वे जगतके तात है तो हम जगतके तातके तात है
जगतके पितामहका एवं मातामहका प्रार्थना पत्र
माननीय, प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा माननीय गृहमंत्री अमित शाह,
विषयः ग्राहक सुरक्षा नियम रद कारवाने के लिये आंदोलन करने के लिये प्रार्थना पत्र एवं पूर्व-सूचना.
अनुसंधानः उपभोक्ता संरक्षण नियम, अधिनियम
हम ग्राहक लोग, सरकार द्वारा पारित ग्राहक सुरक्षा नियम और अधिनियम जो भी हो वो, उसके विरुद्ध आंदोलन करने जा रहे है.
(१) प्रदर्शन स्थलः
आप, हमे प्रदर्शनके लिये दिल्लीमें योग्य स्थल सूचित करें. यह स्थालका क्षेत्रफल १०००० चोरस किलोमीटर का होना अनिवार्य है.
यदि आपके पास इतना विशाल स्थल नहीं है तो यह आपकी समस्या है, हमारी समस्या नहीं. यदि आप हमें कमसे कम १०००० चोरस किलोमीटर का विस्तारवाला स्थल नहीं दोगे तो हम दिल्लीमें बलपूर्वक प्रवेश करेंगे और संसद भवनकी कार्यवाहीको चलने नहीं देंगे.
आप हमे १०००० चोरस किलोमीटर की औचित्य क्या है, ऐसे प्रश्न न करें, तो आपके लिये यह शोभनीय रहेगा.
आपको अवश्य ज्ञात होगा कि जब देशमें १९ कोटी कृषक (किसान) है तो किसानोंके अतिरिक्त जो बचे वे सर्व उपभोक्ता है. तात्पर्य यह है कि यदि हम दिल्लीमें एक लाख चोरस किलोमीटर जगह मांगे तो भी कम है.
आप कहोगे कि पूरे दिल्लीका विस्तार ही १५०० चोरस कीलोमीटर है और इसमें मकान, संकुल, कार्यालय भी संमिलित है. तो हमें १०००० चोरस किलोमीटरका विस्तार कैसे दे पाओगे?
हमने आपको पहेसे ही कह दिया है कि यह आपकी समस्या है. वैसे तो हमें नहीं कहेना चाहिये कि रा.गा.जी (राहुल गांधीजी)का कथन था कि,आपने अंबाणीको को कच्छमें ५००० करोड एकड भूमि दान कर दी है. वैसे तो समग्र पृथ्वि पर ही ३८०० करोड एकड से कम भूमि है. यदि आप ५००० करोड एकड भूमिदान अंबाणीको कर सकते है तो हमें १०००० चोरस किलोमीटर भूमि अस्थायी उपयोगके लिये क्यूँ नहीं दे सकते?
हम आपसे अपेक्षा रखते है कि आप हमें तर्कशुद्धतासे चर्चा करना नहीं कहोगे. हम तर्कमें मानते नहीं है. आपने जब हमारी संतान यानी कि किसान-प्रतिनिधियोंसे ऐसी ही सहानुभुति रक्खी है तो हमसे भी वैसा ही व्यवहार करोगे.
(२) प्रदर्शन और विरोध करना हमारा अधिकारः
यदि आपकी सरकार, हमें आंदोलनके लिये उपरोक्त विस्तारवाला स्थल देनेमें विफल रही तो, हम, दिल्लीमें आनेवाले भूमिगत यातायात मार्ग ही नहीं, रेल और हवाई मार्ग सहित सभी मार्ग बंद कर देंगे. और इन मार्गों पर, हम अपना अस्थायी निवास बनाके, सरकारका विरोध करेंगे. हम बडी सज्जताके साथ आंदोलन करने वाले है. हमें ज्ञात है कि हमारा आंदोलन सुदीर्घकाल चलनेवाला है.
(३) हमारी मांग है कि सरकार उपभोक्ता कानून रद करें. हम चर्चाके लिये सज्ज है किन्तु जब तक उपभोक्ता कानून रद नहीं होगा तब तक हमारा आंदोलन प्रवर्तमान रहेगा.
