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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

नज़ारा ए शाहीन बाग

कोंगी लोग सोच रहे है कि अब हम मर सकते है. अब हमे अंतीम निर्णय लेना पडेगा. इसके सिवा हमारा उद्धार नहीं है. यदि हम ऐसे ही समय व्यतीत करते रहे … नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को गालियां देतें रहें तो ये सब प्रर्याप्त नहीं है.

यह तो हमने देख ही लिया कि, जो न्यायिक प्रक्रिया चल रही है उसमें हमारी लगातार हार हो रही है.  हमारे लिये कारावासके अतिरिक्त कोई स्थान नहीं. यदि हम सब नेतागण कारावासमें गये तो कोई हमारा ऐसा नेता नहीं बचा है जो हमारे पक्षको जीवित रख सकें और हमे कारावाससे बाहर निकाल सके. हमने पीछले ७० सालमें जो सेक्युलर, जनतंत्र और भारतीय इतिहास को तो छोडो, किन्तु जो नहेरु और नहेरुवीयनोंके विषयमें जूठ सिखाया है और पढाया है, उसका पर्दा फास हो सकता है.

अब हमारे पास तीन रास्ते है.

नवजोत सिध्धु, मणीशंकर अय्यर और शशि थरुर जैसे लोग यदि भारत में काममें न आये तो वे पाकिस्तानमें तो काममें आ ही सकते है. हमारे मुस्लिम लोगोंके कई रीस्तेदार पाकिस्तानमें है. इस लिये पाकिस्तानके उन रीस्तेदारों द्वारा हम भारतके मुस्लिमोंको उकसा सकते है. बोलीवुडके कई नामी लोग हमारे पक्षमें है और वे तो दाउदके पे रोल पर है. इस लिये ये लोग भी बीजेपीके विरुद्धमें वातावरण बनानेमें काममें आ सकते है. इस परिबल को हमें उपयोगमें लाना पडेगा. अभी तक तो हमने इनका छूटपूट उपयोग किया है लेकिन यह छूटपूट उपयोगसे कुछ होने वाला नहीं हैं.    

(१) मुस्लिम जनतासे हमें कुछ बडे काम करवाना है.

(२) जिन समाचार माध्यमोंने हमारा लुण खाया है उनसे हमे किमत वसुल करना है. यह काम इतना कठिन नहीं है क्यों कि हमारे पास उनकी ब्लेक बुक है. हमने इनको हवाई जहाजमें बहूत घुमाया है … विदेशोंकी सफरोंमे शोपींग करवाया है, फाईवस्टार होटलोंमें आरामसे मजा करवाया है, जो खाना है वो खाओ, जो पीना है वह पीओ, जहां घुमना हैं वहा घुमो … इनकी कल्पनामें न आवे ऐसा मजा हमने उनको करवाया है और इसी कारण वे भी तो नरेन्द्र मोदी से नाराज है तो वैसे भी हम उनका लाभ ले सकते है. और हम देख भी रहे है कि वे बीजेपीकी छोटी छोटी माईक्रोस्कोपिक तथा कथित गलतीयोंको हवा दे रहे है जैसे की पीएम और एच एम विरोधाभाषी कथन बोल रहे है, अर्थतंत्र रसाताल गया है, अभूत पूर्व बेकारी उत्पन्न हो गयी है, जीडीपी खाईमें गीर गया है, किसान आत्म हत्या कर रहा है, देश रेपीस्तान बन गया है …. और न जाने क्या क्या …?

(३) क्या मूर्धन्य लोगोंको हम असंजसमें डाल सकते हैं? जी हाँ. यदि मुसलमान लोग अपना जोर दिखाएंगे और हला गुल्ला करेंगे तो ये लोग अवश्य इस निष्कर्स पर पहोंचेंगे कि यह सब अभी ही क्यों हो रहा है …? पहेले तो ऐसा नहीं होता था …!! कुछ तो गडबड है …!! गुजरातीमें एक कहावत है “हलकुं लोहीं हवालदारनुं” मतलब की हवालदार ही जीम्मेवार है.

शशि थरुर और राजदीप सरदेसाई के वाणी विलासको तो हम समज़ सकते है कि उनका तो एक एजन्डा है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपीके बारेमें अफवाहें फैलाओ और एक ॠणात्मक हवा उत्पन्न करो तो जनता बीजेपीको हटाएगी. इन लोगोंसे जनता तटस्थता की अपेक्षा नहीं रखती.

अब देखो हमारे मूर्धन्य कटारीया लोग [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला यानी कोलमीस्ट)] क्या लिखते है?

प्रीतीश नंदीः

“घर छोडके विकास तो भाग गया है” “बीजेपी द्वारा हररोज मुश्केलियां उत्पन्न की जाती है”, यह मुश्केलियां हिंसक भी होती है”, “आखिरमें हमने इस सरकारको वोट क्यों दिया?” “हर महत्त्वकी बातको सरकार भूला देती है” “पागलपन, बेवकुफी भरी उत्तेजना सरकार फैला रही है”, “बीजेपीने चूनावमें बडे बडे वचन दिये थे”, “बीजेपीने चूनावमें युपीएके सामने कुछ सही और कुछ काल्पनिक कौभाण्ड  उजागर करके  सत्ता हांसिल की थी,” “प्रजाकी हालत “हिरन जैसी थी” … “नरेन्द्र मोदीके आक्रमक प्रचारमें जनता फंस गई थी”, “नरेन्द्र मोदीने इस फंसी हुई जनताका पूरा फायदा उठाया” और “मनमोहन जैसे सन्मानित और विद्वान व्यक्तिको  ऐसा दिखाय मानो वे दुष्ट और भ्रष्टाचारी …” “ कारोबारीयोंका संचालन कर रहे हो” “छात्रोंके नारोंकी ताकतको कम महत्त्व नहीं देना चाहिए.”

इस प्रीतीश नंदीकी अक्लका देवालीयापन देखो. वे पाकिस्तानके झीया उल हक्कके कालका एक कवि जो झीयाके विरुद्ध था, उसकी एक कविताका  उदाहरण देते है “हम देखेंगे …”. इसका नरेन्द्र मोदीके शासनके कोई संबंध नहीं. फिर भी यह कटारीया [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला कोलमीस्ट)] उसको उद्धृत करते है और मोदीको भय दिखाता है कि इस कविकी इस कवितासे लाखो लोग खडे हो जाते है.

यह कटारीयाजी इस काव्यका विवरण करते है. और कहेते है कि हे नरेन्द्र मोदी तुम्हारे सामने भी लाखो लोग खडे हो जायेंगे. फिर यह कटारीयाजी ढाकाके युवानोंका उदाहरण देते है. उनका भी लंबा चौडा विवरण देते है.

क्या बेतुकी बात करते है ये कटारीया नंदी. नंदी कटारीया का अंगुली निर्देश जे.एन.यु. के युवाओंके प्रति है. नंदी कटारीया, जे.एन.यु. के किनसूत्रोंको महत्त्व देना चाहते है? क्या ये सूत्र जो अर्बन नक्षल टूकडे टूकडे गेंग वाले थे?  क्या जे.एन.यु. अर्बन नक्षल वाले ही युवा है? बाकिके क्या युवा नहीं है? अरे भाई अर्बन नक्षल वाले तो ५% ही है. और वे भी युवा है या नहीं यह संशोधनका विषय है. ये कौनसी चक्कीका आटा खाते है कि उनको चालीस साल तक डॉक्टरेट की डीग्री नहीं मिल पाती? जरा इसका भी तो जीक्र करो, कटारीयाजी!!! 

नंदी कटारीयाजीका पूरा लेख ऐसे ही लुज़ टोकींगसे भरा हुआ है. तर्ककी बात तो अलग ही रही, लेकिन इनके लेखमें किसी भी प्रकारका मटीरीयल भी आपको मिलेगा नहीं.

यदि सही ढंगसे सोचा जाय तो प्रीतीश नंदीके इस लेखमें केवल और केवल वाणी विलास है. अंग्रेजीमें इनको “लुज़ टोकींग”कहा जाता है. कोंगी नेतागण लुज़ टॉकींग करे, इस बातको तो हम समज़ सकते है क्यों कि उनकी तो यह वंशीय आदत है.

शेखर गुप्ता (कटारीया)

शेखर गुप्ता क्या लिखते है?

मोदीने किसी प्रदर्शनकारीयोंके जुथको देखके ऐसा कहा कि “उनके पहेनावासे ही पता लग जाता है कि वे कौन है?”

यदि कोई मूँह ढकके सूत्र बाजी या तो पत्थर बाजी करता है तो;

एक निष्कर्ष तो यह है कि वह अपनी पहेचान छीपाना चाहता है, इससे यह भी फलित होता है कि वह व्यक्ति जो कर रहा है वह काम अच्छा नहीं है किन्तु बूरा काम कर रहा है.

दुसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि वह अपराधवाला काम कर रहा है. अपराध करनेवालेको सज़ा मिल सकती है. वह व्यक्ति सज़ासे बचनेके लिये मूँह छीपाता है.

तीसरा निष्कर्ष में पहनावा है.  पहनावेमें तो पायजामा और कूर्ता आम तौर पर होता ही है. यह तो आम जनता या कोई भी अपनेको आम दिखानेके लिये पहेनेगा ही.

लेकिन हमारे शे.गु.ने यह निष्कर्ष  निकाला की नरेन्द्र मोदीने मुस्लिमोंके प्रति अंगूली निर्देश किया है. इस लिये मोदी कोम वादी है और मोदी कोमवादको बढावा देता है. शे.गु. कटारीयाका ऐसा संदेश जाता है.

शे.गु.जी ऐसा तारतम्य निकालनेके लिये, अरुंधती रोय और माओवादी जुथके बीचके डीलका उदाहरण देते है. गांधीवाद और माओवाद का समन्वय किस खूबीसे अरुंधती रोय ने किया है कि शे.गु.जी आफ्रिन हो गये. शे.गु.जी कहेते है कि, क्यूं कि प्रदर्शनकारी पवित्र मस्जिदमेंसे आ रहे है, क्यूँ कि उनके हाथमें त्रीरंगा है, क्यूँ कि वे राष्ट्रगान गा रहे है, क्यूँ कि उनके पास महात्मा गांधीकी फोटो है, क्यूं कि उनके पास आंबेडकर की फोटो है … आदि आदि .. शे.गु. जी यह संदेश भी देना चाहते है कि ये बीजेपी सरकार लोग चाहे कितनी ही बहुमतिसे निर्वाचित सरकार क्यूँ न हो इन (मुस्लिमों)के प्रदर्शनकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये.

वास्तवमें शे.गु.जीको धैर्य रखना चाहिये. रा.गा.की तरह, बिना धैर्य रक्खे, शिघ्र ही कुछ भी बोल देना, या तो बालीशता है या तो पूर्वनियोजित एजन्डा है. तीसरा कोई विकल्प शे.गु. कटारीयाके लिये हो ही नहीं सकता.

शे.गु.जी ने आगे चलकर भी वाणी विलास ही किया है.

चेतन भगतः

चेतन भगत भी एक कटारीया है. वे लिखते है कि

“उदार मानसिकतासे ही विकास शक्य है.”

“हम चोकिदार कम और भागीदार अधिक बनें, इससे देश शानदार बनेगा”

श्रीमान चे.भ. जी (चेतन भगत जी), भी एक बावाजी ही है क्या? बावाजी से मतलब है संत रजनीश मल, ओशो आसाराम. बावाजी है तो उदाहरण तो देना ही आवश्यक बनता है न!! वे अपने बाल्यावस्थाका उदाहरण देते है. वे फ्रीज़ और नौकरानीका और बील गेट्सका उदाहरण देते है. परोक्ष में “चे.भ.”जी मोदीजी की मानसिकता अन्यों के प्रति अविश्वासका भाव है. फिर उन्होंने कह दिया कि, नरेन्द्र मोदीने कुछ नियम ऐसे बनाये कि लोग भारतमें निवेश करने से डरते है. कौनसे नियम? इस पर चे.भ.जी मौन है. शायद उनको भी पता नहीं होगा.

चे.भ.जी अपनी कपोल कल्पित तारतम्य को स्वयं सिद्ध मानकर मोदीकी बुराई करते है.

“मुस्लिमोके विरुद्ध हिन्दुओंमें गुस्सा है. इसका कारण हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता है.

“अप्रवासीयोंपर हुए हमले भी हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता कारण भूत है,

“मुस्लिमोंको बहुत कुछ दे दिया है, अब वह वापस ले लेना चाहिये,

“मुस्लिमोंका बहुत तुष्टीकरण किया है अब उनको लूट लेना चाहिये

चे.भ.जी इस बातको समज़ना नहीं चाहते कि, किसी भी जनसमुदायमें कुछ लोग तो कट्टर विचारधारा वाले होते ही है. लेकिन किस समुदायमें इस कट्टरतावादी लोगोंका प्रमाण क्या है? इतनी विवेकशीलता तो मूर्धन्य कटारीयाओंमें होना आवश्यक है. लेकिन इन कटारीयाओंमे विवेक हीनता है. तुलनात्मक विश्लेषणके लिये ये कटारीया लोग अक्षम ही नहीं अशक्त है. वे समज़ते है “… वाह हमने क्या सुहाना शब्द प्रयोग किया है. फिलोसोफिकल वाक्य बोलो तो हमारी सत्यता अपने आप सिद्ध हो जाती है…”चे.भ.जी जैसे लोगोंको तुलनात्मक सत्य दिखायी ही नहीं देता है.

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके शिर्ष नेताओंके उच्चारणोंको देख लो. “चोकिदार चोर है, नरेन्द्र मोदी नीच है, नरेन्द्र मोदीको डंडा मारो, नरेन्द्र मोदी फासीस्ट है, नरेन्द्र मोदी हीटलर है, नरेन्द्र मोदी खूनी है, बीजेपी वाले आर.एस.एस.वादी है, वे गोडसे है…” न जाने क्या क्या बोलते है. पक्षके प्रमुख और मंत्री रह चूके और सरकारी  पद पर रहेते हुए भी उन्होंने ऐसे उच्चारण किये है. लेकिन ये उपरोक्त मूर्धन्य कटारीया लोग इन उच्चारणों पर मौन धारण करते है. उनका जीक्र तक नहीं करतें.

आखिर ऐसा क्यूँ वे लोग ऐसा करते हैं?

यदि बीजेपीके या तो आर.एस.एस.के तृतीय कक्षाके लोग उपरोक्त उच्चारणोसे कम भी बोले तो ये लोग बडे बडे निष्कर्ष निकालते है. अपना कोरसगान (सहगान) चालु कर देते हैं.     

अपराध कब सिद्ध होता है?

“आप अपनी धारणाओंके आधार पर किसीको दोषी करार न ही दे सकते. न्यायिक प्रक्रियाके सिद्धांतोसे यह विपरित है. किसीको भी दोषी दिखानेके लिये आप अपनी मनमानी और धारणाओंका उपयोग नहीं कर सकते. किन्तु महान नंदीजी, शे.गु.जी, चे.भ. जी … आदि क्यूँ कि उनका एजन्डा कुछ और ही है, वे ऐसा कर सकते है. कोंगी लोग यही तो चाहते है.

इन कटारीया लोगोंको वास्तवमें पेटमें दुखता है क्या?

वास्तवमें कोंगी लोग और उनके सहयोगी लोग समज़ गये है कि,

नरेन्द्र मोदी, और भी समस्याएं हल कर सकता है. वैसे तो, जी.एस.टी. तो हमारा ही प्रस्ताव था, “विमुद्रीकरण करना” इस बातको तो हम भी सोच रहे थे, पाकिस्तानमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हो और वे पीडित होके भारतमें आवे तो, हमे उनको नागरिकता देनी है, यह बात भी हमारे नहेरु-लियाकत अली समज़ौताका हिस्सा था, १९७१के युद्धसे संबंधित जो शरणार्थी प्रताडित होकर भारतमें आये उनमें जो पाकिस्तानके अल्पसंख्यक थे उनको नागरिकता देना, और बांग्लादेशके आये बिहारी मुस्लिमोंको वापस भेजना यह तो हमारे पक्षके प्रधान मंत्रीयोंका शपथ था.  किन्तु हममें उतनी हिंमत और प्रज्ञा ही नहीं थी कि हम अपने शपथोंको पुरा करे. मोदीके विमुद्रीकरण और जी.एस.टी.के निर्णयोंको तो हमने विवादास्पद बनाके विरोध किया और जूठ लगातार फैलाते रहे. बीजेपी के हर कदमका हम विरोध करेंगे चाहे वह मुद्दे हमारे शासनसे संलग्न क्यूँ न हो?

कोंगी और उनके साथी लोगोंको अनुभूति हो गई है कि, “अब तो मोदीने उन समस्याओंको हाथ पे ले लिया है जो हमने दशकों और पीढीयों तक अनिर्णित रक्खी”.

कोंगीने उनके सांस्कृतक साथी पक्षके नेतागणको आत्मसात्‌ करवा दिया है कि “मोदी सब कुछ कर सकता है. अब तक हम उसको हलकेमें ले रहे थे. किन्तु मोदी आतंकी गतिविधियोंको अंकूशमें रख सकने के अतिरिक्त और सर्जीकल स्ट्राईकके अतिरिक्त, अनुछेद ३७० और ३५ऍ तकको खतम कर सकता है. वह जम्मु – कश्मिर राज्यश्रेणी भी बदल सकता है. हमे खुलकर ही मुस्लिम नेताओंको और मुस्लिमोंको अधिकसे अधिक बहेकाना पडेगा.”

