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थालीके छेदके नीचे क्या है?

थालीके छेदके नीचे क्या है?

जया भादुरीने कुछ इस मतलबका कहा कि, बोलीवुड देशकी सेवा करता है, ढेर सारा इन्कम टेक्ष भरता है. आज लोग उनको बदनाम कर रहे है. बोलीवुडने खानेकी थाली दी, तो उन्होंने उस थालीमें ही छेद किया.

क्या वास्तवमें जनता, समग्र  बोलीवुडके विरुद्ध है?

सर्व प्रथम हमें बोलीवुडके जो महानुभावों (सेलीब्रीटीज़)ने बोलीवुडके विषयके अतिरिक्त विषयोंमें अपना चंचूपात करना प्रारंभ किया और उनमें भी हिंदुओंकी प्रचीन सभ्यता और अर्वाचीन सहिष्णुताके विरुद्ध अपना मन्तव्य प्रदर्शित करना प्रारंभ किया तबसे आमजनता इन महानुभावोंके विषयमें उनका पुनर्मूल्यांकन करने लगी.

हिन्दी फिलमोंमें हिन्दु पात्रको पापाचारी दिखाना, मुस्लिम और ख्रीस्ती पात्रको सदाचारी और पुण्यात्मा दिखाना एक प्रणाली है..

इसका उत्कृष्ट उदाहरणपीकेफिलम था. इस फिल्ममे शिवजीके पात्रमें जो अभिनेता था उसका जब वह शिवजी के वस्त्रोंमे था तब ही उसका अपमान किया जाता है.

फिल्म भी नाट्य शास्त्रके नियमके अंतर्गत है

भारतीय संस्कृतिमें नाट्यशास्त्रके रचयिता भरत मुनि थे. नाटक के नियम भरत मुनिने बनाये है. नाट्यकारोंको उन नियमोंका पालन करना अनिवार्य है. उन नियमोंमेंसे एक नियम यह है कि जो अभिनेता ईश्वर/भगवानके पात्रका अभिनय करता है, और वह पात्र जब तक उस वेषमें होता है, तब तक उस पात्रकी गरिमा रखनी होती है. यदी उसके सामने राजा या सम्राट भी जाय, तो राजाको /सम्राटको भी उसका आदर करना पडता हैतात्पर्य यह है कि वह पात्र राजाको या सम्राटको नमस्कार नहीं करेगा किन्तु  राजा या सम्राट उसको नमस्कार करता है.

पीके फिलममें शिवजीके पात्रको अपमान जनक स्थिति में प्रदर्शित किया गया है.

यह एक घटना हुई.

हिन्दुओंकी कटु आलोचना करना आम बात है.

किन्तु  हिन्दु देवदेवीयोंको उपहासके पात्र बनाना बोलीवुडके महानुभावोंके लिये  शोभास्पद नहीं है. वास्तवमें ऐसा करना भारतीय संस्कृतिकी अवमानना है. जिस देशकी धरतीका का अन्न और पानीके कारण आप विद्यमान अवस्थामें है उस धरतीकी संस्कृतिका आदर करना आपका कर्तव्य बनता है.

परिस्थिति क्या है?

हिन्दु पर उसका हिन्दु होने के कारणसे ही अत्याचार किया जाय और वह चूप रहेने स्थान पर कोई यदि अत्याचारके विरुद्धमें भी बात करें तो उसका भी विरोध किया जाता है.

कश्मिरी हिन्दुओंकी हजारोंकी संख्यामें हत्याएं हुई, १००००+ कश्मिरी हिन्दु स्त्रीयोंके उपर  खुले रेप किया, कश्मिरके सभी ५०००००+ हिन्दुओंको घरसे निकाल दिया और यह भी खुले आम किया, और इसके अतिरिक्त इस आतंकवादीयोंके उपर कुछ भी कार्यवाही नहीं की गई. अनुपम खेर ने जब इस बातकी आलोचना की तो बोलीवुडके महानुभाव  नसरुद्दीन शाहने  कहा किअनुपम खेर तो मानो ऐसी बाते करता है कि मानो उसके उपर आतंकवादी हमला हुआ

नसरुद्दीन शाह जैसे महानुभाव तककी मानसिकता देखो. उसके हिसाबसे तो जिसके उपर अत्याचार हुआ है, उसको ही अत्याचार पर बोलनेका हक है. “मतलबकी जिस  हिन्दु पर अत्याचार हुआ वह ही उसके विरुद्ध बोलें. दुसरा हिन्दु मत बोलें.

