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२५ जुन नहेरुवीयन कोंग्रेस बनी भारतका एक कलंक
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अडवाणी, आपातकाल, इन्दिरा गांधी, चरणसिंग, जयप्रकाश नारायण, नरेन्द्र मोदी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, पराजय, प्रधान मंत्री, मोरारजी देसाई, रुह, विसंवाद, २५ जुन on June 24, 2015| Leave a Comment »
अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर-३
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged आंदोलन, आतंकवाद, आत्माकीआवज, आपातकाल, इन्दिरा, कोमीदंगा, गरीबीहटाओ, चरणसिंग, चूनावी, नहेरुवीयन, प्रपंच, भ्रष्टाचार, मोरारजीदेसाई, रणनीति, सत्ता, समाचारमाध्यम, सीमापार, स्वर्णमंदिर on April 4, 2014| Leave a Comment »
अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर-2
के अनुसंधानमें इसको पढें
नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लियेनहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.
नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थी, वह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लिया. नहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थे. उन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लिया. उनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थी. लेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था न तो समाधान कारी टीका कर सकता था.
नहेरुकी तरह ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.
मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थे. इस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई.
ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थी. चूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचके) देनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहो. जनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहो. समाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.
जर्क देने वाली प्रवृत्तिः
पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः
१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः
आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार:
ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?
ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थे. मुझे गरीबी हटानी है. इसलिये मेरा नारा है “गरीबी हटाओ”.
समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दी. क्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करें, वे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.
राष्ट्र प्रमुख का चूनाव आ पडा था. सींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुख. पक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थे. ईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थीं. उन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दिया. वह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.
इन्दिराका फतवा
ईन्दीरा गांधीने “आत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया कि, राष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहिये. आत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देना. राजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव है. विपक्ष बिखरा हुआ था. जो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनाया. कोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते है, उनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहित, जरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.
ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाई. यह बात गैर कानुनी थी. फिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गया. कोई रोक टोक हुई नहीं.
राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान है. उस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गये. इस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुए. ईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवाया. इसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त की. कथा तो बहुत लंबी है. असली कोंग्रेस कौन? क्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थी. जो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.
ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगा. क्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थे. मूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एन) से उल्लेखित किया गया. दुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस ओ (ओर्गेनीझेशन).
सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?
यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.
जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः
१९६९–७०का चूनाव
जनताको कैसे विभाजित करें?
गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं था. लेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था कि, नहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०–६५के उपरके हो गये थे) नहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थे. इसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ कि, अब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास आ गया है. अब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.
युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग था, राजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें आ गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते है. साधानशुद्धि, प्रमाणभान, प्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.
नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थे. जो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गये. इन नामोंमे जगजिवनराम, यशवंतराव चवाण, ललित मिश्रा, बहुगुणा, वीपी सिंग आदि कई सारे थे.
सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थे. उनको परास्त करना जरुरी था. बदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय था. लेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल था. मोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?
गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा
गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया था. लेकिन वह पर्याप्त नहीं था. १९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय है. यह एक लंबी कहानी है. परिणाम यह हुआ कि, मोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (ओ), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गया. और १९६९–७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें भी उसको २४मेंसे ८ बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थीं. यह हो सकता है कि, मुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था. १९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थे. बीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्ष, संयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थे. लेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता.
जितके कारण और विधानसभा चूनाव
१९७१में पाक– युद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिली. उसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया. १९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजाय, अन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिला. गुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.
मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दिया. नवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती है, इसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.
चूनाव प्रपंच और गुड गवर्नन्स अलग अलग है
इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थीं, लेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थीं. विदेश नीति रुस परस्त थी. सिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया था. इन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थीं. महंगाई और करप्शन बहुत बढ गये. इन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थीं, इसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गया. समाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थीं. गुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्र, नहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गये. सर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.
इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा था. गुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा था. ईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है. गुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थी. और नया चूनाव भी देना पडा था. उसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीय, आदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थी. गुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा था. विपक्ष एक हो रहा था. इन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.
सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा की, और विरोधियोंको जेल भेज दिया. समाचार के उपर सेन्सरशीप लागु की. सभासरघस पर प्रतिबंध लागु कर दिये. क्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा कि, समाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा है. आपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा था, क्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं था. गवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता है. यह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम है. यह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं है. सियासतमें लचिलापन चल सकता है. गवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं है. इन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थीं. जो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकते. इन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते है, और सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको ही मतदान करेगी. आपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा था. इन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास किया. लेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार किया. इतना ही नहीं यह भी पता चला कि, भारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज न सके.
१९८०का चूनाव
इन्दीरा गांधीने १९६९ से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.
गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२–७३में इन्दिरा की ईच्छा न होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थी, कि इन्दीरा गांधीने तेल-मीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया था. उत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश था. अंकूश पैसेसे बिकते थे. युनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था. १९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे. १९७९–८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थी. आपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है कि, जमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थे. आज जो राजकारणमें पैसेकी, शराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती है, उसके बीज नहीं, लेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.
१९७७ में जब आखीरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं है, तो उसने उम्मिदवारोंको उनके भरोसे छोड दिये थे. नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी.
१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आये. चरण सिंह जिन्होने खुदको महात्मा गांधी वादी मनवाया था, वे इन्दिरासे बिक गये. मोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिराया. नये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगे. समाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा की. ईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.
१९८०–१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआ. पंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा किया. इन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थीं. इन्दीरा गांधीने जैसी उसने बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें अनिर्णायकता और कमजोरी रक्खी, वैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें किया. ईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातरा शस्त्रोके साथ घुसने दिये और आश्रय लेने दिया. दुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को न पकड सके. भारतमें भी अगर कोई चोर धर्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकती, ऐसा कोई कानुन नहीं है. लेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लिये, एक कानुन पास किया कि, अगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती है. जब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गया. लेकिन बहुत देर हो चूकी थी. कई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे.
(क्रमशः)
शिरीषमोहनलालदवे
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अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस उसको कहेगी कि “हमारे आगे झुको” तो यह पोलीस तंत्र “साष्टांग दंडवत प्रणाम” करने लगेगा.
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ईन्टरनेट वेबसाईट और सोसीयल नेट वर्कींग पर सरकार क्या कर सकती है और क्या करेगी?
सरकार और वह भी नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकार और उसके सहयोगी पक्ष कुछ भी कर सकते है.
आप कहेंगे कि सहयोगी पक्ष क्यों ऐसे काले और जनतंत्र के खिलाफ कार्यवाहीमें कोंग्रेस को समर्थन देगा? तो जवाब है, नहेरुवीयन कोंग्रेसको समर्थन करने वाले तभी उसको समर्थन कर सकते हैं जब उनको नहेरुवीयन कोंग्रेसकी जो आततायी करतूतें इतिहासिके पृष्ठों पर देशके लिये एक कालीमा के रुपमें प्रस्थापित है और उनको ज्ञात भी है तो भी वे यह नहेरुवीय कोंग्रेसका समर्थन करते है, उसका मतलब यही है कि इन पक्षोंको भी ऐसे कर्मोंसे कोई छोछ नहीं है. और आप देख सकते हैं कि मुलायम, माया, ममता करुणा, शरद, लालु, अजितसिंघ और साम्यवादी जैसे लोंगोका इतिहास और कार्य शैली कैसी है?
मुलायम सिंह वोटबेंक को धर्म के नाम से आगे बढाना चाहते है. मुलायम को मुल्ला मुलायम क्यों कहते थे इसबातके लिये आप कोई भैया जि से ही पूछीये.
मायावतीका संस्कार ईन्दीरा गांधी जैसा है वह सत्ताके लिये कोई भी हद तक जा सकती है.और मायावतीके पास सिद्धांतोका संपूर्ण अभाव है. कल तक वह कहती थी कि “तिलक तराजु और तलवार इसको मारो जूते चार.” अब वह कहती है “ये हाथी नहीं गणेश है” चलो इसको तो हम यह समझकर भूल सकते हैं कि उसको लगा कि सबको साथ लेके चलना है. उसको भी ईन्दीरा गांधी की तरह अपने गुरु-पूर्वजोंकी प्रतिमाएं स्थापित करके इतिहासमें जनता के पैसोंसे अमर होना है. बाजपाई सरकारको क्षुल्लक बातोंसे अयोग्य दबाव लाके समर्थन वापस लेनेकी बात उठाती थी. मायावतीके दोहरे मापदंड है. खुदके लिये और अन्य लोगोंके लिये.
ममता बेनर्जीने बाजपाई सरकारको समर्थन दिया था. लेकिन उसका वर्तन तो मायावतीसे भी बढकर था. जिसके तडमें लड्डु उसके तडमें हम. कहा जाता है कि उसने माओवादीयोंके साथ और नक्षलवादीयोंके साथ प्रच्छन्न समर्थन गत विधान सभा चूनावमें लिया था. जो लोग बाजपायी को समर्थन करे और जब बीजेपी को बहुमत न मिले तो उसके विरोंधी और लोकशाही मूल्योंका विद्धंश के लिये कुख्यात पार्टी (नहेरुवीयन कोंग्रेस) का समर्थन करें उसका भला कैसे विश्वास किया जा सकता है. जो व्यक्ति सर्वोदय नेता लोकमान्य जयप्रकाश नारायणकी जीप पर खडी होकर नृत्य करती है, और समय आने पर उसी जयप्रकाश नारायण को मृत्युके मूखमें ढकेलने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकारका भी समर्थन कर सकती है, उसके उपर तो दिमागकी बिमारी वाले विश्वास कर सकते है.
करुणानीधिका किस्सा तो जग प्रसिद्ध है.और ईसके वर्णन की कोई आवश्यकता नहीं है.
शरद पवार वैसे तो पहेले कोंग्रेस (ओ) में थे. फिर यशवंतराव चवाण के साथ नहेरुवीय कोंग्रेसमें गये. कटोकटी (इमरजेन्सी) मे वह नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी रहे. १९७७में वे अलग हुए. फिर पता नहीं कितने दलबदल किये. कहा जाता है कि इनके बारेमें दाउदसे अच्छा कोई नहीं जानता. अगर आप के पास फर्जी करेन्सी नोट है और अगर यह बात सिद्ध हो गयी तो वह करेन्सी नोटकी किमत शून्य हो जाती है. अरबों रुपये के फर्जी स्टेम्प पेपर
बने थे और वे बिल्डरोंको और अन्योंको वितरित हुए थे. सरकार पने रिकोर्डसे पता लगवा सकती है कि, ये फर्जी स्टेम्प पेपर कहां कहां उपयोगमें आये. इतनी तो गुंजाइश तो सरकारमें होनी ही चाहिये. लेकिन ऐसा क्यों नहीं होता है? फर्जी स्टेम्प पेपरका मूल्य शून्य क्यों नहीं बनजाता है? यह सब कमाल किसकी है?
लालुजिने अपनी सरकार एसी चलाई जो ढोरोंकी खास भी ढंगसे वितरण न कर पायी. वास्तवमें सरकारी अफसरोंका और खासकरके उत्तरभारतमें तो बांये हाथकी सरकारी अफसरोंकी कमाई एक विशिष्ठ योग्यता मानी जाती है. और जब ये सरकारी अफसरोंको पता चलता है कि उनका मंत्रीवर्य भी अपन जैसा ही है तब तो उनकी सीमा ओर विस्तृत हो जाती है.
अजितसिंघके पिताश्री चरणसिंहको इन्दिरागांधीने विश्वास दिलाया था कि उसकी पार्टी चरण सिंह को सहाकार करेगी और दोनोंने मिलकर मोरारजी देसाई की जनतापार्टीकी सरकारको लघुमतिमें लादी थी. बादमें इन्दीरा गांधीने चरणसिंहका विश्वासघात करके उनको सहाकर नहीं दिया था. और चरण सिंहको मूंहकी खानी पडी थी. तो भी उनका यह पूत्र अजितसिंह इस विश्वास घातको भूल कर सिर्फ सत्तामें भागके लिये उसी ईन्दीराई नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधनमें है. इससे ज्यादा पिताजीकी नालेशी क्या हो सकती है? और ऐसे “प्रहारजनिता व्यथाको” गर्दभकी तरह भूल जाने वालेका क्या विश्वास कर सकते है?
अगर नहेरु की पूत्री सीनीयर न होने पर भी भारतकी प्रधानमंत्री बन सकती है तो लालुप्रसाद यादव की पत्नी क्यों मुख्य मंत्री बन न सके? अगर नहेरुवीयन कोंग्रेसके एक प्रधान मंत्री की एक पुत्रवधू कोमन समान मंचपर आके विपक्ष के कोई नेता के साथ चर्चा नहीं कर सकती और समाचार माध्यम पूत्रवधूमें कोइ अपूर्णता और टिकात्मकता देखना नहीं चाहते तो लालुजिकी पत्नी को भी समान मंचपर गोष्टि करना कैसे जरुरी है? साध्यम इति सिद्धम्. समाचारमाध्यमके मालिकोंके लिये और उनके कटार मूर्धन्योंके लिये तो “तेरी बी चूप और मेरी बी चूप हो गई”. मीडीया बिकाउ है इसका इससे उत्कृष्ट उदाहरण क्या हो सकता है?
साम्यवादीयोंका कोई देश और धर्म नहीं होता. जनताको उल्लु बनानेके लिये उसको आघात देते रहो और जनताको गुमराह करते करते अपना शासन करते रहो. पश्चिम बंगालमें तीन दसक तक साम्यवादी शासन रहा. क्या पश्चिम बंगालमेंसे गरीबी हट गई? क्यां वहां पर आदमीसे खिंचीजानेवाली रीक्षाके स्थान पर सीएनजीसे चलने वाली रीक्षा आ गई या दी गई? हरि हरि करो. ऐसा कुछ हुआ नहीं. सीएनजी क्या !! सायकल रीक्षा भी नहीं आयी.
अहमदाबादमें एक सप्ताहमें ही नरेन्द्र मोदीने सभी पेट्रोलकी रीक्षाओंको सीएनजी रीक्षामें परिवर्तित करदीया था. अहमदाबादमें १९५१के बाद सायकल रीक्षा ही खतम हो गई. १९५२से अहमदाबादमें ऑटोरीक्षा ही है. जो नरेन्द्रमोदीने एक सप्ताहमें किया वह नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादी पक्ष साठ सालमें भी नहीं कर पाये.
नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादीयोंमें क्या फर्क है? खास कोई नहीं. जो निघृष्ट कार्य नहेरुवीयन कोंग्रेस खुदके उपर आपत्ति आने पर विरोधीयों और जनताके उपर करती है वह कार्य साम्यवादी लोग हर हालतमें करते है.
कोंग्रेसके उपर आपत्ति आयी तो पैसे के लिये बेंकोका राष्ट्रीयकरण किया, नैपूण्य के स्थानपर युनीयनबाजी को प्रोत्साहन दिया. अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले विरोधियोंको अनियत कालके लिये कारावासमें डालदिया, समाचार माध्यमोंपर सेन्सरशीप लगा दी, यहां तक कि, अगर कोई केसमें उच्च न्यायालयमें सरकारकी पराजय हूई तो ऐसे सरकारी पराजयके समाचार पर भी सेन्सरशीप रही. अपनवालोंको लूटका अलिखित स्वातंत्र्य दे दिया. ऐसे तो कई कूकर्म इमर्जेन्सीमें हूए. यह साम्यवादी पक्ष तो चाहता था कि, इमर्जेन्सीके अंतर्गत नहेरुवीयन कोंग्रेस साम्यवादी पक्षमें विलिन हो जाय या तो संपूर्ण साम्यवादी तौर तरिके अपनाके एक नये साम्यवाद स्थापनेकी क्रांतिकारी कदम उठावे. लेकिन साम्यवादी लोग यह समझ नहीं पाये के कि भारतमें लोकशाही विचारधारा और सुसुप्त जनशक्ति असाधारण और गहरी थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपने सर्वोच्च नेताके कारण मूंहकी खानी पडी तो भी यह नहेरुवीयन कोंग्रेस ने कोई शिख नहीं ली. वह आज भी विरोधियोंको येनकेन प्रकारेण फर्जी किस्से बनानेमें व्यस्त रहेती है. और खुदके सच्चे किस्सेके बारेमें मौन रहेती है और समाचारमाध्यम भी इन पर मौन रहे वैसा कारोबार करती है.
ऐसे समाचर माध्यमोंको सेन्सरशीपकी जरुरत भी क्या है? पैसे फेंको और जो करवाना हो वह करवा लो, जो लिखवाना हो, वह लिखवा लो, जो कटवाना हो वह कटवालो. जिनको यह नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले झुकवाना चाहते हैं वे तो साष्टांग दंडवत प्रणाम करनेके लिये भी तैयार है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस अब क्या कर सकती है? वह विरोधीयों के उपर फर्जी केस बना सकती है. जैसा उसने वी.पी. सिंह के उपर सेन्ट कीट के गैरकानुनी एकाउन्ट केस का किया था.
केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव जैसे लोगपर भी सरसव जैसे दोषोंको पहाड जैसे बताके कार्यवाही कर रही है और समाचारपत्रोमें उनको बदनाम करवा रही है.
लेकिन आमजनताकी आवाज जो ईन्टर्नेटके जरिये चल रही है उसको बंद कैसे करें इस समस्या पर नहेरुवीयन कोंग्रेस अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. जनमाहिति अधिकारको तो उसने नष्टप्राय कर दिया है. कैसे? जो भी कोई जनमाहिति अधिकारी होते हैं वे सबके सब तो वही विभागसे संलग्न होते है. जो हमेशा विलंब नीति अपनाके बाद कोई न कोई बहाना बनाके माहितिको टालनेका प्रयास करते है. जब आप माहिति कमिश्नरके पास पहोंचते है तब कमिश्नरोंकी नियुक्ति पर्याप्त और अपूर्ण होने के कारण केसोंका ढेर पडा होता है. जैसे न्यायमें देरी वह न्याय का इन्कार के बराबर है, वैसे भी माहिति देनेमें अपार विलंब भी माहिति न देनेके बराबर ही हो जाता है.
ऐसा ही अब जनसामान्य जो चर्चाप्रिय है और भ्रष्टाचारके विरुद्धमें अपना स्वर उंचा करते है, और वह भी ईन्टर्नेट माध्यम के द्वारा तो यह नहेरुवंशी कोंग्रेस इनलोंगोंके उपर आक्रमण के लिये तैयार है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस कैसे तैयार है?
जो भी भारतीय स्थानिक वेबसाईट है वे सब तो समाचार माध्यमोंकी तरह व्यंढ ही है.
इनके लिये व्यंढ शब्दका उपयोग करना भी व्यंढ लोगोंका अपमान करनेके बराबर है. कारण यह है कि व्यंढ लोग तो सिर्फ प्रजननके लिये ही व्यंढ है. इन लोगोंमे शूरविरता और देशप्रेमकी कमी होना जरुरी नहीं है.
लेकिन ये भारतस्थ वेबसाइट वाले तो डरपोक और बीना प्रतिकार किये आत्मसमर्पण करनेमें प्रथमकोटीके है. ये लोग समाचार माध्यमोसे कोइ अलग मनोदशा रखनेवाले नहीं है.
तो यह वेब साईट पर आक्रमण करवाना कौन चाहता है? कौन करवायेगा? और कैसे करवायेगा?
नहेरुवंशवादी कोंग्रेसको वेबसाईटकी स्वतंत्रता और पसंद नहीं है. क्योंकि वेबसाईट के सदस्य नहेरुवीयन कोंग्रेसके तथा कथित कारनामे पर आपसमें चर्चा करते है और इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी कमीयां बाहर आती है. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपनी कमीयोंको दूरकरना चाहती नहीं है. क्योंकि अगर दूर करेगी तो देशकी उन्नति हो जायेगी और देशकी उन्नति का मतलब है लोग पढे लिखे और समझदार हो जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी असलियतको पहचान जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्तासे हटा देंगे. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्तासे हट जायेगी तो जो अन्य सरकार आयेगी वो उसके उपर न्यायिक कार्यवाही करेगी. अगर नयी सरकार, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंपर न्यायिक कार्यवाही करेगी तो वे सभी नेतागणकी चूनावके लिये योग्यता नष्ट हो जायेगी अन्तमें उनको जेल जाना पडेगा. इतना ही नहीं लेकिन ये नहेरुवीयन फरजंदोने जनताके पैसोंसे जो बनी इमारतें और योजनाओंका नाम खुदके नामसे जोडा है, वे सब हट जायेगा. उनके बूत हट जायेंगे और उनके सभी अव्वल नंबरके नेताओंका नाम दूर्योधन, शकूनी, शिशुपाल, मंथरा, आदिके क्रममें आजायेगा. यह बात तो छोडो लेकिन उनको अपने रक्त-काला धनसे हाथ धोना पडेगा.
इसीलिये नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाईट की स्वतंत्रता पर अपना प्रभाव लाना चाह्ती है. लेकिन इसमें नहेरुवीयन कोंग्रेसको मदद कौन कर सकता है?
नहेरुवीयन कोंग्रेसको उसके साथीपक्ष मदद कर सकते है. क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्षकी मनोवृत्तियां और चरित्र भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की मनोवृत्तियां और चरित्रके समकक्ष हि है. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावमें हार भी गई तो ये पक्ष नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंका रक्षण करनेमें अपना दिलसे योगदान करेंगे क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसने भी समय समय पर इन पक्षोंके सदस्योंकी रक्षा की है.
नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाइट पर अपना प्रभाव डालने के लिये किसका सहारा लेगी?
नहेरुवीयन कोंग्रेस ये काम पुलीस डीपार्टमेन्टके द्वारा करवायेगी. क्योंकि यह डिपार्टमेन्ट हो एक ऐसा डिपार्टमेन्ट है जो हमेशा गलत काम करनेमें प्रथम क्रम में रहेता है. जो डिपार्टमेन्ट फर्जी एनकाउन्टर करता है वह क्या क्या नहीं कर सकता!!
वह आपके पेजको हैक करसकता है. वह आपके पेजपर कुछभी आपत्ति जनक लिखके आपके पेज को और आपको बदनाम करके आपके पेजको सेन्सर करके उसको नष्ट कर सकता है.
ऐसा अगर न भी करें, तो भी आपके पेज को बेवजह ही नष्ट कर किया जा सकता है. वजह यही बतायेगा कि आपने नहेरुवीयन कोंग्रेसके खिलाब बेबुनियाद लिखा है और इसलिये आपका पेज नष्ट किया गया है. और यह पता लगानेके लिये भी आपको महिनों तक वेबसाईट के साथ लिखावट करनी पडेगी तब कहीं यह वेबसाईटवाला आपको बतायेगा कि पूलिसकी सूचना पर उसने आपका पेज नष्ट किया है. फिर आपको पूलिस-डिपार्टमेन्टसे “जन माहिति अधिकार”का उपयोग करके और उसके बाद न्यायालयमें जाके अपने हक्क के लिये लडना होगा. इसमें आपका कमसे कम एक साल चला जायगा. अगर आपके पास पैसे है तो ऐसे वेबसाईटसे और सरकारसे नुकशान वसुली करवा पायेंगे. लेकिन ऐसा करनेमें आपको सिर्फ यह काम के लिये हि हाथ धोके पीछे पडना पडेगा.
नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्ष चाहतें है कि जनता यथावत ही रहे. सबकुछ यथावत ही रहे ताकि वे लोगभी अपना काम यथावत ही कर सके और अपनी बहत्तर पेढीयोंका उद्धार करसके.
वे यह नहीं चाहते हैं कि आप लोग अपने मित्रोंके साथ माहिति और विचारोंका आदानप्रदान करे भ्रष्टाचार और असत्य के सामने आवाज उठानेके लिये कोई योजना बनावे.
ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्य खुद कुछभी अनापसनाप बोलसक्ते हैं. उनके उपर कोइ पाबंदी नहीं. उनके पक्षीय महामंत्री बेबुनियाद आरोप लगा सकते है, और सरकारी प्रसार माध्यमभी उसका खुलकर प्रसारण करेंगे. उसमें इस नहेरुवीयन कोंग्रेसको कोई कठिनाई और आपत्ति या बेइमानी दिखाई नहीं देती. लेकिन अगर आप रामराज्यकी बात करेंगे तो उनको आपत्ति होगी और आपका वेबसाईट परका पेज नष्ट होगा.
वैसे तो लोकतंत्रमें आप आपके मित्रोंके साथ कुछभी विचार विनिमय कर सकते है. लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस एक दंभी, स्वकेन्द्री और आपखुद चरित्र और संस्कार होने के कारण आपके अधिकार पर कोई भी आघात कर सकती है. और ये कमीना पोलीस तंत्र ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके आदेशोंका पालन करने के बारेमें दिमागसे अंध है और अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस उसको कहेगी कि “हमारे आगे झुको” तो यह पोलीस तंत्र “साष्टांग दंडवत प्रणाम” करने लगेगा. जो खुद भ्रष्ट और नीतिहीन है उसकी करोडराज्जु होती ही नहीं है.