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Posts Tagged ‘नहेरुवीयन कोंग्रेस’

“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” भारतीय जनता इससे सावधान रहें,

“दुष्कर्मोंकी जड नहेरुवीयन कोंग्रेस है” इससे सावधान रहे भारतीय जनता

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह पूरानी आदत है कि जनताको विभाजित करना और अपना उल्लु सीधा करना.

जिसने देशके वर्तमान पत्रोंके हिसाबसे गुजरातमें युपी-बिहार वालोंके विरुद्ध लींचीन्ग चालु किया वह कौन है?

alpesh instigated his men to attack

अल्पेश ठाकोर नामका एक व्यक्ति है जो वर्तमान पत्रोंने बनाया हुआ टायगर है. वह गुजरात (नहेरुवीयन) कोंग्रेसका प्रमुख भी है. वह गुजरात विधानसभाका सदस्य भी है.

उसने गुजरात विधान सभाके गत चूनाव पूर्व अपनी जातिके अंतर्गत एक आंदोलन चलाया था कि ठाकोर जातिको शराबकी लतसे मूक्त करें. यह तो एक दिखावा था. कोंग्रेसने उसको एक निमित्त बनाया था. किसी भी मानव समूह शराबसे मूक्त करना एक अच्छी बात है. लेकिन अभीतक किसीको पता नहीं कितने ठाकोर लोग शराब मूक्त (व्यसन मूक्त) बने. इस संगठनका इस लींचींगमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका पूरा लाभ लिया.

दो पेपर टायगर है गुजरात में

“नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”के नेताओंने पहेले पाटीदारोंमेंसे एकको पेपर टायगर बनाया था. उसने आंदोलन चलाया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मददसे करोडों रुपयेकी सरकारी और नीजी संपत्तिका नाश करवाया था. वर्तमान पत्रोंने (पेपरोंने) उनको टायगर बना दिया था.

नहेरुवीयन कोंग्रेसको गुजरातके अधिकतर वर्तमान पत्रोंने भरपूर समर्थन दिया है, और इन समाचार पत्रोंने पाटीदारोंके आंदोलनको फूंक फूंक कर जीवित रक्खनेकी कोशिस की है. वर्तमान पत्रोंको और उनके विश्लेषकोंने कभी भी आंदोलनके गुणदोषके बारेमें चर्चा नहीं की है. लेकिन आंदोलन कितना फैल गया है, कितना शक्तिशाली है, सरकार कैसे निस्फल रही है, इन बातोंको बढा चढा कर बताया है.

पाटीदार आंदोलनसे प्रेरित होकर नहेरुवीयन कोंग्रेसने अल्पेश ठकोरको आगे किया है. यह एक अति सामान्य कक्षाका व्यक्ति है. जिसका स्वयंका कुछ वजुद न हो और प्रवर्तमान फेशन के प्रवाहमें आके दाढी बढाकर अपनी आईडेन्टीटी (पहेचान) खो सकता है वह व्यक्तिको आप सामान्य कक्षाका या तो उससे भी निम्न कक्षाका नहीं मानोगे तो आप क्या मान मानोगे?

“दुष्कर्म” तो एक निमित्त है. ऐसा निमित्त तो आपको कहीं न कहींसे मिलने वाला ही है. यह पेपर टायगर खुल्लेआम हिन्दीभाषीयोंके विरुद्ध बोलने लगा है. और समाचार माध्यम उसको उछाल रहे है.

वैसे तो मुख्य मंत्रीने १२०० व्यक्तियोंको हिरासतमें लिया है. और इन सबको पता चल जायेगा कि कानून क्या कर सकता है. लेकिन यदि किसीको अति जिम्मेवार समज़ना है तो वे वर्तमान पत्र है. समाचार पत्रोंको तो लगता है कि उनके मूँहमें तो गुड और सक्कर किसीने रख दिया है. लेकिन अब नहेरुवीयन कोंग्रेसकी और उसके दंभी समाचार पत्रोंकी पोल खूल रही है और उनके कई लोग कारावासमें जाएंगे यह सुनिश्चित है इसलिये उनकी आवाज़के सूर अब बदलने लगे है लेकिन कानूनसे गुजरातमें तो कोई बच नहीं सकता. इसलिये ये सब नहेरुवीयन कोंग्रेसी डर गये हैं.

इस विषयमें हमें यह देखना आवश्यक बन जाता है कि आजकी कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस) आज के दुष्कर्मोंके उच्च (निम्न) स्तर तक कैसे पहोंची?

वैसे तो बीजेपीकी सरकार और नेतागण सतर्क और सक्रिय है. शासन भी सक्रिय है. जो लोग गुजरात छोडकर गये थे उनको वापस बुलारहे है और वे वापस भी आ रहे है. गुजरातकी जनता और खास करके बीजेपी के नेतागण उन सभीका गुलाबका पुष्प देके स्वागत कर रहे है. हिन्दी भाषीयोंने ऐसा प्रेम कभी भी महाराष्ट्रमें नहीं पाया.

नहेरुवीयन कोंग्रेसका गुजरातके संदर्भमें ऐतिहासिक विवरण देखा जा सकता है.

नहेरुने महात्मा गांधीको ब्लेकमेल करके तत्काल प्रधान मंत्री पद तो ग्रहण कर लिया, लेकिन उनको तो अपनेको प्रधानमंत्रीके पद पर शाश्वत भी बनाये रखना था. और इसमें तो गांधी मददमें आने वाले नहीं थे. इस बात तो नहेरुको अच्छी तरह ज्ञात थी.

गांधी तो मर गये.

नहेरुसे भी बडे कदके सरदार पटेल एक मात्र दुश्मन थे. लेकिन नहेरुके सद्‌भाग्यसे वे भी चल बसे. नहेरुका काम ५०% तो आसान हो गया. उन्होने कोंग्रेसके संगठनका पूरा लाभ लिया.

जनता को कैसे असमंजसमें डालना और अनिर्णायक बना देना यह एक शस्त्र है. इस शस्त्रका उपयोग अंग्रेज सरकार करती रहेती थी. लेकिन गांधीकी हत्याके बाद हिन्दु विरुद्ध मुस्लिमका शस्त्र इतना धारदार रहा नहीं.

“तू नहीं तो तेरा नाम सही” नहेरु बोले

लेकिन शस्त्रका जो काम था वह “जनताका विभाजन” करना था. तो ऐसे और शस्त्र भी तो उत्पन्न किये जा सकते है.

नहेरुने सोचा, ऐसे शस्त्रको कैसे बनाया जाय और कैसे इस शस्त्रका उपयोग किया जाय. कुछ तो उन्होंने ब्रीटीश शासकोंसे शिखा था और कुछ तो उन्होंने उस समयके रुसकी सरकारी “ओन लाईन” अनुस्नातकका अभ्यास करके शिखा था. यानी कि साम्यवादी लोग जब सत्तामें आ जाते है तो सत्ता बनाये रखने के लिये जनताको असमंजसमें रखना और विभाजित रखना आवश्यक मानते है.

१९५२मे नहेरुने काश्मिर और तिबटकी हिमालयन ब्लन्डरके बाद भी चीनपरस्त नीति अपनाई, और जनताका ध्यान हटाने के लिये भाषा पर आधारित राज्योंकी रचना की. लेकिन कोई काम सीधे तरिकेसे करे तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं.

नहेरुने प्रदेशवादको उकसायाः

“मुंबई यदि महाराष्ट्रको मिलेगा तो मुज़े खुशी होगी” नहेरुने बोला.

ऐसा बोलना नहेरुके लिये आवश्यक ही नहीं था. “भाषाके आधार पर कैसे राज्योंकी रचना करना” उसकी रुपरेखा “कोंग्रेस”में उपलब्ध थी. लेकिन नहेरुका एजन्डा भीन्न था. इस बातका इसी “ब्लोग-साईट”में अन्यत्र विवरण दिया हुआ है. नहेरुका हेतु था कि मराठी भाषी और गुजराती भाषी जनतामें वैमनष्य उत्पन्न हो जाय और वह बढता ही रहे. इस प्रकार नहेरुने मराठी जनताको संदेश दिया कि गुजराती लोग ही “मुंबई” महाराष्ट्रको न मिले ऐसा चाहते है.

याद रक्खो, गुजरातके कोई भी नेताने “‘मुंबई’ गुजरातको मिले” ऐसी बात तक नहीं की थी, न तो समाचार पत्रोमें ऐसी चर्चा थी.

लेकिन नहेरुने उपरोक्त निवेदन करके मराठी भाषीयोंको गुजरातीयोंके विरुद्ध उकसाया और पचासके दशकमें मुंबईमें गुजरातीयों पर हमले करवाये और कुछ गुजरातीयोंने मुंबईसे हिजरत की.

गुजरातीयोंका संस्कार और चरित्र कैसा रहा है?

एक बात याद रक्खोः उन्नीसवे शतकके अंतर्गत, गुजरातीयोंने ही मुंबईको विकसित किया था. मुंबईकी ९० प्रतिशत मिल्कत गुजरातीयोंने बनाई थी. ७० प्रतिशत उद्योगोंके मालिक गुजराती थे. और २० प्रतिशत गुजराती लोगोंका मुंबई मातृभूमि था. “गुजराती” शब्द से मतलब है कच्छी, सोरठी, हालारी, झालावाडी, गोहिलवाडी, काठियावाडी, पारसी, सूरती, चरोतरी, बनासकांठी, साबरकांठी, पन्चमाहाली, आबु, गुजरातसे लगने वाले मारवाडी, मेवाडी आदि प्रदेश.

गुजरातीयोंने कभी परप्रांतीयों पर भेद नहीं किया. गुजरातमें ४० प्रतिशत जनसंख्या पछात दलित थे. लेकिन गुजरातीयोंने कभी परप्रांतमें जाकर, गुजरातीयोंको बुलाके, नौकरी पर नहीं रक्खा. उन्होंने तो हमेशा वहांके स्थानिक जनोकों ही व्यवसाय दिया. चाहे वह ताता स्टील हो, या मेघालय शिलोंगका “मोदी कोटेज इन्डस्ट्री” हो. गुजरातकी मानसिकता अन्य राज्योंसे भीन्न रही है.

गुजरात और मुंबई रोजगारी का हब है.

पहेलेसे ही गुजरात, मुंबई और महाराष्ट्र, व्यवसायीयोंका व्यवसाय हब है. उन्नीसवीं शताब्दीसे प्रथम अर्ध शतकसे ही अहमदाबादमें कपडेकी मिलोंमें हिन्दी-भाषी लोग काम करते है.

१९६४-६५में जब मैं जबलपुरमें था तब मेरे हिन्दीभाषी सहाध्यायी लोग बता रहे थे कि हमारे लोग, पढकर गुजरात और महाराष्ट्रमें नौकरी करने चले जाते है. गुजरातमें सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे चतूर्थ श्रेणीके कर्मचारीयोंमें हिन्दीभाषी लोगोंका बहुमत रहेता था. सेन्ट्रल गवर्नमेंटके कार्यालयोंमे प्रथम और द्वितीय श्रेणीके कर्मचारीयोंमे आज भी हिन्दीभाषीयोंका बहुमत होता है, वैसे तो अधिकारीयोंके लिये गुजरात एक टेन्योर क्षेत्रमाना जाता है तो भी यह हाल है.

नरेन्द्र मोदी और गुजराती

गुजराती लोग शांति प्रिय और राष्ट्रवादी है. जब नरेन्द्र मोदी जैसे कदावर नेता गुजरातके मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने कभी क्षेत्रवादको बढावा देनेका काम नहीं किया. नरेन्द्र मोदी हमेशा कहेते रहेते थे कि गुजरातके विकासमें हिन्दीभाषी और दक्षिणभारतीयोंका महान योगदान रहा है. गुजरातकी जनता उनका ऋणी है.

२००२ के चूनावमें और उसके बादके चूनावोंमें भी, नरेन्द्र मोदी, यदि चाहते तो ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु की तरह क्षेत्रवाद-भाषावादको हवा देकर उसको उछाल के  गुजराती और बिन-गुजराती जनताको भीडवा सकते थे. लेकिन ऐसी बात गुजराती जनताके डीएनए में नहीं है. और नरेन्द्र मोदीने राष्ट्रवादको गुजरातमें बनाये रक्खा है.

याद रक्खो, जब नहेरु-इन्दिराके शासनके सूर्यका मध्यान्ह काल था तब भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की (१९७१के एक दो सालके समयको छोड) गुजरातमें दाल नहीं गलती थी. वह १९८० तक कमजोर थी और मोरारजी देसाईकी कोंग्रेस (संस्था) सक्षम थी. मतलब कि, राष्ट्रवाद गुजरातमें कभी मरा नहीं, न तो कभी राष्ट्रवाद गुजरातमें कमजोर बना.

१९८०से १९९५ तक गुजरातमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन रहा लेकिन उस समय भी राष्ट्रवाद कमज़ोर पडा नहीं क्यों कि गुजरातकी नहेरुवीयन कोंग्रेसके “आका” तो नोन-गुजराती थे इसलिये “आ बैल मुज़े मार” ऐसा कैसे करते?

भाषा और क्षेत्रवादके लिये गुजरातमें जगह नहीं है;

उद्धव -बाला साहेब थाकरे, राज ठाकरे, ममता, अखिलेश, मुलायम, माया, लालु, चन्द्रबाबु नायडु–वाले क्षेत्रवाद के लिये गुजरातमें जगह नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें गुजरातमें दंगे, और संचार बंदी तो बहोत होती रही, लेकिन कभी क्षेत्र-भाषा वादके दंगे नहीं हुए.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह संस्कृति और संस्कार है कि जूठ बार बार बोलो और चाहे वह जूठ, जूठ ही सिद्ध भी हो जाय, अपना असर कायम रखता है.

(१) पहेले उन्होंने अखलाक का किस्सा उछाला, और ठेर ठेर हमें गौवध आंदोलनके और लींचींगके किस्से प्रकाशित होते हुए दिखने लगे,

(२) फिर हमें भारतके टूकडेवाली गेंग दिखाई देने लगी और उनके और अफज़ल प्रेमी गेंगके काश्मिरसे, दिल्ली, बनारस, कलकत्ता, और हैदराबाद तकके प्रदर्शन दिखनेको मिले,

(३) फिर सियासती खूनकी घटनाएं और मान लो कि वे सब खून हिन्दुओंने ही करवायें ऐसा मानके हुए विरोध प्रदर्शन के किस्से समाचार पत्रोंमे छाने लगे,

(४) फिर सियासती पटेलोंका आरक्षणके हिंसक प्रदर्शन और मराठाओंका आरक्षण आदि के प्रदर्शनोंकी घटनाएं आपको समाचार माध्यमोंमे प्रचूर मात्रामें देखने को मिलने लगी.

(५) फिर आपको कठुआ गेंग रेप की घटनाको, कायदा-व्यवस्थाके स्थान पर, सेना और कश्मिरके मुस्लिमोंकी टकराहट, के प्रदर्शन स्वरुप घटना थी, इस बातको उजागर करती हुए समाचार देखने को मिलने लगे.

