दुरात्मा गांधी और विनाशपुरुष मोदी – ४
गत ब्लोगसे चालु;
बच्चेने अपने चाचुसे बोलाः “ और दूसरी खास बात, गांधीजीके राजकीय क्षेत्रके योगदान को छोड कर, उनका और क्या योगदान था? इसके बारेमें आप क्या जानते है वह मुज़े बताओ …
“चल हट, बच्चू … !! तेरे साथ बात करना बेकार है.
“चाचू, आप ने शायद श्री दिनकर जोषीजीकी “जीन्ना” पर लिखी किताब भी नहीं पढी है. जीन्ना की गांधीजीके विरोधकी भाषा और शैलीसे भी बढकर, आजके कोंगीनेताओंकी और उनके सांस्कृतिक सहयोगी लुट्येन गेंगके नेताओंकी नरेंद्र मोदीके विरुद्ध भाषा और शैली है.
“कौन दिनकर जोषी?
“लो बस… कर लो बात. यदि आपने ‘दिनकर जोषीजी’को पढा नहीं और गांधीजीके विरुद्ध बोलते हो तो सब आपकी महेनत बेकार गयी. सोरी सोरी … आपने तो महेनत तो की ही नहीं है. इधर उधर के कुछ गांधी विरोधीयोंके या भारतकी संस्कृतिसे अज्ञ विदेशी लेखकों द्वारा लिखे, छूट पूट कथनोंमेंसे, आपके अनुकुल कथनोंको उठाकर, उनको ही ब्रह्म वाक्य मानकर, आप तो, गांधीकी कटू आलोचना कर देते है.
“बच्चू, तेरे कहेना मतलब क्या है? कोई मिसाल है?
“मिसाल के तौर पर एक लेखक एलन अक्षेलरोड ने लिखा है कि गांधीजी शाकाहारी इसलिये थे कि उनके एक मित्र जैन थे. जैन लोग शाकाहारी होते है.
“तो इसमें गलत क्या है?
“ ‘वैष्णव बनिये’ क्या कम शाकाहारी होते है? ब्राह्मण तो हड्डीको, पींछे को छूते तक नहीं. मावजीभाई दवे तो उनके कौटुंबिक सलाहकार थे.
“तो क्या हुआ? उसने जो सोचा वह लिख दिया. तूम तो बालकी खाल निकालते हो …!!!
“बात यह नहीं है कि वह गलत था. बात यह है कि मानव समाजका, एक व्यक्तिके उपर क्या प्रभाव है. बडे परिवर्तनके लिये कभी कोई एक ही परिबल प्रभावक नहीं हो सकता. ‘एलन अक्षेलरोड’ ने तो गांधीजीकी प्रबंधन निपूणता का असाधारण विश्लेषण किया है. गांधीजीकी नेतृत्व करने की क्षमताका भी खुबसूरत विश्लेषण किया है. जो बात तत्कालिन समाजसे संबंधित नहीं थी या तो कम प्रभावित थी, ऐसी बातोंका निरुपण, विदेशी विश्लेषक अच्छी तरह कर सकता है. लेकिन हिंदु समाजका विश्लेषण या उनसे संलग्न घटनाओंका विश्लेषण करना है तो हिंदुओंके साथ दो दशकके लिये जीना पडता है.
ईंग्लेंडमें गांधीकी प्रवृत्ति, साउथ आफ्रिकामें गांधीजीकी प्रवृत्ति, भारतमें मुस्लिमोंके साथ गांधीजीकी प्रवृत्ति, भारतमें अंग्रेज सरकारके साथ गांधीजीकी प्रवृत्ति, हिंदु समाजके साथ गांधीजीकी प्रवृत्ति, भारतकी अर्थव्यवस्थाके साथ गांधीजीकी प्रवृत्ति, हिंदु धर्मके साथ गांधीजीकी प्रवृत्ति …. इन सबके बारेमें विश्लेषण करना है तो भीन्न भीन्न क्षेत्रके ज्ञाता चाहिये. एक क्षेत्रका ज्ञाता लिख नहीं सकता.
एक विदेशी महिला इतिहासकार (?) संभव है वह रोमिला थापर की शिष्या हो, उसने लिखा, प्राचीन भारतके लोग, केवल कुत्तेको ही पहेचानते थे. बाकी सब प्राणीयोंको वे अश्व कहेते थे. कुत्तेको ‘श्व’ कहेते थे और बाकी प्राणीयोंको “अ-श्व” कहेते थे. (अ = नहीं. श्व= कुत्ता. अश्व = कुत्ता नहीं. कुत्तेसे भीन्न प्राणी = अश्व). रोमिला थापर का उल्लेख इस लिये किया है कि उसके कहेनेके अनुसार मुस्लिमों द्वारा मूर्त्ति तोडना और हिंदु राजा द्वारा मूर्त्ति को उठाके ले जाना एक ही बात है.
