Posted in Social Issues, tagged अफवाह, अफवाहें फैलाना, अमित शाह, असहिष्णु, अस्थिरता पैदा करना, आंतरिकव्यवहार, आत्महत्या, एकाधिकारवादी, एन.सी.पी.का विधान सभाका नेता, एनसी.पी., एस.सेना, कथन, कार्यवाही, केन्द्र सरकारके आदेशसे विरुद्ध, कोंगीयोंने प्रारंभ किया, कोमवादी मानसिकताका द्योतक, कोरोना महामारी, कोरोना संक्रमित, गठबंधनके साथी, गुन्डागर्दीकेआदी, घटनाकोकमजोर, जनप्रतिनिधि, जूठ बोलना, दाउद गेंग, दायाँ हाथ, नरेन्द्र मोदी, पालघर, पूर्वग्रहसे भरपूर, प्रणाली, प्रतिशोध वादी, प्रश्न उठे, बांद्रा रेल्वे स्टेशन पश्चिम की मस्जिदके पास, बायां हाथ, बीजेपीका प्रवक्ता प्रवक्ता से अधिक, मंत्रीमंडल, मेल मिलाप, राजनाथ सिंह, रामदास आठवले, वंशवादी, विश्वास घात, व्यक्तिगत मन्तव्य, शरद पवार, संतोकी हत्या, सशस्त्र पूलिस, हक्क on September 29, 2020|
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रामदास आठवलेको पदच्यूत करो

रामदास आठवले कौन है?
क्या वह बीजेपीका प्रवक्ता है?
रामदास आठवले बीजेपीका प्रवक्ता नहीं है, लेकिन उससे भी अधिक है.
रामदास आठवले, मोदी के मंत्रीमंडलका एक मंत्री है.
जनतंत्रमें कोई भी मंत्रीका कथन, सरकारका कथन माना जाता है. मंत्रीका व्यक्तिगत मन्तव्य हो ही नहीं नही सकता.
“यह मेरा व्यक्तिगत मन्तव्य है”
“यह मेरा व्यक्तिगत मन्तव्य है” ऐसे कथनकी प्रणालीका प्रारंभ कोंगीयोंने किया है.
वास्तवमें यदि कोई सामान्य सदस्य, आठवले जैसा बोले और साथ साथमें यह भी बोले कि यह मेरा व्यक्तिगत कथन है, तो भी वह अयोग्य है. क्यों कि उसको चाहिये कि, वह, अपना व्यक्तिगत अभिप्राय अपने पक्षकी आम सभामें प्रगट करें. ऐसा करना ही उसका हक्क बनता है. या तो अपने सदस्य-मित्रमंडलमें अप्रगट रुपसे प्रगट करनेका हक्क है. पक्षके कोई ही सदस्यको, और खास करके आठवले जैसे मंत्रीमंडलके सदस्यको खुले आम बोलना जनतंत्रके अनुरुप नहीं है.
रामदास आठवलेने क्या कहा?
रामदास आठवलेने कहा कि यदि एस.सेनाको अपने गठबंधनके साथीयोंसे मेल मिलाप नहीं है तो वह पुनः बीजेपीके गठबंधनमें आ सकता है. शरद पवारके पक्षको भी बीजेपीके गठबंधनमें आनेका आमंत्रण है.
रामदास आठवलेको ऐसी स्वतंत्रता किसने दी?
रामदास आठवले जैसे बीजेपी के सदस्यको मंत्रीपद देना ही नरेन्द्र मोदीकी क्षति है. इस क्षतिको सुधारना ही पडेगा. रामदास आठवले जैसे सदस्य के कारण ही बीजेपीको नुकशान होता है.
यदि नरेन्द्र मोदी और उसकी सरकार समज़ती है कि “सियासतमें सबकुछ चलता है” तो यह सही नहीं है. एनसीपी और एस.सेनासे गठबंधन करना बीजेपीके लिये आत्म हत्या सिद्ध होगा.
क्यों आत्म हत्या सिद्ध होगा?
महाराष्ट्र के चूनावके परिणाम घोषित होनेके बाद एनसीपीके विधानसभाके नेताने ही बीजेपीका विश्वासघात किया है. इस घटना को बीजेपीको भूलना नहीं चाहिये.
इसके अतिरिक्त एन.सी.पी.का आतंरिक व्यवहार और संस्कार ऐसा ही रहा है जो गद्दारीसे कम नही है. एन.सी.पी.को दाउद गेंगका दायाँ हाथ माना जाता है. यह खुला गर्भित सत्य है.
बांद्रके रेल्वे स्टेशनके पासकी मस्जिदकी घटना
एन.सी.पी. महाराष्ट्रने बांदरा रेल्वे स्टेशन (पश्चिम) के पास मस्जिदके सामने हिन्दीभाषीयोंको जानबुज़ कर इकठ्ठा किया था. एनसीपी द्वारा ऐसा करना केन्द्र सरकारके आदेशका अनादर था. इस घटनाका परिणाम महाराष्ट्र आज भी सहन कर रहा है. कोरोना महामारीसे सबसे अधिक संक्रमित महाराष्ट्र है. यदि ऐसा नहीं होता तो भी एनसीपीका व्यवहार, केन्द्रसरकारके आदेशके विरुद्ध था. एन.सी.पी.का ध्येय “पैसा बनाना”, “केन्द्रकी कार्यवाहीको विफल बनाना” और देशमें अस्थिरता पैदा करना था. यह स्वयंसिद्ध है.
पालघर में हिन्दु संतोकी खुले आम हत्या.
पालघर मे दो हिन्दुसंतोकी और उसके वाहन चालककी हत्या की घटना देख लो. महाराष्ट्रकी सशस्त्र पूलिसोंके सामने हिन्दुविरोधी कोमवादीयोंने इन हिन्दुओंको मार मार के हत्या की. उस समय एन.सी.पी.का एक जनप्रतिनिधि भी मौजुद था. किसीने भी उन हिन्दुओंकी जानबुज़कर सहाय नहीं की. उनका परोक्ष ध्येय था हिन्दु संतोंको सबक सिखाना.
महाराष्ट्रकी सरकारने, अफवाह के नाम पर इस घटनाको कमजोर (डाईल्युट) बना दिया. एन.सी.पी. के जनप्रतिनिधिके उपर भी कोई कार्यवाही नहीं की. महाराष्ट्र की सरकार स्वयं ही कोमवादी है यह बात इससे भी सिद्ध होती है. उतना ही नहीं जब कुछ लोगोंने राज्य सरकारकी कार्यवाही पर प्रश्न किये तो मुख्य मंत्रीने धमकी देना शुरु किया. एन.सी.पी. के शिर्ष नेता स्वयं ऐसी कार्यवाही पर मौन रहे. यह बात भी उनके कोमवादी मानसिकताका द्योतक है.
एन.सी.पी. को, बीजेपी के साथ गठबंधनका आमंत्रण देना एक गदारी ही है. रामदास आठवलेको मंत्रीमंडसे पदच्यूत कर दो.
एस.सेना का पूर्णरुपसे कोंगीकरण हो गया है.
कंगना रणौतके साथ दुर्व्यवहार
कोंगीके हर कुलक्षण, एस.सेनाके नेताओंमें विद्यमान है. वे “जैसे थे वादी है, वे भ्रष्ट है, वे कोमवादी है, वे प्रतिशोध वादी है, वे एकाधिकारवादी है, वे पूर्वग्रहसे भरपूर है, वे वंशवादी है, वे अफवाहें फैलाते है, वे जूठ बोलते है, वे गुन्डागर्दीकेआदी है, वे असहिष्णु है… ऐसा एक कुलक्षण बताओ जो कोंगीमें हो और एस.सेना के नेताओंमें न हो. बांद्रा की घटना, पालघरकीघटना, कंगना रणोतके साथका उनका व्यवहार, कंगना रणोतके घरको तोडनेकी घटना… इन सबमें एन.सी.पीका व्यवहार और एस.सेनाका व्यवहार उनकी मानसिकताको पूर्णरुपसे प्रगट कर देता है.
इन सब घटना और व्यवहारके कारण कोंगी , एन.सी.पी. और एस.सेना दफन होनेवाली है.
कोंगी, एन.सी.पी. और एस. सेना इनको अपनी मौत मरने दो.
बीजेपी केन्द्रीय सरकार इन तीनोंके नेताओंको कभी भी गिरफ्तार करके कारावासमें पहोंचा सकती है.
इन बातोंको भूल कर यदि रामदास आठवले, इनके साथ गठबंधनमें आनेका न्योता देता है तो वह आठवले एक गद्दार से कम नहीं है.
रामदास आठवले को पदसे और सदस्यतासे च्यूत करो. नही तो बीजेपीको बडा नुकशान होनेवाला है.
नरेन्द्र मोदीजी, अमित शाहजी और रजनाथ सिंहजी हमारी आपसे चेतावनी है. दुश्मनों पर लॉ एन्ड ओर्डरका डंडा चलाओ.
शिरीष मोहनलाल दवे
चमत्कृतिः
एकेनापि कुवृक्षेण दह्यमानेन वन्हिना,
दह्यते तद् वनं सर्वं, कुपुत्रेण कुलं यथा
एक खराब वृक्षमें स्थित अग्नि, सारे वनको जला कर नष्ट कर देता है,
ऐसे ही एक कुपुत्र (यहाँ पर समज लो एक पक्षका मानसिकतासे भ्रष्ट नेता रामदास आठवले) बीजेपीको नष्ट कर देगा. कोंगी, एन.सी.पी. और एस.सेना को अपने मौत पर मरने दो. उनका मरना सुनिश्चित है.
