दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी – २
“गांधीके बचपन के बारेमें हम कोई और बुराई नहीं कर सकते?
“ कर सकते है न, क्यूँ नहीं कर सकते? गांधी कामातुर था. उसने अपने पिताको उत्कृष्ट उपचार न करवाके मरने दिया था. अरे उसने तो अपनी औरतको ऐसे ही मरने दिया था.
“लेकिन जब हम गांधीकी फर्स्ट हेंन्ड पुस्तक पढते है, तो ऐसा तो हमे, जैसा आप कहेते है वैसा, तो कुछ भी लगता नहीं है.
“अरे बच्चु, तू एक बात याद रक्ख. कोई गांधीको पढता नहीं है. हमें केवल घटना का अस्तित्त्व है या नहीं, उसका ही खयाल रखना है. फिर विवरण और तारतम्य तो हमें ही देना है न ! प्रियंका वांईदरा क्या करती है वह मालुम है न ! वह बच्चोंसे क्या बुलवाती थी?
“यही कि, चौकीदार चोर है.”
“चौकीदार कौन है?
“नरेंद्र मोदी अपनेको चौकीदार कहेता है.
“तो फिर चौर कौन ठहेरा?
“नरेंद्र मोदी.”
“बस तो यही काम हमें करना है. मोदी भ्रष्टाचार हटाना चाहता है, तो हमे उन्हे ही “चोकीदार चोर है” ऐसा सूत्र बनाके, उसने भ्रष्टाचारके विरुद्ध जो भी कदम उठाए, उनको अविश्वसनीय कर देना है.
“लेकिन चाचु, गांधीने तो स्वदेशी अपनानेकी और स्वदेशीका प्रचार करनेकी बात कही थी, उसमें क्या बुरा था? इस बातमें हम, भारतकी जनताको कैसे असमंजसमें डालेंगे ?
“इसमें क्या है? स्वदेशीको अपनानेकी बात तो सर्वप्रथम सावरकरने कही थी. “स्वदेशी”का प्रचारका हक्कदार तो सावरकर थे. गांधी तो बडा चालु था. उसने सावरकरकी इस स्वदेशीकी बात “हाईजेक” कर ली, और अपने नाम कर दी. ऐसा घीनौना काम तो बेशर्म गांधी ही कर सकता है न?
“लेकिन चाचू, गांधीने ही तो, चरखा केंद्र स्थापना, हस्तबुनाईके केंद्र स्थापना, वितरण केंद्र स्थापना, … समग्र व्यवस्था और तंत्र प्रस्थापित करना और चलाना, उनके नियम बनाना … ये सब तो गांधीने ही किया था न ! जैसे कि जीवदया, प्रेम, अहिंसा परमोधर्मकी बातें, ये सब तो वेद के कालसे चली आती है, लेकिन इन सबके साथ बुद्ध और महावीर का नाम लिया जाता है. तो “स्वदेशी” आंदोलनसे गांधीका नाम जोडनेमें बुराई क्या है?
“अरे बच्चु. तू कब सुधरेगा? जो बात हमारे एजंडाके विरुद्ध जाने वाली है, उन बातोंको हमें स्पर्श ही नहीं करनेका. समज़े न समज़े? जब हम कहेंगे तभी तो जनताको पता चलेगा न !! ऐसी बातें तो हमे जनतासे छीपाना है.
“लेकिन चाचू !! गांधीने तो, जो कोंग्रेस मालेतुजार और बुद्धि-जीवीयोंकी संस्था थी, उसको आम गरीब के लिये भी खुला कर दिया और दूर सुदूर के गांवों तक कोंग्रेसको फैला दिया उसका क्या … !!!
“ अबे बच्चू, तू कब समज़ेगा? हमे ऐसी बाते करना ही नहीं है.
“ तो … और … हम क्या क्या कर सकते है?
“ हमारे पास तो कहेनेके लिये बहूत कुछ है. जिन जिन मुद्दोंपर गांधीको श्रेय मिलता है उन सबको, हमें विवादास्पद बनाके और वितंडावाद करके नष्ट करना. जैसे कि, ‘राष्ट्रपिता’, ‘महात्मा’, ‘स्वातंत्र्य दिलाने वाला’ …
“चाचू … !!! ‘राष्ट्रपिता’ किसे कहेते है? ‘स्वातंत्र्य’ किसे कहेते है? ‘महात्मा’, किसे कहेते है?
“देख बच्चू !! मेरी परीक्षा तू मत ले. तू मेरा चाचा है कि मैं तेरा चाचा हूँ ? तू मेरा भतीजा है तो भतीजा बनके ही रहे. मेरा चाचा बननेकी कोशिस मत कर. राष्ट्रपिता मतलब राष्ट्रपिता, स्वातंत्र्य मतलब स्वातंत्र्य, महात्मा मतलब महात्मा, …
“लेकिन चाचू … !! कोई पूछेगा तो क्या कहोगे?
“देख बच्चू !! हमारा राष्ट्र तो ५००० सालसे भी अधिक पुराना है. क्या इ.स. १८६९में पैदा होनेवाला गांधी, हमारे राष्ट्रका बाप हो सकता है? स्वातंत्र्य मतलब अंग्रेजी सत्ताका खातमा. महात्मा मतलब महान आदमी.
“नहीं चाचू ऐसा नहीं है. जो सोचनेकी सीस्टम बदल देता है वह नयी सीस्टमका पिता कहेलाता है. जैसे “आईन स्टाईन”ने भौतिक विश्वको समज़नेकी सोच बदल दी तो वह आधुनिक भौतिकशास्त्रका पिता कहा जाता है. “फेरेडे”ने वीजचूंबत्त्वको समज़नेकी सोच बदलदी तो वह वीज-चूंबकत्त्वका पिता कहेलाता है. “गेलेलियो”ने प्रयोगोंद्वारा सिद्धकरनेकी प्रणाली लागु की तो वह अर्वाचिन विज्ञानका पिता कहेलाता है …
“ तेरी भली थाय … तू मुज़े पढाता है बच्चू …!! तू पहेचानता नहीं है मुज़े… मैं कौन हूँ? मैं तो बारबार टीवी के वार्तालापमें आता हूँ. अखबारोंमें मेरी कोलमें चलती है, मुज़े लोग प्रवचन करने बुलाते हैं. मेरे लेख वर्तमान पत्रोमें छपते है, मेरी स्वयं की एक चेनल भी है, मेरी वेबसाईट भी है … मेरे पर आन्टीयाँ मरती है … हमारी सहयोगी महिलाओंके उपर अंकल मरते है …
“तो चाचू, आपकी दाल ईतनी काली क्यूँ है?
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
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