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बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

याद करो पाकिस्तानी शासकोंकी संस्कृति “भारतकी पराजय ही हमारी विजय है”

जब हम क्रिकेटकी बात करते हैं तो पाकिस्तानके जनमानसमें यह बात सहज है कि चाहे पाकिस्तान विश्वकपकी अंतिम स्पर्धामें पराजित हो जाय, या पाकिस्तान सुपरसीक्समेंकी अंतिम स्पर्धामें भी हार जाय, तो भी हमें हमारी इन पराजयोंसे दुःख नहीं किन्तु भारत और पाकिस्तानकी जब स्पर्धा हो तो भारतकी पराजय अवश्य होनी चाहिये. भारतकी पराजयसे हमें सर्वोत्तम सुखकी अनुभूति होती है.

TRAITOR

ऐसी ही मानसिकता भारतमें भी यत्‌किंचित मुसलमानोंकी है. “यत्‌ किंचित” शब्द ही योग्य है. क्यों कि मुसलमानोंको भी अब अनुभूति होने लगी है है कि उनका श्रेय भारतमें ही है. तो भी भारतमें ओवैसी जैसे मुसलमान मिल जायेंगे  जो कहेंगे कि “यदि पाकिस्तान भारत पर आक्र्मण करें, तो भारत इस गलतफहमीमें न रहे कि भारतके मुसलमान भारतके पक्षमें लडेंगे. भारतके मुसलमान पाकिस्तानी सैन्यकी ही मदद करेंगे.” ओवैसीका और कुछ मुल्लाओंका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहासका ज्ञान कमज़ोर है, क्यूं कि भारतका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहास ओवैसीकी मान्यताको पुष्टि नहीं करता. जब हम ओवैसी को याद करें तो हमें तारेक फतह को भी याद कर लेना चाहिये.

 उपरोक्त मानसिकताके पोषणदाता नहेरुवीयन्स और नहेरुवीयन कोंग्रेस है. ऐसी मानसिकता  केवल मुसलमानोंकी ही है, ऐसा भी नहीं है. अन्य क्षेत्रोमें यत्‌किंचित भीन्न भीन्न नेतागणकी भी है.

ऐसी मानसिकता रखनेवालोंमें सबसे आगे साम्यवादी पक्ष है.

साम्यवादी पक्ष स्वयंको समाजवादी मानता है. समाजवादमें केन्द्रमें मानवसमाज होता है. और तत्‌ पश्चात मनुष्य स्वयं होता है. इतना ही नहीं साम्यवादके शासनमें पारदर्शिता नहीं होती है. साम्यवादी शासनमें नेतागण अपने लिये कई बातें गोपनीय रखते हैं इन बातोंको वे राष्ट्रीय हितके लिये गोपनीय है ऐसा घोषित करते है. इन गोपनीयताको मनगढंत और मनमानीय ढंगसे गुप्त रखते हैं.

दुसरी खास बात यह है कि ये साम्यवादी लोग साधन शुद्धिमें मानते नहीं है. तात्पर्य यह है कि ये लोग दोहरे या अनेक भीन्न भीन्न मापदंड रखते हैं और वे अपनी अनुकुलताके आधार पर मापदंडका चयन करते है. उनका पक्ष अहिंसामें मानता नहीं है, किन्तु दुसरोंकी तथा कथित या कथाकथित हिंसाकी  निंदा वे बडे उत्साह और आवेशमें आकर करते हैं. उनका स्वयंका पक्ष वाणी-स्वातंत्र्यमें मानता नहीं है, किन्तु यदि वे शासनमें नहीं होते हैं तो वे  कथित वाणी स्वातंत्र्यकी सुरक्षाकी बातें करते है और उसके लिये आंदोलन  करते हैं. यदि उनके पक्षका शासन हो तो वे विपक्षके वाणी स्वातंत्र्य और आंदोलनोंको पूर्णतः हिंसासे दबा देतें हैं.

जब साम्यवादी पक्षका शासन होता है, तब ये साम्यवादी लोग, अपना शासन अफवाहों पर चलाते है. साम्यवादी शासित राज्योंमें उनके निम्नस्तरके नेतागण तक भ्रष्टाचार करते हैं. साम्यवादीयोंकी अंतर्गत बातें राष्ट्रीय गोपनीयताकी सीमामें आती है. किन्तु यही लोग जब विपक्षमें होते है तो पारदर्शिताके लिये बुलंद आवाज़ करते है.

साम्यवादका वास्तविक स्वरुप क्या है?

वास्त्वमें साम्यवाद, “अंतिमस्तरका पूंजीवाद और निरंकुश तानाशाहीका अर्वाचीन मिश्रण है.” इसका अर्थ यह है कि शासकके पास उत्पादन, वितरण और शासनका नियंत्रण होता है. यह बात साफ है कि एक ही व्यक्ति सभी कार्यवाही पर निरीक्षण नहीं कर सकता. इसके लिये पक्षके सारे नेता गण अपने अपने क्षेत्रमें मनमानी चलाते है और भ्रष्टाचार भी करते हैं. भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी अंतिम स्तर तक पहूंच जाती है. किन्तु साम्यवादीयोंको इसकी चिंता नहीं होती है. क्यों कि वे पारदर्शितामें मानते नहीं है, इस लिये साम्यवादके शासनमें सभी दुष्ट बातें गुप्त रहती है.

