नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ३
गत प्रकरणमें हमने लिखा था, चाचूओंका और बुआ/आंटिओंकी सामान्य प्रवृत्ति रही है कि; असली गांधीको पढो नहीं, किसीने जो बोलदिया उसको या तो स्वयंने कुछ गांधीजीके उपर सुनिश्चित और पूर्वनिश्चित तारतम्य निकाला उसके उपर ही बोलो.
जूठका एक नकली किला बनाओ … बोलो कि यही असली किला है. फिर उस नकली किलेको तोडो. लोगोंको बोलो कि हमने कैसे असली किला तोडा.
लेकिन इससे फायदा क्या …? यदि इससे फायदा भी है तो किसको फायदा?
ऐसे प्रश्न अवश्य उठते है. यह अवश्य संशोधनका विषय है. लेकिन वह हम बादमें देखेंगे कि इसका असर खास करके हिंदुओं पर और देशके उपर क्या पडने वाला है.
अभी तो हम कुछ चाचूओंको और बुआओंको देख लें. हम कभी “रोमीला थापर” जैसी बुआ, और “करण थापर” जैसे चाचूओंकी बात नहीं करेंगे, क्यों कि ऐसे लोग प्रमाणित देश द्रोही है.
आपको फिरसे एक बार बता देता हूंँ कि चाचूएं और बूआएं अनेक है. वैसे तो बुआएं कम है, लेकिन चाचूएं अगणित है.
हम किसीका नाम नहीं लेंगे. हमसे चर्चित बिंदुओंवाली (टोपिकवाली) टोपी/पगडी जिन चाचूओंको और बुआओंको फीट होती है तो वे लगाले. यदि उनको फीट नहीं भी होती है फिर भी जिन चाचूंओ और बुआओंको वह लगानी है तो भी वे लगा सकते है. हमे इससे कोई समस्या नहीं है.
आप कहोगे कि जो बुआएं है, वे कैसे टोपी/पगडी लगाएगी !!!
अरे भाईसाब, आज तो फर्जी सच बोलनेकी फैशन है. क्या यह असंभव नहीं है कि महिलाएं जूठ नहीं बोल सकतीं !
अब मुद्देकी बात करेंगे.
दो चाचू थे. एक बुआजी थीं.
तीनो एक विषय पर चर्चा कर रहे थे. उस चर्चामें जो भी कथन बोले जाते थे, और तारतम्य निकाले जाते थे उनमें ये तीनों, उन प्रस्तूतियोंका आनंद लेते थे.
संस्कृतका एक श्लोक याद आगया, मानो ऐसा लगता था;
ऊष्ट्राणां च गृहे लग्नं, गर्दभाः शांतिपाठकाः ।
परस्परं प्रशंसंते अहो रुपं अहो ध्वनिः ॥
ऊंटोंके घरमें लग्न हो और गधे शांति पाठ कर रहे हो
ये सब परस्पर एक दुसरेकी प्रशंसा कर रहे है; क्या मीठा आपका सूर है !!! … वाह क्या सुंदर रुप है … !!!
(इसको दो चाचू और एक बुआ तीनोंने जिन शब्दोंका चयन किया था उनमें उनकी परस्पर स्विकृतिके थी. इस बात पर कोई शक नही)
इन तीनोंका संवाद सूनके कोई एक बच्चूने उनको लिखा (संक्षिप्त) विस्तृत के लिये इस इमेलके संलग्न फाईल देखिये; या मुज़े इमेल करें, या यहां पर लिखें.
प्रिय चाचूएं और बुआजी,
आपके संवाद का शिर्षक है “गांधीसे मोह भंग”. आप तीनों परस्परके कथनोंसे संमत दिखाई देते है .
“चाचू – १”जी, आपने एम.के. गांधीकी हत्याको “गांधी-वध” शब्द से प्रस्तूत किया. “वध” शब्दका आपके द्वारा चयन होना यह दिखाता है कि जैसे “जयद्रथ वध”, “कंस वध”, “शिशुपाल वध” … हुआ वैसे “गांधी-वध” हुआ. क्या यह माता सरस्वति पर दुस्कर्म नही है?
फिर आपने “राष्ट्र पिता” शब्द जो गांधीजी के लिये कहा जाता है उसके उपर भी विरोध जताया. क्यों कि भारत तो हजारों साल पूराना राष्ट्र है. उसका पिता (उन्नीसवी शताब्दीका) गांधी कैसे हो सकता है?
