Feeds:
Posts
Comments

Posts Tagged ‘जातिवाद’

कोंगी गेंग की एक और चाल – १

कोंगी गेंग की एक और चाल – १

आप समज़ते होगे कि पुलवमामें एक आतंकी हमला करवानेमें भारतकी कोंगी-गेंग-संगठनने,  [जिसमें विपक्षी संगठनके साथ साथ, टूकडे टूकडॅ गेंग, कश्मिरकी विभाजनवादी गेंग सामिल है उसने, पाकिस्तान, आइ.एस.आइ., पाकिस्तानी सेना …] कुछ बडी गलती कर दी. आप यह भी सोचते होगे कि कोंगी गेंगको लगता होगा कि यह तो पासा उलटा पड गया.

इस घटनामें दो शक्यताएं है. या तो इस गेंग संगठनने विस्तृत आयोजन नहीं किया होगा या तो आतंकी गेंगको आतंकी हमला करना है, इतना ही सिर्फ निर्णय किया होगा. समयके बारेमें सुनिश्चित निर्णय लिया नहीं होगा.

समय को सुनिश्चित करनेमें कोंगी गेंग संगठनकी क्या कठिनाइयां हो सकती है?

कोंगीयोंको पहेलेसे ही मालुम नहीं पडा था कि चूनावकी घोषणा किस तारिखको होने वाली है.

वैसे तो, कोंगीके कई मददगार, सरकारके हर विभागमें डटके बैठे हुए है. यानी कि, प्रशासनमें, न्यायालयमें, चूनाव आयोगमें और सुरक्षा संस्थाओमें. क्यों कि सामान्यतः व्यक्ति सहायकके प्रति कृतज्ञ बना रहेता है. वह कृतघ्न नहीं बनता. कोंगी और उनके बीचमें लेनदेनका संबंध रहेता है. भीन्न भीन्न किस्सेमें कैसी लेन देन होगी, वह संशोधनका विषय है.

तो कोंगी गेंगकी कहाँ चूक हो गई?

ऐसा लगता है कि, नरेन्द्र मोदीके शासन व्यवस्था तंत्रमें, कोंगी अपने पालतु जासुसोंसे पक्की माहिति नहीं निकलवा पाया. या तो कोंगीको गलत माहिति मिली. क्यों कि इमानदार होना भी एक चीज़ है.

मोदी सरकारके पास इन पुट तो थे ही कि, यह कोंगी-गेंग-संगठन कुछ आतंकी हमला तो करवाने वाला है. और चूनावके पहेले कुछ अनहोनी होने वाली है. हो सकता है कश्मिरसे दूर दूर तक जैसे २००८में मुंबई मे ब्लास्ट करवाया था, ऐसा ब्लास्ट फिर एक बार करवा दे, और उससे कौमी-दंगे कमसे कम मुंबईमें/या तो सूचित शहर/शहरोमें तो हो ही जाय. स्थानिक बीजेपी सरकार उसके उपर नियंत्रण तो कर लें, लेकिन इस दरम्यान कोंगी-गेंग-संगठन कई अफवाहें फैला सकता है.

लेकिन हुआ यह कि आतंकवादी गेंगका धैर्य कम पडा या तो भारतके भीतरी भागमें आतंकी हमला करवाना और वह भी बीजेपी शासित राज्य/राज्योंमे  हमला करवाना उसके बसकी बात न रही. कश्मिरमें दो प्रकारके आतंकवादी है. सीमापारके और कोंगी शासन दरम्यान पैदा किये  कश्मिरके भीतरी आतंकवादी और उसके सहायक.

बीजेपीका तो “ओल आउट” अभियान जारी है. धर्मांधताकी और उनको हवा देनेवालोंकी यदि मिसाल चाहिये तो आप कश्मिरके कुछ नेताओंके कथनोंको देख लिजिये. उनको हवा देने वाले कोंगी और उनके सांस्कृतिक कश्मिरी सहयोगीयों के कथनोंको देख लिजिये. कश्मिरीके विभाजवादी और पाकिस्तान परस्त नेताओंके विरुद्ध कुछ नये कदम तो बीजेपीने उठाये है. कश्मिरमें आतंकवाद मरणासन्न किया है. आतंकवादके नाम पर मुस्लिमोंका वोट ईकठ्ठा करना अब कोंगी गेंगके लिये इतना आसान नही है.

अब कोंगी गेंग करेगी क्या?

कोंगी गेंग अपनी लडाई जारी रखेगी. जो पेइड मीडीया (प्रेस्टीट्युट) है उनके लेखकोंके भूगतानमें वृद्धि तो होगी ही. क्यों कि कोंगी-गेंगके सहयोगी इन मूर्धन्योंका काम थोडा और कठिन हो रहा है.

अब इन मूर्धन्योंका लक्ष्य है अर्ध दग्ध जनता और निरक्षर जनताको गुमराह करना.

इन अदाओंपर मीडीयाको आफ्रिन बनना है

निरक्षर जनतामें, जो मोदी शासन दरम्यान लाभान्वित है, वह जनता तो मोदी भक्त हो ही गई है. जो जनताका हिस्सा बच गया है, उनको पैसे, जातिवाद, प्रदेशवाद, भाषा वाद और धर्मके नाम पर बहेकाना है. हो सकता है कि कोंगी गेंग इनको असमंजसमें डालके उनको मतदानसे रोके या तो “नोटा-बटन” दबानेको प्रेरित करें. कोंगी गेंगकी मुराद तो बेलेट पेपर लाना था जिससे बुथ केप्चरींग आसान रहे.

कोंगी गेंग जो नरेन्द्र मोदी/बीजेपी के विरुद्ध हवा (माहोल) बनाना चाहती है, उसमें ये निरक्षर लोग कितने सहयोगी बनेंगे यह बात सुनिश्चित नहीं है.

लेकिन अर्धदग्ध लोगोंको असमंजस अवस्थामें लाना कोंगी गेंगके लिये अधिक आसान है.

वह कैसे?

बेकारीमें वृद्धि, महंगाई और किसानोंकी समस्या, इनके बारेमें जूठ फैलाना कोंगी गेंगके लिये आसान है. वैसे तो हमारे मित्र बंसीभाई पटेल कहेते है कि उनको ₹५००/- प्रतिदिन देने पर भी मज़दुर मिलते नहीं है. नये नये कोंट्राक्टर बने लोग फरियाद करते है कि हम बडी मुश्किलसे डूंगरपुर जाके एडवान्स किराया देके रोजमदार मज़दुर लाते है, वे पैसे लेके भाग जाते है. यह सत्य संबंधित लोगोंके लिये सुविदित है. लेकिन तो भी “बेकारीकी बाते चल जाती. एक समस्या यह भी है कि कुछ बेकार लोग ऐसे भी है जो अपने गाँव/शहरमें ही नौकरी चाहते है. यह समस्या गुजरात महाराष्ट्रमें ज्यादा है. गुजरातमें तो यदि किसी कर्मचारीका  तबादला दुसरे राज्यमें हो जाय तो भी उसको अपनी नानी याद आ जाती है.

बीजेपी के शासन दरम्यान महंगाई का वृद्धिदर कमसे कम है. वेतनवृद्धिका दर अधिक है. खाद्य पदार्थोंमेंसे अधिकतर खाद्य पदार्थ सस्ते हुए है. फिर भी महंगाईके नाम पर, आप जनताको, गुमराह करनेमें थोडे बहूत तो सफल हो ही सकते हो.

किसानोंकी समस्या तो अनिर्वचनीय लगती है. ५५ सालके अंतर्गत यदि किसान स्वयंका उद्धार नहीं कर पाया, तो खराबी उसके दिमागमें है. जो अपनी आदतोंसे टस और मस नहीं होना माँगता, उसको सिर्फ ईश्वर ही बचा सकता है. और ईश्वर भी उनको ही मदद कर सकता है, जो अपनी मदद खूदको करें.

