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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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क्या ये लोग मुंह दिखानेके के योग्य रहे हैं?

नरेन्द्र मोदीकी देश में सर्वव्यापक जित हुई. भारतकी जनताने उसको बहुमतसे विजय दिलाई.

लेकिन उसके पहेले क्या हुआ था?

ऐसा माना जाता है कि एक “मोदी रोको आंदोलन” सामुहिक ढंगसे मिलजुल कर चल रहा था, तथा कुछ मूर्धन्य द्वारा, “हम कुछ हटके है” ऐसी विशेषता का आत्मप्रदर्शन और आत्मख्यातीके मानसिक रोगसे पीडित विद्वानोंने इस आंदोलनमें अपना योगदान दिया करते थे.

नरेन्द्र मोदीके विरोधी कहां कहां थे और है?

दृष्य श्राव्य माध्यम टीवी चेनल

कोई न कोई क्षेत्रमें ख्यात (सेलीब्रीटी) व्यक्ति विशेष.

कोंगी और उनके साथी नेतागण

अखबारामें कटार लिखनेवाले (कोलमीस्ट)

दृष्य श्राव्य समाचार माध्यमः

इन माध्यमोंने कभी मुद्दे पर आधारित और माहितिपूर्ण संवाद नहीं चालाये. नरेन्द्र मोदीने कहा कि धारा ३७० से देशको या कश्मिरको कितना लाभ हुआ इसकी चर्चा होनी चाहिये. तो इसके उपर फारुख, ओमर आदि नेताओंने जो कठोर शब्द प्रयोग किये और इन शब्दोंको ही बार बार प्रसारित किया गया. चेनलोंने कभी उन नेताओंको यह नहीं पूछा कि धारा ३७० से क्या लाभ हुआ उसकी तो बात करो.
चेनलोंका चारित्र्य ऐसा रहा कि जो मूलभूत सत्य है और समस्या है वह दबा दिया जाय. ऐसा ही “गुजरात मोडल”के विषय पर हुआ. जिन नेताओंने बिना कोई ठोस आधार पर कडे और अपमान जनक शब्दोंसे “गुजरात मोडल”की निंदा की, चेनल वाले सिर्फ शब्दोंको ही प्रसिद्धि देते रहे. चेनलोनें कभी उन नेताओंसे यह पूछा नहीं कि आप कौनसे आधार पर गुजरात मोडलकी निंदा कर रहे हो? चैनलोंने बुराई करने वाले नेताओंकी प्रतिपरीक्षा (क्रोस एक्जामीनेशन) भी नहीं की. उनका बतलब ही यही था कि नरेन्द्र मोदीको ही बिना आधार बदनाम करो और नरेन्द्र मोदीके और बीजेपीके बारेमें बोले गये निंदाजनक शब्दों को ही ज्यादा प्रसिद्धि दो. ऐसे तो कई उदाहरण है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी देन

सिझोफ्रेनीयासे पीडित

इन लोगोंको पहेचानो जो सिझोफ्रेनीयासे पीडित है(Schizophrenia एक ऐसी बीमारी है जिसमें खुदके विचारका खुदके आचारके साथ संबंध तूट जाता है और सिर्फ उनकी भावना अभद्र शब्दोंसे प्रकट होती है)

पी चिदंबरः

ये महाशय अपनेको अर्थ शास्त्री समझते है. वे अर्थ मंत्री भी रहे. अगर चाहते तो नरेन्द्र मोदीने जिस विकासके लिये जिन क्षेत्रोंको प्राथमिकता दी, और गुजरातका विकास किया, उसमें अपना तर्क प्रस्तूत कर सकते थे. ऐसा लगता है कि, ऐसा करना उनके बसकी बात नहीं थी या तो वे जनताको गुमराह करना चाहते थे.

पी चिदंबरंने क्या कहा? उन्होने कहा कि, “नरेन्द्र मोदीका अर्थशास्त्रका ज्ञान पोस्टेज स्टेंप पर लिख सके उतना ही है”. हो सकता है यह ज्ञान उनके खुदके ज्ञानका कद हो.

महात्मा गांधीने कहा था “सर्वोदय”. उनका एक विस्तृतिकरण है “ओन टु ध लास्ट”.

