नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ५
November 24, 2021 by smdave1940
नकलीको असली कहो और ध्वस्त करो – ५
यदि आप देश प्रेमी और राष्ट्र वादी है तो आपका कर्तव्य क्या है?
आपको एक बात समज़ना चाहिये की कोंगी,जिसको, कुछ लोग अज्ञानतावश और तर्कहीनता (राजकीय पक्षकी परिभाषा समज़नेका अभाव) के कारण “कोंग्रेस” कहेते है. उनकी यह बात जो लोग जनतंत्रकी परिभाषा और पक्षकी परिभाषा समज़ते है उनके लिये अस्विकार्य है. हमारा इस ब्लोगका विषय वह नहीं है. इसलिये हम इसकी चर्चा करेंगे नहीं.
हमें “कोंगी मानसिकता” समज़ना चाहिये कि कोंगी (कोंग्रेस) कोई भी हथकंडे अपना सकती है. जो पक्ष खुले आम कोमवादी आचरण करता है एवं खुले आम देशद्रोही आचरण करता है वह पक्ष हिंदुओंका विभाजन, हर मुद्दे पर कर ही सकता है.
कोंगीकी रणनीतिका यह एक अविभाज्य अंग है कि गांधीजीके सिद्धांतोंका खून तो हमने बार बार किया और करते रहेंगे, किंतु हमें गांधीजीकी निंदा भी करवाना है और उसको फैलाना भी है. कोंगीयोंको मालुम है कि गांधीजी एक महात्मा थे और उसके लाखों चाहनेवाले मध्यम स्तरके ज्ञानी और अज्ञानी दोनों है. इनमें विभाजन करना शक्य है. क्यों कि मूर्खता कोई कोम्युनीटीकी मोनोपोली नहीं है. यह काम हम दुसरोंसे करवायेंगे.
कुछ लोग इस बातको समज़ नहीं सकते है. भारतमें इस परिस्थितिका होना एक विडंबना है और अफसोस की बात है.
नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार यह बात समज़ती है. लेकिन कुछ लोगोंको यह बात हजम नहीं होती है. इससे देशको अवश्य हानि हो सकती है.
कोंगीयोंकी लुट्येन गेंगके लिये कोई भी निंदास्पद व्यवहार असंभव नहीं है. उनके अधिकतर मतदाता अटल है.
यह बात समज़ लो, कोंगीने राक्षस होनेके नाते, जब भी कोंगीके उपर प्रहार पडता है तो जो रक्तबिंदुएं धरती पडते है उनमेंसे और राक्षस पैदा होते है.
इसका आरंभ राक्षस नहेरुसे हुआ है. उसके बीज राक्षस नहेरुने ही १९४६में बोयें थे.
“किसीभी राज्यकी समितिने पक्ष प्रमुखके पद पर नहेरुके नामका प्रस्ताव पास किया नहीं है” ये समाचार जब गांधीजीने उस मानवरुपधारी, राक्षस नहेरुको बताया, तब नहेरुने अपना पक्ष-प्रमुख बनने का आवेदन वापस नहीं लिया. यदि नहेरु जनतंत्रवादी होते तो उनका कर्तव्य था कि वे अपना आवेदन वापस लेेले. नहेरु मौन रहे. वे अन्यमनस्क मूंँह बनाके वहांसे निकल गये. इस राक्षसके मनमें क्या था, वह गांधीजीने भांप लिया कि नहेरु कोई साहस करनेवाले है.
उस समयकी परिस्थिति को याद करो. केबीनेट मीशन देशका विभाजन करने पर तुला था. पाकिस्तान, खालिस्तान, दलितस्तान, द्रवीडीस्तान … की मांगे तो थी ही. उस समयकी कोंग्रेसका प्रयास था कि भारतका विभाजन कमसे कम हो.
नहेरुको तो हर हालतमें प्रधान मंत्री बनना ही था.
भारतकी संस्कृतिमें राक्षसका अर्थ क्या है? प्राचीन अर्थ भीन्न है. लेकिन प्रचलित अर्थ यह है कि जो स्वार्थके लिये यज्ञ (कर्म) करता है वह राक्षस है. जो विश्व हितमें यज्ञ करता है वह मानव है. जब स्वार्थ ही ध्येय है, तो जूठ तो बोलना ही पडेगा … सत्यको गुह्य रखना पडेगा … प्रपंच करना पडेगा … माया फैलानी पडेगी…
नहेरुने प्रारंभसे ही कोंग्रेसके भीतर एक समाजवादी-गुट बनाके रक्खा था. समाजवादी होना एक फैशन था. जैसे आजके युवाओमें दाढी रखनेका फैशन ३/४ सालसे चलता है. राक्षस नहेरुकी एक माया थी कि वे नौटंकी करनेके उस्ताद थे. इसलिये नहेरु (सुभाषचंद्रके अभावमें) जनतामें काफि लोकप्रिय थे.
