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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है?

बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या क्या है?

“प्रशस्ति पत्रोंकी वापसी, इसमें हम नहीं, मैं शर्मींदा हूँ, भारतके मुस्लिम सुरक्षित नहीं, अखलाक, पत्रकारकी हत्याएं, दलितों पर अत्याचार, व्यर्थ विमुद्रीकरणके कारण कई मृत्यु और आम आदमीको परेशानी, जीएसटी एक गब्बरसींग टेक्ष, राफेल डील, उद्योगकर्ताओंको खेरात, सुशील मोदी, माल्या आदिको अति अधिक ॠण देकर देशसे भगा देना, सरकारी बेंकोका एनपीएन उत्पन्न करना, मी टू, काश्मिरमें अशांति पैदा करना आदि ये सब मोदी सरकार द्वारा बनी समस्याएं हैं.” ऐसा सिद्ध कैसे किया जाय? यह बीजेपी विरोधीयोंकी समस्या है.

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(मुझे मितु मितु करके मत बुलाओ. मुझे  मिताली कहो)

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ऐसी कई बातोंको नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षने अपने पालतु कटार लेखकों द्वारा, एंकरों द्वारा, महानुभावो द्वारा हवा देके मोदी सरकारके विरुद्ध हवा बनानेका भरपूर प्रयत्न किया है ताकि जनताको यह संदेश मिले कि, नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष, जब शासनमें था तब तो देश खुशहाल था और देशमें शांति ही शांति थी.

सत्य क्या था?

किन्तु हम सब जानते हैं कि नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके शासन वास्तवमें कैसा था. विकासको तो रोकके ही रक्खा था और वही योजनाएं होती थीं और वे भी अति देरीसे, जिनमें नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके सर्वोच्च नेताओंके साथ अंडर टेबल डील हो सकता था. इन बातोंके तो कई उदाहरण है.

“विकास पागल है” नहेरु-इन्दिरा गांधी वंशी कोंग्रेसका सूत्र !!

बीजेपीके सत्तामें आनेके बाद, आम जनताको तो अब पता है कि विकास क्या है. लेकिन नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेताओंने विकासको पागल बताके विकासके विरुद्ध बोलना आरंभ कर दिया था.

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेताओंको पता चल गया है कि विकासके विरुद्ध प्रचार करने से उनकी दाल गलने वाली नहीं है. इसलिये उन्होंने अपने पालतु समाचार माध्यमके तथा कथित विद्वानोंसे “गठ बंधन” जो नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेतागण, उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके साथ करनेवाले हैं उसका गुणगान करना प्रारंभ कर दिया है. भूतकाल में “गठ बंधनवाली” सरकारोंने अच्छा काम किया था इस बातको मनवाने के लिये उनके शौर्यगीत सूनाना चालु कर दिया है.

“शेखर गुप्ता” एक तथा कथित मूर्धन्य कोलमीस्ट है. सोनेमें सुहागा यह है कि वे “ध प्रीन्ट” के मुख्य तंत्री भी है. लगता है उनको नरसिंह रावका [ जो नहेरुवीयन-{इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके एक अनहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)}  प्रधान मंत्री थे ]  कार्यकाल पसंद होगा. उस समय मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे. इस लिये नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष पुरस्कृत युपीएकी अर्थ नीति पसंद हो सकती है. शेखर गुप्ताजीने एक पुस्तक “ईन्डिया रीडीफाईन्स इट्स रोल” लिखा है. वैसे तो कई लोग तत्कालिन वित्त मंत्री को (मनमोहनको) उस समयकी अर्थनीतिके कारण श्रेय देते हैं. वैसे तो नरसिंह रावके वित्तसलाहकार सुब्रह्मनीयम थे और विश्वबंधु गुप्ता जो तत्कालिन आयकर विभागके महान आयुक्त थे उन्होने मनमोहन सिंहके अभिगम और उनकी मान्यताओंके विरुद्ध स्वानुभवके विषय पर काफि कुछ लिखा है. इन बातोंकी चर्चा हम नहीं करेंगे. हम इस समय हमारे उपरोक्त कटारीया भाई (शेखर गुप्ताजी) जो नरेन्द्र मोदीकी अर्थनीतिकी उपलब्धियोंको निरर्थक बताने पर तूट पडे है, और नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी यानी कि “गठबंधन वाली” सरकारोंने कैसा अच्छा काम किया था वह सिद्ध करनेके लिये अपना दिमाग तोड रहे हैं, उनकी बाते करेंगे.

नरेन्द्र मोदी हमेशा पूर्ण बहुमत वाली सरकारको लानेका जनताको अनुरोध करते है. वे यह भी कहेते है कि पूर्ण बहुमत होनेके कारण उनकी सरकारकी उपलब्धियां अभूतपूर्व है. गठबंधनकी सरकारें अस्थिर होती हैं और उनकी उपलब्धियाँ पारस्परिक विरोधाभासोंके कारण देशके विकास पर ऋणात्मक असर पडता है.

कटारीयाजी का साध्यः “गठबंधनवाली सरकार श्रेय है” उससे डरना नहीं.

अब हमारे कटारीया भाईका एजन्डा है कि नरेन्द्र मोदीके इस तर्कका खंडन कैसे किया जाय?

किसी भी सत्यका खंडन करना हो तो सर्व प्रथम तो जो सत्य है उसको छोडकर, दुसरे विषय पर विवरण तयार कर देना चाहिये. तत्‍ पश्चात्‍, जो सत्य है उस सत्यको उलज़ा दो. यानी कि जिस समस्याको सुलज़ानेका बीडा जिस व्यक्तिको दिया था उसको पार्श्व भूमिमें रख दो और उसके स्थान पर पूर्व निश्चित और आप जिस व्यक्तिको या समूहको रखना चाह्ते हो उस/उन को रख दो. फिर श्रेय   उस/उन को दे दो.

सियासतमें ऐसा तो बार बार होता है.

जैसे कि दूरसंचार प्रणालीको सुधारनेका बुनियादी ढांचा (ईन्फ्रास्ट्रक्चर)का काम तो बहुगुणाने किया था. लेकिन बहुगुणा उसका श्रेय स्वयं ले रहे थे तो इन्दिरा गांधीने उनको हटा दिया और पक्षसे भी निकाल दिया. ऐसा ही हाल इन्दिराने वीपी सिंगका किया था जब वे अर्थमंत्री थे.

किन्तु नरसिंह रावने ऐसा नहीं किया. नरसिंह रावने अर्थतंत्रके सुधारका श्रेय मनमोहन सिंहको लेने दिया. वैसे तो उसका श्रेय अर्थ-तंत्र-सलाहकार टीम जिसमें नेता सुब्रह्मनीयम स्वामी थे, उनको भी जाता है. नीतियाँ एक अति असरकारक परिबल है और प्रक्रियायें भी एक और परिबल है. प्रक्रियाको सुधारने की महद्‍ जिम्मेवारी वित्त मंत्रीकी होती है. मनमोहनके वित्तमंत्रीकालके जमानेमें “शरद महेता”वाला कौभान्ड हुआ. क्यों कि मन मोहन सिंहने बेंको कि कागजी लेनदेनकी गलतीयों पर ध्यान नहीं दिया था. फिर उन्होंने आश्वासन दिया कि “अबसे (भविष्यमें) ऐसा नही होगा.” यदि मनमोहन सिंह चालाक होते तो, उनको जो प्रधानमंत्री का प्रमोशन मिला, तब जो सत्यम्‍ स्कॅम हुआ वह न होता.

“नहेरुवीयन प्रणाली”

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी सियासतमें गलतीयोंको दुसरोंके नाम पर चढा देना और उपलब्धीयोंको नहेरुवंशके फरजंद पर चढा देना आम बात है. जैसे कि चीनके साथके युद्धमें भारतकी हारका कुंभ सिर्फ वि.के. मेनन पर फोड देना, और पाकिस्तान के उपर भारतकी १९७१की विजयका श्रेय तत्कालिन सुरक्षा मंत्री जगजिवन रामको न देना और सिर्फ इन्दिरा गांधीको दे देना, ये सब नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षका संस्कार है.

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी ऐसी प्रणालीयोंपर तालियाँ पाडने वाले मूर्धन्य भारतमें पहेले भी विद्यमान थे और आज भी विद्यमान है.

अब गठबंधन वाली सरकारोंकी उपलब्धीयां पुरस्कृत करने के लिये हमारे कटारीया भाई, भारतवर्षकी प्रथम संयुक्त “राष्ट्रीय सरकार” १९४७-५२का उल्लेख करते हैं.

याद करो मूल कोंग्रेसी सदस्यका संस्कार

कोंग्रेसके शिर्ष और सर्वोच्च नेता यानी कि “नहेरु”की प्रच्छन्न मानसिकताको छोड दें, और कोंग्रेसके तत्कालिन सामान्य सदस्यकी बात करें तो मुज़े निम्न लिखित प्रसंग याद आता है.

१९४२में महात्मा गांधीने “भारत छोडो” आंदोलन छेडा था और जनताको कहा था कि हर व्यक्ति स्वयंका नेता है. आप कानून भंग करोगे. खूल्लेआम कानून भंग करोगे और यदि आप गिरफ्तार हुए तो आपको सहर्ष गिरफ्तारी स्विकारोगे और कारावासका भी स्विकार करोगे.

एक महिला थी. उसने अपने महिला साथीयोंके साथ प्रदर्शन किया. उस महिलाको पूलीसने गिरफ्तार किया. उस महिलाने कुछ गहने पहने थे. उसने पास खडे एक कोंग्रेसीको अपने गहने दे दिया और कहा कि मेरे घरका पता यह है, आप इन गहेनोंको मेरे घर पर पहूँचा देना, और कह देना कि मैं कारावास जा रही हूँ. उस कोंग्रेसीने कहा कि “बहनजी आप तो मुज़े पहेचानते तक नहीं है. आपने मुज़पर विश्वास कैसे कर दिया कि मैं इन गहनोंको आपके घर तक पहूँचा दूंगा?”

उस महिलाने उत्तर दिया कि आप कोंग्रेसी है इस बात ही मेरे लिये पर्याप्त है कि आप विश्वसनीय और नीतिमान है.”

आज क्या ऐसी स्थिति है कि “विश्वसनीयताके लिये कोंग्रेसी होना पर्याप्त है?”

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके ६५ सालके शासनके बाद नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेतागण, अपनी विश्वसनीयताका, जनतामें कायम रख सके हैं क्या?

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके आम सदस्यकी बात छोडो, नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके शिर्षनेता भी विश्वसनीय नहीं रहे है. इसका क्या हमारे कटारीयाजीको मिसाल देना पडेगा?

नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके सर्वोच्च नेतागण स्वयं “बेल (जमानत)” पर है. स्वयंके लिये जमानत लेना, यह बात ही मूल कोंग्रेसके मूलभूत सिद्धांतोसे विपरित है. किस मूँह से कोई नीतिमत्ताके इस विनिपातसे पराङगमुख बन सकता है. और वह भी एक मूर्धन्य राजकीय विश्लेषक श्रीमान शेखर गुप्ताजी.

“राष्ट्रीय सरकार” कोई चूनावी गठबंधन था ही नही.

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राष्ट्रीय सरकार के समय पर बना गठबंधन कोई गठबंधन नहीं था. वह कोई सत्ता पाने के लिये या तो किसी अन्य गठबंधनके विरुद्धवाला गठबंधन नहीं था. महात्मा गांधी चाहते थे कि भारतका तत्कालिन शासन और संविधान सभीको साथ लेके चले.

राष्ट्रीय सरकारको गठबंधनवाली सरकार का नाम देना “तर्कहीन” ही नहीं किन्तु “हास्यास्पद” भी है. यदि कोई विद्वान ऐसी तुलना और विश्लेषण करे तो उसकी निष्पक्षता पर कई प्रश्न चिन्ह उठते हैं. जो गठबंधन ही नहीं था उसको गठबंधन बताके उनकी उपलब्धीयोंको “सियासती गठबंधन भी ऐसी उपलब्धीयोंके लिये सक्षम है” ऐसा बताना, यह बात तो जनताको गुमराह करनेके बराबर है.  

वैसे तो हर गठबंधन यदि वह सियासती गठबंधन है तो वह एक पूर्ण बहुमत वाले पक्षकी सरकारसे श्रेय नही हो सकता, चाहे उसका आधार सियासती हो या न हो.

सियासती “अस्थिरता” नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी देन है. १९६९ और १९७९की अस्थिर सरकारोमें नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षका बडा योगदान था. इनका जिक्र हमारे कटारीया भाईने नहीं किया है.

१९६७ तक नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी आंतरिक संगठन शक्ति कायम थी. नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी शिर्ष नेता इन्दिरा गांधीने इस आंतरिक संगठनका विभाजन किया. १९७१की इन्दिरा-विजय नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी संगठन शक्ति पर आधारित नहीं था. वह विजय इन्दिरा-वेव्ज़ के कारण था. नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षका संगठन तो निर्बल ही बन गया था. १९८४की नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षकी विजय भी “सहानुभूति-वेव्‍ज़के” कारण था. और इसके बाद तो बहुपक्षीय-संगठनवाला अस्थिरताका युग शुरु हुआ इस बातको तो कटारीयाजी स्वयं कबुल करते है.

वी.पी. सिंघवाले बहुपक्षीय-संगठन सरकारकी उपलब्धीयां थी ऐसा कटारीयाजी प्रदर्शित करते है. वास्तवमें मोरारजी देसाईकी सरकारकी उपलब्धीयां कई गुना अधिक थी. इस बातको यदि हम छोड भी दें तो वीपी सिंघ स्वयं नरेन्द्र मोदीकी तरह नीतिमत्तामें मानते थे. तो भी, उनके उपर भी नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्षके नेताओंने कीचड उछाला था. जैसे कि वीपी सिंघका विदेशमें (सेन्टकीट्समें) एकाउन्ट था.

जब भी नीतिमत्ता की बात आती है तब बहु पक्षीय गठबंधन कमज़ोर पड जाता है.

इसका कारण यह है कि वंशवादी पक्षका आधार एक वंशवादी नेता होता है. उस पक्षके सदस्य, सियासतमें सिर्फ और सिर्फ पैसे बनानेके लिये आते है. इन सदस्योंको सर्वोच्च पद प्राप्त करनेकी ख्वाहिश होती ही नहीं है. क्या वाड्राको प्रधान मंत्री बननेकी ख्वाहिश है? क्या पप्पु यादवको मुख्य मंत्री बनना है? क्या अभीषेक मनु सिंघ्वी या रणदीप सुरजेवालाको प्रधान मंत्री बनना है? नहीं भाई हमें सर्वोच्च पद नहीं चाहिये. हमें हो सके तो मंत्री बना दो और यदि मंत्री भी न बना सको तो सिर्फ हमे हमारा असामाजिक यानी कि गैरकानूनी काम करने दो और कायदा हमे स्पर्ष न करे उसका आप ध्यान रक्खो. हमें सिर्फ यही चाहिये.

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अल्पमत सरकार आवकार्य नहीं है

नरसिंह राव की सरकार अल्प मत सरकार थी. और उसने ५ साल शासन किया. एक दो अल्पमत सरकारका उदाहरण लेके हम ऐसा वैश्विक धारणा/निष्कर्ष बनाके भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि अल्पमत सरकार हर हालतमें आवकार्य है.  जब पक्षीय संगठनका मूलभूत प्रयोजन सामनेवाले को हराना हो और पैसा बनानेके लिये सत्ता प्राप्त करना हो,  तो आपको आठ सालमें तीन चूनाव के लिये तयार रहेना पडता है.

विवादास्पद उपलब्धीयां

कटारीया भाई ऐसा दिखाते है, कि चाहे कुछ भी हो १९९७में पी. चिदम्बरमने राष्ट्रीय विनिवेश पंचकी रचना की और पब्लिक उपक्रमोंका लीस्टींग और प्राईवेटाईझेशनका दरवाज़ा खोला.