यदि तू कश्मिरका है तो क्या हुआ? तेरे उपर तो आतंकवादीयोंने हमला नहीं किया . फिर तू काहेको बोलता है? बेशरम कहीं का !!”

एक हिन्दु मंदिरके उपर बनीबाबरी मस्जिदका ध्वंश हुआतो पुरी दुनिया हिन्दुओंके उपर तूट पडी,मुख्य मंत्रीको जाना पडा. कई सारे न्यायिक केस हो गये. किन्तु मुस्लिम लोग (पूरानी बाते छोडों) स्वातंत्र्यके पश्चात्कालमें भी  हिन्दुओंके कई मंदिर तोडते आये है और १९४७के बाद भी हिन्दुओंके मंदिर तूटते रहे है. बाबरी मस्जिदके ध्वंशके बाद तो काश्मिरमें और बंग्लादेशमें कई मंदीर तूटे जिसका कोई हिसाब नहीं.

हिन्दुओंको कुछ भी प्रतिशोध तो क्या शाब्दिक विरोध भी नहीं करना चाहिये. उनको तनिक भी शोर करना नहीं चाहिये. अरे भाई कुछ सहिष्णुता आप हिन्दुओंमें भी तो होना चाहिये !! आपको ज्ञात होना चाहिये कि हमारा भारत देश एक सेक्युलर देश है. तो आपका फर्ज़ बनता है कि हम लघुमति भारतमें सुरक्षित रहें. हमें हमारे धर्मका पालन करनेकी पूरी स्वतंत्रता है.

किन्तु हे लघुमति लोग, आपने कश्मिरके हिन्दुओंके उपर आतंक क्यों फैलाया?” हिन्दु बोला.

मुस्लिमने उत्तर दियाअरे अय, हिन्दु लोग !! आपको पता नहीं है कि हमने हमारे उपर थोपे जानेवाले राष्ट्रपतिके विरोधमें क्या क्या किया था. आपको हम मुस्लिमोंकी ईच्छाका कुछ खयाल ही नहीं है. तो हम प्रतिशोध तो करेगे ही . सियासत क्या होती है वह जरा समज़ा करो. मासुम बननेकी कोशिस मत करो. जब एक खास समूहके मानसका खयाल नहीं रक्खा जाता तो प्रतिक्रिया तो आयेगी ही.

किन्तु निर्दोषोंका खून करना और लाखों लोगोंको घरसे निकाल देनायह कोई प्रमाणभान है?” हिन्दु बोला.

अरे भैया हिन्दु !! जब लोग इकट्ठा हो जाते है तो क्या कोई तराजु लेकर बैठता है कि कितना प्रमाण हुआ और कितना नहीं !! क्या बच्चों जैसी बातें करते हो तुम हिन्दु लोग ..!!” मुस्लिम बोला

लेकिन तुमने पूरे मुंबईमें बोम्ब ब्लास्ट क्यों करवाये?” हिन्दु बोला.

अय हिन्दु, तुमने जो बाबरी मस्जिद तोडा उसका हमने बदला लिया.

लेकिन तुमने बोम्ब ब्लास्ट जैसे आतंकी हमले तो कई वर्षों तक किये उसका क्या?” मुस्लिम बोला

अय हिन्दु, तुम फिर बचकाना बात पर उतर आये. हम मुस्लिम लोग कोई ऐसे वैसे लोग नहीं है. हमारा हर व्यक्ति और हर जुथ अपना अपना बदला लेता है. और लगातार लेता रहेता है. इस लिये तो हमारे कोंगीके स्थानिक  मुस्लिम नेताने साबरमती एक्सप्रेसके कोचको आयोजन पूर्वक जला दिया था. क्यों कि उसमें रामसेवक बैठे थे. और वे अयोध्यासे रहे थे.

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इस प्रकार कोंगीयोंकी कृपासे मुस्लिमोंकी आदत बीगडी.

१९९९में बीजेपीने सरकार बनाई. उसने काम तो अच्छा किया लेकिन कोंगीने अपनी व्युह रचनासे २००४में फिरसे शासन पर कबजा किया.

२००४ से २०१४के शासनकालमें कोंगीने और उसके सांस्कृतिक साथीयोंने खुले आप पैसा बनाया. हिन्दुओंको आतंकवादी सिद्ध करने की भरपुर कोशिस किया. उसकी किताब भी छपवाई.

२०१४के चूनावमें फिरसे बीजेपी सत्ता पर गई

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हिन्दुमुस्लिम वैमनष्य के बीज अंकूरित हुए थे उतना ही नही एक वृक्ष तो कोंगीने उगा ही दिया था.

कोंगीने सोचा अपन के पैसे तो अपन के पैसे है. हमने अपने सांस्कृतिक  मित्रोंको भी पैसे बनाने की पुरी छूट दे दी थी.

लेकिन  बिना शासन पैसे बनाना दुष्कर है.

रा.गा. के सलाहकार तो निकम्मे सिद्ध हुए.  दाउद के दायें हाथ को बडा भाई बनाओ.

दाउदके दो हाथ दांया और बांया. वे दोनों भारतमें है. एक मार्केट सम्हालता है. दुसरा दंगे करवाता है. और भारतमें दाउदके सिपाई सपरे अलग.  

क्या क्या संवाद हो सकता है दाउदके दांये हाथ और एस सेना के बीच.

 “.भाऊ” , समय बदलत आहे म्हणून आता तुम्हाला आपली व्युहरचना बदलावी लागेल, तू बी.जे.पी. चा छोटा भाऊ आहे आणि नेहमी तेच राहणारमोठा भाऊ दीही बनूशकणार नाही , समजलं तूला.” दांया हथा 

[अब समय बदल गया है. अब  व्युह रचना बदलना पडेगा. तुम कब तक बीजेपीका  छोटा भाई ही रहेगा. बडाभाई बननेवाला नहीं. समज़ा समज़ा?].

 तर तात्या आता  मी काय करू ?” एस. सेना. भाउ      [बडेभाई, तो मैं अब क्या करुं?]

भाऊ तुम्ही अस करा पृथक पृथक बी.जे.पी.ची निंदा करा, अता ईलेकशन ची वेळ आली आहे म्हणून बी.जे.पी. सोबत गठ बंधन तोडू नका . सीट मिळविण्यासाठी लाहान लाहान स्टंट करून संतोष चा नाटक करू , तूला माझी वुयहरचना कळली का ?” दांया हाथनी वीचारल.

[भैया तुम ऐसा करो. अभी तो चूनाव दूर है. पर तुम छूटपूट बीजेपी की निंदा करते रहो. गठबंधन तोडना नहीं. ज्यादासे ज्यादा सीट मिले उसके लिये छोटी मोटी स्टंट करते करते असंतोषका नाटक करते रहेना]

 “त्याचा नंतर काय…?” एस. सेना भाउ    [“उसके बाद क्या?] 

इलेकशनचे  परिणाम काय येणार ?” बांया हाथनी विचारलं? [चूनावका परिणाम क्या आयेगा ?]

माला माहीत नाही.” एस. सेना भाउ                [मुज़े पता नहीं]

तुमचा पक्षाचा आणि आमच्या पक्षाचा संयुक्त सीट जळून बहुमता  मिळणारा आहे.”  दाउदका बांया हाथ            [तुम्हारा पक्ष और मेरा पक्ष दोनोंकी सीटें मिलाके हमे बहुमत मिलेगा]

जर बी जे.पी  ला स्वतंत्र बहुमत मिळाले तर…? ” एस. सेना      [ लेकिन यदि बीजेपीको बहुमत मिला तो?]

लक्शात ठेव तस घटणार नाही.” दायां हाथ बोला      [ऐसा होनेवाला नहीं है याद रख.] 

बर पण जर सीट बहुमता साठी कमी पडली तर…?” एस. सेना [ओके. यदि , बहुमतके लिये थोडी सीट कम पडी तो?] 

आपल्या कडे कोंगी आहेत , विसरू नको , त्यांच्या  सपोट॔ मिळणार आहे लक्षात ठेव.”  दाउद का दांया हाथ .     [हमारे पास कोंगी है . इस बातको भूल क्यों जाते हो?]

तात्या तुम्ही गाढवा सारखं का बोलतात , कोंगी  आपल्याला कशाला सपोटॆ करणारत्यांची सोन्या बघीतलं काय ? मी माकड बनुशकणार नाही.” एस. सेना      [बडे भैया, गधे जैसी बात क्यों करते हो. कोंगीकी सोनिया देखा है. मैं क्या बंदर हूँ?]

(मराठी भावानुवाद तोरल बहेनने किया है. आभार)

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संवाद ऐसा चलता रहा  ……. सरकार बन गई महाराष्ट्रमें …. दाउदके दायां हाथ, बायां हाथ और एस. सेना की अघाडी.

कैसे ?

फिर दाउदके दांया हाथ सेना एवं  एस.सेना के बीच क्या हो संवाद हो सकता है?

देखो एस. सेना भाउ, पैसा बडी चीज़ है. पैसेका प्रवाह हमारे तरफ हमेशा आते रहना आवश्यक है. मध्य प्रदेश गया ही समज़ो. राजस्थान एक दरीद्रतापूर्ण राज्य है. वहांसे कमाया हुआ वहां ही खर्च करना पडेगा. महाराष्ट्र भारतका आर्थिक राजधानी है. इसको प्राप्त करना ही पडेगा. तुमने गत पांच सालमें बीजेपीके शासनमें कितना पैसा बना पाये?  … बहूत कमऐसा कब तक चलेगा?  …………………… अब मेरी व्युह रचना देखो. चूनावके बाद, बीजेपीके समक्ष एक ऐसी शर्त रखना कि यदि बीजेपी उस शर्त को स्विकार ले तो, वह देश में बदनाम ही नहीं  “सत्ता लालचीसिद्ध हो जाय …  यदि बीजेपी उस शर्तको माने तो तुम्हे गठ बंधन तोड देनाऔर बोल देना कि बीजेपी  हमारी चूनावके पूर्व हुई हुए समज़ौतेमेंसे मुखर गया है. जूठ बोलनेमें तो तुम माहिर हो ही. कोई हमे जूठ बोलनेवाला कहे उसके पहेले हमें ही उसे जुठ बोलने वाला केह देना.

तुम्हे किसीसे भी डरनेकी जरुरत नहीं है.  दाउदका पुरे नेट वर्क के सदस्य हमारे साथ है. लेकिन हमें भी उसके नेटवर्कके सदस्योंको फायदा करवाना पडेगा.

वह तो हमें पता है, लेकिन उनको फायदा? इसका मतलब?

मतलब यह कि दाउदके ड्रगका कारोबारका नेट वर्कको और दाउदके पूलीस के साथका नेट वर्कको हमें छूना तक नहीं है. उतना ही नहीं, उसको सहाय  भी करना है. तुम ऐसा करो, गृह मत्रालय हमें दे दो. हम सब नीपटा लेंगेराष्ट्रवादी बननेकी कोशिस नहीं करना

ये सब तो हम जानते है. लेकिन … !!!

देखोकाला धन किसके पास होता है? हम नेताओंके पास होता है वह तो तुम जानते ही हो. बील्डरोंके पास होता है …  वह भी तुम जानते हो …. बोलीवुडके महानुभावोंके पार होता हैवह भी तुम जानते होसरकारी बडे अफसरोंके पास होता है जिनमें पूलिस तंत्र भी आता हैतो अब दाउद को अपना ड्रग्ज़का  माल इन लोगोंको भी तो बेचना है !!! दाउद जब बोलीवुडमें इन्वेस्ट करता है तो उसकोआयभी तो होना चाहिये !!!  तो इन महानुभावोंको ड्र्ग्ज़की आदत भी तो डालनी पडेगी !!! समज़े समज़े !!!

दाउदका शराबका नेटवर्क तो चलता ही है …! फिर ये ड्रग्ज़ क्यों …?

अबे बच्चुशराब तो पानसुपारी है. भोजन कहाँ? और शराबका धंधा तो टपोरी भी कर लेता है.

टपोरीयोंका ड्रग्ज़ के कारोबारमें काम नहीं. ड्रग्ज़का कारोबार ही अलग है. इसमें तो बडे लोगोंका काम है. इस धंधेमें पकडे जानेका डर ही नहीं. क्यों कि हम ऐसे वैसे को प्रवेश देते ही नहीं. नेतापोलीसबोलीवुड महानुभावमीडीया कर्मीसप्लायर पार्टीका नेटवर्क और अन्डरवर्ल्डका नेटवर्कये सभी सामेल है. कोई भी इधर उधर जाता हुआ नज़र आया तो, वह खुदाका प्यारा ही हो जायेगा. किसीको खुदाका प्यारा करना है तो उसके हजार तरीके है हमारे पास, चाहे वह कोई भी हो. अब तुम लोगोंको इसमें आना पडेगा. ये सब फार्म हाउस बनाये हैं वे किस लिये है?

लेकिन

लेकिन क्या बच्चु. अब तुम नेटवर्कमें आ ही गये हो. इस नेट वर्कमें एक ही रास्ता है. वह है अंदर जानेका रास्ता. बाहर जानेका रास्ता केवल खुदाके पास ही जाता है

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जनताका सोस्यल मीडीया, सुशांत मर्डर केसमें, क्यूँ इतना इन्टरेस्ट ले रहा है?

क्या जनता एक ही रातमें बोलीवुडके महानुभावोंके विरुद्ध हो गई?

जनता क्यूँ बोलीवुडकी थालीमें अनेक छेद करने लगी है?

जनता को तो मालुम है ही कि, बोलीवुडके अधिकतर महानुभाव लोग, लुट्येन गेंगके सदस्योंकी तरह भारतके हितोके विरुद्ध, भारतकी संस्कृतिके विरुद्ध, भारतके सच्चे इतिहासके विरुद्ध क्यूँ है! इतना ही नहीं वे भारतके दुश्मनोंकी सहायता क्यूँ करते है? इनके अतिरिक्त वे जूठका सहारा लेते है और विदेशमें भी बिकाउ मीडीया द्वारा भारतको और बीजेपी को बदनाम करते है.

तो अब बोलीवुडके साथ साथ विपक्षीय सेनाओंके नेताओंकी, भ्र्ष्ट मीडीया कर्मी और सरकारी अफसरोंकी भी सफाई होनेवाली है. ऐसी आशा भारतीय जनताको दिखाई दे रही है.

अधिकतम नेता महानुभाव लोग “जैसे थे वादी” होते है. कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षोंमें अधिक “जैसे थे वादी” नेता है. यह बात तो स्वयं सिद्ध है, यदि ऐसा नहीं होता तो कोंगीयोंके ६५ वर्षके शासनके पश्चात्‌ भी  देश निरक्षर  और गरीब न रहेता.

आप, ओमानके सुलतान काबुसको ही देख लो. उसका देश एक मरुभूमि था. भूगर्भ ओईल तो कभीका निकला हुआ था. लेकिन उसके पिता जैसे थे वादी थे. सुल्तान काबुस, १९७0 में सत्ता पर आया. १९९० तक के समयके अंतर्गत उसने ओमानको समृद्धिके शिखर पर ले गया. क्यों कि वह कृतसंकल्प था. “जैसे थे वादी” लोग तो वहाँ पर भी थे. लेकिन उसने नियमका शासन लागु किया.

“जैसे थे वादी” में अधिकतर लोग नीतिमत्तामें मानते नहीं है. यदि सत्ता है तो उसको अपने लिये  संपत्ति उत्पन्न करनेका साधन मानते है. अपनेको और अपनेवालोंको नियमसे उपर मानते है. स्वयंने जो कहा वही नियम है. सत्ता है तो जूठ बोलो, अफवाहें फैलाओ. राजकारण खेलो, प्रपंच करो और विरोधियों के प्रति असहिष्णु, पूर्वग्रह और प्रतिशोधक बनो. समाचार माध्यम पर कब्जा कर लो. यदि सत्तामें न हो तो भी अपने सांस्कृत्क साथीयोंसे मिलकर जहाँ ऐसा हो सकता है  यह सबकुछ करो.

इस परिस्थितिका कारण?

जब किये हुए  परिश्रमकी अपेक्षा कहीं अधिक संपत्ति मिल जाती है तब व्यक्तिमें दोष आनेकी संभावना अधिक हो जाती है. “जैसे थे वादी” होना एक दोष ही है और जनतामें ऐसी मनोवृत्ति फैलानेका शस्त्र भी है.

“अरे भाई, ये मदिरा लेना, ड्रग्ज़ लेना, पार्टीयाँ करना हम मालेतुजार लोगोंका फैशन है. यह सब परापूर्वसे चला आता है. इसको कोई रोक नहीं पाया है. हम आनंद लेते है तो दुसरोंको क्यों कष्ट होना चाहिये? यदि पैसा चलता रहेगा मतलबकी पैसेकी प्रवाहिता (लीक्वीडीटी) रहेगी, तभी तो लोगोंको व्यवसाय मिलेगा! हम तो गरीबी कम करनेमें योगदान दे रहे है.”

 वास्तवमें यह एक वितंडावाद है. वास्तवमें ड्र्ग्ज़्का कारोबार केवल और केवल काले-धनसे ही होता है.

जहाँ तक भारतको संबंध है वहाँ तक, दाउद, ड्रग्ज़के कारोबार करनेवाले, ड्रग्ज़ लेनेकी आदतवाले  कोंगी और उसके सांस्कृतिक साथीके अधिकतर नेतागण, बीजेपी-फोबीयासे पीडित मीडीया कर्मी,  दाउदके कन्ट्रोलवाले बोलीवुडके महानुभाव और अन्य मालेतुजार ग्राहक लोग, और उन तक पहोंचानेवाले  एजन्ट ये सब अवैध कारोबारके हिस्से है. इन सबके कारण  देश विरोधी प्रवृतियाँ होती है. क्यों कि आतंकवादीयोंको भी तो पैसा चाहिये. पैसे पेडके उपर नहीं उगते.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

होने वाला दुल्हा अपने मित्रके साथ कन्या के घर गया. दुल्हेके पिताने मित्रसे बोलके रक्खा था कि दुल्हेके बारेमें थोडा बढा चढाके ही बोलना.

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; कितनी पढाई की है ?

दुल्हेके मित्रने बोलाःपढाई ! अरे वडील, वह तो ग्रेज्युएट है. आई..एस. की परीक्षा देनेवाला है

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; “अब क्या कर रहे हैं?

दुल्हेके मित्रने बोलाःमेनेजर है, जनाब.

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; खेलनेका शौक तो होगा ही.

दुल्हेके मित्रने बोलाः केप्टन है क्रीकेट टीमके

होनेवाले श्वसुर ने पूछा; पार्टी वार्टीका शौक तो होगा ही

दुल्हेके मित्रने बोलाः अरे साब, हमारा यार तो विदेशी शराब की बात तो छोडो, ड्रग्ज़के सिवा कोई हल्की पार्टी करता ही नहीं है. दाउदका करीबी दोस्त शमसद खानकी कंपनीका मेनेजर ही,  पार्टीका बंदोबस्त करता है. पोलिस कमीश्नरकी  खुदकी निगरानीमें सबकुछ होता है.

इतनेमें दुल्हेने खांसा.

होनेवाले श्वसुरने पूछा क्या जुकाम हुआ है?

पता नहीं कि दुल्हेके मित्रने “कोरोना हुआ है” कहा या नहीं.

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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