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Posted in Social Issues, tagged अनुपम खेर, अपमान जनक स्थिति, अयोध्या, उपहास, एस.सेना, कश्मिरी हिन्दु, कोंगीके स्थानिक मुस्लिम नेता, ख्रीस्ती, गाढव, जया भादुरी, थालीमें छेद, दाउदका दांया हाथ, दाउदका नेटवर्क, दाउदका बांया हाथ, दोष, नसरुद्दीन, परिश्रमसे अपेक्षा कहीं अधिक, पापाचारी, बाबरी मस्जिद, बोम्ब ब्लास्ट, बोलीवुड, भरत मुनि, भारतीय जनताकी आशा, महानुभाव, मांकड, मानवता वादी, मीडीया, मुस्लिम, मुस्लिमोंका लगातार प्रतिशोध, मुस्लिमोंकी मानसिकता, रामसेवक, शिवजी, साबरमती एक्सप्रेसको जलाया, हजारोंकी संख्यामें हिन्दुओंका खून, हिन्दु, हिन्दु देव देवी, हिन्दु मुस्लिम वैमनश्य, १००००+ हिन्दु स्त्रीयां, ५०००००+ हिन्दुओंको बेघर on September 26, 2020|
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थालीके छेदके नीचे क्या है?
जया भादुरीने कुछ इस मतलबका कहा कि, बोलीवुड देशकी सेवा करता है, ढेर सारा इन्कम टेक्ष भरता है. आज लोग उनको बदनाम कर रहे है. बोलीवुडने खानेकी थाली दी, तो उन्होंने उस थालीमें ही छेद किया.
क्या वास्तवमें जनता, समग्र बोलीवुडके विरुद्ध है?
सर्व प्रथम हमें बोलीवुडके जो महानुभावों (सेलीब्रीटीज़)ने बोलीवुडके विषयके अतिरिक्त विषयोंमें अपना चंचूपात करना प्रारंभ किया और उनमें भी हिंदुओंकी प्रचीन सभ्यता और अर्वाचीन सहिष्णुताके विरुद्ध अपना मन्तव्य प्रदर्शित करना प्रारंभ किया तबसे आमजनता इन महानुभावोंके विषयमें उनका पुनर्मूल्यांकन करने लगी.
हिन्दी फिलमोंमें हिन्दु पात्रको पापाचारी दिखाना, मुस्लिम और ख्रीस्ती पात्रको सदाचारी और पुण्यात्मा दिखाना एक प्रणाली है..
इसका उत्कृष्ट उदाहरण “पीके” फिलम था. इस फिल्ममे शिवजीके पात्रमें जो अभिनेता था उसका जब वह शिवजी के वस्त्रोंमे था तब ही उसका अपमान किया जाता है.
फिल्म भी नाट्य शास्त्रके नियमके अंतर्गत है
भारतीय संस्कृतिमें नाट्यशास्त्रके रचयिता भरत मुनि थे. नाटक के नियम भरत मुनिने बनाये है. नाट्यकारोंको उन नियमोंका पालन करना अनिवार्य है. उन नियमोंमेंसे एक नियम यह है कि जो अभिनेता ईश्वर/भगवानके पात्रका अभिनय करता है, और वह पात्र जब तक उस वेषमें होता है, तब तक उस पात्रकी गरिमा रखनी होती है. यदी उसके सामने राजा या सम्राट भी आ जाय, तो राजाको /सम्राटको भी उसका आदर करना पडता है. तात्पर्य यह है कि वह पात्र राजाको या सम्राटको नमस्कार नहीं करेगा किन्तु राजा या सम्राट उसको नमस्कार करता है.
पीके फिलममें शिवजीके पात्रको अपमान जनक स्थिति में प्रदर्शित किया गया है.
यह एक घटना हुई.
हिन्दुओंकी कटु आलोचना करना आम बात है.
किन्तु हिन्दु देव–देवीयोंको उपहासके पात्र बनाना बोलीवुडके महानुभावोंके लिये शोभास्पद नहीं है. वास्तवमें ऐसा करना भारतीय संस्कृतिकी अवमानना है. जिस देशकी धरतीका का अन्न और पानीके कारण आप विद्यमान अवस्थामें है उस धरतीकी संस्कृतिका आदर करना आपका कर्तव्य बनता है.
परिस्थिति क्या है?
हिन्दु पर उसका हिन्दु होने के कारणसे ही अत्याचार किया जाय और वह चूप रहेने स्थान पर कोई यदि अत्याचारके विरुद्धमें भी बात करें तो उसका भी विरोध किया जाता है.
कश्मिरी हिन्दुओंकी हजारोंकी संख्यामें हत्याएं हुई, १००००+ कश्मिरी हिन्दु स्त्रीयोंके उपर खुले रेप किया, कश्मिरके सभी ५०००००+ हिन्दुओंको घरसे निकाल दिया और यह भी खुले आम किया, और इसके अतिरिक्त इस आतंकवादीयोंके उपर कुछ भी कार्यवाही नहीं की गई. अनुपम खेर ने जब इस बातकी आलोचना की तो बोलीवुडके महानुभाव नसरुद्दीन शाहने कहा कि “अनुपम खेर तो मानो ऐसी बाते करता है कि मानो उसके उपर आतंकवादी हमला हुआ”
नसरुद्दीन शाह जैसे महानुभाव तककी मानसिकता देखो. उसके हिसाबसे तो जिसके उपर अत्याचार हुआ है, उसको ही अत्याचार पर बोलनेका हक है. “मतलबकी जिस हिन्दु पर अत्याचार हुआ वह ही उसके विरुद्ध बोलें. दुसरा हिन्दु मत बोलें.
यदि तू कश्मिरका है तो क्या हुआ? तेरे उपर तो आतंकवादीयोंने हमला नहीं किया न. फिर तू काहेको बोलता है? बेशरम कहीं का !!”
एक हिन्दु मंदिरके उपर बनी “बाबरी मस्जिदका ध्वंश हुआ” तो पुरी दुनिया हिन्दुओंके उपर तूट पडी,मुख्य मंत्रीको जाना पडा. कई सारे न्यायिक केस हो गये. किन्तु मुस्लिम लोग (पूरानी बाते छोडों) स्वातंत्र्यके पश्चात् कालमें भी हिन्दुओंके कई मंदिर तोडते आये है और १९४७के बाद भी हिन्दुओंके मंदिर तूटते रहे है. बाबरी मस्जिदके ध्वंशके बाद तो काश्मिरमें और बंग्लादेशमें कई मंदीर तूटे जिसका कोई हिसाब नहीं.
“हिन्दुओंको कुछ भी प्रतिशोध तो क्या शाब्दिक विरोध भी नहीं करना चाहिये. उनको तनिक भी शोर करना नहीं चाहिये. अरे भाई कुछ सहिष्णुता आप हिन्दुओंमें भी तो होना चाहिये !! आपको ज्ञात होना चाहिये कि हमारा भारत देश एक सेक्युलर देश है. तो आपका फर्ज़ बनता है कि हम लघुमति भारतमें सुरक्षित रहें. हमें हमारे धर्मका पालन करनेकी पूरी स्वतंत्रता है.
“किन्तु हे लघुमति लोग, आपने कश्मिरके हिन्दुओंके उपर आतंक क्यों फैलाया?” हिन्दु बोला.
मुस्लिमने उत्तर दिया “अरे अय, हिन्दु लोग !! आपको पता नहीं है कि हमने हमारे उपर थोपे जानेवाले राष्ट्रपतिके विरोधमें क्या क्या किया था. आपको हम मुस्लिमोंकी ईच्छाका कुछ खयाल ही नहीं है. तो हम प्रतिशोध तो करेगे ही न. सियासत क्या होती है वह जरा समज़ा करो. मासुम बननेकी कोशिस मत करो. जब एक खास समूहके मानसका खयाल नहीं रक्खा जाता तो प्रतिक्रिया तो आयेगी ही.
“किन्तु निर्दोषोंका खून करना और लाखों लोगोंको घरसे निकाल देना … यह कोई प्रमाणभान है?” हिन्दु बोला.
“अरे भैया हिन्दु !! जब लोग इकट्ठा हो जाते है तो क्या कोई तराजु लेकर बैठता है कि कितना प्रमाण हुआ और कितना नहीं !! क्या बच्चों जैसी बातें करते हो तुम हिन्दु लोग ..!!” मुस्लिम बोला
“लेकिन तुमने पूरे मुंबईमें बोम्ब ब्लास्ट क्यों करवाये?” हिन्दु बोला.
“अय हिन्दु, तुमने जो बाबरी मस्जिद तोडा उसका हमने बदला लिया.
“लेकिन तुमने बोम्ब ब्लास्ट जैसे आतंकी हमले तो कई वर्षों तक किये उसका क्या?” मुस्लिम बोला
“अय हिन्दु, तुम फिर बचकाना बात पर उतर आये. हम मुस्लिम लोग कोई ऐसे वैसे लोग नहीं है. हमारा हर व्यक्ति और हर जुथ अपना अपना बदला लेता है. और लगातार लेता रहेता है. इस लिये तो हमारे कोंगीके स्थानिक मुस्लिम नेताने साबरमती एक्सप्रेसके कोचको आयोजन पूर्वक जला दिया था. क्यों कि उसमें रामसेवक बैठे थे. और वे अयोध्यासे आ रहे थे.
———————————————–
इस प्रकार कोंगीयोंकी कृपासे मुस्लिमोंकी आदत बीगडी.
