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सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१

सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१

यदि आप बछडेकी सरे आम और वह भी सडक पर हत्या कर सकते है और बछडेके मांसको पका सकते है और मांसका वितरण कर सकते है और भोजन समारंभ कर सकते है तो अब तुम कई सारे कार्य कर सकते हो. सोमनाथका मंदिर तोडने के लिये आगे बढो. प्रदर्शन करना, कानुन भंग करना जनतंत्रमें आपका अधिकार है.

लोग पूछेंगे आप किससे बात कर रहे हो? कौन तोडेगा सोमनाथका मंदिर?

नहेरुवीयन कोंग्रेस ही सोमनाथका मंदिर तोड सकती है. सामान्य मुसलमान लोगोंके लिये यह बसकी बात नहीं है. यदि नहेरुवीयन कोंग्रेस द्वारा सोमनाथका मंदिर तोडा जाय तो भारतके अधिकतर मुसलमान अवश्य आनंदित होगे. पाकिस्तान के लोग भी आनंदित होगे. इससे पाकिस्तान और हिंदुस्तानके संबंधोंमे सुधार आयेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसका और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका ध्येय मुसलमानोंको आनंदित करना ही तो है.

“दो बैलोंकी जोडी”

गाय के ब्रह्मरंध्रके हिस्सेमें परमेश्वरका वास है. वैसे तो गायमें सभी देवताओंका वास है. किन्तु सबसे वरिष्ठ, ऐसे देवाधिदेव महादेव ब्रह्मरंध्रमें बिराजमान है. देवताओंके अतिरिक्त सप्तर्षियोंका भी वास है. गाय का दूध, गोबर और मूत्र, औषधि माना जाता है. हमारे बंसीभाई पटेल, कुछ वर्षोंसे केवल गायके दूध पर ही जीवन व्यतित कर रहे हैं. वे ९५ वर्षके है और तंदुरस्त है.

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महात्मा गांधीकी कार्य सूचिमें मदिरा-निषेधके पश्चात्‌ गौ-वंश वध निषेध आता था. उसके पश्चात्‌ स्वावलंबन और अहिंसा आदि “मेरे स्वप्नका भारत और हिन्द स्वराज”में लिखी गई कार्य सूचिमें आते थे.

नहेरुको महात्मा गांधीकी यह मानसिकता पसंद नही  थी. किन्तु नहेरुका कार्य सूचिमें प्रथम क्रम पर सत्ता, और उसमें भी सर्वोच्च शक्तिमान प्रधानमंत्री पद था. यदि वे निर्भय होकर सामने आते और “मनकी बात” प्रदर्शित करते तो उनके लिये प्रधानमंत्रीका पद आकाशकुसुमवत बन जाता.

इस कारणसे नहेरुने महात्मा गांधीका कभी भी विरोध नहीं किया.

भारतीय संविधानमें ही मदिरा-निषेध, गौवध-निषेध और अहिंसक समाजकी स्थापना, ऐसे कर्य-विषयोंका समावेश किया जाय ऐसी महात्मा गांधीकी महेच्छा थी. ये बातें महात्मागांधीके “हिन्द-स्वराज्य”में स्पष्ट रुपसे लिखित है. संविधानकी रचनाके कालमें तो कई सारे महात्मा गांधीवादी, विद्यमान थे. नहेरुने तो कोई संविधान लिखा नहीं. हां नहेरुने भारतका इतिहास जो अंग्रेजोने लिखा था उसका “कोपी-पेस्ट” किया था. नाम तो डीस्कवरी ऑफ ईन्डीया लिखा था, किन्तु कोई डीस्कवरी सुक्ष्मदर्शक यंत्रसे भी मिलती नहीं है.

बाबा साहेब आंबेडकरने भारतका संविधान लिखा है. नहेरुने केवल स्वयंको जो विपरित लगा उनको निर्देशात्मक सूचिमें समाविष्ठ करवा दिया. निर्देशात्मक सुचिमें समावेश  करवाया उतना ही नहीं, उनको राज्योंके कार्यक्षेत्रमें रख दिया.

उत्तर प्रदेश सर्वप्रथम राज्य था जिसने गौवध निषेध किया. उस समय नहेरुने आपत्ति प्रदर्शित की थी, और त्याग पत्र देनेकी भी धमकी भी दी थी, किन्तु तत्कालिन पंतप्रधानने उनकी धमकीकी अवगणना की.

नहेरु अपने को धर्म निरपेक्ष मानते थे और वे अपने अल्पसंख्यकोंको अनुभूति करवाना चाहते थे कि वे (स्वयं परिभाषित परिभाषाको, स्वयं द्वारा ही प्रमाणित) धर्मनिरपेक्षता पर प्रतिबद्ध थे.

