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Archive for December, 2021

“गज़वा ए हिंद” बनाना अशक्य नहीं है.

पश्चिम बंगालका विधानसभा चूनाव हमने देख लिया है.

गाली गलोच एवं बिकाउ सरकारी अफसर

चूनावके पहेले ममताके समक्ष भारतीय सेवा अफसरोंने शपथ ली थी कि वे ममताके पक्षको जीत दिलायेंगे.

ममताका केंद्रके मंत्रीयोंके विषयमे कैसा अति निम्न कक्षाका व्यवहार रहा वह भी हम जानते है. खास करके नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह एवं अमित शाह के प्रति उसके उच्चारण गलीके गुण्डोंसे भी बदतर थे.

ममताने पश्चिम बंगालके गवर्नर तक को छोडा नहीं. उनको धमकी तक देदी कि, “याद रक्खो, तुम्हे कभी न कभी सरकारी अफसरोंकी तरह निवृत भी होना है.” यह एक खुली धमकी थी, जो सरकारी अफसरोंको भी लागु पडती थी. सरकारी कर्मचारी (अफसर सहित) ९९ % बिकाउ होते है.

आव भाई हरखा

ममताने और उसके अधिकारीयोंने मिलकर कौभांड किये थे. इन कौभांडोंकी जांँच करनेवाली सीबीआईकी टीमके सदस्योंके प्रति ममताने जो अतिनिम्न कक्षाका व्यवहार किया था वह भी हमने देखा है.

ममताने खुलेआम दलितोंको धमकी दी थी कि, यदि तुम लोगोंने मुज़े मत नहीं दिया तो तुम्हारी खैर नहीं.

इस गद्दार ममताने कोमवाद और प्रांतवात फैलानेका अधिकतम प्रयत्न किया. उसने भरपूर कोशिस की कि, बीनबेंगाली नेता पश्चिम बंगालमें बीजेपी के समर्थनमें चूनाव प्रचार करने न आवे. वे बाहरी है. बाहरी लोगोंको पश्चिम बंगालमें आना मना है. ममताने कई बीजेपी नेताओंका खून भी करवाया.

यह ममता, सुएज सेना (शिव सेना) से १००० गुना प्रांतवादी है. यह ममता, साम्यवादीयोंसे भी अधिक हिंसक और देशद्रोही है. यह ममता, आइ.एस.आइ.एस. से भी अधिक आतंकवादी है, और यह ममता, कोंगीयोंसे (नहेरुवीयनोंसे) भी अधिक जूठ बोलनेवाली है.

और ये सब हमने चूनावके पूर्व और चूनावी परिणामोंके पश्चात् ममताने दलितोंके उपर जो आतंक फैलाया वह भी हमने देखा. इस ममताने, घुसपैठी रोहींग्याओंकी सहायतासे पश्चिम बंगालमें एक १९८९ – ९० वाला मीनी-कश्मिर बनाया है.

ये बातें क्यूंँ कहेनी पडती है?

बेंगालमें क्या केवल रोहींग्या ही रहेते हैं?

क्या बंगालमें डरपोक केवल दलित हिंदु ही है?

बेंगालके भद्रलोग कहांँ गये?

बेंगालमें भद्र लोग है भी या नहीं?

भद्र लोगोंके लिये गलतीयांँ कितनी दफा परमीसीबल है?

एक बार, दो बार या बार बार?

फिरसे याद दिलाना पडेगा क्या ?

चलो मान भी लिया कि २०११में जबसे ममता सत्तामें आयी तो उसके ५ साल साम्यवादीयोंके कुशासनसे बने हुए गढ्ढे पुरनेमें उसने लिया. २०१६का चूनावमें ममताको, उसको कुछ कर दिखानेके लिये पश्चिम बंगालकी जनताने उसको विजयी बनाया.

लेकिन २०१६से २०२१तक ममताने कौभांड तो किये ही लेकिन साथ साथ संविधानीय संस्थाओंकी अवमानना यहांँ तक की, कि, ऐसा लगता है कि केंद्रीय सत्ता, फरमान, मंत्री मंडल, गवर्नर, सीबीआई … आदि संस्थाओंका कोई मतलब ही नहीं. और राज्यकी सत्ता सबकुछ कर सकती है चाहे भारतकी जनताने बीजेपी को कुछ सुनिश्चित जनादेश दिया हो.

यही ममता, बंग्लादेशसे आये घुसपैठीयोंको निकालनेकी मांग कमसे कम १९९८से कर रही थी. उस समय २.५ करोड घुसपैठ थे उसके बाद हर साल ३ लाख प्रतिवर्ष बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ आते रहते थे.

ममताकी तबियत गुदगुदायी

कोंग्रेसकी मुस्लिम परस्त नीतिसे ममताकी तबियत भी गुदगुदाई और उसने भी गैर कानूनी तरीकेसे घुसपैठीयोंको आवकारना शुरु किया. अपनी पूरानी मांँग जो घुसपैठीयोंको निकालनेकी थी उसके बारेमें उसका व्यवहार, “मस्जिदमां गर्यो तो ज कौन!” जैसा रहा. ( गुजरातीमें यह एक मूंँहावरा है, जिसका अर्थ है “मैं मस्जिदमें गया ही नहीं था” मतलब है कि निरपेक्ष जूठ ही बोलना).

कलकत्ता महानगरपालिकाके चूनावमें टी.एम.सी. को १४४ मेंसे १३४ सीटें मिली.

मान लो कि २०२१के विधानसभाके चूनावमें पश्चिम बंगालके भद्र लोग, ममताके एकाधिकारवाद, ममता द्वारा की गयी भारतके संविधानके प्रावधानोंकी अवहेलना, मुस्लिमोंका असीम तुष्टीकरणको समज़ नहीं पाये. लेकिन चूनावके बाद जो राज्य (ममता) प्रेरित, रोहीग्या द्वारा, हिंदु महिलाओं पर किये गये गेंग रेप, हिंदुओंके घरोंको जलाना, अनेक हिंदुओंकी हत्या करना और उनको अपने राज्यसे भागने पर मजबुर करना, उतना ही नहीं, अपने घर वापस आनेके लिये पैसे मांगना, … ये सब तो खुले आम किया गया है. यह बात तो अंधा भी जानता था और समज़ता था.