कोंगीके सांस्कृतिक साथी कौन कौन है?

कोंगी पक्ष कैसा है?

कोंगी वंशवादी है, वंशवादको स्थायी रखने के लिये अवैध मार्गोंसे संपत्तिकी प्राप्त करना पडता है, शठता करनी पडती है,

सातत्यसे जूठ बोलना पडता है,

असामाजिक तत्त्वोंको हाथ पर रखना पडता,

दुश्मनके दुश्मनको मित्र बनाना पडता है,

जनताको मतिभ्रष्ट और पथ भ्रष्ट करना पडता. और कई समस्याओंको अनिर्णायक स्थितिमें रखना पडता है चाहे ये अनिर्णायकता देशके लिये और आम जनताकाके लिये कितनी भी हानिकारक क्यूँ न हो!!

अनीतिमत्ता वंशवादका एक आनुषंगिक उत्पादन है.

कोंगी जैसा सांस्कृतिक चरित्र और किनका है?

 ममताका TMC, शरदका NCP, लालुका RJD, बाल ठकरे का Siv Sena, मुल्लायमका SP, शेख अब्दुल्लाके फरजंद फारुक अब्दुल्लाका N.C. और सबसे नाता जोडने और तोडने वाले साम्यवादी. अब हम इन सभी पक्षोंके समूह को कोंगी ही कहेंगे. क्योंकि इन सभीका काम येन केन प्रकारेण, बिना साधन शुद्धिसे, बिना देशके हितकी परवाह किये नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को फिलहाल को बदनाम करो.

संवाद मत करो और तर्कयुक्त चर्चा मत करो केवल शोर मचाओ

संवाद करेंगे तो सामनेवाला तर्क करेगा. इस लिये संवाद मत करो, बार बार जूठ बोलो, असंबद्ध उदाहरण दो, सब नेता सहगान करो.

कहो… मोदी चोर है. अपने अनपढ श्रोताओंसे सूत्रोच्चार करवाओ मोदी चोर है. मोदीको चोरे सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी हीटलर है.  सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी खूनी है… सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

बीजेपी लोग गोडसे है. चाहे गोडसे आर.एस.एस. का सदस्य न भी हो तो भी. हमें क्या फर्क पडता है!!!  सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

विमूद्रीकरणमें मोदीने सेंकडो लोगोंको लाईनमें खडा करके मार दिया. बोलनेमें क्या हर्ज है? (वचनेषु किं दरिद्रता?). सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

जी.एस.टी. गब्बर सींग टेक्ष है. (चाहे वह हमारा ही प्रस्ताव क्यों न हो. किन्तु हममें उतना नैपूण्य कहाँ कि हम उसको लागु करें). यह सब चर्चा करना कहाँ आवश्यक है? सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

“भारतीय संविधान”को हमारे पक्षमें घसीटो, “मानव अधिकार और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” को भी हमारे पक्षमें घसीटो, रास्ता रोको, लगातार रास्ता रोको, आग लगाओ, फतवे निकालो, जनताको हो सके उतनी असुविधाओंमें डालो, कुछ भी करो और सब कुछ करो … मेसेज केवल यह देना है कि यह सब मोदीके कारण हो रहा है.

यदि इतना जूठ बोलते है तो “महात्मा गांधी”को भी हमारे पक्षमें घसीटो. गांधीजीका नाम लेके यह सब कुछ करो.

कोंगीयों द्वारा गांधीका एकबार और खून

कोंगीओंको, उनके सांस्कृतिक साथीयों और समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी छोडो, भारतमें विडंबना यह है कि अब मूर्धन्य कटारीया लोग भी ऐसा समज़ने लगे है कि अहिंसक विरोध और महात्मा गांधीके सिद्धांतों द्वारा विरोध ये दोनों समानार्थी है.

महात्मा गांधीके अनुसार विरोध कैसे किया जाता है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

https://www.treenetram.wordpress.com 

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“वीर सावरकर”का कोंगीने “सावरकर” कर दिया यह है उसका पागलपन.

“वीर सावरकर”का कोंगीने “सावरकर” कर दिया यह है उसका पागलपन.

Savarakar

जब हम “कोंगी” बोलते है तो जिनका अभी तक कोंगीके प्रति भ्रम निरसन नहीं हुआ है और अभी भी उसको स्वातंत्र्यके युद्धमें योगदान देनेवाली कोंग्रेस  ही समज़ते, उनके द्वारा प्रचलित “कोंग्रेस” समज़ना है. जो लोग सत्यकी अवहेलना नही कर सकते और लोकतंत्रकी आत्माके अनुसार शब्दकी परिभाषामे मानते है उनके लिये यह कोंग्रेस पक्ष,  “इन्दिरा नहेरु कोंग्रेस” [कोंग्रेस (आई) = कोंगी = (आई.एन.सी.)] पक्ष है.

कोंगीकी अंत्येष्ठी क्रिया सुनिश्चित है.

“पक्ष” हमेशा एक विचार होता है. पक्षके विचारके अनुरुप उसका व्यवहार होता है. यदि कोई पक्षके विचार और आचार में द्यावा-भूमिका  अंतर बन जाता है तब, मूल पक्षकी मृत्यु होती है. कोंग्रेसकी मृत्यु १९५०में हो गयी थी. इसकी चर्चा हमने की है इसलिये हम उसका पूनरावर्तन नहीं करेंगे.

पक्ष कैसा भी हो, जनतंत्रमें जय पराजय तो होती ही रहेती है. किन्तु यदि पक्षके उच्च नेतागण भी आत्ममंथन न करे, तो उसकी अंन्त्येष्ठी सुनिश्चित है.

परिवर्तनशीलता आवकार्य है.

परिवर्तनशीलता अनिवार्य है और आवकार्य भी है. किन्तु यह परिवर्तनशीलता सिद्धांतोमें नहीं, किन्तु आचारकी प्रणालीयोंमें यानी कि, जो ध्येय प्राप्त करना है वह शिघ्रातिशिघ्र कैसे प्राप्त किया जाय? उसके लिये जो उपकरण है उनको कैसे लागु किया जाय? इनकी दिशा, श्रेयके प्रति होनी चाहिये. परिवर्तनशीलता सिद्धांतोसे विरुद्धकी दिशामें नहीं होनी चाहिये.

कोंगीका नैतिक अधःपतनः

नहेरुकालः

नीतिमत्ता वैसे तो सापेक्ष होती है. नहेरुका नाम पक्षके प्रमुखके पद पर किसी भी  प्रांतीय समितिने प्रस्तूत नहीं किया था. किन्तु नहेरु यदि प्रमुखपद न मिले तो वे कोंग्रेसका विभाजन तक करनेके लिये तयार हो गये थे. ऐसा महात्मा गांधीका मानना था. इस कारणसे महात्मा गांधीने सरदार पटेलसे स्वतंत्रता मिलने तक,  कोंग्रेस तूटे नहीं इसका वचन ले लिया था क्योंकि पाकिस्तान बने तो बने किन्तु शेष भारत अखंड रहे वह अत्यंत आवश्यकता.

जनतंत्रमें जनसमूह द्वारा स्थापित पक्ष सर्वोपरि होता है क्यों कि वह एक विचारको प्रस्तूत करता है. जनतंत्रकी केन्द्रीय और विभागीय समितियाँ  पक्षके सदस्योंकी ईच्छाको प्रतिबिंबित करती है. जब नहेरुको ज्ञात हुआ कि किसीने उनके नामका प्रस्ताव नहीं रक्खा है तो उनका नैतिक धर्म था कि वे अपना नाम वापस करें. किन्तु नहेरुने ऐसा नहीं किया. वे अन्यमनस्क चहेरा बनाके गांधीजीके कमरेसे निकल गये.

यह नहेरुका नैतिकताका प्रथम स्खलन या जनतंत्रके मूल्य पर प्रहार  था. तत्‌ पश्चात तो हमे अनेक उदाहरण देखने को मिले. जो नहेरु हमेशा जनतंत्रकी दुहाई दिया करते थे उन्होंने अपने मित्र शेख अब्दुल्लाको खुश रखने के लिये अलोकतांत्रिक प्रणालीसे अनुच्छेद ३७० और ३५ए को संविधानमें सामेल किया था और इससे जो जम्मु-कश्मिर, वैसे तो भारत जैसे जनतांत्रिक राष्ट्रका हिस्सा था, किन्तु वह स्वयं  अजनतांत्रिक बन गया.

