Feeds:
Posts
Comments

Posts Tagged ‘अतिक्रमण’

किसी भी नगरको/ग्रामको बदसूरत और गंदा कैसे किया जाय …. १

हाँ जी, नगर, ग्राममें आयोजित विस्तार, देहात, टाउनशीप, निवासीय या संकीर्ण मकान या मकानोंके समूह आदि सब कुछ आ जाता है. इसको कैसे बदसूरत और गंदा किया जा सकता है, उसकी हम चर्चा करेंगे.

अहमदाबाद स्थित शास्त्रीनगर कैसे बदसूरत और गंदा किया गया, हम इसका  उदाहरण लेंगे.

कोई भी विस्तारमें यदि एक वसाहतका निर्माण करना है तो सर्व प्रथम उसका आयोजन करना पडता है. प्राचीन भारतमें यह परंपरा थी. प्राचीन भारतमें एक शास्त्र था (वैसे तो वह शास्त्र आज भी उपलब्ध है. लेकिन इसकी बात हम नहीं करेंगे. हम स्वतंत्र भारतकी बात करेंगे. १९४७के बादके समयकी चर्चा करेंगे.

अहमदाबादमें एक संस्था है. यह संस्था सरकार द्वारा नियंत्रित है. इसका नाम है गुजरात हाउसींग बोर्ड. इसने आयोजन पूर्वक अनेक वसाहतोंका निर्माण किया है.

शास्त्रीनगर वसाहतका आयोजन कब हुआ था वह हमें ज्ञात नहीं. लेकिन इसका निर्माण कार्य १९७१में आरंभ हुआ था.

आयोजनमें क्या होता है?

(१) जी+३ के मध्यम वर्ग (एम-४, ऍम-५) उच्च कनिष्ठ वर्ग (एल-४), कनिष्ठ वर्ग(एल-५) के बील्डींग ब्लोकोंका निर्माण करना.

(२) सुचारु चौडाई वाले पक्के मार्गका प्रावधान रखना, चलने वालोंके लिये और विकलांगोंकी और अशक्त लोगोंकी व्हीलचेरके लिये योग्य चौडाई वाली फुटपाथ बनाना

(३) र्शोपींग सेन्टरका प्रावधान रखना,

(४) बीजली – पानीका आयोजन करना,

(५) भूमिके विषयमें

(५.१) विद्यालयका प्रावधान रखना

(५.२) उद्यानके लिये प्रावधान रखना

(५.३) हवा और प्रकाश रहे इस प्रकार भूमिका उपयोग करना,

(५.४) कोम्युनीटी हॉलके लिये प्रावधान रखना,

(५.५) क्रीडांगणके लिये प्रावधान रखना,

(६) बाय-लॉज़ द्वारा वसाहतको नियंत्रित करना,

(७) सामान्य सुविधाएं यानीकी बीजली, पानी देना.

(८) कुडे कचरेके निकालके लिये योग्य तरीकोंसे प्रबंधन करना

 आयोजनमें क्या कमीयाँ थीं?

(१) जी+३ के मकान तो बनवायें लेकिन प्लानरको मालुम नहीं था कि जनतामें विकलांग और वृद्ध लोग भी होते है. इस कारण उन्होंने यह समाधान निकाला कि जिसके कूटुंबमे वृद्ध होय उनको यदि आबंटनके बाद ग्राऊन्ड फ्लोरका आवास बचा है तो उनको चेन्ज ओफ निवास किया दिया जायेगा.  आपको आश्चर्य होगा कि सरकार द्वारा निर्मित आवासोंका मूल्य तो कम होता है तो ग्राउन्ड फ्लोरका आवास बचेगा कैसे? शायद सरकारने सोचा होगा कि, आज जो युवा है वे यावदचंद्र दिवाकरौ युवा ही रहेंगे या तो युवा अवस्थामें ही ईश्वरके पास पहूँच जायेंगे.

हाँ जी, आपकी बात तो सही है. लेकिन यहां पर आवासकी किमत मार्केट रेटसे कमसे कम ४०% अधिक रक्खी थी. ग्राउन्ड फ्लोरके निवास और तीसरी मंजीलके निवासकी किमत भी समान रक्खी थी.

वैसे तो “लोन”की सुवाधा खुद हाउसींग बोर्डने रक्खी थी, इस लोनकी सुविधाके कारण लोअर ईन्कम ग्रुप वालोंने मासिक हप्ते  ज्यादा होते हुए भी और लोनका भुगतान करनेकी मर्यादा सिर्फ दश सालकी होते हुए भी, अरजी पत्र भरा और मूल्यका २०% सरकारमें जमा किया.

समस्या एम-५ और एम-४ के आबंटनमें आयी. क्यों कि उसका मूल्य ५५००० रुपये रक्खा था और मासिक हप्ता ₹ ६००+ रक्खा था. उस समय कनिष्ठ कक्षाके अधिकारीयोंका “होमटेक  वेतन” भी बडी मुश्किलसे रु. ९००/- से अधिक नहीं था. इस कारणसे ९५% निवास खाली पडे रहे. उतना ही नहीं उसी  विस्तारमें आपको उसी किमतमें डाउन पेमेंट पर स्वतंत्र बंगलो मिल सकता था. स्टेम्प ड्युटी भी १२.५ प्रतिशत थी. मतलब कि, आपको एम-४ और एम-५ टाईपका निवास करीब ६५०००/- रुपयेमें पडता था. 

राष्ट्रीयकृत बेंकोंकी लोन प्रक्रिया भी इतनी लंबी थी कि सामान्य आदमीके बसकी बात नहीं थी.  

सरकारी समाधानः

सरकारने ऐसा समाधान निकाला कि, यदि आवास निर्माण संस्था सरकारी निर्माण संस्था है तो ऐसी संस्था द्वारा दिये गये “आबंटन पत्र” प्रस्तूत करने पर ही लोनको मंजूर कर देनेका.

मासिक आयकी जो सीमा रक्खी थी वह रद कर दी,

कई सारे निवास सरकारके विभागोंने, अपने कर्मचारीयोंके सरकारी आवास के लिये खरीद लिये.

लोनके कार्य कालकी सीमा दश सालके बदले बीस साल कर दिया.

निर्माणका काम अधूरा था तो भी सबको पज़ेशन पत्र दे दिये क्यों कि कोंट्राक्टरको दंड वसुलीसे बचा शकें.

(२) शास्त्रीनगरका आयोजन तो उस समयके हिसाब से अच्छा था. समय चलते महानगर पालिकाने नगरके मार्गोंको आंशिक चौडाईमें पक्का भी कर दिया.

