दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी – ३
October 24, 2021 by smdave1940
दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी – ३
चाचा – भतीजा संवाद गत ब्लोगसे चालु …
“ तेरी भली थाय … तू मुज़े पढाता है बच्चू …!! तू पहेचानता नहीं है मुज़े … कि, मैं कौन हूँ? मैं तो बारबार टीवी के वार्तालापमें आता हूँ. अखबारोंमे मेरी कोलमें चलती है, मुज़े लोग प्रवचन करने बुलाते हैं. मेरे लेख वर्तमान पत्रोमें छपते है, मेरी स्वयं की एक चेनल भी है, मेरी वेबसाईट भी है … मेरे पर आन्टीयाँ मरती है … हमारी सहयोगी महिलाओंके उपर भी कई अंकल मरते होगे …
“तो चाचू, आपकी दाल ईतनी काली क्यूँ है? चाचू, आप विषय मत बदलीये. आप क्या क्या है, आप क्या क्या कर रहे है या किनके उपर कौन कौन मरता है या आपके उपर कौन कौन मरता है, यह चर्चाका विषय नहीं है. चर्चाका विषय है तथा कथित दुरात्मा पुरुष और विनाश पुरुष की निंदा करना. आपको इस बातका भी पता नहीं कि साहित्यमें “पिता”का क्या क्या अर्थ होते है. आपने जो कहा, इससे तो आपका अज्ञान उजागर होता है. आप अपना अज्ञान स्विकारनेके स्थान पर विषयांतर कर देते है, या तो सामने वाले पर आप अंगत आक्षेप करने लगते है. इस बातसे तो आप अपनी असंस्कारिताका भी प्रदर्शन कर देते है. आप ऐसा क्य़ूँ करते है वह मैं दादुसे पूछुं?
“कौन है तेरा दादु?
“यह तो मेरा सीक्रेट है. मैं आपको क्य़ूँ बताउं? मैं मेरे दादुको स्पीकर पर रखुंगा. आप भी श्रवण कर पाओगे.
(अतः बच्चू-दाद्वोः संवादः)
“दादू !! मैं यह सोचता हूंँ कि, कुछ चाचूओंकी और आंटी / बुआओंकी दाल काली क्यों होती है? वैसे तो वे कभी कभी महान विद्यालयोंकी डीग्री धारक होते है. तो भी उनकी दाल काली क्यों होती है?
“मेरे खयालसे तुम्हारा कहेना यह है कि कुछ लोग तर्क करनेमें और समज़नेमें अक्षम होते हुए भी महानुभाव कैसे बन जाते है?
“जी हांँ, दादुजी, कुछ आम कक्षाके लोग और कभी कभी तो आम कक्षासे भी कनिष्ठ, स्वयंको महानुभाव कैसे समज़ने लगते है?
“मेरे खयालसे तू, ख्याति प्राप्त लोगोंको महानुभाव समज़ता है !!
“बिलकुल तो ऐसा नहीं, लेकिन सामान्यतः, ख्याति प्राप्त लोगोंको महानुभाव समज़ा जाता है. खास करके समाचार माध्यम द्वारा. क्यूँ कि ख्याति प्राप्त लोग समाचारमें आने से वाचक वर्गमें वृद्धि होती है ऐसा समज़ा जाता है.
“ बेटा, ख्याति, महानता और महानुभाव ये शब्द भीन्न भीन्न अर्थवाले है. और इसमें सामान्यकक्षाका व्यक्ति असंजसमें पड जाता है. यह बात आम समस्या है. जैसे की जवाहरलाल नहेरु, मोतिलालकी संतान थे और मोतिलाल, जवाहरलालको आगे लाना चाहते थे तो जवाहरकी तर्कशक्ति सामान्य कक्षाकी होते हुए भी ख्याति प्राप्त कर सके. फिर तो उसको पद भी मिल गया. तो पदके कारण भी महानुभाव बन गये. वैसा ही उनके वंशजोके बारेमें समज़ो.
