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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

“जातिवाद आधारित राज्य रचना” की मांग रक्खो

जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये, प्रवर्तमान समय एक अतिसुनहरा मौका है. सिर्फ नहेरुवीय कोंग्रेस ही नहीं लेकिन उसके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये भी यह एक सुनहरा मौका है. इस मुद्देका लाभ उठा के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता भी प्राप्त कर सकती है.

आप पूछोगे कि ऐसा कौनसा मुद्दा है जिस मुद्देको उछाल के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है?

अब आप एक बात याद रख लो कि जब भी हम “नहेरुवीयन कोंग्रेस” शब्दका प्रयोग करते है आपको इसका निहित अर्थ “नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष और उसके सांस्कृतिक साथी” ऐसा समज़ना है. क्यों कि समान ध्येय, विचार और आचार ही तो पक्षकी पहेचान है.

तो अब हम बात आगे चलावें

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरु वंशको आगे बढाना है, नहेरुवीयन वंशज के लिये सत्ता प्राप्त करना है ताकि वे सत्ताकी मौज लेते रहे और अन्य लोग स्वंयंके परिवार और पीढीयोंकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और सुख के लिये पैसा कमा सके.

तो अब क्या किया जाय?

देखो, अविभक्त भारतमें हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंकी समस्या थी. तो नहेरुने हिन्दु राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रके फेडर युनीयनको नकार दिया और पाकिस्तान और भारत बनाया. लेकिन कुछ समय बाद मतोंकी भाषा राष्ट्रभाषा और राज्य भाषाकी समस्याओंका महत्व सामने आया. तो हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने)  भाषाके आधार पर राज्योंकी रचना की.

अब इसमें क्या हूआ कि हिन्दु-मुस्लिम झगडोंकी समस्या तो वहींकी वहीं रही लेकिन इस समस्या पर आधारित अन्य समस्याएं भी पैदा हूई. उसके साथ साथ भाषा के आधार पर और समस्याएं पैदा होने लगी. भूमि-पुत्र और जातिवाद आधारित समस्याएं भी पैदा होने लगी.

आप कहेंगे कि क्या इन समस्याओंका समाधान करने की नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोशिस नहीं की?

अरे वाह !! आप क्या बात कर रहे हो? नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो अपने तरीकेसे समस्याका हल करनेका पूरी मात्रामें प्रयत्न किया.

नहेरुवीयन तरीका क्या होता है?

कोई भी समस्या सामने आये तो उसको अनदेखा करो. समस्या कालचक्रमें अपने आप समाप्त हो जायेगी…

अरे वाह !! यह कैसे?

देखो हिन्दु-मुस्लिम समस्याको हल ही नहीं क्या. इसके बदले नहेरुने जीन्नाके साथ झगडा कर दिया. फिर हिन्दुस्तान पाकिस्तान हो गया. और हिन्दु-मुस्लिम झगडा तो कायम रहा.

समस्याका समाधान

तिबट अपनी आझादी बचाने के लिये संघर्ष कर रहा था. हमारी समस्या थी कि तिबटकी सुरक्षा कैसे करें !! तो नहेरुने चीनके साथे दोस्ती करके तिबट पर चीनका प्रभूत्व मान लिया. लेकिन एक और समस्या पैदा हुई कि चीन हमारे देशकी सीमाके पास आ गया और उसने घुसखोरी चालु की. तो नहेरुने पंचशील का करार किया. तो कालक्रममें चीनने भारत पर आक्रमण कर दिया. जरुरतसे ज्या भूमि पर कब्जा कर दिया. तो हमारा पूराना सीमा विवाद तो रहा नहीं. वह तो हल हो गया. नया सीमा विवादका तो देखा जायेगा. तिबटकी समस्या हमारी समस्या रही ही नहीं.

पाकिस्तान हमारा सहोदर है. पाकिस्तानमें आंतरविग्रह हुआ तो पूर्वपाकिस्तानसे घुस खोर लाखोंकी संख्यामें आने लगे. तो हमारे लिये एक समस्या बन गई. इन्दिरा गांधीने यह समस्या प्रलंबित की. तो पाकिस्तानने भारतकी हवाई पट्टीयों पर आक्रमण कर दिया. हमारी सेनाने पाकिस्तानको परास्त किया तो भारतको घुसखोरोंके साथ साथ ९००००+ युद्ध कैदीयोंको खाने पीनेका इंतजाम करना पडा. सिमला करार किया और युद्ध कैदी पश्चिम पाकिस्तानको ही परत कर दिया. तो कालचक्रमें आतंकवाद पैदा हो गया. तो हिन्दु लोग विस्थापित हो गये. उनका पूनर्वसनकी समस्या पैदा गई. होने दो. ऐसी समस्याएं तो आती ही रहती है. विस्थापित हिन्दुओंकी समस्याको नजर अंदाज कर दो. हिन्दु लोग अपने आप निर्वासित कैंपसे कहीं और जगह अपना मार्ग ढूंढ लेगे. नहेरुवीयनोने कुछ किया नहीं. आतंकी मुस्लिम लोग भारतमें घुसखोरी करने लगे और बोंब ब्लास्ट करने लगे. आतंकी मुस्लिम अपना अपना गुट बनाने लगे. स्थानिक मुस्लिमोंका सहारा लेने लगे. उनको गुट बनाने दो हमारा क्या जाता है. एक समस्या को हल नहीं करनेसे कालांतरमें अनेक और समस्याएं पैदा होती है. और मूल समस्याका स्वरुप बदल जाता है. तो उसको नहेरुवीयन लोग समाधान मान लेते है और मनवा लेते है.

जातिवादी समस्या भी ऐसी ही थी. अछूतोंके लिये आरक्षण रक्खा. अछूतोंका उद्धार नहीं किया लेकिन उनके कुछ नेताओंका उद्धार किया. और आरक्षण कायम कर दिया. तो और जातियां कहेने लगी हमें भी आरक्षण दो. नहेरुवीयनोंने एक पंच बैठा दिया और जिनको भी आरक्षण चाहीये वे अपनी जातिका नाम वहां दर्ज करावें. अब आरक्षणका व्याप बढने लगा. जिसने भारत पर दो शतक राज्य किया वे मुस्लिम लोग कहेने लगे हम भी गरीब है हमें भी आरक्षण दो. तो नहेरुवीयनोंने कहा कि तुम्हे अकेलेको आरक्षण देंगे तो हम तुम्हारा तुष्टी करण करते है ऐसा लोग कहेंगे. इस लिये उन्होने “लघुमति”के लिये विशेष प्रावधान किये. रामके वंशज रघुवंशी कहेने लगे हमे भी आरक्षण दो. क्रुष्णके वंशज यादव कहेने लगे हमें भी आरक्षण दो. अब जब भगवानके वंशज आरक्षण मांगने लगे तो और कौन पीछे रह सकता है?

जटने बोला हमें भी आरक्षण दो. महाराष्ट्रके ठाकुरोंने बोला कि हमें भी आरक्षण दो. अब हुआ ऐसा कि कमबख्त सर्वोच्च अदालतने कहा कि ४९ प्रतिशतसे अधिक आरक्षण नहीं दे सकते. तो अब क्या करें?

आरक्षण, हिन्दु-मुस्लिम और हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याओंका कोई पिता है तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस है. उसको सहाय करने वाले भी अनेक बुद्धिजीवी है उनका एजंडा भी नहेरुवीयनोंकी तरह “जैसे थे”-वादी है. ये लोग वास्तवमें दुःखी जीवनका कारण पूर्वजन्मके पाप मानते है इसलिये समस्याके समाधान पर ज्यादा चिंता करना आवश्यक नहीं है. सब लोग अपनी अपनी किस्मत लेके पैदा होते है. इसलिये समस्याओंका समाधान ईश्वर पर ही छोड दो. ईश्वरके काममें हस्तक्षेप मत करो.

लेकिन हमसे रहा नहीं जाता है. हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका आदर करते है. कटूतासे हम कोसों दूर रहते है. त्याग मूर्ति नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्ता प्राप्त करनेका और वह भी यावतचंद्र दिवाकरौ तक उसीके पास सत्ता रहे ऐसा रास्ता हम दिखाना चाहते है.

यह रास्ता है कि नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसी छूटपूट जातिवादी आधारित आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षणके बदले धर्म और जाति आधारित “राज्य रचना”की मांग पर आंदोलन करें. ऐसा आंदोलन करनेसे उसको सत्ताकी प्राप्ति तो होगी ही, उतना ही नहीं, धर्म आधारित और जाति अधारित राज्य रचनासे हिन्दु-मुस्लिम समस्याएं, हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याएं, मुस्लिम-ख्रिस्ती समस्याएं, भाषा संबंधित समस्याएं जातिवादी समस्याएं, आरक्षण संबंधी समस्याएं, आर्टीकल “३५-ए” संबंधित समस्या, आर्टीकल ३७० संबंधित समस्या, पाकिस्तान हस्तक काश्मिर समस्या, आतंकी समस्या, पत्थरबाज़ोकी समस्या आदि कई सारी समस्याएं नष्ट हो जायेगी.

आप कहोगे ऐसा कैसे हो सकता है?

आप कहोगे भीन्न भीन्न जातिके, भीन्न भीन्न धर्मके लोग तो बिखरे पडे है और राज्य तो भौगोलिक होगा है. धर्म और जाति आधारित राज्य रचना करनेमें ही अनेक समस्याएं पैदा होगी. और यदि ऐसी राज्य रचना हो भी गई तो इसके बाद भी कई प्रश्न उठेंगे जिनका समाधान असंभव है. यदि आप समास्याओंके समाधानके लिये नहेरुवीयन तरीका अपनावें तो ठीक है लेकिन आपको पता होना चाहिये कि समस्याको हल ही नहीं करना, समस्याका समाधान नहीं है. मान लो कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने जाति आधारित और धर्म आधारित राज्य रचनाके मुद्दे पर आंदोलन चलाया और सत्ता प्राप्त भी कर ली, तो वह कैसे जाति और धर्म पर आधारित राज्य रचना करेगी. यदि आप नहेरुवीयन कोंग्रेसकी अकर्मण्यता पर विश्वास करते है तो आप दे सकते है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसका क्या हाल हुआ. समस्याका समाधान किये बिना नहेरुवीयन कोंग्रेस अब सत्ता पर नहीं रह सकती.

अरे भाई, हम अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका उद्धार करनेके लिये प्रतिबद्ध है और हम उसको एक क्षति-रहित फोर्म्युला वाली सूचना देना चाहते है.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1

क्या  यह सत्य और श्रेयकी जित है?

नहीं. यह सत्यकी जित नहीं है.

सत्य और श्रेय है वह जनताके बहुमतसे सिद्ध नहीं होता है.

हम जिन चूनावी प्रक्रियाओंके आधार पर जनताका अभिप्राय प्राप्त कर रहे है वह हमेशा सत्य को पुरस्कृत नहीं करता.

बहुमत, सत्यका आधार नहीं बन सकता. बिहारकी जनताने जिस गठबंधनको जित दिलाई, इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि सत्य, उस गठबंधनके पक्षमें था जो जिता था.

सत्य किसके पक्षमें था?

सत्य बीजेपीके पक्षमें था.

सत्य किसको कहेते हैं?

यहां पर सत्यका अर्थ है,

() ऐसा कोनसा पक्ष है कि जिसके पास भारतकी समस्याओंकी अधिक जानकारी है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जो इस समस्याओंका समाधान सुचारु रुपसे कर सकता है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास आर्षदृष्टि है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचि है और उसके उपर प्रतिबद्ध है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचिकी प्रणाली भी सुनिश्चित है?

