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Archive for July, 2020

विनोबा भावे और कोंगीके संबंध – २

नहेरुका पुरा पांडित्य चीनने ध्वस्त कर दिया था. नहेरुने तो एक फरेबी प्रतिज्ञा लेली कि “जब तक हम खोई हुई भूमि वापस नहीं लेंगे तब तक चैनसे बैठेंगे नहीं”. पूर्णविराम.

नहेरुके लिये तो अपने साम्यवादी मित्रका मंत्रीपद बचाना एक काम था. जब तत्कालिन राष्ट्रप्रमुख डॉ. राधाकृष्ननने नहेरुसे कहा कि “यदि आप वी. के. मेनन को सुरक्षा-मंत्रीपदसे दूर नहीं करोगे तो हमे नेता बदलनेका सोचना पडेगा.

नहेरु भी वैसे तो अडे हुए थे लेकिन उनके पास और कोई विकल्प नहीं था. उन्होंने सुरक्षा मंत्रालयका दो भाग कर दिया. सुरक्षा शस्त्र मंत्रालय और सुरक्षा कार्य मंत्रालय.

आगे चलके नहेरुने कामराज प्लान बनाके अपने पदके दावेदार मोरारजी देसाईको निरस्त्र किया. अपनको हटानेकी धमकी देनेवाले  डॉ. राधाकृष्णन दुसरा कार्यकाल नहीं दिया. इसकी हम चर्चा नहीं करेंगे.

इन्दिरा और विनोबा भावे

विमुख १

१९६९में जब इन्दिरा गांधीने अपनी ही कोंग्रेसके राष्ट्रपति पदके प्रत्याशी संजीव रेड्डीको “आत्माकी आवाज़” के नाम, छद्मतासे पराजित करवाया तो कोंग्रेसकी तथा-कथित एकताकी दिवार तूट गयी. इन्दिराने असाधारण महासभाका एलान दिया. लेकिन कोंग्रेसके संगठनका बहुमत तो सीन्डीकेटके साथ था. इसलिये इन्दिराको नये सदस्य बनानेका दाव खेलना पडा. उसने खुला आमंत्रण दिया, आ ओ … आ ओ …. आजाओ … कोंग्रेसका द्वार सबके लिये खुला है. (चोर, लुटेरे, डकैत, ठग … सब लोग आओ)

विनोबा भावेने क्या कहा?

यदि नंबर ही बनाना है तो बंदरोंको भी बुला लो … बंदरोंको भी सदस्यता देदो … क्या फर्क पडता है? नंबर ही तो बनाना है!!

जिस कोंग्रेसका सदस्य बनने के लिये, एक समय खादी, सादगी और त्याग आवश्यक माना जाता था उस कोंग्रेसमें अब केवल नंबरका ही महत्त्व रहा था.  

वैसे ऐसी हालतके बीज तो नहेरुने ही डाल दिया था. लेकिन अब विनोबा भावेसे न रहा गया. उनको बोलना ही पडा कि बंदरोंको भी बुला लो.

आपात्काल और विनोबा भावे

इन्दिराने आपात्काल घोषित किया

इन्दिराकी घोषणाके अनुसार देश हर क्षेत्रमें आपत्तिग्रस्त हो गया था. इस लिये आपात्काल घोषित करना आवश्यक था. सरकारके पास अधिकतम सत्ता होना भी आवश्यक था. नागरिकोंके हकमें कटौति करना आवश्यक था.

विनोबा भावेने कहा कि “आपात्काल अनुशासन पर्व”

वैसे भी नहेरुके भक्तोंके प्रचार के अनुसार, विनोबा भावे तो जनताकी नजरमें सरकारी संत ही थे. किन्तु इस उच्चारणसे विनोबा भावे को सरकारी संत माननेवालोंकी संख्यामें अपार वृद्धि हो गई. कई लोगोंने बोला कि विनोबा भावे, गांधीवादी होते हुए भी “ताल ठोक” के सत्य नहीं बोल सके.  इस परिस्थितिका भरपुर  लाभ सरकारी प्रचार तंत्रने और समाचार माध्यमोंने उठाया. पोस्टर छपवाये गये.  

किन्तु गांधीवादीयोमें वास्तविकता कुछ भीन्न थी.

गांधीवादीयोंमे दो प्रकारसे विभाजन हो गया था. विनोबा भावे को माननेवाले और जयप्रकाश नारायणको मानने वाले.

इन्दिराके हिसाबसे “विनोबा भावे”वाले गांधीवादी निरुपद्रवी थे और जयप्रकाश नारायण वाले उपद्रवी थे. यह भेद रेखा सुक्ष्म नहीं थी. इन्दिराको जो गांधीवादी  उपद्रवी लगा उनको कारावास भेज दिया. गांधीवादके मुखपत्र “भूमि-पुत्र”के संचालन करनेवालोंको क्र्मशः कारावासमे भेज दिया. यह चर्चा सुदीर्घ है. हम नहीं करेंगे.

विनोबा एक खिलाडी

विनोबा भावे “चेस”के खिलाडी थे. उनको ऐसा लगा होगा कि, आपात्काल घोषित करना एक पागलपन तो है, तथापि  इन्दिरा गांधी अभी संपूर्णतः पागल हुई है या नहीं, उसके पर संशोधन करना पडेगा. विनोबाने अपने उच्चारण “आपात्काल अनुशासन पर्व है” उसके उपर स्पष्टीकरण नहीं दिया.

कुछ लोग समज़ते थे कि विनोबा भावे कारावाससे डरते थे. जो लोग विनोबाको समज़ते थे उनके लिये यह सही नहीं था. वास्तवमें भी यह जूठ ही था. यदि विनोबा भावेका जीवन शैली देखा जाय, तो उनके लिये तो कारावास एक लक्ज़री था.

विनोबा भावे ने कुछ समय व्यतीत होने दिया. उनको पता ही था कि, इन्दिरा गांधी “गुड एड्मीनीस्ट्रेटर नहीं है.”. न्यायतंत्रके उपर भी उसका अबाधित प्रभुत्व नहीं था. विनोबा भावेने सरकारको आवेदन दिया कि “यदि फलां दिनांक तक गौ-हत्या निषेध कानून नहीं लाओगे तो मैं आमरणांत अनशन करुंगा.”