१९९९में बीजेपीने सरकार बनाई. उसने काम तो अच्छा किया लेकिन कोंगीने अपनी व्युह रचनासे २००४में फिरसे शासन पर कबजा किया.
२००४ से २०१४के शासनकालमें कोंगीने और उसके सांस्कृतिक साथीयोंने खुले आप पैसा बनाया. हिन्दुओंको आतंकवादी सिद्ध करने की भरपुर कोशिस किया. उसकी किताब भी छपवाई.
२०१४के चूनावमें फिरसे बीजेपी सत्ता पर आ गई
————————————————–
हिन्दु – मुस्लिम वैमनष्य के बीज अंकूरित हुए थे उतना ही नही एक वृक्ष तो कोंगीने उगा ही दिया था.
कोंगीने सोचा अपन के पैसे तो अपन के पैसे है. हमने अपने सांस्कृतिक मित्रोंको भी पैसे बनाने की पुरी छूट दे दी थी.
लेकिन बिना शासन पैसे बनाना दुष्कर है.
रा.गा. के सलाहकार तो निकम्मे सिद्ध हुए. दाउद के दायें हाथ को बडा भाई बनाओ.
दाउदके दो हाथ दांया और बांया. वे दोनों भारतमें है. एक मार्केट सम्हालता है. दुसरा दंगे करवाता है. और भारतमें दाउदके सिपाई सपरे अलग.
क्या क्या संवाद हो सकता है दाउदके दांये हाथ और एस सेना के बीच.
“उ.भाऊ” , समय बदलत आहे म्हणून आता तुम्हाला आपली व्युहरचना बदलावी लागेल, तू बी.जे.पी. चा छोटा भाऊ आहे आणि नेहमी तेच राहणार, मोठा भाऊ दीही बनूशकणार नाही , समजलं न तूला.” दांया हथा
[अब समय बदल गया है. अब व्युह रचना बदलना पडेगा. तुम कब तक बीजेपीका छोटा भाई ही रहेगा. बडाभाई बननेवाला नहीं. समज़ा न समज़ा?].
तर तात्या आता मी काय करू ?” एस. सेना. भाउ [बडेभाई, तो मैं अब क्या करुं?]
“भाऊ तुम्ही अस करा पृथक पृथक बी.जे.पी.ची निंदा करा, अता ईलेकशन ची वेळ आली आहे म्हणून बी.जे.पी. सोबत गठ बंधन तोडू नका . सीट मिळविण्यासाठी लाहान लाहान स्टंट करून अ संतोष चा नाटक करू , तूला माझी वुयहरचना कळली का ?” दांया हाथनी वीचारल.
[भैया तुम ऐसा करो. अभी तो चूनाव दूर है. पर तुम छूट–पूट बीजेपी की निंदा करते रहो. गठबंधन तोडना नहीं. ज्यादासे ज्यादा सीट मिले उसके लिये छोटी मोटी स्टंट करते करते असंतोषका नाटक करते रहेना]
“त्याचा नंतर काय…?” एस. सेना भाउ [“उसके बाद क्या?]
“इलेकशनचे परिणाम काय येणार ?” बांया हाथनी विचारलं? [चूनावका परिणाम क्या आयेगा ?]
“माला माहीत नाही.” एस. सेना भाउ [मुज़े पता नहीं]
“तुमचा पक्षाचा आणि आमच्या पक्षाचा संयुक्त सीट जळून बहुमता मिळणारा आहे.” दाउदका बांया हाथ [तुम्हारा पक्ष और मेरा पक्ष दोनोंकी सीटें मिलाके हमे बहुमत मिलेगा]
जर बी जे.पी ला स्वतंत्र बहुमत मिळाले तर…? ” एस. सेना [ लेकिन यदि बीजेपीको बहुमत मिला तो?]
“लक्शात ठेव तस घटणार नाही.” दायां हाथ बोला [ऐसा होनेवाला नहीं है याद रख.]
“बर पण जर सीट बहुमता साठी कमी पडली तर…?” एस. सेना [ओके. यदि , बहुमतके लिये थोडी सीट कम पडी तो?]
“आपल्या कडे कोंगी आहेत , विसरू नको , त्यांच्या सपोट॔ मिळणार आहे लक्षात ठेव.” दाउद का दांया हाथ . [हमारे पास कोंगी है न. इस बातको भूल क्यों जाते हो?]
” तात्या तुम्ही गाढवा सारखं का बोलतात , कोंगी आपल्याला कशाला सपोटॆ करणार, त्यांची सोन्या बघीतलं काय ? मी माकड बनुशकणार नाही.” एस. सेना [बडे भैया, गधे जैसी बात क्यों करते हो. कोंगीकी सोनिया देखा है. मैं क्या बंदर हूँ?]
(मराठी भावानुवाद तोरल बहेनने किया है. आभार)
…………………………………………………………
संवाद ऐसा चलता रहा ……. सरकार बन गई महाराष्ट्रमें …. दाउदके दायां हाथ, बायां हाथ और एस. सेना की अघाडी.
कैसे ?
फिर दाउदके दांया हाथ सेना एवं एस.सेना के बीच क्या हो संवाद हो सकता है?
“देखो एस. सेना भाउ, पैसा बडी चीज़ है. पैसेका प्रवाह हमारे तरफ हमेशा आते रहना आवश्यक है. मध्य प्रदेश गया ही समज़ो. राजस्थान एक दरीद्रतापूर्ण राज्य है. वहांसे कमाया हुआ वहां ही खर्च करना पडेगा. महाराष्ट्र भारतका आर्थिक राजधानी है. इसको प्राप्त करना ही पडेगा. तुमने गत पांच सालमें बीजेपीके शासनमें कितना पैसा बना पाये? … बहूत कम … ऐसा कब तक चलेगा? …………………… अब मेरी व्युह रचना देखो. चूनावके बाद, बीजेपीके समक्ष एक ऐसी शर्त रखना कि यदि बीजेपी उस शर्त को स्विकार ले तो, वह देश में बदनाम ही नहीं “सत्ता लालची” सिद्ध हो जाय … यदि बीजेपी उस शर्तको न माने तो तुम्हे गठ बंधन तोड देना … और बोल देना कि बीजेपी हमारी चूनावके पूर्व हुई हुए समज़ौतेमेंसे मुखर गया है. जूठ बोलनेमें तो तुम माहिर हो ही. कोई हमे जूठ बोलनेवाला कहे उसके पहेले हमें ही उसे जुठ बोलने वाला केह देना.
तुम्हे किसीसे भी डरनेकी जरुरत नहीं है. दाउदका पुरे नेट वर्क के सदस्य हमारे साथ है. लेकिन हमें भी उसके नेटवर्कके सदस्योंको फायदा करवाना पडेगा.
“वह तो हमें पता है, लेकिन उनको फायदा? इसका मतलब?
“मतलब यह कि दाउदके ड्रगका कारोबारका नेट वर्कको और दाउदके पूलीस के साथका नेट वर्कको हमें छूना तक नहीं है. उतना ही नहीं, उसको सहाय भी करना है. तुम ऐसा करो, गृह मत्रालय हमें दे दो. हम सब नीपटा लेंगे … राष्ट्रवादी बननेकी कोशिस नहीं करना …
“ये सब तो हम जानते है. लेकिन … !!!
“देखो … काला धन किसके पास होता है? हम नेताओंके पास होता है वह तो तुम जानते ही हो. बील्डरोंके पास होता है … वह भी तुम जानते हो …. बोलीवुडके महानुभावोंके पार होता है … वह भी तुम जानते हो … सरकारी बडे अफसरोंके पास होता है जिनमें पूलिस तंत्र भी आता है. तो अब दाउद को अपना ड्रग्ज़का माल इन लोगोंको भी तो बेचना है न !!! दाउद जब बोलीवुडमें इन्वेस्ट करता है तो उसको “आय” भी तो होना चाहिये न !!! तो इन महानुभावोंको ड्र्ग्ज़की आदत भी तो डालनी पडेगी न !!! समज़े न समज़े !!!
“दाउदका शराबका नेटवर्क तो चलता ही है …! फिर ये ड्रग्ज़ क्यों …?
“ अबे बच्चु… शराब तो पान–सुपारी है. भोजन कहाँ? और शराबका धंधा तो टपोरी भी कर लेता है.
टपोरीयोंका ड्रग्ज़ के कारोबारमें काम नहीं. ड्रग्ज़का कारोबार ही अलग है. इसमें तो बडे लोगोंका काम है. इस धंधेमें पकडे जानेका डर ही नहीं. क्यों कि हम ऐसे वैसे को प्रवेश देते ही नहीं. नेता–पोलीस–बोलीवुड महानुभाव–मीडीया कर्मी–सप्लायर पार्टीका नेटवर्क और अन्डरवर्ल्डका नेटवर्क … ये सभी सामेल है. कोई भी इधर उधर जाता हुआ नज़र आया तो, वह खुदाका प्यारा ही हो जायेगा. किसीको खुदाका प्यारा करना है तो उसके हजार तरीके है हमारे पास, चाहे वह कोई भी हो. अब तुम लोगोंको इसमें आना पडेगा. ये सब फार्म हाउस बनाये हैं वे किस लिये है?
“लेकिन …
“लेकिन क्या बच्चु. अब तुम नेटवर्कमें आ ही गये हो. इस नेट वर्कमें एक ही रास्ता है. वह है अंदर जानेका रास्ता. बाहर जानेका रास्ता केवल खुदाके पास ही जाता है …
………………………………………………………………….