() ऐस कौनसा पक्ष है जो अधिक नीतिवान है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास व्यापक संगठन है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके लियेप्रामिकता भारतका हितहै?

 

श्रेय पक्ष बीजेपी ही है

ऐसा पक्ष केवल और केवल बीजेपी ही है जिसके नेता नरेन्द्र मोदी है. इसके उपर यदि किसीको संदेह हो तो इसकी चर्चा हो सकती है. इससे यदि कोई श्रेयतर नेता है तो बताओ.

नीतिओंकी स्पष्टता, आर्षदृष्टि और नीतिमत्ता इनका अभाव, वह जेडीयु है.

हम आरजेडी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, एस पी, एनसीपी, आदिकी बातें नहीं करेंगे. इन सबके काले करतूत इतिहासके पन्नोंपर पर विद्यमान है. वे सभी पक्ष, एक दुसरेके अवलंबनके लिये विवश है. ये सभी राजकीय समीकरणों के आधार पर बनाई गई चूनावी गेमके से जिन्दा है. आवश्यकता होने पर एक होते है और आवश्यकता यदि हो तो एक दुसरेके दुश्मन बनते हैं.

बीजेपी भी ऐसे गठबंधनके लिये विवश बनता है. जैसे कि बीजेपी, शिवसेना, एमएनएस, एल जे पी, डी.एम.के. या .डी.एम. के साथ गठबंधन करती है. किन्तु बीजेपीने कभी भ्रष्टाचार के साथ समझौता नहीं किया.

यह बात सही है कि, कोई विस्तारमें अपने अस्तित्वको बनानेके लिये बीजेपीने ऐसे प्रादेशिक संकुचित मानसिकता वाले पक्षोंसे समझौता किया है. यदि प्रमाणभान की प्रज्ञासे देखा जाय तो बीजेपी की मात्रा अन्य पक्षोंकी तरह असीम नहीं है.

जेडीयुने आरजेडी और नहेरुवीयन कोंग्रेससे गठबंधन किया. ये दोनों पक्ष एक समय उसके सैधांतिक आधार पर दुश्मन नंबर एक थे.

नहेरुवीयन कोंग्रेस तो एक स्वकेन्द्री, वंशवादी और देशकी जनताको विभाजित करने वाला सरमुखत्यार शाहीमें मानने वाला पक्ष है. इसके पास स्वकेन्द्रीय सत्ता प्राप्त करनेके अतिरिक्त, कोई अन्य कार्य सूचि नहीं है. इसने ही उच्च न्यायालयकी अवमानना करके जनतंत्रको नष्ट भ्रष्ट करदिया था. महात्मा गांधीके निकटके साथीयों तकको इसने बिना कोई अपराध और बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया, कारवासमें अनियतकाल के लिये बंद किया था और मरणासन्न किया था. ये सब बातें एततकालिन इतिहासके पन्नों पर विद्यमान है. तो भी जेडीयुने इस कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. इससे जेडीयुकी मानसिकताका दर्श्न होता है. आरजेडी नेता भी १९७७में जनता पक्षके सदस्य थे और उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसको नष्ट करनेका प्रण लिया था. जब जनता पक्ष तूट गया और जनता दल भी तूटा, तो लालु यादवने अपने लिये एक वंशवादी पक्ष बना लिया. इसने केवल सत्ताके लिये ही नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. लालु यादव अपने कौभांडोके कारण कारावाससे बचने के लिये ये सब करते रहे. उनके  शासनकोजंगल राजका प्रमाणपत्र नीतीशकुमार स्वयंने दिया था.

ये तीनोंने मिलके बिहार पर कमसेकम ४० वर्ष राज किया है. तो भी ये पक्ष बिहारका विकास नहीं करपाये. ये सब बिहारको पछात राज्यकी कक्षा की मान्यता मिले ऐसी वार्ताएं करते रहे. तदुपरांत समाजकी विभीन्न जातियोंके लिये शिक्षा और नौकरीमें आरक्षण मिलता ही रहे ऐसी प्रतिक्रिया भी प्रदर्शित करते रहे.

इन तीनों पक्षकी अपेक्षा बीजेपीका व्यवहार व्यवस्थित रहा है. इसलिये बीजेपी की विजय चूनावमें होना अपेक्षित था और श्रेय भी था.

किन्तु बीजेपी और उसके साथी पक्ष बिहार चूनावमें पराजित हुए

बीजेपी एक ऐसा पक्ष है जो भारतकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व रखता है. उसका स्वदेशीमें विश्वास है. स्वदेशी उत्पादनमें मानता है और स्वदेशी भाषाओं उपर गर्व रखता है. विदेशीओं द्वारा लिखित आधारहीन भारतीय इतिहासमें वह विश्वास नहीं रखता है. तद उपरांत वह परशुराम, राम, कृष्ण आदि पौराणिक या महाकाव्यके पात्रोंको ऐतिहासिक मानता है.

बीजेपी और खास करके नरेन्द्र मोदी मानते है कि सभी समस्याओंका मूल, शिक्षाका अभाव और कामका अभाव है. इसलिये दो प्राथमिकता बननी चाहिये. एक है, शिक्षासे कौशल्य, और दुसरा है भूमिगत संरचना यानी कि, उर्जा, मार्ग, परिवहन, जल संचय, जलवितरण आदिके विकाससे उत्पादनमें वृद्धि. इस प्रकार विकास करनेसे हर समस्याका निवारण हो जायेगा चाहे वह जातिगत हो या आर्थिक हो.

नरेन्द्र मोदीके पास इन सबकी दृष्टिके उपरांत विदेशी संबंधोंके बारेमें और सुरक्षा संबंधित प्रश्नों के बारेमें सुनिश्चित आयोजन है. उत्पादन, कार्य, और प्रबंध के विषयमें नरेन्द्र मोदीके पास निर्धारित और सुनिश्चित प्रणालीयोंका आयोजन है. बीजेपी एक मात्र ऐसा पक्ष है जिसके पास नरेन्द्र मोदी जैसा एक मात्र नेता है जो बिना थके निस्वार्थ भावसे १८ घंटा काम करता है. सुभासचंद्र बोस, दयानंद सरस्वती, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और सरदार पटेलके बाद केवल नरेन्द्र मोदी ही एक मात्र नेता भारतको उपलब्ध हुआ है जो अन्य सबसे एक हजार मिल आगे है.

बीजेपीकी पराजयको वक्र दृष्टिसे मुल्यांकन करनेवाले स्वार्थ परायण दल समूहः

जो महाठगबंधनवाले पक्ष थे उनका हित तो स्वयंका विजय पाना हो यह बात तो स्वाभाविक है. किन्तु जो विद्वज्जन अपनेको तटस्थ मानते है और जो दृष्य श्राव्य और वाच्य समाचार माध्यम है उनको चाहिये था कि वे केवल समाचार ही दें, और अपनी तरफसे तारतम्य वाली समाचार शिर्ष पंक्तियां बनावें. जो मूर्धन्य लोग समाचार माध्यममें या तो एंकर है या कोलमीस्ट (कटार लेखक) है वे तर्कबद्धतासे और प्रमाणभानकी प्रज्ञाका उपयोग करके समाचारोंका विश्लेषण करें और मूल्यांकन करनेमें मापदंड भी समान ही रखें.

समाचार माध्यमों द्वारा कौनसी बातें उछाली गई?

बीजेपी नेतागणसे संबंधितः

() शेतानको लालुजीकी जीभ पर बैठने का एड्रेस किसने दिया?

() ‘   ‘-वाले शर्म करो. पहेले अपना ४० सालका हिसाब बताओ.

() मैं क्या बाहरी हुं. मैं क्या पाकिस्तानका प्रधान मंत्री हुं …. …. ?

() अनामत पर पुनर्विचारणा होनी चाहिये

() मैं स्वयं पीछडी जातिका हुं और मुझपर क्या गुजरी है वह मैं जानता हुं..

() लालुजी किस कारणसे चूनावमें प्रत्याशी नहीं बने, इसका कारण तो बताओ लालुजी,

() यदि एनडीए की पराजय हुई तो पटाखे पाकिस्तानमें फूटेंगे

() यह महागठबंधन एक स्वार्थबंधन है. डीएनए चेक करना चाहियेये तीनों पक्षके नेता एक मंच पर क्यों नहीं सकते हैं?

(१०) नीतीश कुमारने जनतंत्रमें मंत्र तंत्रका आश्रय लिया है. यह वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर बहुत चली.

(११) जिनको गोमांस खाना हो वे पाकिस्तान चले जाय.

(१२) यदि यहां गोमांस खाया तो मैं गला काट दूंगा.

महागठबंधन के उच्चारणः

() नीतीशकुमारने २००२ के गुजरातके दंगोंका उल्लेख किया

() बिहारीयोंको बाहरी चाहिये कि बिहारी?

() काला धनके डेढलाख हमारे एकाउन्टमें अभीतक जमा क्यों नहीं हुए,

() मांस खाने वाले असंस्कारी होते है, ऐसा जब मैंने कहा तब मेरी जबानपर शेतान बैठा था.

() गौमांस तो हिन्दु भी खाते है.

() मांस तो मांस ही है चाहे वह गायका हो, घोडेका हो या कुत्तेका हो.

() मुझे शेतान कहा,

() अमित शाह नरभक्षी है, वह नरपिशाच है,

() बीजेपीवालोंने काला जादु करके मुझ पर फैन गिराया. मैं काला जादु जानता हुं औरकाला कबुतरमीर्च मसाले मंत्र पढके उसको भगाउंगा.

(१०) देखो यह फोटो जिसमें नरेन्द्र मोदी अपना हाथ ज्योतीषीको दिखाते है.    

नरेन्द्र मोदीका चूनाव मंत्रविकासथा. लेकिन महागठबंधनके नेता हमेशा जातिवादकी बातें करते थे और आरएसएसके एक नेताने कहा कि अनामतपर पुनर्विचारणा होना चाहिये. यह सुनकर महागठबंधनके नेताओंमे लड्डु फूटने लगे. वैसे भी उनका गठबंधनजातिवादके आधार पर ही हुआ था. और विकासके आधार पर प्रचार करना उनके लिये कठिन था. क्यों कि बिहारके कई विस्तारोमें, मकान, पानी, मार्ग, बीजली और शिक्षासंस्थाओंकी सुविधाएं नहीं है. उद्योग भी इसके कारण अल्प मात्रामें है. बीजेपीको कोमवाद परस्त कह्ना और कोमवादका मुद्दा उठाना यह तो वैसे भी फैशन है.

दाद्रीनामके एक देहातमें जो हुआ, चूं कि वह हिन्दुओंने किया था, ये सब इस बात पर तूट पडे. और उसको गौमांसके साथ, नागरिक स्वतंत्रता और हिन्दुओंकी असहिष्णुता के साथ जोड दिया. इस बातको जिस सीमातक ले गये इससे ऐसा लगता है कि यह एक सोची समझी व्यूहरचना थी जिसको नकारा नही जा सकता.

सियासती महानुभावोंका एवोर्ड वापसीका सीलसीला

इस घटनाको लेके बीजेपीआरएसएस विरोधी और नहेरुवीयन कोंग्रेस परस्त, अभिनेता, कवि, लेखक, विवेचक, समाजसेवी, आदि तथा कथित महानुभावोंने, सरकार तरफसे दिये गये पुरस्कार एक के बाद एक ऐसा करके लौटाने लगे, ताकि, समाचार माध्यम, चूनावप्रचार अंतर्गत समयमें पूरा वातावरण बीजेपीआरएसएस की असहिष्णुताके विरोधमें बना हुआ रख सके.