कोई समाचार माध्यमकी शक्ति नहीं थी कि वे इस समाचारको प्रकाशित करें.

किन्तु कोंगीयोंमें बेवकुफोंकी कमी उस समय भी नहीं थी. वे तो जो भी कोई सरकारके विरुद्ध बोले, तो उनकी भर्त्सना करनेके लिये तत्पर थे. और सरकारके विरुद्ध बोलनेवालों की  भर्त्सना करने पर तो कोई निषेध था ही नहीं. विनोबा भावे किस खेतकी मूली? समाचार पत्रोंमे विनोबाके प्रस्तावित अनशनकी भर्त्सना करनेवाले लेख आये. “जब देश आपात्कालसे गुजर रहा हो तब अनशन पर बैठना क्या योग्य है?”

इन्दिरा गांधी पूर्णरुपसे पगला नहीं गयी थी. उसने कहा, कि उसकी सरकारको समय चाहिये. विनोबा भावेने समय दे दिया.

खिलाडी विनोबा भावेकी दुसरी चाल

विनोबा भावेने वर्धामें आचार्य संमेलन बुलाया

उस संमेलनकी कार्यसूचिः

आपात्काल अनियतकाल तक नहीं हो सकता. उसके अन्तका दिवस निश्चित करना चाइये.

जिनको कारावासमे रक्खा है उनको अनियतकाल तक नहीं रख सकते

आपात्काल कोई पक्षकी आपत्ति नहीं है. आपात्काल यदि है तो वह देशकी आपत्ति है, इस लिये देशवासीयोंका सहयोग लेना आवश्यक है,

अनुशासन आचार्योंका होता है. शासकोंका नहीं. शासकोंका जो होता है वह  शासन  है.

विनोबा भावेने अपने प्रवचनमें कहा था कि “मैं देखता हूँ कि यहां कुछ लोग डरे हुए है. उनसे मैं कहेता हूँ कि यहाँ डरनेकी आवश्यकता नहीं.”

आचार्य संमेलनका रीपोर्ट सरकार को भी दिया गया.

समाचार माध्यमोंमे तो इसका कोई उल्लेख नही मिलता था. लेकिन इन्दिराके लिये चूनाव घोषित करना आवश्यक बन गया था. इसमें एक परिबल विनोबा भावेका आचार्य संमेलन भी था.

“हनी ट्रेप” उस समय भी नयी बात नहीं थी. ऐसा कहा जाता है कि एक फर्जी हनी ट्रेप बनाया गया था. यशवंत राव चवाणने इन्दिरा को सलाह दी कि ऐसा मत करो. लेनेका देना पड जायेगा.

शिरीष मोहनलाल दवे

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विनोबा भावे और कोंगीके संबंध – १

विनोबा भावे और कोगींके संबंध

नहेरु और विनोबा भावे

प्रज्ञावान पद यात्रिक

कुछ मूर्धन्योंका कोंगी नेताओंके प्रति और कोंगी पक्षके प्रति भरोसा उठ गया नहीं है. ऐसा लगता है कि ये लोग शाश्वत ऐसा ही मानेंगे.

पक्षकी रचना ध्येय और सिद्धांतोके आधार पर होती है. तथापि इस बातकी कुछ  मूर्धन्योंने स्विकृत की है कि, सिद्धांत के अनुसार कार्य करना अब आवश्यक नहीं है. जो जीता वह सिकंदर.

इस विरोधाभाष पर हमने इसी ब्लोग-साईट पर अनेक बार चर्चा की है. सर्वोच्च  न्यायालयका निर्णय भी कितना हास्यास्पद था वह भी हमने देखा है. दुःखद बात यह है कि कुछ मूर्धन्य लोग भी, क्यूँ कि (विद्यमान कोंग्रेस पक्ष, जो वास्तवमें कोंगी पक्ष है) इस पक्षके उपर नहेरवंशवादीयोंका एकाधिकार है इसी लिये वही मूल कोंग्रेस पक्ष है. जब स्वतंत्रता मिली तब  नहेरु पक्षके प्रमुख थे, और आज उनके वंशज पक्षके प्रमुख है, इसी लिये यह पक्ष मूल कोंग्रेस पक्ष है. ये मूर्धन्य  ऐसा मानके, वंशवाद की स्विकृतिका थप्पा भी  मारते है. इन मूर्धन्योंकी मानसिकता ऐसी क्यूँ है? यह बात संशोधनका विषय है.

महात्मा गांधीके दो पट्टाशिष्य

आम जनताका सामान्यतः मन्तव्य यह है कि महात्मा गांधीके दो पट्टशिष्य थे. एक था जवाहरलाल नहेरु और दुसरा था विनोबा भावे.

वास्तवमें यह एक विरोधाभाष है. कहाँ नहेरु के विचार और आचार, और कहाँ विनोबा भावे के विचार और आचार?

नहेरु एक दंभी, एकाधिकारवादी, पूर्वग्रहवादी और गांधीजीको सत्ता प्राप्त करनेका सोपान-मार्ग समज़ने वाले  थे. वे गांधीको नौटंकीबाज़ मानते थे. नहेरुके विचार और आचारमें प्रचंड विरोधाभास था. गांधीजी इस सत्यसे अज्ञात नहीं थे. उन्होंने अपनी भाषामे “अब जवाहर मेरी भाषा बोलेगा…” बोलके नहेरुको अवगत कर दिया था कि नहेरुको अपने आचारमें परिवर्तन करना आवश्यक है. किन्तु नहेरुने माना नहीं. अन्तमें गांधीने कोंग्रेसका विलय करनेकी बात कही और उसको सेवासंघमें परिवर्तन करनेको कहा और उसके नियम भी बनाये.

