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Posts Tagged ‘कोंगी गेंग’

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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कोंगी गेंग की एक और चाल

गरीबोंकों एक और खेरात

कोंगी के अध्यक्षने मध्यप्रदेशके चूनाव के समय किये गये ॠणमाफीके शस्त्रकी सफलताको देख कर, उसके ही एक और बडे स्वरुपके शस्त्रका आविष्कार किया और उसको नाम दिया है, “न्यूनतम आय योजना”. इसके उपर पूरे कोंगीलोग अति उत्तेजित और आनंदित है. लेकिन कुछ समय पश्चात्‌, उनको पता चला कि कुछ गडबड हुई है. उन्होंने अपने घोषणापत्रमें उसके विवरणमें शब्दोंकी चालाकीसे उस शस्त्रको पतला और असंपृक्त (डाईल्युट) किया. असंपृक्त इसलिये किया कि कुछ विद्वान लोग, उसका मजाक न बना दे.

७२००० हजार हरेक गरीबके खातेमें डाल देनेका है.

लेकिन गरीबको पहेचानना एक मुश्किल समस्या है. खास करके, कोंगी गेंगके लिये, यह अत्यंत दुष्कर है. कोंगी शासनमें “महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना” में और गेस सीलीन्डर सहायक योजनामें, राशन कार्ड पर सस्ता अनाज देनेकी योजनाओंमें और ऐसे कई कार्योंमें जब, नरेन्द्र मोदीने, आधारकार्ड को जोडा, तब कोंगीके शासनका, अरबों खरबों रुपयोंका भ्रष्टाचार सामने आया. इस कारणसे कोंगी गरीबोंकी सही पहेचान कर सके, वह असंभव है.

ऐसी खेराती योजनाओंका एक प्रभावक अवयव यह भी है, कि जो गरीब है, वह तो इन पैसोंका व्यवहार नकदसे ही करेगा. और यदि चार लाख करोडका नकद अर्थतंत्रमें आ जाय, तो वह अर्थतंत्रका क्या हाल कर कर सकता है!! इसके अतिरिक्त  वस्तुओंके मूल्यों  पर इसका क्या प्रभाव पडेगा वह भी एक संशोधनका विषय ही  नहीं, परंतु चिंताका विषय भी बन सकता है.  भारतमें तो जनतंत्र है. कोंगी स्थापित शासन व्यवस्थामें और वह भी अर्थतंत्रकी प्रणालीगत व्यवहारमें  बाबुमोशायोंका करिश्मा तो सर्व विदित है. बहेतीगंगामें कोंगीके खूदके सर्वोच्च महानुभाव कितने लिप्त है वह हमने ही नहीं किन्तु समग्र देशने देख लिया है.

याद करो १४ वरिष्ठ बेंकोका राष्ट्रीयकरणः

इन्दिरा गांधीने १४ वरिष्ठ बेंकोका राष्ट्रीयकरण १९६८में किया था. युवा पीढीको मालुम नहीं होगा, और जो उस समय युवान थे वे अब इतने वृद्ध हो गये है कि उनकी स्मृति कमजोर पड गई है. वे समज़ते है कि इन्दिरा गांधीने कोंग्रेसको तोडनेके पश्चात्‌ यह काम किया था. जैसे कि वे समज़ते है कि इन्दिरा गांधीने १९७७में आपातकाल हटाके चूनाव घोषित किया था. वास्तवमें इन्दिरा गांधीने आपातकालके चलते ही चूनाव किया था. जब उसका कोंगी पक्ष हार गया तो उसने आपातकाल को हटा लिया. क्यों कि उसको डर था कि आपातकालके सहारे नयी सरकार उसको गिरफ्तार कर लेगी.

इन्दिरा गांधीने बेंकोके राष्ट्रीयकरणका हेतु, यह बताया था कि, गरीबको व्यवसायके लिये छोटा ऋण दिया जा सकें. वैसे तो रीज़र्व बेंक ऐसा आदेश दे सकती थीं कि, हर बेंकको सुनिश्चित ऋण,  गरीबोंको देना ही पडेगा. लेकिन इन्दिराको इसका सियासती लाभ लेना था, और सरकारके पैसे से चूनाव जितना था.

“इन्दिरा जिसका नाम … वह सीधा काम भी टेढे प्रकारोंसे करती है” जयप्रकाश नारायण

ऋणके लिये सिफारिस चाहिये. और सिफारसी एजन्टके लिये तो कोंगी नेतासे अधिक श्रेय कौन हो सकता है!!

बस ऐसे ही ऋण दिया गया मानो उस ऋणको वापस  ही नहीं करना है. बेंकोंके राष्ट्रीयकरणका एक दुष्परिणाम यह भी था कि बेंकोके मेनेजमेन्ट पर युनीयनबाजी हामी हो गयी. बेंकोंके बाबुलोग बे-लगाम हो गये थे. फर्जी डीमान्डड्राफका व्यवहार ऐसा हो गया था कि हररोज एक करोडके फर्जी डीमान्डड्राफ्ट बनते थे और पैसा उठा लिया जाता था.

