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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – २

नज़ारा ए शाहीन बाग

कोंगी लोग सोच रहे है कि अब हम मर सकते है. अब हमे अंतीम निर्णय लेना पडेगा. इसके सिवा हमारा उद्धार नहीं है. यदि हम ऐसे ही समय व्यतीत करते रहे … नरेन्द्र मोदी और बीजेपी को गालियां देतें रहें तो ये सब प्रर्याप्त नहीं है.

यह तो हमने देख ही लिया कि, जो न्यायिक प्रक्रिया चल रही है उसमें हमारी लगातार हार हो रही है.  हमारे लिये कारावासके अतिरिक्त कोई स्थान नहीं. यदि हम सब नेतागण कारावासमें गये तो कोई हमारा ऐसा नेता नहीं बचा है जो हमारे पक्षको जीवित रख सकें और हमे कारावाससे बाहर निकाल सके. हमने पीछले ७० सालमें जो सेक्युलर, जनतंत्र और भारतीय इतिहास को तो छोडो, किन्तु जो नहेरु और नहेरुवीयनोंके विषयमें जूठ सिखाया है और पढाया है, उसका पर्दा फास हो सकता है.

अब हमारे पास तीन रास्ते है.

नवजोत सिध्धु, मणीशंकर अय्यर और शशि थरुर जैसे लोग यदि भारत में काममें न आये तो वे पाकिस्तानमें तो काममें आ ही सकते है. हमारे मुस्लिम लोगोंके कई रीस्तेदार पाकिस्तानमें है. इस लिये पाकिस्तानके उन रीस्तेदारों द्वारा हम भारतके मुस्लिमोंको उकसा सकते है. बोलीवुडके कई नामी लोग हमारे पक्षमें है और वे तो दाउदके पे रोल पर है. इस लिये ये लोग भी बीजेपीके विरुद्धमें वातावरण बनानेमें काममें आ सकते है. इस परिबल को हमें उपयोगमें लाना पडेगा. अभी तक तो हमने इनका छूटपूट उपयोग किया है लेकिन यह छूटपूट उपयोगसे कुछ होने वाला नहीं हैं.    

(१) मुस्लिम जनतासे हमें कुछ बडे काम करवाना है.

(२) जिन समाचार माध्यमोंने हमारा लुण खाया है उनसे हमे किमत वसुल करना है. यह काम इतना कठिन नहीं है क्यों कि हमारे पास उनकी ब्लेक बुक है. हमने इनको हवाई जहाजमें बहूत घुमाया है … विदेशोंकी सफरोंमे शोपींग करवाया है, फाईवस्टार होटलोंमें आरामसे मजा करवाया है, जो खाना है वो खाओ, जो पीना है वह पीओ, जहां घुमना हैं वहा घुमो … इनकी कल्पनामें न आवे ऐसा मजा हमने उनको करवाया है और इसी कारण वे भी तो नरेन्द्र मोदी से नाराज है तो वैसे भी हम उनका लाभ ले सकते है. और हम देख भी रहे है कि वे बीजेपीकी छोटी छोटी माईक्रोस्कोपिक तथा कथित गलतीयोंको हवा दे रहे है जैसे की पीएम और एच एम विरोधाभाषी कथन बोल रहे है, अर्थतंत्र रसाताल गया है, अभूत पूर्व बेकारी उत्पन्न हो गयी है, जीडीपी खाईमें गीर गया है, किसान आत्म हत्या कर रहा है, देश रेपीस्तान बन गया है …. और न जाने क्या क्या …?

(३) क्या मूर्धन्य लोगोंको हम असंजसमें डाल सकते हैं? जी हाँ. यदि मुसलमान लोग अपना जोर दिखाएंगे और हला गुल्ला करेंगे तो ये लोग अवश्य इस निष्कर्स पर पहोंचेंगे कि यह सब अभी ही क्यों हो रहा है …? पहेले तो ऐसा नहीं होता था …!! कुछ तो गडबड है …!! गुजरातीमें एक कहावत है “हलकुं लोहीं हवालदारनुं” मतलब की हवालदार ही जीम्मेवार है.

शशि थरुर और राजदीप सरदेसाई के वाणी विलासको तो हम समज़ सकते है कि उनका तो एक एजन्डा है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपीके बारेमें अफवाहें फैलाओ और एक ॠणात्मक हवा उत्पन्न करो तो जनता बीजेपीको हटाएगी. इन लोगोंसे जनता तटस्थता की अपेक्षा नहीं रखती.

अब देखो हमारे मूर्धन्य कटारीया लोग [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला यानी कोलमीस्ट)] क्या लिखते है?

प्रीतीश नंदीः

“घर छोडके विकास तो भाग गया है” “बीजेपी द्वारा हररोज मुश्केलियां उत्पन्न की जाती है”, यह मुश्केलियां हिंसक भी होती है”, “आखिरमें हमने इस सरकारको वोट क्यों दिया?” “हर महत्त्वकी बातको सरकार भूला देती है” “पागलपन, बेवकुफी भरी उत्तेजना सरकार फैला रही है”, “बीजेपीने चूनावमें बडे बडे वचन दिये थे”, “बीजेपीने चूनावमें युपीएके सामने कुछ सही और कुछ काल्पनिक कौभाण्ड  उजागर करके  सत्ता हांसिल की थी,” “प्रजाकी हालत “हिरन जैसी थी” … “नरेन्द्र मोदीके आक्रमक प्रचारमें जनता फंस गई थी”, “नरेन्द्र मोदीने इस फंसी हुई जनताका पूरा फायदा उठाया” और “मनमोहन जैसे सन्मानित और विद्वान व्यक्तिको  ऐसा दिखाय मानो वे दुष्ट और भ्रष्टाचारी …” “ कारोबारीयोंका संचालन कर रहे हो” “छात्रोंके नारोंकी ताकतको कम महत्त्व नहीं देना चाहिए.”

इस प्रीतीश नंदीकी अक्लका देवालीयापन देखो. वे पाकिस्तानके झीया उल हक्कके कालका एक कवि जो झीयाके विरुद्ध था, उसकी एक कविताका  उदाहरण देते है “हम देखेंगे …”. इसका नरेन्द्र मोदीके शासनके कोई संबंध नहीं. फिर भी यह कटारीया [कटारीया = कटार (कोलम) अखबारकी कोलमोंमें लिखने वाला कोलमीस्ट)] उसको उद्धृत करते है और मोदीको भय दिखाता है कि इस कविकी इस कवितासे लाखो लोग खडे हो जाते है.

यह कटारीयाजी इस काव्यका विवरण करते है. और कहेते है कि हे नरेन्द्र मोदी तुम्हारे सामने भी लाखो लोग खडे हो जायेंगे. फिर यह कटारीयाजी ढाकाके युवानोंका उदाहरण देते है. उनका भी लंबा चौडा विवरण देते है.

क्या बेतुकी बात करते है ये कटारीया नंदी. नंदी कटारीया का अंगुली निर्देश जे.एन.यु. के युवाओंके प्रति है. नंदी कटारीया, जे.एन.यु. के किनसूत्रोंको महत्त्व देना चाहते है? क्या ये सूत्र जो अर्बन नक्षल टूकडे टूकडे गेंग वाले थे?  क्या जे.एन.यु. अर्बन नक्षल वाले ही युवा है? बाकिके क्या युवा नहीं है? अरे भाई अर्बन नक्षल वाले तो ५% ही है. और वे भी युवा है या नहीं यह संशोधनका विषय है. ये कौनसी चक्कीका आटा खाते है कि उनको चालीस साल तक डॉक्टरेट की डीग्री नहीं मिल पाती? जरा इसका भी तो जीक्र करो, कटारीयाजी!!! 

नंदी कटारीयाजीका पूरा लेख ऐसे ही लुज़ टोकींगसे भरा हुआ है. तर्ककी बात तो अलग ही रही, लेकिन इनके लेखमें किसी भी प्रकारका मटीरीयल भी आपको मिलेगा नहीं.

यदि सही ढंगसे सोचा जाय तो प्रीतीश नंदीके इस लेखमें केवल और केवल वाणी विलास है. अंग्रेजीमें इनको “लुज़ टोकींग”कहा जाता है. कोंगी नेतागण लुज़ टॉकींग करे, इस बातको तो हम समज़ सकते है क्यों कि उनकी तो यह वंशीय आदत है.

शेखर गुप्ता (कटारीया)

शेखर गुप्ता क्या लिखते है?

मोदीने किसी प्रदर्शनकारीयोंके जुथको देखके ऐसा कहा कि “उनके पहेनावासे ही पता लग जाता है कि वे कौन है?”

यदि कोई मूँह ढकके सूत्र बाजी या तो पत्थर बाजी करता है तो;

एक निष्कर्ष तो यह है कि वह अपनी पहेचान छीपाना चाहता है, इससे यह भी फलित होता है कि वह व्यक्ति जो कर रहा है वह काम अच्छा नहीं है किन्तु बूरा काम कर रहा है.

दुसरा निष्कर्ष यह निकलता है कि वह अपराधवाला काम कर रहा है. अपराध करनेवालेको सज़ा मिल सकती है. वह व्यक्ति सज़ासे बचनेके लिये मूँह छीपाता है.

तीसरा निष्कर्ष में पहनावा है.  पहनावेमें तो पायजामा और कूर्ता आम तौर पर होता ही है. यह तो आम जनता या कोई भी अपनेको आम दिखानेके लिये पहेनेगा ही.

लेकिन हमारे शे.गु.ने यह निष्कर्ष  निकाला की नरेन्द्र मोदीने मुस्लिमोंके प्रति अंगूली निर्देश किया है. इस लिये मोदी कोम वादी है और मोदी कोमवादको बढावा देता है. शे.गु. कटारीयाका ऐसा संदेश जाता है.

शे.गु.जी ऐसा तारतम्य निकालनेके लिये, अरुंधती रोय और माओवादी जुथके बीचके डीलका उदाहरण देते है. गांधीवाद और माओवाद का समन्वय किस खूबीसे अरुंधती रोय ने किया है कि शे.गु.जी आफ्रिन हो गये. शे.गु.जी कहेते है कि, क्यूं कि प्रदर्शनकारी पवित्र मस्जिदमेंसे आ रहे है, क्यूँ कि उनके हाथमें त्रीरंगा है, क्यूँ कि वे राष्ट्रगान गा रहे है, क्यूँ कि उनके पास महात्मा गांधीकी फोटो है, क्यूं कि उनके पास आंबेडकर की फोटो है … आदि आदि .. शे.गु. जी यह संदेश भी देना चाहते है कि ये बीजेपी सरकार लोग चाहे कितनी ही बहुमतिसे निर्वाचित सरकार क्यूँ न हो इन (मुस्लिमों)के प्रदर्शनकी उपेक्षा नहीं करना चाहिये.

वास्तवमें शे.गु.जीको धैर्य रखना चाहिये. रा.गा.की तरह, बिना धैर्य रक्खे, शिघ्र ही कुछ भी बोल देना, या तो बालीशता है या तो पूर्वनियोजित एजन्डा है. तीसरा कोई विकल्प शे.गु. कटारीयाके लिये हो ही नहीं सकता.

शे.गु.जी ने आगे चलकर भी वाणी विलास ही किया है.

चेतन भगतः

चेतन भगत भी एक कटारीया है. वे लिखते है कि

“उदार मानसिकतासे ही विकास शक्य है.”

“हम चोकिदार कम और भागीदार अधिक बनें, इससे देश शानदार बनेगा”

श्रीमान चे.भ. जी (चेतन भगत जी), भी एक बावाजी ही है क्या? बावाजी से मतलब है संत रजनीश मल, ओशो आसाराम. बावाजी है तो उदाहरण तो देना ही आवश्यक बनता है न!! वे अपने बाल्यावस्थाका उदाहरण देते है. वे फ्रीज़ और नौकरानीका और बील गेट्सका उदाहरण देते है. परोक्ष में “चे.भ.”जी मोदीजी की मानसिकता अन्यों के प्रति अविश्वासका भाव है. फिर उन्होंने कह दिया कि, नरेन्द्र मोदीने कुछ नियम ऐसे बनाये कि लोग भारतमें निवेश करने से डरते है. कौनसे नियम? इस पर चे.भ.जी मौन है. शायद उनको भी पता नहीं होगा.

चे.भ.जी अपनी कपोल कल्पित तारतम्य को स्वयं सिद्ध मानकर मोदीकी बुराई करते है.

“मुस्लिमोके विरुद्ध हिन्दुओंमें गुस्सा है. इसका कारण हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता है.

“अप्रवासीयोंपर हुए हमले भी हिन्दुओंकी संकुचित मानसिकता कारण भूत है,

“मुस्लिमोंको बहुत कुछ दे दिया है, अब वह वापस ले लेना चाहिये,

“मुस्लिमोंका बहुत तुष्टीकरण किया है अब उनको लूट लेना चाहिये

चे.भ.जी इस बातको समज़ना नहीं चाहते कि, किसी भी जनसमुदायमें कुछ लोग तो कट्टर विचारधारा वाले होते ही है. लेकिन किस समुदायमें इस कट्टरतावादी लोगोंका प्रमाण क्या है? इतनी विवेकशीलता तो मूर्धन्य कटारीयाओंमें होना आवश्यक है. लेकिन इन कटारीयाओंमे विवेक हीनता है. तुलनात्मक विश्लेषणके लिये ये कटारीया लोग अक्षम ही नहीं अशक्त है. वे समज़ते है “… वाह हमने क्या सुहाना शब्द प्रयोग किया है. फिलोसोफिकल वाक्य बोलो तो हमारी सत्यता अपने आप सिद्ध हो जाती है…”चे.भ.जी जैसे लोगोंको तुलनात्मक सत्य दिखायी ही नहीं देता है.

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी

कोंगी और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंके शिर्ष नेताओंके उच्चारणोंको देख लो. “चोकिदार चोर है, नरेन्द्र मोदी नीच है, नरेन्द्र मोदीको डंडा मारो, नरेन्द्र मोदी फासीस्ट है, नरेन्द्र मोदी हीटलर है, नरेन्द्र मोदी खूनी है, बीजेपी वाले आर.एस.एस.वादी है, वे गोडसे है…” न जाने क्या क्या बोलते है. पक्षके प्रमुख और मंत्री रह चूके और सरकारी  पद पर रहेते हुए भी उन्होंने ऐसे उच्चारण किये है. लेकिन ये उपरोक्त मूर्धन्य कटारीया लोग इन उच्चारणों पर मौन धारण करते है. उनका जीक्र तक नहीं करतें.

आखिर ऐसा क्यूँ वे लोग ऐसा करते हैं?

यदि बीजेपीके या तो आर.एस.एस.के तृतीय कक्षाके लोग उपरोक्त उच्चारणोसे कम भी बोले तो ये लोग बडे बडे निष्कर्ष निकालते है. अपना कोरसगान (सहगान) चालु कर देते हैं.     

अपराध कब सिद्ध होता है?

“आप अपनी धारणाओंके आधार पर किसीको दोषी करार न ही दे सकते. न्यायिक प्रक्रियाके सिद्धांतोसे यह विपरित है. किसीको भी दोषी दिखानेके लिये आप अपनी मनमानी और धारणाओंका उपयोग नहीं कर सकते. किन्तु महान नंदीजी, शे.गु.जी, चे.भ. जी … आदि क्यूँ कि उनका एजन्डा कुछ और ही है, वे ऐसा कर सकते है. कोंगी लोग यही तो चाहते है.

इन कटारीया लोगोंको वास्तवमें पेटमें दुखता है क्या?

वास्तवमें कोंगी लोग और उनके सहयोगी लोग समज़ गये है कि,

नरेन्द्र मोदी, और भी समस्याएं हल कर सकता है. वैसे तो, जी.एस.टी. तो हमारा ही प्रस्ताव था, “विमुद्रीकरण करना” इस बातको तो हम भी सोच रहे थे, पाकिस्तानमें अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हो और वे पीडित होके भारतमें आवे तो, हमे उनको नागरिकता देनी है, यह बात भी हमारे नहेरु-लियाकत अली समज़ौताका हिस्सा था, १९७१के युद्धसे संबंधित जो शरणार्थी प्रताडित होकर भारतमें आये उनमें जो पाकिस्तानके अल्पसंख्यक थे उनको नागरिकता देना, और बांग्लादेशके आये बिहारी मुस्लिमोंको वापस भेजना यह तो हमारे पक्षके प्रधान मंत्रीयोंका शपथ था.  किन्तु हममें उतनी हिंमत और प्रज्ञा ही नहीं थी कि हम अपने शपथोंको पुरा करे. मोदीके विमुद्रीकरण और जी.एस.टी.के निर्णयोंको तो हमने विवादास्पद बनाके विरोध किया और जूठ लगातार फैलाते रहे. बीजेपी के हर कदमका हम विरोध करेंगे चाहे वह मुद्दे हमारे शासनसे संलग्न क्यूँ न हो?

कोंगी और उनके साथी लोगोंको अनुभूति हो गई है कि, “अब तो मोदीने उन समस्याओंको हाथ पे ले लिया है जो हमने दशकों और पीढीयों तक अनिर्णित रक्खी”.

कोंगीने उनके सांस्कृतक साथी पक्षके नेतागणको आत्मसात्‌ करवा दिया है कि “मोदी सब कुछ कर सकता है. अब तक हम उसको हलकेमें ले रहे थे. किन्तु मोदी आतंकी गतिविधियोंको अंकूशमें रख सकने के अतिरिक्त और सर्जीकल स्ट्राईकके अतिरिक्त, अनुछेद ३७० और ३५ऍ तकको खतम कर सकता है. वह जम्मु – कश्मिर राज्यश्रेणी भी बदल सकता है. हमे खुलकर ही मुस्लिम नेताओंको और मुस्लिमोंको अधिकसे अधिक बहेकाना पडेगा.”

कोंगीके सांस्कृतिक साथी कौन कौन है?

कोंगी पक्ष कैसा है?

कोंगी वंशवादी है, वंशवादको स्थायी रखने के लिये अवैध मार्गोंसे संपत्तिकी प्राप्त करना पडता है, शठता करनी पडती है,

सातत्यसे जूठ बोलना पडता है,

असामाजिक तत्त्वोंको हाथ पर रखना पडता,

दुश्मनके दुश्मनको मित्र बनाना पडता है,

जनताको मतिभ्रष्ट और पथ भ्रष्ट करना पडता. और कई समस्याओंको अनिर्णायक स्थितिमें रखना पडता है चाहे ये अनिर्णायकता देशके लिये और आम जनताकाके लिये कितनी भी हानिकारक क्यूँ न हो!!

अनीतिमत्ता वंशवादका एक आनुषंगिक उत्पादन है.

कोंगी जैसा सांस्कृतिक चरित्र और किनका है?

 ममताका TMC, शरदका NCP, लालुका RJD, बाल ठकरे का Siv Sena, मुल्लायमका SP, शेख अब्दुल्लाके फरजंद फारुक अब्दुल्लाका N.C. और सबसे नाता जोडने और तोडने वाले साम्यवादी. अब हम इन सभी पक्षोंके समूह को कोंगी ही कहेंगे. क्योंकि इन सभीका काम येन केन प्रकारेण, बिना साधन शुद्धिसे, बिना देशके हितकी परवाह किये नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को फिलहाल को बदनाम करो.

संवाद मत करो और तर्कयुक्त चर्चा मत करो केवल शोर मचाओ

संवाद करेंगे तो सामनेवाला तर्क करेगा. इस लिये संवाद मत करो, बार बार जूठ बोलो, असंबद्ध उदाहरण दो, सब नेता सहगान करो.

कहो… मोदी चोर है. अपने अनपढ श्रोताओंसे सूत्रोच्चार करवाओ मोदी चोर है. मोदीको चोरे सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी हीटलर है.  सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

मोदी खूनी है… सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

बीजेपी लोग गोडसे है. चाहे गोडसे आर.एस.एस. का सदस्य न भी हो तो भी. हमें क्या फर्क पडता है!!!  सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

विमूद्रीकरणमें मोदीने सेंकडो लोगोंको लाईनमें खडा करके मार दिया. बोलनेमें क्या हर्ज है? (वचनेषु किं दरिद्रता?). सिद्ध करनेके लिये सामग्री की आवश्यकता नहीं.

जी.एस.टी. गब्बर सींग टेक्ष है. (चाहे वह हमारा ही प्रस्ताव क्यों न हो. किन्तु हममें उतना नैपूण्य कहाँ कि हम उसको लागु करें). यह सब चर्चा करना कहाँ आवश्यक है? सिद्ध करनेके लिये सबूत सामग्री की आवश्यकता नहीं.

“भारतीय संविधान”को हमारे पक्षमें घसीटो, “मानव अधिकार और फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन” को भी हमारे पक्षमें घसीटो, रास्ता रोको, लगातार रास्ता रोको, आग लगाओ, फतवे निकालो, जनताको हो सके उतनी असुविधाओंमें डालो, कुछ भी करो और सब कुछ करो … मेसेज केवल यह देना है कि यह सब मोदीके कारण हो रहा है.

यदि इतना जूठ बोलते है तो “महात्मा गांधी”को भी हमारे पक्षमें घसीटो. गांधीजीका नाम लेके यह सब कुछ करो.

कोंगीयों द्वारा गांधीका एकबार और खून

कोंगीओंको, उनके सांस्कृतिक साथीयों और समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी छोडो, भारतमें विडंबना यह है कि अब मूर्धन्य कटारीया लोग भी ऐसा समज़ने लगे है कि अहिंसक विरोध और महात्मा गांधीके सिद्धांतों द्वारा विरोध ये दोनों समानार्थी है.

महात्मा गांधीके अनुसार विरोध कैसे किया जाता है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

https://www.treenetram.wordpress.com 

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हमे परिवर्तन नहीं चाहिये. “जैसे थे” वाली ही परिस्थिति रक्खो” मूर्धन्याः उचुः – २

कोई भी मनुष्य आम कोटिका हो सकता है, युग पुरुषसे ले कर वर्तमान शिर्ष नेता की संतान या तो खुद नेता भी आम कोटिका हो सकता है.

“आम कोटिका मनुष्य” की पहेचान क्या है?

clueless

(कार्टुनीस्टका धन्यवाद)

जो व्यक्ति आम विचार प्रवाहमें बह जाता है, या,

जो व्यक्ति पूर्वग्रह का त्याग नहीं कर सकता,

जो व्यक्ति विवेकशीलतासे सोच नहीं सकता,

जिस व्यक्तिमें प्रमाण सुनिश्चित करके तुलना करनेकी क्षमता नही,

जिस व्यक्तिमें संदर्भ समज़नेकी क्षमता नहीं,

जिस व्यक्तिमें सामाजिक बुराईयोंसे (अनीतिमत्तासे) लडनेकी क्षमता नहीं,

जिस व्यक्तिमें अनीतिमत्ताको समज़नेकी क्षमता नहीं.

इन सभी गुणोंको, यदि एक ही वाक्यमें कहेना है तो, जिसमें समाजके लिये सापेक्षमें क्या श्रेय है वह समज़ने की क्षमता नहीं वह आम कोटिका व्यक्ति है. जो व्यक्ति स्वयं अपनेको आम कोटिका समज़े वह आम कोटिसे थोडा उपर है. क्यों कि वह व्यक्ति जिस विषयमें उसका ज्ञान नहीं, उसमें वह चंचूपात नहीं करता है.

हमारे कई मूर्धन्य आम कोटिके है.

प्रवर्तन मान समयमें देशके मूर्धन्य तीन प्रकारमें विभाजित है.

(१) मोदीके पक्षमें

(२) मोदीके विरुद्ध

(३) तटस्थ.

मोदीके पक्षमें है वे लोग, यदि हम कहें कि वे देश हितमें सोच रहे है, तो वह प्रवर्तमान स्थितिमें, सही है. लेकिन बादमें इनमेंसे कई लोगोंको बदलना पडेगा. इनमें मुस्लिम-फोबिया पीडित लोग और महात्मा गांधी-फोबिया पीडित लोग आते है. इसकी चर्चा हम करेंगे नहीं. लेकिन इन लोगोंका लाभ कोंगी प्रचूर मात्रामें लेती है.

मोदी का प्रतिभाव

कोंगीनेतागण स्वकेन्द्री और भ्रष्ट है. यह बात स्वयं सिद्ध है. यदि किसीको शंका है तो अवश्य इस लेखका प्रतिभाव दें.

कोंगीको आप स्वातंत्र्यका आंदोलन चलानेवाली कोंग्रेस नहीं कह सकते. क्यों कि वह कोग्रेस साधन शुद्धिमें मानती थी. और १९४८के पश्चात्य कालकी कोंग्रेस (कोंगी) साधन शुद्धिमें तनिक भी मानती नहीं है. कोंगीके नेताओंकी कार्यसूचिके ऐतिहसिक दस्तावेज यही बोलते है.

आतंकवादके साथ कोंगीयोंका मेलमिलाप या तो सोफ्ट कोर्नर, कोंगीयोंका कोमवाद और जातिवादको उत्तेजन, मोदीके प्रति कोंगीयोंकी निम्न स्तरकी सोच, कोंगीयोंका मीथ्या वाणीविलास … ये सब दृष्यमान है. कुछ मुस्लिम नेताओंकी सोच जैसे हिन्दुके विरुद्ध है उसी प्रकार इन कोंगीयोंकी सोच भी खूले आम विकृत है.

कोंगीयोंको की तो हम अवगणना कर सकते है. क्यों कि यह कोई नयी बात नहीं है. लेकिन मूर्धन्य लोग जो अपनेको तटस्थ मानते है वे भी प्रमाणकी तुलना किये बिना केवल एक दिशामें ही लिखते है.

साध्वी प्रज्ञा के उपर कोंगी सरकारने जो असीम अत्याचार करवाया वे हर नापदंडसे और निरपेक्षतासे घृणास्पद है. उसको पढके हर सद्‌व्यक्ति का खून उबल सकता है. साध्वी प्रज्ञाके उपर किये गये अत्याचार किससे प्रेरित थे. इस बात पर एक विशेष जाँच टीमका गठन करना चाहिये. और संबंधित हर पूलिसका, अफसरका और सियासती नेताओंकी पूछताछ होनी चाहिये.

यदि ऐसा नहीं होगा तो इन्दिरा गांधीकी तरह हर कोंगी और उसके हर सांस्कृतिक पक्षका नेता सोचेगा कि हमें तो किसीको भी कुछ भी करने की छूट है, जैसे इन्दिरा गांधीने १९७५-१९७६में किया था.

हमारे मूर्धन्योंको देखो. एक भी माईका लाल निकला नहीं जिसने इस मुद्दे पर चर्चा की हो. हाँ, इससे विपरीत ऐसे कटारीया (कोलमीस्ट) अवश्य निकले जिसने साध्वी प्रज्ञाकी बुराई की. ऐसे कटारीया लेखक साध्वी प्रज्ञाकी शालिन भाषासे भी उसकी सांस्कृतिक उच्चताकी अनुभूति नही कर पाये.  और देखो कटारिया लेखककी विकृतिकी कल्पना शीलता देखो कि उसने तो अपनी कल्पनाका उपयोग करके “साध्वी प्रज्ञाने एन्टी टेररीस्ट स्क्वार्ड के हेड हेमंत करकरे जब वे कसाबको गोली मार रहे थे तो साध्वी प्रज्ञाने हेमंत करकरेको श्राप दिया कि उस मासुम आतंकवादीको क्यों मारा? अब तुम भी मरोगे.”  और हेमंत करकरे मारे गये.

sadvi pragya tortured

यह क्या मजाक है? कल्पना कटारीया की, कल्पना चढाई साध्वी प्रज्ञाके नाम. प्रज्ञा – कसाब बहेन भाई, कौन कब कहाँ मरा और किसने मारा … इसके बारेमें कटारियाका घोर अज्ञान और घालमेल. एक साध्वी प्रज्ञाके उपर पोलिस कस्टडीमें घोर अत्याचार हुआ. लंबे अरसे तक अत्याचार होता रहा, अत्याचारकी जांच के बदले, अत्याचारको “मस्जिदमें गीयो तो कौन” करके एक मजाकवाला लेख लिख दिया ये कटारिया भाईने.

जिस साध्वी प्रज्ञाको न्यायालय द्वारा क्लीन चीट मीली है,लेकिन इस बातसे तो उनके उपर हुए अत्याचार का मामला और अधिक गंभीर बनता है.  साध्वी प्रज्ञाने कभी कसाब को मारनेके कारण करकरे तो श्राप दिया ऐसा कभी सुना पढा नहीं. साध्वी प्रज्ञाने स्वयंके उपर करकरेके कहेनेसे हुई यातना से करकरे को श्राप दिया ऐसा सूना है. कसाबको तो न्यायालयमें केस चला और उसको फांसीकी सज़ा हुई. कसाबकी फांसीके जल्लाद करकरे नहीं थे. करकरे तो कसाबसे पहेले ही आतंकवादीयोंके साथ मुठभेडमें मर गये थे. कसाब को मृत्युदंड २१ नवेम्बर २०१२ हुआ. और करकरे मुठभेडमें मरा २६ नवेम्बर २००८.

हिन्दु आतंकवद एक फरेब

साध्वी प्रज्ञाके कथनोंको पतला करनेके लिये कटारीयाभाईने उसको एक मजाकका विषय बना दिया. यह है हमारे मूर्धन्योंकी मानसिकता. ऐसी भद्दी मजाक तो कोंगीप्रेमी ही कर सकते है. किन्तु इससे क्या कोंगीका पल्ला भारी होता है?

अरुण शौरी लो या शेखर गुप्ता लो या प्रीतीश नंदी लो या अपनके स्वयं प्रमाणित शशि थरुर लो. या तो गीता पढाओ या तो इनको डॉ. आईनस्टाईन एन्ड युनीवर्स पढाओ या तो उनको कहो कि आपका पृथ्वीपरका करतव्य पूरा हुआ है और आप अब मौन धारण करो.

एक तरफ मोदी है, जिसने कभी संपत्ति संचयका सोचा नहीं, जिसने अपने संबंधीयोंको भी दूर रक्खा, वह अपने परिश्रमसे आगे आया और वह देशके हितके अतिरिक्त कुछ सोचता नहीं,

दुसरी तरफ है (१) कोंगीके नहेरुवीयनसे प्रारंभ करके, यानी कि सोनिया, राहुल,  चिदंबरम, दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, मोतीलाल वोरा, साम पित्रोडा जैसे नेतागण जो बैल पर है, (२) मुलायम, अखिलेश, मायावती जिनके उपर अवैध तरीकोंसे संपत्ति प्राप्तिके केस चल रहे है, (३) ममता और उसके साथीयोंके उपर शारदा ग्रुप चीट फंडके कौभान्डके केस चल रहे है, और ममताका नक्षलवादीयोंके साथकी सांठगांठके बारेमें कभी भी खुलासा हो सकता है, (४) लालु प्रसाद कारावासके शलाखेकी गीनती कर रहे है और उसके कुटुंबीजन अवैध संपतिके केस चल रहे है.

उपरोक्त लोगोंने जे.एन.यु. के विभाजन वादी टूकडे टूकडे गेंगका और अर्बन नक्षलीयोंका खुलकर समर्थन किया है जिसमें कश्मिरके विभाजनवादी तत्त्व भी संमिलित है. ये योग आतंकवादीयोंके मानव अधिकारका समर्थन करनेमें कूदकर आगे रहेते है, लेकिन हिन्दुओंकी कत्लेआम और विस्थापित होने पर मौन है. देश की सुरक्षा पर भी मौन है.

यह भेद क्रीस्टल क्लीयर है. इसमें कोई विवादकी शक्यता नहीं. तो भी हमारे मूर्धन्य कटारीयाओंकी कानोंमे जू तक नहीं रेंगती. दशको बीत जाते है लेकिन उनके मूँहसे कभी “उफ़” तक नहीं निकलता. और जब कोई बीजेपी/मोदी फोबिया पीडित नेता जैसा कि राहुल, पित्रोडा, प्रयंका, सोनिया, मणी अय्यर, आझम, दीग्विजय, चिदंबरं, शशि, माया, ममता आदि कोई कोमवादी या जातिवादी टीप्पणी करता है और बीजेपीके कोई नेता उसका उत्तर देता है तो वे सामान्यीकरण करके एन्टी-बीजेपी गेंगकी कोमवादी जातिवादी टीप्पणीको अति डाईल्युट कर देते है. “इस चूनावमें नेताओंका स्तर निम्न स्तर पर पहूँच गया है ऐसा लिखके अपनी पीठ थपथपाते है कि स्वयं कैसे तटस्थ है.

मूर्धन्योंकी ऐसी तटस्थता व्यंढ है और ऐसे मूर्धन्य भी व्यंढ है जो अपनी विवेकशीलतासे जो वास्तविकता क्रीस्टल क्लीयर है तो भी, उसको उजागर न कर सके. इतनी सीमा तक स्वार्थी तो कमसे कम मूर्धन्योंको नहीं बनना चाहिये.     

इसके अतिरिक्त कोम्युनीस्ट पार्टी और कट्टरवादी मुस्लिम पक्ष है जिनकी एलफेल बोलनेकी हिमत कोंगीयोंने बढायी है. इनकी चर्चा हम नहीं करेंगे.

“जैसे थे” वाली परिस्थिति मूर्धन्योंको क्यूँ चाहिये? 

क्यूँ कि हमें पीला पत्रकारित्व चाहिये, हमें मासुम/मायुस चहेरेवाले लचीले शासकके शासनमें हस्तक्षेप करना है. हमें हमारे हिसाबसे मंत्रीमंडलमें हमारा कुछ प्रभाव चाहिये, हम एजन्टका काम भी कर सकें, हमे सुरक्षा सौदोमें भी हिस्सा चाहिये ताकि हमारा चेनल/वर्तमानपत्र रुपी मुखकमल बंद रहे. अरे भाई, हमे पढने वाले लाखों है, तो हमारा भी तो महत्त्व होना ही चाहिये न?

स्वय‌म्‌ प्रमाणित महात्मा गांधीवादीयोंका और गांधी-संस्था-गत क्षेत्रमें महात्मा गांधीके विचारोंका प्रचार करने वाले अधिकतर महानुभावोंका क्या हाल है?

इनमेंसे अधिकतर महानुभाव लोग आर.एस.एस. फोबियासे पीडीत होनेके कारण, एक पूर्वग्रहसे भी पीडित है. आर.एस.एस.में तो आपको नरेन्द्र मोदी और उनके साथी और कई सारे लोग मिल जायेंगे जो महात्मा गांधीके प्रति आदरका भाव रखते है और उनका बहुमान करते है. महात्मा गांधी के विचारोंका प्रसार करनेका जो काम कोंगीने नहीं किया, वह काम बीजेपीकी सरकारोंने गुजरात और देशभरमें किया है. इस विषय पर महात्मा गांधीवादी महानुभावोने नरेन्द्र मोदीका अभिवादन या प्रशंसा नहीं किया. लेकिन ये पूर्वग्रहसे पीडित महानुभावोंने ऐसे प्रश्न उठाये वैसे प्रश्न कोंगी शासन कालमें कभी नही उठाये गये. जैसे कि “मोदीको अपने कामका प्रचार करनेकी क्या आवश्यकता है? वह प्रचार करता है वही अनावश्यक है. काम तो अपने आप बोलेगा ही. मोदी स्वयं अपने कामोंकी बाते करता है यही तो उसका कमीनापन है.” “ मोदीने अंबाणीसे प्रचूर मात्रामें पैसे लिये. ऐसे पैसोंसे वह जीतता है.” कोंगीयोंकी तरह ये लोग भी प्रमाण देना आवश्यक नहीं समज़ते.

मा, माटी और मानुष

हमारे कथित गांधीवादी (दिव्यभास्कर के गुजराती प्रकाशन के दिनांक १६-०५-२०१९) मूर्धन्यको ममताके “मा माटी” में भावनात्मक मानस दृष्टिगोचर होता है, चाहे ममता पश्चिम बंगालमें प्रचारके लिये आये अन्य भाषीयोंको, “बाहरी” घोषित करके देशकी जनताको विभाजित करे.

पूरी भारतकी जनता एक ही है और उसमें विभाजनको अनुमोदन देना और बढावा देना “अ-गांधीवाद” है. गांधीजी जब चंपारणमें गये थे, तब तो किसीने भी उनको बहारी नहीं कहा था. और अब ये कथित गांधीवादी, “बाहरी”वाली मानसिकता का गुणगान कर रहे है.

यदि नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें ऐसा किया होता तो?

तब तो ये गांधीवादी उनके उपर तूट पडते.

अब आप देखो और तुलना करो… नरेन्द्र मोदीने कभी “अपन” और “बाहरी’ वाला मुद्दा बनाया नहीं. तो भी ये लोग २००१से, मोदी प्रांतवादको उजागर करता है ऐसा कहेते रहेते है. वास्तवमें मोदी तो परप्रांतियोंका गुजरातके विकासमें दिये हुये योगदानकी सराहना करते रहेते है. लेकिन इन तथा-कथित गांधीवादीयोंका मानस ही विकृत हो गया है. इन लोंगोंको पश्चिम बंगालकी टी.एम.सी. द्वारा प्रेरित आपखुदी, सांविधानिक प्रावधानोंकी उपेक्षा, और हिंसा नहीं दिखाई देती. तब तो वे शाहमृगकी तरह अपना शिर, भूमिगत कर देते हैं. उपरोक्त गांधीवादी महानुभाव लोगोंने विवेक दृष्टि खो दी है. ईश्वर उनको माफ नहीं करेगा, चाहे उनको ज्ञात हो या नहीं. उपरोक्त गांधीवादीयोंके लिये इस सीमा तक कहेना इस कालखंडकी विडंबना है. तथाकथित महात्मा गांधीवादीयोंके वैचारिक विनीपातसे, हमारे जैसे अपूर्ण गांधीवादी शर्मींदा है. १९६४-१९७७में तो इन्दिरा नहेरु कोंग्रेस (आई.एन.सी.)की गेंगसे देशकी जनताको सुरक्षा देने के लिये जयप्रकाश नारायण, मैदानमें आ गये थे, किन्तु प्रवर्तमान समयमें, ये जूठसे लिप्त और भ्रष्टाचारसे प्लवित कोंगी, और उसके सांस्कृतिक साथीयोंकी अनेकानेक गेंगसे बचाने के लिये कोई गांधीवादी बचा नहीं है और जो है वे अक्षम है. यह युद्ध जनता और बीजेपीको ही लडना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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कोंगी का नया दाव -३

“हमने कभी हमसे विरुद्ध अभिप्राय रखनेवालोंको देश द्रोही नहीं समज़े” अडवाणी उवाच.

अडवाणीके इस कथनको एन्टी-मोदी-गेंग उछालेगी.

“हमसे विरुद्ध अभिप्राय” इस कथनका कोई मूल्य नहीं है, जब तक आप इस कथनके संदर्भको गुप्त रखें. सिर्फ इस कथन पर चर्चा चलाना एक बेवकुफी है, जब आप इसका संदर्भ नहीं देतें.

Tometo and couliflower

मुज़े टमाटर पसंद है और आपको फुलगोभी. मेरे अभिप्रायसे टमाटर खाना अच्छा है. आपके अभिप्रायसे फुलगोभी अच्छी है. इसका समाधान हो सकता है. आरोग्यशास्त्रीको और कृषिवैज्ञानिकको बुलाओ और सुनिश्चित करो कि एक सुनिश्चित विस्तारकी भूमिमें सुनिश्चित धनसे और सुनिश्चित पानीकी उपलब्धतामें जो उत्पादन हुआ उसका आरोग्यको कितना लाभ-हानि है. यदि वैज्ञानिक ढंगसे देखा जाय तो इसका आकलन हो सकता है. मान लो कि फुलगोभीने मैदान मार लिया.

कोई कहेगा, आपने तो वैज्ञानिक ढंगसे तुलना की. लेकिन आपने दो परिबलों पर ध्यान नहीं दिया. एक परिबल है टमाटरसे मिलनेवाला आनंद और दुसरा परिबल है आरोग्यप्रदतामें जो कमी रही उसकी आपूर्ति करनेकी मेरी क्षमता. यदि मैं आपूर्ति करनेमें सक्षम हूँ तो?

अब आप यह सोचिये कि टमाटर पर पसंदगीका अभिप्राय रखने वाला कहे कि फुलगोभी वाला देशद्रोही है. तो आपको क्या कहेना है?

वास्तवमें अभिप्रायका संबंध तर्क से है. और दो विभिन्न अभिप्राय वालोंमे एक सत्यसे नजदिक होता है और दुसरा दूर. जो  दूर है वह भी शायद तीसरे अभिप्राय वाली व्यक्तिकी सापेक्षतासे सत्यसे समीप है.

तो समस्या क्या है?

उपरोक्त उदाहरणमें, मान लो कि, प्रथम व्यक्ति सत्यसे समीप है, दूसरा व्यक्ति सत्यसे प्रथम व्यक्तिकी सापेक्षतासे थोडा दूर है. लेकिन दुसरा व्यक्ति कहेता है कि यह जो दूरी है उसकी आपूर्तिके लिये मैं सक्षम हूँ. अब यदि तुलना करें तो तो दूसरा  व्यक्ति भी सत्यसे उतना ही समीप हो गया. और उसके पास रहा “आनंद” भी.

य.टमाटर+क्ष१.खर्च+य१.आरोग्य+झ.आनंद+आपूर्तिकी क्षमता = र.फुलगोभी+क्ष१.खर्च+य२.आरोग्य+झ.आनंद जहाँ  आनंद समान है बनाता है जब य१.आरोग्य +आपूर्तिकी क्षमता=  य२.आरोग्य होता है.

जब आपूर्तिकी क्षमता होती है तो दोनों सत्य है. या तो कहो कि दोनों श्रेय है.

लेकिन विद्वान लोग गफला कहाँ करते है?

आपूर्तिकी क्षमताको और आनंदकी अवगणनाको समज़नेमें गफला करते है.

कई कोंगी-गेंगोंके प्रेमीयोंने जे.एन.यु. के नारोंसे देशको क्या हानि होती है (हानि = ऋणात्मक आनंद) उसकी अवगणना की है. और उस क्षतिकी आपूर्तिकी क्षमताकी अवगणना की है. क्यों कि उनकी समज़से यह कोई अवयव है ही नहीं. उनकी प्रज्ञाकी सीमासे बाहर है.

जब दो भीन्न अभिप्रायोंका संदर्भ दिया तो पता चल गया कि इसको देश द्रोहसे कोई संबंध नहीं. और ऐसे कथनको यदि कोई अपने मनमाने और अकथित संदर्भमें ले ले तो यह सिर्फ सियासती कथन बन जाता है.

जे.एन.यु. के कुछ “तथा कथित विद्यार्थीयों”के नारोंसे देशका हित होता है क्या?

“मुज़से अलग मान्यता रखनेवालोंको मैंने देश द्रोही नही समज़ा” अडवाणीका यह कथन अन्योक्ति है, या अनावश्यक है या मीथ्या है.

कुछ लोग जे.एन.यु. कल्चरकी दुहाई क्यों देते हैं?

राहुल घांडी और केजरीवाल खुद उनके पास गये थे और उन्होंने जे.एन.यु.की टूकडे टूकडे गेंगको सहयोग देके बोला था कि, आप आगे बढो, हम आप लोगोंके साथ है. विद्वानोंने इस गेंगके  नारोंको बिना दुहराये इसके उपर तात्विक चर्चा की कि नारोंसे देशके टूकडे नहीं होते. नारे लगाना अभिव्यक्तिके स्वातंत्र्यके अंतर्गत आता है.

यदि अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रताकी ही बात करें तो,  तो बीजेपी या अन्य लोग भी अपनी अभिव्यक्तिकी स्वतंत्रताके कारण इसकी टीका कर सकते हैं. यदि आप समज़ते है कि ऐसे प्रतिभाव देने वाले असहिष्णु है तो,  संविधानके अनुसार आप दोनों एक दुसरेके उपर कार्यवाही करनेके लिये मूक्त है.

क्या टूकडे टूकडे गेंग वालोंने और उनके समर्थकोंने इस असहिष्णुता पर केस दर्ज़ किया?  नारोंके विरोधीयोंके विरुद्ध नारे लगानेवालों  पर भी आप केस दर्ज करो न.

जिनको उपरोक्त  गेंगके नारे, देशद्रोही लगे वे तो न्यायालयमें गये. गेंगवाले भी अपनेसे विरुद्ध अभिप्राय रखनेवालोंके विरुद्ध न्यायालयमें जा सकते है. न्यायालयने तो, देशविरोधी नारे लगानेवाली गेंगके नेताओं पर प्रारंभिक फटकार लगाई.

जब देशके टूकडे टूकडे करनेके नारे वालोंको विपक्षोंका और समाचार माध्यमोंका खूलकर समर्थन मिला तो ऐसे नारे वाली घटनाएं अनेक जगह बनीं.

फिर भी एक चर्चा चल पडी कि अपने अभिप्रायसे भीन्न अधिकार रखनेवालोंको देश द्रोही समज़ना चाहिये या नहीं. बस हमारे आडवाणीने और मोदी विरोधियोंने यही शब्द पकड लिये. जनताको परोक्ष तरिकेसे गलत संदेश मिला.   

सेनाने सर्जीकल स्ट्राईक किया, सेनाने एर स्ट्राईक किया और उन्होंने ही उसकी घोषणा की. पाकिस्तानने तो अपनी आदतके अनुसार नकार दिया. कुछ विदेशी अखबारोंने अपने व्यापारिक हितोंकी रक्षाके लिये इनको अपने तरिकोंसे नकारा. लेकिन हमारी कोंगी-गेंगोंने भी नकारा.

यह क्या देशके हितमें है?

क्या इससे जो अबुध जनताके मानसको यानी कि देशको, जो नुकशान होता है उसकी आपूर्ति हो सकती है?

इसके पहेले विमुद्रीकरण वाले कदमके विरुद्ध भी यही लोग लगातार टीका करते रहे. “ फर्जी करन्सी नोटें राष्ट्रीयकृत बेंकोंके ए.टी.एम.मेंसे निकले, इस हद तक फर्जी करन्सी नोटोंकी व्यापकता हो” ऐसी स्थितिमें फर्जी करन्सी नोटोंको रोकनेका एक ही तरिका था और वह तरिका, विमुद्रीकरण ही था. और इसके पूर्व मोदीने पर्याप्त कदम भी उठाये थे. विमुद्रीकरण पर गरीबोंके नाम पर काले धनवालोंने अभूत पूर्व शोर मचाया था. लेकिन कोई माईका लाल, ऐसा मूर्धन्य, महानुभाव, प्रकान्ड अर्थशास्त्री निकला नहीं जो विकल्प बता सकें. विमुद्रीकरणकी टीका करनेवाले  सबके सब बडे नामके अंतर्गत छोटे व्यक्ति निकले.

 “चौकीदार चोर है” राहुल के सामने बीजेपीका “मैं भी चौकीदार हूँ”

यह भी समाचार पत्रोमें चला. मूर्धन्य कटारिया (कोलमीस्ट्स) लोग “चौकीदार” शब्दार्थकी, व्युत्पत्तिकी, समानार्थी शब्दोंकी, उन शब्दोंके अर्थकी,   चर्चा करनेमें अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन करने लगे. प्रीतीश नंदी उसमें एक है. यह एक मीथ्या चर्चा है हम उसका विवरण नहीं करेंगे.

राहुलका अमेठीसे केरलके वायनाड जाना.

समाचार माध्यम इस मुद्देको भी उछाल रहे है. इसकी तुलना कोंगी-गेंगोंके सहायक लोग, २०१४में मोदीने दो बेठकोंके उपर चूनाव लडा था, उसके साथ कर रहे है.

वास्तवमें इसमें तो राहुल घांडी, अपने कोमवादी मानसको ही प्रदर्शित कर रहे है. जिस बैठक पर राहुल और उसके पूर्वज लगातार चूनाव लडते आये हैं और जितते आये हैं, उस बैठक पर भरोसा न होना या न रखना, और चूंकि, वायनाडमें  मुस्लिम और ख्रीस्ती समुदाय बहुमतमें है और चूं कि आपने (कोंगी वंशवादी फरजंदोंने) उनको आपका मतबेंक बनाया है, इसलिये आप (राहुल घांडी)ने वायनाड चूना, उसका मतलब क्या हो सकता है? कोंगी लोगोंको और उनको अनुमोदन करनेवालोंको या तो उनकी अघटित तुलना करनेवालोंको कमसे कम सत्यका आदर करना चाहिये. कोमवादीयोंको सहयोग देना नहीं चाहिये.

सत्य और श्रेय का आदर ही जनतंत्रकी परिभाषा है.

मोदीकी कार्यशैली पारदर्शी है. मोदीने अपने पदका गैरकानूनी लाभ नहीं लिया, मोदीने अपने संबंधीयोंको भी लाभ लेने नहीं दिया है, मोदीका मंत्री मंडल साफ सुथरा है, मोदीने संपत्तिसे जूडे नियमोंमें पर्याप्त सुधार किया है, मोदीने अक्षम लोगोंकी पर्याप्त सहायता की है, मोदीने अक्षम लोगोंको सक्षम बनानेके लिये पर्याप्त कदम उठाये है, मोदीने विकासके लिये अधिकतर काम किया है.

इसके कारण मोदीके सामने कोई टीक सकता, और कोई उसके काबिल नहीं है, तो भी कुछ मूर्धन्य लोग मोदी/बीजेपीके विरुद्ध क्यों पडे है?

मोदीने पत्रकारोंकी सुविधाएं खतम कर दी. कुछ मूर्धन्योंको महत्व देना बंद कर दिया. इससे इन मूर्धन्य कोलमीस्टोंके अहंकार को आघात हुआ है. सत्य यही है. जो सुविधाओंके गुलाम है, उनका असली चहेरा सामने आ गया. ये लोग स्वकेन्द्री थे और अपने व्यवसायको “देशके हितमें कामकरनेवाला दिखाते थे” ये लोग एक मुखौटा पहनके घुमते थे. यह बात अब सामने आ गयी. लेकिन  इन महानुभावोंको इस बातका पता नहीं है !

ये लोग समज़ते है कि वे शब्दोंकी जालमें किसीभी घटनाको और किसी भी मुद्देको, अपने शब्द-वाक्य-चातुर्यसे मोदीके विरुद्ध प्रस्तूत कर सकते है.

समाचार पत्रोंके मालिकोंका “चातूर्य” देखो. चातूर्य शब्द वैसे तो हास्यास्पद है, लेकिन कुछ उदाहरण देख लो.

अमित शाहने गांधीनगरसे चूनावमें प्रत्याषीके रुपमें आवेदन दिया.

इसके उपर दो पन्नेका मसाला दिया. निशान दो व्यक्ति है. एक है अडवाणी. दुसरे है राजनाथ सिंघ. अभी इसके उपर टीप्पणीयोंकी वर्षा  हो रही है. और अधिक होती रहेगी.

अडवाणीको बिना पूछे उनकी संसदीय क्षेत्रके उपर अमित शाहको टीकट दी. “यह अडवाणीका अपमान हुआ.”

हमारे राहुलबाबाने बोला कि “मोदीने जूते मारके अडवाणीको नीचे उतारा. क्या यह हिन्दु धर्म है?”-राहुल.

तो हमारे “डी.बी. (दिव्य भास्कर गुजराती प्रकाशन)भाईने सबसे विशाल अक्षरोमें प्रथम पृष्ठ पर, यह कथन छापा. और फिर स्वयं (डी.बी.भाई) तो तटस्थ है, वह दिखानेके लिये, छोटे अक्षरोंमें  लिखा कि “मोदीको मर्यादा सिखानेके चक्करमें खुद मर्यादा भूले”.

डी.बी. भाईको “मोदीने अडवाणीको जूते मारके नीची उतारा … क्या यह हिन्दु धर्म है? “ कथन अधिक प्रभावशाली बनानेका था. इस लिये इस कथनको अतिविशाल अक्षरोंमें छापा. राहुल तो केवल मर्यादा भूले. राहुलका “अपनी मर्यादा भूलना” महत्वका नहीं है. “जूता मारना” वास्तविक नहीं है. लेकिन राहुलने कहा है, और वैसे भी “जूता मारना” एक रोमांचक प्रक्रिया है न. इस कल्पनाका सहारा वाचकगण लें, तो ठीक रहेगा. यदि डी.बी.भाईने इससे उल्टा किया होता तो?

डी.बी. भाई यदि सबसे विशाल अक्षरोंमें छापते कि “मोदीको मर्यादा की दूहाई देनेवाले राहुल खुद मर्यादा भूले” और जो शाब्दिक असत्य है उसको छापते तो …? तो पूरा प्रकाशन राहुलके विरुद्ध जाता. जो राहुल के विरुद्ध है उसका विवरण अधिक देना पडता. मजेकी बात यही है कि डी.बी.भाई ने राहुलकी मर्यादा लुप्तताका कोई विवरण नहीं दिया. राहुलका “अडवाणीका टीकट और हिन्दु धर्मको जोडना” उसकी मानसिकता प्रकट करता है कि वह हर बातमें धर्मको लाना चाहता है. डी.बी. भाईने इस बातका भी विवरण नहीं किया.   

अडवाणीको टीकट न देना कोई मुद्दा ही नहीं है. जो व्यक्ति ९२ वर्ष होते हुए भी अपनी अनिच्छा प्रकट करने के बदले  मौन धारण करता है. फिर पक्षका एक वरिष्ठ होद्देदार उसके पास जा कर उसकी अनुमति लेता है कि उनको टीकट नहीं चाहिये. फिर भी, बातका बतंगड बनानेकी क्या आवश्यकता?

यही पत्राकार, मूर्धन्य, कोलमीस्ट लोग जब १९६८में इन्दिरा गांधीने कहा “मेरे पिताजीको तो बहूत कुछ करना था लेकिन ये बुढ्ढे लोग मेरे पिताजीको करने नहीं देते थे”. तब इन्ही लोंगोंने उछल उछल कर इन्दिराका समर्थन किया था. किसी भी माईके लालने इन्दिराको एक प्रश्न तक नहीं किया कि, “कौनसे काम आपके पिताजी करना चाहते थे जो इन बुढ्ढे लोगोंने नहीं करने दिया”.

यशवंत राव चवाणने खुल कर कहा था कि हम युवानोंके लिये सबकुछ करेंगे लेकिन बुढोंके लिये कुछ नहीं करेंगे. और इन्ही लोगोंने तालिया बजायी थीं. आज यही लोग बुढ्ढे हो गये या चल बसे, और भी “गरीबी रही”.

जिन समाचार पत्रोंको बातका बतंगड बनाना है और उसमें भी बीजेपीके विरुद्ध तो खासम खास ही, उनको कौन रोक सकता है?

पत्रकारित्व पहेलेसे ही अपना एजन्डा रखते आया है. ये लोग महात्मा गांधीकी बाते करेंगे लेकिन महात्मा गांधीका “सीधा समाचार”देनेके व्यवहारसे दूर ही रहेंगे. महात्मा गांधीकी ऐसी तैसी.

देश दो हिस्सेमें विभाजित हो गया है;

एक तरफ है विकास. जिसका रीपोर्ट कार्ड “ओन-लाईन” पर भी उपलब्ध है,

सबका साथ सबका विकास,

सुशासन, सुविधा और पारदर्शिता,

दुसरी तरफ है

वंशवादी, स्वकेन्द्री, भ्रष्टताके आरोपवाले नेतागण जिनके उपर न्यायालयमें केस चल रहे हैं और वे जमानत पर है, जूठ बोलनेवाले, “वदतः व्याघात्” वाले (अपनके खुदके कथनो पर विरोधाभाषी हो), जातिवाद, कोमवाद, क्षेत्रवाद आदि देशको विभाजित करने वाले पक्ष और उनके समर्थक, “जैसे थे परिस्थिति” को चाहने वाले. ये लोग देशके नुकशानकी आपूर्ति करनेमें बिलकुल असमर्थ है. इनका नारा है “मोदी हटाओ” और देशको सुरक्षा देनेवाले कानूनोंको हटाओ.

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इसमें क्या निहित है इसकी चर्चा कोई समाचार पत्र या टीवी चेनल नहीं करेगा क्यों कि वैसे भी यही लोग स्वस्थ चर्चामें मानते ही नहीं है.

 

स्वयं लूटो और अपनवालोंको भी लूटने  दो. जन तंत्रकी ऐसी तैसी… समाचार माध्यम भी यह सिद्ध करनेमें व्यस्त है कि बीजेपी को स्पष्ट बहुमत मिलनेवाला नहीं है और एक मजबुर सरकार बनने वाली है. यदि वह कोंगी-गेंगवाली सरकार बनती है, तो वेल एन्ड गुड. और यदि वह बीजेपीकी गठजोड वाली सरकार हो तो हमें तो उनकी बुराई करनेका मौका ही मौका है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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कोंगी गेंग की एक और चाल – १

कोंगी गेंग की एक और चाल – १

आप समज़ते होगे कि पुलवमामें एक आतंकी हमला करवानेमें भारतकी कोंगी-गेंग-संगठनने,  [जिसमें विपक्षी संगठनके साथ साथ, टूकडे टूकडॅ गेंग, कश्मिरकी विभाजनवादी गेंग सामिल है उसने, पाकिस्तान, आइ.एस.आइ., पाकिस्तानी सेना …] कुछ बडी गलती कर दी. आप यह भी सोचते होगे कि कोंगी गेंगको लगता होगा कि यह तो पासा उलटा पड गया.

इस घटनामें दो शक्यताएं है. या तो इस गेंग संगठनने विस्तृत आयोजन नहीं किया होगा या तो आतंकी गेंगको आतंकी हमला करना है, इतना ही सिर्फ निर्णय किया होगा. समयके बारेमें सुनिश्चित निर्णय लिया नहीं होगा.

समय को सुनिश्चित करनेमें कोंगी गेंग संगठनकी क्या कठिनाइयां हो सकती है?

कोंगीयोंको पहेलेसे ही मालुम नहीं पडा था कि चूनावकी घोषणा किस तारिखको होने वाली है.

वैसे तो, कोंगीके कई मददगार, सरकारके हर विभागमें डटके बैठे हुए है. यानी कि, प्रशासनमें, न्यायालयमें, चूनाव आयोगमें और सुरक्षा संस्थाओमें. क्यों कि सामान्यतः व्यक्ति सहायकके प्रति कृतज्ञ बना रहेता है. वह कृतघ्न नहीं बनता. कोंगी और उनके बीचमें लेनदेनका संबंध रहेता है. भीन्न भीन्न किस्सेमें कैसी लेन देन होगी, वह संशोधनका विषय है.

तो कोंगी गेंगकी कहाँ चूक हो गई?

ऐसा लगता है कि, नरेन्द्र मोदीके शासन व्यवस्था तंत्रमें, कोंगी अपने पालतु जासुसोंसे पक्की माहिति नहीं निकलवा पाया. या तो कोंगीको गलत माहिति मिली. क्यों कि इमानदार होना भी एक चीज़ है.

मोदी सरकारके पास इन पुट तो थे ही कि, यह कोंगी-गेंग-संगठन कुछ आतंकी हमला तो करवाने वाला है. और चूनावके पहेले कुछ अनहोनी होने वाली है. हो सकता है कश्मिरसे दूर दूर तक जैसे २००८में मुंबई मे ब्लास्ट करवाया था, ऐसा ब्लास्ट फिर एक बार करवा दे, और उससे कौमी-दंगे कमसे कम मुंबईमें/या तो सूचित शहर/शहरोमें तो हो ही जाय. स्थानिक बीजेपी सरकार उसके उपर नियंत्रण तो कर लें, लेकिन इस दरम्यान कोंगी-गेंग-संगठन कई अफवाहें फैला सकता है.

लेकिन हुआ यह कि आतंकवादी गेंगका धैर्य कम पडा या तो भारतके भीतरी भागमें आतंकी हमला करवाना और वह भी बीजेपी शासित राज्य/राज्योंमे  हमला करवाना उसके बसकी बात न रही. कश्मिरमें दो प्रकारके आतंकवादी है. सीमापारके और कोंगी शासन दरम्यान पैदा किये  कश्मिरके भीतरी आतंकवादी और उसके सहायक.

बीजेपीका तो “ओल आउट” अभियान जारी है. धर्मांधताकी और उनको हवा देनेवालोंकी यदि मिसाल चाहिये तो आप कश्मिरके कुछ नेताओंके कथनोंको देख लिजिये. उनको हवा देने वाले कोंगी और उनके सांस्कृतिक कश्मिरी सहयोगीयों के कथनोंको देख लिजिये. कश्मिरीके विभाजवादी और पाकिस्तान परस्त नेताओंके विरुद्ध कुछ नये कदम तो बीजेपीने उठाये है. कश्मिरमें आतंकवाद मरणासन्न किया है. आतंकवादके नाम पर मुस्लिमोंका वोट ईकठ्ठा करना अब कोंगी गेंगके लिये इतना आसान नही है.

अब कोंगी गेंग करेगी क्या?

कोंगी गेंग अपनी लडाई जारी रखेगी. जो पेइड मीडीया (प्रेस्टीट्युट) है उनके लेखकोंके भूगतानमें वृद्धि तो होगी ही. क्यों कि कोंगी-गेंगके सहयोगी इन मूर्धन्योंका काम थोडा और कठिन हो रहा है.

अब इन मूर्धन्योंका लक्ष्य है अर्ध दग्ध जनता और निरक्षर जनताको गुमराह करना.

इन अदाओंपर मीडीयाको आफ्रिन बनना है

निरक्षर जनतामें, जो मोदी शासन दरम्यान लाभान्वित है, वह जनता तो मोदी भक्त हो ही गई है. जो जनताका हिस्सा बच गया है, उनको पैसे, जातिवाद, प्रदेशवाद, भाषा वाद और धर्मके नाम पर बहेकाना है. हो सकता है कि कोंगी गेंग इनको असमंजसमें डालके उनको मतदानसे रोके या तो “नोटा-बटन” दबानेको प्रेरित करें. कोंगी गेंगकी मुराद तो बेलेट पेपर लाना था जिससे बुथ केप्चरींग आसान रहे.

कोंगी गेंग जो नरेन्द्र मोदी/बीजेपी के विरुद्ध हवा (माहोल) बनाना चाहती है, उसमें ये निरक्षर लोग कितने सहयोगी बनेंगे यह बात सुनिश्चित नहीं है.

लेकिन अर्धदग्ध लोगोंको असमंजस अवस्थामें लाना कोंगी गेंगके लिये अधिक आसान है.

वह कैसे?

बेकारीमें वृद्धि, महंगाई और किसानोंकी समस्या, इनके बारेमें जूठ फैलाना कोंगी गेंगके लिये आसान है. वैसे तो हमारे मित्र बंसीभाई पटेल कहेते है कि उनको ₹५००/- प्रतिदिन देने पर भी मज़दुर मिलते नहीं है. नये नये कोंट्राक्टर बने लोग फरियाद करते है कि हम बडी मुश्किलसे डूंगरपुर जाके एडवान्स किराया देके रोजमदार मज़दुर लाते है, वे पैसे लेके भाग जाते है. यह सत्य संबंधित लोगोंके लिये सुविदित है. लेकिन तो भी “बेकारीकी बाते चल जाती. एक समस्या यह भी है कि कुछ बेकार लोग ऐसे भी है जो अपने गाँव/शहरमें ही नौकरी चाहते है. यह समस्या गुजरात महाराष्ट्रमें ज्यादा है. गुजरातमें तो यदि किसी कर्मचारीका  तबादला दुसरे राज्यमें हो जाय तो भी उसको अपनी नानी याद आ जाती है.

बीजेपी के शासन दरम्यान महंगाई का वृद्धिदर कमसे कम है. वेतनवृद्धिका दर अधिक है. खाद्य पदार्थोंमेंसे अधिकतर खाद्य पदार्थ सस्ते हुए है. फिर भी महंगाईके नाम पर, आप जनताको, गुमराह करनेमें थोडे बहूत तो सफल हो ही सकते हो.

किसानोंकी समस्या तो अनिर्वचनीय लगती है. ५५ सालके अंतर्गत यदि किसान स्वयंका उद्धार नहीं कर पाया, तो खराबी उसके दिमागमें है. जो अपनी आदतोंसे टस और मस नहीं होना माँगता, उसको सिर्फ ईश्वर ही बचा सकता है. और ईश्वर भी उनको ही मदद कर सकता है, जो अपनी मदद खूदको करें.

हाँ जी, मोदीकी बुराई करनेमें आपको अरुण शौरी, चेतन भगत, यशवंत सिंहा जैसे भग्नहृदयी और  शशि थरुर (जिसके विरुद्ध एक क्रिमीनल केस चलता है), वैसे तो मिल ही जायेंगे. उनमें कुछ भग्न हृदयी स्थानिक लेखक गण भी तो होगे जो स्वयंको तटस्थ माननेका घमंड रखते है.

कोंगी गेंगके लिये सबसे बडे शस्त्र कौनसे है?

कोंगीवंशका एक और नया, मादा फरजंदको, चूनाव मैदानमें लाया गया है.

“मादा” (फीमेल)शब्दका क्यूँ उपयोग किया है?

उस मादाकी सामाजिक उपलब्धीयां शून्य होनेके कारण  उसका विवरण करना असंभव है. यदि कोई मीडीया मूर्धन्य उसका विवरण करें, तो उसको जूठ ही बोलना पडेगा. आप कहोगे कि कोंगी गेंगके पालतु मीडीयाके लिये तो जूठ बोलना एक शस्त्र के समान है तो फिर एक और परिमाणमें जूठ बोलनेमें क्या आपत्ति है? अरे भाई ये मीडीया वाले समज़ते है कि जूठ तो बोलो ही, लेकिन जूठका चयन ऐसा करो कि उस जूठको अति दीर्घ काल  तक विवादास्पद रख सको. ऐसा होने से आम जनता उस जूठको सत्य मान लेगी या तो असमंजसमे पड जायेगी.

जैसे कि;

बाजपाईने इन्दिरा घांडीको “दुर्गा” कहा था,

 बाजपाईने मोदीको “राजधर्म” निभानेकी बात कही थी,

मोदी ने हर देशवासीकी जेबमें १५लाख रुपये देनेकी बात कही थी,

कथित शब्दोंके भावार्थका स्पष्टीकरण, या इन्कारके बाद भी आप यह जूठ चला सकते है.

हमारा मूल विषय था कि, उस एक और मादा पात्रका, चूनावकी सियासतमें प्रवेश करवाना और उसके गुणगान के लिये, सातत्यसे रागदरबारी छेडना. सिर्फ इसलिये कि, उस मादा की योग्यता यह है कि, वह मादा  नहेरुवंशकी फरजंद है.

नहेरुवंशके फरजंदोंको “कालका बंधन नहीं है”, “ज्ञानका बंधन नहीं है” “तर्कका बंधन नहीं है” “सत्यका बंधन नहीं है”, “नीतिमत्ता”का बंधन नहीं है क्यों कि जबसे इन्दिरा गांधीने नहेरुवीयन कोंग्रेस ओफ ईन्डिया”को इन्दिरा नहेरुवीयन कोंग्रेस (आई.एन.सी) बनाके, कोंगीके लक्ष्मी-भंडारकी चाभी (Key) अपने हस्तक कर दी थी. इन्दिराने देशको बिना किसी भयसे, लूटनेकी आदत बना दी थी, तबसे कोंगीके लक्षी-भंडारके पास, कुबेर भी मूँह छीपा लेता है.

और आप तो जानते है कि

यस्यास्ति वित्तं, स नर कुलिनः स श्रुतवानः स च गुणज्ञः ।

स एव वक्ता स च दर्शनीय, सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते॥

(जिसके पास धन है, वह कुलवान है, वह ज्ञानी है, और वह ही गुणोंको जाननेवाला है, वही अच्छा भाषण देनेवाला है, और वही दर्शन करनेके योग्य है, क्यों कि सभी गुण, धनके गुलाम है.)

 इन्दिरा गांधीने और उसके फरजंदोने देशको अधिकतम लूट लिया है, उनके पास अपार संपत्ति है.  इस लिये सभी गुण ही नहीं, किन्तु धनकी लालसा वाले सभी  नेतागण, कोंगीके बंधवा-दास है. समाचार माध्यमोंमे भी धन लालसा वाले या तो भग्न हृदयी मूर्धन्योंकी कमी नहीं.

अब इस नहेरुवंशी मादाकी भाटाई तो करनी ही पडेगी न?

इस मादाकी पार्श्वभूमिमें यदि कोई कारकीर्दि (रेप्युटेशन) न हो तो क्या हूआ ? उसके हर कथन को हम अतिशोभनीय बना सकते है ही न ? हम क्या कम चमत्कार करनेवाले है?

तो अब, हम समाचार माध्यम वाले, असली और नकली चर्चा चलायेंगे. क्यों कि;

दूसरा शस्त्र है चूनावी चर्चाएं,

चूनावी चर्चामें हमारे लिये निम्न लिखित विषय अछूत है,

(१) गुजरातके डाकू भूपतको पाकिस्तान भागा देना. उसके प्रत्यापर्णकी बात तक नहेरुने नहीं की, तो कार्यवाही तो बात ही भीन्न है.

(२) युद्धमें हारी हुई ७१००० चोरस मील भारतीय भूमिको, वापस लेनेकी हम नहेरुवीयनोंने संसदके समक्ष प्रतिज्ञा ली थी,

(३) हमारी आराध्या इन्दिराने एक करोड बांग्लादेशी बिहारी मुस्लिमसे जाने जानेवाली घुसपैठीयोंको वापस भेजनेकी प्रतिज्ञा ली थी,

(४) हमारी आराध्या इन्सिराने आपात्काल लागु किया था और जनतंत्रकी धज्जीयाँ उडाई थीं.,

(५) हमने भोपाल गेस कांडके आरोपी एन्डरसनको, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रीकी नीगरानीमें, बेधडक, और खूल्ले आम, देशसे भागजानेकी सुविधा प्राप्त करवाई थी. और उसको वापस लानेमें गुन्हाइत बेदरकारी दिखायी थी,

(६)  ओट्टावीयो क्वाट्रोची को ठीक उसी प्रकार देशसे भगाया था, ताकि उसपर न्यायिक कार्यवाही न हो सके. उसको वापस लाने की कुछ भी कार्यवाही हम वंशवादी कोंगीयोंने नहीं की थी,

(७) कोंगीके सहयोगी पीडीपीके शासनमें,  मंत्रीकी पूत्रीका आतंकवादीयोंने अपहरण (हरण) किया (करवाया) और उसके बदलेमें सात खूंखार आतंकवादीयोंको हम कोंगीयों और हमारे सहयोगीने मूक्त किया था. इसके उपर कोई चर्चा नहीं, कि यह घटना किसकी विफलता थी? या तो यह एक सोची समज़ी चाल थी? आज कोंगी, फारुख, ओमर, महेबुबा मुफ्ति आतंकवादीयों की भाषा बोलते है.

(८) कश्मिरमें खूल्ले आम कश्मिरी हिन्दुओंको धमकी दी कि इस्लाम कबुल करो या मरनेके लिये तयार रहो. फिर ३०००+ हिन्दुओंको कतल किया, १००००+ महिलाओंको रेप किया, ५०००००+ हिन्दुओंको निराश्रित किया. न कोई जाँच बैठी, न कोई एफ.आई.आर. दर्ज हुई, न किसीकी गिरफ्तारी हुई, न न्यायिक कार्यवाही हुई, न कोई समाचार प्रसिद्ध होने दिया, न कोई चर्चा होने दिया, और हम कोंगीयोंने  और हम कोंगीयोंके सहयोगी शासकोंने मौजसे दशकों तक शासन किया.

(९) दाउद को भगाया. हम कोंगीके पास दाउदका कोई भी डेटा उपलब्ध ही नहीं था. क्यों कि हम ऐसा रखनेमें मानते ही नहीं है. हमने कभी भी उसको वापस लानेकी कोई कार्यवाही नहीं की.

(१०) न्यायिक प्रणाली  कोंगीयोंने बनाई, दशकों तक क्षतियों पर ध्यान नहीं दिया, बेंकोने हजारो गफले किये. निषिद्ध फोन बेंकींग द्वारा माल्या, निरव मोदी, चौकसी जैसे फ्रॉड को हमने जन्म दिया.

मोदीने ५ वर्षमें ही प्रणालीयां बदली, कौभान्डोंको पकडा और जो कोंगी स्थापित प्रणालीयोंके कारण देश छोड कर भाग गये थे उनको वापस लानेकी तूरंत कार्यवाही की जो आज रंग ला रही है.

कोंगी लोग और उनका पीला पत्रकारित्व  ये सब चर्चा नहीं करेगा.     

चूनावी चर्चाएं हम वैसी करेंगे जिनमें हम फर्जी और विवादास्पद आधारोंपर मत विश्लेषण कर सकते है. जाति, धर्म आदि विभाजनवादी आधारों पर अपनी मान्यताओंको सत्य मान कर बीजेपीके विरुद्धमें जन मत जा रहा है ऐसी भविष्य वाणी कर सकते है. ऐसा तारतम्य पैदा करके कोंगी गेंगके अनुकुल, निचोड निकालना है. इसी कार्यमें अपना वाक्‌पटूता का प्रदर्शन करते रहेना. यह भी एक उपशस्त्र है.  

कोंगीवंशका नया आगंतुक, मादा फरजंदको, प्रसिद्धि देनेमें सभी मीडीया कर्मीयोंमे तो स्पर्धा चल रही है.

इस मादा फरजंदकी सामान्य उक्ति को भी बडे अक्षरोंमे प्रसिद्धि देने लगे है.

मिसाल के तौर पर,

“५५ साल कोंगीने कुछ नहीं किया ऐसी बातोंसे मोदीको बाज़ आना चाहिये. हरेक मुद्देकी एक एक्सपायरी डेट होती है.”

मीडीया बोला; “वाह क्या तीर छोडा है इस नेत्रीने …. इसकी तो हम समाचार प्रसिद्धिमें बडी शिर्ष रेखा बना सकते है.

अरे भाई जिसका असर, यदि देश भूगत रहा हो, उसकी एक्स्पायरी डेट यानी उसकी मृत्युतीथि तो तब ही आयेगी जब आपके चरित्रमें परिवर्तन आयेगा या तो वह असरकी मृत्यु होगी. आप ५५ साल तक गरीबी हटाओ बोलते रहे लेकिन कोई प्रभावी कदम नहीं उठा पाये, और मोदीने प्रभावी कदम उठाये और साथ साथ समय बद्धताकी सीमा भी सुनिश्चित की, तो आपके पेटमें उबलता हुआ तैल क्यों पडता है?

नहेरु की, चीनके साथ हिमालय जैसी बडी गलतीयां, इन्दिरा गांधीकी उतनी ही बडी गलतीयां, जिनमें सिमला समज़ौता, सेनाकी जीती हूई काश्मिरकी भूमि भी पाकिस्तानको परत करना, आतंकवादको बढावा देना, हिन्दुस्तानके भाषावाद, क्षेत्रवाद, धर्म के नाम पर सियासती विभाजनवादको प्रचूरमात्रामें बढावा देना … आदि बातें बीजेपी ही नहीं,  देश भी भूल नहीं पायेगा.

मीडीया मूर्धन्य पगला गये है …

मिसाल के तौर पर आजके डीबी (दिव्यभास्कर)भाईने एक फर्जी (कल्पित) चर्चा प्रकट की है. ऐसे समाचार माध्यमोंके लिये “तुलनात्म” चर्चा बाध्य है क्यों कि ऐसा करना उनके एजन्डामें आता नहीं है.

अब तक यह डीबीभाई अन्य मीडीया-भाईकी तरह ही “रा.घा. (राहुल घांडी)को, नरेन्द्र मोदीके समकक्ष मानते है. वैसे तो कोई भी मापदंडसे इन दोनोंकी तुलना शक्य है ही नहीं. लेकिन डीबीभाई बोले अरे भाई हम कहाँ महात्मा गांधी सूचित “समाचार माध्यमके चारित्र्यको (आचार संहिताको) मानते है? हमारा एजन्डा तो सिर्फ बीजेपी के विरुद्ध माहोल पैदा करना है. हम तो है कवि. हमें कवियोंकी तरह कोई सीमा, चाहे वह नीतिमत्ताकी ही क्यों न हो, बाध्य नहीं है.

डी.बी.भाई अब इस नहेरुवंशी मादा फरजंदको भी मोदी समकक्ष मानने लगे है. और इस मादाको भी फुल कवरेज दे रहे है.

एक कल्पित चर्चाके कुछ अंश देखो

वैसे तो बीजेपीने कई बार स्पष्ट किया है कि “राम मंदिर” न्यायालय के फैसलेके आधिन है, तब भी इसको इस मादाके मूँहसे बीजेपीको “पंच” मारा गया, कि आपको चूनाव के समय ही राम मंदिरकी याद क्यों आती है? चूनावके समय ही गंगाकी याद  क्यों  आती है?

वैसे तो मोदी इससे भी बडा पंच मार सकता है. लेकिन भाई, इस मादाकी रक्षा करना हमारा एजन्डा है.

इस मादा कहेती है, “मोदी तुमने इस देशकी सभी संस्थाओंको, चाहे वे आर.बी.आई. हो या सीबीआई हो, नष्ट कर दीया है.”

वैसे तो मोदी उत्तर दे सकता है कि “तुम सर्व प्रथम जनतंत्रमें संस्थाकी परिभाषा क्या होती है वह समज़ो. वाणी विलास मत करो.  न्यायालय, चूनाव आयोग, सुरक्षा दलें, शासन व्यवस्था, आर.बी.आई., सीबीआई ये सभी संस्थाएं बंद नहीं की गई है. जनतंत्रकी सभी संस्थाएं संविधानीय प्रावधानोंके अंतर्गत चल रही है. लेकिन जब आपका शासन था तब कमसे आपात्कालको याद करो. शाह पंचने क्या कहा था? अरे आपके गत शासनके कार्यकालमें ही न्यायालयने आपको आदेश दिया था कि कालाधन वापस लानेके लिये विशेष जांच समिति बनाओ लेकिन आपने वर्षों तक बनाया नहीं( यहां तक कि आपकी पराजय भी हो गयी),  जैसे आपको न्यायालयका आदेश बाध्य ही नहीं है. न्यायालयका खूदका कथन था कि आपने सीबीआईको पोपट बना दिया है.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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