दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी – १
गत दो ओक्टोबरको सोसीयल मीडीया एवं यु-ट्युब पर महात्मा गांधीके विरुद्ध कई लोग तूट पडे थे.
गांधीजीका जन्म दो ओक्टोबर १८६९ को हुआ था. उनकी मृत्यु ३० जनवरीको हुई थी. ये दो दिन गांधीके विरोधीयोंके लिये एक पर्व के समान है जिसमें उनकी प्रच्छन्न मनीषा स्वयंका सत्यके प्रति एवं देशके प्रति कितना प्रेम और आदर है कि वे गांधीको भी छोडते नहीं है.
“ तो चलो हम भी पीछे क्यूं रहे. हम भी उनकी ही भाषा बोलेंगे चाहे वह “लुज़ टोकींग” और “तर्कहीन”
“ तो बोलो कहांसे प्रारंभ करेंगे?
“ बचपन से ही तो… !!!
“ गांधी जब छोटा था तब बेडमें पेशाब करता था ऐसा लिखेंगे क्या?
“ अरे भैया, वे तो सभी बच्चे जब कुछ मासके होते है तब बेडमें ही पेशाब और मलोत्सर्जन है. उसमें नया क्या है?
“ किंतु हम गांधीकी उम्र नहीं लिखेंगे तो औसा सिद्ध हो जायेगा न कि वह बचपनसे ही असंस्कृत था !!
“ किंतु ऐसा कहीं लिखा है? हमारा काम राईका पर्वत बनाना है, लेकिन उसके लिये राई तो होना चाहिये न?
“ तो हम क्या ऐसा लिखेंगे कि वह मांसाहारी था?
“ हां यह बात सही है. उसने खुदने लिखा है कि वह सशक्त होने के लिये चूपके चूपके मांस खाता था. वह बीडी भी पीता था. चोरी करता था. सुवर्णकी चोरी भी करता था. वैसे तो उसने पछतावा किया था और पिताको चीठ्ठी लिखके स्वयंको दंडित करनेको भी बोला था. किंतु हम चीठ्ठीवाली, “दंडित”करनेकी गुजरीश करनेवाली और पछतावा करने वाली बात छीपायेंगे.
“ यह हम कैसे लिखेंगे?
“ वह मांसाहारका आदि हो गया था, वह जूठ भी बोलता था. वह इतना मांसाहार करता था कि वह माताका बनाया हुआ सामका (सायंकालका) खाना भी “मुज़े भूख नहीं है, या पेटमें दर्द है ….“ ऐसा जूठ बोलके खाता नहीं था. जूठ बोलनेकी तो उसकी आदत थी. बीडी पीनेकी भी उसकी आदत पड गयी थी. उसको अपने चाचाकी बीडी तो क्या घरके नौकरकी भी बीडी चूरानेमें कभी शर्म नहीं आती थी. अरे वह तो नौकरकी जेबसे भी पैसोंकी चोरी करता था. जब पैसे कम पडते तो वह गहने भी चूराता था.
“ लेकिन बादमें तो वह शाकाहारी हो गया था …
“ अरे ये सब बकवास है. जो आदमी जूठ बोल सकता है वह जूठ लिख भी सकता है न? उसने शाकाहारके बारेमें क्या पढा और क्या लिखा वह सब हमें छीपाना है.
“उसकी कामेच्छाके बारेमें क्या लिखेंगे?
“अरे वाह, इसमें तो हम एक पुस्तक लिख सकते है. उसके पिता बिमार रहेते थे. उनको अपने पुत्रकी सेवा और सुश्रुषाकी अत्यंत आवश्यकता थी. उसके पिता अपने पुत्रकी उपस्थिति चाहते थे. लेकिन यह कमीना अपनी औरतके साथ रंगरेलीया मनाता था. वह अपनी औरत पर अत्याचार भी करता था. वह अपनी औरतको मायके तक नहीं जाने देता था. अरे जब उसके पिताके अंतिम सांस चल रहे थे तब भी वह अपनी औरतके साथ अपनी कामतृप्ति कर रहा था और बुलाने पर भी नहीं जाता था. पितृसेवाके धर्मकी तो बात ही छोडो.
“ लेकिन गांधीने तो बह्मचर्यके गुणगान गाये है न !! सत्य, अहिंसा, सादगी और ब्रह्मचर्य तो उसके मुख्य सिद्धांत थे न!!
“ अरे सब बकवास है. वह पूरा दंभी था. वह तो बचपनसे ही वेश्या गामी था. उसके आश्रममें उसने कई कडे नियम बनाये थे. कोई भी आश्रमवासी अपनी औरतके साथ भी सो नहीं सकता था. लेकिन गांधीको कोई बंधन नहीं था. वह कोई भी औरतके साथ सो सकता था और सोता था. गांधी बडा ही कामी और कामातुर था. वह तो नहेरुके साथ भी चालु था. गांधीकी औरत जिंदा थी तब भी वह किसीभी औरतको छोडता नहीं था, चाहे वह विवाहित हो, अविवाहित हो, या बच्ची हो, या चाहे वह अपने घनीष्ठ मित्रकी नज़दीकी संबंधी ही क्यूं न हो. वह तो पागलकी तरह पत्रव्यवहार भी किया करता था. इस आदमीकी कामातुरता मरते दम तक रही.
सावधान. इस लेखका हेतु न तो गांधीके विरोधमें लिखनेका है न तो मोदीके विरोधमें लिखनेका है.हमारा हेतु पवित्र है. और सत्यको प्रकाशित करना है.
हमसे कई बातें गुह्य रखी गई है.
किंतु एक कथन है कि आप यदि इतिहासको विस्मृतिकी गर्ता में दबाके रखते हो तो वह पुनर्जन्म लेके आपको (”आपको” से सूचित है आपके देशको) पुनः दंश दे के नष्ट करता है. हमारा भारतवर्ष ऐसे अनृत (असत्य) इतिहासकी शिक्षाके कारण पुनः पुनः नष्ट होता रहा है.
पूर्वकाल १८५७ में अंग्रेज शासन के सामने विद्रोह हुआ था. कैसे भी करके, अंग्रेज लोग उस विद्रोह को परास्त करनेमें सफल और विजयी हुए.
उनको एक ऐसी विद्वत्तापूर्ण सेना तयार करनेका विचार आया कि भारतीयोंको अपने गर्वशाली इतिहाससे विमुख करके, अपने द्वारा वर्णित इतिहासको पढाना पडेगा. और पूराणों द्वारा वर्णित इतिहासको उनमें लिखित चमत्कारोंके कारण असत्य सिद्ध करना पडेगा. उनका कहेना था, भला ऐसे कभी इतिहास लिखा जा सकता है क्या !! इतिहास तो केवल इतिहास होना चाहिये. पुराण तो सब गप्पे बाजी है.
अंग्रेजोंने लोकभोग्य मनोरंजनवाला इतिहास मूलसे ही नकार दिया. अंग्रेजोने ऐसी सेना सुसज्ज की, कि जो स्वयं को और अपने देशके भूतकालको असभ्य और निम्न स्तरका समज़े. और इस तरह भारतमें अर्वाचिन युगका निर्माण हुआ. डॉक्टर ह्युमने कोंग्रेसकी स्थापना की. उसके पूर्वकालमें कुछ दशक पूर्व, लॉर्ड र्बेंटिकने विश्वविद्यालयोंकी स्थापना की थी, उसका भरपुर लाभ लिया गया.
“श्वेत लोग ही उच्च कक्षाके है और वे ही अपने देश पर शासन करने के योग्य है” ऐसी घनिष्ठ मान्यता सभी विद्वानोंके मनमें ठोसकर भर दी.
राजा राममोहन रॉय, फिरोजशाह महेता, गणेश वासुदेव, दिनशा वाछा, बहेरामजी मलबारी, जीके पील्लाई, पी. आर. नायडु …. ये सब लोग अंग्रेज सरकारसे अभिभूत थे. ये लोग, आम जनता और अंग्रेज सरकारके बीचमें एक सेतूके रुपमें प्रस्थापित किये गये थे. समयांतरमें गोपाल कृष्ण गोखले, बालगंगाधर टीळख, मोतिलाल नहेरु आदि लोग आये. ये सब लोग भी अंग्रेज सरकारको भारत पर शासन करनेके लिये ईश्वर दत्त, योग्य शासक मानते थे. क्यूंकि इन सभीको इसी प्रकारकी शिक्षा दी गयी थी. गांधीभी इसी शिक्षाकी संतान थे.
अंग्रेज सरकारने गांधीमें अपने सर्वोत्तम भक्त को देखा. और उन्होंने इस गांधीको दक्षिण आफ्रिकामें प्रसिद्ध किया. गांधीकी प्रसिद्धिके कुछ बूंद भारत पर भी पडे. गांधीने दक्षिण आफ्रिकामें क्या किया, या उसको क्या सफलता मिली, उसकी कब कब पीटाई हुई, उसके दांत किसने, कैसे, क्यूं तोडे, वैसी बातें हम नहीं करेंगे. क्यों कि हमें केवल उसकी बुराई ही करना है.
गांधी महिलाको संपत्ति और दासी मानता था.
दक्षिण आफ्रिकामें जब वह था, तब उसने आधी रातको अपनी पत्नीको घरसे निकाल दिया था. उसने यह भी नहीं सोचा कि विदेशमें आधी रातको वह औरत कहां कैसे जायेगी? गांधी ऐसा तो नराधम था.
हां, एक बात सही है कि ऐसी उसकी इन सब बातोंका पता, हमें उसकी ही आत्मकथासे चलता है. यदि उसने यह सब बातें नहीं लिखी होती, तो हमे पता तक नहीं चलता. किंतु हमें उनको सत्यवादी नहीं कहेना है क्योंकि हमारा एजंडा उसकी केवल बुराई करना है. हम उसकी कही बातें भी बढा चढाके ही कहेंगे.
अरे भैया बढा चढाके कहेना भी तो एक कला है. यह भी तो अलंकारका हिस्सा है साहित्यके क्षेत्रमें.
तो यह नराधम और दुरात्मा गांधी, हार कर दक्षिण आफ्रिकासे भारत लौटा. लेकिन अंग्रेजोंने उसकी कार्यशैलीको विजयके रुपमें प्रस्तूत की. और भारतमें हिरो बनाके भेजा.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
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