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२५ जुन नहेरुवीयन कोंग्रेस बनी भारतका एक कलंक

अहो आश्चर्यम्

DEMOCRACY MEANS

२५ जुन भारतके लिये एक लज्जास्पद दिन है. यह प्रजातंत्रकी मृत्यु का दिन था. और उसकी हत्यारी थीं नहेरुवीयन कोंग्रेसकी उनके द्वारा एक मात्र मान्य नेत्री इन्दिरा गांधी.

वैसे तो १९७० के चूनावमें इन्दिराके पक्षको प्रचंड बहुमत मिला था.

पाकिस्तानकी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण और भारतके जवानोंकी वीरता और व्युहरचानाके कारण भारतको भव्य विजय प्राप्त हुई थी. इस विजयका श्रेय भी इन्दिराने लिया था. समाचार माध्यमोंने भी यही बात चलायी.

इसके उपरांत इन्दिराने संविधानमें कई संशोधन करके अपनी सत्ता बढाई. उसने ऐसे भी प्रयत्न किये कि मानव अधिकारों को भी क्षति पहोंचानेकी संसदको सत्ता मिले. किन्तु इसमें वह विफल रही. क्यों कि सर्वोच्च न्यायालयने इस प्रस्तावको नकार दिया और कहा कि मानव अधिकार और प्राकृतिक अधिकार को नष्ट नहीं किया जा सकता. क्यों कि यह तो प्रजासत्ताककी नींव है.

वैसे तो इन्दिरा गांधी अपने पक्षमें सर्वेसर्वा थी और अधिकतर राज्योंमें भी उसके खुदके नियुक्त मुख्य मंत्री थे. तो भी इन्दिरा गांधी देशकी आर्थिक स्थितिमें कोई सुधार करनेमें असफल रहीं.

कोंग्रेसके विभाजनके बाद सीन्डीकेटके नेतागण तो उसके सामने स्पर्धाके लिये रहे नहीं. किन्तु पक्षमें भी वह कोई सर उठाके चले और कोई भी अच्छे कामका श्रेय खुदके नाम पर ले ले वह इन्दिराको पसंद नहीं था. उसने हमेशा स्वयंकी सत्ताको कोई ललकारने वाला रहे उसीमें व्यस्त रहीं. वीपी सिंघ, बहुगुणा, ललितनारायण मिश्र आदि उनमें मुख्य थे. प्रथम दो थे इनको निकाल दिया. तीसरेकी मृत्यु हो गई. और दो बचे. वे थे यशवंत राव चौहाण और जगजिवन राम.

सर्व क्षेत्रीय विफलताके कारण १९७३से जन आंदोलन का प्रारंभ हुआ. १९७४ उसके प्रचंड बहुमतवाली गुजरातकी विधानसभाका विसर्जन करना पडा. १९७५में इन्दिराका खुदका चूनाव रद हो गया, उतना ही नहीं किन्तु वह स्वयं सालके लिये अयोग्य घोषित की गयी. गुजरातकी विधानसभा चूनावमें उसका पक्ष सत्तासे विमुख हो गया. स्वयं को बचाने के लिये और सत्ता पर चालु रहेने के लिये वह साम्यवादीयं की तरह कुछ भी कर सकती थी. इन्दिराने आंतरिक आपातकाल घोषित किया. आपतकालमें क्या हुआ वह हमने देख लिया. इस विषय पर इसी वेबसाईट पर कई और लेख है. आप कृपया उनको पढें.

शासन किसीको भी पकड सकता था और कारावासमें भेज सकता था. सिर्फ शासनके अधिकृत अफसरको  न्यायधीशके सामने कहेनाका था कि यह समाज और शासनके लिये खतरा है.

एक न्यायाधीशने एक आरोपीको जब उसके सामने प्रस्तूत किया तो पुलिस अफसरसे पूछा की इसको क्यूं पकडा है? पूलिस प्रोसीक्युटरने बताया कि वह देश विरोधी कार्य कर रहा है.

न्यायधीशने पूछा कि वह क्या कर रहा है?

आरोपीने बोला, मैंने तो कुछ भी किया नहीं है.

न्यायधीशने प्रोसीक्युटरसे पूछा कि किस आधार पर शासनने उसको पकडा है.

प्रोसीक्युटरने बोला कि आपातकालमें कारण और आधार बतानेकी आवश्यकता नहीं.

न्यायधीशने बोला कि आप चाहे आरोपी को बाताओ, लेकिन मुझे तो बताओ. चलो मेरी केबिनमें और मुझे बताओ.

प्रोसीक्युटरने बोला कि आपको बताना भी आपातकालमें आवश्यक नहीं है.

न्यायधीश ने बोला कि आरोपके आधारका अस्तित्व होना तो आवश्यक है ही. यदि आप न्यायालयको भी नहीं कहोगे तो इसका अर्थ तो यह हुआ कि आप किसीको भी कुछ भी करोगे.

शासनने बताया कि आपातकालमें शासन चूं कि संविधानके अधिकार स्थगित हुए है, शासन चाहे तो मनुष्यका प्राण भी ले सकता है.

न्यायधीशने कहा कि, संविधान के अधिकार स्थगित हुए है. संविधानके अधिकार नष्ट नही हुए है. इस लिये आरोपके आधारका अस्तित्व होना अनिवार्य है. और न्यायालयके प्रत्यक्ष तो प्रस्तूत करना ही पडेगा.