ये सब बातें पश्चिम बंगालके युवाओंको और पश्चिम बंगालके भद्र लोगोंको मालुम होना ही चाहिये.

लेकिन देखिये क्या हुआ?

कलकत्ताके भद्र लोगोंने और युवा लोगोंने ममताको इनाम-स्वरुप १४४मेंसे, १३४ सीटें देदी. क्या यही सच्चा पश्चिम बंगाल है? अवश्य ऐसा ही लगता है.

आपको अवगत होना चाहिये कि बांग्लादेशके मुस्लिम घुसपैठ केवल पश्चिम बंगाल में ही नही है, वे उत्तरपूर्वी राज्योंमें भी पश्चिम बंगालसे ओवरफ्लो होकर गये है. अंग्रेज शासनमें एवं कोंगी शासनमें ख्रीस्ती पादरी ओंने मेघालय, नागालेंड, त्रीपुरा, … आदिमें आदिवासीयोंका धर्मपरिवर्तन करके उनको ख्रीस्ती बनाया, इसके कारण, अब मुस्लिम और ख्रीस्ती लोग, पूरे नोर्थ ईस्टके राज्योंमें बहुमतमें कभी भी आ सकते है. ममताने कई मुस्लिम घुसपैठीयोंको भारतका नागरिकत्व दे दिया है. अभी कई सारे मुस्लिम घुसपैठी भारतीय नागरिक बननेकी कगार पर है. पश्चिम बंगाल मुस्लिम घुसपैठीयोंका प्रवेश द्वार है और ममता सरकार उनके स्वागतके लिये सर्वदा तयार बैठी है. ऐसी परिस्थितिमें पश्चिम बंगालके भद्र लोग और युवा वर्ग, निस्क्रीय रहेगा, मौन रहेगा, स्वार्थी रहेगा तो “चीकन नेक” तूटा ही समज़ो.

उत्तर – पूर्वके राज्योंके   ख्रीस्ती और मुस्लिम लोग अपनेको भारतवासी नहीं मानते है. ख्रीस्ती लोग स्वयंको और अपने राज्यके विस्तारको भारतसे भीन्न मानते है. वे हिंदु लोग जिन्होंने अपना धर्म नहीं छोडा है उनको “ये तो इंडीयाके है” ऐसा समज़ते है. मुस्लिम लोग तो गज़वा ए हिंदका ही स्वप्न देखते है. उत्तर- पूर्वके राज्योंमेंसे  कई राज्योंने देवनागरी (बेंगाली) लिपि छोडके रोमन लिपि अपना ली है. हमारी सरकार मुस्लिम तुष्टीकरणकी नीति छोड नहीं पाती है. और उर्दुको एक भीन्न भाषाका दरज्जा देती है, वास्तवमें उर्दु, हिंदीसे भीन्न है ही नहीं. 

ऐसा लगता है कि, पश्चिम बंगालके भद्र लोग और पश्चिम बंगालके युवा लोग, या तो अपने क्षेत्रप्रेममें अंधे हो गये है, या तो परिस्थिति समज़नेमें उनकी प्रज्ञा ओछी है. कलकत्ताके महानगर पालिकाके चूनावके परिणामोंने कलकत्ता वासीयोंके राष्ट्र-प्रेम पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है.

आश्चर्य की बात यह भी है कि कुछ स्वयं प्रमाणित राष्ट्रवादी लोग ऐसे वोकल है कि वे प्रमाणभानकी, प्राथमिकताकी और संबंद्धताकी प्रज्ञाके अभावमें, मृत विषयोंकी या तो मृतप्राय विषयों की चर्चा किया करते है. सांप्रत समस्याओंकी चर्चा और खास करके लुट्येन गेंगोंके नेताओंकी बुराईयां पर जनजागृती नहीं लाते है. यह एक अति गंभीर समस्या है.

लुट्येन गेंगके नेतागण योगीजी को हराने के लिये कटिबद्ध है. युपीका चूनाव, भारतके भविष्यके लिये एक सीमाचिन्ह और लीटमस  है.

कलकत्ताकी महानगर पालिकाके चूनावमें बीजेपीकी करारी हार एवं ममताकी बहूत बडी जीत, गज़वा ए हिंदकी नींवका पत्थर है.

ऐसा लगता है कि अब बेंगालकी संस्कृति, वह नहीं रही, जिसे अन्य भारतवासी, बंकिमचंद्रवाली विद्रोहभूमि के नामसे पहेचान थे, रवींद्रनाथ टागोर वाली “ऍकला चलो” संस्कारवाली कृतनिश्चयी भूमि के नामसे पहेचानते थे, आज़ाद हिंद फोजके सेनापति, सुभाषबाबु की भूमिसे पहेचानते थे.

“इस मीट्टीसे तिलक करो यह धरती है बलिदानकी” वह लुप्त हो गई है क्या?

शिरीष मोहनलाल दवे

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तोगडीयाजी बिक गये है?

जी हांँ, ऐसा लगता है कि तोगडीयाजी बिक गये है ऐसा लगता है. किसने उनको परचेज़ किया यह संशोधनका विषय है. हांँ जी आप यह नहीं केह सकते कि वह डकैत गेंग (ठगैत गेंग कहो या खालिस्तानी गेंग कहो या टीकैत गेंग क़हो इससे कोई फर्क नहीं पडता.), या ममता गेंग कहो, या कोंगी गेंग कहो, या स्वयंसेभी प्रमाणित गद्दार सी.पी.आई.एम. वामपंथी गेंग कहो, या टूकडॅ टूकडॅ गेंग कहो, या लल्लुकी चारा गेंग कहो, या टोटी चोर मुल्लायमकी या उसके फरजंद सपा गेंग कहो,

स्वयंसे भी प्रमाणित मुल्लायम अब्बाजान के फरज़ंद अखिलेश को तोगडियाने इस फरजंदको “हनुमान-भक्त” ऐसा प्रमाण पत्र दे दिया है.

