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क्या भारतको गृहयुद्धके प्रति ले जा रहा है कोंगी पक्ष?

क्या भारतको गृहयुद्धके (आंतरिक युद्ध)के प्रति ले जा रहा है कोंगी पक्ष?

कुछ मुस्लिमनेता लोग यह प्रदर्शित करनेका प्रयत्न कर रहे कि भारतमें मुस्लिम सुरक्षित तो नहीं ही है, किन्तु नरेन्द्र मोदी और अमित शाहकी सरकार उनको येन केन प्रकारेण नागरिकता अधिकारसे विमुख करेगी. ऐसा भी हो सकता है कि मोदी सरकार हमें देशके बाहर निकाल दें.

वास्तविकता क्या है?

वैसे तो सारे मुस्लिम नेतागणको और मुस्लिमोंको बहेकाने वाले विपक्षी नेतागणोंको  वास्तविकता तो ज्ञात ही है कि मुस्लिम जनताको नागरिकतासे विमुख करने की बात या तो उनके कुछ अधिकारोंको हानि पहोंचाना …  ऐसा कुछ है ही नहीं.

उनको यह भी ज्ञात है कि, भारत एक उत्कृष्ट लोकशाहीवाला देश है, और मुस्लिम जनता जगतके अन्य देशोंकी अपेक्षा भारतमें मुस्लिम अति सुरक्षित है. भारतीय संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जो सर्वाधिक धर्मनिरपेक्ष है और हर धर्मके प्रति सद्‌भावना रखती है. उतना ही नहीं भारतीय हिन्दु जनता आवश्यकता से ही कहीं अधिक सहिष्णु और शांति प्रिय है.

मुस्लिम और ख्रीस्ती ( ख्रीस्ती से मतलब है आम ख्रीस्ती जनता नहीं, किन्तु केवल ख्रीस्तीयोंके धर्मगुरुलोग) जनताको यही बात अखरती है कि ऐसा क्यूँ  है?

इन भारतीय हिन्दुओंको गृहयुद्ध के प्रति कैसे उत्तेजित किया जाय!! हमने सदीयों तक इस भारत और इन हिन्दुओं के उपर शासन किया तथापि भारतमें हम, अपना बहुमत क्यों नहीं कर पायें? हम इन हिन्दुओंको हिंसा के लिये उत्तेजित करना ही पडेगा. मुस्लिम लोग तो गृहयुद्धके लिये आतुर है.

ये हिन्दु केवल कभी कभी हम अल्पसंख्यकोंके प्रति और खास करके मुस्लिमोंके प्रति, और कभी कभी ख्रीस्तीयोंके प्रति, कठोर शब्द प्रयोग कर लेते है. हम और हम जिनकी वॉट बेंक है, उनके नेता गण, इन कठोर शब्द प्रयोगको तोड मरोड कर, ये हिन्दु लोग अति असहिष्णु है वह सिद्ध करनेका प्रयत्न करते रहेते है. हम सर्वदा इन बातोंको ट्रोल करके ऐसी हवा उत्पन्न करते है कि, मोदी और बीजेपी कट्टरवादी है.

“यदि न.मो. की यह बीजेपी सरकार एक के बाद एक, हमने उत्पन्न की हुई पूरानी समस्याओंको, जिनको हम सुलझा नहीं सकें, उनको सुलझाया करेगा तो हमे मुश्किले हो सकती है. वैसे तो हम इन बातोंको लेकर भी उनकी निंदा करते है और ये लोग तानाशाही चलाते है ऐसा भी ट्रोल करते है. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.

कोंगी और उनकी गेंग, जिनमें कटारीया (कटार लेखक = कोलमीस्ट्स) भी संमिलित है वे लोग सोचते हैं कि हम तटस्थ माने जाने वाले मूर्धन्योंको भी भ्रममें डाल देते है तो भी न.मो.के पक्षके और नेताओंके कान में जू तक नहीं रेंगती. तो अब गृह युद्ध कैसे करवाया जाय?

Gruha yuddha

क्या गृहयुद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं?

कोंगी और उसके सहयोगी सोचमें पडे है और उनको समज़में नहीं आता है कि क्या किया जाय?

हिंमते मर्दा तो मददे खुदा!!

दिल्ली पर तो कब्जा कर लिया. अब मीथ्या मुद्दोंको ट्रोल करते रहो. हमारे मूर्धन्य लोग पर जो तटस्थताका धून है उनका भरपूर लाभ लो.

निम्न लिखित मुद्दोंको ट्रोल करो. तटस्थताकी धून जिनके उपर सवार है वे मूर्धन्य हमें अवश्य मदद करेंगे.

विरोधी विचार कोई गद्दारी नहीं है  

“जे.एन.यु. के कुछ विद्यार्थी, वैसे तो वे गरीब है और ऐसे लोगोंके लिये ही तो हमने लंबा सोच कर जे.एन.यु.को बनाया था. पर्देके पीछे हमने साम्यवादी, अर्बन नक्षलवादी छात्रोंको भी प्रवेश दिया था या तो ऐसी विचारधारा बढानेके लिये प्रवेश दिया था. किन्तु ये बातें छोडो.

सर्वाधिक सरकारी सहाय पर अधार रखनेवाली संस्थामें विद्यार्थीकी अधिकतम अवधि कितनी होनी चाहिये?

“ऐसे प्रश्न मत उठाओ.  कथित विद्यार्थी २८ से ४० साल तक जे.एन.यु. में पढते रहे तो क्या हुआ?

“अरे भाई, मनुष्यको अपने आपको हमेशाके लिये विद्यार्थी ही तो समज़ना चाहिये. यदि उनके उच्चारणोंसे आप संमत नहीं होते है तो क्या हुआ? क्या आपसे कुछ भीन्न विचारधारा ही नहीं होनी चाहिये. आप तो बिलकुल नाज़ीवादी है.

“यदि जे.एन.यु. के या तो जामीया वालोंने या तो शाहीनबाग वालोंने निम्न लिखित बोला तो क्या हुआ?