नहेरुकी यह मानसिकता, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण और उनसे अभिभूत अनुयायीगणमें भी है. अभिभूत शब्द ही सही है.

एक समय था जब कोंग्रेसका पक्षचिन्ह दो-बैलोकी जोडी था. बैल भी गायकी ही प्रजातिमें आता है. १९६९में नहेरुवीयन कोंग्रेसका, नहेरुकी फरजंद ईदिरा गांधीकी नेतागीरीवाली, और कोंग्रेस संगठनकी सामुहिक नेतागीरीवाली, कोंग्रेसमें विभाजन हुआ. कोंगी [कोंग्रेस (आई)], कोंगो [कोंग्रेस (ओ)].

गाय बछडावाली नहेरुवीयन कोंग्रेस

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ईन्दीरा गांधीमें नहेरुके सभी कुलक्षण प्रचूर मात्रामें थे. अपने पक्षका चिन्ह उसने गाय-बछडा रक्खा जिससे हिन्दुओंको और खास करके कृषक और गोपाल समाजको आकर्षित किया जा सके. ईन्दिरा गांधीने आचारमें भी जनताका विभाजन, धर्म और ज्ञातिके आधार पर किया. जब वह शासन करनेमें प्रत्येक क्षेत्रमें विफल रही तो उसने आपत्‌ काल घोषित किया.

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इस आपात्‌ काल अंतर्गत विनोबा भावे ने ईन्दिरा गांधीको पत्र लिखा की “गौ-हत्या”का  निषेध किया जाय, नहीं तो वे आमरणांत अनशन पर जायेंगे. आपात्‌कालके अंतर्गत तो समाचार माध्यममें शासनके विरुद्ध लिखना निषेध था. इस लिये विनोबा भावे के पत्रको प्रसिद्धि नहीं मिली. ईन्दिरा गांधीने आश्वासन दिया की वह गौ-हत्या पर निषेध करेगी और उसने समय मांगा. विनोबा भावे तो शतरंजके निपूण खिलाडी थे. उनको तो परीक्षा करनेकी थी कि इन्दिरा गांधी पूरी तरह मनोरोगी हो गई है या नहीं. विनोबा भावेको लगा कि ईन्दिरा गांधी पूर्णतया मनोरोगी नहीं बन गयी है किन्तु रोग अवश्य आगे बढ गया है. इसलिये उन्होने आचार्य संमेलन बुलाया. इसकी बात हम यहां नहीं करेंगे.

विनोबा भावे को यह अनुभूति नहीं हुई कि जब कोई पक्षका नेता स्वकेन्द्री और दंभी बन जाता है तो ऐसी मानसिकता उनके पक्षके अधिकतर सदस्योंमें भी आ जाती है. ये लोग तो अपने नेतासे भी आगे निकल जाते है. और शिर्षनेतागणको यह उचित भी लगता है क्यों कि पक्षके एक सदस्यने यदि कोई अभद्र व्यवहार किया और पकडा गया, तो शिर्ष नेतागण स्वयंको उससे वे सहमत नहीं है ऐस घोषित कर सकते है और आवश्यकता अनुसार स्वयंको वे, उससे असहमत और भीन्न है ऐसा दिखा सकते है.

नियमोंवाला संविधान किन्तु आचारमें मनमानी

नहेरुवीयन कोंग्रेसने नियम तो ऐसे कई बनाये है. किन्तु नियम ऐसे क्षतिपूर्ण बनाये कि वे नियम व्यंढ ही बने रहे. ऐसे नियम बनानेका उसका हेतु अबुध जनता को भ्रमित करनेका था. उनका कहना था कि “देखो, हमने तो नियम बनाये है, किन्तु उसका पालन करवाना शासनका काम है. यदि कोई राज्यमें विपक्ष का शासन है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा कहेगी कि “यह तो राज्यका विषय है” यदि वहां पर नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन है तो उसका कथन होगा “हमने विवरण मांगा है ….” या तो “अभी तो केस न्यायालयके आधिन है … देखते हैं आगे क्या होता है. … हम प्रतिक्षा कर रहे हैं”. यदि न्यायालयने नियम तोडनेवालेके पक्षमें न्याय दिया तो नहेरुवीयन कोंग्रेस कहेगी कि “हम अध्ययन कर रहे है कि कैसे संशोधन किया जाय.”

नहेरुवीयन कोंग्रेस द्वारा आपने गौ-मांस-भोजन-समारंभ तो देखे ही है.