प्रारंभके वर्षोंमें वर्षा ऋतुमें बस पकडने के लिये आधा किलोमीटर चलके जाना पडता था. सरकारका चरित्र है कि कोई काम ढंगसे नहीं करनेका. पक्के मार्ग आंशिक रुपसे ही पक्के थे. इससे कीचडकी परेशानी बनती थी. दोनों तरफकी भूमिको तो कच्चा ही रक्खा रक्खा जाता था. फूटपाथ बनानेका संस्कार नगर पालिकाके अधिकारीयोंको नहीं था (न तो आज भी है).

(३) हाउसींगबोर्डने शोपींग सेन्टर तो अच्छा बनाया था. एम-४ टाऊप आवासोंके ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकानें बनी थीं.

(४) बीजली पानीका प्रबंध उस जमानेके अनुसार अच्छा था.

(५.१) स्कुलके लिये भूमि तो आरक्षित थी. लेकिन आज पर्यंत स्कुल क्युं नहीं बना यह संशोधनका (अन्वेषणका) विषय है.

(५.२) उद्यान नहीं बनवाया,

(५.३) कोम्युनीटी सेन्टर नहीं बनवाया

(५.४) क्रिडांगणका मतलब यही किया गया कि भूमिको खुल्ला छोड देना.

(६) शास्त्रीनगरके सुचारु रखरखावके लिये सरकारने बाय-लॉज़ तो अच्छे बनाये थे. लेकिन सरकारी कर्मचारी-अधिकारीगण तो आखिर नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कार प्रभावित सरकारी ही होते है. इन सरकारी अधिकारीयोंको काम करना और दिमाग चलाना पसंद नहीं होता है. “यह काम हमारा नहीं है” ऐसा तो आपने कई बार सूना होगा. यदि कोई काम उनका नही है तो जिस सरकारी विभागका वह काम हो उसको ज्ञात कर देनेका काम सरकारी कर्मचारी/अधिकारीके कार्यक्षेत्रमें है ऐसा इनको पढाया नहीं जाता है.

(६.१) हाउसींग बोर्डने शीघ्राति शीघ्र निवास स्थानोंका वहीवट पांच से सात ब्लॉकोंकी सोसाईटीयां बनाके इन सोसाईटींयोंको दे दिया.

(६.२) भारतके लोग अधिकतर स्वकेन्द्री है और आलसी होते है. स्वकेन्द्री होने के कारण जो लोग ग्राउन्ड फ्लोर पर रहेते थे उन्होने एपार्टमेन्टके आगेकी १० फीट भूमि पर कबजा कर लिया. सार्वजनिक जगह यदि सुप्राप्य है तो उसके उपर कबज़ा जमाना भरतीयोंका संस्कार है खास करके उत्तरभारतीयोंका जिनमें गुजराती लोग भी इस क्षेत्रमें आ जाते हैं. उनके उपर रहेने वालोंने विरोध किया तो झगडे होने लगे. सात ब्लॉकोंकी जगह हर ब्लॉक की एक सोसाईटी बन गई. एक ब्लोकके अंदर भी ग्राउन्ड फ्लोर और उपरके फ्लोर वाले झगडने लगे.

(६.३) ज्यों ज्यों अतिक्रमण बढता गया त्यों त्यों शास्त्रीनगरकी शोभा घटने लगी. शास्त्रीनगर एक कुरुप वसाहतके रुपमें तेज़ीसे आगे बढने लगा था.

(६.४) जब अतिक्रमणकी फरियादें बढ गयी तो सरकारने सबको छूट्टी देदी.

(६.५) अब शास्त्रीनगरका कोई भी निवासी दश फीट तक अपना रुम या गेलेरी आगे खींच सकता था. उसको सिर्फ एक हजार रुपये हाउसींग बॉर्डमें जमा करवाने पडते थे.

(६.६) एक हजार रुपया हाउसींग बॉर्डमें जमा करने के बाद, न तो कोई सोसाईटीके पारित विधेयककी नकल प्रस्तूत करना आवश्यक था, न तो कोई विधेयक जरुरी था, न तो कोई विज्ञापन देना आवश्यक था, न तो पडौशीका “नो ओब्जेक्सन” आवश्यक था, न कोई प्लान एप्रुव करवाना आवश्यक था, न तो किसीका कोई निरीक्षण होना आवश्यक माना गया. कुछ निवास्थान वालोंने तो तीनो दिशामें दश दश फीट अपना एपार्टमेन्ट बढा दिया.

(६.७) यदि शास्त्रीनगरके निवासी ऐसी छूटका लाभ ले, तो हाउसींग बोर्ड स्वयं क्यों पीछे रहे?

(६.८) हाउसींग बोर्डने शास्त्रीनगरकी चारो दिशामें, जी+२ के कई सारे मकान बना दिये. सभी मकानोंके ग्राउन्ड फ्लोर वालोंने ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकाने बना दी. हाउसींग बोर्डने भी ऐसा ही किया. अब ऐसा हुआ कि जो भी ग्राउन्ड फ्लोर वाले थे उनमेंसे अधिकतर लोगोंने अपना रोड-फेसींग रुमोंको दुकानमें परिवर्तित कर दिया.

(६.९) मुख्य मार्ग पर वाहनोंका यातायात बढ गया. फूटपाथकी तो बात ही छोड दो, मार्गपर चलनेका भी कठीन हो गया.

हाउसींग बोर्डके कर्मचारीयोंकी और अधिकारीयोंकी कामचोरी और अकुशलताके बावजुद १९७६ से १९७९ तक शास्त्रीनगर एक सुंदर और अहमदाबादकी श्रेष्ठ वसाहत था. लेकिन धीरे धीरे उसमें सरकारी कर्मचारी-अधिकारी, गुन्डे, व्यापारी और हॉकर्सकी मिलीभगतसे  अतिक्रमण बढता गया.

(७) बीजली सप्लाय तो अहमदाबाद ईलेक्ट्रीसीटी कंपनीका था इससे उसमें कमी नहीं आयी. लेकिन जो पानीकी सप्लाय थी वह तो अतिक्रमण-रहित आयोजन के हिसाबसे था. इस कारण पानीकी कमी पडने लगी.

(८) कुडा कचरा को नीपटानेका प्रबंधन तो पहेलेसे ही नहीं था. क्यों कि नहेरुवीयन कोंग्रेस गंदकीको समस्या मानती नहीं है.

(९) कई सालोंसे शास्त्रीनगर प्रारंभिक अवस्थाकी तुलनामें दोज़ख बन गया है. कई लोग अन्यत्र चले गये है.

हाउसींग बॉर्डके लिये गीचताकी समस्या कोई समस्या ही नहीं थी.  हाउसींग बोर्डने मुख्यमंत्री आवास योजनाके अंतर्गत अंकूरसे रन्नापार्कके रोड पर नारणपुरा-टेलीफोन एक्सचेन्जके सामनेवाली अपनी ज़मीनके उपर आठ दश नये अतिरिक्त दश मंजीला मकानकी योजना पूर्ण कर दी है. इसमें भी कई सारी दुकानें बनायी है. वाहनोंके पार्कींगके लिये कोई सुविधा भी नहीं रक्खी है. इश्तिहारमें पार्कींग की सुविधाका जिक्र था. लेकिन हाउसींग बोर्डके अधिकारी/कोंट्राक्टरोंकी तबियत गुदगुदायी तो पार्कींग भूल गये.