हाँ जी, मोदीकी बुराई करनेमें आपको अरुण शौरी, चेतन भगत, यशवंत सिंहा जैसे भग्नहृदयी और  शशि थरुर (जिसके विरुद्ध एक क्रिमीनल केस चलता है), वैसे तो मिल ही जायेंगे. उनमें कुछ भग्न हृदयी स्थानिक लेखक गण भी तो होगे जो स्वयंको तटस्थ माननेका घमंड रखते है.

कोंगी गेंगके लिये सबसे बडे शस्त्र कौनसे है?

कोंगीवंशका एक और नया, मादा फरजंदको, चूनाव मैदानमें लाया गया है.

“मादा” (फीमेल)शब्दका क्यूँ उपयोग किया है?

उस मादाकी सामाजिक उपलब्धीयां शून्य होनेके कारण  उसका विवरण करना असंभव है. यदि कोई मीडीया मूर्धन्य उसका विवरण करें, तो उसको जूठ ही बोलना पडेगा. आप कहोगे कि कोंगी गेंगके पालतु मीडीयाके लिये तो जूठ बोलना एक शस्त्र के समान है तो फिर एक और परिमाणमें जूठ बोलनेमें क्या आपत्ति है? अरे भाई ये मीडीया वाले समज़ते है कि जूठ तो बोलो ही, लेकिन जूठका चयन ऐसा करो कि उस जूठको अति दीर्घ काल  तक विवादास्पद रख सको. ऐसा होने से आम जनता उस जूठको सत्य मान लेगी या तो असमंजसमे पड जायेगी.

जैसे कि;

बाजपाईने इन्दिरा घांडीको “दुर्गा” कहा था,

 बाजपाईने मोदीको “राजधर्म” निभानेकी बात कही थी,

मोदी ने हर देशवासीकी जेबमें १५लाख रुपये देनेकी बात कही थी,

कथित शब्दोंके भावार्थका स्पष्टीकरण, या इन्कारके बाद भी आप यह जूठ चला सकते है.

हमारा मूल विषय था कि, उस एक और मादा पात्रका, चूनावकी सियासतमें प्रवेश करवाना और उसके गुणगान के लिये, सातत्यसे रागदरबारी छेडना. सिर्फ इसलिये कि, उस मादा की योग्यता यह है कि, वह मादा  नहेरुवंशकी फरजंद है.

नहेरुवंशके फरजंदोंको “कालका बंधन नहीं है”, “ज्ञानका बंधन नहीं है” “तर्कका बंधन नहीं है” “सत्यका बंधन नहीं है”, “नीतिमत्ता”का बंधन नहीं है क्यों कि जबसे इन्दिरा गांधीने नहेरुवीयन कोंग्रेस ओफ ईन्डिया”को इन्दिरा नहेरुवीयन कोंग्रेस (आई.एन.सी) बनाके, कोंगीके लक्ष्मी-भंडारकी चाभी (Key) अपने हस्तक कर दी थी. इन्दिराने देशको बिना किसी भयसे, लूटनेकी आदत बना दी थी, तबसे कोंगीके लक्षी-भंडारके पास, कुबेर भी मूँह छीपा लेता है.

और आप तो जानते है कि

यस्यास्ति वित्तं, स नर कुलिनः स श्रुतवानः स च गुणज्ञः ।

स एव वक्ता स च दर्शनीय, सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते॥

(जिसके पास धन है, वह कुलवान है, वह ज्ञानी है, और वह ही गुणोंको जाननेवाला है, वही अच्छा भाषण देनेवाला है, और वही दर्शन करनेके योग्य है, क्यों कि सभी गुण, धनके गुलाम है.)

 इन्दिरा गांधीने और उसके फरजंदोने देशको अधिकतम लूट लिया है, उनके पास अपार संपत्ति है.  इस लिये सभी गुण ही नहीं, किन्तु धनकी लालसा वाले सभी  नेतागण, कोंगीके बंधवा-दास है. समाचार माध्यमोंमे भी धन लालसा वाले या तो भग्न हृदयी मूर्धन्योंकी कमी नहीं.

अब इस नहेरुवंशी मादाकी भाटाई तो करनी ही पडेगी न?

इस मादाकी पार्श्वभूमिमें यदि कोई कारकीर्दि (रेप्युटेशन) न हो तो क्या हूआ ? उसके हर कथन को हम अतिशोभनीय बना सकते है ही न ? हम क्या कम चमत्कार करनेवाले है?

तो अब, हम समाचार माध्यम वाले, असली और नकली चर्चा चलायेंगे. क्यों कि;

दूसरा शस्त्र है चूनावी चर्चाएं,

चूनावी चर्चामें हमारे लिये निम्न लिखित विषय अछूत है,

(१) गुजरातके डाकू भूपतको पाकिस्तान भागा देना. उसके प्रत्यापर्णकी बात तक नहेरुने नहीं की, तो कार्यवाही तो बात ही भीन्न है.

(२) युद्धमें हारी हुई ७१००० चोरस मील भारतीय भूमिको, वापस लेनेकी हम नहेरुवीयनोंने संसदके समक्ष प्रतिज्ञा ली थी,

(३) हमारी आराध्या इन्दिराने एक करोड बांग्लादेशी बिहारी मुस्लिमसे जाने जानेवाली घुसपैठीयोंको वापस भेजनेकी प्रतिज्ञा ली थी,

(४) हमारी आराध्या इन्सिराने आपात्काल लागु किया था और जनतंत्रकी धज्जीयाँ उडाई थीं.,

(५) हमने भोपाल गेस कांडके आरोपी एन्डरसनको, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रीकी नीगरानीमें, बेधडक, और खूल्ले आम, देशसे भागजानेकी सुविधा प्राप्त करवाई थी. और उसको वापस लानेमें गुन्हाइत बेदरकारी दिखायी थी,

(६)  ओट्टावीयो क्वाट्रोची को ठीक उसी प्रकार देशसे भगाया था, ताकि उसपर न्यायिक कार्यवाही न हो सके. उसको वापस लाने की कुछ भी कार्यवाही हम वंशवादी कोंगीयोंने नहीं की थी,

(७) कोंगीके सहयोगी पीडीपीके शासनमें,  मंत्रीकी पूत्रीका आतंकवादीयोंने अपहरण (हरण) किया (करवाया) और उसके बदलेमें सात खूंखार आतंकवादीयोंको हम कोंगीयों और हमारे सहयोगीने मूक्त किया था. इसके उपर कोई चर्चा नहीं, कि यह घटना किसकी विफलता थी? या तो यह एक सोची समज़ी चाल थी? आज कोंगी, फारुख, ओमर, महेबुबा मुफ्ति आतंकवादीयों की भाषा बोलते है.

(८) कश्मिरमें खूल्ले आम कश्मिरी हिन्दुओंको धमकी दी कि इस्लाम कबुल करो या मरनेके लिये तयार रहो. फिर ३०००+ हिन्दुओंको कतल किया, १००००+ महिलाओंको रेप किया, ५०००००+ हिन्दुओंको निराश्रित किया. न कोई जाँच बैठी, न कोई एफ.आई.आर. दर्ज हुई, न किसीकी गिरफ्तारी हुई, न न्यायिक कार्यवाही हुई, न कोई समाचार प्रसिद्ध होने दिया, न कोई चर्चा होने दिया, और हम कोंगीयोंने  और हम कोंगीयोंके सहयोगी शासकोंने मौजसे दशकों तक शासन किया.

(९) दाउद को भगाया. हम कोंगीके पास दाउदका कोई भी डेटा उपलब्ध ही नहीं था. क्यों कि हम ऐसा रखनेमें मानते ही नहीं है. हमने कभी भी उसको वापस लानेकी कोई कार्यवाही नहीं की.

(१०) न्यायिक प्रणाली  कोंगीयोंने बनाई, दशकों तक क्षतियों पर ध्यान नहीं दिया, बेंकोने हजारो गफले किये. निषिद्ध फोन बेंकींग द्वारा माल्या, निरव मोदी, चौकसी जैसे फ्रॉड को हमने जन्म दिया.

मोदीने ५ वर्षमें ही प्रणालीयां बदली, कौभान्डोंको पकडा और जो कोंगी स्थापित प्रणालीयोंके कारण देश छोड कर भाग गये थे उनको वापस लानेकी तूरंत कार्यवाही की जो आज रंग ला रही है.

