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Rama has been lost who had walked on this earth in flesh and blood Part-9

खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग)

रामको कौन समझ पाया?

एक मात्र महात्मा गांधी है जो रामको सही अर्थोमें समझ पाये.

प्रणालीयोंको बदलना है? तो आदर्श प्रणाली क्या है वह सर्व प्रथम निश्चित करो.

आपको अगर ऐसा लगा कि आप आदर्श प्रणालीको समझ सके हो तो पहेले उसको मनमें बुद्धिद्वारा आत्मसात करो, और वैसी ही मानसिकता बनावो. फिर उसके अनुसार विचार करो और फिर आचार करो. इसके बाद ही आप उसका प्रचार कर सकते हो.

लेकिन यह बात आपको याद रखने की है कि, प्रचार करने के समय आपके पास कोई सत्ता होनी नहीं चाहिये. सत्ता इसलिये नहीं होनी चाहिये कि आप जिस बातका प्रचार करना चाहते है उसमें शक्ति प्रदर्शन होना वर्ज्य है. सत्ता, शक्ति और लालच ये सब एक आवरण है, और यह आवरण सत्यको ढक देता है. (हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌.).

गांधीजीको जब लगा कि वे अब सामाजिक क्रांति लाना चाहते है तो उन्होने कोंग्रेसके पदोंसे ही नहीं लेकिन कोंग्रेसके प्राथमिक सभ्यपदसे भी त्यागपत्र दे दिया. इसकी वजह यह थी कि उनकी कोई भी बातोंका किसीके उपर उनके पदके कारण प्रभाव न पडे और जिनको शंका है वे संवादके द्वारा अपना समाधान कर सके.

कुछ लोग कहेंगे कि उनके उपवास, और कानूनभंग भी तो एक प्रकारका दबाव था! लेकिन उनका कानून भंग पारदर्शी और संवादशील और सजाके लिये आत्मसमर्पणवाला था. उसमें कोई हिंसात्मक सत्ता और शक्ति संमिलित नहीं थी. उसमें कोई कडवाहट भी नहीं थी. सामने वाले को सिर्फ यह ही कहेनेका था कि, उसके हदयमें भी मानवता है और “रुल ऑफ लॉ” के प्रति आदर है.

महात्मा गांधीने रामको ही क्यों आदर्श के लिये चूना?

भारत, प्राचीन समयमें जगत्‌गुरु था. गुरुकी शक्ति शस्त्र शक्ति नहीं है. गुरुको शस्त्र विद्या आती है लेकिन वह केवल शासकोंको सीखानेके लिये थी. गुरुका धर्म था विद्या और ज्ञानका प्रचार, ताकि जनता अपने सामाजिक धर्मका आचरण कर सके.

शासकका धर्म था आदर्श प्रणाली के अनुसार “रुल ऑफ लॉ” चलाना. शासकका काम और धर्म, यह कतई नहीं था कि वह सामाजीक क्रांति करें और प्रणालीयोंमें परिवर्तन या बदलाव लावें. यह काम ऋषियोंका था. राजाके उपर दबाव लानेका काम, ऋषियोंकी सलाह के अनुसार जनता का था.

वायु पुराणमें एक कथा है.

ब्राह्मणोंको मांस भक्षण करना चाहिये या नहीं? ऋषिगण मनुके पास गये. मनुने कहा ऋषि लोग यज्ञमें आहुत की हुई चीजें खाते है. इस लिये अगर मांस यज्ञमें आहुत किया हुआ द्रव्य बनता है तो वह आहुतद्रव्य खा सकते है. तबसे उन ब्राह्मणोंने यज्ञमें आहुत मांस खाना चालु किया. फिर जब ईश्वरने (शिवने) यह सूना तो उसने मनु और ब्राह्मणोंको डांटा. मनुसे कहाकि मनु, तुम तो राजा हो. राजाका ऐसा प्रणाली स्थापनेका और अर्थघटन करनेका अधिकार नहीं है. उसी प्रकार, ऋषियोंको भी ईश्वरने डांटा कि, उन्होने अनधिकृत व्यक्तिसे सलाह क्यों ली? तो मनु और ये ऋषिलोग पाप भूगतते रहेंगें. उस समयसे कुछ ब्राह्मण लोग मांस खाते रहे.

आचार्य मतलब है कि, आचार और विचारों पर शासन करें. मतलब कि, जिनके पास विद्या और ज्ञान है, उनके पास जो शासन रहेगा वह कहलायेगा अनुशासन. समस्याओंका समाधान ये लोग करेंगे. आचार्योंके शासन को अनुशासन कहा जायेगा. और शासकका काम है, सिर्फ “नियमों”का पालन करना और करवानेका. ऐसा होनेसे जनतंत्र कायम रहेगा.

अब देखो नहेरुवीयन कोंग्रेसने जो भी नियम बनायें वे सब अपने वॉट बेंक के लिये मतलबकी अपना शासन कायम रहे उसके लिये बनाया. वास्तवमें नियम बनानेका मुसद्दा जनताकी समस्याओंके समाधान के लिये ऋषियोंकी तरफसे मतलब कि,  ज्ञानी लोगोंकी तरफसे बनना चाहिये. जैसे कि लोकपालका मुसद्दा अन्ना हजारे की टीमने “जनलोकपाल” के बील के नामसे बनवाया था. उसके खिलाफ नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासकोंने एक मायावी-लोकपाल बील बनाया जिससे कुछ भी निष्पन्न होनेवाला नहीं था.

शासक पक्षः

नहेरुवीयन कोंग्रेस एक शासक पक्ष है. वह प्रजाका प्रतिनिधित्व करती है. लेकिन उसने चूनाव अभियानमें अपना लोकपाल बीलका मुसद्दा जनताके सामने रखकर चूनाव जीता नहीं था. उतना ही नहीं वह खुद एक बहुमत वाला और सत्ताहीन पक्ष नहीं था. उसके पास सत्ता थी और वह एक पक्षोंके समूह के कारण सत्तामें आया था. अगर उसके पास सत्ता है तो भी वह कोई नियम बनानेका अधिकार नहीं रख सकता.

शासक पक्षके पास कानून बनानेकी सत्ता नहीः

उसका मतलब यह हुआ कि जनताके प्रतिनिधिके पास नये नियम और पूराने नियमोंमें परिवर्तन करनेकी सत्ता नहीं हो सकती.