(४) जनतंत्रमें विरोध आवश्यक है इसमें वैश्विक संमति है. आपने और आपकी सरकारके आधिकारिक पदस्थ वाले विद्वानोंने भी इस बिन्दुका स्विकार किया है. हम अपना विरोध अहिसक रुपमें करेंगे. हम संविधानकी पुस्तक हाथमें रख कर विरोध करेंगे. हम राष्ट्रध्वज हाथमें लेके विरोध करेंगे. हम “भारतवर्ष अमर रहो” लिखित विशाल पताका दिखाके प्रदर्शन करेंगे. हम किसीके उपर भी, प्रहार नहीं करेंगे. शस्त्र प्रहार या मुष्टी प्रहार या दंड-प्रहार भी नहीं करेंगे. हम देश-विरोधी सूत्रोच्चार भी नहीं करेंगे.
(५) हो सकता है कि हम लोगोंके अंदर, कुछ देश विरोधी व्यक्ति और हिंसक व्यक्ति घुस जाय. हम इस शक्यताको नकार नहीं सकते. कृषि-कानूनके विरोध करनेवालोंके कुछ दलोंमें “मोदी तू मर जा…. इन्दिराको हमने ठोक दिया तो मोदीको भी ठोक देंगे … खालिस्तान जिंदाबाद … “ ऐसे सूत्रोच्चार हो सकते है तो हमारी तो दिल्ली जानेवाले हर मार्गों पर हजारों लाखोंमें विरोधी लोग होगे. उनमें ऐसा होना सहज है.
(६) जैसे आपने कृषि-कानून के (५) में दर्शित देशविरोधीयोंके आचरणकी उपेक्षा (नजर अंदाज किया है) की है, वैसी ही उपेक्षा आप, हममें स्थित उपद्रवी तत्त्वोंकी करें.
(७) “अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रता” और “कानूनका विरोध करना” जनतंत्रका एक आवश्यक अंग है. और हम जनतंत्रवादी होनेके कारण ये सब कर रहे है. और उसके संबंधित प्रबंधन व्यवस्था, यानी कि, बकरा, बैल, भैंस, सुवर, चिकन, मटन, गोस्त, अन्न, फल, कन्द, बिर्यानी, पीत्झा, बर्गर, व्हिस्की, रम, शेम्पेईन, वोडका, श्वेत-व्हाईन, रेड-व्हाईन, चालु-व्हाईन, जीन, टोम कोल्लिन्स, ब्रान्डी, टेलीक्वीला, मार्गारीटा, (ड्रग्ज़की बात नहीं करेंगे किन्तु व्यवस्था अवश्य करेंगे), भीन्न भीन्न प्रकारके व्हीस्कीयोंको उग्र करनेके लिये अश्वका मूत्र … आदिका संचय करना, यातायातके मार्गों पर इंधन गेस आधारित, लकडी आधारित चूल्हा जलाना, विशाल पात्रोंमें भोजन पकाना, आंदोलनकारीयों के लिये भोजन-पात्रों की व्यवस्था करना, उनकी सफाई करना, पानीकी व्यवस्था करना, मालवाहकोंमें माल लाना, आंदोलनकारीयोंके लिये सोने की व्यवस्था करना, जब सूत्रोच्चार करनेसे उनके मूखारविंद श्रमित हो जाय तो आराम करनेके लिये आराम-कुर्सीयां और सोफा की व्यवस्था करना, ज्ञान ईच्छुक आंदोलनकारीयोंके लिये और ज्ञानी आंदोलनकारीयोंके लिये अधिक ज्ञान प्राप्त करनेके लिये पुस्तकालयोंकी व्यवस्था करना, शित ऋतुके कारण, आंदोलनकारी लोग सुविधापूर्वक आंदोलन कर सके उनके लिये उष्मावर्धक यंत्रोकी व्यवस्था करना, और उष्मऋतुमें शित-हवा उत्सर्जित करनेवाले यंत्रोंकी व्यवस्था करना, सभी यंत्रोंको स्वस्थ रखनेके लिये तजज्ञोंको नियुक्ति करना … ये सब तो हमने आपको संक्षिप्तमें बताया. हमारी सूची तो अति अधिक सुदीर्घ (बहुत लंबी) है. वह तो हम हमारी गोदीमें बैठनेवाले समाचार मध्यमोंको, हमारी गोदीमें बैठनेवाले मूर्धन्योंको, हमारी गोदीमें बैठनेवाले विश्लेषकोंको, हमारी गोदीमें बैठनेवाले कोलमीस्टोंको, हमारी गोदीमें बैठनेवाले संवादकोंको, बतायेंगे …
(८) हम आपके साथ किसीभी चर्चाके विषयमें किसीभी प्रकारकी सूची नहीं देंगे. आप यदि हमें आपकी सूची दोगे तो हम उसका उत्तर नहीं देंगे. हाँ हम चर्चा अवश्य करेंगे. हम चर्चा करनेसे दूर भागते नहीं हैं. हम चर्चा तो करेंगे ही किन्तु आंदोलन चलता रहेगा.