जब तोगडियासे प्रश्न पूछा गया कि युपीमें अगला मुख्य मंत्री कौन होगा.

तब तोगडियाने निःसंकोच बोल दिया कि; “या तो राम भक्त मुख्य मंत्री बनेगा, नहिं तो हनुमान भक्त मुख्य मंत्री बनेगा. उन्होने आगे कहा कि, उनका कहेनेका मतलब यह है कि हिंदु ही मुख्य मंत्री बनेगा.”

आप नहीं मानेंगे, किंतु मुज़े पहेलेसे तोगडियजी एक शंकास्पद व्यक्ति लगता थे. कमसे कम जबसे बाजपाईजी प्रधान मंत्री बने तबसे. और खास करके जबसे नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने तबसे तो तोगडियाजी, बीजेपी विरुद्ध अपने विश्लेषणकी बयानबाजी करते रहेते है.

एक बात समज़ लो कि सच्चे मित्रकी पहेचान क्या है.

पापान्निवारयति योजयते हिताय । [मित्रको पाप करनेसे रोकता है. उसको भले काममें जोडता है]

गुह्ययं च गुह्यति, गुणान प्रकटी करोति । [मित्रका सीक्रेट, सीक्रेट ही रखता है]

आपत्कालेऽपि, न च जहाति, ददाति काले । [कपरे कालमें मित्रको छोडता नहीं है, पर मदद करता है]

सन्मित्रलक्षणं ईदं प्रवदन्ति संत ॥ [सज्जन मित्रके ये लक्षण होते है ऐसा संत लोग कहेते है]

जैसे मित्रका हित है वैसे बीजेपी शासनवाले देशका हित है. सन्मित्र पापसे अपने मित्र को रोकता है.

हिंदु संतोको मारनेसे क्या तोगडियाजीने मुल्लायमको रोका था? इन अब्बाजान – और उनके फरजंदको मुस्लिम माफियाओंको मदद करने से रोका था? चोरी करनेसे इन दोनोंको रोका था? ये सब पाप कर्म करनेसे तोगडियाजीने इन सब कर्मोंसे उन दोनोंको रोका होता तो वे देश प्रेमी कहेलाते. लेकिन उन्हों ने किया नहीं. सेंकडो निशस्त्र हिंदु संतो पर मुल्लायमको गोलीयां चलाने दिया. इस प्रकार तोगडियाजीने अपने मित्र मुल्लायम को परोक्ष रीतसे मदद किया. तोगडियाने कभी मुल्लायम एवं उसके फरजंदका माफिया राज और चोरीयोंकी निंदा नहीं की. देशकी संपत्ति को कोई लूटे तो देशका नुकशान होता है, ये बात तोगडिया नहीं जानते क्या ? तोगडिया जी देशप्रेमी नहीं लेकिन मुल्लायम और उसके फरजंदके प्रेमी ठहरे न?

यदि बीजेपीमें कोई बुराई है, तो तोगडिया को उनको गुह्य रखना चाहिये और अंगत मुलाकात लेकर पीएम, एचएम, एफएम के साथ संवाद करके अपनी बात रखना चाहिये था क्यों कि देशके हित में यह बात आचरणीय है.]

तोगडियाजीने क्या किया?

तोगडियाने तो बेधडक बोल दिया कि, एक हिंदु ही युपीका मुख्य मंत्री बनेगा.

ऐसा कह कर तोगडियाने एक हिंदुत्त्ववाला प्रमाण पत्र, मुल्लायमके फरजंद को दे दिया, इससे यह भी सिद्ध होता है कि तोगडियाजी पूर्ण रुपसे हिंदुत्त्वको जानते है और यह समज़ते है कि हिंदुओंको नुकशान करके मुस्लिमोंका होंसला बढानेवाला, और सत्त्ताप्राप्तिके लिये अपने हिन्दु धर्मके अगणित संतोंकी बिना हिचकिचाहट हत्या करनेवाला मुल्लायम और उसका फरजंद हिंदु है. क्यों कि वे जन्मसे हिंदु है. मुल्लायम और उसका फरजंद हिंदु है ऐसा प्रमाणपत्र भी तोगडियाजी दे सकते है क्यों कि वे विश्व हिंदु परिषदके प्रमुख/नेता है.

तोगडियाजी वास्तवमे विश्व हिंदुधर्मके दुश्मन है.

मुल्लायम और उसका फरजंद हनुमान भक्त नहीं है. स्वयंको हनुमान भक्त दिखाना मुल्लायम और उसके फरजंदका फरेब है. तोग़डीयाजी इन दोनोंको हिंदुत्त्वका प्रमाण पत्र देके अपनी हिस्सेदारी नीभाते है. तोगडियाजी अपने अज्ञानके कारण या/और अक्षमताके कारण यह नहीं अवगत कर पाते कि उनके जैसे और लोग भी हो सकते है या बन सकते है कि मुल्लायमके पक्षको हिंदुवादी पक्ष समज़ ले और यह तथा कथित एवं फरेबी हनुमानभक्त के पक्षको वोट दें.

राक्षस और मनुष्योंमें (खास करके हिंदुओंमें) क्या फर्क है?

हिंदु धर्मके तत्त्वज्ञानके हिसाबसे मनुष्यका यज्ञ (कार्य) विश्वहितके लिये होता है. राक्षस लोग स्वकेंद्री होते है. वे स्वार्थके लिये यज्ञ (कार्य) करते है. मनुष्य (हिंदु) लोग जनतंत्रवादी होते है और पारदर्शितासे अपना कार्य करते है. राक्षस लोग मायावी होते है और वे गुह्यतासे अपना कार्य करते है.

तोगडियाजी क्या है?

यदि मुल्लायमका फरजंद मुख्य मंत्री बने तो हमारे देशको फायदा होने वाला है क्या?

नहीं … नहीं … नहीं.

यदि मुल्लायम का फरजंद मुख्य मंत्री बने तो तोगडियाजीको फायदा होनेवाला है क्या?