महात्मा गांधीने विनोबा भावेको कोई सूचन किया नहीं. क्यों कि विनोबा भावेके विचार और आचारके बीच कोई विरोधाभाष नहीं था.

नहेरु और विनोबा इन दोनोंकी तुलना ही नहीं हो सकती. जैसे शेतान और जीसस की तुलना नहीं हो सकती.

नहेरु और विनोबा के आपसी संबंध

नहेरु और विनोबा के आपसी संबंध पर चर्चा करें, उसके पूर्व हमें विनोबा कैसे थे इस बातसे अवगत होना आवश्य्क है.

आम जनताकी मान्यता यह थी कि विनोबा भावे, महात्मा गांधीके अपूर्ण कार्य पूर्ण करेंगे.

महात्मा गांधीके अपूर्ण कार्य क्या थे?

(१) कश्मिरका विलय भारतमें करना,

(२) कश्मिरकी समस्याको युनोमें नहीं ले जाना,

(३) कोंग्रेसका विलय सेवा संघमें करना,

(४) विभाजित भारतको पुनः अखंड भारत बनाना

(५) भारतीय आम प्रजाका दारीद्र्य दूर करना,

(६) गौवंशकी हत्या रोकना,

(७) शराब बंदी करना,

(८) शासनमें पारदर्शिता लाना,

(९) शासनको जनताभिमुख करना,

(१०) अहिंसक समाज की स्थापना करना. ग्रामोद्योग आधारित उत्पादन, निसर्गोपचार, सादगी इसके अंग है.

(११) भारतीय संस्कृतिके अनुरुप जनताको शिक्षित करना, मातृभाषामें शिक्षण देना, शिक्षाको स्वावलंबी करना (उत्पादन आधारित)

(१) से (४) बातका उल्लेख तो मनुबेन गांधीने अपनी गांधीकी अंतिम तीन मासकी डायरी  “दिल्लीमें गांधी” पुस्तकमें किया ही है. सेवा संघकी स्थापना तो हो गई. नहेरु और उनके साथी सत्ताका त्याग करके “सेवा संघ”में गये नहीं.  लेकिन सभी सर्वोदय कार्यकर उसमें गये.

विनोबा भावे पाकिस्तान नहीं गये.

विनोबा भावे कर्मशील तो थे. किन्तु प्रथम वे एक विचारशील व्यक्ति अधिक थे. उन्होंने गांधी विचारको आगे बढाया. उनका अंतिम लक्ष्य शासकहीन शासन था. अहिंसक समाजका अंतिम लक्ष्य यही होना आवश्यक है.

भूमिका आधिकारित्त्व (ओनरशीप ओफ लेन्ड)

भूमि पर किसका अधिकार होना चाहिये?

विनोबा भावे का कहेना था कि भूमि तो हमारी माता है. माताके उपर किसीका अधिकार नहीं हो सकता. “माता पर अधिकार” सोचना भी निंदनीय है.

नहेरुकी सरकारने तो “जो जोते उसकी ज़मीन” ऐसा नियम कर दिया और उसका अमल करना राज्योंके उपर छोड दिया.

युपी, बिहार, बेंगाल, एम.पी. जैसे राज्योमें तो खास फर्क पडा नहीं. ज़मीनदारी प्रथा में बडा फर्क नहीं पडा. ठाकुर और पंडित का दबदबा कायम रहा. वहाँ ज़मीनदारोंने अपने पोतों पोतीयों तक ज़मीन बांट दी.  गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्योंमें जहाँ बडे बडे ज़मीनदार ही नहीं थे फिर भी वहाँ  जोतने वालोंको अधिक फायदा हुआ.

भूदान

ऐसी शासकीय अराजकतामें विनोबा भावे को भूदानका विचार आया. विनोबा भावे तो अहिंसावादी थे. उन्होंने लोगोको कहा कि आपके उपर कोई दबाव नहीं है. आप हमें कुछ न कुछ भूमि दानमें देदो. इस कामके लिये विनोबा  भावेने गांव गांव और पूरे देशमें पदयात्रा की. उन्होंने हर गांवमें गांव वालोंसे समिति बनायी और जिन किसानोंके पास ज़मीन नहीं थी उनको ज़मीन दिलायी. विनोबाके इस पुरुषार्थसे जो ज़मीन मिली वह नहेरुके सरकारी कानूनसे मिली ज़मीन से कहीं अधिक ही थी. जो व्यक्ति नीतिमान होता है उसके परिणाम हमेशा अधिक लाभदायी होते है.

एक बात गौरसे याद रक्खो. सरकारको तो भूदानमें मिली हुई ज़मीनको लाभकर्ताके नाम ही करना था. यानी कि कलम ही चलाना था. लेकिन यह काम सरकार दशकों तक न कर सकीं. महेसुल विभाग (रेवन्यु कलेक्टर) कितना नीतिहीन है उसका यह एक ज्वलंत उदाहरण है. विनोबा भावेने नहेरुका इस बात पर ध्यान आकर्षित किया था. लेकिन हम सब जानते है कि नहेरु केवल वाणीविलासमें ही अधिक व्यस्त रहेते थे और वे जब फंस जाते थे तब वे वितंडावाद पर उतर आते  थे या तो गुस्सा कर बैठते थे.

हारकर विनोबा भावे ने कुछ इस मतलबका  कहा कि “मेघ राजा तो पानी बरसाते बरसाते चले जाते है. उनके दिये हुए पानीसे खेती करना तो मनुष्यके दिमागका काम है. सरकारी कलम चलाना मेरा काम नहीं. मैंने तो मेरा काम कर दिया”

सहकारी खेतीः

नहेरु ने सहकारी खेतीका कानून बनाया. और सहकारी खेतीको कुछ रियायतें देनेका का प्रावधान भी रक्खा.

तब विनोबा भावेने क्या कहा?

यह सरकार या तो ठग है या तो यह सरकार बेवकुफ है. इन दोनोंमेंसे एकका तो उसको स्विकार करना ही पडेगा. मेरी पांच संताने थीं. मैंने कुछ मित्रोंको सामेल किया ताकि सरकारको ऐसा न लगे कि मैं फ्रोड करता हूँ. फिर हमने एक सहकारी खेत मंडली बनाई और सरकारी रियायतें ले ली.