जनताका सोस्यल मीडीया, सुशांत मर्डर केसमें, क्यूँ इतना इन्टरेस्ट ले रहा है?
क्या जनता एक ही रातमें बोलीवुडके महानुभावोंके विरुद्ध हो गई?
जनता क्यूँ बोलीवुडकी थालीमें अनेक छेद करने लगी है?
जनता को तो मालुम है ही कि, बोलीवुडके अधिकतर महानुभाव लोग, लुट्येन गेंगके सदस्योंकी तरह भारतके हितोके विरुद्ध, भारतकी संस्कृतिके विरुद्ध, भारतके सच्चे इतिहासके विरुद्ध क्यूँ है! इतना ही नहीं वे भारतके दुश्मनोंकी सहायता क्यूँ करते है? इनके अतिरिक्त वे जूठका सहारा लेते है और विदेशमें भी बिकाउ मीडीया द्वारा भारतको और बीजेपी को बदनाम करते है.
तो अब बोलीवुडके साथ साथ विपक्षीय सेनाओंके नेताओंकी, भ्र्ष्ट मीडीया कर्मी और सरकारी अफसरोंकी भी सफाई होनेवाली है. ऐसी आशा भारतीय जनताको दिखाई दे रही है.
अधिकतम नेता महानुभाव लोग “जैसे थे वादी” होते है. कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षोंमें अधिक “जैसे थे वादी” नेता है. यह बात तो स्वयं सिद्ध है, यदि ऐसा नहीं होता तो कोंगीयोंके ६५ वर्षके शासनके पश्चात् भी देश निरक्षर और गरीब न रहेता.
आप, ओमानके सुलतान काबुसको ही देख लो. उसका देश एक मरुभूमि था. भूगर्भ ओईल तो कभीका निकला हुआ था. लेकिन उसके पिता जैसे थे वादी थे. सुल्तान काबुस, १९७0 में सत्ता पर आया. १९९० तक के समयके अंतर्गत उसने ओमानको समृद्धिके शिखर पर ले गया. क्यों कि वह कृतसंकल्प था. “जैसे थे वादी” लोग तो वहाँ पर भी थे. लेकिन उसने नियमका शासन लागु किया.
“जैसे थे वादी” में अधिकतर लोग नीतिमत्तामें मानते नहीं है. यदि सत्ता है तो उसको अपने लिये संपत्ति उत्पन्न करनेका साधन मानते है. अपनेको और अपनेवालोंको नियमसे उपर मानते है. स्वयंने जो कहा वही नियम है. सत्ता है तो जूठ बोलो, अफवाहें फैलाओ. राजकारण खेलो, प्रपंच करो और विरोधियों के प्रति असहिष्णु, पूर्वग्रह और प्रतिशोधक बनो. समाचार माध्यम पर कब्जा कर लो. यदि सत्तामें न हो तो भी अपने सांस्कृत्क साथीयोंसे मिलकर जहाँ ऐसा हो सकता है यह सबकुछ करो.
इस परिस्थितिका कारण?
जब किये हुए परिश्रमकी अपेक्षा कहीं अधिक संपत्ति मिल जाती है तब व्यक्तिमें दोष आनेकी संभावना अधिक हो जाती है. “जैसे थे वादी” होना एक दोष ही है और जनतामें ऐसी मनोवृत्ति फैलानेका शस्त्र भी है.
“अरे भाई, ये मदिरा लेना, ड्रग्ज़ लेना, पार्टीयाँ करना हम मालेतुजार लोगोंका फैशन है. यह सब परापूर्वसे चला आता है. इसको कोई रोक नहीं पाया है. हम आनंद लेते है तो दुसरोंको क्यों कष्ट होना चाहिये? यदि पैसा चलता रहेगा मतलबकी पैसेकी प्रवाहिता (लीक्वीडीटी) रहेगी, तभी तो लोगोंको व्यवसाय मिलेगा! हम तो गरीबी कम करनेमें योगदान दे रहे है.”
वास्तवमें यह एक वितंडावाद है. वास्तवमें ड्र्ग्ज़्का कारोबार केवल और केवल काले-धनसे ही होता है.
जहाँ तक भारतको संबंध है वहाँ तक, दाउद, ड्रग्ज़के कारोबार करनेवाले, ड्रग्ज़ लेनेकी आदतवाले कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथीके अधिकतर नेतागण, बीजेपी-फोबीयासे पीडित मीडीया कर्मी, दाउदके कन्ट्रोलवाले बोलीवुडके महानुभाव और अन्य मालेतुजार ग्राहक लोग, और उन तक पहोंचानेवाले एजन्ट ये सब अवैध कारोबारके हिस्से है. इन सबके कारण देश विरोधी प्रवृतियाँ होती है. क्यों कि आतंकवादीयोंको भी तो पैसा चाहिये. पैसे पेडके उपर नहीं उगते.
शिरीष मोहनलाल दवे
चमत्कृतिः
होने वाला दुल्हा अपने मित्रके साथ कन्या के घर गया. दुल्हेके पिताने मित्रसे बोलके रक्खा था कि दुल्हेके बारेमें थोडा बढा चढाके ही बोलना.
होनेवाले श्वसुर ने पूछा; कितनी पढाई की है ?
दुल्हेके मित्रने बोलाः “पढाई ! अरे वडील, वह तो ग्रेज्युएट है. आई.ए.एस. की परीक्षा देनेवाला है”
होनेवाले श्वसुर ने पूछा; “अब क्या कर रहे हैं?
दुल्हेके मित्रने बोलाः “मेनेजर है, जनाब.
होनेवाले श्वसुर ने पूछा; खेलनेका शौक तो होगा ही.
दुल्हेके मित्रने बोलाः केप्टन है क्रीकेट टीमके
होनेवाले श्वसुर ने पूछा; पार्टी वार्टीका शौक तो होगा ही
दुल्हेके मित्रने बोलाः अरे साब, हमारा यार तो विदेशी शराब की बात तो छोडो, ड्रग्ज़के सिवा कोई हल्की पार्टी करता ही नहीं है. दाउदका करीबी दोस्त शमसद खानकी कंपनीका मेनेजर ही, पार्टीका बंदोबस्त करता है. पोलिस कमीश्नरकी खुदकी निगरानीमें सबकुछ होता है.
इतनेमें दुल्हेने खांसा.
होनेवाले श्वसुरने पूछा क्या जुकाम हुआ है?
पता नहीं कि दुल्हेके मित्रने “कोरोना हुआ है” कहा या नहीं.
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Posted in Social Issues, tagged AaP, affix, Anti-social elements cum drug mafia, Bengali, Bollywood Heroes, Brahmi, British Government, British Missionary, Canada, cases, converted to Christianity, CPIM, Cross border terrorist organizations, Devanagari, directors, Election Commissioner, G R Khairnar, genders, Grammar, Gujarati, Heroine, Hindi, identify, independent judiciary, Indian Administrative Service, Indian origin script, ISI of Pakistan, Italy, Kangana Ranaut, Kathiyavad, Khasi, language, Latin, local people, Meghalaya, Municipal Commissioner, NC, NCP, other developed country, PDP, phonetic, plural, political agenda, political aims, poor mass, prefix, producers, pronunciation, RJD, Roman, S R Rao, S. Sena, Sanskrit, script, sentence, separate entity, separate identity, singular, so called learned people of media and TV channels, SP, Spain, suffix, suppressed, T N Seshan, tense, Their father land, TMC, UK, Urban Naxal, Urdu, USA, verbs, William, words, writers on September 18, 2020|
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URDU IS NOT A LANGUAGE
There is simple question.

How a can language be identified?
Language can be identified by its rules of Grammar
i.e.
What are the cases?
How the words (the words may be a noun, verb, pronoun, proper noun) are changed when they are associated in a case, tense, gender, number (Singular, plural, dual),
What are the rules of prefix and suffix?
How many tenses?
How many cases?
How many types of verbs …,
Is it that a language can be identified and defined by only by a Scripts?
Let us take the last point.
(1) Somebody writes a sentence as “Fi long kumno?”
(2) Somebody writes a sentence as “ফি লোন্গ কুম্নো?”
(3) Somebody write a sentence as “फि लोंग कुम्नो?”
(4) Somebody writes a sentence as “ફિ લોંગ કુમ્નો?”
These are four sentences written in different scripts.
Actually it is a sentence of the Khasi language of Meghalaya State. Its translation in English is “how are you?”
As a part of British Government agenda, Thomas Jones a missionary, introduced the Roman script for Khasi in 1841. William William had first published a Gournal in 1880. For a long time Khasi used to be written in Bengali Script. But under the increase of conversion from Hindu to Christianity, the speed of the usage of Roman Script increased. Minimum 90/95 percent among Khasi-s are Christians.
Now let us come to the point.
If Khasi is written in Bengali Script or Roman Script, does it become a separate language from Khasi?
No. Not at all. Script used, cannot change the language. Because a language can be identified by its grammar. Script does not change the grammar of a language.
What is the benefit/purpose of a changed script of a language?
(1) For pronunciation of the sound of the consonants and vowels.
(2) For adding missing consonants and vowels,
(3) For having a feeling of separate identity
(4) For meeting with political aims.
Sanskrit language was once being written in Brahmi. Sanskrit was also being written in many other scripts.
But ultimately a Devanagari Script was constructed and adopted which is almost a complete script for all sounds. Sanskrit has its complete grammar.
Many languages use Devanagari Script. There are different languages e.g. Hindi, Marathi, Haryanavi, Maravadi. These languages use Devanagari Script. Some 150+ years back Gujarati language had used Devanagari Scripts at least for verse till 1950.