भारतके न्यायतंत्रकी निडरतासे इन्दिरा को बेहद नफरत थी. सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य नायाधीश जब निवृत्त हुए तब उसने उच्चताके क्रममें चौथे क्रमवाले न्यायधीश, जो इन्दिराको सपर्पित थे उनको मुख्य न्यायाधीश बनाया. इससे वरिष्ठ क्रमके तीनों न्यायाधीशोंने त्यागपत्र दे दिया. अब सर्वोच्च न्यायालय इन्दिराके समर्पित हो गया. किन्तु  इन्दिराको लगा कि पूरा न्यायतंत्र उसको समर्पित नहीं हो सकता किन्तु सर्वोच्च न्यायालय समर्पित हो गया है तो इससे भी लाभ तो होगा ही. संसदकी अवधि कभी की समाप्त हो गयी थी और जो समय चल रहा था वह विस्तारित अवधिका था. विदेशोंमें इन्दिरा अपकीर्तित हो गयी थी. चूनाव करना आवश्यक हो गया था. उसके विश्वस्त गुप्ततंत्रने उसको बता दिया था कि आपतकालके विरुद्ध कोई कुत्ता भी नहीं भोंका है, तो इन्दिराने चूनावकी घोषणा कर दी.

किन्तु भारतीय संस्कृतिमें लोकतंत्रका मूल सहस्त्रों वर्ष पूराना है. और उस बीसवीं सदीके सत्तरके दशकके  समय माहात्मा गांधीवादीके समयके कई नेता जीवित थे. आरएसएस के सेवकोंने भी पूरा समय दिया. आरएसएसका व्यापक संगठन है. वह यदि सुग्रथित, सुनिश्चित और लयबद्ध रीतिसे बिना भेदभावसे एक ध्येय पर कार्य करें तो वह क्या कर सकता है यह बात उसने भारतमें १९७७में सिद्ध कर दिया.

इन्दिरा गांधी स्वयं ५५००० मतोंसे हारी. एक सरमुखत्यार, आपतकाल चालु रखके और समाचार माध्यमोंको एक मात्र स्वयंको ही समर्पित रखके चूनाव घोषित करें, तो भी, केवल उसका पक्ष ही नहीं स्वयं भी पराजित हो जाय, ऐसा विश्वमें कहीं हुआ नहीं है. केवल भारतमें ही हुआ और केवल भारतमें ही ऐसा हो सकता है.

मोरारजी देसाईको प्रधानमंत्री पदके लिये क्यों चूना गया?

१९७०के चूनावमें इन्दिरा प्रवाहमें पूरे देशमें कोंग्रेस (संस्था) हार गयी. अन्य दलोंका भी यही हाल हुआ था. केवल गुजरातमें मोरारजी देसाई वाली कोंग्रेसको अधिक बैठकें मिली. जयप्रकाश नारायणके आंदोलनमें और गुजरातके नवनिर्माण आंदोलनमें मोरारजी देसाईकी बडी भूमिका रही थी. वैसे भी वे वरिष्ठ थे और प्रशासनमें दक्ष थे. १९७७के चूनावमें भी कोंग्रेस (संगठान)की श्रेष्ठ भूमिका रही.

मोरारजी देसाई जनता पार्टीके नेता हुए. और प्रधान मंत्री बने.

किन्तु अपनेको महात्मा गांधीके सच्चे अनुयायी मानने वाले चौधरी चरण सिंहकी तबियत गुदगुदाई और उन्होने शासनकी अंतर्गत ही सियासत चालु कर दी. एक स्थिति ऐसी आयी कि मोरारजी देसाईने उनको पदभ्रष्ट भी कर दिया. और कहा कि तुम अपना चूनाव चिन्ह भी लेलो और जनता पार्टीसे अलग हो जाओ. उस समय चरण सींग के पास केवल ४० सदस्य थे. वे यदि चले भी जाते तो और कम सदस्य उनके साथ जाते. किन्तु अटल बिहारी बाजपाइ ने मोरारजी देसाईको मना लिया और आश्वासन दिलाया कि अब चरण सिंघ पुनरावृत्ति नहीं करेंगे.

लेकिन युपीकी और बिहारकी सियासत ही भीन्न है या वह कुछ भी हो चरणसींगने अपने गुटके सदस्यों और इन्दिरा, यशवंतराव चवाणके पक्षकी सहायता लेके मोरारजी देसाई की सरकारको गिरायी. चरण सिंहने इन्दिरा और चवाणसे आश्वासन लिया था कि वे संसदमें उनको प्रधानमंत्री बननेमें सहयोग देंगे. किंतु जब संसदमें बहुमत सिद्ध करने का समय आया तो इन्दिराने उनके विरुद्ध मतदान किया. इन्दिराने कहा मैंने तो केवल जनता पक्षकी सरकारके पतनके लिये ही आपको सहयोग दिया था. आपको प्रधानमंत्री तो बनने दिया, किन्तु यह आवश्यक नहीं कि हम आपको लगातार सहयोग देते रहें. इस प्रकार संसदमें प्रधानमंत्रीकी बैठक पर चौधरी चरण सिंह केवल ४५ सेकंड के लिये ही बैठ पाये. यह वही चरण सिंग थे जो इन्दिरा गांधीको प्रथम क्रमके दुश्मन मानते थे. उन्होंने इन्दिरा गांधीको, बिना कोइ पूर्व योजना बनाये गिरफ्तार भी किया था, किन्तु न्यायालयके सामने प्रस्तूत करने के समय सुयोग्य आधार होने के कारण न्याधीशने इन्दिराको मुक्त कर दिया था. यह सब अधिगत होने पर भी चरणसिंगने इन्दिरा गांधीका सहयोग लिया और जनता द्वारा सुस्थापित शासनका पतन करवाया. प्रयोजन केवल स्वयंको येनकेन प्रकारेण प्रधान मंत्री बननेका था.

यह मोरारजी देसाईने अपने १८ मासके शासन दरम्यान अर्थतंत्रमें पर्याप्त सुधार ला दिया था. संविधानमें भी पर्याप्त संशोधन कर दिया था ताकि, कोई स्वकेन्द्री और आपखुद व्यक्ति गणतंत्रको हानि कर सके.