कोंगीका शासन हो और गफला न हो, यह बात ही असंभव है.

गफले न हो सके ऐसे नियम बनानेमें इन्दिरा मानती ही नहीं थी. सियासती नीतिमत्ताको धराशायी करनेमें इन्दिरा गांधीको कोई पराजित नहीं कर सकता. नहेरु भी दंभी और असत्यभाषी थे, लेकिन उन्होंने स्वातंत्र्य संग्राममें जनतंत्रकी दुहाईके हीरे खाये थे. इसलिये वे चाहते हुए भी सरमुखत्यारीके कोयले नहीं खा सकते थे.

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लेकिन इन्दिराका स्वातंत्र्यके संग्राममें कोई योगदान ही नहीं था. गुजरातीमें एक कहावत है कि नंगा नहायेगा क्या और नीचोडेगा क्या? इन्दिरा खूले आम आपखुद बनती थीं.

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राहुल घांडी क्या इन्दिरा फिरोज़ घांडीको हरा सकते है?

राहुल सचमुच इन्दिराको जूठ बोलनेमें हरा सकते है. सभी क्षेत्रोंमे हरा सकते है. ईश्वरकी कृपा है कि राहुल प्रधान मंत्री बन नहीं सकते. क्यों कि, उनका इटलीकी नागरिकता पर धारणाधिकार (लीन = lien) है. विदेशकी नागरिकता पर, ऐसा धारणाधिकार रखने वाला व्यक्ति, मंत्री पदके लिये योग्य नहीं है. भारतीय संविधानमें ऐसा प्रावधान है.

आप देख सकते है कि अब तक कोई समचार माध्यमने इसके उपर चर्चा नहीं की है. इसका कारण क्या है?

गुजरातीमें एक मूँहावर है कि “जिसको कोई न पहूँचे उसको पेट पहूँचे. “डीनर डीप्लोमसी”, “मैंने आपका नमक खाया है”, “मैंने आपकी मदीरा पी है”. ये सब समानार्थी है और समान असरकारक है.

२००१के पूर्व गुजरातमें केशुभाई पटेलका शासन था.

उस शासनमें और उसके पूर्वके शासनमें यह प्रणाली थी कि हररोज एक वातानुकुलित बस केवल और केवल पत्रकारोंके लिये अहमदाबादसे गांधी नगर प्रतिदिन जाती थी. और देर सामको उनको वापस लाती थी. सरकार द्वारा पत्रकारोंकी महेमान नवाज़ी ऐसी होती थी सौराष्ट्रवासी भी उससे सिख ले सकें. सौराष्ट्रके लोग महेमान नवाज़ीमें अतुल्य है.

पत्रकारों सब मौज करो

सरकार द्वारा,  ब्रेकफास्ट, लंच, डीनर मे स्वादिष्ट व्यंजन, चिकन-बिर्यानी और व्हीस्कीकी बोलबाला रहेती थी. लेकिन जब ऐसी परिस्थिति स्थायी बन जाती है तो फिर पत्रकारोंको सरकारकी दो आँखोंकी शर्म नडती नहीं है.

२००१के भूकंपकमें जब केशुभाई पटेलकी सरकार विफल रही तो पत्रकार लोग उनके पीछे पड गये.

नरेन्द्र मोदी आये.

उन्होंने असरकारक कदम उठाये. कुछ अधिकारीयोंको सस्पेन्ड किया. इसके अंतर्गत साबरमती एक्सप्रेसके रेल्वे कोच एस-६ को जलाके ५९ हिन्दुओंकी हत्या की. इसके कारण प्रत्याघात हुआ और कोमी दंगे हुए. अधिकतर समाचार माध्यमोंने इसको मोदीके विरुद्ध की घटना के रुपमें प्रस्तूत किया. इसकी एक यह वजह भी थी कि, मोदीने, सरकार द्वारा होती रही, पत्रकारोंकी वाहन और भोजन-नास्तेकी सुविधा बंद कर दी थी. अब सभी समाचार केशुभाईकी प्रशस्ति करने लगे और केशुभाईको मोदीके विरुद्ध उकसाने लगे. और केशुभाई पटेल समाचार माध्यमोंकी जालमें फंस भी गये. ऐसा होते हुए भी नरेन्द्र मोदी की बीजेपी २००२का चूनाव जीत गयी. लेकिन समाचार माध्यमोंने इस अप्राकृतिक युद्धको २०१२ के चूनाव तक पूरजोशमें चालु रक्खा.

इसी प्रकार समाचार माध्यमोंने अडवाणीको भी २०१४में उकसाया था. अडवाणी भी इन दंभी धर्मनिरपेक्षोंकी जालमें फंसनेको तयार थे. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री एक सौम्य और शांत व्यक्ति होना चाहिये. मध्य प्रदेशके शिवराज सिंह चौहाण एक सौम्य और शांत प्रकृतिवाले व्यक्ति है. अडवाणीका ईशारा स्पष्ट था कि उसको नरेन्द्र मोदी पसंद नहीं थे. लेकिन शिवराज सिंह चौहाण इस विभाजनवादी जालमें फंसे नहीं.

