत्रोच्चार हुए थे या नहीं … यह एक विवादास्पद घटना है.

हम सब जानते है कि उमर खालिदकी और उसके साथीयोंकी जो विडीयोक्लीप झी-न्युज़ पर दिखाई गयी थी वह फर्जी नहीं थी. तो भी “डी.बी.भाई” इन सूत्रोच्चारोंको और उनके करनेवालोंको विवादास्पद मानते है. डि.बी.भाईकी अबौद्धिकता और उनके पूर्वग्रहका यह प्रदर्शन है. “डी.बी.भाइ” आगे यह भी लिखते है कि, “उमर खालिद और कन्हैयाको अनुकुलता पूर्वक (एबीवीपी या बीजेपी समर्थकोंने) देशद्रोहीका लेबल लगा दिया. “

डी.बी.भाईका यह तंत्री लेख, पूर्वग्रहकी परिसीमा और गद्दारीकी पहेचान नहीं है तो क्या है?

ये लोग जिनके उपर देशकी जनताको केवल “सीधा समाचार” देनेका फर्ज है वे प्रत्यक्ष सत्य को (देश विरोधी सूत्रोच्चार बोलनेवालोंकी क्लीपको) अनदेखा करके वाणीविलास करते हैं और अपनी पीठ थपथपाते है. महात्मा गांधी यदि जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते, क्यों कि ऐसे समाचार पत्रोंके कटारीया लेखकोंद्वारा जनताको गुमराह करनेका सडयंत्र जो चलता है.

ये लोग ऐसा क्यों करते हैं?

इन्होंने देश दो हिस्सेमें विभाजित हो गया है. नरेन्द्रमोदीके नेतृत्वको माननेवाला बीजेपी और बीजेपी-विरोधी. जो भी देशके विरोधीयोंकी टिका करते है उनको ये अप्रच्छन्नतासे प्रच्छन्न लोग, “मोदी भक्त, बीजेपीवादी, एबीवीपीवादी, असहिष्णु, कोमवादी …” ऐसे लेबल लगा देते है और स्वयंको बुद्धिवादी मानते है.

बीजेपीका मूल्यहीन तरिकोंसे विरोध क्यों?

नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने अस्तित्वको खोज रही है. पैसे तो उसने ६० सालके शासनमें बना लिया. लेकिन भ्रष्टाचारके कारण सत्तासे हाथ धोना पडा. भ्रष्टनेतागणसे और वंशवादसे बाहर निकलनेकी उसकी औकात नहीं है.

समाजवादी पक्ष, बीएसपी, एनसीपी, टीएमसी, जेडीयु, एडीएमके, डीएमके, ये सभी पक्ष एक क्षेत्रीय पक्ष और वंशवादी पक्ष बन गये है. उनका सहारा अब केवल साम्यवादी पक्ष बन गया है. उनको अपना अस्तित्व रखना है. हर हालतमें उनको बीजेपीको हराना है चाहे देशमें कुछ भी हो जाय. नहेरुवंशीय शासनके कारण ये सभी पक्षोंकी मानसिकता सत्तालक्षी और स्वकेन्द्री बन गयी है. उनके पास कुछ छूटपूट राज्योंका शासन और  सिर्फ पैसे ही बचे हैं. पैसोंसे वे कटारीया लेखकोंकी ख्याति-भूखको उकसा सकते है, पैसोंसे वे अफवाहें फैला सकते है, सत्यको भी विवादास्पद बना सकते हैं, असत्यको सत्य स्थापित कर सकते हैं.

“वेमुला” दलित नहीं था तो भी उसको दलित घोषित कर दिया और दलितके नाम पर बहूत देर तक इस मुद्देको उछाला और बीजेपीको जो बदनाम करना था वह काम कर दिया.

देश विरोधी नारोंको जो फर्जी नहीं थे और विवादास्पद भी नहीं थे उनको फर्जी बताया और विवादास्पद सिद्धकरनेकी कोशिस की जो आज भी डी.बी. भाई जैसे कनिष्ठ समाचार माध्यम द्वारा चल रही है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने ६०साल तक हरेक क्षेत्रमें देशको पायमाल किया गया है. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक अनुयायीओंको, यह बात समज़में नहीं आती कि कोई एक पक्षका एक नेता, दिनमें अठारह घंटा काम करके, ढाई सालमें ठीक नहीं कर सकता. मूर्धन्य लोग यह बात भी समज़ नहीं सकते कि नरेन्द्र मोदी और बीजेपीका कोई उनसे अच्छा विकल्प भी नहीं है. लेकिन ये मानसिक रोगसे पीडित विपक्ष और उसके सहयोगी देशके हितको समज़ने के लिये तयार नहीं है. वे चाहते हैं कि देशमें अराजका फैल जाय और परिणाम स्वरुप हमें मौका मिल जाय कि देखो बीजेपीने कैसी अराजकता फैला दी है.

साम्यवादी लोग देशप्रेम और धर्ममें (रीलीजीयनमें) मानते नहीं है. उनके लिये सैद्धांतिक रीतसे ये दोनों अफीम है. लेकिन ये लोग फिर भी आज़ादी, सहनशीलता, वाणीस्वातंत्र्यकी बात करते है और साथ साथमें देशको तोडनेकी और हिंसाको बढावा देनेकी बातें करते हैं, पत्थरबाजी भी करते हैं या करवाते हैं, मूंह छीपाके देश विरोधी सूत्रोच्चार करते है और जब गिरफ्तार होते है तो जामीन (बेल्स) पर भी जाने लिये तयार होते जाते है. और इन्ही लोगोंको डीबीभाई जैसे समाचार पत्र बुद्धिवादी कहेते हैं. परस्परकी सहायताके लिये साम्यवादी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सांस्कृतिक साथी, कट्टरवादी मुस्लिम, पादरीयोंकी जमात एकजुट होके काम करती है.

इनलोगों द्वारा अपना उल्लु सिधा करने के लिये ट्रोल पैदा किये जाते है. यदि कोई ट्रोल नेता बनने के योग्य हो गया तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस, साम्यवादी और उनके सांस्कृतिक पक्षमे शोभायमान हो जाता है. गुजरातके नवनिर्माणके आंदोलनमें ऐसे कई ट्रोल घुस गये थे, जो आज या तो नहेरुवीयन कोंग्रेसमें शोभायमान है या तो उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका सांस्कृतिक पक्ष बना लिया है.

ऐसे कई स्वकेन्द्री ट्रोल जिनमें कि, लालु, नीतीश, मुल्लायम, ममता, अजित सींघ, केज्रीवाल आज शोभायमान है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः

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નાસ્તિકતાની ધૂન કે નાસ્તિકતાનો ઘમંડ? ભાગ-૨

નાસ્તિકતાની ધૂન કે નાસ્તિકતાનો ઘમંડ? ભાગ-૨

ઈશ્વર આપણને દેખાતા નથી અને અનુભવાતા પણ નથી. ઘણા બાવાઓ ઝીકાઝીક કરે છે કે તેમણે જોયા છે એટલે કે અનુભવ્યા છે. આવા અનેક પોતાને બ્ર્હ્મજ્ઞાની માનતા થઈ ગયા છે, હાલ પણ અસ્તિત્વમાં છે અને એવા થતા રહેશે.

આ બાવાજીઓ પોતાના શિષ્યો દ્વારા પોતાને સંત, મહાત્મા, ઓશો, ભગવાન, ઇશ્વરાનન્દ જેવા લેબલો લગાવશે અથવા તો તેમના શિષ્યો જ હરખપદુડા થઈને આવા લેબલો પોતાના ગુરુને લગાવી દેશે.

પણ હિન્દુઓ શું કહે છે?

હિન્દુઓ કહે છે કે આ વિશ્વ પોતે જ એક સજીવ છે. તે ન કળી શકાય તેવું છે એટલે કે અનિર્વચનીય છે.  આ વિશ્વ એ ઈશ્વરનું શરીર છે. એટલે આપણે બધા અને જે કંઈ આ વિશ્વમાં છે તે બધું ઈશ્વરનો અંશ છે. ઈશ્વર પોતે નિર્ગુણ અને નિરાકાર છે, અને તે અજ, અવિનાશી, અપરિવર્તનીય (અવિકારી) બ્રહ્મસ્વરુપે છે તે આપમેળે જ બ્ર્હ્મને વિકૃત (બ્રહ્મમાં ફેરફાર) કર્યા વગર બ્રહ્મમાંથી વિશ્વરુપે પ્રગટ થાય છે. તેણે વિશ્વના વર્તનના નિયમો નક્કી કર્યા છે અને તે પ્રમાણે વિશ્વ વર્તે છે. બધું જ સજીવ છે અને આપણે પણ સજીવ છીએ.

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પણ આપણે શા માટે છીએ?

આપણે આનંદ માટે છીએ.

આપણને આનંદ ક્યારે થાય?

આપણને સગવડો અને સુવિધાઓથી શારીરિક આનંદ થાય. આપણને જ્ઞાનથી માનસિક આનંદ થાય, આપણને વાર્તાલાપથી માનસિક આનંદ થાય, આપણને પ્રસંગો યાદ કરવાથી આનંદ થાય છે. આપણને ચમકી જવાથી આનંદ થાય છે. આપણને વિચિત્રતાથી આનંદ થાય છે. આપણને બીજાને આપણી ઓળખ થાય તેનાથી આનંદ થાય છે. આપણને લયબદ્ધ જીવન અને લયબદ્ધ દિનચર્યાથી આનંદ થાય છે. આપણને સમૂહમાં વધુ આનંદ થાય, આપણને આનંદની ગેરેન્ટીથી (સુરક્ષાથી) આનંદ થાય.  તહેવારો અને પ્રસંગો એ બધું સામુહિક આનંદ માટે છે. બીજાને આનંદ થાય તો આપણને પણ આનંદ થાય. શરીર હોય તો મન છે એટલે માનસિક આનંદ પણ એક રીતે તો શારીરિક આનંદ છે. શરીર બરાબર કામ આપતું હોય તો બરાબર આનંદ થાય. એટલે ભોજનથી આનંદ થાય. સમૂહ ભોજનથી વધુ આનંદ થાય.

(૫) તો શું મૃત્યુ પાછળનું જમણ આનંદ માટે હોય છે?

ના જી … મૃત્યુ પાછળનું ભોજન આનંદ માટે હોતું નથી. પણ મૃતાત્માની તૃપ્તિ માટે હોય છે. આ ભોજન નાનાઓ માટે હોય છે. વળી મૃત્યુની તારીખ યાદ રાખવા માટેનો આ એક માનશાસ્ત્રીય એપ્રોચ પણ છે. શ્રાદ્ધના દિવસનું જમણ પણ આ માટે જ હોય છે. જો કે આ બધું હવે બંધ થવા માડ્યું છે. અને ધીમે ધીમે તે સાવ બંધ થઈ જશે. કદાચ ગીતા પાઠન ચાલુ રહેશે કારણ કે ગીતા એક એવો માનસશાસ્ત્રીય ગ્રંથ છે કે જે શાશ્વત રહી શકે તેવો છે.

આપણો હિન્દુ ધર્મ અદ્ભૂત છે. હિન્દુધર્મે, સમાજશાસ્ત્ર, ઇતિહાસ, તત્ત્વજ્ઞાન, કાવ્ય અને ભૌતિકશાસ્ત્ર નો સમન્વય કરી લોકભોગ્ય બનાવી તેમને અમર કરી દીધા છે. વિશ્વમૂર્ત્તિ ઈશ્વરને આપણે આપણા સામાજિક જીવનમાં વણી લીધા છે.