यदि हांँ … तो कैसे? जो मुल्लायम, जयप्रकाश नारायणको वफादार नहीं रह सका उसका फरजंद तो मुल्लायमसे भी बढकर पेटु है.  क्या अखिलेश तोगडीयाजीको वफादार रह सकता है? जयप्रकाश नारायणकी नीतिमत्ता छोडकर, ये दोनों कोंगी गेंगको वफादार बने रहे है.

तोगडीयाजी, आपको कुछ भी फायदा होनेवाला नहीं है.

एते सत्पुरुषा परार्थघटका स्वार्थान्‌ परित्यज्यते । [जो दुसरोंके हितके लिये अपना स्वार्थ त्यागते है वे सज्जन है]

सामान्यास्तु परार्थउद्यमभृतस्वार्था विरोधेन ये । [जो दुसरोंको नुकशान न हो उस प्रकार अपना हित साधते है, वे मध्यम कक्षाके मानव है]

तेमी मानव राक्षसा परहितं स्वार्थाय निघ्नंति ये । [ जो अपने हितके लिये दुसरोंको हानि पहूंँचाते हैं, वे मानवके रुपमें राअस है.]

ये तु घ्नन्ति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे ॥ [(किंतु) जो लोग व्यर्थ ही दुसरोंको हानि पहूंँचाते है वे कौन है वह, हम जानते नहीं]

तोगडियाजी, आप तो राक्षससे भी बढकर है.

शिरीष मोहनलाल दवे

आगामी विश्लेषणः “गज़वा ए हिंद असंभव नहीं” *

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२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – ४

(४) लश्करी शासन एक कल्पना और दिवास्वप्न है.

मुस्लिमोंको भारतसे निकालनेके लिये, यदि हम लश्करी शासन लावें तो?  हमे उसके उपर हजारबार सोचना पडेगा. पाकिस्तानका लश्करी शासन हमने देखा है.

जो देश या आदमी, बीना कोई श्रम और त्याग किये, केवल सत्ता लालसा के कारण, सत्ता प्राप्त करता है तो उसको भ्रष्ट बननेमें समय नहीं लगता. पाकिस्तानकी प्रवर्तमान स्थिति, इसीके कारण है. नहेरुवीयनोंका और उनके सांस्कृतिक साथीयोंका भ्रष्ट होनेका कारण भी यह ही तो है.

(५) तो अब जो विकल्प बचा वह यही है कि हम, जो मुस्लिम हमारे देशके नागरिक है, उनकी विचारधाराको सुधारें.

लेकिन क्या सुलेमान सुधरेगा?

जी हांँ. अवश्य शक्य है.

(५. १) समान सीवील कोड लाना लागु करना,

(५.२) जनसंख्या नियंत्रण का नियम लाना और लागु करना,

(५.३) ज्ञाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर मतदान करनेका प्रचार करना, करवाना, आंदोलन करना करवाना या मांगे रखना इत्यादिको अवैध घोषित करना और इनको अपराधकी श्रेणीमें रखना, और उनका  नागरिकता अधिकार कुछ कालके लिये स्थगित करना या रद करना.

(५.४) “उर्दु” को हिंदी घोषित करना और उसके लिये देवनागरी लिपिको ही मान्य रखना.

(५.५) आमजनताको कष्ट या अवरोध पहोंचे वैसे आंदोलन अवैध और अपराधिक श्रेणीमें लाना. और नागरिकता अधिकार कुछ कालके लिये स्थगित करना या रद करना.

उपरोक्त नियमोंसे भारत एक हिंदु राष्ट्र अपने आप बन जाता है. और मुस्लिमोंकी गैरकानूनी अमानवीय आदतें नष्ट हो जायेगी.

(६) ऐसे कानून लानेसे क्या होगा?

(६.१) जो कानून संसदमें पास हो चूके है या न्यायालयके आधिन है, उनके विरुद्ध आंदोलन नहीं हो सकेगा. अभिव्यक्तिका स्वातंत्र्य सीमा विहीन अभिव्यक्ति नहीं हो सकता. सी.ए.ए. या कृषि कानून का विरोध करनेवाला आंदोलन अभिव्यक्तिकी सीमासे बाहर है. और ऐसा आंदोलन अपराधी मामलेके अंतर्गत आयेगा. तो टीकैत ठगैत जैसे लोगोंको न्यायाधीश भी बचा नहीं पायेगा,

(६.२) मार्गों पर या मैदानों पर नमाज़ बंद हो जायेगा. और मस्जिदोंपर लाउड स्पीकर झीरो डेसीबल हो जायेगा. अलबत्त मंदिरोंको भी देखना होगा कि ध्वनि अपने परिसरसे बाहर न हो,

(६.३) रास्ते पर पटाखे फोडना बंद होगा,

(६.४) इस्लाम के नाम पर, क्षेत्रवाद (भाषावाद) नाम पर, बाहरी/आमचा आदमी/माटीर मानुष के नाम पर प्रचार करना, मत मांगना बंद हो जायेगा, ऐसे अपराध पर व्यक्तिका नागरिकताका अधिकार कुछ कालके लिये स्थगित होगा या नष्ट होगा.

(६.५) लग्न तब ही मान्य माना जायेगा कि जब दुल्हा-दुल्हन एवं उनके माता-पिता या उनके वडिल या वकिल या जनप्रतिनिधि की साक्षी हो, रजीस्ट्रारके समक्ष प्रतिज्ञा लें और हस्ताक्षर करें. लग्नके लिये धर्म परिवर्तन अनिवार्य नही होगा.

(६.६) चौराहे पर भाषण बाजी करना या विरोध प्रदर्शन करना या मिजलस करना अवैध होगा. क्यों कि इससे राहदारीयोंको और वाहनव्यवहारको कष्ट होता है.

कानून भंग किया तो कामसे गया. ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये. कानूनका पालन १०० प्रतिशत सख्तीसे करना सरकारके लिये अनिवार्य होगा. ऐसा नहीं हुआ तो वरिष्ठ अधिकारी पदच्यूत होगा.

एक बात हिंदुओंको समज़ना अत्यंत आवश्यक है कि मुसलमानोंके असामाजिक तत्त्वोंको,  कोंगीयोंने और उनके सांस्कृतिक साथीयोंने बहेकाया है.