यदि इस घटनापर विश्लेषण किया जाय तो भूतकालमें ऐसी ही नहीं किन्तु इससे हजारों लाखों दफा बडी कई मानव हनन और मानव अधिकार हननकी घटनाएं घटी तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

नहेरुकी नीतिके कारण और भारतीय सीमाको असुरक्षित रखनेसे और हमारे जवानोंको शस्त्रोंसज्ज करनेके कारण १९६२में हजारों जवानोंको बेमौत शहीद होना पडा. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

१९७२में सिमला समझौता अंतर्गत इन्दिरा गांधीने भारतकी जितको पराजयमें परिवर्तित करके हजारों शहीदोंके बलिदानोंपर पानी फेर दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

१९७५१९७६ मे आपतकाल घोषित करके विरोधी आवाजको बंध करने के लिये ६००००+ लोगोंको कारावासमें अनियत कालके लिये बंद कर दिया. समाचार माध्यमों पर सेन्सरशीप डाल दी. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

इन्दिराने युनीयन कार्बाईडसे क्षतियुक्त डील किया और भोपालगेस दुर्घटना हुई और सेंकडो मौत हुई और हजारों लोग, शरीरसे स्थायी रुपसे अपंग हुए. इन गेसकांड पीडितोंको, क्षतियुक्त डील के कारण मुआवझा नही मिला. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

इस घटनाके दोषी एन्डरशनको अर्जुनसिंह और राजीवगांधीने भगा दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

इन्दिरा गांधीने, खालिस्तानी आतंकवादी भींदराणवालेको संत घोषित करके उसको बढावा दिया, इससे खालिस्तानी आतंकवाद और सीमापारके आतंकवादको बढावा मिला. इसी कुकर्मके कारण इन्दिराकी हत्या हुई. इस नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने हजारों निर्दोष शिखोंका कत्लेआम किया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

सीमापारका आतंकवाद कश्मिरमें बढने लगा और जो हिन्दु कश्मिरमें १५% थे उनके उपर अत्याचार होने लगे और हिन्दु जनसंख्या १९८९ तक % हो यी. तब तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

१९९०में खुले आम, वर्तमान पत्रोंमें इस्तिहार देके, मस्जिदोंमेंसे लाऊडस्पीकर द्वारा घोषणा करवाके, दिवारों पर पोस्टरों लगाके,  हिन्दुओंको चेतावनी दी, कि निश्चित दिनांकके अंतर्गत या तो इस्लाम कबुल करो या कश्मिर छोड दो. यदि यह स्विकार्य नहीं है तो मौत के लिये तयार रहो. ६०००+ हिन्दुओंका कत्लेआम हुआ. ५००००० हिन्दुओंको अपना घर और राज्य छोडने पर विवश किया जो आज २५ सालके बाद भी, वे या तो तंबुमें रहेते है या खोलीमें रहेते है. १९९० पहेले भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनका साथी “एन. एफ” कश्मिर में राज करते थे, और १९९०के बाद नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने १५ साल राज किया तो भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी पक्षोंके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. इन शासकोंने कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकारोंके सतत होते हुए हननके विषयमें केवल उपेक्षा की. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

और अब देखो यहां क्या हुआ? दाद्री देहातमें एक गरीब मुस्लिमकी हत्या हुई. युपी जो नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्ष द्वारा शासित राज्य है तो उत्तर दायित्वतो उसका ही बनता है, किन्तु इन सियासती महानुभावोंने इस घटनाका उत्तर दायित्व बीजेपी केन्द्रकी बीजेपी सरकार पर डाल दिया. चूं कि मृत व्यक्ति मुस्लिम था और चूं कि मारने वाले हिन्दु थे. यदि मारने वाले हिन्दु है तो बीजेपी को  उत्तरदायी बता दो. क्या इसमें कोई तर्क है? यहा क्या बुद्धिगम्य है?

वास्तवमें महानुभावोंका तारतम्य और प्रतिभाव निरपेक्ष रुपसे एक प्रपंच है और निरपेक्ष रुपसे कोमवादको उकसाना है. ये सभी महानुभाव को कोमवाद फैलाने के आरोप पर न्यायिक कार्यवाही करनी चाहिये. और उनको कारावास में रखना चाहिये.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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Do not fall in the trap of Nehruvian Congress. क्या आप भारतके होतैषी है? और फिर भी क्या आप इनमेंसे कोई एक  वर्गमें भी आते हैं? ()

() ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

Modi is the big threat to Nehruvian Congress

             Terrorists Bomb Blasts in Patana” By UPA !

भारतमें ज्ञातिवाद अभी नामशेष नहीं हुआ. प्रांतवाद भाषावाद भी चलता है. याद करो, जिस नहेरुवीयन कोंग्रेसने जयप्रकाश नारायणके आंदोलनको समर्थन देनेके कारण ममताको भी कारावास दिया था, उसी कोंग्रेसके आपातकालके दिलोजान समर्थक रहे प्रणव मुखर्जी जो ममताके प्रथम दुश्मन होने चाहिये, तो भी केवल और केवल बंगाली होने के कारण, ममताने थोडे नखरे करनेके बाद, उनको ही भारतके राष्ट्रप्रमुख पदके लिये समर्थन दिया. उसी प्रकार शिवसेनाने प्रतिभा पाटिलको समर्थन दिया.

दुसरा कारण यह भी है कि स्वकीय सत्तालाभके लिये कुछ नेता अपने ही पक्षके नेता के विरुद्धमें काम करते है. इसमें इन्दीरा गांधीने संजीव रेड्डीके विरुद्ध प्रचार किया, चरण सिंगने अपने ही पक्षके नेता मोरारजी देसाईकी सरकारका पतन किया , यशवंत राव चवाणने १९७७ की नहेरुवीयन सरकारके पराजयके बाद अपनी अलग पार्टी बनाली, शरद पवारने सत्ताके लिये नहेरुवीयन वंशके पक्षको छोडा, पकडा, छोडा, पकडा, छोडा जो क्रिया आज भी चालु है, बाला ठाकरेको नरेन्द्र मोदी का कद बढते हुए डर लगता था और ऐसे निवेदन देते रहेते थे कि बीजेपीकी शक्तिमें घाटा हो. चंद्रबाबु नायडुने अपने श्वसुर एन टी रामारावकी सरकारसे नाता छोडा था, शंकर सिंह वाघेलाने  केशुभाई पटेलकी सरकारका पतन किया था, केशुभाई खुद, नरेन्द्र मोदीका पक्ष चूनाव में हार जाय ऐसे भरपुर प्रयत्न करते रहते है, अडवाणी खुद ने अपने पक्षके जनमान्य नेता नरेन्द्र मोदीको नीचा दिखानेके लिये भरपुर प्रयत्नशील है.

सत्ताके लिये साधनशुद्धिका अभाव. मैं चाहे खतम हो जाउं लेकिन तुम्हे सत्तासे हटाउं;

जिन्होंने सत्ताके लिये साधनशुद्धि नहीं रक्खी है उनसे सावधान रहो. ये लोग बिना ही कोई योग्य विकल्प दिये ही बीजेपीको कमजोर कर सकते है. उनसे सावधान.

और कौन है जिनसे सावधान रहेना है?

 () ये लोग देश द्रोही हो सकते है, जो सिर्फ धारणाओंके आधारपर सरकारको दोष देते हैं;

Double standard alias perverted eyes of media

जिनको भारतकी धरोहर पर गर्व नहीं है और जो लोग, मनोमन, भारतका विकास नहीं चाहते है उनको आप क्या कहोगे? इन लोगोंको यह बात ज्ञात नहीं है कि, एक स्थिर सरकार को केवल नकारात्मक धारणाएं उत्पन्न करके, सरकार और उसके नेताओंके विरुद्धमें हवा फैलाना, कोई देशहितका काम तो है नहीं. एक सरकार को पांच वर्षके लिये नियुक्त की है तो उसको पांच साल पुरा करने दो. उसके पश्चात पूर्व सरकारने जो किया था, उसके साथ इस सरकारकी तुलनात्मक समीक्षा करो. आपको यह अवगत होना आवश्यक है कि, यदि आपने बीजेपीको मत नहीं दिया है तो भी वह पूर्णबहुमतसे भारतीय बंधारणके अनुसार विजयी हुई है. अब आपको उसका सन्मान करना है. धारणाओंके आधारपर उसको दोषी नही मान सकते. बीजेपीकी और खास करके नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैली को नीचा दिखानेके लिये आपके पास ऐसा कोई आधार नहीं है कि आप उसको दोषी है ऐसा प्रचार करते रहो.

किन्तु ऐसा देखा जाता है कि जिनको बीजेपी और नरेन्द्र मोदी पसंद नहीं था उनमेंसे अधिकतर लोग नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके सुक्ष्मातिसुक्ष्म बातोंको या/और जो चर्चाबिन्दु, वर्तमानमें अस्पष्ट है, संवादके आधिन है, कार्यवाही चल रही है, उसमें विसंवाद करके, उसको उछालते है और व्यर्थ ही नकारात्मक हवा फैलाते है. क्यों कि वे चाहते है कि यह सरकारका पतन हो जाय.

क्या होगा? इनको चिंता नहीं है

अगर इस सरकारका पतन होगा तो देशकी क्या दशा होगी इस बातकी इनको चिंता नहीं है.  १९८९ में चन्द्रशेखरने वीपी सिंगकी सरकार गीरायी. १९८९में क्या हुआ था? शेख अब्दुल्ला भाग गया. कश्मिरमें ३०००+ लोगोंका कत्लेआम हुआ और पांच लाख से उपर हिन्दुओंको सरेआम अपना घर छोडने पर विवश किया. आज तक वे लोग तंबुओंमें रहते हैं. यह एक ऐसा आतंक है जो लगातार २५ सालोंसे चल रहा है. १९९६ से १९९८ तक सरकारोंको गिरानेकी परंपरा चालु रही.

क्या ये आतंकी लोग और आतंकीयोंके इरादोंके पोषक और हिन्दुओंके प्राकृतिक अधिकारकी अवहेलना करनेवाले ये नहेरुवीयन और उनके साथीगण और वे लोग जो इस विषय पर मौन और निष्क्रिय रहे उन लोगोंको आप देश द्रोही नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

कश्मिरसे निष्कासित हिन्दुओंको अपने घरमें २५ सालके बाद भी सुस्थापित न करना, इस परिश्तितिको आप क्या कहोगे? यह उनके उपर सतत हो रहा आतंकवाद ही तो है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी लोग जिनमें फरुख आदि कश्मिरके मुस्लिम नेतागण आते है उन्होने सातत्यतासे कश्मिरी हिन्दुओंके मानवाधिकारका हनन किया. इनको अगर आप आतंकवादी नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

इस विषय पर मौन रहेने वाले या तो वितंडावाद करने वाले समाचार माध्यमोंके वक्ताओंसे भी सावधान. क्यों कि ये लोग भी मौन रहे हैं. ऐसे लोगोंके द्वारा किये गये निवेदनोंसे और मंतव्योंसे सावधान. उनके उपर तनिक भी विश्वास मत करो.

दुसरे कौन लोग है?

() ये लोग जोजैसे थेवादी है,

भारतकी आर्थिक प्रगति असंतोषजनक होनेका क्या कारण है? उसका मुख्य कारण भारतीय नेतागण है. मात्राके आधार पर नहेरुवीयन कोंग्रेस है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागणसे जुडे हुए अन्य नेतागण और कर्मचारीगण की राक्षसीय वृत्तियां कारणभूत है.