इसको भी समझना है तो “ईशावास्य वृत्ति रखो. इसमें हर शास्त्र आ जाता है.

नरेन्द्र मोदीने यह समझ लिया है. नरेन्द्र मोदी राजशास्त्री ही नहीं विचारक भी है.
कपिल सिब्बलः “नरेन्द्र मोदी सेक्टेरीयन है. उसने फेक एन्काउन्टर करवाये है. नरेन्द्र मोदी लघुमतियोंके लिये कुछ भी करता नहीं है. नरेन्द्र मोदी कोई भी हालतमें प्रधान मंत्री बन ही नहीं सकता. वह स्थानिक है और वह स्थानिक भी नहीं रहेगा. वह शिवसेनाके नेताओंके जैसे लोगोंके साथ दारुपार्टी करता है.”

अब ये सिब्बल महाशय खुद गृह मंत्री थे. उन्होने क्या किया? अगर नरेन्द्र मोदी संविधानके अनुसार काम करता नहीं है तो उनकी पार्टी की सरकार कदम उठा सकती थी. वे क्युं असफल रहे? यह कपिल सिब्बल भी सिझोफ्रेनीया नामवाला मानसिक रोगसे पीडित है.

मनमोहन सिंहः वैसे यह महाशय प्रधान मंत्री है तो भी रोगिष्ठ है. उन्होने कहा नरेन्द्र मोदी अगर प्रधान मंत्री बने तो भारतके लिये भयजनक है. कैसे? वे खुद प्रधान मंत्री है तो भी उनके लिये वे यह आवश्यक नहीं समजते है कि वे यह बताये कि किस आधार पर वे ऐसा बता रहे है. क्या गुजरातकी हालत भय जनक है? अगर हां, तो कैसे? वास्तवमें उनकी यह रोगिष्ट मानसिकता है. अगर प्रधानमंत्री जनताको गुमराह करेगा तो वह देशके लिये कितना भयजनक स्थितिमें पहोंचा सकता है? आगे चल कर यह प्रधान मंत्री यह भी कहेते है कि मोदी उनके पक्षके पक्षके लिये बेअसर है.

“मोदी तो बिना टोपींगवाला पीझा है” अनन्त गाडगील कोंगीके प्रवक्ता

“मोदी तो फुलाया हुआ बलुन है” वह शिघ्र ही फूटने वाला है” शरद पवार.

“मोदी हिटलर है और पॉलपोट (कम्बोडीयन सरमुखत्यार) है” शान्ताराम नायक कोंगी एम.पी.

“मोदी कोई परिबल ही नहीं है. वह समाचार माध्यमका उत्पादन है. मोदी तो भंगार (स्क्रॅप) बेचनेवाला है. मोदी तो गप्पेबाज यानी कि “फेकु” है, बडाई मारनेवाला है” दिग्विजय सिंह जनरल सेक्रेटरी कोंगी.

“नरेन्द्र मोदी तो बंदर है. लोग मोदी बंदरका खेल देख रहे है. नरेन्द्र मोदी नपुंसक है” सलमान खुर्शिद कोंगी मंत्री.

“नरेन्द्र मोदी भस्मासुर है” जय राम रमेश कोंगी मंत्री

“नरेन्द्र मोदी मेरी गीनतीमें ही नहीं है. “ राहुल कोंगी उप प्रमुख

“हमारे पक्ष के लिये मोदी बेअसर है. हमारे लिये उसका कोई डर नही” गुलाम नबी आझाद. कोंगी मंत्री

“नरेन्द्र मोदी? एक दिखावा है. बीके हरिप्रसाद, राज बब्बर, शकील एहमद, कोंगी नेता.

“नरेन्द्र मोदी एक कोमवादी चहेरा है” चन्द्रभाण. कोंगी प्रमुख राजस्थान

“मोदी एक निस्फलता है” अजय माकन कंगी जनरल सेक्रेटरी

“मोदी एक चमगादड है” ईन्डो एसीअन न्युज सर्वीस (ई.ए.एन.एस)

“मोदी लघुमतियोंका दुश्मन है” सुखपाल सिंग खेरा कोंगी पंजाब प्रमुख

“मोदी रेम्बो बनना चाहता है” मनीश तिवारी कोंगी मंत्री

“मोदी बीजेपीको जमीनमें ८ फीट नीचे गाड देगा. यह निश्चित है.” फ्रान्सीस्को कोंगी प्रमुख गोवा

“मोदी धर्मांधताका प्रतिक है.” रमण बहल कोंगी कारोबारी सदस्य.