(१०) यह विस्तार पहेलेसे ही गीचतापूर्ण है. इस बातका खयाल किये बिना ही हमारे सरकारी अधिकारीयोंने इस विस्तारको और गंदा करने की सोच ली है और वे इसके लिये सक्रीय है.

इस समस्याका समाधान क्या है?

(१) हाउसींग बॉर्डमें और नगर निगममें जो भी सरकारी अधिकारी जीवित है उनका उत्तरदायीत्व माना जाय और उनके उपर कार्यवाही करके उनकी पेन्शनको रोका जाय. उनकी संपत्ति पर जाँच बैठायी जाय ताकि अन्य कर्मचारीयोंको लगे कि गैर कानूनी मार्गोंसे पैसे बनानानेके बारेमें कानून के हाथ लंबे है और कानूनसे कोई बच नहीं सकता. जो भी कमीश्नर अभी भी सेवामें है उनको निलंबित कर देना चाहिये और उनके उपर कार्यवाही करनी चाहिये.

(२) केवल कमीश्नर उपर ही कार्यवाही क्यों?

(२.१) कमीश्नर अकेला नहीं होता है. उसके पास आयोजन करने वाली, निर्माण पर निगरानी रखनेवाली, रखरखाव और अतिक्रमण करनेवाले पर कार्यवाही करने के लिये पूरी टीम होती है. यह बात सही है कि कमीश्नर ये सभी कार्य स्वयं नहीं कर सकता. किन्तु उसका कर्तव्य है कि वह अपनी टीमों के कर्मचारी/अफसरोंका उत्तरदाइत्व सुनिश्चिते करें.

यदि कोई जनप्रतिनिधिने उसके पर दबाव लाया है तो वह उसका नाम घोषित करे. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग करें और ऐसे जन प्रतिनिधियों को प्रकाशमें लावें. वैसे तो इन अधिकारीयोंका मंडल भी होता है. वे अपने हक्कोंके  लिये लडते भी है. किन्तु उनको स्वयंके सेवा धर्मके लिये भी लडना चाहिये. जो नीतिमान आई.ए.एस अधिकारी है वह अवश्य लड सकता है. यदि उसको अपने तबादलेका भय है तो वह न्यायालयमें जा सकता है. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग न्यायालयके सामने रख सकता है.

(३) लेकिन ये आई.ए.एस अधिकारीगण ऐसा नहीं करेंगे. क्यों कि उनकी जनप्रतिनिधियोंके साथ, अपने कर्मचारीयोंके साथ, कोन्ट्राक्टरोंके साथ और बील्डरोंके साथ मिलीभगत होती है. जिनके साथ ऐसा नहीं होता है वे लोग ही दंडित होते है.

(३.१) बेज़मेंटमें कानूनी हिसाबसे आप गोडाउन नहीं बना सकते. यह प्रावधान “फायर प्रीवेन्शन एक्ट के अंतर्गत है. ऐसे गोडाउनमें आग भी लगी है और नगरपालिकाके अग्निशामक दलने ऐसी आगोंका शमन ही किया है. लेकिन ऐसे गोडाऊन आग लगनेके बाद भी चालु रहे है. बेज़मेन्टमें कभी दुकाने नहीं हो सकती. क्यों कि दुकानमें भी सामान होता है. उसके उपर भी “फायर प्रीवेन्शन एक्ट लागु पड सकता है. लेकिन नगर पालिका के मुखीया (कमीश्नर)की तबीयत नहीं गुदगुदाती कि वे ऐसी दुकानों पर कार्यवाही करें.

(३.२) अनधिकृत निर्माण, कर्मचारी/अफसरोंकी लापरवाही, भ्रष्टता, न्यायालयके हुकमोंका अनादर, न्यायालयमें नगरपालिकाकी तरफसे केवीएट दाखिल करने की मनोवृत्तिका अभाव, न्यायालयके हूकमोंमें क्षतियां आदि विषयके समर्थनमें के कई मिसाले हैं कि जिनमें सरकारी (न्यायालय सहित) अधिकारीयोंकी जिम्मेवारी बन सकती है और वे दंडके काबिल होते है.

(३.३) अब यह दुराचार इतना व्यापक है कि न्यायालयमें केस दाखिल नहीं हो सकता. लेकिन विद्यमान सरकारी अफसरों (केवल कमीश्नरों) पर कार्यवाही हो सकती है. इन लोगोंको सर्व प्रथम निलंबित किया जाय, और आरामसे उनके उपर कार्यवाही चलती रहे.

(४) कमीश्नर फुलप्रुफ शासन प्रणाली बनवाने के काबिल है. यदि आप उनके लिये बनाये गये गोपनीय रीपोर्टकी फॉर्मेटके प्रावधानोंको पढें, तो उनकी जिम्मेवारी फिक्स हो सकती है. उनके लिये यह अनिवार्य है कि वे नीतिमान हो, उनकी नीतिमत्ता शंकासे बाहर हो, वे आर्षदृष्टा हो, वे स्थितप्रज्ञ हो, कार्यकुशल हो, कठिन समयमें अपनी कुशलता दिखानेके काबिल हो, सहयोग करने वाले हो, उनके पास कुशल संवादशीलता हो, आदि …

(५) एफ.एस.आई. कम कर देना चाहिये.

(५.१) आज अहमदाबदमें एफ.एस.आई १.८ है. भावनगरके महाराजाके कार्यकालमें भावनगरमें एफ.एस.आई. ०.३ के करीब था. मतलब की आपके पास ३०० चोरस मीटरका प्लॉट है तो आप १०० चोरस मीटरमें ही मकानका निर्माण कर सकते है. उस समय भावनगर एक अति सुंदर नगर था. हर तरफ हरियाली थी. आप जैसे ही “वरतेज” में प्रवेश करते थे वैसे ही आपको थंडी हवाका अहेसास होता था.

(५.२) नहेरुवीयन कोंग्रेसने एफ.एस.आई. बढा दिया. १९७८के बाद भावनगरका विनीपात हो गया. आज वह भी न सुधर सकनेवाला नगर हो गया है. भारतके हर नगरका ऐसा ही हाल है.  

(६) ऐतिहासिक धरोहरवाले मकानोंको छोडके, अन्य विस्तारोंका री-डेवलपमेन्ट (नवसंरचना) कराया जाय. इस प्रकारकी नव संरचनाके के नीतिनियम और प्रक्रिया इसी ब्लोग-साईट पर अन्यत्र विस्तारसे विवरण दिया है.

(७) आई.ए.एस. अधिकारीयों की नियुक्ति बंद कर देना चाहिये. क्यों कि इनमें ९९.९ अधिकारी अकुशल और भ्रष्ट है. इनकी नियुक्तिमें गोलमाल होती है. कैसी गोलमाल होती है उसके बारेमें प्रत्यक्ष और परोक्ष अनेक सबूत है. हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे.

(८) कमीश्नरोंकी नियुक्ति ५ सालके कोन्ट्राक्ट पर होनी चाहिये. उनकी नियुक्तिके पूर्व और कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात उनकी संपत्तिकी जांच होनी चाहिये.

(९) स्मार्ट सीटीकी परिभाषा निम्न कक्षाकी है. यह परिभाषा व्यापक होना चाहिये. “यदि गुन्हा किया तो १०० प्रतिशत पकडा गया और दंड होगा ही” ऐसा सीस्टम होना चाहिये. और यह बात  असंभव नहीं है.

 “नगर रचना कैसी होनी चाहिये” इसके बारेमें यदि किसीको शिख लेनी है तो वह “गोदरेज गार्डन सीटी, जगतपुर, अहमदाबाद-३८२४७०”की मुलाकात लें.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

Read Full Post »

RURBAN CLUSTER ALIAS A SMART COMPLEX. A CLUSTER WITH SELF RELIANCE – 2

स्वावलंबी संकुल एवं स्मार्ट ग्राम

कैसे कोष्ठका (सेल, एकाई खंड), समुच्चय किस प्रकार हो सकता है?

प्रकोष्ठोंका समुच्चय

एच आई जी

एक सामान्य नियम यह है कि उप आंतरिक मार्ग जो मुख्य आंतरिक मार्गसे लंब है उसको सर्वथा रखना है. इसके कारण हरेक निवासीको तीन दिशाएं मुक्त मिलेगी और उनके निवासको तीन दिशाओंसे मुक्त हवा मिलेगी. इसका कारण यह है कि जो आंतरिक और उप-अंतरिक मार्ग है वह दोनों दिशाओंमें खुला हुआ है. उस दिशामें जाली अवश्य लगी है, लेकिन यह जाली कुडा कचराको फेंकना अशक्य बनाने के लिये और केवल पशु-पक्षींको रोकनेके लिये है. वायुके लिये यह जाली अवरोधक नहीं है.

भीन्न भीन्न वर्गीय कुटुंबोंके लिये भीन्न भीन्न विस्तारका आबंटन है.

जो स्थानांतरित है उनके लिये सामान्य नियम क्या रहेगा?

जो व्यक्ति या कुटुंब अतिक्रमण करके पद-मार्ग (फुटपाथ) या जनसाधारणके उपयोगकी खूली भूमि पर निवास कर रहा है उसको, और जिसकी नागरिकता संदिग्ध है, और अप्राप्य है उसको सोनेकी और नित्य कर्मकी सुविधा दी जायेगी. यदि वह कोई काम करनेके योग्य नही है या सक्षम नहीं है तो उसको एक अंबर चरखा खंडमे (प्रकोष्ठमें) रक्खा जयेगा जहां वह सूतकी कताई करेगा.

व्यक्तियोंको लेखांकित करनेवाला और उनका अभिज्ञानपत्र बनाने वाला अधिकारी उसको अस्थायी अभिज्ञान पत्र देगा. जिसके अधार पर उसका बेंक खाता खुलेगा. उसको जो सोनेकी और नित्यकर्म करनेकी सुविधा मिलती है उसका मूल्य वसुला जायेगा. जब उस व्यक्तिकी नागरिकताका पूलिस द्वारा प्रमाणीकरण हो जायेगा तो उसको स्थायी अभिज्ञान पत्र (आईडेन्टीटी कार्ड) दिया जायेगा और उसको भाट पर (रेन्ट पर) अथवा क्रयण पर, उसकी क्षमताके अनुसार प्रकोष्ठ दिया जायेगा. जो देशमें अतिक्रमण करके आये हैं और देशके नागरिक नहीं है, उनको केवल सोनेकी और नित्यकर्मकी ही सुविधा दी जायेगी. उसका भाट (किराया) उससे सूत कताते वसुल किया जायेगा. उसको निवास क्रयण करनेका अधिकार नहीं मिलेगा.

जो श्रमजिवी, निर्माण संविदकने श्रम नियमके अंतर्गत (जो अनिवार्य भी है), नियोजित किया है उसको श्रम नियमके अनुसार निर्माण संविदकको आवास उपलब्ध कराना पडेगा. निर्माण संविदक उसका भाट (रेन्ट), एक मास पूर्व ही देगा. इसी प्रकार हरेक संस्थाके नियोजकोंको अपने कर्मचारीको आवास देना पडेगा. सेवा-लेखमें किये गये   प्रबंधके अनुसार उसको निवास देना पडेगा.

भाटका (रेन्ट) प्रमाण कैसे निर्धारित किया जायेगाः

आवासके तत्कालिन मूल्यका निर्धारण होगा. उसका २४०वां अंश (१/२४०), एक मासका भाट (रेन्ट) होगा. प्रत्येकवर्ष जनसाधारण उपयोगी वस्तुंओंके मूल्यांकमें होती हुई वृद्धि के अनुसार, भाट निश्चित किया जायेगा. एक प्रकोष्ठके लिये यह मासिक भाट रु. १५००/- रहेगा. और केवल सोनेकी और नित्य कर्म की सुविधाके मासिक भाट रू. २०० रहेगा क्यों कि एक कोष्ठमें ८ व्यक्ति शयन कर सकते है. प्रतिदिनका एक व्यक्तिका भाट रु १०/-. 

आवासका क्रयण (परचेझ) मूल्य कैसे निर्धारित किया जायेगा?

भूमि यदि शासनने उपलब्ध करवाई है तो भूमिका मूल्य शून्य रहेगा क्यों कि संकुलकी आय शासनके खातेमें एकत्रित होने वाली है.

अद्यतन कालमें निर्माण मूल्य ६००० रुपया से ८००० रुपया प्रति चोरस मीटर है.