हमने देखा है कि पश्चिम बंगालमें २५ साल नहेरुवीयन कोंग्रेसका और तत्‌पश्चात्‌ ३३ साल साम्यवादीयोंका शासन रहा. इनमें नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रच्छन्न साम्यवादी सरकार थी और ज्योतिर्‍ बसु और बुद्धदेव बसु तो स्वयं सिद्ध नामसे भी साम्यवादी थे. १९४७में भी पश्चिम बंगाल राज्य एक बिमारु राज्य था और आज भी वह बिमारु राज्य है. १९४७में भी पश्चिम बंगालमें, रीक्षा आदमी अपने हाथसे खिंचता था और आज २०१७में भी रीक्षा आदमी खिंचता है.

आप पूछेंगे कि जिस देशमें साम्यवादी शासन विपक्षमें है तो वहां साम्यवादी पक्ष क्या कभी  शासक पक्ष बन सकता है?

हां जी. और ना जी.

साम्यवादी पक्ष की विचार प्रणालीयोंका हमें विश्लेषण करना चाहिये.

जब कहीं साम्यवादी पक्षका शासन नहीं होता है तो वे क्या करते हैं?

साम्यवादीयोंका प्रथम कदम है कि देशमें असंतोष और अराजकता फैलाना

असंतोष कैसे फैलाया जा सकता है?

समाजका विभाजन करके उनके विभाजित अंशोंमें जो बेवकूफ है उनमें इस मानसिकताका सींचन करो कि आपके साथ अन्याय हो रहा है.

भारतीय समाजको कैसे विभाजित किया जा सकता है?

भारतीय समाजको ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र, हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, घुसपैठी, शिख, दलित, भाषावादी, पहाडी, सीमावर्ती, ग्राम्य, नगरवासी, गरीब, मध्यम वर्गी, धनिक, उद्योगपति, श्रमजिवी, कारीगर, पक्षवादी, अनपढ, कटार लेखक (वर्तमान पत्रोंके कोलमीस्ट), युवा, स्त्री, आर्य, अनार्य, काले गोरे,  आदिमें विभाजित किया जा सकता है.  इन लोगोंमें जो बेवकुफ और नासमज़ है उनको उकसाया जाता है.

कैसे फसाया जाता है?

यादव, जाट, ठाकुर, नीनामा, दलित आदि लोगोंने जो आंदोलन चलाये वे तो सबने देखा ही है.

वैश्योंमें जैनोंको कहा गया कि तुम हिन्दुओंसे भीन्न हो. तुम अल्पसंख्यकमें आ जाओ.

मुस्लिमोंको कहा कि ये घुसपैठी लोग तो तुम्हारे धर्मवाले है, उनका इस देशमें आनेसे तुम्हारी ताकत बढेगी.

पहाडी, वनवासी, सीमावर्ती क्षेत्रवासी, दलित आदि लोगोंको कहा कि तुम तो इस देशमे मूलनिवासी हो, इन आर्यप्रजाने तुह्मारा हजारों साल शोषण किया है. हम दयावान है, तुम ईसाई बन जाओ और एक ताकतके रुपमें उभरो. वॉटबेंक तुम्हारी ताकत है. तुम इस बातको समज़ो.

“दुश्मनका दुश्मन मित्र”

चाणक्यने उपरोक्त बात देशके हितको ध्यानमें रखके कही थी. किन्तु प्रच्छन्न और अप्रच्छन साम्यवादी लोगोंने यह बात स्वयंके और पक्षके स्वार्थके लिये अमल किया और यह उनकी आदत है.

ऐसी कई बातें आपको मिलेगी जो देशकी जनताको विभाजित करनेमें काम आ सकतीं हैं.

युवा वर्गको बेकारीके नाम पर और उनकी तथा कथित परतंत्रिता पर बहेकाया जा सकता है. उनको सुनहरे राजकीय भविष्यके सपने दिखाकर बहेकाया जा सकता है.

जो कटार लेखक विचारशील और तर्कशील नहीं है, लेकिन जिनमें बिना परिश्रम किये ख्याति प्राप्त करनी है, उनको पूर्वग्रह युक्त बनाया जाता है. उन लोगोंमें खास दिशामें लिखनेकी आदत डाली जाती है और वे नासमज़ बन कर उसी दिशामें लिखने की आदतवाले बन जाते है.

जैसे कि, 

डीबी (दिव्य भास्कर)

डीबी (दिव्य भास्कर)में ऐसे कई कटार लेखक है जो हर हालतमें बीजेपीके विरुद्ध ही लिखनेकी आदत बना बैठे हैं. उनके “तंत्री लेख”के निम्न दर्शित अवतरणसे आपको ज्ञात हो जायेगा कि यह महाशय कितनी हद तक पतित है.

आपने “कन्हैया”का नाम तो सुना ही होगा, जो समाचार माध्यमों द्वारा पेपरका शेर (पेपर टायगर) बना दिया गया था.  कन्हैयाके जुथने (जो साम्यवादीयोंकी मिथ्या विचारधारासे  बना है) भारतके विरुद्ध विष उगलने वाले नारे लगाये थे.

उमर खालिद और कई उनके साथी गण “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा, आदि कई सारे सूत्रोच्चार किये थे. कन्हैया उसके पास ही खडा था. न तो उसके मूंहपर नाराजगी थी, न तो उसने सूत्रोच्चार करने वालोंको रोका था, न तो उसने इन सूत्रोच्चारोंसे विपरित सूत्रोच्चार किये, न तो इसने इन देश द्रोहीयोंका विवरण पूलिसको या युनीवर्सीटी के संचालकोंको दिया, न तो इसने बादमें भी ऐसे सूत्रोच्चार करनेवालोंके विरुद्ध कोई उच्चारण किया. इसका मतलब स्पष्ट है कि उसने इन सूत्रोंको समर्थन ही किया.