अडवाणीको २००४ और २००९ में दो दफा चान्स दिया गया था. वे विफल रहे. देशकी आम जनता भी चाहती थी कि नरेन्द्र मोदी ही प्रधान मंत्री बने. अडवाणीके इस प्रकारके परोक्ष विरोध का असर नहीं हुआ. उन्होंने बीजेपीके कॉटमें और अपनी गरीमाके विरुद्ध के कोटमें सेल्फ गोल कर दिया. समाचार माध्यम वाले तथा कथित मूर्धन्य लोग नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध पडनेके लिये असभ्य तरिकोंका भी उपयोग करना न भूले.

आज अडवाणीके कथन पर मीडीया वाले, कैसा भ्रामक और मीथ्या अर्थघटन कर रहे है वह जरा देखें.

“हमने कभी हमसे विरुद्ध अभिप्राय रखनेवालोंको देश द्रोही नहीं समज़े” अडवाणी उवाच.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

 

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भारतमें विपक्षकी सभी पार्टीयां सहमत हो गयी हैं कि …

भारतमें विपक्षकी सभी पार्टीयां सहमत हो गयी हैं कि …

इमरान खान पीएम इन्डिया मोदी

जबसे बीजेपी शासन आयी है;

तबसे विपक्षकी पार्टीयां जैसे कि, कोंगी, एस.पी., बी.एस.पी., आर.जे.डी., टी.एम.सी., एन.सी., पीडीपी, डी.एम.के., टी.डी.पी., जे.डी.एस., साम्यवादी की नज़दिकीयां घट रही है.

जबसे बीजेपीकी विदेशनीति, सुरक्षानीति, जनविकास नीति रंग ला रही है तबसे उपरोक्त सभीपार्टीयां परस्पर इतनी हिलमिल गयी है कि उनके सदस्योंको भी मालुम नहीं है कि वे स्वयं किस विपक्षी पार्टीके सदस्यके कथनका समर्थन कर रहे है. इतना ही नहीं लेकिन उन्होने इस ५० मासमें असामाजिक तत्त्वोंसे और नक्षलीयोंसे भी समर्थन और परस्पर  सहकार प्राप्त  लिया है.

कोंगी गेंग

कुछ वर्षोंसे कोंगी-पक्षको, देशस्थ आतंकवादीयोंका परोक्ष  समर्थन प्राप्त था. लेकिन कालांतरमें उसको सीमापारके आतंकवादीयोंका  समर्थन भी मिलने लगा था. इसलिये कोंगी पक्ष अपने बलबुते पर चूनाव लडनेमें मुस्ताक था.

लेकिन जबसे बीजेपी/मोदीने उरी आक्रमण और पुलवामा-ब्लास्टका बदला लिया तबसे भारतीय विपक्षगठबंधन सामूहिक सर्वनाशके भयसे कांपने लगा है.

लेकिन पंच तंत्रमें कहा है कि;

जब भी विपत्ति आती है तो उसका निवारण भी उत्पन्न हो जाता है. जैसे कि; आगमिष्यति यत्‌ पत्रम्‌, तत्‌ तारिष्यति अस्मान्‌ [जो पत्ता (पेडका पत्ता) आ रहा है वह हमे तारेगा (नदीके सामनेके छोर पर ले जाएगा)]

भारतीय विपक्षगठबंधनमें काले कोटवाले वकिल प्रचूर मात्रामें है;

सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि वकिल महाजन लोगोंका धेय धनप्राप्ति होता है. धनकी तूलनामें सभी चीजे गौण है. उनको प्रधान मंत्री नहीं बनना है. इस लिये, इन वकिलोंका कोंगीको शोभायमान करना स्वाभाविक ही है. एक मंत्री बन जाना, या तो प्रवक्ता बन जाना और अपने तरिकोंसे पैसे कमा लेना. ये बात तो लंबी है. इसका विवरण हम नहीं करेंगे.

लेकिन आप कहोगे कि अब तो कोंगी के नेतृत्ववाला शासन तो रहा नहीं तो ये वकिल लोग पैसे कैसे बना सकते है?

अरे भाई, नहेरुवीयनोंके पास जो पैसे है, उन नहेरुवीयनोंकी स्थावर और जंगम संपत्तिके आगे  कुबेर भी मूँह छिपा लेता है. और कोंगी शासन अंतर्गत जो अन्य हवालावाले धनपति बने थे उनको मोदी-शासनमें, वकिलोंकी आवश्यकता पडने लगी है. इस प्रकार अब तो वकिलोंके दोनों हाथोंमें लड्डु है.

कोंगी कुछ ऐसा कहेती है;

लेकिन भाई, अपना शासन वह अपना शासन है. अपना शासन हो और उसके हम मंत्री, या कमसे कम प्रवक्ता हो तो बस क्या कहेना !!