कटारीयाजी प्रदर्शित करते है कि भाई हम तो तटस्थ है. मोदीकी विरुद्धमें है. उसका मतलब यह नहीं कि हम बाजपाईजीके भी विरोधी है. बाजपाईजीमें तो दम था. (मतलब? नरेन्द्र मोदीमें वह दम नहीं), क्योंकि बाजपाईने चतुर्भूज हाई वे योजना बनाई. दो बडे एरपोर्टका प्राईवेटाईझेशन किया. ११ पब्लिक सेक्टरकी कंपनीयां जो प्रोफिट करती थी और २४ आई.टी.डी.सी. हॉटेल्स बेच दी. और सर्वशक्तिमान नरेन्द्र मोदी एक भी कंपनी बेच नहीं पाये. कटारीया साहबका संदेश यह है कि पब्लिक सेक्टरकी कंपनीयां बेचना सरकार शक्तिमान होनेका गुण है. “साध्यम इति सिद्धम्‌.”

अरे भाई साहब, खोटमें चलनेवाली सरकारकी कंपनीयोंको नफा करनेवाली बनाना ही सरकारी शक्तिका गुण है जो नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें करके दिखाया है. हर गांवमें हर खेतमें बीजली पहूँचाना और वह भी २४/७ घंटे, यह भी तो उपलब्धी है नरेन्द्र मोदीजीकी. हर घरमें गेस पहूँचाना यह भी तो एक महान उपलब्धी है.

भारतीय रीज़र्व्ड सोनेको देशके बाहर ले जानेकी हिमत दिखाना और वह भी भूगतानके लिये, इस घटनाको कटारीयाजी, अपना दिमाग तोड परिश्रमसे, तत्‌कालिन प्रधान मंत्री चन्द्रशेखरकी   उपलब्धीमें गीनती करवाते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति किसने उत्पन्न की थी और इसके लिये कौनसी सरकार जीम्मेवार थी उस विषय पर हमारे कटारीया भाई मौन है.

कटारीयाजी मानते है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ १९८९-९०में कमजोर थी. शायद कटारीयाजी १९८९से लेकर २०१४ तक कश्मिरमें हिन्दुओंकी कत्लेआम और आतंकवादीयोंका और नक्षलीयोंका देशके महानगरोंमें घुस कर और देशके भीतरी इलाकोंमें दूर दूर तक घूस घूस कर अपनी बोम्बब्लास्ट वाली प्रवृत्तियां विस्तारना, इन सब बातोंको राष्ट्रीय सुरक्षासे जोडनेमें नहीं मानते है. नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष,  राफेल का डील नहीं कर पाना उसका कारण ही तो २०१२में पैसा न होना ऐसा एन्टोनी खूद संसदमें बताते है. इस परिस्थितिको यदि दिवालियापन नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?  

कटारीयाजी क्या समज़ते है?

कटारीयाजी समज़ते है कि, १९८९-९०की अराजकता और शासकीय निस्फलता पर जोर देना नहीं चाहते. क्यों कि यह बात, कटारीयाजीके एजन्डाके विरुद्ध है.  कटारीयाजी “आतंकवाद” शब्द का उपयोग करना ही नही चाहते है. वे यह कहेते है कि १९९१-१९९६ तक कश्मिर  सबसे बुरी स्थितिमें था. लेकिन परिस्थिति काबुमें थी.

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कमालकी बात है. यदि परिस्थिति काबुमें थी तो ५०००००+ हिन्दुओंको पुनर्थापित क्यों नहीं किया?

यदि परिस्थिति काबुमें थी तो कितनोकों गिरफ्तार कीया? परिस्थिति काबुमें थी तो  कितने केस कोर्टमें दर्ज किये? परिस्थिति काबुमें थी तो किन किन मंत्रीयोंको जिम्मेवार बनाया और उनके उपर कितने केस दाखिल किया? परिथिति काबु में थी तो कोई एस.आई.टी.का गठन किया या नहीं?

कटारीयाजी इन सब कमजोरीयोंको और निस्फलताओंको, नजर अंदाज करवाने लिए, इन सब विषयोंको कश्मिर और केन्द्रस्थ शासकोंकी क्रीमीनल निस्फलतासे नहीं जोडते है.

यह बात समज़नी चाहिये कि खालिस्तानवादीयोंका आतंकवाद खतम करनेका श्रेय सिर्फ केपीएसगील को जाता है (शायद अजित डोभाल भी सामिल हो), और खालिस्तानी नेताओंको बडाभाई बनानेका श्रेय इन्दिरा गांधीको जाता है. लेकिन कटारीया भाई, नहेरुवंशवादको शायद जनतंत्रके लिये घातक नहीं मानते. वे इस बातको समज़नेके लिये तयार नहीं कि, यदि जे.एल. नहेरु अपने कार्यकालमें, अपने फरजंद, इन्दिरा गांधीको, अपना अनुगामी प्रधानमंत्री बनानेका प्रबंध करके नहीं जाते, तो आज कोंग्रेस पर “नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष” होने की गाली नहीं लगती, नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष भ्रष्टाचारसे तरबर न होती, और वह कमजोर भी न पड जाती.

कटारीयाजी कुछ विवादास्पद विषयो पर, अपने हिसाबसे तत्कालिन सरकारोंके निर्णयोंको अच्छा निर्णय, बुरा निर्णय, या कमजोरीवाला निर्णय ऐसा तारतम्य निकालते है. और उपसंहार में कहेते हैं कि सुरक्षित बहुमतवाली सरकार नेताओंको बेदरकार और दंभी बनाती है.

इस तारतम्यमें कटारीयाजी, जे.एल. नहेरुका, समावेश करते नहीं है लेकिन इन्दिरा से लेकर, राजिव गांधी होकर,  नरेन्द्र मोदीका समावेश अवश्य करते है.

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नरेन्द्र मोदी समय बद्धता में मानते है

वास्तवमें देखें तो, नरेन्द्र मोदीके वचन, नहेरु के वचन जैसे “अनिश्चित कालिन नहीं है”. याद करो कि जय प्रकाश नारायण, नहेरुकी असमयबद्ध ध्येयोंके कारण ही उनके मंत्री मंडलसे दूर रहे थे. जय प्रकाश नारायणने नहेरुको कहा था कि “आप हरेक ध्येय प्राप्तिके लिये समय बद्ध योजना बनाओ तो मैं आपके मंत्री मंडलमें आउंगा.” लेकिन जे एल नहेरु तो बेदरकार और दंभी थे. उन्होने जयप्रकाशकी बात मानी नहीं. नहेरु समय बद्धतामें नहीं मानते थे. “ तत्वज्ञानीय लुज़ टॉकींग” नहेरुको प्रिय था.

“समय बद्ध ध्येय” नरेन्द्र मोदीका गुण

यदि आज जय प्रकाश नारायण होते तो वे नरेन्द्र मोदीको सहकार करते. नरेन्द्र मोदीजी हमेशा समय बद्धतासे ही चलते है और उन्होने पक्षके ध्येयोंको समयबद्ध प्रोग्राममें रक्खा है. लेकिन कटारीया भाई इनका जिक्र नहीं करेंगे. उनको पसंद है “नहेरुकी देशमें बहेनेवाली घी दूधकी नदिया” और इन्दिराके “गरीबी हटाओके नारे”

उनको ०२-१०-२०१९ तक स्वच्छभारत, २०२२ तक किसानकी आय दुगुनी, २०१९ तक घर घर संडास, २०२२ तक हरेकके पास अपना घर, २०२२ तक बुलेट ट्रेन …. आदि समय बद्ध ध्येय पसंद नहीं इसलिये उनका जिक्र नहीं.   

एक दुसरे विद्वान है जो अरुण शौरी है. वे भी नरेन्द्र मोदीके कटु टीकाकार है.

कुछ लोग जीएसटी और विमुद्रीकरण की कटु टिका करते है लेकिन एक भी माईकापूत नहीं निकला कि उसने बताया हो कि जो काला धन देशमें घुम रहा है उसको सरकारी रेकोर्ड पर कैसे लाया जाय, बेनामी कंपनीयोंको रेकोर्ड पर लाके कैसे कार्यवाही की जाय, फर्जी करन्सीको कैसे निरस्त्र किया जाय, आयकर रीटर्न भरने वालोंकी सख्यां कैसे बढाई जाय, टेक्स कलेक्शनमें कैसे वृद्धि की जाय….?

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नरेन्द्र मोदीने तो यह सब करके दिखाया है जो नहेरुवीयन-[इन्दिरा (वंश)] कोंग्रेस पक्ष ६५ सालमें नहीं कर सका.

शिरीष मोहनलाल दवे

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