“लेकिन दादू, डी.एन.ए. के कारण महानुभावकी संतान महान बननेमें सक्षम नहीं होती है क्या? जैसे की आम तौर पर माता-पिताकी आयु संतानोमें आती है वैसे ही डी.एन.ए.की वजहसे महानुभावत्त्व संतानोमें नहीं आ सकता क्या?
“जैसे भौतिक संपत्ति वारसागत मिलती है क्योंकी वह शरीरके बाहर होती है, और वह भौतिक है. लेकिन शरीरके अंदरकी संपत्ति जिसे हम बौद्धिक संपत्ति कहें तो वास्तव में वह “टेंडेंसी” (झुकाव) होती है. लेकिन मस्तिष्क के विकासके लिये कई और परिबल भी अति प्रभावक और बदलाव कारक है. जैसे कि परिपालन, वाचन, विचार, कर्म, मित्रमंडल, खानपान, स्मृति-शक्ति और आसपास बनती घटनाएं … हैं. स्मृतिको सक्षम बनानेके लिये बारबार रटना आवश्यक है. जो झुकाव है वह तो मातृपक्ष एवं पितृपक्ष के संबंधीयोंमेंसे कहींसे भी आ सकता है. वह तो मिश्रण है. इस प्रकार महानुभावकी संतान, माहानुभावत्त्व के लिये सक्षम नहीं होती है.
“ … तो दादू, कुछ लोग स्वयंको महानुभाव कैसे मानते है?
“पद मिलनेके कारण व्यक्तिको ख्याति मिलती है. पक्षका प्रमूख पद, पक्षका प्रवक्ता पद, प्रधानपद, शिक्षकपद, समाचार पत्र या टीवी-चेनलोंके मालिकोंसे पहेचान, पैसा, अभिनयकला, या अभिनयक्षेत्रको चलानेवालोंके साथ संबंध, … और शक्यताके सिद्धांत के अनुसार भी कभी कभी प्रसिद्धि मिल जाती है. और वह व्यक्ति अपनेको महानुभाव समज़ने लगता है.
“तो दादू … ऐसे व्यक्तिकी पहेचान क्या है?
“जब तक चलता है तब तक चलता है, लेकिन जब उसके सामने तर्कका मामला आ जाता है तब उसकी खुला पड जानेकी शक्यता बढ जाती है. जब ऐसा होता है तब, वह व्यक्ति या तो विषय बदलनेकी कोशिस करता है, या तो असंबद्ध बातें/तुलना करता है या तो सामनेवाले पर शाब्दिक हमला कर देता है. तू, टीवी चेनल पर चलती चर्चाओंमें देख सकता है कि कोंगीके कोई नेता या तो उनके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंके कोई नेता, उनको पूछे हुए प्रश्नके उत्तर देने के बजाय बीजेपी पर आक्षेप करने पर उतर आते है.
“सही कहा दादू … कुछ लोग आज भी महात्मा गांधीके फोबीयासे पीडित है. और ऐसे लोग अपनेको देशभक्त सिद्ध करनेके लिये बेतूकी बातें करते है. गोडसेने महात्मा गाधीका खून किया तो वे इस घटनाको अच्छी दिखानेके लिये इस घटनाका “गांधी-वध” नामांकरण करते है. जैसे “पिता” (राष्ट्रपिता वाला “पिता” शब्द) शब्द प्रयोगमें क्षति की, वैसे ही “वध” शब्द प्रयोगमें क्षति की. उन्होंने सोचा कि, जैसे दुरात्मा शिशुपाल, जयद्रथ, कंस, … है वैसे दुरात्मा गांधी भी है. जैसे शिशुपाल-वध, जयद्रथ-वध, कंस-वध, … हुआ, वैसे ही गाँधी-वध हुआ … इसमें क्या गलत है !!! हमारे कथित सुज्ञ लोग जो वास्तवमें अज्ञ है वे “शब्दोंका वाणी-विलास” करते करते भाषा-देवी पर दुष्कर्म करने लगे. जब उनके समक्ष यह तथ्य लाया गया तो उन्होंने एक असंबद्ध अनुसंधान लीन्क दिया और कहा “देख इसमें मैंने कहांँ “वध” शब्द प्रयोजित किया है?
“सही कहा बेटे तुमने … ऐसे लोग जो होते है आम कक्षाके या तो उससे भी निम्न कक्षाके, वे ऐसा ही करते है. “मूंँह बचाव” की स्थितिमेंसे भागनेके के लिये वे तुम्हारे पर अतार्किक तारतम्य निकालके चर्चासे भाग जाते है.
“यही हुआ दादु … वैसे तो मैंने गांधी-फोबियासे पीडित लोगोंको आहवाहन किया है कि “आप केवल एक ही बात ऐसी बताओ कि जिसके लिये केवल गांधी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है और आपके हिसाबसे देशको महत्तम हानि हुई हो.” गुजरातके एक वाचाल व्यक्तिने कहा “मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतिके जन्म दाता गांधीजी थे.” मैंने उनको अनुसंधान देके बताया कि ऐसा नहीं है.
उन्होने कहा गांधीजी मुस्लिमोंसे डरते थे. मैंने उस प्रसंगका गांधीजीके खूदके शब्दोमें दिखाया कि गांधीजीकी क्या प्रतिक्रिया थी और अनुसंधान भी दिया.
उन्होने फिर खिलाफतका मुद्दा उठाया. मैंने गांधीजीके कथनका संदर्भ दिया.
बात तो लंबी है. अंतमें फिर उन्होंने अपना इंदिराई संस्कार दिखाया और उल्टी ही बात की. [ईंदिराई कल्चर यह है कि कोई आपको जूठा कहे उसके पहेले आप उसको जूठा कह दो]. मैंने गांधीजीने खुदने क्या कहा था उसका अनुसंधान हर मुद्दे पर दिया था, और ये महाशयने एक भी संदर्भ नहीं दिया था, तो भी उन्होंने जरा भी शर्म रक्खे बिना लिख दिया कि मैंने कोई संदर्भ नहीं दिया और उन्होंने हर बात का संदर्भ दिया. इन्होंने बिलकुल अपना इंदिरा-नहेरुगांधी कल्चर दिखा दिया.
“बच्चू … ऐसा तो होना ही था. बडे नाममें कई बार छोटा व्यक्ति बैठा हुआ होता है. सियासती और वंशवादी पक्षोंमें ऐसा होना आम बात है. और कुछ कहेना है?
“जी हांँ दादु … एक व्यक्तिने तो कह दिया कि “यदि किसीने लाखोंका खून किया हो तो उसको मार देना चाहिये या नहीं. मुज़े सीधा उत्तर चाहिये.” मैंने कहा संदर्भ बताओ या तो पूरी कहानी सूनाओ. लेकिन वह तयार नहीं हुआ. और गाली देके भाग गया.
[स्पीकर और फोन बंद हुआ]
“ तो चाचू आपने सब सूना. चाचू आप जानते हो कि गांधीजीने सत्याग्रहके कुछ नियम बनाये थे. यदि आप जानते है तो मुज़े कहो. गांधीजी की अहिंसाकी परिभाषा क्या थी? सविनय कानून भंग कौन कर सकता है?
और दूसरी खास बात, गांधीजीके राजकीय क्षेत्रके योगदान को छोड कर उनका और क्या योगदान था? इसके बारेमें आप क्या जानते है वह मुज़े बताओ …
“चल हट, बच्चू … !! तेरे साथ बात करना बेकार है.
“चाचू, आप ने शायद श्री दिनकर जोषीजीकी “जीन्ना” पर लिखी किताब भी नहीं पढी है. जीन्ना की गांधीजीके विरोधकी भाषा और शैलीसे बढकर आजके कोंगीनेताओंकी और उनके सांस्कृतिक सहयोगी लुट्येन गेंगके नेताओंकी भाषा और शैली है.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
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