राक्षसी वृत्तिसे अर्थ है अन्यको नुकशान करके खुदका लाभ देखना. इसको अनीतिमत्ता भी कहेते हैं.

अगर ठेकेदार सही काम करेगा तो उसका लाभ कम होगा या तो नुकशान भी हो सकता है. इसलिये वह निम्नकक्षाका काम करता है और सरकारी कर्मचारी/अधिकारीको भ्रष्ट करता है. सरकारी कर्मचारी/अधिकारी भ्रष्ट होनेको उत्सुक है. और इसकी कोई सीमा नहीं है. जहां १००० रुपया खर्च होता है वहां पर कम आयु वाला १००५०० रुपयेका काम होता है. अगर नियमका शासन (रुल ऑफ लॉ) आजाय तो इनके ये लाभ नष्ट हो जायेंगे. इस लिये ये लोगजैसे थे”-वादी बनते है. जो भ्रष्ट है वे सत्ताके पदोंको दयादानका विषय मानते है. इसलिये अपनेवालोंको सत्ताके पदों पर नियुक्त करते है और भ्रष्टाचार बढाते है. इन्दिरा गांधीके समयसे भीन्न भीन्न पदोंकी भीन्न भीन्न मूल्य रक्खा था. यह बात युपीए के शासनमें भी चालु ही थी. इन लोगोंसे सावधान.

और कौन लोग है जिनसे सावधान रहेना है?

() ये लोग नकात्मक मानसिकता वाले हो सकते है,

ये लोग ऐसे है जो या तो नीतिसे भ्रष्ट है या तो निराशावादी है. चाणक्यने कहा है, जो निराशावादी है उनकी बातों पर विश्वास करो. निराशावाद एक रोग है. इस रोगके सांनिध्यमें रहेने वालोंको भी यह रोग ग्रस लेता है. निराशात्मक वातवरण विकासके लिये हानिकारक है. ये लोग नकारात्मक बोलते ही रहेते है कि, नरेन्द्र मोदी कुछ नहीं करता है, उसने यह नहीं किया, उसने वह नहीं किया, देखो टमाटरके भाव बढ गये. देखो सोनेके भाव स्थिर हुए तो जिन किसानोंने अपनी फसलके पैसोंसे सोना खरीदा था उनको इतने अरबका घाटा हुआ. यह सरकार किसानोंको पायमाल करने पर तुली है.

और कौन लोग है जिनसे सावधान रहेना है?

() ये लोग मूर्ख और मूढ हो सकते है,

मूर्ख वे लोग है जो व्यूहरचना समझ नहीं सकते और व्युह रचना बना भी नहीं सकते. उनके पास इतनी माहिति, ज्ञान और अनुभव नहीं होता है कि वे शत्रुओंकी ही नहीं किन्तु खुद अपने नेताकी व्युह रचना समझ शके. तद्यपि ये मूर्ख लोग इस बातका इन्कार करते है और अपनी खूदकी व्यूह रचना बनाते है और अमलमें भी प्रयोजित करते है. इससे वे अपने आप कष्टमें पडे उस शक्यताको तो छोड दो, लेकिन अपने पक्षको भी नुकशान पहोंचता है.

उदाहरणः

धोती धारण करने पर स्टारमें लाभः चरण सिंहने फरमान किया था कि जो धोती पहेनेगा उसको स्टार होटलमें २०% का डीसकाउन्ट मिलेगा.

गौवध पर प्रतिबंधः कोई भारतीय गौमांस नहीं खाता. यह एक सांस्कृतिक प्रणाली है. क्योंकि हम गाय का दूध पीते है, इसलिये वह हमारी माता समान है. इसके अलावा पर्यावरण और धरतीकी फळद्रुपताके लिये गौसृष्टिका हनन करना योग्य नहीं है. लेकिन अंग्रेज सरकारने ऐसे कतलखाने चलवाये थे. नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको चालु रक्खा उतना ही नहीं लेकिन उसमें वृद्धि भी की. देश ऐसी स्थिति पर पहोंचा है कि अगर ये कारखानोंको शिघ्रतासे समाप्त कर दें तो कई और प्रश्न उत्पन्न होते हैं. समस्या के निवारण के लिये कुछ समय की अवधि भी होती है. कुछ व्यूह रचना भी बनानी पडती है. व्यूहरचनाओंको गोपनीय भी रखनी पडती है.

अब तक जनताने क्या किया था?

जनताने यानी कि, आपने इस गौहत्या करने वाले राक्षसको मारने के लिये एक वृकोदरको चूना था. इस वृकोदरने कई दशकोंका समय व्यय किया. उसने राक्षसको मारने के बदले अनेक और राक्षस उत्पन्न किये.

अब आपने एक शेरको चूना है. अगर यह राक्षस मरेगा तो इस शेरसे ही मरेगा. अतः उसको पर्याप्त समय दो. आप धैर्य रक्खो. यदि आप शासक को पर्याप्त समय नहीं देते हैं, और यदि आप इस विषय पर धैर्यहीन बन जाते हैं तो समझ लो कि आप वृकोदरको ही मदद करते हैं.

विदेशी बेंकोंमे जमा काले धनकी वापसीः यह एक आंतर्राष्ट्रीय नियमोंसे युक्त समस्या है इस बातको अगर छोड भी दे सकते हैं. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने इस समस्याको अपने फायदेके लिये ऐसे दस्तावेज बनाये हैं कि उन कुकर्मोकों सही मात्रामें अवगत करना है, यह एक ऐसे अन्वेषणका विषय है कि उसके उपर सावधानीसे गोपनीय रीतसे व्युह रचना बनानी पडती है. विशेष निरीक्षण अन्वेषण जुथ तो बनाया गया है ही. इसके नेता सर्वोच्च न्यायालयके एक न्यायाधीश है. ये लोग अपना काम कर रहे है. समस्या कमसे कम ३५/४० साल पुरानी है. अतः उसको पर्याप्त समय दो. आप धैर्य रक्खो.

() ये लोग नहेरुवंशके चाहक या/और उनकी विचार/आचार धाराके चाहक हो सकते है,

कुछ लोग ऐसा समझते है कि वे लोग, ईश्वरकी क्षतिसे भारतमें जन्मे हैं. वे ऐसा समझते हैं कि पाश्चात्य विचारधाराके प्रति आचार विचार रखना और भारतीय धरोहरकी निंदा करना ही प्रगतिशीलता है. भारतका जो कुछ भी है वह निम्न कक्षाका है. भारतकी प्रणालीया, तत्वज्ञान भाषा आदि सब निम्न है.

शौक भी कोई चिज है”. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंकी क्षतियोंका ये लोग सामान्यीकरण करके उसको निरस और शुष्क कर देते है. लेकिन ये ही लोग नरेन्द्र मोदीकी छोटी छोटी असांदर्भिक बातों पर मजाक करते है. जैसे कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को ये लोग परिधान मंत्री नरेन्द्र मोदी. क्या जवाहर लाल नहेरु और उनकी संतान नंगा घुमती थीं?

(१०) ये लोग महात्मा गांधीके विरोधी, या/और उनकी विचारधारा के विरोधी हो सकते है,

ये लोग मुढ की कक्षामें आते है. उनको ज्ञात नहीं है कि वे क्या कर रहे है? उनको ज्ञात नहीं कि, उनके मन्तव्योंसे जनताको क्या संदेश जाता है? उनको यह अवगत नहीं कि, देशकी और विदेशकी जनता उनके बारेमें क्या सोचेगी? जिनका ये लोग विरोध करते है उनकी विश्वमें क्या कक्षा है? उनको यह मालुम नहीं कि, जिनकी तटस्थता विश्व मान्य है उनका प्रतिभाव, बीजेपी के बारेमें कैसा सकता है?

उनको यह अवगत होना चाहिये कि, महात्मा गांधी एक विचार भी है. व्यक्तिसे ज्यादा एक विचारधारा है. गांधीजीकी विचारधारा एक विस्वस्त विचारधारा है. गांधीने अपनी क्षतियां खुद बताई थी. वे क्षतियां महात्मा गांधीने तो छोड ही दी थी. और उसने कभी उसका पुनरावर्तन किया नहीं. तो भी कुछ लोग उसी क्षतियोंको आधार बनाके गांधीकी निंदा करते है.

गांधीके कर्मके सिद्धांत विश्व मान्य है और विश्वने गांधीजीके आचारमें विश्वसनीयता पायी है. जिन्होने गांधीको पढा है उन्होने गांधीको कलंक रहित समझा है. अगर आपने गांधी के बारेमें पढा नहीं है तो आपमें गांधीके बारेमें चर्चा करनेकी योग्यता ही नहीं है. फिर भी अगर आप, अपनी अल्पज्ञतासे गांधी की निंदा करते हैं तो विश्वमें आप ही नहीं आपका पक्ष भी अविश्वसनीय बनता है. और आपका दुश्मन पक्ष इसका भरपुर लाभ उठा सकता है. अगर आप मुढ नहीं है तो आप गांधीके विषय पर मौन रहोगे. क्यों कि जिस विषय की चर्चा आपके पक्षके लिये हानिकारक है उसमें अगर आप मौन रहे तो आपका यह लक्षण एक सन्मित्रका लक्षण बनेगा. ऐसा भर्तृहरिने कहा है.  

(११) ये लोग गोडसेके चाहक या/और उसकी आचार धाराके चाहक हो सकते है.

गोडसे एक सामान्य व्यक्ति था. सामान्य व्यक्ति भी देश प्रेमी हो सकता है. अज्ञान और परिस्थितिसे अवगत होनेकी अक्षमता और असंवाद की मानसिकता के कारणसे यदि एक देशप्रेमी, दुसरी एक व्यक्ति, जो निःशस्त्र, सत्ताहीन और निर्दोष, मानवता वादी, करुणापूर्ण और युगपुरुष मानी जाती है उस व्यक्तिका खून करता है तो यह पाप ही तो है.

ऐसे पापीकर्मको आप पूण्य कर्म सिध्ध करना चाहते हैं तो विश्वमें कोई भी आपकी बात मान्य नहीं रखेगा. आप अपात्रको, महान सिद्ध करते रहोगे तो विश्वमें आपका पक्ष ही बदनाम और अविश्वसनीय होगा. भारत एक बडा देश है. और अगर कहीं चूनाव प्रक्रिया चल रही है तो आप, बीजेपी के मतोंको हानि पहोंचा सकते हो. क्यों कि आपका दुश्मन पक्ष, आपके इस आचारका भरपुर लाभ लेता है और आगेचलकर भी लेगा. इस बातको समझनेमें यदि आप अक्षम है तो यह बात आपके मुढत्वको सिद्ध करती है.

(१२) ये लोग अहिंसा उचित है और हिंसा कहां उचित है और कहां उचित नहीं है इसको अवगत करनेकी वैचारिक शक्ति नहीं रखते है,

GANDHI SARDAR AND NEHRU

अहिंसा एक सापेक्ष आचार है.

दुर्योधन के साथ युद्धका निर्णय श्री कृष्णने तभी लिया जब दुर्योधनने कहा कि मैं धर्म जानता हूं और अधर्म भी जानता हूं. परंतु, धर्ममें मैं प्रवृत नहीं हूंगा और अधर्मसे मैं निवृत नहीं हूंगा.

शेर अगर सामने गया तो आप क्या करोगे? या तो खुद भाग जाओ या तो उसको भगा दो. जहां संवादकी कोई शक्यता ही नहीं है वहां कमसे कम हिंसा, अहिंसा बनती है. अहिंसा और सुरक्षाके अधिकार विश्वमान्य है. उसमें विसंवाद उत्पन्न करना खुदकी असंस्कृत विचारधारा और अज्ञानताका प्रदर्शन है.

