“आपत्तिको अवसरमें बदलना हमें खूब आता है” ल्युटीयन नेता उवाच – १
वैसे तो यह कथन नरेन्द्र मोदीका है.
जिस समय गुजरातमें भूकंप आया. केशुभाईकी सरकार भूकंपसे उत्पन्न समस्याओंको नीपटनेमें बुरी तरह विफल रही. देश विदेशसे दानमें मिली वस्तुएं खुले आम बाज़ारोंमे बिकने लगी थी. सरकारके बडे बडे अधिकारी पैसे बनानेमें व्यस्त हो गये थे. अहमदाबाद बीजेपीका गढ है. अहमदाबादका यह गढ, १९७५के महानगर पालिकाके चूनावमें इन्दिराई कोंग्रेसकी सरकार भी आपात्काल होते हुए भी तोड नहीं पायी थी, उस गढको २००१मे कोंगीने तोड दिया. केन्द्रमें और राज्यमें बीजेपीकी सरकार थी तो भी कोंगीने अहमदाबादकी महानगर पालिकाके चूनावमें बीजेपीको परास्त किया. समाचार माध्यम केशुभाई पटेल सरकारके पीछे हाथ धोके पडे थे.
फिर क्या होनेवाला था? २००२के विधानसभा चूनाव आनेवाला था. कोंगीने बीजेपी की पराजय सुनिश्चित कर दी थी. गुजरात भूकंपसे नष्टभ्रष्ट था. कोंगी इसको अपने लिये स्वर्णीम अवसर समज़ रही थी.
ईश्वरने सोचा कि अब तो गुजरातकी रक्षा करना पडेगा, नहीं तो उसकी गरीमा केवल इतिहासके पन्नों पर रह जायेगी. तो ईश्वरने बाजपायीके कानोंमें मंत्र फूंका “ केशुभाईको मुख्य मंत्री पदसे हटाओ और नरेन्द्र मोदीको लाओ”.
आपत्तिग्रस्त गुजरात का मुख्यमंत्री पद नरेन्द्र मोदीको मिला. नरेन्द्र मोदीने कई सरकारी अधिकारीयोंका तबादला कर दिया और कईयोंको पदच्यूत किया. सबसे अधिक तबाही कच्छमें हुई थी.
तब नरेन्द्र मोदीने कहा कि इस आपत्तिको हम कच्छके विकासके अभूतपूर्व अवसरमें बदल देंगे.
कोंगीयोंने नरेन्द्र मोदीको बदनाम करने के लिये कोमी दंगे भी करवाये.
कोंगीके सभी गोदी समाचार पत्रोंने एक सूरमें प्रलाप किया कि “पूरा गुजरात जल रहा है …”
बाजपायी भी समाचार माध्यमोंके इस फर्जी प्रवाहमें आ गये और उन्होंने भी कह दिया कि नरेन्द्र मोदीको अपने राजधर्मका पालन करना है. और यह राजधर्मकी बात समाचार माध्यमोंने खूब उछाली.
नरेन्द्र मोदीके लिये यह परिस्थिति भी एक आपत्ति ही थी. भूकंप, दंगे और पक्षके अंदर हो रहा उनका विरोध. और चूनाव भी.
इन चतुर्विध आपत्तियोंके बीच नरेन्द्र मोदीको काम करना था.
अडवाणीजीके कानोंके अंदर ईश्वर ने फूक मारी और कहा कि यदि गुजरात भी खोना है तो ही नरेन्द्र मोदीको हटाओ.
अडवाणीजीको यह संदेश पूरा हजम हो गया. नरेन्द्र मोदी गुजरातके मूख्य मंत्री बने रहे. नरेन्द्र मोदी अपनी निष्ठा और वहीवटी कुशलताके कारण २००२ का चूनाव जित गये और गुजरातको विकासके पथ पर रखके २००७का चूनाव भी जित के बताया.
तो ये है नरेन्द्र मोदीकी “जनताके उपर आयी हुई आपत्तिको अवसरमे बदलनेकी परिभाषा.
कोंगीकी “आपत्तिको अवसरमें बदलनेकी परिभाषा क्या है?
कोंगी ही क्यों? पूरी ल्युटीयन गेंगों के नेताओंकी आपत्ति को अवसरमें बदलनेकी परिभाषा समान है. लेकिन उनकी, आपत्तिकी और अवसरकी परिभाषा कुछ भीन्न ही है.
आपत्ति चाहे वह देशके उपर हो …
आपत्ति चाहे वह जनताके उपर हो …
हम लुट्येन गेंगवालोंको, कोई फर्क पडना नहीं चाहिये, यदि हमारी सरकार नहीं है तो हमे इस आपत्तिको हमारे लिये अवसरमें बदलना है.
(१) कोरोना आया है? अरे वाह … क्या बात है ? अय मुस्लिम धर्मगुरु लोग, तुम लोग विदेशसे आके यहां पर दिल्लीमें हर वख्तकी तरह मर्कज़ में महा सभा (एन्युअल कोन्फरन्स) करो. डरना काहेका? फिर पूरे देशमें चूपचाप फैल जाओ. मुस्लिम धर्मगुरुओमेंसे कुछ ने तो बोल भी दिया कि कोरोना तो खुदाने भेजा है … कोरोना मुस्लिमोंको कुछ नहीं कर सकता.
जब मुस्लिम धर्मगुरुओंके इन कथनकी आलोचना हुई तो ये मक्कार लुट्येन लोग तूट पडे कि देखो ये असहिष्णुलोग कोरोनाको लेकर मीथ्या विवाद पैदा कर रहे है.
इन लुट्येन मक्कारोंने, कोरोनाके स्वास्थ्य चिकित्सकोंको एवं स्वस्थ्य कर्मीओंको दौडा दौडा के मारे. मुस्लिमों द्वारा हर समस्याको कोमवादके चश्मेसे दिखलाना उनका धर्म था. आपत्तिमें खुदके लिये अवसर देखना यही तो उनका कर्तव्य है. ईश्वरने इसीके लिये तो उनको भारतमें पैदा किया है.
(२) नरेन्द्र मोदीने लॉकडाउन घोषित किया …
गतवर्ष के प्रारंभमें, कोरोना महामारी जगतके अन्य देशोमें बेकाबु हो गयी थी. भारतमें उस समय प्रारंभिक अवस्थामें थी. इसी अवस्थामें इस महामारीको सही ढंगसे रोका गया. नरेन्द्र मोदीने लॉकडाउन घोषित किया.
इन मक्कारोने लोकडाउनका भी विरोध किया.
नरेन्द्र मोदीका मजाक उडाया. अर्थशास्त्रके महामहिमाधारी व्यक्तियों द्वारा नरेन्द्र मोदीके इन कदमोंकी कटूतापूर्ण आलोचनाका दौर चालु कर दिया. दुनियाके किसी देशने लॉक डाउनका मार्ग अपनाया नहीं था. मोदी “लॉकडाउन” घोषित करनेकी गुस्ताखी कैसे कर सकता है? महान अर्थशास्त्री मन मोहन सिंह, महान अर्थशास्त्री महात्मा राहुल गांघी, ग्रीन कार्ड आवेदक एवं विश्वके सबसे महान अर्थशास्त्री रघुराम राजन … आदिने भारतके तत्कालिन प्रवर्तमान आर्थिक पतन के सहगान का रुदन लगातार करने लगे.
लॉकडाउनको विफल बनानेके लिये मक्कारो द्वारा पूरी कोशिस की गई.
(२) केज्री ने अफवाह फैलाई कि; प्रवासी श्रमजीवीयोंके लिये बसें तयार है … ये बसें उनको अपने राज्यकी सीमा तक छोड देगी … दिल्ली की अस्पतालोंमें बाहरी लोगोंकी चिकित्सा नहीं होगी …
वैसे तो नरेन्द्र मोदीका एलान था कि प्रवासी श्रमजीवी जहां पर है है वहां पर ही रुके रहे, यही तो एक मार्ग है महामारीको फैलनेसे रोकनेका … उनका पुरा खयाल रक्खा जायेगा. केन्द्र सरकार राज्योंको पूरी आर्थिक मदद करेगी…
लेकिन इन मक्कार लोगोंकी तो ख्वाहीश थी कि कोरोना देशमें फैलता ही रहे … फैलता ही रहे… फैलता ही रहे …
(३) नहेरुवीयन वंशी प्रियंकाने तो प्रचूर मात्रासे घोषित भी कर दिया कि एक सौ बसें हमने तयार रक्खी है और ये बसें हर प्रवासी श्रमजीवीको अपने राज्य तक छोड देगी और वह भी मुफ्तमें. जूठकी भी सीमा होती है. किन्तु इन कोंगी मक्कारोंको शर्म कहां? जब बसोंके नंबर मांगे गये तो उसमें अधिकतर रीक्षा और स्कुटरके नंबर थे. जब जूठ ही बोलना है तो जूठमें दरिद्रता क्यूँ दिखानी? यही तो सोच है लुट्येनोंकी.
(४) महाराष्ट्रकी प्रखर क्षेत्रवादी संकूचित मानसिकता वाली सरकारने तो बोल भी दिया कि बांद्रा रेल्वे स्टेशनसे, उत्तर भारतके लिये ट्रेने जानेवाली है सब प्रवासी श्रमजीवी वहां पर स्थित मस्जिदके पास आ जाओ. बांद्रा मस्जिदके पास तो प्रवासी श्रमजीवी भी फर्जी थे. उनके पास तो कोई सामान भी नहीं था. सचमुचके प्रवासी श्रमजीवीयोंको तो मालुम भी होता है कि उत्तर भारतके लिये ट्रेनें दादर से जाती है. बांद्रासे कभी उत्तर भारतके लिये ट्रेनें नही जाती है. इन फर्जी प्रवासी श्रमजीवीयोंका उद्देश केवल कोरोना फैलानेका ही था. इस घटना में शरदके पक्षके एक नेताका अहम रोल था. शरदके पक्षके ही एक नेताने सूरतमें भी ऐसी कोशिस की थी. किसकी आज्ञासे? आप आसानीसे अनुमान लगा सकते हैं
(५) कृषिकानूनके विरोधको इन मक्कारोंने आतंर्राष्ट्रीय मीडीया में फैला दिया. इन्होंने भी कोरोनाको प्रचूर मात्रामें फैलाया. युएसके एक राज्यने तो इसके विरुद्ध प्रस्ताव भी पारित कर दिया. युएसकी एक “फॉर्ड निवेषित” संस्थाने तो एक निरक्षरकी तरह भारतमें जनतांत्रिक मूल्योंका ह्रास बताया.
इन निरक्षर पागलोंका जिक्र करना भी योग्य नहीं है.
क्या देशके दुश्मन केवल यही लोग है?
नहीं जी…
यदि कोई देश हितमें काम करता है तो उसको पटक के धराशायी कर दो.
(६) बाबा राम देवने अभी तो अपना कथन पूरा भी नहीं किया था कि उनकी संस्थाने कोरोनील नामकी दवाई बनायी है जो कोरोनासे सुरक्षा देती है.
तो कोंगीके एक सीएमने एलान कर दिया कि “यदि कोरोनील उसके राज्यमें आयी तो वह बाबा रामदेवको दुसरे ही दिन कारावासमें भेज देगा.” यह है कोंगी मक्कारोंकी आपखुदी मानसिकता.
(७) नरेन्द्र मोदीने एलान किया कि मार्च २०२१से हमारी भारत निर्मित कोरोना वेक्सीन तयार हो जायेगी.
नरेन्द्र मोदीके इस कथनको मजाक बनाया. कई मक्कारोंने इस वेक्सीनको “बीजेपी वेक्सीन” ऐसा नामकरण कर दिया.
जनताकी आपत्तिमेंसे पैसे बनाने वाले भी देशमें कम नहीं.
१९५४में नहेरु-लियाकत अली करार के पालन मे पाकिस्तान (बांग्लादेश सहित) सातत्य पूर्वक विफल रहा. इसी लिये पाकिस्तान द्वारा पीडित भारत आये बीन मुस्लिम निर्वासितोको नागरिकत्व देना था. तो इन लुट्येन गेंगोंके नेताओने विरोध किया. और इन्होंनेही कोमवादी मुस्लिमोंद्वारा योजना बद्ध हिंसा फैलाई. उसी प्रकार कृषिकानूनके विरोध करनेमें भी हिंसा फैलाई. और यह आंदोलन तो अभी भी चालु है.
इन लुट्येन गेंगके नेताओंने ओक्सीजन और दवाईयोंकी समस्या कैसे उत्पन की और मौतके सौदागर कैसे बने वह भी देख लो.
कुछ देख भी लें यु ट्युब पर … संदिप देव जी क्या कह रहे है…
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे