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दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?

दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?

पप्पु पप्पु और पप्पु

पप्पुयुगका पिता वैसे तो मोतीलाल नहेरु है, लेकिन उनको तो शायद मालुम ही नहीं होगा कि वे एक नये पप्पु-युगकी नींव रख रहे है.

पहेला पप्प कौन?

आदि पप्पु यानी कि रा.गा. (राहुल गांधी) ही है किन्तु पप्पु युगका निर्माण तो नहेरुने ही किया. नहेरु ही प्रथम पप्पु है. यानी कि पप्पु-वंश तो नहेरुसे ही प्रारंभ हुआ.

क्या नहेरु पप्पु थे?

सोच लो. यदि आपने किसीको अमुक काम करनेसे मना किया. और इतिहासका हवाला भी दिया. भयस्थान भी बताये. फिर भी यदि आप वो काम करते हो तो लोग आपको पप्पु नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.

(१) जी हाँ, नहेरुने ऐसा ही किया था. सप्टेंबर १९४९में तिबट पर चीन ने आक्रमण किया, तो नहेरुने सरदार पटेलके पटेलके संकेत और चेतावनी को नकारा और कहा कि चीनने उसको आश्वासन दिया है कि वह तिबटके साथ शांतिसे नीपटेगा. यह तो कहेता बी दिवाना और सूनता भी दिवाना जैसी बात थी.  और १९५१ आते आते चीनने तिबट पर कबजा कर दिया. इस अनादर पर भी नहेरुने दुर्लक्ष्य दिया. और चीनसे घनिष्ठ मैत्री संबंध (पंचशील) का  अनुबंध किया.

(२) तिबटको अब छोडो. पंचशीलके बाद भी चीनकी सेनाका अतिक्रमण प्रारंभ हो गया और जब वह बार बार होने लगा तो संसदमें प्रश्न भी उठे. नहेरुने संसदमें जूठ बोला. आचार्य क्रिपलानीने इसके उपर ठीक ठीक लिखा है.

(३) चीनकी घुस खोरीको अब छोडो. १९४७में नहेरुको गांधीजीने बताया कि शेख अब्दुल्ला पर सरदार पटेल विश्वास करते नहीं है. और लियाकत अली कश्मिरके राजाको स्वतंत्र रहेनेको समज़ा रहे है. काश्मिर न तो पाकिस्तानमें जा सकता है, न तो वह स्वतंत्र रह सकता है. काश्मिरको तो भारतके साथ ही रहेना चाहिये. लेकिन नहेरुने महात्मा गांधीकी बात न मानी और शेख अब्दुल्ला पर विश्वास किया.

(४) नहेरु इतने आपखुद थे कि राजाओंकी तरह उनके उपर कोई नियम या सिद्धांत चलता नहीं था. एक तरफ वे लोकशाहीका गुणगान करते थे और दुसरी तरफ उन्होंने शेख अब्दुलाको खुश करनेके लिये बिनलोकशाहीवादी अनुच्छेद ३७०/३५ए अ-जनतांत्रिक तरीकेसे संविधानमें सामेल किया. अस्थायी होते हुए भी जब तक वे जिन्दा रहे तब तक उसको छेडा नहीं, और १९४४से कश्मिरमें स्थायी हुए हिन्दुओंको ज्ञातिके आधार पर और मुस्लिम स्त्रीयोंको लिंगको आधार बनाके मानवीय और जनतांत्रिक अधिकारोंसे वंचित रक्खा.

इसको आप पप्पु नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

क्या इन्दिरा गांधी पप्पु थी?

१९७१की इन्डो-पाक युद्धमें भारतकी विजयका श्रेय इन्दिराको दिया जाता है. यह एक लंबी चर्चाका विषय है. किन्तु जरा ये परिस्थिति पर सोचो कि पाकिस्तान किस परिस्थितिमें युद्ध कर रहा था और बंग्लादेशकी मुक्ति-वाहिनी (जिसको भारतकी सहाय थी) किस परिस्थितिमें युद्ध कर रही थीं. भारतीय सेनाको यह युद्ध जीतना ही था उसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था. और सेनाने तो अपना धर्म श्रेष्ठता पूर्वक निभाया.