“मोदी अपनेको सुपरमेन समजता है. मोदी तो रेम्बो है. मोदी रावण है” सत्यव्रत कोंगी नेता

“मोदी त्रास फैलानेवाला है. रेम्बो बनने के लिये दिमाग जरुरी नहीं है” रेणुका चौधरी कोंगी नेता.

“मोदी और बीजेपीको मानने वालोंको समूद्रमें डूबो दो” फारुख अब्दुला

“मोदी और बीजेपीको मानने वालोंके टूकडे टूकडे करदो” आझमखान

“नरेन्द्र मोदी धर्मांध जुथका प्रतिक है, नरेन्द्र मोदी कोमवादी है उसको हराओ. अगर मोदी प्रधान मंत्री बन गया तो देश विभाजित हो जायेगा. यह समयका तकाजा है कि मोदीको रोका जाय” महेश भट्टा, इम्तीआझ अली, विशाल भारद्वाज, नन्दिता दास, गोविन्द निहलानि, सईद मिर्झा, झोया अख्तर, कबीर खान, शुभा मुद्गल, अदिति राओ हैदरी, आदिने एक निवेदन करके जनहितमें प्रकाशित करवाया.

“अगर नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन गया तो मैं बोलीवुड छोड दूंगा और जाति परिवर्तन (सेक्स चेन्ज) करवा लुंगा” बोली वुडका कमाल खान

“अगर नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन गया तो मैं राजकारण छोड दूंगा” देव गौडा पूर्व प्रधान मंत्री.

इन नेताओंने ऐसी छूट कैसे ली? क्यों कि उनकी शिर्ष नेता सोनीया (एन्टोणीया)ने नरेन्द्र मोदीको मौतका सोदागर और गुजरातकी जनताको गोडसे की ओलादें कहा था.

मीडीयाके मूर्धन्य जो अपनी कोलम चलाते है. उनका नैतिक कर्तव्य है राजकीय गतिविधियोंका और विचारोंका विश्लेषण करना और जनताको जागृत करना. लेकिन क्या उन्होने यह कर्तव्य निभाया?

ये कोलमीस्ट कौन थे?

उदाहरण के लिये हम गुजरातकी बात करेंगें. दिव्य भास्कर एक नया नया समाचार पत्र है और कुछ वर्ष पहेले ही उसने पादार्पण किये है लेकिन उसने पर्याप्त वाचकगण बना लिया है. उसके कोलमीस्ट को देखें. जो बीजेपी और नरेन्द्र मोदीके विरोधी थे उनका वैचारिक प्रतिभाव और तर्क कैसा रहा?

सनत महेताः

जो खुद नहेरुवीयन कोंग्रेसके होद्देदार थे. सरकारमें १९६७-१९६९, १९७१-९७५, १९८१-१९९५ गुजरात सरकारमें मंत्री भी रह चूके है. यह सनत महेता का इतिहास क्या है? सर्व प्रथम वे पीएसपी (प्रजा सोसीयालीस्ट पक्षमें थे).
नहेरु भी अपनेको समाजवादीके रुपमें प्रस्तूत करते रहते थे. उन्होने खुदकी विचारधाराका नाम बदलते बदलते “लोकशाहीवादी समाज रचना” का नामकरण किया. स्वतंत्र-पक्ष अपना जोर जमाने लगा. इस स्वतंत्र पक्षमें दिग्गजनेता थे. चीनकी भारत पर “केकवॉक” विजयके बाद और नहेरुकी मृत्युके बाद इन्दिराने खुदको और पिताजीकी यथा कथित विचारधाराको मजबुत करनेके लिये इस प्रजा सोसीयालीस्ट पक्षको पटा लिया.

भारतमें उस समय एक और समाजवादी पक्ष भी था जो “संयुक्त समाजवादी पक्ष” नामसे जाना जाता था. उसके नेता डॉ. राममनोहर लोहिया थे. उनको नहेरुवीयनोंका वैचारिक दंभ मालुम था इस लिये उनका पक्ष इन्दिराके पक्षमें संमिलित नहीं हुआ.

लेकिन यह सनतकुमार का जुथ (अशोक महेता इसके नेता थे) नहेरुकी कोंग्रेसमें विलयित हो गया. इन्दिरा ने देखा कि अपने पिताजीने अपनी बेटीको सत्ता पर लानेके लिये जो सीन्डीकेट बनायी थी वह तो खुदके उपर हामी हो रही है और उसमेंसे कुछ लोग तो दक्षिण पंथी है तब उसने पक्षमें फसाद करके एक नया पक्ष बनाया जो कोंग्रेस आई (कोंग्रेस इन्दिरा) नामसे प्रचलित था. जो मूल कोंग्रेस पक्ष था, जिसके उपर संस्थाकी पकड थी यानी की जिनमें कारोबारीके ज्यादा सदस्य थे उस पक्षका प्रचलित नाम था कोंग्रेस (संस्था). इस तरह कोंग्रेस तूटी. गुजरातमें मोरारजी देसाई जो कोंग्रेस (संस्था)में थे. और कोंग्रेस (संस्था) गुजरातमें राज करती थी.

एक पक्षमेंसे दुसरे पक्षमें कूदनेमें सर्व प्रथम

अविभाजित कोंग्रेसमेंसे कोंग्रेस (आई)में कूदके जाने वालोंमें सनतकुमार और उनके दो तीन मित्र (रसिकलाल परिख, रतुभाई अदाणी, छबीलदास महेता) थे. बादमें कोंगीकी सरकारें ही ज्यादातर गुजरातमें आयी और उसमें यह महाशय मंत्री के रुपमें हमेशा शोभायमान रहेते थे. ये महाशय अविभाजित कोंग्रेसमें भी मंत्री थे. यह महाशय २२+ वर्ष तक मंत्री रहे. उस समय भी गुजरातके पास समूद्र था, समूद्र किनारा था, कच्छका रण था, नर्मदा नदी भी थी. नर्मदा डॅम की योजना भी थी. प्राकृतिक गेस भी था, जंगल भी था, गरीबी भी थी. विकासके लिये जो कुछ भी चाहिये वह सबकुछ था. जंगल तो उनके समयमें सबसे ज्यादा कट गये. समाजवादी होनेके नाते यहां सरकार द्वारा कई योजनाएं लागु करनेकी थी. हररोज एक करोड रुपयेका गेस हवामें जलाया जाता था, क्यों कि गेस भरनेके सीलीन्डर नहीं थे. गेसके सीलीन्डर आयात करनेके थे. आयात करनेमें इन्दिराका समाजवाद, अनुज्ञापत्र(परमीट), अनुज्ञप्ति (लायसन्स) का प्रभावक कैसे धनप्राप्तिके लिये उपयोगमें लाया जाय यह एक भ्रष्ट समाजवादीयोंके लिये समय व्ययवाली समस्या होती है.

नर्मदा डेम, मशीन टूल्सकी फेक्टरी, बेंकोका राष्ट्रीयकरणका राजकीय लाभ कैसे लिया जाय यह सब में ये समाजवादी लोग ज्यादा समय बरबाद करते है. इन प्रभावकोंका ये लोग लोलीपोप की तरह ही उपयोग किया करते है. तो यह सनत महाशय अपनी २३ सालकी सत्ताके अंतर्गत जो खुद कुछ नहीं कर पाये, वे अपने को एक अर्थशास्त्रके विशेषज्ञ समझने लगे है, और सरकार (बीजेपी सरकार) को क्या करना चाहिये और क्या क्या नहीं कर रही है और क्या क्या गलत कर रही है ऐसा विवाद खडा करने लगे, ताकि एक ऋणात्मक वातावरण बीजेपी सरकारके लिये बने.

मल्लिका साराभाईः

कितने हजार घारोंमें बिजली नहीं पहोंची, महिला सशक्ति करण क्यों नहीं हो रहा है, जंगलके लोग कितने दुःखी है, आदि बेतूकी बाते जिसमें कोई ठोस माहिति न हो लेकिन भ्रम फैला सके ऐसे विवाद खडे करती रहीं. हकारत्मक बातें तो देखना ही वर्ज्य था.

प्रकाशभाई शाहः

यह भाईसाब अपनेको गांधीवादी या अथवा तथा सर्वोदयवादी या अथवा तथा ग्रामस्वराज्यवादी समझते है. विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधाराने एक उपोत्पादन (बाय-प्रोडक्ट) बनाया है. प्रकाशभाई जैसे व्यक्ति ऐसा ही एक उपोत्पादन (उप- उत्पादन) यानी कि बाय प्रोडक्ट है. बाय प्रोडक्ट बाय प्रोडक्ट में फर्क होता है. गेंहु, चावल, चने आदिका जब पाक (क्रॉप) होता है तो साथ साथ बावटा, बंटी, अळशी, और कुछ निक्कमी घांस भी उग निकलती है. तो विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधाराकी जो मानसिकता होती है उसके साथ साथ कुछ ऐसे (वीड=weed, गुजरातीमें वीड को निंदामण कहेते है) मानसिकतावाली बाय प्रोडक्ट (वीड) भी उग निकलती है. कोई वीड उपयोगी होती है, कोई वीड हवामें फैलके हवा बिगाडती है. वीड एलर्जीक भी होती है. हमारे प्रकाशभाई विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधारासे उत्पन्न हुई एक वीड है. इस वीडको नरेन्द्र मोदीकी एलर्जी है.

प्रकाशभाईके लेखको आपको समझना है? तो कागज और कलम लेके बैठो. उन्होनें जो वाक्य बनाये है उनके शब्दोंकों लेकर वाक्य को विभाजित करो. और फिर अर्थ निकालो. आपको तर्क मिलेगा नहीं. लेकिन आप उस वाक्यको कैसे सही माना जाय, उस विषय पर दिमाग लगाओ. आपको संत रजनीशकी याद आयेगी. लेकिन आप ऐसा तो करोगे नहीं. आप सिर्फ उसमेंसे क्या संदेश है, क्या दिशा सूचन है वही समझोगे. बस यही प्रकाशभाईका ध्येय है.

मतलबकी लेखमें नरेन्द्र मोदीको एक पंच मारना आवश्यक हो या न हो, एक पंच (punch) अवश्य मारना. पंच मारनेका प्रास्त्युत्य (रेलेवन्स) हो या न हो तो भी.
ऐसा क्युं? क्योंकी हम अहिंसाके पूजारी है. विनोबा भावे, महात्मा गांधी और जयप्रकाश की विचारधाराके अनुयायी है. नरेन्द्र मोदी २००२ वाला है.

कान्तिभाई भट्टः

ये भाईसाब शीलाबेनके पति है. वैसे तो वे भी ख्यातनाम है. जबतक आरोग्यके बारेमें लिखते है तब तक अच्छा लिखते है. कुदरती चिकित्सा (नेचरोपथी)का खुदका अनुभव है इसलिये उसमें सच्चाईका रणकार मिलता है.

लेकिन अगर हम कटार लेखक (कोलमीस्ट) है तो सब बंदरका व्यापारी बनना पडेगा ही. राजकारण को हाथमें लेना आसान होता है.

कटार लेखन की शैली ऐसी होनी चाहिये कि हम वाचकोंको विद्वान लगे.

विद्वान हम तभी लगेंगे कि हम बहुश्रुत हो.

बहुश्रुत हम तभी लगेंगे कि हमारा वाचन विशाळ हो.

वाचकोंको हमारा वाचन विशाल है वह तब लगेगा कि हमने जो वाक्य उद्धृत किये हो उनमें हम लिखें कि फलां फलां व्यक्तिने यह कहा है. इसमें हम मान लेते हैं कि यह तो कोई महापुरुषने कहा है इसलिये यह तो स्वयं सिद्ध है. तर्क की कोई आवश्यकता नहीं. प्रास्तूत्य होना यह भी आवश्यक नहीं है.