कोंगी लोग और उनका पीला पत्रकारित्व  ये सब चर्चा नहीं करेगा.     

चूनावी चर्चाएं हम वैसी करेंगे जिनमें हम फर्जी और विवादास्पद आधारोंपर मत विश्लेषण कर सकते है. जाति, धर्म आदि विभाजनवादी आधारों पर अपनी मान्यताओंको सत्य मान कर बीजेपीके विरुद्धमें जन मत जा रहा है ऐसी भविष्य वाणी कर सकते है. ऐसा तारतम्य पैदा करके कोंगी गेंगके अनुकुल, निचोड निकालना है. इसी कार्यमें अपना वाक्‌पटूता का प्रदर्शन करते रहेना. यह भी एक उपशस्त्र है.  

कोंगीवंशका नया आगंतुक, मादा फरजंदको, प्रसिद्धि देनेमें सभी मीडीया कर्मीयोंमे तो स्पर्धा चल रही है.

इस मादा फरजंदकी सामान्य उक्ति को भी बडे अक्षरोंमे प्रसिद्धि देने लगे है.

मिसाल के तौर पर,

“५५ साल कोंगीने कुछ नहीं किया ऐसी बातोंसे मोदीको बाज़ आना चाहिये. हरेक मुद्देकी एक एक्सपायरी डेट होती है.”

मीडीया बोला; “वाह क्या तीर छोडा है इस नेत्रीने …. इसकी तो हम समाचार प्रसिद्धिमें बडी शिर्ष रेखा बना सकते है.

अरे भाई जिसका असर, यदि देश भूगत रहा हो, उसकी एक्स्पायरी डेट यानी उसकी मृत्युतीथि तो तब ही आयेगी जब आपके चरित्रमें परिवर्तन आयेगा या तो वह असरकी मृत्यु होगी. आप ५५ साल तक गरीबी हटाओ बोलते रहे लेकिन कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाये, और मोदीने प्रभावी कदम उठाये और साथ साथ समय बद्धताकी सीमा भी सुनिश्चित की, तो आपके पेटमें उबलता हुआ तैल क्यों पडता है?

नहेरु की, चीनके साथ हिमालय जैसी बडी गलतीयां, इन्दिरा गांधीकी उतनी ही बडी गलतीयां, जिनमें सिमला समज़ौता, सेनाकी जीती हूई काश्मिरकी भूमि भी पाकिस्तानको परत करना, आतंकवादको बढावा देना, हिन्दुस्तानके भाषावाद, क्षेत्रवाद, धर्म के नाम पर सियासती विभाजनवादको प्रचूरमात्रामें बढावा देना … आदि बातें बीजेपी ही नहीं,  देश भी भूल नहीं पायेगा.

मीडीया मूर्धन्य पगला गये है …

मिसाल के तौर पर आजके डीबी (दिव्यभास्कर)भाईने एक फर्जी (कल्पित) चर्चा प्रकट की है. ऐसे समाचार माध्यमोंके लिये “तुलनात्म” चर्चा बाध्य है क्यों कि ऐसा करना उनके एजन्डामें आता नहीं है.

अब तक यह डीबीभाई अन्य मीडीया-भाईकी तरह ही “रा.घा. (राहुल घांडी)को, नरेन्द्र मोदीके समकक्ष मानते है. वैसे तो कोई भी मापदंडसे इन दोनोंकी तुलना शक्य है ही नहीं. लेकिन डीबीभाई बोले अरे भाई हम कहाँ महात्मा गांधी सूचित “समाचार माध्यमके चारित्र्यको (आचार संहिताको) मानते है? हमारा एजन्डा तो सिर्फ बीजेपी के विरुद्ध माहोल पैदा करना है. हम तो है कवि. हमें कवियोंकी तरह कोई सीमा, चाहे वह नीतिमत्ताकी ही क्यों न हो, बाध्य नहीं है.

डी.बी.भाई अब इस नहेरुवंशी मादा फरजंदको भी मोदी समकक्ष मानने लगे है. और इस मादाको भी फुल कवरेज दे रहे है.

एक कल्पित चर्चाके कुछ अंश देखो

वैसे तो बीजेपीने कई बार स्पष्ट किया है कि “राम मंदिर” न्यायालय के फैसलेके आधिन है, तब भी इसको इस मादाके मूँहसे बीजेपीको “पंच” मारा गया, कि आपको चूनाव के समय ही राम मंदिरकी याद क्यों आती है? चूनावके समय ही गंगाकी याद  क्यों  आती है?

वैसे तो मोदी इससे भी बडा पंच मार सकता है. लेकिन भाई, इस मादाकी रक्षा करना हमारा एजन्डा है.

इस मादा कहेती है, “मोदी तुमने इस देशकी सभी संस्थाओंको, चाहे वे आर.बी.आई. हो या सीबीआई हो, नष्ट कर दीया है.”

वैसे तो मोदी उत्तर दे सकता है कि “तुम सर्व प्रथम जनतंत्रमें संस्थाकी परिभाषा क्या होती है वह समज़ो. वाणी विलास मत करो.  न्यायालय, चूनाव आयोग, सुरक्षा दलें, शासन व्यवस्था, आर.बी.आई., सीबीआई ये सभी संस्थाएं बंद नहीं की गई है. जनतंत्रकी सभी संस्थाएं संविधानीय प्रावधानोंके अंतर्गत चल रही है. लेकिन जब आपका शासन था तब कमसे आपात्कालको याद करो. शाह पंचने क्या कहा था? अरे आपके गत शासनके कार्यकालमें ही न्यायालयने आपको आदेश दिया था कि कालाधन वापस लानेके लिये विशेष जांच समिति बनाओ लेकिन आपने वर्षों तक बनाया नहीं( यहां तक कि आपकी पराजय भी हो गयी),  जैसे आपको न्यायालयका आदेश बाध्य ही नहीं है. न्यायालयका खूदका कथन था कि आपने सीबीआईको पोपट बना दिया है.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

Read Full Post »

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

  ———————————

हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

  ————————–

राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

Read Full Post »

Do not fall in the trap of Nehruvian Congress. क्या आप भारतके होतैषी है? और फिर भी क्या आप इनमेंसे कोई एक  वर्गमें भी आते हैं? ()

() ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

Modi is the big threat to Nehruvian Congress

             Terrorists Bomb Blasts in Patana” By UPA !

भारतमें ज्ञातिवाद अभी नामशेष नहीं हुआ. प्रांतवाद भाषावाद भी चलता है. याद करो, जिस नहेरुवीयन कोंग्रेसने जयप्रकाश नारायणके आंदोलनको समर्थन देनेके कारण ममताको भी कारावास दिया था, उसी कोंग्रेसके आपातकालके दिलोजान समर्थक रहे प्रणव मुखर्जी जो ममताके प्रथम दुश्मन होने चाहिये, तो भी केवल और केवल बंगाली होने के कारण, ममताने थोडे नखरे करनेके बाद, उनको ही भारतके राष्ट्रप्रमुख पदके लिये समर्थन दिया. उसी प्रकार शिवसेनाने प्रतिभा पाटिलको समर्थन दिया.

दुसरा कारण यह भी है कि स्वकीय सत्तालाभके लिये कुछ नेता अपने ही पक्षके नेता के विरुद्धमें काम करते है. इसमें इन्दीरा गांधीने संजीव रेड्डीके विरुद्ध प्रचार किया, चरण सिंगने अपने ही पक्षके नेता मोरारजी देसाईकी सरकारका पतन किया , यशवंत राव चवाणने १९७७ की नहेरुवीयन सरकारके पराजयके बाद अपनी अलग पार्टी बनाली, शरद पवारने सत्ताके लिये नहेरुवीयन वंशके पक्षको छोडा, पकडा, छोडा, पकडा, छोडा जो क्रिया आज भी चालु है, बाला ठाकरेको नरेन्द्र मोदी का कद बढते हुए डर लगता था और ऐसे निवेदन देते रहेते थे कि बीजेपीकी शक्तिमें घाटा हो. चंद्रबाबु नायडुने अपने श्वसुर एन टी रामारावकी सरकारसे नाता छोडा था, शंकर सिंह वाघेलाने  केशुभाई पटेलकी सरकारका पतन किया था, केशुभाई खुद, नरेन्द्र मोदीका पक्ष चूनाव में हार जाय ऐसे भरपुर प्रयत्न करते रहते है, अडवाणी खुद ने अपने पक्षके जनमान्य नेता नरेन्द्र मोदीको नीचा दिखानेके लिये भरपुर प्रयत्नशील है.

सत्ताके लिये साधनशुद्धिका अभाव. मैं चाहे खतम हो जाउं लेकिन तुम्हे सत्तासे हटाउं;

जिन्होंने सत्ताके लिये साधनशुद्धि नहीं रक्खी है उनसे सावधान रहो. ये लोग बिना ही कोई योग्य विकल्प दिये ही बीजेपीको कमजोर कर सकते है. उनसे सावधान.

और कौन है जिनसे सावधान रहेना है?

 () ये लोग देश द्रोही हो सकते है, जो सिर्फ धारणाओंके आधारपर सरकारको दोष देते हैं;

Double standard alias perverted eyes of media

जिनको भारतकी धरोहर पर गर्व नहीं है और जो लोग, मनोमन, भारतका विकास नहीं चाहते है उनको आप क्या कहोगे? इन लोगोंको यह बात ज्ञात नहीं है कि, एक स्थिर सरकार को केवल नकारात्मक धारणाएं उत्पन्न करके, सरकार और उसके नेताओंके विरुद्धमें हवा फैलाना, कोई देशहितका काम तो है नहीं. एक सरकार को पांच वर्षके लिये नियुक्त की है तो उसको पांच साल पुरा करने दो. उसके पश्चात पूर्व सरकारने जो किया था, उसके साथ इस सरकारकी तुलनात्मक समीक्षा करो. आपको यह अवगत होना आवश्यक है कि, यदि आपने बीजेपीको मत नहीं दिया है तो भी वह पूर्णबहुमतसे भारतीय बंधारणके अनुसार विजयी हुई है. अब आपको उसका सन्मान करना है. धारणाओंके आधारपर उसको दोषी नही मान सकते. बीजेपीकी और खास करके नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैली को नीचा दिखानेके लिये आपके पास ऐसा कोई आधार नहीं है कि आप उसको दोषी है ऐसा प्रचार करते रहो.

किन्तु ऐसा देखा जाता है कि जिनको बीजेपी और नरेन्द्र मोदी पसंद नहीं था उनमेंसे अधिकतर लोग नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके सुक्ष्मातिसुक्ष्म बातोंको या/और जो चर्चाबिन्दु, वर्तमानमें अस्पष्ट है, संवादके आधिन है, कार्यवाही चल रही है, उसमें विसंवाद करके, उसको उछालते है और व्यर्थ ही नकारात्मक हवा फैलाते है. क्यों कि वे चाहते है कि यह सरकारका पतन हो जाय.

क्या होगा? इनको चिंता नहीं है

अगर इस सरकारका पतन होगा तो देशकी क्या दशा होगी इस बातकी इनको चिंता नहीं है.  १९८९ में चन्द्रशेखरने वीपी सिंगकी सरकार गीरायी. १९८९में क्या हुआ था? शेख अब्दुल्ला भाग गया. कश्मिरमें ३०००+ लोगोंका कत्लेआम हुआ और पांच लाख से उपर हिन्दुओंको सरेआम अपना घर छोडने पर विवश किया. आज तक वे लोग तंबुओंमें रहते हैं. यह एक ऐसा आतंक है जो लगातार २५ सालोंसे चल रहा है. १९९६ से १९९८ तक सरकारोंको गिरानेकी परंपरा चालु रही.

क्या ये आतंकी लोग और आतंकीयोंके इरादोंके पोषक और हिन्दुओंके प्राकृतिक अधिकारकी अवहेलना करनेवाले ये नहेरुवीयन और उनके साथीगण और वे लोग जो इस विषय पर मौन और निष्क्रिय रहे उन लोगोंको आप देश द्रोही नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

कश्मिरसे निष्कासित हिन्दुओंको अपने घरमें २५ सालके बाद भी सुस्थापित न करना, इस परिश्तितिको आप क्या कहोगे? यह उनके उपर सतत हो रहा आतंकवाद ही तो है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी लोग जिनमें फरुख आदि कश्मिरके मुस्लिम नेतागण आते है उन्होने सातत्यतासे कश्मिरी हिन्दुओंके मानवाधिकारका हनन किया. इनको अगर आप आतंकवादी नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

इस विषय पर मौन रहेने वाले या तो वितंडावाद करने वाले समाचार माध्यमोंके वक्ताओंसे भी सावधान. क्यों कि ये लोग भी मौन रहे हैं. ऐसे लोगोंके द्वारा किये गये निवेदनोंसे और मंतव्योंसे सावधान. उनके उपर तनिक भी विश्वास मत करो.

दुसरे कौन लोग है?

() ये लोग जोजैसे थेवादी है,

भारतकी आर्थिक प्रगति असंतोषजनक होनेका क्या कारण है? उसका मुख्य कारण भारतीय नेतागण है. मात्राके आधार पर नहेरुवीयन कोंग्रेस है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागणसे जुडे हुए अन्य नेतागण और कर्मचारीगण की राक्षसीय वृत्तियां कारणभूत है.

राक्षसी वृत्तिसे अर्थ है अन्यको नुकशान करके खुदका लाभ देखना. इसको अनीतिमत्ता भी कहेते हैं.

अगर ठेकेदार सही काम करेगा तो उसका लाभ कम होगा या तो नुकशान भी हो सकता है. इसलिये वह निम्नकक्षाका काम करता है और सरकारी कर्मचारी/अधिकारीको भ्रष्ट करता है. सरकारी कर्मचारी/अधिकारी भ्रष्ट होनेको उत्सुक है. और इसकी कोई सीमा नहीं है. जहां १००० रुपया खर्च होता है वहां पर कम आयु वाला १००५०० रुपयेका काम होता है. अगर नियमका शासन (रुल ऑफ लॉ) आजाय तो इनके ये लाभ नष्ट हो जायेंगे. इस लिये ये लोगजैसे थे”-वादी बनते है. जो भ्रष्ट है वे सत्ताके पदोंको दयादानका विषय मानते है. इसलिये अपनेवालोंको सत्ताके पदों पर नियुक्त करते है और भ्रष्टाचार बढाते है. इन्दिरा गांधीके समयसे भीन्न भीन्न पदोंकी भीन्न भीन्न मूल्य रक्खा था. यह बात युपीए के शासनमें भी चालु ही थी. इन लोगोंसे सावधान.

और कौन लोग है जिनसे सावधान रहेना है?

() ये लोग नकात्मक मानसिकता वाले हो सकते है,

ये लोग ऐसे है जो या तो नीतिसे भ्रष्ट है या तो निराशावादी है. चाणक्यने कहा है, जो निराशावादी है उनकी बातों पर विश्वास करो. निराशावाद एक रोग है. इस रोगके सांनिध्यमें रहेने वालोंको भी यह रोग ग्रस लेता है. निराशात्मक वातवरण विकासके लिये हानिकारक है. ये लोग नकारात्मक बोलते ही रहेते है कि, नरेन्द्र मोदी कुछ नहीं करता है, उसने यह नहीं किया, उसने वह नहीं किया, देखो टमाटरके भाव बढ गये. देखो सोनेके भाव स्थिर हुए तो जिन किसानोंने अपनी फसलके पैसोंसे सोना खरीदा था उनको इतने अरबका घाटा हुआ. यह सरकार किसानोंको पायमाल करने पर तुली है.

और कौन लोग है जिनसे सावधान रहेना है?

() ये लोग मूर्ख और मूढ हो सकते है,

मूर्ख वे लोग है जो व्यूहरचना समझ नहीं सकते और व्युह रचना बना भी नहीं सकते. उनके पास इतनी माहिति, ज्ञान और अनुभव नहीं होता है कि वे शत्रुओंकी ही नहीं किन्तु खुद अपने नेताकी व्युह रचना समझ शके. तद्यपि ये मूर्ख लोग इस बातका इन्कार करते है और अपनी खूदकी व्यूह रचना बनाते है और अमलमें भी प्रयोजित करते है. इससे वे अपने आप कष्टमें पडे उस शक्यताको तो छोड दो, लेकिन अपने पक्षको भी नुकशान पहोंचता है.

उदाहरणः

धोती धारण करने पर स्टारमें लाभः चरण सिंहने फरमान किया था कि जो धोती पहेनेगा उसको स्टार होटलमें २०% का डीसकाउन्ट मिलेगा.

गौवध पर प्रतिबंधः कोई भारतीय गौमांस नहीं खाता. यह एक सांस्कृतिक प्रणाली है. क्योंकि हम गाय का दूध पीते है, इसलिये वह हमारी माता समान है. इसके अलावा पर्यावरण और धरतीकी फळद्रुपताके लिये गौसृष्टिका हनन करना योग्य नहीं है. लेकिन अंग्रेज सरकारने ऐसे कतलखाने चलवाये थे. नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको चालु रक्खा उतना ही नहीं लेकिन उसमें वृद्धि भी की. देश ऐसी स्थिति पर पहोंचा है कि अगर ये कारखानोंको शिघ्रतासे समाप्त कर दें तो कई और प्रश्न उत्पन्न होते हैं. समस्या के निवारण के लिये कुछ समय की अवधि भी होती है. कुछ व्यूह रचना भी बनानी पडती है. व्यूहरचनाओंको गोपनीय भी रखनी पडती है.

अब तक जनताने क्या किया था?

जनताने यानी कि, आपने इस गौहत्या करने वाले राक्षसको मारने के लिये एक वृकोदरको चूना था. इस वृकोदरने कई दशकोंका समय व्यय किया. उसने राक्षसको मारने के बदले अनेक और राक्षस उत्पन्न किये.

अब आपने एक शेरको चूना है. अगर यह राक्षस मरेगा तो इस शेरसे ही मरेगा. अतः उसको पर्याप्त समय दो. आप धैर्य रक्खो. यदि आप शासक को पर्याप्त समय नहीं देते हैं, और यदि आप इस विषय पर धैर्यहीन बन जाते हैं तो समझ लो कि आप वृकोदरको ही मदद करते हैं.

विदेशी बेंकोंमे जमा काले धनकी वापसीः यह एक आंतर्राष्ट्रीय नियमोंसे युक्त समस्या है इस बातको अगर छोड भी दे सकते हैं. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने इस समस्याको अपने फायदेके लिये ऐसे दस्तावेज बनाये हैं कि उन कुकर्मोकों सही मात्रामें अवगत करना है, यह एक ऐसे अन्वेषणका विषय है कि उसके उपर सावधानीसे गोपनीय रीतसे व्युह रचना बनानी पडती है. विशेष निरीक्षण अन्वेषण जुथ तो बनाया गया है ही. इसके नेता सर्वोच्च न्यायालयके एक न्यायाधीश है. ये लोग अपना काम कर रहे है. समस्या कमसे कम ३५/४० साल पुरानी है. अतः उसको पर्याप्त समय दो. आप धैर्य रक्खो.

() ये लोग नहेरुवंशके चाहक या/और उनकी विचार/आचार धाराके चाहक हो सकते है,

कुछ लोग ऐसा समझते है कि वे लोग, ईश्वरकी क्षतिसे भारतमें जन्मे हैं. वे ऐसा समझते हैं कि पाश्चात्य विचारधाराके प्रति आचार विचार रखना और भारतीय धरोहरकी निंदा करना ही प्रगतिशीलता है. भारतका जो कुछ भी है वह निम्न कक्षाका है. भारतकी प्रणालीया, तत्वज्ञान भाषा आदि सब निम्न है.

शौक भी कोई चिज है”. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथीयोंकी क्षतियोंका ये लोग सामान्यीकरण करके उसको निरस और शुष्क कर देते है. लेकिन ये ही लोग नरेन्द्र मोदीकी छोटी छोटी असांदर्भिक बातों पर मजाक करते है. जैसे कि प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को ये लोग परिधान मंत्री नरेन्द्र मोदी. क्या जवाहर लाल नहेरु और उनकी संतान नंगा घुमती थीं?

(१०) ये लोग महात्मा गांधीके विरोधी, या/और उनकी विचारधारा के विरोधी हो सकते है,

ये लोग मुढ की कक्षामें आते है. उनको ज्ञात नहीं है कि वे क्या कर रहे है? उनको ज्ञात नहीं कि, उनके मन्तव्योंसे जनताको क्या संदेश जाता है? उनको यह अवगत नहीं कि, देशकी और विदेशकी जनता उनके बारेमें क्या सोचेगी? जिनका ये लोग विरोध करते है उनकी विश्वमें क्या कक्षा है? उनको यह मालुम नहीं कि, जिनकी तटस्थता विश्व मान्य है उनका प्रतिभाव, बीजेपी के बारेमें कैसा सकता है?

उनको यह अवगत होना चाहिये कि, महात्मा गांधी एक विचार भी है. व्यक्तिसे ज्यादा एक विचारधारा है. गांधीजीकी विचारधारा एक विस्वस्त विचारधारा है. गांधीने अपनी क्षतियां खुद बताई थी. वे क्षतियां महात्मा गांधीने तो छोड ही दी थी. और उसने कभी उसका पुनरावर्तन किया नहीं. तो भी कुछ लोग उसी क्षतियोंको आधार बनाके गांधीकी निंदा करते है.

गांधीके कर्मके सिद्धांत विश्व मान्य है और विश्वने गांधीजीके आचारमें विश्वसनीयता पायी है. जिन्होने गांधीको पढा है उन्होने गांधीको कलंक रहित समझा है. अगर आपने गांधी के बारेमें पढा नहीं है तो आपमें गांधीके बारेमें चर्चा करनेकी योग्यता ही नहीं है. फिर भी अगर आप, अपनी अल्पज्ञतासे गांधी की निंदा करते हैं तो विश्वमें आप ही नहीं आपका पक्ष भी अविश्वसनीय बनता है. और आपका दुश्मन पक्ष इसका भरपुर लाभ उठा सकता है. अगर आप मुढ नहीं है तो आप गांधीके विषय पर मौन रहोगे. क्यों कि जिस विषय की चर्चा आपके पक्षके लिये हानिकारक है उसमें अगर आप मौन रहे तो आपका यह लक्षण एक सन्मित्रका लक्षण बनेगा. ऐसा भर्तृहरिने कहा है.  

(११) ये लोग गोडसेके चाहक या/और उसकी आचार धाराके चाहक हो सकते है.

गोडसे एक सामान्य व्यक्ति था. सामान्य व्यक्ति भी देश प्रेमी हो सकता है. अज्ञान और परिस्थितिसे अवगत होनेकी अक्षमता और असंवाद की मानसिकता के कारणसे यदि एक देशप्रेमी, दुसरी एक व्यक्ति, जो निःशस्त्र, सत्ताहीन और निर्दोष, मानवता वादी, करुणापूर्ण और युगपुरुष मानी जाती है उस व्यक्तिका खून करता है तो यह पाप ही तो है.

ऐसे पापीकर्मको आप पूण्य कर्म सिध्ध करना चाहते हैं तो विश्वमें कोई भी आपकी बात मान्य नहीं रखेगा. आप अपात्रको, महान सिद्ध करते रहोगे तो विश्वमें आपका पक्ष ही बदनाम और अविश्वसनीय होगा. भारत एक बडा देश है. और अगर कहीं चूनाव प्रक्रिया चल रही है तो आप, बीजेपी के मतोंको हानि पहोंचा सकते हो. क्यों कि आपका दुश्मन पक्ष, आपके इस आचारका भरपुर लाभ लेता है और आगेचलकर भी लेगा. इस बातको समझनेमें यदि आप अक्षम है तो यह बात आपके मुढत्वको सिद्ध करती है.