आगे देखो. १९५४में जब पाकिस्तानके राष्ट्रपति  इस्कंदर मिर्ज़ाने, भारत और पाकिस्तानका फेडरल युनीयन बनानेका प्रस्ताव रक्खा तो नहेरुने उस प्रस्तावको बिना चर्चा किये, तूच्छता पूर्वक नकार दिया. उन्होंने कहा कि, भारत तो एक जनतांत्रिक देश है. एक जनतांत्रिक देशका, एक सरमुखत्यारीवाले देशके साथ युनीयन नहीं बन सकता. और उसी नहेरुने अनुच्छेद ३७० और अनुच्छेद ३५ए जैसा प्रावधान संविधानमें असंविधानिक तरिकेसे घुसाए दिये थे.

जन तंत्र चलानेमें क्षति होना संभव है. लेकिन यदि कोई आपको सचेत करे और फिर भी उसको आप न माने तो उस क्षतिको क्षति नहीं माना जाता, किन्तु उसको अपराध माना जाता है.

नहेरुने तीबट पर चीनका प्रभूत्त्व माना वह एक अपराध था. वैसे तो नहेरुका यह आचार और अपराध विवादास्पद नहीं है क्योंकि उसके लिखित प्रमाण है.

चीनकी सेना भारतीय सीमामें अतिक्रमण किया करें और संसदमें नहेरु उसको नकारते रहे यह भी एक अपराध था. इतना ही नहीं सीमाकी सुरक्षाको सातत्यतासे अवहेलना करे, वह भी एक अपराध है. नहेरुके ऐसे तो कई अपराध है.

इन्दिरा कालः

इन्दिरा गांधीने तो प्रत्येक क्षेत्रमें अपराध ही अपराध किये है. इन अपराधों पर तो महाभारतसे भी बडी पुस्तकें लिखी जा सकती है. १९७१में भारतीयसेनाने जो अभूतपूर्व  विजय पायी थी उसको इन्दिराने सिमला करार के अंतर्गत घोर पराजयमें परिवर्तित कर दिया था. वह एक घोर अपराध था. इतना ही नहीं लेकिन जो पी.ओ.के. की भूमि, सेनाने  प्राप्त की थी उसको भी   पाकिस्तानको वापस कर दी थी, यह भारतीय संविधानके विरुद्ध था. इन्दिरा गांधीने १९७१में जब तक पाकिस्तानने भारतकी हवाई-पट्टीयों पर आक्रमण नहीं किया तब तक आक्रमणका कोई आदेश नहीं दिया था. भारतीय सेनाके पास, पाकिस्तानके उपर प्रत्याघाती आक्रमण करनेके अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं था. यह बात कई स्वयंप्रमाणित विद्वान लोग समज़ नहीं पाते है.

राजिव युगः

राजिव गांधीका पीएम-पदको स्विकारना ही उसका नैतिक अधःपतन था. उसकी अनैतिकताका एक और प्रमाण उसके शासनकालमें सिद्ध हो गया. बोफोर्स घोटालेमें स्वीस-शासन शिघ्रकार्यवाही न करें ऐसी चीठ्ठी लेके सुरक्षा मंत्रीको स्वीट्झर्लेन्ड भेजा था. यही उसकी अनीतिमत्ताको सिद्ध करती है.

सोनिया-राहुल युगः

इसके उपर चर्चाकी कोई आवश्यकता ही नहीं है. ये लोग अपने साथीयोंके साथ जमानत पर है. जिस पक्षके शिर्ष नेतागण ही जमानत पर हो उसका क्या कहेना?

कोंगीका पागलपनः

पागलपन के लक्षण क्या है?

प्रथम हमे समज़ना आवश्यक है कि पागलपन क्या है.

पागलपन को संस्कृतमें उन्माद कहेते है. उन्मादका अर्थ है अप्राकृतिक आचरण.

अप्राकृतिक आचारण. यानी कि छोटी बातको बडी समज़ना और गुस्सा करना, असंदर्भतासे ही शोर मचाना, कपडोंका खयाल न करना, अपनेको ही हानि करना, गुस्सेमें ही रहेना, हर बात पे गुस्सा करना …. ये सब उन्मादके लक्षण है.

कोंगी भी ऐसे ही उम्नादमें मस्त है.

अनुच्छेद ३७० और ३५ए को रद करने की मोदी सरकारकी क्रिया पर भी कोंगीयोंका प्रतिभाव कुछ पागल जैसा ही रहा है.    

यदि कश्मिरमें अशांति हो जाती तो भी कोंगीनेतागण अपना उन्माद दिखाते. कश्मिरमें अशांति नहीं है तो भी वे कश्मिरीयत और जनतंत्र पर कुठराघात है ऐसा बोलते रहेते है. अरे भाई १९४४से कश्मिरमें आये हिन्दुओंको मताधिकार न देना, उनको उनकी जातिके आधार पर पहेचानना और उसीके आधार पर उनकी योग्यताको नकारके उनसे व्यवसायसे वंचित रखना और वह भी तीन तीन पीढी तक ऐसा करना यह कौनसी मानवता है? कोंगी और उसके सहयोगी दल इस बिन्दुपर चूप ही रहेते है.

खूनकी नदियाँ बहेगी

जो नेता लोग कश्मिरमें अनुच्छेद ३७० और ३५ए को हटाने पर खूनकी नदियाँ बहानेकी बातें करते थे और पाकिस्तानसे मिलजानेकी धमकी देते थे, उनको तो सरकार हाउस एरेस्ट करेगी ही. ये कोंगी और उसके सांस्कृतिक सहयोगी लोग जनतंत्रकी बात करने के काबिल ही नहीं है. यही लोग थे जो कश्मिरके हिन्दुओंकी कत्लेआममें परोक्ष और प्रत्यक्ष रुपसे शरिक थे. उनको तो मोदीने कारावास नहीं भेजा, इस बात पर कोंगीयोंको और उनके सहयोगीयोंको मोदीका  शुक्रिया अदा करना चाहिये.

सरदार पटेल वैसे तो नहेरुसे अधिक कदावर नेता थे. उनका स्वातंत्र्यकी लडाईमें और देशको अखंडित बनानेमें अधिक योगदान था. नहेरुने सरदार पटेलके योगदानको महत्त्व दिया नहीं. नहेरुवंशके शासनकालमें नहेरुवीयन फरजंदोंके नाम पर हजारों भूमि-चिन्ह (लेन्डमार्क), योजनाएं, पुरस्कार, संरचनाएं बनाए गयें. लेकिन सरदार पटेल के नाम पर क्या है वह ढूंढने पर भी मिलता नहीं है.

अब मोदी सराकार सरदार पटेलको उनके योगदानका अधिमूल्यन कर रही है तो कोंगी लोग मोदीकी कटू आलोचना कर रहे है. कोंगीयोंको शर्मसे डूब मरना चाहिये.

महात्मा गांधी तो नहेरुके लिये एक मत बटोरनेका उपकरण था. कोंगीयोंके लिये जब मत बटोरनेका परिबल और गांधीवादका परिबल आमने सामने सामने आये तब उन्होंने मत बटोरनेवाले परिबलको ही आलिंगन दिया है. शराब बंदी, जनतंत्रकी सुरक्षा, नीतिमत्ता, राष्ट्रीय अस्मिताकी सुरक्षा, गौवधबंदी … आदिको नकारने वाली या उनको अप्रभावी करनेवाली कोंगी ही रही है.

कोंगी की अपेक्षा नरेन्द्र मोदी की सरकार, गांधी विचार को अमली बनानेमें अधिक कष्ट कर रही है. कोंगीको यह पसंद नहीं.

कोंगी कहेता है

गरीबोंके बेंक खाते खोलनेसे गरीबी नष्ट नहीं होनेवाली है,

संडास बनानेसे लोगोंके पेट नहीं भरता,

स्वच्छता लाने से मूल्यवृद्धि का दर कम नहीं होता,

हेलमेट पहननेसे भी अकस्मात तो होते ही है,

कोंगी सरकारके लिये तो खूलेमें संडास जाना समस्या ही नहीं थी,

कोंगी सरकारके लिये तो एक के बदले दूसरेके हाथमें सरकारी मदद पहूंच जाय वह समस्या ही नहीं थी,

कोंगी सरकारके लिये तो अस्वच्छता समस्या ही नहीं थी,

कोंगीके सरकारके लिये तो कश्मिरी हिन्दुओंका कत्लेआम, हिन्दु औरतों पर अत्याचार, हिन्दुओंका लाखोंकी संख्यामें बेघर होना, कश्मिरी हिन्दुओंको मताधिकार एवं मानव अधिकारसे से वंचित होना समस्या ही नहीं थी, दशकों से भी अधिक कश्मिरी हिन्दु निराश्रित रहे, ये कोंगी और उनके सहयोगी सरकारोंके लिये समस्या ही नहीं थी, अमरनाथ यात्रीयोंपर आतंकी हमला हो जाय यह कोंगी और उसकी सहयोगी सरकारोंके लिये समस्या नहीं थी, उनके हिसाबसे उनके शासनकालमें  तो कश्मिरमें शांति और खुशहाली थी,

आतंक वादमें हजारो लोग मरे, वह कोंगी सरकारोंके लिये समस्या नहीं थी,

करोडों बंग्लादेशी और पाकिस्तानी आतंकवादीयोंकी घुसपैठ, कोंगी सरकारोंके लिये समस्या नहीं थी,

कोंगी और उनके सहयोगीयोंके लिये भारतमें विभाजनवादी शक्तियां बलवत्तर बनें यही एजन्डा है. बीजेपीको कोमवादी कैसे घोषित करें, इस पर कोंगी अपना सर फोड रही है?