सभी मुसलमान एकसे नहीं होते है. यह बात अवश्य सत्य है कि, सुज्ञ, सुभद्र एवं प्रगतिशील मुसलमान कम होगे. निष्क्रिय होगे. लेकिन उनका अभाव नहीं है. ऐसे मुसलमानोंको हमें मंच देना है और बढावा देना है. गद्दार गेंगे जो यह सोचके बैठी है कि मुस्लिम लोग तो हमारी वॉट बेंक है. इस सोच को हमें तोडना पडेगा.

सुज्ञ, सुभद्र एवं प्रगतिशील मुसलमानोंको भी आगे आना पडेगा. सुज्ञ, सुभद्र एवं प्रगतिशील मुसलमानोंका कर्तव्य बनता है कि वे हिंदुओंके उस भ्रम को तोडे कि मुस्लिम मात्र बीजेपी एवं देश विरोधी है.

इस्लामकी बुराई

किसीको अपमानित करके हम उसको सही रास्ते पर नहीं ला सकते

राष्ट्रवादीयोंको यह बात भी समज़नी आवश्यक है कि इस्लामका विरोध करते रहेना यह कोई मुस्लिमोंको सुधारनेका मार्ग नहीं है. इरान, साउदी, ओमान … आदि कई मुस्लिम देश है, जो भारतीयोंका (हिंदुओंका) आदर करते हैं, और अपनी समृद्धिमें भारतीयोंको (हिंदुओंको) सहभागी बनाते है.

इस बातसे अवश्य लुट्येन गेंगोंके पेटमें उबलता हुआ तेल पडता है. लेकिन यदि हमारे राष्ट्रवादी लोग केवल इस्लामकी निंदा करनेमें सक्रिय रहेंगे तो पाकिस्तान सहित अन्य देशोंकी प्रगतिशील जनता पर बुरा असर पड सकता है. यह बात हमें भूलना नहीं चाहिये.

हांँ यह बात अवश्य सही है कि हम प्रवर्तमान एवं प्रासंगिक बुराईयोंकी “टु ध पोईंट”, चर्चा करें. 

हमारे देशमें ही मुस्लिमोंमें जो वोरा और खोजा होते है वे शांत, सुशील एवं प्रगतिशील कोम्युनीटी होती है. उनके उपर भी “मुसलमान मात्र  निंदनीय है”  ऐसा कहेनेसे बुरा असर पडता है.

आप निम्न दर्शित वीडीयो अवश्य देखें

मुस्लिमोंमें भी प्रगतिशील मुस्लिम होते है. यदि हम उन सुपथगामी/सुपथगामिनी मुस्लिमोंको बढावा देंगे तो हम लुट्येनगेंगोंकी वॉट बेंकको तोड सकते है. इसमें कोई शक नहीं, यदि हम सातत्य पूर्णता से ऐसा करते रहे तो.

शिरीष मोहनलाल दवे

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२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – ३

आपको विनंति है कि आप “२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – २” फिरसे पढें ताकि आपको इस विषयमें सातत्य रहे.

हमें क्या नहीं करना चाहिये.

(१) हमें ऐसे ब्लोग नहीं लिखने चाहिये जिनका विषय वर्तमान समयमें अप्रस्तुत हो या हिंदुओंके एक वर्गको अनीष्ट लगता हो.

(२) जो मुस्लिम और हिंदु राजा महाराजा थे  या, जो कुछ भी हो उनकी निंदा न हो..

ऐसा क्यूंँ?

अधिकतर मुस्लिम जनमानस में यह बात ठूस कर भर गयी है कि, वे मुस्लिम है और वे हिंदुओंसे भीन्न है. बीजेपी उनका दुश्मन है, इस लिये वह इतिहाससे खेल कर रहा है. इसलिये बीजेपी, मुगलोंकी बुराई कर रहा है.

हमें ज्ञात होना अवश्यक है कि, इतिहासको सरलतासे विवादास्पद बनाया जा सकता है. ऐसी चर्चाका असर केवल धिक्कार फैलाना होता है. कोंगीयों को यह काम करने दो. हमें कोंगीयोंको कोसनेका  मौका मिलेगा. 

ऐतिहासिक पात्र सभी मर गये है.

वे पात्र कैसे थे? इस बातको भारतकी शिक्षानीति को तय करने वालों पर छोड दो. हमसे अधिक सुज्ञ लोग राजिव मलहोत्रा, श्रीनिवासन, … जैसे कई लोग है और वे राष्ट्रवादी भी है और हमसे अधिक सुज्ञ है. मुस्लिमोंमें भी ऐसे कई लोग ऐसे ही है. जो ऐसे राष्ट्रवादी मुस्लिम है हमें उनकी बातोंको बढावा देना है.

(३) यह बात सामान्य है कि, कुछ लोग इस्लाम के विरुद्ध लेख लिखा करते है. इस्लाम एक असहिष्णु पंथ है और यह पंथ, बीन-मुस्लिमोका बहिष्कार एवं उनकी कत्ल तक करनेका आदेश देता है. यह बात क्या सच है?

इसमें दो शक्यता है. हांँ या ना.

(३.१) यदि हांँ है. तो हमारे पास दो रास्ते उपलब्ध है. सभी मुसलमानोंको निकालो या उनको इस देशमें रहेनेके योग्य बनाओ.

यदि सभी मुसलमानोंको निकालना है तो ये २० करोड मुसलमानोंको निकालने का रास्ता कौनसा है?

मोदी हो या योगी हो, किसीमें भी यह ताकत नहीं है.

(३.२) हांँ जी. हम यदि एक एकाधिकारवाली और केवल हिंदुप्रेमी सरकार चूनें या पाकिस्तान जैसा लश्करी शासन लावें, या तो ऐसा एक पक्ष स्थापित करें जिसका एजंडा सभी मुस्लिमोंको भारतमेंसे निकालना हो.

क्या यह शक्य है?

अरे भाई हमारे बीजेपीका एजंडा है कि हम, बंगला देशी और पाकिस्तानी मुस्लिम घुसपैठीयोंको निकालेंगे. ये मुस्लिम घुसपैठीयें कमसेकम ३ करोड तो है ही. इस काममें कोई कानूनी अवरोध भी नहीं है. नहेरु-लियाकत अली समज़ौता को कार्यान्वित करना है. सी.ए.ए. और एन. आर. सी. एवं एन. आर. पी. इस लिये तो है.

(३.३) कोंगीकी दुर्गादेवीने तो प्रण भी लिया था कि वह हर हालातमें ये घुसपैठीयोंको निकालेगी, जो उस समय एक करोड थे. कोंगीकी दुर्गादेवी (इंदिरा गांधी) भी उसके अब्बाजान जैसी ही थी.

(३.४) इंदिरा गांधीके अब्बाजानने प्रण लिया था. नहेरुने संसदके समक्ष प्रण लिया था. नहेरुने ७१००० चोरस मील भारतकी भूमि, जो चीनने १९६२में हडप ली थी, वह वापस लेनेके लिये भारतकी संसदके समक्ष प्रण लिया था कि, जब तक उस भारतकी भूमिको, वे वापस नहीं लेंगे, तब तक वे चैनसे बैठेंगे नहीं. मतलब कि, आराम  नहीं करेंगे.

फिर क्या हुआ?

होगा क्या?, कुछ नहीं.  नहेरु तो १९६४में चैनसे दहेरादुनमें आराम करने गये और वार्धक्य से अल्लाहके या शैतानके प्यारे हो गये.

इंदिरा गांधी भी तो नहेरुकी ही औलाद थी. नहेरुवीयनोंके प्रण तो, पानी के उपर लिखे अक्षरोंके बराबर है. उनके शब्दोंकी कोई किमत नहीं थी. जब नहेरुवीयनोंकी सत्ता डगमगाने लगती है तब वे बेधडक, हिंदु संतोंकी भी हत्या कर सकते हैं. लेकिन मुसलमानोंकी जब बात आती है तो, उनके विरुद्ध चाहे मुसलमान (एवं ख्रीस्ती भी) आतंकवादी ही क्यूं न हो, उसके उपर अर्थपूर्ण कार्यवाही न करना उनका धर्म है.

(३.५) ममताने भी, जब उसका शासन नहीं था तब, घुसपैठीयोंको निकालने लिये आंदोलन किया था. ममता तो इंदिरासे भी बढकर है. वह तो अब खुलेआम बोलती है कि मैं तो हिंदुओंके लिये लबारी तो हूंँ, लेकिन मुसलमानोंकी तो भगीनी हूंँ. मैं तो केजरीवालसे भी बढकर हूंँ. ऐसी है ममता, जो आतंकवादी रोहींग्या मुसलमानों बचानेके लिये, न्यायालयके न्यायाधीशोंको और गवर्नर तकको हत्या करवानेकी टपोरीकी भाषामें धमकी दे सकती है, और ऐसी ममता बंगालके चूनावमें जीत भी जाती है, उस बंगालकी नेत्रीसे या बंगालकी जनतासे हम क्या उम्मीद रख सकते है?

तो क्या मुस्लिमोंको निकालने के लिये हमें लश्करी शासन लाना है?

(क्रमशः)

षिरीष मोहनलाल दवे

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२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – २

सामुहिक रुपसे हमारा ध्येय स्पष्ट नहीं

सबसे बडी हमारी समस्या यह ही है कि हम राष्ट्रवादी लोग अधिकतर यह नहीं सोचते कि हमारी चर्चा मीथ्या की दिशामें जा रही है. और हममेंसे कई लोग इस परिस्थितिको समज़ ही नहीं पाते हैँ. और अपनी शक्तिको और समयको बरबाद करते है.हिक 

लुट्येन गेंगवाले अपने ध्येयमें स्पष्ट है कि, मोदीको हरानेके लिये सीवील वॉर, एवं हिंदुओंका विभाजन के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं है. इसलिये वे हिंदुओंको और मुस्लिमोंको-ख्रीस्तीयोंको उकसाना चाहते है. ख्रीस्तीयोंको उकसानेके लिये लुट्येन गेंगवाले लोग, पश्चिमी मीडीयाकी सहायता लेते है. और पश्चिमी मीडीया वाले, उनको यह सहाय देते भी है. मुस्लिमोंको उकसानेके लिये तो भारतके मुस्लिमनेता तयार है. इनके अतिरिक्त, हमारे समीपके मुस्लिम देश के शासकोंके लिये तो, (खास करके पाकिस्तानकी सरकारों के लिये यह) मुस्लिम जनमतको हिंदुओंके विरुद्ध उकसाना एक जनाधार है और उसमें आर्थिक रुपसे चीन उनकी सहायता करता है.

हमारे देशके पथभ्रष्ट मुस्लिम लोग, लुट्येनगेंगवालोंको और आतंकवादीयोंको भरपूर सहायता करते है क्योंकि ये लुट्येन गेंग वालोंका तो एक मात्र ध्येय है कि मोदी को हराना. इससे सरल कोई मार्ग है ही नहीं. क्यों कि “विकास” और “नैतिकता” के मुद्दे पर मोदीको हराना तो उनके बसकी बात नहीं है.

लुट्येन गेंगोका दुसरा ध्येय है कि हिंदुओंको विभाजित करो. हिंदुओंको विभाजित करने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है. इसलिये ये लोग दलित, जाट, पटेल, मराठा, नीनामा, यादव, क्षेत्रवादी, भाषावादी, … आदि लोगोंमें जो कमअक्ल , स्वकेंद्री और अज्ञ लोक होते है उनको “तुम्हे अन्याय हुआ है” ऐसे विषय वस्तुको लेकर ब्लोग, लेख, समाचार, … द्वारा, हिंदुओंको विभाजित करते है.

हिंदुओंमे कुछ लोग जो फेंसींग पर बैठे है या कम अक्ल या अज्ञ है या स्वकेंद्री है वे, इनकी जालमें फंस जाते है, और अहंकारके कारण उनको हवा भी देते है.