आप जानते है इटलीके लिये राष्ट्रपिता कौन था? इटलीका राष्ट्रपिता “गेरीबाल्डी” था. आपका क्या कहेना है? इटली भी तो दो हजार सालसे अधिक पूराना है.
आप आगे आईए, और दिखाईए, कि, आपके हिसाबसे, सबसे प्रभावशाली मुद्दा कौनसा है, जिसके लिये गांधीजी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है, और उससे देशको सबसे अधिक नुकशान हुआ है.
लिखित बच्चू
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(चाचू का उत्तर )
“गांधी की अहिंसा और राजनीति” और “गांधीके ब्रह्मचर्यके प्रयोग” ये दोनों बुक एक साल पहेले प्रकाशित हुई है. वे दोनों “कलेक्टेड वर्कस ओफ महात्मा गांधी पर आधारित है. इन पर आप क्षति निकालीये.
जो हमारी तीनोंकी चर्चामेंसे आपको एक भी बात अच्छी नहीं लगी तो आगे चर्चा व्यर्थ है.
लिखित चाचू
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फिर बच्चूने क्या लिखा?
बच्चूने प्रत्युत्तर लिखा
क्या आप “गांधी – वध” में “वध” शब्दके औचित्यको सिद्ध कर सकते है?
“राष्ट्र पिता” की परिभाषा पर आप प्रकाश डाल सकते हैं? “राष्ट्र पिता”का प्रणालीगत “पिता” के अतिरिक्त क्या अर्थ है?
मैं आपको “फलां फलां पुस्तक पढो,” ऐसा नहीं कहूंँगा.
मैं आपके साथ इन दो शब्द प्रयोग पर ही चर्चा करना चाहता हूंँ.
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चाचूने लिखा
मैंने न तो मेरी बुकमें “वध” शब्दका उपयोग किया है न तो मेरे लेखमें उपयोग किया है.
“राष्ट्रपिता” एक मूर्खता पूर्ण शब्द है.
यदि आप फिर भी आपके प्रश्नका उत्तर चाहते है तो निम्न दर्शित वीडीयो देखो.
“मैंने गांधीको क्यूंँ मारा”गोडसे का बचाव. कोएनराड एल्स्ट.
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बच्चूने लिखा
हमारी जो बात है वह “गांधीसे मोह भंग” वीडीयोमे आप तीनोंके संवादकी बात है.
आपको “गांधीवध” और “राष्ट्रपिता” के मेरे प्रश्न पर उत्तर देना है.
आप द्वारा प्रेषित वीडीयोकी तो बात ही नहीं है.
यदि आप गांधीकी हत्याको उचित मानते है तो मेरे कुछ प्रश्न है;
“हांँ” या “ना” में उत्तर दजिये.
भाग-१
(१) कया आप गांधीजीके खून पर चल रही न्यायिक प्रक्रियामें जो बातें बताई, उन का अनुमोदन करते है?
(२) क्या आप गोडसेकी बातोंका अनुमोदन करते है?
(३)क्या गोडसेने जो बातें कही वे, और किसीको पता ही नहीं था?
(४) क्या गोडसे कोई खास गुप्तचर सेवा चलाता था जो सरकारसे चलती गुप्तचर सेवासे भी उत्कृष्ट थी?
(५) गोडसेने गांधीको मारनेका कारण बताया कि, गांधी ५५ करोड रुपया पाकिस्तानको दिलवानेके लिये आमरणांत उपवास पर बैठे थे. क्या इस बातका आप अनुमोदन करते है?
भाग-२
(१) न्यायाधीशने इस मतलबका कहा कि, “यदि मुज़े यहांँ उपस्थित जनताके बहुमतसे न्याय करना है तो मुज़े गोडसेको बरी कर देना है.” क्या आप मानते है कि न्याय देना बहुमतके आधारसे मान्य करना चाहिये?
(२) आप मानते है कि जिसके उपर (गांधी) आरोप है उसको सज़ा देनेसे पहेले उसको क्या कहेना है वह सूनना चाहिये?
(३) गोडसेने गांधीजीको सज़ा देनेसे पहेले गांधीजीको सूना था?
(४) क्या धारणाओंके आधार पर किसीको सजा देना योग्य है?
मैं मेरी बात दोहराता हूंँ. आप, अपने हिसाबसे, सबसे प्रभावशाली मुद्दा कौनसा है जिसके लिये, गांधीजी ही सबसे अधिक जीम्मेवार है और उससे देशको सबसे अधिक नुकशान हुआ है?
आपने जो वीडीयो “मैंने गांधीको क्यूंँ मारा”गोडसे का बचाव. कोएनराड एल्स्ट. भेजा है.
(मुझे, एक से एक संवाद चाहिये. मैं कुछ पूछुं और सामने वाला एक विडीयो भेज दे, जिसमें, कोएनराड लिखित गांधीके जीवनका अपना नेरेटीव्ज़ भेजे, उसका कोई मतल ही नहीं. यदि आप बुकके पन्नोंके फोटोका वीडीयो बनाके भेजो और फिर कहो कि यह तो बुक है वीडीयो नहीं. ) यह कोई चर्चा नहीं है.
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चाचूने लिखा
आप वीडीयो और बुकका भेद समज़ते नहीं.
आप अतिरेक करते है वह समज़में नही आता.
आप शब्दोंके उपर विरोध करते है.
आपके साथ संवाद नहीं हो सकता.
मैं संवाद रोक देता हूंँ
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बच्चूने लिखा
“गांधीसे मोहभंग” वाला आपका तीनोंका संवाद एक कलाक तक सूना. आप तीनों हर बात पर एक दुसरेसे सहमत दिखाई देते थे, और सहमत है भी. किसीने किसीका किसी बातका विरोध नहीं किया है.
आपका संवाद अतार्किक था. मैंने दो शब्द-प्रयोगवाले दो कथन पकडे.
वे दोनों कथन, गांधीजी के उपरके आपके अभिप्राय को उजागर करते थे. उन पर चर्चाके लिये मैंने प्रश्न किये है.
उपसंहार
गांधी-विरोधीयोंमें एक प्रतिक्रिया समान रुपसे है कि, या तो विषयको बदल देना, या तो कोई लेख या विडीयो-लींक सामने वालेको दे देना. आपने वही किया. गांधी-विरोधीयोंको “वन टु वन” चर्चा करनेका कोई कष्ट लेना नहीं है.
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बुआ जी की बात;
गांधी-फोबिया पीडीतोंका दुसरा एक वीडीयो सामने आया.
इस वीडीयोमें एक यंग महिला, अपने हिसाबसे रामराज्यका विश्लेषण कर रही थी. और वही बुआजी, उसमेंसे, गांधीजीकी समज़ का रामराज्य पर, अपना अर्थघटन लगाके, गांधीजीकी बुराई करना चाहती थीं. बुआजी इसके लिये उत्सुक, एवं प्रयत्नशील रहती थीं. बुआजी, उस महिलाके शाब्दिक एवं अप्रच्छन्न समर्थनके लिये प्रयत्नशील रहती थीं.
महिला भी चालाक थी. जब बुआजी अपना उपद्रव गांधीके उपर दिखाती थीं, तब वह महिला मंद मंद मुस्कराती थीं. वह बुआजीका अपमान करना चाहती नहीं थीं ऐसा स्पष्ट दिखाई देता है.
बुआजी बार बार गांधीजीके रामको “पुतलावाला राम” स्थापित करना चाहती थी.
बुआजीने पुतलावाला राम शब्द कहांँसे निकाला? इस बातको तो राम ही जाने.
वाल्मिकीका राम लो, या तुलसीदासजीका राम लो, या गांधीजीके राम लो … तीनों पुरुष तो एक ही है. तीनो राम, दशरथ राजाके ज्येष्ठ पुत्र है. लेकिन रामके दो स्वरुप है. एक ईश्वर और एक राजा राम. वाल्मिकीके राम विष्णुके अवतार है. तुलसीदासके राम ब्रह्म स्वरुप है. और महात्मा गांधीके राम सबके हृदयमें रममाण परम तत्त्व है. जब “राजा राम” की बात होती है तब आदर्श राजा (शासक) की बात होती है.
कुछ मुस्लिम लोग हिंदुओंकी बुराई करनेके लिये, हिंदुओंको बुत – परस्त कहेते हैं. संभव है कि, यह बुआजी भी गांधीजीको अपमानित करनेके लिये, गांधीजीके रामको “पुतलावाला राम” नामसे पहेचान करवाती है.
शिरीष मोहनलाल दवे
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