(१) पाकिस्तान जिंदाबाद,

(२) हमें चाहिये आज़ादी,

(३) छीनकर लेंगे आज़ादी,

(४) कश्मिर मांगे आज़ादी,

(५) नोर्थ ईस्ट मांहे आजादी,

(६) भारत तेरे टूकडे होगे,

(७) अफज़ल हम शर्मींदा है, तेरे कातिल जिंदा है,

(८) घरघरसे अफज़ल निकलेगा,

(९) मोदीको डंडा मारेंगे,

(१०) मोदीको गोली मारेंगे,

(११) मोदी चोर है, मैं बोलुंगी मोदी, आप को उंची आवाज़से बोलना है “चोर है” बोलो बच्चों “मोदी” … “चोर है”.

और भी कई सूत्र है जो, जे.एन.यु., जामीया, अलीगढ आदि शिक्षण संस्थाओंके कुछ विद्यार्थीयोंने कई बार पूकारे है. शाहीन बाग के मार्गके कब्जा करने वालोंने ऐसे सूत्र पुकारते है.

“अरे सूत्रोच्चार करनेसे क्या होता है?

“किसीने किसीको मारा तो नहीं है. यदि मारा है, आग लागाई भी है, कोई जख्मी भी हुआ है, कोई मर भी गया है … तो क्या हुआ? यह तो लो एन्ड ओर्डरका प्रश्न है. हम तो अहिंसामें मानते है, देखो हमारे पास भारतका संविधान है, हम तो भारतका राष्ट्रगीत भी गाते हैं, हम तो महात्मा गांधीवादी है, हम तो अहिंसक है. अहिंसक विरोध करना हमारा अधिकार है, आप यदि हमारे विचारोंसे सहमत नहीं है तो क्या हुआ? क्या आपसे हमारा मत भीन्न है तो हम देशद्रोही बन गये? कमाल है यार, आप तो बडे नाझी विचारधारा वाले है.

केज्रीवालकी जित

(१) केज्रीवालजी दील्लीका चूनाव जीत गये. तो हमारे एक मूर्धन्य उनसे प्रभावित हो गये. क्यों कि बहूत सारे लोग मानते है कि जीतमें सत्य छीपा हुआ है.

वैसे तो सत्य कभी बहुमतसे सिद्ध नहीं होता. बहुमतसे सरकार बनती है और चलती है. इसका कोई विकल्प नहीं है. लेकिन वह सरकार समयकी सीमासे बद्ध है.

प्राचीन भारतमें सत्य क्या है वह ऋषियों पर छोड दिया जाता था. राजा अपने सुज्ञ ऋषियोंकी / मंत्रीमंडल की सलाह लेता था. विनोबा भावे कहेते हैं कि आचार्य लोग सत्यको समज़ायेंगे. वर्तमान समयमें न्यायका काम सुज्ञ, सक्षम और विद्वान न्यायाधीश लोग करते है.

ऐसे एक न्यायधीशनने गोडसेके उपर चले न्यायिक कार्यवाहीके बाद, न्याय घोषित करनेके पूर्व, कहा था कि “आप जो लोग यहां बैठे है उनके निर्णय के अनुसार यदि मुज़े निर्णय लेना होता तो मैं गोडसे को अपराधसे मूक्ति देकर “वह निर्दोष है” ऐसा निर्णय दे देता. किन्तु, न्याय देनेकी ऐसी प्रणाली स्थापित नहीं है. इस लिये मैं ऐसा नहीं कर सकता.”

(२) केज्रीवालजी अन्ना हजारेके साथ (सरकार विरुद्ध केस चालाने के लिये) लोकपाल की नियुक्तिके लिये आंदोलन कर रहे थे.

जब वे स्वयं सत्ता पर आये तो वे लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर सके. चलो यह बात तो छोडो.

केज्रीवालने कहा था कि मैं जब सत्ता पर आउंगा तो सभी निर्णय जनताको पूछ कर लूंगा. जब ये केज्रीवाल सत्ता पर आये तो उन्होंने नुक्कड पर कुछ लोगों को इकठ्ठे किये और उनसे पूछा “आप मेरे ‘क…ख… ग…’ निर्णयसे संमत है? यदि हां तो हाथ उठाईये. … यदि असहमत है तो हाथ मत उठाईए. …”, …. “हाथ उठानेवाले ज्यादा है … तो … मेरा निर्णय पास है…”    

अरे भाई केज्री, जनतंत्रमें क्या ऐसे निर्णय लिये जाते है? जनतंत्रमें निर्णय लेनेकि सुग्रथित प्रणालियां होती है. उनका तो कुछ खयाल करो.

(३) केज्रीवालजीने कहा था कि हमने चूनावके लिये जो प्रत्याषी घोषित किये थे उनकी हमने पूरी जांच की थी.

अरे भाई, यह तो ऐसी बात हुई कि राजिव गांधीको “मीस्टर क्लीन” की उपाधी कोंगीयोंने और समाचार माध्यमोंने दे दी थी. फिर क्या हुआ? … शाह बानो, बोफोर्स और सुरक्षा मंत्री को सरकारी चीठ्ठी लेके स्वीट्ज़रलेन्डमें भेजना की जांच शिघ्र नहीं चलाना…”

(४) जब जे.एन.यु. के विद्यार्थीयोंने देशविरोधी सूत्रोच्चार किये तो यह केज्रीवालजी और रा.गा.जी वहां पहूंच गये और उनसे कहा कि “आप आगे बढो, हम आपके साथ है…” (अब आप उपरोक्त सूत्रोच्चारोंमेंसे, १ से ८ तक पढो.) इन सूत्रोंसे सरकार, नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके नेता सहमत नहीं है. दुसरोंकी बात तो छोडो, आप ही बताओ कि, क्या ये देशप्रेमके सूत्र है या देश द्रोहके सूत्र हैं?

फिर देखो …  

(५) केज्रीवालजीने बोला था कि वे सरकारके हर निर्णयका विरोध करेंगे. क्यों कि “हमारा पक्ष एनार्की (अराजकता) उत्पन्न करनेमें मानता है”

यदि आप सुज्ञ है तो समज़ जाओगे कि यह सिद्धांत साम्यवादीयोंका है कि आप क्रांतिके लिये सर्व प्रथम हर तरहसे अराजकता पैदा करो.