(९) हम तो जगतके तातके तात है.
यानी कि हम किसानके बाप है. यदि किसान जगतका तात है तो हम इस तातका भी बाप है. मान लो कि किसानने हमसे अन्न नहीं लिया तो क्या हुआ?
क्या अन्न ही सर्वस्व है?
जब कृषिका आविष्कार नहीं हुआ था तो क्या मनुष्य जीवित नहीं रहेता था?
क्या किसानको वस्त्र नहीं चाहिये?
क्या किसान नंगा रहेता है?
वैसे तो जैनोंके कुछ साधुलोग नंगा रहेते है, किन्तु वे किसान कहां है?
क्या किसानको निवास नहीं चाहिये?
क्या किसानको चिकित्सक नहीं चाहिये?
क्या किसानको संसाधन नहीं चाहिये?
क्या किसानको यातायातके साधन नहीं चाहिये,
क्या किसानको शिक्षा नहीं चाहिये?
क्या किसानको सहयोगी नहीं चाहिये?
क्या किसानको सुरक्षा नहीं चाहिये?
किसानको ये सब चाहिये.
किसानको ये सब देनेवाले कौन है?
हम ही तो है.
यही तो भीन्नता है मनुष्य और पशुके बीचमें.
और ये सब देनेवाले हम, किसानके भी बाप है.
यदि किसान जगतका तात है,
तो हम जगतेके तातके बाप यानी कि पितामह है.
(९) आप हमें ऐसा मत कहेना कि “आपको यदि अन्याय हुआ है तो आप न्यायालयमें जाओ… कानून आपने बनाया है तो कानून तो आपको ही रद करना पडेगा.
(१०) याद करो न्यायालयने कृषि-कानूनका विरोध कर रहे आंदोलनकारीयोंके प्रति क्या अवलोकन किया था?
(१०.१) क्या उन्होंने तर्ककी चर्चा की थी?
न्यायालयने किसानको तो कुछ भी नहीं कहा है.
(१०.२) न्यायालयने तो सरकारको डांटा कि “यदि आपका संवाद चल रहा है तो क्या उस समयके लिये कानून स्थगित कर दिया जाय?”
जब सरकारने कहा कि “हम सबके साथ संवाद कर रहे है इसलिये कानून स्थगित करना ठीक नहीं होगा.”
(१०.४) तो न्यायालयने तो कहा कि “हम तो सरकारसे निराश है”. न्यायालयने तो सरकारको ही डांटा कि “आप, कैसी कार्यवाही कर रहे है कि आप निस्फल रहेते हो.” न्यायालयने कभी आपसे आपकी और किसान नेताओंके बिचकी चर्चाका विवरण नहीं मांगा. यानी कि किसानोंके क्या बिन्दु थे और आपने उनका क्या उत्तर दिया. और आपने क्या मुद्दे उनके समक्ष रक्खे और उन्होंने क्या उत्तर दिया … इन सबका विवरण न तो आपसे मांगा न तो किसान नेताओंसे मांगा.
(१०.५) जब सरकारने कहा कि “कई सारे किसान संगठन कानूनके समर्थनमें है.”
इस बात पर न्यायालयने क्या कहा मालुम है?
न्यायालयने कहा हमारे सामने तो ऐसा कोई आया नहीं.
(१०.६) क्या आप ये समज़ते है कि न्यायालय अखबार पढे … टीवी चेनल देखें … कृषि-कानूनके समर्थकोंको नोटीस भेजें …?