जो लोग समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और मानसाशास्त्रमें निपूण है वे लोग ही हेतुपूर्ण मुसद्दा बनायेंगे और न्यायविद्वानोंसे मुसद्देका आखरी स्वरुप, नियम की भाषामें बद्ध करेंगे. फिर उसकी जनता और लोक प्रतिनिधियों के बीचमें और प्रसार माध्यमोंमें एक मंच पर चर्चा होगी, और उसमें फिरसे जो लोग समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और मानसाशास्त्रमें निपूण है वे लोग हेतुपूर्ण मुसद्दा बनायेंगे और न्यायविद्वानोंसे फिरसे मुसद्देका आखरी स्वरुप नियमकी भाषामें बद्ध करेंगे और फिर उसके उपर मतदान होगा. यह मतदान संसदमें नहीं परंतु चूनाव आयोग करवायेगा. संसदसदस्योंके पास शासन प्रक्रीया पर नीगरानी रखनेकी सत्ता है. जो बात जनताके सामने पारदर्शितरुपमें रख्खी गई नहीं है, उसको मंजुर करने की सत्ता उनके पास नहीं है.

महात्मा गांधीने कोंग्रेसका विलय करनेको क्यों कहा?

महात्मा गांधी चाहते थे कि जो लोग अपनेको समाज सेवक मानते है और समाजमें क्रांति लाना चाहते है, वे अगर सत्तामें रहेंगे तो क्रांतिके बारे में सोचनेके स्थान पर वे खुद सत्तामें बने रहे उसके बारेमें ही सोचते रहेंगे. अगर उनको क्रांति करनी है तो सत्ताके बाहर रह कर जनजागृतिका काम करना पडेगा. और अगर जनता इन महानुभावोंसे विचार विमर्श करके शासक पक्षों पर दबाव बनायेगी कि, ऐसा क्रांतिकारी मुसद्दा तैयार करो और चूनाव आयोगसे मत गणना करवाओ.

महात्मा गांधीको मालुम था

महात्मा गांधीको मालुम था कि कोंग्रेसमें अनगिनत लोग सत्ताकांक्षी और भ्रष्ट है. और जनताको यह बातका पता चल ही जायेगा. “लोग इन कोंग्रेसीयोंको चून चून कर मारेंगे”. और उनकी यह बात १९७३में सच्ची साबित हुई.

गुजरातके नवनिर्माण आंदोलनमें गुजरातकी जनताने कोंग्रेसीयोंको चूनचून कर मारा और उनका विधानसभाकी सदस्यतासे इस्तिफा लिया. विधानसभाका विसर्जन करवाया. बादमें जयप्रकाश नारायणके नेतृत्वमें पूरे देशमें कोंग्रेस हटावोका आंदोलन फैल गया. जिस नहेरुवीयन कोंग्रेसने “हम गरीबी हटायेंगे… हम इसबातके लिये कृत संकल्प है” ऐसे वादे देकर, निरपेक्ष बहुमतसे १९७०में सत्ता हांसिल की थी, वह चाहती तो देशमें अदभूत क्रांति कर सकती थी. तो भी, नहेरुवीयन फरजंद ईन्दीरा गांधीको सिर्फ सत्ता और संपत्ति ही पसंद था. वह देशके हितके हरेक क्षेत्रमें संपूर्ण विफल रही और जैसा महात्मा गांधीने भविष्य उच्चारा था वैसा ही ईन्दीरा गांधीने किया. उसने अपने हरेक जाने अनजाने विरोधीयोंको जेलके हवाले किया और समाचार पत्रोंका गला घोंट दिया. उसने आपतकाल घोषित किया और मानवीय अधिकारोंका भी हनन किया. उसके कायदाविदने कहा कि, आपतकालमें शासक, आम आदमीका प्राण तक ले सकता है तो वह भी शासकका अधिकार है.

रामराज्यकी गहराई समझना नहेरुवीयन संस्कारके बसकी बात नहीं

और देखो यह ईन्दीरा गांधी जिसने हाजारोंसाल पूराना भारतीय जनतंत्रीय मानस जो महात्मा गांधीने जागृत किया था उसका ध्वंस किया. और वह ईन्दीरा गांधी आज भी यह नहेरुवीयन कोंग्रेसमें एक पूजनीया मानी जाती है. ऐसी मानसिकता वाला पक्ष रामचंद्रजीके जनतंत्र की गहराई कैसे समझ सकता है?

राम मंदिरका होना चाहिये या नहीं?

रामकी महानताको समझनेसे भारतीय जनताने रामको भगवान बना दिया. भगवान का मतलब है तेजस्वी. आकाशमें सबसे तेजस्वी सूर्य है. सूर्यसे पृथ्वी स्थापित है. सूर्यसे पृथ्वी की जिंदगी है. सूर्य भगवान वास्तवमें जीवन मात्रका आधार है. जब भी कोई अतिमहान व्यक्ति पृथ्वी पर पैदा होता है तो वह सूर्य भगवान की देन माना जाता है. सूर्यका एक नाम विष्णु है. इसलिये अतिमहान व्यक्ति जिसने समाजको उन्नत बनाया उसको विष्णुका अवतार माना जाता है. ऐसी प्रणाली सिर्फ भारतमें ही है ऐसा नहीं है. यह प्रणाली जापानसे ले कर मीस्र और मेक्सीको तक है या थी.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेसको महात्मा गांधीका नाम लेके और महात्मा गांधीकी कोंग्रेसकी धरोहर पर गर्व लेके वोट बटोरना अच्छा लगता है, लेकिन महात्मा गांधीके रामराज्यकी बात तो दूर रही, लेकिन रामको भारत माता का ऐतिहासिक सपूत मानने से भी वह इन्कार करती है. यह नहेरुवीयन कोंग्रेसको भारतीय संस्कृतिकी परंपरा पर जरा भी विश्वास नहीं है. उसके लिये सब जूठ है. राम भी जूठ है क्योंकि वह धार्मिक व्यक्ति है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने रामको केवल धार्मिक व्यक्ति बनाके भारतीय जनतांत्रिक परंपराकी धज्जीयां उडा देनेकी भरपूर कोशिस की. नहेरुवीयन कोंग्रेसने रामका ऐतिहासिक अस्तित्व न्यायालयके सामने शपथ पूर्वक नकार दिया.

