“गज़वा ए हिंद” बनाना अशक्य नहीं है.
पश्चिम बंगालका विधानसभा चूनाव हमने देख लिया है.
गाली गलोच एवं बिकाउ सरकारी अफसर
चूनावके पहेले ममताके समक्ष भारतीय सेवा अफसरोंने शपथ ली थी कि वे ममताके पक्षको जीत दिलायेंगे.
ममताका केंद्रके मंत्रीयोंके विषयमे कैसा अति निम्न कक्षाका व्यवहार रहा वह भी हम जानते है. खास करके नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह एवं अमित शाह के प्रति उसके उच्चारण गलीके गुण्डोंसे भी बदतर थे.
ममताने पश्चिम बंगालके गवर्नर तक को छोडा नहीं. उनको धमकी तक देदी कि, “याद रक्खो, तुम्हे कभी न कभी सरकारी अफसरोंकी तरह निवृत भी होना है.” यह एक खुली धमकी थी, जो सरकारी अफसरोंको भी लागु पडती थी. सरकारी कर्मचारी (अफसर सहित) ९९ % बिकाउ होते है.
आव भाई हरखा
ममताने और उसके अधिकारीयोंने मिलकर कौभांड किये थे. इन कौभांडोंकी जांँच करनेवाली सीबीआईकी टीमके सदस्योंके प्रति ममताने जो अतिनिम्न कक्षाका व्यवहार किया था वह भी हमने देखा है.
ममताने खुलेआम दलितोंको धमकी दी थी कि, यदि तुम लोगोंने मुज़े मत नहीं दिया तो तुम्हारी खैर नहीं.
इस गद्दार ममताने कोमवाद और प्रांतवात फैलानेका अधिकतम प्रयत्न किया. उसने भरपूर कोशिस की कि, बीनबेंगाली नेता पश्चिम बंगालमें बीजेपी के समर्थनमें चूनाव प्रचार करने न आवे. वे बाहरी है. बाहरी लोगोंको पश्चिम बंगालमें आना मना है. ममताने कई बीजेपी नेताओंका खून भी करवाया.
यह ममता, सुएज सेना (शिव सेना) से १००० गुना प्रांतवादी है. यह ममता, साम्यवादीयोंसे भी अधिक हिंसक और देशद्रोही है. यह ममता, आइ.एस.आइ.एस. से भी अधिक आतंकवादी है, और यह ममता, कोंगीयोंसे (नहेरुवीयनोंसे) भी अधिक जूठ बोलनेवाली है.
और ये सब हमने चूनावके पूर्व और चूनावी परिणामोंके पश्चात् ममताने दलितोंके उपर जो आतंक फैलाया वह भी हमने देखा. इस ममताने, घुसपैठी रोहींग्याओंकी सहायतासे पश्चिम बंगालमें एक १९८९ – ९० वाला मीनी-कश्मिर बनाया है.
ये बातें क्यूंँ कहेनी पडती है?
बेंगालमें क्या केवल रोहींग्या ही रहेते हैं?
क्या बंगालमें डरपोक केवल दलित हिंदु ही है?
बेंगालके भद्रलोग कहांँ गये?
बेंगालमें भद्र लोग है भी या नहीं?
भद्र लोगोंके लिये गलतीयांँ कितनी दफा परमीसीबल है?
एक बार, दो बार या बार बार?
फिरसे याद दिलाना पडेगा क्या ?
चलो मान भी लिया कि २०११में जबसे ममता सत्तामें आयी तो उसके ५ साल साम्यवादीयोंके कुशासनसे बने हुए गढ्ढे पुरनेमें उसने लिया. २०१६का चूनावमें ममताको, उसको कुछ कर दिखानेके लिये पश्चिम बंगालकी जनताने उसको विजयी बनाया.
लेकिन २०१६से २०२१तक ममताने कौभांड तो किये ही लेकिन साथ साथ संविधानीय संस्थाओंकी अवमानना यहांँ तक की, कि, ऐसा लगता है कि केंद्रीय सत्ता, फरमान, मंत्री मंडल, गवर्नर, सीबीआई … आदि संस्थाओंका कोई मतलब ही नहीं. और राज्यकी सत्ता सबकुछ कर सकती है चाहे भारतकी जनताने बीजेपी को कुछ सुनिश्चित जनादेश दिया हो.
यही ममता, बंग्लादेशसे आये घुसपैठीयोंको निकालनेकी मांग कमसे कम १९९८से कर रही थी. उस समय २.५ करोड घुसपैठ थे उसके बाद हर साल ३ लाख प्रतिवर्ष बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ आते रहते थे.
ममताकी तबियत गुदगुदायी
कोंग्रेसकी मुस्लिम परस्त नीतिसे ममताकी तबियत भी गुदगुदाई और उसने भी गैर कानूनी तरीकेसे घुसपैठीयोंको आवकारना शुरु किया. अपनी पूरानी मांँग जो घुसपैठीयोंको निकालनेकी थी उसके बारेमें उसका व्यवहार, “मस्जिदमां गर्यो तो ज कौन!” जैसा रहा. ( गुजरातीमें यह एक मूंँहावरा है, जिसका अर्थ है “मैं मस्जिदमें गया ही नहीं था” मतलब है कि निरपेक्ष जूठ ही बोलना).
कलकत्ता महानगरपालिकाके चूनावमें टी.एम.सी. को १४४ मेंसे १३४ सीटें मिली.