किन्तु इन्दिरा यदि पप्पु नहीं थी तो उसने अपना धर्म निभाया? नहीं जी. जरा भी नहीं. जो परिस्थिति उस समय पाकिस्तानकी थी और जो परिस्थिति भारतकी थी, यदि इन्दिरामें थोडी भी अक्ल होती तो वह कमसे कम पाकिस्तान अधिकृत कश्मिर तो वह ले ही सकती थी. यदि ऐसा किया होता तो भारतने जो अन्य जीती हुई पाकिस्तानकी भूमि, और पाकिस्तानी युद्धकैदीयोंको परत किया उसको क्षम्य मान सकते थे. पाकिस्तानके उपर पेनल्टी नहीं लगायी, खर्चा वसुल नहीं किया उसको भी लोग भूल जाते.

बंग्लादेशमें ३० लाख हिन्दुओंकी कत्ल किसने छूपाया?

बंग्लादेशके अंदर पाकिस्तानकी सेनाने  ४०लाख लोगोंकी हत्या की थी इनमें ३० लाख हिन्दु थे १० लाख मुस्लिम थे. इन्दिरा गांधी जब भूट्टोके साथ सिमलामें बैठी थी तब क्या उसको इस तथ्य ज्ञात नहीं था? वास्तवमें उसको सबकुछ मालुम था. तो भी उसने न तो बंग्लादेशके साथ कोई भारतके श्रेय में कोई अनुबंध (एग्रीमेन्ट) किया न तो पाकिस्तानके साथ कोई भारतीय हितमें कोई अनुबंध किया. इतना ही नहीं, एक करोड निर्वाश्रित जो भारतमें आ गये थे उनको वापस भेजनेके बारेमें प्रावधानवाला कोई भी अनुबंध किसीके साथ नहीं किया.

उस समय आतंकवाद भारतमें तो नहीं था. भारतके बाहर तो था ही. प्रधानमंत्री होनेके नाते और “भारतीय गुप्तचर सेवा” के आधार पर भारतके बाहर तो अति उग्रतावाली आतंकी गतिविधियां  अस्तित्वमें थीं ही. वे प्रवृत्तियां कहाँ कहाँ अपना विस्तार बढा सकती है वह भी प्रधानमंत्रीको अपने बुद्धिमान परामर्शदाताओंसे (एड्वाईज़रोंसे)   मिलती ही रहेती है. यह तो आम बात है. किन्तु इन्दिराने भारतके हितकी उपेक्षा करके भूट्टो की यह बात मान ली “यदि मैं पाकिस्तान अधिकृत काश्मिरकी समस्या आपके साथ हल कर दूं और तत्‌ पश्चात्‍ मेरी यदि हत्या हो जाय तो उस डील का क्या मतलब.” फिर इन्दिराने “इस मसलेको आपसमें वार्ता द्वारा ही हल करना” ऐसा अनुबंध मान लिया. इसका भी क्या लाभ हुआ. पाकिस्तानने आतंकीओ द्वारा और कई समस्याएं उत्पन्न की. सिमला अनुबंधन तो पप्पु ही मान्य कर सकता है.  

 राजिव गांधी ने पीएम पदका स्विकार करके, श्री लंकाके आंतरिक हस्तक्षेप करके और शाहबानो न्यायिक निर्णयको निरस्त्र किया यह बात ही उसका पप्पुत्त्व सिद्ध किया.

सोनिया, राहुल और प्रियंका का पप्पुत्त्व सिद्ध करनेकी आवश्यकता नहीं.

यह पप्पुत्त्वकी महामारी ममता, मुलायम, लालु, शरद पवार … आदि कोंगीके सहयोगी पक्षोमें ही नहीं लेकिन बीजेपीके सहयोगी शिवसेनामें भी फैली है.

शिवसेनाका पप्पुत्व तो शिवसेना अपने सहयोगी बीजेपी के विरुद्ध निवेदन करके सिद्ध करता ही रहेता है.

उद्धव ठाकरेका क्या योगदान है? भारतके हितमें उसमें क्या किया है? यह उद्धव ठाकरे अपने फरजंद आदित्यको आगे करता है. आदित्यका क्या योगदान है? उसका अनुभव क्या है? क्या किसीने कहा भी है कि वह आदित्य के कारण चूनाव जीता है? शिवसेना स्वयं अपने कुकर्मोंके कारण मरणासन्न है किन्तु वह भी कोंगीकी तरह पगला गया है. चूनावमें शिवसेनाकी सफलता  अधिकतम ४५ प्रतिशत है. जब की बीजेपीकी सफलता ६५ प्रतिशत है.

“५०:५०” का रहस्य क्या है?

५० % मंत्री पद बीजेपीके पास और ५०% मंत्री पद शिवसेनाके पास रहेगा यदि दोनोंको समान बैठक मिली. किन्तु शिवसेनाको तो बीजेपीसे आधी से भी कम बैठकें मिली. और फिर भी उसको चाहिये मुख्य मंत्रीपद. यह तो “कहेता भी दिवाना और सूनता भी दिवाना” जैसी बात हुई. गठ बंधनको जो घाटा हुआ उसमें शिवसेना जीम्मेवार है. उसका हक्क तो १/३ मंत्री पद पर भी नहीं बनता है.

शिवसेना के विरुद्ध क्या क्या मुद्दे जाते है.

शिवसेनाका साफल्य केवल ४० प्रतिशत है. मतलब वह तृतीय कक्षामें पास हुआ है.

बीजेपीका साफल्य ६५% है. मतलब विशिष्ठ योग्यताके समकक्ष है.

बीजेपी उसको ५० प्रतिशत मंत्रीपद देनेको तयार है. लेकिन शिवसेना को तो इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री पद भी चाहिये.

मतलब की तृतीय कक्षामें पास होनेवाला आचार्य बनना चाहता है.

इतना ही नहीं किन्तु शिवसेना अपने पक्षके वंशवादी प्रमुखकी संतान को आचार्य बनाना चाह्ता है.

पप्पुके आगे पप्पु, पप्पुके पीछे पप्पु बोले कितने   पप्पु?

पप्पुको डीरेक्ट हिरो बना दो

क्या किया जाय?

शिवसेना के आदित्य को मुख्य मंत्री के बनानेके लिये = शिवसेना+कोंगी+एनसीपी

शिवसैनी पप्पुको पप्पुकी कोंगीका और शरदकी कोंगीका सहयोग लेके मुख्य मंत्री और सरकार बनाने दो. शिवसैनी पप्पुको भी पता चल जायेगा कितनी बार वीस मिलानेसे एक सौ बनता है (गुजरातीमें मूँहावरा है “केटला वीसे सो थाय” तेनी खबर पडशे.)

शिरीष मोहनलाल दवे

https://www.treenetram.wordpress.com

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

“जातिवाद आधारित राज्य रचना” की मांग रक्खो

जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये, प्रवर्तमान समय एक अतिसुनहरा मौका है. सिर्फ नहेरुवीय कोंग्रेस ही नहीं लेकिन उसके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये भी यह एक सुनहरा मौका है. इस मुद्देका लाभ उठा के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता भी प्राप्त कर सकती है.

आप पूछोगे कि ऐसा कौनसा मुद्दा है जिस मुद्देको उछाल के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है?

अब आप एक बात याद रख लो कि जब भी हम “नहेरुवीयन कोंग्रेस” शब्दका प्रयोग करते है आपको इसका निहित अर्थ “नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष और उसके सांस्कृतिक साथी” ऐसा समज़ना है. क्यों कि समान ध्येय, विचार और आचार ही तो पक्षकी पहेचान है.

तो अब हम बात आगे चलावें

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरु वंशको आगे बढाना है, नहेरुवीयन वंशज के लिये सत्ता प्राप्त करना है ताकि वे सत्ताकी मौज लेते रहे और अन्य लोग स्वंयंके परिवार और पीढीयोंकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और सुख के लिये पैसा कमा सके.

तो अब क्या किया जाय?

देखो, अविभक्त भारतमें हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंकी समस्या थी. तो नहेरुने हिन्दु राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रके फेडर युनीयनको नकार दिया और पाकिस्तान और भारत बनाया. लेकिन कुछ समय बाद मतोंकी भाषा राष्ट्रभाषा और राज्य भाषाकी समस्याओंका महत्व सामने आया. तो हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने)  भाषाके आधार पर राज्योंकी रचना की.

अब इसमें क्या हूआ कि हिन्दु-मुस्लिम झगडोंकी समस्या तो वहींकी वहीं रही लेकिन इस समस्या पर आधारित अन्य समस्याएं भी पैदा हूई. उसके साथ साथ भाषा के आधार पर और समस्याएं पैदा होने लगी. भूमि-पुत्र और जातिवाद आधारित समस्याएं भी पैदा होने लगी.

आप कहेंगे कि क्या इन समस्याओंका समाधान करने की नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोशिस नहीं की?

अरे वाह !! आप क्या बात कर रहे हो? नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो अपने तरीकेसे समस्याका हल करनेका पूरी मात्रामें प्रयत्न किया.

नहेरुवीयन तरीका क्या होता है?

कोई भी समस्या सामने आये तो उसको अनदेखा करो. समस्या कालचक्रमें अपने आप समाप्त हो जायेगी…

अरे वाह !! यह कैसे?

देखो हिन्दु-मुस्लिम समस्याको हल ही नहीं क्या. इसके बदले नहेरुने जीन्नाके साथ झगडा कर दिया. फिर हिन्दुस्तान पाकिस्तान हो गया. और हिन्दु-मुस्लिम झगडा तो कायम रहा.

समस्याका समाधान

तिबट अपनी आझादी बचाने के लिये संघर्ष कर रहा था. हमारी समस्या थी कि तिबटकी सुरक्षा कैसे करें !! तो नहेरुने चीनके साथे दोस्ती करके तिबट पर चीनका प्रभूत्व मान लिया. लेकिन एक और समस्या पैदा हुई कि चीन हमारे देशकी सीमाके पास आ गया और उसने घुसखोरी चालु की. तो नहेरुने पंचशील का करार किया. तो कालक्रममें चीनने भारत पर आक्रमण कर दिया. जरुरतसे ज्या भूमि पर कब्जा कर दिया. तो हमारा पूराना सीमा विवाद तो रहा नहीं. वह तो हल हो गया. नया सीमा विवादका तो देखा जायेगा. तिबटकी समस्या हमारी समस्या रही ही नहीं.

पाकिस्तान हमारा सहोदर है. पाकिस्तानमें आंतरविग्रह हुआ तो पूर्वपाकिस्तानसे घुस खोर लाखोंकी संख्यामें आने लगे. तो हमारे लिये एक समस्या बन गई. इन्दिरा गांधीने यह समस्या प्रलंबित की. तो पाकिस्तानने भारतकी हवाई पट्टीयों पर आक्रमण कर दिया. हमारी सेनाने पाकिस्तानको परास्त किया तो भारतको घुसखोरोंके साथ साथ ९००००+ युद्ध कैदीयोंको खाने पीनेका इंतजाम करना पडा. सिमला करार किया और युद्ध कैदी पश्चिम पाकिस्तानको ही परत कर दिया. तो कालचक्रमें आतंकवाद पैदा हो गया. तो हिन्दु लोग विस्थापित हो गये. उनका पूनर्वसनकी समस्या पैदा गई. होने दो. ऐसी समस्याएं तो आती ही रहती है. विस्थापित हिन्दुओंकी समस्याको नजर अंदाज कर दो. हिन्दु लोग अपने आप निर्वासित कैंपसे कहीं और जगह अपना मार्ग ढूंढ लेगे. नहेरुवीयनोने कुछ किया नहीं. आतंकी मुस्लिम लोग भारतमें घुसखोरी करने लगे और बोंब ब्लास्ट करने लगे. आतंकी मुस्लिम अपना अपना गुट बनाने लगे. स्थानिक मुस्लिमोंका सहारा लेने लगे. उनको गुट बनाने दो हमारा क्या जाता है. एक समस्या को हल नहीं करनेसे कालांतरमें अनेक और समस्याएं पैदा होती है. और मूल समस्याका स्वरुप बदल जाता है. तो उसको नहेरुवीयन लोग समाधान मान लेते है और मनवा लेते है.

जातिवादी समस्या भी ऐसी ही थी. अछूतोंके लिये आरक्षण रक्खा. अछूतोंका उद्धार नहीं किया लेकिन उनके कुछ नेताओंका उद्धार किया. और आरक्षण कायम कर दिया. तो और जातियां कहेने लगी हमें भी आरक्षण दो. नहेरुवीयनोंने एक पंच बैठा दिया और जिनको भी आरक्षण चाहीये वे अपनी जातिका नाम वहां दर्ज करावें. अब आरक्षणका व्याप बढने लगा. जिसने भारत पर दो शतक राज्य किया वे मुस्लिम लोग कहेने लगे हम भी गरीब है हमें भी आरक्षण दो. तो नहेरुवीयनोंने कहा कि तुम्हे अकेलेको आरक्षण देंगे तो हम तुम्हारा तुष्टी करण करते है ऐसा लोग कहेंगे. इस लिये उन्होने “लघुमति”के लिये विशेष प्रावधान किये. रामके वंशज रघुवंशी कहेने लगे हमे भी आरक्षण दो. क्रुष्णके वंशज यादव कहेने लगे हमें भी आरक्षण दो. अब जब भगवानके वंशज आरक्षण मांगने लगे तो और कौन पीछे रह सकता है?