राष्ट्रवादीयोंको समज़ना चाहिये कि इससे कुछ हिंदु लोग पथभ्रष्ट हो सकते है.

ऐसे हिंदु लोग मतदानसे विमुख रह सकते है. या नोटा (एक भी प्रत्याषी मतके योग्य नहीं है)का बटन दबा सकते है.

इस बातका इस ब्लोगके लेखकका अनुभव है. १९७९ – ८०मे जब जनता पार्टीकी सरकार गीरी, तब मीडीया विश्लेषक लोग, जनता पार्टीके नेतागणकी निंदा के लिये तूट पडे थे.

इसके परिणाम स्वरुप, जो लोग,  इंदिराके आपात्कालमें कारावासमें भी गये थे, वे लोग भी मतदानके लिये नहीं गये थे. इसके कारण भ्रष्ट कोंगी सरकार, फिरसे सत्तारुढ हो गयी थी. और इस कोंगी और उनके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंने भारतका क्या हाल किया था वह आप सब लोग जानते ही है.

ममताका नया दांव

दलित वर्ग को लक्ष्य बनाना ममताके लिये सरल था. ममताने खुले आम,  दलितोंको डर बताया था कि हम जितेंगे तो तुम लोगोंके उपर खेरात करेंगे. यदि हमारा प्रत्याषी हार गया तो, तुम्हारी खैर नहीं.

दलित वर्ग एक ऐसा हिंदु वर्ग है जो आज भी गरीब है. उनको ये मोदी/बीजेपी विरोधी लोग लक्ष्य बनाते है. ममताको जब पता चला कि दलितोंने उसके पक्षको मत नहीं किया है तो उसने लाखों दलितोंके उपर अत्याचार किया, उनके घरोंको जलाया, उनको उनके  घरोंसे भगाया, उनकी महिलाओं की आबरु को निलाम किया, उनको नग्न करके उनके उपर दुष्कर्म किया. और ये सब रोहींग्या मुसलमानोंसे करवाया. ममताने स्वयंने गवर्नर एवं न्यायाधीश तक को हत्याकी धमकी दी/दिलवायी. ममता समज़ती है कि दलित लोग गरीबीके कारण लड नहीं सकते. और दलितोंको डराना और उनका वॉट लेना सरल कार्य है. और ममताने वह करके दिखाया है. यह प्रणाली अब पूरे भारतमें ये लुट्येन गेंग वाले लोग लागु करेंगे. दलितोंका धर्म परिवर्तन कराना भी सरल कार्य है. दलित लोग न तो न्यायालयका द्वार खटखटा सकते है न तो वे लोग लड सकते है. उनके लिये तो रोटी और जानका सवाल है.

आरएसएस वाले कुछ भी कर नहीं पाये.

यदि आर एस एस वाले प्रतिकारत्मक कार्यवाही करते तो, ल्युट्येन गेंग उनका जीना हराम कर देती. क्यों कि अभी भी न्यायतंत्र, ल्युट्येनगेंग वालोंसे मुक्त नहीं है. आज भी ममता और उनके साथी मुक्तरुपसे घुम रहे है और जी चाहे वह बोलते रहेते है.

एक बडा प्रश्न है.

हमें एक बात सुनिश्चित करना चाहिये कि हमें क्या चाहिये?

हमें मुसलमानोंका क्या करना है?

हमें मुसलमानोंको नेस्त नाबुद करना है?

या

हमें मुसलमानोंको हमारे देशसे भगाना है?

या

हमें मुसलमानोंके साथ रहेना है?

हमें यह भी सोचना है कि हम राष्ट्रवादीयोंकी हिंसा करनेकी ताकत क्या है? हमारे बीजेपी/मोदी सरकारकी ताकत क्या है.

मुसलमान लोग खुले आम धमकी दे कर हजारों हिंदुओंकी हत्याएं कर सकते हैं, अगणित हिंदु महिलाओं पर बलात्कार कर सकते है, सेंकडो हिंदुओंके घर जला सकते है, लाखों हिंदुओंको कश्मिरसे या कहींसे भी भगा सकते हैं. ये सब उन्होंने किया. फिर भी ये कोंगीयोंके, उनके सांस्कृतिक साथीयोंके और न्यायाधीशोंके कानोंमें कभी भी जू तक नहीं रेंगी.

इसके उपरांत मुसलमान लोग, देशमें अनेक केरेना बना सकते है.

और ये हिंदु लोग, कश्मिरकी बात तो छोडो, एक केरेना तक बना नहीं सकते. यह है भारतमें भारतीय मुस्लिमोंकी और घुसणखोर मुस्लिमोंकी ताकत.

ईश्वरकी कृपा मानो कि, उसने नरेंद्र मोदीको और बीजेपीको जिताया. और मुस्लिमोंकी ताकत घट रही है. लेकिन यदि फिरसे लुट्येन गेंग सत्ता में आती है तो लुट्येन गेंगवाले लोगोंकी, मुस्लिमोंकी और ख्रीस्तीयोंकी ताकत असीम बढ सकती है. हमें ईश्वर के भरोसे नहीं रहेना है. ईश्वर उन्हीको मदद करता है जो खुदकी मदद करते है. हर दफा ईश्वर अपने आप, मदद नहीं करता. 

हिंदुओंकी क्या ताकत है?

हिंदु लोग युद्धमें किसी को भी हरा सकते है. हिंदु लोग हमेशा जितते ही आये है. सिकंदर से लेकर अयुब खान तकको हराया है . हिंदु तब हारे है जब भारतस्थित गद्दारोंने दुश्मनोंको साथ दिया . निर्दोष लोगों की हत्या करना आम भारतीय (हिंदुओं) जनमानसका संस्कार नहीं है.

हमें भूल जाना है कि, हम कभी एक हिंदु केरेना भी बना पायेंगे. क्यों कि हिंदुओंकी सांस्कृतिक प्रकृतिकी ऐसी है ही नहीं.

तो राष्ट्रवादीयोंके लिये विकल्प क्या है?

विकल्प है भी या नहीं?

जी हांँ , विकल्प है और वह विकल्प सुचारु भी है. हमें हम पर आत्मविश्वास होना चाहिये.