मान लो कि २०२१के विधानसभाके चूनावमें पश्चिम बंगालके भद्र लोग, ममताके एकाधिकारवाद, ममता द्वारा की गयी भारतके संविधानके प्रावधानोंकी अवहेलना, मुस्लिमोंका असीम तुष्टीकरणको समज़ नहीं पाये. लेकिन चूनावके बाद जो राज्य (ममता) प्रेरित, रोहीग्या द्वारा, हिंदु महिलाओं पर किये गये गेंग रेप, हिंदुओंके घरोंको जलाना, अनेक हिंदुओंकी हत्या करना और उनको अपने राज्यसे भागने पर मजबुर करना, उतना ही नहीं, अपने घर वापस आनेके लिये पैसे मांगना, … ये सब तो खुले आम किया गया है. यह बात तो अंधा भी जानता था और समज़ता था.
ये सब बातें पश्चिम बंगालके युवाओंको और पश्चिम बंगालके भद्र लोगोंको मालुम होना ही चाहिये.
लेकिन देखिये क्या हुआ?
कलकत्ताके भद्र लोगोंने और युवा लोगोंने ममताको इनाम-स्वरुप १४४मेंसे, १३४ सीटें देदी. क्या यही सच्चा पश्चिम बंगाल है? अवश्य ऐसा ही लगता है.
आपको अवगत होना चाहिये कि बांग्लादेशके मुस्लिम घुसपैठ केवल पश्चिम बंगाल में ही नही है, वे उत्तरपूर्वी राज्योंमें भी पश्चिम बंगालसे ओवरफ्लो होकर गये है. अंग्रेज शासनमें एवं कोंगी शासनमें ख्रीस्ती पादरी ओंने मेघालय, नागालेंड, त्रीपुरा, … आदिमें आदिवासीयोंका धर्मपरिवर्तन करके उनको ख्रीस्ती बनाया, इसके कारण, अब मुस्लिम और ख्रीस्ती लोग, पूरे नोर्थ ईस्टके राज्योंमें बहुमतमें कभी भी आ सकते है. ममताने कई मुस्लिम घुसपैठीयोंको भारतका नागरिकत्व दे दिया है. अभी कई सारे मुस्लिम घुसपैठी भारतीय नागरिक बननेकी कगार पर है. पश्चिम बंगाल मुस्लिम घुसपैठीयोंका प्रवेश द्वार है और ममता सरकार उनके स्वागतके लिये सर्वदा तयार बैठी है. ऐसी परिस्थितिमें पश्चिम बंगालके भद्र लोग और युवा वर्ग, निस्क्रीय रहेगा, मौन रहेगा, स्वार्थी रहेगा तो “चीकन नेक” तूटा ही समज़ो.
उत्तर – पूर्वके राज्योंके ख्रीस्ती और मुस्लिम लोग अपनेको भारतवासी नहीं मानते है. ख्रीस्ती लोग स्वयंको और अपने राज्यके विस्तारको भारतसे भीन्न मानते है. वे हिंदु लोग जिन्होंने अपना धर्म नहीं छोडा है उनको “ये तो इंडीयाके है” ऐसा समज़ते है. मुस्लिम लोग तो गज़वा ए हिंदका ही स्वप्न देखते है. उत्तर- पूर्वके राज्योंमेंसे कई राज्योंने देवनागरी (बेंगाली) लिपि छोडके रोमन लिपि अपना ली है. हमारी सरकार मुस्लिम तुष्टीकरणकी नीति छोड नहीं पाती है. और उर्दुको एक भीन्न भाषाका दरज्जा देती है, वास्तवमें उर्दु, हिंदीसे भीन्न है ही नहीं.
ऐसा लगता है कि, पश्चिम बंगालके भद्र लोग और पश्चिम बंगालके युवा लोग, या तो अपने क्षेत्रप्रेममें अंधे हो गये है, या तो परिस्थिति समज़नेमें उनकी प्रज्ञा ओछी है. कलकत्ताके महानगर पालिकाके चूनावके परिणामोंने कलकत्ता वासीयोंके राष्ट्र-प्रेम पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है.
आश्चर्य की बात यह भी है कि कुछ स्वयं प्रमाणित राष्ट्रवादी लोग ऐसे वोकल है कि वे प्रमाणभानकी, प्राथमिकताकी और संबंद्धताकी प्रज्ञाके अभावमें, मृत विषयोंकी या तो मृतप्राय विषयों की चर्चा किया करते है. सांप्रत समस्याओंकी चर्चा और खास करके लुट्येन गेंगोंके नेताओंकी बुराईयां पर जनजागृती नहीं लाते है. यह एक अति गंभीर समस्या है.
लुट्येन गेंगके नेतागण योगीजी को हराने के लिये कटिबद्ध है. युपीका चूनाव, भारतके भविष्यके लिये एक सीमाचिन्ह और लीटमस है.
कलकत्ताकी महानगर पालिकाके चूनावमें बीजेपीकी करारी हार एवं ममताकी बहूत बडी जीत, गज़वा ए हिंदकी नींवका पत्थर है.
ऐसा लगता है कि अब बेंगालकी संस्कृति, वह नहीं रही, जिसे अन्य भारतवासी, बंकिमचंद्रवाली विद्रोहभूमि के नामसे पहेचान थे, रवींद्रनाथ टागोर वाली “ऍकला चलो” संस्कारवाली कृतनिश्चयी भूमि के नामसे पहेचानते थे, आज़ाद हिंद फोजके सेनापति, सुभाषबाबु की भूमिसे पहेचानते थे.
“इस मीट्टीसे तिलक करो यह धरती है बलिदानकी” वह लुप्त हो गई है क्या?
शिरीष मोहनलाल दवे