चरण सिंह हंगामी प्रधानमंत्री बने रहे. इन्दिराने नीलम संजिव रेड्डीको मनवाकर संसद्का विसर्जन करवा दिया. चरणसिंगके कारण पुरा जनता पक्ष अपकीर्तित हो गया. १९८०का चूनाव जनता पक्ष हार गया. इन्दिरा पुनः सत्ता पर गई.

वह पुनः आपातकाल ला सकी. किन्तु सर्वोदय संस्थाओंको चून चून कर कष्ट दिया. सर्वोदयवाले भी अपनी संस्थाकी रक्षाके लिये इंदिराको समर्पित हो गये. आरएसएसवाले भी निवृत हो गये.

राम मनोहर लोहिया, राज गोपलाचारी, मसाणी, दांडेकर, मधु दंडवते, मधु लिमये और जयप्रकाश नारायण नारयण के अभावमें २००४ से २००८ तकके नहेरुवीयन कोंग्रेसके कुकर्मोंका उत्तर मागने वाला और ऊंचे स्वरमें बोलने वाला कोई बचा नहीं था.

लालकृष्ण अडवाणीकी रामरथ लेके देशमें कोमवाद फैलानेके लिये दोषित मानके कडी आलोचना की जाती थी, और रामजन्म भूमि पर स्थित बाबरी मस्जिदका ढांचा गिराने के लिये उनको कारावासमें भेजनेका कहा जाता था, वही समाचार माध्यम आज उनकी कथित लोकशाही संकट के विधानोंपर प्रशंसा के पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं. जब जब अडवाणीने नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध विसंवादी उच्चारण किया है तब तब समाचार माध्यमोंने और मोदीसे जलने वालोंने अडावाणी पर पुष्पोंकी वर्षा की है.  

अडवाणी को अवश्य पेटमें दर्द है. किन्तु अडवाणीको समझना आवश्यक है कि १९९९२००४ वे स्वयं गृह मंत्री थे. यदि वे दक्ष होते तो वे अपने कार्य द्वारा दक्षता और मस्तिष्क द्वारा व्युहरचना के आधार पर पुनःविजय प्राप्त कर सकते थे. मान लिजीये एक बार विफल हो गये. तो भी २००९ में तो अडवाणीके पास अति सानुकुल परिस्थिति थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके कौभाण्ड, आपखुदी और शिथिल शासन चरमसीमा पर था. इतना ही नहीं आपतकालकी नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मानसिकता ही एक वज्रास्त्र है. किन्तु बीजेपीके अन्य नेताओं को छोड दो तो भी, अडवाणीको स्वयंको इस शस्त्रका उपयोग करना नहीं आता है. नहेरुवीयन कोंग्रेस, जिसके लिये आज भी इन्दिरा और नहेरु उतने ही पूज्य है जितने पूर्वकालमें थे. और इसीकारणनहेरुवीयन आपातकालबीजेपीके नेताओंके लिये एक वज्रास्त्र है यदि उसका उपयोग करना चाहे तो.

२०१४ के चूनावके पूर्व यदि अडवाणी प्रधानमंत्री पदके लिये प्रस्तूत किये जाते तो बीजेपीकी पराजय निश्चत थी. संघने बीजेपी पर मोदीके लिये दबाव नहीं डाला था. किन्तु आम जनताका क्या मत है वह संघ और बीजेपीनेता अधिगत कर पाये इसी कारणसे बीजेपी ने मोदी का नाम प्रस्तूत किया या करना पडा.

क्या मोदीकी तरह अडवाणी परियोजनाएं सोच सकते है? नहीं.

क्या मोदीकी तरह अडवाणी नवतर संकल्प कर सकते है?

क्या मोदीकी तरह अडवाणी व्यूहरचानाएं कर सकते है? नहीं.

क्या मोदीकी तरह अडवाणी प्रवचन कर सकते है? नहीं.

क्या नरेन्द्र मोदीकी तरह १८ कलाक, अडवाणी काम कर सकते है? नहीं.

यदि ऐसा होता तो अडवाणी २००४ और २००९ में बीजेपीको चूनाव में विजय दिला सकते थे.

अडवाणी को अपातकाल कैसा था वह योग्य प्रमाणमें अवगत है, अधिगत और अनुभूत भी है.

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उन्होने ऐसे सियासतसे भरपुर और स्वयंके पक्षके उच्चस्थ और लोकप्रिय नेताको हानि पहोंचे ऐसा  उच्चारण प्रथमवार नहीं किया है. अडवाणीने ऐसा अनेक बार किया है.

नरेन्द्र मोदीको चूनाव प्रचारके लिये मुख्य प्रचारक घोषित किया गया तब भी अडवाणीने ऐसे विसंवादी उच्चारण किया था. आदवाणीने शिवराज चौहाण और सुष्मा स्वराजको भी उकसाया था. किन्तु इन दोनोंको भूतलकी परिस्थिति ज्ञात थी.

उस समय भी समाचार माध्यमोंने इस वार्ता को उछाली थी.

तत्पश्चात जब नरेन्द्र मोदीका नाम प्रधानमंत्रीके पदके अभ्यर्थी के लिये अनुमोदित किया तब भी अडवाणीने इसमें विसंवादी उच्चारण करके अपनी मनोवृत्तिका प्रदर्शन किया था. उन्होंने पक्षके लिये अतिप्रतिकुल स्थिति उत्पन्न की थी.

इस समय जब नरेन्द्र मोदीने वैश्विक संबंधोंमें दूरगामी और देशके लिये सानुकुल परिवर्तन के लिये अनेक कदम उठाये हैं और सर्वत्र नरेन्द्र मोदी और उसकी सरकारको कीर्ति मिल रही है उस समय यह अडवाणीने असंबद्ध और अनुचित विसंवादीआपतकाल की शक्यता है और लोकतंत्र असुरक्षित हैऐसे उच्चारण किये.

हो सकता है कि अडवाणीके पेटमें पीडा हो. किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वह इस प्रकार अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित करनेकी चेष्टा करें.

समाचार माध्यम और नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध गुट नरेन्द्र मोदीको धराशायी करने के लिये उत्सुक है उसको तो यही चाहिये कि बीजेपीमें कोई चरणसिंग पैदा हो.

अडवाणीको तो, नरेन्द्र मोदीके विरोधीयोंको मोदीकी निराधार भर्त्सनाके लिये, अवसर देना था वह दे दिया. नरेन्द्र मोदीके विरोधीयोंने अपना काम कर दिया. नरेन्द्र मोदीको जो आघात पहोंचाना था वह पहुंचा दिया. इतना सबकुछ कर देनेके बाद अडवाणीने कहा कि स्वयंने तो कोंग्रेसको अनुसंधानमें रख कर उचारण किया था.

अरे भैया अडवाणी, यदि आपातकाल प्रसिद्ध कुकर्म कुत्सित कोंग्रेसके संदर्भमें उच्चारण किया था तो उसका नाम क्यों नहीं लिया?

राम लीला मैदानमें मध्य रात्रिको रामदेवके साथ जो हुआ, टीम अन्ना हजारेके साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसने जो व्यवहार किया, उनके बारे में जो कहा गया कि वे सरसे पांव तक भ्रष्ट है. किरण बेदीके उपर जो आक्षेप हुए, नहेरुवीयन कोंग्रेसने उस समयके उसके विरोधीयोंके साथ जो वर्तन और गाली प्रदान किया, उस समय हे अडवाणी, आपने क्या किया? यदि उस समयआपातकाल की शक्यता है और लोकतंत्र असुरक्षित हैकहा होता तो अडवाणीजी आप कुछ विश्वसनीय बनते.

जनता हैरान है कि आप इस उम्रमें और वह भी अद्यतन वर्तमान समयमें तात्विक सबूतके अभावमें निश्चयात्मक साध्य सिद्ध हो गया मानके क्यों चलते है? जब आपसे पूछा गया तो आपने कोंग्रेसका संदर्भ बताया. स्पष्टीकरण ऐसा करते है. वास्तवमें यह आपका स्पष्टीकरण है ही नहीं. आपको आपकी सीमा ज्ञात होनी आवश्यक है.

लोग यही मानेंगेकी चरणसिंगकी रुह आपमें घुसी है. चरणसिंहने जो किया इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसको दूर करनेमें जनताको ३५ वर्ष लग गये. आप नरेन्द्र मोदीके विकासके यज्ञमें हड्डीयां क्यों डालते है? एकबात ध्यानसे समझ लो, अब आप प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. यदि राष्ट्र पति बनना है तो जीव्हा पर और स्वयंकी मंशापर अंकुश रक्खो

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः आपातकाल, २५ जुन, नहेरुवीयन कोंग्रेस, इन्दिरा गांधी, मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, चरणसिंग, रुह, पराजय, विसंवाद, अडवाणी, नरेन्द्र मोदी, प्रधान मंत्री   

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्तिक्योंजो जिता वह सिकंदर-2

के अनुसंधानमें इसको पढें

नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लियेनहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.

नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थीवह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लियानहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थेउन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लियाउनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थीलेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था  तो समाधान कारी टीका कर सकता था.

नहेरुकी तरह  ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.

मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थेइस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई

ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थीचूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचकेदेनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहो.  जनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहोसमाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.

जर्क देने वाली प्रवृत्तिः

पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः

१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः

आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार:

ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?

ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थेमुझे गरीबी हटानी हैइसलिये मेरा नारा है “गरीबी हटाओ”.

समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दीक्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करेंवे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.

राष्ट्र प्रमुख का चूनाव  पडा थासींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुखपक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थेईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थींउन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दियावह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.

इन्दिराका फतवा

ईन्दीरा गांधीने “आत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया किराष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहियेआत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देनाराजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव हैविपक्ष बिखरा हुआ थाजो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनायाकोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते हैउनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहितजरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.

ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने  संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाईयह बात गैर कानुनी थीफिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गयाकोई रोक टोक हुई नहीं.

राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान हैउस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गयेइस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुएईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवायाइसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त कीकथा तो बहुत लंबी हैअसली कोंग्रेस कौनक्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थीजो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.

ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगाक्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थेमूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एनसे उल्लेखित किया गयादुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस  (ओर्गेनीझेशन).

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थेउनको परास्त करना जरुरी थाबदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय थालेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल थामोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.

जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः

१९६९७०का चूनाव

जनताको कैसे विभाजित करें?

गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं थालेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था किनहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०६५के उपरके हो गये थेनहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थेइसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ किअब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास  गया हैअब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.

युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग थाराजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें  गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते हैसाधानशुद्धिप्रमाणभानप्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.

नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थेजो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गयेइन नामोंमे जगजिवनरामयशवंतराव चवाणललित मिश्राबहुगुणावीपी सिंग आदि कई सारे थे.

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थेउनको परास्त करना जरुरी थाबदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय थालेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल थामोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा

गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया थालेकिन वह पर्याप्त नहीं था१९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय हैयह एक लंबी कहानी हैपरिणाम यह हुआ किमोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गयाऔर १९६९७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिलागुजरातमें भी उसको २४मेंसे  बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थींयह हो सकता है किमुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था१९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थेबीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थेबीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्षसंयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थेलेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता.