वह कैसे?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – १

गद्दरोंको हराना है तो गद्दारोंको पहेचानना पडेगा.

गद्दार (देश द्रोही) को कैसे पहेचाना जाय?

गद्दारकी एततकालिन प्रवर्तमान परिभाषा तो यही होना चाहिये कि जो अपने स्वार्थके लिये भारतवर्षका अहित करने पर काया और वाचासे प्रत्यक्ष या परोक्ष रुपसे प्रवृत्त है, वह गद्दार है.

गद्दारका परोक्ष रुप क्या है?

हिंदुओंको कैसे भी करके विभाजित करना जैसे कि, विचार, ज्ञाति, क्षेत्र, भाषा, लिपि, जूठ, वितंडावाद (कुतर्क) , फर्जी वर्णन (false and prejudicial narratives), … ब्लोगका हिन्दु विरोधी, बीजेपी नेता विरोधी अयोग्य और विवादास्पद शिर्षक बनाना …

किंतु पता कैसे चले कि फलां फलां शिर्षक या विषय अयोग्य है?

जी हांँ … सही विषय, सही वर्णन, सही शिर्षक, आदि का चयन करना सरल नहीं है . लेकिन एक बार विचार कर लेना कि हमारे कथनका क्या असर पडनेवाला है. हमारे कथनसे हिंदुओंका कोई एक वर्ग अपमानित तो नहीं होनेवाला है न!!

कौन हिंदु है?

जो व्यक्ति समज़ता है कि मेरा धर्म (कर्तव्य) “मेरा देश भारतका हित सर्व प्रथम” है वह हिंदु है. भारतवर्ष से प्रथम अर्थ है प्रवर्तमान १९४७का सीमा-चिन्हित भारत. मेरा भारत वह भी है जो वायु-पुराण (वायुपुराण क्यों? क्यों कि वह पुराणोमें सबसे प्राचीन है) में भूवनविन्यासके अध्यायोंमें उसका वर्णन किया हुआ है. वह है भारतीय संस्कृतिका विस्तार. अर्थात जंबुद्वीप.

भारतीय संस्कृतिसे क्या अर्थ है?

मानव समाजको उन्नति की दीशामें ले जानेवाली विचारधाराका आदर और ऋषियों द्वारा पुरस्कृत या प्रमाणित आचारधारा का कार्यान्वयन (Execution).

सनातन धर्ममें वर्णित विचार धाराएं प्रति आदर, वेद उपनिषद, गीता, जैन, बौद्ध, ब्राह्मण (ब्रह्मसे उत्पन्न ब्रह्म स्वरुप ब्राह्मण यानी महः देवः यानी अग्नि यानी रुद्र यानी विश्वदेव यानी विश्वमूर्त्ति यानी उसका प्रतिकात्मक रुप शिव और शक्ति यानी पुरुष-प्रकृति यानी तात्त्विक रुपसे वैश्विक परिबलोंके साथ ऐक्यकी साधना. शक्ति – सूर्य- पंचमहाभूत … अद्वैतवाद.

ज्ञान, शौर्य, कर्म और कला मेंसे किसी एकके प्रति अभिरुचि द्वारा आनंद प्राप्ति. अपनी खुशीके लिये किसीको कष्ट न पहोंचे उसका खयाल रखना. और इस तरह समाजको समयानुरुपसे उत्तरोत्तर विकसित करना. कटूता विहीन तर्कशुद्ध संवाद, यह है सनातन धर्म जो प्रकृतिको साथमें रखके अहिंसक (कमसे कम हिंसक) समाज के प्रति गति करता है. कायरता और हिंसाके बीचमें यदि चयन करना है तो हिंसाका चयन करना है.

वेद और पुराण के दो श्लोक हमे कहेते हैं कि,

मा नः स्त्येनः ईशतः (हम पर चोरोंका शासन न ह. ऋगवेद).

इससे स्पष्ट होता है कि जो अगणित कौभांडकारी कोंगी, माफिया मुल्लायम, चाराचोर लालु, रीलीफ फंडमें कौभांड, शारधा, नारदा … आदि कौभांडमें सहभागी एवं आतंकवादी ममता, उद्धव सेना, शरद सेना, … के शासनका हमें विरोध करना है और नष्ट करना है.

आत्मनः प्रतिकुलानि परेषां न समाचरेत. (जो हमारे लिये प्रतिकुल है वह दुसरोंके उपर न थोपें. कूर्म पुराण)

ममताने हजारों हिंदुओंकी ह्त्या की, और एक लाख हिंदुओंको उनके घर जलाके भगा दिया. कारण केवल यही था कि उन हिंदुओंने ममताके पक्षको मत नहीं दिया था. इसके लिये ममताको जितना भी दंडित किया जाय, वह कम ही है.

आम जनता यानी कि, हम, जो स्वयंको राष्ट्रवादीमानती है उनका क्या धर्म है?

(१) लोकतत्र वाले देशमें जनताको जागृत करना और राष्ट्रवादी नेताओंके लिये हकारात्मक वातावरण तयार करना,

(२) राष्ट्रविरोधी तत्त्वोके उपर सातत्य पूर्वक उनकी क्षतियोंके उपर और दुराचारोंके उपर आक्रमण करना,

(३) राष्ट्रवादी नेताओंकी तथा कथित क्षतियोंको गुह्य रखना. या उन चर्चाओंमे मोड ला देना यानी कि विषयांतर कर देना,

(४) अप्रासंगिक और मृत विषयों पर चर्चा नहीं करना,

(५) हमारे ध्येयमें हमें स्पष्ट होना, और हमारा हर कदम हमारे ध्येय की दिशामें होना आवश्यक है.

सबसे बडी हमारी समस्या यह ही है कि हम राष्ट्रवादी लोग अधिकतर यह नहीं सोचते कि हमारी चर्चा मीथ्या की दिशामें जा रही है. और हममेंसे कई लोग इस परिस्थिति समज़ नहीं पाते हैँ. और अपनी शक्तिको और समयको बरबाद करते है.

चलो इसको समज़ें

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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