निर्देशात्मक नियमोंका दिशा सूचन

समाजमें सुधार आवश्यक है. किन्तु समाज अभी पूरी तरह शिक्षित हुआ नहीं है. इसीलिये क्रमशः सुधार लाना है. निर्देशात्मक नियमोंका  यह प्रयोजन है. वे दिशासूचन करते हैं. यदि कोई राज्यका शासन नियम बनानेकी ईच्छा रखता है तो वह निर्देशात्मक नियमकी दिशामें विचारें और नियमका पूर्वालेख, नियमको उसी दिशामें, आचारके प्रति, शासनको प्रतिबद्ध करें. यही अपेक्षा है. निर्देशित दिशासे भीन्न दिशामें या विरुद्ध दिशामें नियम बनाया नहीं जा सकता.

नहेरुवीयन कोंग्रेस शासित राज्योंमें, जो नये नियम बने, वे अधिकतर निर्देशित सिद्धांतोसे विपरित दिशामें है. जैसे कि मद्य-निषेध. उन्नीसौसाठके दशकमें महाराष्ट्र स्थित नहेरुवीयन कोंग्रेसने मद्यनिषेधके नियमोंको सौम्य बनया ताकि ज्यादा लोग मद्यपान कर सके.

असहिष्णुताकी वोट बेंक बनाओ

 

धर्म के आधार पर विभाजन इस हद तक कर दो कि लोग अन्य धर्मके प्रति असहिष्णु बन जाय. हिन्दुओंको विभाजित करना तो सरल है.

वेमुला, अखलाक, कन्हैया जैसे प्रसंगोंको कैसे हवा दी गयी इस बातको हम सब जानते है. यदि कोई हिन्दु जरा भी असहिष्णु बने तो पूरे हिन्दुओंकी मानसिकताकी अपकिर्ती फैला दो.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने ऐसी परिस्थिति बना दी है कि यदि कोई सुरक्षाकर्मी,  जीपके आगे किसी पत्थरबाज़ को बांध दे और सुरक्षा कर्मीयोंको पत्थरबाज़ोंसे बचायें और परिणाम स्वरुप आतंक वादियोंसे जनताकी भी सुरक्षा करें, तो फारुख और ओमर जैसे मुस्लिम लोग आगबबुला हो जाते हैं.

यदि फारुख और ओमर इस हद तक जा सकते है तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको तो फारुख और ओमरसे बढकर ही होना चाहिये न !!

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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राहुल गांधीकी घरवापसी या मूंहदिखाई या राहुलवर्सन – n+1

मूंह दिखाई

मीडीया धन्य हो गया.

यदि आपको मीडीयाका निम्नसे निम्न स्तर देखना हो तो भारतके समाचार माध्यमोंको देख लिजीये.

यदि आप भारतकी प्रज्ञा पर गर्व करते हैं, तो भारतीय समाचार माध्यमों का स्तर देखके आप लज्जासे नतमस्तक हो जाओ.

वैसे तो आप नतमस्तक हो जाओ, ऐसी कई घटनाएं है, जिसमें नहेरुवीयन कोंग्रेसी संस्कार पर चलनेवाली मुस्लिम नेतागीरी भी संमिलित है, जो सतत हिन्दुओंके मानव अधिकारोंका हनन किया करती है. ये लोग तो सिद्ध देशद्रोही है, उनके विषय पर क्या चर्चा करें ! आम जनताको धीरे धीरे सबकुछ ज्ञात हो गया है.

नहेरुका जूठ

नहेरुने स्वातंत्र्यके प्रथम दशकमें कई जूठ फैलायें थे.

उस समय मीडीया माध्यम को यह ज्ञात नहीं था कि सत्य और असत्य, श्रेय और अश्रेय क्या होता है. क्यों कि उनको ऐसी प्रशिक्षा नहीं दी गयी थी. वैसे तो १९४७के पूर्व समय, स्वातंत्र्य सेनानीयोंके द्वारा संचालित कई उत्कृष्ट समाचार पत्र थे जिनसे वे बोध ले सकते थे. लेकिन भय के कारण वे अंग्रेज सल्तनत के विरुद्ध लिखना नहीं चाहते थे. हो सकता कि वे लोग शिशु अवस्थामें हो. मीडीयामें परिपक्वता नहीं आयी थी.

किन्तु यदि २८ वर्षके बाद भी मीडीया पंडित परिपक्व नहीं बन सकते है तो कारण कुछ और ही हो सकता है.

इन मीडीया मूर्धन्योंको १९७५१९७६ के अंतर्गत, नहेरुवीयन फरजंद इन्दिराने झुकनेको कहा था. किन्तु इन मीडीया मूर्धन्योंने इन्दिरा संचालित सेन्सरशीप को साष्टांग दंडवत प्रणाम करके, उसके शासन द्वारा संचालित अफवाहें फैलानेमें और शासनके भाट बननेमें कोई शर्म नहीं रक्खी.

मीडीयाकी यह अपरिपक्वता कहां तक रहेगी?

मीडीयाका एजन्डा कुछ और ही है.

मीडीयाको क्या लिखना है, कैसे लिखना है, कितना लिखना है, ये सब पूर्व निश्चित है.

वैसे तो आदर्श मीडीया का धर्म है कि, वह जनताको माहिति प्रदान करे. जनताको सुशिक्षित करें. जनताके हितमें लिखे. सत्य लिखे, प्रमाणभान रखकर लिखें, सच्चे संदर्भमें लिखें, विवेकशीलतासे लिखें और निडरतासे लिखें.

नरेन्द्र मोदीने एक बार अपने वक्तव्यमें कहा कि समाचार माध्यम अपना वाचकगण और दर्शकगण बढानेके चक्करमें उत्तेजित शब्द प्रयोग करते है. ऐसा करनेमें ये समाचार माध्यम के पंडित लो यह नहीं देखते कि समाजमें नकारात्मक वातावरण फैलता है या सकारात्मक वातावरण फैलता है? जनताको सत्य अधिगत होता है या असत्य अधिगत होता है?   

सकारात्मक समाचारकी अखबारी परिभाषाः

एक ख्यातनाम समाचार पत्रने नरेन्द्र मोदीको लिखा कि वह, सप्ताहमें एक दिन सिर्फ सकारात्मक समाचार ही छापेगा. वैसे तो उस समाचार पत्रकी इस प्रकारकी घोषणा ही उसकी मानसिकता प्रदर्शित करती थी. क्यों कि वैसे तो प्रत्येक समाचार पत्रको हमेशा सकारात्मक समाचार ही प्रसिद्ध करना चाहिये.

लेकिन सकारात्मक समाचार की परिभाषा उस समाचार पत्र की अलग ही थी.

खून हुआ, दंगा हुआ, मारपीट हुआ, चोरी हुई, डकैती हुई, परिणित स्त्रीके साथ दुष्कर्म हुआ, सगिराके साथ दुष्कर्म हुआ, बच्चेके साथ दुष्कर्म हुआ, शिशुके साथ दुष्कर्म हुआ, विदेशीके साथ दुष्कर्म हुआ, कौनसी हिन्दु जाति द्वारा दुष्कर्म हुआ, ठगाई हुई, अकस्मात हुआ, किसीने गाली दी, कोंगीने प्रदर्शन किया, क्या क्या बोला आदि आदि ही नकारात्मक घटनाएं है.

वास्तवमें नकारात्म समाचार क्या है?

समझ लो. कोई भी घटना जब घटती है और जब वह जनमानसके दिमाग पर पडती है तब उसका असर भीन्न भीन्न प्रकारकी व्यक्ति के उपर भीन्न भीन्न होता है.

एक व्यक्ति है जो चोर है उसको यदि चोरीके समाचारसे पता चलता है कि फलां जगह पर इस प्रकारसे चोरी हुई, तो उसको चोरीका एक और तरिका मालुम हो जाता है.

जिसकी जातीय वृत्ति असंतुष्ट है उसको भी जब दुष्कर्म का समाचार मिलता है तो उसको पता चलता है कि इन इन व्यक्तियों पर ऐसे ऐसे प्रकारसे दुष्कर्म किया जा सकता है. दुसरे लोग करते है तो हम भी क्यों करें !

यदि कोई फिल्मी हिरो कहेता है कि यदि मैं सिग्रेट मूंहमें रखकर अपनी अदा बताउं तो मैं सोचनेका अभिनय कैसे करु? कोई हिरी (हिरो का स्त्रीलिंग), कहेगी मेरा शरीर मेरा है. मेरी जिंदगी मेरी है, मैं उसका जो चाहे वह करुं. … (फिर वह हिरोईन, आगे बहूत कुछ कहेती है जो समाजकी तंदुरस्तीके लिये विवादका विषय है, इसलिये यहां नहीं लिखा जा सकता).

ऐसे समाचारोंको ज्योंका त्यों और बार बार प्रसिद्ध करनेसे और ऐसे समाचारोंको ज्यादा महत्व देनेसे, वे नकारात्मक बन जाते है. यदि समाचार माध्यम, समाचारोंमे विवेकशीलता रखके समाचारको प्रसारित करता है और वह स्वयं तटस्थ बनकर पूर्व पक्ष और प्रतिपक्ष का मुद्दोंपर प्रतिक्रिया प्रकट करता है तब वे ही समाचार सकारात्मक बन जाते हैं.

एक समाचारपत्रकी मानसिकता देखो

“दिव्यभास्कर” गुजरातका एक ख्यात नाम समाचार पत्र है. वह नरेन्द्र मोदीके विदेश-प्रवासके वर्णन और विदेशप्रवासकी उपलब्धियां, केवल एक अष्टमांश पन्ने पर, और वे भी सातवें या नवमे या ग्यारवें पन्ने जो भितरके पन्ने है उनमेंसे कोई एक पन्ने पर ही प्रकट करता था.

वास्तवमे ऐसे समाचार भारतके भविष्य के विकास पर सर्वाधिक प्रभावशाली माने जाते है. तो भी हमारा यह समाचार पत्र इसको महत्व देना नहीं चाह्ता था. क्यों कि, बीजेपीके विषयमें सकारात्मक समाचार प्रकट करना, नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये नकारात्मक बन जाता है.

एक हंगामेका समाचार

“आवास योजनाके एक प्रकल्प के लिये बीजेपीकी सरकारने गुजरातके एक नगरमें शिलान्यासका आयोजन किया. इस प्रसंगमें कुछ लोगोंने हंगामा किया. मंडपको तोडा, कुर्सीयां तोडी, टेबल उलट दिये. पूरे समाचार पढने पर भी आपको ऐसा कोई विवरण नहीं मिलता है कि, ऐसा क्यूं हुआ? समाचार माध्यमके लिये हेतु प्रसारित करना महत्व का नहीं. जो हंगामा हुआ उसका वर्णन ही महत्वका है क्यों कि हंगामा बीजेपी द्वारा शासित राज्यमें हुआ है. बीजेपीके लिये नकारात्मक बनता है. और यही समाचार कोंगीके लिये सकारात्मक बनता है. समाचार माध्यमकी हेतुसूचिके अनुसार, समाचार हमेशा सकारात्मक (कोंगीके लिये) होना आवश्यक है.

अभी भूकंप के बारेमें बीजेपी सरकारकी कार्यवाही प्रसंशनीय बन रही है.

कुछ नकारात्मक तो ढूंढना पडेगा.

एक रुग्णालयमें भूकंप पीडित व्यक्तियों के कपोल पर “भूकंप” का लेबल लगाया गया. कर्मचारीका हेतू केवल भूकंप पीडितोंकी पहेचान का था. क्यों कि उनकी चिकित्सा निशुल्क करनी है. समाचार माध्यमोंने हंगामा खडा कर दिया.

“रुग्णालयका अमानवीय कृत्य”. हमारे डीबीने (दिव्यभास्करने) इस समाचारको प्रथम पन्ने पर विशाल अक्षरोंमे मुद्रित किया. हांजी, नरेन्द्र मोदीकी विदेशयात्राका विवरण और उपलब्धियां देशके लिये महत्वपूर्ण नहीं है. किन्तु एक गांवके रुग्णालयके कर्मचारीका “भूकंप”का लेबल लगाना कई गुना ज्यादा सकारात्मक है.

कोंगी साथी नेता उवाच

एक नहेरुवीयन कोंगके साथी नेताने बोला “नरेन्द्र मोदी भूकंपमें भूतानीयों पर और विदेशीयों पर  ज्यादा ध्यान केन्द्रित करता है”. इस नेताने न तो कोई विवरण दिया न तो मीडीयाने कोई विवरण मांगा. नरेन्द्र मोदी सभी भूकंप पीडितोंको मनुष्य माने उसमें समाचार माध्यमोंको और कोंगी और उसके साथीयोंको आपत्ति है. उनका संस्कार है कि सभी मनुष्योंको आपत्तिके समय पर भी भीन्नतासे देखना चाहिये.        

जिन समाचारोंके प्रकट करनेके पीछेस्वार्थरहता है वे नकारात्मक होते है. क्योंकिस्वार्थनामका अखबारी तत्व सत्यको ढक देता है.

हिरण्मयेन पात्रेण, सत्यस्य अपिहितं मुखं.

स्वर्ण पात्रसे (पीले चमकिले और आकर्षक शब्दोंसें ये पीले पत्रकारत्ववाले समाचारमाध्यम के पंडितोंसे) सत्य ढक जाता है

कुछ नेताओंकी व्यक्तिओंकी ऐसी प्रकृति ही होती है.  इनमें फिल्मी हिरोहिरोईन, राजकीय पक्ष के नेता खास करके जो नये नये है या पुराने है लेकिन सत्तासे हाथ धो बैठे है, वे ऐसे मौके ढूंढते है कि उनको प्रसिद्धि मिले. ऐसे लोग पैसे देके भी समाचार प्रसिद्ध करवाते है. समाचार माध्यमको और क्या चाहिये? समाचार माध्यमको तो पैसा और वाचक वर्ग चाहिये.

मजाक करना मना है?

बीजेपी के एक नेताने कहा कि नहेरुवीयन कोंग्रेसको चमडीके कलरसे कोंप्लेक्ष (ग्रंथी) है. यदि राजिव गांधीने नाईजिरीयाकी लडकीसे (श्यामा लडकीसे) शादी कि होती तो क्या वे उसको कोंग्रेस प्रमुख बनाते?

यह तो एक प्रश्न था. जो औरत श्वेत है उसको श्वेत कहा गया. यह बात कोई बुराई तो है नहीं. नाईजिरीयाकी लडकीयोंको ( कोई व्यक्ति विशेषको श्याम कहा गया) श्याम कहा गया. यह भी कोई बडी बात तो है नहीं. वैसे तो “ब्लेक इझ ब्युटीफुल” कहा जाता है.

वैसे भी, नहेरुको श्वेत रंग के लोग ज्यादा पसंद थे. नहेरुने विदेशोंकी एम्बेसीयोंमें मूलकश्मिरीयोंकी बिना योग्यता देखें ज्यादा ही भर्ती कर दी थी. उसके कारण भारतको लज्जास्पद स्थितिमें आना पडता था. ऐसे तो कई उदाहरण है.

कमसे कम श्वेत स्त्रीको परोक्ष या प्रत्यक्ष रुपसे श्वेत कहेना, उसकी बुराई तो नहीं है. रही बात श्यामा की. लेकिन यह तो सामान्यीकरण है. यह कोई व्यक्ति विशेषकी बात नहीं है. किन्तु नहेरुवीयनोंने तो नाईजिरीया तक यह बात पहूंचा दी.

प्रमाणभान हीनता

जो कुछ भी हो. श्वेत श्यामकी इस बातको उछालना, उसके उपर टीवीमें चर्चाएं रखना, कोंगी और उसके साथीयों द्वारा संसदकी कार्यवाहीको स्थगित कर देना क्या आवश्यक है?

मीडीया का क्या यही एजंडा है? अन्य कुछ तो नहीं?

क्या यह श्याम-श्वेत” की चर्चा भारतके लिये जिवनमृत्युकी समस्या है?

क्या इस कारण किसी नेतानेत्रीने आत्महत्या कर ली है?

क्या इस बातसे कोई नेता नेत्री बिमार पड या हैं?

संवेदनशीलताका मिथ्या प्रदर्शन या हास्यवृत्तिका अभाव

एक समय महात्मा गांधीने कोई एक महाकविके संदर्भमें कहा था कियदि दूध देने वाली गैया, लात मारे तो भी सहन कर लेना चाहिये.”

उस समय तो वह महाकविके भक्तोंने या वह महाकवि खूदने कोई कोलाहल नहीं किया था.

हांजी, महाकविने यह तो अवश्य कहा किमैं गैया नहीं हूं, मैं तो सांढ हूं”. बात खतम.

लेकिन यहां पर तो सोनियाने भी यह प्रदर्शित किया कि वह कोई संवेदनहीन नहीं है, लेकिन वह उच्चकोटीकी होनेकी वजहसे, निम्नकोटीकी व्यक्तिसे की गई अभिव्यक्ति पर कोई टीका नहीं करेगी. इस प्रकर, स्वयंको उच्चस्तरकी माननेवाली व्यक्तिने अन्यको निम्न कक्षाकी दिखाने की मानसिकता प्रदर्शित तो कर ही दी. (अभी बोला अभी फोक).

यह वही सोनिया गांधी है, जिसने खूदने, गुजरातकी जनताको गोडसे कहा था और नरेन्द्र मोदीको मौतका सौदागर कहा था. और उसके पक्षके लोगोंने नरेन्द्र मोदीको जगतके हर आततायीयोंके नामसे नवाजा था और हर निम्नकक्षाके माने जाने वाले प्राणीयोंके नामसे भी नवाजा था. उस समय इन नहेरुवीयन नेताओं की और सोनीयाकी संवेदनशीलता कहां गई थी? इसको कहेते है “सौ चूहे मारके बिल्ली हज करने चली.”

मीडीया पंडितोंने कोई चर्चा नहीं चलायी

एक और नहेरुवीयन फरजंद है जो नहेरुइन्दिराकी मिक्ष्ड स्टाईल मारता है. संसदके एक सवालके उत्तरमें नहेरुने कहा थायुनोमें लाईन ऑफ कन्ट्रोलकी परिभाषा नहीं है”.

घटना कुछ इस प्रकार थी. नहेरु चीनके चाहक थे. चीनका सैन्य लाईन ऑफ कन्ट्रोलका उलंघन करता रहेता था. महात्मागांधीके अंतेवासी जेबी क्रीपलानीने सवाल उठाया, कि, भारत सरकार चीनी घुस पैठके विषय पर क्या कदम उठा रही है?

तब नहेरुने ऐसी घटनाको ही नकार दिया.

वास्तवमें हमारे सुरक्षा दलके अधिकारीगण, चीनके साथ नियमित रुपसे होनेवाली बैठकोंमें यह मुद्दा उठा ही रहेते थे. और तब चीनी अधिकारी, नहेरुके कथनोंका हवाला देके घुसपैठको नकारते थे.

लेकिन जब चीनी लश्करकी घुसपैठ, हदसे ज्यादा बढ गयी, तो संसदमें जे बी क्रिपलानीजीने सूचित किया कि हम लाईन ओफ कन्ट्रोलका उलंघन करने वालों पर निगरानी करनेके लिये, लाईन ओफ कन्ट्रोल पर अधिक सुरक्षा व्यवस्था रक्खें और युनोमें केस दर्ज करें. तब नहेरुने कहा कि एल..सी. की कोई परिभाषा युनोके पास नहीं है. और युनोने अभी तक कोई समस्या हल नहीं की है.

क्रीपलानी ने कहा कि तो हम युद्ध करें.

तो नहेरुने कहा कि युद्धसे कोई समस्या हल नहीं होती.

इस प्रकार नहेरुके पास हरेक समस्याका उत्तर फिलोसोफीकल था. उसका यह प्रपोता भी ऐसा लुझ टोकींग करता है. “गरीबी एक मानसिकता है

यह नहेरुवीयन फरजंदके कितने वर्सन (अवतार) है?

राहुल ? अहो रुपं अहो ध्वनि?

राहुल वर्सन०१

बिहारमें राहुलकी नेतागीरीमें चूनाव लडा जायेगा ऐसा घोषित हुआ. मीडीयाने अहो रुपं अहो ध्वनिचलाया. वह था उसका अवतार वर्सन०१. फिर क्या हुआ? नहेरुवीयन कोंग्रेस पीट गयी.

ऐसा क्यों हुआ? नहेरुवीयन नेतागण बोले अरे भाई उसने अपना फर्ज निभाया लेकिन कार्यकर्ता लोग असफल रहें.

राहुल वर्सन०२

कोंगी बोली, अब राहुलजी एक बडी जेम्मेवारी लेने वाले है. वे युपी एसेम्ब्ली चूनावमें प्रभारीकी जिम्मेवारी ले रहे है.

मीडीयाने राहुलका वहीअहो रुपं अहो ध्वनिचलाया”. उसमें भी नहेरुवीयन कोंग्रेस पीट गयी. वर्सन०२ समाप्त.

लेकिन अब तो वे एक बहोत बडी जिम्मेवारी अदा करने वाले है…. ऐसा करके उनके कई वर्सन निकले.

फिर उनको महामंत्री बनाया. फिर उनका पक्षके उपप्रमुखका वर्सन आया. सबमें उसका पक्ष पीट गया.

फिर क्या हुआ?

प्रोडीगल सन क्या घर छोडके भाग गया?

या वालिया लुटेरा तप करनेके नाम पर ब्लेक मनी को ईधर उधर करने चला गया?

या जिम्बो कोई और बेनाम जगह चला गया?

रोबिन हुड …  खेल खेलने बेनाम जगह चला गया?

पूरे दो मास बिना कुछ काम किये गुमनाम हो गया. के सेवकोंने बताया वह छूट्टी पर गया है.

वैसे तो संसद सदस्यको सरकारी व्यक्ति मानना चाहिये. क्यों कि उसको जननिधि (पब्लीक फंड)मेंसे वेतन मिलता है. और उसका निवृत्ति वेतन भी सुनिश्चित है.

राहुलके लिये नैतिक धर्म बनता है कि वह क्यों जाता है, कहां जाता है और उसके अवकाशके समयका पता क्या है ये सभी माहिति संसदके स्पीकरको बतावें. ऐसा नहीं करनेसे उसको निलंबित किया जा सकता है. यदि कोई सर्वोच न्यायालयमें जनयाचिका प्रस्तूत करे तो सभी संसदोंको जनसेवक (पब्लिक सर्वन्ट) घोषित किया जा सकता है. इसके अतिरिक्त भी राहुलका नैतिक धर्म बनता है.

खास करके इन्दिरा गांधीकी स्थापित प्रणालीके अनुसार गुप्तता रखना नहेरुवीयनोंका संस्कार बना है. सोनिया गांधीकी चिकित्सा जननिधि (पब्लिक फंड)में से हुई और वह भी विदेशमें हुई. क्या चिकित्सा? कौनसे रोगकी चिकित्सा? कौनसे रग्णालयमें चिकित्सा हुई? ये सब माहिति गोपनीय रक्खी गयी.

समाचार माध्यमोंने भी इसबात पर आपत्ति नहीं जताई.

राहुलके अज्ञातवासका अंत. उसके आगमनको कैसे प्रदर्शित किया जाय?

क्या कोई युद्ध जिता? नहीं तो.

क्या कोई अभूतपूर्व सेवाका काम किया? नहीं तो.

स्वागत तो अभूतपूर्व करना ही पडेगा !

दिये जलाओ, पटाखे फोडो, अब तो आनंद मंगल हो गया.    

मानो झीम्बो कम्स टु टाऊन.

मूंह दिखाई की रसममें सब उमट पडे. मीडीया भी उमट पडा.

वह जो कुछ भी हो, हमारे समाचार माध्यमोंने हेड लाईन दिया

राहुलने नरेन्द्र मोदीको आडे हाथ लिया. “शुट बुट की सरकार”, “किसानसे छीनके उद्योगपतियोंको जमीन देनेवाली सरकार”, “किसानको जमीनके बदलेमें कुछ भी नहीं देनेवाली सरकार”, “किसानोका खेतीका अधिकार छीना” … “राहुल है आत्मविश्वाससे भरपूर”.

शुट बुट की सरकारसे क्या मतलब है?

क्या राहुके पिता और प्रपिता, दादी, वे सब, महात्मा गांधीकी तरह सिर्फ दो कपडेके टूकडे लपेटके घुमा करते थे? क्या वे शुटबुट पहेनते नहीं थे? क्या अन्य नेता भी महात्मा गांधी की तरह कपडा लपेटके घुमते थे और घुमते है?

राहुलको खूदके पूर्वजोंके चरित्रको याद करना चाहिये

ईन्दिरा गांधीको नहेरुकी गद्दी विरासतमें लेनेकी थी, इसलिये वे नहेरुके साथ ही रहा करती थीं. उनके साथ विदेश भी जाती थीं. एक बार उनको सरकारी विदेशी डीग्नीटरी होनेके नाते, मींक कोट जिसकी किमत ३००००० रुपये होती है, भेटमें मिला.

सरकारी नियम अनुसार उनको, या तो उसकी किमत जनकोषमें जमा करा देनी चाहिये, या तो वह प्रधानमंत्रीके वस्तुभंडारमें जमा करवा देना चाहिये. इन्दिरा गांधीने उस भेटको अपने पास ही रख लिया.

राम मनोहर लोहियाने कुछ साल बाद यह प्रश्न संसदमें उठाया कि, वह मींक कोट कहां गया? संसदमें हंगामा हुआ. तब जाके इन्दिराने उस कोटको राष्ट्रीय कोषमें जमा किया.

अब आप तुलना करो. नरेन्द्र मोदीने क्या करते है?

उनको जो भेट मिलती है वह एक बार, भेट देनेवाले के मानके लिये पहन लेते है. फिर उस भेटका निलाम कर देते हैं और भेटकी वास्तविक किमतसे कई गुना ज्यादा मूल्य प्राप्त करके जनकोषमें रकम जमा करवाते है.

किन्तु नहेरुवीयनोंमे ऐसी विचार धारा और प्रज्ञा कहां हो सकती है?    

भूमि अधिग्रहणकी चर्चाएं

मीडीयाने तो चर्चा बहूत चलाई, मीडीयाने कई बातें अनदेखी भी की.

जिजाजी वाढेराने जो भूमि अधिग्रहण किया तो कितना पैसा किसानको मिला?

यदि किसानकी हालत दयनीय है तो अभी ६० सालतक नहेरुवीयन कोंग्रेसने किसानके लिये क्या किया कि किसानको आज भी आत्म हत्या करनी पडती है?

किन्तु समाचार माध्यमने ऐसे प्रश्न नहीं उठाये.

भूमिअधिग्रहण विधेयकको निजी उद्योगसे कोई संबंध नहीं तो भी इसकी चर्चा होती रहेती है और कोंगी वक्ता बिना कोई आधार असंबद्ध बाते बिना रुके करता रहेता है और समय पसार करता है. मीडीया कोंगीयोंको ऐसी बाते करने देता है.

मीडीयाको भी असंबद्ध बातोंको हवा देनेका ज्यादा शौक है.

राहुलका अब कौनसे नंबरका अवतार चलता है? तो मीडीयाको पता है, तो राहुल को पता है. तो फिर राहुल का नया अवतार…. राहुलका नया अवतार …. ऐसा कहेते रहो …. वही पर्याप्त है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः मूंह दिखाई, सकारात्मक, नकारात्मक, निम्न स्तर, समाचार माध्यम, मीडीया, पंडित, अपरिपक्व, कार्यसूचि, पूर्व निश्चित, हंगामा, एजंडा, नहेरु, इन्दिरा, नहेरुवीयन कोंग्रेस, सांस्कृतिक साथी, प्रभावशाली

 

 

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