यदि कोंग्रेसका विभाजन उस समय होता तो कोंग्रेस, केबीनेट मीशनके साथ सियासती परिसंवादमें अवश्य कमजोर बनती. नहेरु कमसे कम, उत्तरांचल राष्ट्र के प्रधान मंत्री बनते. देशी राज्योंके कई राजा भी अपना स्वतंत्र राष्ट्र मांगते ही थे. ऐसी परिस्थिति बननेका संभव था. गांधीजी ऐसा साहस करना नहीं चाहते थे. गांधीजीने सरदारसे वचन ले लिया कि सरदार पटेल ऐसी हालतमें कोंग्रेसको तूटने नहीं देंगे. सरदार पटेलने वचन दिया भी.
गांधीजीको मालुम था कि, लोकशाहीमें कोई भी व्यक्ति (जबतक सूरज-चांद रहे तब तक) कोई होद्दा पर आजीवन तक रह नहीं सकता. व्यक्तिको चूनावसे गुजरना पडता है.
गांधीजीको यह भी मालुम था, कि नहेरु मायावी है. और वे कुछ भी कर सकते है. स्वतंत्रता मिलनेके बाद इसीलिये गांधीजीने कोंग्रेसका विलय करनेको कहा. क्यों कि गांधीजी जानते थे कि नहेरु नौटंकी बाज है, और सत्ताके लिये कुछ भी कर सकते है. वैसे तो १९४८में सरदार पटेल का कद असीम बढ गया था. लेकिन वे आमचूनाव तक जिंदा नहीं रह पाये. यदि वे जिंदा रहेते तो १९५२के बाद, भारतके विकास का एक भीन्न स्वरुप होता.
नहेरुने अगणित गोलमाल करके और जूठकी दुकान खोलके कई जगह पर जीते हुए प्रत्याशी को हरा दिया. चूनाव की प्रणाली ही अपार क्षतियुक्त थी.
क्या करें?
नहेरुकी टीमके सदस्य नहेरु जैसे बुरे नहीं थे. नहेरु ही अपने पोर्टफोलीयोमें विफल रहे लेकिन अन्य मंत्रीयोंने अच्छा काम किया. नहेरुने विदेशनीतिमें अपने आर्षदृष्टिके अभावके कारण और वैचारिक धूनके कारण असीम गलतियां की जो आज भी देश भूगत रहा है.
लेकिन कोंगी राक्षसोंकी माया अपार है.
इन मायामें हमारी कई बुआएं और चाचूएं फंसे हुए है. वे नहेरुसे कहीं अधिक गांधीजीकी निंदा करते है. क्यों कि गांधीजी तो मर गये है.
नहेरुवीयन तो जिंदा है. उनके सहायक राक्षसोंने (जैसे कि ममता, शरद, उद्धव, केज्री, मुल्लायम, अखिलेश, फारुख, ओमर, डिएमके, एडीएमके के राक्षस, सीपीआईएमके राक्षसोंने … आदि अगणित नेताओंने) अपने विरोधीयोंका (जैसे कि साध्वी प्रज्ञा, बाबा रामदेव, अमित शाह, अर्णव गोस्वामी, कंगना रणोत, ममताको वोट न देनेवाले हजारों दलितोंका) क्या हाल किया था वह तो उनको मालुम ही है.
इसलिये ये चाचूएं और बुआएं, प्रवर्तमान समस्याओंमें इन राक्षसोंकी बुराई करनेका छोड कर, गांधीजीकी बुराई करनेमें व्यस्त रहेतीं हैं. हमारा नाम “देशभक्तोंकी लीस्ट”में होना आवश्यक है इसलिये नहेरुकी भी थोडी बहोत बुराई कर लेते है, लेकिन अधिकतर बुराई, मुघल, तैमूर, अल्लाउदीन, मोहम्मद तघलख, मोहम्मद घोरी, … इस्लाम, कुरान, शरीयत … आदि की बुराई करते रहेंगें. इससे मुस्लिम मतका धृवीकरण होता है. कोंगीयोंको और उनके साथीयोंको यही तो चाहिये.
तर्क शुद्धता और चर्चा किस बलाका नाम है?
शिरीष मोहनलाल दवे
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