पूजन किनका होता है

अस्तित्व वाले तत्वोंका ही पूजन होता है. या तो वे प्राकृतिक शक्तियां होती है या तो वे देहधारी होते है. जिनका अस्तित्व सिर्फ साहित्यिक हो उनकी कभी पूजा और मंदिर बनाये जाते नहीं है. विश्वमें ऐसी प्रणाली नहीं है. लेकिन मनुष्यको और प्राकृतिक तत्वोंको पूजनेकी प्रणाली प्रचलित है, क्यों कि उनका अस्तित्व होता है.

महामानवके बारेमें एकसे ज्यादा लोग कथाएं लिखते है. महात्मागांधीके बारेमें हजारों लेखकोंने पुस्तकें लिखी होगी और लिखते रहेंगे. लेकिन “जया और जयंत”की या “भद्रंभद्र” की जीवनीके बारेमें लोग लिखेंगे नहीं क्यों कि वे सब काल्पनिक पात्र है.

भद्रंभद्रने माधवबागमें जो भाषण दिया उसकी चर्चा नहीं होगी, लेकिन विवेकानंदने विश्व धर्मपरिषदमें क्या भाषण दिया उसकी चर्चा होगी. विवेकानंदकी जन्म जयंति लोग मनायेंगे लेकिन भद्रंभद्रकी जन्म जयंति लोगे मनायेंगे नहीं.

राम धर्मके संलग्न हो य न हो, इससे रामके ऐतिहासिक सत्य पर कोई भी प्रभाव पडना नहीं चाहिये.

मान लिजीये चाणक्यको हमने भगवान मान लिया.

चाणक्यके नामसे एक धर्म फैला दिया. काल चक्रमें उसका जन्म स्थल ध्वस्त हो गया. नहेरुवीयनोंने भी एक धर्म बना लिया और एक जगह जो चाणक्यका जन्म स्थल था उसके उपर एक चर्च बना दिया. जनताने उसका उपयोग उनको करने नहीं दिया. तो अब क्या किया जाय? जे. एल. नहेरुका महत्व ज्यादा है या चाणक्य का? चाणक्य नहेरुसे २४०० मील सीनीयर है. चाणक्यका ही पहेला अधिकार बनेगा.

हिन्दु प्रणाली के अनुसार मृतदेहको अग्निदेवको अर्पण किया जाता है. वह मनुष्यका अंतिम यज्ञ है जिसमें ईश्वरका दिया हुआ देह ईश्वरको वापस दिया जाता है. यह विसर्जनका यज्ञ स्मशान भूमिमें होता है. इसलिये भारतीयोंमें कब्र नहीं होती. लेकिन महामानवों की याद के रुपमें उनकी जन्मभूमि या कर्म भूमि होती है. या तो वह उसकी जन्मभूमि होती है या तो उनसे स्थापित मंदिर होते हैं. ईश्वर का प्रार्थनास्थल यानी की मंदिर एक जगहसे दुसरी जगह स्थापित किया जा सकता है. लेकिन जन्म भूमि बदल नहीं सकती.

एक बात लघुमतीयोंको समझनी चाहिये कि, ईसाई और मुस्लिम धर्ममें शासकोंमें यह प्रणाली रही है कि जहां वे गये वहां उन्होने वहांका स्थानिक धर्म नष्ट करने की कोशिस की, और स्थानिक प्रजाके धर्मस्थानोंको नष्ट करके उनके उपर ही अपने धर्मस्थान बनाये है. यह सीलसीला २०वीं सदीके आरंभ तक चालु था. जिनको इसमें शक है वे मेक्सीको और दक्षिण अमेरिकाके स्थानिक लोगोंको पूछ सकते हैं.

जनतंत्रमें राम मंदिर किस तरहसे बन सकता है?

श्रेष्ठ उपाय आपसी सहमती है, और दूसरा उपाय न्यायालय है.

I RECOMMEND RAMA-RAJYA

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः राम वचन, प्रतिज्ञा, नहेरुवीयन, नहेरु, ईन्दीरा, महात्मा गांधी, राम राज्य, राजा राम, अर्थघटन, नियम, परिवर्तन, प्रणाली, शासक, अधिकार, रुल ऑफ लॉ, निगरानी, सत्ता, ऋषि, ईश्वर, मनु, अधिकारी, जनतंत्र, हिन्दु, धर्म 

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Rama has been lost who had walked on this earth in flesh and blood Part-7

खो गये है हाड मांसके बने राम (भाग)

एक बात हमे फिरसे याद रख लेनी चाहिये कि व्यक्ति और समाज प्रणालीके अनुसार चलते है.

समाजमें व्यक्तिओंका व्यवहार प्रणालीयोंके आधार पर है

     प्रणाली के अंतर्गत नीति नियमोंका पालन आता है. अलग अलग जुथोंका व्यक्तिओंका कारोबार भी प्रणालीके अंतर्गत आता है. कर्म कांड और पूजा अर्चना भी प्रणालीके अंतरर्गत आते है.

     मानव समाज प्रणाली के आधार पर चलता है. प्रणालीके पालनसे मानव समाज उपर उठता है. समाज के उपर उठनेसे मतलब है समाजकी सुखाकारीमें और ज्ञानमें वृद्धि. समाजके ज्ञानमें वृद्धि होनेसे समाजको पता चलता है कि, समाजकी प्रणालीयों को कैसे बदला जाय, कैसे नयी प्रणालीयोंको लाया जाय और कैसे प्रणालीयों को सुव्यवस्थित किया जाय.

     शासक का कर्तव्य है कि वह स्थापित प्रणालीयोंका पालन करें और और जनतासे पालन करवायें.

कुछ प्रणालीयां कोई समाजमें विकल्प वाली होती हैं.

     जैसे कि एक स्त्रीसे ही शादी करना या एक से ज्यादा स्त्रीयोंसे शादी करना.

जीवन पर्यंत एक ही स्त्रीसे विवाहित जीवन बीताना या उसके होने से या और कोई प्रयोजनसे दुसरी स्त्रीसे भी शादी करना.

     ऐसे और कई विकल्प वाले बंधन होते है. इनमें जो विकल्प आदर्श माना गया हो उसको स्विकारना सत्पुरुषोंके लिये आवश्यक है.

शासक को भी ऐसी आदर्श प्रणालीयोंका पालन करना ईच्छनीय है.

शासकको हृदयसे प्रणालीयोंका पालन करना है.

