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किसी भी नगरको/ग्रामको बदसूरत और गंदा कैसे किया जाय …. १

हाँ जी, नगर, ग्राममें आयोजित विस्तार, देहात, टाउनशीप, निवासीय या संकीर्ण मकान या मकानोंके समूह आदि सब कुछ आ जाता है. इसको कैसे बदसूरत और गंदा किया जा सकता है, उसकी हम चर्चा करेंगे.

अहमदाबाद स्थित शास्त्रीनगर कैसे बदसूरत और गंदा किया गया, हम इसका  उदाहरण लेंगे.

कोई भी विस्तारमें यदि एक वसाहतका निर्माण करना है तो सर्व प्रथम उसका आयोजन करना पडता है. प्राचीन भारतमें यह परंपरा थी. प्राचीन भारतमें एक शास्त्र था (वैसे तो वह शास्त्र आज भी उपलब्ध है. लेकिन इसकी बात हम नहीं करेंगे. हम स्वतंत्र भारतकी बात करेंगे. १९४७के बादके समयकी चर्चा करेंगे.

अहमदाबादमें एक संस्था है. यह संस्था सरकार द्वारा नियंत्रित है. इसका नाम है गुजरात हाउसींग बोर्ड. इसने आयोजन पूर्वक अनेक वसाहतोंका निर्माण किया है.

शास्त्रीनगर वसाहतका आयोजन कब हुआ था वह हमें ज्ञात नहीं. लेकिन इसका निर्माण कार्य १९७१में आरंभ हुआ था.

आयोजनमें क्या होता है?

(१) जी+३ के मध्यम वर्ग (एम-४, ऍम-५) उच्च कनिष्ठ वर्ग (एल-४), कनिष्ठ वर्ग(एल-५) के बील्डींग ब्लोकोंका निर्माण करना.

(२) सुचारु चौडाई वाले पक्के मार्गका प्रावधान रखना, चलने वालोंके लिये और विकलांगोंकी और अशक्त लोगोंकी व्हीलचेरके लिये योग्य चौडाई वाली फुटपाथ बनाना

(३) र्शोपींग सेन्टरका प्रावधान रखना,

(४) बीजली – पानीका आयोजन करना,

(५) भूमिके विषयमें

(५.१) विद्यालयका प्रावधान रखना

(५.२) उद्यानके लिये प्रावधान रखना

(५.३) हवा और प्रकाश रहे इस प्रकार भूमिका उपयोग करना,

(५.४) कोम्युनीटी हॉलके लिये प्रावधान रखना,

(५.५) क्रीडांगणके लिये प्रावधान रखना,

(६) बाय-लॉज़ द्वारा वसाहतको नियंत्रित करना,

(७) सामान्य सुविधाएं यानीकी बीजली, पानी देना.

(८) कुडे कचरेके निकालके लिये योग्य तरीकोंसे प्रबंधन करना

 आयोजनमें क्या कमीयाँ थीं?

(१) जी+३ के मकान तो बनवायें लेकिन प्लानरको मालुम नहीं था कि जनतामें विकलांग और वृद्ध लोग भी होते है. इस कारण उन्होंने यह समाधान निकाला कि जिसके कूटुंबमे वृद्ध होय उनको यदि आबंटनके बाद ग्राऊन्ड फ्लोरका आवास बचा है तो उनको चेन्ज ओफ निवास किया दिया जायेगा.  आपको आश्चर्य होगा कि सरकार द्वारा निर्मित आवासोंका मूल्य तो कम होता है तो ग्राउन्ड फ्लोरका आवास बचेगा कैसे? शायद सरकारने सोचा होगा कि, आज जो युवा है वे यावदचंद्र दिवाकरौ युवा ही रहेंगे या तो युवा अवस्थामें ही ईश्वरके पास पहूँच जायेंगे.

हाँ जी, आपकी बात तो सही है. लेकिन यहां पर आवासकी किमत मार्केट रेटसे कमसे कम ४०% अधिक रक्खी थी. ग्राउन्ड फ्लोरके निवास और तीसरी मंजीलके निवासकी किमत भी समान रक्खी थी.

वैसे तो “लोन”की सुवाधा खुद हाउसींग बोर्डने रक्खी थी, इस लोनकी सुविधाके कारण लोअर ईन्कम ग्रुप वालोंने मासिक हप्ते  ज्यादा होते हुए भी और लोनका भुगतान करनेकी मर्यादा सिर्फ दश सालकी होते हुए भी, अरजी पत्र भरा और मूल्यका २०% सरकारमें जमा किया.

समस्या एम-५ और एम-४ के आबंटनमें आयी. क्यों कि उसका मूल्य ५५००० रुपये रक्खा था और मासिक हप्ता ₹ ६००+ रक्खा था. उस समय कनिष्ठ कक्षाके अधिकारीयोंका “होमटेक  वेतन” भी बडी मुश्किलसे रु. ९००/- से अधिक नहीं था. इस कारणसे ९५% निवास खाली पडे रहे. उतना ही नहीं उसी  विस्तारमें आपको उसी किमतमें डाउन पेमेंट पर स्वतंत्र बंगलो मिल सकता था. स्टेम्प ड्युटी भी १२.५ प्रतिशत थी. मतलब कि, आपको एम-४ और एम-५ टाईपका निवास करीब ६५०००/- रुपयेमें पडता था. 

राष्ट्रीयकृत बेंकोंकी लोन प्रक्रिया भी इतनी लंबी थी कि सामान्य आदमीके बसकी बात नहीं थी.  

सरकारी समाधानः

सरकारने ऐसा समाधान निकाला कि, यदि आवास निर्माण संस्था सरकारी निर्माण संस्था है तो ऐसी संस्था द्वारा दिये गये “आबंटन पत्र” प्रस्तूत करने पर ही लोनको मंजूर कर देनेका.

मासिक आयकी जो सीमा रक्खी थी वह रद कर दी,

कई सारे निवास सरकारके विभागोंने, अपने कर्मचारीयोंके सरकारी आवास के लिये खरीद लिये.

लोनके कार्य कालकी सीमा दश सालके बदले बीस साल कर दिया.

निर्माणका काम अधूरा था तो भी सबको पज़ेशन पत्र दे दिये क्यों कि कोंट्राक्टरको दंड वसुलीसे बचा शकें.

(२) शास्त्रीनगरका आयोजन तो उस समयके हिसाब से अच्छा था. समय चलते महानगर पालिकाने नगरके मार्गोंको आंशिक चौडाईमें पक्का भी कर दिया.

प्रारंभके वर्षोंमें वर्षा ऋतुमें बस पकडने के लिये आधा किलोमीटर चलके जाना पडता था. सरकारका चरित्र है कि कोई काम ढंगसे नहीं करनेका. पक्के मार्ग आंशिक रुपसे ही पक्के थे. इससे कीचडकी परेशानी बनती थी. दोनों तरफकी भूमिको तो कच्चा ही रक्खा रक्खा जाता था. फूटपाथ बनानेका संस्कार नगर पालिकाके अधिकारीयोंको नहीं था (न तो आज भी है).

(३) हाउसींगबोर्डने शोपींग सेन्टर तो अच्छा बनाया था. एम-४ टाऊप आवासोंके ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकानें बनी थीं.

(४) बीजली पानीका प्रबंध उस जमानेके अनुसार अच्छा था.

(५.१) स्कुलके लिये भूमि तो आरक्षित थी. लेकिन आज पर्यंत स्कुल क्युं नहीं बना यह संशोधनका (अन्वेषणका) विषय है.

(५.२) उद्यान नहीं बनवाया,

(५.३) कोम्युनीटी सेन्टर नहीं बनवाया

(५.४) क्रिडांगणका मतलब यही किया गया कि भूमिको खुल्ला छोड देना.

(६) शास्त्रीनगरके सुचारु रखरखावके लिये सरकारने बाय-लॉज़ तो अच्छे बनाये थे. लेकिन सरकारी कर्मचारी-अधिकारीगण तो आखिर नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कार प्रभावित सरकारी ही होते है. इन सरकारी अधिकारीयोंको काम करना और दिमाग चलाना पसंद नहीं होता है. “यह काम हमारा नहीं है” ऐसा तो आपने कई बार सूना होगा. यदि कोई काम उनका नही है तो जिस सरकारी विभागका वह काम हो उसको ज्ञात कर देनेका काम सरकारी कर्मचारी/अधिकारीके कार्यक्षेत्रमें है ऐसा इनको पढाया नहीं जाता है.

(६.१) हाउसींग बोर्डने शीघ्राति शीघ्र निवास स्थानोंका वहीवट पांच से सात ब्लॉकोंकी सोसाईटीयां बनाके इन सोसाईटींयोंको दे दिया.

(६.२) भारतके लोग अधिकतर स्वकेन्द्री है और आलसी होते है. स्वकेन्द्री होने के कारण जो लोग ग्राउन्ड फ्लोर पर रहेते थे उन्होने एपार्टमेन्टके आगेकी १० फीट भूमि पर कबजा कर लिया. सार्वजनिक जगह यदि सुप्राप्य है तो उसके उपर कबज़ा जमाना भरतीयोंका संस्कार है खास करके उत्तरभारतीयोंका जिनमें गुजराती लोग भी इस क्षेत्रमें आ जाते हैं. उनके उपर रहेने वालोंने विरोध किया तो झगडे होने लगे. सात ब्लॉकोंकी जगह हर ब्लॉक की एक सोसाईटी बन गई. एक ब्लोकके अंदर भी ग्राउन्ड फ्लोर और उपरके फ्लोर वाले झगडने लगे.

(६.३) ज्यों ज्यों अतिक्रमण बढता गया त्यों त्यों शास्त्रीनगरकी शोभा घटने लगी. शास्त्रीनगर एक कुरुप वसाहतके रुपमें तेज़ीसे आगे बढने लगा था.

(६.४) जब अतिक्रमणकी फरियादें बढ गयी तो सरकारने सबको छूट्टी देदी.

(६.५) अब शास्त्रीनगरका कोई भी निवासी दश फीट तक अपना रुम या गेलेरी आगे खींच सकता था. उसको सिर्फ एक हजार रुपये हाउसींग बॉर्डमें जमा करवाने पडते थे.

(६.६) एक हजार रुपया हाउसींग बॉर्डमें जमा करने के बाद, न तो कोई सोसाईटीके पारित विधेयककी नकल प्रस्तूत करना आवश्यक था, न तो कोई विधेयक जरुरी था, न तो कोई विज्ञापन देना आवश्यक था, न तो पडौशीका “नो ओब्जेक्सन” आवश्यक था, न कोई प्लान एप्रुव करवाना आवश्यक था, न तो किसीका कोई निरीक्षण होना आवश्यक माना गया. कुछ निवास्थान वालोंने तो तीनो दिशामें दश दश फीट अपना एपार्टमेन्ट बढा दिया.

(६.७) यदि शास्त्रीनगरके निवासी ऐसी छूटका लाभ ले, तो हाउसींग बोर्ड स्वयं क्यों पीछे रहे?

(६.८) हाउसींग बोर्डने शास्त्रीनगरकी चारो दिशामें, जी+२ के कई सारे मकान बना दिये. सभी मकानोंके ग्राउन्ड फ्लोर वालोंने ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकाने बना दी. हाउसींग बोर्डने भी ऐसा ही किया. अब ऐसा हुआ कि जो भी ग्राउन्ड फ्लोर वाले थे उनमेंसे अधिकतर लोगोंने अपना रोड-फेसींग रुमोंको दुकानमें परिवर्तित कर दिया.

(६.९) मुख्य मार्ग पर वाहनोंका यातायात बढ गया. फूटपाथकी तो बात ही छोड दो, मार्गपर चलनेका भी कठीन हो गया.

हाउसींग बोर्डके कर्मचारीयोंकी और अधिकारीयोंकी कामचोरी और अकुशलताके बावजुद १९७६ से १९७९ तक शास्त्रीनगर एक सुंदर और अहमदाबादकी श्रेष्ठ वसाहत था. लेकिन धीरे धीरे उसमें सरकारी कर्मचारी-अधिकारी, गुन्डे, व्यापारी और हॉकर्सकी मिलीभगतसे  अतिक्रमण बढता गया.

(७) बीजली सप्लाय तो अहमदाबाद ईलेक्ट्रीसीटी कंपनीका था इससे उसमें कमी नहीं आयी. लेकिन जो पानीकी सप्लाय थी वह तो अतिक्रमण-रहित आयोजन के हिसाबसे था. इस कारण पानीकी कमी पडने लगी.

(८) कुडा कचरा को नीपटानेका प्रबंधन तो पहेलेसे ही नहीं था. क्यों कि नहेरुवीयन कोंग्रेस गंदकीको समस्या मानती नहीं है.

(९) कई सालोंसे शास्त्रीनगर प्रारंभिक अवस्थाकी तुलनामें दोज़ख बन गया है. कई लोग अन्यत्र चले गये है.

हाउसींग बॉर्डके लिये गीचताकी समस्या कोई समस्या ही नहीं थी.  हाउसींग बोर्डने मुख्यमंत्री आवास योजनाके अंतर्गत अंकूरसे रन्नापार्कके रोड पर नारणपुरा-टेलीफोन एक्सचेन्जके सामनेवाली अपनी ज़मीनके उपर आठ दश नये अतिरिक्त दश मंजीला मकानकी योजना पूर्ण कर दी है. इसमें भी कई सारी दुकानें बनायी है. वाहनोंके पार्कींगके लिये कोई सुविधा भी नहीं रक्खी है. इश्तिहारमें पार्कींग की सुविधाका जिक्र था. लेकिन हाउसींग बोर्डके अधिकारी/कोंट्राक्टरोंकी तबियत गुदगुदायी तो पार्कींग भूल गये.

(१०) यह विस्तार पहेलेसे ही गीचतापूर्ण है. इस बातका खयाल किये बिना ही हमारे सरकारी अधिकारीयोंने इस विस्तारको और गंदा करने की सोच ली है और वे इसके लिये सक्रीय है.

इस समस्याका समाधान क्या है?

(१) हाउसींग बॉर्डमें और नगर निगममें जो भी सरकारी अधिकारी जीवित है उनका उत्तरदायीत्व माना जाय और उनके उपर कार्यवाही करके उनकी पेन्शनको रोका जाय. उनकी संपत्ति पर जाँच बैठायी जाय ताकि अन्य कर्मचारीयोंको लगे कि गैर कानूनी मार्गोंसे पैसे बनानानेके बारेमें कानून के हाथ लंबे है और कानूनसे कोई बच नहीं सकता. जो भी कमीश्नर अभी भी सेवामें है उनको निलंबित कर देना चाहिये और उनके उपर कार्यवाही करनी चाहिये.

(२) केवल कमीश्नर उपर ही कार्यवाही क्यों?

(२.१) कमीश्नर अकेला नहीं होता है. उसके पास आयोजन करने वाली, निर्माण पर निगरानी रखनेवाली, रखरखाव और अतिक्रमण करनेवाले पर कार्यवाही करने के लिये पूरी टीम होती है. यह बात सही है कि कमीश्नर ये सभी कार्य स्वयं नहीं कर सकता. किन्तु उसका कर्तव्य है कि वह अपनी टीमों के कर्मचारी/अफसरोंका उत्तरदाइत्व सुनिश्चिते करें.

यदि कोई जनप्रतिनिधिने उसके पर दबाव लाया है तो वह उसका नाम घोषित करे. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग करें और ऐसे जन प्रतिनिधियों को प्रकाशमें लावें. वैसे तो इन अधिकारीयोंका मंडल भी होता है. वे अपने हक्कोंके  लिये लडते भी है. किन्तु उनको स्वयंके सेवा धर्मके लिये भी लडना चाहिये. जो नीतिमान आई.ए.एस अधिकारी है वह अवश्य लड सकता है. यदि उसको अपने तबादलेका भय है तो वह न्यायालयमें जा सकता है. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग न्यायालयके सामने रख सकता है.

(३) लेकिन ये आई.ए.एस अधिकारीगण ऐसा नहीं करेंगे. क्यों कि उनकी जनप्रतिनिधियोंके साथ, अपने कर्मचारीयोंके साथ, कोन्ट्राक्टरोंके साथ और बील्डरोंके साथ मिलीभगत होती है. जिनके साथ ऐसा नहीं होता है वे लोग ही दंडित होते है.

(३.१) बेज़मेंटमें कानूनी हिसाबसे आप गोडाउन नहीं बना सकते. यह प्रावधान “फायर प्रीवेन्शन एक्ट के अंतर्गत है. ऐसे गोडाउनमें आग भी लगी है और नगरपालिकाके अग्निशामक दलने ऐसी आगोंका शमन ही किया है. लेकिन ऐसे गोडाऊन आग लगनेके बाद भी चालु रहे है. बेज़मेन्टमें कभी दुकाने नहीं हो सकती. क्यों कि दुकानमें भी सामान होता है. उसके उपर भी “फायर प्रीवेन्शन एक्ट लागु पड सकता है. लेकिन नगर पालिका के मुखीया (कमीश्नर)की तबीयत नहीं गुदगुदाती कि वे ऐसी दुकानों पर कार्यवाही करें.

(३.२) अनधिकृत निर्माण, कर्मचारी/अफसरोंकी लापरवाही, भ्रष्टता, न्यायालयके हुकमोंका अनादर, न्यायालयमें नगरपालिकाकी तरफसे केवीएट दाखिल करने की मनोवृत्तिका अभाव, न्यायालयके हूकमोंमें क्षतियां आदि विषयके समर्थनमें के कई मिसाले हैं कि जिनमें सरकारी (न्यायालय सहित) अधिकारीयोंकी जिम्मेवारी बन सकती है और वे दंडके काबिल होते है.

(३.३) अब यह दुराचार इतना व्यापक है कि न्यायालयमें केस दाखिल नहीं हो सकता. लेकिन विद्यमान सरकारी अफसरों (केवल कमीश्नरों) पर कार्यवाही हो सकती है. इन लोगोंको सर्व प्रथम निलंबित किया जाय, और आरामसे उनके उपर कार्यवाही चलती रहे.

(४) कमीश्नर फुलप्रुफ शासन प्रणाली बनवाने के काबिल है. यदि आप उनके लिये बनाये गये गोपनीय रीपोर्टकी फॉर्मेटके प्रावधानोंको पढें, तो उनकी जिम्मेवारी फिक्स हो सकती है. उनके लिये यह अनिवार्य है कि वे नीतिमान हो, उनकी नीतिमत्ता शंकासे बाहर हो, वे आर्षदृष्टा हो, वे स्थितप्रज्ञ हो, कार्यकुशल हो, कठिन समयमें अपनी कुशलता दिखानेके काबिल हो, सहयोग करने वाले हो, उनके पास कुशल संवादशीलता हो, आदि …

(५) एफ.एस.आई. कम कर देना चाहिये.

(५.१) आज अहमदाबदमें एफ.एस.आई १.८ है. भावनगरके महाराजाके कार्यकालमें भावनगरमें एफ.एस.आई. ०.३ के करीब था. मतलब की आपके पास ३०० चोरस मीटरका प्लॉट है तो आप १०० चोरस मीटरमें ही मकानका निर्माण कर सकते है. उस समय भावनगर एक अति सुंदर नगर था. हर तरफ हरियाली थी. आप जैसे ही “वरतेज” में प्रवेश करते थे वैसे ही आपको थंडी हवाका अहेसास होता था.

(५.२) नहेरुवीयन कोंग्रेसने एफ.एस.आई. बढा दिया. १९७८के बाद भावनगरका विनीपात हो गया. आज वह भी न सुधर सकनेवाला नगर हो गया है. भारतके हर नगरका ऐसा ही हाल है.  

(६) ऐतिहासिक धरोहरवाले मकानोंको छोडके, अन्य विस्तारोंका री-डेवलपमेन्ट (नवसंरचना) कराया जाय. इस प्रकारकी नव संरचनाके के नीतिनियम और प्रक्रिया इसी ब्लोग-साईट पर अन्यत्र विस्तारसे विवरण दिया है.

(७) आई.ए.एस. अधिकारीयों की नियुक्ति बंद कर देना चाहिये. क्यों कि इनमें ९९.९ अधिकारी अकुशल और भ्रष्ट है. इनकी नियुक्तिमें गोलमाल होती है. कैसी गोलमाल होती है उसके बारेमें प्रत्यक्ष और परोक्ष अनेक सबूत है. हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे.

(८) कमीश्नरोंकी नियुक्ति ५ सालके कोन्ट्राक्ट पर होनी चाहिये. उनकी नियुक्तिके पूर्व और कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात उनकी संपत्तिकी जांच होनी चाहिये.

(९) स्मार्ट सीटीकी परिभाषा निम्न कक्षाकी है. यह परिभाषा व्यापक होना चाहिये. “यदि गुन्हा किया तो १०० प्रतिशत पकडा गया और दंड होगा ही” ऐसा सीस्टम होना चाहिये. और यह बात  असंभव नहीं है.

 “नगर रचना कैसी होनी चाहिये” इसके बारेमें यदि किसीको शिख लेनी है तो वह “गोदरेज गार्डन सीटी, जगतपुर, अहमदाबाद-३८२४७०”की मुलाकात लें.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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RURBAN CLUSTER ALIAS A SMART COMPLEX. A CLUSTER WITH SELF RELIANCE

स्वावलंबी संकुल

रोटी, कपडा और मकान ये प्राथमिक आवश्यकताएं है. प्रत्येक पक्ष यह आश्वासन देता है कि उसने इनके बारेमें कई कदम उठाये हैं और उसके पास भविष्यकी भी योजनाएं हैं और उसका आयोजन भी है.

शासन द्वारा जो भूमि अधिग्रहण होता था और होता है ऐसा लगता है जो निम्न लिखित प्रकारका है.

       शासन द्वारा जो ग्राम आयोजन (टाउन प्लानींग), होता है, उसमें गरीबों (पछात वर्गों) के लिये आयोजित, भूमिखंडोंमेंसे कुछ भूमिखंड आरक्षित करना होता है और उसको निम्न मूल्यसे उन पछात वर्गोंमें आबंटित किया जाता है. 

       गरीबोंको आवासके लिये भूमिके खंड दिया जाता है. जैसे कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने गुजरातमें और देशमें चूनावके समय प्रण लिया था कि यदि उसका पक्ष सत्तामें आया तो १०० चोरस मीटरके भूमिके टूकडोंका आबंटन गरीबंको निम्नतम मूल्य पर करेगा.

       शासन, गरीबोंकी झोंपडपट्टी यदि अनधिकृत नहीं है तो उसी जगह पर उसको ईंदिराआवास योजना अंतर्गत उसको धन देता है. यदि झोंपड पटी अनअधिकृत है तो उसको अधिकृत किया जाता है और वहां ही आवास योजना बनाई जाती है और उपरोक्त पछात जनसमुदायके लिये सस्ते मूल्यवाले खंडीय आवास (रेसीडेन्सीयल अपार्टमेन्ट्स), दो या तीन स्तर वाले (दो या तीन स्टोरीड क्लस्टर बील्डींग ब्लॉक) बनाया जाता हैं. उसमें आवास निर्माण कर्ताको कुछ दुकानें बनानेकी अनुमति दी जाती ताकि वह निर्माण कर्ता संविदाकारको धनलाभ मिलें.

       शासनकी अनुमतिसे, जर्जरित आवासोंका और जर्जरित भवनोंका संनिर्माण (रीडेवलपमेन्ट) करते हैं. निर्माणकर्ता संविदाकारको, भूमि और निर्माण अनुपातमें (एफ एस आई में) कुछ शिथिलीकरण होता है ताकी संविदाकार निर्माण कर्ताको लाभ पहोंचा सकें.

ठग विद्याः

ये सर्व वास्तविक समस्याका निराकरण है ही नहीं. यह तो एक ठगविद्या है.

इस ठगविद्यामें प्रचूर मात्राका अनाचार और भ्रष्टाचार होता है उतना ही नहीं ये नवसंरचना की अनुमति आयोजनके लिये असुनियोजित और अयोग्य रीतिसे धनलाभके लिये सुनियोजित बने ऐसी क्षतिपूर्ण लेख बनने दिये जाते है. इसमें जनप्रतिनिधिगण, नगरपालिका आयुक्त से लेकर कर्मचारीगण, प्रतिलिप्याधिकारी (रजिस्ट्रार) और निर्माणकर्ता भी संमिलित होता है. इतना ही नहीं नगरपालिकाके नवसंरचना के नियम क्षतियुक्त होनेसे और इसके अतिरिक्त भी अन्य समस्याएं भी पैदा होती हैं. मुंबई महानगर पालिका इसका उत्कृष्ठ उदाहरण है.

 हम ऐसी समस्याओंकी चर्चा यहां पर नहीं करेंगे. हम केवल नवनिर्माण अर्थात स्वावलंबी संकुल की ही चर्चा करेंगे.

स्मार्ट सीटी और स्मार्ट ग्राम सर्वाधिक सुगमतासे, और लघुतम मूल्यसे कैसे निर्माण किया जा सकता है और यह कैसे हो सकता है उसकी चर्चा करेंगे.

आवासोंका वर्गीकरणः

       भिक्षुकः घर नहीं है, बेकार है, पैसे नहीं है, निराश्रित है, जिसके नागरिकत्वके बारेंमें जानकारी नही है, उसको सिर्फ सोनेकी और नित्यकर्मकी सुविधा मूफ्तमें दी जायेगी.

अस्थायी आवास

       निर्माण कर्ताको निर्माणके कार्यमें श्रम नियम के अनुसार श्रमजिवीयोंको अस्थायी रुपसे नियोजित करना पडता है. और इन श्रमजिवीयोंको आवास देना अनिवार्य ह्ता हैकिन्तु निर्माण कर्ता संविदाकार और श्रम आयुक्त कार्यालयकी संमिलित भ्रष्टाचार के कारण श्रमजिवीयोंको नियम अनुसार आवास और सुविधाएं मिलती नहीं है. शासनके लिये यह अनिवार्य बनना आवश्यक है कि इन श्रमजिवीयोंको इन नवसंरचना द्वारा निर्मित संकुलमें सुनिश्चित आवास दिया जाय.  निर्माण के लिये अनियतकालके लिये रख्खे गये इन श्रमजिवीयोंके लिये निवास जिसका भाट (किराया, रेन्ट), संविदकको (कोन्ट्राक्टरको) कार्यसूचनाके (वर्क ओर्डरके) अनुसारके समयके लिये देना पडेगा. सर्वथा एक मासका पूर्व ही देना पडेगा.

       स्थायी निवासः जिन्होने अपना जर्जरित स्वकीय या भाटीय, (रेन्टल, किरायेका), या अनधिकृत, निवास खाली किया हो, या जिनको स्वेच्छासे क्रयण (परचेझ) करना हो, उनको यहां पर कोष्ठ या कोष्ठसमूह, विक्रयमें, उनकी मूल्य देनेकी क्षमताके अनुसार दिया जायेगा. यदि वे इच्छे तो क्रयण (परचेझ) से आवासको क्रयण (परचेझ) करें, या वे चाहे तो क्रयण तो भाटीय रुपसे (किरायाके अनुसार) सुनिश्चित नियमोंके आधार पर आवास ग्रहण करेंगे.

       व्यवसायी कोष्ठ या कोष्ठ समूहः जिनको कलाकारीगीरीके उत्पादन एवं विक्रय,  गृह उद्योग और उन उत्पादनों कि विक्रय, सूचित यंत्र और उनकी अनुरक्षण (रीपेर एवं मेन्टेनन्स), वाणीज्य व्यवसाय, शासन सेवाएं, परामर्श, संस्था कार्यालय, शिक्षण संस्थाएं, अनुरक्षण सेवाएं आदिके के लिये स्थल चाहिये, तो उनको वर्गीकृत उपयोगके आधारपर सुनिश्चितरुपसे बनाये नियमो द्वारा पूर्वनियोजित और आरक्षित कोष्ठ और कोष्ठसमूह, दिया जायेगा.

       पशुपालन कोष्ठ और कोष्ठ समूहः जो लोग पशुपालन करना चाहते हैं वे आवास एवं पशु पालन के लिये पास पास वाले कोष्ठ में कर सकते है. जिनके लिये भूमिगत कोष्ठ या कोष्ठ समूह उपलब्ध कराया जायेगा.

       जिनके गृहउद्योगसे ध्वनि प्रदूषण होता हो उनको भी भूमिगत कोष्ठ या कोष्ठ समूह उपलब्ध कराया जायेगा. उनके लिये पासवाले कोष्ठ, कोष्ठ समूह निवासके लिये यदि शक्य है तो उपलब्ध कराया जायेगा.

कोष्ठ क्या होता है?

कोष्ठ, अनेक स्तरीय (मल्टीस्टोरीड) बहुलक्षी हेतुवाला एक प्रचंड संकुलका एकम होता है.

प्रकोष्ठ

कोष्ठ,  पांच मीटर लंबा और पांच मीटर चौडा खुल्ला खंड होता है. उसको दिवारें नहीं होती है. कोष्ठोंको भीन्न भीन्न प्रकारसे संमिलन करनेसे (समुच्चयसे) हम भीन्न भीन्न विस्तारके आवास और स्थल जैसे कि, निवास, अस्थायी लोगोंके आवास, कार्यालय, गृह उद्योग, शाळाएं, गौशाळा, वाहन पार्कींग, दुकान मॉल, सभा खंड आदि बना सकते हैं.

एक प्रकोष्ठ कैसा होता है, यह निम्न आकृतिमें प्रदर्शित किया है. पडौसी के साथ जो समान भित्ति (दिवार) है वह ही केवल भौतिक रुपसे दी जाती है. अन्य सभी भित्ति जैसे कि बाह्य और आंतरिक मार्ग के समान्तर भित्ति के स्थान पर  शक्तिशाली निष्कलंक इस्पातकी (पोलादकी) जाली जो स्तंभ निर्माणसे संलग्न है. यदि निवासी इच्छे तो स्वयंके कोष्ठके अंदर एक अधिक भित्ति बना सकता है. लेकिन इस जाली को निष्कासित नहीं कर सकता. यह भित्ति उसके स्वामित्वकी सीमा है.

ग्रामकी एक संकुलके स्वरुपमें नवसंरचना क्यों?

भूमि बना नहीं सकतें किन्तु सुचारु रुपसे भूमिका उपयोग करनेसे भूमि प्राप्त की जा सकती है.

भूमि कैसे प्राप्त करें?

सर्वप्रथम एक ऐसा भूखंड प्राप्त  किया जाय, जो सरलतासे उपलब्ध हो, ताकि किसीको स्थानांतरका कष्ट हो.

हमें ५०० मिटर लंबा और ५०० मिटर चौडा या संरचनाके अनुरुप एक भू खंड उपलब्ध करना पडेगा. यह भूखंड खुल्ला मैदान हो, असाध्य भूमि हो, असमतल भूमि हो या सुलभ हो और ग्राम या सुचित नवसंरचना से संबंधित जनसमुदायसे समिप हो.

इस भूमिखंडके उपर हम एक ग्राम संकुल बनायेंगे जिसमें 

एक ग्राम एक नगरका भौगोलिक विस्तार जो नवसंरचना के लिये सुचित है. १००० से लेकर ५००० और १०००० तककी जनसंख्या वाले भौगोलिक विस्तारके जनसमुदायको नवसंरचित संकुलमें स्थानांतरित कर सकते है. एक शहरका भौगोलिक विस्तार जिसकी जनसंख्या १००० से १०००० है उसको एक संकुलमें परिवरित कर सकते हैं.

उपरोक्त भौगोलिक विस्तारके एतत कालिन निवासीयोंको और व्यवसायीयोंको नवरचित प्रकोष्ठ प्रकोष्ठ समूह को आबंटित करनेके नियम बनाये जायेंगे.

शासन प्रत्येक कुटुम्ब और व्यवसायीको प्रकोष्ठ (खंड) या प्रकोष्ठसमूह देगा, जो जर्जरित या लघुस्तरीय मकान, या झोंपड पट्टी अनाधिकृत भूमिका उपयोग कर रहे है

संपूर्ण स्वावलंबन इस ईन्टरनेटके युगमें शक्य नहीं है. किन्तु ७५ से ८० प्रतिशत स्वावलंबन शक्य है.

कौनसी वस्तुएं उपभोग्य वस्तुओंका समावेश किया जा शकता है?

उत्पादनः सब्जी, अन्न (आंशिक), फल (आंशिक), खाद्य तेल, अखाद्य तेल, मध, पुष्प, वस्त्र, दूध, दूधका अन्य उत्पादन, गेस, उर्जा (आंशिक), पशु, खाद, लकडी, चर्म (आंशिक)… किन्तु अधिक स्वावलंबनता प्रयोजनेके लिये स्वावलंबन वर्तुल उसके आसपासके विस्तारको संमिलित करके भूमिजन्य उत्पादनोंकी दिशामें प्रगति कर शकते हैं. (अनुसंधान “मेरे स्वप्नका भारत” लेखक महात्मा गांधीका वाचन किया जाय).

शिक्षणः शिशुविहार, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, यंत्र (घरेलु, कृषि, वाहन, उर्जा) कौशल्य, हस्तकौशल्य, व्यायाम, योग, खेल, कला, उत्पादन, विक्री, संचालन, अनुरक्षण, स्वच्छता, कौशल्य, संचय, सुरक्षा,

उद्योग, व्यवसाय और सेवाः गृह उद्योग, कृषि, कृषि उद्योग, कृषि आधारित उद्योग, कलाकौशल्यसंचय, पशुपालन, अप्रणालिगत उर्जा उद्योग, अनुरक्षण, विक्री, सरकारी सेवाएं एवं सुरक्षा (न्याय, जनगणना, चूनाव, माहिति संचय और प्रदान, रेकर्ड अनुरक्षण और सुधार, शासन और अनुशासन, प्राथमिक आरोग्य, चिकित्सालय, ऋग्णालय, स्वच्छता, करसंचय, सुरक्षा), शिक्षा, वाहनव्यवहार, जलपुनचक्रण, वर्षा जल संचय, जल शुद्धिकरण, कूडा प्रबंधन, परामर्श,

ग्रामसंकुल संरचना और सुवीधाओंका प्रबंधन कैसे किया जायेगा?

     प्रेत्येक कुटुंबको एक प्रकोष्ठ या प्रकोष्ठ समूह उनकी क्षमताके आधार पर मिलेगा,

     हरेक निवासमेंसे आकाश दिखायी देगा, उसमें हवा और प्रकाश रहेगा,

     हरेक निवासमें पानीकी सुविधा होगी,

     हरेक निवासमें गोबरगेस उर्जा या प्राकृतिक गेस की सुविधा उपलब्ध होगी,

     हरेक निवासमें विद्युत होगी चाहे वह परंपरागत स्रोतसे हो या परंपरागत स्रोत से हो.

     हरेक निवासमें पौधे लगानेकी सुविधा होगी,

     हरेक निवासमें पानीकी निष्कासन व्यवस्था (ड्रेईन) होगी,

     हरेक निवास अनधिकृत विस्तरणसे मूक्त रहे और अनधिकृत जगह पर अतिक्रमण कर सके ऐसी उसकी रचना की जायेगी. कोई भी उपयोग कर्ता कूडा कचरा या गंदगी करे और कर सकें वैसी परिस्थिति और रचना की जायेगी.

     प्रकोष्ठ समूह यानी कि संकुलकी आकृति ऐसी रहेगी कि सभी उपयोग कर्ताओंको अन्योन्य सहायता और सामाजिक जीवनकी अनुभूति मिल सके.

१०    हरेक आंतरिक मार्ग (पेसेज, लोबी) पर सीसी टीवी केमेरा लगे होगे, जिससे नियमोंका भंग करनेवालोंका, जैसे कि आतंरिक मार्ग पर अतिक्रमण करना, कूडा फैंकना, लडना, मारना आदि दुष्कृत्योंपर दोषीको दंडित किया जा सके.

११    संकुलमें प्रवेश हमेशा विजाणुं अभिज्ञानपत्र (इलेक्ट्रोनिक आईडेन्टीटी कार्ड) या निर्देशिका अंगुलीके अभिज्ञानके आधार पर होगी. संकुलके आगंतुक प्रवासीको उसके अभिज्ञान पत्रके आधारपर प्रवेश मिलेगा. हरेक आवास, दुकान आतंरिक मार्ग आदिका यातायात सीसीटीवी केमेरासे चित्रांकित भी रहेगा और आगंतुक प्रवासीका आगमन और निष्कास सुरक्षा कक्षमें लेखांकित भी रहेगा.

१२    हरेक विक्रेताकी दुकान या व्यवसायीका उद्यमस्थलके उपर सुनिश्चित कदकी तख्ती रहेगी उसके उपर उस स्थानके स्वामी (ओनर)का नाम, पत्रव्यवहारका पता और उसकी संचार प्रौद्योगिकाका (वेब् साईटका) नाम लिखा रहेगा. संकुलके हर व्यवसायिक स्थानका, सेवाका, कार्यालयका, एक संचार प्रौद्योगिकाका (वेब् साईटका) होना अनिवार्य होगा. उस संचार प्रौद्योगिका (वेब् साईटका)में क्या क्या माहिति होना अनिवार्य है उसके नियम शासन बनायेगा. ताकि हर व्यवसाय और सेवाएं पारदर्शी रहे.

१३    संकुलके बाह्य स्थल पर जनसाधारण यातायातका स्थानक (बस स्टेन्ड) होगा, जहांसे संकुलके निवासी, समीपके बडे स्थानक पर जा सकेंगे.

१४    संकुलके उपर और संकुलके बाह्य स्थंभो पर, सौर उर्जाको ग्रहण करने के लिये सूर्यकोषकी सौर सरणीयां (सोलर पेनल) लगेंगी.

१५    संकुलमें वर्षाका पानी संचय करनेकी सुविधा रहेगी

१६    संकुलमें निष्कासित जल का जलपुनचक्रण करनेकी और कूडा(वेस्ट), गोबर (एनीमल डन्ग), प्राणीज अपव्यय आदिमेंसे खाद बनानेके संयंत्र होगे. पुनश्चक्रणका काम (रीसायकलींगका कामया तो शासन के अंतर्गत होगा या तो निजी संस्थाके अंतर्गत रहेगा. यदि निजी संस्था यह काम करेगी तो इसके उपर शासनका निरीक्षण रहेगा

१७    संकुलमें दो शासनाधिकारीके कार्यालय होगेः

एक कार्यालय संकुलसे संलग्न प्रत्येक आलेखोंखको लेखांकित रखना, जैसे कि, प्रकोष्ठोंका आबंटन, प्रकोष्ठोंका  हस्तांतरण, प्रकोष्ठोंका आदानप्रदान, उनके संलग्न अनुमति पत्र देना, निवासीयोंका विवरण, संकुल प्रवेशकी अनुमति, सुरक्षा, मतदाता सूची बनाना और उसको अद्यतन रखना, निवासीयोंकी सभा करना, सभाका संचालन करना, चूनावके समय पर हरेक प्रत्याशीको एक मंचपर लाके व्याख्यान करवाना, मत गणना करना, सुरक्षा नियमोंके पालनमें क्षति करने वालोंको, नाधिकारितासे स्थानका उपयोग रनेवालोंको … आदि अपराधीयोंको दंडित करना, कर (टेक्ष), और भाट(रेन्ट) के व्यतिक्रमीको (डीफॉल्टरको), दोषीयोंको निष्कासित करना और को भिक्षुक आवासमें भेज देना या तो निम्न स्तरीय आवास में स्थानांतर करवाना,  आदिके लिये उत्तरदायी होगा.

१८    द्वितीय अधिकारीका कार्यालयः करप्राप्ति (टेक्ष कलेक्सन), दंडप्राप्ति, भाट प्राप्ति [(रेन्ट कलेक्सन) [यदि शासनने भाट (रेन्ट) पर दिया है तो], संकुलका अनुरक्षण (मेन्टेनन्स), संकुलके यंत्रोपर अवलोकन और अनुरक्षण, स्वच्छता, आदि संमिलित होगा और इन सबके लिये उत्तरदेय होगा.

एक नवसंरचित संकुलका विवरणः कोष्ठ, संकुलका एकम है. इसके समुच्चयसे आवास, उद्योग, सेवा, आतंरिक यातायात पथ ( कोमन पेसेजआदि नते हैं.

 आवास एवं व्यवसाय ग्राम संकुल

यह संकुलका आकर भूखंडके आधारपर सुनिश्चित किया जा सकता है.

संरचनाके आकार

भीन्न भीन्न आकार वाले ये संरचना निर्माण का एक चौरस एक प्रकोष्ठ दर्शाता नहीं है. ये केवल आकार ही है और परिमाण के अनुरुप और प्रकोष्ठकी क्रमसंख्यासे भी अनुरुप नहीं है.जो भूखंड उपलब्ध है उसके अनुरुप संरचनाका आकार निश्चित किया जा सकता है.

संरचना निर्माण के घटक कौन कौन होते है?

संरचनाके घटक पूर्व निर्मित स्थंभ (कोलम, पीलर), और फलककी ईकाईयां है. ये सब वज्रचूर्ण (सीमेन्ट) और इस्पात सलाखाओंके सुभग संमिलित रचना करनेसे (आरसीसी वर्कसे) निर्मित होती है.

पूर्व निर्मित इकाईयां 

मुख्य ध्येय को ध्यानमें रखते हुए हम अनेक आकृतिके ग्राम संकुल बना सकते है. इस ग्राम संकुलोंसे यातायातकी समस्याका पर्याप्त सीमा तक समाधान हो जयेगा. झोंपड पट्टी, अतिक्रमण, घुसखोरी, अराजकता, चोरी, डकैती, आदिकी समस्यांएं नष्ट हो जायेगी. सुरक्षा क्षतिहीन हो जायेगी, जनगणना अद्यतन अवस्थामें रहेगी. मिल्कतके दुराचार और भ्रष्टाचार एवं उसके कारण कालाधनका निर्माण आदि समस्याएं नष्ट हो जायेगी. चूनाव प्रचार, उसमें होनेवाली धांधलीका निर्मूलन, मतगणना, आदि सब सरल बनेगा. चूनाव खर्च शून्यके बराबर किया जा सकता है. क्यों कि निर्वाचन अधिकारी व्याख्यान मंच उपलब्ध करायेगा.

यह स्मार्ट ग्राम की नवसंरचना की रुपरेखा है और महात्मा गांधीके स्वप्नके भारतके अनुरुप है. इसमें स्ववलंबन भी है और एवं आधुनिक भी है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः ग्राम, भौगोलिक विस्तार, स्वावलंबन, नबसंरचना, निर्माण, संविदक, श्रम नियम, आवास, बहुस्तरीय, निर्माण, फलक, पूर्वनिर्मित, इकाईयां, घटक स्तंभ, वज्रचूर्ण, डंड, संकुल, व्यवसाय, सेवा, शासक, कार्यालय, संस्था, गृह उद्योग, कौशल्य, प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक, शिक्षण, विद्यालय, दुकान, सुरक्षा, अनुरक्षण, अभिज्ञान पत्र, सीसी टीवी केमेरा, संचार प्रौद्योगिका, वेब साईट, सोर उर्जा, सौर सारणी, सोलर पेनल, जल संचय, पुनश्चक्रण, खाद, संयंत्र, आबंटन, भाट, रेन्ट, व्यतिक्रमी, डीफॉल्टर,    

 

 

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नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है? – 3

सूचना आयोग सुधारः (रेफोर्मस इन पब्लिक इन्फोर्मशन)

हालमें सूचना आयोगके चार स्तर है.

() मुख्य सूचना आयुक्त () सूचना आयुक्त () सूचना अधिकारी ()सहायक सूचना अधिकारी,

केन्द्र सरकार संचालित या उसकी अनुसूचित संस्थाएं और राज्य सरकार संचालित या उसकी अनुसूचित संस्थाएं जिनको सरकारसे लोक कोषमेंसे वेतन, दान, अनुदान मिलता हो या सरकारी कर, उपकर, शुल्क में मुक्ति, शिथिलीकरण, राहत, मिलती हो ऐसी संस्थाएं आती है. इन संस्थाओंका मुख्य अधिकारी सूचना अधिकारी होता है. और उसी संस्थाका एक नियुक्त अधिकारी सहायक सूचना अधिकारी होता है.

सहायक सूचना अधिकारी

सहायक सूचना अधिकारी, जनतासे सूचना अनुरोध प्राप्त करता है.

यह अधिकारी, अपनी संस्थाके समुचित अधिकारीसे एक मासकी अवधि अंतर्गत सूचना उपलब्ध करके अनुरोधकको देता है. सूचनाके नीचे वह अपेलेट प्राधिकारी का नाम और पता और अपीलकी समयावधि अनुसूचित करता है.

यदि सूचना अनुरोधकको इसमें कोई क्षति है ऐसा लगता है तो वह अपेलेट प्राधिकारी को अपील कर सकता है. इस प्रकार (), () और (), क्रमानुसार अपेलेट प्राधिकारी है.

प्राधिकारी () और (), संस्थाके खुदके अधिकारी होते है. और संस्था को ही वे जिम्मेवार होते है. उनका वेतन भी संस्था ही करती है. और ये अधिकारी संस्थाके हितमें (संस्थाके अधिकारीयोंकी क्षतियोंको छिपाने का) काम करते दिखाई देते हैं.

जनताका सूचना अनुरोधकके बारेमें अनुभव कैसा है?

सूचना आयुक्त अपनेको हमेशा, और सूचना अधिकारी अपनेको कभी कभी, जैसे वे खुद न्यायालय चला रहे हो.

सूचना अधिकारी और सूचना आयुक्त सुनवाई प्रक्रिया चलाते हैं. सूचना अनुरोध पत्र सरल होता है. और उसका उत्तर भी सरल होना चाहिये. किन्तु सूचना प्रदान करने वाली संस्था और समुचित अधिकारी हमेशा सूचना छिपानेकी कोशिस करता है. असंबद्ध सूचना देता है या तो टीक शके ऐसे आधरपर अनुरोधित सूचना नकार देता है या अनुरोधित सूचना सतर्कता अधिकारीके अन्वेषण के अंतर्गत है, ऐसा उत्तर दे के उसको टाल देता है. अगर आप सूचना अनुरोधक है और अगर आप मिली हुई सूचनासे  संतुष्ट नहीं है और अगर आपको सूचना आयुक्त के स्तर पर जाना पडा तो आपको एक साल लग सकता है.

सूचना अधिकारीयोंके पास स्वतंत्र कर्मचारी गण या कार्यालय नहीं है

सिर्फ सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त के पास ही अपना कर्मचारीगण और कार्यालय होता है. बाकी के सब सूचना अधिकारी, उनका कर्मचारी गण और कार्यालय अपने अपने अंतर्गत संस्थाओंका खुदका होता है.

जहां कहां भी अगर कोई अनियमितता, नियमका उल्लंघन, अनादर, कपट आदिका आचरण हुआ है ऐसी आपको शंका है और अगर आपने सूचना अधिकारके अधिनियम के अंतर्गत अनुरोध पत्र दिया तो समझ लो कि आपको सूचना आयुक्त तक जाना ही पडेगा. अगर आप पूर्ण समय के लिये इस कामके लिये प्रबद्ध है तभी आप अंत तक मुकद्दमाबजी करनी पडेगी.

सूचना आयोगका पूनर्गठन क्यों?

हालमें सहायक सूचना अधिकारी और सूचना अधिकारी, संस्थासे संलग्न होते है. वे संस्थाको समर्पित होते है और उसके उपर संस्थाके उच्च अधिकारी के लिखित अलिखित आदेशोंका पालन करना पडता है.

कामकी निविदा (टेन्डर नोटीस), निविदा दस्तावेज (टेन्डर डोक्युमेन्ट), मूल्यांकन (इवेल्युएशन), संविदा (कोन्ट्राक्ट), में कहीं कहीं क्षति रक्खी जाती है ता कि, निवेदक के साथ सौदाबाजी कि जा सके, या ईप्सित निवेदकको  अनुमोदन और स्विकृति दे सकें. याद करो युनीयन कार्बाईड के साथ कि गई संविदा. संविदा ही दूर्घटना के कारण पीडित लोंगोंको हुई हानि का प्रतिकर संपूर्ण क्षतियुक्त था. ऐसा संविदा दस्तावेज बनानेमें गैर कानुनी पैसे की हेराफेरी नकारी नहीं जा सकती. यह तो एक बडी घटना थी. लेकिन ऐसे कई काम होते है जिनमें संस्थाका उच्च अधिकारी अंतिम निर्णय लेता है. इसमें भी गैर कानुनी तरिकेसे पैसे की हेराफेरी होती है. और इस कारण जब सूचना अधिनियम के अंतर्गत आवेदन आता है तो संस्थागत अधिकारी हमेशा सच्चाईको छिपानेकी कोशिस करता है.

ऐसी ही परिस्थिति जनपरिवाद (पब्लीक कंप्लेइन्ट) पर कार्यवाही करनेमें होती है.

परिवाद (कंप्लेईन्ट) पत्रपर कार्यवाही करने वाला संस्थागत अधिकारी ही होता है. और वह अपने क्षतिकरने अधिकारी/कर्मचारीकी प्रतिरक्षा (डीफेन्ड) करनेका प्रयत्न करता है और समुचित कार्यवाही करता नहीं है. एक परिवाद आयोग की रचना आवश्यक है. यह परिवार आयोग संस्थाके सतर्कता अधिकारीसे उत्तर मांगेगा. और जिस प्रकार जन सूचना अभियोगके अंतरर्गत कार्यवाही होती है, वैसी ही कार्यवाही परिवादकके प्रार्थना पत्र पर होगी. जनपरिवादका काम लोकपाल / लोकायुक्त के कार्यक्षेत्रमें आता है.

परिवाद और सूचनाका संमिलन (मर्जर) क्यों

वास्तवमें देखा जाय तो हर एक माहिति/सूचना के अनुरोध आवेदन पत्र की पार्श्व भूमिमें एक प्रच्छन्न परिवाद होता है. लोकपाल और सूचना आयुक्त के अधिकारी, कर्मचारी (अधिकारी) को दंडित कर सकते है

इस प्रकार सूचना आयोगका नाम जन सूचना और जन परिवाद आयोग रहेगा या लोकपाल/लोकाअयुक्त रहेगा. इस आयोगका कुछभी नाम देदो. आवश्यकता के अनुसार अधिकारी संयूक्त कोई स्तर पर संमिलित या भिन्न भिन्न रहेंगें. हम अब इसको सूचना लोक योग कहेंगे.       

जन सूचना और जन परिवाद आयोग (सूचना परिवाद लोकायुक्त अयोग) एक संपूर्ण स्वतंत्र आयोग होना चाहिये.

सूचना लोकायुक्त अयोग अधिकारीसे लेकर मुख्य आयुक्त तक सभी अधिकारी गण, उनके कर्मचारी गण और उनके कार्यालय स्वतंत्र और अलग होना चाहिये.

सूचना लोकायुक्त अधिकार के अंतर्गत सभी अधिकारी गण और कर्मचारी गण को निरपेक्ष और अर्थपूर्ण बनानेके लिये प्रशिक्षण देना चाहिये.

सूचना अधिकारीका कार्यक्षेत्र और लोक आयोग का कार्यक्षेत्र हालमें विभाजित है. सूचना अधिकारीको संस्थासे अलग करके सूचना अधिकारका वह लोक आयोगका कार्य क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्रके आधारपर विभाजित होना चाहिये.

कोई भी संस्था जो सूचना अधिकार अधिनियम जो केन्द्र और राज्य सरकारके अंतर्गत क्षेत्रमें आती हैं, उसको अपना वेब साईट रखना पडेगा. उसमें सरकार द्वारा अपेक्षित विवरण रखना बाध्य रहेगा.  

सूचना अनुरोध और परिवाद आवेदन पत्र ग्रहण केन्द्रः

ग्राम सूचना अनुरोध परिवाद पत्र ग्रहण केन्द्रः (ग्राम पंचायतकी सीमा अंतर्गत स्थित केन्द्र) सहायक जन अधिकारीः

यह अधिकारी अपने भौगोलिक सीमाके अंतर्गत आनेवाले निवासीका (और अन्य क्षेत्रके निवासीका भी) सूचनाअनुरोध पत्र और परिवाद पत्र लेगा.

सरकारकी पारदर्शिकाके बारेमें जनताको उत्साहित करना आवश्यक है. इस प्रकारसे जनकोष (पब्लिक एकाऊन्ट)से प्रत्यक्ष या परोक्ष रीतिसे लाभान्वित संस्थाओं पर और सरकारी शासन पर सुचारु और व्यापक अनुश्रवण (मोनीटरींग) होना आवश्यक है.

जिस प्रकारसे मोबाईल के सीमकार्ड का वितरण के लिये ग्रहण केन्द्र निजी अभिकर्ताओंको (प्राईवेट एजन्सीयोंको) रखा जाता है उसी प्रकार सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र ग्रहण के लिये भी निजी अभिकर्ताओंको अनज्ञप्ति (लाईसेन्स) देना चाहिये.

अनुरोध व आवेदन पत्र

सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र विहित प्ररुप (प्रीस्क्राईब्ड फोर्मेट) में होंगे. यह विहित प्ररुप पत्र रू. /- की शुल्क पर इसी कार्यालय से मिलेगा. अगर चाहे तो सूचना अनुरोधक या परिवादक उसी विहित प्ररुपोंमें कद वाले पत्रमें लिखके या मुद्रित करके दे सकता है. सूचना अनुरोधकको अपने अभिज्ञान पत्र (आडेन्टीटी कार्ड) की अधिकृत प्रतिलिपि (सर्टीफाईड कोपी) और उसका क्रम और स्थायी (जहांका वह मतदाता है) पता देना पडेगा. यदि वह अपना अनुरोध पत्र गुप्त रखना चाहता है तो उसको यह शर्त लिखनी पडेगी.

सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र दोनोंका का विहित प्ररुप दो पृष्ठमें होगा. प्रथम पृष्ठ पर सूचना अनुरोधकका, समुचित संस्था का, और सहायक सूचना अधिकारी का विवरण होगा. द्वितीय पृष्ठपर अनुरोधित सूचनाका या परिवादका(कंप्लेईन्टका) विवरण होगा. दोनों पृष्ठपर हस्ताक्षर होगे. दूसरा पृष्ठ ही समुचित संस्थाको भेजा जायेगा.

प्रत्येक पत्र पर एक अनन्य क्रम संख्या लिखी जायेगी, जो दोनों पृष्ठोंको इस क्रम संख्यासे संमिलित होगी.   

सहायक अधिकारी इस पत्रको स्कॅन करके उसकी सोफ्ट प्रतिलिपि बनायेगा. और समुचित संस्थाके उच्च या अनुसूचित अधिकारी को प्रेषण पत्रके साथ ईमेल कर देगा. इसकी एक प्रतिलिपि आवेदकको मुद्रित करके और यदि उसका ईमेल पता है तो एक प्रतिलिपि उसको ईमेल करेगा.

आवेदक अपने पत्रके साथ  रू.१००/- फी, चेकसे या नकद से जमा करेगा. चेक से अगर फीस जमा कि है तो फीस जमा होने पर सहायक अधिकारी दूसरे ही कामके दिन पर उस आवेदन पत्र पर कार्यवाही करेगा.

पुरे भारतमें लोक सूचना आयुक्त के बेंक खाता इस प्रकार रहेंगे.

केन्द्र सरकार आयोग खाता

(राज्य का नाम) सरकार आयोग खाता.

यह राज्य और केन्द्रके आयोगोंकी बेंक खाता की सूचि हरेक अधिकारी के कार्यालयमें प्रमुख स्थान पर स्थायी प्रकारसे प्रदर्शित होगी.

सहायक अधिकारी, आवेदन पत्र को समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीको या सूचित अधिकारीको भेज देगा. आवेदन पत्र का रेकोर्ड रखेगा.

सूचना खर्च

संस्थासे सूचना प्रदान खर्चका मूल्य के विषय पर उत्तर मिलने पर, सहायक सूचना अधिकारी, सूचना अनुरोधकको १५ दिन के अंतर्गत खर्च रकम सूचना आयुक्त के खाता क्रम संख्यामें जमा करनेका निर्देश देगा. जब सूचना अनुरोधक सूचनाखर्च रकम जमा करेगा, तब सूचना अधिकारी संस्थाको सूचित करेगा. संस्था वह सूचना की सोफ्ट लिपि सहायक सूचना अधिकारीको भेजेगी. और सहायक सूचना अधिकारी उसको मूद्रित करके सूचना अनुरोधकको प्रेषित करेगा. यदि ईमेल पता है तो वह उसके उपर भी प्रेषित करेगा.

संस्था को जो परिवाद पत्र भेजा गया है उसका एक मासके अंदर उत्तर देगी. यदि परिवाद का किस्सा गंभीर अस्तव्यस्तताका या घोर असुविधाका है तो और इस प्रकार की प्रार्थना कि गई है तो सहायक अधिकारी इसको अपेलेट अधिकारीको प्रेषित करेगा और अपेलेट अधिकारी इसके उपर निर्णय करके उत्तरकी कालसीमा पर निर्णय करेगा और समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीको प्रेषित करेगा

अगर समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीने एक मासके अंतर्गत या सूचित काल सीमा के अंतर्गत उत्तर नहीं दिया या तो अधिक समयावधि मांगी तो यह बात वह आवेदकको सूचित करेगा. यह भी सूचित करेगा कि, अपेलेट प्राधिकारी कौन है और उसका पता क्या है.

यदि राज्य सरकारके अंतर्गत वह संस्था आती है तो प्रथम अपेलेट प्राधिकारी तेहसिल (या झॉन) विस्तारका सूचना परिवाद सहायक लोक आयुक्त होगा.

यदि केन्द्र सरकारके अंतर्गत वह संस्था आती है तो प्रथम अपेलेट प्राधिकारी जिला विस्तारका सहायक आयुक्त होगा.

बुथ समूह या वॉर्ड सूचना परिवाद सहायक अधिकारीः जहां ग्राम पंचायत नहीं होती है, किन्तु नगर पालिका या वॉर्ड होते है, वहां पर यह कार्यभार के आधार पर बुथ समूह विस्तार में यह अधिकारी होगा. वह ग्राम के सहायक अधिकारी के समान कार्य करेगा.

सूचना व परिवाद आयोग (राज्य)

तहेसिल या झॉनः  (राज्य) सूचना लोक सहायक लोक आयुक्त. यह अधिकारी राज्य सरकार के कार्यक्षेत्रमें आती समुचित संस्थासे संलग्न सूचना परिवाद के आवेदकोंके प्रथम अपेलेट प्राधिकारी है.

जिला विस्तारः  (राज्य) सूचना परिवाद लोक आयुक्तः लिये द्वितीय अपेलेट प्राधिकारी है.

राज्य विस्तारः (राज्य) सूचना परिवाद आयुक्त. यदि (राज्य) सहायक सूचना परिवाद लोकायुक्त  निर्णय पर आवेदक असंतुष्ट है तो वह राज्यके सूचना परिवाद आयुक्त के पास अंतिम अपील करेगा.

उसके बाद भी असंतूष्ट है तो उच्च न्यायलयमें जायेगा.

केन्द्रीय विस्तारः केन्द्रीय सूचना व परिवाद आयोगः

जिला विस्तारः (केन्द्र) सूचना परिवाद सहायक लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें प्रथम अपेलेट प्राधिकारी.

राज्य विस्तारः (केन्द्र) सूचना परिवाद लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें द्वितीय अपेलेट प्राधिकारी.

राष्ट्र विस्तारः (केन्द्र) सूचना परिवाद मुख्य लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें अन्तिम अपेलेट प्राधिकारी.

इनके निर्णयसे यदि आप असंतुष्ट है तो सर्वोच्च अदालतमें जाना होगा.

यह एक रुपरेखा मात्र है. इसको कानुनी भाषामें विधेयक प्रारुपमें शब्द बद्ध करना है और कार्य प्रणालीका विस्तारसे विवरण करना आवश्यक है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः सूचना, अनुरोध, सहायक अधिकारी, आयुक्त, आयोग, ग्राम, बुथ समूह, तेहसिल, वॉर्ड, झॉन, जिल्ला, राज्य, राष्ट्र, समयावधि, न्यायालय, उच्च सर्वोच्च, मुख्य,  कामकी निविदा, टेन्डर नोटीस,   संविदा, कोन्ट्राक्ट, जन परिवाद, पब्लीक कंप्लेइन्ट, प्रतिरक्षा, डीफेन्ड, संमिलन, मर्जर, पारदर्शिता, प्रतिलिपि, अपेलेट, प्राधिकारी

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What is expected by the people of India from Narendra Modi

नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है?

चूनाव आयोग सुधारः (रीफोर्म्स)

कार्यक्षेत्र और भौगोलिक विस्तार

चूनाव आयोग, भूमि और आवास सहयोग विभाग, जनगणना आयोग, स्थावर संपत्ति पंजीकरण (रजीष्ट्रार ओफ को ओपरेटीव सोसाईटीझ, लेन्ड रेकोर्ड), इन सभी कार्यक्षेत्रोंको चूनाव आयोगमें संमिलित किया जायेगा.

इसका नाम रहेगा चूनाव और स्थावर संपत्ति सहयोग आयोग

कृषि सहकारी संस्थाएं और गृह निर्माण सहकारी संस्थाएं, हालमें तो सहयोग संस्था पंजीकर्ता (रजीस्ट्रार ओफ को ओपरेटीव्झ सोसाईटीझ) के कार्य क्षेत्रमें है. न्यायालयके उपर भी जो भार रहेता है इसमें इसके संलग्न किस्से ही ज्यादातर होते है.

चूनाव इन सहयोगी संस्थाओमें भी होते है. सहयोगी संस्था कृषि, और सहयोगी संस्था गृह निर्माणअनुरक्षणमें, कपट (फ्रॉड), अनीति, और अनियमितता ज्यादा ही रहती है. इन कपट, अनीति और अनियमितताका निर्मूलन करनेके लिये ये सहयोगी संस्थाओंका, उसके सदस्योंका पंजीकरण (रजीष्ट्रेशन ऑफ मेम्बरशीप), विकास और अनुरक्षण (मेन्टेनन्स), समिति (कमीटी) के सदस्योंका चूनाव, और सदस्यताका हस्तांतरण (ट्रन्सफर ऑफ मेम्बरशीप) आदि, चूनाव आयोग के कार्यक्षेत्रमें लाना आवश्यक है.

चूनावमें विस्तार की जनगणना और व्यक्तिकी अनन्यता (आईडेन्टीटी), नागरिकता (सीटीझनशीप), आदि अनिवार्य है. इस लिये जनगणना आयोग भी इसमें संमिलित (मर्ज्ड) होना चाहिये.

चूनाव और जन सहयोग के निम्न लिखित स्तर रहेंगे

राष्ट्रीयस्तर (राष्ट्र) (सर्वोच्च आयुक्त)

राज्य स्तर (राज्य विस्तार) (उच्च आयुक्त)

संसद सदस्य स्तर, (संसद बैठक विस्तार) (जिला आयुक्त)

विधान सदस्य, (स्टेट एसेम्ब्ली बैठक विस्तार) (उपायुक्त)

खंडीय स्तर (वॉर्ड) (सहायक आयुक्त)

बुथ या बुथ समूह (विस्तार से १० बुथ विस्तार या ५००० के आसपास मतदाता) (बुथ अधिकारी)

यह एक उच्च से निम्नस्तर तक बिलकुल स्वतंत्र आयोग रहेगा. इसके कार्यालय, जनसभाखंड और कर्मचारीगण स्थायी होगे.

.   हेतुः चूनाव प्रचारमें सुधार, चूनाव खर्च पर पाबंदीः जब तक चूनावी प्रचारमें सुधार नहीं होगा और चूनाव में पैसेका महत्त्व दूर नहीं होगा तब तक नीतिमत्ता वाले और सेवाभावी लोग चूनाव जित पायेंगे नहीं. इसलिये हरेक अभ्यर्थीका (केन्डीडेटका) चूनाव प्रचार खर्च शासन उठायेगा.

. चूनाव आयोग कार्यक्षेत्र सुधारः ५००० मतदाताओंके भौगोलिक विस्तारके आधार पर एक बुथ या बुथ समूह या एक ग्राम्य विस्तार या नगरका एक विभाग में एक राजपत्रित अधिकारी (gazetted officer)  होगा.

इस राजपत्रित अधिकारीके पदका नाम बुथ अधिकारी  रहेगाः

बुथ अधिकारीका अपने भौगोलिक विस्तारमे निम्न लिखित कर्तव्य और उत्तरदायित्व

पंजीकरणः

अपने विस्तारकी स्थावर (जमीन और मकान आदि) मिल्कतोंका पंजीकरण यह अधिकारी करेगा.

जनगणनाः

निवासीयोंकी नोंध यह अधिकारी करेगा. इस के कारण जनगणना का पंजीकरण अपने आप होता रहेगा. ,

सहकारी संस्था पंजीकरण और संचालनः

सहकारी गृह निर्माण और अनुरक्षण संगठन कृषि सहकारी संगठन के कारोबार पर अनुश्रवण (मोनीटरींग) और उसका पंजीकरण और नियमन का काम यह अधिकारी करेगा. हरेक सहकारी संस्थाका प्रमूख यह अधिकारी होगा.

यह अधिकारी उपरोक्त संगठनोंके पंजीकरण और संचालन की कार्यवाही करेगा. तद उपरांत यह अधिकारी, उपरोक्त सहकारी संगठनोके सदस्योंका पंजीकरण, सदस्यता का हस्तांतरण, संशोधन, संस्थाका अनुरक्षणसदस्यसभा सामान्य सभा बुलाना और उसका संचालन और कार्यवाहीका अभिलेखन (रेकोर्ड) रखनेका काम करेगा.

ज्यादातर अनियमितता, अनीति और कपट स्थावर संपत्ति और सहकारी संगठन द्वारा ही होते है. ये सब कपट और अनीति बंद हो जायेगी. क्यों कि किसीभी कपट, अनीति और अनियमितता का उत्तरदायित्व (रीस्पोन्सीबीलीटी) इस अधिकारी पर रहेगा.

चूनाव प्रचार निरीक्षण और सभा संचालनः

जनप्रतिनिधित्व के अभ्यर्थीयोंका चूनाव प्रचार सभाओंका संचालन यह अधिकारी करेगा.

यह अधिकारी अपने द्वारा अपने विस्तारमें स्थित, प्रबोधित (सजेस्टेड), सूचित या सुझाये गये स्थान या सभाखंड में आवेदित (एप्लाईड फोर), जनसभाका संचालन करेगा और वक्तव्योंका और प्रचार साहित्यका रेकोर्ड रखेगा.

यह अधिकारी प्रश्नोत्तरी और समान मंचपर (कोमन प्लेटफोर्म) विभिन्न जनप्रतिनिधित्व के अभ्यर्थीयोंकी या उनके द्वारा सूचित व्यक्तियोंकी चर्चासभाओंका संचालन करेगा.

यह अधिकारी सरकार द्वारा संचालित दूरदर्शन पर, और समान मंच पर, सामूहिक और व्यक्तिगत व्याख्यान कार्यक्रम पक्षके अभ्यर्थी और अपक्षीय अभ्यर्थीयों के साथ चर्चा करके कर्यक्रम की अनुसूचना (शीड्युल ओफ प्रोग्राम) जारी करेगा. यह अनुसूचना सरकार वेब साईट पर पर जारी करेगी. प्रचार की यह अनुसूचना सभाखंड और बुथ कार्यालयमें प्रदर्शित रक्खी जायेगी.

हर अभ्यर्थीके चूनाव क्षेत्रकी एक वेब साईट बनाई जायेगी और जन सूची, मतदाता सूची, सदस्यता, हस्तांतरण, समय समय के अभ्यार्थी, अभ्यार्थी परिचय, चूनाव घोषणा, चूनाव और अनुसुचित प्रचार, प्रचार अभियान माहिति, चूनाव परिणाम, ईत्यादि माहिति वेब साईट पर उपलब्ध रहेगी.

. विधेयकमें पारदर्शिता और जनस्विकृति

भारतीय संविधान अनुसार, राजकीय पक्ष और जनता के बीचमें सीधा संबंध नहीं है. निर्वाचित व्यक्ति को जनप्रतिनिधि कहा जाता है. वैसे तो राजकीय पक्षको कई रियायतें मिलती है. इस लिये उनका उत्तरदायित्व बनता है. लेकिन वास्तवमें ऐसा दिखाई देता नहीं है.

जनप्रतिनिधिके लिये कोई व्यक्ति आवेदन (प्रार्थनापत्र) दें उसके पहले उसकी लोकप्रियता सिद्ध करने लिये एक प्रारंभिक सर्वेक्षण जरुरी है. पक्ष वाले तो अपना व्यक्ति खुद तय करेंगे और इसमें जरुरत पडने पर क्षेत्रीय अधिकारीकी मदद ले सकते है.

जो व्यक्ति अपक्ष है वह कितना लोकप्रिय है यह सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्रीय अधिकारी बुथ अधिकारीयोंकी मददसे एक प्राथमिक सर्वेक्षण करवायेगा. और उनमें जो सर्व प्रथम पांच निर्वाचित बनेंगे वे ही अंतीम चूनावमें भाग ले सकते हैं.

. पक्षीय या अपक्षीय अभ्यार्थीका नीतिघोषणा (ईलेक्सन मेनीफेस्टो) पत्रः

जो विषय घोषणा पत्रमें संमिलित नहीं है उस विषय पर कोई जनप्रतिनिधि विधेयक (बील) ला सकता नहीं है. क्यों कि यह जनताके सामने पारदर्शिता नहीं है.

विधेयक का प्रारुप (ड्राफ्ट ओफ थे बील)

जो भी व्यक्ति या पक्ष या पक्षकी व्यक्ति जो जनप्रतिनिधित्व के लिये अभ्यार्थी है, वह अगर चूना गया तो अपने आगामी कार्यकालमें क्या क्या विधेयक लानेवाला है उसका प्रारुप क्षेत्रीय अधिकारी के पास उसको प्रस्तूत करना पडेगा. कोई भी अभ्यार्थीने या अगर उसके पक्षने ऐसा विधेयक का प्रारुप प्रस्तुत (सबमीट) करवाया नहीं है, तो ऐसा विधेयक वह सभामें (संसद, विधानसभा, परिषद, या कोई भी विधेयक पारित करनेका वाली अधिकृत सभा) प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है.

हालमें व्यवस्था ऐसी है कि जनप्रतिनिधि का पक्ष विधेयकका प्रारुप शासन ग्रहण करनेके पश्चात अपने कार्यकाल दरम्यान बनाती है और परिषद में प्रस्तुत करके पारित (पास) करवाती है. वास्तवमें जनताके साथ यह एक बेईमानी है. जनताकी आवाज इसमें प्रतिबिंबित होती नहीं है. इतना ही नहीं इस प्रक्रीयामें पारदर्शिता नहीं है.

आपात स्थितिमें विधेयक

अगर आपात स्थितिमें कोई विधेयक की जरुरत पडी तो, राष्ट्रीय चूनाव आयूक्त ऐसे विधेयकके प्रारुपको जनताके सामने प्रसिद्ध करेगा औरहां”, “नाऔरतटस्थ” (यस, नो, कान्ट से) में जनमत लेगा.

अति आपात स्थितिमें विधेयक

अगर अति आपातकालकी स्थिति है तो राष्ट्रपति इसके उपर अपना अभिप्राय देगा और अध्यादेश (ओर्डीनन्स) जारी करेगा. इसको मासमें जनताके सामने रखना पडेगा. अगर जनताने ५०+ प्रतिशतसे नामंजुर किया तो शासक पक्षको सत्ता त्याग करना पडेगा. अगर ऐसा नहीं है तो सरकार चालु रहेगी.

सरघस, बडे विज्ञापन पट्ट, और दिवारों पर लिखने पर पाबंदीः

पक्षका अभ्यार्थी और अपक्ष अभ्यार्थी सिर्फ अपना चूनाव घोषणापत्र (जिसमें विधेयक का प्रारुप संलग्न होगा), अपना अंगत और व्यावसायिक सेवा विवरण (प्रोफाईल), अपनी कार्यशैली (गवर्नन्स स्टाईल) अपने विचार सिद्धांत (स्कुल ऑफ थोट्स एन्ड प्रीन्सीपल्स),  और वक्तव्य (प्रवचन) का विवरण दे सकता है. इसका मुद्रण (प्रीन्टींग) खर्च चूनाव आयोग उठायेगा. सभा खर्च भी चूनाव आयोग उठायेगा.

गैर सरकारी दूरदर्शन चेनलों पर चूनाव प्रचारका खर्च अभ्यार्थी के खाते में जायेगा. जितना खर्च सरकार अपने सरकारी दूरदर्शन चेनलों पर करेगी उतना खर्च जनतप्रतिनिधित्वका आभ्यार्थी कर पायेगा.

अगर अभ्यर्थी चाहे तो अपने चूनाव प्रचारकी दृष्यश्राव्य (वीडीयो) कृति (क्लीप) सरकारी दूरदर्शन चेनल को प्रस्तूत कर सकता है. चूनाव आयोग, पक्ष के चूनाव पत्र पर सूचित प्रक्रिया में संमिलित कर देगा. जनता उसको अपनी अनुकुलतामें देख लेगी.

कृषि और आवास सह्योग विभाग

ठीक उसी प्रकार कृषि और आवास सह्योग आयोगको चूनाव आयोगमें संमिलित करके संशोधन करना है.   

कृषि और आवास सह्योगी संस्था के विषयमें भी, निविदा (पब्लिक नोटीस), संस्थाका कार्य क्षेत्र, संस्था परिचय, सदस्यताकी पात्रताका मापदंडसंस्था पंजीकरण, सदस्य सूची, सदस्यकी माहिति, विकास और अनुरक्षण की समिति के सदस्यों की के चूनाव प्रक्रीया अनुसूचना और पूरी प्रक्रीया, विकास और अनुरक्षण लेखा (एकाउन्ट) और लेखा परीक्षा (ऑडीट) विवरण, समिति सभा, सामान्य सभा, सभा घोषणा प्रक्रीया (एकोर्डीग टु स्टेच्युटरी प्रोवीझन्स फोर कोलींग फोर मीटींग), वक्तव्य नोंध, आदि सभी व्यवहार बुथ अधिकारी करेगा और सभी प्रक्रिया वेब साईट पर उपलब्ध रहेगी.

प्रकिर्णः

बुथ अधिकारी, व्यक्तिकी अनन्यताका प्रमाणपत्रः

इस क्षेत्रके निवासीकी छबी, कद, जन्म तीथी, आदि और गोपित प्रक्रीयासे रखा हुआ अंगुलीयां छाप, नेत्र छाप, हस्ताक्षर छाप आदि अनन्यताका पंजीकरण क्रमसंख्यावाला अनन्यताका प्रमाणपत्र कार्ड बनायेगा और देगा.

दस्तावेजों का नोटराईझेशन और पंजीकरण

बुथ अधिकारी, स्थानिक दस्तावेजोंका नोटराईझेशन और पंजीकरण करेगा,

बुथ अधिकारी, स्थानिक स्थावर संपत्तिका, सर्वेक्षण, मानचित्र, हस्तांतरण, बंधक विलेख, आदि निष्पादित और पंजीकरण करेगा.  

बुथ अधिकारी, स्थानिक व्यक्तिओंकी प्रतिज्ञा पत्र, और जिम्मेवारी पत्र, आदि दस्तावेज निष्पादित करेगा और पंजीकरण करेगा.

स्थान और कार्योंका पंजीकरण 

उत्पादनबिक्रीवहनसूचनाशिक्षणव्यापारीसेवाअभिकरण आदि संस्था, व्यक्ति, व्यक्ति समूह को अपना कार्यस्थल, स्थानांतरण, हस्तांतरण और कर्मचारीके विवरण का एक सूचित आवेदन पत्र प्रस्तूत करना पडेगा और उसका पंजीकरण करवाना पडेगा. बुथ अधिकारी एक आधारभूत वेब साईट रखेगी और एक मानचित्र के अंतर्गत सभी विवरण जनता देख पायेगी. बुथ अधिकारी इस वेब साईटको अद्यतन रखेगा. जो संस्था व्यक्ति और व्यक्ति समूह, जन लोक के साथ व्यवहार है, उनके बारेमें जनता के प्रति पारदर्शिता होनी चाहिये.   

यह एक रुपरेखा है और इसको नियमबद्ध भाषामें रखकर भारतीय संविधानमें सामेल करना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः चूनाव आयोग, संशोधन, सुधार, जन, मतदार, सर्वेक्षण, जनप्रतिनिधि, पंजीकरण, अनन्यता, प्रमाणपत्र, जनगणना, क्षेत्र, विधेयक, अभ्यर्थी, आवेदक, आवेदन, राजपत्रित, अधिकारी, बुथ, खंड, जिला, तहेसील, उच्च, सर्वोच्च, ग्राम, नगर, स्थावर,  संपत्ति, सदस्य, सदस्यता, हस्तांतरण, कृषि, मानचित्र, खर्च, लेखा, विवरण, बंधक विलेख, परीक्षा,

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