एक प्रकोष्ठके आस पास सामान्य आतंरिक मार्ग, उपाआंतरिक मार्ग और खुला कोष्ठ होता है. इसप्रकार एक प्रकोष्ठका मध्यवर्ती मूल्य अधिकसे अधिक ७००० प्रति चोरस मीटर रहेगा. यदि स्थंभ (पीलर), डंड (बीम) और फलककी ईकाईयां (स्लॅब-फ्लोर एलीमेन्ट), पूर्वनिर्मित प्रणालीवाला किया जाय तो एक चोरस मीटरका निर्माण मूल्य ६००० रुपया तक जा सकता है. एक प्रकोष्ठ जो वैसे तो २५ चोरस मीटरका मानते है किन्तु वास्तवमें प्रकोष्ठके पासका सामान्य आतंरिक मार्ग, उपाआंतरिक मार्ग और खुला कोष्ठ को कलनमें लेनेसे वह ५० चोरस मीटरके समकक्ष होता है. इसमें शासनका लाभ भी संमिलित है. इस प्रकार प्रकोष्ठका अनुपात मूल्य (रेट) १४००० प्रति चोरस मीटर हुआ. और प्रकोष्ठका निर्धारित मूल्य ५० गुणित ७००० =  ३५००००. तीन लाख पचास हजार. समायांतरमें निर्माणके अनुपात मूल्यके आधार पर इस संकुलके घटकोंका निर्धारण मूल्य में परिवर्तन होता रहेगा.

जिन्होनें अपना पूर्व आवास मुक्त करके शासनको दे दिया, उसको क्या मिलेगा?

अपना आवास मुक्त करने वालोंमें निम्न प्रकार है.

अपना भूमिस्थित आवास भाट पर दिया हैः

भूमिपर निर्माण का “भूमि-निर्माणका अनुपात” (एफएसआई) १;८ है. उस संपत्तिके स्वामीको उसकी भूमि से दो गुना बडा आवास मिलेगा. उस संपत्तिका स्वामी उसके भाटदार (किरायेदार) को उसने जो विस्तार भाट पर दिया है, उतना विस्तार उसको देगा. शेष स्वयंके पास यदि चाहे तो रख सकता है. यदि संपत्तिके स्वामीने भूमि-निर्माण अनुपातेके नियमका भंग करके अधिक निर्माण किया है तो उसको अधिक विस्तारवाला आवास नहीं मिलेगा.

जो व्यक्ति  कोन्डोमीनीयम एपार्टमेंन्टमें भाट या स्वामीत्वके आधार पर रहेते हैं उनको एपार्टमेन्टके विस्तारके समान विस्तारवाला प्रकोष्ठ समूह मिलेगा. २५ चोरस मीटरके गुणांकमें नहीं आता है और यदि ५ चोरस मीटर से अधिक या न्यून होता है तो प्रकोष्ठके अधिकवाले पूर्ण गुणांकमें (ईन्टीजर मल्टिपल) या न्यून पूर्ण गुणांकमें (ईन्टीजर मल्टिपल) कोष्ठ समूह मिलेगा. और उससे व्यतिरेक मूल्य (डीफरन्स इन वेल्यु), या तो लिया जायेगा या दिया जायेगा. यदि व्यक्ति देनेमें असमर्थ है तो उसको ऋणके रुपमें दिया जायगा. यदि वह निर्धारित आवास विस्तारसे एक प्राकोष्ठसे अधिक नया विस्तारका क्रयण करना चाहता है तो वह बेंकसे ऋण ले सकता है.

उदाहरणः यदि एक व्यक्तिका आवासकी परिमितिसे विस्तार १८१ चोरस मीटर बनता है तो उसको ८ प्रकोष्ठका समुच्चय वाला आवास मिलेगा. और व्यतिरेक मूल्य वसुल किया जायेगा. यदि आवासकी परिमिति से विस्तार १८० चोरस मीटर बनता है तो उसको ६ प्रकोष्ठके समुच्चय वाला निवास मिलेगा और व्यतिरेक मूल्य उसको दिया जायेगा.

 यदि कोई व्यक्तिने अपने पूर्वनिवास पर ऋण लिया है तो वह ऋण उसके नये आवास पर अंतरित  (ट्रान्सफर) हो जायेगा.

जो भाटदार (किरायेदार) परापूर्वके है और अतिन्यून मात्रामें भाट देते हैं उनका भाट लेख (रेन्ट एग्रीमेन्ट), रेन्टएक्ट हुआ हो या न हुआ हो, प्रत्येक परिस्थितिमें प्रभाव हीन हो जायेगा. भाट-नियम भीन्न आधार पर और संपत्तिके स्वामीके लाभके अनुरुप बनेगा. पूर्वका संमति लेख ५ वर्षके पश्चात अमान्य बन जायेगा.

गौशाला और कृषि संकुलः यदि शक्य नहीं है तो गौशाला और कृषि संकुल भीन्न बनाया जायेगा.

गौशाला

Drg04

इस प्रकार गौधन और गोपाल समिप रहेंगे. गौधनके कोष्ठोंके मध्यमें भित्ती नहीं रहेगी.

कृषि संकुल भूतलसे उपर होगा. स्तर में केवल सीमा पर जाली रहेगी. आंतरिक कोष्ठोंके मध्यमें भित्तीयां या जाली नहीं रहेगी.

यत्र तत्र भूमिका मूल्य रु. ७००० से अधिक होगा वहां पर कृषि संकुल बनेगा. क्रुषि संकुल एक ऐसी व्यवस्था है कि अन्न, चारा, और सब्जी के लिये ग्रामके पासमें ही या गाम्य संकुलके कुछ फलकों पर कृषि संकुल बनाया जा सकता है.

की भी ग्राम या एक विस्तार जिसको संकुलमें परिवर्तित करना है, वहां पर कुटुंबोंके आवास विस्तार, व्यवसाय विस्तारका विश्लेषण करके संकुलके विस्तारका और रचनाका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः प्रकोष्ठोंका समुचय, कृषि संकुल, गौशाला, गोपाल,  रेन्ट एग्रीमेन्ट, रेन्ट लेख, अंतरित, ट्रानस्फर, कोन्डोमीनीयम, भूमि-निर्माणका अनुपात, एफएसआई, अतिक्रमण, अनुपात मूल्य

Read Full Post »

क्या म्युनीसीपल कमीश्नरमें स्मार्ट सीटी बनानेकी क्षमता है?

नरेन्द्र मोदीने कहा कि हम स्मार्ट सीटी बनायेंगे और सीटीके रहेनेवालोंका भी सुझाव लेंगे.

यदि ऐसा है तो कभी स्मार्ट सीटी बन ही नहीं पायेगा.

गधे लोग माफ करें

नगरनिगम आयुक्त (म्युनीसीपल कमीश्नर) से लेकर साफाई वाले तकके पास कोई दृष्टि ही नहीं है.

सबसे पहेले तो इन सभीको “यह नगर अपना है” यह भावना होना आवश्यक है. यदि ऐसी भावना होती है तभी स्मार्ट सीटी की दृष्टि उनमें आ सकती है.

आप प्रश्न करोगे कि

यह “यह नगर अपना है ऐसी भावना” का

अर्थ क्या है?