(६) अब तो समाचार पत्रोंमे हररोज कोई न कोई पन्ने पर या पन्नों पर एक नाबालीग के गेंगरेप या दुष्कर्मकी घटना चाहे उसमें सच्चाई हो या न हो, देखनेको मिलती ही है. नाम तो नहीं लिखना है इसलिये बनावटी घटनाओं का भी प्रसारण किया जा सकता है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा माहोल बनाना चाहती है कि जनताको ऐसा लगता है कि बीजेपीके शासनमें गेंग रेप, दुष्कर्म की आदत उत्पन्न हुई. और नहेरुवीयन कोंग्रेसके ७० सालके जमानेमें तो भारत एक स्वर्ग था. न कोई बेकार था, न कोई गरीब था, न कोई अनपढ था, हर घर बिजली थी, हर कोई के पास पक्का मकान था और दो खड्डेवाला संडास था, पेट्रोल मूफ्तमें मिलता था और महंगाईका नामोनिशान नहीं था. सब आनंदमंगल था. कश्मिरमें हिन्दु सुरक्षित थे और आतंकवादका तो नामोनिशान नहीं था.

ये ठाकोर लोग कौन है?

ठाकोर (ठाकोर क्षत्रीय होते है. श्री कृष्ण को भी गुजरातमें “ठाकोरजी” कहे जाते है.) वैसे वे लोग एससी/ओसी में आते हैं और कहा जाता है कि वे लोग व्यसन के आदि होते हैं.

 “नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरात”की तबियत गुदगुदाई

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तबियत गुदगुदायी है कि, अब वह क्षेत्रवादका शस्त्र जो उन्होंने महाराष्ट्रमें गुजरातीयोंको मराठीयोंसे अलग करनेमें किया था उस शस्त्रको अजमाया जा सकता है.

शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, नहेरुवीयन कोंग्रेसके क्रमानुसार पूत्र और पौत्र है.

ये दोनों पार्टीयां तो खूल्ले आम क्षेत्रवादकी आग लगाती है. शिवसेना कैसे बीजेपीका समर्थन करती है वह एक संशोधनका विषय है, लेकिन यदि शरद पवारको प्रधान मंत्री बननेका अवसर आयेगा तो यह शिवसेना और एमएनएस, उसके पल्लेमें बैठ जायेंगे यह बात निश्चित है. जैसे कि उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रत्याषी प्रतिभा पाटिलको समर्थन किया था.

महाराष्ट्रमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेसने क्षेत्रवादको बहेकानेका काम प्रचूर मात्रामें किया है.

पाटीदारोंके आंदोलनके परिणाम स्वरुप, ज्ञातिवादके साथ साथ अन्य कोई शस्त्र है जिससे गुजरातमें कुछ और हिंसक आंदोलन करवा सकें?

गुजरात विरुद्ध हिन्दीभाषी

गुजरातमें हिन्दीभाषी श्रम जीवी काफी मात्रामें होते है. गुजरातके विकासमें उनका योगदान काफी है.

किसीका भी परप्रांतमें नौकरी करनेका शौक नहीं होता है. जब अपने राज्यमें नौकरीके अवसर नहीं होते है तब ही मनुष्य परप्रांतमें जाता है. मैंने १९६४-६५में भी ऐसे लोगो देखे है जो युपी बिहार के थे. उनके मूँहसे सूना था कि हमारे यहां लडका एमएससीमें डीवीझन लाता है तो भी कई सालों तक बेकार रहेता है. नौकरी मिलने पर उसका भाव बढता है. ये सब तो लंबी बाते हैं लेकिन हिन्दी भाषी राज्योंमे बेकारीके कारण उनके कई लोगोंको अन्य राज्योंमें जाना पडता है.

कौन पर प्रांती है? अरे भाई, यह तो वास्तवमें घर वापसी है.

सुराष्ट्र-गुजरातका असली नाम तो है आनर्त. जिसको गुरुजनराष्ट्र भी कहा जाता था जिसमेंसे अपभ्रंश होकर गुजरात हुआ है

प्राचीन इतिहास पर यदि एक दृष्टिपात्‌ करें तो भारतमें सरस्वती नदीकी महान अद्‍भूत सुसंस्कृत सभ्यता थी. उसका बडा हिस्सा गुजरातमें ही था. गुजरातका नाम “गुरुजनराष्ट्र था”.

अगत्स्य ऋषिका आश्रम साभ्रमती (साबरमती)के किनारे पर था,

वशिष्ठ ऋषि का आश्रम अर्बुद पर्वत पर था,

सांदिपनी ऋषिका आश्रम गिरनारमें था,

भृगुरुषिका आश्रम भरुचके पास नर्मदा तट पर था,

विश्वामित्र का आश्रम विश्वामित्री नदीके मुखके पास पावापुरीमें था,

अत्री ऋषिके पूत्र, आदिगुरु दत्तात्रेय गिरनारके थे.

चंद्र वंश और सूर्यवंशके महान राजाओंकी पूण्य भूमि सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्र ही था.

सरस्वती नदीका सुखना और जलवायु परिवर्तन

जब जलवायुमें परिवर्तन हुआ तो इस संस्कृतिकी,

एक शाखा पश्चिममें ईरानसे गुजरकर तूर्क और ग्रीस और जर्मनी गई,

एक शाखा समूद्रके किनारे किनारे अरबस्तान और मीश्र गई

एक शाखा काराकोरमसे तिबट और मोंगोलिया गई,

एक शाखा पूर्वमें गंगा जमना और ब्र्ह्म पूत्रके प्रदेशोंमे गई, जो वहांसे ब्रह्मदेश गई, और वहांसे थाईलेन्ड, फिलीपाईन्स, ईन्डोनेशिया, और चीन जापान गई,

एक शाखा दक्षिण भारतमें और श्रीलंका गई.

जब सुराष्ट्र (गुरुजन राष्ट्र)का जलवायु (वातावरण) सुधरने लगा तो गंगा जमनाके प्रदेशोंमें गये लोग जो अपनी मूल भूमिके साथ संपर्कमें थे वे एक या दुसरे कारणसे घरवापसी भी करने लगे.

राम पढाईके लिये विश्वामित्रके आश्रममें आये थे,

कृष्ण भी पढाईके लिये सांदिपनी ऋषिके आश्रममें आये थे. फिर जब जरासंघका दबाव बढने लगा तो श्री कृष्ण अपने यादवोंके साथ सुराष्ट्रमें समूद्र तट पर आ गये और पूरे भारतके समूद्र तट पर यादवोंका दबदबा रहा.

ईश्वीसन की नवमी शताब्दीमें ईरानसे पारसी लोग गुजरात वापस आये थे.

ईश्वीसनकी ग्यारहवी शताब्दीमें कई (कमसे कम दो हजार कुटूंबोंको) विद्वान और चारों वेदोंके ज्ञाता ब्राह्मणोंको मूळराज सोलंकी काशीसे लेकर आया था. वे आज औदिच्य ब्राह्मणके नामसे जाने जाते है.

इसके बाद भी जनप्रवाह उत्तर भारतसे आनर्त-सुराष्ट्र में आता ही रहा है.

“स्थानांतर” यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है.

सुराष्ट्र-गुरुजनराष्ट्रमें सबका स्वागत है. आओ यहां आके आपकी मूल

भूमिका वंदन करो और भारत वर्षका नाम उज्वल करो.

नहेरुवीयन कोंग्रेस तेरा सर्वनाश हो,

बीजेपी तेरा जय जयकार हो.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

डीबीभाई(दिव्यभास्कर की गुजराती प्रकाशन)ने क्या किया?

जो हंगामा और मारपीट ठाकोरोंने गुजरातमें की, वे “जनता”के नाम पर चढा दी, और उनको नाम दिया “आक्रोश”.

आगे तंत्रीलेखमें लिखा है

“नीतीशकुमार हवे गुजरात विरुद्ध बिहार मोडलनी चर्चा तो शरु करी दीधी छे अने तेमनी चर्चाने उठावनारा नोबेलविजेता अर्थ शास्त्र अमर्त्यसेन पण चूप छे”

यह कैसी वाक्य रचना है? इस वाक्यका क्या अर्थ है? इसका क्या संदेश है? यदि कोई भाषाशास्त्री बता पाये तो एक लाख ले जावे. यह वाक्य रचना और उसका अर्थ जनताके पल्ले तो पडता नहीं है.

डीबीभाई खूद हिन्दीभाषी है. उनको भाषा शुद्धिसे और वाक्यार्थसे कोई मतलब नहीं है. आपको एक भी पेराग्राफ बिना क्षतिवाला मिलना असंभव है. शिर्ष रेखा कैसी भी बना लो. हमें तो बीजेपीके विरुद्ध केवल ऋणात्मक वातावरण तयार करना है.

“(नहेरुवीयन) कोंग्रेसके पैसे, हमारे काम कब आयेंगे? यही तो मौका है …!!!” वर्तमान पत्रकी सोच.

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भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

भारतकी विभाजनवादी शक्तिओंको पराजित करनेके लिये बीजेपीकी व्युह रचना

व्युह रचना हमारे उद्देश्य पर निर्भर है.

हमारा उद्देश्य नरेन्द्र मोदी/बीजेपी को निरपेक्ष बहुमतसे जीताना है. इसका अर्थ यह भी है कि हमे विभाजनवादी पक्षोंको पराजित करना है.

हम शर्मिन्दा है

 विभाजनवादी शक्तियां …….. सीक्केकी एक बाजु

भारतमाता, हम शर्मिंदा है ….,  तेरे द्रोही जिन्दा है

हमारी समस्याएं क्या है?

() समाचार माध्यम समस्या है. क्यों कि अधिकतर समाचार माध्यम विभाजनवादी शक्तियोंके पास है. इसलिये विपक्ष के नेताओंके सुनिश्चित उच्चारणोंको अधिकाधिक प्रसिद्धि मिलती है. और बीजेपीके नेताओंकी एवं बीजेपीके समर्थक नेताओंके उच्चारणोंको विकृत करके प्रसारित किया जाता है या तो कम प्रसिद्धि मिलती है या तो प्रसिद्धि ही नहीं मिलती है.

() समस्याओंकी प्राथमिकता

() मुद्दोंका चयन और उनकी संदर्भकी आवश्यकता

() विपक्षकी व्युहरचनाको समज़नेकी या तो उसका विश्लेषण करनेकी अक्षमता.

() विपक्ष पर प्रहार करनेकी बौद्धिक अक्षमता

() अपने ही मतदाताओंको बांटने पर सक्रीय रहेना और अपने ही नेताओंकी आलोचना करना, चाहे विपक्षकी ही क्षति या  उनका ही फरेब क्यूँ न हो,

() सोसीयल मीडीयाकी शक्तिका भरपूर उपयोग करना

() अधिकतर समाचार माध्यम चाहे विपक्षके पास हो, फिर भी हम उसके उपर आक्रमण करके हमारे हस्तगत समाचार माध्यमोंसे मुकाबला कर सकते है. उतना ही नहीं हम विपक्षके समाचार माध्यमोंमें भी प्रतिक्रियाएं दे कर कुछ प्रतिकार तो कर ही सकते हैं. सोसीयल मीडीया भी एक सशक्त शस्त्र है, हम उसका भरपुर उपयोग कर सकते है.

() भारतीय मतदाता, अशिक्षण, सुशिक्षण का अभाव और गरीबीके कारण, धर्म, जाति, विस्तार, भाषा के आधार पर विभाजित है. वास्तवमें, इसके मूलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसका लंबा कुशासन और उसके नेताओंकी स्वकेन्द्री वृत्ति और आचार है.

विकास

नरेन्द्र मोदी/बीजेपीने विकासको प्राथमिकता दी है. वह सही है.

विकास हर क्षेत्रमें होना है. इस लिये विकासमें शिक्षणका विकास भी निहित है. प्राकृतिक स्रोतों और मानवीय स्रोतोंका और शिक्षाके समन्वयसे विकास हो ही रहा है. और इस विकासको जनताके समक्ष लाना है और यह काम बीजेपी के प्रचारक कर ही रहे है. राष्ट्रवादीयोंको भी इसमें अपना योगदान देना चाहिये.

प्राचीन इतिहास

दुसरा मुद्दा है इतिहास. इस इतिहासको जो पढाया है उसको विस्मृत करना. खास करके प्राचीन कालका इतिहास. इस इतिहासने भारतको उत्तर और दक्षिणमें विभाजित किया है. यह काम अति कठिन है क्योंकी कई विद्वान लोग इसमें स्थित विरोधाभाष होते होए भी उसको छोडनेमें संकोच रखते है और छोडना नहीं चाहते. और जो विभाजन वादी लोग है वे लोग सच्चा इतिहास पढाने के प्रचारको धर्मके साथ जोड देतें हैं. “इतिहासका भगवाकरणऐसा प्रचार करते है.

मध्ययुगी इतिहासः

जातिवादः

जातिवादकी समस्याका मूल मध्ययुगी इतिहास में है. जातिवाद इस समय में जड बना. किन्तु इसी समयमें कई सवर्ण जातिके लोगोंने जातिवादका विरोध किया उसका इतिहास साक्षी है. इन लोगोंके बारेमें दलितोंको विस्तारसे समज़ाना चाहिये. सोसीयल मीडीया पर भी जिन्होंने जातिवादका विरोध किया उनका सक्षमताके साथ विस्तारसे वर्णन करना चाहिये.

इस्लाम

इसमें भी कई बातें है. किन्तु अधिकतर बातें विवादास्पद है. इसको केवल इतिहासकारों पर ही छोड दो. इसमें खास करके हिन्दु, मुस्लिम के बीचकी बाते है. इन बातोंको इस समय चर्चा करना घातक है.

अर्वाचीन इतिहास

ईसाई धर्मप्रचार की कई हिंसात्मक बातें गुह्य रक्खी गई है. इन बातोंको अकटूता पूर्वक उजागर करना चाहिये.

() विभाजनवादी परिबलमें कौन कौन आते हैं?

OTHER SIDE OF THECOIN

                       सीक्केकी दुसरी बाजु

सभी विपक्षी दल और कोमवादी दल विभाजन वादी ही हैं. वैसे तो विपक्षी दल पूरा कोमवादी है. लेकिन इस जगह पर हम कोमवादी दल उसको ही कहेते हैं जिनमें उस कोमके सिवा अन्य धार्मिक व्यक्तिका प्रवेश निषेध है.  इन सबका चरित्र और संस्कार समान होनेके कारण नहेरुवीयन कोंग्रेस पर किया हुआ प्रहार सबको लागु पडेगा.

सबसे प्रथम है नहेरुवीयन कोंग्रेस. नहेरुवीयन कोंग्रेसको कमजोर करनेवाला सबसे ज्यादा सशक्त मुद्दे क्या है?

देशके लिये विघातक और विभाजनवादी नीति, आतंकवादका समर्थन, वंशवाद, जनतंत्रका हनन, तानाशाही, प्रतिशोधवाली मानसिकता और आचरण, अतिविलंबकारी विकास, यथावत गरीबी, अशिक्षास्वकेन्द्री मानसिकता, ६५ वर्ष लंबा शासन, भ्रष्टाचार, अफवाहें फैलाना और चारित्र हनन करना. इन सभी मुद्दोंको आप उजाकर कर सकते है.

जब भी कोई मुद्दा ये विभाजनवादी एवं कोमवादी घुमाते हुए प्रसारित करते है, उसीके उपर आपको कडा प्रहार करना है. अन्यथा भी हमें कोई मुद्देको उठाके उनके उपर सशक्त प्रहार करना है.

 () विपक्षकी व्युह रचना क्या है?

विपक्षकी व्युह रचनामें लघुमतियोंकी वोट बैंक बनाना है. वोट बेंकका मतलब यह है कि जिस वर्गमें अधिकतर लोग अशिक्षित (समास्याको नहीं समज़ सकनेवाले), अनपढ, गरीब और अल्पबुद्धि है उनको गुमराह करना. यह काम उसी वर्गके स्वकेन्द्री और भ्रष्टनेताओंको ये लोग पथभ्रष्ट करके उनके द्वारा करवाते है. और ये नेता अन्यवर्गके बारेमें धिक्कार फैलाते है.

अभी एक आदमी सोसीयल मीडीया पर बोलता हुआ ट्रोल हुआ है किःयदि आपके विस्तारमें कोई भी ब्राह्मण, क्षत्रीय या वैश्य खडा हो तो उसके सामने जो एक दलित खडा है, वह चाहे कैसा भी हो, तो भी उसको ही वोट दो. हमे इसमें दुसरा कुछ भी सोचना नहीं है. इन सवर्णोंने हम पर बहुत अत्याचार किया है हमे बरबाद कर दिया है.” मायावती क्या कहेती है? “तिलक तराजु और तल्वार, इनको मारो जूते चार”. नहेरुवीयन कोंग्रेसकी भाषा भी ऐसा ही संदेश देनेवाली भाषा है. शब्द प्रयोग भीन्न है.

यदि मायावतीकी बात सवर्ण सूनेगा तो उसके मनमें दलितोंके प्रति धिक्कार पैदा होगा. इस कारण यदि कोई दलित जो बीजेपीके पक्षमें खडा है तो वह सवर्ण व्यक्ति मतदानसे अलग रहेगा. लेकिन हमे बीजेपी के ऐसे सवर्ण मतदाताओंको चाहे बीजेपीका प्रत्याषी दलित हो तो भी मतदानके लिये उत्साहित करना है.

हमें दलितोंको अवगत कराना है किभूतकालमें यदि कभी दलितोंके उपर अत्याचार किया गया था तो वे अत्याचार करनेवाले तो मर भी गये. और वे तो आप नहीं थे. अभी ऐसी भूतकालकी बातोंसे क्यों चिपके रहेना?

हम तो सब जानते है कि दलितोंका उद्धार करनेकी बातोंका प्रारंभ तो सवर्णोंने ही किया है. बाबा साहेब आंबेडकरको पढाने वाले और विदेश भेजने वाले भी वडोदराके महाराजा ही थे. सब सवर्णोंने ही तो बाबा साहेब आंबेडकरसे अधिकृत किया हुआ हमारा संविधान मान्य रक्खा है. संविधानके अंतर्गत तो कोई भेद नहीं हैयद्यपि यदि अभी भी दलितके उपर अत्याचार होते है तो वहां राज्य की सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. यदि अत्याचार व्यापक है तो केन्द्र सरकारका उत्तरदायित्व बनता है. समस्या दीर्घकलिन है तो जिसने ७० साल तक एक चक्री शासन किया है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस ही कारणभूत है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन और यह बीजेपीके शासन में फर्क यह है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें जब कभी दलितों पर अत्याचार होता था तो उस समाचारको दबा दिया जाता था, और कार्यवाही भी नहीं होती थी.

बीजेपीके शासनमें यदि कभी अत्याचार होता है तो शिघ्र ही कार्यवाही होती है. और ये नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले कार्यवाहीकी बात करने के स्थान पर अत्याचारकी ही बात किया करते है…. आदि.  

विपक्षने देखा है कि यदि हिन्दु सब एक हो गये तो चूनाव जितना अशक्य है. इसलिये हिन्दुओंमे फूट पाडनेकी कोशिस करते है.. फूट पाडने के लिये दलित पर होते यहां तहां की छूट पूट घटनाओंको उजागर करते है और सातत्य पूर्वक उसको प्रसारित किया करते है.. इस बातका साहित्यओन लाईनपर उपलब्ध है. इसका राष्ट्रवादीयोंको भरपूर लाभ लेना चाहिये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस, मुस्लिम और ईसाईयोंमें भी हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैला रही है. ख्रीस्ती धर्म की पादरी गेंग तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी तरह अफवाहें फैलाने में कुशल है. मुस्लिम मुल्ला भी कम नहीं. सामान्य मुस्लिम और सामान्य ख्रीस्ती व्यक्ति तो हिलमिलके रहेना चाहता है. किन्तु ये मुल्ला, पादरी और नेतागण उनको बहेकाना चाहता है. इस लिये वे छूटपूट घटनाओंको कोमवादी स्वरुप देता है और उसको लगातार फैलाता रहता है. इनमें बनावटी और विकृति भी अवश्य होती है.

उदाहरण के लिये, आजकी तारिखमें कठुआ की घटना ट्रोल हो रही है.

गेंगके लिये उनके समर्थक महानुभावोंनेहम शरमिन्दा है कि हम हिन्दु हैऐसे प्लेकार्ड ले कर प्रदर्शन किया. यदि वे सत्यके पक्षमें होते तो हिन्दु और शिखोंकी अनेक कत्लेआम के विरोधमें भी प्रदर्शन करते. लेकिन इनकी कार्य सूचिमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुपमें बीजेपीका ही  विरोध करना है.

वै से तो अंतमें हिन्दुविरोधी घटना जूठ साबित होगी लेकिन, इससे जो नुकशान करना था  वह तो कर ही दिया होता है. आम हिन्दु जनता भूल जाति है, किन्तु इससे उत्पन्न हुआ ॠणात्मक वातावरण कायम रहता है, क्यों कि इसके बाद शिघ्र ही नयी घटना का ट्रोल होना प्रारंभ हो जाता है. चाहे आम जनता ऐसी घटनाओंको भूल जाय, किन्तु हम राष्ट्रवादीयोंको ये घटनाएं भूलना नहीं है. हमें अपने लेपटोपमें विभागी करण करके यह सब स्टोर करना है और जब भी मौका मिले तब देशके इन दुश्मनोंके उपर टूट पडना है.

() कपिल सिब्बल, रा.गा., सोनिया, चिदंभरम (चिदु), रणवीर सुरजेवाले, मलिक खर्गे, अभिषेक सींघवी, एहमद पटेल, एमएमएस, गुलाम नबी आज़ाद, फरुख अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्ला, मणीसंकर अय्यर, शशि थरुर, आदि कई नेता अनाप शनाप बोलते रहते है.

इनको हमें छोडना नहीं.

इन सब लोगोंकी ॠणात्मक कथाएंओन लाईनपर उपलब्ध है.

यदि आपको ज्ञात नहीं है तो राष्ट्रवादीयोंमेंसे किसी एक का संपर्क करें. जब भी इनमेंसे कोई भी नेता कुछ भी बोले तो समाचार माध्यम की चेनल उपर, फेस बुक पर, ट्वीटर पर और वर्तमान पत्रकेओनलईनसंस्करण पर अवश्य आघात्मक प्रहार करें. उस प्रहारमें उनके उपर उनकी ॠणात्मक बात/बातो का अवश्य उल्लेख करें.

() १८५७का युद्ध ब्रीटनसे मुक्ति पानेका युद्ध था. उस युद्ध में हिन्दु मुस्लिम एकजूट हो कर लडे थे. मुस्लिमोंने और मुगलोंने जुल्म किया होगा. किन्तु उसका असर १८५० आते आते मीट गया था. उसके कई ऐतिहासिक कारण है. इसकी चर्चा हम नहीं करेंगे. परंतु १८५७में हिन्दु और मुस्लिम एक जूट होकर लडनेको तयार हो गये थे. यदि उस युद्धमें हमारी विजय होती तो मुगल साम्राज्यका पुनरोदय होता. यह एक हिन्दुमुस्लिम एकताका देश बनता और तो हमे पश्चिमाभिमुख एवं गलत इतिहास पढाया जाता, और तो हम विभक्त होते. ब्रह्म देश, इन्डोनेशिया, तीबट, अफघानीस्तान, आदि कई देश हिन्दुस्तानका हिस्सा होता.   हमारा हिन्दुस्तान क्रमशः एक युनाईटेड नेशन्स या तो युनाईटेड स्टेस्टस ओफ हिन्दुस्तान यानी कि जम्बुद्वीप बनता और वह गणतंत्र भी होता. १८५७के कालमें मुगल बादशाह बहादुरशाह जफरके राज्य की सीमा लाल किले तक ही मर्यादित थी इसलिये उस राजाकी आपखुद बननेकी कोई शक्यता थी.

लेकिन वह युद्ध हम हार गये.

इस बात पर ब्रीटन पार्लामेन्टमें चर्चा हुई. ब्रीटन एक लोकशाही देश था. तो हिन्दुस्तानमें धार्मिक बातों पर दखल देना ऐसा प्रस्ताव पास किया. और सियासती तरीकेमें हिन्दु मुस्लिममें विभाजन करवाना एक दीर्घ कालिन ध्येय बनाया. ख्रीस्ती प्रचार के लिये भी घनिष्ठ आयोजन किया गया. इस प्रकार हिन्दुओंमेंसे एक हिस्सा काटनेका प्रपंच किया गया.

इसीलिये राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि इस संकट के समय हिन्दुओंका मत विभाजन हो.

मुस्लिमोंको राष्ट्रवादी विचार धारामें लाना राष्ट्रवादीयोंका दुसरा कर्तव्य है.

ब्रीटीश राजने और उसके बाद नहेरुवीयन कोंग्रेसने मुस्लिमोंको, हिन्दुओंके प्रति धिक्कार फैलाके इतना दूर कर दिया है कि उनको राष्ट्रवादी विचारधारामें लाना कई लोगोंको अशक्य लगता है.

अपनेको राष्ट्रवादी समज़ने वाले कुछ लोग इस बातका घनिष्ठताके प्रचार करते है कि जब मुसलमानोंको पाकिस्तान बनाके दिया है तो उनको अब पाकिस्तान चले जाना चाहिये. यदि नहीं जाते है तो उनको खदेड देना चाहिये. (कैसे? इस बात पर ये लोग मौन है). इन बातोंको छोडो. ये सिर्फ वाणीविलास है. ऐसा वाणी विलास नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष, उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्षोंकी गेंग और आतंकवादी भी करते है

हिन्दु और मुस्लिम दो राष्ट्र है ऐसी मान्यताको ब्रीटीश राज्यने जन्म दिया है. और नहेरुवीयन कोंग्रेसने उनको अधिक ही मात्रामें आगे बढा दिया है. वास्तविकतासे यह “दो राष्ट्र” वाली मान्यता दूर है.

दुनियामें कहीं भी मुस्लिमफिर चाहे वह बहुमतमें हो या शत प्रतिशत हो, वह हमेशा अपने देशकी धरोहरसे भीन्न नहीं रहा हैमिस्र के मुस्लिम मिस्रकी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैईरानके मुस्लिमईरान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्वकी अनुभूति करते हैइन्डोनेसिया के मुस्लिम इन्डोनेसिया की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व की अनुभूति करते हैलेकिन भारतके मुस्लिम अपनेको आरब संस्कृतिसे  जोडते है. लेकिन  आरब इनको अपना समज़ते नहीं हैक्यों कि वे वास्तवमें अरब नहीं हैइसका कारण यह है कि हि-न्दुस्तानके मुस्लिम ९० प्रतिशत हिन्दुमेंसे मुस्लिम बने हैऔर कई मुस्लिम यह कबुल भी करते हैवोराजी और खोजाजी इसके उदहरण स्वरुप हैखुद जिन्नाने यह बात कबुल की है.

तोअब ऐसे मुस्लिमोंके प्रति धिक्कार करने कि क्या आवश्यकता हैहिन्दु धर्ममें किसी भी दैवी शक्तिको किसी भी स्वरुपमें पूजो या तो पूजो तो भी उसके उपर प्रतिबंध नहीं हैआप कर्मकांड करो तो भी सही करो तो भी सहीईश्वरमें या वेदोंमे मानो तोभी सही मानो तो भी सहीअनिवार्यता यह है कि आप दुसरोंकी हानि  करो.

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान न करे और अन्यका नुकशान न करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें आ सकते है.

किसी भी कोमको यदि अपनी दीशामें खींचना है तो यह काम आप उसको गालीयां देके और उसके उपर विवादास्पद आरोप लगाके नहीं कर सकते.

नरेन्द्र मोदीने एक अच्छा सुत्र दिया है कि सबका साथ सबका विकास. इसमें दलित, सवर्ण, मुस्लिम, ख्रीस्ती आदि सर्वप्रकारके लोग आ जाते है. इस सुत्रको लघुमतियोंको आत्मसात करना चाहिये.

कानूनका ही राज रहेगा. इसमें कोई समाधान नहीं.

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर आ जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है. तककी उनका तुष्टिकरण करनेके लिये उन्होनें लघुमतिके लिये अलग नागरिक कोड बना दिया है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि लघुमतिके हित रक्षक उनके पक्षकी विचार धारा है. ऐसा करनेमें नहेरुवीयन कोंग्रेसने हिन्दुओंको अन्याय भी किया है.

मुस्लिम जनता, हिन्दुओंसे बिलकुल भीन्न है ऐसा भारतके मुस्लिम और कुछ हिन्दु भी मानते है. 

मुस्लिम यदि कुछ भी माने, और यदि वे अन्यकी मान्यताओंको नुकशान करे और अन्यका नुकशान करें तो हिन्दुओंको मुस्लिमोंसे कोई आपत्ति नहीं. एक बात आवश्यक है कि हमें सच्चा इतिहास पढाया जाय.

मुस्लिमोंमे प्रगतिशील मुस्लिमोंकी कमी नहीं है. लेकिन प्रगतिशील मुस्लिम. किन्तु वे मौन रहेते हैं. वे मुस्लिमोंके अंतर्गत लघुमतिमें है. उनके उपर मुल्लाओंका दबाव रहेता है. और साथ साथ हिन्दुओंका एक कट्टरवादी वर्ग, मुस्लिम मात्रकी विरुद्ध बाते करता है. वैसे तो यह कट्टर हिन्दु अति लघुमतिमें है. लेकिन इस बातका मुस्लिमोंको पता नहीं. या तो उनको इसका अहेसास नहीं. यदि मुस्लिम लोग यह सोचे, कि हिन्दु कट्टरवादी और हिन्दु राष्ट्रवादी लोग भीन्न भीन्न है और वे एक दुसरेके पर्याय नहीं है तो वे लोग राष्ट्रवादी के प्रवाहमें सकते है.

 

कानूनके राज करनेकी जीम्मेवारी सरकारी अफसरोंकी है. जहां बीजेपीका शासन है वहां राष्ट्रवादीयोंको सरकारी अफसरोंके विरुद्ध आवाज़ उठानी चाहिये, नहीं कि बीजेपीके विरुद्ध.

जो लोग कानून हाथमें लेते है उनको, और उनकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहायता करनेवालोंको, उन सबके उपर बिना दया बताये न्यायिक कार्यवाही करनेसे मुस्लिम नेता गण, जैसे कि फारुख अब्दुला, ओमर अब्दुल्ला, यासीन मलिक गुलाम नबी आज़ाद, मुस्लिम मुल्ला, उनके असामाजिक तत्त्व और उसी प्रकार ख्रीस्ती पादरी और उनके असामाजिक तत्त्वका दिमाग ठिकाने पर जायेगा. और उस धर्म के आम मनुष्यको लगेगा कि, स्वातंत्र्यका अधिकार स्वच्छंदतासे भीन्न है. उनको भी बीजेपीमें ही सुरक्षा दिखायी देगी.    

एक हिन्दुराष्ट्रवादी कट्टरवादी हो सकता है लेकिन हरेक हिन्दुराष्ट्रवादी, कट्टरवादी नहीं है. जो मुस्लिमोंको देश छोडने की बात करते हैं वे हिन्दु कट्टारवादी है. ये लोग अतिअल्पमात्रामें है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये यह शर्मकी बात है

जो हिन्दु और जो मुस्लिम दो भीन्न भीन्न संस्कृतिमें मानता है वे दोनों कट्टरवादी है. कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेस नहीं), और कई मुस्लिम नेतागण (जो कोंग्रेसके सदस्य थे) “दो राष्ट्रमें नहीं  मानते थे. पख्तून नेता खान अब्दुल गफारखाँ भी दो राष्ट्रकी विचारधारामें नहीं मानते थे.

महात्मा गांधी भी दो राष्ट्रके सिद्धांतमें मानते नहीं थे. “दो राष्ट्रकी परिकल्पना ब्रीटीश प्रायोजितआर्यन इन्वेज़न परिक्ल्पनाकी तरह एक जूठके आधार पर बनी परिकल्पना थी.

यह विधिकी वक्रता है कि स्वयंको मूल कोंग्रेस मानने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस आज दोराष्ट्रकी परिकल्पनाको सिर्फ सियासती लाभके लिये बढावा देती है. उसको शर्म आनी चाहिये.

जिन्ना नेदो राष्ट्रकी परिकल्पना इसलिये पुरस्कृत की कि, नहेरुने उसका तिरस्कार किया था. नहेरुने स्वयं घोषित किया था कि, वे जिन्ना को अपनी ऑफिसमें चपरासी देखनेको तयार नहीं थे. तो ऐसे हालातमें जिन्नाने अपनी श्रेष्ठता दिखानेके ममतमेंदोराष्ट्रपरिकल्पना आगे की.

ब्रीटीश सरकारने तोबहुराष्ट्रकी परिकल्पना भी की थी. और वे दलितीस्थान, ख्रीस्ती बहुमत वाले उत्तरपूर्वी राज्योंसे बना हुआ नेफा,.  द्रविडीस्तानवाला दक्षिण भारत, पंजाबका खालिस्तान, और कई देशी राज्य. ऐसा भारत, काल्पनिक गज़वाहे हिन्दके करिब था. और इस प्रस्तावमें अशक्त केन्द्र था और कई सारे सशक्त राज्य थे.

लेकिन अब, यह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांकृतिक साथी अपनी सियासती व्युहरचनाके अनुसार वे देशके एक और विभाजनके प्रति गति कर रहे है.

यदि हम राष्ट्रवादी लोग, दलितोंका, मुस्लिमोंका और ईसाईयोंका सहयोग लेना चाहते है तो हमें हिन्दुओंके हितका ध्यान रखना पडेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें कश्मिरमें कई मंदिर ध्वस्त हुए है.

हिन्दुओंके मतोंका विभाजन होनेकी शक्यता देखकर वंशवादी और कोमवादी पक्ष इकठ्ठे हो रहे है. इनको पराजित तब ही कर सकते है जब हिन्दु मत का विभाजन हो.

हिन्दु जनता कैसे विभाजित होती है?

राष्ट्रवादीयोंका ध्येय है कि नरेन्द्र मोदी/बीजेपी २०१९का चूनाव निरपेक्ष बहुमतसे जिते. राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे आपसमें विवाद करें. आपसके विभीन्न मुद्दोंमे जिनमें विचार विभीन्नता है ऐसे मुद्दोंको प्रकाशित करें और तो उनको उछाले.

जैसे कि

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हिन्दु राष्ट्रकी घोषणा,

वेदिक शिक्षा प्रणाली,

भारतके विभाजनके लिये जिम्मेवार कौन,

महात्मा गांधी फेक महात्मा,

महात्मा गांधीकी भूलें और मुस्लिमोंका तूष्टीकरण,

जीन्नाकी छवी,

हमें स्वतंत्रता किसने दिलायी पर वृथा चर्चा,

महात्मा गांधी और शहिद भगत सिंह आमने सामने,

अहिंसा एक मीथ्या आचार,

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रधान मंत्री क्यों बनाया इस बात पर महात्मा गांधीकी भर्त्सना,

महात्मा गांधी और नहेरुके मतभेदको छिपाना,

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मूल कोंग्रेस समज़ना,

नहेरुका धर्म क्या था,

फिरोज़ गांधी मुस्लिम था,

हिन्दु धर्मकी व्याख्या,

राम मंदिर, (जो मामला न्यायालयके आधिन है),

इतिहास बदलने की अधीरता,

मुगलोंका और मुसलमानोंका मध्य युगमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार,

नहेरुवीयन कोंगीयोंने जिन घटनाओंको ट्रोल किया हो उनका प्रचार.

मुस्लिम मात्रसे और ख्रीस्ती मात्रसे नफरत फैलाना,

नरेन्द्र मोदीको सलाह सूचन,

बीजेपी नेताओंकी कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करना और उनके साथ जो विचार भेद है उसमें वे गलत है ऐसे ब्लोग बनाना,

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राष्ट्रवादीयोंका कर्तव्य है कि वे यह समज़ें कि उपरोक्त मुद्दे विवादास्पद है.

इनमेंसे;

कई मुद्देके विषयमें निर्णय पर आनेके लिये पूर्वाभ्यास करना आवश्यक है,

कई मुद्दे अस्पष्ट है,

कई मुद्दे फिलहाल प्राथमिकतामें लाना वैचारिक संकट पैदा कर सकते है,

कई मुद्दे न्यायालयाधिन है और बीजेपी सरकारके विचाराधिन है,

कई मुद्दे ठीक है तो भी वर्तमान समय उनकी स्विकृतिके लिये परिपक्त नहीं है.

ऐसे मुद्दे निरपेक्ष बहुमत होनेके कारण, देश विरोधी शक्तियां अफवाहें फैलाके जनताको गुमराह कर सकती है, और भारतके जनतंत्रको विदेशोंमे बदनाम कर सकती है. फिलहाल चर्चा करना भी ठीक नहीं.

हम, मुस्लिमोंके वर्तमान (१९४६से शुरु) या प्रवर्तमान कत्लेआम और आतंकको मुस्लिम नेताओंके नाम या और जुथोंको प्रकट करके, उन पर कटू और प्रहारात्मक आलोचना अवश्य कर सकते है. क्यों कि इन बातोंको वे नकार सकते नहीं. हमने इन बातोंसे पूरी मुस्लिम जनताको तो कुछ कहा नहीं है. इसलिये वे इन कत्लेआमको अपने सर पर तो ले सकते नही है.

दलित और सवर्ण एकता कैसे बनायें?

वैसे तो यह समस्या सियासती है. फिर भी विपक्षके फरेबी प्रचारके कारण इसकी चर्चा करनी पडेगी.

विपक्षका प्रयास रहा है. विपक्षी शक्तियां, सवर्ण को भी अनामतके आधार पर क्षत्रीय, जाट, यादव, जैन, बनीया, भाषा और विस्तारके विशिष्ठ दरज्जाके आधार पर लोगोंको विभाजित किया जाय.

इनके विभाजनको रोकनेके लिये बीजेपीको, लेखकों, कवियों, हिन्दु धर्मगुरुओंको और महानुभावोंको (सेलीब्रीटीज़को) भी आगे करना पडेगा. इन लोगोंको समज़ाना पडेगा कि अनामतके लिये विभाजित होना ठीक नहीं है क्यों कि अनामत ४९ प्रतिशतसे अधिक नहीं हो सकता. और वैसे भी अनामतकी आवश्यकता तब पडती है जब आबंटनकी संख्या कम हो और ईच्छुक अधिक हो. यह समस्या वैसे भी विकाससे हल होने वाली ही है.

विपक्ष हिन्दुओंके मतोंको निस्क्रिय करके उनका असर मत विभाजनके समकक्ष बनाता है. विपक्षका यह एक तरिका है, सामान्य कक्षाके हिन्दुओंको निस्क्रिय करना. आम मनुष्य हमेशा हवाकी दीशामें चलता है. यदि विपक्ष, बीजेपी के लिये ॠणात्मक हवा बनानेमें सफल होता है तो सामान्य कक्षाका मनुष्य निराश होकर निस्क्रिय हो जाता है और वह मतदान करनेके लिये जाता नहीं है.

नहेरुवीयन कोंगी की सहयोगी मीडीया बीजेपीका नकारात्मक प्रचार करती है और उसके लिये ॠणात्मक वातावरण पैदा करनेका काम करती है.

 शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासन कालमें बभम बभम ही चलाता था. और बाबा राम देवकी सत्याग्रहकी  छावनी रातको पोलिसने छापा मारा था, नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकालमें, अभिषेक मनु सिंघवी याद करो जिनके, तथा कथित ड्राइवरने उनकी एक लेडी वकिलके साथ रेपके संबंधित  वीडीयो बनाई थी और वह सोसीयल मीडीया पर  भी चली थी. यह तो “दंड-संहिता” के अंतर्गत वाला मामला था. लेकिन न तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी सरकारने न तो अभिषेक मनु संघवीके उपर कोई कदम उठाया न तो इस महाशयने ड्राईवर के उपर कोई दंड-संहिताका मामला दर्ज़ किया. आपस आपस में सब कुछ जो निश्चित करना था वह कर लिया.

और ऐसा जिसका शासन था, वह अभिषेक मनु सिंघवी इस बीजेपीके शासनकालको अघोषित आपात्‌ काल कहेता है. जिसमें सारा विपक्ष असंस्कारी भाषामें बीजेपीके नेताओंको उछल उछल कर गाली देता है. ये नहेरुवीयन कोंग्रेस नेता गणके शब्द कोषमें शब्दकोषकी परिभाषा  ही अलग है. जयप्रकाश नारायणने १९७४में  इस नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आराध्या के बारेमें कहा था कि उसका ही शब्द कोष “हम्टी-डम्टी” का शब्द कोष जैसा है.  और आज भी नहेरुवीयन कोंग्रेसका शब्द कोष वही रहा है. 

रेप चाहे लेडी वकील पर करो या भाषा पर करो, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताको क्या फर्क है?

abhisek singhvi

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

जाति आधारित राज्य रचनाकैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये?

हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जातिआधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये)

तो चलो हम आगे बढें

नहेरुवीयन तुम आगे बढो

एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुवीयन कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेससे मतलब है नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, उसके विद्वान लेखकगण और उसके समर्थक मतदाता गण)  “जैसे थे वादीहै. और यह तथ्य सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है. यदि बीजेपी का कोई भी नेता या बीजेपीके समर्थक गुटका कोई भी नेता सिर्फ एक निवेदन कर दें किआरक्षणके प्रावधान पर पुनर्विचारणा आवश्यक है, और इसके उपर बीजेपीके नेतागण मौन रहे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसका चूनाव जीतनेका काम हो ही गया. लेकिन हम जानते है कि बीजेपीको भी चूनाव जीतना है, लिये वह आरक्षण के विरुद्ध नहीं बोलेगी.

तो अब कया किया जाय?

() नहेरुवीयन कोंग्रेसमें वैसे तो हर जातिके लोग है. उनसे उन जातिके नेताओंका पता लगाओ. उनको कैसे अपने पक्षमें लेना इस बातमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेस अनुभवी है. उनसे अपनी जातिके लिये आरक्षणका आंदोलन करवाओ. उस नेताको बोलो कि आंदोलनमें कमसे कम ५०००० से १००००० की संख्या तो होने ही चाहिये. जो जितनी जनसंख्या आंदोलनमें लायेगा उसको प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाबसे ५०० रुपये मिलेगा. मान लो कि एक लाख जनसंख्या हुई तो पांच करोड रुपये खर्च हुए.

(.) युपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, कर्नाटक, ओरीस्सा, तामिलनाडु, केराला, महाराष्ट्र, इन राज्योंमें ही आंदोलन करनेका है. हरेक के दो, तीन बडे नगरोंमें ही करनेका. एक समयके आंदोलनका पचास करोड रुपये हुए. दस बार आंदोलन करवाया तो पांच हजार करोड रुपये हुए. यह कोई ज्यादा पैसा नहीं हुआ. इससे दो गुना तो माल्याने बेंकका लोन लिया था जो आज तक भरा नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये तो यह बडी बात है ही नहीं.

() मीडीया वाले, नहेरुवीयन कोंग्रेसको खुश होकर सहयोग करेंगे क्यों कि, इसमें उनको भी तो लाभ है. भूतकालमें भी मीडीयाकर्मीयोंने खूब लाभ करवाया है. जातिवादसे भारतको कैसे कैसे लाभ किया उस पर आप चेनलोंमें चर्चा चालु करें. यदि कहीं भी मौत होती है या अत्याचार होता है तो वह व्यक्ति कौनसी जातिका है उसके उपर चर्चा करें. आपके पास तो असामाजिक तत्त्वोंकी कमी तो है ही नहीं. तत्वोंको बीजेपीमें, बजरंग दलमें, विश्वहिन्दु परिषदमें भर्ती कराओ. फिर उनको बोलो कि वे उन जातिके व्यक्तिओंको चूने जो आपके द्वारा बनाई हूई सूचीमें आरक्षणके लिये समाविष्ठ है और गरीब भी है. एक सप्ताहमें सात जिलेमें हररोज एक अत्याचार करवाओ. और हररोज चेनलमें इस अत्याचारके विरुद्ध चर्चा चलाओ. मीडीयावाले भी खुश रहेंगे क्यों कि उनको घर बैठे मसाला मिल जायेगा और चर्चा का मौका भी मिल जायेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण बीजेपीके शासनकी भर्त्सना करते रहेंगे. ये लोग दलित जातियोंके प्रति ही नहीं किन्तु हर गरीब जनताके प्रति बीजेपी कितनी संवेदन हीन है और नहेरुवीयन कोंग्रेस कितनी प्रतिबद्ध है यह बात लगातार बोलते रहेंगे. साथ साथ गरीबोंके हितके लिये राज्योंकी पूनर्र्चनाकी बात भी चलती रहेगी. नहेरुवीयन कोंग्रेस पैसे खर्च करनेमें सक्षम है, गुजरातके ४४ एमएलए को हवाई जहाजमें बैठाके हजार मील दूर रीसोर्टमें कैसा मजा करवाया यह बात तो हम जानते ही है.

() नहेरुवीयन कोंग्रेसको जनताको भरोसा दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चना में उनकी जातिका पूरा ध्यान रखा जायेगा. मुस्लिम जनताको और ख्रिस्ती जनताको भी अहेसास दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चनामें उनको लाभ ही लाभ होगा.

() नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रचार करेगी कि जाति आधारित राज्य रचनासे हरेक जातिका संस्कार, संस्कृति और विकासके द्वार खूल जायेंगे. इस काम के लिये नहेरुवीयन कोंग्रेस जनगणना करवायेगी ताकि हरेक जातिको और धर्मको विकसित होनेका अवसर मिले.

() जनगणना कैसे होगी?

(.) आपके लिये सर्व प्रथम क्या है. धर्म, जाति, भाषा या देश?

(.) जो लोग देश लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग धर्म लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग जाति लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) जो लोग भाषा लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) भाषामें तीन प्राथमिकता रहेगी. मातृभाषा, हिन्दी या तमील, अंग्रेजी.

(.) हर हिन्दु व्यक्ति अपना धर्म, जाति, उपजाति, उपउप जाति, उपउपउपजाति, गोत्र, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गुरु आदि के बारेमें सरकारको माहिति देगा.

(.) हर मुस्लिम व्यक्तिको लिखवाना पडेगा कि वह सिया, सुन्नी, अहेमदीया, सुफी, दिने इलाही, वहाबी, शरियती, या जो भी कुछ भी हो वह है.

(.) हर ख्रिस्ती व्यक्तिको मुस्लिमोंकी तरह अपनी माहिति देगा.

(.४९ अन्य धर्मवाले भी ऐसा ही करेंगे.

ये सब माहिति गुप्त रखी जायेगी.

()  इस प्रकारकी जनगणनाके बाद उनका वर्गीकरण किया जायेगा, हरेक वर्गका उपवर्गीकरण, उपवर्गका उपउपवर्गीकरण, उपउपवर्गीकरणका उपउपउप वर्गीकरण किया जायेगा.

() हर प्रकारके वर्गीकरणकी जनसंख्या निकाली जायेगी.

() मुख्य वर्गधर्मरहेगा. धर्मके आधार पर राज्य बनाया जायेगा.

() धर्मका एक दुसरेके साथ प्रमाणका कलन किया जायेगा. भारतकी कुलभूमिमें हर धर्मके हिस्सेमें कितनी भूमि आयेगी उसका कलन किया जायेगा.

यक्ष राज्य

(१०) जिन्होनेंसर्व प्रथम देशलिखा है उनके लिये सीमा वर्ती विस्तार रहेगा. इस प्रकार, राजस्थान, गुजरात, कोंकण, कर्नाटककेराला, तमीलनाडु, ओरीस्सा, पश्चिम बंगाल, पूरा उत्तरपूर्व, हिमालयसे संलग्न विस्तार, पूरा जम्मु और काश्मिर राज्य इन सब राज्योंको मिलाके सीमा रेखासे २५० किलोमीटर अंदर तक के विस्तारवाला यक्षराज्य बनेगा. यक्षराज्यसे मतलब है सीमाका राज्य.

(११) यक्षराज्यकी सुरक्षा रेखा पर सुरक्षा सेना के निवृत्त कर्मचारीयोंको बसाया जायेगा.

(१२) यक्ष राज्य पूरा केन्द्र शासित राज्य रहेगा.

हिन्दु राज्य

(१३) यक्ष राज्यके पीछेहिन्दु राज्य आयेगा. हिन्दु राज्यमें जातिके आधारपर जिल्ले बनेंगे. हर जिल्लेमें जातिके उपजाति के आधार पर तहेसील बनेंगे. हर तेहसीलमें गोत्रके आधार पर नगर और ग्राम बनेंगे. एक नगरमें या ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेंगे. एक गोत्र इसलिये कि, समान  गोत्रमें शादी नहीं हो सकता. एक गोत्रकी कन्या और वही गोत्रका दुल्हा एक दूसरेके बहेन और भाई बनते है. इस प्रकार कन्याओंको सुरक्षा प्रदान होगी. क्यों कि कोई अपनी बहेनको छेडता नहीं.

प्रकीर्ण धर्म राज्य

(१४) हिन्दु राज्यके पीछे जिन्होनेंप्रकिर्ण धर्म वाले मतलब कि यहुदी, अन्य बिनख्रिस्ती, बिनमुस्लिम धर्म वाले आयेंगे. जिनके धर्मके आधार पर जिल्ला और या तहेसील और या नगर/ग्राम बनेंगे.

ख्रिस्ती राज्य

(१५) प्रकीर्ण धर्म राज्यके पीछे ख्रिस्ती राज्य आयेगा. ख्रिस्ती धर्मके वर्गीकरणके हिसाबसे उनके जिल्ला, तेहसील और नगर/ग्राम रहेंगे.

मुस्लिम राज्य

(१५) ख्रिस्ती राज्यके पीछे मुस्लिम राज्य आयेगा. मुस्लिम धर्मके आंतरिक वर्गीकरण के हिसाब से उसके राज्यमें जिल्ला, तहेसील, नगर/ग्राम आदि बनेंगे.

भाषा प्रथमका क्या?

(१६) जिन्होनेभाषा प्रथमलिखाया है उनको केन्द्रसे यक्षराज्य और हिन्दु राज्यकी सीमासे लेकर भौगोलिक केन्द्र तक एक यथा योग्य चौडाईवाला विस्तार अंकित किया जायेगा उसमें भीन्न भीन्न भाषा प्राधान्यवाले का विस्तार आयेगा.

(१७) हरेक धर्मराज्यको आर्टीकल ३७०की सुविधा मिलेगी.

देशका धर्मजाति आधारित पूनर्र्चनाका सैधांतिक चित्र देखो. और भारतका प्रास्तावित चित्र भी देखो.

india राज्य

india

ध्रर्मजाति आधारित राज्यके लाभ

() धर्म, जाति और भाषाको लेकर आंतरिक युद्धकी शक्यताका निर्मूलन

() जाति आधारित आरक्षणकी समस्याका निर्मूलन

() आतंकवादका निर्मूलन आसान

() काश्मिरकी आतंरिक समस्याका निर्मूलन

() नये राज्योंकी मांग अशक्य

() मतबेंककी सियासत नष्ट,

धर्म और जाति आधारित राज्यों की समस्याएं क्या हो सकती है? और उनको कैसे हल किया जाय?

() जनताका स्थानांतरणः कोम्प्युटरकी मददसे प्रवर्तमान नगर और ग्राममें मकानका विस्तार और संख्यामें उपलब्धता और धर्मके आधार पर वर्गीकृत व्यक्तिओंकी उचितताके आधार पर आबंटन.  और उस आधारपर सरकार द्वारा आयोजन करके स्थानांतरण.

() एक नगर/ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेते है तो शादीकी समस्या कैसे हल की जाय? शादीईच्छुक लोगोंकी और वाग्दत्त/वाग्दत्ताओंकी आवन जावन बढेगी तो सरकारका टेक्ष टीकीटों द्वारा राजस्व बढेगा.

() एक धर्मके लोगोंका अन्य राज्यमें धार्मिक स्थल है. इससे राज्यका पर्यटन व्यवसाय बढेगा.

() सभी राज्य क्लोझ्ड सरकीटमें है, इसलिये क्लोझ्ड सरकीट मार्गव्यवहार बढेगा और देशकी तरक्की होगी. व्यवसायमें वृद्धि होगी

() एक ही जातिके लोग परस्पर झगडेंगे इस कारण जनताका एक ही उपउपउप ज्ञातिमें और विभाजन होगा, तो इससे नये नगर बनेंगे और विकास होगा. नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसे विभाजनोंका लाभ ले सकती है. इस लिये नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारको क्षति नहीं आयेगी.

() जिस व्यक्तिका राज्य पूनर्रचनाके बाद जन्म हुआ वह जब वयस्क हुआ तो वह अपनी पसंदका राज्य कर सकता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः नहेरुवीयन कोंग्रेस, मीडीयाकर्मी, लेखक, विद्वान, सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, धर्म, जाति, भाषा, उप, उप-उप, उप-उप-उप, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गोत्र, यक्ष, हिन्दु, राज्य, प्रकिर्ण, ख्रिस्ती, मुस्लिम, यहुदी

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

“जातिवाद आधारित राज्य रचना” की मांग रक्खो

जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये, प्रवर्तमान समय एक अतिसुनहरा मौका है. सिर्फ नहेरुवीय कोंग्रेस ही नहीं लेकिन उसके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये भी यह एक सुनहरा मौका है. इस मुद्देका लाभ उठा के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता भी प्राप्त कर सकती है.

आप पूछोगे कि ऐसा कौनसा मुद्दा है जिस मुद्देको उछाल के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है?

अब आप एक बात याद रख लो कि जब भी हम “नहेरुवीयन कोंग्रेस” शब्दका प्रयोग करते है आपको इसका निहित अर्थ “नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष और उसके सांस्कृतिक साथी” ऐसा समज़ना है. क्यों कि समान ध्येय, विचार और आचार ही तो पक्षकी पहेचान है.

तो अब हम बात आगे चलावें

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरु वंशको आगे बढाना है, नहेरुवीयन वंशज के लिये सत्ता प्राप्त करना है ताकि वे सत्ताकी मौज लेते रहे और अन्य लोग स्वंयंके परिवार और पीढीयोंकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और सुख के लिये पैसा कमा सके.

तो अब क्या किया जाय?

देखो, अविभक्त भारतमें हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंकी समस्या थी. तो नहेरुने हिन्दु राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रके फेडर युनीयनको नकार दिया और पाकिस्तान और भारत बनाया. लेकिन कुछ समय बाद मतोंकी भाषा राष्ट्रभाषा और राज्य भाषाकी समस्याओंका महत्व सामने आया. तो हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने)  भाषाके आधार पर राज्योंकी रचना की.

अब इसमें क्या हूआ कि हिन्दु-मुस्लिम झगडोंकी समस्या तो वहींकी वहीं रही लेकिन इस समस्या पर आधारित अन्य समस्याएं भी पैदा हूई. उसके साथ साथ भाषा के आधार पर और समस्याएं पैदा होने लगी. भूमि-पुत्र और जातिवाद आधारित समस्याएं भी पैदा होने लगी.

आप कहेंगे कि क्या इन समस्याओंका समाधान करने की नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोशिस नहीं की?

अरे वाह !! आप क्या बात कर रहे हो? नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो अपने तरीकेसे समस्याका हल करनेका पूरी मात्रामें प्रयत्न किया.

नहेरुवीयन तरीका क्या होता है?

कोई भी समस्या सामने आये तो उसको अनदेखा करो. समस्या कालचक्रमें अपने आप समाप्त हो जायेगी…

अरे वाह !! यह कैसे?

देखो हिन्दु-मुस्लिम समस्याको हल ही नहीं क्या. इसके बदले नहेरुने जीन्नाके साथ झगडा कर दिया. फिर हिन्दुस्तान पाकिस्तान हो गया. और हिन्दु-मुस्लिम झगडा तो कायम रहा.

समस्याका समाधान

तिबट अपनी आझादी बचाने के लिये संघर्ष कर रहा था. हमारी समस्या थी कि तिबटकी सुरक्षा कैसे करें !! तो नहेरुने चीनके साथे दोस्ती करके तिबट पर चीनका प्रभूत्व मान लिया. लेकिन एक और समस्या पैदा हुई कि चीन हमारे देशकी सीमाके पास आ गया और उसने घुसखोरी चालु की. तो नहेरुने पंचशील का करार किया. तो कालक्रममें चीनने भारत पर आक्रमण कर दिया. जरुरतसे ज्या भूमि पर कब्जा कर दिया. तो हमारा पूराना सीमा विवाद तो रहा नहीं. वह तो हल हो गया. नया सीमा विवादका तो देखा जायेगा. तिबटकी समस्या हमारी समस्या रही ही नहीं.

पाकिस्तान हमारा सहोदर है. पाकिस्तानमें आंतरविग्रह हुआ तो पूर्वपाकिस्तानसे घुस खोर लाखोंकी संख्यामें आने लगे. तो हमारे लिये एक समस्या बन गई. इन्दिरा गांधीने यह समस्या प्रलंबित की. तो पाकिस्तानने भारतकी हवाई पट्टीयों पर आक्रमण कर दिया. हमारी सेनाने पाकिस्तानको परास्त किया तो भारतको घुसखोरोंके साथ साथ ९००००+ युद्ध कैदीयोंको खाने पीनेका इंतजाम करना पडा. सिमला करार किया और युद्ध कैदी पश्चिम पाकिस्तानको ही परत कर दिया. तो कालचक्रमें आतंकवाद पैदा हो गया. तो हिन्दु लोग विस्थापित हो गये. उनका पूनर्वसनकी समस्या पैदा गई. होने दो. ऐसी समस्याएं तो आती ही रहती है. विस्थापित हिन्दुओंकी समस्याको नजर अंदाज कर दो. हिन्दु लोग अपने आप निर्वासित कैंपसे कहीं और जगह अपना मार्ग ढूंढ लेगे. नहेरुवीयनोने कुछ किया नहीं. आतंकी मुस्लिम लोग भारतमें घुसखोरी करने लगे और बोंब ब्लास्ट करने लगे. आतंकी मुस्लिम अपना अपना गुट बनाने लगे. स्थानिक मुस्लिमोंका सहारा लेने लगे. उनको गुट बनाने दो हमारा क्या जाता है. एक समस्या को हल नहीं करनेसे कालांतरमें अनेक और समस्याएं पैदा होती है. और मूल समस्याका स्वरुप बदल जाता है. तो उसको नहेरुवीयन लोग समाधान मान लेते है और मनवा लेते है.

जातिवादी समस्या भी ऐसी ही थी. अछूतोंके लिये आरक्षण रक्खा. अछूतोंका उद्धार नहीं किया लेकिन उनके कुछ नेताओंका उद्धार किया. और आरक्षण कायम कर दिया. तो और जातियां कहेने लगी हमें भी आरक्षण दो. नहेरुवीयनोंने एक पंच बैठा दिया और जिनको भी आरक्षण चाहीये वे अपनी जातिका नाम वहां दर्ज करावें. अब आरक्षणका व्याप बढने लगा. जिसने भारत पर दो शतक राज्य किया वे मुस्लिम लोग कहेने लगे हम भी गरीब है हमें भी आरक्षण दो. तो नहेरुवीयनोंने कहा कि तुम्हे अकेलेको आरक्षण देंगे तो हम तुम्हारा तुष्टी करण करते है ऐसा लोग कहेंगे. इस लिये उन्होने “लघुमति”के लिये विशेष प्रावधान किये. रामके वंशज रघुवंशी कहेने लगे हमे भी आरक्षण दो. क्रुष्णके वंशज यादव कहेने लगे हमें भी आरक्षण दो. अब जब भगवानके वंशज आरक्षण मांगने लगे तो और कौन पीछे रह सकता है?

जटने बोला हमें भी आरक्षण दो. महाराष्ट्रके ठाकुरोंने बोला कि हमें भी आरक्षण दो. अब हुआ ऐसा कि कमबख्त सर्वोच्च अदालतने कहा कि ४९ प्रतिशतसे अधिक आरक्षण नहीं दे सकते. तो अब क्या करें?

आरक्षण, हिन्दु-मुस्लिम और हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याओंका कोई पिता है तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस है. उसको सहाय करने वाले भी अनेक बुद्धिजीवी है उनका एजंडा भी नहेरुवीयनोंकी तरह “जैसे थे”-वादी है. ये लोग वास्तवमें दुःखी जीवनका कारण पूर्वजन्मके पाप मानते है इसलिये समस्याके समाधान पर ज्यादा चिंता करना आवश्यक नहीं है. सब लोग अपनी अपनी किस्मत लेके पैदा होते है. इसलिये समस्याओंका समाधान ईश्वर पर ही छोड दो. ईश्वरके काममें हस्तक्षेप मत करो.

लेकिन हमसे रहा नहीं जाता है. हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका आदर करते है. कटूतासे हम कोसों दूर रहते है. त्याग मूर्ति नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्ता प्राप्त करनेका और वह भी यावतचंद्र दिवाकरौ तक उसीके पास सत्ता रहे ऐसा रास्ता हम दिखाना चाहते है.

यह रास्ता है कि नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसी छूटपूट जातिवादी आधारित आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षणके बदले धर्म और जाति आधारित “राज्य रचना”की मांग पर आंदोलन करें. ऐसा आंदोलन करनेसे उसको सत्ताकी प्राप्ति तो होगी ही, उतना ही नहीं, धर्म आधारित और जाति अधारित राज्य रचनासे हिन्दु-मुस्लिम समस्याएं, हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याएं, मुस्लिम-ख्रिस्ती समस्याएं, भाषा संबंधित समस्याएं जातिवादी समस्याएं, आरक्षण संबंधी समस्याएं, आर्टीकल “३५-ए” संबंधित समस्या, आर्टीकल ३७० संबंधित समस्या, पाकिस्तान हस्तक काश्मिर समस्या, आतंकी समस्या, पत्थरबाज़ोकी समस्या आदि कई सारी समस्याएं नष्ट हो जायेगी.

आप कहोगे ऐसा कैसे हो सकता है?

आप कहोगे भीन्न भीन्न जातिके, भीन्न भीन्न धर्मके लोग तो बिखरे पडे है और राज्य तो भौगोलिक होगा है. धर्म और जाति आधारित राज्य रचना करनेमें ही अनेक समस्याएं पैदा होगी. और यदि ऐसी राज्य रचना हो भी गई तो इसके बाद भी कई प्रश्न उठेंगे जिनका समाधान असंभव है. यदि आप समास्याओंके समाधानके लिये नहेरुवीयन तरीका अपनावें तो ठीक है लेकिन आपको पता होना चाहिये कि समस्याको हल ही नहीं करना, समस्याका समाधान नहीं है. मान लो कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने जाति आधारित और धर्म आधारित राज्य रचनाके मुद्दे पर आंदोलन चलाया और सत्ता प्राप्त भी कर ली, तो वह कैसे जाति और धर्म पर आधारित राज्य रचना करेगी. यदि आप नहेरुवीयन कोंग्रेसकी अकर्मण्यता पर विश्वास करते है तो आप दे सकते है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसका क्या हाल हुआ. समस्याका समाधान किये बिना नहेरुवीयन कोंग्रेस अब सत्ता पर नहीं रह सकती.

अरे भाई, हम अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका उद्धार करनेके लिये प्रतिबद्ध है और हम उसको एक क्षति-रहित फोर्म्युला वाली सूचना देना चाहते है.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२

सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२

असत्यवाणी नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंका धर्म है

यह कोई नई बात नहीं है. नहेरुने खुदने चीनी सेनाके भारतीय भूमिके अतिक्रमणको नकारा था. तत्पश्चात्‌ भारतने ९२००० चोरसवार भूमि, चीनको भोजन-पात्र पर देदी थी. ईन्दिरा गांधी, राजिव गांधी आदिकी बातें हम २५ जूनको करेंगे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेस अलगतावादी मुस्लिम नेताओंसे पीछे नहीं है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने सांस्कृतिक फरजंदोंसे सिखती भी है.

यह कौनसी सिख है?

शिवसेना नहेरुवीयन कोंग्रेसका फरज़ंद है.

जैनोंके पर्युषणके पर्व पर मांसकी विक्री पर कुछ दिनोंके लिये रोक लगाई तो शिवसेनाके कार्यकर सडक पर उतर आये. और उन्होंने इस आदेशके विरोधमें मांसकी विक्री सडक पर की. (यदि वेश्यागमन पर शासन निषेध लाता तो क्या शिवसेनावाले सडक पर आके वेश्यागमन करते?)

गाय-बछडेका चूनाव चिन्हवाली नहेरुवीयन कोंग्रेसने शिवसेनासे क्या सिखा?

नहेरुवीयन कोंग्रेसको शिवसेनासे प्रेरणा मिली.

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यह बात नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारके अनुरुप है. नहेरुवीयन कोंग्रेसने चिंतन किया. निष्कर्ष निकाला कि गौवध-बिक्री-नियमन वाला विषय उपर प्रतिकार करना यह मुस्लिमोंको और ख्रीस्तीयोंको आनंदित करनेका अतिसुंदर अवसर है.

केन्द्र सरकारने तो गौ-वंशकी यत्किंचित प्रजातियोंकी विक्रीके नियमोंको सुग्रथित किया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यथेच्छ रक्खी क्षतियोंको दूर किया ताकि स्वस्थ और  युवापशुओंकी हत्या न हो सके.

अद्यपर्यंत ऐसा होता था कि कतलखाने वाले, पशुबिक्रीके मेलोंमेंसे, बडी मात्रामें  पशुओंका क्रयन करते थे. और स्वयंके निश्चित चिकित्सकोंका प्रमाणपत्र लेके हत्या कर देते थे.

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आदित्यनाथने अवैध कतलखानोंको बंद करवाया तो नहेरुवीयन कोंग्रेसवालोंने और उनके सांस्कृतिक साथीयोंने कोलाहल मचा दिया और न्यायालयमें भी मामला ले गये कि शासक, कौन क्या खाये उसके उपर अपना नियंत्रण रखना चाहता है. अधिकतर समाचार माध्यमोंने भी अपना ऐसा ही सूर निकाला.

बीजेपीने गौ-वंशकी यत्किंचित प्रजातियोंकी विक्रीके नियमोंको सुग्रथित करनेवाला जो अध्यादेश जारी किया तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको लगा कि कोमवाद फैलानेका यह अत्याधिक सुंदर अवसर है.

केरलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई सदस्य सडक पर आ गये. एक बछडा भी लाये. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने बछडेको सरे आम काटा भी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने बछडेके मांसको सडक पर ही एक चूल्हा बनाके अग्निपर पकाया भी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने इस मांसको बडे आनंदपूर्वक खाया भी.

भोजनका भोजन विरोधका विरोध

अपने चरित्रके अनुरुप नहेरुवीयन कोंग्रेस केवल जूठ ही बोलती है और जूठके सिवा और कुछ नहीं बोलती. तो अन्य प्रदेशके नहेरुवीयन नेताओंने तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है और बीजेपी व्यर्थ ही नहेरुवीयन कोंग्रेसको बदनाम कर रही है ऐसे कथन पर ही अडे रहे. लेकिन जब यह घटनाकी वीडीयो क्लीप सामाजिक माध्यमों पर और समाचार माध्यमों पर चलने लगी तो उन्होंने बडी चतुराईसे शब्द प्रयोग किये कि “केरलमें जो घटना घटी उसकी हम निंदा करते है. ऐसी घटना घटित होना अच्छी बात नहीं है चाहे ऐसी घटना बीजेपीके कारण घटी हो या अन्योंके कारण. हमारे पक्षने ऐसे सदस्योंको निलंबित किया है.” नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण घटनाका विवरण करनेसे वे बचते रहे. एक नेताने कहा कि हमने सदस्योंको निलंबित किया है. अन्य एक नेताने कहा कि हमने निष्कासित किया है. क्या नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण अनपढ है? क्या वे सही शब्दप्रयोग नहीं कर सकते?

मस्जिदमें गयो तो ज कोन

केरलकी सरकार भी तो साम्यवादीयोंकी गठबंधनवाली सरकार है. सरकारने कहा कि “हमने कुछ  व्यक्तियोंपर धार्मिकभावना भडकानेवाला केस दर्ज किया है.

साम्यवादी पक्षके गठबंधनवाली सरकार भी नहेरुवीयन कोंग्रेससे कम नहीं है. वास्तवमें यह किस्सा केवल धार्मिक भावना भडकानेवाला नहीं है. केरलकी सरकारके आचार पर कई प्रश्नचिन्ह उठते है.

कौन व्यक्ति पशुकी हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति पशु की हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति कोई भी स्थान पर पशुकी हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति किसी भी अस्त्रसे पशुकी हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति कहीं भी चुल्हा जला सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति कहीं भी खाना पका सकता है?

वास्तवमें पशुओंको काटनेकी आचार संहिता है. यह आचार संहिता कतलखानोंके नियमोंके अंतर्गत निर्दिष्ट है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस एक, ठग-संगठन है. जनतंत्रमें अहिंसक विरोध प्रदर्शित करना एक अधिकार है. किन्तु कानूनभंगका अधिकार नहीं है. सविनय कानूनभंग करना एक रीति है. किन्तु उसमें आपको शासनको एक प्रार्थनापत्र द्वारा अवगत कराना पडता है कि आप निश्चित दिवस पर, निश्चित समयपर, निश्चित व्यक्तिओं द्वारा, निश्चित नियमका, भंग करनेवाले है. नियमभंगका कारणका विवरण भी देना पडता है. और इन सबके पहेले शासनके अधिकृत व्यक्ति/व्यक्तियोंसे चर्चा करनी पडती है. उन विचारविमर्शके अंतर्गत आपने यह अनुभूति हुई कि शासनके पास कोई उत्तर नहीं है, तभी आप सविनय नियमभंग कर सकते है. जब नहेरुवीयन कोंग्रेसके शिर्षनेताओंको भी महात्मागांधीके सविनय कानूनभंगकी प्रक्रिया अवगत नहीं है तो इनके सिपोय-सपरोंको क्या खाक अवगत होगा? केरलकी घटना तो एक उदाहरण है. ऐसे तो अगणित उदाहरण आपको मिल जायेंगे.

नहेरुवीयन कोंग्रेस करनेवाली है मानवभ्रूणका भोजन-समारंभ

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मानवभ्रुणके मांसके भोजन के लिये भी आगे आना चाहिये. साम्यवादी लोग, नहेरुवीयन कोंग्रेसको अवश्य सहयोग करेंगे, क्यों कि, चीनमें मानवभ्रुणका मांस खाया जाता है. साम्यवादी लोगोंका कर्तव्य है कि वे लोग चीन जैसे शक्तिशाली देशकी आचार संहिताका पालन करें वह भी मुख्यतः जिन पर भारतमें निषेध है. और नहेरुवीयन कोंग्रेस तो साम्यवादीयोंकी सांस्कृतिक सहयोगी है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रेरणास्रोत

तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजा तो मुसलमानोंके प्रेरणास्रोत है. ऐसे मुसलमान कोई सामान्य कक्षाके नहीं है. आप यह प्रश्न मत उठाओ कि तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजाओंने तो हमारे मुसलमान भाईओंके पूर्वजोंका कत्ल किया था. किन्तु यह बात स्वाभाविक है जब आप मुसलमान बनते है तो आपके कोई भारतीय पूर्वज नहीं होते, या तो आप आसमानसे उतरे है या तो आप अरबी है या तो आप अपने पूर्वजोंकी संतान नहीं है. इसी लिये तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजा आपके प्रेरणास्रोत बनते है. यदि आप सीधे आसमानसे उतरे हैं तो यह तो एक चमत्कार है. किन्तु मोहम्मद साहब तो चमत्कारके विरुद्ध थे. तो आप समज़ लो कि आप कौन है. किन्तु इस विवादको छोड दो. ख्रीस्ती लोग भी मुसलमान है. क्यों कि मुसलमान भी ईसा को मसिहा मानते है. या तो मुसलमान, ख्रीस्ती है, या तो ख्रीस्ती, मुसलमान है. जैसे वैष्णव लोग और स्वामीनारयण लोग हिन्दु है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथीयोंको मुसलमानोंका अपूर्ण कार्यको, पूर्ण करना है, इस लिये उनका कर्तव्य बनता है कि जो कार्य मुसलमानोंने भूतकालमें किया उसीको नहेरुवीयन कोंग्रेस आगे बढावे. मुसलमानोंने सोमनाथके मंदिरको बार बार तोडा है. हिन्दुओंने उसको बार बार बनाया है. तो अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका धर्म बनता है कि वे पूनर्स्थापित सोमनाथ मंदिरको भी ध्वस्त करें.

देशको तो तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमानोंने लूटा था. अंग्रेजोने भी लूटा था. नहेरुवीयन कोंग्रेस ६० वर्षों तक लूटती ही रही है, किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने अभीतक सोमनाथ मंदिर तोडा नहीं है. तो अब नहेरुवीयन कोंग्रेस वह भी तोडके बता दें कि वह अल्पसंख्यकोंके प्रति कितनी प्रतिबद्ध है.

शिरीष मोहनलाल दवे

 

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सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१

सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१

यदि आप बछडेकी सरे आम और वह भी सडक पर हत्या कर सकते है और बछडेके मांसको पका सकते है और मांसका वितरण कर सकते है और भोजन समारंभ कर सकते है तो अब तुम कई सारे कार्य कर सकते हो. सोमनाथका मंदिर तोडने के लिये आगे बढो. प्रदर्शन करना, कानुन भंग करना जनतंत्रमें आपका अधिकार है.

लोग पूछेंगे आप किससे बात कर रहे हो? कौन तोडेगा सोमनाथका मंदिर?

नहेरुवीयन कोंग्रेस ही सोमनाथका मंदिर तोड सकती है. सामान्य मुसलमान लोगोंके लिये यह बसकी बात नहीं है. यदि नहेरुवीयन कोंग्रेस द्वारा सोमनाथका मंदिर तोडा जाय तो भारतके अधिकतर मुसलमान अवश्य आनंदित होगे. पाकिस्तान के लोग भी आनंदित होगे. इससे पाकिस्तान और हिंदुस्तानके संबंधोंमे सुधार आयेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसका और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका ध्येय मुसलमानोंको आनंदित करना ही तो है.

“दो बैलोंकी जोडी”

गाय के ब्रह्मरंध्रके हिस्सेमें परमेश्वरका वास है. वैसे तो गायमें सभी देवताओंका वास है. किन्तु सबसे वरिष्ठ, ऐसे देवाधिदेव महादेव ब्रह्मरंध्रमें बिराजमान है. देवताओंके अतिरिक्त सप्तर्षियोंका भी वास है. गाय का दूध, गोबर और मूत्र, औषधि माना जाता है. हमारे बंसीभाई पटेल, कुछ वर्षोंसे केवल गायके दूध पर ही जीवन व्यतित कर रहे हैं. वे ९५ वर्षके है और तंदुरस्त है.

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महात्मा गांधीकी कार्य सूचिमें मदिरा-निषेधके पश्चात्‌ गौ-वंश वध निषेध आता था. उसके पश्चात्‌ स्वावलंबन और अहिंसा आदि “मेरे स्वप्नका भारत और हिन्द स्वराज”में लिखी गई कार्य सूचिमें आते थे.

नहेरुको महात्मा गांधीकी यह मानसिकता पसंद नही  थी. किन्तु नहेरुका कार्य सूचिमें प्रथम क्रम पर सत्ता, और उसमें भी सर्वोच्च शक्तिमान प्रधानमंत्री पद था. यदि वे निर्भय होकर सामने आते और “मनकी बात” प्रदर्शित करते तो उनके लिये प्रधानमंत्रीका पद आकाशकुसुमवत बन जाता.

इस कारणसे नहेरुने महात्मा गांधीका कभी भी विरोध नहीं किया.