मध्य प्रदेशकी कोंगी सरकारने वीर सावरकरके नाममेंसे वीर हटा दिया.

वीर सावरकर आर एस एस वादी था. इस लिये वह गांधीजीकी हत्याके लिये जीम्मेवार था. वैसे तो वीर सावरकर उस आरोपसे बरी हो गये थे. और गोडसे तो आरएसएसका सदस्य भी नहीं था. न तो आर.एस.एस. का गांधीजीको मारनेका कोई एजन्डा था, न तो हिन्दुमहासभाका ऐसा कोई एजन्डा था. अंग्रेज सरकारने उसको कालापानीकी सज़ा दी थी. वीर सावरकरने कभी माफी नहीं मांगी. सावरकरने तो एक आवेदन पत्र दिया था कि वह माफी मांग सकता है यदि अंग्रेज सरकार अन्य स्वातंत्र्य सैनानीयोंको छोड दें और केवल अपने को ही कैदमें रक्खे. कालापानीकी सजा एक बेसुमार पीडादायक मौतके समान थी. कोंगीयोंको ऐसी मौत मिलना आवश्यक है.

वीर सावरकर महात्मा गांधीका हत्यारा है क्यों कि उसका आर.एस.एस.से संबंध था. या तो हिन्दुमहासभासे संबंध था. यदि यही कारण है तो कोंगी आतंकवादी है, क्यों कि गुजरातके दंगोंका मास्टर माईन्ड कोंग्रेससे संलग्न था. कोंगी नीतिमताहीन है क्यों कि उसके कई नेता जमानत पर है, कोगीके तो प्रत्येक नेता कहीं न कहीं दुराचारमे लिप्त है. क्या कोंगीको कालापानीकी सज़ा नहीं देना चाहिये. चाहे केस कभी भी चला लो.

आज अंग्रेजोंका न्यायालय भारत सरकारसे पूछता है कि यदि युके, ९००० करोड रुपयेका गफला करनेवाला माल्याका प्रत्यार्पण करें तो उसको कारावासमें कैसी सुविधाएं होगी? कोंगीयोंने दंभ की शिक्षा अंग्रेजोंसे ली है.

दो कौडीके राजिव गांधी और तीन कौडीकी इन्दिरा नहेरु-गांधीको, बे-जिज़क भारत रत्न देनेवाली कोंगीको वीर सावरकरको भारत रत्नका पुरष्कार मिले उसका विरोध है. यह भी एक विधिकी वक्रता है कि हमारे एक वार्धक्यसे पीडित मूर्धन्य का कोंगीको अनुमोदन है. यह एक दुर्भाग्य है.

वीर सावरकर एक श्रेष्ठ स्वातंत्र्य सेनानी थे. उनका त्याग और उनकी पीडा अकल्पनीय है. सावरकरकी महानताकी उपेक्षा सीयासती कारणोंके फर्जी आधार पर नहीं की जा सकती.

कोंगीके कई नेतागण पर न्यायालयमें मामला दर्ज है. उनको कठोरसे कठोर यानी कि, कालापानीकी १५ सालकी सज़ा करो फिर उनको पता चलेगा कि वे स्वयं कितने डरपोक है.

कोंगी लोग कितने निम्न कोटीके है कि वे सावरकरका त्याग और पीडा समज़ना ही नहीं चाहते. ऐसी उनकी मानसिकता दंडनीय बननी चाहिये है.  

हमारे उक्त मूर्धन्यने उसमें जातिवादी (वर्णवादी तथा कथित समीकरणोंका सियासती आधार लिया है)

“महाराष्ट्रमें सभी ब्राह्मण गांधीजी विरोधी थे और सभी मराठा (क्षत्रीय) कोंग्रेसी थे. पेश्वा ब्राह्मण थे और पेश्वाओंने मराठाओंसे शासन ले लिया था इसलिये मराठा, ब्राह्मणोंके विरोधी थे. अतः मराठी ब्राह्मण गांधीके भी विरोधी थे. विनोबा भावे और गोखले अपवाद थे. १९६०के बाद कोई भी ब्राह्मण महाराष्ट्रमें मुख्य मंत्री नहीं बन सका. साध्यम्‌ ईति सिद्धम्‌” मूर्धन्य उवाच

यदि यह सत्य है तो १९४७-१९६०के दशकमें ब्राह्मण मुख्य मंत्री कैसे बन पाये. वास्तवमें घाव तो उस समय ताज़ा था?

१८५७के संग्राममें हिन्दु और मुस्लिम दोनों सहयोग सहकारसे संमिलित हो कर बिना कटूता रखके अंग्रेजोंके सामने लड सकते थे. उसी प्रकार ब्राह्मण क्षत्रीयोंके बीच भी कडवाहट तो रह नहीं सकती. औरंगझेब के अनेक अत्याचार होते हुए भी शिवाजीकी सेनामें मुस्लिम सेनानी हो सकते थे तो मराठा और ब्राह्मणमें संघर्ष इतना जलद तो हो नहीं सकता.

“लेकिन हम वीर सावरकरको नीचा दिखाना चाह्ते है इसलिये हम इस ब्राह्मण क्षत्रीयके भेदको उजागर करना चाहते है”

स्वातंत्र्य सेनानीयोंके रास्ते भीन्न हो सकते थे. लेकिन कोंग्रेस और हिंसावादी सेनानीयोंमें एक अलिखित सहमति थी कि एक दुसरेके मार्गमें अवरोध उत्पन्न नहीं करना और कटूता नहीं रखना. यह बात उस समयके नेताओंको सुविदित थी. गांधीजी, भगतसिंघ, सावरकर, सुभाष, हेगडेवार, स्यामाप्रसाद मुखर्जी … आदि सबको अन्योन्य अत्यंत आदर था. अरे भाई हमारे अहमदाबादके महान गांधीवादी कृष्णवदन जोषी स्वयं भूगर्भवादी थे. हिंसा-अहिंसाके बीचमें कोई सुक्ष्म विभाजन रेखा नहीं थी. सारी जनता अपना योगदान देनेको उत्सुक थी.

हाँ जी, साम्यवादीयोंका कोई ठीकाना नहीं था. ये साम्यवादी लोग रुसके समर्थक रहे और अंग्रेजके विरोधी रहे. जैसे ही हीटलरने रुस पर हमला किया तो वे अंग्रेज  सरकारके समर्थक बन गये. यही तो साम्यवादीयोंकी पहेचान है. और यही पहेचान कोंगीयोंकी भी है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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Do not fall in the trap of Nehruvian Congress. क्या आप भारतके होतैषी है? और फिर भी क्या आप इनमेंसे कोई एक  वर्गमें भी आते हैं? ()

() ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

Modi is the big threat to Nehruvian Congress

             Terrorists Bomb Blasts in Patana” By UPA !

भारतमें ज्ञातिवाद अभी नामशेष नहीं हुआ. प्रांतवाद भाषावाद भी चलता है. याद करो, जिस नहेरुवीयन कोंग्रेसने जयप्रकाश नारायणके आंदोलनको समर्थन देनेके कारण ममताको भी कारावास दिया था, उसी कोंग्रेसके आपातकालके दिलोजान समर्थक रहे प्रणव मुखर्जी जो ममताके प्रथम दुश्मन होने चाहिये, तो भी केवल और केवल बंगाली होने के कारण, ममताने थोडे नखरे करनेके बाद, उनको ही भारतके राष्ट्रप्रमुख पदके लिये समर्थन दिया. उसी प्रकार शिवसेनाने प्रतिभा पाटिलको समर्थन दिया.