What is common to Indian origin scripts? They are phonetic.
Devanagari Script is used for Hindi language. To incorporate missing sounds, it contains some characters of similar/comparable sound with minor modification. E.g. क- क़, ख-ख़, ग-ग़, ए, ऍ, ज-ज़, ड-ड़, फ-फ़, ओ-ऑ, …
(1) आप कैसे हो ?
(2) آپ کیسی ہیں یہ کیسا ہے؟
The sounds of Hindi and Urdu are the same.
(1) Aap kaise ho
(2) Aap kaise ho
Aapakaa ghar kahaan hai?(Where is your house?), Aap kahaan so jaaoge? (Where would you sleep?)
Sounds of the sentences written in Hindi and Urdu are the same. But the Script would be different.
The Muslims in India adopted the grammar of verbs, pronouns, tenses, suffix, prefix, cases, and tenses as that of Hindi. They used some words of Arabic/Persian, and the scripts nearly Arabic. They call it URDU. It looks funny in real sense.
By the usage of words of some other languages, the language does not get changed.
He sent money through HAWALA, He is after all a GURU, He is a GUNDA? Who had LOOTED India?
In the above sentences there are many Hindi/Gujarati words. English has many words of Latin and Greek. But by the use of those words, the English language does not become a different language.
Similarly in Indian languages we use many English words. Day by day we are increasingly use English words. But Indian language remains as it is.
Look at the reasons for switch over to other Script. The reason 3 and 4 are not always advisable.
What was the British Agenda?
To condemn the local civilization and culture.
To establish their supremacy by lies and frivolous arguments.
To change local history to fit to their agenda, i.e. local people owes nothing special. They were primitive people.
To highlight the differences and dividing aspects of locals, they did this out of proportion. They concentrated on the poor mass for conversion and create a feeling that they were ignored by local elites. The elites had suppressed them to keep them poor.
Ultimately the converted poor mass, started to feel that they are separate, and they should have some separate entity.
The British missionaries under the sweet eye and support of the British government converted Khasi and all those people of border/remote places, into Christianity. Now you can find, the Khasi believes that they are non-Indian. It is by mistake they are born in India. Their father land is UK, Italy, Spain, USA, Canada or any other developed country of West. This is the general feeling that they do not owe anything of India.
This situation made easy to change the Script of Khasi language. Actually the Bengali Script was significantly a complete and advantageous script, but because of the feeling of “separate entity”, the Khasi people adopted a mismatched, irrelevant and defective script.
Similar is a case of Muslims.
When Muslim acquired a significant portion of India and they felt that they need the help of locals they adopted Hindi language, but they adopted the same with Arabic Script. Hindus also had learnt Urdu dialect but many of them adopted Devanagari Script.
There can be no objection for Arabic Urdu Script. But Government should not recognize the Arabic/Persian Script for Urdu.
Why?
Look at Kathiyavadi people. They use lot of Kathiyavadi words which are quite different from most of the Gujarati words. If the pronunciations and words are taken into account, they are quite different to Gujarati. The distance between Kathiyavadi and Gujarati is greater than the distance between Urdu and Hindi. Despite of this Kathiyavadi is not a separate language. Kathiyavadis have never demanded a separate Script. Katchi language too has the same Gujarati Script. Really it is a separate language. But Katchi can never think of a separate script.
Congi party has pampered Muslims. Urdu which is not a language at all, but Congis have recognized it, a separate language.
Why the Nationalists should object?
We must know what is the word “Lutyen Gangs”?
Have you watched the video where Arnav Goswami of Bharat Republic TV, had taken the interview of the retired Chief Justice of Supreme Court Mr. Tarun Goggoi? If anyone does not believe in exposed truth by the former CJ, then nobody can help him/her.
Mr. Tarun Goggoi had said that till you (Government) cannot eliminate the influence of the Lutyen Gang, you cannot expect independence judiciary. Anybody want details of the interview, he/she can watch the interview online before it is removed.
How is the matter of Urdu, relevant to the influence of the Lutyen Gang/s.
Who was T N Seshan? Who was S R Rao? Who was G R Khairnar?
All these three were from the Indian Administrative Service. They had made revolutionary changes in their field. Seshan had made revolution in application of laws in election. Rao had converted a dirtiest city of India into a Cleanest City of India viz. Surat. G R Khairnar had attacked on illegal constructions. Latter two IAS officers were not popular among the Congi gangs. But they were extremely popular among mass. Both of these officers were troubled by frequent transfers. The Congi Gang could not trouble Seshan because he was the Chief of Election Commission and no option was available with the gang to transfer him once he had been posted. Thereafter Congis introduced the change that Commissioner cannot take independent decision. The Chief Commissioner has to take majority decision with other two Election Commissioners.
Most of the IAS officers are inefficient if you view their performance. It is not only IAS officers who are inefficient but most of the Officers of the other Indian Services e.g. Postal, Police, Telecommunication, Foreign Affairs are also inefficient.
What qualities they are supposed to possess, they are lacking in them. We can write a separate blog on it.
We hear many times, the Government Officers indirectly use to complain that they have to work under political pressure. This is totally wrong. The officers of Indian Services are well protected by law. No politician can touch an efficient officer of Indian Services. But unfortunately officers of Indian Services are not efficient, and their level is such that they surrender to politicians. Much more unfortunate situation is that they carry out joint venture in fraud and mal-practices with the politicians. Because politicians only can overlook their inefficiency and defects.
Now look at the case of Kangana Ranaut. She is a heroine of Bollywood. Kangana Ranaut has revolted against the vested interest gang of Bollywood on the basis of the case of controversial murder of Sushant Singh. How suddenly the MMC (Mumbai Municipal Corporation) can act with discrimination in demolishing the house of Kangana Ranaut? The inherent reason is simple, that Kangana Ranaut has tried to expose drug mafia gang of Bollywood.
The head of the MMC has taken a big risk in demolishing the house of Kangana Ranaut with discrimination. It is an open secret that the MMC head, has worked under the influence of Drug Mafia Gang of Bollywood, and or, under the influence of S. Sena lead MMC and the State Government. Now the matter has gone to High Court. If the HC could not identify of its own the said discrimination, the matter may go to the Supreme Court.
Now let us come to the main point.
Though URDU is not a language under the norms required for recognizing a language, and despite of this, if URDU is allowed in the competitive examinations of Indian Services, what would be the ultimate outcome?
Look at this;
Indian judiciary is influenced by Lutyen Gang,
Lutyen Gang is deadly against Narendra Modi and BJP party.
Lutyen Gang is composed of Congi party, Congi’s culturally allied parties (e.g. S. Sena, NCP, RJD, SP, TMC, CPIM, NC, PDP, AaP), ISI of Pakistan, Urban Naxal, Cross border terrorist organizations, several paid columnists (who generate lies, spread lies, hide facts and twist matters), so called learned people of media and TV channels, Anti-social elements cum drug mafia and the Bollywood Heroes, Heroine, producers, writers, directors. All these when work jointly, what they cannot do? Yes. They can do everything. They can kill anybody, they can influence police, and they can influence judiciary. If anybody howsoever great may be, goes against their business, they first try to bribe, then threat and then, can kill the person. Then they bribe police, doctors, witness, media houses to suppress the news, politicians … They can make the law ineffective. These gangs jointly called Lutyen Gang composed of many other gangs.
These so called liberal, so-called peaceful, so called tolerant, so called democratic, so-called secular, so-called humanist, are all having the opposite characteristics. They are most vindictive, most anarchist, most intolerant, most undemocratic and fascist, most communal, most inhuman and ready to break India. There are lot of events which exposes them to suit their property. Ask me separately.
Who will opt for URDU language in Indian Services examinations?
It would be Muslims.
Who will examine their answers?
It would be Muslims only.
Who are most communal community in India?
It is Muslim community.
Now think of the Non-BJP ruled state.
If J&K can killed 1000+ Hindus, if J &K can 10000+ rape Hindu women, if J & K can desert 500000+ Hindus from their houses, that too announcing openly, through loud speakers, what would be the fate of the people of other state where non-BJP governments are ruling with a plus point of the Indian Services Muslim officers.
Recall. Gulam Nabi Azad was the Home Minister at the Center and PDP Congi ruling in J&K, created anarchy without any fear in 1989-90. That anarchy remained till Article 370/35A in force. We cannot expect majority Muslims to be peaceful and law abiding people, till they do not come out in large scale to protect Hindus human rights.
BJP Government has to see that the every state has the same yard stick to enforce equally the rule of law. If any state ministry acts with discrimination, soon that state ministry should be dismissed and the political party together with its members should be disqualified for 6 years.
If Muslims want to promote URDU with its own script, they may learn it just like Arabic. Government will not recognize URDU and its Script. Muslims or Hindus whosoever want to write URDU, they may right in Devanagari Script. URDU is Hindi only. The script must be Devanagari.