क्या  कोई इसको सहकारी खेती कहेगा? यह तो सरकारको बेवकुफ बनानेका धंधा ही हुआ. सहकारी खेतीमें तो पूरा गाँव होना चाहिये.

पाकिस्तानमें मार्शल लॉ

१९५४में पाकिस्तानके प्रमुख  इस्कंदर मीर्ज़ा सर्वसत्ताधीश बन गये.फिर उन्होंने भारतको सूचन  दिया कि चलो हम भारत-पाकिस्तानका फेडरल युनीयन बनावें.

नहेरुने इसको धुत्कार दिया. फेडरल युनीयनके बारेमें  उन्होंने कहा कि क्या एक जनतंत्रवादी देश और एक लश्करी शासनवाले देशके साथ फेडरल युनीयन बन सकता है? नहेरु लगातार लश्करी-शासनकी निंदामें व्यस्त रहेने लगे.

तब विनोबा भावे ने क्या कहा?

जनतंत्रवादी देश और लश्करी शासनवाले देश भी मिलकर फेडरल युनीयन बना ही सकते है. दो देशोंका मिलना ही तो मित्रता है उसको आप कुछ भी नाम देदो. क्या भारतकी चीन और रुससे मित्रता नहीं है. वे कहाँ जनतांत्रिक देश है? भारत और पाकिस्तान मिलकर एक फेडरल युनीयन अवश्य बना सकते है.

नहेरुको विनोबा भावे का स्वभावका पता था. नहेरु तर्कबद्ध संवादमें मानते नहीं थे. क्यूँ कि वह उनके बसकी बात नहीं थी. लेकिन वे १०० प्रतिशत सियासती थे. समाचार माध्यम और उनका समाजवादी ग्रुप, उनका शस्त्र था. विनोबा भावे को सरकारी संत नामसे पहेचाने जाते थे. उनके क्रांतिकारी विचोरोंको प्रसिद्धि नहीं दी जाती थीं.

१९६२का भारत चीन युद्ध

चीनने भारतकी ९१००० चोरसमील भूमि आसानीसे जीत ली. वास्तवमें चीनका दावा ७१००० चोरस मील पर ही था. जब चीनके ध्यानमें यह बात आयी तो उसने अतिरिक्त २०००० चोरसमील भूमि खाली कर दी. युद्ध विराम भी चीनने ही घोषित किया था. कमालकी बात यह है कि जिस युद्धमें भारतने ९१००० चोरस मिल भूमि हारी, वह एक अघोषित युद्ध था.

विनोबा भावे सियासती नहीं थे. लेकिन वे खिलाडी अवश्य थे. उन्होंने चीनकी प्रशंसा की. “चीन एकमात्र ऐसा देश है जिसने विजेता होते हुए भी युद्ध विराम किया. इतना ही नहीं चीन एकमात्र देश है जिसने जीती हुई भूमि अपने दुश्मनको बिना मांगे वापस कर दी.”

नहेरु तो “दुश्मनने हमें दगा दिया … दुश्मनने हमें पीठमें खंजर भोंका … “ ऐसा प्रलाप करनेमें व्यस्त थे. 

 विनोबा भावेका संदेश वास्तवमें नहेरुके लिये था कि ज्यादा बकवास मत करो.  युद्ध विराम,  तुमने तो नहीं किया है. तुम तो युद्ध कर सकते हो.

विमुख

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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હેલ્પેશભાઈ અને ફિલમી દુનિયા

હેલ્પેશભાઈ અને ફિલમી દુનિયા

શું હેલ્પેશભાઈ ફિલમી દુનિયાના માણસ છે?

શું હેલ્પેશભાઈ ફિલમી દુનિયાના ચાહક છે?

શું હેલ્પેશભાઈ ફિલમી દુનિયાના દુશ્મન છે?

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ના ભાઈ ના. આવું કશું નથી.

એક ચોખવટ કરી લઈએ.

હિરા ભાઈ એટલે ફિલમનો મુખ્ય એક્ટર (હિરો), સાઈડ એક્ટર, અને ગેસ્ટ એક્ટર. જે તે જગ્યાએ જે તે અનુરુપ હોય તે સમજવું.

હિરા બેન એટલે ફિલમની મુખ્ય એક્ટ્રેસ (હિરોઈન) સાઈડ એક્ટ્રેસ અને ગેસ્ટ એક્ટ્રેસ. જે તે જગ્યાએ જે તે અનુરુપ હોય તે સમજવું.

સેલીબ્રીટીઃ

સેલીબ્રીટી શબ્દ જ્યારે વપરાય ત્યારે આમ તો તેનો અર્થ ખ્યાતિવાળો/પ્રખ્યાત વ્યક્તિ થાય. એટલે આમ તો બધા મહાનુભાવો સેલીબ્રીટીમાં આવી જાય. પણ સામાન્ય રીતે આ શબ્દ હિરાભાઈ/હિરાબેન કે ફિલમબનવાના કોઈ હિસ્સા સાથે પોતાનું યોગ દાન આપનારી વ્યક્તિ માટૅ પણ વપરાય છે. જો કે કોઈવાર ખેલકુદ ના ખેલાડી વ્યક્તિને પણ ગણવામાં આવે છે.

એટલે ટૂંકમાં નર માદા …  એક્ટ્રરો, સંગીતકારો, ગીતકારો, વાર્તા-લેખકો, નિર્દેશકો, નિર્માતાઓ … આ બધાને સેલીબ્રીટી ગણવામાં આવે છે. નર-માદા શબ્દ એક્ટરોને વધુ લાગુ પડે છે. શા માટે? તે આપણે પછી જોઈશું. અને તેની  ચર્ચા હેલ્પેશભાઈને લક્ષ્યમાં રાખીને  કરીશું.

હેલ્પેશભાઈએ  કેટલી ફિલમો જોઈ છે કે જેથી કરીને તેઓ ફિલમ ઉપર વિવેચન કરવાનો પોતાને અધિકાર છે તેમ માને છે?