“तू कहेना क्या चाहता है, बच्चू?” चाचू उवाच.
“यही की ‘हम सत्य प्रिय है’ वाली कुछ लोगोंकी प्रणाली ऐसे ही चालु रहेगी और तथा कथित महानुभाव लोग, ठीक ठीक पढनेका कष्ट उठाने के बदले, सिंहावलोकन करके “ ‘वाणीविलास’ करनेमें अधिक परिश्रम करेंगे और छूटपूट कथनोंका सहारा लेके , अपने द्वारा पूर्वनिर्धारित तारतम्य निकालते रहेंगे, तो सौ सालके बाद, हमे क्या पढनेको मिल सकता है मालुम है !!!
“तुम बोलो तो हम भी सूने” चाचू उवाच.
“ तो चाचू सूनो … ई.स. २१२१ का यह भविष्यकालका लेख पढो;
नरेंद्र मोदीने सन १९८९ -९० में काश्मिरमें १००००+ हिंदुओंका नरसंहास करवाया. हजारों हिंदु औरतोंका गेंग रेप करवाया और पूर्व आयोजित तरिकेसे लाखों हिंदुओंका पलायन करवाया. इस बात पर, पाकिस्तान की एक चेलन पर चर्चा हो रही थी, तब शशि थरुरने अनुमोदन किया. नरेंद्र मोदीने कभी भी इस बातको नकारा नहीं. आर. एस. एस. के कोई भी नेताने भी इस बातको नकारा नहीं. आप जानते होगे कि नरेंद्र मोदी उस समय आर एस एस द्वारा संचालित बीजेपीका महामंत्री था.
मुस्लिमोंका तूष्टीकरण करनेमें नरेंद्र मोदी अग्रेसर था. इनके तो हजारों उदाहरण है. उसने कश्मिरमें सबसे अधिक प्रोजेक्ट डाले. उसने जम्मुको अन्याय करना चालु रक्खा. वह बोलता रहेता था कि सबका विकास सबका विश्वास. सबका विश्वास शब्द से सूचित था मुस्लिमोंका विश्वास.
मोदी देशके लूटनेवालोंसे मिला हुआ था. इन लुटनेवालोंको उस समयका मीडीया लुट्येन गेंगसे पहेचाना जाता था. ये लुट्येन गेंगवाले पाकिस्तान और चीन परस्त थे. ममताके सामने नरेंद्र मोदीने बीजेपीको हराया. लेकिन अपने प्लानको छीपाने के लिये केवल ममताको ही हराया. जो मुख्य मंत्रीको हरा सकता है वह क्या ममताकी पार्टीके आम प्रत्याशीयोंको नहीं हरा सकता क्या? नरेंद्र मोदीने मूंह छीपानेके लिये केवल दो डीजीटमें बीजेपीकी सीटें जीता. मोदीके मुस्लिम तुष्टीकरणकी नीतिस, कई लोग बीजेपीको छोड कर भागने लगे थे. बीजेपीका पुराना साथी “शिव सेना” भी मोदीकी मुस्लिम तुष्टीकरणकी नीतिके कारण बीजेपीसे अलग हो गया था.
सुब्रह्मनीयन स्वामी नामका बीजेपीका एक महान एवं होनहार नेता था. उसने राममंदिरका केस लडा था, रामसेतूका केस भी लडा था. दोनो केस जितवाये थे. इस नेताने लुट्येनगेंगके कई नेताओंको न्यायालय में मुकद्दमा लडके कारावासमें भेजा था. नरेंद्र मोदीने इस स्वामीको कभी भी एक छोटासा मंत्री भी नहीं बनाया.
नरेंद्र मोदी को केवल वाह वाह चाहिये थी. उसको लोग फेंकू भी कहेते थे. लेकिन वह अपनी गोदी मीडीया द्वारा अपनी प्रसिद्धि करवाता था. वह सत्ताका लालची था. वह प्रच्छन्न रुपसे इंदिरा नहेरु गांधीका प्रशंसक था और जब आवश्यक्ता पडने पर इन तीनों की प्रशंसा कर लेता था.
उसने बाजपायी जैसे कदावर नेताको ब्लेक मेल करके, खुदको गुजरातका मुख्य मंत्री बनवाया था. और गुजरातका मुख्यमंत्री बननेके बाद वह देशका प्रधान मंत्री बननेका स्वप्न देखा करता था.
अष्टम पष्टम करके वह देशका प्रधान मंत्री भी बन गया था.
यह नरेंद्र मोदी अपने बारेमें कहा करता था कि वह १८ घंटा काम करता है लेकिन वास्तवमें उसको आंखे खुला रखके सोनेकी आदत थी.
उसको अपने भाई, बहन, पत्नीसे बनती नहीं थी. वह अपनी अतिवृद्ध मांका भी खयाल नही रखता था.