Shirish Mohanlal Dave
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Posted in Social Issues, tagged अर्णव गोस्वामी, असामाजिक आचरण, आतंकवादी संगठन, आमजनता लक्षी होना, उद्धव ठाकरे, उन्मत्त, उर्दुके स्थानपर संस्कृत, एन.सी.पी., एफ.आई.आर., एस.सेना, कालाधनका उद्भवस्थान, कुत्तेकी प्रकृति, कुत्तेको राजा कर दो, कोंगी सेना, कोंगीके महानुभाव, कोंगीगेंगके सदस्य बननेकी क्षमता, गटर सेना, गिरफ्तार, जमानत, जूता खायेगा, डी-गेंग, दाउद, दुश्मनकी स्त्री, देशप्रेमी होना, निम्नकक्षाकी व्यक्ति, नीतिमान होना, नेट-वर्क, पाकिस्तानसे ड्रगका कारोबार, पालघरमें संतोकी हत्या, पूलिसके बडे अफसर, प्राचीन राज्यव्यवस्था, फिलमी दुनियाके महानुभाव, मालेतुजारके फरजंद, मीडीया कर्मी, शांतिप्रेमी होना, शिव सेना, शिवाजी महाराज, शेरीका गुन्डा, श्वा यदि क्रियते राजा, संजय राउत, सरकारके बडे अफसर, सहिष्णु होना, सुबेदारको डांटा, सुवेज़ सेना, सुशिक्षित पुरुष, सैनिक, सोनिया सेना, स्त्री दाक्षिण्य, हप्ता वसुली, हिन्दुराष्ट्र on September 13, 2020|
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एस. सेनाका कोंगीकरण और कट्टरतावादी मुस्लिमीकरण?

हाँ जी, एस.सेना का अर्थ है ए.एसएस. सेना (ASS SENA) या सुएज़ सेना (गटर सेना) या सोनिया सेना. हाँ जी, यह सेना कभी शिवसेना नहीं हो सकती. जिस सेनाका सेना पति एक महिलाके उपर पूर्वग्रह ही नहीं लेकिन अहंकारकी भावनासे उन्मत्त हो जाय तो वह कभी शिवाजीकी सेनाका सैनिक हो ही नहीं सकता. अहंकार उसका ही हो सकता है जिसने कुछ अच्छा काम किया हो या योगदान दिया हो.
शिवाजी कैसे थे?
शिवाजी एक महाराजा थे. उन्होंने हिन्दुराष्ट्रका स्वप्न देखा था. उनका मंत्रीमंडळ हमारे देशके प्राचीन राज्यव्यवस्थाके अनुसार सुग्रथित था. शिवाजीने उर्दुके स्थान पर संस्कृतको रक्खा था. शिवाजी महाराज भारतीय संस्कृतिके अनुसार स्त्री दाक्षिण्यता वाले संस्कारवाले थे. चाहे वह स्त्री दुश्मनकी ही क्यों न हो.
शिवाजीके एक सुबेदारने जब एक हारे हुए और भागे हुए दुश्मनकी स्त्री को शिवाजीके समक्ष प्रस्तुत की शिवाजीने उस सुबेदारको डांटा और उस स्त्रीकी क्षमा याचनाकी. उसने यह भी कहा कि यदि मेरी माँ तुम जैसी सौंदर्यवान होती तो मै भी एक सौंदर्यवान पुरुष होता.
ऐसे थे शिवाजी महाराज.
आज तो संजय राउत और उद्धव ठाकरे जैसा ऐरा गैरा शिवाजीका नाम लेता है.
“अरे, यदि तूने मेरे सामने उंगली उठाई तो मैं तुम्हारी उंग्ली तोड दूंगा,
“अरे यदि तूने मेरे सामने आंख उठाई तो मैं तेरी आंख फोड दूंगा,
“तू आ के तो देख, (मेरी गलीमें या मेरी मुंबईमें या मेरे महाराष्ट्रमें) मैं तेरी कमर तोड दूंगा, (बल्हैयाँ मरोड दूंगा),
“मैं कौन हूँ तुज़े मालुम है? मैं शिवाजी महाराजके महाराष्ट्रका फरजंद हूँ … तूने मेरी सरकारका अपमान किया … ? तू ने मेरे पूलिसतंत्रका अपमान किया … ? यह सब हमारे शिवाजी महाराजका ही अपमान हुआ … शिवाजी महाराजके महाराष्ट्रका अपमान हुआ. अब मैं तुम्हे नहीं छोडुंगा.
ऐसी भाषा न तो कोई सुशिक्षित पुरुषकी हो सकती है, न तो ऐसी भाषा शिवाजी महाराजके सैनिककी हो सकती है.
हाँ जी, यह भाषा सडक छाप गुन्डेकी अवश्य हो सकती है. उद्धव ठकरे और संजय निरुपम दोनोंने यह सिद्ध कर दिया कि उनकी कक्षा सडकछाप गुन्डेकी है.
निम्नकक्षाके व्यक्तिको यदि आप कितना ही उच्चस्थान पर बैठा दो वह अपना संस्कार नहीं छोड सकता.
संस्कृतमें एक श्लोक है
श्वा यदि क्रियते राजा, अपि नात्ति उपानहम्
कुत्तेको यदि राजा कर दो तो क्या वह जूता नहीं खायेगा?
अर्थात् जूते खाजाना कुत्तेकी तो प्रकृति है, कुत्तेको राजा बना दो तो भी वह जूता खाना छोडेगा नहीं.
एस.सेना के उद्धव और संजयका यही हाल है. पूर्व प्रकाशित ब्लोगमें हमने देखा ही है कि एस.सेनाके लोग कैसे हप्ता वसुली करते है.
दाउद भी वैसे तो सडकका गुन्डा ही था.
ऐसी हवा है कि एस.सेनाके फरजंद या और नेता ड्रगके मामलेमें फंसे है. इसलिये ये एस.सेनाके नेता बोखला गये है. उनका असामाजिक आचरणकी मानसिकता उजागर हो के जनताके सामने आ गयी है.
हो सकता है कि शरदने इन नेताओंको आगे किया हो. जी हाँ. शरद यह सब कर सकता है.
ड्रग्ज़के कारोबारका नेट वर्क
ड्रग्ज़के कारोबारका नेट वर्क अति विस्तृत है. यह पाकिस्तानसे भी होता है.
आतंकवादी संगठनोंको जिवित और सक्रिय रहेनेके लिये पैसे तो चाहिये ही.
ओवर ईन्वोईन्सींगके व्यापरसे जो धन प्राप्त होता है, हवालासे इन संगठनोंको पैसे मिलते है. किन्तु आतंकवादी संगठनोंको तो जितने पैसे मिले वे कम ही है. मालेतुजार लोगोंके फरजंदोंकी आदतें बिगाडके उनको ड्रग्ज़सेवनके आदी कर देतें है. ड्रग्ज़का कारोबार केवल ब्लॅक मनीसे ही हो सकता है. काले धनका उद्भवस्थान, अचलसंपत्तिकी खरीद-बीक्रीमें, होता है, ड्र्ग्ज़के व्यापारमें होता है. ड्रग्ज़को वहीं खरीद सकता है जिसके पास काला धन है. कालाधनके संचयमें, कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी जिनमें उनके सहायक मीडीयाकर्मी , पूलिसके बडे अफसर, सरकारके बडे अफसर, फिलमी दुनियाके महानुभाव होते है. इनका एक नेटवर्क होता है.
एस.सेनाका गठबंधन प्रत्यक्ष रुपसे इस शठविद्यामें प्रवीण लुट्येन गेंगसे हुआ तो उनको भी अपनी चारित्र्यिक योग्यता सिद्ध करनी पडेगी ही न?
नया मुसलमानः
आम मुसलमान दिनमें पांच बार नमाज़ पढता है. जब एक व्यक्ति नया नया मुसलमान बनता है तब वह सात बार नमाज़ पढता है.
अब यह एस.सेना भी कोंगीयोंकी सांस्कृत्क गेंगमें आ गयी तो उसको अपनी योग्यता तो सिद्ध करना ही पडेगा.
सर्व प्रथम तो पालघरमें हिन्दु संतोंका पूलिस और एन.सी.पी. के नेताकी उपस्थितिमें ही तथा कथित मोबलींचींग द्वारा हत्या करवाना. और इसमें जिन्होंने जांचके उपर प्रश्न उठाये उनको स्वयं मुख्यमंत्री द्वारा धमकी देना. इस प्रकार एस.सेनाने कोंगी गेंगके सदस्य बननेकी अपनी क्षमता सिद्ध कर दी. अर्णव गोस्वामीके उपर एफ.आई.आर. लगाके पूलीस स्टेशनमें १२ घंटा रक्खा क्यों कि उसने कोंगीके प्रमुखको उसके पैतृक नामसे संबोधन किया.
अर्णव गोस्वामीको मारडालने लिये गुन्डे भेजे गये और अर्णव गोस्वामीने उनके उपर केस दर्ज किया. तो गुन्डोंको जमानत मिल गयी. लेकिन जो मीडीया कर्मी उद्धवके फार्म हाउस पर गये और उसने वॉचमेनको पूछा कि यह फार्म हाउस किसका है तो इन मीडीयाकर्मीयोंको गिरफ्तार करवा दिया और इनको जमानत नहीं मिली.
तो आप समज़ गये कि यह सब कैसे होता है
इस एस. सेनाने अपनी योग्यता सिद्ध करनेके लिये फर्जी धर्म-निरपेक्षता, जूठ बोलनेका नैपूण्यम्, आतंकवादका समर्थन, असामाजिक तत्त्वोंके महानुभावोंसे मेलमिलाप, और उनको केवल समर्थन ही नहीं लेकिन सहायताके लिये तत्परता, और फिल्मी कलाकारोंसे मिलना जुलना, पार्टीयां करना … ये सब तो करना पडेगा ही न.
एस.सेनाको ऐसा करनेमें कोई कष्ट नहीं है. क्यों कि वे तो ऐसा करनेके लिये कई वर्षोंसे आतुर थे. हप्ताबाजी तो उनके संस्कारमें था. किन्तु ये सब छोटे पैमाने पर था. अब जब कोंगी-सेनामें मिल गये है तो अब कुछ बडा करना आवश्यक है.
