२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – ३
आपको विनंति है कि आप “२०२४में गद्दारोंको हरानेकी व्यूह रचना – २” फिरसे पढें ताकि आपको इस विषयमें सातत्य रहे.
हमें क्या नहीं करना चाहिये.
(१) हमें ऐसे ब्लोग नहीं लिखने चाहिये जिनका विषय वर्तमान समयमें अप्रस्तुत हो या हिंदुओंके एक वर्गको अनीष्ट लगता हो.
(२) जो मुस्लिम और हिंदु राजा महाराजा थे या, जो कुछ भी हो उनकी निंदा न हो..
ऐसा क्यूंँ?
अधिकतर मुस्लिम जनमानस में यह बात ठूस कर भर गयी है कि, वे मुस्लिम है और वे हिंदुओंसे भीन्न है. बीजेपी उनका दुश्मन है, इस लिये वह इतिहाससे खेल कर रहा है. इसलिये बीजेपी, मुगलोंकी बुराई कर रहा है.
हमें ज्ञात होना अवश्यक है कि, इतिहासको सरलतासे विवादास्पद बनाया जा सकता है. ऐसी चर्चाका असर केवल धिक्कार फैलाना होता है. कोंगीयों को यह काम करने दो. हमें कोंगीयोंको कोसनेका मौका मिलेगा.
ऐतिहासिक पात्र सभी मर गये है.
वे पात्र कैसे थे? इस बातको भारतकी शिक्षानीति को तय करने वालों पर छोड दो. हमसे अधिक सुज्ञ लोग राजिव मलहोत्रा, श्रीनिवासन, … जैसे कई लोग है और वे राष्ट्रवादी भी है और हमसे अधिक सुज्ञ है. मुस्लिमोंमें भी ऐसे कई लोग ऐसे ही है. जो ऐसे राष्ट्रवादी मुस्लिम है हमें उनकी बातोंको बढावा देना है.
(३) यह बात सामान्य है कि, कुछ लोग इस्लाम के विरुद्ध लेख लिखा करते है. इस्लाम एक असहिष्णु पंथ है और यह पंथ, बीन-मुस्लिमोका बहिष्कार एवं उनकी कत्ल तक करनेका आदेश देता है. यह बात क्या सच है?
इसमें दो शक्यता है. हांँ या ना.
(३.१) यदि हांँ है. तो हमारे पास दो रास्ते उपलब्ध है. सभी मुसलमानोंको निकालो या उनको इस देशमें रहेनेके योग्य बनाओ.
यदि सभी मुसलमानोंको निकालना है तो ये २० करोड मुसलमानोंको निकालने का रास्ता कौनसा है?
मोदी हो या योगी हो, किसीमें भी यह ताकत नहीं है.
(३.२) हांँ जी. हम यदि एक एकाधिकारवाली और केवल हिंदुप्रेमी सरकार चूनें या पाकिस्तान जैसा लश्करी शासन लावें, या तो ऐसा एक पक्ष स्थापित करें जिसका एजंडा सभी मुस्लिमोंको भारतमेंसे निकालना हो.
क्या यह शक्य है?
अरे भाई हमारे बीजेपीका एजंडा है कि हम, बंगला देशी और पाकिस्तानी मुस्लिम घुसपैठीयोंको निकालेंगे. ये मुस्लिम घुसपैठीयें कमसेकम ३ करोड तो है ही. इस काममें कोई कानूनी अवरोध भी नहीं है. नहेरु-लियाकत अली समज़ौता को कार्यान्वित करना है. सी.ए.ए. और एन. आर. सी. एवं एन. आर. पी. इस लिये तो है.
(३.३) कोंगीकी दुर्गादेवीने तो प्रण भी लिया था कि वह हर हालातमें ये घुसपैठीयोंको निकालेगी, जो उस समय एक करोड थे. कोंगीकी दुर्गादेवी (इंदिरा गांधी) भी उसके अब्बाजान जैसी ही थी.
(३.४) इंदिरा गांधीके अब्बाजानने प्रण लिया था. नहेरुने संसदके समक्ष प्रण लिया था. नहेरुने ७१००० चोरस मील भारतकी भूमि, जो चीनने १९६२में हडप ली थी, वह वापस लेनेके लिये भारतकी संसदके समक्ष प्रण लिया था कि, जब तक उस भारतकी भूमिको, वे वापस नहीं लेंगे, तब तक वे चैनसे बैठेंगे नहीं. मतलब कि, आराम नहीं करेंगे.
फिर क्या हुआ?
होगा क्या?, कुछ नहीं. नहेरु तो १९६४में चैनसे दहेरादुनमें आराम करने गये और वार्धक्य से अल्लाहके या शैतानके प्यारे हो गये.
इंदिरा गांधी भी तो नहेरुकी ही औलाद थी. नहेरुवीयनोंके प्रण तो, पानी के उपर लिखे अक्षरोंके बराबर है. उनके शब्दोंकी कोई किमत नहीं थी. जब नहेरुवीयनोंकी सत्ता डगमगाने लगती है तब वे बेधडक, हिंदु संतोंकी भी हत्या कर सकते हैं. लेकिन मुसलमानोंकी जब बात आती है तो, उनके विरुद्ध चाहे मुसलमान (एवं ख्रीस्ती भी) आतंकवादी ही क्यूं न हो, उसके उपर अर्थपूर्ण कार्यवाही न करना उनका धर्म है.
(३.५) ममताने भी, जब उसका शासन नहीं था तब, घुसपैठीयोंको निकालने लिये आंदोलन किया था. ममता तो इंदिरासे भी बढकर है. वह तो अब खुलेआम बोलती है कि मैं तो हिंदुओंके लिये लबारी तो हूंँ, लेकिन मुसलमानोंकी तो भगीनी हूंँ. मैं तो केजरीवालसे भी बढकर हूंँ. ऐसी है ममता, जो आतंकवादी रोहींग्या मुसलमानों बचानेके लिये, न्यायालयके न्यायाधीशोंको और गवर्नर तकको हत्या करवानेकी टपोरीकी भाषामें धमकी दे सकती है, और ऐसी ममता बंगालके चूनावमें जीत भी जाती है, उस बंगालकी नेत्रीसे या बंगालकी जनतासे हम क्या उम्मीद रख सकते है?
तो क्या मुस्लिमोंको निकालने के लिये हमें लश्करी शासन लाना है?
(क्रमशः)
षिरीष मोहनलाल दवे
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