जितके कारण और विधानसभा चूनाव

१९७१में पाक– युद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिलीउसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया१९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजायअन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिलागुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.

मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दियानवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती हैइसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.

चूनाव प्रपंच और गुड  गवर्नन्स अलग अलग है     

इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थींलेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थींविदेश नीति रुस परस्त थीसिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया थाइन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थीं.  महंगाई और करप्शन बहुत बढ गयेइन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थींइसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गयासमाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थींगुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्रनहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गयेसर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.

इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा थागुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा थाईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता हैगुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थीऔर नया चूनाव भी देना पडा थाउसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीयआदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थीगुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा थाविपक्ष एक हो रहा थाइन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.

सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा कीऔर विरोधियोंको जेल भेज दियासमाचार के उपर सेन्सरशीप लागु कीसभासरघस पर प्रतिबंध लागु कर दियेक्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा किसमाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा हैआपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा थाक्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं थागवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता हैयह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम हैयह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं हैसियासतमें लचिलापन चल सकता हैगवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं हैइन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थींजो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकतेइन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते हैऔर सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको  ही मतदान करेगीआपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा थाइन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास कियालेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार कियाइतना ही नहीं यह भी पता चला किभारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज  सके.

१९८०का चूनाव

इन्दीरा गांधीने १९६९  से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.

गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२७३में इन्दिरा की ईच्छा  होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थीकि इन्दीरा गांधीने तेल-मीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया थाउत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश थाअंकूश पैसेसे बिकते थेयुनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था१९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे१९७९८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थीआपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है किजमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थेआज जो राजकारणमें पैसेकीशराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती हैउसके बीज नहींलेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.

१९७७ में जब आखीरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं हैतो उसने उम्मिदवारोंको उनके भरोसे छोड दिये थेनहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी.

१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आयेचरण सिंह जिन्होने खुदको महात्मा गांधी वादी मनवाया थावे इन्दिरासे बिक गयेमोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिरायानये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगेसमाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा कीईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.

१९८०१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआपंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा कियाइन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थींइन्दीरा गांधीने जैसी उसने बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें अनिर्णायकता और कमजोरी रक्खीवैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें कियाईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातरा शस्त्रोके साथ घुसने दिये और आश्रय लेने दियादुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को  पकड सकेभारतमें भी अगर कोई चोर धर्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकतीऐसा कोई कानुन नहीं हैलेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लियेएक कानुन पास किया किअगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती हैजब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गयालेकिन बहुत देर हो चूकी थीकई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे.

(क्रमशः)

शिरीषमोहनलालदवे

टेग्झः  नहेरुवीयन, चूनावी, प्रपंच, रणनीति, सत्ता, गरीबीहटाओ, समाचारमाध्यम, इन्दिरा, आत्माकीआवज, मोरारजीदेसाई, कोमीदंगा, भ्रष्टाचार, आंदोलन, आपातकाल, चरणसिंग, स्वर्णमंदिर, आतंकवाद, सीमापार

 

 

 

         

 

 

   

 

          

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Nehruvian withdraws whole bank

Nehruvian withdraws whole bank

ईन्टरनेट वेबसाईट और सोसीयल नेट वर्कींग पर सरकार क्या कर सकती है और क्या करेगी?

सरकार और वह भी नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकार और उसके सहयोगी पक्ष कुछ भी कर सकते है.

आप कहेंगे कि सहयोगी पक्ष क्यों ऐसे काले और जनतंत्र के खिलाफ कार्यवाहीमें कोंग्रेस को समर्थन देगा? तो जवाब है, नहेरुवीयन कोंग्रेसको समर्थन करने वाले तभी उसको समर्थन कर सकते हैं जब उनको नहेरुवीयन कोंग्रेसकी जो आततायी करतूतें इतिहासिके पृष्ठों पर देशके लिये एक कालीमा के रुपमें प्रस्थापित है और उनको ज्ञात भी है तो भी वे यह नहेरुवीय कोंग्रेसका समर्थन करते है, उसका मतलब यही है कि इन पक्षोंको भी ऐसे कर्मोंसे कोई छोछ नहीं है. और आप देख सकते हैं कि मुलायम, माया, ममता करुणा, शरद, लालु, अजितसिंघ और  साम्यवादी जैसे लोंगोका इतिहास और कार्य शैली कैसी है?

मुलायम सिंह वोटबेंक को धर्म के नाम से आगे बढाना चाहते है. मुलायम को मुल्ला मुलायम क्यों कहते थे इसबातके लिये आप कोई भैया जि से ही पूछीये.

मायावतीका संस्कार ईन्दीरा गांधी जैसा है वह सत्ताके लिये कोई भी हद तक जा सकती है.और मायावतीके पास सिद्धांतोका संपूर्ण अभाव है. कल तक वह कहती थी कि “तिलक तराजु और तलवार इसको मारो जूते चार.” अब वह कहती है “ये हाथी नहीं गणेश है” चलो इसको तो हम यह समझकर भूल सकते हैं कि उसको लगा कि सबको साथ लेके चलना है. उसको भी ईन्दीरा गांधी की तरह अपने गुरु-पूर्वजोंकी  प्रतिमाएं स्थापित करके इतिहासमें जनता के पैसोंसे अमर होना है. बाजपाई सरकारको क्षुल्लक बातोंसे अयोग्य दबाव लाके समर्थन वापस लेनेकी बात उठाती थी. मायावतीके दोहरे मापदंड है. खुदके लिये और अन्य लोगोंके लिये.

ममता बेनर्जीने बाजपाई सरकारको समर्थन दिया था. लेकिन उसका वर्तन तो मायावतीसे भी बढकर था. जिसके तडमें लड्डु उसके तडमें हम. कहा जाता है कि उसने माओवादीयोंके साथ और नक्षलवादीयोंके साथ प्रच्छन्न समर्थन गत विधान सभा चूनावमें लिया था. जो लोग बाजपायी को समर्थन करे और जब बीजेपी को बहुमत न मिले तो उसके विरोंधी और लोकशाही मूल्योंका विद्धंश के लिये कुख्यात पार्टी (नहेरुवीयन कोंग्रेस) का समर्थन करें उसका भला कैसे विश्वास किया जा सकता है. जो व्यक्ति सर्वोदय नेता लोकमान्य जयप्रकाश नारायणकी जीप पर खडी होकर नृत्य करती है, और समय आने पर उसी जयप्रकाश नारायण को मृत्युके मूखमें ढकेलने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकारका भी समर्थन कर सकती है, उसके उपर तो दिमागकी बिमारी वाले विश्वास कर सकते है.

करुणानीधिका किस्सा तो जग प्रसिद्ध है.और ईसके वर्णन की कोई आवश्यकता नहीं है.

शरद पवार वैसे तो पहेले कोंग्रेस (ओ) में थे. फिर यशवंतराव चवाण के साथ नहेरुवीय कोंग्रेसमें गये. कटोकटी (इमरजेन्सी) मे वह नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी रहे. १९७७में वे अलग हुए. फिर पता नहीं कितने दलबदल किये. कहा जाता है कि इनके बारेमें दाउदसे अच्छा कोई नहीं जानता. अगर आप के पास फर्जी करेन्सी नोट है और अगर यह बात सिद्ध हो गयी तो वह करेन्सी नोटकी किमत शून्य हो जाती है. अरबों रुपये के फर्जी स्टेम्प पेपर

बने थे और वे बिल्डरोंको और अन्योंको वितरित हुए थे. सरकार पने रिकोर्डसे पता लगवा सकती है कि, ये फर्जी स्टेम्प पेपर कहां कहां उपयोगमें आये. इतनी तो गुंजाइश तो सरकारमें होनी ही चाहिये. लेकिन ऐसा क्यों नहीं होता है? फर्जी स्टेम्प पेपरका मूल्य शून्य क्यों नहीं बनजाता है? यह सब कमाल किसकी है?

लालुजिने अपनी सरकार एसी चलाई जो ढोरोंकी खास भी ढंगसे वितरण न कर पायी. वास्तवमें सरकारी अफसरोंका और खासकरके उत्तरभारतमें तो बांये हाथकी सरकारी अफसरोंकी कमाई एक विशिष्ठ योग्यता मानी जाती है. और जब ये सरकारी अफसरोंको पता चलता है कि उनका मंत्रीवर्य भी अपन जैसा ही है तब तो उनकी सीमा ओर विस्तृत हो जाती है.

अजितसिंघके पिताश्री चरणसिंहको इन्दिरागांधीने विश्वास दिलाया था कि उसकी पार्टी चरण सिंह को सहाकार करेगी और दोनोंने मिलकर मोरारजी देसाई की जनतापार्टीकी सरकारको लघुमतिमें लादी थी. बादमें इन्दीरा गांधीने चरणसिंहका विश्वासघात करके उनको सहाकर नहीं दिया था. और चरण सिंहको मूंहकी खानी पडी थी. तो भी उनका यह पूत्र अजितसिंह इस विश्वास घातको भूल कर सिर्फ सत्तामें भागके लिये उसी ईन्दीराई नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधनमें है. इससे ज्यादा पिताजीकी नालेशी क्या हो सकती है? और ऐसे “प्रहारजनिता व्यथाको” गर्दभकी तरह भूल जाने वालेका क्या विश्वास कर सकते है?

अगर नहेरु की पूत्री सीनीयर न होने पर भी भारतकी प्रधानमंत्री बन सकती है तो लालुप्रसाद यादव की पत्नी क्यों मुख्य मंत्री बन न सके? अगर नहेरुवीयन कोंग्रेसके एक प्रधान मंत्री की एक पुत्रवधू कोमन समान मंचपर आके विपक्ष के कोई नेता के साथ चर्चा नहीं कर सकती और समाचार माध्यम पूत्रवधूमें कोइ अपूर्णता और टिकात्मकता देखना नहीं चाहते तो  लालुजिकी पत्नी को भी समान मंचपर गोष्टि करना कैसे जरुरी है? साध्यम इति सिद्धम्‌. समाचारमाध्यमके मालिकोंके लिये और उनके कटार मूर्धन्योंके लिये तो “तेरी बी चूप और मेरी बी चूप हो गई”. मीडीया बिकाउ है इसका इससे उत्कृष्ट उदाहरण क्या हो सकता है?

साम्यवादीयोंका कोई देश और धर्म नहीं होता. जनताको उल्लु बनानेके लिये उसको आघात देते रहो और जनताको गुमराह करते करते अपना शासन करते रहो. पश्चिम बंगालमें तीन दसक तक साम्यवादी शासन रहा. क्या पश्चिम बंगालमेंसे गरीबी हट गई? क्यां वहां पर आदमीसे खिंचीजानेवाली रीक्षाके स्थान पर सीएनजीसे चलने वाली रीक्षा आ गई या दी गई? हरि हरि करो. ऐसा कुछ हुआ नहीं. सीएनजी क्या !! सायकल रीक्षा भी नहीं आयी.

अहमदाबादमें एक सप्ताहमें ही नरेन्द्र मोदीने सभी पेट्रोलकी रीक्षाओंको सीएनजी रीक्षामें परिवर्तित करदीया था. अहमदाबादमें १९५१के बाद सायकल रीक्षा ही खतम हो गई. १९५२से अहमदाबादमें ऑटोरीक्षा ही है. जो नरेन्द्रमोदीने एक सप्ताहमें किया वह नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादी पक्ष साठ सालमें भी नहीं कर पाये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादीयोंमें क्या फर्क है? खास कोई नहीं. जो निघृष्ट कार्य नहेरुवीयन कोंग्रेस खुदके उपर आपत्ति आने पर विरोधीयों और जनताके उपर करती है वह कार्य साम्यवादी लोग हर हालतमें करते है.

Media wants to make a paper tigress

Media wants to make a paper tigress

कोंग्रेसके उपर आपत्ति आयी तो पैसे के लिये बेंकोका राष्ट्रीयकरण किया, नैपूण्य के स्थानपर युनीयनबाजी को प्रोत्साहन दिया. अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले विरोधियोंको अनियत कालके लिये कारावासमें डालदिया, समाचार माध्यमोंपर सेन्सरशीप लगा दी, यहां तक कि, अगर कोई केसमें उच्च न्यायालयमें सरकारकी पराजय हूई तो ऐसे सरकारी पराजयके समाचार पर भी सेन्सरशीप रही. अपनवालोंको लूटका अलिखित स्वातंत्र्य दे दिया. ऐसे तो कई कूकर्म इमर्जेन्सीमें हूए. यह साम्यवादी पक्ष तो चाहता था कि, इमर्जेन्सीके अंतर्गत नहेरुवीयन कोंग्रेस साम्यवादी पक्षमें विलिन हो जाय या तो संपूर्ण साम्यवादी तौर तरिके अपनाके एक नये साम्यवाद स्थापनेकी क्रांतिकारी कदम उठावे. लेकिन साम्यवादी लोग यह समझ नहीं पाये के कि भारतमें लोकशाही विचारधारा और सुसुप्त जनशक्ति असाधारण और गहरी थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपने सर्वोच्च नेताके कारण मूंहकी खानी पडी तो भी यह नहेरुवीयन कोंग्रेस ने कोई शिख नहीं ली. वह आज भी विरोधियोंको येनकेन प्रकारेण फर्जी किस्से बनानेमें व्यस्त रहेती है. और खुदके सच्चे किस्सेके बारेमें मौन रहेती है और समाचारमाध्यम भी इन पर मौन रहे वैसा कारोबार करती है.

VOTE FOR MOMMY

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ऐसे समाचर माध्यमोंको सेन्सरशीपकी जरुरत भी क्या है? पैसे फेंको और जो करवाना हो वह करवा लो, जो लिखवाना हो, वह लिखवा लो, जो कटवाना हो वह कटवालो. जिनको यह नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले झुकवाना चाहते हैं वे तो साष्टांग दंडवत प्रणाम करनेके लिये भी तैयार है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस अब क्या कर सकती है? वह विरोधीयों के उपर फर्जी केस बना सकती है. जैसा उसने वी.पी. सिंह के उपर सेन्ट कीट के गैरकानुनी एकाउन्ट केस का किया था.

केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव जैसे लोगपर भी सरसव जैसे दोषोंको पहाड जैसे बताके कार्यवाही कर रही है और समाचारपत्रोमें उनको बदनाम करवा रही है.

लेकिन आमजनताकी आवाज जो ईन्टर्नेटके जरिये चल रही है उसको बंद कैसे करें इस समस्या पर नहेरुवीयन कोंग्रेस अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. जनमाहिति अधिकारको तो उसने नष्टप्राय कर दिया है. कैसे? जो भी कोई जनमाहिति अधिकारी होते हैं वे सबके सब तो वही विभागसे संलग्न होते है. जो हमेशा विलंब नीति अपनाके बाद कोई न कोई बहाना बनाके माहितिको टालनेका प्रयास करते है. जब आप माहिति कमिश्नरके पास पहोंचते है तब कमिश्नरोंकी नियुक्ति पर्याप्त और अपूर्ण होने के कारण केसोंका ढेर पडा होता है. जैसे न्यायमें देरी वह न्याय का इन्कार के बराबर है, वैसे भी माहिति देनेमें अपार विलंब भी माहिति न देनेके बराबर ही हो जाता है.

मैं दाउदका नमक खात हूं

मैं दाउदका नमक खात हूं

ऐसा ही अब जनसामान्य जो चर्चाप्रिय है और भ्रष्टाचारके विरुद्धमें अपना स्वर उंचा करते है, और वह भी ईन्टर्नेट माध्यम के द्वारा तो यह नहेरुवंशी कोंग्रेस इनलोंगोंके उपर आक्रमण के लिये तैयार है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस कैसे तैयार है?

जो भी भारतीय स्थानिक वेबसाईट है वे सब तो समाचार माध्यमोंकी तरह व्यंढ ही है.

इनके लिये व्यंढ शब्दका उपयोग करना भी व्यंढ लोगोंका अपमान करनेके बराबर है. कारण यह है कि व्यंढ लोग तो  सिर्फ प्रजननके लिये ही व्यंढ है. इन लोगोंमे शूरविरता और देशप्रेमकी कमी होना जरुरी नहीं है.

लेकिन ये भारतस्थ वेबसाइट वाले तो डरपोक और बीना प्रतिकार किये आत्मसमर्पण करनेमें प्रथमकोटीके है. ये लोग समाचार माध्यमोसे कोइ अलग मनोदशा रखनेवाले नहीं है.

तो यह वेब साईट पर आक्रमण करवाना कौन चाहता है? कौन करवायेगा? और कैसे करवायेगा?

नहेरुवंशवादी कोंग्रेसको वेबसाईटकी स्वतंत्रता और पसंद नहीं है. क्योंकि वेबसाईट के सदस्य नहेरुवीयन कोंग्रेसके तथा कथित कारनामे पर आपसमें चर्चा करते है और इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी कमीयां बाहर आती है. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपनी कमीयोंको दूरकरना चाहती नहीं है. क्योंकि अगर दूर करेगी तो देशकी उन्नति हो जायेगी और देशकी उन्नति का मतलब है लोग पढे लिखे और समझदार हो जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी असलियतको पहचान जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्तासे हटा देंगे. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्तासे हट जायेगी तो जो अन्य सरकार आयेगी वो उसके उपर न्यायिक कार्यवाही करेगी. अगर नयी सरकार, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंपर  न्यायिक कार्यवाही करेगी तो वे सभी नेतागणकी चूनावके लिये योग्यता नष्ट हो जायेगी अन्तमें उनको जेल जाना पडेगा. इतना ही नहीं लेकिन ये नहेरुवीयन फरजंदोने जनताके पैसोंसे जो बनी इमारतें और योजनाओंका नाम खुदके नामसे जोडा है, वे सब हट जायेगा. उनके बूत हट जायेंगे और उनके सभी अव्वल नंबरके नेताओंका नाम दूर्योधन, शकूनी, शिशुपाल, मंथरा, आदिके क्रममें आजायेगा. यह बात तो छोडो लेकिन उनको अपने रक्त-काला धनसे हाथ धोना पडेगा.

Only left hand drive

Only left hand drive

इसीलिये नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाईट की स्वतंत्रता पर अपना प्रभाव लाना चाह्ती है. लेकिन इसमें नहेरुवीयन कोंग्रेसको मदद कौन कर सकता है?

नहेरुवीयन कोंग्रेसको उसके साथीपक्ष मदद कर सकते है. क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्षकी मनोवृत्तियां और चरित्र भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की मनोवृत्तियां और चरित्रके समकक्ष हि है. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावमें हार भी गई तो ये पक्ष नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंका रक्षण करनेमें अपना दिलसे योगदान करेंगे क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसने भी समय समय पर इन पक्षोंके सदस्योंकी रक्षा की है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाइट पर अपना प्रभाव डालने के लिये किसका सहारा लेगी?

नहेरुवीयन कोंग्रेस ये काम पुलीस डीपार्टमेन्टके द्वारा करवायेगी. क्योंकि यह डिपार्टमेन्ट हो एक ऐसा डिपार्टमेन्ट है जो हमेशा गलत काम करनेमें प्रथम क्रम में रहेता है. जो डिपार्टमेन्ट फर्जी एनकाउन्टर करता है वह क्या क्या नहीं कर सकता!!

वह आपके पेजको हैक करसकता है. वह आपके पेजपर कुछभी आपत्ति जनक लिखके आपके पेज को और आपको बदनाम करके आपके पेजको सेन्सर करके उसको नष्ट कर सकता है.

ऐसा अगर न भी करें, तो भी आपके पेज को बेवजह ही नष्ट कर किया जा सकता है. वजह यही बतायेगा कि आपने नहेरुवीयन कोंग्रेसके खिलाब बेबुनियाद लिखा है और इसलिये आपका पेज नष्ट किया गया है. और यह पता लगानेके लिये भी आपको महिनों तक वेबसाईट के साथ लिखावट करनी पडेगी तब कहीं यह वेबसाईटवाला आपको बतायेगा कि पूलिसकी सूचना पर उसने आपका पेज नष्ट किया है. फिर आपको पूलिस-डिपार्टमेन्टसे “जन माहिति अधिकार”का उपयोग करके और उसके बाद न्यायालयमें जाके अपने हक्क के लिये लडना होगा. इसमें आपका कमसे कम एक साल चला जायगा. अगर आपके पास पैसे है तो ऐसे वेबसाईटसे और सरकारसे नुकशान वसुली करवा पायेंगे. लेकिन ऐसा करनेमें आपको सिर्फ यह काम के लिये हि हाथ धोके पीछे पडना पडेगा.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्ष चाहतें है कि जनता यथावत ही रहे. सबकुछ यथावत ही रहे ताकि वे लोगभी अपना काम यथावत ही कर सके और अपनी बहत्तर पेढीयोंका उद्धार करसके.

वे यह नहीं चाहते हैं कि आप लोग अपने मित्रोंके साथ माहिति और विचारोंका आदानप्रदान करे भ्रष्टाचार और असत्य के सामने आवाज उठानेके लिये कोई योजना बनावे.

ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्य खुद कुछभी अनापसनाप बोलसक्ते हैं. उनके उपर कोइ पाबंदी नहीं. उनके पक्षीय महामंत्री बेबुनियाद आरोप लगा सकते है, और सरकारी प्रसार माध्यमभी उसका खुलकर प्रसारण करेंगे. उसमें इस नहेरुवीयन कोंग्रेसको कोई कठिनाई और आपत्ति या बेइमानी दिखाई नहीं देती. लेकिन अगर आप रामराज्यकी बात करेंगे तो उनको आपत्ति होगी और आपका वेबसाईट परका पेज नष्ट होगा.

वैसे तो लोकतंत्रमें आप आपके मित्रोंके साथ कुछभी विचार विनिमय कर सकते है. लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस एक दंभी, स्वकेन्द्री और आपखुद चरित्र और संस्कार होने के कारण आपके अधिकार पर कोई भी आघात कर सकती है. और ये कमीना पोलीस तंत्र ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके आदेशोंका पालन करने के बारेमें दिमागसे अंध है और अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस उसको कहेगी कि “हमारे आगे झुको” तो यह पोलीस तंत्र “साष्टांग दंडवत प्रणाम” करने लगेगा. जो खुद भ्रष्ट और नीतिहीन है उसकी करोडराज्जु होती ही नहीं है.

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