जटने बोला हमें भी आरक्षण दो. महाराष्ट्रके ठाकुरोंने बोला कि हमें भी आरक्षण दो. अब हुआ ऐसा कि कमबख्त सर्वोच्च अदालतने कहा कि ४९ प्रतिशतसे अधिक आरक्षण नहीं दे सकते. तो अब क्या करें?

आरक्षण, हिन्दु-मुस्लिम और हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याओंका कोई पिता है तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस है. उसको सहाय करने वाले भी अनेक बुद्धिजीवी है उनका एजंडा भी नहेरुवीयनोंकी तरह “जैसे थे”-वादी है. ये लोग वास्तवमें दुःखी जीवनका कारण पूर्वजन्मके पाप मानते है इसलिये समस्याके समाधान पर ज्यादा चिंता करना आवश्यक नहीं है. सब लोग अपनी अपनी किस्मत लेके पैदा होते है. इसलिये समस्याओंका समाधान ईश्वर पर ही छोड दो. ईश्वरके काममें हस्तक्षेप मत करो.

लेकिन हमसे रहा नहीं जाता है. हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका आदर करते है. कटूतासे हम कोसों दूर रहते है. त्याग मूर्ति नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्ता प्राप्त करनेका और वह भी यावतचंद्र दिवाकरौ तक उसीके पास सत्ता रहे ऐसा रास्ता हम दिखाना चाहते है.

यह रास्ता है कि नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसी छूटपूट जातिवादी आधारित आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षणके बदले धर्म और जाति आधारित “राज्य रचना”की मांग पर आंदोलन करें. ऐसा आंदोलन करनेसे उसको सत्ताकी प्राप्ति तो होगी ही, उतना ही नहीं, धर्म आधारित और जाति अधारित राज्य रचनासे हिन्दु-मुस्लिम समस्याएं, हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याएं, मुस्लिम-ख्रिस्ती समस्याएं, भाषा संबंधित समस्याएं जातिवादी समस्याएं, आरक्षण संबंधी समस्याएं, आर्टीकल “३५-ए” संबंधित समस्या, आर्टीकल ३७० संबंधित समस्या, पाकिस्तान हस्तक काश्मिर समस्या, आतंकी समस्या, पत्थरबाज़ोकी समस्या आदि कई सारी समस्याएं नष्ट हो जायेगी.

आप कहोगे ऐसा कैसे हो सकता है?

आप कहोगे भीन्न भीन्न जातिके, भीन्न भीन्न धर्मके लोग तो बिखरे पडे है और राज्य तो भौगोलिक होगा है. धर्म और जाति आधारित राज्य रचना करनेमें ही अनेक समस्याएं पैदा होगी. और यदि ऐसी राज्य रचना हो भी गई तो इसके बाद भी कई प्रश्न उठेंगे जिनका समाधान असंभव है. यदि आप समास्याओंके समाधानके लिये नहेरुवीयन तरीका अपनावें तो ठीक है लेकिन आपको पता होना चाहिये कि समस्याको हल ही नहीं करना, समस्याका समाधान नहीं है. मान लो कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने जाति आधारित और धर्म आधारित राज्य रचनाके मुद्दे पर आंदोलन चलाया और सत्ता प्राप्त भी कर ली, तो वह कैसे जाति और धर्म पर आधारित राज्य रचना करेगी. यदि आप नहेरुवीयन कोंग्रेसकी अकर्मण्यता पर विश्वास करते है तो आप दे सकते है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसका क्या हाल हुआ. समस्याका समाधान किये बिना नहेरुवीयन कोंग्रेस अब सत्ता पर नहीं रह सकती.

अरे भाई, हम अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका उद्धार करनेके लिये प्रतिबद्ध है और हम उसको एक क्षति-रहित फोर्म्युला वाली सूचना देना चाहते है.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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