હેલ્પેશભાઈ જ્યારે ઉમરમાં સીંગલ ડીજીટમાં હતા ત્યારે તેઓ જન્મથી લઈને તેઓ તે વખતે જે ઉમરે પહોંચ્યા હતા તે દરમ્યાન સુધીની બધી જોયેલી બધી ફિલમોના નામ ગણાવી શકતા હતા. આ સંખ્યા પણ આશરે ૧૫ ની હતી.

હેલ્પેશભાઈ ફિલમમાં શું સમજતા હતા?

કશું જ નહીં. હેલ્પેશ ભાઈની ફિલમ જોવાની શરુઆત ધ્રાંગધ્રા થી થઈ હતી. કારણ કે વિઠ્ઠલગઢ કે નદીસરમાં ટોકીઝ હતી નહીં.

“શેઠ સગાળશા” ફિલમ માં છેલ્લે ભગવાન આવે છે તેટલું હેલ્પેશભાઈ સમજ્યા હતા.

“કામ પડ્યું છે આ જ તારું, ઓ બાલુડા … કામ પડ્યું છે આજ તારું.” આ ગીત તેમને મોટાભાગનું મોઢે હતું. “કામ પડ્યું છે આ જ તારું “ એનો અર્થ હેલ્પેશભાઈ સમજતા નહીં. પણ  “કામપડ્યું”  કોઈ વસ્તુમાટે નો એક શબ્દ છે તેમ સમજતા. જેમકે  રમકડાનો પોપટ. ફિલમમાં ભગવાનને આટલા થોડા સમય માટે કેમ બતાવે છે તે હેલ્પેશભાઈને સમજાતું ન હતું. ધાર્મિક ફિલમોમાં ભગવાનને ઘણો સમય બતાવે એટલે હેલ્પેશભાઈને ધાર્મિક ફિલમો ગમતી.   

નાટકો કરતાં ફિલમ વધારે ગમતી. નાટકમાં એકનું એક દૃષ્ય રહે તે હેલ્પેશભાઈને ન ગમે. ફિલમ ગમે તેવી હોય પણ એમાં દૃષ્યો બદલાતા રહે છે. તેથી હેલ્પેશભાઈને ફિલમો ગમતી.

રામ-રાજ્યઃ

હેલ્પેશભાઈ,  એક્ટર એક્ટ્રેસને ઓળખી શકવાની ઉચ્ચતા સુધી પહોંચ્યા ન હતા. રામ, ભરત, લક્ષ્મણનો પાત્રનો ભેદ સમજી શકતા નહીં. પણ એક સ્ત્રી કે જે સીતા હતી, તે સતત રડ્યા કરતી. અને તેને બધા “સીતાજી” એમ કહેતા તે હેલ્પેશભાઈને ગમતું નહીં. એક તો આ બૈરી જ્યારે ત્યારે રડ્યા કરતી હોય છે અને તેને બધા માનવાચક રીતે સીતા”જી”, એમ કહે છે એ હેલ્પેશભાઈને યોગ્ય લાગતું ન હતું.

કારિયાભાઈઃ

હેમુભાઈ કારિયા ઉર્ફે કારિયાભાઈ,  એ રાજકોટમાં ઉભા ક્વાર્ટર્સમાં તેમના મોટાભાઈની સાથે   રહેતા હતા. કારિયાભાઈ  સરખામણીમાં ઘણા મોટા હતા. રાજકોટના મુખ્ય બજારમાં તેમની પાનની દુકાન હતી. તેઓ હેલ્પેશભાઈના મોટા (વચલા) ભાઈના સમવયસ્ક ન હોવા છતાં ખાસમખાસ  મિત્ર હતા. તેઓ હેલ્પેશભાઈ અને તેમના ક્વાર્ટર્સના મિત્રોને અવારનવાર ફિલમો બતાવતા. ખાસ કરીને ગેસ્ફર્ડ ટોકીઝમાં લઈ જતા.  પણ હેલ્પેશભાઈ અને મિત્રોને ફિલમ કરતા ઇન્ટર્વલમાં વધુ રસ રહેતો. કારણ કે કારિયા ભાઈ આમ તો થર્ડક્લાસમાં (ટેકાવગરની બેંચ ઉપર બેસવાનું) ફિલમ બતાવે પણ ઇન્ટર્વલમાં ભેળ પણ ખવડાવે. હેલ્પેશભાઈ બ્રાહ્મણ. પણ કારિયા ભાઈ કહે “દુકાનવાળો તો બ્રાહ્મણ છે” માટે ખવાય. એટલે હેલ્પેશભાઈ બેધડક ખાય.

હેલ્પેશભાઈના એક માસી બહુ રુપાળા અને વાંકડીયા વાળવાળા હતા. એટલે હેલ્પેશભાઈ બધી હિરોઈનોને વીરબાળા માસી જ સમજતા. જ્યારે હિરોઈનોને પ્રસંગોપાત રોવાનું આવતું તો હેલ્પેશભાઈને અચરજ થતું.

એક ફિલમ (વિજ્યા કે વિદ્યા)માં દેવજીભાઈ (દેવાનન્દ) એક પાત્રને માર મારે છે. અને ફિલમમાં બધા તેને બિરદાવે છે.  હેલ્પેશભાઈને આશ્ચર્ય થયેલ.

કાળક્રમે હેલ્પેશભાઈ ડબલ ડીજીટની ઉંમરમાં પ્રવેશ્યા. એટલે તેમને હિરાભાઈ અને હિરીબેનોની મહાનતા જાણવા મળી. આ બધું તેમને તેમનાથી મોટી ઉમરની વ્યક્તિઓની ચર્ચા દ્વારા જાણવા  મળ્યું. જો કે હેલ્પેશભાઈને તે ચર્ચાઓમાં સમજણ પડતી નહીં. પણ એટલું અધિગત થતું કે આ હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો મહાન છે.

શા માટે હેલ્પેશ ભાઈને હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો મહાન લાગ્યા?