पाकिस्तानने जब कश्मिर पर आक्रमण किया और जब कश्मिरके राजाने भारतकी मदद मांगी तो नहेरु और सरदार, गांधीजी की सलाह लेनेके लिये उनके पास गये थे. गांधीने कश्मिरके राज्यकी सुरक्षाके लिये भारतीय लश्करको भेजना यह अपना धर्म बताया था. गांधीजीने ऐसा नहीं कहा था किजाओ जाके सत्याग्रह करो”. क्यों कि आक्रमणकारी संवाद और अहिंसाको मान्य नही करते. वे केवल और केवल हिंसासे ही कश्मिर पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे. ऐसे लोगोंको हिंसाकी भाषामें उत्तर देना ही योग्य था.

(१३) ये लोग या तो अपने धर्मके विषयमें अंध है, परधर्मके बारेमें या/और परधर्मीयोंके विषयमें सतत धिक्कारकी मानसिकता या/और आचार रखते है,

धर्ममें यदि मानवधर्म नहीं मिला हो तो वह धर्म ही नहीं होता है. ऐसा धर्म, एक समूह (मॉब) मात्र होता है. ऐसे धर्मके कोईएक नेताने जो कुछ भी लिखा हो उसको परम सत्य मानके चलनेवालोंका एक पशु समूह ही बन जाता है. और उस समुहका व्यवहार भी हिंसक पशु जैसा ही होता है.

अपने धार्मिक पुस्तकका हेतु क्या था? वह कब, कहां कैसी स्थितिमें लिखा गया, और क्यों लिखा गया उसके उपर निरंतर चिंतन विचार करने के स्थान पर, ये लोग क्या करते हैं? ये लोग, युगोंके पश्चात भी, उसी लिखावट के अनुसार ही अनुसरण करना चाहते है. वे तो यह भी मानते है कि सारी दुनियाके लोगोंको हमारा धर्म ही स्विकारना करना चाहिये.  ऐसी मानसिकता वाले धर्मान्ध होते है. ऐसे लोग जो प्रत्यक्ष दिखाई देता है उसकी अनदेखी करके जो नहीं दिखाई देता है, और जो तर्कसे कोषों दूर है उस परलोकको पानेके लिये परधर्मको माननेवालोंको यातना देते हैं और कत्ल करते है. इन लोगोंसे सावधान.

(१४) ये लोग स्वयंको धर्मनिरपेक्षके रुपमें प्रस्तूत करते हैं, किंतु उनके रोम रोममें, नरेन्द्र मोदी या/और बीजेपी या/और सनातन धर्म या/और भारतीय प्राचीन धरोहर के प्रति अस्विकृतिकी मानसिकता या/और घृणा है,

प्रोनहेरुवीयन पक्षके लोग नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को कोमवादी कहेते है. क्यों कि नरेन्द्र मोदी आरएसएस का सदस्य है.

आर एसएस की गलती क्या है?

वैसे तो कुछ भी गलती नहीं है. किन्तु नथुराम गोडसे नामके एक आदमीने गांधीजीका खून किया था. नथुराम गोडसे आरएसएसका सदस्य था इसलिये आरएसएसका हर सभ्य खूनी है. आरएसएसने कभी अपनी कारोबारी में या किसीभी हालतमें गांधीजीको मारनेका प्रस्ताव पास नहीं किया था. तो भी ये दंभी धर्मनिरपेक्ष लोग कि, आरएसएस और उसके कारण बीजेपी भी कोमवादी है. साध्यम इति सिद्धम्‌.

यह इन दंभी धर्मनिरपेक्षोंका तर्क है जो तर्कके शास्त्रसे हजारों कोस दूर है. वे लोग इस तर्कको आरएसएस और बीजेपी के उपर चलाना चाहते है. वास्तवमें गांधीजीका खून करने वाली तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ही है. गांधीजी अगर महान थे तो वे अपने विचारोंसे और अपने आचारोंसे महान थे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो गांधीके विचारोंका खून किया है.

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके दारुबंधीमें सातत्यसे छूट दी और कभी लागु नहीं की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके गौवध बंधी कभी लागु नहीं की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके कतल खानोंको रियायतें दी,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके विभाजनवादी प्रवृत्तियां की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके अपनी सुविधाएं बढाई,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके सीमा रेखाको असुरक्षा दी,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके मंत्रीयोंको मनमानी करनेका अधिकार दिये,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके जनतंत्रका खून किया था,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके गांधीवादी जयप्रकाश नारायण तकको कारावासमें डाल दिया था,

और इन्ही लोंगोने असामाजीक तत्वोकों सहारा लिया और सहारा दिया.

साबरमती एक्सप्रेसके डीब्बेको जलानेकी योजना, गोधराके एक स्थानिक नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेताने बनाई थी और लागु की थी. वह नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेता पाकिस्तान भाग गया है. आप इन दंभी धर्मनिरपेक्षकी पूरी जमातको दस्तावेजोंके आधारपर कारावासकी सजा दे सकतो हो.

ऐसे दंभी धर्म निरपेक्ष लोगोंसे सावधान रहो.

इन लोगोंसे सावधान जो हिन्दुधर्ममें सुधारकी वार्ताएं करते हैं.

इन लोगोंको समाजसुधारकी बातें करते समय उनको सिर्फ हिन्दु समाज ही दिखाई देता है.

इनकी जमातके एक बिरादरने राजस्थान जाके एक हिरनका शिकार किया. हिरनको जलाके अपने यारोंके साथ खा भी लिया. अब यह हिरन तो विलुप्त जातिका था और उसको शासनने सुरक्षित घोषित किया था. तो भी इस बिरादरने नियमकी अवहेलना करके उसका शिकार किया. इसी बिरादरनेसत्यमेव जयतेभी चलाया. उसमें इन्होंनें केवल गुन्हाहोंका सामान्यीकरण किया लेकिन शासनका क्या फर्ज बनता है और शासनस्थ किस व्यक्तिका फर्ज बनता है उसका नाम भी नहीं लिया. “मैं तुमसे ज्यादा पवित्र हूं, मैंने तुम्हें सुधारने के लिये कैसा अच्छा सिरीयल बनाया, अब जनताको जागना पडेगा, जनता को ही आगे आना पडेगाइत्यादि इत्यादि.

DOUBLE STANDARDS OF CENSOR BOARD

अभी अभी इस बिरादरनेपी केनामकी फिलम बनायी. उसमें वे खुदपी केहै. और अंधश्रद्धा को उजागर करनेमें वे कैसे मचे रहेते है वह दिखाया है. उनको अपनी जमातकी पहाड जैसी भी अंधश्रद्धा दिखाई देती नहीं है. लेकिन हिन्दु धर्मकी तिलके बराबरकी बुराई, यह महाशय पहाड जैसी प्रदर्शित करते हैइस बातकी चर्चा हम अलग लेखसे करेंगे. लेकिन ऐसे दंभी ठगलोगोंसे सावधान.  

(१५) ये लोग एक विवादास्पद वार्ताकी सत्यताको सिद्ध करनेके लिये दुसरी विवादास्पद वार्ताका आधार लेते है और अपने निर्णय को तर्कयुक्त मानते है और मनवाते है,

एक व्यक्ति जो महानुभाव है. कोई क्षेत्रका विद्वान माना जाता है. किन्तु समझ लो. कार्ल मार्क्स के समाजवादका सिद्धांत विवादास्पद है. एक अमर्त्यसेन था उसने नरेन्द्र मोदी के आर्थिक कदमोंको बिना नरेन्द्र मोदीसे चर्चा किये नकार दिया. ये लोग ऐसा तारतम्य निकालते है कि नरेन्द्र मोदीके आर्थिक कदम खोटे है.

वास्तवमें एक विवादास्पद बातसे दुसरी बातको गलत नहीं कह सकते.

(१६) ये लोग पाश्चात्य साहित्य, इतिहास लेखन, दृष्टिकोण, प्रणालियां या/और व्यक्तिओंसे अभिभूत है.

भारतके कई लोग जो अपनेको मूर्ध्न्य मानते है और साथमें महानुभाव भी है, उनमें एक फेशन है कि पाश्चात्य विद्द्वानोंके कथन उद्धृत करके बीजेपी और उसके नेताओंको बदनाम करो.

वास्तवमें हरेक कथन पर समस्या पर संदर्भके साथ रख कर गुणवत्ता, प्रमाणिक और प्राथमिकता को लक्षमें रख कर विचार करना चाहिये. किसीका कथन मात्र कुछभी सिद्ध करता नहीं है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः नरेन्द्र मोदी, बीजेपी, आर एस एस, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नेतागण, सत्तालाभ, साधनशुद्धि, नकारात्मक, आतंकवाद, निष्कासित, जातिवाद, प्रांतवाद, विकल्प

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-५
(इस लेखको “अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-४” के अनुसंधानमें पढें)

नहेरुवीयन कोंग्रेसने २००४का चूनाव कैसे जिता?

अटल बिहारी बाजपाइने अच्छा शासन किया था. उन्होने चार महामार्ग भी अच्छे बनाये थे जो विकसित देशोंकी तुलनामें आ सकते थे. बीजेपीका गठबंधन एनडीए कहा जाता था. उसमें छोटे मोटे कई पक्ष थे. एनडीएके मुख्य पक्ष जेडीयु, बीएसपी (मायावती), टीएमसी (ममता), डीएमके (करुणानिधि), एडीएमके (जयललिता जिसने समर्थन वापस ले लिया था), टीडीपी, शिवसेना आदि थे.
मायावती, ममता और डीएम न्युसंस वेल्यु रखते थे. बिहार, युपी और आन्ध्रमें स्थानिक गठबंधन पक्षका एन्टीइन्कंबन्सी फेक्टर बीजेपीको नडा. इससे एनडीए को घाटा हुआ और बीजेपीको भी घाटा हुआ. राजस्थानमें और गुजरातमें भी थोडा घाटा हुआ.

लेकिन घाटा किन कारणोंसे कैसे हुआ?

देशके सामने सबसे बडी समस्याएं क्या है?

बेकारीः यानी कि आर्थिक कठीनायीयोंसे जीवन दुखमय

विकासका अभावः भूमिगत संरचनाका (ईन्फ्रास्ट्रक्चरका) अभाव, और इससे उत्पादन और वितरणमें कठिनायीयां,

शिक्षा और प्रशिक्षाका अभावः इससे समस्याको समझनेमें, उसका निवारण करके उत्पादन करनेमें कौशल्यका अभाव,

अभाव तो हमेशा सापेक्ष होता है लेकिन समाजकी व्यवस्थाके अनुसार वह कमसे कम होना चाहिये.

बाजपाई सरकारने बिजली, पानी और मार्गकी कई योजनायें बनायी और लागु की, लेकिन पूर्ण न हो पायी. वैसे तो हर रोज औसत १४ किलोमीटरका पक्का मार्ग बनता था जो कोंग्रेसकी सरकारमें एक किलोमिटर भी बनता नहीं था.

बिजलीकी योजना बनानेमें और पावर हाउस बननेमें समय लग जाता है.
भारत विकसित देशोंसे १०० सालसे भी अधिक पीछे है.

स्थानिक नेतागण और सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट होनेसे हमेशा अपनी टांग अडाते है यह बात विकासकी प्रक्रियाको मंद कर देते है. तो भी बाजपाईके समयमें ठीक ठीक काम हुआ लेकिन ग्रामीण विस्तार तक हवा चल नहीं पायी.