म्युनीसीपालीटीके प्रत्येक कर्मचारीको यह आत्मसात होना आवश्यक है कि वह समझे कि उसको अपना कर्तव्य निभानेके लिये पैसे मिलते है. अपना कर्तव्य निभानेवाले कार्यको, देशकी सेवा समझना आवश्यक है.

किन्तु वास्तवमें ऐसा है क्या?

यदि नियमके शासनको लागु किया जाय तो नगरनिगम आयुक्त (म्युनीसीपल कमीश्नर) से लेकर सफाईवाले तक निलंबित हो जायेंगे. निलंबित ही नहीं वे कारावासमें भी भेजे जा सकते हैं.

नगरनिगम आयुक्त (म्युनीसीपल कमीश्नर) और उसकी सेनाके अधिकारीगण जैसे कि वॉर्ड अधिकारी, नगर आयोजन अभियंता (टाउन प्लानींग एन्जीनीयर्स)  और संविदाकारगण (कोन्ट्राक्टर्स) सब कारावासमें जा सकते है. इन लोगोंके कार्यपर अनुश्रवण (मोनीटरींग) करनेवाले नगर विकासके सचिव, और निगमके जनप्रतिनिधिगण भी पदच्युत हो सकते है. अपने पदके लिये अयोग्य घोषित किये जा सकते है.

इन अधिकारीयोंमें संकलनक्षमता न होने के कारण अन्य भी कई समस्याएं उत्पन्न होती है और विद्यमान समस्याओंमे वृद्धि होती है.

यह समस्या है जन असुविधाः

उदाहरणः ५० लाखसे उपर जनसंख्यावाले अहेमदाबादमें एक भी पदमार्ग (फुटपाथ) ऐसा नहीं है कि जिसपर पादयात्री बिना कष्ट चल सके. अपंग और वृद्ध की चक्रपीठयान (व्हील चेर)को चलानेकी तो समास्या तो विचारो ही नहीं. इसका विचार मात्र करना नगरके अधिकारीयोंके बुद्धिसे पर है. ऐसा हाल भारतके हर नगरका है.

अनधिकृत संनिर्माणः

व्यापक मात्रामें हुए अनधिकृत संनिर्माण (अनओथोराईझ्ड कंस्ट्रक्सन), अनअधिकृत उपयोग, जनमार्ग पर अतिक्रमण, अस्वच्छता और अनियमित और निरंकुश वाहनव्यवहार, इस सबके लिये कौन उत्तरदायी है? अवश्य ही जिनको इन नियमोंको सुनिश्चित और अनुशासित रखनेके लिये वेतन मिलता है वे उत्तरदेय है. यदि इनमें क्षति आती है तो उनको दंडित करना ही अनिवार्य है.

यदि नियमपालनहीनता व्यापक है तो नगरनिगमका आयुक्त ही अवश्य  उत्तरदायी बनता है.

यदि नगर निगमका कोई अधिकारी ऐसा कहे कि उनके उपर जनप्रतिनिधियोंका दबाव होता है, तो ऐसे अधिकारीको वह जनप्रतिनिधिसे लिखित आवेदन मांगे और उनको लिखित अवगत करें कि आपका आदेश या प्रार्थना नियमसे सुसंगत नहीं है. और इस पत्रसे जनताको भी अवगत करें. यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसको पदच्यूत करना चाहिये. क्यूं कि अधिकारीका कर्तव्य नियमसे चलना है. उसने ऐसी शपथ ली  होती है.

अब देखो. अनधिकृत संनिर्माण की समस्याका समाधान इन लोगोंने कैसे निकाला?

समस्याका समाधान अधिकारीगण, न्यायालय, जनप्रतिनिधिगण और निर्माणकर्ता (बील्डर) सबने मिलीभगत करके यह समाधान निकाला?

सर्वप्रथम आप  अवगत हो जाओ कि, नगर निगमके आयुक्त, उसकी सेनाके अधिकारीगण, निर्माण कर्ता सबने मिलके संयुक्त आयोजित दुराचार (ओर्गेनाईझ्ड क्राईम) किया. बलिका बकरा क्रेता (परेचेझर) को बनाया.

चोर (निर्माण कर्ता बील्डर) दृश्यमान है, चोरीका माल (अवैध निर्माण) दृष्यमान है, चोरीकरने देनेवाला चोकीदार (अधिकारीगण) दृश्यमान है, और जिसको ठगा (क्रेता परचेझर) भी दृश्यमान है. किन्तु, क्यों कि इन दुराचारका आचरण करने वाले नगर निगमके आयुक्त, उसकी सेनाके अधिकारीगण, निर्माण कर्ता जिन्होंने मिलके संयुक्त प्रपंच किया उनकी दंडसे रक्षा करना है. उन्होने क्या किया? जो ठगा गया है उससे दंड वसुल किया. कैसे?

एक समयका समाघात मूल्य (इम्पेक्ट फी), क्रेतासे (परचेझरसे) वसुल कर लो. वार्ता संपूर्ण.

यह समाधान तो चौपट राजाने जो समाधान निकाला था उससे भी मूर्खतापूर्ण है.

सर्व प्रथम यह वास्तविकतासे अवगत हो जाओ कि, अवैध निर्माणसे वाहनव्यवहारमें और जनसुविधाओंमें क्षति आती है. इससे अकस्मात भी होते है. अनधिकृत निर्माण है वह अनाधिकृत है. समय चलते अधिक आपत्तियां बढ सकती है.

यदि किसीने वाहनव्यवहार नियमका भंग किया तो क्या आप उनसे ईम्पेक्ट फी लेके उसको नियमका सतत उलंघन करनेकी अनुमति दे सकते हैं?

अनाधिकृत निर्माणका वास्तविक और अर्थपूर्ण समाधान

जो अनधिकृत निर्माण है उसके उपर समाघात मूल्य (इम्पेक्ट फी)के स्थान पर समाघात कर (ईम्पेक्ट टेक्ष) लागु करना अनिवार्य है. वह प्रतिवर्ष लागु होना चाहिये. प्रत्येक वर्ष इस करमें २० प्रतिशतस  वृद्धि होगी. निर्माण कर्तासे पांच सालका कर वसुल किया जायेगा. तभी निर्माण कर्ताको निर्माण के उपयोगकी अनुमति मिलेगी. ऐसी अनुमतिके अभावमें यदि निर्माणकर्ता, निर्माणके किसी भी भागका विक्रय करता है तो वह विश्वास घाती माना जायेगा और सीधा कारावास जायेगा.

ऐसा नियम बनने के पश्चात, नये निर्माणके लिये वोर्ड अधिकारी और अभियंता उत्तदायी होगा. और वे पदच्यूत होगे. वैसे भी उनके उपर न्यायिक कार्यवाही आज भी हो सकती है.

