धर्म परिवर्तन के लिये प्रतिज्ञा लेनी पडती है क्या? – २
हमने प्रकरण – १ में देखा कि ये बौध्ध बावाजी कहेते है कि;
बौध्ध धर्म एक कल्चर है.
उपरोक्त कथनोंका खंडन हो सकता है.
(१) बौध्ध धर्म एक कल्चर है क्या?
बावाजी, पहेले आप कल्चर की परिभाषा तो करो? यदि आप कल्चरकी परिभाषा नहीं करोगे तो शब्दकोषका अर्थ ही माना जायेगा.
कल्चर एक वैचारिक प्रणाली है. बुध्ध भगवान मानवजात ही नहीं अन्य पशु-पक्षी आदिके उपर भी दया और करुणा रखनेका सिध्धांत रखते थे.
यदि बौध्ध धर्म एक संस्कृति है तो आप लोग मांसाहार क्यों करते है? जापानमें तो एक शिल्पमें बुध्ध को हाथीका शिकार करते दिखाय गया है. एक हाथीको मारनेसे एक जीवकी ही हिंसा होती है. मछली खानेके लिये अनेक मछलीयोंकी हिंसा करना पडता है. चीनके लोग तो पृथ्वि और आकाशके बीचके सभी सजीवोंको खाते है.
आपने दलितोंको ही निशाना क्यों बनाया? अरे बावाजी यदि आप प्रज्ञायुक्त चर्चामें मानते है तो पहेले दलितोंको कमसे कम यह तो समज़ाओ कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश … आदि आपके हिसाबसे कौन है. हम हिंदुओंको पता है कि आप स्वयं इनका सही स्वरुप जानते नहीं है. आपमें इनके बारेमें ज्ञान नहीं है कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश … कौन है.
हिंदु धर्ममें पुराण इतिहासकी पुस्तक है. इतिहासको सुगम्य और रोचक बनानेनेके लिये, इनमें समय समय पर भगवान की और देवीयोंकी काल्पनिक कथाएं एवं आकाशीय घटनाओंका प्रतिकात्मक विवरण भी प्रक्षिप्त है. पुराणोकी रचना कमसे कम ईशा.पू. १००० वर्षसे ईशा मसीह संवत्सरकी १२वीं शताब्दी तक होती रही. उनमें प्रक्षेप होते रहे है.
आपने जो पुस्तकें तत्त्वज्ञानके लिये मान्य नहीं है उनको ही उधृत किया. आपने ऐसा क्यूँ किया? ऐसा ही है न कि अन्यमें आपकी चॉंच डूबती ही नहीं? क्या हिंदु तत्त्वज्ञानका अध्ययन करनेकी आपके पास क्षमता नहीं है?
आपने पुराणोंको क्यों पकडा? उपनिषदोंको क्युँ नहीं पकडा? आप वेद और उपनिषदोंके तत्त्वज्ञान पर कोई हिंदु ज्ञाता से चर्चा करते तो आपका अंतर्मन स्वच्छ है ऐसा प्रतीत होता.
हिंदु धर्म “प्रश्न करो और उत्तर पाओ.” मतलब की हिंदुधर्म संवाद द्वारा वर्णित होता है? हिंदुधर्ममें तत्त्वज्ञान भी प्रतिकोंसे समज़ाया जाता है.
बौध्ध धर्मको मानने वाले हमारे एक मित्र कहेते है कि “लव धाय एनीमी (शत्रुसे भी प्रेम करो)”, यह सिध्धांत भी बुध्ध भगवानका है, ऐसा उनके अनुयायी लोग मानते है. अच्छी बात है. यदि आप कुछ अच्छी बात मानते है तो किसीको कोई कष्ट नहीं.
यदि आप बौध्ध है, तो हिंदु आपका पडौशी है. “पडौशीसे प्रेम रक्खो” ऐसा कथन ईसा मसीहका था. बुध्ध भगवानने उससे भी उच्च सिध्धांत बनाके रक्खा कि दुश्मनसे भी प्यार करो.
लेकिन अय बावाजी, आप आगे चलकर कहेते है “हम पुनर्जन्म, आत्मा, ईश्वर और परमेश्वरमें मानते नहीं है”. चलो यह भी ठीक है. लेकिन जब आप यह आदेश देते हैं कि …
बावाजी! यदि ऐसा है तो जातक कथाओंमें बुध्धके कई जन्मोंका विवरण कैसे है? आप को शायद मालुम नहीं कि कि दलाई लामा को बुध्धका “विद्यमान अवतार” माना जाता है.
हिंदुओंका धर्म कैसा है आपने कभी समज़नेका प्रयत्न किया है? चलो एक उदाहरणसे आपको अवगत करें;
गणेशः
इसका अर्थ है “गणानां ईशः इति गणेशः”
समूह का नेता.
गणेशको सूंढ होती है. मतलब परिस्थितिको दूरसे सूंघ लेता है.
गणेशको बडे कर्ण होते है, मतलब नेताके कर्ण विशाल होते है ताकि वह सबकी बातें दूरसे जब चाहे तब सून लेता है,
नेताका उदर मोटा होता है ताकि वह सभीकी बातें अपने पेटमें समावेश कर सकता है,
नेताकी आंखे तीक्ष्ण होती है,
नेताके पास लड्डू होते है, ता कि उसको मिलनेके बाद व्यक्ति संतुष्ट हो के जाता है,
नेता बैठा हुआ होता है, मतलब कि वह हमेशा उपलब्ध होता है,
गणेश एलीफंट गोड नहीं है, लेकिन एलीफंट-हेड गोड है. यहां ईशका अर्थ संचालक मतलब नेता है जिनकी बात सब गणसदस्य मानते है.
बावाजी, क्या यह प्रतिकात्मक विवरण आपकी समज़में आया? नहीं आया? चलो आगे समज़ाते है.
इसको दो पत्नियां है; रिध्धि और सिध्धि
इसका मतलब है समृध्धि और सफलता
इनके दो पुत्र है,
शुभ और लाभ. मतलब सुष्ठु (अच्छा) और उत्कर्ष (अच्छा भविष्य)
अब तो बावाजी आपकी समज़में आगया होगा. यदि अब भी नहीं आया हो तो आप “गॉन केस” (हाथसे गया हुआ केस) है.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
Leave a Reply