(६) जब नरेन्द्र मोदी सरकारने आतंकवादीयों पर सकंजा कसा, और पत्थरका उत्तर ईंटसे देने लगी तो कुछ सुरक्षाकर्मी भी मरे. यानी कि, आतंकवादी हमलेमें कुछ जवान भी मरे, तो यह केज्रीवाल चीख चीख कर बोलने लगा था कि “ओ मोदी तुम यह बताओ कि तुम कितने जवानोंका भोग लेना चाहते हो… तुम्हारा दिल कब भरेगा? … तुम्हें शांति पाने के लिये कितना बलिदान चाहिये? …”

ये केज्रीवाल उन्ही लोगोंमेंसे है जिन्होंने आतंकवादियोंसे लड रहे हमारे जवानोंके उपर पत्थर फैंकने वालोंके समर्थनमें रहे थे. जब एक सेना-अफसरने जवानोंकी सुरक्षाके लिये एक पत्थरबाजको जीप पर बांधा और जवानोंको पत्थरबाजोंके हमले से बचाया तो इन नेताओंको पीडा होने लगी थी और उन पत्थरबाजों की सुरक्षाकी चिंता करने लगे थे.

(७) ये केज्रीवाल और कुछ लोग ऐसा सोचते है और मनवाते है कि, कश्मिर आज़ादि मांगे, और हममेंसे कोई उनको सपोर्ट करें, इसमें कोई बुराई नहीं है. क्यों कि हमारी अंग्रेज सरकारसे आज़ादीके आंदोलनको कई अंग्रेज लोगोंने भी समर्थन किया था. तब अंग्रेज सरकारको तो बुरा नहीं लगता था. तो हमारी सरकारसे यदि कश्मिरी लोग आज़ादी मांगे तो उसमें बुराई क्या है?

लेकिन इनकी मति भ्रष्ट है.

भारत और ब्रीटन समान नहीं थे. हमारा जनप्रतिनिधि ब्रीटीश संसदका प्रतिनिधि नहीं बनता था. कश्मिरसे चूना हुआ लोकसभाका सदस्य, भारतके केन्द्रीय मंत्रीमंडलका सदस्य भी बन सकता है और बना भी है और वह भी गृहमंत्री.

दो असमान राजकीय व्यवस्थाकी तुलना करना दिमागी दिवालियापन है. लेकिन क्या करें, हमारे मूर्धन्योंका ऐसा हाल है!!

गद्दारी कब माना जाता है?

वैसे तो पाकिस्तान जिंदाबाद कहेनेमें कोई बुराई या गद्दारी नहीं है. लेकिन किस परिस्थितिमें “पाकिस्तान जिंदाबाद” बोला जाता है इसके उपर, गद्दारी तय की जा सकती है.

 चीनने १९६२में भारतके उपर आक्रमण किया था. उस समय पश्चिम बंगालमें साम्यावादीयोंने एक जुलुस निकाला था कि “मुक्तिसेनाका स्वागत है”. क्या यह गद्दारी नहीं थी?

पाकिस्तानने भारत पर चार बार आक्रमण किया. उसको पता चल गया है कि भारतको वह प्रत्यक्ष युद्ध में जित नहीं सकता. इसलिये वह आतंकवादीयोंको घुसपैठ करवाके बोम्ब ब्लास्ट करवाता है. क्या आपमें अक्ल नहीं है कि यह भी एक युद्ध ही है. हाँ जी यह एक प्रच्छन्न युद्ध है.

ऐसे युद्ध के समयमें, पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाना गद्दारी नहीं है तो,  क्या है?

पृथ्विराज चौहान के राज्यमें यदि कोई महम्मद घोरी जिंदाबादके नारे लगावे, तो पृथ्विराज चौहान, उस नारेबाज़को गद्दार नहीं समज़ेगा क्या?

लेकिन हमारे तड-फड वाले मूर्धन्य भी मतिभ्रष्ट हो गये है.

वे बोलते है कि नरेन्द्र मोदी बोलता है कि “हम सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास”के लिये काम करते हैं. लेकिन नरेन्द्र मोदी सबका विश्वास नहीं जित पाया”. “तड-फड”वाले मूर्धन्य “नरेन्द्र मोदी, किसका विश्वास?” और “किस मुद्दे पर विश्वास” नहीं जित पाया उसके उपर मौन है. क्या यह सियासी मौन है?

नरेन्द्र मोदीको “किसका विश्वास” किस मुद्दे पर जितना है इस बातका यदि मूर्धन्यभाई विवरण करते तो आम जनताकी समज़में वृद्धि होती. लेकिन आम जनता की समज़में वृद्धि करना, एतत्कालिन समाचार माध्यमोंका धर्म नही रहा है. उनका धर्म तो अपना एजन्डा है, कि मोदी/बीजेपी सरकारके विरुद्ध हवा कैसे बनाना और जनताको भ्रमित कैसे करना.

अनिर्णायकता के कैदी

क्या कोंगी नेतागण और उनके सांस्कृतिक साथीयोंको संसदमें अपनी बात रखनेका समय नहीं दिया था? दिया ही था. वैसे तो CAA, NCR, NCP के उपर भूतकालमें कोंगी मंत्रीयोंने जो निवेदन दिये थे वे, जो नरेन्द्र मोदीने किया उनके समर्थन में ही थे. लेकिन वे अनिर्णायकताके कैदी थे. इसलिये उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया था. अब वे वितंडावाद करके विरोध करते है. क्यों कि उनका एजन्डा है “मत बेंक सलामत रक्खो”. इसलिये वे मुस्लिमोंको भी उकसाते है.

अधिकतम मुस्लिम लोग तो उकसनेके लिये तयार ही है.

“तड फड” वाले मूर्धन्य इस बातको कहेना चाहते है कि मोदीने इनको (कोंगीयोंको) विश्वासमें नहीं लिया?

“तड-फड” वाले मूर्धन्य यह भी कहेना चाहते है कि मोदीने मुस्लिमोंको विश्वासमें नहीं लिया.

क्या संसदमें कोई मुस्लिम वक्ताको बोलने नहीं दिया था? जो सियासत करने वाले मुस्लिम है वे सब ना समज़ है. क्या वे समज़ाने पर समज़ने वाले है? जो सोता है उसको तो जगाया जा सकता है. जो सोनेका ढोंग कर रहा है उसको क्या कोई जगा सकता है?