अतिक्रमणकी समस्याका समाधानः 

अतिक्रमण एक आपराधिक आचार है. उसमें तो जो दोषी है वह कारावासमें ही जायेगा. इसमें पुलिस तंत्र उत्तरदायी है. पुलिस विभाग स्वयंके स्नेही गुंडोसे सप्रेम हप्तावसुली करता है.

मार्गपर पशुओंका मूक्त चलनः

समस्याका समाधान करनेमें नगर निगमके अधिकारीयों कि मूर्खताः

अधिकारीयोंने समस्याका समाधानका मार्ग क्या निकाला?

स्थान स्थान निविदा लगा दी, कि मार्ग पर पशुओंको मुक्त चलनके लिये रखना दंडनीय है. फोन करो “ ……..”. फिर पशुपाल वह फोन क्रमांक पर काला रंग लगा देता है, ताकि वाचन अशक्य बने. अधिकारी समझता है कि उसका कर्तव्य समाप्त हो गया.

इसी समस्याका एक और समाधान अधिकारीयोंने यह बनाया कि, पशुओंको पकडनेका काम संविदाकार (कोन्ट्राक्टर)को देदो. इसमें तीन प्रकारके लाभ है. अधिकारी संविदके (कोन्ट्राक्टके) लिये निविदा (नोटीस) देगा, और इससे संविदाका अनुमोदन (एप्रुव) करनेमें धनप्राप्ति होगी.

तत्‍ पश्चात संविदाकारसे सातत्यसे धनप्राप्ति होती रहेगी  क्यूं कि संविदकार भी पशुओंके स्वामीसे पशु न पकडने के लिये धनप्राप्ति कर लेगा. इसमें इन अधिकारीयोंका भाग निश्चित करेगा.

तृतीय लाभ यह है कि यदि प्रश्न उठा कि, मार्ग पर इतने सारे पशु क्यूं है? तो अधिकारी कहेगा कि देखो हमने तो ये ये काम किये? इतने सारे नोटीस बोर्ड लगायें और इतनी संख्यामें पशुओंको पकडे. पशुओंको रखनेका स्थान जो निश्चित किया है उसका विस्तार ही इतना कम है कि हम ज्यादा पशुओंको पकड नहीं सकते.

समस्याका वास्तविक अर्थपूर्ण समाधान यह हो सकता हैः

जैसे वाहनको रजीस्ट्री क्रम संख्या दे ते हैं उसी तरह पालतु पशुओं को भी रजीस्ट्री क्रम संख्या दो. पशुओंको पकडना आवश्यक नहीं है. केवल सी.सी केमेरा या निरीक्षण प्रवास करके फोटो लेके दंड वसुली करो.

वाहन व्यवहारमें अराजकताः

समस्याः मार्ग उपर “लेन मार्कींग”, “वाहन पार्कींग मार्कींग”, “ पर्याप्त ट्राफिक सीग्नल”, “झीब्रा क्रोसींग”, “स्टोप मार्कींग रेखा”, “वेग सीमा बोर्ड” आदि कई जगह होते नहीं है.

समस्याका समाधान अधिकारीयोंने क्या निकाला?

चार ट्राफीक पुलीस, ट्राफीक सीग्नल पर के पास रख दी.  ये चार पुलिस वाहन व्यवहारका नियमन करेती है. किन्तु प्रत्येक प्रहरमें तो ऐसा किया नहीं जा सकता, इसलिये मध्यान्हसे पहेले यत किंचित प्रहर और मध्यानके पश्चात्‍ एक दो तीन प्रहर तक पुलिस रखी जायेगी. कुछ वाहन चालकोंको पकडेगी और कुछ सुनिश्चित किया हुआ दंड वसुल करेगी. जिसमें कुछ दंड अलिखित भी रहेगा जो स्वयं और उपरी अधिकारीके लिये निश्चित रहेगा.

द्वीतीय समाधान यह है कि यह ट्राफिक पुलिस कभी कभी एक गुलाबका पुष्प भी देगी. ताकि वाहन चालक आनंदित रहे.

अभी अभी अहेमदाबादमें वाहन परिवहन विभाग, ट्राफिक पुलिसको, बीलबुक के स्थान पर एक विजाणु यंत्र देनेवाली है, जिससे वह पुलिस, दंडनीय व्यक्तिको चलान दे सकें. यदि यंत्रमें क्षति आयी तो?

क्या हमारे मार्ग परिवहन मंत्री बेवकुफ है?

लगता ऐसा ही है.

हमारे केन्द्रीय मार्ग-परिवहन मंत्रीने एक और समाधान निकाला है, कि मार्ग अकस्मातको रोकने के लिये सरकार मार्ग परिवहन के लिये कुछ संस्थाएं स्थापित स्थापित करेगी ताकि  वाहन चालकोंमें वाहनपरिवहन के नियमोंका ज्ञान हो.

अरे भाई क्या बिना वाहनचलन अनज्ञप्ति (ड्राईवींग लाईसन्स) वाले वाहन चालकसे या वाहनपरिवहनके नियमोंसे अज्ञात वाहनचालक लोग ही क्या वाहनपरिवहन के नियमोंका उलंघन करते है?

समास्याका समाधान

समास्याका समाधान यही है कि सर्व प्रथम आप मार्ग परिवहनके नियंत्रण की संज्ञा और बोर्ड सुचारु और सुनिश्चित योग्य स्थान पर लिखें.  आप हर चतुर्मार्ग (क्रोस रोड) पर, और  हर ५०० मीटर परके अंतर पर सीसीकेमेरा लगावें. उसके लिये एक उत्कृष्ठ सोफ्ट वेर प्रणाली स्थापित करे ताकि कोई भी नियमका भंग करने वाला छूट न पावे.   

सीसीकेमेराकी विजाणु प्रणाली क्या हो सकती है?

जो वाहन परिवहन नियमका अनादर करेगा, उस वाहनको सीसी केमेरा प्रणाली परिलक्षित (आईडेन्टीफाय) करेगी और अभिलेखित (नोटीफाय) करेगी.

वह दंडनीय व्यक्तिको ईमेल द्वारा निवेदित करेगी, कि आपके वाहनने मार्ग परिवहन नियम “ .., “ का भंग किया है. आपके द्वारा आपका वाहनके क्रयनके (वाहनको परचेझ करनेके) समय वाहन परिवहन रजीस्ट्री कार्यालयमें रजीस्ट्री क्रमांक लेने के या अपना स्वामित्व रजीस्ट्री करवाने के समय जो बेंक एकाउन्ट सूचित किया था उस बेंक एकाउन्ट नंबरसे हमने दंड वसुली कर दी है.

आपकी जानकारीके लिये हमने आपके वाहन परिवहन नियम भंग करनेकी जो वीडीयो क्लीप ली थी उसको इस ई-मेलके साथ संलग्न की है. यदि आपको लगता है कि आपके उपर लगाया गया दंड उचित नहीं है तो आप, “ … “ न्यायालयमें अपना पक्ष रखनेके लिये जा सकते हैं. यदि न्यायालय आपके पक्षमें आदेश देगा तो हमे वह मान्य होगा और हम आपके एकाउन्टमें दंडकी रकम जमा कर देंगे.”

अकस्मातके समय ही मार्गपरिवहन नियमन पुलिस अकस्मातके समय पर उस स्थान आयेगी. अन्य सभी कार्य सीसीकेमेरा सोफ्टवेर विजाणु प्रणाली ही करेगी. वह पुरी सक्षम होगी. और यह हो सकता है.

सीसीकेमेरा सोफ्टवेर विजाणु प्रणाली सक्षमता क्या क्या होगी?

वाहन परिवहन संकेतोंके नियमोंका अनादर,

१ अन्य वाहनसे आगे जानेके लिये लेन परिवर्तित करते रहेना, यानी कि एक लेन पर नहीं रहेना और बार बार लेन बदलना,

२ मार्गके लेनके मध्यमें वाहन नहीं चलाना,

३ यदि द्वीचक्री वाहन है तो एक लेनमें दो से अधिक हो जाना,

४ एक द्वी चक्री वाहन पर बिना सुरक्षा टोपी बैठना,

५ वाहनमें सुनिश्चित संख्यासे ज्यादा व्यक्तियोंका बैठना,

६ सुरक्षा पट्टी नहीं बांधना,

७ एक हाथसे वाहन चलाते चलाते दुसरे हाथसे मोबाईल फोन पकड कर बातें करना,

८ वेग सीमा का उलंघन करना,

९ दो वाहनोंके बीचमें योग्य अंतर नहीं रखना,

१० संकेत-दीप (ट्राफीक सिग्नल)  न होने वाले झीब्राक्रोसींग पर पादयात्रीको प्राथमिकता न देना,

११ आने वाले झीब्रा क्रोसींग के संकेत बोर्ड से ले कर झीब्रा क्रोसींग तक, वाहनको ५ किमी/कलाकसे ज्यादा वेगसे चलाना,

१२ अयोग्य स्थान पर वाहन पार्कींग करना (जहां वाहन पार्कींगका मार्कींग नहीं है वहां वाहन पार्क करना),

१३ अयोग्य रीतसे यानी की वाहनको पार्कींगके मार्कींगके केन्द्र में पार्कींग न करके वाहनको टेढा, आगे या पीछे पार्कींग करना,

१४ विकलांग पार्कींग स्थान पर विकलांग न होते हुए भी वाहन पार्क करना, (भारतमें यह विचारना नगर निगमके नियामकके मस्तिष्ककी विचार सीमासे पर है)

१५ निम्न लिखित गतिसीमाका उलंघन करनाः

१५.१ द्रुतगति मार्ग पर ६०-८०-१०० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम

१५.२ राज्य मार्ग पर वेग सीमा ४०-६०-८० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम

१५.३ नगरके राजमार्ग पर वेग सीमा २०-४०-६० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम

१५.४ नगरके सामान्य मार्ग पर २०-४० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम

१५.७ नगरकी गली के मार्ग पर १०-२० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम

१५.८ कोलोनीके मार्ग पर ५-१० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम

१६ इन सीमाओंका जो उलंघन करेगा उसको सीसी केमेरा प्रणाली परिलक्षित (आईडेन्टीफाय) करेगी और अभिलेखित (नोटीफाय) करेगी.

१७ सी.सी. केमेरासे नारी के साथ अभद्र व्यवहार, चोरी, डकैती, मारपीट, अकस्मात, गुन्हाखोरी, आतंकवादकी गतिविधियां, अपहरण, मार्ग पर होता अतिक्रमण, आदि कई असामाजीक प्रवृतियां पर अंकूश आजायेगा.

यह सब करनेसे नगर एक सामान्य नगर बनेगा. स्मार्ट सीटी नहीं.

सीटीको स्मार्ट बनानेसे पहेले शासनके अधिकारीयोंको स्मार्ट बनाओ. किन्तु ये शासनके अधिकारी गण, न्यायालय, जनप्रतिनिधिगणमें से ९९ प्रतिशत भ्रष्ट है. शासनके सर्वोच्च अधिकारीको (सचिवालय के सचिव, नगर पालिकाके कमीश्नर आदि सबको पदभ्रष्ट कर दो. और उनके स्थान पर मेनेजमेन्टके निष्णात व्यक्तिओंको नियूक्त कर.

अहो !! आश्चर्यम्‌

अहमदाबाद घाटलोडिया विस्तारके एक मार्गका “गौरव पथ” नाम करण किया गया.

इसका आधार क्या था? सभी दुकानके बोर्ड एक कद और एक रंगके बनाये गये थे. और सब दुकाने अपनी फुटपाथ साफ रखते थे.

किन्तु क्या इतना ही करना गौरव पथ की योग्यता है.

गौरव पथ कैसा होना चाहिये?

१ जो निवास स्थानीय विस्तार है, उसमें व्यवसायकी दुकान बनाने पर निषेध होना चाहिये,

२ एक भी निर्माण अतिक्रमण और  अनधिकृत नहीं होना चाहिये,

३ मार्ग पर वाहनका पार्कींगका निषेध होना चाहिये,

४ मार्ग की लघुतम लेन संख्या ३+३ होना चाहिये,

५ वर्षा ऋतुमें जल निकासकी योग्य व्यवस्था होनी चाहिये जिससे जल संचय मार्ग पर न हो,

६ प्रत्येक आवास संकुलमें स्वयंके वाहन और अतिथि के वाहनकी पार्कींग व्यवस्था होनी चाहिये,

७ सभी आवास और निर्माण मार्गके स्तरसे उंचे होना चाहिये,

८ मार्ग परके वाहनव्यवहार के संकेत बोर्ड और नगर पालिकाके आवास क्रम संख्या के बोर्ड होना चाहिये,

९ मार्गकी फुटपाथ समतल और लघुतम चौडाई ५ मीटर की होनी चाहिये जिससे विकलांग अपना हाथसे चलने वाला त्रीचक्री वाहन चला सके और शिशुका त्रीचक्री वाहन (स्ट्रोलर) भी फुटपाथ पर चल सके.

यदि ऐसा है तो उसका गौरव ले सकते है और उसका नाम गौरव पथ रख सकते है. नगरके सभी मार्ग गौरव पथ होने चाहिये.

शिरीष मोहनालाल दवे

टेग्झः

नगर, म्युनीसीपल कमीश्नर, सेना, जनप्रतिनिधि, सचिव, न्यायाधीश, न्यायालय, ईम्पेक्ट फी, कर, गौरव पथ, अतिक्रमण, अनधिकृत, निर्माण, आवास, मार्ग, वाहनव्यवहार

Read Full Post »

%d bloggers like this: