विनोबा भावे और कोंगीके संबंध – २
नहेरुका पुरा पांडित्य चीनने ध्वस्त कर दिया था. नहेरुने तो एक फरेबी प्रतिज्ञा लेली कि “जब तक हम खोई हुई भूमि वापस नहीं लेंगे तब तक चैनसे बैठेंगे नहीं”. पूर्णविराम.
नहेरुके लिये तो अपने साम्यवादी मित्रका मंत्रीपद बचाना एक काम था. जब तत्कालिन राष्ट्रप्रमुख डॉ. राधाकृष्ननने नहेरुसे कहा कि “यदि आप वी. के. मेनन को सुरक्षा-मंत्रीपदसे दूर नहीं करोगे तो हमे नेता बदलनेका सोचना पडेगा.
नहेरु भी वैसे तो अडे हुए थे लेकिन उनके पास और कोई विकल्प नहीं था. उन्होंने सुरक्षा मंत्रालयका दो भाग कर दिया. सुरक्षा शस्त्र मंत्रालय और सुरक्षा कार्य मंत्रालय.
आगे चलके नहेरुने कामराज प्लान बनाके अपने पदके दावेदार मोरारजी देसाईको निरस्त्र किया. अपनको हटानेकी धमकी देनेवाले डॉ. राधाकृष्णन दुसरा कार्यकाल नहीं दिया. इसकी हम चर्चा नहीं करेंगे.
इन्दिरा और विनोबा भावे
१९६९में जब इन्दिरा गांधीने अपनी ही कोंग्रेसके राष्ट्रपति पदके प्रत्याशी संजीव रेड्डीको “आत्माकी आवाज़” के नाम, छद्मतासे पराजित करवाया तो कोंग्रेसकी तथा-कथित एकताकी दिवार तूट गयी. इन्दिराने असाधारण महासभाका एलान दिया. लेकिन कोंग्रेसके संगठनका बहुमत तो सीन्डीकेटके साथ था. इसलिये इन्दिराको नये सदस्य बनानेका दाव खेलना पडा. उसने खुला आमंत्रण दिया, आ ओ … आ ओ …. आजाओ … कोंग्रेसका द्वार सबके लिये खुला है. (चोर, लुटेरे, डकैत, ठग … सब लोग आओ)
विनोबा भावेने क्या कहा?
यदि नंबर ही बनाना है तो बंदरोंको भी बुला लो … बंदरोंको भी सदस्यता देदो … क्या फर्क पडता है? नंबर ही तो बनाना है!!
जिस कोंग्रेसका सदस्य बनने के लिये, एक समय खादी, सादगी और त्याग आवश्यक माना जाता था उस कोंग्रेसमें अब केवल नंबरका ही महत्त्व रहा था.
वैसे ऐसी हालतके बीज तो नहेरुने ही डाल दिया था. लेकिन अब विनोबा भावेसे न रहा गया. उनको बोलना ही पडा कि बंदरोंको भी बुला लो.
आपात्काल और विनोबा भावे
इन्दिराने आपात्काल घोषित किया
इन्दिराकी घोषणाके अनुसार देश हर क्षेत्रमें आपत्तिग्रस्त हो गया था. इस लिये आपात्काल घोषित करना आवश्यक था. सरकारके पास अधिकतम सत्ता होना भी आवश्यक था. नागरिकोंके हकमें कटौति करना आवश्यक था.
विनोबा भावेने कहा कि “आपात्काल अनुशासन पर्व”
वैसे भी नहेरुके भक्तोंके प्रचार के अनुसार, विनोबा भावे तो जनताकी नजरमें सरकारी संत ही थे. किन्तु इस उच्चारणसे विनोबा भावे को सरकारी संत माननेवालोंकी संख्यामें अपार वृद्धि हो गई. कई लोगोंने बोला कि विनोबा भावे, गांधीवादी होते हुए भी “ताल ठोक” के सत्य नहीं बोल सके. इस परिस्थितिका भरपुर लाभ सरकारी प्रचार तंत्रने और समाचार माध्यमोंने उठाया. पोस्टर छपवाये गये.
किन्तु गांधीवादीयोमें वास्तविकता कुछ भीन्न थी.
गांधीवादीयोंमे दो प्रकारसे विभाजन हो गया था. विनोबा भावे को माननेवाले और जयप्रकाश नारायणको मानने वाले.
इन्दिराके हिसाबसे “विनोबा भावे”वाले गांधीवादी निरुपद्रवी थे और जयप्रकाश नारायण वाले उपद्रवी थे. यह भेद रेखा सुक्ष्म नहीं थी. इन्दिराको जो गांधीवादी उपद्रवी लगा उनको कारावास भेज दिया. गांधीवादके मुखपत्र “भूमि-पुत्र”के संचालन करनेवालोंको क्र्मशः कारावासमे भेज दिया. यह चर्चा सुदीर्घ है. हम नहीं करेंगे.
विनोबा एक खिलाडी
विनोबा भावे “चेस”के खिलाडी थे. उनको ऐसा लगा होगा कि, आपात्काल घोषित करना एक पागलपन तो है, तथापि इन्दिरा गांधी अभी संपूर्णतः पागल हुई है या नहीं, उसके पर संशोधन करना पडेगा. विनोबाने अपने उच्चारण “आपात्काल अनुशासन पर्व है” उसके उपर स्पष्टीकरण नहीं दिया.
कुछ लोग समज़ते थे कि विनोबा भावे कारावाससे डरते थे. जो लोग विनोबाको समज़ते थे उनके लिये यह सही नहीं था. वास्तवमें भी यह जूठ ही था. यदि विनोबा भावेका जीवन शैली देखा जाय, तो उनके लिये तो कारावास एक लक्ज़री था.
विनोबा भावे ने कुछ समय व्यतीत होने दिया. उनको पता ही था कि, इन्दिरा गांधी “गुड एड्मीनीस्ट्रेटर नहीं है.”. न्यायतंत्रके उपर भी उसका अबाधित प्रभुत्व नहीं था. विनोबा भावेने सरकारको आवेदन दिया कि “यदि फलां दिनांक तक गौ-हत्या निषेध कानून नहीं लाओगे तो मैं आमरणांत अनशन करुंगा.”
कोई समाचार माध्यमकी शक्ति नहीं थी कि वे इस समाचारको प्रकाशित करें.
किन्तु कोंगीयोंमें बेवकुफोंकी कमी उस समय भी नहीं थी. वे तो जो भी कोई सरकारके विरुद्ध बोले, तो उनकी भर्त्सना करनेके लिये तत्पर थे. और सरकारके विरुद्ध बोलनेवालों की भर्त्सना करने पर तो कोई निषेध था ही नहीं. विनोबा भावे किस खेतकी मूली? समाचार पत्रोंमे विनोबाके प्रस्तावित अनशनकी भर्त्सना करनेवाले लेख आये. “जब देश आपात्कालसे गुजर रहा हो तब अनशन पर बैठना क्या योग्य है?”
इन्दिरा गांधी पूर्णरुपसे पगला नहीं गयी थी. उसने कहा, कि उसकी सरकारको समय चाहिये. विनोबा भावेने समय दे दिया.
खिलाडी विनोबा भावेकी दुसरी चाल
विनोबा भावेने वर्धामें आचार्य संमेलन बुलाया
उस संमेलनकी कार्यसूचिः
आपात्काल अनियतकाल तक नहीं हो सकता. उसके अन्तका दिवस निश्चित करना चाइये.
जिनको कारावासमे रक्खा है उनको अनियतकाल तक नहीं रख सकते
आपात्काल कोई पक्षकी आपत्ति नहीं है. आपात्काल यदि है तो वह देशकी आपत्ति है, इस लिये देशवासीयोंका सहयोग लेना आवश्यक है,
अनुशासन आचार्योंका होता है. शासकोंका नहीं. शासकोंका जो होता है वह शासन है.
विनोबा भावेने अपने प्रवचनमें कहा था कि “मैं देखता हूँ कि यहां कुछ लोग डरे हुए है. उनसे मैं कहेता हूँ कि यहाँ डरनेकी आवश्यकता नहीं.”
आचार्य संमेलनका रीपोर्ट सरकार को भी दिया गया.
समाचार माध्यमोंमे तो इसका कोई उल्लेख नही मिलता था. लेकिन इन्दिराके लिये चूनाव घोषित करना आवश्यक बन गया था. इसमें एक परिबल विनोबा भावेका आचार्य संमेलन भी था.
“हनी ट्रेप” उस समय भी नयी बात नहीं थी. ऐसा कहा जाता है कि एक फर्जी हनी ट्रेप बनाया गया था. यशवंत राव चवाणने इन्दिरा को सलाह दी कि ऐसा मत करो. लेनेका देना पड जायेगा.
शिरीष मोहनलाल दवे
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