अब हमारे डीबीभाईने “१ मार्च २०१७” के समाचार पत्र पेज ८, में क्या लिखा है?

तंत्री लेखका शिर्षक है “राष्ट्रप्रेम और गुन्डागर्दी के बीचकी मोटी सीमा रेखा”

विवरणका संदेश केवल  एबीवीपी की गुन्डागर्दीका विषय है.

संदेश ऐसा दिया है कि “सूचित विश्वविद्यालयमें बौधिकतावादी साम्यवादीयोंका अड्डा है और बौद्धिकता जिंदा है. ये लोग जागृत है…

दुसरा संदेश यह है कि “गुजरात यदि शांत है तो यह लक्षण अच्छा नहीं है.” इन महाशयको ज्ञात नहीं कि नवनिर्माणका अभूतपूर्व, न भूतो न भविष्यति, आंदोलन गुजरातमें ही हुआ था और वह कोई स्वार्थ के लिये नहीं किन्तु भ्रष्टाचार हटानेके लिये हुआ था. इतना ही नहीं वह संपूर्ण अहिंसक था और जयप्रकाश नारायण जैसे महात्मा गांधीवादीने इस आंदोलनसे प्रेरणा ली थी. डी.बी. महाशय दयाके पात्र है.

डी.बी. भाई आगे चलकर लिखते है कि “जागृत विद्यार्थीयोंके आंदोलन एनडीए के शासनमें  बढ गये हैं. डीबीभाईने  गुरमहेरका नामका ज़िक्र किया है. क्योंकि एबीवीपीके विरोधियोंको बौद्धिकतावादी सिद्ध करनेके लिये यह तरिका आसान है.

यदि गुरमहेरने कहा कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं मारा लेकिन युद्धने मारा है” तो इसमें बौद्धिकता कहांसे आयी? यदि इसमें “डी.बी.”भाईको बौद्धिकता दिखाई देती है तो उनके स्वयंकी बौद्धिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता ही है. भारतीय बल्लेबाज युवराजने गुरमहेरकी इस बातका सही मजाक उडाया है, कि “शतक मैंने नहीं मारा… शतक तो मेरे बल्लेने मारा है”.

पाकिस्तान

एक देश आक्रमणखोर है, वही देश आतंकवादी भी है, उसी देशने भारत पर चार दफा आक्रमण भी किया होता है, उसी देशका आतंक तो जारी ही है. इसके अतिरिक्त भारतीय शासन और भारतके शासक पक्षोंने मंत्रणाओंके लिये कई बार पहेल की है और करते रहते हैं इतना ही नहीं यदि बीजेपीकी बात करें, तो बीजेपीने भारत पाकिस्तानके बीच अच्छा माहोल बनानेका कई बार प्रयत्न किया, तो भी भारत देशमें जो लोग कहेते रहेते है कि “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ और पाकिस्तानको समर्थन देनेका संदेश देना और कहेना कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं लेकिन युद्धने मारा है” इस बातमें कोई बौद्धिकता नहीं है. जब आपने “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ इन सूत्रोंका विरोध न किया हो और भारत विरोधी सूत्रोंकी घटनाके बारेमें प्रश्न चिन्ह खडा किया हो, तो समज़ लो कि आप अविश्वसनीय है. गुरमहेरका कर्तव्य था कि वह ऐसे सूत्र पुकारने वालोंके विरोधमें खुलकर सामने आतीं.

वास्तवमें ट्रोल भी ऐसे दोहरे मापदंडों रखने वाले होते है. कन्हैया, उमर खालिद, गुरमहेर आदि सब ट्रोल है. ऐसे बुद्धिहीन लोगोंको ट्रोल बनाना आसान है. समाचर पत्र वाचकगण बढानेके लिये और टीवी चेनलके प्रेक्षकगण बढानेके लिये और अपना एजंडा चलाने के लिये उनके तंत्री के साथ कई कटारीया (कटार लेखक), और एंकर संचालक स्वयं ट्रोल बननेको तयार होते हैं.

डी.बी.भाईने आगे लिखा है “गत वर्षमें देश विरोधी सूत्रोच्चार विवाद के करनेवालोंकी पहेचान नहीं हो सकी है.” डी.बी. भाईके हिसाबसे सूत्रोच्चार हुए थे या नहीं … यह एक विवादास्पद घटना है.

हम सब जानते है कि उमर खालिदकी और उसके साथीयोंकी जो विडीयोक्लीप झी-न्युज़ पर दिखाई गयी थी वह फर्जी नहीं थी. तो भी “डी.बी.भाई” इन सूत्रोच्चारोंको और उनके करनेवालोंको विवादास्पद मानते है. डि.बी.भाईकी अबौद्धिकता और उनके पूर्वग्रहका यह प्रदर्शन है. “डी.बी.भाइ” आगे यह भी लिखते है कि, “उमर खालिद और कन्हैयाको अनुकुलता पूर्वक (एबीवीपी या बीजेपी समर्थकोंने) देशद्रोहीका लेबल लगा दिया. “

डी.बी.भाईका यह तंत्री लेख, पूर्वग्रहकी परिसीमा और गद्दारीकी पहेचान नहीं है तो क्या है?

ये लोग जिनके उपर देशकी जनताको केवल “सीधा समाचार” देनेका फर्ज है वे प्रत्यक्ष सत्य को (देश विरोधी सूत्रोच्चार बोलनेवालोंकी क्लीपको) अनदेखा करके वाणीविलास करते हैं और अपनी पीठ थपथपाते है. महात्मा गांधी यदि जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते, क्यों कि ऐसे समाचार पत्रोंके कटारीया लेखकोंद्वारा जनताको गुमराह करनेका सडयंत्र जो चलता है.

ये लोग ऐसा क्यों करते हैं?

इन्होंने देश दो हिस्सेमें विभाजित हो गया है. नरेन्द्रमोदीके नेतृत्वको माननेवाला बीजेपी और बीजेपी-विरोधी. जो भी देशके विरोधीयोंकी टिका करते है उनको ये अप्रच्छन्नतासे प्रच्छन्न लोग, “मोदी भक्त, बीजेपीवादी, एबीवीपीवादी, असहिष्णु, कोमवादी …” ऐसे लेबल लगा देते है और स्वयंको बुद्धिवादी मानते है.

बीजेपीका मूल्यहीन तरिकोंसे विरोध क्यों?

नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने अस्तित्वको खोज रही है. पैसे तो उसने ६० सालके शासनमें बना लिया. लेकिन भ्रष्टाचारके कारण सत्तासे हाथ धोना पडा. भ्रष्टनेतागणसे और वंशवादसे बाहर निकलनेकी उसकी औकात नहीं है.

समाजवादी पक्ष, बीएसपी, एनसीपी, टीएमसी, जेडीयु, एडीएमके, डीएमके, ये सभी पक्ष एक क्षेत्रीय पक्ष और वंशवादी पक्ष बन गये है. उनका सहारा अब केवल साम्यवादी पक्ष बन गया है. उनको अपना अस्तित्व रखना है. हर हालतमें उनको बीजेपीको हराना है चाहे देशमें कुछ भी हो जाय. नहेरुवंशीय शासनके कारण ये सभी पक्षोंकी मानसिकता सत्तालक्षी और स्वकेन्द्री बन गयी है. उनके पास कुछ छूटपूट राज्योंका शासन और  सिर्फ पैसे ही बचे हैं. पैसोंसे वे कटारीया लेखकोंकी ख्याति-भूखको उकसा सकते है, पैसोंसे वे अफवाहें फैला सकते है, सत्यको भी विवादास्पद बना सकते हैं, असत्यको सत्य स्थापित कर सकते हैं.

“वेमुला” दलित नहीं था तो भी उसको दलित घोषित कर दिया और दलितके नाम पर बहूत देर तक इस मुद्देको उछाला और बीजेपीको जो बदनाम करना था वह काम कर दिया.

देश विरोधी नारोंको जो फर्जी नहीं थे और विवादास्पद भी नहीं थे उनको फर्जी बताया और विवादास्पद सिद्धकरनेकी कोशिस की जो आज भी डी.बी. भाई जैसे कनिष्ठ समाचार माध्यम द्वारा चल रही है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने ६०साल तक हरेक क्षेत्रमें देशको पायमाल किया गया है. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक अनुयायीओंको, यह बात समज़में नहीं आती कि कोई एक पक्षका एक नेता, दिनमें अठारह घंटा काम करके, ढाई सालमें ठीक नहीं कर सकता. मूर्धन्य लोग यह बात भी समज़ नहीं सकते कि नरेन्द्र मोदी और बीजेपीका कोई उनसे अच्छा विकल्प भी नहीं है. लेकिन ये मानसिक रोगसे पीडित विपक्ष और उसके सहयोगी देशके हितको समज़ने के लिये तयार नहीं है. वे चाहते हैं कि देशमें अराजका फैल जाय और परिणाम स्वरुप हमें मौका मिल जाय कि देखो बीजेपीने कैसी अराजकता फैला दी है.

साम्यवादी लोग देशप्रेम और धर्ममें (रीलीजीयनमें) मानते नहीं है. उनके लिये सैद्धांतिक रीतसे ये दोनों अफीम है. लेकिन ये लोग फिर भी आज़ादी, सहनशीलता, वाणीस्वातंत्र्यकी बात करते है और साथ साथमें देशको तोडनेकी और हिंसाको बढावा देनेकी बातें करते हैं, पत्थरबाजी भी करते हैं या करवाते हैं, मूंह छीपाके देश विरोधी सूत्रोच्चार करते है और जब गिरफ्तार होते है तो जामीन (बेल्स) पर भी जाने लिये तयार होते जाते है. और इन्ही लोगोंको डीबीभाई जैसे समाचार पत्र बुद्धिवादी कहेते हैं. परस्परकी सहायताके लिये साम्यवादी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सांस्कृतिक साथी, कट्टरवादी मुस्लिम, पादरीयोंकी जमात एकजुट होके काम करती है.

इनलोगों द्वारा अपना उल्लु सिधा करने के लिये ट्रोल पैदा किये जाते है. यदि कोई ट्रोल नेता बनने के योग्य हो गया तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस, साम्यवादी और उनके सांस्कृतिक पक्षमे शोभायमान हो जाता है. गुजरातके नवनिर्माणके आंदोलनमें ऐसे कई ट्रोल घुस गये थे, जो आज या तो नहेरुवीयन कोंग्रेसमें शोभायमान है या तो उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका सांस्कृतिक पक्ष बना लिया है.

ऐसे कई स्वकेन्द्री ट्रोल जिनमें कि, लालु, नीतीश, मुल्लायम, ममता, अजित सींघ, केज्रीवाल आज शोभायमान है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः

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नहेरुवीयन कोंग्रेसका वानरपन या विकास यज्ञमें हड्डीयां?