     शासक (राजा या कोई भी व्यक्ति या व्यक्ति समूह जिनके उपर शासन की जिम्मेवारी है) तो कभी प्रणालीयों मे संशोधन कर सकता है तो वह नयी प्रणालीयां सूचित कर सकता है. अगर वह ऐसा करता है तो वह जनताकी निंदाके पात्र बनता है और जनता चाहे तो उसको पदभ्रष्ट कर सकती है.

रामने क्या किया?

     रामने एक आदर्श राजाका पात्र निभाया.

     उन्होने एक मात्र सीता से ही शादी की, और एक पत्नीव्रत रखा,

     वनवासके दरम्यान ब्रह्मचर्यका पालन किया,

     रावणको हरानेके बाद, सीताकी पवित्रताकी परीक्षा ली,

(वैसे भी सीता पवित्र ही थी उसका एक कारण यह भी था कि वह अशोकवाटिकामें गर्भवती बनी नहीं थी. अगर रावणने उसके उसके साथ जातीय संबंध रखा होता तो वह गर्भवती भी बन सकती थी.)

     रामने जनताकी निंदासे बोध लिया और सीताका त्याग किया. राम जनताके साथ बहस नहीं किया. रामने सीताका त्याग किया उस समय सीता सगर्भा थी. रामने सीताको वाल्मिकीके आश्रममें रखवाया, ताकि उसकी सुरक्षा भी हो और उसकी संतानकी भी सुरक्षा और संतानका अच्छी तरह लालन पालन हो सके.

     रामने सीताका त्याग करने के बाद कोई दूसरी शादी नहीं की.

     रामने यज्ञके क्रीया कांडमें पत्नी की जरुरत होने पर भी दूसरी शादी नहीं की, और पत्नी की जगह सीताकी ही मूर्तिका उपयोग किया.

 

     इससे साफ प्रतित होता है कि, राम सिर्फ सीताको ही चाहते थे और सिर्फ सीताको ही पत्नी मानते थे.

 

रामने तो ढिंढोरा पीटवाया कि सीता को एक बडा अन्याय हो रहा है,

रामने तो ढिंढोरा पीटवाया कि खुदको एक बडा अन्याय हो रहा है,

रामने तो अपने फायदे के लिये प्रणालीमें बदलाव लानेका ढिंढोरा पीटवाया,

रामने खुद अपने महलमें रहेते हुए भी एक वनवासी जैसा सादगीवाला जीवन जिया और एक शासक का धर्मका श्रेष्ठतासे पालन किया.

क्या रामने ये सब सत्तामें चालु रहने के लिये किया था?

     नहीं जी.

     रामको तो सुविधा का मोह था तो सत्ताका मोह था.

     अगर वे चाहते तो १४ सालका वनवास स्विकारते ही नहीं. अपने पार्शदों द्वारा जनतासे आंदोलन करवाते और अयोध्यामें ही रुक जाते.

     अगर ऐसा नहीं करते तो भी जब भरत वापस आता है और  रामको विनति करता है कि, वे अयोध्या वापस आजाय और राजगद्दी का स्विकार कर लें, तब भी राम भरतकी बात मान सकते थे. लेकिन रामने दशरथके वचनका पालन किया. और अपने निर्णयमें भी अडग रहे.

रामने वचन निभाया.

     रामने अपने पुरखोंका वचन निभाया. अपना वचन भी निभाया. अगर राम चाहते तो वालीका राज्य स्वहस्तगत कर सकते थे. अगर राम चाहते तो रावणकी लंकाका राज्य स्वहस्तगत कर सकते थे. उसके लिये कुछभी बहाना बना सकते थे. लेकिन रामने प्रणालीयां निभायी और एक आदर्श राजा बने रहे.

ईन्दीरा गांधीने क्या किया?

     नहेरुने भारतकी संसदके सामने प्रतिज्ञा ली थी कि, वे और उसका पक्ष, चीनके साथ युद्धमें हारी हुई जमीन को वापस प्राप्त किये बीना आराम नहीं करेगा. नहेरुको तो वार्धक्यके कारण बुलावा गया. लेकिन ईन्दीरा गांधीने तो १६ साल तक शासन किया. परंतु इस प्रतिज्ञाका पालन तो क्या उसको याद तक नहीं किया.

     ईन्दीराने खुद जनताको आश्वस्त किया था कि वह एक करोड बंगलादेशी घुसपैठोंको वापस भेज देगी. लेकिन उसने वोंटबेंककी राजनीतिके तहत उनको वापस नहीं भेजा.

     पाकिस्तानने आखिरमें भारत पर हमला किया तब ही ईन्दीरा गांधीने जनताके और लश्करके दबावके कारण युद्धका आदेश दिया. भारतके जवानोंने पाकिस्तानको करारी हार दी.

     याद करो, तब ईन्दीरागांधीने और उसके संरक्षण मंत्रीने एलान किया था कि अबकी बार पाकिस्तानके साथ पेकेजडील किया जायगा और इसके अंतर्गत दंड, नुकशान वसुली, १९४७१९५० अंतर्गत पाकिस्तानसे आये भारतीय निर्वासितों की संपत्तिकी किमत वसुली और उनकी समस्याओंका समाधान, पाकिस्तान स्थित हिन्दु अल्पसंख्यकोंकी सुरक्षा और उनके हितोंकी रक्षा, पाकिस्तानमें भारत विरुद्ध प्रचार अभियान पर कडी पाबंदी, पाकिस्तान की जेलों कैद भारतीय नागरिकोंकी मुक्ति, पाकिस्तानी घुसपैठीयोंकी वापसी, काश्मिरकी लाईन ओफ कन्ट्रोलको कायमी स्विकार और भारतके साथ युद्धनहीं का करार. ऐसा पेकेज डील पर हस्ताक्षर करने पर ही पाकिस्तानी युद्ध कैदीयों की मुक्ति और जमीन वापसी पर डील किया जायेगा.

     लेकिन ईन्दीरा गांधीने इस पेकेज डील किया नहीं और वचन भंग किया. इतना ही नहीं जो कुछ भी जिता था वह सब बीना कोई शर्त वापस कर दिया.

     नहेरु और ईन्दीराने गरीबी हटानेका वचन दिया था वह भी एक जूठ ही था.

     ईंदीरा गांधीका चूनाव संविधान अंतर्गत स्थापित प्रणालीयोंसे विरुद्ध था. न्यायालयने ईन्दीरा गांधीका चूनाव रद किया और उसको संसद सदस्यता के लिये सालके लिये योग्यता हीन घोषित किया.

प्रणालीयोंका अर्थघटन करनेका अंतिम अधिकार उच्चन्यायालय का है. यह भी संविधानसे स्थापित प्रणाली है.

     अगर इन प्रणालीयोंको बदलना है तो शासक का यह अधिकार नहीं है. लेकिन ईन्दीरागांधीने अपनी सत्ता लालसा के कारण, इन प्रणालीयोंको बदला. वह शासनपर चालु रही. और उसने आपतकाल घोषित किया. जनताके अधिकारोंको स्थगित किया. विरोधीयोंको कारावासमें बंद किया. यह सब उसने अपनी सत्ता चालु रखने के लिये किया. ये सब प्रणालीयोंके विरुद्ध था.

प्रणाली बदलनेकी आदर्श प्रक्रिया क्या है?

     प्रजातंत्रमें प्रणालीयोंमे संशोधन प्रजाकी तरफसे ही आना चाहिये. उसका मुसद्दा भी प्रजा ही तयार करेगी.  

     रामने तो सीताको वापस लाने के लिये या तो उसको शुद्ध साबित करने के लिये कुछ भी किया नहीं. तो उन्होने कुछ करवाया. तो रामने अपने विरोधीयोंको जेल भेजा.

तो हुआ क्या?

     सीता जो वाल्मिकीके आश्रममें थी. वाल्मिकीने सीतासे सारी बाते सूनी और वाल्मिकीको लगा की सीताके साथ न्याय नहीं हुआ है. इसलिये उन्होने एक महाकाव्य लिखा. और इस कथाका लव और कुशके द्वारा जनतामें प्रचार करवाया और जनतामें जागृति लायी गई. और जनताने राम पर दबाव बनाया.

     लेकिन जिस आधार पर यानी कि, जिस तर्क पर प्रणालीका आधार था, वह तर्कको कैसे रद कर सकते है? नयी कौनसी प्रणाली स्थापित की जाय की जिससे सीताकी शुद्धता सिद्ध की जाय.

     जैसे राम शुद्ध थे उसी आधार पर सीता भी शुद्ध थी. वाल्मिकी और उनका पूरा आश्रम साक्षी था. और यह प्रक्रियाको वशिष्ठने मान्य किया.

     इस पूरी प्रक्रियामें आप देख सकते हैं कि रामका कोई दबाव नहीं है. रामका कोई आग्रह नहीं है. इसको कहेते हैं आदर्श शासक.

रामका आदर्श अभूत पूर्व और अनुपमेय है.

RAMA KEEPS SITA IN VALMIKI ASHRAM

पत्नीके साथ अन्याय?

     रामने सीताका त्याग किया तो क्या यह बात सीताके लिये अन्याय पूर्ण नहीं थी?

सीता तो रामकी पत्नी भी थी. सीताके पत्नी होनेका अधिकारका हनन हुआ था उसका क्या?

इस बातके लिये कौन दोषित है?

राम ही तो है?

रामने पतिधर्म क्यों नहीं निभाया?

रामको राजगद्दी छोड देनी चाहिये थी. रामने राजगद्दीका स्विकार किया और अपने पतिधर्मका पालन नहीं क्या उसका क्या?

रामका राज धर्म और रामका पतिधर्म

     रामकी प्राथमिकता राजधर्मका पालन करनेमें थी. राम, दशरथराजाके ज्येष्ठपुत्र बने तबसे ही रामके लिये प्राथमिक धर्म निश्चित हो गया था कि, उनको राजधर्मका पालन करना है. यह एक राजाके ज्येष्ठपुत्रके लिये प्रणालीगत प्राथमिकता थी.

     सीता रामकी पत्नी ही नहीं पर प्रणाली के अनुसार रानी भी थी. अगर रानी होनेके कारण उसको राज्यकी सुविधाओंके उपभोगका अधिकार मिलता है तो उसका भी धर्म बनता है कि, राजा अगर प्रणालीयोंके पालन करनेमें रानीका त्याग करें तो रानी भी राजाकी बातको मान्य करें. राजा और रानी प्रणालीयोंके पालनके मामलेमें पलायनवादका आचरण करें.

सीता भी हाडमांसकी बनी हुई थी

      रामायणकी कथा, हाडमांससे बने हुए मानवीय समाजकी एक ऐतिहासिक महाकथा है. सीता भी हाडमांसकी बनी हुई थी. उसने अपने हाडमांसके नातेसे सोचा की यह क्या बात हुई जो शुद्धताकी बात इतनी लंबी चली! यदि ऐसा ही चलते रहेगा तो मुझे क्या बार बार शुद्धताका प्रमाण पत्र लेते रह्ना पडेगा?

     सीता कोई खीणमें पडकर आत्महत्या कर लेती है.

     जनक राजाको यह सीता खेतकी धरती परसे प्राप्त हुई थी. वह सीता धरतीमें समा गयी. कविने उसको काव्यात्मक शैलीमें लिखा की अन्याय के कारण भूकंप हुआ और धरतीमाता सिंहासन लेके आयी और अपनी पुत्रीको ले के चली गई.

     रामने अपनी महानता दिखायी. सीताने भी अपनी महानता दिखाई.

क्या रामके लिये यह एक आखरी अग्निपरीक्षा थी. नहीं जी. और भी कई पडाव आये जिसमें रामके सामने सिद्धांतोकी रक्षाके लिये चूनौतियां आयीं.

(क्रमशः)

 

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः सीता, राम, शासक, राजा, रानी, वचन, शुद्धता, जनता, प्रणाली, परिवर्तन, ईन्दीरा, आपातकाल, अधिकार, योग्यता, अर्थघटन, अयोग्यता, पाबंदी, सत्ता, लालसा, प्राथमिकता, राजधर्म   

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Nehruvian withdraws whole bank

Nehruvian withdraws whole bank

ईन्टरनेट वेबसाईट और सोसीयल नेट वर्कींग पर सरकार क्या कर सकती है और क्या करेगी?

सरकार और वह भी नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकार और उसके सहयोगी पक्ष कुछ भी कर सकते है.

आप कहेंगे कि सहयोगी पक्ष क्यों ऐसे काले और जनतंत्र के खिलाफ कार्यवाहीमें कोंग्रेस को समर्थन देगा? तो जवाब है, नहेरुवीयन कोंग्रेसको समर्थन करने वाले तभी उसको समर्थन कर सकते हैं जब उनको नहेरुवीयन कोंग्रेसकी जो आततायी करतूतें इतिहासिके पृष्ठों पर देशके लिये एक कालीमा के रुपमें प्रस्थापित है और उनको ज्ञात भी है तो भी वे यह नहेरुवीय कोंग्रेसका समर्थन करते है, उसका मतलब यही है कि इन पक्षोंको भी ऐसे कर्मोंसे कोई छोछ नहीं है. और आप देख सकते हैं कि मुलायम, माया, ममता करुणा, शरद, लालु, अजितसिंघ और  साम्यवादी जैसे लोंगोका इतिहास और कार्य शैली कैसी है?

मुलायम सिंह वोटबेंक को धर्म के नाम से आगे बढाना चाहते है. मुलायम को मुल्ला मुलायम क्यों कहते थे इसबातके लिये आप कोई भैया जि से ही पूछीये.

मायावतीका संस्कार ईन्दीरा गांधी जैसा है वह सत्ताके लिये कोई भी हद तक जा सकती है.और मायावतीके पास सिद्धांतोका संपूर्ण अभाव है. कल तक वह कहती थी कि “तिलक तराजु और तलवार इसको मारो जूते चार.” अब वह कहती है “ये हाथी नहीं गणेश है” चलो इसको तो हम यह समझकर भूल सकते हैं कि उसको लगा कि सबको साथ लेके चलना है. उसको भी ईन्दीरा गांधी की तरह अपने गुरु-पूर्वजोंकी  प्रतिमाएं स्थापित करके इतिहासमें जनता के पैसोंसे अमर होना है. बाजपाई सरकारको क्षुल्लक बातोंसे अयोग्य दबाव लाके समर्थन वापस लेनेकी बात उठाती थी. मायावतीके दोहरे मापदंड है. खुदके लिये और अन्य लोगोंके लिये.

ममता बेनर्जीने बाजपाई सरकारको समर्थन दिया था. लेकिन उसका वर्तन तो मायावतीसे भी बढकर था. जिसके तडमें लड्डु उसके तडमें हम. कहा जाता है कि उसने माओवादीयोंके साथ और नक्षलवादीयोंके साथ प्रच्छन्न समर्थन गत विधान सभा चूनावमें लिया था. जो लोग बाजपायी को समर्थन करे और जब बीजेपी को बहुमत न मिले तो उसके विरोंधी और लोकशाही मूल्योंका विद्धंश के लिये कुख्यात पार्टी (नहेरुवीयन कोंग्रेस) का समर्थन करें उसका भला कैसे विश्वास किया जा सकता है. जो व्यक्ति सर्वोदय नेता लोकमान्य जयप्रकाश नारायणकी जीप पर खडी होकर नृत्य करती है, और समय आने पर उसी जयप्रकाश नारायण को मृत्युके मूखमें ढकेलने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकारका भी समर्थन कर सकती है, उसके उपर तो दिमागकी बिमारी वाले विश्वास कर सकते है.

करुणानीधिका किस्सा तो जग प्रसिद्ध है.और ईसके वर्णन की कोई आवश्यकता नहीं है.

शरद पवार वैसे तो पहेले कोंग्रेस (ओ) में थे. फिर यशवंतराव चवाण के साथ नहेरुवीय कोंग्रेसमें गये. कटोकटी (इमरजेन्सी) मे वह नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी रहे. १९७७में वे अलग हुए. फिर पता नहीं कितने दलबदल किये. कहा जाता है कि इनके बारेमें दाउदसे अच्छा कोई नहीं जानता. अगर आप के पास फर्जी करेन्सी नोट है और अगर यह बात सिद्ध हो गयी तो वह करेन्सी नोटकी किमत शून्य हो जाती है. अरबों रुपये के फर्जी स्टेम्प पेपर

बने थे और वे बिल्डरोंको और अन्योंको वितरित हुए थे. सरकार पने रिकोर्डसे पता लगवा सकती है कि, ये फर्जी स्टेम्प पेपर कहां कहां उपयोगमें आये. इतनी तो गुंजाइश तो सरकारमें होनी ही चाहिये. लेकिन ऐसा क्यों नहीं होता है? फर्जी स्टेम्प पेपरका मूल्य शून्य क्यों नहीं बनजाता है? यह सब कमाल किसकी है?

लालुजिने अपनी सरकार एसी चलाई जो ढोरोंकी खास भी ढंगसे वितरण न कर पायी. वास्तवमें सरकारी अफसरोंका और खासकरके उत्तरभारतमें तो बांये हाथकी सरकारी अफसरोंकी कमाई एक विशिष्ठ योग्यता मानी जाती है. और जब ये सरकारी अफसरोंको पता चलता है कि उनका मंत्रीवर्य भी अपन जैसा ही है तब तो उनकी सीमा ओर विस्तृत हो जाती है.

अजितसिंघके पिताश्री चरणसिंहको इन्दिरागांधीने विश्वास दिलाया था कि उसकी पार्टी चरण सिंह को सहाकार करेगी और दोनोंने मिलकर मोरारजी देसाई की जनतापार्टीकी सरकारको लघुमतिमें लादी थी. बादमें इन्दीरा गांधीने चरणसिंहका विश्वासघात करके उनको सहाकर नहीं दिया था. और चरण सिंहको मूंहकी खानी पडी थी. तो भी उनका यह पूत्र अजितसिंह इस विश्वास घातको भूल कर सिर्फ सत्तामें भागके लिये उसी ईन्दीराई नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधनमें है. इससे ज्यादा पिताजीकी नालेशी क्या हो सकती है? और ऐसे “प्रहारजनिता व्यथाको” गर्दभकी तरह भूल जाने वालेका क्या विश्वास कर सकते है?

अगर नहेरु की पूत्री सीनीयर न होने पर भी भारतकी प्रधानमंत्री बन सकती है तो लालुप्रसाद यादव की पत्नी क्यों मुख्य मंत्री बन न सके? अगर नहेरुवीयन कोंग्रेसके एक प्रधान मंत्री की एक पुत्रवधू कोमन समान मंचपर आके विपक्ष के कोई नेता के साथ चर्चा नहीं कर सकती और समाचार माध्यम पूत्रवधूमें कोइ अपूर्णता और टिकात्मकता देखना नहीं चाहते तो  लालुजिकी पत्नी को भी समान मंचपर गोष्टि करना कैसे जरुरी है? साध्यम इति सिद्धम्‌. समाचारमाध्यमके मालिकोंके लिये और उनके कटार मूर्धन्योंके लिये तो “तेरी बी चूप और मेरी बी चूप हो गई”. मीडीया बिकाउ है इसका इससे उत्कृष्ट उदाहरण क्या हो सकता है?

साम्यवादीयोंका कोई देश और धर्म नहीं होता. जनताको उल्लु बनानेके लिये उसको आघात देते रहो और जनताको गुमराह करते करते अपना शासन करते रहो. पश्चिम बंगालमें तीन दसक तक साम्यवादी शासन रहा. क्या पश्चिम बंगालमेंसे गरीबी हट गई? क्यां वहां पर आदमीसे खिंचीजानेवाली रीक्षाके स्थान पर सीएनजीसे चलने वाली रीक्षा आ गई या दी गई? हरि हरि करो. ऐसा कुछ हुआ नहीं. सीएनजी क्या !! सायकल रीक्षा भी नहीं आयी.

अहमदाबादमें एक सप्ताहमें ही नरेन्द्र मोदीने सभी पेट्रोलकी रीक्षाओंको सीएनजी रीक्षामें परिवर्तित करदीया था. अहमदाबादमें १९५१के बाद सायकल रीक्षा ही खतम हो गई. १९५२से अहमदाबादमें ऑटोरीक्षा ही है. जो नरेन्द्रमोदीने एक सप्ताहमें किया वह नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादी पक्ष साठ सालमें भी नहीं कर पाये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादीयोंमें क्या फर्क है? खास कोई नहीं. जो निघृष्ट कार्य नहेरुवीयन कोंग्रेस खुदके उपर आपत्ति आने पर विरोधीयों और जनताके उपर करती है वह कार्य साम्यवादी लोग हर हालतमें करते है.

Media wants to make a paper tigress

Media wants to make a paper tigress

कोंग्रेसके उपर आपत्ति आयी तो पैसे के लिये बेंकोका राष्ट्रीयकरण किया, नैपूण्य के स्थानपर युनीयनबाजी को प्रोत्साहन दिया. अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले विरोधियोंको अनियत कालके लिये कारावासमें डालदिया, समाचार माध्यमोंपर सेन्सरशीप लगा दी, यहां तक कि, अगर कोई केसमें उच्च न्यायालयमें सरकारकी पराजय हूई तो ऐसे सरकारी पराजयके समाचार पर भी सेन्सरशीप रही. अपनवालोंको लूटका अलिखित स्वातंत्र्य दे दिया. ऐसे तो कई कूकर्म इमर्जेन्सीमें हूए. यह साम्यवादी पक्ष तो चाहता था कि, इमर्जेन्सीके अंतर्गत नहेरुवीयन कोंग्रेस साम्यवादी पक्षमें विलिन हो जाय या तो संपूर्ण साम्यवादी तौर तरिके अपनाके एक नये साम्यवाद स्थापनेकी क्रांतिकारी कदम उठावे. लेकिन साम्यवादी लोग यह समझ नहीं पाये के कि भारतमें लोकशाही विचारधारा और सुसुप्त जनशक्ति असाधारण और गहरी थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपने सर्वोच्च नेताके कारण मूंहकी खानी पडी तो भी यह नहेरुवीयन कोंग्रेस ने कोई शिख नहीं ली. वह आज भी विरोधियोंको येनकेन प्रकारेण फर्जी किस्से बनानेमें व्यस्त रहेती है. और खुदके सच्चे किस्सेके बारेमें मौन रहेती है और समाचारमाध्यम भी इन पर मौन रहे वैसा कारोबार करती है.

VOTE FOR MOMMY

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ऐसे समाचर माध्यमोंको सेन्सरशीपकी जरुरत भी क्या है? पैसे फेंको और जो करवाना हो वह करवा लो, जो लिखवाना हो, वह लिखवा लो, जो कटवाना हो वह कटवालो. जिनको यह नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले झुकवाना चाहते हैं वे तो साष्टांग दंडवत प्रणाम करनेके लिये भी तैयार है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस अब क्या कर सकती है? वह विरोधीयों के उपर फर्जी केस बना सकती है. जैसा उसने वी.पी. सिंह के उपर सेन्ट कीट के गैरकानुनी एकाउन्ट केस का किया था.

केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव जैसे लोगपर भी सरसव जैसे दोषोंको पहाड जैसे बताके कार्यवाही कर रही है और समाचारपत्रोमें उनको बदनाम करवा रही है.

लेकिन आमजनताकी आवाज जो ईन्टर्नेटके जरिये चल रही है उसको बंद कैसे करें इस समस्या पर नहेरुवीयन कोंग्रेस अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. जनमाहिति अधिकारको तो उसने नष्टप्राय कर दिया है. कैसे? जो भी कोई जनमाहिति अधिकारी होते हैं वे सबके सब तो वही विभागसे संलग्न होते है. जो हमेशा विलंब नीति अपनाके बाद कोई न कोई बहाना बनाके माहितिको टालनेका प्रयास करते है. जब आप माहिति कमिश्नरके पास पहोंचते है तब कमिश्नरोंकी नियुक्ति पर्याप्त और अपूर्ण होने के कारण केसोंका ढेर पडा होता है. जैसे न्यायमें देरी वह न्याय का इन्कार के बराबर है, वैसे भी माहिति देनेमें अपार विलंब भी माहिति न देनेके बराबर ही हो जाता है.

मैं दाउदका नमक खात हूं

मैं दाउदका नमक खात हूं

ऐसा ही अब जनसामान्य जो चर्चाप्रिय है और भ्रष्टाचारके विरुद्धमें अपना स्वर उंचा करते है, और वह भी ईन्टर्नेट माध्यम के द्वारा तो यह नहेरुवंशी कोंग्रेस इनलोंगोंके उपर आक्रमण के लिये तैयार है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस कैसे तैयार है?

जो भी भारतीय स्थानिक वेबसाईट है वे सब तो समाचार माध्यमोंकी तरह व्यंढ ही है.

इनके लिये व्यंढ शब्दका उपयोग करना भी व्यंढ लोगोंका अपमान करनेके बराबर है. कारण यह है कि व्यंढ लोग तो  सिर्फ प्रजननके लिये ही व्यंढ है. इन लोगोंमे शूरविरता और देशप्रेमकी कमी होना जरुरी नहीं है.

लेकिन ये भारतस्थ वेबसाइट वाले तो डरपोक और बीना प्रतिकार किये आत्मसमर्पण करनेमें प्रथमकोटीके है. ये लोग समाचार माध्यमोसे कोइ अलग मनोदशा रखनेवाले नहीं है.

तो यह वेब साईट पर आक्रमण करवाना कौन चाहता है? कौन करवायेगा? और कैसे करवायेगा?

नहेरुवंशवादी कोंग्रेसको वेबसाईटकी स्वतंत्रता और पसंद नहीं है. क्योंकि वेबसाईट के सदस्य नहेरुवीयन कोंग्रेसके तथा कथित कारनामे पर आपसमें चर्चा करते है और इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी कमीयां बाहर आती है. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपनी कमीयोंको दूरकरना चाहती नहीं है. क्योंकि अगर दूर करेगी तो देशकी उन्नति हो जायेगी और देशकी उन्नति का मतलब है लोग पढे लिखे और समझदार हो जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी असलियतको पहचान जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्तासे हटा देंगे. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्तासे हट जायेगी तो जो अन्य सरकार आयेगी वो उसके उपर न्यायिक कार्यवाही करेगी. अगर नयी सरकार, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंपर  न्यायिक कार्यवाही करेगी तो वे सभी नेतागणकी चूनावके लिये योग्यता नष्ट हो जायेगी अन्तमें उनको जेल जाना पडेगा. इतना ही नहीं लेकिन ये नहेरुवीयन फरजंदोने जनताके पैसोंसे जो बनी इमारतें और योजनाओंका नाम खुदके नामसे जोडा है, वे सब हट जायेगा. उनके बूत हट जायेंगे और उनके सभी अव्वल नंबरके नेताओंका नाम दूर्योधन, शकूनी, शिशुपाल, मंथरा, आदिके क्रममें आजायेगा. यह बात तो छोडो लेकिन उनको अपने रक्त-काला धनसे हाथ धोना पडेगा.

Only left hand drive

Only left hand drive

इसीलिये नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाईट की स्वतंत्रता पर अपना प्रभाव लाना चाह्ती है. लेकिन इसमें नहेरुवीयन कोंग्रेसको मदद कौन कर सकता है?

नहेरुवीयन कोंग्रेसको उसके साथीपक्ष मदद कर सकते है. क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्षकी मनोवृत्तियां और चरित्र भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की मनोवृत्तियां और चरित्रके समकक्ष हि है. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावमें हार भी गई तो ये पक्ष नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंका रक्षण करनेमें अपना दिलसे योगदान करेंगे क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसने भी समय समय पर इन पक्षोंके सदस्योंकी रक्षा की है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाइट पर अपना प्रभाव डालने के लिये किसका सहारा लेगी?

नहेरुवीयन कोंग्रेस ये काम पुलीस डीपार्टमेन्टके द्वारा करवायेगी. क्योंकि यह डिपार्टमेन्ट हो एक ऐसा डिपार्टमेन्ट है जो हमेशा गलत काम करनेमें प्रथम क्रम में रहेता है. जो डिपार्टमेन्ट फर्जी एनकाउन्टर करता है वह क्या क्या नहीं कर सकता!!

वह आपके पेजको हैक करसकता है. वह आपके पेजपर कुछभी आपत्ति जनक लिखके आपके पेज को और आपको बदनाम करके आपके पेजको सेन्सर करके उसको नष्ट कर सकता है.

ऐसा अगर न भी करें, तो भी आपके पेज को बेवजह ही नष्ट कर किया जा सकता है. वजह यही बतायेगा कि आपने नहेरुवीयन कोंग्रेसके खिलाब बेबुनियाद लिखा है और इसलिये आपका पेज नष्ट किया गया है. और यह पता लगानेके लिये भी आपको महिनों तक वेबसाईट के साथ लिखावट करनी पडेगी तब कहीं यह वेबसाईटवाला आपको बतायेगा कि पूलिसकी सूचना पर उसने आपका पेज नष्ट किया है. फिर आपको पूलिस-डिपार्टमेन्टसे “जन माहिति अधिकार”का उपयोग करके और उसके बाद न्यायालयमें जाके अपने हक्क के लिये लडना होगा. इसमें आपका कमसे कम एक साल चला जायगा. अगर आपके पास पैसे है तो ऐसे वेबसाईटसे और सरकारसे नुकशान वसुली करवा पायेंगे. लेकिन ऐसा करनेमें आपको सिर्फ यह काम के लिये हि हाथ धोके पीछे पडना पडेगा.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्ष चाहतें है कि जनता यथावत ही रहे. सबकुछ यथावत ही रहे ताकि वे लोगभी अपना काम यथावत ही कर सके और अपनी बहत्तर पेढीयोंका उद्धार करसके.

वे यह नहीं चाहते हैं कि आप लोग अपने मित्रोंके साथ माहिति और विचारोंका आदानप्रदान करे भ्रष्टाचार और असत्य के सामने आवाज उठानेके लिये कोई योजना बनावे.

ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्य खुद कुछभी अनापसनाप बोलसक्ते हैं. उनके उपर कोइ पाबंदी नहीं. उनके पक्षीय महामंत्री बेबुनियाद आरोप लगा सकते है, और सरकारी प्रसार माध्यमभी उसका खुलकर प्रसारण करेंगे. उसमें इस नहेरुवीयन कोंग्रेसको कोई कठिनाई और आपत्ति या बेइमानी दिखाई नहीं देती. लेकिन अगर आप रामराज्यकी बात करेंगे तो उनको आपत्ति होगी और आपका वेबसाईट परका पेज नष्ट होगा.

वैसे तो लोकतंत्रमें आप आपके मित्रोंके साथ कुछभी विचार विनिमय कर सकते है. लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस एक दंभी, स्वकेन्द्री और आपखुद चरित्र और संस्कार होने के कारण आपके अधिकार पर कोई भी आघात कर सकती है. और ये कमीना पोलीस तंत्र ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके आदेशोंका पालन करने के बारेमें दिमागसे अंध है और अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस उसको कहेगी कि “हमारे आगे झुको” तो यह पोलीस तंत्र “साष्टांग दंडवत प्रणाम” करने लगेगा. जो खुद भ्रष्ट और नीतिहीन है उसकी करोडराज्जु होती ही नहीं है.

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