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सुज्ञ मुस्लिम क्यूँ मौन है?
Posted in Social Issues, tagged अद्वैतवादकी मायाजाल, अराजकता, अरिफ महम्मद खान, आधारभूत मन्तव्य, एक देशमें दो राष्ट्र, ओशो आशाराम, कट्टरवादी प्रति कोमल, कुरान, गज़वा ए हिन्द, टीवी चेनल, दहीं-दूधमें रहेते है, परिभाषा, पुरस्कृत करनेवाला, पूर्व पक्षका अज्ञान, पूर्वग्रह, प्रच्छन्न कट्टरवादी, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी, प्रमाणभानकी प्रज्ञा, प्रस्तूतताकी प्रज्ञा, प्राथमिकताकी प्रज्ञा, बीजेपीके सदस्य, भारत १२०० वर्ष गुलाम, भारतीय तत्त्वज्ञान, भ्रातृभाव, मुस्लिमोंसे मुस्लिम भयभित, मूर्धन्य, मोडर्न विचारधारावाले बाबा, वितंडावादी, संत रजनीशमल, संदेश, सत्य साई बाबा, सप्रमाण निंदा, सांप्रत काल, सांप्रत समस्या, साई बाबा, सुज्ञ मुस्लिम, सुज्ञ हिन्दु, स्वयं प्रमाणित तटस्थ, हास्यास्पद on April 6, 2020| 2 Comments »
शंकास्पद या खराब, अकुशल और घटिया, प्रपंची और दुराचारी
Posted in Social Issues, tagged अकुशल, अधिकार क्षेत्र, अध्यक्ष, अवरोध, उचित समय, एंकर, खराब, गतिरोध, गले लगना, घटिया, चर्चाके नियम, टीवी चेनल, डेट, दंड, नाटक, पक्षकी परंपरा, पेनल्टी, पेनल्टी पोइन्ट, प्रपंची और दुराचारी, मुद्दत, रा.गा., राहुल गांधी, शंकास्पद, संसद, सदस्य, सुचारु चर्चा, सूत्रोच्चार, हेतु on July 30, 2018| Leave a Comment »
TV Anchor, Parliament Speaker and Nehruvian Congress
शंकास्पद या खराब, अकुशल और घटिया, प्रपंची और दुराचारी = टीवी चेनलका एंकर, संसदका अध्यक्ष और नहेरुवीयन कोंग्र्स
टीवी चेनलका एंकरः
टीवी एंकरका काम है कि कोई एक विषय उपरकी चर्चा के लिये, चर्चाके विषय पर निष्णातोंमें कोई एक या अधिक व्यक्तिको आमंत्रित करना, तथा यदि विषय सियासती है तो सियासती पक्षोंके संबंधित प्रतिनिधिको अपने सियासती पक्षकी नीतियोंसे अनुसार अपना पक्ष प्रस्तुत करें और इस प्रकार चर्चा सुचारु रुप से चले.
चर्चाके अंतमें जनताको यदि कुछ निष्कर्ष निकालना हो तो निकाल सके.
मान लिजिये विषय है “राहुल गांधीका नरेन्द्र मोदीसे गले लगना”
इसमें चर्चाके मुद्दे क्या हो सकते हैं?
(१) क्या राहुल गांधीका नरेन्द्र मोदीसे गले मिलना एक नाटक था.
हाँ या ना
(१.१) यदि नाटक था तो यह नाटक कितना उचित था?
(१.२) यदि नाटक नहीं था तो राहुल गांधीका गले मिलनेका हेतु क्या हो सकता है?
(2) क्या राहुल गांधीका गले मिलना अपने पक्षकी परंपराके अनुसार था?
यदि एंकरको चर्चा सुचारु रुपसे चलानी है तोः
(१) एंकरको चर्चाके नियम सभी वक्ताओंको समज़ा देना चाहिये, जैसे कि प्रारंभमें वक्ताको अपना पक्ष रखनेके लिये ३ मीनट मिलेगी. बादमें प्र्त्युतर के लिये दो मीनट मिलेगी और उपसंहारके लिये ३० सेकंड मीलेगा. अवरोध पैदा करने के लिये एक पूर्व सूचनाका एक पेनल्टी पोईन्ट और माईक पुनरावरोध (बंद करने के लिये)के कारण दो पेनल्टी पोईन्ट मिलेंगे.
(२) यदि नियमका भंग किया तो क्या किया जायेगा वह भी वक्ताओंको बता देना चाहिये,
(३) एंकरको एक एक पोईन्ट पर सुनिश्चित समय देना चाहिये.
(४) “सुचारु रुप से” सभी व्यक्तियोंको पहेले तो मुद्दा स्पष्ट करवाना चाहिये.
(५) यह स्पष्टता कर देनेके बाद एंकरको योग्य और समान समय देना चाहिये
(६) जो व्यक्ति बोलता है वह यदि मुद्देको बाजु पर रख कर अन्य मुद्दे पर बोलने लगे एक बार उसके ध्यान पर लाना चाहिये कि वह मुद्देसे हट रहा है.
(७) वक्ताको सूचित करने पर भी यदि वक्ता बोलता रहेता है, तो उसको आगे बोलने देना चाहिये, लेकिन उसके बोलनेके बाद एंकरको जनताको बताना चाहिये कि उस वक्ताने मुद्देकी बात नहीं की. उसने मुद्देसे हटके बात की है.
(८) यदि कोई वक्ता अन्य कोई वक्ता बोलता है तब उसके साथ बोलने लगता है, या तो उसके बोलनेमें अवरोध पैदा करता है तो उस अवरोधक वक्ता (व्यक्ति) को चेतावनी (पूर्व सूचना वॉर्नींग) देना चाहिये,
(९) यदि पूर्वसूचनाके बाद भी वह अवरोध चालु रखता है तो उसका माईक बंद कर देना चाहिये.
(९) सभी वक्ताओंको कितनी पूर्व सूचना दी गई थी और किसने पूर्व सूचनाके बावजूद अवरोध चालु रखा था तो उसके पेनल्टी पोइन्ट कितने हुए यह बात एंकरको दर्शकोंको अंतमें बताना चाहिये.
अभी तो क्या होता है, कभी कभी एंकर अपनी मनमानी करके कभी वक्ता को अवरोध करने पर रोकता है या तो नहीं रोकता है. कभी एंकर खुद चिल्लने लगता है. क्या एंकर अवरोध करने वाले वक्ता का माईक बंद नहीं कर सकता? यह काम उपलब्ध संचालित तकनिकी से हो सकता है, यदि एंकर बिना गतिरोध चर्चा चलाना चाह्ता है तो.
संसदका अध्यक्षः
संसदके अध्यक्षका भी उपरोक्त ही उत्तरदायित्व बनता है. उसके अतिरिक्त उसके पास तो विशेष अधिकार भी है कि वह सदस्यको दंडित भी कर सकता है.
संसदमें सामान्यतः माना जाता है कि सदस्योंको अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तूत करनेका अधिकार है.
सदस्यको अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करनेका सुयोग्य तरिका होना आवश्यक है.
सदस्य जब अपना क्रम आवे तो वह बोल सकता है. किन्तु यदि;
सदस्य अपना स्थान पर खडा होके सूत्रोच्चार करे, या और, अन्य वक्ताकी प्रस्तूति पर अवरोध करे, या और, अपना स्थान छोडके अध्यक्षके पास आ जाय, या और, अध्यक्षके सामने प्रदर्शन करें तो इससे संसदकी कार्यवाही में गति रोध पैदा होता है.
ऐसा होने पर अध्यक्षको चाहिये कि वह एक बार, उस अवरोधक सदस्यको पूर्वसूचना दें और यदि सदस्य न माने तो उसको,
बीचमें बोलने के लिये एक दिनके लिये निलंबित करें,
अपना स्थान छोडने के लिये दो दिनके लिये निलंबित करें
सूत्रोच्चार करने के लिये तीन दिनके लिये निलंबित करें
अध्यक्षके पास आ जाने के लिये एक सप्ताह के लिये निलंबित करें
यदि एक ही सत्रमें वह अपनी हरकतें तीन बार करता है तो उसको पूरे सत्रके लिये निलंबित करें
यदि मत देने की आवश्यकता पडी तो उसको सिर्फ मत देने की अनुमति मिल सकेगी.
जितने दिन सदस्यको निलंबित किया है उन दिनोंका भत्ता एवं वेतन काट दिया जायेगा.
नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेता कहेते हैं कि संसद चलाना सत्तारुढ पार्टीका कर्तव्य है तो
अध्यक्षका कर्तव्य है कि वह इस प्रकार अपना कर्तव्य अदा करें
संसदके बाहर प्रदर्शन करनाः
कहीं भी प्रदर्शन करना हो तो उसकी एक कार्यवाही है.
आप एक प्रार्थना पत्र में मुद्देका विवरण करो, प्रदर्शन का कारण बताओ, क्या आपने यथा योग्य अंतिम अधिकार क्षेत्रकी व्यक्तिसे वार्तालाप लिया? वार्तालापमें आप किस कारणसे संतुष्ट नहीं है? वार्तालाप अभी चालु है? यदि हाँ तो किस कारणसे प्रदर्शन करना है? क्या आपके उपर हो रहा अन्याय न्यायालयके क्षेत्रमें नहीं आता है? यदि इन सबका उत्तर हकारात्म नहीं है तो प्रदर्शनकी अनुमति नहीं दी जायेगी और सरकारी (जनहितकी कार्यवाहीमें) अवरोध करने कारण आपकी गिरफ्तारी होगी और न्यायिक कार्यवाही होगी.
नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षः
रा.गा.ने पहेले ही कहा था कि हम हर हालतमें संसदको चलने ही नहीं देंगे.
नहेरुवीयन कोंगी लोग ऐसा कहेते है कि जब वे शासनमें थे और बीजेपी जब विपक्षमें था तो वह भी ऐसा ही करता था. लेकिन यदि विपक्ष ऐसा करता था तो वह न बोलने देने पर करता था. यदि ऐसा नहीं था तो नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंको चाहिये कि वे उसकी चर्चा टीवी चेनलोंके द्वारा समाचार पत्रोंद्वारा अपना पक्ष, प्रसंगोका संदर्भ देके जनताके सामने रखें.
चालु सत्रमें आपने देखा होगा कि जब प्रधान मंत्री प्रश्नोंका उतार दे रहे थे तब उनको रोकने के लिये नहेरुवीयन कोंगी नेताएं सातत्य पूर्वक अवरोध कर रहे थे. प्रधान मंत्रीका भाषण ज्यादातर सूत्रोचारसे ही अवरुद्ध रहा था. यह संसदकी, नहेरुवीयन कोंगीयों द्वारा लगातार हो रही अवमानना है.
नरेन्द्र मोदीको गले मिलना एक नाटक था
नरेन्द्र मोदीको गले मिलना एक नाटक था क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह परंपरा नहीं है. यदि नरेन्द्र मोदीके परिपेक्ष्यमें नहेरुवीयन कोंग्रेसकी बात की जाय, तो, नरेन्द्र मोदी के बारेमें उनके नेताओंके बयान क्या थे वह रेकर्ड पर है. उतना ही नहीं नरेन्द्र मोदी, जब गुजरातके मुख्य मंत्री थे तब गुजरातकी सुरक्षा अधिकारीयोंने, उनके मिले “इनपुट”के आधार पर कडी सुरक्षाकी मांग की थी. उसके उपर केन्द्रीय गृह विभाग चपट्ट बैठ गया था और सुरक्षा प्रदान नहीं किया था. केन्द्रके पासभी इनपुट थे, तो भी उसने कुछ नहीं किया था. जब नरेन्द्र मोदी अपने अधिकारिक सुरक्षा वर्तुलसे बाहर आये तो बिहारमें ४५ मीनटके लिये बिलकुल सुरक्षा हीन थे.
इसके अलावा नहेरुवीयन कोंग्रेस, अपने विरोधीयोंपर कैसा अत्याचार करती है उसका इतिहास गवाह है. आपातकालमें मीडीया पर सेन्सरशीप लगाना, जयप्रकाश नारायणको मरणासन्न करना, हजारोंको कारावासमें धकेलना वह भी बिना गुनाह, विरोधीयोंके बारेमें गलत अफवाहें फैलाना जैसे कि, मोरारजी देसाई, वीपी सींग, नरसिंह राव, देव गौडा, अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, किरण बेदी ….
और अंतमें रा.गाने आँख मारके उसके साथीयोंको संदेश दिया कि मैंने कैसा इन लोगोंको बेवकुफ बनाया.
इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण घटिया प्रपंची और दुराचारी सिद्ध होते है.
शिरीष मोहनलाल दवे
भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना
Posted in Social Issues, tagged अत्याचार, अनामत, अशिक्षण, आरक्षण, इसाई, उत्तरदाईत्व, ओन लाईन, कत्लेआम, खालिस्तान, ख्रीस्ती, गुमराह, जातिवाद, टीवी चेनल, दलित, दलितीस्तान, देशी राज्य, दो राष्ट्र परिकल्पना, द्रवीडीस्तान, नहेरुवीयन कोंग्रेस, निरपेक्ष, नेफा, पथभ्रष्ट, पाकिस्तान, प्रहार, प्राचीन इतिहास, प्राथमिक, बहु राष्ट्र, बहुमत, बीजेपी, बौद्धिक क्षमता, ब्राह्मण, ब्रीटीश, भारतकी विभाजनवादी, मध्य युगी इतिहास, मुघल, मुद्दे, मुस्लिम, मूल कोंग्रेस, वंशवादी, विकास, विघातक शक्तियां, व्युहरचना, शस्त्र, संदर्भ, सबका साथ सबका विकास, समस्या, समाचार माध्यम, सवर्ण, सोसीयल मीडीया, स्वकेन्द्री, हिन्दु on June 6, 2018| 1 Comment »
भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना
व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.
हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.
विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु
भारतमाता, हम शर्मिंदा है …., तेरे द्रोही जिन्दा है
हमारी समस्याएं क्या है?
(१) समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.
(२) समस्याओंकी प्राथमिकता
(३) मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता
(४) विपक्षकी व्युहरचनाको न समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.
(५) विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता
(६) अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या उनका ही फरेब क्यूँ न हो,
(७) सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग न करना
(१) अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.
(२) भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.
विकास
नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.
विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.
प्राचीन इतिहास
दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरण” ऐसा प्रचार करते है.
मध्ययुगी इतिहासः
जातिवादः
जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.
इस्लाम
इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.
अर्वाचीन इतिहास
ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.
(३) विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?
सीक्केकी दुसरी बाजु
सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है. इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.
सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?
देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षा, स्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.
जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.
(४) विपक्षकी व्युह रचना क्या है?
विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.
अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किः “यदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.
यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.
हमें दलितोंको अवगत कराना है कि, भूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?
हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं है. यद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.
नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.
बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.
विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्य “ओन लाईन” पर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.
नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.
उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.
गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंने “हम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु है” ऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही विरोध करना है.
वै से तो अंतमें हिन्दु–विरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेप–टोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.
(५) कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.
इनको हमें छोडना नहीं.
इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएं “ओन लाईन” पर उपलब्ध है.
यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रके “ओन–लईन” संस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.
(६) १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दु–मुस्लिम एकताका देश बनता और न तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और न तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता. हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता न थी.
लेकिन वह युद्ध हम हार गये.
इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल न देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.
इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन न हो.
मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.
ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.
अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है.
हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.
दुनियामें कहीं भी मुस्लिम, फिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा है. मिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते है. ईरानके मुस्लिम, ईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते है. इन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते है. लेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे जोडते है. लेकिन आरब इनको अपना समज़ते नहीं है, क्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं है. इसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने है. और कई मुस्लिम यह कबुल भी करते है. वोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप है. खुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.
तो, अब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता है? हिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो, न पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं है. आप कर्मकांड करो तो भी सही, न करो तो भी सही. ईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही, न मानो तो भी सही. अनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि न करो.
मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.
मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.
किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.
नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.
कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.
कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.
जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.
एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.
मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है.
मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.
मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.
कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.
जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.
एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.
नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है
जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्र” में नहीं मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.
महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्र”की परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजित “आर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पना” की तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.
यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दो–राष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.
जिन्ना ने “दो राष्ट्र”की परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमें “दो–राष्ट्र” परिकल्पना आगे की.
ब्रीटीश सरकारने तो “बहु–राष्ट्र” की परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तर–पूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,. द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.
लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.
यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.
हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन न हो.
हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?
राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद न करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित न करें और न तो उनको उछाले.
जैसे कि
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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,
वेदिक शिक्षा प्रणाली,
भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,
महात्मा गांधी फेक महात्मा,
महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,
जीन्नाकी छवी,
हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,
महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,
अहिंसा एक मीथ्या आचार,
महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,
महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,
नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,
नहेरुका धर्म क्या था,
फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,
हिन्दु धर्मकी व्याख्या,
राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),
इतिहास बदलने की अधीरता,
मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,
नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.
मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,
नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,
बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,
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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.
इनमेंसे;
कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,
कई मुद्दे अस्पष्ट है,
कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,
कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,
कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.
ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत न होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.
हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.
दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?
वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.
विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.
इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.
विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.
नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.
शिरीष मोहनलाल दवे
चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.
और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात् काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है. और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है.
रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?
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