दुसरा कारण यह भी है कि स्वकीय सत्तालाभके लिये कुछ नेता अपने ही पक्षके नेता के विरुद्धमें काम करते है. इसमें इन्दीरा गांधीने संजीव रेड्डीके विरुद्ध प्रचार किया, चरण सिंगने अपने ही पक्षके नेता मोरारजी देसाईकी सरकारका पतन किया , यशवंत राव चवाणने १९७७ की नहेरुवीयन सरकारके पराजयके बाद अपनी अलग पार्टी बनाली, शरद पवारने सत्ताके लिये नहेरुवीयन वंशके पक्षको छोडा, पकडा, छोडा, पकडा, छोडा जो क्रिया आज भी चालु है, बाला ठाकरेको नरेन्द्र मोदी का कद बढते हुए डर लगता था और ऐसे निवेदन देते रहेते थे कि बीजेपीकी शक्तिमें घाटा हो. चंद्रबाबु नायडुने अपने श्वसुर एन टी रामारावकी सरकारसे नाता छोडा था, शंकर सिंह वाघेलाने  केशुभाई पटेलकी सरकारका पतन किया था, केशुभाई खुद, नरेन्द्र मोदीका पक्ष चूनाव में हार जाय ऐसे भरपुर प्रयत्न करते रहते है, अडवाणी खुद ने अपने पक्षके जनमान्य नेता नरेन्द्र मोदीको नीचा दिखानेके लिये भरपुर प्रयत्नशील है.

सत्ताके लिये साधनशुद्धिका अभाव. मैं चाहे खतम हो जाउं लेकिन तुम्हे सत्तासे हटाउं;

जिन्होंने सत्ताके लिये साधनशुद्धि नहीं रक्खी है उनसे सावधान रहो. ये लोग बिना ही कोई योग्य विकल्प दिये ही बीजेपीको कमजोर कर सकते है. उनसे सावधान.

और कौन है जिनसे सावधान रहेना है?

 () ये लोग देश द्रोही हो सकते है, जो सिर्फ धारणाओंके आधारपर सरकारको दोष देते हैं;

Double standard alias perverted eyes of media

जिनको भारतकी धरोहर पर गर्व नहीं है और जो लोग, मनोमन, भारतका विकास नहीं चाहते है उनको आप क्या कहोगे? इन लोगोंको यह बात ज्ञात नहीं है कि, एक स्थिर सरकार को केवल नकारात्मक धारणाएं उत्पन्न करके, सरकार और उसके नेताओंके विरुद्धमें हवा फैलाना, कोई देशहितका काम तो है नहीं. एक सरकार को पांच वर्षके लिये नियुक्त की है तो उसको पांच साल पुरा करने दो. उसके पश्चात पूर्व सरकारने जो किया था, उसके साथ इस सरकारकी तुलनात्मक समीक्षा करो. आपको यह अवगत होना आवश्यक है कि, यदि आपने बीजेपीको मत नहीं दिया है तो भी वह पूर्णबहुमतसे भारतीय बंधारणके अनुसार विजयी हुई है. अब आपको उसका सन्मान करना है. धारणाओंके आधारपर उसको दोषी नही मान सकते. बीजेपीकी और खास करके नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैली को नीचा दिखानेके लिये आपके पास ऐसा कोई आधार नहीं है कि आप उसको दोषी है ऐसा प्रचार करते रहो.

किन्तु ऐसा देखा जाता है कि जिनको बीजेपी और नरेन्द्र मोदी पसंद नहीं था उनमेंसे अधिकतर लोग नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके सुक्ष्मातिसुक्ष्म बातोंको या/और जो चर्चाबिन्दु, वर्तमानमें अस्पष्ट है, संवादके आधिन है, कार्यवाही चल रही है, उसमें विसंवाद करके, उसको उछालते है और व्यर्थ ही नकारात्मक हवा फैलाते है. क्यों कि वे चाहते है कि यह सरकारका पतन हो जाय.

क्या होगा? इनको चिंता नहीं है

अगर इस सरकारका पतन होगा तो देशकी क्या दशा होगी इस बातकी इनको चिंता नहीं है.  १९८९ में चन्द्रशेखरने वीपी सिंगकी सरकार गीरायी. १९८९में क्या हुआ था? शेख अब्दुल्ला भाग गया. कश्मिरमें ३०००+ लोगोंका कत्लेआम हुआ और पांच लाख से उपर हिन्दुओंको सरेआम अपना घर छोडने पर विवश किया. आज तक वे लोग तंबुओंमें रहते हैं. यह एक ऐसा आतंक है जो लगातार २५ सालोंसे चल रहा है. १९९६ से १९९८ तक सरकारोंको गिरानेकी परंपरा चालु रही.

क्या ये आतंकी लोग और आतंकीयोंके इरादोंके पोषक और हिन्दुओंके प्राकृतिक अधिकारकी अवहेलना करनेवाले ये नहेरुवीयन और उनके साथीगण और वे लोग जो इस विषय पर मौन और निष्क्रिय रहे उन लोगोंको आप देश द्रोही नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

कश्मिरसे निष्कासित हिन्दुओंको अपने घरमें २५ सालके बाद भी सुस्थापित न करना, इस परिश्तितिको आप क्या कहोगे? यह उनके उपर सतत हो रहा आतंकवाद ही तो है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी लोग जिनमें फरुख आदि कश्मिरके मुस्लिम नेतागण आते है उन्होने सातत्यतासे कश्मिरी हिन्दुओंके मानवाधिकारका हनन किया. इनको अगर आप आतंकवादी नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

इस विषय पर मौन रहेने वाले या तो वितंडावाद करने वाले समाचार माध्यमोंके वक्ताओंसे भी सावधान. क्यों कि ये लोग भी मौन रहे हैं. ऐसे लोगोंके द्वारा किये गये निवेदनोंसे और मंतव्योंसे सावधान. उनके उपर तनिक भी विश्वास मत करो.

दुसरे कौन लोग है?

() ये लोग जोजैसे थेवादी है,

भारतकी आर्थिक प्रगति असंतोषजनक होनेका क्या कारण है? उसका मुख्य कारण भारतीय नेतागण है. मात्राके आधार पर नहेरुवीयन कोंग्रेस है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागणसे जुडे हुए अन्य नेतागण और कर्मचारीगण की राक्षसीय वृत्तियां कारणभूत है.

राक्षसी वृत्तिसे अर्थ है अन्यको नुकशान करके खुदका लाभ देखना. इसको अनीतिमत्ता भी कहेते हैं.

अगर ठेकेदार सही काम करेगा तो उसका लाभ कम होगा या तो नुकशान भी हो सकता है. इसलिये वह निम्नकक्षाका काम करता है और सरकारी कर्मचारी/अधिकारीको भ्रष्ट करता है. सरकारी कर्मचारी/अधिकारी भ्रष्ट होनेको उत्सुक है. और इसकी कोई सीमा नहीं है. जहां १००० रुपया खर्च होता है वहां पर कम आयु वाला १००५०० रुपयेका काम होता है. अगर नियमका शासन (रुल ऑफ लॉ) आजाय तो इनके ये लाभ नष्ट हो जायेंगे. इस लिये ये लोगजैसे थे”-वादी बनते है. जो भ्रष्ट है वे सत्ताके पदोंको दयादानका विषय मानते है. इसलिये अपनेवालोंको सत्ताके पदों पर नियुक्त करते है और भ्रष्टाचार बढाते है. इन्दिरा गांधीके समयसे भीन्न भीन्न पदोंकी भीन्न भीन्न मूल्य रक्खा था. यह बात युपीए के शासनमें भी चालु ही थी. इन लोगोंसे सावधान.

और कौन लोग है जिनसे सावधान रहेना है?

() ये लोग नकात्मक मानसिकता वाले हो सकते है,

ये लोग ऐसे है जो या तो नीतिसे भ्रष्ट है या तो निराशावादी है. चाणक्यने कहा है, जो निराशावादी है उनकी बातों पर विश्वास करो. निराशावाद एक रोग है. इस रोगके सांनिध्यमें रहेने वालोंको भी यह रोग ग्रस लेता है. निराशात्मक वातवरण विकासके लिये हानिकारक है. ये लोग नकारात्मक बोलते ही रहेते है कि, नरेन्द्र मोदी कुछ नहीं करता है, उसने यह नहीं किया, उसने वह नहीं किया, देखो टमाटरके भाव बढ गये. देखो सोनेके भाव स्थिर हुए तो जिन किसानोंने अपनी फसलके पैसोंसे सोना खरीदा था उनको इतने अरबका घाटा हुआ. यह सरकार किसानोंको पायमाल करने पर तुली है.

और कौन लोग है जिनसे सावधान रहेना है?

() ये लोग मूर्ख और मूढ हो सकते है,

मूर्ख वे लोग है जो व्यूहरचना समझ नहीं सकते और व्युह रचना बना भी नहीं सकते. उनके पास इतनी माहिति, ज्ञान और अनुभव नहीं होता है कि वे शत्रुओंकी ही नहीं किन्तु खुद अपने नेताकी व्युह रचना समझ शके. तद्यपि ये मूर्ख लोग इस बातका इन्कार करते है और अपनी खूदकी व्यूह रचना बनाते है और अमलमें भी प्रयोजित करते है. इससे वे अपने आप कष्टमें पडे उस शक्यताको तो छोड दो, लेकिन अपने पक्षको भी नुकशान पहोंचता है.