नरेंद्र मोदी एक अत्यंत कामी पुरुष था. दुसरा गांधी ही समज़ लो.
महिलाओंका उपभोग करनेका आदि था. जब वह मुख्य मंत्री था तबसे वह महिलाओंके लिये योजनाएं बनाता था ताकि ज्यादासे ज्यादा महिलाओंका वह उपभोग कर सके. सखी-मंडल, मा, आशावर्कर … ३३ % महिला आरक्षण ये सब क्या था?
वास्तवमें नरेंद्र मोदी मोहनदास गांधीका अवतार था. उसने अपने “मोहनदास गांधी” के अवतारमें कोई सत्ताधारी पद का उपभोग किया नहीं, क्यों कि वह जीम्मेवारी लेना नहीं चाहता था.
लेकिन उसके बाद उसने अपने नरेंद्र मोदीके अवतारमें नहेरु, इंदिरा, संजय, राजिव, सोनिया के ७० सालके शासनसे सिख लिया कि अपनी सत्तासे कुछ गीनेचूने खरबपतियोंको मालामाल करते रहो और अपनी वाह वाह करवाते रहो तो “खेला” आपकी पकडमें ही रहेगा. यदि आवश्यकता पडे तो जैसे इंदिराने कहा था कि “मेरे पिताजीको तो बहूत कुछ काम करना था लेकिन ये सींडीकेटके नेतालोग मेरे पिताजीको काम करने नहीं देते थे”. कोई भी बहाना बता दो. बात खतम. संस्कृतमें एक श्लोक है कि;
यस्यास्ति वित्तं स नर कुलिनः, स श्रुतवान स च गुणज्ञः ।
स एव वक्ता, सच दर्शनीय, सर्वे गुणा कांचनमाश्रयन्ते ॥
जिस व्यक्तिके पास धन है, वह ही उच्चकुलका है, वही वेद ज्ञाता है, वही गुणोंको जाननेवाला है, वही अच्छा बोलनेवाला है, और वही सुंदर है (जैसेकी शाहरुख खान), सभी सद्गुण पैसेके गुलाम है.
ऐसे तो कई वीडीयो, लेख, समाचार आदि आपको १०० सालके बाद मिलेंगे. क्यूं कि उत्तर देनेवाला नरेंद्र मोदी तो होगा नहीं. जैसे आज महात्मा गांधी नहीं है.
“अरे बच्चू तू तो है, उत्तर देनेवाला गांधीके बदले.
“मैं तो हूंँ. लेकिन मेरी बात तो लोग नकार दे सकते है. मुज़से कई अधिक संख्यामें और अधिक शोर करने वाले वाजिंत्र, और लोगोंके पास है. मैं तो गांधीजीका अंतेवासी हूंँ नहीं. और जो गांधीजीके उपर कहेनेमें विश्वसनीय माने जाते है वे तो बोलेंगे नहीं. क्यों कि वे तो समज़ते है कि गांधीजी तो एक सूर्य है. सूर्यके सामने थूकनेसे सूर्यको कोई हानि होती नहीं है. गांधीजी के अनुयायीयोंकी यही मानसिकता है. आपने कभी गांधीवादी संस्था चलानेवालोंका गांधीका बचाव करते पढा है. वैसा ही हाल नरेंद्र मोदीका होगा.
“लेकिन तू तो गांधीजीका बचाव करने पर उतर आता है. इसका क्या?
“आपने ‘नकली किला’ काव्य पढा है?
“नहीं तो …!!
“तो पढ लो.
आज भी चित्तौरका सून नाम कुछ जादूभरा, चमक जाती चंचलासी चित्तमें करके त्त्वरा … “
…………….
राणाने अपनी प्रतिज्ञाका तात्कालिक पालन करनेके लिये बूंदीका नकली किला बना दिया (जैसे आज कुछ लोग अपने मनसे एक नकली कपोल कल्पित गांधी बना देते है, फिर उसको ….) और उसको तोडने के लिये सज्ज हो जाता है.
ऐसा क्यूंँ करता है वह राजा?
क्यूंँ कि उसने आवेशमें आके प्रतिज्ञा ली कि “दूर्ग बूंंदीको तोडे बिना ही अब कहीं, ग्रहण अन्नोदक करुं तो मैं प्राकृतिक क्षत्रीय नहीं”
लेकिन बूंदीके दूर्गको तोडना तो आसान नहीं था. और बिना खाये पीये कैसे जिंदा रहा जा सकता है. “ईष्ट सिद्धि कहांँ रही जब न साधन (जिवन) ही रहा!!!”
तो नकली किला बनाया जाता है.
नकली किला तोडनेके लिये राणा सज्ज हो जाता है. ….
(अब आप वह कविता ही पढो. दिलको छूने वाली है)
…
शिरीष मोहनलाल दवे
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