यह मत पूछना कि न्यायालयने यह कैसे कहा कि आंदोलनकारीयोंमे वृद्ध है, शिशु है, महिलाएं है … बाहर ठंड है … जो आत्म-हत्याएं हूई वे सब नये कानूनके कारण हूई … जो लोग आंदोलनकारीयोंमें थे, या तो उनको आंदोलनकारी मान लिया गया था, वे कौन थे, कहाँसे आये थे, उनमेंसे जो मरे वे अन्य कारणसे नहीं किन्तु नये किसान-कानूनके कारण ही मरे. न्यायालयने अपना तारतम्य किस/किन आधार पर निकाले? क्यों कि सरकारने या तो न्यायालयने ऐसी कोई जाँच समिति तो बनायी नहीं थी.
(१०.७) जब सरकारने कहा कि “हम कानून स्थगित करनेको तयार है, यदि न्यायालय आंदोलनकारी किसानोंको आदेश दें कि, वे अपना आंदोलन स्थगित कर दे.”
तो इसके उपर न्यायालयने क्या कहा मालुम है? न्यायालयने कहा कि “हम ऐसा आदेश कभी भी नहीं देंगे कि, आंदोलनकारी किसान अपना आंदोलन स्थगित करें. हम वह कह सकते हैं कि वे मार्ग यातायातके लिये साफ करें.”
न्यायालयके इस कथनका संदेश आप समज़े या नहीं समज़े?
नहीं समज़े तो अब समज़ो;
किसान आंदोलन का प्रारंभ ९ अगस्त २०२०से हुआ था. न्यायालय, सुओ मोटो अंतर्गत ही, “रास्ते यातायातके लिये साफ करो और सरकार जो निर्देश दे उस स्थल पर आंदोलन/प्रदर्शन करो” ऐसा आदेश देनेके लिये सक्षम था. किन्तु न्यायालयने ऐसा नहीं किया.
इतना ही नहीं, जब जनहितमें की गयी याचिकाएं न्यायालयके पास है तो भी, न्यायालयने “यातायातके लिये साफ मार्ग” के बारेमें आदेश दिया नहीं. जब ४ जनवरी को न्यायालयने, याचिका सूननेका प्रारंभ किया तब भी, अंतरिम आदेश दिया नहीं. और ११ जनवरीको ऐसा माना भी, कि स्वयं ऐसा आदेश देनेके लिये सक्षम है, तो भी अंतरिम आदेश दिया नहीं, न तो किसीको न्यायिक सूचना (notice) दी.
(१०.८) आपने देखा ही होगा कि दुसरे दिन न्यायालयने, सरकारको ही लताड दी कि, आप एक समिति नहीं बना पाये. न्यायलयने चार सदस्योंकी समिति बनायी. वास्तवमें तथा-कथित किसान-आंदोलनके नेताओंने तो, आपका, समिति बनानेका प्रस्ताव ही ठूकरा दिया था. किन्तु ये तथ्य, जानते हुए भी न्यायालयने आपको ही लताडा. और मजेकी बात तो यह है, कि, न्यायालयकी बनायी हुई समितिको भी इन्ही नेताओंने अमान्य कर दिया. उन्होंने तो साफ बोल दिया कि, हमे तो कृषि-कानून रद करनेके सिवा, कुछ भी स्विकार्य नहीं. न्यायालयने फिर भी, उनके उपर, न्यायालयकी अवमाननाकी तो बात ही छोडो, न्यायालयने उनको कठोर या नरम शब्दोंमें डांटा तक नहीं. मजेकी बात है न … !, कि न्यायालयका रवैया, उग्र और मालेतुजार आंदोलनकारीयोंके प्रति कैसा “सोफ्ट है”!
(१०.९) आप समज़ो और अपनी स्मृतिको टटोलो. सर्वोच्च न्यायालयके एक निवृत्त न्यायाधीशने, एक टीवी चेनलके साक्षात्कारमें क्या कहा था? यह निवृत्त न्यायाधीशने एक प्रश्नके उत्तरमें कहा था कि, जब तक लुट्येन गेंगोंका प्रभाव, न्यायाधीशों परसे दूर नहीं होगा, तब तक न्यायालाय स्वतंत्रता पूर्वक न्याय, नहीं दे पायेका.
(१०.१०) न्यायालयके इस प्रकारके व्यवहारसे आपको एक संदेश लेना है, कि आप हमारे आंदोलनके कार्यकर्ताओंके साथ भी ऐसा ही व्यवहार करेंगे, कि जैसा आपने शाहीन बाग, कृषि-नियम विरोधीयोंके आंदोलनकारीयोंके साथ किया.
(११) हमारी मांग है कि आप उपभोक्ता सुरक्षा नियम और अधिनियम रद करें.
हमारी इस मांग के प्रयोजनः
(१२) यह नियम और अधिनियम हमारे लिये नुकशानकारक और त्रासदायक है.
(१२.१) हमें न्याय मिलनेमें तीनसे अधिक स्तर बढ गये है.
(१२.२) हमें कागज दिखाने पडता है, कागज कैसा है वह कौन सुनिश्चित करेगा?
(१२.३) विक्रेताने जो कागज दिया वह सही है या नहीं वह बात अनपढ कैसे सुनिश्चित करेगा?
(१२.४) ग्राहकको वकिल रखना पडेगा, आपने तो कह दिया वकील अनिवार्य नहीं. किन्तु यह शक्य नहीं.
(१२.५) यदि विक्रेताने हमारी या फोरमकी कानूनी सूचना (लीगल नोटीस) लाने वाले को युक्तिसे भगा दिया, तो केस नहीं बनेगा,
(१२.६) यदि विक्रेताने या उत्पादकने अपना नाम नहीं बताया, गलत नाम बताया, नोटीस लिया नही, … तो केस नहीं बनेगा …
(१२.७) … यदि सबकुछ सीधा चला और फोरमने दंड भी लगाया, पर उसने दंड नहीं भरा, तो?
(१२.८) … ऐसा हुआ तो हमे “फोरमका अनादर हुआ” उसका केस करना पडेगा …
ऐसे तो हजार प्रश्न और कष्ट है.
संक्षिप्तमें कहें तो, हमे आंदोलन करना है. हमें हर हालतमें आंदोलन करना है.
(१३) न्यायालयकी संवेदनशीलता आपने भीन्न भीन्न समय पर भीन्न भीन्न देखा ही है.
(१३.१) बाबा राम देव ने २०१२में सरकारसे कालेधन के उपर जाँच के विषय पर आंदोलन किया ही था. उनका आंदोलन भी शांत और अहिंसक था. किसान आंदोलनसे विपरित, उनका आंदोलन आम जनहितमें था. कानून बनानेके लिये था. सरकारने उनको रामलीला मैदानमें आंदोलन करने की अनुमति भी दी थी. वे आंदोलनकारीयोंने देश विरोधी, सरकार विरोधी, प्रधान मंत्री विरोधी (नरेन्द्र मोदी तू मर जा … इन्दिराको हमने जैसे ठोक दिया,वैसे मोदी को भी ठोक देंगे, लाशोंका ढेर कर देंगे …) सूत्रोच्चार कभी भी किया नहीं था.
(१३.२) किन्तु २०१२की वह सरकार भीन्न थी. वह सरकार हलाहल, कोमवादी, वंशीय एकाधिकारवादी, भ्रष्टाचारसे लिप्त … ऐसी सेक्युलर, नरम, अनिर्वाचित प्रधानमंत्रीवाली जनतांत्रिक सरकार थी. जिसका नाम कोंगी यानी कि नेशनल इन्दिरा नहेरुगांधी कोंग्रेस (आइ.एन.सी) गठबंधनवाली युपीए सरकार थी.
(१३.३) ऐसी यु.पी.ए. की सरकारके सामने बाबा रामदेवकी नेतागीरीमें जनता रामलीला मैदानमें आंदोलन कर रही थी. उन आंदोलन कारीयोंने तो अपने मुद्दोंकी सूची भी दिया था. इन आंदोलनकारीयोंमें भी महिलाएं थी. वृद्ध भी थे. फिर भी उस सरकारने राम लीलाके मैदानके उपर आधी रातमें आक्रमण करके बलप्रयोगसे (ताडन पूर्वक) आंदोलन कारीयोंको भगा दिया था. तबसे बाबा रामदेव आंदोलन करना भूल गये है.
(१३.४) उस २०१२ वाले आंदोलनमें, न्यायालयकी संवेदनशीलता क्या थी वह जनता को अधिगत नहीं हो पायी थी.
(१३.५) जिन पक्षोंको चूनावमें जनताने पराजित किया ये पक्ष, कृषि-कानूनके विरोधमें प्रवर्तमान किसान आंदोलनके समर्थक है सामिल है. इन्होंने अपने शासन कालमें ही, कृषि-कानूनके समर्थनमें अपार वाणीविलास किया था. न्यायालयने इन सियासती तथ्योंकी अवहेलना करके, आंदोलनकारीयोंके प्रति उनकी उम्र, जाति, लिंग … को लक्ष्यमें लेके अपनी संवेदनशीलता प्रकट की है.
(१३.६) अवश्य एक बिन्दु और भी है. “सरकारी “एफ.आर. एवं एस आर (F.R. & S.R.)” के अनुसार, जो प्राधिकारी, कर्मचारी की नियुक्ति के लिये सक्षम है, वह सक्षम प्राधिकारी ही उसको निलंबित या पदच्युत कर सकता है. (Appointing authority only can suspend or dismiss an employee). यदि यह प्राधिकार उसको संविधानके अनुसार मिले है तो वह प्रात्यायोजित (delegate) कर सकता है, किन्तु यदि वह स्वयं प्रात्यायोजित होनेके कारण सक्षम बना है तो वह अन्यको प्रत्यायोजित नहीं कर सकता.
इससे क्या निष्कर्ष है?
नियम बनानेका काम संविधानने संसदको दिया है. संसद ही उस नियममें संशोधन या निलंबन या रद कर सकती है. संविधानने नियमको लागु करनेका अधिकार सरकारको दिया है. संविधानने या तो संसदने, न्यायालयको नियम बनानेका, उसको स्थगित करनेका या तो उसको रद करनेका अधिकार नहीं दिया. सरकार न्यायालयसे परामर्श कर सकती है, किन्तु न्यायालयके उपदेशको माननेके लिये बाध्य नहीं है.
ये सर्व प्रावधान न्यायालयको अवगत होने पर भी न्यायालयने कृषि-नियमको अपनी संवेदनशीलताके कारण, निलंबित किया है.
हम भी हमारे पूर्वानुमानसे, न्यायालयकी उसी प्रकारकी मानसिकता की, अपेक्षा रखते है, और आंदोलन करना चाहते है.
(१४) आप समज़ते होगे कि, हमको संसदमें हारे हुए पक्षोंका साम और दामका समर्थन है. इसलिये हम आपको भय और दंड (हप्ता वसुली वाले लोग जो “भय” दिखाते है वह “भय”, और सूपारी लेनेवाले का “कार्य”, यानी कि आपके किसी भी चहितेका अपहरण कर उसकी “हत्या” … ) दिखाते है. अधिक जानकारीके लिये आप बोलीवुडके महानुभावोंका संपर्क करे और लुट्येन गेंग जो न्यायालयके उपर, साम, दाम, भेद और दंड का क्रियान्वयन करता है, उनका संपर्क करें.
(१५) हम अपना सामर्थ्य दिखाना चाहते है. हम किसीकी निंदा करते नहीं है. हमे जो साफ दिखाई देता है वही हमें सिखाता है, कि, हमें कैसे, आंदोलन करना है, और कैसे आपके विरुद्ध वातावरण तयार करना है.
(१६) इस विषयमें हम भौतिक-शास्त्रके शास्त्री आलबर्ट आईन्स्टाईन वादी है और समाज-शास्त्रके शास्त्री महात्मा गांधीके वादी है. जैसे पदार्थकी गतिमें परिवर्तन क्षेत्र-बलसे होता है, वैसे ही मनुष्यकी मानसिकता मे परिवर्तन, सामाजिक वातावरणके क्षेत्र-बलसे होता है.
सामाजिक क्षेत्र आपके प्रति ऋणात्मक बने ऐसी कार्यवाही हम करेंगें. ये सब साम, दाम, भेद और दंड से होता है. आपको भी अनुभूति हो जाय, लुट्येन गेंग संसदको ही स्थगित कर सकती है उतना ही नहीं, संसदके बाहर भी उसके पास विशाल क्षेत्र है.
हम है किसानके अतिरिक्त आम जनतामें रही लुट्येन गेंग
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शिरीष मोहनलाल दवे
चमत्कृतिः
आपको इससे अधिक ज्ञानकी यदि आवश्यक है तो श्री संदिप देवका निम्न लिखित लींक पर वीडीयो देखें.
(India Speaks Daily)