उदाहरणः

धोती धारण करने पर स्टारमें लाभः चरण सिंहने फरमान किया था कि जो धोती पहेनेगा उसको स्टार होटलमें २०% का डीसकाउन्ट मिलेगा.

गौवध पर प्रतिबंधः कोई भारतीय गौमांस नहीं खाता. यह एक सांस्कृतिक प्रणाली है. क्योंकि हम गाय का दूध पीते है, इसलिये वह हमारी माता समान है. इसके अलावा पर्यावरण और धरतीकी फळद्रुपताके लिये गौसृष्टिका हनन करना योग्य नहीं है. लेकिन अंग्रेज सरकारने ऐसे कतलखाने चलवाये थे. नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको चालु रक्खा उतना ही नहीं लेकिन उसमें वृद्धि भी की. देश ऐसी स्थिति पर पहोंचा है कि अगर ये कारखानोंको शिघ्रतासे समाप्त कर दें तो कई और प्रश्न उत्पन्न होते हैं. समस्या के निवारण के लिये कुछ समय की अवधि भी होती है. कुछ व्यूह रचना भी बनानी पडती है. व्यूहरचनाओंको गोपनीय भी रखनी पडती है.

अब तक जनताने क्या किया था?

जनताने यानी कि, आपने इस गौहत्या करने वाले राक्षसको मारने के लिये एक वृकोदरको चूना था. इस वृकोदरने कई दशकोंका समय व्यय किया. उसने राक्षसको मारने के बदले अनेक और राक्षस उत्पन्न किये.

अब आपने एक शेरको चूना है. अगर यह राक्षस मरेगा तो इस शेरसे ही मरेगा. अतः उसको पर्याप्त समय दो. आप धैर्य रक्खो. यदि आप शासक को पर्याप्त समय नहीं देते हैं, और यदि आप इस विषय पर धैर्यहीन बन जाते हैं तो समझ लो कि आप वृकोदरको ही मदद करते हैं.

विदेशी बेंकोंमे जमा काले धनकी वापसीः यह एक आंतर्राष्ट्रीय नियमोंसे युक्त समस्या है इस बातको अगर छोड भी दे सकते हैं. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने इस समस्याको अपने फायदेके लिये ऐसे दस्तावेज बनाये हैं कि उन कुकर्मोकों सही मात्रामें अवगत करना है, यह एक ऐसे अन्वेषणका विषय है कि उसके उपर सावधानीसे गोपनीय रीतसे व्युह रचना बनानी पडती है. विशेष निरीक्षण अन्वेषण जुथ तो बनाया गया है ही. इसके नेता सर्वोच्च न्यायालयके एक न्यायाधीश है. ये लोग अपना काम कर रहे है. समस्या कमसे कम ३५/४० साल पुरानी है. अतः उसको पर्याप्त समय दो. आप धैर्य रक्खो.

() ये लोग नहेरुवंशके चाहक या/और उनकी विचार/आचार धाराके चाहक हो सकते है,

कुछ लोग ऐसा समझते है कि वे लोग, ईश्वरकी क्षतिसे भारतमें जन्मे हैं. वे ऐसा समझते हैं कि पाश्चात्य विचारधाराके प्रति आचार विचार रखना और भारतीय धरोहरकी निंदा करना ही प्रगतिशीलता है. भारतका जो कुछ भी है वह निम्न कक्षाका है. भारतकी प्रणालीया, तत्वज्ञान भाषा आदि सब निम्न है.

शौक भी कोई चिज है”. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंकी क्षतियोंका ये लोग सामान्यीकरण करके उसको निरस और शुष्क कर देते है. लेकिन ये ही लोग नरेन्द्र मोदीकी छोटी छोटी असांदर्भिक बातों पर मजाक करते है. जैसे कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को ये लोग परिधान मंत्री नरेन्द्र मोदी. क्या जवाहर लाल नहेरु और उनकी संतान नंगा घुमती थीं?

(१०) ये लोग महात्मा गांधीके विरोधी, या/और उनकी विचारधारा के विरोधी हो सकते है,

ये लोग मुढ की कक्षामें आते है. उनको ज्ञात नहीं है कि वे क्या कर रहे है? उनको ज्ञात नहीं कि, उनके मन्तव्योंसे जनताको क्या संदेश जाता है? उनको यह अवगत नहीं कि, देशकी और विदेशकी जनता उनके बारेमें क्या सोचेगी? जिनका ये लोग विरोध करते है उनकी विश्वमें क्या कक्षा है? उनको यह मालुम नहीं कि, जिनकी तटस्थता विश्व मान्य है उनका प्रतिभाव, बीजेपी के बारेमें कैसा सकता है?

उनको यह अवगत होना चाहिये कि, महात्मा गांधी एक विचार भी है. व्यक्तिसे ज्यादा एक विचारधारा है. गांधीजीकी विचारधारा एक विस्वस्त विचारधारा है. गांधीने अपनी क्षतियां खुद बताई थी. वे क्षतियां महात्मा गांधीने तो छोड ही दी थी. और उसने कभी उसका पुनरावर्तन किया नहीं. तो भी कुछ लोग उसी क्षतियोंको आधार बनाके गांधीकी निंदा करते है.

गांधीके कर्मके सिद्धांत विश्व मान्य है और विश्वने गांधीजीके आचारमें विश्वसनीयता पायी है. जिन्होने गांधीको पढा है उन्होने गांधीको कलंक रहित समझा है. अगर आपने गांधी के बारेमें पढा नहीं है तो आपमें गांधीके बारेमें चर्चा करनेकी योग्यता ही नहीं है. फिर भी अगर आप, अपनी अल्पज्ञतासे गांधी की निंदा करते हैं तो विश्वमें आप ही नहीं आपका पक्ष भी अविश्वसनीय बनता है. और आपका दुश्मन पक्ष इसका भरपुर लाभ उठा सकता है. अगर आप मुढ नहीं है तो आप गांधीके विषय पर मौन रहोगे. क्यों कि जिस विषय की चर्चा आपके पक्षके लिये हानिकारक है उसमें अगर आप मौन रहे तो आपका यह लक्षण एक सन्मित्रका लक्षण बनेगा. ऐसा भर्तृहरिने कहा है.  

(११) ये लोग गोडसेके चाहक या/और उसकी आचार धाराके चाहक हो सकते है.

गोडसे एक सामान्य व्यक्ति था. सामान्य व्यक्ति भी देश प्रेमी हो सकता है. अज्ञान और परिस्थितिसे अवगत होनेकी अक्षमता और असंवाद की मानसिकता के कारणसे यदि एक देशप्रेमी, दुसरी एक व्यक्ति, जो निःशस्त्र, सत्ताहीन और निर्दोष, मानवता वादी, करुणापूर्ण और युगपुरुष मानी जाती है उस व्यक्तिका खून करता है तो यह पाप ही तो है.

ऐसे पापीकर्मको आप पूण्य कर्म सिध्ध करना चाहते हैं तो विश्वमें कोई भी आपकी बात मान्य नहीं रखेगा. आप अपात्रको, महान सिद्ध करते रहोगे तो विश्वमें आपका पक्ष ही बदनाम और अविश्वसनीय होगा. भारत एक बडा देश है. और अगर कहीं चूनाव प्रक्रिया चल रही है तो आप, बीजेपी के मतोंको हानि पहोंचा सकते हो. क्यों कि आपका दुश्मन पक्ष, आपके इस आचारका भरपुर लाभ लेता है और आगेचलकर भी लेगा. इस बातको समझनेमें यदि आप अक्षम है तो यह बात आपके मुढत्वको सिद्ध करती है.

(१२) ये लोग अहिंसा उचित है और हिंसा कहां उचित है और कहां उचित नहीं है इसको अवगत करनेकी वैचारिक शक्ति नहीं रखते है,

GANDHI SARDAR AND NEHRU

अहिंसा एक सापेक्ष आचार है.

दुर्योधन के साथ युद्धका निर्णय श्री कृष्णने तभी लिया जब दुर्योधनने कहा कि मैं धर्म जानता हूं और अधर्म भी जानता हूं. परंतु, धर्ममें मैं प्रवृत नहीं हूंगा और अधर्मसे मैं निवृत नहीं हूंगा.

शेर अगर सामने गया तो आप क्या करोगे? या तो खुद भाग जाओ या तो उसको भगा दो. जहां संवादकी कोई शक्यता ही नहीं है वहां कमसे कम हिंसा, अहिंसा बनती है. अहिंसा और सुरक्षाके अधिकार विश्वमान्य है. उसमें विसंवाद उत्पन्न करना खुदकी असंस्कृत विचारधारा और अज्ञानताका प्रदर्शन है.