समजमें नहीं आया न? तो आगे पढो…

मेगेस्थीनीसने अपने “फलां” पुस्तकमें लिखा कि सिकंदर एक ऐसा महापुरुष था कि वह हमेशा चिंतनशील रहेता था. एक शासकको चाहे छोटा हो या बडा, उसके लिये चिंतन करते रहेना अति आवश्यक है. खुदने जो काम किया वह अच्छी तरह किया था या नहीं? अगर अच्छी तरह किया था तो क्या उससे भी अच्छा किया जा सकता था या नहीं? उसका चिंतन भी करना जरुरी है. नरेन्द्र मोदीको आगे बढने कि घेलछा है, लेकिन क्या उसने कभी चिंतन किया है? यह उसकी मनोवृत्ति कभी बनी है क्या?

कान्तिभाईको इससे आगे सिद्ध करेनी जरुरत नहीं है. उनके हिसाबसे जो कहेना था वह अपने आप सिद्ध हो जाता है ऐसा वे मानते है.

अगर लेटेस्ट उदाहरण चाहिये तो आजका (ता. २०-०५-२०१४ का दिव्यभास्कर देखो).

लेखकी शिर्ष रेखा है “नरेन्द्र मोदी आनेसे किसान बनेगा बेचारा, और विदेशी कंपनियां न्याल हो जायेगी”.

हो सकता है कि यह लेखकी शिर्ष रेखा समाचार पत्रके संपादकने बनायी हो. अगर ऐसा है तो संपादककी मानसिकताको भी समझ लो.

कान्तिभाई अपने लेखमें क्या लिखते है?

“भावनगर राज्यके कृष्णकुमार सिंह किसानका बहुत खयाल रखते थे,

“शरद पवार अरबों पति किसान है. महाराष्ट्र के एक जिलेमें २०१०में एक ही महिनेमें ३७ किसानोंने आत्म हत्या की.

“मुंबईसे सिर्फ १२७ मील दूरस्थ यवतमाल गांव में मारुति रावने लोन लेके महंगे बीटी कोटन और विलायती खाद खरीद किया. फसल निस्फल हुई तो उसने आत्महत्या की, उसकी पत्नी उषाने ऋण अदा करनेके लिये १४ एकर जमीन बेच दी. और वह खेत-मझदुर बन गई. महाराष्ट्र सरकारने राहतका काम किया लेकिन बाबु लोग बीचमें पैसे खा जाते है. जंतुनाशक दवाईयां जो विकसित देशमें प्रतिबंधित है लेकिन शरद पवारके महाराष्ट्रमें वे सब कुछ चलती है. यह दवाईयां विषयुक्त है, और खुले पांव आपको खेतमें जाना मना है, फिर भी किसान खुले पांव जाता है. और मौतका शिकार होता है.

आगे चलकर लेखक महाशय, यह कीट नाशक दवाईयां, विदेशी जेनेटिक बीज आदि के भय स्थानका वर्णन करते है.केन्द्र की बुराईयां और अमेरिकाकी अच्छाईयां की बात करते है. भारतमें ईन्ट्रनेट व्याप्ति की बात करते है.

फिर मोदी के चूनाव प्रचारकी बात करते है फिर मोदीको एक पंच मारते है कि मोदी जनता को क्या लाभ कर देने वाला है? (मतलब की कुछ नहीं). फिर एक हाईपोथेटीकल निष्कर्ष निकालते है. नरेन्द्र मोदी द्वारा कायदा कानुन आसान किया जायगा और अंबाणीको फायदा होगा. नयी सरकार (मोदी सरकार), विदेशी कंपनीयोंके साथ गठबंध करेगी और उनको न्याल करेगी. कहांकी बाते और कहां का कही निष्कर्ष?

पागल बननेकी छूट

चलो यह बात तो सही है और संविधान उन लेखकोंकी स्वतंत्रता की छूट देता है कि वे बिना कोई मटीरीयल और तर्क, गलत, जूठ और ऋणात्मक लिखे, जब तक वह खुद, अपने लाभसे दूसरेको नुकशान न करें वह, क्षम्य है. लेकिन गाली प्रदान करना और अयोग्य उपमाएं देना गुनाह बनता है. यह बात मोदीके सियासती विरोधीयोंको लागु पडती है. इनमें ऐसे वितंडावाद करनेवाले मूर्धन्य भी सामेल है.