હિરાભાઈ અને હિરાબેન તત્કાલ વાર્તાલાપ કરીને ફિલમમાં વાર્તાને આગળ ચલાવતા.

હિરાભાઈ અને હિરાબેન તત્કાલ કવિતા બનાવતા હતા,

હિરાબેન જરુર પડે રોઈ શકતા હતા અને હિરાભાઈ જરુર પડે ટકાટકી કરી શકતા હતા.

કાળક્રમે હેલ્પેશભાઈને ખબર પડી કે સંવાદ લેખક જુદા હોય છે. પણ તેથી હેલ્પેશભાઈને ખાસ ફેર પડ્યો નહીં. કારણકે આખી સંવાદની ચોપડીને યાદ રાખી લેવી એ કંઈ જેવી તેવી વાત તો ન જ કહેવાય.         

પણ હજી સુધી હેલ્પેશભાઈના મનમાં પસંદગી વાળા હિરાભાઈ એટલે કે પ્રેરણાદાતા હિરાભાઈનો જન્મ થયો ન હતો.

હેલ્પેશભાઈ ભાવનગરમાં આવ્યા પછી તેમની પસંદગીના હિરાભાઈનો જન્મ થયો.

બોલો આ કોણ હશે?

આ હિરાભાઈ હતા ભગવાનદાસભાઈ,

હેલ્પેશભાઈને ભગવાનદાસભાઈ  કેમ ગમતા હતા?

ભગવાનદાસભાઈ તલવાર બાજી સારી કરતા હતા. તે અરસામાં “નિશાન” ફિલમ આવેલી. તેમાં પણ તલવાર બાજીના દૃષ્યો હતા. પણ તે ફિલમમાં કાનમાં કડી હરેલા હિરો હતા તેથી હેલ્પેશભાઈને અજુગતું લાગતું હતું.

ભગવાનદાસ ભાઈની તલવાર બાજીની એક વિશિષ્ઠતા હતી. આમ તો પ્રેમનાથભાઈ પણ તલવાર બાજી કરતા હતા. ભગવાન દાસ ભાઈની અદાઓ હતી. ભગવાનદાસભાઈ પોતાના પ્રતિસ્પર્ધીને રમાડતા રમાડતા ચપટીવારમાં હરાવી દેતા હતા. શિવાજી ની એક ફિલમ હતી જેમાં શંકર ભગવાન અને પાર્વતીજી ને બતાવવામાં અવેલા. શંકર ભગવાન શિવાજી તરીકે જન્મ લે છે અને કોઈ એક મુસ્લિમ રાજાને તલવારબાજીથી થોડી સેકંડોમાં ખતમ કરી નાખે છે. આજે બાળકોને ડૅન્સ કરતા હિરાભાઈઓ મનપસંદ હોય છે.

ડેઈઝી ઈરાની જે બાબલા તરીકે આવતો હતો તે હેલ્પેશભાઈને ગમતો. તેનું નામ ચટપટ હતું. બેબી તબસ્સુમ પણ હતી. પણ તેની ઠાવકી ભાષા હેલ્પેશભાઈ સમજી શકતા ન હતા. પ્રેક્ષકો બેબી તબસ્સુમ ના બોલાવાથી ખડખડાટ હસતા. પણ હેલ્પેશભાઈને બધું હવામાં જતું. જેમકે એક ફિલમમાં બેબી તબસ્સુમ કહે છે “મારે જ બધું કામ કરવું પડે છે” આવું સાંભળીને પ્રેક્ષકો હસે છે. પણ હેલ્પેશભાઈને અચરજ થાય છે કે આમાં હસવાનું શું છે?

કદાચ અનારકલી અને સગાઈ નામની ફિલમથી હેલ્પેશભાઈને ફિલમમાં થોડી થોડી સમજ પડવા માંડી. અનારકલી અને સગાઈના હિરાબેન હેલ્પેશભાઈને  રુપાળા લાગેલ. એ સિવાયની હિરાબેનો, હેલ્પેશભાઈને રુપાળી લાગતી જ નહીં.

હેલ્પેશભાઈને હિરાભાઈઓ કે હિરાબેનો પ્રત્યે કદીય અહોભાવ ઉત્પન્ન થયો નહીં. કારણ કે અહોભાવ થવાની માનસિક ઉચ્ચતા પર  હેલ્પેશભાઈ પહોંચે તે  પહેલાં જ તેમને ખબર પડી ગઈ કે;

આ હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો પોતે સંવાદ બનાવતી નથી.

તે ઉપરાંત

આ હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો પોતે ગીતો બનાવતી નથી તેથી હેલ્પેશભાઈ, હિરાભાઈ અને હિરાબેનો શીઘ્ર કવિ છે તે  શીઘ્ર કવિની માન્યતા ધરાશાયી થયેલ.

આ હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો કશું સળંગ મોઢે રાખતાં નથી,

આ હિરાભાઈઓ અને હિરીબેનો  એક જ ઘાએ અભિનય કરતાં નથી,

આ હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો ના અનેકવારના અભિનયના પ્રયત્નો કરાવ્યા પછી તેને સ્વિકારમાં આવે છે.

આ હિરાભાઈઓ અને હિરાબેનો જ્યારે અભિનયના પ્રયત્નો ચાલુ હોય ત્યારે બોલવામાં અક્ષમ્ય ભૂલો કરતા હોય છે. તેમને ઘણા જ રી-ટેક કરવા પડતા હોય છે.

આ બધા કારણસર જ્યારે હેલ્પેશભાઈ કોલેજમાં પહોંચ્યા તે પૂર્વી જ  હિરાભાઈ અને હિરાબેનોની મજાક ઉડાવતા થઈ ગયા હતા.

હેલ્પેશભાઈના એક મિત્રના મિત્ર આવ્યા. તેઓશ્રી દિલીપકુમારના ભક્ત હતા. તેઓશ્રી દિલીપકુમારની ફિલમ પડે એટલે એ ફિલમ વીસ-પચીસ વાર જુએ.

એટલે હેલ્પેશભાઈએ કહ્યું “આ દિલીપકુમારને તમે કોઈ પણ રોલ આપો પછી ભલે તે મજુરનો હોય, કે ગામડીયાનો હોય કે રાજકુમારનો હોય કે પ્રેમલા-પેમલી હોય કે બંદરનો, એ હમેશા એક જ સ્ટાઈલમાં બોલે છે. … ઇન્સાઈયત નામની એક ફિલમ આવેલી. આ ફિલમમાં દિલીપભાઈને મેક-અપ વગર ઉતારેલા અથવા વધુ કદરુપા કરીને ઉતારેલા.  આ ફિલમમાં એક વાંદરો (વાંઈદરો) પણ રોલ કરતો હતો…. બાબુરાવ પટેલે કહેલ કે આ વાંદરાનો અભિનય , દિલીપકુમાર કરતાં સારો હતો.”

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એટલે આ મિત્રના મિત્રે કહ્યું “અરે યાર, આપણે બધા નકામા એક બીજા સાથે લડી મરીએ  છીએ, આ બધા હિરો તો એકબીજા મિત્રો ખાસ મિત્રો હોય છે.”

મારા મિત્રે પેલા મિત્રને કહ્યું કે આ હેલ્પેશભાઈ તો બધા જ હિરોની વિરુદ્ધમાં છે. તુ એમની જોડે ચર્ચા ન કરીશ. તમે બંને નકામા ઝગડી પડશો.

એક વખત જબલપુરમાં સહાધ્યાયીઓ સાથે  ચર્ચા ચાલી.

પોતાનો માનીતો હિરો કોણ?

હેલ્પેશભાઈએ બધાની ટીકા કરી. દિલીપકુમાર, દેવાનંદ અને રાજકપુરની એક્ટીંગની અવૈવિધ્યતા બતાવી. અને મજાકમાં કહી દીધું કે શ્રેષ્ઠ હિરો તો પ્રદીપ કુમાર છે. અને મારા સહાધ્યાયીઓ દ્વારા પ્રદીપકુમાર કૂટાઈ ગયો.

દિલીપકુમાર, દેવાનંદ અને રાજકપુર;

દિલીપકુમાર ભાઈ, રાજકપુરભાઈ અને દેવજીભાઈ (દેવાનન્દભાઈ) આ ત્રણે     હિરાભાઈઓમાં દિલીપકુમારભાઈ ઓછા દેખાવડા. જો કે મુસ્લિમ બહેનોમાં તેઓ લોકપ્રિય ખરા. આ વાતની તમે તેમની ફિલમ જોવા જાવ એટલે ખબર પડે.

બધાને પ્રેમમાં પડવું તો હોય જ.

દિલીપભાઈની ખાસીયત એ કે તેમની ફિલમમાં હિરાબહેનો તેમના પ્રેમમાં સામે થી પડે. આવું કેમ થતું હશે તે સંશોધનનો વિષય છે. તૈયાર માલ મળી જાય એ કોને ન ગમે?

એ નાતે દિલીપભાઈના અંતરાત્મામાં એવો ગર્ભિત ભય ખરો કે આપણે બહુ રુપાળા નથી તેથી જો કૃષ્ણ ભગવાનના ચાળે ચડશું તો કૂટાઈ જઈશું. એના કરતાં એવી જ ફિલમ કથા પસંદ કરવી કે માલ (હિરાબેન)  સામેથી જ આવે. જે ભાઈઓ દિલીપકુમારભાઈ જેવી મનોવૃત્તિ ધરવતા હોય તેવા ભાઈઓ દિલીપકુમારને પસંદ કરતા અને તેમની સાથે તાદાત્મ્ય સાધતા કે ક્યારેક તો કોઈ સ્ત્રી આવીને આપણા ઉપર મરશે.

રાજકપુર ભાઈને એવું કે તેમને હિરાબેન સાથે પ્રેમ તો થાય. પણ સંજોગો એવા ઉત્પન્ન થાય કે હિરાબેન સંજોગોવશ રાજકપુર ભાઈને છોડી દે. એક જ ફિલમમાં આવું એકથી વધુ વાર બને. રાજકપુરભાઈ એકાદ કરુણતાપૂર્ણ ગીત ઠપકારી દે. હે પ્રેક્ષકો,  દુનિયાના તાલ જુઓ. અને મારી દયા ખાવ. રાજકપુરભાઈ આમ કારુણ્યના કીંગ હતા, જેમ મીનાબેન (મીનાકુમારી) કારુણ્યની રાણી (ટ્રેજડી ક્વીન). હેલ્પેશભાઈ તેને “અઘેલી વાણીયણ” તરીકે ઓળખાવતા.

તમે કોઈ ફિલમ એવી જોઈ છે જેમાં રાજકપુર ભાઈ બીડી/સીગરેટ ન હોય?

હાજી, વાલ્મિકી ફિલમ એકમાત્ર એવી ફિલમ છે કે જેમાં રાજકપુરભાઈએ નારદમુનીનો રોલ કરેલો. બોલો… કેવીરીતે રાજકપુરભાઈ સીગરેટ/બીડી પી શકે?

દેવજીભાઈ (દેવાનંદ) સાપેક્ષે રુપાળા. એટલે તેઓશ્રી તો પોતાને કામણગારો  કૃષ્ણ કનૈયો જ સમજે. દેવજી ભાઈ બધી જ ફિલમોમાં એક નિશ્ચિત હિરાબેનની છેડતી કર્યા કરે. ફિલમની અંદર કાળક્રમે આ હિરાબેન દેવજીભાઈ સાથે પાણીગ્રહણ કરે.

વાસ્તવમાં પણ એવું જ હતું. બહેનો બધી જ દેવજીભાઈ ઉપર ફિદા હતી. આ બધી બહેનો પણ જે તે ફિલમમાં તત્કાલીન હિરાબેન સાથે તાદાત્મ્ય સાધતી હશે કે ક્યારેક આવો કામણગારો પુરુષ આપણને છેડશે અને પછી આપણે તેની સાથે પાણીગ્રહણ કરીશું.

જોકે કેટલીક બહેનો  અઘેલી વાણીયણ ની જેમ (મીનાકુમારીની જેમ) દુઃખી જીંદગી માટે મીના કુમારીનો વહેમ રાખતી અને તેની સાથે તાદાત્મ્ય સાધતી.   

દેવજીભાઈની એક અદા (સ્ટાઈલ) હતી. તેઓ હાથ લુલા રાખીને ઝુમતા ઝુમતા અભિનય કરતા. એક “ડાલ્ડા દેવાનંદ” નામના ભાઈ, તેમની સ્ટાઈલ મારતા. દેવજી ભાઈએ તેમની સ્ટાઈલ બંધ કરી હતી કે નહીં તેની ખબર નથી.

આ બધા મુખ્ય હિરાભાઈ હતા. બીજા પણ હિરાભાઈઓ હતા. સંજીવકુમાર, બલરાજ સહાની, જયરાજ … આપણે લેખ લખવો છે પુસ્તક નહીં.

પહેલે થી જ બધી હિરાબેનો માદા તરીકે  વર્તતી. પહેલાંની હિરાબેનોને સામાન્ય રીતે શાસ્ત્રીય નૃત્ય આવડતું નહીં. તેથી તેઓ બંને હાથ અવનવી રીતે હલાવીને નૃત્ય કરતી જાણે કે એમ લાગે કે તેમના હાથોને આંટી પડી જશે તો શું થશે?  જોકે વયસ્ક હિરાબેનોમાં લલિતા પવાર વૈવિધ્ય પૂર્ણ અભિનય કરતી. ભદ્રા બેન (શબાના આઝમી) અને હસુબેન (માલા સિંહા) વૈવિધ્યતા પૂર્ણ અભિનય કરતા. ઉજમબેન (નિરુપા રૉય) એમાં અપવાદ હતા. પણ ગુજરાતી બહેનોમાં તે લોકપ્રિય હતા.

હેલ્પેશભાઈની બદલી અમદાવાદ અને પછી  મુંબઈ થઈ પછી કામના ભારણને લીધે ફિલમો જોવી બહુ જ ઓછી થઈ ગઈ. હેલ્પેશભાઈ  “છોડા ચેતન” નામની ફિલમ તેમની ભત્રીજી ને બતાવવા લઈ ગયેલ. પછી તો કાળક્રમે તેમની ભત્રીજી   મોટી થઈ, તેના લગ્ન થયા. અને તેને બાબો આવ્યો. અને તે બાબલાને લઈને હેલ્પેશભાઈ એક ફિલમ જોવા  ગયા. આ બે ફિલમો ની વચ્ચે નો સમય પંદરેક વર્ષનો હશે તે દરમ્યાન કોઈ ફિલમ જોએલી નહીં. આ બીજી ફિલમનું નામ હતું “છોટા ચેતન”. જો કે તે છોટા ચેતનનું  નવું વર્સન હતું.

આજે પણ હિરાબેનો કંઈક વધુ અંશે, માદા તરીકે જ વર્તે છે. જ્યારે આવું ન હોય ત્યારે હિરાબેનો પશ્ચિમી હિરાબેનોની સ્ટાઈલ મારે છે.

હાલના હિરાભાઈઓ પોતાને એક્ટર કરતાં નર તરીકે વધુ પ્રદર્શિત કરવામાં માને છે. કેટલાક વર્ષોથી  હિરાભાઈઓ દાઢી રાખતા થઈ ગયા છે.

હિરાભાઈઓ દ્વારા  દાઢી રાખવાના મુખ્ય કારણો કયા છે?

કટ્ટર મુસ્લિમોએ દાઢી રાખવી જ જોઇએ. પશ્ચિમના દેશોમાં આતંકી હુમલાઓ પછી, દાઢીવાળા મુસ્લિમો ઉપર એરપોર્ટ ઉપર સઘન ચેકીંગ શરુ થયું.

આ અન્યાય હતો એવું કેટલાકને લાગ્યું. માલદાર મુસ્લિમ દેશોએ પશ્ચિમના  હિરાભાઈઓને ફોડ્યા. અને આ હિરાભાઈઓએ  દાઢી રાખવી શરુ કરી. તંગલો નાચ્યો એટલે તંગલી નાચી. આપણા દેશી હિરાભાઈઓએ પણ દાઢી રાખવી શરુ કરી.

શરુઆતમાં તો હકલાભાઈએ દાઢી વધારી. ડી-ગેંગ (દાઉદની ગેંગના નેટવર્કના લોકો) “શાહરુખ ખાનને “હકલા” તરીકે ઓળખે છે.  ચીકના ભાઈએ પણ દાઢી વધારી. અમીરખાનને ડી-ગેંગ ચીકના તરીકે ઓળખે છે. તેથી બીજા દેશી હિરાભાઈઓએ પણ દાઢી વધારી. એટલે પછી મોડેલીંગનું કામ કરતા ભાઈઓને પણ થયું કે અમે કંઈ હિરાભાઈઓથી કમ છીએ શુ? એટલે મોડેલીંગ વાળા ભાઈઓ પણ દાઢી રાખવા માંડ્યા. આવું થયું એટલે બધા જ વાદીલા (વાદે ચડેલા-રવાડે ચડેલા) જુવાન લોકોએ દાઢી રાખવી ચાલુ કરી દીધી. પછી તો વયસ્ક હોય પણ પોતાને જુવાન માનતા હૈ તેવા લોકોએ પણ દાઢી રાખવી શરુ કરી દીધી.

આપણા, હકલા અને ચીકનાએ દાઢી રાખવી બંધ કરી દીધી. કારણ કે “સાધ્યં ઈતિ સિદ્ધમ્‌”.

આપણા દેશી ભાઈઓને એમ છે કે આપણી (દેશી) માદાઓ “રફ એન્ડ ટફ” પુરુષોને વધુ પસંદ કરે છે.

શિરીષ મોહનલાલ દવે

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