(१२) ये लोग अहिंसा उचित है और हिंसा कहां उचित है और कहां उचित नहीं है इसको अवगत करनेकी वैचारिक शक्ति नहीं रखते है,

GANDHI SARDAR AND NEHRU

अहिंसा एक सापेक्ष आचार है.

दुर्योधन के साथ युद्धका निर्णय श्री कृष्णने तभी लिया जब दुर्योधनने कहा कि मैं धर्म जानता हूं और अधर्म भी जानता हूं. परंतु, धर्ममें मैं प्रवृत नहीं हूंगा और अधर्मसे मैं निवृत नहीं हूंगा.

शेर अगर सामने गया तो आप क्या करोगे? या तो खुद भाग जाओ या तो उसको भगा दो. जहां संवादकी कोई शक्यता ही नहीं है वहां कमसे कम हिंसा, अहिंसा बनती है. अहिंसा और सुरक्षाके अधिकार विश्वमान्य है. उसमें विसंवाद उत्पन्न करना खुदकी असंस्कृत विचारधारा और अज्ञानताका प्रदर्शन है.

पाकिस्तानने जब कश्मिर पर आक्रमण किया और जब कश्मिरके राजाने भारतकी मदद मांगी तो नहेरु और सरदार, गांधीजी की सलाह लेनेके लिये उनके पास गये थे. गांधीने कश्मिरके राज्यकी सुरक्षाके लिये भारतीय लश्करको भेजना यह अपना धर्म बताया था. गांधीजीने ऐसा नहीं कहा था किजाओ जाके सत्याग्रह करो”. क्यों कि आक्रमणकारी संवाद और अहिंसाको मान्य नही करते. वे केवल और केवल हिंसासे ही कश्मिर पर अधिकार प्राप्त करना चाहते थे. ऐसे लोगोंको हिंसाकी भाषामें उत्तर देना ही योग्य था.

(१३) ये लोग या तो अपने धर्मके विषयमें अंध है, परधर्मके बारेमें या/और परधर्मीयोंके विषयमें सतत धिक्कारकी मानसिकता या/और आचार रखते है,

धर्ममें यदि मानवधर्म नहीं मिला हो तो वह धर्म ही नहीं होता है. ऐसा धर्म, एक समूह (मॉब) मात्र होता है. ऐसे धर्मके कोईएक नेताने जो कुछ भी लिखा हो उसको परम सत्य मानके चलनेवालोंका एक पशु समूह ही बन जाता है. और उस समुहका व्यवहार भी हिंसक पशु जैसा ही होता है.

अपने धार्मिक पुस्तकका हेतु क्या था? वह कब, कहां कैसी स्थितिमें लिखा गया, और क्यों लिखा गया उसके उपर निरंतर चिंतन विचार करने के स्थान पर, ये लोग क्या करते हैं? ये लोग, युगोंके पश्चात भी, उसी लिखावट के अनुसार ही अनुसरण करना चाहते है. वे तो यह भी मानते है कि सारी दुनियाके लोगोंको हमारा धर्म ही स्विकारना करना चाहिये.  ऐसी मानसिकता वाले धर्मान्ध होते है. ऐसे लोग जो प्रत्यक्ष दिखाई देता है उसकी अनदेखी करके जो नहीं दिखाई देता है, और जो तर्कसे कोषों दूर है उस परलोकको पानेके लिये परधर्मको माननेवालोंको यातना देते हैं और कत्ल करते है. इन लोगोंसे सावधान.

(१४) ये लोग स्वयंको धर्मनिरपेक्षके रुपमें प्रस्तूत करते हैं, किंतु उनके रोम रोममें, नरेन्द्र मोदी या/और बीजेपी या/और सनातन धर्म या/और भारतीय प्राचीन धरोहर के प्रति अस्विकृतिकी मानसिकता या/और घृणा है,

प्रोनहेरुवीयन पक्षके लोग नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को कोमवादी कहेते है. क्यों कि नरेन्द्र मोदी आरएसएस का सदस्य है.

आर एसएस की गलती क्या है?

वैसे तो कुछ भी गलती नहीं है. किन्तु नथुराम गोडसे नामके एक आदमीने गांधीजीका खून किया था. नथुराम गोडसे आरएसएसका सदस्य था इसलिये आरएसएसका हर सभ्य खूनी है. आरएसएसने कभी अपनी कारोबारी में या किसीभी हालतमें गांधीजीको मारनेका प्रस्ताव पास नहीं किया था. तो भी ये दंभी धर्मनिरपेक्ष लोग कि, आरएसएस और उसके कारण बीजेपी भी कोमवादी है. साध्यम इति सिद्धम्‌.

यह इन दंभी धर्मनिरपेक्षोंका तर्क है जो तर्कके शास्त्रसे हजारों कोस दूर है. वे लोग इस तर्कको आरएसएस और बीजेपी के उपर चलाना चाहते है. वास्तवमें गांधीजीका खून करने वाली तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ही है. गांधीजी अगर महान थे तो वे अपने विचारोंसे और अपने आचारोंसे महान थे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो गांधीके विचारोंका खून किया है.

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके दारुबंधीमें सातत्यसे छूट दी और कभी लागु नहीं की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके गौवध बंधी कभी लागु नहीं की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके कतल खानोंको रियायतें दी,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके विभाजनवादी प्रवृत्तियां की,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके अपनी सुविधाएं बढाई,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके सीमा रेखाको असुरक्षा दी,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके मंत्रीयोंको मनमानी करनेका अधिकार दिये,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके जनतंत्रका खून किया था,

इसी कोंग्रेसने प्रस्ताब पास करके गांधीवादी जयप्रकाश नारायण तकको कारावासमें डाल दिया था,

और इन्ही लोंगोने असामाजीक तत्वोकों सहारा लिया और सहारा दिया.

साबरमती एक्सप्रेसके डीब्बेको जलानेकी योजना, गोधराके एक स्थानिक नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेताने बनाई थी और लागु की थी. वह नहेरुवीयन कोंग्रेसी नेता पाकिस्तान भाग गया है. आप इन दंभी धर्मनिरपेक्षकी पूरी जमातको दस्तावेजोंके आधारपर कारावासकी सजा दे सकतो हो.

ऐसे दंभी धर्म निरपेक्ष लोगोंसे सावधान रहो.

इन लोगोंसे सावधान जो हिन्दुधर्ममें सुधारकी वार्ताएं करते हैं.

इन लोगोंको समाजसुधारकी बातें करते समय उनको सिर्फ हिन्दु समाज ही दिखाई देता है.

इनकी जमातके एक बिरादरने राजस्थान जाके एक हिरनका शिकार किया. हिरनको जलाके अपने यारोंके साथ खा भी लिया. अब यह हिरन तो विलुप्त जातिका था और उसको शासनने सुरक्षित घोषित किया था. तो भी इस बिरादरने नियमकी अवहेलना करके उसका शिकार किया. इसी बिरादरनेसत्यमेव जयतेभी चलाया. उसमें इन्होंनें केवल गुन्हाहोंका सामान्यीकरण किया लेकिन शासनका क्या फर्ज बनता है और शासनस्थ किस व्यक्तिका फर्ज बनता है उसका नाम भी नहीं लिया. “मैं तुमसे ज्यादा पवित्र हूं, मैंने तुम्हें सुधारने के लिये कैसा अच्छा सिरीयल बनाया, अब जनताको जागना पडेगा, जनता को ही आगे आना पडेगाइत्यादि इत्यादि.

DOUBLE STANDARDS OF CENSOR BOARD

अभी अभी इस बिरादरनेपी केनामकी फिलम बनायी. उसमें वे खुदपी केहै. और अंधश्रद्धा को उजागर करनेमें वे कैसे मचे रहेते है वह दिखाया है. उनको अपनी जमातकी पहाड जैसी भी अंधश्रद्धा दिखाई देती नहीं है. लेकिन हिन्दु धर्मकी तिलके बराबरकी बुराई, यह महाशय पहाड जैसी प्रदर्शित करते हैइस बातकी चर्चा हम अलग लेखसे करेंगे. लेकिन ऐसे दंभी ठगलोगोंसे सावधान.  

(१५) ये लोग एक विवादास्पद वार्ताकी सत्यताको सिद्ध करनेके लिये दुसरी विवादास्पद वार्ताका आधार लेते है और अपने निर्णय को तर्कयुक्त मानते है और मनवाते है,

एक व्यक्ति जो महानुभाव है. कोई क्षेत्रका विद्वान माना जाता है. किन्तु समझ लो. कार्ल मार्क्स के समाजवादका सिद्धांत विवादास्पद है. एक अमर्त्यसेन था उसने नरेन्द्र मोदी के आर्थिक कदमोंको बिना नरेन्द्र मोदीसे चर्चा किये नकार दिया. ये लोग ऐसा तारतम्य निकालते है कि नरेन्द्र मोदीके आर्थिक कदम खोटे है.

वास्तवमें एक विवादास्पद बातसे दुसरी बातको गलत नहीं कह सकते.

(१६) ये लोग पाश्चात्य साहित्य, इतिहास लेखन, दृष्टिकोण, प्रणालियां या/और व्यक्तिओंसे अभिभूत है.

भारतके कई लोग जो अपनेको मूर्ध्न्य मानते है और साथमें महानुभाव भी है, उनमें एक फेशन है कि पाश्चात्य विद्द्वानोंके कथन उद्धृत करके बीजेपी और उसके नेताओंको बदनाम करो.

वास्तवमें हरेक कथन पर समस्या पर संदर्भके साथ रख कर गुणवत्ता, प्रमाणिक और प्राथमिकता को लक्षमें रख कर विचार करना चाहिये. किसीका कथन मात्र कुछभी सिद्ध करता नहीं है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः नरेन्द्र मोदी, बीजेपी, आर एस एस, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नेतागण, सत्तालाभ, साधनशुद्धि, नकारात्मक, आतंकवाद, निष्कासित, जातिवाद, प्रांतवाद, विकल्प

Read Full Post »

अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-५
(इस लेखको “अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-४” के अनुसंधानमें पढें)

नहेरुवीयन कोंग्रेसने २००४का चूनाव कैसे जिता?

अटल बिहारी बाजपाइने अच्छा शासन किया था. उन्होने चार महामार्ग भी अच्छे बनाये थे जो विकसित देशोंकी तुलनामें आ सकते थे. बीजेपीका गठबंधन एनडीए कहा जाता था. उसमें छोटे मोटे कई पक्ष थे. एनडीएके मुख्य पक्ष जेडीयु, बीएसपी (मायावती), टीएमसी (ममता), डीएमके (करुणानिधि), एडीएमके (जयललिता जिसने समर्थन वापस ले लिया था), टीडीपी, शिवसेना आदि थे.
मायावती, ममता और डीएम न्युसंस वेल्यु रखते थे. बिहार, युपी और आन्ध्रमें स्थानिक गठबंधन पक्षका एन्टीइन्कंबन्सी फेक्टर बीजेपीको नडा. इससे एनडीए को घाटा हुआ और बीजेपीको भी घाटा हुआ. राजस्थानमें और गुजरातमें भी थोडा घाटा हुआ.

लेकिन घाटा किन कारणोंसे कैसे हुआ?

देशके सामने सबसे बडी समस्याएं क्या है?

बेकारीः यानी कि आर्थिक कठीनायीयोंसे जीवन दुखमय

विकासका अभावः भूमिगत संरचनाका (ईन्फ्रास्ट्रक्चरका) अभाव, और इससे उत्पादन और वितरणमें कठिनायीयां,

शिक्षा और प्रशिक्षाका अभावः इससे समस्याको समझनेमें, उसका निवारण करके उत्पादन करनेमें कौशल्यका अभाव,

अभाव तो हमेशा सापेक्ष होता है लेकिन समाजकी व्यवस्थाके अनुसार वह कमसे कम होना चाहिये.

बाजपाई सरकारने बिजली, पानी और मार्गकी कई योजनायें बनायी और लागु की, लेकिन पूर्ण न हो पायी. वैसे तो हर रोज औसत १४ किलोमीटरका पक्का मार्ग बनता था जो कोंग्रेसकी सरकारमें एक किलोमिटर भी बनता नहीं था.

बिजलीकी योजना बनानेमें और पावर हाउस बननेमें समय लग जाता है.
भारत विकसित देशोंसे १०० सालसे भी अधिक पीछे है.

स्थानिक नेतागण और सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट होनेसे हमेशा अपनी टांग अडाते है यह बात विकासकी प्रक्रियाको मंद कर देते है. तो भी बाजपाईके समयमें ठीक ठीक काम हुआ लेकिन ग्रामीण विस्तार तक हवा चल नहीं पायी.

जब ऐसा होता है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ग्रामीण जनताको और शहेरकी गरीब जनताको विभाजित करनेमें अनुभवी और कुशल रही है. गुजरातमें ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस ज्यादा सफल नहीं हुई, लेकिन इसका प्रभाव जरुर पडा. अन्य राज्योंमें वह जरुर सफल रही.

समाचार माध्यमोंकी बेवकुफी या ठग-विद्या

समाचार माध्यमोंका भी अपना प्रभाव रहेता है, भारतके समाचार माध्यमके कोलमीस्ट, विश्लेषण करनेमें प्रमाणभानका ख्याल न रखकर अपनी (विवादास्पद) तटस्थता प्रदर्शित करनेका मोह ज्यादा रखते है. भारतमें समाचार माध्यमोंका ध्येय जनताको प्रशिक्षित करनेका नहीं है. भारतके समाचार माध्यम हकिकतके नाम पर जातिवादी और धार्मिक भेदभाव के बारेमें किये गये उच्चारणोंको ज्यादा ही प्रदर्शित करतें है. “नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें पटेल नेताओंको अन्याय किया है…. गुजरातमें ब्राह्मण अब मंत्रीपद पर आने ही नहीं देंगे…. मुस्लिमोंको टिकट ही नहीं दी है…” आदि..

समाचार माध्यमों को चाहिये कि वे जातिवाद और धर्मवादकी भ्रर्स्तना करें. लेकिन ऐसा न करके इन लोंगोंका चरित्र ऐसा रहता है कि मानो, मंत्रीपद और टिकट देना एक खेरात है.

२००९ का चूनाव नहेरुवीयन कोंग्रेसने कैसे जिता?

२००९का चूनाव बीजेपीको जितनेके लिये एक अच्छा मौका था.

२००८में सीमापारके और भारतस्थ देशविरोधी आतंकीयोंने कई शहेरोंमें बोम्ब ब्लास्ट किये, और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सतर्क और सुरक्षा संस्थायें विफल रही थीं, यह सबसे बडा मुद्दा था.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेसने रणनीति क्या बनायी?

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने उसका सामान्यीकरण कर दिया. वह कैसे? वह ऐसे …

“बोंम्ब ब्लास्ट तो बीजेपी शासित राज्योंमें भी हुआ है,

“संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था, तब केन्द्रमें बीजेपीका ही तो शासन था,

“बीजेपीके मंत्री विमान अपहरण के किस्सेमें यात्रीयोंको मुक्त करनेके लिये खुद बंधक आतंकीयोंको लेकर कंदहार गये थे और आतंकीयोंको, विमान अपहरणकर्ताओंको सोंप दिया था.

इन सबको मिलाके जनताको यह बताया गया कि, आतंकवाद एक अलग ही बात है और इसके उपर सियासत नहीं होनी चाहिये.

दूसरी ओर, फिलमी हिरो-हिरोईन और अखबारी मूर्धन्यों और महानुभाव जो प्रच्छन रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसके तरफदार थे वे लोग सडकपर आ गये. उन्होने प्रदर्शन किये कि पूरा शासक वर्ग निकम्मा है और हमारी सुरक्षा व्यवस्था मात्र, असफल रही है चाहे शासकपक्ष कोई भी हो.

वास्तवमें यह सब बातें आमजनताको असमंजसमें डालनेके लिये थी.

हिमालयन ब्लन्डर्स या हिमालयन्स स्केन्डल्स

नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्धमें क्या था जिसको दबा दिया गया?

नहेरुवीयन कोंग्रेस कश्मिरमें सत्ताकी हिस्सेदार थी तो भी ३००० हिन्दुओंका खुल्लेआम कत्ल कर दिया जाता था. ऐसा करनेसे पहेले सीमापारके और स्थानिक आतंकीयोंने खुल्लेआम दिवारोंपर पोस्टर चिपकाये थे, अखबारोंमें लगातार सूचना दी गई और खुल्ले आम लाऊड-स्पीकरोंसे घोषणा करवाने लगी कि हिंदु लोग या तो इस्लाम कबुल करे या तो जान बचाने के लिये कश्मिर छोड कर भाग जावे. कश्मिर सिर्फ मुस्लिमोंका है. न तो स्थानिक सरकारने उस समय कुछ किया न तो केन्द्रस्थ सरकारने कुछ किया. क्यों कि केन्द्रस्थ सरकार दंभी धर्मनिरपेक्षता वाली थी. नरसिंहरावकी कोंग्रेस सरकार जो केन्द्रमें आयी थीं उस सरकारने भी कुछ किया नहीं था. इस कारणसे आतंकवादका अतिरेक हो गया और मुंबईमें सीरीयल बोंब ब्लास्ट हुए. नहेरुवीयन कोंग्रेसने कहा कि यह तो बाबरी मस्जिद ध्वंशके कारण हुआ. लेकिन वह और समाचार माध्यम इस बात पर मौन रहे कि कश्मिरी हिन्दुओंको क्युं मार दिया गया और उनको क्युं अपने घरसे और राज्यसे खदेडा गया? वास्तवमें बाबरी ध्वंश तो एक बहाना था. आतंकवादी हमले तो लगातार चालु ही रहे थे.

खुदके स्वार्थके लिये देशकी सुरक्षाका बलिदान और आतंकीयोंसे सहयोग.

कश्मिरके मंत्रीकी लडकी महेबुबाका अपहरण आतंकवादीयोंने किया था. यह एक बडी सुरक्षाकी विफलता थी जिसमें राज्यकी सरकार और केन्द्रकी नहेरुवीयन कोंग्रेसी सरकार भी उत्तरदायी थी. इस लडकीके पिता जो शासक पक्ष के भी थे और मंत्री भी थे. उनको चाहिये था कि वे अपनी लडकीका बलिदान दे. लेकिन उन्होने ऐसा नहीं किया और उन्होने पांच बडे आतंकवादी नेताओंको मुक्त किया. उनको पकडनेकी कोई योजना भी बनाई नहीं. यह एक बडा गुन्हा था. क्योंकि खुदके स्वार्थके लिये उन्होने देशकी सुरक्षाके साथ समझौता किया. बीजेपीकी सरकारने जो आतंकीयोंकी मुक्ति की थी वे आतंकी तो अन्य देशके और उनको मुक्त भी दुश्मन देशमें किया था, और अपहृत विमानयात्रीयोंको छूडानेके लिये किया था. उनका कोई निजी स्वार्थ नहीं था.

लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षने जो मुक्ति की थी वह तो अपने ही देशमें की थी. मुक्ति देनेसे पहेले नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षकी सरकार आतंकीयोंके शरीरमें विजाणु उपकरण डालके उसका स्थान निश्चित करके सभी आतंकवादीयोंको पकड सकती थी.

कोंगी और उसके साथी पक्षने की हुई आतंकीयोंकी मुक्ति तो बीजेपी की विफलतासे हजारगुना विफल थी उतना ही नहीं लेकिन आतंकीयोंसे मिली जुली सिद्ध होती है.
इन सभी बातोंको उजारगर करनेमें समाचार माध्यमके पंडित या तो कमअक्ल सिद्ध होते है या तो ठग सिद्ध होते है. समाचार माध्यम का प्रतिभाव दंभी और बिकाउ इस लिये लगता है कि उन्होने बीजेपीके नेताओंके बयानोंको ज्यादा प्रसिद्धि नहीं दी.

भारतीय संसद – कार्गील पर हमला और बीजेपी

कश्मिर – हिमालय पर हमला और नहेरुवीयन कोंग्रेस

बाजपाई सरकारको सुरक्षा और सतर्कता विभाग जो मिला था वह नहेरुवीयन कोंग्रेस की देन थी. बीजेपी सरकार इस मामलेमें बिलकुल नयी थी. बीजेपीकी इमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता था.

कार्गील बर्फीला प्रदेश है. वहां पर जो बंकर है उनको शर्दीके समयमें हमेशा खाली किया जाता था. दोनों देशों की यह एक स्थापित प्रणाली थी. भारतीय सुरक्षा दलोंने १९९९में भी ऐसा किया. पाक सैन्यने पहेले आके भारतीय बंकरोंके उपर कब्जा कर लिया. बाजपायी सरकारने युद्ध करके वह कब्जा वापस लिया.

अब देखो नहेरुवीयन कोंग्रेसने अबतक क्या किया था?

१९४८में भारतीय सैन्यने पूरे कश्मिर पर कब्जा किया था, नहेरुवीयन कोंग्रेसने १/३ कश्मिर, पाकिस्तानको वापस किया.

१९६२ चिनके साथके युद्धमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने, भारतका ७१००० चोरसमिल प्रदेश गंवाया. संसदके सामने उस प्रदेशको वापस लेनेकी कसम खानेके बावजुद भी आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेसने उस प्रदेशको वापस लेनेका सोचा तक नहीं है.

१९६५ नहेरुवीयन कोंग्रेसने छाडबेट (कच्छ) का प्रदेश पाकिस्तानको दे दिया. १९७१में पाकिस्तानके साथके युद्धमें हमारे सैन्यने पाकिस्तानके कबजे वाले कश्मिरका जो हिस्सा जिता था और उसके उपर भारतके संविधानके हिसाबसे भारतका हक्क था, वह हिस्सा, इन्दिरा गांधीने सिमला समझौते अंतर्गत पाकिस्तानको वापस दे दिया.

बंग्लादेशी घुसपैठोंने उत्तरपूर्व भारतमें कई भूमिखंडोपर कब्जा कर लिया है.
आजतक नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने शासनकालमें खोये हुए भूमिखंडोंको वापस लानेमें सर्वथा विफल रही है. वह सोचती भी नहीं है कि इनको वापस कैसे लें.
बीजेपी ही एक ऐसा शासक रही कि उसने अपने शासनकालमें जो भूमिखंड गंवाये वे वापस भी लिये.

संसदको उडानेका आतंकी हमला बीजेपी की सरकारने विफल बनाया.
इस फर्कको समझनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेस तो समझनेको तयार न ही होगी, वह उसके संस्कारसे अनुरुप है, लेकिन समाचार माध्यम क्यों विफल रहा या तो बुद्धु साबित हुआ है? तो ऐसे समाचार माध्यमोंसे हम जनता प्रशिक्षणकरणकी अपेक्षा कैसे रख सकते है?

आज भी कई अखबारी मूर्धन्य है जो तटस्थताकी आडमें आम जनताको असमंजसमें डालते है. ऐसे वातावरणमें जनता निस्क्रीय बन जाती है.

२०१४के चूनावमें नहेरुवीयन कोंग्रेस का रवैया कैसा रहेगा?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

देशको बचाओ
टेग्झः भूमिगत संचरना, विकास, बेकारी, बिजली, पानी, मार्ग, जातिवाद, विभाजन, समाचार माध्यम, विश्लेषक, प्रमाणभान, प्रशिक्षण, कंदहार, आतंकी, आतंकवाद, बीजेपी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, हिरो-हिरोईन, असफल, विफल, असमंजस, जनता, कश्मिर, कश्मिरी हिन्दु, हिमालय, भूमिखंड, चिन, हमला, कत्ल, खदेड, महेबुबा, कंदहार, विमान, अपहरण, मुक्ति

Read Full Post »

%d bloggers like this: