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Archive for May, 2021

क्या चिकित्सकोंको टीकैतकी हवा लगी?

बाबा रामदेवने क्या प्रश्न पूछे कि ये भारतीय चिकित्सक संघको मीर्ची लग गयी!!

अरे भाई प्रश्न ही तो पूछे है.!

बाबा रामदेव पतंजली नामका एक ट्रस्ट चलाते है. ट्रस्ट का कार्यक्षेत्र विशाल है. यह ट्रस्ट “घी”से लेकर धान्य तक, सोनपापडीसे ले कर बीस्कीट और नुडल तक, नमक से लेके टुथपेस्ट तक, और मुंगफली तेलसे लेकर ओलीव ओईल तकके तेल बनाता है.

वैसे तो हिंदुस्तान युनी लीवर को आपत्ति होना चाहिये. किंतु उसको तो कोई आपत्ति नहीं है. आपत्ति हुई है भारतीय चिकित्सक संघको. यह पतंजली वाला बाबाराम देव त्रीफळा चूर्णसे लेके “कोरो-निल”  तक औषधियाँ  बनाने लगा है.

भारतीय चिकित्सक संघको आपत्ति तो होगी या हो सकती है या आपत्ति तो थी ही, किंतु वह अभी तक मौन रहा. क्योंकि कोराना महामारीके कारण भारतीय एलोपथीके चिकित्सक लोग अतिव्यस्त थे. वैसे तो आम भारतीययोंके लिये यह एक आपात्ति थी किंतु अधिकतम एलोपथीके चिकित्सकोंके लिये यह अवसर था. ये चिकित्सक लोग,  और चिकित्सालय और दवाईयां बनानेवाली कंपनीयोंके लिये, इससे बढकर, पैसे बनानेका अच्छा मौका कब मिल सकता है?

Baba Ramdev aur corona

बाबा रामदेवकी संस्थाने कोरोनील का आविष्कार किया. उसका परिक्षण भी किया और सरकार मान्य संस्थासे अनुमति भी ली. और तत्‌ पश्चात्‌ बाबाराम देवने घोषणा की कि, हमने कोरोनाकी दवाईयाँ बनाई है.

कोंगी शासित राज्यके एक मुख्य मंत्री तो बाबा राम देवके इस कथन पर तूट ही पडेंगे. उन्होंने तो बिना कुछ सोचे घोषित ही दिया कि यदि बाबा रामदेवकी कोरोनीलकी दवाईयां मेरे राज्यमें आई तो मैं बाबाराम देवको कारावासमें भेज दुंगा. कोंगी पक्षमें तो बिना कुछ पढे सोचे बोलनेमें तो, मूक्त कंठी राहुल गांधीसे बढकर हर व्यक्ति होता है. कोंगीयोंका जूठ सिद्ध होने पर कोंगीयोंको लज्जा वज्जा जैसा कुछ होता नहीं है. वैसे तो गधेको भी प्रहार जनित पीडा एक मुहूर्त पर्यंत तो रहती ही है. किंतु कोंगीयोंको एक मुहूर्त तक भी उनका अज्ञान या जूठ उजागर होनेसे तनिक मात्रामें भी लज्जा नहीं आती.

मूल वार्ता बिंदु पर आवें.

भारतीय (एलोपथी) चिकित्सक संघने पहेले तो सोचा कि; “ चलो हम भी तो पैसे बनानेका अवसर ढूंढते है तो यदि बाबा रामदेव भी भले ही थोडे बहूत पैसे बना ले. हमारा जालतंत्र तो समग्र दुनियामें व्याप्त है. एलोपथी दवाईयां बनानेवाली कंपनीयां तो समय समय पर १० गुना, १०० गुना, १००० गुना और १०००० गुना मुनाफा कर ही लेती है. और हम चिकित्सकोंको  हमारा हिस्सा मिल ही जाता है. इतना ही नहीं हम तो उनके कारण विदेशोंकी अफलातून सैर भी समय समय पर कर ही लेते है. ऐसी सफरें तो हमारा जिवनका एक भाग बन गया है. तो चलो बाबा राम देवको भी थोडा बहूत पैसा बनाने दो.

“किंतु यह क्या? हमने बाबा रामदेवको ऐसी छूट दी तो इसका मतलब यह तो नहीं कि वह हमसे सवाल करें! यह तो बडी नाइंसाफी है. बाबा राम देवने तो एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं … पूरे पचीस (२५) प्रश्न हमसे पूछे. यह तो गुस्ताखीकी सीमा ही हूई न. यह तो गुस्ताखी नहीं तो और क्या हुआ?

क्या बाबा रामदेव, हमसे प्रश्न करनेके लिये सक्षम है?

अरे, …  भारतीय चिकित्सक संघ भैया, यह तो भारतवर्ष है. यहाँकी तो परंपरा रही है कि श्रोतागण/शिष्यगण  प्रश्न करें और मूनी/ज्ञाता, उनके प्रश्नोंका उत्तर दें.

“अरे हम तो युनानी चिकित्साके अनुयायी है. हम कोई सरकार थोडे ही है कि ऐरे गैरे हमसे सवाल करें? हम तो रोगके उपर आक्रमण करनेवालोंमेंसे है. ट्युमर हुआ है ? ट्युमर काट दो, बोईल हुआ है ? बोईल काट दो, शरीरमें पथरी है? निकालके फैंक दो, जीभ बढ गई है? तो उसको भी काटके छोटी कर दो … फिरसे ऐसा हुआ तो फिरसे काट दो … हम तो अपने रोगीको बोल ही देते है कि हम आपका रोग कैसे हुआ वह जानते नहीं है, हम तो केवल उसका उपचार ही करते है.

“और यह बेवकुफ बाबा हमसे सवाल करता है. यह कोई बात हुई?

“जिनकी वजहसे हमारी दालरोटी और गुलाबजामून निकलते है, वैसे हमारे अन्नदाता रोगीको भी हम कह देते है कि हमे सवाल मत करो. तो यह बाबा जो हमारा प्रतिस्पर्धी है उसके सवालका क्या हम जवाब देंगे? अरे बाबा तू किस खेतकी मूली?

बाबा राम देवने तो सवाल पूछे भी … और उन सवालोंको सार्वत्रिक भी किया.

“तो अब हम क्या करें?

“यदि हमे बाबा रामदेवके सवालोंका जवाब नहीं देना है और हमें हमारा उल्लु सिधा करते रहेना है  तो हमें क्या करना चाहिये?

“उनके सवालोंका जवाब दे दें?

“नहीं नहीं नहीं … ऐसा तो कभी भी नहीं करनेका. हम एक सवालका जवाब देंगे तो उसके विरुद्ध वह दो सवाल करेगा. फिर हमें तो जवाब देते ही रहेना पडेगा. ऐसी परंपरा हमे स्थापैत करना नहीं है.

“तो हमें क्या करना चाहिये?

“हमें ममताकी तरह अपने काले कारनामे छीपानेके लिये, बीजेपी के विरुद्ध आग उगलना प्रारंभ कर देना  चाहिये और गालीप्रदानके जो भी शब्द याद आवें वे सब बाबा रामदेवके लिये बोलदेना चाहिये …!

“लेकिन इससे हमें क्या फायदा? हम लोग तो पढे लिखे है. हमारा गाली प्रदान तो बूमरेगकी तरह हमें ही बदनाम करेगा … हम निर्लज थोडे है?

“तो फिर हमें अरविंद केज्रीवालकी तरह अपने काले कारनामे छीपानेके लिये भावनात्मक शब्दोंमें विषयांतर करके अन्य चर्चा चालु करदेना चाहिये ताकि जनता असमंजसमें पड जाय …!

“लेकिन हम कोई पूर्वजन्मके रस्सीयां खींच कर सरकारी पदाधिकारी नहीं है कि रामदेवको या जनताको गुमराह कर सकें …!

तो हमें राकेश टीकैतकी तरह थोडे चिकित्सकोंके साथ, सूत्रोच्चारके  बेनर लेके, विरोध प्रदर्शन करना चाहिये … और असंबद्ध फिलोसोफी पर उतर आना चाहिये …!

“हाँ … हाँ … यही ठीक है, जब हम प्रश्नोंके उत्तर देनेके लिये अक्षम हो, हमारे विरोधके मुद्दे क्या है वह हमे मालुम न हो, तो हमे राकेश टीकैत की तरह ही प्रदर्शन करना पडेगा …

“लेकिन यदि हम राकेश टीकैत जैसा करेंगे तो हम आम जनताकी दृष्टिमें गीर नहीं जायेंगे …?

“यह बात भी सही है … लेकिन एक बारके लिये तो, एक बारके लिये …, प्लेकार्डज़ लेके हम प्रदर्शन तो कर ही दें … ताकि हमारा विरोध टीवी चेनलों पर और वर्तमान पत्रोमें रजीस्टर हो जाय. बाबा रामका हम विरोध करें यह बात ट्रोल करनेके लिये, एक जत्था (लुट्येन गेंगोंवाले), आतुर ही है इतना ही नहीं वे अतिहर्ष पूर्वक हमारा विरोध ट्रोल करता रहेगा. उनको हमें कुछ कहेना ही नहीं पडेगा. वे ही इमोशनल शिर्ष –  रेखाएं बनाके बाबा रामदेवको एक कौडीके दामका बना देंगे. मुज़े तो लगता है कि कोंगी पक्षके नेतागण और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके नेतागण, हमारी बातें उठा ही लेंगे.

“ ये सब बातें तो सही है, लेकिन हमें कुछ कठोर कदम भी उठाना चाहिये. हम यदि बाबा रामदेव पर न्यायालयमें एक स्युट दाखिल कर दें तो कैसा रहेगा?  १०००० करोड का नुकशान वसुली और हमें और हमारे व्यवसायको जनताकी नजरोंमें गीराने वाला मानहानि का केस ही न्यायालयमें दाखिल कर देवे. जब तक केस चलता रहेगा हमारे सहयोगी लोग बाबा रामदेवको तीर मारते रहेंगे.

“हाँ … यह भी सही है. बीजेपी/मोदी/योगी/शाह विरोधी लोग, हमारी बात उठा लेंगे … हमें कुछ करना भी नहीं पडेगा … हम अपने मूलभूत कार्यमें जूट जायेंगे २०, ४०, ६० लाखके फीस/दान देकर हमने जो एलोपथीकी उपाधि जो प्राप्त की है, उसको आपत्ति बननेसे रोकना तो पडेगा ही …!

“क्या बाबा रामदेवको वाणी स्वातंत्र्यका अधिकार नहीं है?

“नहीं बीजेपीके मतदाताओंको कोई स्वातंत्र्य नहीं है. स्वातंत्र्य किसको कहेते है उसकी परिभाषा न्यायालय सुनिश्चित करेगा और वह भी प्रसंगके अनुसार ही निश्चित होता है. आप इसकी चिंता मत करो. हमारे पास एकसे बढकर एक वकील है, और हम ढेर सारे वकील लगा देंगे. अरे भाई लुट्येन गेंगसे तो सब कोई डरते है. देखा सूना नहीं है कि एक साक्षात्कारको? सेवा निवृत्त सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधीशके एक टीवी-चेनल पर क्या कहा था?

“लेकिन एक विश्वमान्य और विश्व प्रमाणित चिकित्सकने तो कहा है कि  जिन्होंने ही वेक्सीन लिया है वे सभी दो वर्षके अंदर मर जानेवाले है. क्यों कि वेक्सीनके कारण ही कोरोनाका म्युटेशन होता रहेता है और ऐसे  म्युटेशन होंगे कि वे जान ले लेंगे. … तो इस चिकित्सकका क्या करेंगे. उसके उपर भी स्युटकेस  फाईल कर दें?

“अरे भाई, वह तो अपनका आदमी है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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प्रधान मंत्री को एक सार्वजनिक  पत्र. “बंगालमें ममता प्रेरित आतंकवाद”

मुजमें है बगदादीकी रुह

क्या बीजेपी कार्यकर्ताओंकी और मतदाताओंकी शहादत व्यर्थ जायेगी?

माननीय प्रधान मंत्रीश्री,

एवं

माननीय गृहमंत्रीश्री,

मैं शिरीष मोहनलाल दवे, उ.व. ८१, आपको यह पत्र स्वस्थ प्रज्ञा और स्वस्थ शारीरिक अवस्थामें लिख रहा हूँ. मैं ही नही, प्रत्येक राष्ट्रवादी व्यक्तिकी इच्छा इस प्रार्थना पत्रमें प्रतिबिंब है ऐसा मैं मानता हूँ और आप भी मानें.

पश्चिम बंगालमें साम्यवादीयोंका शासन आया तबसे, राजकीय हत्याओंकी परंपराका प्रारंभ हुआ. उसके पहेले भी ईन्डीयन नहेरुवीयन कोंग्रेसके (आइ. एन. सी.)  शासन कालमें भी अल्प मात्रामें ऐसी हत्याएं होती थीं. किन्तु स्थिति अविभाज्य भारतके कुछ मुस्लिमोंकी तूष्टिके कारण और कोंगी (आइ. एन. सी.)के शासनकी अक्षमता के कारण थी. उस स्थितिको कोंगी कुशासनका एक उप-उत्पादन (बाय-प्रोडक्ट) माना गया था.

बेंगालमें राजकीय हत्याएं ही नहीं अराजकता होना यह कोई नयी बात नहीं है. क्यों कि कोंगीके सुदीर्घ शासनकी यह देन है. अस्तु.

ममता बेनर्जीने तो अराजकताकी सभी सीमाओंका उल्लंघन कर दिया है. बेंगालमें अराजकताकी घटनाएं तो छोड ही दो. ममता बेनर्जीने परिस्थिति और भी गम्भीर कर दी है. यह अब स्पष्ट हो गया है कि वह केवल अराजकता को ही नहीं किन्तु आतंकवादको भी प्रेरित कर रही है.

(१) साम्यवादीयों और कोंगीयोंकी तरह ममता बेनर्जी अराजकता को तो प्रेरित करती है. यह तो आपने चीट-फंड घोटालेमें ही उसका आचरण देख लिया था. केन्द्रकी प्रत्येक संविधानीय कार्यवाहीको बाधित करनेमें वह कृतनिश्चयी ही होती है. यह तथ्य आपको, जनतासे भी अधिक, और सुचारुरुपसे अवगत है.

उदाहरणः चीट फंड घोटालेमें सीबीआईकी कार्यवाही में अवरोध पैदा करनेके लिये ममता बेनर्जी धरनेपर बैठी थीं. इससे अधिक दुराचार क्या हो सकता है?

(२) स्थानिक स्वराज्य (लोकल बोडी) के चूनावको प्रारंभसे अंततक, हिंसक बनानेमें  ममता बेनर्जी और उसका शासनका पूरा उत्तरदायीत्त्व था.

(३) बेंगालके राजपालश्रीने, कई बार आपका ध्यान आकर्षितक करनेके लिये पत्र लिखे थे. किन्तु आपकी दीशासे कोई भी अर्थपूर्ण कार्यवाही नहीं हुई थी.

(४) ममता बेनर्जी आप दोनोंको जब भी संबोधित करती है संबोधन  हमेशा कटूता पूर्ण होता है. आपने उसको कभी भी गंभीरतासे नहीं लिया है. हमने सोचा कि चलो यह तो आपका आंतिसरिक मामला है. किन्तु उनका यह प्रयोग था. आपको ज्ञात होगा कि उद्ध्व ठकरेने (सीएम. महाराष्ट्र), अपना एक व्यंग चित्रको “लाईक” करने वाले को गिरफ्तार करदिया था. तो ममताने जय श्रीराम बोलनेवालेको गिरफ्तार करनेका आदेश दे दिया था. ये है इन दोनोंका असहिष्णुता वाली और एकाधिकारवादी मानसिकता.

इनसे भी बढकर कई उदाहरण है कि जहां जनतंत्रका उपहास हुआ है और आप मौन रहे थे.

(५) पालघरमें सशस्त्र पूलिसदलके समक्ष,  हिन्दु संतोकी पीट पीट कर हत्या हुई. उस समय वहाँ शरद पवारके पक्षका एक वरिष्ठ नेता उपस्थित भी था. पूलिस अधिकारीने स्वयं वयोवृद्ध संत, जो पूलिस अधिकारीके हाथको पकड के उनको विनंति कर रहा था कि वह पूलिस अधिकारी, विधर्मी झुन्डसे उसकी रक्षा करें. उस पूलिस अधिकारीने उस वयोवृद्ध संतको झुन्डके हवाले कर दिया.

यह पूरी घटना को दबा दी गयी. जब रीपब्लिक टीवी पर इस घटनाका प्रसारण हुआ तब उद्धव ठाकरे रीपब्लिक भारत टीवी चेनलके मालिक अर्णव गोस्वामीके उपर आगबबुला हो गया.

उद्धव ठाकरेने अर्णव गोस्वामीका, अलोकतांत्रिक और फर्जी  तरिकेसे क्या हाल किया  वह पूरा देश जानता है. उद्धव ठाकरेने अर्णवकी अन्यायी गिरफ्तारी की, और उसको पूलिस स्टेशनमें पीटा गया.

(६) ऐसा ही हाल कंगना रणौत (बोलीवुडकी एक अभिनेत्री)का किया गया. उसका घर तोड दिया गया.

क्यों कि उसने बोलीवुडके महानुभावोंके काले करतूतोंको प्रकाशित किया जिनमें हत्या तक सामिल थी. और इन काले करतूतोंकी पार्श्वभूमिमें ड्रगमाफिया-बोलीवुड-पूलिस-महाराष्ट्र शासनके नेतागण था.

इन सभी घटनाओंके विषय पर आपकी केन्द्र सरकार मौन और निस्क्रिय रही.

(६) आपका यह मौन भारतकी राष्ट्रवादी जनताकी अपेक्षासे विपरित था.

आपकी सरकारके इस मौनने ममता बेनर्जीकी एकाधिकारवादी संस्कारको और बहेकाया. चूनाव अभियान अंतर्गत उसने धर्म और क्षेत्रवादका घृष्टता पूर्वक उपयोग किया. उसने अपने पूलिस तंत्रको भ्रष्ट कर दिया था और उनको जनताको पीडित करनेका अधिकार दे दिया था. इसके कारण उसने पूलिस अफसरोंसे शपथ ग्रहण करवाया था कि हम पूलिस लोग हर हालतमें कुछ भी कारनामे करके ममतादीदीकी पार्टीको चूनावमें जित प्राप्त करवायेंगे. ममतादीदीकी पार्टीको मत नहीं देनेवालोंका बुरा हाल करेंगे.

(७) ममताने जनताको धमकी भी दी थी कि जो लोग बीजेपीको वोट देंगे उनको चून चूनके मारा जायेगा.

(८) भ्रष्ट समाचार माध्यमोंके मूर्धन्योंने तो क्लबहाउस मीटींग करके बीजेपीकी लोकप्रियताको देखकर अपनी चिंता संवेदना प्रकट करके बीजेपीको हरानेके लिये एकजूट होनेका एलान भी कर दिया था.

(९) विधानसभा चूनावके पहेले तो कई बीजेपी कार्यकर्ताओंकी हत्या की गयी और सेंकडो बीजेपी कार्यकर्ताओंको पीटा गया. इसके उपर ममता और दंभी समाचार माध्यम मौन रहा.

(१०) चूनावके पश्चात बीजेपी कार्यकर्ता ही नहीं, बीजेपीको मतदेनेवालोंके घर जला दिया गया. उनकी निर्मम हत्या की गयी. सहस्रोंको प्रताडित किया गया और गंभीर रुपसे आहत किया गया. महिलाओंको निर्वस्त्र करके बिभत्स चेष्टा करके पीटा गया और गेंगरेप किया गया.

पूलिस भी वहां उपस्थित थी. लेकिन वह मौन और निस्क्रीय रही. मानो यह पूर्व निश्चित आयोजन बद्ध कार्यप्रणालीका भाग था और पूलिसको ममताके आदेशके अनुसार ऐसा ही करना था.

आपकी सरकारके मौनने ममताकी अपराधिक चारित्र्यको बढावा दिया है.

(११) आपने सूना कि ममताने अपने इस आतंक के विषयमें क्या कहा?

यह बीजेपीका आंतरिक और आपसी टक्करका मामला है. यह तो केन्द्रका मामला है. तीन माससे पूलिस दल केन्द्र सरकारके आदेश के अनुसार काम करता है.

ममताके कथनका तात्पर्य यह है कि ये सब केन्द्र सरकारने करवाया है. मतलब की उसका कोई उत्तरदायित्व बनता नहीं है. ममताके कथनमेंसे तो यह निष्कर्स निकलता है कि जो तीन मास केन्द्र सरकारके आधिन थे उसके उपर कोई कार्यवाही नहीं होगी. और वास्तवमें भी ऐसा ही होगा. राष्ट्रवादी जनताको संदेश तो यही मिलता है.

पूलिसकी निस्क्रीयता और ममता बेनर्जीका जूठ बोलना अपराध बनता है

(१२) समाचार माध्यमके लोग कौन है?

(१२.१) “जैसे थे वादी” है जो समज़ते है कि ऐसा तो होता ही रहेता है… बेंगालकी जनता तो पहेलेसे ही विद्रोही है … उनको हत्या, रेप, आग लगाना, हताहत करना … ये सब चूनावके परिणाम के बाद बीजेपीको मत देनेवालोंके उपर करना विद्रोह लगता है … काहेका विद्रोह ? आंखे खोलो … यह तो आतंक है आतंक …

(१२.२) “खुश हो जाओ … बेंगालके चूनावके परिणाम तो मोदी और बीजेपीके पराजयके प्रारंभका द्योतक है … बीजेपीके मतदाताओं पर हमला …? काहेका हमला …? यह तो टकराहट है …

(१२.३) “हम तो अलग यानी कि सबसे भीन्न है … बंगालमें तो ऐसा होता ही रहेता है … रवीन्द्र सरोवर की घटना को याद करो. वहां तो सेंकडों महिलाओंको नग्न कर के रेप किया था. यहां तो केवल डबल डीजीटकी संख्यामें ही महिलाओंको नग्न करके रेप हुआ है. हम लोग तो समग्रकालके परिपेक्ष्यमे हरेक घटका मुल्यांकन करते है. कोरोनामें जो सहस्रों लोग मर रहे है उनकी चिंता करो …

(१२.४) “हम तो निरपेक्षता में मानते है. गुजरातमें नरेन्द्र मोदीने २००२में  क्या किया था?

ये निरपेक्षवादी मूर्धन्य लोग, २००२में साबरमती एक्सप्रेसकी रेल्वे कोचमें रहे ५९ हिन्दु, जिनमें महिला बच्चे भी थे, उन सबको जिंदा जला देनेवाली घटनाकी याद दिलाते है. ५९ हिन्दुओंको जिन्दा जलादेनेसे, प्रतिक्रियाके रुपमें कौमी दंगे हुए थे. जिन में हिन्दु और मुस्लिम दोनों मरे थे. पूलिस द्वारा हुई गोलीबारीमें हिन्दु अधिक मरे थे.

अब ये तटस्थताके घमंडी लोग “कोंगीके स्थानिक नेताद्वारा ५९ हिन्दुओंको जिंदा जलाके मौतके घाट उतारनेकी गोधरा स्टेशनकी घटना” और बेंगालमें “बीजेपीको मत देना” को समकक्ष मानते है.

लेकिन हे निरपेक्ष फर्जी तटस्थताके दंभी पूजारी महर्षि लोग सूनते हो? तुम्हें प्रमाणभान की प्रज्ञाकी आवश्यकता है.

(१२.५) कुछ मूर्धन्य लोग बेंगालकी ममता प्रेरित और आयोजित इस हत्याकांडका सियासती अर्थघटनवाला  विवरण (नेरेटीव्ज़) देते है और कहेते है बीजेपी लोग बढाचढाके बोलते है और इस आपसी टकराहटको शस्त्रके रुपमें उपयोग करते है. ऐसे और इसके समकक्ष विवरण बनानेवालोंमें कई मूर्धन्य कोलमीस्ट्स है. इन सबका जूठ फैलानेका और जनताको गुमराह करनेका अपराध बनता.

हे नरेन्द्र मोदीजी और अमित शाहजी,

(१२.६) यदि कोंगी नहेरुवंशी फरजंद, प्रवासी श्रमजीवीयोंको अपने राज्यमें लेजानेके लिये  “सौ बसें तयार है” … दुसरा फरजंद बोलता रहे …  नरेन्द्र मोदीने ५००० करोड एकड भूमि कच्छमें अंबाणीको दानमें दे दी … केज्रीवाल  “भारत तेरे टूकडे होगे” बोलनेवालोंको कह सकता है कि तुम आगे बढो, हम तुम्हारे साथ है,

और इन सबसे बढकर  ममताकी सरकार  राज्य प्रेरित हत्याएं और अब तो राज्य प्रेरित आतंकवाद फैला रही है, … फिर भी इन लोगोंका बाल भी बांका न हो और चैनसे अपनी मनमानी करते रहे …, तो राष्ट्रवादी मतदाता आपसे क्या उम्मिद रक्खें?

(१३) हमारा विश्वास तूटा नहीं है

हमें ज्ञात है कि आप मनसे और बुद्धिशक्तिसे दुर्बल नहीं है. आपका विकल्प तो गद्दार और भारतकी संस्कृतिके दुश्मन ही है.

हमें विश्वास है कि आपने ममता बेनर्जीको प्रभावकारी ढंगसे दंडित करने आयोजन किया ही होगा.

जनता जिनको चाहे उनको अपना मत दे सकती है, यह जनताका जनतांत्रिक अधिकार है. इस अधिकारका उपयोग करनेवालोंकी,  ममता हत्या करे या और गेंगरेप करे, या और प्रताडित करे, या और उनके घर जला दें या और लूट ले या और  उनको अपना घर छोडने पर विवश करे … तो  यह केवल और केवल ममताका राज्य प्रेरित हत्याकांड ही है. ममता बेनर्जी कभी देशकी नागरिकता नहीं रख सकती. ममता की नागरिकता और उसका पासपोर्ट खत्म करो. राज्यद्वारा हिंसा फैलानेवाली को तो आजिवन कारावास ही होना चाहीये. ममता बेनर्जीको पदच्यूत करो और उसके उपर न्यायिक कार्यवाहीका प्रारंभ करो.

आपका हितैषी,

शिरीष दवे

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Democracy is defeated by Mamata in West Bengal

Who backed Mamata Benarji?

You must be aware of the characteristic of Pet Main-Stream-media Club House, conducted a meeting and expressed their serious concern on the news that “BJP is wining in West Bengal”.  The Godi (pet media which is controlled by Anti-Modi gangs) media is part and parcel of Lutyen Gangs. These gangs have first and top most aim to see that Modi/BJP gets defeated in elections. As a part of this, they want to create a negative atmosphere against Modi/BJP.

Who are these Lutyen gangs?

(1) Congi party and its culturally allied parties.

What is meant by the “culturally allied parties?”

(1.1) A dynastic party where the Supreme (Number One) of that party will establish its progeny or near relative as Supreme (Number One) irrespective of its qualification, experience, age, skill, knowledge, wisdom and love towards India.

(1.2) The second quality is supposed to be self-centered, to be fraudulent in every respect and not worry of any moral binding or any democratic values.

(1.3) The third quality is, to not hesitate in spelling out blatant lies and to be hypocrite. By virtue of its character it would ally with absolutely communal party who divided India on the base of religion, despite of this, it will term itself as tolerant and secular. It spells the real secular party BJP, as communal. Actually Hindu by its principle and historical inheritance, is tolerant and secular.

(1.4) The fourth quality is to defeat the political opponent i.e. Narendra Modi/ BJP, even with taking help of national enemies across the border.

(1.5) The fifth quality is to help “breaking India forces” by all means. i.e. to take support and extend help to Naxalite, Terrorists, Maoists, cross border intelligences of national enemies.

It is proper to address these gangs as PANCH MAKKARs.

(2.1) These gangs consist of the following political parties besides Congi. Farukh Abdullah’s National Conference Party, Mehbuba Mufti’s PDP, Mullayam’s Samajvadi Party, Mamata’s TMC, Lalloo’s RJD, Karunanidhi’s DMK, Jay Lalita’s ADMK, Sharad’s NCP, Uddhav’s SS party  ,,, and a lot similar dynastic parties.

Other gangs:

(2.2) The aforesaid PANCH MAKKARs’ gangs would also works in association, to take help and alien with Leftists, Muslim league and its cultural parties, Urban Naxal, Pseudo secular media of India and abroad. These gangs too have same agenda to spread rumors and fake controversies.

 (3) These pseudo secular media had spread fake news on Indian democracy, where its Government owned agency had lowered the rank of India, quoting acts CAA, NRC, NRP, Abrogation of 371 and 35A acts and Farms Acts. And this was done by the foreign agency without going through the material and logical support.

(4) Why the Agency and the western media e.g. BBC, CNN, New York Times ignored the period from 1947 to 2014?

Actually this period [barring some small periods (1977-1979 and 1999-2004)], Congi was ruling India.

(5) What was the condition of democratic values at that time?

(5.1) Congi failed to provide democratic rights to Indian Citizens, leave aside, it gave assurance to remove poverty and to regain the lost Indian land in the wars with China and Pakistan.

(6) The Government of Narendra Modi of BJP has established far better democracy than before.

(6.1) CAA provides the fulfillment of the promises given in Nehru-Liyakat Ali agreement of 1954. Congi (I.N.C. = Indian Nehruvian Congress) Nehru had only made this agreement. It was also as desired by Mahatma Gandhi. If New York Times has to bite anybody in India, on the ground of democratic value, it must bite M. K. Gandhi and Nehru first. Has it that courage to bite MK Gandhi?

(6.2) As for NCR and NRP, the full form is, National Register of Citizen and National Register of Population, and these registers are essentially to be prepared and maintained by every country including democratic countries. Congi was lazy. It failed.

(6.3) The acts 371 and 35A were depriving millions of Indian citizens, from the democratic rights. These acts were against the democratic values as they were identifying the citizens by its gender, caste and religion. Congi Party had introduced these acts in the Indian Constitution, without following prescribed procedure stipulated in the democratic constitution, as a temporary provision. Congi had forgot the word “temporary” willfully. This indicates, the disrespect of Congi, towards the democracy and democratic values.

(6.4) There are numerous examples where Narendra Modi’s opponents are proved liars and still they enjoyed the out of proportion right to protest, continued to protests and committed violence to create an atmosphere of unrest. Government offered them to have dialogue with regular communication, but they continued violence. Ultimately matter has become sub-judicial. But the Lutyen gang of inherently Khalistani gang, continued the protest. Other Lutyen gangs are supporting this gang.

(7) West Bengal Assembly elections.

(7.1) Mamata is a liar what to talk of her democracy

(7.2) Mamata fully supported her Police Commissioner Rajiv Kumar who was alleged with and linked with two frauds of Chit-funds. When CBI officer came for investigation she protested and set to encompass CBI.

Is it a democratic character of the Chief Minister of a State to encompass CBI?

(7.3) Mamata calls Modi and Shah by name e.g. Nazi, Hitler, Mussolini, Can it be a culture of a Chief Minister in a democratic country?

(7.4) Mamata’s TMC has killed minimum 54 BJP workers, but Mamata did not take any action.

(7.5) Mamata asks his police men to arrest a person who shouted Jai Shri Ram [(Hail Shri Ram). Shri Ram was a king emperor of Ayodhya some 6000 years back.] Can such arrest be executed in a democratic country where Shri Ram was not a devil?

(7.6) While doing election campaign, Mamata threaten the citizens, that those would be taken to task if they would not vote to her party’s candidates.

(7.7) Governor of a state is an honorable post. But Mamata used to insult him. Is it considered fair in politics?

(7.8) A DRAMA: When Mamata shut the door of her car, by mistake, that injured her leg. Mamata alleged that some BJP workers had come and shut the door to hurt his leg. But Mamata was blatant liar. She was surrounded by her security staff and she herself had shut the door. Her own police investigated into the event and reported that it was an accidental mistake of herself.  Even the CCTV Camera proved her a liar. On the second day of the election results, Mamata found freely walking. But Lutyen media is mum on this drama of Mamata.

(7.9) After the Victory of her party in the State Assembly elections, Mamata gave full liberty to her party workers to loot and blaze houses of BJP workers and who voted for BJP in elections. 14 to 28 BJP workers are murdered, 1000+ workers are beaten and injured, 100+ houses are burnt, women are gang raped and tens of shops stores are looted. All these happened in the presence of police. Police watched calmly.

On the victory of Mamata’s TMC party, the Lutyen media gangs said, it is a victory of democracy. In India Mamata has once again saved democracy. As for the looting the shops, blazing houses and shops, murders, rapes, attacks on BJP workers and voters, the Lutyen media dilutes them, and says that such events are common in  West Bengal State.

Well. Look at the mindset of Lutyen media. In West Bengal Congi, Communists and Mamata only has ruled till this date. And they have put Bengal in this condition. It is one of the most poor part of India. Mamata the CM talks preventing outsiders even to campaign in her state. What would happen to India if the rest of states prevent millions of Bengali from occupying the job in their states? Is Mamata eligible to define democracy?

Watch the videos of Mr. Harsh Vardhan Tripathi. There are several video that exhibits the democracy of Mamata and the Lutyen Gangs. She has ruled West Bengal State for one decade and she attained and continued the same culture of Communists and Congi.

https://www.youtube.com/watch?v=J9s-sXEq4ys

https://www.youtube.com/watch?v=XtNbkhTowIU

https://www.youtube.com/watch?v=828GSCCkwqs&t=781s

https://youtu.be/k8Fhe_40cb4    Ajit Bharati

Central Government of India has to intervene in West Bengal State, Delhi State as well as Maharashtra State. Democracy does not exists in many states of India where Congi and its cultural allies are ruling. Democracy has gone to dogs in these states.

If the Central Government would continue its silence, ultimately it will be the looser in general elections of Parliament in 2024. 

Shirish Mohanlal Dave

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“आपत्तिको अवसरमें बदलना हमें खूब आता है” ल्युटीयन नेता उवाच – (२)

याद करो, गत वर्षमें अन्य देशोंका क्या हाल था. वह कोरोना संक्रमणका प्रथम वेव था.

भारतमें कोरोना संक्रमणका दुसरा वेव

कोरोनाका दुसरा वेव (उछाल) जिनको कोम्युनीटी स्प्रेड कहा जाता था, वह भारतमें विलंबसे आया.

भारतमें कोम्युनीटी स्प्रेड आनेमें समय लगा.

क्यूँ कि मोदीने प्रारंभमें ही मध्यम अवधिका लॉकडाउन लगा दिया था, और उस लॉकडाउनको, धैर्यसे, धीरे धीरे अनलॉक किया.

इस समयके अंतर्गत हमारे डोक्टरोंने, फार्माकंपनीयोंने और संशोधन कर्ताओंने कोरोनाके गुणधर्मोंको पहेचाननेका समय मिल गया और उसको नष्ट करनेकी प्रक्रिया भी अवगत कर ली. उपकरणोंका और दवाईओंके उत्पादनका आयोजन भी बना लिया था. वे लोग वेक्सीनेशनके संशोधनमें भी जूट गये थे और अंतमें आविष्कार भी कर दिया.

कोरोनाका कोम्युनीटी प्रसारण की शक्यताका निर्मूलन किया जा सकता था यदि जिन राज्योंमें विधान सभा की अवधि खत्म हो गई थी, और उनके लिये चूनाव न करवाया जाता.

लेकिन हमारा विपक्ष हमेशा सरकारका विरोध करनेकी ही मानसिकता रखता है चाहे देशके लाखों लोग मर ही क्यूँ न जाय. गतवर्ष ये विपक्षी महानुभाव अर्थतंत्रकी कथा कथित स्तर पर चोधार अश्रुपात कर रहे थे.

जो अन्य मार्ग उपलब्ध था वह यह था कि अस्पतालें और उनके संलंग्न कर्मचारीगण (डॉक्टर सहित) अपना धर्म सुचारु रुपसे निभाते. और राज्य सरकार उनके उपर और जनताके उपर कठोर निगरानी रखतीं.

नरेन्द्र मोदी तो राज्योंके मुख्य मंत्रीके साथ कमसे कम हर मासमें एक वीडीयो कोन्फरन्ससे संवाद करता था. लेकिन राज्यके मुख्य मंत्री जहां पर कोंगीकी स्वयंकी या तो मिलीजुली सरकारें थीं उन्होंने अपना कर्तव्य निभाया नहीं. ममता तो इन कोन्फरन्सोंमे उपस्थित भी नहीं होती थी.  बेशरमीकी और उद्दंडताकी सीमा पार करना ममता का स्वभाव है.

राज्योंका का क्या कर्तव्य था?

सभी राज्योंकी प्रकृति भीन्न भीन्न है. इसी लिये प्रत्येक राज्यकी एक भीन्न वेबसईट और माहिति प्रणाली होनी चाहिये. इसके साथ उस राज्यके सभी प्राईवेट और सरकारी चिकित्सालय संमिलित होने चाहिये.

राज्योंकी सरकारके मुख्यमंत्रीओंका और स्वास्थ्य मंत्रीयोंका कर्तव्य था कि वे सातत्य रुपसे अपने राज्यके कोरोना ग्रस्त लोगोंकी संख्या, चिकीत्सालयोंकी आवश्यकताओं पर और चिकित्सालयोंकी कार्यप्रणाली पर नीगरानी (अनुश्रवण) रक्खें और समय समय पर आवश्यक सूचना और आदेश दें. एक सप्ताहमें कमसे कम दो बार जिला स्वस्थ्य अधिकारीयोंसे एवं बडे अस्पतालोंसे कोन्फरन्स करके संवाद करें

चिकीत्सालयोंकी संख्या हजारोंमें होती है. राज्यका स्वास्थ्यमंत्री इन हजारों चिकीत्सालयोंके साथ संवाद नहीं कर सकता. लेकिन वह अपने हर जिल्ला प्रशासनके आरोग्य अधिकारीके साथ संवाद कर सकता है.

चिकीत्सालयोंका क्या कर्तव्य था?

चाहे चिकित्सालय सरकारी हो या ट्रस्ट संचालित हो, उनको अपनी एक सक्षम वेब साईट प्रणाली रखना आवश्यक है. इस वेब साईट राज्य और जिले आरोग्य प्रशासनसे संलग्न हो, और उसमे हर प्रकारकी माहिति लाईव अपडेट रखना आवश्यक है. जिससे जिला स्वास्थ्य अधिकारी चिकित्सालयकी कार्यवाही पर दृष्टि रख सकें. चिकित्सालयकी आवश्यकता पर वह चिकित्सालय, अपने राज्यके स्वास्थ्य मंत्रालयको अवगत करवा सकें.

कौनसी माहिति महत्त्वपूर्ण है?

उदाहरणः

कोरोनाके दर्दी के बेड की संख्या,

कोरोना दर्दीकी सूचि और संख्या जिनको बेड उपलब्ध किया गया,

प्रवर्तमान कोरोना दर्दीके लिये आरक्षित खाली बेडकी सख्या,

कितने दर्दीको प्रवेशके लिये नकारा,

प्रति दर्दीका नकारनेका कारण

कितने दर्दीके आवेदन प्रतिक्षामें है, उनके क्रमकी सूचि.

प्रत्येक दर्दीकी पहेचान आधारकार्डके नंबरसे होगी,

औषधोंके वर्गीकरणके साथ;

प्रवर्तमान औषधोंका जत्था

हरेक औषधकी प्रतिदिनकी हर दर्दी पर औसत खपत, गत कल के हिसाबसे, परसोंके हिसाबसे, नरसोंके हिसाब से …. गत सप्ताहके हिसाबसे और गत ३० दिनके हिसाबसे … ,

औषधका प्राप्ति समय (सप्लाय पीरीयड),

औषधके प्राप्ति समयके अंतर्गत औषधकी औसत खपत

चिकित्सकोंका लीस्ट,

चिकित्सकके मददकर्ताओंके उनकी केडरके हिसाबसे लीस्ट

दर्दीका चिकित्सा रीपोर्ट;

हरेक दर्दी का चिकित्सा रीपोर्ट कार्ड जिसमें, दर्दी कैसे आया, आनेके समय पर उसकी स्थिति (ओक्सीजन लेवल, हार्ट बीट, प्रेसर आदि), उसको आबंटित बेड नंबर, दर्दीको देखनेवाला चिकित्सक,  दी हुई दवाईयोंका नाम और जत्था, वजह, समय, देनेवालेका नाम केडर, और दर्दीकी स्थिति,  ये सब होना चाहिये. दर्दीके रीपोर्ट कार्ड, दर्दीका नाम, आधारकार्ड  के हिसाबसे होना आवश्यक है.

जब दर्दीका निष्कासन हो, तब उसकी स्थिति और प्रक्रिया यह सब भी होना अनिवार्य है.

न्याय तंत्र क्यों मौन है? संशोधनका और जाँच का विषय है?

न्यायतंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली अवयव पर मौन है.

वैसे तो न्याय तंत्र, राज्यको और केन्द्रको किसीभी घटना पर डांटनेका मौका छोडता नहीं है. ऐसा करके न्यायतंत्र अपनी संवेदनशीलता और सक्रियता दिखाता है. किन्तु निम्न लिखित सर्वाधिक प्रभावशाली अवयवका उल्लेख तक नही करता.

भारतका निवासी करदाता है. यदि वह गरीब नहीं है तो वह चिकित्सा भी पैसे दे कर करवाता है. भारतका निवासी परोक्ष या और अप्रत्यक्ष रुपसे सरकारको पैसा देता है.

यदि कोई भारतवासी व्यक्तिने चिकित्सालयमें चाहे सरकारी हो या प्राईवेट प्रवेश लिया तो उसका अधिकार बनता है कि उसके उपर जो चिकित्सा हो रही है वह उसको अवगत हो. अस्पताल (या चिकित्सक या अन्य चिकित्सा कर्मी) का व्यवहार पारदर्शी होना आवश्यक है.

यदि दर्दी अपनी अवस्थाके कारण स्वयं, ये सब माहिति मांगनेमें असमर्थ है तो उसके समीपी संबंधीको यह अधिकार दे सकता है. दर्दी अपने स्वास्थ्यके विषय पर अपने समीपी को अपने पास रख सकता है. वह अपना प्रवर्तमान (लाईव) रीपोर्ट अपने समीपी संबंधीको अवगत करवा सकता है. यह उसका केवल उपभोक्ता अधिकार ही किन्तु मौलिक अधिकार भी है. दर्दीके सामने एक सीसीटीवी केमेरा रखना चाहिये और दर्दीका लाईव रीपोर्ट वेब साईट पर होना अनिवार्य है.

दर्दीके उपरोक्त अधिकारके विरुद्ध चिकित्सालयों कि आपखुदी देखो ;

चिकित्सालय दर्दीकी स्थितिपर अपार्दर्शिता रखता है. यदि दर्दी मर भी गया तो उसको सेनीटाईज़ भी नहीं करतें है.

सरकार मृतदेहकी अंतीम क्रियाके स्थल और समय पर उपस्थित रहेनेवालोंकी संख्या पर भी नियंत्रण करती है. वास्तवमें सरकार और चिकित्सालयोंको प्रत्येक स्थितिमें संपूर्ण पारदर्शिता रखना चाहिये और सरकारको स्मशान को बार बार सेनीटाईज़ करना चाहिये.

न्यायालय, चिकित्सालय द्वारा दवाईयोंको प्राप्त करनेका काम दर्दीके उपर छोड देता है उसके उपर क्यूँ मौन और असंवेदन शील रहेता है? हम और क्या अपेक्षा, उससे रख सकते हैं?

दवाईयां प्राप्त करना चिकित्सालयका कर्तव्य है. इसमें जरा भी छूट नहीं देना चाहिये. हो सकता है कल ये चिकित्सालय, दर्दीके समीपी संबंधीयोंको बोले, हमारे पास ओक्सीजन नहीं है, आप लेके आओ, हमारे पास फलां कैंची नहीं है, हमारे पास फला चाकु नहीं है, हमारे पास फलां स्पाईक नहीं है, …. हम स्पेसीफीकेशन लिख देते है, आप वे सब लेके आओ. बेड, गदले, चद्दर, पीलो भी चिकित्सालय मंगवा सकता है

 क्या न्यायालय ऐसा न करके चिकित्सालयोंको, चिकित्सकोंको और सरकारके स्वास्थ्य मंत्रालयके संबंधित कर्मीयोंको लूट का और कालाबज़ारीको छूट देना चाहता है. “लूटो और लूटने दो … किसका मुद्रालेख है!!!

शिरीष मोहनलाल दवे

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