शाहीन बाग पर खास करके मुस्लिम महिलाएं मार्गका कब्जा करके प्रदर्शन करने बैठी है. ये महिलाएं, व्यक्तिगत रुपसे या बीस बीसके जुथमें भी संवाद करना नहीं चाहती, उनका प्रदर्शन गैर कानूनी है. उनका शाहीनबागके   मार्ग पर, बिना संवाद प्रदर्शन करना कोई असीमित अधिकार नहीं है, उनको कारावास भेजा जा सकता है, उनके उपर जूर्माना लगाया जा सकता है, उनके उपर कोमवाद को उकसानेका अपराध लागु किया जा सकता है, उनके उपर बच्चोंको पीडा देना और उनको गुमराह करनेका आरोप लगाया जा सकता है, उनके उपर कई क्रिमीनल केस भी लागु किया जा सकता है.

याद करो;

बाबा रामदेव और उनकी मांगके समर्थकोंने रामलीला मैदानमें प्रदर्शन किया था. उसमें उन्होंने कोई मार्गके उपर कब्जा किया था न तो यातायात रोका था. उन्होंने तो उस समयकी कोंगी सरकारसे प्रदर्शनके लिये अनुमति भी ली थी. उनकी मांगके समर्थनमें सर्वोच्च न्यायालयका आदेश भी था. तो भी कोंगी सरकारने मध्यरात्रीको पोलीस आक्रमण करके प्रदर्शन कारीयोंको मारपीट करके भगाया था. बाबा रामदेवको भी पीटा था. और यही कोंगी अपनेको तानाशाह के बदले लोकशाहीकी रक्षक, संविधानकी रक्षक और विरोधी सुरों की सहिष्णु बता रही है.

और इसके विपरित, शाहीनबाग, जामीया, अलीगढ आदिमें चल रहे प्रदर्शनकारी, जो संवादके लिये तयार नहीं है, मार्गका अवैध कब्जा करके बैठे है, आम जनताको असुविधा और आर्थिक नुकसान करते है तो भी ये केज्रीवाल और कोंगी लोग, मोदीको तानाशाह कहेते है और असंबद्ध “हम देखेंगे …” कविता पाठ करके अपनेको लोकशाहीवादी, गांधीवादी और अहिंसक मार्गी कहेते है. और हमारे मूर्धन्य ऐसे केज्रीवालोंसे, अर्बन नक्षलवादीयोंसे, फर्जी मानवाधिकार वादीयोंसे, कोंगीनेताओंसे मंत्र मुग्ध है.

यदि गांधीजी जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते.

जो लोग अपने को सुज्ञ मानते है उनको यह समज़ लेना चाहिये कि, जिस प्रकारसे विपक्षी मुस्लिम नेतागण बे-लगाम भाषाका उपयोग कर रहे है और कोंगी और उनके सांस्कृतिक पक्ष या तो मौन रहेते है या तो वितंडावादसे समर्थन करते है, तो उनका ध्येय एक ही हो सकता है कि वे भारतमें गृहयुद्ध हो.

क्यों कि गृहयुद्धके पश्चात्‌ ये लोग आसानीसे कह पायेंगे कि देखो हमने तो पहेलेसे ही कहा था कि मोदी तो कोमवादी, असहिष्णु और तानाशाह है. उसके शासनमें ही इन सभी प्र्कारकी अराजकता पैदा हुई. मोदीके कारण सबकुछ बिगडा. अब हमें फिरसे कमसे कम ७० साल तो शासन करना ही पडेगा तब हमारा देश १९९०की स्थिति पर पहोंचेगा.

आपको तो मालुम होगा ही १९९०में और उसके बाद १५ सालोंतक कोंगीने शासन किया, उस समय उन्होंने कश्मिरके गृहमंत्रीकी पुत्रीके और अन्योंके अपहरण (नाटक) करवाके, दो दर्जन आतंकवादीयोंको रीहा किया, हिन्दुओंके उपर असीम अत्याचार करवाये, हजारो हिन्दु स्त्रीयों पर रेप करवाया, हजारों हिन्दुओंका कत्ल करवाया, ५ लाख हिन्दुको अपने घरोंसे भगाया. कभी मुस्लिम अपराधीयोंके उपर कदम उठाना सोचा तक नहीं, ये कोंगी और उनके सांस्कृतिक सहयोगी कहेते है कि हमारे शासनमें तो सर्वत्र खुशहाली खुशहाली ही थी. कश्मिर और पूरे देशमें आनंद मंगल था. जो भी आतंकवादी हमले हुए वे तो सब भगवा आतंकवाद के कारण ही था. हमारे नेता रा.गा. जीने विदेशी डिप्लोमेटसे जो चिंता प्रगट की थी कि “देशको मुस्लिम आतंक वादसे कहीं अधिक भगवा आतंकवादसे डर है”, वह क्या जूठ था?

चाहे, महाविद्वान, प्रमाण पत्रधारी, महा नीतिमान श्रीमान राजराजेश्वर मनमोहन सिंहने ऐसा कहा हो कि “भारतके संसाधनों पर हिन्दुओंसे ज्यादा मुसलमानोंका हक्क है” तो भी, “सबका साथ सबका विकास (और सबका विश्वास)” कहेने वाला और उस प्रकारसे आचरण करनेवाला नरेन्द्र मोदी ही कोमवादी है.

ऐसा कहेनेवाले के उपर भी हमारे कई विश्वसनीय मूर्धन्य चूपकी साधे बैठे है तो समज़ना कि, मामला गंभीर है.

अब आपको सिर्फ यही समज़ना है “सावधान भारत”, छीपे हुए गद्दारोंसे, चाहे वे गद्दार ना समज़ भी हो और बादमें यदि जिंदा रहे तो पछताने वाले भी हो.

शिरीष मोहनलाल दवे

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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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झिम्बो कम्स टु टाउन यानी केज्रीवाल कम्स  टु गुजरात

झिम्बो कम्स टु टाउन

टीवी चेनल

एक पेईड टीवी चेनल वालेने कहा मोदी गभरा (डर) गया है. अब तक मोदी सवाल पूछता था. अब मोदी गभरा गया है उसको लगा, अरे ये सवाल पूछने वाला और कहांसे पैदा हो गया?

टीवी चेनल पर टीपणी करना व्यर्थ है. उनको अपने पेटके लिये पाप करने पडते है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंको और टीवी चेनलोंको अपने अस्तित्वको सिद्ध करनेके लिये या बनाये रखने के लिये कुछ न कुछ व्यर्थ और अर्थहिन बातें करनी पडती है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस वाले पैसे देतें है. चेनलवाले अगर पैसे मिलते है तो क्यूं छोड दें? सवाल पूछना कोई बडी बात नहीं है.