“हाँ जी, आपकी बात सही है. और इसका मार्ग हमने निश्चित कर दिया है. बस अब थोडीसी मुश्किलें है, उसका समाधान करना है …९

आप कोंगी गेंगसे पूछोगे; “क्या आपने अपना मार्ग निश्चित कर दिया है और वह सुनिश्चित भी हो जायेगा ? क्या बात है? कमाल है? क्या आयोजन है आपका? कुछ बताओ तो सही !!

गेंग बोली; “देखो … मोदीकी सर्जीकल स्ट्राईकके विषय पर तो हमने कई प्र्श्न चिन्ह लगाया है. वैसे तो हमें देशकी मीडीयासे अधिकतर सहयोग नहीं मिला है, किन्तु कुछ विदेशी मीडीया , (जो पहेलेसे ही भारतकी बुराई करनेकी आदत वाले है), उन्होंने कुछ मुद्देकी चर्चा की है उसको हम हमारे अनुकुल अर्थघटन करके, हमारे विवादको अधिक बढावा दे के, आम जनताको असमंजसमें डाल सकते है. यह तो एक बाय प्रोडक्ट है. इससे क्या हुआ है कि पाकिस्तानकी सरकार और पाकिस्तानी मीडीया हमारे उठाये प्रश्नचिन्होंका सहारा लेके पाकिस्तानकी जनतामें विश्वास दिलाते है कि ये सभी सर्जीकल स्ट्राईक फर्जी थीं.

अब हुआ है ऐसा कि;

पाकिस्तानकी सुज्ञ जनता मोदीकी बात मान रही है. पता नहीं आखिरमें इसका नतीजा क्या होगा. वहाँकी जनता यदि मोदी आतंकवादीयोंका सफाया करें तो खुश है. वहाँकी जनता चाहती है मोदी जैसा प्रधान मंत्री पाकिस्तानको मिले.

कोंगी गेंगके लोग कहेते है; “आप यहाँ भारतकी परिस्थिति देखो. यहाँ जो मुसलमान है, उनके तो हम खाविन्द है. उनके मत तो हमे मिलने वाला ही है. हिन्दु आम  जनता है उसको तो हम विभाजित करनेकी भरपूर कोशिस करेंगे. जितनी सफलता मिलेगी उतना ही हमें तो नफा होगा. मीडीयामें और सामाजिक तत्त्वोमें जिनकी दुकान बंद हो गयी है वे भी तो हमारे पक्षमें है. हम सब वंशवादी तो इकठ्ठे हो गये ही है. साम्यवादी और नक्षल वादी भी हमे सहयोग कर रहे है. सीमा पारके आतंकवादी हमें सहाय कर रहे है इस बातको शासकपक्ष उठावे उससे पहेले हमने ही प्रचारका प्रारंभ कर दिया है कि मोदीकी सर्जीकल स्ट्राईक फर्जी है. नरेन्द्रमोदीने और इमरान खानके साथ चूनावमें फायदा उठानेके लिये  फीक्सींग किया है.

कोंगी गेंग आगे कहेती है; “अब देखो. हमारी समस्या थोडी अलग है. हमें डर है कि भारतके कुछ मुसलमान मोदीकी विकासकी बातोंमें और जनकल्याणकी बातोंमें आ सकते है. हमारे पास प्रधान मंत्रीके पदके लिये  कोई सर्वमान्य नेता नहीं है. इस लिये हम सोचते है कि;

क्यूँ न हम इमरान खानको ही विपक्षका प्रधान मंत्री पद पर सर्वमान्य नेता घोषित करें !!

इसमें हमें फायदा ही फायदा है …

(१) सभी मुस्लिम आंखे बंद करके हमें वोट करेंगे …

(२) सर्जीकल स्ट्राईकके बारेमें हमने जो प्रश्नचिन्ह लगाये हैं, उनका फर्स्ट हेन्ड उत्तर इमरान खानको देनेका होगा. और इमरान खान तो हमें अनुरुप हो वैसा ही उत्तर देगा. वह थोडा कहेगा “आ बैल मुज़े मार”. इसलिये भारतकी सामान्य जनता को इमरान खान की बातको मानना पडेगा …

(३) इमरान खान की इमानदारी पर कोई भारतीय शक नहीं करेगा क्यों कि भारतमें एक प्रणाली हमने स्थापित की है कि जिसके उपर कोई आरोप नहीं, वह व्यक्ति यदि हमारा है, तो उसको “मीस्टर क्लीन” ही कहेनेका. जैसे कि, हमने राजिव गांधीको मीस्टर क्लीन का खिताब दे दिया था.

(४) पुरुषके लिये एक से अधिक शादी करना इस्लाममें प्रतिबंधित नहीं है. इस्लाममें बिना तलाक दिये पुरुष चार शादी कर सकता है. जब कि इमरानने तो तलाक दे कर शादियाँ की है. इमरान खान तो पवित्र पुरुष है.

(५) इमरान खान, आम जनताके कल्याण के लिये प्रतिबद्ध है. इस लिये मोदी जो कहा करता है “कि मैं जनसामान्यकी भलाईके लिये प्रतिबद्ध हूँ” उसकी हवा निकल जायेगी. मोदीके काम को हम लोग फुक्का (रबरका बलुन जिसमें हवा भरकर बडा किया जाता है. पटेलोंको भी बलुन कहा जाता है. लेकिन यहां पर बलुन उस अर्थमें नहीं है) कहेते हैं वह भप्प करके फूट जायेगा.

(६) मोदी अपने वस्त्रोंकी और उपहार सौगादोंकी नीलामी करके गरीबोंकी योजनाओंमें दान कर देता है, तो इमरान खान तो सरकारी सामानकी भी नीलामी करके सरकारमें जो कर्मचारी काम करते हैं उनके वेतनका भूगतान करता है. क्या ये कम है?

(७) इमरान खान तो खूबसुरत भी है. हम उसकी खूबसुरतीका सहारा लेंगे. वैसे तो ऐसी बातोंकी तो हमें आदत है. प्रियंका वाईदरा-घांडीके रुप, स्वरुप, सुरुप, अदाएं, वस्त्र परिधान, वस्त्रोंके रंगोंकी उसकी अफलातून पसंद, वस्त्रोंके उपरका डीज़ाईन वर्क, ड्रेस मटीरीयलकी उच्चता,  उसकी बहेतरिन चाल, केशकलाप, आंखे-नज़रें,  उसके कथनोंके गुढार्थ आदि को विवरित करके प्रियंकाको बढावा दिया था और देते भी हैं. इस प्रकार, उसको जनतामें ख्याति, प्रख्याति देनेमें हम सक्रिय हो गये थे ही न? और आप जानते ही है कि प्रियंकाके आनेसे सियासी समीकरण बदल गये थे ऐसा भी हमने प्रसारित करवाया था. अब तो हमारे पास इमरानखान भी आ गया है. महिला वर्ग चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दु, इमरान खानके उपर मरेगा. आपको मालुम है,राजिव गांधी की १९८४की जीतमें महिला मतोंका भारी योगदान रहा था. तो समज़ लो इमरानि खान भी दुसरा राजिव गांधी ही है. अरे भाई, इमरान खान को तो लेडी-कीलर माना जाता है.

(८)  इसके अतिरिक्त हम, मोदी जो भी, विकासके बारेमें बोलता रहेता है वह सब जूठ है, इस बातको हम बढावा देंगे. अरे भाई जब युवा लोग ही बेकार है, तो विकास कैसे हो सकता है?  विकासकी सभी बातें जूठ ही है. यदि भारतके युवाओंको काम मिलेगा तभी तो वे बेकार नहीं रहेंगे. यदि युवा लोग ही बेकार है तो काम होता ही कैसे? क्या भूत-प्रेत आके मोदीका विकासका काम करते हैं?

(९) कुछ लोग व्यर्थ और मीथ्या प्रालाप करते हैं कि;

(९.१) इमरान खान तो पाकिस्तानका नागरिक है. भारतका प्रधान मंत्री तो क्या संसदका सदस्य बनने के लिये भी भारतका नागरिकत्व चाहिये.

लेकिन हम कोंगीयोंके हिसाबसे यह सब बकवास है. अरे भाई, हम तो उसको बेक-डेटसे (रीट्रोस्पेक्टीव इफेक्टसे =भूतलक्षी प्रभावसे) भारतका नागरिक बनादेंगे. अरे भाई फर्जी कागजात बनाना हम कोंगीयोंके लिये बायें हाथका खेल है. सरकारी अफसरोंमें हमारी पहूँच अभी भी कम नहीं है.

“आप कहोगे कि यदि बात न्यायालय में जायेगी और भंडा फूट जायेगा तो?

“अरे भाई, समजो जरा … वकिल लोग किसके पास ज्यादा है? तुम्हारे पास कोई भी वकिल हो, हमारे पास राम है. यानी कि राम जेठमलानी है. वे अति अति वरिष्ठ है.उनकी बात तो न्यायालयको माननी ही पडेगी. और तूम्हे ज्ञात नहीं होगा कि हम सेटींगमें सिर्फ “जमानत” ही ले सकते है इतना नहीं है, हम किसी भी केसको दशकों तक ठंडे बक्षोंमे डाल सकते है. तब तक तो हमारा इमरान खान प्रधान मंत्री रहेगा ही न.

(९.२) अरे तुम याद करो. १९६९के चूनावमें हमारी आराध्या इन्दिरा माईने यही तो किया था. उसका चूनाव का केस, उच्च न्यायालयमें चलता था. सालो तक चला. जब निर्णय आया तो पता है निर्णय के क्या शब्द थे? “इन्दिरामाईकी संसद सदस्यता रद हुई और वह ६ वर्षके लिये चूनावी प्रत्याशीके लिये अयोग्य ठहेरी. तो भी वह प्रधान मंत्री पदके लिये चालु रह सकती है” और वह प्रधान मंत्री पद पर चालु रही उतना ही नहीं, उसने आपातकाल भी घोषित किया. और जो तकनीकी वजहसे वह अयोग्य ठहेरी थी उस नियमको रीट्रोस्पेक्टिव इफेक्ट से (भूत लक्षी प्रभावसे) बदल डाला. अब देखो जो संसद सदस्यके लिये योग्य  ६ सालके लिये योग्य नहीं है, और जिसको ६ महिनेमें ही संसदका सदस्य बनना है जो बिलकुल अशक्य है, तो भी वह प्रधान मंत्री पद पर बनी रहेती है. है न, न्यायालयका कमाल? हम कोंगी लोग, जब बात हम नहेरुवीयनोंके उपर आती है, तो हम नामुमकिनको मुमकिनमें बदल देते हैं. खास करके न्यायालयके अनुसंधानमें ऐसा करना हमें खूब आता है.

(९.३) हम शासक नहीं होते है तो भी हम सरकारस्थ अधिकारीयोंको पोपट बना सकते है. परोक्ष तरिकेसे तो हम कर ही सकते है. देखा न आपने राम-जन्म भूमिका मामला?

(९.४) आप कहोगे, कि, तो फिर  रा.घा.का क्या होगा?

अरे भाई, वैसे भी पाकिस्तानमें इमरान खान आर्मी और  आई.एस.आई. के रीमोटसे तो शासन करता है. तो भारतमें भी वह रा.घा., सोनिया, प्रियंका, रोबर्ट इन चारोंका मौना बनके रहेगा क्योंकि उनके पास ही तो रीमोट रहेगा. इमरान खानको क्या फर्क पडेगा. इमरान खान तो मनमोहन सिंघ की तरह अंगूठा मारनेका काम करता रहेगा.

(१०) इस मामले पर पाकिस्तानी जनता खुश है. क्यों कि उनको वैसे भी मोदी जैसा प्रधान मंत्री चाहिये. अब यदि उनको मौदी खुद ही प्रधान मंत्रीके पद पर मिल जाय तब तो बल्ले बल्ले.

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – २

पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और …. – २

दो चूहे मारके बील्ली शेरसे लडने चली

हमारे बुद्धिजीवी नरेन्द्र मोदीको हटाना चाहते है. कैसी है विधिकी वक्रता?

हमारे पूराने कोलमीस्ट जो मोदी फोबीया और बीजेपी फोबीयासे पीडित थे उनका मोदी विरुद्ध लिखना जारी है. लेकिन जैसे हमने पूर्व प्रकरणमें देखाकी  हमारे मीडीया मालिकोंको उनकी संख्या कम पडती है. और आपको तो मालुम ही है कि ये नेतागण जिनमेंसे कई स्वयंको मूर्धन्य मानते है उनमेंसे कई अपनी विद्वत्ता दिखानेको उत्सुक है और कोंगी तो इसमें विशेषज्ञ है कि मीडीयामें कैसे पैसे वितरित किया जाय? आखिर हमने पैसे ईकठ्ठे किये है किसलिये?

हमने यह भी देखा कि यदि वर्नाक्युलर भाषाके (स्थानिक भाषाके) विद्वानोंके लेख कम पडे तो एक भाषाके लेख दुसरी भाषामें भाषांतरित करके भी प्रकाशित किया जा सकता है.

तो ऐसे विद्वान कौन है?

शेखर गुप्ताजी तो है ही. दिलिप सरदेसाई है, चेतान भगत है जो लोग कोंगी भक्तोंकी श्रेणीमें आते हैं. इन्होंने नरेन्द्र मोदीको बदनाम करने की भरपुर कोशिस की थी. जैसे कि सरदेसाईजीने २००२में गुजरात के दंगेके बारेमें कहा था कि “ … पूरा गुजरात दंगोंमें जल रहा है …”.

फिर क्या हुआ? जब नतीजे आये तो पता चला कि कुछ विस्तारमें बीजेपीको अच्छा फायदा हुआ, तो सरदेसाईने कहा कि दंगावाले विस्तारोंमें  मोदीको  फायदा हुआ है. नरेन्द्र मोदीने एक साक्षात्कारमें कहा कि पहेले ये लोग कह रहे थे कि “पूरा गुजरात दंगोसे जल रहा था” तो अब क्यों कह रहे है कि “दंगे वाले हिस्सोंमें ही हमे अधिक बैठके मिलीं?” मतलब कि “मोदी-फोबिया-पीडित” बुद्धिजीवी महानुभाव लोगोंको यह याद नहीं रहेता कि उन्होंने पहेले कौनसा जूठ बोला था. ऐसा एक स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी और कोंगी हाईकमान्ड द्वारा प्रताडना रुप अपना मंत्री पद खोने वाला है शशि थरुर.

शशि थरुरः

हाँ जी, इस शशि थरुरने कोंगीके महामहिम, अविद्यमान नहेरुकी अर्थ नीति के विरुद्ध, बोला था. शशि थरुरको मंत्री पदसे च्यूत होना पडा था. लेकिन कोंगीयोंमे तो प्रताडनका असर कम समयके लिये रहेता है या रहेता ही नहीं है. क्यों कि;

संस्कृतमें एक श्लोक है;

सारमेयस्य च अश्वस्य, रासभस्य विशेषतः।

मुहूर्तात्‌ परतो नास्ति, प्रहार जनिता व्यथा ॥

(कुत्तेमें और घोडेमें, और खास कर के गधेमें, मार खानेसे हुई पीडा, एक मुहूर्तसे ज्यादा समय नहीं रहेती) कोंगीमें तो ऐसी घटनाके बेसुमार उदाहरण मिलते है. भारतके यह शशि थरुर भी नहेरुवंशकी सेवामें अटल रहे हैं. वैसे तो कई लोग जिनमे स्वयंको महात्मा गांधी वादी प्रमाणित करने वाले भी है. ये लोग भी इन्दिरा गांधी द्वारा प्रताडित है, ये लोग भी प्रताडनाकी व्यथा कभीकी ही भूल गये है और वे मोदी-फोबियासे पीडित है.

ये लोग समज़ते है कि;

“अब तो हमारे मूर्धन्यत्वके अस्तित्व का प्रश्न है. और हमने जो बाल्यकालमें संघको अछूत बनाया था (लेकिन जयप्रकाश नारायणको साथ देनेके लिये हम उनके गले मिले थे वह बात अलग है). जब जयप्रकाश नारायण नहीं रहे तो, और जब ढेबरभाई, कृष्णवदन जोषी जैसे नेतागण १९८०/१९८४में कोंगीमें मिल जाते है तो हम कमसे कम कोंगीके सहायक तो रह ही सकते है न? नवनिर्माण आंदोलन द्वारा विख्यात नेतागण स्वयं, कोंगीको शोभायमान कर रहे है तो हमें कमसे कम कोंगीकी सहायता तो करना ही चाहिये न?

“कोंगीयोंने यदि “घर घर अफज़ल” पैदा करने का और भारतके टूकडे टूकडे करनेका, भारतका सर्वनाश, आदि करनेका स्वप्न दिखाने वालोंका समर्थन किया है तो इससे क्या कोंगी अस्पृष्य बन जायेगी?

“महात्मा गांधीने क्या कहा था? महात्मा गांधीने तो कहा था तूम दुश्मनसे भी प्यार करो (लव धाय एनीमी). महात्मा गांधी तो अस्पृष्यताके विरुद्ध थे. तो हमे अफज़ल प्रेमी गेंग, भारतके टूकडे टूकडे करनेवाली गेंगोंको, जातिवादके आधार पर और धर्म के आधार पर जनताको विभाजित करनेवाली गेंगोंको अस्पृष्य क्यूँ समज़ना? हम असहिष्णु थोडे है? हमें जो कोंगीसे धनलाभ होता है वह क्या कम है? हमें ये सब भूल जाके क्या कृतघ्न बनना है?

सर्वोच्च न्यायालयका आदेशः

सीबीआई, राजिवकुमार (कलकत्ताके पूलिस आयुक्त जो गुमशुदा घोषित हुए थे) के घर गई. फिर शिघ्र ही ममता राजिवकुमारके घर पहूँची साथमे पूलिसकी एक गेंग भी पहूँची. मानो कि (आतंकवादी स्वरुप) सी.बी.आई. राजिवकुमारका एन्काउन्टर करने वाली है.

बादमे  ममताने जो धरना वाली नौटंकी किया, तो सीबीआईको सर्वोच्च न्यायालयमें जाना पडा. क्यूँ कि सीबीआई तो, सर्वोच्च न्यायालयके आदेश के अनुसार, राजिव कुमारसे पूछताछ करने गयी थी.

हमने प्रकरण–१ में, एक सोच और प्रश्न रक्खा था कि क्या सर्वोच्च न्यायालय अनिर्वचनीय है?

“अनिर्वचनीय मणझे काय?”

“अनिर्वचनीय” का अर्थ क्या होता है?

शंकराचार्यने ब्रह्माण्डको अनिर्वचनीय कहा है. इसका तात्पर्य यह है कि आप कितनी ही खोज करो, लेकिन वास्तवमें विश्व कैसा है उसका संपूर्ण ज्ञान आपको नहीं हो सकता.

मराठी लोग, गुजरातीके बारेमें यह सोचते है कि कोई घटना घटनेके पश्चात्‌ “गुजराती” क्या करेगा उसका पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता. गुजराती अनिर्वचनीय है.

उसी प्रकार जैसे कि कोई “पागल”के कभी क्या कर बैठेगा, यानी की पागलके प्रतिभावका अनुमान नहीं लगाया जा सकता, (अनिवार्य रुपसे तो नहीं किन्तु) उसी प्रकार सर्वोच्च अदालत क्या करेगी उसके बारेमें भी पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता.

जिसका पूर्वानुमान न लगाया जा सकता हो, उसको अनिर्वचनीय माना जाता है.   

सर्वोच्च न्यायालयने कहाः

(१) पूलिस आयुक्तको, सीबीआईके समक्ष, उसकी पूछताछमें संपूर्ण सहयोग देना पडेगा,

(२) यदि आयुक्तने दस्तावेजी साक्ष्य (डॉक्युमेन्टरी एवीडन्स) से छेडखानी की होगी या /और उनको नष्ट किया होगा तो हम उसको गंभीरतासे लेंगे. और ऐसे करनेवालोंको उनकी नानी याद करवायेंगे.

(३) (यदि आयुक्तको सीबीआईसे डर लगता है तो और यदि सीबीआई को ममतासे डर लगता है तो)आयुक्तकी पूछताछ शिलोंगमें हो.

ममता तो धरना पर बैठी थी. उसने इस आदेशको सून कर धरना समाप्त कर दिया.

ममताने तो अपने पूर्वालेखके (स्क्रीप्टके) अनुसार, इस आदेशकी घटनाको अनुष्ठानके साथ अपनी विजय के स्वरुपमें घोषित किया. जुलुस निकाला … पुष्प वर्षा करवायी … फुलहार पहेनवाये … पटाखे फोडे … नृत्य करवाये … मानो कि अश्वमेघके अपराजित अश्वका पुनरागमन हुआ.

ये सब कोंगीयोंका संस्कार है. और कोंगीयोंके सहवाससे उनके सांस्कृतिक सहयोगी भी उनके संस्कार आत्मसात्‌ करने लगे हैं. ये ममता और ममताके लोग भी गधोंके साथ रहेनेसे वे लात मारना ही नहीं भोंकना भी सीख गये है.

लालु यादवको जब कारावासकी सज़ा हुई तो उन्होंने भी एक जुलुस निकाला था जैसे कि वे युद्ध भूमिमें जा रहे है. यहाँ पर भी ममताने वैसा ही किया मानो वह केस जित गयी हो और सामनेवाले अपराधी घोषित कर दिया और उसको सज़ा भी मिल गयी हो.

इसके पीछे कौनसी मानसिकता होती है?

यह एक सियासती क्रिडा और चाल है कि अपराधी अपने प्रदर्शन की प्रसिद्धिसे, वास्तविक सत्यको ढक देनेकी कोशिस करता है.

इसका प्रयोजन आमजनता और अबूध जनतामें भ्रम (कन्फ्युज़न) पैदा करना है, ताकि जो अपराधी है उसके अपराधसे जनताका ध्यान हट जाय. वे दिखाना चाहते है कि, अपराधी अब भी लोकप्रिय है और उसके विरुद्ध जो कुछ भी है वे सब जूठ है. यानी कि, शारदा चीट-फंडकी जांचमें, जो महानिदेशक, पूलिस आयुक्त, संसदस्य, विधानसभा सदस्य, मंत्रीयोंकी मिलीभगत का खुलासा हुआ है वह सब जूठ है… सीबीआई संविधानके विरुद्ध कार्यवाही कर रही है. सत्रह लाख लोगोंके, ३५०० करोड रुपये ये लोग जो खा गये है वह सब गलत है.

वैसे तो ये सत्रह लाख लोगोंकी सत्रह लाख कहानीयां होगी.

यदि मीडीया, मानवता लक्षी होता, तो सत्रह लाख लोंगोंमें से कमसे कम सत्रह करुण कहानीयां उपलब्ध करवा सकता था. किन्तु जो मीडीया, कश्मिरके पांच लाख लोगोंकी पांच लाख शारीरिक और जैविक करुणांतिकाओंके प्रति असंवेदनशील बन सकता है, उतना ही नहीं, कश्मिरी हिन्दुओंके नरसंहारके विषयमें उनके (मीडीयाके) कानोंमें जू तक नहीं रेंगती, वह भला इन  बातोंमें क्या अन्वेषण करें? इन बातोंका अवमूल्यांकन तो सामान्यीकरण करके ही होना चाहिये. जैसे कि, “दुनियामें कौन व्यक्ति है जो कभी ठगविद्यासे ठगाया नहीं गया?”

मीडीयामें आप उपरोक्त ठगाईसे पीडितोंकी एक भी बात नहीं देख पाओगे. क्यों कि मीडीयाके लिये तो ममता, केन्द्र सरकार और सी.बी.आई. ही गर्म गर्म मुद्दा है. और इसमें अब चूनावी आयामोंका प्रक्षेपण और उनका बुरा प्रभाव बीजेपी पर कैसे पड सकता है वही उनको दिखाना है. मीडीया कहेता है हमें बस वही दिखाना है जो कोंगी चाहती है. यही हमारा एजन्डा है. ऐसे एजन्डेके कारण हम एक ऋणात्मक वातावरण (माहोल) बनानेकी अधिकतम प्रयत्न करेंगे. फिर माहोल के कारण गत चूनावमें क्या असर पडा था उसका फरेबी विवरण करके मोदीके विरुद्ध माहोल बनायेंगे. हम कृतघ्न और बेईमान थोडे हैं?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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