देशप्रेमी होना, नीतिमान होना, आमजनता लक्षी होना, सहिष्णु होना, शांतिप्रेमी होना … ये सब बकवास है. ये सब तो फरेबीसे भी सिद्ध कर सकते है.
एस.सेनाने सोचा;
“यह साला बीजेपीके साथमें, खुले आम कुछ भी नहीं हो सकता है, ये लुट्येन गेंग हमारे पीछे ही पड जाती है. यदि हम कोंगी गेंगमें मिल जावे तो अच्छा होगा. कोंगी गेंगमें हम सुरक्षित है, और चाहे वह का सकते है. सिर्फ हमें यह अहेसास दिलाना होता है कि वे हमें जो कुछ भी कहें, उन सबको करनेके लिये हम सक्षम है.
“कोंगीयोंके पास क्या नहीं है? टूकडे टूकडे गेंग है, अर्बन नक्षल है, समान रुपवाले सांस्कृतिक पक्षके महानुभावमंडल है. हमें और क्या चाहिये? यदि मर जायेंगे तो ये ईशा मसिहा हमारा सब पाप अपने सर पर लेनेको तयार ही है. नहिं तो हमारे मुस्लिम साथीयोंकी कृपासे, हम मुस्लिम बन जायेंगे. इन मुस्लिमोंकी कृपासे जन्नतमें सोलह सोलह हुरें मिलेगी. और मरनेसे पहेले तो इस मृत्युलोकमें, जी ते जी, हुरें ही हुरें है. चाहे तो फार्म हाउसमें में समुह मज़ा कर लो या चाहे तो सप्ततारक होटेलमें अकेले उनके साथ मजा कर लो. कौन रोकने वाला है! यदि कोई मीडीयावाला आया तो, आनेवाले को जेल ही भेज देंगे और उसकी चेनलको ताला लगा देंगे. यदि कोई न्यायाधीशने चापलुसी की तो …? शीट! यह कोई बात है!!
“अरे भाई देखा नहीं कि सर्वोच्च अदालतके एक निवृत्त न्यायाधीशने क्या कहा था? यदि निष्पक्ष न्याय दिलाना है तो लुट्येन गेंगको खतम करना पडेगा.
“इस गेंगको खतम करनेवाला अभी तक अवतरित नहीं हुआ है.
एस. सेना आगे बोली “हमें पहेले अक्ल क्यूँ नहीं आयी?…”
शिरीष मोहनलाल दवे
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Posted in Uncategorized on September 5, 2020|
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सत्यको कितना ही गहेरा गाड दो, वह कभी तो बाहर आनेवाला ही है.
शिव सेना जो अपनेको राष्ट्रवादी समज़ती है यह एक फरेब है.
कंगना रणोतने शिवसेनाको नंगा कर दिया,
हाँ जी, कंगना रणोतने शिवसेनाको उसके संजय राउतके साथ नंगा कर दिया.
फील्मी हिरो सुशांत सिंह की मृत्युकी घटना आत्महत्या थी. ऐसा अत्यंत विवादास्पद अनुमान लगाये शिवसेनाकी मुंबईकी पूलीस अपनी कार्यवाही कर रही थी.
संजय राउतसे बिना बोले रहा नहीं गया. अभी तो जाँचका आरंभ ही हुआ था, कि संजयभाउने बोलना शुरु कर दिया कि सुशांत सिंहने आत्महत्या की…
प्रारंभसे ही पूलिसका व्यवहार शंकास्पद दिखाई देता था.
मुंबई पूलिसकी कार्यवाहीको देखते हुए कुछ मीडीयावालोंने मुंबई पुलिसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाये.
बोलीवुडमेंसे एकमात्र ही विरांगना निकली.
इस विरांगनाका नाम है कंगना रणोत. हाँ जी, उसका नाम है कंगना रणोत. बोलीवुडमें वह एक मात्र ही विरांगना है
कंगना रणोतने खुलकर पूलिसकी कार्यवाहीकी प्रखर निंदा की. सचमुच बोलीवुडमें कमसेकम एक तो विरांगना है जिसने न तो शासक नेताओंका डर रक्खा, न तो बोलीवुडकी डी-गेंगका डर क्खा, न तो मुंबईके माफियाओंका डर रक्खा.
धन्य है कंगनाकी माताको जिसने ऐसी विरांगनाको जन्म दिया. धन्य है हिमाचल प्रदेशको कि जिसने अपना मानदंड सिद्ध किया, धन्य है कंगना रणोतको कि वह बिना डरे खुलकर पूलिस और बोलीवुड गेंगके सामने आयी. धन्य है धन्य, उन गीने चूने समाचार माध्यमोंको (भारत रीपब्लीक टीवी, केपीटल टीवी, ईन्डिया स्पीक्स टीवी, न्युज़ टीवी, सुदर्शन टीवी, टाईम्स नाउ टीवी …. आदि) कि, जिन्होंने कंगना रणोतको खुलकर अनुमोदन दिया. धन्य है भारतमाता को भी, कि वह आज भी राणी लक्ष्मिबाई को जन्म दे रही है.
संजय राउत ?
अरे भाई संजय, तुम कौन हो?
तुम क्या बोलीवुडका हीरो हो?, तुम क्या बोलीवुडका प्रोड्युसर हो? तुम क्या बोलीवुडका केमेरामेन हो? तुम क्या बोलीवुडका कोरीयोग्राफर हो? तुम क्या बोलीवुडमें माल सप्लाय करनेवाला हो?
संजय राउत उवाच; “मैं एक शिव सैनिक हूँ. मैं हिन्दु संस्कृतिका रक्षक और राष्ट्रवादी हूँ… बंबई मेरे बापका है…
जनता बोली “ अबे चक्कू, तुझे कौन कहेगा राष्ट्रवादी और हिन्दु संस्कृतिका रक्षक कहेगा? क्या तुमने मुंबईमेंसे बांग्लादेशी घुसपैठोंको निकाला? क्या तुमने बोलीवुडमें चल रही माफिया गेंगको पहेचाना भी है?, क्या तुमने हिन्दुओंके पूज्य देव देवीयोंके अपमान करनेवालोंकी निंदा तक की? क्या तुमने कालेकरतूंतोके विरुद्ध आवाज़ तक उठाई?, क्या तुमने कभी हिन्दुओंको आतंकवादी सिद्ध करनेका वालोंके विरुद्ध एक शब्द भी बोला? अरे तुम और तुम्हारा पक्ष तो ढाई कट्टरवादी ईस्लामी है. हिन्दु साधुओं की खुले आम हत्या होती है और वह भी तुम्हारी हथियारधारी पूलिसोंके सामने, लेकिन तूम्हारे कानोंमे जू तक नहीं रेंगती. और नतीजा यह है कि इतनी बडी हत्या एक साज़िसके बिना नहीं हो सकती तो भी तुम इस घटना अफवाहके कारण बता देते हो.
अरे भाई, यदि तुम्हारा दिमाग कमजोर है तो तुम्हे कुछ बोलने की ही क्या आवश्यकता है. सी.बी.आई. को जांच करने दो. तुम्हे क्या फर्क पडता है? सारी दुनिया जानती है कि तुम्हारे आकाएं कौन है. और तुम किसके इशारे पे बोल रहे हो और किसको बचाना चाहते हो. समज़े, न समज़े?
अय शिवसेनाके नेता तुम तो बेईमान मुस्लिमोंसे भी अधिक भ्रष्ट हो.
कंगना रणोतने जो कहा उसका पहेले उत्तर तो दो?
कंगनाने तो जो कहा उसके लिये आज भी डटी हुई है. उसने जो कुछ भी कहा वही बात, पूलिस और न्यायालयके समक्ष यानी सबके सामने, कहेनेके लिये सज्ज है. तुम तो शासक हो, तुमने तो फरेबी अनुमान लगाकर तुम्हारी सरकार को ही और नीचा दिखा रहे हो.
तुम्हारे पास ऐसी संस्कृति ही नहीं है कि तुम एक महिलाके साथ आदरसे पेश आओ. शिवाजी तो तुम जैसे नहीं थे? लेकिन तुम तो महाराष्ट्रकी जनताके नाम पर, कंगना रणोतको, जो एक राष्ट्रवादी महिला है, और महिला भी ऐसी, जो देशके लिये मर मीटने पर तयार है, उस महिलाको धमकी दे रहे हो. एक महिलाको धमकी देते हुए तुम्हे शर्म नहीं आती?
कंगना रणोतने क्या कह दिया? यही तो कहा कि मुंबईमें हिन्दु साधुतक सुरक्षित नहीं है. यही न? तो मुंबई, पी.ओ.के. तो हुआ!!. इसमें क्या गलत है?
पी.ओ.के. में तुम, तुम्हारे भाई या बहेनको भेजो. तुम्हे पता चलेगा कि पीओकेमें हिन्दु सुरक्षित है या नहीं. अरे तुम लोग तो कारावास से भी डरते हो. तुम क्या हिन्दुओंको सुरक्षा दोगे?
मुंबईको देशका आर्थिक राजधानी बनानेमें शिवसेना का क्या योगदान है? कुछ नहीं. शिवसेना तो डी.गेंगकी बी टीम ही तो है. उससे भी बदतर है.
मुंबईको किसने बसाया?
बंबईको राष्ट्रवादी कच्छके, काठीयावाडके और गुजरातके हिन्दु, वोराजी, खोजाजी, पारसीयोंने, बसाया है. एक बात अवश्य है कि कोंकणीयोंका भी साथ था. ये सभी लोग अपनेको भारतवासी मानते है. तुम्हारी तरह संकुचित मानसिकता वाले नहीं है. हिन्दीभाषीयोंका भी मुंबईके विकासमें बडा योगदान है. मुंबई हिन्दुस्तानका एक अविभाज्य अंग है. मुंबई तुम जैसे संकुचित मानसिकता वालोंका नहीं है. तुम लोग तो बदनाम हो ही चूके हो. लेकिन शिवाजी, टीळक, गोपालकृष्ण, और महाराष्ट्रकी आम जनता जो राष्ट्रवादी है उनको क्षेत्रवादी कहे के बदनाम क्यों कर रहे हो?
अय संजय, तुमने तो कई बार बीजेपी की और उसके कार्योंकी बिना सबूत ही आलोचना की है, और उसके विरुद्ध प्रपंच भी किया … यहां तक कि सत्ता पाने के लिये उसका विश्वासघात तक किया.
हम तो पहेसे ही कहेते आये है ही कि यह शिवसेनाका, शिवाजीसे और भारतराष्ट्रसे कोई लेना देना नही है.
अय संजय, छोडो इन बातोंको … सीबीआई द्वारा जांच हो, उसका विरोध करने कि क्या आवश्यकता थी? तुमको सुशांत खूनकेसमें अपनी नोंक घुसाने की क्या आवश्यकता थी? क्या तुम हर खून-केसमें अपनी नोंक घुसाते हो? तुम बंबईकी पूलिसको स्कॉटलेन्ड यार्ड कैसे बता सकते हो, जो महिनों तक अपराध हुआ है या नहीं, यह नहीं शोध पायी?
तुम्हें यदि पी.ओ.के. अच्छा लगता है तो अपने सभी शिव सैनिकोंके साथ चले जाओ.
तुम चाहे सात दफा नमाज़ पढो. तुम लोगोंका तुम्हारे आकाओंके साथ कारावास जाना सुनिश्चित है.
शिवसेना कोंगीका फरजंद
वास्तवमें शिवसेना कोंगीका ही तो फरजंद है. और उसके हर लक्षण कोंगीके ही लक्षण है. दंभ करना, जूठ बोलना, निराधार बातें करना, वंशवाद करना, कोमवादको उकसाना, देशको भाषा और क्षेत्रके आधार पर विभाजित करना, गुन्डा गर्दी करना, खंडणी वसुल करना … ये सब लक्षण कोंगी, शिवसेना और एन.सी.पी. के है.
जब भी देशके स्वाभिमान पर प्रहार हुआ, तब यह शिवसेना, प्रहार करनेवालों के साथमें रही है.
शिवसेनाने देशके लिये क्या किया?
इस प्रश्नका उत्तर अति सरल है. उसने देशकी धरोहरकी सुरक्षाके लिये कुछ भी किया नहीं है.
शिवसेना न तो शिवाजीकी हिन्दुत्वकी रक्षक है न तो देशको एकजूट रखनेमें उसने कोई योगदान दिया है.
शिवसेना कैसे बनी?
साठके दशकमें मुंबईमें दत्तासावंतकी युनीयनबाजी चलती थी. और दत्ता कोंगीके बसमें नहीं था. तो कोंगीने सोचा कि मराठीलोगोंको प्रांतवादके नाम पर उकसाया जाय. लेकिन केवल गरीब मराठी लोगोंको उकसानेसे काम नहीं चलेगा. यह तो एक बहाना है. केन्द्रीय और प्राईवेट सेक्टरकी नोकरीयोंमेंसे भी दक्षिण भारटियोंको हटाना पडेगा. वैसे तो दत्ता सावंत मराठी था, लेकिन वह साम्यवादी था. इस लिये उनके लिये “मराठी मानुस” शब्दका खास महत्व नहीं था. तो कोंगीको लगा कि “तो अब क्या किया जाय?
कोंगीयोंने सोचा कि मुंबईकी जनताको भाषावाद के नाम विभाजित किया जाय और अपना उल्लु सीधा किया जाय.
“जय शिवाजी महाराज”
हाँ जी,
मराठा नेता शिवाजीने, मुगलोंको ठीक ठीक परेशान किया था. वीर शिवाजीकी प्रसंशामें कई काव्य गुजरातीमें भी है. मुंबईके औद्योगिक क्षेत्रके गुजराती भी साम्यवादीयोंकी युनीयनबाजीसे परेशान थे.
इस प्रकार शिवसेना महाराष्ट्रमें अवतरित हुई.
कोंगीकी ईंदिरा गांधीने युनीयन बाजीको उकसाया. और वह भी १४ प्रतिष्ठित बेंकोका राष्ट्रीयक्रण करके बेंकोके युनीयनोंको अत्यधिक बढावा दिया.
इन्दिरा गांधीको तो अपनी सत्तासे मतलब था.
इन्दिरा गांधी, ज्ञान और व्यवस्थाके क्षेत्रमें औसतसे निम्न स्तर वाली थी. हाँ उसमें सियासत भरपूर मात्रामें थी.
इन्दिराका जनतंत्रके नीति-नियमोंसे कोई वास्ता नहीं था. उतना ही नहीं, देशकी धरोहरसे भी कोई वास्ता नहीं था. इन्दिराके शासनसे देशका हर क्षेत्रमें विनीपात हुआ.
इन्दिराकी आपखुद नीतिसे उसके विरोधमें जन-आंदोलन हुए. इस जन अंदोलनमें शिवसेनाका कुछ भी योगदान नहीं था.
भला होगा जयप्रकाश नारायणका, भला होगा आर.एस.एस.का, भला होगा उस समयके विपक्षोंका
कि, उन्होंने एक साथ मिलकर इन्दिराकी आपखुदीका जयप्रकाश नारायण की नेतागीरीमें जन-आंदोलन चलाया. और इन्दिराकी प्रच्छन्न मानसिकताको नग्न किया.
कैसे किया?
इन्दिरा गांधीने देश पर आपातकाल ठोक दिया और उसके विरोध करनेवाले नेताओ समेत देशकी जनमान्य व्यक्तियोंको भी अनियतकालके लिये बिना कोई सबूत, कारावासमें डाल दिया.
यह आपातकाल देशकी जनता पर ही नहीं लेकिन देशकी जनतंत्रीय व्यवस्था पर भी एक आघात था.
और बातें छोडो, पर भारतमें उस समयके विपक्षके कारण और उस समय के विद्यमान स्वातंत्र्य सेनानीयोंके कारण, भारतका जनतंत्र विश्वमें विख्यात था. भारतके सभी पडौशी देश जब अपने लश्करी शासकोंके एकाधिकारवादसे ग्रस्त थे, तब केवल भारतमें ही जनतंत्रकी मशाल जलती थी. इन्दिराने इस मशालको बुझा दिया.
तब यह शिवसेना कहाँ थी?
यह शिवसेनाके सदस्योंको तो छोडो, इनके शिर्ष नेता तक, शिवाजीकी सेनाके एक सैनिक के नामके काबिल नहीं निकले.
जब देशको अत्यंत आवश्य्कता थी कि शिवसेना खुल कर, इन्दिराके विरोधके लिये बाहर आयें, तब इस शिवसेनाने कायरोंकी तरह इन्दिराकी शरणागति की और इन्दिराका “पेरी पन्ना” (पाय लागण) किया. यही था शिवसेनाका असली स्वरुप. यदि यह सेना वास्तवमें शिवाजीकी सेना होती तो वह इन्दिराके पैर न छूती.
यह एक ही उदाहरण नहीं है कि इस शिवसेनाने कायरता दिखाई हो.
जब रामज्न्मभूमि पर खडी बाबरी मस्जिदका ध्वंश किया और राम मंदिर बनानेके बात चली तो इस शिवसेनाके शिर्षनेताने कहा कि राममंदिर की भूमि पर एक होस्पीटल बनाओ. मतलबकी जिसका शिर्ष नेता ही डरपोक और कायर हो उसके सैनिकोंका तो क्या कहेना ही!!
शिव सेना कोई नीतिमत्तावाली सेना है ही नहीं. वह डी-गेंगकी बी टीम है.
आपने क्या एक ट्रक लिया है?
आपने क्या एक टेम्पो लिया है?
आपने क्या एक कार लिया है,
आपने क्या एक रेफ्रीजरेटर लिया है?
आपने क्या एरकन्डीश्नर लिया है,
तो आपके पास स्थानिक शिव सैनिक आता है,
आपने ट्रक लिया है? आपको तो उसको पार्क करना ही पडेगा, हम आपकी गाडीकी सुरक्षा करेंगे. आप बेफिकर रहें. आप हमें कुछ दान दिजीये. आपको आपकी गाडीकी सुरक्षाके लिये बेफिकर रहेना है न?,
आपने अच्छा रेफ्रीजरेटर लिया, थोडा हमें भी दान दिजीये. आप की समृद्धि खूब खूब बढें.
खंडणी प्राप्त करना भी एक तरिका है.
बोलीवुड, डी-गेंग, पूलिस, कोंगी, एन.सी.पी. सोनिया सेना ( एस.एस.), अर्बन नक्षल, टूकडे टूकडे गेंग, माफिया गेंग, आई.एस.आई, आतंकवादी, एवोर्डवापसी गेंग, सब इन हत्याओंमें मिले हुए है ये बात नकार नहीं सकते. कारावास इनकी प्रतिक्षा कर रहा है.
शिरीष मोहनलाल दवे
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