अखबारी कटारीया (Columnist)

केजरीवाल जटायु इसलिये नरेन्द्र मोदी रावण

यह कटारीया महाशय वैसे तो नरेन्द्र मोदीको कटारीया, पंच (मुक्का) मारने का मौका ढूंढते ही रहते है, और अगर मौका न मिले तो भी नरेन्द्र मोदीको विशेष्य बनाके एक पंच लगा ही देते है. इस महाशयने केज्रीवालको जटायु का नामाभिकरण करके नरेन्द्र मोदीको रावण घोषित कर दिया. नरेन्द्र मोदीने कौनसी सीताका अपहरण किया है, इस बात पर यह भाईसाब मौन है. ऐसा व्यवहार वैसे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसी संस्कार है. नहेरुवीयन कोंग्रेसी कल्चर यह है कि बस कथन करते जाओ और कैसा सुंदर कहा ऐसा गर्व लेते जाओ. इन्दीरा गांधीने भी १९६८में कहा था कि मेरे पिताजी तो बहूत कुछ करना चाहते थे लेकिन ये सब बुढे लोग उनको करने नहीं देते थे. उस समयके समाचार माध्यमोंने और मूर्धन्योंने तालीयां बजायी थी. ईसी कारणसे तो इन्दीर गांधीका होसला बढा था और भारतीय जनताको नहेरुवीयनोंकी आपखुदी देखनी पडी थी और देशको हरेक क्षेत्रमें पायमाली देखनी पडी थी.  

सवाल है थ्री नोट थ्री

खुदको एक गांधी वादी और सर्वोदयी मानने वाला कटारीयाने [कटार लेखकने (प्रकाश शाहने)] दिव्यभास्कर ८, मार्च में अपनी कटारमें (कोलममें) कहा, केजरीवालने नरेन्द्र मोदी को थ्री नोट थ्री टाईप सवाल पूछे.

कटारीया लेखकश्रीको शायद मालुम नहीं है, कि, थ्री नोट थ्री का मतलब क्या होता है. शब्दों पर बलात्कार करना मूर्धन्योंको शोभा नहीं देता. कटारीया लेखकश्रीजीको मालुम होना चाहिये कि थ्री नोट थ्री लगने पर आदमी जिंदा रहेता नहीं है. और जो सवाल केज्रीवालने पूछे वे सब सवाल देशकी सभी सरकारोंको पूछा जा सकता है. अगर सवालोंके पीछे भ्रष्टाचारोंकी सच्चाई है तो केन्द्रमें नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकार है. उसको पहेले पूछो. अगर वह भी भ्रष्ट है तो पब्लिक ईन्टरेस्ट पीटीशन दाखिल करनेसे किसको कौन रोकता है?    

उसने यह भी कहा जो सुत्र हमने उससे ही पढा कि, “शीला दिक्षितको हराया है अब मोदीकी बारी है.” प्रासानुप्रास से सत्य तो सिद्ध नहीं होता है लेकिन हमारे कटारीया लेखक इसमें भावी संभावना देखते है और खुश होते है.  कटारिया लेखकश्री लिखते है; “एक (भ्रष्टाचारकी) प्रतिमा (शीला दिक्षित)को खंडित किया है. इसलिये दुसरी प्रतिमा (नरेन्द्र मोदी) भी खंडित हो सकती है.” इति सिद्धम्‌. महात्मा गांधी स्वर्गमें शायद अपने अनुयायी के ऐसे तर्कसे आहें भरतें हो गये होगे.

इमानदारी निश्चित करनेका केज्रीवालके पास यंत्र है

नहेरुवीयन कोंग्रेस तो भ्रष्ट है ही, इसलिये केज्रीवाल नहेरुवीयन कोंग्रेसके नहीं है. केज्रीवाल को बीजेपी का साथ भी नहीं चाहिये क्यों कि, बीजेपी भी भ्रष्ट है. आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार मात्रके विरुद्ध है. इसलिये वह अपने पक्षमें सभी उम्मिदवारोंकी पार्श्व भूमि देखके जांच करके उनका चयन करती है. जब तक सत्ता नहीं होती है, सब लोग इमानदार होते है. बच्चा अपने जन्मके साथ भ्रष्टाचारी होता नहीं होता है. शायद इस बात केज्रीवालको मालुम नहीं होगी.

जे एल नहेरु भी इमानदार थे. भ्रष्टाचार केवल आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं हो सकता. अविधेय और अनीतिमान तरिकोंसे सत्ता प्रप्त करना, जूठ बोलना, छूपाना, दूसरोंका हक्क छीन लेना, अपमान करना, भेदभरम करना, वेतन लेना किन्तु काम कम करना, देरसे आना, आदि सब भ्रष्टाचार ही है. भ्रष्टाचारके बारेमें नहेरुवीयन खानदानसे ज्यादा अच्छी मिसाल नहीं मिल सकती.

भ्रष्टाचार एक सापेक्ष होता है. प्रमाणभान की प्रज्ञासे ही ज्ञात हो सकता है कि किसको प्राथमिकता देनी चाहिये. हमारी गति ज्यादासे कम भ्रष्टाचारी की दिशामें होनी चाहिये. क्यों कि निरपेक्षता पूर्ण नीतिमत्ता वाला कोई होता ही नहीं है. जैसे अहिंसा सापेक्ष है वैसे ही भ्रष्टाचार भी सापेक्ष है. लेकिन केज्रीवाल को शायद यह बात मालुम नहीं है.

समय मिलने पर कौन कब भ्रष्टाचारी बन जायेगा इस बातका किसीको भी पता नहीं है. महात्मा गांधी खुद नहेरुको पहेचान नहीं पाये थे कि, वह सत्ताके लोभमें देशके अर्थ तंत्रको और देशकी शासन व्यवस्थाको गर्तमें ले जायेगा. तो यह केज्रीवाल कौन चीज है?

देखो नहेरु, गांधीजीके बारेमें कैसा सोचते थे? पढो निम्न लिखित पैरा.