जब ऐसा होता है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ग्रामीण जनताको और शहेरकी गरीब जनताको विभाजित करनेमें अनुभवी और कुशल रही है. गुजरातमें ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस ज्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन इसका प्रभाव जरुर पडा. अन्य राज्योंमें वह जरुर सफल रही.

समाचार माध्यमोंकी बेवकुफी या ठग-विद्या

समाचार माध्यमोंका भी अपना प्रभाव रहेता है, भारतके समाचार माध्यमके कोलमीस्ट, विश्लेषण करनेमें प्रमाणभानका ख्याल न रखकर अपनी (विवादास्पद) तटस्थता प्रदर्शित करनेका मोह ज्यादा रखते है. भारतमें समाचार माध्यमोंका ध्येय जनताको प्रशिक्षित करनेका नहीं है. भारतके समाचार माध्यम हकिकतके नाम पर जातिवादी और धार्मिक भेदभाव के बारेमें किये गये उच्चारणोंको ज्यादा ही प्रदर्शित करतें है. “नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें पटेल नेताओंको अन्याय किया है…. गुजरातमें ब्राह्मण अब मंत्रीपद पर आने ही नहीं देंगे…. मुस्लिमोंको टिकट ही नहीं दी है…” आदि..

समाचार माध्यमों को चाहिये कि वे जातिवाद और धर्मवादकी भ्रर्स्तना करें. लेकिन ऐसा न करके इन लोंगोंका चरित्र ऐसा रहता है कि मानो, मंत्रीपद और टिकट देना एक खेरात है.

२००९ का चूनाव नहेरुवीयन कोंग्रेसने कैसे जिता?

२००९का चूनाव बीजेपीको जितनेके लिये एक अच्छा मौका था.

२००८में सीमापारके और भारतस्थ देशविरोधी आतंकीयोंने कई शहेरोंमें बोम्ब ब्लास्ट किये, और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सतर्क और सुरक्षा संस्थायें विफल रही थीं, यह सबसे बडा मुद्दा था.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेसने रणनीति क्या बनायी?

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने उसका सामान्यीकरण कर दिया. वह कैसे? वह ऐसे …

“बोंम्ब ब्लास्ट तो बीजेपी शासित राज्योंमें भी हुआ है,

“संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था, तब केन्द्रमें बीजेपीका ही तो शासन था,

“बीजेपीके मंत्री विमान अपहरण के किस्सेमें यात्रीयोंको मुक्त करनेके लिये खुद बंधक आतंकीयोंको लेकर कंदहार गये थे और आतंकीयोंको, विमान अपहरणकर्ताओंको सोंप दिया था.

इन सबको मिलाके जनताको यह बताया गया कि, आतंकवाद एक अलग ही बात है और इसके उपर सियासत नहीं होनी चाहिये.

दूसरी ओर, फिलमी हिरो-हिरोईन और अखबारी मूर्धन्यों और महानुभाव जो प्रच्छन रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसके तरफदार थे वे लोग सडकपर आ गये. उन्होने प्रदर्शन किये कि पूरा शासक वर्ग निकम्मा है और हमारी सुरक्षा व्यवस्था मात्र, असफल रही है चाहे शासकपक्ष कोई भी हो.

वास्तवमें यह सब बातें आमजनताको असमंजसमें डालनेके लिये थी.

हिमालयन ब्लन्डर्स या हिमालयन्स स्केन्डल्स

नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्धमें क्या था जिसको दबा दिया गया?

नहेरुवीयन कोंग्रेस कश्मिरमें सत्ताकी हिस्सेदार थी तो भी ३००० हिन्दुओंका खुल्लेआम कत्ल कर दिया जाता था. ऐसा करनेसे पहेले सीमापारके और स्थानिक आतंकीयोंने खुल्लेआम दिवारोंपर पोस्टर चिपकाये थे, अखबारोंमें लगातार सूचना दी गई और खुल्ले आम लाऊड-स्पीकरोंसे घोषणा करवाने लगी कि हिंदु लोग या तो इस्लाम कबुल करे या तो जान बचाने के लिये कश्मिर छोड कर भाग जावे. कश्मिर सिर्फ मुस्लिमोंका है. न तो स्थानिक सरकारने उस समय कुछ किया न तो केन्द्रस्थ सरकारने कुछ किया. क्यों कि केन्द्रस्थ सरकार दंभी धर्मनिरपेक्षता वाली थी. नरसिंहरावकी कोंग्रेस सरकार जो केन्द्रमें आयी थीं उस सरकारने भी कुछ किया नहीं था. इस कारणसे आतंकवादका अतिरेक हो गया और मुंबईमें सीरीयल बोंब ब्लास्ट हुए. नहेरुवीयन कोंग्रेसने कहा कि यह तो बाबरी मस्जिद ध्वंशके कारण हुआ. लेकिन वह और समाचार माध्यम इस बात पर मौन रहे कि कश्मिरी हिन्दुओंको क्युं मार दिया गया और उनको क्युं अपने घरसे और राज्यसे खदेडा गया? वास्तवमें बाबरी ध्वंश तो एक बहाना था. आतंकवादी हमले तो लगातार चालु ही रहे थे.

खुदके स्वार्थके लिये देशकी सुरक्षाका बलिदान और आतंकीयोंसे सहयोग.

कश्मिरके मंत्रीकी लडकी महेबुबाका अपहरण आतंकवादीयोंने किया था. यह एक बडी सुरक्षाकी विफलता थी जिसमें राज्यकी सरकार और केन्द्रकी नहेरुवीयन कोंग्रेसी सरकार भी उत्तरदायी थी. इस लडकीके पिता जो शासक पक्ष के भी थे और मंत्री भी थे. उनको चाहिये था कि वे अपनी लडकीका बलिदान दे. लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया और उन्होने पांच बडे आतंकवादी नेताओंको मुक्त किया. उनको पकडनेकी कोई योजना भी बनाई नहीं. यह एक बडा गुन्हा था. क्योंकि खुदके स्वार्थके लिये उन्होने देशकी सुरक्षाके साथ समझौता किया. बीजेपीकी सरकारने जो आतंकीयोंकी मुक्ति की थी वे आतंकी तो अन्य देशके और उनको मुक्त भी दुश्मन देशमें किया था, और अपहृत विमानयात्रीयोंको छूडानेके लिये किया था. उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं था.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षने जो मुक्ति की थी वह तो अपने ही देशमें की थी. मुक्ति देनेसे पहेले नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षकी सरकार आतंकीयोंके शरीरमें विजाणु उपकरण डालके उसका स्थान निश्चित करके सभी आतंकवादीयोंको पकड सकती थी.

कोंगी और उसके साथी पक्षने की हुई आतंकीयोंकी मुक्ति तो बीजेपी की विफलतासे हजारगुना विफल थी उतना ही नहीं लेकिन आतंकीयोंसे मिली जुली सिद्ध होती है.
इन सभी बातोंको उजारगर करनेमें समाचार माध्यमके पंडित या तो कमअक्ल सिद्ध होते है या तो ठग सिद्ध होते है. समाचार माध्यम का प्रतिभाव दंभी और बिकाउ इस लिये लगता है कि उन्होने बीजेपीके नेताओंके बयानोंको ज्यादा प्रसिद्धि नहीं दी.

भारतीय संसद – कार्गील पर हमला और बीजेपी

कश्मिर – हिमालय पर हमला और नहेरुवीयन कोंग्रेस

बाजपाई सरकारको सुरक्षा और सतर्कता विभाग जो मिला था वह नहेरुवीयन कोंग्रेस की देन थी. बीजेपी सरकार इस मामलेमें बिलकुल नयी थी. बीजेपीकी इमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता था.

कार्गील बर्फीला प्रदेश है. वहां पर जो बंकर है उनको शर्दीके समयमें हमेशा खाली किया जाता था. दोनों देशों की यह एक स्थापित प्रणाली थी. भारतीय सुरक्षा दलोंने १९९९में भी ऐसा किया. पाक सैन्यने पहेले आके भारतीय बंकरोंके उपर कब्जा कर लिया. बाजपायी सरकारने युद्ध करके वह कब्जा वापस लिया.

अब देखो नहेरुवीयन कोंग्रेसने अबतक क्या किया था?

१९४८में भारतीय सैन्यने पूरे कश्मिर पर कब्जा किया था, नहेरुवीयन कोंग्रेसने १/३ कश्मिर, पाकिस्तानको वापस किया.

१९६२ चिनके साथके युद्धमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने, भारतका ७१००० चोरसमिल प्रदेश गंवाया. संसदके सामने उस प्रदेशको वापस लेनेकी कसम खानेके बावजुद भी आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेसने उस प्रदेशको वापस लेनेका सोचा तक नहीं है.

१९६५ नहेरुवीयन कोंग्रेसने छाडबेट (कच्छ) का प्रदेश पाकिस्तानको दे दिया. १९७१में पाकिस्तानके साथके युद्धमें हमारे सैन्यने पाकिस्तानके कबजे वाले कश्मिरका जो हिस्सा जिता था और उसके उपर भारतके संविधानके हिसाबसे भारतका हक्क था, वह हिस्सा, इन्दिरा गांधीने सिमला समझौते अंतर्गत पाकिस्तानको वापस दे दिया.

बंग्लादेशी घुसपैठोंने उत्तरपूर्व भारतमें कई भूमिखंडोपर कब्जा कर लिया है.
आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने शासनकालमें खोये हुए भूमिखंडोंको वापस लानेमें सर्वथा विफल रही है. वह सोचती भी नहीं है कि इनको वापस कैसे लें.
बीजेपी ही एक ऐसा शासक रही कि उसने अपने शासनकालमें जो भूमिखंड गंवाये वे वापस भी लिये.

संसदको उडानेका आतंकी हमला बीजेपी की सरकारने विफल बनाया.
इस फर्कको समझनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस तो समझनेको तयार न ही होगी, वह उसके संस्कारसे अनुरुप है, लेकिन समाचार माध्यम क्यों विफल रहा या तो बुद्धु साबित हुआ है? तो ऐसे समाचार माध्यमोंसे हम जनता प्रशिक्षणकरणकी अपेक्षा कैसे रख सकते है?

आज भी कई अखबारी मूर्धन्य है जो तटस्थताकी आडमें आम जनताको असमंजसमें डालते है. ऐसे वातावरणमें जनता निस्क्रीय बन जाती है.

२०१४के चूनावमें नहेरुवीयन कोंग्रेस का रवैया कैसा रहेगा?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

देशको बचाओ
टेग्झः भूमिगत संचरना, विकास, बेकारी, बिजली, पानी, मार्ग, जातिवाद, विभाजन, समाचार माध्यम, विश्लेषक, प्रमाणभान, प्रशिक्षण, कंदहार, आतंकी, आतंकवाद, बीजेपी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, हिरो-हिरोईन, असफल, विफल, असमंजस, जनता, कश्मिर, कश्मिरी हिन्दु, हिमालय, भूमिखंड, चिन, हमला, कत्ल, खदेड, महेबुबा, कंदहार, विमान, अपहरण, मुक्ति

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-४
(इसको अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-३ के अनुसंधानमें पढें)

आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध

इन्दिरा गांधीने करवाया आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध हो गया.
निजी सीयासतीय स्वार्थके लिये असामाजिक तत्वोंको बढावा देनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस और खासकरके इन्दिरा गांधीका अति विशेष योगदान रहा. १९६९में जब कोंग्रेसका विभाजन हुआ तो इन्दिरा गांधीने घोषित किया कि सबके लिये उसकी कोंग्रेसके द्वार खूले है. विनोबा भावेने इन्दिराकी इस घोषणाकी मजाक उडाके कहा था कि अगर संख्या ही बनानी है तो बंदरोंको भी कोंग्रेसमें सामेल करो.