ये ऐसे मूर्धन्य होते है जो ६०सालमें जिन्होंने देशको पायमाल किया, उसके बारे में, एक लाईनमें लिख देते है, लेकिन जो सरकार आने वाली है और जिसके नेताने अभी शपथ भी ग्रहण किया नहीं उसके बारेमें एक हजार ऋणात्मक धारणाएं सिद्ध ही मान लेते है.

जनता को गुमराह करनेवालोंको आप कुछ नहीं कर सकते. क्यों कि लोकतंत्रमें पागल होना भी उनका हक्क है.

जिन महानुभावोंने घोषणा की, कि, अगर मोदी प्रधान मंत्री बना तो वे पाकिस्तान चले जायेंगे. इन लोगोंकी मानसिकता और तर्क का निष्कर्ष निकालें.

ये महानुभाव पाकिस्तानको क्यों पसंद करते है?

नरेन्द्र मोदीवाले भारतकी अपेक्षा पाकिस्तानी सियासत भारतसे अच्छी है.

सर्व प्रथम निष्कर्ष तो यह निकलता है न? क्यों? क्यों कि नरेन्द्र मोदी कोमवादी है. वह अल्पसंख्यकोंका दुश्मन है.

पाकिस्तान कैसा है?

आझादी पूर्व इस प्रदेशमें १९४१में ४० प्रतिशत हिन्दु थे. १९५१ तक भारतमें १.५ करोड हिन्दुओंने स्थानांतर किया. जो १९४१ में २५ प्रतिशतसे ज्यादा थे अब वे २ प्रतिशत या उससे भी कम रह गये हैं. उसके बाद भी हिन्दु वहांसे निकाले जाने लगे.
यह वह पाकिस्तान है जिसका आई.एस.आई. और मीलीटरी मिलकर भारतमें आतंकवादी सडयंत्र चलाते हैं.

इन्होने हमारे कश्मिरमें ३००० हिन्दुओंको १९८९-९० की कत्लेआममें मौतके घाट उतार दिया. और ५-७ लाख हिन्दुओंको भगा दिया.

यह वह पाकिस्तान है जहां पर ज्यादातर लश्करी शासन रहा है.

ऐसा पाकिस्तान, इन मूर्धन्योंको गुजरातके नरेन्द्र मोदीके भारतसे अच्छा लगता है.

क्यों कि इस गुजरातमें मोदीके शासनमें एक भी मुसलमान बेघर रहा नहीं.

एक भी मुसलमान हिन्दुओंके डर की वजहसे पाकिस्तान भाग गया नहीं.

इस गुजरातमें अक्षरधाम पर आतंकवादी हमलावरोंने ३० को मौतके घाट उदार दिया था और कईयोंको जक्ख्मी किया,

२००८में कई बोम्बब्लास्ट किया, जिनमें ५६ को मौतके घाट उतारा और ३०० जक्ख्मी किया,

उसके बावजुद,

नरेन्द्र मोदीने परिस्थितिको सम्हाला और एक भी मुसलमान न तो मारा गया और न तो डरके मारा कोई पाकिस्तान भाग गया.

तो अब आप निर्णय करो किसके दिमागमें कीडे है?

संविधानमें संशोधन अनिवार्य लगता है कि जो लोग इस प्रकार बेतूकी बातें करके खुदकी कोमवादी और लघुमतिको अलग रखनेकी, वोटबेंककी नीति उकसानेकी और कोम कोमके बीच घृणा फैलानेका काम करते है और जो वास्तवमें मानवता वादी है ऐसे नेता पर कोमवादी होनेका आरोप लगाते हैं उनके उपर कानूनी कर्यवाही करके कारावासमें बंद कर देना चाहिये.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः नरेन्द्र मोदी, जीत, मोदी रोको, मूर्धन्य, कोलमीस्ट, कोंगी, धारा ३७०, ओमर, फारुख, गुजरात, मोडल, अभद्र शब्द, चिदंबर. कपिल सिब्बल, गुमराह, शरद पवार, सनत मेहता, कान्ति भट्ट

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