सुज्ञ मुस्लिम क्यूँ मौन है?
April 6, 2020 by smdave1940
सुज्ञ मुस्लिम क्यूँ मौन है?
तर्क का एक सिद्धांत है कि आप जो भी शब्द प्रयोग करें, उसकी परिभाषा प्रस्तुत करें.
सुज्ञ मुस्लिम का अर्थ क्या है?

जो मुस्लिम ने कुरान पढा है और उसने कुरानको आत्मसात् भी किया है.
वह यह भी जानता है कि सांप्रतकालमें मुस्लिमोंके लिये क्या आवश्यक है.
वह यह भी जानता है कि अन्य मुस्लिम सुज्ञ नहीं है.
वह यह भी जानता है कि, मुल्लाओंके अर्थघटनोंसे इस्लामका प्रभाव आम मुस्लिमों पर और अ-मुस्लिमों पर क्या पडता है और उनको क्या संदेश मिलता है
वह यह भी जानता है कि ऐसे अर्थघटनोंके क्या क्या भयस्थान है और पैदा होने वाला है. इनको रोकनेके लिये क्या करना आवश्यक है,
वह यह भी जानता है कि अन्य धर्मोंका सार क्या है,
यह सुज्ञ मुस्लिम है.
सुज्ञ मुस्लिमका कोई उदाहरण है?
अवश्य उदाहरण हैं. “मज़हब नहीं सिखाता आपसमें बैर रखना” कहनेवाला था. लेकिन वह तो “एक ही देशमें दो राष्ट्र है” ऐसा पुरस्कृत करने वाला हो गया. एक राष्ट्रका विभाजन हो गया. किन्तु उसका काव्य तो भारतमें अमर हो गया. किन्तु उसका नाम तो हम सुज्ञ मुस्लिमोंकी सूचीमें नहीं रह सकते.
पाकिस्तानमें कई सुज्ञ मुस्लिम होगे. भारतमें जितने सुज्ञ मुस्लिम है उनसे अधिक सुज्ञ मुस्लिम पाकिस्तानमें हो सकते है. इस संभावनाको हम नकार नहीं सकते. किन्तु यह चर्चाका विषय नहीं है.
सुज्ञ मुस्लिम जो भारतमें है उनमें बीजेपीके सदस्य तो है ही. अरिफ मोहम्मद खान, एम जे अकबर, तारेक फतह जैसे कई है. उनके पास अपने मन्तव्यका आधार भी है. वे कुरानकी आयातोंका उदाहरण देकर अपनी मान्यता सिद्ध करते है. टीवी चेनल पर संवादमें भी हम कई मुस्लिम नेताओंको इनकी मान्यताके समर्थन करने वाले देखते हैं. और इनके विरोधीयोंमें केवल हवाई बातें होती है.
किन्तु उपरोक्त सुज्ञ मुस्लिमोंका व्यापक जनाधार नहीं है.
अन्य मुस्लिम युथ कैसे है?
(१) स्वयं प्रमाणित तटस्थ है, और ये दहीं-दूधमें रहेते है
(२) प्रच्छन्न कट्टर वादी है और ये लोग प्रच्छन्न रुपसे कट्टरवादीयोंका समर्थन करते है या उनके प्रति उनकी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं होती. संभव है कि कट्टरवादीयोंके प्रति वे कोमल है.
(३) अपने ही मुस्लिमोंसे भयभित है इसलिये मौन है
(४) प्रदर्शन ऐसा करते है कि वे परस्पर भ्रातृभावमें मानते है किन्तु मुस्लिमों द्वारा किये गये अपराधों पर सप्रमाण निंदा नहीं करते,
(५) भारतमें तो रहेना है किन्तु मुस्लिमोंके आपराधिक घटनाओंकी चर्चा नहीं करना है,
(६) कोमवाद से ग्रस्त है और वितंडावादी है
(७) जो करना है वह कर लो हम तो गज़वाहे हिन्द बनाएंगे ही
(८) आतंकवादी मुस्लिम
जो स्वयंको सुज्ञ और तटस्थ मानते है उनके उपर सर्वाधिक उत्तरदायित्व है.
क्या हिन्दुओंमें भी कट्टारता वादी नहीं है?
हाँ अवश्य कट्टरतावादी है. किन्तु उनका वास्तविक जनाधार नहीं है.
सर्व प्रथम तो इस बातको समज़ना अत्यंत आवश्यक है कि जिस प्रकारकी व्याख्या अन्य धर्मोंको लागु पडती है उस व्याख्याको, हम हिन्दु धर्मको लागु नहीं कर सकते. फिर भी हम इस तथा कथित हिन्दुओंको संमिलित रख सकते है. अर्थात् एक धर्म तो है ही. किन्तु इसका विवरण हम इस चर्चामें नहीं करेंगे. “इसी ब्लोगसाईट पर “अद्वैतवादकी मायाजाल … “की चर्चा-शृंखलामे विस्तारसे किया है और “नोट इवन टु, वन एन्ड वन ओन्ली” अंग्रेजी ब्लोगमें अतिसंक्षिप्तमें इसकी चर्चा की है.
हिन्दु कैसे विभाजित है?
कुछ वाचाल हिन्दु लोग, भारतीय-तत्त्वज्ञान क्या है वे जानते नहीं है तथापि स्वयंको सुज्ञ मानते है, फिर भी वे स्वयं प्रमाणित सुज्ञ है. इनमें संत रजनीशमल (जिनको लोग, या स्वयं रजनीश, स्वयंको, पहेले आचार्य, तत् पश्चात् भगवान और तत् पश्चात् ओशो यानी कि परम ज्ञानी. इनके अनुयायीओंकी संख्या के कारण मेरे जैसे लोग रजनीशको “संत” और शक्तिशाली होनेके कारण “मल’ कहेते है), ओशो आसाराम (ओशो मजाक के लिये), सांई बाबा, सत्य सांई बाबा, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी, … इनमें कुछ स्वयंको मोडर्न विचारधारावाले मानते है.
शोभनीय बात यह है कि ये लोग अराजकता नहीं फैलाते है. इसलिये समाजके लिये कोई कष्ट नहीं.
हिन्दु धर्म वास्तवमें एक पारदर्शी विचारधाराओंका समूह है. चर्चा आवकार्य है. किन्तु जब वितंडावादका प्रवेश होता है, तब समाजको हानि होनेका प्रारंभ होता है.
वितंडावाद कब होता है?
(१) स्वयं तटस्थ है इसकी धून जब व्यक्तिके उपर सवार होती है,
(२) स्वयं ज्ञाता है ऐसा स्वयं प्रमाणित मानते है,
(३) स्वयंका स्वार्थ होता है,
(४) पूर्व पक्ष का अज्ञान होता है,
(५) पूर्वग्रह होता है,
(७) सियासत व्यक्तिके उपर आरुढ होती है
(३) और (५) वाले तत्त्व जब मिल जाते है यानी कि स्वार्थ और पूर्वग्रह जब मिल जाते है तो व्यक्ति सियासती तत्त्व वाला बन जाता है.
वैसे तो वितंडावाद का जन्म, प्रमाणभानकी प्रज्ञाका अभाव, प्राथमिकताकी प्रज्ञाका अभाव और प्रस्तूतताकी प्रज्ञाका अभाव, इन सभी अभावोंकी प्रज्ञाके मिश्रणके कारण वितंडावाद उत्पन्न होता है.
हिन्दु किन किन व्यर्थ बातों पर लडते है?
(१) हिन्दु धर्म क्या है?
(२) भारतका विभाजनका मूल कारण क्या है और कौन जिम्मेवार है?
(३) क्या भारत स्वतंत्र हुआ है?
(४) आज़ादी किसने दिलायी?
(५) प्रवर्तमान जो हिन्दु-मुस्लिम संबंध समस्या है उसका मूल कहांसे है और कौन है?
(६) भारतका विभाजन धर्मके आधार पर हुआ है तो मुसलमान लोगोंको भारतमें किसने रहेने दिया?
(७) भारत १२०० वर्ष गुलाम क्यूँ रहा?
इनमेंसे कई प्रश्न तो हास्यास्पद है.
वैसे तो ये लोग गद्दार तो नहीं ही है, लेकिन प्राथमिकताकी प्रज्ञाके अभावमें हिंदुओंकी संगठन शक्तिमें क्षति अवश्य पहूँचाते है*.
इन लोगोंके व्यर्थ विवादसे, भारत विरोधीयोंकी शक्तिमें अवश्य वृद्धि होती है. इन लोगोमें कुछ प्रच्छन्नरुपसे देशविरोधी तत्त्व छीपे हो सकते है. जो चाहते है कि हिन्दु लोग इन व्यर्थ बातोंमें समय बरबाद करेंगे तो हमारे साथ लडनेका सोचनेमें उनको कम समय मिलेगा और वे आपसमें ही लडते रहेंगे. इस संभावनाको हम नकार नहीं सकते.
वास्तवमें सर्वसे अधिक प्रभाविक समस्या यह है
(१) कोरोना वायरसके प्रसारको कैसे रोकना और कोरोना वायरसके प्रसारके साथ संबंधित हिन्दु-मुस्लिम संबंध.
अथवा इससे विलोमित (वाईस वर्सा) हिन्दु-मुस्लिम संबंध और कोरोना वायरसके प्रसारको कैसे रोकना. या तो मुस्लिमोंका क्या करना जिससे कोरोना वायरसका प्रसार कम हो.
(२) कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक साथी, जैसे अर्बन नक्षल, साम्यवादी विचारधारा वाले लोग, मोदी/बीजेपी के प्रति पूर्वग्रह रखनेवाले देशी-विदेशी मीडीया-मूर्धन्य, असामाजिक तत्त्व, इन सबसे परोक्ष और प्रत्यक्ष संबंधसे जुडे आतंकवादीयोंका संगठन … इन सबके योजना बद्ध प्रपंच और पृथक पृथक आक्रमणोंको कैसे रोका जाय?
(३) कोंगीयों की ७०सालके शासनकी कृपासे कट्टारवादी मुस्लिम नेताओंको इतना बिगाडके रख दिया है कि अब वे हिन्दुओंको प्रत्यक्ष रुपसे बिना संकोच गृहयुद्धका आव्हाहन दे रहे है. उपरोक्त ल्युटीअन गेंग इन लोगोंके सभी करतूतों पर मौन है या तो यदि चर्चा करते है तो बिना संदर्भवाली बातें पर वाणीविलास करते है.
समस्या तो हम जानते है, किन्तु उसका उपाय क्या है?
इन समस्याओंको हल करना है तो कुछ खुले दिलवाले मुस्लिम, मुस्लिमोंको नसिहत दे सकने वाले मुस्लिम, सुज्ञ मुस्लिम युथ, आगे आना चाहिये. ऐसे मुस्लिम जो “स्पेड को स्पेड” कह सके. यानी कि बे जीज़क ताल ठोकके सत्यवक्ता हो. हिन्दुओंका युथ तो तयार ही है. लेकिन मुस्लिम लोग संवादके लिये तयार नहीं.
है कोई सज्ज, संवादके लिये?
शिरीष मोहनलाल महाशंकर दवे
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Posted in Social Issues | Tagged अद्वैतवादकी मायाजाल, अराजकता, अरिफ महम्मद खान, आधारभूत मन्तव्य, एक देशमें दो राष्ट्र, ओशो आशाराम, कट्टरवादी प्रति कोमल, कुरान, गज़वा ए हिन्द, टीवी चेनल, दहीं-दूधमें रहेते है, परिभाषा, पुरस्कृत करनेवाला, पूर्व पक्षका अज्ञान, पूर्वग्रह, प्रच्छन्न कट्टरवादी, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी, प्रमाणभानकी प्रज्ञा, प्रस्तूतताकी प्रज्ञा, प्राथमिकताकी प्रज्ञा, बीजेपीके सदस्य, भारत १२०० वर्ष गुलाम, भारतीय तत्त्वज्ञान, भ्रातृभाव, मुस्लिमोंसे मुस्लिम भयभित, मूर्धन्य, मोडर्न विचारधारावाले बाबा, वितंडावादी, संत रजनीशमल, संदेश, सत्य साई बाबा, सप्रमाण निंदा, सांप्रत काल, सांप्रत समस्या, साई बाबा, सुज्ञ मुस्लिम, सुज्ञ हिन्दु, स्वयं प्रमाणित तटस्थ, हास्यास्पद | 2 Comments
जिसने कुरान पढ़ा तो है ही और कुरान को आत्म्सात भी किया हो ऐसे सुज्ञ मुस्लिमो के अपरांत ऐसा एक सुज्ञ हिंदु =पुष्पेन्द्र कूलश्रेष्ठ.
सांम्प्रत स्थितियों के प्रति चिंतन – मनन करने की राह दिखाता हुआ सरल स्पष्ट विष्लेशक लेख । 🙏
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Thank you Vimalaji
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