नहेरु की दृष्टिमें महात्मा गांधीः
कुछ लोग समझते है कि महात्मा गांधी को नहेरु बहुत प्रिय थे. वास्तवमें ऐसा नहीं था. लेकिन गांधी तत्कालिन कोंग्रेसको तूटनेसे बचाना चाहते थे. खण्डित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने गांधीजीके बारे में कहा था – ” ओह दैट आफुल ओल्ड हिपोक्रेट ” Oh, that awful old hypocrite – ओह ! वह ( गांधी ) भयंकर ढोंगी बुड्ढायह पढकर आप चकित होगे कि क्या यह कथन सत्य हैगांधी जी के अनन्य अनुयायी दाहिना हाथ मानेजाने वाले जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा कहा होगाकदापि नहींकिन्तु यह मध्याह्न के सूर्य की भाँति देदीप्यमान सत्य हैनेहरू ने ऐसा ही कहा था प्रसंग लीजियेसन 1955 में कनाडा के प्रधानमंत्री लेस्टर पीयरसन भारत आये थेभारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ उनकी भेंट हुई थी भेंट की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तक इन्टरनेशनल हेयर्समें की है
सन 1955 में दिल्ली यात्रा के दौरान मुझे नेहरू को ठीकठीक समझने का अवसर मिला थामुझे वह रात याद हैजब गार्डन पार्टी में हम दोनों साथ बैठे थेरात के सात बज रहे थे और चाँदनी छिटकी हुई थीउस पार्टी में नाच गाने का कार्यक्रम थानाच शुरू होने से पहले नृत्यकार दौडकर आये और उन्होंने नेहरू के पाँव छुए फिर हम बाते करने लगेउन्होंने गांधी के बारे में चर्चा कीउसे सुनकर मैं स्तब्ध हो गयाउन्होंने बताया कि गांधी कैसे कुशल एक्टर थेउन्होंने अंग्रेजों को अपने व्यवहार में कैसी चालाकी दिखाईअपने इर्दगिर्द ऐसा घेरा बुनाजो अंग्रेजों को अपील करे गांधी के बारे में मेरे सवाल के जबाब में उन्होंने कहा – Oh, that awful old hypocrite नेहरू के कथन का अभिप्राय हुआ – ” ओह ! वह भयंकर ढोंगी बुड्ढा( ग्रन्थ विकास , 37 – राजापार्कआदर्शनगरजयपुर द्वारा प्रकाशित सूर्यनारायण चौधरी की ‘ राजनीति के अधखुले गवाक्ष ‘ पुस्तक से उदधृत अंश )

नेहरू द्वारा गांधी के प्रति व्यक्त इस कथन से आप क्या समझते है?

महात्मा गांधी जैसा महान आर्षदृष्टा भी नहेरु कभी ऐसा बोल सकते है वह समझ नहीं पाये. यह बात सही है कि शायद नहेरुके पागलपनसे ही उन्होने कोंग्रेसको समाप्त करनेकी सलाह दी थी. लेकिन जो नहेरु क्रीप्स कमीशनका बहिष्कार नही कर सकता था वह सत्ता देनेवाली कोंग्रेसका कैसे विलोप कर सकता है. सरदार पटेल नहेरुके भरोसे कोंग्रेसको और देशको छोडना नहीं चाहते थे. इसलिये जब तक सरदार पटेल थे तब तक न तो तिबत्त पर चीन हमला कर सका न तो भारत सरकारने चीन का सार्वभौमत्व तिबत्त पर स्विकारा, न तो भारत सरकारने पंच शील का करार चीनके साथ किया.       

सवालों के आधार पर केज्रीवालका ग्लोरीफीकेशन?

छोटे बच्चे भी कई सवाल करते है. सवाल करके अपना ज्ञान बढाते है और दुनियाको समझते है. लेकिन जब मनुष्यकी उम्र बढती है तो वह वह सवाल कम पूछता है और जवाब अपने आप ढूंढता है. और जवाब ढूंढनेके लिये दूसरोंसे सलाह मशवरा करता है.

केज्रिवालने क्या किया?

उसने गुजरातमें आनेसे गुजरातकी पोल खोलनेका मनसुबा बना लिया था. केज्रीवाल के एक साथीने तो उद्घोषित भी कर दिया कि, नरेन्द्र मोदी यह बताये कि वह कहांसे चूनाव लडने वाला है. हमारे केज्रीवाल वहांसे ही चूनाव लडेंगे. हमारे उपरोक्त खुदको गांधीवादी मनानेवाले कटारीया लेखश्रीने तो लिख ही दिया जब नरेन्द्र मोदीको पता चला कि अगर वह बनारससे चूनावके लिये खडा रहेगा तो केज्रीवाल उसके सामने खडा रहेगा. तो नरेन्द्र मोदीने अब बनारससे चूनाव लडना रद कर दिया है. वैसे नरेन्द्र मोदीके बारेमें और उसके व्यावहारोंके बारेमें उसके विरोधींयोंने अफवाहें फैलानेका बडा शौक बना रखा है. वे अफवाहोंवाली भविष्यवाणी भी करते हैं और खुदको खुश करते हैं.

अफवाहें फैलाओ और तत्कालिन खुश रहो

गुजरातीमे एक मूंहावरा है. मनमें ही मनमें शादी करो (खुशी मनाओ) और बादमें रंडापा भी भुगतो. क्योंकि वास्तविक शादी तो की ही नहीं है.  [मनमांने मनमां परणो अने मनमांने मनमां पछी रांडो].

वैसे तो सियासतमें ऐसी प्रणाली नहेरुने चालु की थी. ईन्दीराने सरकारी तौरसे अफवाहें फैलानेका बडे पैमाने पर चालु किया था. आपतकाल इन्दीराई सरकारके लिये अफवाहें फैलानेका सुवर्णकाल था. यह तो नहेरुवीयन कोंग्रेसीयों की आदत ही बन गई है. तो उनके साथमें वैचारिक या मानसिकता से साथ रहनेवाले कैसे अलिप्त रहें? “अगर गैया भी गधोंके साथ रहें तो कमसे कम लात मारने की आदत बना ही देती है”. वैसे तो ये नहेरुवीयन कोंग और उसके साथी गैया जैसे नहीं है. वैसे तो ये सब नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह वृकोदर ही है.

मान न मान मैं तेरा महेमान?

गुजरातकी नहेरुवीयन कोंगीनेता नेताने कहा कि नरेन्द्र मोदीको केजरीवालको मिलना चाहिये था.  केजरीवाल तो गुजरातका महेमान था. महेमानको मिलनेसे इन्कार करना महेमानका अपमान है.  केज्रीवालने भी यह बात दोहराई है.

गुजरातके महेमान केज्रीवाल

यह एक ऐसा महेमान है, जिसने नरेन्द्र मोदीको कहा ही नहीं कि मुझे तुम्हे मिलना है. केज्रीवालने यह अवश्य कहा कि, मैं गुजरातकी पोल खोलने वाला हुं. चलो इस बातका स्विकार करते है कि, महेमान तिथि बताके आते नहीं है. लेकिन क्या कभी महेमान, पहेले पूरा घुमघामके यजमान की भरपेट बुराई करके यजमानके पास जाते है? 

महेमानने क्या किया?

केज्रीवालने सबसे पहेले तो भरपेट रेलीयां की. वैसे रेलियों की गुजरातमें कमी नहीं. क्यों कि नहेरुवीयन कोंग्रेस यही काम ११ सालोंसे गुजरातमें कर रही है. जब पूरे देशमें आपतकाल था और सभा सरघसकी पाबंदी थी, तब गुजरातमें कुछ समय तक जनता मोरचेकी महात्मा गांधीवादी बाबुभाई जशभाईकी सरकार थी. बाबुभाई जशभाईने लोकशाही मूल्योंको नष्ट किया नहीं था. तब ये नहेरुवीयन कोंग्रेसी बाबुभाई जशभाई पटेलकी सरकारके विरुद्ध प्रदर्शन करते ही रहते थे. इन्दीरा गांधी विपक्षको खुदके विरुद्ध किये गये प्रदर्शन के कारण गालीयां देती रहती थीं, उसका मापदंड अपनोंके लिये अलग ही था. पूरे देशमें आपतकालकी नहेरुवीयन आपखुदी चल रही और लोकशाही मूल्योंका गला घोंट दिया था. तब बाबुभाईने गुजरातमें लोकशाही को जिन्दा रक्खी था.

जनता यह खूब समजती हैं कि रेलियां मुफ्तमें नहीं होती है यह बात रेली करने वाले भी सब लोग जानते है. केज्रीवालकी रेलीयां भी मुफ्तमें होती नहीं है. अगर घीसेपीटे आक्षेप ही करना है और सूत्रोच्चार ही करने है तो अखबार वालोंको और टीवी वालोंको फोटु खींचवाने के लिये बुलाना ही पडेगा. बेनर और प्लेकार्ड भी बनाना पडेगा. रेलीयोंमे इस गुजरातके महेमानने नरेन्द्र मोदीको बिना विवरण वाले आक्षेप किये. और बादमें नरेन्द्र मोदीको मिलने गये. केज्रीवाल वैसे तो खुदको आम आदमी है वैसा समझानेकी भरपूर कोशिस करते है, लेकिन नरेन्द्र मोदीके पास खुदको भूतपूर्व सीएम बताया. अगर केज्रीवाल भूत पूर्व सीएम भी है, तो उनको अपनी मुलाकात पूर्वनिश्चित करने चाहिये थी.

नरेन्द्र मोदीने क्या कहा?

“साक्षीभावसे मिलनेके लिये आये होते तो जरुर मिलता”

यह नरेन्द्र मोदीका उच्च संस्कार है कि उसने केज्रीवाल को यह नहीं बताया कि रेलीयोंमे मुझ पर आक्षेपबाजी करके अब महेमान बनके कैसे आ रहे हो?

नरेन्द्र मोदीने परोक्षरुपसे यह संदेश दिया, कि देखो भाई देशमें कई समस्या है. उसका समाधान निकालना एक शैक्षणिक कार्य है. इसके बारेमें बिना आक्षेप किये, चर्चा हो सकती है. यह चर्चा तटस्थ रुपसे और विवेकपूर्ण होनी चाहिये. ऐसा करना भारतीय संस्कृतिकी परंपरा है. शंकराचार्यने भी तत्वज्ञानकी चर्चा ऐसे ही की थी. उन्होने किसीके उपर आक्षेपबाजी करके चर्चा नहीं की थी. जब हमें सत्यको ढूंढना है तो खुदके मनको समस्यासे अलिप्त रखना चाहिये. इसको गीतामें साक्षीभाव कहा गया है. हे केज्रीवालजी आप अगर   साक्षीभावसे आये होते तो मैं आपको अवश्य मिलता और चर्चा भी करता.

नरेन्द्र मोदीके और केज्रीवालके संस्कारके इस भेदको समझना अखबारी मूर्धन्योंके लिये, और खुद केज्रीवालके लिये बसकी बात नहीं. समस्याके समाधानके लिये साक्षीभाव लानेकी बात इनके दिमागके बाहर की बात है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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O!! LEARNED COLUMNIST, HAVE YOU ANY DREAM FOR YOUR NATION?

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मूर्धन्योंकी तटस्थताकी घेलछा और देशकी पायमाली

आप भारतीय समाचारपत्रके लेखकों के लेख पढते होंगे. वे लोग राजकीय समस्याओं के उपर भी लिखते है. इसमें कोई शक नहीं कि एतत्‌ कालिन परिस्थिति में यह आवश्यक भी है. और श्रेयकर भी होगा.

सांप्रत समयमें अधिकाधिक  लेखक जब राजकीय सांप्रतसमस्याके विषय पर लिखते हैं तब उनका प्राथमिक ध्येय अपना ताटस्थ्य दिखाने का होता है. वे लोग समझते है कि इसके कारण उनकी विश्वसनीयतामें वृद्धि होती है. लेकिन उनको यह ज्ञात नहीं रह्वता कि, मूर्धन्यों का प्राथमिक ध्येय लोक शिक्षा भी है. और समाजका उत्कर्ष भी है. 

इन ध्येयोंकी अवगणना करनेसे ये मूर्धन्य लोग यत्‌ किंचित लिखते हैं उसमें प्रमाणभान और प्राथमिकता की हीनता दृष्टिगोचर होती है.

आप क्या देखेंगे?

उदाहरणके आधारपर उत्तर प्रदेशका चूनाव प्रचारके संबंधित लेखोंका वाचन करें.

इसमें वर्तमानपत्रके लेखकों को विश्लेषण करनेमें लोक-शिक्षा, प्रमाणभान एवं प्राथमिकताके स्थान पर, भविष्यवेत्ता बननेकी और आप कितने कूट प्रगल्भ और तटस्थ विश्लेषक है ऐसा प्रदर्शित करनेकी घेलछा रहती है.

ये मूर्धन्यलोग सर्व प्रथम तो नहेरुवंशीय एतत्‌ कालिन संतान कैसे प्रचार करता है उसका वर्णन करेंगे. और उसको  श्रवण करने के लिये आने वाले श्रोतागण के समुदाय के बारेमें वर्णन करेंगे. यद्यपि यह संतान बिहारमें संपूर्ण विफल रहा है तथापि ये लोग उस विषय पर कोई उल्लेख नहीं करेंगे. इस नहेरुवीय संतानकी क्या उपलब्धीयां है, क्या पढाई है, क्या सत्य है क्या असत्य है, क्या योग्यता है, ईत्यादि कुछ भी उल्लेख नहीं करेंगे.
क्यूं?
ज्ञात नहीं. संभव है कि उनको स्वयं को भी ज्ञात नहीं. नहेरुवंशीय कोंग्रेसने एतत्‌ कालिन अद्यतन समयमें ही अमाप कद और संख्यामें जो क्षतियां और चौर कर्म किये उसकी चर्चा नहीं होंगी और उसके उपर लगी कालिमाकी भी चर्चा नहीं होगी. लेकिन अन्ना हजारेजी का आंदोलन कैसा विफल हो गया और उसमें क्या क्या अपूर्णता थी और उसके सदस्योंके उपर कैसे आरोप लगे है उसकी चर्चा हो सकती है. लोकपालके विषयपर उनके प्रतिभाव पर चर्चा हो सकती है. किन्तु नहेरुवंशी कोंग्रेसकी निस्क्रीयता और छद्मवृत्ति पर कोई चर्चा नहीं होगी. शक्य है कि नहेरुवंशी पक्षने कैसे सफलता पूर्वक व्यूहरचना करके, विपक्षोंकों परास्त करके उनकी खुदकी ईच्छाकी पूर्ति की इन सबकी वार्ता हो सकती है. इसके उपर शक्य है कि इस नहेरुवंशी कोंग्रेसकी प्रशंसा भी की जाय. 

किन्तु जब मायावती जो अपने स्वयं के प्रयत्नोंसे विजय प्राप्त करती हुई आयी है उसका कोई उल्लेख नहीं होगा. उसकी सीमाएं अपूर्ण या दुषित कर्यशैली का जरुर उल्लेख होगा.

मुलायम सिंगको स्पर्धामें प्रथम क्रम या द्वितीय क्रम दें या नदें लेकिन तृतीय क्रम तो नहीं ही देंगे.उसके पक्षकी कार्यशैली और उपलब्धियोंके उपर गुणदोषकी कोई चर्चा नहीं.

ये मूर्धन्य लोग, सबसे बूरा हाल भारतीय जनता पार्टीका करेंगे. वैसे तो नहेरुवंशी पक्षके अतिरिक्त यह एक ही पक्ष है जिसको पांचसालके लिये गठबंधनवाला शासन करनेका अवसर मिला था और उसने श्रेष्ठ शासन करके भी दिखाय था. तथापि उसकी उपलब्धियों का कोई उल्लेख किया नहीं जयेगा. उसके स्थान पर, “लोकपाल” विषय पर उसका प्रतिभाव शंकास्पद था ऐसा प्रतिपादिन करनेका प्रयत्न किया जायेगा. अरुण जेटली ने वक्तव्य दिया और प्रत्येक भ्रमका निःरसन किया उसका कोई उल्लेख नहीं कीया जायेगा. उसके स्थान पर, अडवाणी जी की यात्रा के उपर तथाकथित असाफल्य का वितंडावाद उत्पन्न किया जायेगा. भारतीय जनता पार्टीके नेतागणके अंतर्गत क्या क्या तथाकथित असंवाद अथवा विसंवाद है उसकी चर्चा की जायेगी या हो सकती है. नरेन्द्र मोदीको किस प्रयोजनसे या किस आधार पर चूनाव प्रचारमें आमंत्रण नहीं दिया गया, उसकी चर्चा हो सकती है. अगर आमंत्रण दिया तो सबसे पहेले क्यों नहीं दिया उसका प्रयोजन या रहस्य क्या हो सकता है ऐसी चर्चा उत्पन्न की जायेगी.किन्तु भारतीय जनता पार्टीके शासन वाले अन्य राज्योंमें नहेरुवंशी पक्षके शासनसे श्रेयकर शासन कैसे है उसकी चर्चा नहीं होगी.

ये मूर्धन्य लोग, नीतिहीनता सभी पक्षोंमें है, ऐसी चर्चा जरुर करंगे. इस तरह वे नितिहीनताका सामान्यीकरण करके नहेरुवंशी कोंग्रेस पक्षके कुशासनके उपर प्रहार नहीं करेंगे.
 
इस प्रकार प्रमाणात्मक दोषापरोणकी वार्ता त्याज्य ही रहेगी.

यदि मूर्धन्योंकी ऐसी ही प्रणाली और प्रतिभाव रहे तो प्रमाणभान और प्राथमिकताकी चर्चा कब होगी? अगर ६० वर्षके कुशासनके बाद और देशका सर्व क्षेत्रोंमें विनीपात होनेके बाद भी अगर मूर्धन्य लोग प्रजाजनोंको दीशासूचन नहीं कर सकतें और व्यंढ तत्वज्ञान विश्लेषण और तटस्थाका आडंबर प्रदर्शित करते रहेंगे तो देश कैसे प्रगतिके पंथ पर जायेगा? विनीपात चालु ही रहेगा. ऐसा ही देखा गया है. ऐसा क्यूं होता है? मूर्धन्योंकी क्या विडंबना है?

उपनिषद में कहा गया है, हिरण्मयेन पात्रेण सत्यसापिहितं मुखम्‌””””

हिरण्य का अर्थ सुवर्ण (तृष्णा, धनकी तृष्णा) भी होता है. जब (धनकी) तृष्णा होती है तो सत्य आवृत (अप्रकट रखा जायेगा) रहेगा.

नहेरुवंशी पक्षके उपर असीमित और अवैध साधनोंसे प्राप्त क्या हुआ धन और उसको विदेशी बेंकोमें रखनेके विषयमें अगणित आरोप हैं. यदि, मूर्धन्य लोग  अपना भाग लेनेका प्रयत्न करते हो तो इस शक्यताको कौन नकार सकता है? भाग लेनेके अनेक प्रकार होते है. जरुरी नहीं कि पुरस्कार नकदमें ही ग्रहण करें. 

शिरीष दवे  

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