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હિન્દુઓએ સમાજને, ફક્ત માનવ સમાજ તરીકે જાણ્યો નથી. આપણે સમાજને વૈશ્વિક સમાજ કે જેની અંદર, પ્રકૃતિ, તેની શક્તિઓ, પ્રાણીઓ, જીવ જંતુઓ, પશુઓ, વનસ્પતિઓ નક્ષત્રો, આકાશ, અને મનુષ્ય એ બધાં આવી જાય છે.

હિન્દુઓમાં માણસના નામમાં કે વિશેષણના પ્રત્યય તરીકે કુદરત વણાયેલી છે. આકાશ, સિંહ, મોર, કોયલ, વૃક્ષ, ગાય, પ્રકાશ, આશા, અશ્વ, ચોખા, ધન, ધાન, આનંદ, વડ, ઝાકળ, વિગેરે સારું સારું બધું જ આવે.  તમે કોઈ યુરોપીયનનું નામ પિકૉક, સ્કાય, પ્લેઝર કે વીશ કે એન્ટોનીજીસસ, જહોનગોડ, રોબર્ટયાકુબ કે જેનીમેરી એવું કંઈક સાંભળ્યું છે? પણ હિન્દુઓમાં તુષાર, ચંદ્રમોહન, વિજયશંકર, આત્મારામ, કંચનગૌરી,  શશિકલા … એવાં નામ હોય છે.

હા જી પશ્ચિમ એશિયાના દેશો સુધી આપણી વિશ્વભાવનાની અસર ખરી. મુસ્લિમોમાં તમને શબનમ નામ જોવા મળશે. પણ મયુરી નામ નહીં મળે.

હિન્દુઓના ઇતિહાસમાં ભગવાન પણ પોતાનો રોલ અદા કરે છે.

આપણા તત્ત્વજ્ઞાનમાં કાવ્યો આવે. ખગોળશાસ્ત્ર ને આપણે જ્યોતિષશાસ્ત્રના સ્વરુપે જીવિત રાખ્યું. હવે જે વિદ્વાનોએ મહેનત પૂર્વક જ્યોતિષ શાસ્ત્રના ગણિતને ભણ્યા છે, તમારે તેમને  રોટલા પૂરા પાડવા પડશે. શું તમારી એટલે કે સમાજની આ ફરજ નથી? 

આથી સમાજે જન્મ કૂંડળીને ઈન્ટ્રોડ્યુસ કરી. ફલાદેશને ઈન્ટ્રોડ્યુસ કર્યો. ફલાણા ઇતિહાસ (પુરાણ) ભણ્યા છે તો જનતાને કહો કે તે પારાયણ બેસાડે.

ખેતરમાં પાક ઉગી નિકળ્યો છે. પણ કમાણીની વાર છે. તો તમે “પૉરો” ખાવ અને ભાગવત સપ્તાહ બેસાડો. પાક તૈયાર થઈ ગયો છે અને લણી પણ લીધો છે તો તમે દાંડીયા રાસ રમો. પાકના પૈસા પણ આવી ગયા તો તો તમારે દિવાળી આવી ગઈ છે. નવા વરસની ઉજવણી કરો. બહેનને પણ અવારનવાર મજા કરાવો.

તમે તમારા સંતાનનું લગન લીશું છે. તો ઉત્સવ કરો. સગાંઓને બોલાવો. ખમતીધર હો તો ચોરાસી કરો. ચાદર જેટલી સોડ તાણો.

શિયાળુ પાક આવી ગયો છે? તો હવે વિશ્વદેવને યાદ કરો અને ઠંડીને વિદાય આપો. વસંતને વધાવો. અને જે કંઈ સૂકું છે તેને બાળી નાખો. બધાને રંગી નાખો. આ પ્રમાણે આપણા હિન્દુ પૂર્વજોએ બારે માસ આનંદમય અને આનંદને લયબદ્ધ કરી દીધો.

(૬) પણ ભાઈ આ બધા બગાડ થાય છે તેનું શું?

અરે બગાડ બગાડ શું કરો છો? તમે જે કંઈ કરો છો તે આનંદ માટે કરો છો. તમે આનંદની કિમત આંકો અને પછી સરવાળો કરો …. તમને નફો અને નફો નફો જ દેખાશે. વહેમમાં પણ આનંદ મળતો હોય તો વહેમ પણ રાખો. ફેશનમાં આનંદ મળતો હોય તો ફેશન પણ રાખો. ફેશન પણ વહેમ છે, કાવ્ય પણ એક વહેમ, કળા પણ એક વહેમ છે અને નૃત્ય પણ એક વહેમ છે.

તમે કેટલાક કહેવાતા પરાવિજ્ઞાનીઓને ઇલેક્ટ્રોનિક યંત્રો લઈ કોઈ એકાંત સ્થળે અંધારામાં કે ખંડેરમાં ભૂત (મૃતાત્મા, અતૃપ્તાત્મા કે પ્રેતાત્મા)ના અસ્તિત્વની શોધ કે સંશોધન માટે જોયા હશે. તેઓ બોલતા હશે “હે આત્મા, અમે તમને કોઈ હાનિ કરવા આવ્યા નથી, અમે તમને દુભવવા આવ્યા નથી પણ જો તમે અહીં હો તો તમે આ મીટરના કાંટા ઉપર ડીફ્લેક્સન આપો.” અને પછી આપણને કાંટો ઝટકો મારે છે તે બતાવવામાં આવે છે.

આવી જ રીતે એક સંશોધક બેન, કોઈ એક ભાઈને સુવાડી તેમને કહેવાતી રીતે હિપ્નોટાઈઝ કરે કે બનાવટ કરે અને પછી તેમને તેમના પાછલા અનેક જન્મોમાં લઈ જાય. તેમને સવાલો કરે. જેમકે “ઓહ! તમે એરપોર્ટ ઉપર છો? ક્યા દેશમાં છો? એર ટિકિટનો નંબર શો છે…” પેલા ભાઈ આ બધા સવાલના જવાબ આપે. તમે જાણી લો, કોઈ પણ જન્મમાં બનાવોનો ક્ર્મ હોય છે. એક વખત એ જન્મનું ચક્ર પૂર્ણ થયું પછી તેના ક્ર્મમાં ફેરફાર થાય નહીં. જો હવે તમે જાતકને કહો કે તમે એર ટિકિટનો નંબર પૂછો અને તે જવાબ આપે તો તેનોઅર્થ એમ થયો કે તમે અને તેણે પણ તેના બનાવના ક્રમમાં ભાગ ભજવ્યો. ધારો કે પૂર્વ જન્મ હોય તો પણ તમે તેના પૂર્વ જન્મના બનેલા બનાવોના નાનામાં નાના ક્રમમાં ફેરફાર કરી શકતા નથી. એટલે કે જાતકે જે બનાવોના ક્રમમાં જીવન પસાર કર્યું હોય તેમાં તમે ખલેલ પાડી શકો નહીં.

ટૂંકમાં આ બધું ભણેલાઓનું ધત્તીંગ છે.

પહેલાના કિસ્સામાં આપણે જોયું કે અન્વેષક ટીમ એમ કહે છે કે “હે આત્મા, અમે તમને કોઈ હાનિ કરવા આવ્યા નથી, અમે તમને દુભવવા આવ્યા નથી પણ જો તમે અહીં હો તો તમે આ મીટરના કાંટા ઉપર ડીફ્લેક્સન આપો.”

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મીટરના કાંટાને જે હલતો બતાવવામાં આવે છે તે કેવળ અને કેવળ ધત્તીંગ છે. પ્રેક્ષકોએ સમજવું જોઇએ કે “ઉર્જા”, “શક્તિ” કે “એનર્જી” એ કોઈ અદૃષ્ય વાદળ જેવું નથી. ઉર્જા કે શક્તિનું કોઈ સ્વતંત્ર અસ્તિત્ત્વ નથી. ઉર્જા કે શક્તિ કે એનર્જી હમેશા જડ પદાર્થ સાથે સંકળાયેલી છે. જેમકે ગતિ શક્તિ (કાઈનેટિક એનર્જી), સ્થિતિ શક્તિ (પોટેન્શીયલ એનર્જી) (તમે પત્થરને ઉંચે ફેંક્યો હોય ત્યારે જેમ ઉંચે જાય તેમ તેનામાં સ્થિતિ શક્તિ વધે છે) આ બધી શક્તિઓ ગુરુત્ત્વાકર્ષણ ક્ષેત્રને લીધે છે. આવું જ બીજા ક્ષેત્રો વિષે હોય છે. ટૂંકમાં ઈલેક્ટ્રિક મીટરના કાંટાને હલતો બતાવવામાં આવે છે આ બધા ધત્તીંગ છે. એટલું જ નહીં પણ ઉર્જા એટલે શું તે વિષેની તેમની સમજ ભૂલભરેલી છે.

પૂનર્જન્મ અને પૂર્વ જન્મ અને તેમાં ભાગ લેવો એ બધું જ ધત્તીંગ છે. પૂનર્જન્મ જેવું કશું હોતું નથી. પૂનર્જન્મની શક્યતા શૂન્ય બરાબર છે. આપણું અસ્તિત્ત્વ અને તેની અનુભૂતિ આપણી સ્મૃતિઓને લીધે છે. મગજ નષ્ટ પામે એટલે આપણી અનુભૂતિ પણ નષ્ટ થાય. જેમકે આપણું મગજ સુઈ જાય ત્યારે આપણે સ્વપ્નવિહીન નિદ્રામાં હોઈએ છીએ. આપણને આપણા અસ્તિત્ત્વની અનુભૂતિ થતી નથી. એટલે અસ્તિત્ત્વ હોવું અને તેની અનુભૂતિ થવી તે બંને અલગ અલગ વસ્તુ છે.

જ્ઞાન છે તે સત્ય છે. તે સમાજમાં જળવાઈ રહે છે. અને સમાજ વધુ ને વધુ સુખ તરફ ગતિ કરે છે.

અષ્ટાદશપુરાણેષુ વ્યાસસ્ય વચનદ્વયં, પરોપકારઃ પુણ્યાય, પાપાય પરપીડનમ્ 

અઢાર પુરાણો દ્વારા (ઇતિહાસ) બતાવે છે કે તમે જે બીજાના ભલા માટે કરો છો તે શ્રેય છે અને બીજાને દુઃખ આપો છો તે અશ્રેય છે.

આલોક જે દૃષ્યમાન છે તેને અવગણી જે લોક (પરલોક) દેખાતો નથી, તેના સુખમાટે બીજાના ખૂન કરવા તે પાપ જ છે અને તે અક્ષમ્ય છે. માટે તેવા લોકોની ચિંતા કરો અને જનતાને આનંદ આપો. જનતાને આનંદ ન આપો તો કંઈ નહીં, પણ તે જો આનંદ કરતી હોય તો તેને રોકો નહીં.

જનતાએ પણ ઈશાવાસ્યવૃત્તિ અપનાવી “મા ગૃધઃ કસ્યશ્વિત્‍ ધનં”ને અનુસરવું.

તો શું આપણે

“ભસ્મીભૂતસ્ય દેહસ્ય પુનરાગમનં કથં ભવેત્‌ , તસ્માત્‌ યાવત જિવેત્‌ સુખં જીવેત્‍ , ઋણં કૃત્વા ઘૃતં પિબેત્‌” (જે શરીર ભસ્મ થઈ ગયું તેનું પુનરાગમન કેવી રીતે થાય? માટે જ્યાં સુધી જીવો ત્યાં સુધી સુખેથી જીવો. દેવું કરો અને ઘી પીઓ.) એ અસત્ય છે એમ સમજવુ?

મૂળ વાત હવે આવે છે. જો આત્મા શરીરમાં હોય અને તે કાળ ક્રમે નિકળી જતો હોય તો સવાલ એ થાય છે કે એ શરીરમાં જાય છે જ શા માટે? અને પછી નિકળી શા માટે જાય છે? આ વાત ચાર્વાક ઋષિ સમજાવી શકતા નથી. માણસ મરી જાય અને તેનું જડ શરીર નાશ પામે. માણસનું શરીર તો જડ જ છે. જ્યારે તે જીવતો હતો ત્યારે પણ જડ જ હતું અને મરી ગયો ત્યારે પણ જડ જ હતું. માણસ અનેક અબજ કોષોનો બનેલો છે. આ બધા કોષ જડ જ છે. તમે જડ પદાર્થોને અબજો કે પરાર્ધોની સંખ્યામાં પરસ્પર અબજો કે પરાર્ધો રીતે ગોઠવો, તમારી કોઈ પણ ગોઠવણ તેને સજીવ ન બનાવી શકે છે. ચાર્વાક ઋષિ કે બૃહસ્પતિ ઋષિ કે અન્ય કોઈ પણ ઋષિ જડમાંથી ચેતન કેવી રીતે પ્રગટ્યું તે સમજાવી શક્યા નથી અને સમજાવી શકે તેમ નથી.

આ વસ્તુ સમજવી હોય તો સૌથી નાનામાં નાનું જે એકમ છે જેનું આ વિશ્વ બનેલું છે તે સજીવ હોવું જોઇએ. જેમ અમીબામાંથી મનુષ્ય ઉત્ક્રાંતિ દ્વારા એક અબજ વર્ષે નીપજ્યો, તેમ આ સુક્ષ્માતિ સુક્ષ્મ પદાર્થ આપસી સંયોજનો દ્વારા ક્વાર્કસ, સબ એટમિક કણો, પરમાણુ, અણુ અને સંકીર્ણ સંયોજનોમાં પરિણમ્યો. 

તો હવે “ભસ્મીભૂતસ્ય દેહસ્ય પુનરાગમનં કથં ભવેત્‌ , તસ્માત્‌ યાવત જિવેત્‌ સુખં જીવેત્‍ , ઋણં કૃત્વા ઘૃતં પિબેત્‌” એ વિષે શું સમજવુ?

કૂર્મ પુરાણમાં એક શ્લોક છે. આ શ્લોક મહા ભારતમાં પણ છે.

આત્મનઃ પ્રતિકુલાનિ, પરેષાં ન સમાચરેત્  જે (પરિસ્થિતિ) તમારે માટે પ્રતિકુળ છે તે બીજા ઉપર ન લાદવી.

એટલે કે જો તમે બીજા પાસેથી પૈસા ઉધાર લો અને તેનું ઘી પીઓ, તો બીજાએ તમને જે ગુડ ફેથમાં પૈસા આપ્યા, તેનું શું થશે? જો કોઈ તમારી સાથે આવું કરે તો તમને ગમશે?

જો સમાજમાં આવી સ્થિતિ સર્જવામાં આવશે તો તે સમાજનું ભાવી શું?

જે કંઈ પ્રણાલીઓ છે જે કંઈ વિધિઓ છે તે સમાજમાં સામાજીક પરિસ્થિતિને અનુરુપ દાખલ થયેલી હોય છે કે જેથી સમાજમાં લય અને સંતુલન જળવાઈ રહે. સગાંઓ અને મિત્રો જ નહીં પણ પશુ, પક્ષીઓ, જીવ જંતુઓ સાથે પણ સંતુલન અને સંબંધો જળવાઈ રહે અને સાથે સાથે સામુહિક આનંદ પણ પ્રાપ્ત થયા કરે. જે પ્રણાલીઓ ઉપયોગી ન હોય તેને શાંતિ પૂર્વક છોડી દો.

કુદરત પાસેથી લીધેલું કુદરતને પાછું આપો. યજ્ઞના હોમ પાછળ પણ આ જ ભાવના છે.  હોમમાં દરેક સ્વાહામાં બે દાણા જ નાખવાના હોય છે.

વૃક્ષ ઉપરથી પક્વ ફળ પડે છે, તે વૃક્ષે ત્યજેલું છે. તેન (વૃક્ષેણ) ત્યક્તેન, ભૂંજિથાઃ (ખાઓ). વૃક્ષે જે ફળ (તમારા માટે) ત્યાગ્યું છે તે તમે ખાઓ. તમે ચૂંટીને કશું લેશો નહીં. (મા ગૃધઃ કસ્યશ્વિત્‍ ધનં).

જે ફળ તમે લીધું તેનો ગોટલો કે ઠળીયો જમીનને પાછો આપો.

એટલે હિન્દુઓ એમ કહે છે કે

સર્વેત્ર સુખિનઃ સન્તુ, સર્વે સન્તુ નિરામયા,

સર્વે ભદ્રાણિ પશ્યન્તુ, મા કશ્ચિત્‍ દુઃખભાગ્‍ ભવેત્‍

બધા જ સુખી થાય. બધા જ તંદુરસ્ત થાય, બધા જ કલ્યાણને પામે, કોઈ પણ દુઃખી ન થાય.

શિરીષ મોહનલાલ દવે

તા.ક.

“૧૬ સંસ્કાર અને રીત-રિવાજો” ઉપર અંજલીબેન પંડ્યાએ (anjaleepandya@gmail.com) બહુ મહેનત કરીને એક પુસ્તક લખ્યું છે. જો કે આ નાગર બ્રાહ્મણ માટે છે. પણ દરેક જ્ઞાતિને કામ લાગે એવું છે. અંજલી બેને આ સંકલન “સ્કંદપુરાણ” અને અનેક ગોર મહારાજાઓને મળીને કર્યું છે. સૌ કોઈએ વાંચવા અને વસાવવા જેવું છે.

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ટેગ્ઝઃ વિશ્વ સજીવ, અનિર્વચનીય, શરીર, નિર્ગુણ, નિરાકાર, અવિનાશી, બ્રહ્મ, વિશ્વરુપ, આનંદ, સગવડ, સુવિધા, માનસિક આનંદ, શારીરિક આનંદ, લયબદ્ધ, ભોજન, મૃત્યુની તારીખ, માનસશાસ્ત્રીય, વૈશ્વિક સમાજ, આકાશ, સિંહ, મોર, કોયલ, વૃક્ષ, ગાય, પ્રકાશ, આશા, અશ્વ, ચોખા, ધન, ધાન, આનંદ, વડ, ઝાકળ, ચંદ્રમોહન, વિજયશંકર, કંચનગૌરી, તત્ત્વજ્ઞાન, કાવ્ય, ખગોળશાસ્ત્ર, જ્યોતિષશાસ્ત્ર, જન્મ કૂંડળી, ફલાદેશ, પારાયણ, પરાવિજ્ઞાની, હિપ્નોટાઈઝ, પૂર્વ જન્મ, ધત્તીંગ, ઈશાવાસ્યવૃત્તિ, જડ શરીર, ચાર્વાક ઋષિ, બૃહસ્પતિ, ક્વાર્કસ, સબ એટમિક કણો, પરમાણુ, અણુ, સંકીર્ણ સંયોજન, લય, સંતુલન

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