मूर्धन्योंका बौद्धिक प्रमादः
१९८०के चूनावमें समाचार माध्यमोंकी इन्दिरा परस्त नीति और सुज्ञ मूर्धन्योंके बौद्धिक प्रमादके कारण इन्दिरा कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. इस बहुमतसे अगर इन्दिरा गांधी चाहती तो देशमें चूनाव और सरकारी कामकाजमें भ्रष्टाचारको रोकने लिये बंधारणीय सुधार बहुत आसानीसे कर सकती थीं. वैसे तो ऐसा मोका तो नहेरुके पास भी था. किन्तु इन दोंनोंने ऐसा नहीं किया, और उसके बदले अपनेको और अपने पक्षको मजबुत करनेके ही कदम उठाये.

खुदके पक्षकी राजकीय सत्ता बढानेके लिये, भींदरानवालेको बढावा देना एक कदम था. असमको तोडके उसके ६ छोटेछोटे राज्य बनाना भी एक दूसरा कदम था. इसके कारण अलगाववादी शक्तियोंको बढावा मिला. सीमापारसे भी इन अलगाववादी शक्तियोंको मदद मिलने लगी. खालिस्तानके आतंकवादको, पाकिस्तानसे बौद्धिक, अस्त्र-शस्त्र और प्रशिक्षण मिलता था. इससे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन जो अमेरिकाके इशारे पर अफघानिस्तानमें व्यस्त थे, उनको खालिस्तानके आतंकवादके आधार पर भारतमें भी अपना नेटवर्क स्थापित करनेमें आसान रहा. १९७३का सिमला करार एक व्यर्थ और व्यंढ करार सिद्ध हो गया था. इन्दिरा गांधीने या तो भूट्टोसे सिमलामें अंडरटेबल डील किया था या तो इन्दिरा गांधी महामूर्ख और अज्ञानी थी.

रानीके मरने पर शाहजादेका राज्याभिषेकः
१९८४ में अराजकता स्पष्ट रुपसे दिखाई देने लगी थी. पंजाबका जिवन अस्तव्यस्त हो गया था. इन्दिराका खून हो गया. उसके बाद भी खालिस्तानी आतंकवाद बढ गया. इन्दिरा गांधीने झैल सींग को राष्ट्रप्रमुख बनाया था. झैल सिंह, इन्दिरा गांधी चाहे तो झाडू लगानेको भी तैयार था. तो इन्दिराकी मौतके बाद बिना मंत्रीमंडल या लोकसभासे प्रस्ताव पास किये इन्दिराके पूत्रका प्रधान मंत्रिपदका शपथ करवाना क्या चीज है? इसलिये तो नहेरुवीयन संतानको शाहजादे कहे जाते है.
चूनाव जितनेके लिये एक कार्यपद्धति नहेरुवीयन कोंग्रेसमें एक स्वभावगत हो गई थी. वह थी
१ ज्यादातर जनताको गरीब ही रक्खो,
२ जितना हो सके उतने बुद्धिजिवीयोंको खरीद लो,
३ जो भ्रष्ट है उनको अपने साथ मिला दो और उनको भ्रष्टाचार करने दो और जब जरुर पडे तो उनको उनके भ्रष्टाचार पर ब्लेकमेल करके काबुमें रक्खो,
४ न्यायिक प्रक्रियाओंको विलंबित करो ताकि जिन साथीयोंको बचाना है उनको बचा शको,
५ जब निस्फलताएं उजागर हो जाये तब चर्चाको ऐसे मोडपर ले जाओ कि सामान्य जन द्विधामें या असमंजतामें पड जाय और नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकी कमियां और दुराचार अधिकतर मात्रामें अप्रभावकारक हो जाय,
६ अन्य पक्षोंके तथाकथित कमीयांको बारबार प्रसिद्ध करो और चर्चा उसीकी दिशामें चलाओ कि जनता प्रामाणिकतासे निर्णय ही कर न पाये और उस कारणसे वह ऐसा सोचने लगे कि “सभी पक्ष भ्रष्ट और एक समान ही है”
७ जनता को धर्म, जाति, ज्ञाति और भाषाके आधार पर विभाजित करो और जहां जाओ वहांकी प्रभावशाली जातिके पक्षमें बोलो.

१९८९का चूनावः

राजिव गांधीने एक और नारा दिया कि देशको २१वीं सदीमें ले जाना है. भारतकी देहातोंकी जनता १८ वीं सदीमें जीती थी. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने ही प्रगति रोकके रक्खी थी.
नहेरुवीयन कोंग्रेसने राजिव गांधीके नया नाराके आधार पर और इन्दिरा गांधीके मृतदेहको बार बार दूरदर्शन पर दिखाकर और इन्दिरा गांधीकी तथा कथित शहादतके आधार पर १९८४का चूनाव जित लिया था.
लेकिन राजिवगांधीकी वहीवटी निस्फलताके कारण और दिर्घ दृष्टिके अभावके कारण खालिस्तानी आतंकवाद बलवत्तर हो गया था. कश्मिरमें सीमा पारका आतंकवाद भी जोर पकडने लगा था. राजिव गांधी बोफोर्स रिश्वत केसमें फंस गये थे. इन कारणोंसे लोकसभाका जनादेश खंडित मिला.
वीपी सिंघने एक मिलीजुली सरकार बनायी. वीपी सिंघ काबिल थे लेकिन चंद्रशेखरको भी प्रधानमंत्री बनना था. एक फायदा यह हुआ कि दोनोंने मिलकर खालिस्तानी आतंकवाद खतम किया. लेकिन पाकिस्तानने काश्मिरमें आतंकवाद पैदा कर दिया था. पूर्वोत्तर राज्योंमें भी हर जगह अलगतावाद बढ गया था.
एक और चूनाव आ पडा क्योंकि फिर एक बार गैर कोंगी मिली जुली सरकार टीक नहीं पायी.

ATAL AND NARSINHA RAO
१९९१में फिरसे संसदका चूनाव हुआ. जनादेश खंडित था. लेकिन कोंग्रेसका चहेरा बदला हुआ था. नरसिंह राव नहेरुवीयन वंशके नहीं थे न तो वे नहेरुवीयनोंकी पद्धतियोंसे उनका तालमेल था. उन्होने देखा कि नहेरुवियनोनें विकास को रोकके रक्खा था. इसलिये उन्होने उदारीकरण और निजीकरणकी नीतियां अपनाई.
इन्दिरा गांधीकी नीतियां इससे बिलकुल उलटी थी. गरीबोंको और आम जनताको आसानीसे ऋण मिले इस कारण इन्दिराने बडी बेंकोका राष्ट्रीय करण किया था. जिसके कारण निम्न स्तरमें खास करके कोंग्रेसमें निम्नस्तरतक भ्रष्टाचार फैल गया था.
नरसिंह रावने बिना राष्ट्रीय करण किये, निजी बेंकोको बढावा दिया. निजी बेंकोने अपना धंधा बढा दिया. वैसे भी सरकारी बेंको के वहीवटसे जनता संतुष्ट नहीं थी. अब उनको निजी बेंकोसे स्पर्धा करनेका समय आ गया था. नरसिंह रावके सलाहकार सुब्रह्मनीयन स्वामी थे. आर्थिक मामलोंमे जो सुधार हुए वे सुब्रह्मनीअन स्वामीके सुझावोंके कारण था. लेकिन चूंकि मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे इस लिये उनको सुज्ञलोगोंमें व्यापक मानपान मिला.
चूंकि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी निम्न स्तरीय नेतागीरीका सरकारी तौरपर छूटपुट ऋणमें खुदका लागा खतम हो गया था, वे लोग नरसिंह रावको हटाना चाहते थे. नरसिंहराव नहेरुवीयनोंकी बातोंको ज्यादा महत्व देते नहीं थे. इस लिये नहेरुवीयन के प्रति बंधवाजुथ कमजोर हो रहा था. चूं कि नहेरुवीयनोंके पास पक्षकी जमा राशी रहती थी उन्होनें एक एक करके अवांच्छिंत नेताओंको दूर किया. नरसिंहराव को लालुभाई पाठकके केसमें बदनाम कर दिया. सिताराम केसरीको भौतिक रुपसे उठाके फैंक दिया. सोनिया गांधीको पक्ष प्रमुख बना दिया. लेकिन इन सब हल्लागुलामें कोंगी बहुत बदनाम हो गई.

१९९६ का चूनावः

कोंग बदनाम हो गई थी लेकिन उसका संगठन ध्वस्त नहीं हुआ था. जनता दल का एलायन्स एक बडे दलके रुपमें उभरा. बीजेपी मजबुत हुआ था लेकिन बीजेपी को कोमवादी पक्ष कहेनेका सीलसिला चालु था. कई प्रधान मंत्री बने. और सरकारें तोडी गई.

१९९८ का चूनावः

फिरसे खंडित जनमत वाली संसद बनी. बीजेपी की सरकार बनी और सब अन्य पक्षोंने मिलकर उसको तोड दिया.

१९९९ का चूनावः

बीजेपीके जुथको बहुमत मिला और एक अच्छी सरकार बनी जिसने कई सारे विकासके काम किये.

राष्ट्रीय मार्ग आंतर्राष्ट्रीय कक्षाके बने. हिमालयमें जलश्रोतोंसे विद्युत पावर हाउस बने. उसकी और कई योजनायें बनी. गुजरातमें पवन उर्जाकी कई वीन्ड-मीलें बनी, बंदरोंका विकास किया गया. बीजेपी के नेतागण अत्यधिक आत्मविश्वासमें रहे.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने और अन्य पक्षोंने एक शिख लेली की अगर चूनावमें बैठकोंके बारेमें समाझौता नहीं करेंगे और बीजेपीको कोमवादका नारा लगाके खतम करनेकी व्यूह रचना नहीं अपनायेंगे तो हम खतम हो जायेंगे.

कोंगीने और उसके अन्य साथी पक्षोंने इस व्युहरचनाको अपनायाः

मुस्लिमोंको बीजेपीसे भडकाओ.

बीजेपीके हरेक कदमको कोमवादका नाम दो.

बीजेपी अगर राम मंदिरकी बात न करे तो आप इसके उपर बीजेपीको प्रश्न करो कि वह क्यों राममंदिर को भूल गई? क्या उसके लिये यह एक चूनावी मुद्दा ही था? अगर वह राम मंदिरके बारेमें कुछ बोले, तो कहो कि बीजेपी कोमवादी है.

अगर बीजेपी हिन्दुत्वकी या सांस्कृतिक विरासतकी कोई भी बात करें तो कहो कि, वह देशमें भगवाकरण करता है.

बीजेपीके तथा कथिक भ्रष्टाचारको शतशत बार दोहराओ.

देहातोंमें जाके उनको महेसुस कराओ कि विकास तो सिर्फ शहेरोंका हुआ है और वह भी आपकी कमाईसे हुआ है. आपके हित को तो नजर अंदाज ही किया है.

बीजेपी की चूनावी टिकटोंके बारेमें ज्ञातिवादी और धार्मिक भेदभावकी अफवाहें फैलावो.

जातिवादी आंदोलनोंको बढावा दो.

कोमी दंगे करवाओ और मुस्लिमोंको महेसुस करवाओ कि वे बीजेपीके राजमें सुरक्षित नहीं है.

बीजेपी शासित राज्योंमे हुए दंगोंको हजार बार दोहराओ और कोंगके शासनके दंगोंके बारेमें वितंडावाद फैलाओ.

२००४ का चूनाव कोंग्रेसने कैसे जिता?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः खालिस्तान, पाकिस्तान, सीमापार, आतंकवाद, प्रशिक्षण, नेटवर्क, निजी, सत्ता, नरसिंह राव, सुब्रह्मनीयन, मनमोहन, आर्थिक सुधार, विकास, बौद्धिक प्रमाद, अंडरटेबल डील, सिमला करार, व्यंढ

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्तिक्योंजो जिता वह सिकंदर-2

के अनुसंधानमें इसको पढें

नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लियेनहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.

नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थीवह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लियानहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थेउन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लियाउनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थीलेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था  तो समाधान कारी टीका कर सकता था.

नहेरुकी तरह  ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.

मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थेइस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई

ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थीचूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचकेदेनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहो.  जनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहोसमाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.

जर्क देने वाली प्रवृत्तिः

पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः

१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः

आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार:

ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?

ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थेमुझे गरीबी हटानी हैइसलिये मेरा नारा है “गरीबी हटाओ”.

समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दीक्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करेंवे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.

राष्ट्र प्रमुख का चूनाव  पडा थासींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुखपक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थेईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थींउन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दियावह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.

इन्दिराका फतवा

ईन्दीरा गांधीने “आत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया किराष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहियेआत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देनाराजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव हैविपक्ष बिखरा हुआ थाजो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनायाकोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते हैउनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहितजरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.

ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने  संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाईयह बात गैर कानुनी थीफिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गयाकोई रोक टोक हुई नहीं.

राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान हैउस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गयेइस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुएईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवायाइसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त कीकथा तो बहुत लंबी हैअसली कोंग्रेस कौनक्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थीजो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.

ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगाक्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थेमूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एनसे उल्लेखित किया गयादुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस  (ओर्गेनीझेशन).

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थेउनको परास्त करना जरुरी थाबदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय थालेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल थामोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.

जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः

१९६९७०का चूनाव

जनताको कैसे विभाजित करें?

गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं थालेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था किनहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०६५के उपरके हो गये थेनहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थेइसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ किअब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास  गया हैअब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.

युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग थाराजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें  गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते हैसाधानशुद्धिप्रमाणभानप्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.

नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थेजो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गयेइन नामोंमे जगजिवनरामयशवंतराव चवाणललित मिश्राबहुगुणावीपी सिंग आदि कई सारे थे.

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थेउनको परास्त करना जरुरी थाबदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय थालेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल थामोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा

गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया थालेकिन वह पर्याप्त नहीं था१९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय हैयह एक लंबी कहानी हैपरिणाम यह हुआ किमोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गयाऔर १९६९७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिलागुजरातमें भी उसको २४मेंसे  बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थींयह हो सकता है किमुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था१९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थेबीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थेबीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्षसंयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थेलेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता.

जितके कारण और विधानसभा चूनाव

१९७१में पाक– युद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिलीउसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया१९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजायअन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिलागुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.

मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दियानवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती हैइसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.

चूनाव प्रपंच और गुड  गवर्नन्स अलग अलग है     

इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थींलेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थींविदेश नीति रुस परस्त थीसिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया थाइन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थीं.  महंगाई और करप्शन बहुत बढ गयेइन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थींइसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गयासमाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थींगुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्रनहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गयेसर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.

इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा थागुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा थाईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता हैगुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थीऔर नया चूनाव भी देना पडा थाउसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीयआदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थीगुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा थाविपक्ष एक हो रहा थाइन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.

सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा कीऔर विरोधियोंको जेल भेज दियासमाचार के उपर सेन्सरशीप लागु कीसभासरघस पर प्रतिबंध लागु कर दियेक्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा किसमाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा हैआपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा थाक्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं थागवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता हैयह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम हैयह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं हैसियासतमें लचिलापन चल सकता हैगवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं हैइन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थींजो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकतेइन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते हैऔर सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको  ही मतदान करेगीआपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा थाइन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास कियालेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार कियाइतना ही नहीं यह भी पता चला किभारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज  सके.

१९८०का चूनाव

इन्दीरा गांधीने १९६९  से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.

गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२७३में इन्दिरा की ईच्छा  होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थीकि इन्दीरा गांधीने तेल-मीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया थाउत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश थाअंकूश पैसेसे बिकते थेयुनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था१९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे१९७९८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थीआपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है किजमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थेआज जो राजकारणमें पैसेकीशराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती हैउसके बीज नहींलेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.

१९७७ में जब आखीरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं हैतो उसने उम्मिदवारोंको उनके भरोसे छोड दिये थेनहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी.

१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आयेचरण सिंह जिन्होने खुदको महात्मा गांधी वादी मनवाया थावे इन्दिरासे बिक गयेमोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिरायानये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगेसमाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा कीईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.

१९८०१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआपंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा कियाइन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थींइन्दीरा गांधीने जैसी उसने बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें अनिर्णायकता और कमजोरी रक्खीवैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें कियाईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातरा शस्त्रोके साथ घुसने दिये और आश्रय लेने दियादुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को  पकड सकेभारतमें भी अगर कोई चोर धर्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकतीऐसा कोई कानुन नहीं हैलेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लियेएक कानुन पास किया किअगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती हैजब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गयालेकिन बहुत देर हो चूकी थीकई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे.

(क्रमशः)

शिरीषमोहनलालदवे

टेग्झः  नहेरुवीयन, चूनावी, प्रपंच, रणनीति, सत्ता, गरीबीहटाओ, समाचारमाध्यम, इन्दिरा, आत्माकीआवज, मोरारजीदेसाई, कोमीदंगा, भ्रष्टाचार, आंदोलन, आपातकाल, चरणसिंग, स्वर्णमंदिर, आतंकवाद, सीमापार

 

 

 

         

 

 

   

 

          

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर

(नहेरुवीयन कोंग रहस्य)

के अनुसंधानमें इसको पढें

नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लिये, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.

नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थी, वह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लिया. नहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थे. उन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लिया. उनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थी. लेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था तो समाधान कारी टीका कर सकता था.

नहेरुकी तरह  ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.

मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थे. इस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई

ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थी. चूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचके) देनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहोजनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहो. समाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.

जर्क देने वाली प्रवृत्तिः

पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः

१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः

आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार

ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?

ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थे. मुझे गरीबी हटानी है. इसलिये मेरा नारा हैगरीबी हटाओ”.

समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दी. क्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करें, वे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.

राष्ट्र प्रमुख का चूनाव पडा था. सींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुख. पक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थे. ईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थीं. उन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दिया. वह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.

ईन्दीरा गांधीनेआत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया कि, राष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहिये. आत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देना. राजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव है. विपक्ष बिखरा हुआ था. जो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनाया. कोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते है, उनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहित, जरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.

ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने  संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाई. यह बात गैर कानुनी थी. फिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गया. कोई रोक टोक हुई नहीं.

राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान है. उस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गये. इस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुए. ईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवाया. इसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त की. कथा तो बहुत लंबी है. असली कोंग्रेस कौन? क्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थी. जो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.

ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगा. क्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थे. मूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एन) से उल्लेखित किया गया. दुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस (ओर्गेनीझेशन).   

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.

जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः

१९६९-७०का चूनाव

जनताको कैसे विभाजित करें?

गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं था. लेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था कि, नहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०-६५के उपरके हो गये थे) नहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थे. इसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ कि, अब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास आ गया है. अब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.

युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग था, राजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें आ गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते है. साधानशुद्धि, प्रमाणभान, प्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.

नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थे. जो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गये. इन नामोंमे जगजिवनराम, यशवंतराव चवाण, ललित मिश्रा, बहुगुणा, वीपी सिंग आदि कई सारे थे.

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा

गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया था. लेकिन वह पर्याप्त नहीं था. १९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय है. यह एक लंबी कहानी है. परिणाम यह हुआ कि, मोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गया. और १९६९७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें भी उसको २४मेंसे बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थीं. यह हो सकता है कि, मुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था. १९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्ष, संयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थे. लेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता

जितके कारण और विधानसभा चूनाव

१९७१में पाकयुद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिली. उसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया. १९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजाय, अन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.

मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दिया. नवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती है, इसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.

चूनाव प्रपंच और गुड  गवर्नन्स अलग अलग है     

इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थीं, लेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थीं. विदेश नीति रुस परस्त थी. सिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया था. इन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थींमहंगाई और करप्शन बहुत बढ गये. इन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थीं, इसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गया. समाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थीं. गुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्र, नहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गये. सर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.

इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा था. गुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा था. ईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है. गुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थी. और नया चूनाव भी देना पडा था. उसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीय, आदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थी. गुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा था. विपक्ष एक हो रहा था. इन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.

सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा की, और विरोधियोंको जेल भेज दिया. समाचार के उपर सेन्सरशीप लागु की. सभा, सरघस पर प्रतिबंध लागु कर दिया. क्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा कि, समाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा है. आपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा था, क्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं था. गवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता है. यह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम है. यह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं है.

सियासतमें लचिलापन चल सकता है. गवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं है. इन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थीं. जो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकते. इन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते है, और सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको  ही मतदान करेगी. आपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा था. इन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास किया. लेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार किया. इतना ही नहीं यह भी पता चला कि, भारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज सके.

१९८०का चूनाव

इन्दीरा गांधीने १९६९  से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.

गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२७३में इन्दिरा की ईच्छा होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थी, कि इन्दीरा गांधीने तेलमीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया था. उत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश था. अंकूश पैसेसे बिकते थे. युनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था. १९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे. १९७९८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थी. आपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है कि, जमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थे. आज जो राजकारणमें पैसेकी, शराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती है, उसके बीज नहीं, लेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.

१९७७ में जब खिरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं है, तो उसने उम्मिदवारोंको राम भरोसे छोड दिया. नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी कि इन्दीराने पैसे भेजना बंद कर दिया था.

१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आये. चरण सिंह, जिन्होने खुदको महात्मा गांधीवादी मनवाया था, वे इन्दीराको बिक गये. मोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिराया. नये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगे. समाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा की. ईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.

आतंकवादका जन्म और उसका सीमापार संबंध

१९८०१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआ. पंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा किया. इन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थीं. इन्दीरा गांधीने जैसी अनिर्णायकता बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें रखी थी वैसी अनिर्णायकता और कमजोरी इसने आतंकवादके उपर कदम उठानेमें रक्खी, वैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें किया. ईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातार शस्त्रोके साथ घुसने दिया और आश्रय लेने दिया.

दुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को पकड सके. भारतमें भी अगर कोई गुनाहगार धार्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकती, ऐसा कोई कानुन नहीं है. लेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लिये, एक कानुन पास किया कि, अगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती है. जब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गया. लेकिन बहुत देर हो चूकी थी. कई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे. आतंकवादीयोंका होसला बढ गया था. पाकिस्तानने इन खालीस्तानी आतंकवादीयोंकी मददसे भारतमें इस्लामिक आतंकवादका संगठन का बीज बो दिया. और पाकिस्तानको यह इस्लामिक नेटवर्क द्वारा भारतमें आतंकवाद फैलानेमें बहुत मदद मीली. सिमला करार नपुंसक सिद्ध हो गया.

क्रमशः

शिरीष मोहनलाल दवे

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