पाकिस्तानने जब कश्मिर पर आक्रमण किया और जब कश्मिरके राजाने भारतकी मदद मांगी तो नहेरु और सरदार, गांधीजी की सलाह लेनेके लिये उनके पास गये थे. गांधीने कश्मिरके राज्यकी सुरक्षाके लिये भारतीय लश्करको भेजना यह अपना धर्म बताया था. गांधीजीने ऐसा नहीं कहा था किजाओ जाके सत्याग्रह करो”. क्यों कि आक्रमणकारी संवाद और अहिंसाको मान्य नही करते. वे केवल और केवल हिंसासे ही कश्मिर पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे. ऐसे लोगोंको हिंसाकी भाषामें उत्तर देना ही योग्य था.

(१३) ये लोग या तो अपने धर्मके विषयमें अंध है, परधर्मके बारेमें या/और परधर्मीयोंके विषयमें सतत धिक्कारकी मानसिकता या/और आचार रखते है,

धर्ममें यदि मानवधर्म नहीं मिला हो तो वह धर्म ही नहीं होता है. ऐसा धर्म, एक समूह (मॉब) मात्र होता है. ऐसे धर्मके कोईएक नेताने जो कुछ भी लिखा हो उसको परम सत्य मानके चलनेवालोंका एक पशु समूह ही बन जाता है. और उस समुहका व्यवहार भी हिंसक पशु जैसा ही होता है.

अपने धार्मिक पुस्तकका हेतु क्या था? वह कब, कहां कैसी स्थितिमें लिखा गया, और क्यों लिखा गया उसके उपर निरंतर चिंतन विचार करने के स्थान पर, ये लोग क्या करते हैं? ये लोग, युगोंके पश्चात भी, उसी लिखावट के अनुसार ही अनुसरण करना चाहते है. वे तो यह भी मानते है कि सारी दुनियाके लोगोंको हमारा धर्म ही स्विकारना करना चाहिये.  ऐसी मानसिकता वाले धर्मान्ध होते है. ऐसे लोग जो प्रत्यक्ष दिखाई देता है उसकी अनदेखी करके जो नहीं दिखाई देता है, और जो तर्कसे कोषों दूर है उस परलोकको पानेके लिये परधर्मको माननेवालोंको यातना देते हैं और कत्ल करते है. इन लोगोंसे सावधान.

(१४) ये लोग स्वयंको धर्मनिरपेक्षके रुपमें प्रस्तूत करते हैं, किंतु उनके रोम रोममें, नरेन्द्र मोदी या/और बीजेपी या/और सनातन धर्म या/और भारतीय प्राचीन धरोहर के प्रति अस्विकृतिकी मानसिकता या/और घृणा है,

प्रोनहेरुवीयन पक्षके लोग नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को कोमवादी कहेते है. क्यों कि नरेन्द्र मोदी आरएसएस का सदस्य है.

आर एसएस की गलती क्या है?

वैसे तो कुछ भी गलती नहीं है. किन्तु नथुराम गोडसे नामके एक आदमीने गांधीजीका खून किया था. नथुराम गोडसे आरएसएसका सदस्य था इसलिये आरएसएसका हर सभ्य खूनी है. आरएसएसने कभी अपनी कारोबारी में या किसीभी हालतमें गांधीजीको मारनेका प्रस्ताव पास नहीं किया था. तो भी ये दंभी धर्मनिरपेक्ष लोग कि, आरएसएस और उसके कारण बीजेपी भी कोमवादी है. साध्यम इति सिद्धम्‌.

यह इन दंभी धर्मनिरपेक्षोंका तर्क है जो तर्कके शास्त्रसे हजारों कोस दूर है. वे लोग इस तर्कको आरएसएस और बीजेपी के उपर चलाना चाहते है. वास्तवमें गांधीजीका खून करने वाली तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ही है. गांधीजी अगर महान थे तो वे अपने विचारोंसे और अपने आचारोंसे महान थे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो गांधीके विचारोंका खून किया है.

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके दारुबंधीमें सातत्यसे छूट दी और कभी लागु नहीं की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके गौवध बंधी कभी लागु नहीं की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके कतल खानोंको रियायतें दी,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके विभाजनवादी प्रवृत्तियां की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके अपनी सुविधाएं बढाई,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके सीमा रेखाको असुरक्षा दी,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके मंत्रीयोंको मनमानी करनेका अधिकार दिये,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके जनतंत्रका खून किया था,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके गांधीवादी जयप्रकाश नारायण तकको कारावासमें डाल दिया था,

और इन्ही लोंगोने असामाजीक तत्वोकों सहारा लिया और सहारा दिया.

साबरमती एक्सप्रेसके डीब्बेको जलानेकी योजना, गोधराके एक स्थानिक नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेताने बनाई थी और लागु की थी. वह नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेता पाकिस्तान भाग गया है. आप इन दंभी धर्मनिरपेक्षकी पूरी जमातको दस्तावेजोंके आधारपर कारावासकी सजा दे सकतो हो.

ऐसे दंभी धर्म निरपेक्ष लोगोंसे सावधान रहो.

इन लोगोंसे सावधान जो हिन्दुधर्ममें सुधारकी वार्ताएं करते हैं.

इन लोगोंको समाजसुधारकी बातें करते समय उनको सिर्फ हिन्दु समाज ही दिखाई देता है.

इनकी जमातके एक बिरादरने राजस्थान जाके एक हिरनका शिकार किया. हिरनको जलाके अपने यारोंके साथ खा भी लिया. अब यह हिरन तो विलुप्त जातिका था और उसको शासनने सुरक्षित घोषित किया था. तो भी इस बिरादरने नियमकी अवहेलना करके उसका शिकार किया. इसी बिरादरनेसत्यमेव जयतेभी चलाया. उसमें इन्होंनें केवल गुन्हाहोंका सामान्यीकरण किया लेकिन शासनका क्या फर्ज बनता है और शासनस्थ किस व्यक्तिका फर्ज बनता है उसका नाम भी नहीं लिया. “मैं तुमसे ज्यादा पवित्र हूं, मैंने तुम्हें सुधारने के लिये कैसा अच्छा सिरीयल बनाया, अब जनताको जागना पडेगा, जनता को ही आगे आना पडेगाइत्यादि इत्यादि.

DOUBLE STANDARDS OF CENSOR BOARD

अभी अभी इस बिरादरनेपी केनामकी फिलम बनायी. उसमें वे खुदपी केहै. और अंधश्रद्धा को उजागर करनेमें वे कैसे मचे रहेते है वह दिखाया है. उनको अपनी जमातकी पहाड जैसी भी अंधश्रद्धा दिखाई देती नहीं है. लेकिन हिन्दु धर्मकी तिलके बराबरकी बुराई, यह महाशय पहाड जैसी प्रदर्शित करते हैइस बातकी चर्चा हम अलग लेखसे करेंगे. लेकिन ऐसे दंभी ठगलोगोंसे सावधान.  

(१५) ये लोग एक विवादास्पद वार्ताकी सत्यताको सिद्ध करनेके लिये दुसरी विवादास्पद वार्ताका आधार लेते है और अपने निर्णय को तर्कयुक्त मानते है और मनवाते है,

एक व्यक्ति जो महानुभाव है. कोई क्षेत्रका विद्वान माना जाता है. किन्तु समझ लो. कार्ल मार्क्स के समाजवादका सिद्धांत विवादास्पद है. एक अमर्त्यसेन था उसने नरेन्द्र मोदी के आर्थिक कदमोंको बिना नरेन्द्र मोदीसे चर्चा किये नकार दिया. ये लोग ऐसा तारतम्य निकालते है कि नरेन्द्र मोदीके आर्थिक कदम खोटे है.

वास्तवमें एक विवादास्पद बातसे दुसरी बातको गलत नहीं कह सकते.

(१६) ये लोग पाश्चात्य साहित्य, इतिहास लेखन, दृष्टिकोण, प्रणालियां या/और व्यक्तिओंसे अभिभूत है.

भारतके कई लोग जो अपनेको मूर्ध्न्य मानते है और साथमें महानुभाव भी है, उनमें एक फेशन है कि पाश्चात्य विद्द्वानोंके कथन उद्धृत करके बीजेपी और उसके नेताओंको बदनाम करो.

वास्तवमें हरेक कथन पर समस्या पर संदर्भके साथ रख कर गुणवत्ता, प्रमाणिक और प्राथमिकता को लक्षमें रख कर विचार करना चाहिये. किसीका कथन मात्र कुछभी सिद्ध करता नहीं है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः नरेन्द्र मोदी, बीजेपी, आर एस एस, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नेतागण, सत्तालाभ, साधनशुद्धि, नकारात्मक, आतंकवाद, निष्कासित, जातिवाद, प्रांतवाद, विकल्प

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