जब हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका नाम लेते हैं तब हमें उनमें उनके सांस्कृतिक साथी पक्ष, ममता, माया, जया, लालु, करुणा, मुल्लायम, फारुख, आदि सभीको संम्मिलित समझना है. क्यों कि ये सब उनके सांस्कृतिक साथी है, जिनका उद्देश केवल येन केन प्रकारेण पैसा बनाना है, चाहे देशको कितना ही हानि क्यूं न हो. तदुपरांत सत्ताका दुरुपयोग भी करना ताकि अपने देशी विदेशी साथीयोंके साथ जो ठग विद्या द्वारा असामाजिक और सहदुःष्कर्म किये है उनसे उनकी भी रक्षा की जा सके. जैसेकी खुदके नेताओं अतिरिक्त इनकी जैसे कि धरम तेजा, मुंद्रा, सुकर बखीया, युसुफ पटेल, दाउद, एन्डरसन, क्वाट्रोची, वाड्रा आदिकी भी रक्षा करनी होती है.

किन्तु अभी तो हम वार्ता करेंगे भूमि अधिग्रहण विधेयक प्रस्तावकीः

भूमि विषयक और स्थावर संपत्ति विषयक समस्याओंका समाधान हो सकता है.

भूमि विषयक मानसिकता क्या है?

प्रणालीगत मानसिकता क्या है?

१ भारत एक कृषिप्रधान देश है,

२ किसान जगतका तात है,

३ किसान गरीब है,

४ भारत एक ग्राम्य संस्कृति वाला देश है.

५ ग्राम्य संस्कृति भारतकी धरोहर है,

६ भारत अपनी धरोहरका त्याग नहीं कर सकता.

यह ग्राम्य संस्कृति क्या है?

७ ग्राम्यप्रजा सीधे सादे प्राकृतिक वातावरणमें रहेती है,

८ उसकी प्राकृतिकताको हमें नष्ट नहीं करना है,

९ गांवमें बैल, गैया, भैंस, बकरी, गधा आदि मनुष्य समाजके उपर आश्रित पशुधन होता है,

गांवमें बैलगाडीयां होती है,

१० गौचर की भूमि होती है, पेड होते हैं, खेत होते है, गृह उद्योग होते है, आदि आदि

११ अब शासनका धर्म बनता है कि शासन ग्राम्य संस्कृतकी रक्षा करें. हां इतना परिवर्तन जरुर करें कि, उनको विद्युत उर्जा घरमें, ग्राम्य मार्ग पर, खेतमें भी मिलें.

१२ शासनका धर्म यह भी है कि उनको पीनेका शुद्ध पानी और खेतके लिये अदुषित पानी भी मिले, अन्न पकानेके लिये ईंधन वायु भी मिले. आवश्यकता होने पर उसको ऋण भी प्राप्त करवाया जाय.

१३ वैसे तो इनमेंसे कई चिजें ग्राम्य संस्कृतिकी धरोहर नहीं है, फिर भी शासनको सिर्फ नगरोंका ही विकास नहीं करना है, किन्तु ग्राम्यप्रजाका भी विकास करना है. इसके अतिरिक्त हमारी ग्राम्य संस्कृतिकी भी रक्षा करना है. इन सबमें किसानकी भूमिकाको उपेक्षित करना नहीं है.

१४ इसी प्रकार हमारी वन्य संस्कृतिकी भी रक्षा करना है,

यह वन्यसंस्कृति क्या है?

१५ वन्य संस्कृतिमें छोटे बडे वृक्ष है, वनवासी होते है, जो वन्य उपज पर अपना निर्वाह करते है. ये भी हमारी भारतीय संस्कृतिका एक अविभाज्य अंग है. हमें उनकी संस्कृतिकी भी रक्षा करनी है. हमें इन सबको शिक्षित भी करना है.

क्यों कि भारतीय संस्कृति महान है.

अवश्य हम महान है या थे. किन्तु हमे निर्णय करना पडेगा कि

१ हमें किसानोंके और वनवासीयोंके आर्थिक स्तरको उंचे लाना है या नहीं?

२ हमें उनको स्वावलंबी करना है या नहीं?

३ हमें ग्राम्य और वनवासी जनताको सरकार पर ही अवलंबित रहें ऐसा ही करना है या उसको इसमेंसे मूक्त भी करना है?

याद करो.

३०० वर्ष इसा पूर्वसे लेकर इ.सन. १७०० वर्ष तकके विदेशी यात्रीयोंने भारतके बारेमें लिखा है कि, भारतमें कभी अकाल पडता नहीं था.

उसका कारण क्या था?

भारतमें वन संपदा थी. यानी कि पर्वत और समतल भूमि पर वृक्ष थे. खेतोंके आसपास भी वृक्ष थे. नगरमें उपवन थे. इसके कारण नदीयोंमें हमेशा पानी रहता था. प्रत्येक ग्राममें सरोवर थे और इन सबमें पानी रहेनेसे कुओंका जलस्तर उंचा रहता था. वृक्षोंके होनेसे पर्वतों पर वर्षा का पानी अवरोधित रहेता था इसलिये पूर नहीं आते थे. वृक्षोंसे अवरोधित पानी धीरे धीरे नदीयोंमें जाता था. इसलिये नदियां पानीसे भरपूर रहेती थीं. भूमिगत पानीकी स्थिति भी ऐसी ही रहेती थी. कुओंमेसें पानी बैलके द्वारा निकाला जा सकता था.

पशुधन मूख्य माना जाता था. और इसके कारण प्राकृतिक खाद गोबरके रुपमें आसानीसे मिलजाता था. वृक्षकी कटाई घरेलु वपराशके लिये ही होती थी इसलिये वृक्षोंकी दुर्लभता नहीं बनती थीं. गोबरका भी इंधनके रुपमें उपयोग होता था.

सभी ग्राम्यसमाज प्रतिदिनकी आवश्यकताओंके लिये स्वावलंबी थे.

इसलिये आयात निकास की वस्तुंओंका  परिवहन न्यूनतम था. यंत्र और उपकरण संकिर्ण नहीं थे और पशु-शक्तिका उपयोग भी होता था. हम ग्राम्य समाजको एक संकुल के रुपमें समझ सकते हैं. जिनमें भीन्न भीन्न व्यवसायके लोग व्यवसायके अधार पर समूह बनाके रहेते थे. आज भी ऐसी रचना नकारी नहीं जाती. सब्जी मार्केट, कपडा मार्केट, रेडीमेड गार्मेन्ट मार्केट, हीरा बजार, विद्या संकुल, आवास, चिकित्सा संकुल आदि प्रकार विदेशोंमे भी बनाये जाते हैं.   

भारत एक विशाल देश था. जनसंख्या कम थी. उत्पादनका निकास हो सकता था. हर वसाहतमें व्यवसायीओंका एक महाजनमंडल रहेता था. जो अपने व्यवसाय की नीतिमत्ता पर निरीक्षण करता था.

किन्तु अठारवीं शताब्दीके अंतर्गत क्या हुआ?

भारतीय कारीगरोंकी उंगुलियां काट दी गई. ताकि हुन्नर मृतप्राय हो गया. भारत कच्चे मालकी निकास करने लगा और बना बनाया माल अयात करने लगा. गरीबी बढ गई. यह वार्ता  सुदीर्घ है. किन्तु इसका तारतम्य यह कि भारतकी अवनति हुई. प्राकृतिक आपत्तियोंमे भी वृद्धि हुई. वर्षा अनियमित होने लगी. अकाल पडने लगे.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विघातक नीतियां

नहेरुवीयन कोंग्रेसने अंग्रेजोंकी नीति चालु रक्खी. समाजवादके नाम पर नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंने मनमानी की. इतना ही नहीं किन्तु अत्यधिक प्रमाणमें अवैध रुपसे वनोंकी कटाई हुई. वन संपत्ति और उत्पादन नष्टप्राय हो गया. नदियां शुष्क हो गईं. वर्षा चक्र अनियमित हो गया. अकाल पडने लगे. आर्थिक असमानता बढ गई. नियम द्वारा चलने वाला शासन छीन्नभीन्न हो गया. कोतवाल चोरके साथ मिल गया और रक्षक भक्षक बन गया. कोंगीके सर्वोच्च नेताओं द्वारा किये गये भ्रष्ट आचारोंके असंख्य उदाहरण, हमने (१९७७-१९७९ और १९९९-२००४ के कालखंडोंको छोड कर) १९५१से २०१४ तक देखे हैं. हम उन ठगोंकी चर्चा नहीं करेंगे.

ग्राम्य रचनाकी पूरातन शैलीमें परिवर्तन लाना पडेगा.

भूमि अधिकार संबंधित मानसिकतामें परिवर्तन लाना पडेगा

भूमि संबंधित उत्पादनकी प्रणालीमें परिवर्तन लाना पडेगा,

ग्राम्य रचना कैसी होनी चाहिये? आवासोंकी रचना कैसी होनी चाहिये?

१ हमें आवासमें क्या चाहिये?

१.१ आवासमें खुल्लापन होना चाहिये,

१.२ आकाश दिखाई देना चाहिये,

१.३ छोटे बालकोंके लिये खेलनेकी जगह होनी चाहिये,

१.४ बडोंके लिये घुमनेकी जगह होनी चाहिये,

१.५ युवाओंके लिये खेलने की जगह होनी चाहिये,

१.६ अडोशपडोशके साथ संवादिता होनी चाहिये, यानी कि, कोम्युनीटी टाईप घरोंकी रचना होनी चाहिये,

१.७ प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षाका प्रबंध होना चाहिये,

१.८ उच्च शिक्षाके लिये सुदूर जाना न पडे ऐसा होना चाहिये,

१.९ प्रतिदिनकी आवश्यक वस्तुएं सरलतासे उपलब्ध होनी चाहिये,

१.१० शासकीय सेवाएं सरलतासे उपलब्ध होनी चाहिये,

१.११ जनसुरक्षा सेवा उपलब्ध और विश्वसनीय होनी चाहिये,

१.१२ व्यवसाय, सेवा, आवास और शिक्षणमें मानवीय अभिगम होना चाहिये,

१.१३ पर्यावरणमें संतुलन होना चाहिये.

हमें इन सभी आवश्यक बंधनोंसे ठीक तरहसे अवगत होना पडेगा. इस विषयमें अवगत होनेके लिये हमें खुल्लापन रखना पडेगा. यदि  आजकी स्थिति और आजकी मानसिकता चालु रही तो भविष्य कैसा भयानक हो सकता है वह समझना पडेगा.

भारत विभाजित हो गया है. जनसंख्यामें अधिक वृद्धि हुई है. जनसंख्याके उपर नियंत्रण लानेमें कुछ और दशक लग सकते है. कुछ धर्मके लोग स्वयंकी जनसंख्याके नियंत्रणमें मानते नहीं है. उनकी कार्यसूचि भीन्न है. उनकी मानसिकता में परिवर्तन करनेमें दो तीन दशक लग सकते हैं. सभीको साक्षर करना पडेगा और सबको काम देना पडेगा. उत्पादन बढाना पडेगा. असामाजीक तत्वोंको नष्ट करना पडेगा.

भूमिके महत्वसे अवगत होना आवश्यक है

भूमिका व्यय

१.१ पृथ्वीपर भूमिमें वृध्धि नहीं हो सकती. किन्तु भूमिमें सुधार हो सकता है. बंजर, क्षारयुक्त, उबडखाबड भूमिको नवसाध्य कर सकते हैं. मार्गों और रेल्वेकी आसपासकी भूमिको सब्जी भाजी के लिये उपयोगमें ले सकते है. छोटे बडे टापूओं पर बिनवपराश की भूमिको साध्य कर सकते है.

१.२ भूमिका व्यय बंध कर सकते है.

१.३ झोंपडपट्टी भूमिका व्यय है, एकस्तर, द्विस्तर, त्रीस्तर, आदि कमस्तरवाले आवास और संनिर्माण भूमिका व्यय है.

१.४ इतना ही नहीं भूमि पर अन्नपैदा करना भी भूमिका व्यय है.

१.५ अन्न और घांस एक स्तरीय उत्पादन है. जैसे लघुस्तरीय आवास निर्माण और लघुस्तरीय व्यवसाय वाले संकुल निर्माण, भूमिका व्यय है उसी तरह अन्न जैसे एक स्तरीय उत्पादनके लिये भूमिका उपयोग भी, भूमि संपदाका व्यय है.

१.६ आवास और व्यवसाय संकुल निर्माणको बहुस्तरीय बनाओ.

१.७ अन्न और घांस के उत्पादन के लिये बहुस्तरीय कृषि-संकुल बनाओ.

१.८ भूमिका उपयोग केवल वृक्षके लिये करो. वृक्ष हमेशा बहुस्तरीय उत्पादन देता है. तदुपरांत वह प्राणवायु देता है, जलसंचय करता है, भेज-उष्माका नियमन करता है,और उसका समूह् मेघोंको खींचता है. पक्षी, जिव जंतुओंको आश्रय देता है और ये जिव जंतु परागनयन द्वारा फल, सब्जी और अन्नका उत्पादन बढाता है. वृक्ष इसके अतिरिक्त मधु, गुंद, खाद और लकडी देता है.

अन्नका और घांसका उत्पादन कैसे करेः

१ आज कस्बों में और उसके समीपकी भूमिका भाव रु. १००००/- (दश सहस्र) प्रति मीटरसे कम नहीं है. यदि आप सुचारु प्रणालीसे बहुस्तरीय व्यवसायिक और आवासीय संकुलका निर्माण करो तो संनिर्माणका मूल्य (कंस्ट्रक्सन कोस्ट) रु ५०००/- से ६०००/- प्रति चोरस मीटर होता है. इसका अर्थ यह हुआ कि अन्न और घांसके उत्पादन के लिये बहुस्तरीय संनिर्माण लघुतर मुल्यका है.

ऐसे बहुस्तरीय कृषि संनिर्माण बनाना आवश्यक है.

१.२ बहुस्तरीय कृषि संकुल निर्माणके को लघुतर मूल्यका कैसे किया जाय? सुचारु प्रणाली क्या हो सकती है?

पूर्व निर्मित ईकाईयां (प्रीकास्टेड एलीमेन्टस) अनिवार्य है

१.३ पूर्व निर्मित ईकाईयां (प्रीकास्टेड एलीमेन्टस) जैसे कि स्तंभ इकाई (पीलर युनीट), फलक दंड इकाई (बीम युनीट), फलक इकाईयां (स्लेब एलीमेन्टस), असिबंध (आयर्न ग्रील), आदि, यदि निर्माण संसाधन उद्योगिक एकमोंमे पूर्व निर्मित किया जाय और उनका कद और मान शासननिश्चित प्रमाणसे उत्पादन किया जाय तो इन इकाईयोंका मूल्य अल्पतर बनेगा. संनिर्माणका समय, श्रम मूल्य भी कम भी लगेगा.

१.४ भूमि पर अधिकार केवल शासनका रहेगा.

शासन उसके उपयोगका अधिकार देगा. उपयोगके अधिकारका हस्तांतरण, उपयोग कर्ता कर सकेगा. किन्तु शासन के द्वारा वह हस्तांतरण होगा. इस प्रकार भूमिके सारेके सारे न्यायालयस्थ विवाद समाप्त हो जायेंगे.

१.५ आवास संकुल बहुस्तरीय रहेंगे और हरेक कुटूंबको खंडसमूह दिया जायेगा. जिनको मासिक अवक्रय (मोन्थली रेन्ट)के रुपमें या अवक्रय आधारित स्वामित्व (हायर परचेझ स्कीम) के रुपमें दिया जायेगा. स्वामित्वका हस्तांतरण भी शासनके द्वारा ही होगा.

१.६ उसी प्रकार कृषि संकुलके भी खंड समूह (प्रकोष्ठ समूह) होंगे और उसका हस्तांतरण भी उपरोक्त नियमोंसे होगा.

१.७ अद्यतनकालमें जो जर्जरित, या झोंपड पट्टीयां या कम स्तरवाले निर्माण है, उन सबका नवसंरचना करके आवास और व्यावसायिक संकुलोंका मिश्र संकुल बनाना पडेगा ताकि भूमिके व्ययके स्थान पर हमें अधिक भूमि उपलब्ध होगी और उसका हम सुचारु रुपसे वृक्षोंका उत्पादन कर सकेंगे.

१.८ आवास संकुलके निम्न स्तरोंमें व्यावसायिक वाणीज्य, गृहउद्योग, बाल मंदिर, प्राथमिकशाळाएं, माध्यामिक शाळाएं. उच्चमाध्यमिक शाळाएं, चूनाव व नोंधणी व जनगणना व सुरक्षा अधिकारीका कार्यालय रहेगा. हर स्तर पर एकसे अधिक सीसी टीवी केमेरा रहेगा.

१.९ जो अयुक्त (अनएम्प्लोईड बेकार) है, आवससे भी अयुक्त बने क्योंकि वे अपना उपकर नहीं दे पाये उनको सोने की जगह दी जायेगी और उनको कोई न कोई काम देके उनसे सोनेका और नहानेका उपकर प्रत्यावरुध (रीकवरी ओफ रेन्ट) किया जायेगा. यदि वह व्यक्ति विदेशका घुसपैठ है तो वो कारावासमें जायेगा और वहां उसके उपर स्थानिक सुरक्षादल कार्यवाही करेगा. जो अन्य राज्य से आता है उसको यदि वह निराश्रित है तो सोनेकी सुविधा मिलेगी.

१.१० जो कृषि-संकुल है, उसके निम्न स्तरोमें गौशाला रहेगी. उसके उपरके स्तरोमें घांस, अन्न, सब्जी, पुष्प, मधु, आदि का उत्पादन होगा.

१.११ आवस संकुलसे जो भी पानी आता है, उसको योग्य मात्रामें शुद्ध करके उसका भूमिगत उत्पादनमें उपयोग हो सकता है.

स्थावर संपत्ति के नियमोंमें आमूल परिवर्तन ही देशकी ९० प्रतिशत समास्याओंका समाधान है.

उपसंहारः

भूमि पर किसीका स्वामीत्व नहीं.

भूमि के उपर केवल उपयोगका अधिकार. उपयोगका प्रकार, शासन निश्चित करेगा. उपयोगके प्रकारमें परिवर्तनका अधिकार केवल शासनका रहेगा.

भूमिके उपयोगके प्रकारः

वृक्ष लगाना और उत्पादन करना.

वन, उपवन, भूमिगत क्रीडांगण

भूमिगत मार्ग, रेल मार्ग, जलमार्ग

सरोवर,

नहेरें,

विमान पट्टी,

नमक उत्पादन,

खनिज उत्पादन,

नये धार्मिक स्थल बनाने पर निषेध. केवल ऐतिहासिक धर्मस्थलोंका शासकीय अनुमतिके आधार पर विकास.

बहुस्तरीय संकुल जिसमें आवास संकुल, सेवा संकुल, गृह उद्योग संकुल, शैक्षणिक संकुल, लघु उद्योग संकुल, आदि. यदि शक्य है तो एक ही संकुल अनेक प्रकारके संकुलोंका समुच्चय हो सकता है.

बहुस्तरीय कृषि संकुल जिसमें अन्न, घांस, गौशाला, अप्रणालीगत उर्जा, सब्जी, मध, पुष्प, गोपाल आवास, कृषक आवास, कृषि आधारित गृह उद्योग,

बहुस्तरीय कृषि उत्पादन को प्राकृतिक आपदासे सुरक्षा मिलेगी. अन्य संकुलोके निस्कासित जलको शुद्ध करके टपक और फुहार सिंचाई द्वारा कृषि उत्पादन सुगम बनेगा.

एक ग्रामकी जनसंख्याके आधार पर एक ग्राम एक या दो संकुलका बना हुआ होगा. कोई भी संकुल १० स्तरसे कम नहीं होगा.

संकुल पर्यावरण सुरक्षाके आधार पर बना होगा. सभी शासकीय सुविधाएं और आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध होगी.

बहुस्तरीय कृषि संकुलके अपने हिस्सेको व्यक्ति हस्तांस्तर कर सकता है. किन्तु हस्तांतरण की प्रक्रिया शासनके द्वारा ही होगी. ठीक उसी प्रकार निवासके अपने हिस्सेको व्यक्ति हस्तांतरण कर सकता है. शासन, संकुलका वेब साईट रखेगा. और संकुलकी संपूर्ण अद्यतन माहिति उसके उपर उपलब्ध रहेगी.

शिरीष मोहनलाल दवे

अनुसंधानः  गुजरातीमें नव्य सर्वोदयवाद भाग १ से ५, एचटीटीपीः//डबल्युडबल्युडबल्यु.त्रीनेत्रं.वर्डप्रेस.कॉम टेग्झः भूमि, आवास, स्वामीत्व, उपयोग, शासन, सुरक्षा, सेवा, चूनाव बुथ विस्तार, संकुल, कृषि, घांस, वृक्ष, वन, स्वावलंबन, मानसिकता, ग्राम्य, पशु, गृह, उद्योग, प्रकोष्ठ, पूर्व निर्मित, इकाईयां, एलीमेन्ट संकुलकी कुछ आकृतियां

पूर्व निर्मित इकाईयां

STRUCTURE 04 village complex 04 AN ALREADY EXISTING SELF SUSTAINABLE COMPLEX VILLAGE Drg03 उपरोक्त व्यवस्था कृषि और आवास संकुलके लिये भी हो सकती है. एक कुटूंब एकसे ज्यादा सुनिश्चित नियमोंके अंतर्गत एक से अधिक प्रकोष्ठ ले सकता है. Drg01

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