भारतीय संविधानमें ही मदिरा-निषेध, गौवध-निषेध और अहिंसक समाजकी स्थापना, ऐसे कर्य-विषयोंका समावेश किया जाय ऐसी महात्मा गांधीकी महेच्छा थी. ये बातें महात्मागांधीके “हिन्द-स्वराज्य”में स्पष्ट रुपसे लिखित है. संविधानकी रचनाके कालमें तो कई सारे महात्मा गांधीवादी, विद्यमान थे. नहेरुने तो कोई संविधान लिखा नहीं. हां नहेरुने भारतका इतिहास जो अंग्रेजोने लिखा था उसका “कोपी-पेस्ट” किया था. नाम तो डीस्कवरी ऑफ ईन्डीया लिखा था, किन्तु कोई डीस्कवरी सुक्ष्मदर्शक यंत्रसे भी मिलती नहीं है.

बाबा साहेब आंबेडकरने भारतका संविधान लिखा है. नहेरुने केवल स्वयंको जो विपरित लगा उनको निर्देशात्मक सूचिमें समाविष्ठ करवा दिया. निर्देशात्मक सुचिमें समावेश  करवाया उतना ही नहीं, उनको राज्योंके कार्यक्षेत्रमें रख दिया.

उत्तर प्रदेश सर्वप्रथम राज्य था जिसने गौवध निषेध किया. उस समय नहेरुने आपत्ति प्रदर्शित की थी, और त्याग पत्र देनेकी भी धमकी भी दी थी, किन्तु तत्कालिन पंतप्रधानने उनकी धमकीकी अवगणना की.

नहेरु अपने को धर्म निरपेक्ष मानते थे और वे अपने अल्पसंख्यकोंको अनुभूति करवाना चाहते थे कि वे (स्वयं परिभाषित परिभाषाको, स्वयं द्वारा ही प्रमाणित) धर्मनिरपेक्षता पर प्रतिबद्ध थे.

नहेरुकी यह मानसिकता, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण और उनसे अभिभूत अनुयायीगणमें भी है. अभिभूत शब्द ही सही है.

एक समय था जब कोंग्रेसका पक्षचिन्ह दो-बैलोकी जोडी था. बैल भी गायकी ही प्रजातिमें आता है. १९६९में नहेरुवीयन कोंग्रेसका, नहेरुकी फरजंद ईदिरा गांधीकी नेतागीरीवाली, और कोंग्रेस संगठनकी सामुहिक नेतागीरीवाली, कोंग्रेसमें विभाजन हुआ. कोंगी [कोंग्रेस (आई)], कोंगो [कोंग्रेस (ओ)].

गाय बछडावाली नहेरुवीयन कोंग्रेस

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ईन्दीरा गांधीमें नहेरुके सभी कुलक्षण प्रचूर मात्रामें थे. अपने पक्षका चिन्ह उसने गाय-बछडा रक्खा जिससे हिन्दुओंको और खास करके कृषक और गोपाल समाजको आकर्षित किया जा सके. ईन्दिरा गांधीने आचारमें भी जनताका विभाजन, धर्म और ज्ञातिके आधार पर किया. जब वह शासन करनेमें प्रत्येक क्षेत्रमें विफल रही तो उसने आपत्‌ काल घोषित किया.

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इस आपात्‌ काल अंतर्गत विनोबा भावे ने ईन्दिरा गांधीको पत्र लिखा की “गौ-हत्या”का  निषेध किया जाय, नहीं तो वे आमरणांत अनशन पर जायेंगे. आपात्‌कालके अंतर्गत तो समाचार माध्यममें शासनके विरुद्ध लिखना निषेध था. इस लिये विनोबा भावे के पत्रको प्रसिद्धि नहीं मिली. ईन्दिरा गांधीने आश्वासन दिया की वह गौ-हत्या पर निषेध करेगी और उसने समय मांगा. विनोबा भावे तो शतरंजके निपूण खिलाडी थे. उनको तो परीक्षा करनेकी थी कि इन्दिरा गांधी पूरी तरह मनोरोगी हो गई है या नहीं. विनोबा भावेको लगा कि ईन्दिरा गांधी पूर्णतया मनोरोगी नहीं बन गयी है किन्तु रोग अवश्य आगे बढ गया है. इसलिये उन्होने आचार्य संमेलन बुलाया. इसकी बात हम यहां नहीं करेंगे.

विनोबा भावे को यह अनुभूति नहीं हुई कि जब कोई पक्षका नेता स्वकेन्द्री और दंभी बन जाता है तो ऐसी मानसिकता उनके पक्षके अधिकतर सदस्योंमें भी आ जाती है. ये लोग तो अपने नेतासे भी आगे निकल जाते है. और शिर्षनेतागणको यह उचित भी लगता है क्यों कि पक्षके एक सदस्यने यदि कोई अभद्र व्यवहार किया और पकडा गया, तो शिर्ष नेतागण स्वयंको उससे वे सहमत नहीं है ऐस घोषित कर सकते है और आवश्यकता अनुसार स्वयंको वे, उससे असहमत और भीन्न है ऐसा दिखा सकते है.

नियमोंवाला संविधान किन्तु आचारमें मनमानी

नहेरुवीयन कोंग्रेसने नियम तो ऐसे कई बनाये है. किन्तु नियम ऐसे क्षतिपूर्ण बनाये कि वे नियम व्यंढ ही बने रहे. ऐसे नियम बनानेका उसका हेतु अबुध जनता को भ्रमित करनेका था. उनका कहना था कि “देखो, हमने तो नियम बनाये है, किन्तु उसका पालन करवाना शासनका काम है. यदि कोई राज्यमें विपक्ष का शासन है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा कहेगी कि “यह तो राज्यका विषय है” यदि वहां पर नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन है तो उसका कथन होगा “हमने विवरण मांगा है ….” या तो “अभी तो केस न्यायालयके आधिन है … देखते हैं आगे क्या होता है. … हम प्रतिक्षा कर रहे हैं”. यदि न्यायालयने नियम तोडनेवालेके पक्षमें न्याय दिया तो नहेरुवीयन कोंग्रेस कहेगी कि “हम अध्ययन कर रहे है कि कैसे संशोधन किया जाय.”

नहेरुवीयन कोंग्रेस द्वारा आपने गौ-मांस-भोजन-समारंभ तो देखे ही है.

निर्देशात्मक नियमोंका दिशा सूचन

समाजमें सुधार आवश्यक है. किन्तु समाज अभी पूरी तरह शिक्षित हुआ नहीं है. इसीलिये क्रमशः सुधार लाना है. निर्देशात्मक नियमोंका  यह प्रयोजन है. वे दिशासूचन करते हैं. यदि कोई राज्यका शासन नियम बनानेकी ईच्छा रखता है तो वह निर्देशात्मक नियमकी दिशामें विचारें और नियमका पूर्वालेख, नियमको उसी दिशामें, आचारके प्रति, शासनको प्रतिबद्ध करें. यही अपेक्षा है. निर्देशित दिशासे भीन्न दिशामें या विरुद्ध दिशामें नियम बनाया नहीं जा सकता.

नहेरुवीयन कोंग्रेस शासित राज्योंमें, जो नये नियम बने, वे अधिकतर निर्देशित सिद्धांतोसे विपरित दिशामें है. जैसे कि मद्य-निषेध. उन्नीसौसाठके दशकमें महाराष्ट्र स्थित नहेरुवीयन कोंग्रेसने मद्यनिषेधके नियमोंको सौम्य बनया ताकि ज्यादा लोग मद्यपान कर सके.

असहिष्णुताकी वोट बेंक बनाओ

 

धर्म के आधार पर विभाजन इस हद तक कर दो कि लोग अन्य धर्मके प्रति असहिष्णु बन जाय. हिन्दुओंको विभाजित करना तो सरल है.

वेमुला, अखलाक, कन्हैया जैसे प्रसंगोंको कैसे हवा दी गयी इस बातको हम सब जानते है. यदि कोई हिन्दु जरा भी असहिष्णु बने तो पूरे हिन्दुओंकी मानसिकताकी अपकिर्ती फैला दो.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने ऐसी परिस्थिति बना दी है कि यदि कोई सुरक्षाकर्मी,  जीपके आगे किसी पत्थरबाज़ को बांध दे और सुरक्षा कर्मीयोंको पत्थरबाज़ोंसे बचायें और परिणाम स्वरुप आतंक वादियोंसे जनताकी भी सुरक्षा करें, तो फारुख और ओमर जैसे मुस्लिम लोग आगबबुला हो जाते हैं.

यदि फारुख और ओमर इस हद तक जा सकते है तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको तो फारुख और ओमरसे बढकर ही होना चाहिये न !!

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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“आगसे खेल” मुल्लायम और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका

“आगसे खेल” मुल्लायम और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका

यदि कोई जनताको धर्म, जाति और और क्षेत्रके नाम पर विभाजन करें और वॉट मांगे उसको गद्दार ही कहेना पडेगा. अब तो इस बातका समर्थन और आदेश सर्वोच्च न्यायालयने  और चूनाव आयुक्तने भी परोक्ष तरिकेसे कर दिया है.

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मुल्लायम, अखिलेश और उनके साथीयोंने युपीके चूनावमें  बीजेपी के विरुद्ध आंदोलन छेड दिया है. ये लोग बीजेपी के नेतागण चूनाव प्रचारके लिये भी न आवें क्यों कि वे युपीके नहीं हैं. आप समझलो कि ये मुल्लायम, अखिलेश आदि नेता लोग, स्थानिक लोगके अलावा, अन्य भारतीय नागरिकके वाणी स्वातंत्र्यके हक्कको भी युपीमें मान्य नहीं रखना चाहते हैं. उनके लिये युपी-बिहारमें नौकरी देनेकी तो बात ही छोड दो. ये लोग तो क्षेत्रवादमें अन्य राज्योंके क्षेत्रवादसे एक कदम आगे हैं. वे ऐसा प्रचार कर रहे है कि, स्थानिक नेताओंको छोडकर अन्य नेता युपीमें चूनाव प्रचार भी न करें. युपी-बिहारमें तो स्थानिक पक्ष (सिर्फ हिन्दीभाषी) ही होना चाहिये.

१९५७के चूनावमें पराजयसे बचने के लिये कोंग्रेसके नहेरुने मुम्बईमें भाषावाद को जन्म दिया था.

नहेरु है वॉटबेंक सियासत की जड

वॉटबेंककी सियासत करने वालोंमें नहेरुवंशी कोंग्रेसका  प्रथम क्रम है. नहेरु वंशवाद का यह संस्कारकी जड नहेरु ही है.

नहेरुने सर्व प्रथम गुजराती और मराठीको विभाजित करनेवाले उच्चारण किये थे.

नहेरुने कहा कि यदि महाराष्ट्रको मुंबई मिलेगा तो वे स्वयं खुश होंगे.

नहेरुका यह उच्चारण मुंबईके लिये बेवजह था. गुजरातने कभी भी मुंबई पर अपना दावा रक्खा ही नहीं था.  वैसे तो मुंबईको विकसित करनेमें गुजरातीयोंका योगदान अधिकतम था. लेकिन उन्होने कभी मुंबई को गुजरातके लिये मांगा नहीं था और आज भी है.

गुजराती और मराठी लोग हजारों सालोंसे मिलजुल कर रहेते थे.  स्वातंत्र्य पूर्वके कालमें कोंग्रेसकी यह नीति थी कि भाषाके अनुसार राज्योंका पुनर्गठन किया जाय और जैसे प्रादेशिक कोंग्रेस समितियां है उस प्रकारसे राज्य बनाया जाय. इस प्रकार मुंबईकी “मुंबई प्रदेश कोंग्रेस समिति” थी तो मुंबईका अलग राज्य बनें.

लेकिन महाराष्ट्र क्षेत्रमें भाषाके नाम पर एक पक्ष बना. उस समय सौराष्ट्र, कच्छ और मुंबई ईलाका था. मुंबई इलाकेमें राजस्थानका कुछ हिस्सा, गुजरात, महाराष्ट्र था, और कर्नाटकका कुछ हिस्सा आता था. १९५७के चूनावके बाद ऐसी परिस्थिति बनी की महाराष्ट्र क्षेत्रमें नहेरुवीयन कोंग्रेस अल्पमतमें आ गयी. यदि उस समय नहेरु भाषाके आधार पर महाराष्ट्रकी रचना करते तो महाराष्ट्रमें उसकी सत्ता जानेवाली थी. इस लिये नहेरुने द्विभाषी राज्यकी रचना की, जिसमें सौराष्ट्र, कच्छ, गुजरात, मुंबई और महाराष्ट्र मिलाके एक राज्य बनाया और अपना बहुमत बना लिया.

महाराष्ट्रमें विपक्षको तोडके १९६०में गुजरात और महाराष्ट्र अलग अलग राज्य बनाये.

जातिवादका जन्म

डॉ. आंबेडकर तो मार्यादित समयके लिये, और वह भी केवल अछूतोंके लिये ही आरक्षण मांग रहे थे. गांधीजी तो किसी भी प्रकारके आरक्षण के विरुद्ध थे. क्यों कि महात्मा गांधी समज़ते थे कि आरक्षणसे वर्ग विग्रह हो सकता है.

नहेरुने पचासके दशकमें आरक्षण को सामेल किया. अछूत के अतिरिक्त और जातियोंने भी आरक्षणकी  मांग की.

नहेरुवीयन कोंग्रेसको लगा कि विकासके बदले वॉट-बेंक बनानेका यह तरिका अच्छा है. सत्ताका आनंद लो, पैसा बनाओ और सत्ता कायम रखनेके लिये जातियोंके आधार पर जनताको विभाजित करके नीच जातियोंमें ऐसा विश्वास पैदा करो कि एक मात्र कोंग्रेस ही उनका भला कर सकती है.

नहेरुने विदेश और संरक्षण नीतिमें कई मूर्खतापूर्ण काम किये थे, इस लिये उन्होंने अपनी किर्तीको बचाने के लिये इन्दिरा ही अनुगामी बने ऐसी व्यवस्था की. ईन्दिरा भी सहर्ष बडे चावसे अपने वंशीय चरित्रके अनुसार प्रधान मंत्री बनी. लेकिन उसमें वहीवटी क्षमता न होने के कारण १९६७ के चूनावमें नहेरुवीयन कोंग्रेसकी बहुमतमें काफी कमी आयी.

हिन्दु-मुस्लिम के दंगे

जनताको गुमराह करने के लिये इन्दिराने कुछ विवादास्पद कदम उठाये. खास करके साम्यवादीयोंको अहेसास दिलाया की वह समाजवादी है.  वैसे तो जो नीतिमत्तावाला और अपने नामसे जो समाजवादी पक्ष संयुक्त समाजवादी पक्ष (डॉ. राममनोहर लोहियाका) था वह इन्दिराकी ठग विद्याको जानता था. वह इन्दिराकी जालमें फंसा नहीं. इस कारण इन्दिराको लगा की  एक बडे वॉट-बेंककी जरुरत है. इन्दिराके मूख्य प्रतिस्पर्धी मोरारजी देसाई थे. इन्दिराके लिये मोरारजी देसाईको कमजोर करना जरुरी था. इसलिये उसने १९६९में गुजरातमें हिन्दु-मुस्लिम के दंगे करवाये, इस बातको आप नकार नहीं सकते.

नहेरुवीयन कोंग्रेसकी संस्कृतिका असर

वॉट बेंक बनानेकी आदत वाला एक और पक्ष कांशीरामने पैदा किया. सत्ताके लिये यदि ऐसी वॉट बेंक मददरुप होती है तो बीजेपी (जनसंघ)को छोड कर, अपना अपना वॉट बेंक यानी की लघुमति, आदिवासी, अपनी जातिका, अपना क्षेत्र वाद, अपना भाषावाद आदिके आधार पर अन्य पक्ष भी वॉट बेंक बनाने लगे. यह बहूत लंबी बात है और इसी ब्लोग साईट पर अन्यत्र लिखी गयी है.

आज भारतमें, वॉट बेंकका समर्थन करनेमें, भाषा वादवाले  (शिव सेना, एमएनएस, ममता), जातिवाद वाले (लालु, नीतीश, अखिलेश, मुल्लायम, ममता, नहेरुवीयन कोंग्रेस, चरण सिंहका फरजंद अजित सिंह, मायावती, डीएमके, एडीएमके, सीपीआईएम आदि), धर्मवादके नाम पर वॉट बटोरने वाले(मुस्लिम पेंपरींग करनेवाले नेतागण जैसे कि मनमोहन सिंह, सोनिया, उनका फरजंद रा.गा.,  ममता, अकबरुद्दीन ओवैसी, आझम खान,   अखिलेश, मुल्लायम, केज्री, फारुख अब्दुल्ला, उनका फरजंद ओमर,  जूटे हुए हैं.

पीला पत्रकारित्व (यलो जर्नालीझम)

पीला पत्रकारित्व (यलो जर्नालीझम) भी वॉट बेंकोके समर्थनमें है और ऐसे समाचारोंसे आवृत्त समाचार रुपी अग्निको फूंक मार मार कर प्रज्वलित करनेमें जूटा हुआ है. आपने देखा होगा कि, ये पीला पत्रकारित्व, जिसकी राष्ट्रीय योगदानमें कोई प्रोफाईल नहीं और न कोई पार्श्व भूमिका है, ऐसे निम्न कक्षाके, पटेल, जट, यादव, ठाकुर, नक्षलवादी, देशके टूकडे करनेकी बात करने वाले नेताओंके कथनोंको समाचार पत्रोंमें और चेनलों पर बढावा दे रहा है.

भारतमें नहेरुसे लेकर रा.गा. (रा.गा.का पूरा नाम प्रदर्शित करना मैं चाहता नहीं हूं. वह इसके काबिल नहीं है) तकके नहेरुवीयन कोंग्रेसके सभी नेतागण और उसके सांस्कृतिक नेतागणने बिहारके चूनावमें क्षेत्रवादको भी उत्तेजित किया था. इसके परिणाम स्वरुप बिहारमें नरेन्द्र मोदीके विकास वादकी पराजय हूयी. अर्थात्‌ वॉट-बेंक वालोंको बिहारमें भव्य विजय मिली.

क्षेत्रवाद क्या है?

क्षेत्रवादके आधार पर नहेरुवीन कोंग्रेस और एन.सी. पी. की क्रमानुसार स्थापित शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनी है.

“हम भी कुछ कम नहीं” नीतीश-लालु चरित्र

नीतीश कुमारने सत्ता पानेके लिये “बाहरी” और “बिहारी” (स्थानिक), शब्दोंको प्रचलित करके बिहारमें बहुमत हांसिल किया. समाचार माध्यमोंने भी “बाहरी” और “स्थानिक” शब्दोंमें पल रही देशको पायमाल करने वाली वैचारिक अग्निको अनदेखा किया.

यदि क्षेत्रवादकी अग्निको हवा दी जाय तो देश और भी पायमाल हो सकता है.

गुजरातमें क्या हो सकता है?

गुजरातमें सरकारी नौकरीयोंमे खास करके राज्यपत्रित उच्च नौकरीयोंमें बिन-गुजरातीयोंकी बडी भारी संख्या है.

कंपनीयोंमें वॉचमेन, मज़दुर कर्मचारी ज्यादातर बिन-गुजराती होते है, सरकारी कामके और कंपनीयोंके ठेकेदार अधिकतर बिन-गुजराती होते है. और ये बिन-गुजराती ठेकेदार और उनके सामान्य कर्मचारी और श्रमजीवी कर्मचारी गण भारी मात्रामें बिन-गुजराती होते हैं.  शहेरोंमें राजकाम (मेशनरीकाम), रंगकाम, सुतारीकाम, इत्यादि काम करने वाले कारीगर, बिन-गुजराती होते है. और केन्द्र सरकारकी नौकरीयोंमें तो चतुर्थ वर्गमें सिर्फ युपी बिहार वाले ही होते है.  प्रथम वर्गमें भी उनकी संख्या अधिकतम ही होती है. द्वितीय वर्गमें भी वे ठीक ठीक मात्रामें होते हैं.  इतना ही नहीं, हॉकर्स, लारीवाले, अनधिकृत  ज़मीन पर कब्जा जमानेवालोंमे और कबाडीका व्यवसाय करनेवालोंमे, सबमें भी, अधिकतर बिन-गुजराती होते है. चोरी चपाटी, नशीले पदार्थोंके उत्पादन-वितरणके धंधा  उनके हाथमें है. अनधिकृत झोंपड पट्टीयोंमें बिन गुजराती होते हैं.ये सब होते हुए भी गुजरातके सीएम कभी “बाहरी-स्थानिक”का विवाद पैदा नहीं होने देते. उतना ही नहीं लेकिन उनके कानुनी व्यवसायोंकी प्रशंसा करते हुए कहेते है कि गुजरातकी तरक्कीमें,  बिन-गुजरातीयोंके योगदान के लिये गुजरात उनका आभारी है. पीले पत्रकारित्वने कभी भी गुजरातकी इस भावनाकी  कद्र नहीं की. इसके बदले गुजरातीयोंकी निंदा करनेमें अग्रसर रहे. यहां तक कि नीतीशने बिहारकी प्राकृतिक आपदाके समय गुजरातकी आर्थिक मददको नकारा था. बहेतर था कि नीतीश गुजरातमें बसे बिहारीयोंको वापस बुला लेता.

यदि गुजरातमेंसे बिनगुजरातीयोंको नौकरीयोंमेंसे और असामाजिक प्रवृत्ति करनेवाले बिनगुजरातीयोंको निकाला जाय तो गुजरातमें बेकारीकी और गंदकीकी कोई समस्या ही न रहे. इतना ही नहीं भ्रष्टाचार भी ९५% कम हो जाय. गुजरात बिना कुछ किये ही यु.के. के समकक्ष हो जायेगा.

नीतीशलालु और अब मुल्लायम फरजंदका आग फैलाने वाला खेल

नीतीश कुमार और उसके सांस्कृतिक साथीगण को मालुम नहीं है कि गुजरातकी जनता वास्तवमें यदि चाहे तो नीतीशकुमारके जैसा “बाहरी और बिहारी” संस्कार अपनाके बिहारीयोंको और युपीवालोंको निकालके युपी और बिहारको बेहाल कर सकता है.

यदि समाचार माध्यम वास्तव में तटस्थ होते तो नीतीशकुमारके “बाहरी – बिहारी” प्राचारमें छीपा क्षेत्रवाद को उछाल कर, बीजेपीके विकासवादको पुरस्कृत कर सकता था. लेकिन समाचार माध्यमोंको बीजेपीका विकासवाद पसंद ही नहीं था. उनको तो “जैसे थे” वाद पसंद था. ताकि, वे नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंकी तरह, और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी तरह, पैसे बना सके. इसलिये उन्होंने बिहारको असामाजिक तत्वोंके भरोसे छोड दिया.

अन्य राज्योंमे बिन-स्थानिकोंका नौकरीयोंमें क्या हाल है?

बेंगालमें आपको राज्यकी नौकरीयोंमें बिन-बंगाली मिलेगा ही नहीं.

युपी-बिहारमें थोडे बंगाली मिलेंगे क्योंकि वे वहां सदीयोंसे रहेते है.

कश्मिरमें तो काश्मिरी हिन्दु मात्रको मारके निकाल दिया है.

पूर्वोत्तर राज्योंमें बिन-स्थानिकोंके प्रति अत्याचार होते है. आसाममें  नब्बेके दशकमें सरकारी दफ्तरोंके एकाउन्ट ओफीसरोंको, आतंकवादीयोंको मासिक हप्ता देना पडता था. नागालेन्ड, त्रीपुरामें भी यही हाल था. मेघालयमें बिहारीयोंका, बंगालीयोंका और मारवाडीयोंका आतंकवादीयों द्वारा गला काट दिया जाता था.

केराला, तामीलनाडु और हैदराबादमें तो आप बिना उनकी भाषा जाने कुछ नहीं कर सकते. बिन-स्थानिकोंको नौकरी देना  वहांके लोगोंके सोचसे बाहर है. कर्नाटकमें आई.टी. सेक्टरको छोडके ज्यादातर ऐसा ही हाल है.

मुंबईमें बिन-मराठीयोंका क्या हाल है?

मुंबईका तो विकास ही गुजरातीयोंने किया है. मुंबईमें गुजराती लोग स्थानिक लोगोंको नौकरीयां देते है. नौकरीयोंमे अपना हिस्सा मांगने के बदले गुजराती लोग स्थानिकोंके लिये बहुत सारी नौकरीयां पैदा करते हैं. इसके बावजुद भी राज्यसरकारकी नौकरीयोंमें गुजरातीयोंका प्रमाण नहींवत है. नब्बेके दशकमें मैंने देखा था कि, ओमानकी मीनीस्ट्री ऑफ टेलीकोम्युनीकेशनमें जितने गुजराती कर्मचारी थे उससे कम, मुंबईके प्रभादेवीके संचार भवनमें गुजराती कर्मचारी थे. मराठी लोगोंकी गुजरातीयोंके प्रति खास कोई शिकायत नहीं है इसके बावजुद भी यह हाल है..

मुंबईमें शिवसेना और एमएन एस है. उनके नेता उत्तर भारतीयोंके प्रति धिक्कार युक्त भावना फैलाते है. और उनके उपर कभी कभी आक्रमक भी बनते है.

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चूनाव आयुक्त को मुल्लायम, अखिलेश, नहेरुवीयन कोंग्रेसको सबक सिखाना चाहिये. युपीकी जनताको भी समझना चाहिये कि मुल्लायम, अखिलेश, और उसके साथ सांस्कृतिक दुर्गुणोंसे जुडे नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंके विरुद्ध चूनाव आयुक्तसे शिकायत करें. भारतमें यह आगका खेल पूरे देशको जला सकता है.

स्वातंत्र्यके संग्राममें हरेक नेता “देशका नेता” माना जाता था. लेकिन अब छह दशकोंके नहेरुवीयन शासनने ऐसी परिस्थिति बनायी है कि नीतीश, लालु, मुल्लायम, अखिलेश, ममता, माया, फारुख, ओमर, करुणा आदि सब क्षेत्रवादकी नीति खेलते हैं.  

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः आगसे खेल, मुल्लायम और उनके सांस्कृतिक साथी, नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी, सर्वोच्च

न्यायालय, चूनाव आयुक्त, १९५७के चूनाव, नहेरु, मुंबईमें भाषावाद, वॉटबेंक सियासत, नहेरुका वंशवाद, विभाजित,

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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) भाग

दाद्रीकी घटानाको उछालके यह महाठग महाधूर्त महागठबंधन काफी सफल रहा.

सफल होनेका श्रेय, समाचार माध्यम, नहेरुवीयन कोंग्रेस, महा गठबंधन और कुछ दंभी धर्मनिरपेक्ष गेंग, ये चारों चंडाल चौकडीने मिलके जो महाठग बंधन करके जो रणनीति बनायी थी उसको जाता है.

महागठबंधन और महागठबंधनमें क्या भेद है?

महागठबंधन नहेरुवीयन कोंग्रेस, आरजेडी और जेडीयु इन तीनोंने मिलकर एक चूनावी और सत्तामें भागीदारी करने के लिये एक गठबंधन बनाया है वह है. महाठग गठबंधन एक ऐसा गठबंधन है जिनका एक मात्र हेतु बीजेपीको चूनावमें हराना है. और अपने धंधे चालु रखना है. उनके अनेक धंधेमें सत्ताकी प्रत्यक्ष और परोक्ष भागबटाइ, अयोग्य रीतीयोंसे पैसे कमाना और देशकी आम जनताको गुमराह करके गरीबी कायम रखना ताकि आम जनता विभाजित और गरीब ही रहे

महाठगगठबंधनकी पूर्व निश्चित प्रपंचकारी और विघातक योजना

बीजेपीने विकासके मुद्दे पर ही अपना एजन्डा बनाया था. किन्तु यदि परपक्ष, यानी उपरोक्त महाठगोंका गठबंधन, कोमवादका मुद्दा उठावे तो उसको कैसे निपटा जाय, उसके लिये बीजेपी संपूर्ण रीतसे सज्ज  नहीं था. महाठगगठबंधन, दाद्रीकी घटनाको, मीडीया और दंभी धर्मनिरपेक्ष गेंग के सहारे कोमवाद पर ले गया.

जब भी चूनाव आता है और जब हवा नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विरुद्धमें होती है तो कोमी भावना भडकाना नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें और उसके सांस्कृतिक पक्षके शासनमें एक आम बात है.

आरएस एस, वीएचपी और कुछ बीजेपी नेता भी बेवकुफ बनकर, समाचार माध्यमोंकी हवामें आके उसको हिन्दुमान्यताके परिपेक्ष्यमें आक्रमक बनके प्रत्याघात देने गतें हैं. वास्तवमें बीजेपीको गौवध वाले कोमवादी उस मुद्देको तर्क और अप्रस्तूतताके आधार पर लेजाके उसका खंडन करनेका था. बीजेपी नेतागण उपरोक्त महाठग बंधनी पूर्व निश्चित चाल नहीं समझ पाये. बीजेपी नेतागण को समझना चाहिये कि नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावकी रणनीति बनानेमें उस्ताद है. इसी कारण वह महाभ्रष्ट होनेके बावजूद, भारत जैसी महान और प्राचीन धरोहरवाले देश पर ६० वर्ष जैसे सुदीर्घ समयका शासन कर पाई.

शत्रु को कभी निर्बल समझना नहीं चाहिये.

आरएसएस और वीएचपीमें बेवकूफोंकी कमी नहीं है. ये लोग कई बार सोसीयल मीडीयामें वैसे भी फालतु, असंबद्ध और आधारहीन वार्ताएं लिखा करते हैं, जिससे बीजेपीकी भी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाते है.

जनताके कई पढे लिखे लोग यह नहीं समझ सकते की आरएसएस और वीएचपी के लोग सिर्फ मतदाता है. यह बात सही कि, वे बीजेपीके निश्चित मतदाता है. हर सुनिश्चित मतदाता अपने मनपसंद पक्षका प्रचार करता है ऐसा नहीं है. इसका अर्थ यह नहीं कि हर सुनिश्चित मान्यतावाला मतदाता अपने पक्षका प्रचार करे ही नहीं. क्यों कि किसी मतदाताको आप प्रचार करनेमेंसे रोक नहीं सकते. यदि वह अपने पक्षका प्रचार करे या तो परपक्षके उठाये गये प्रश्नोंका उत्तर दें तो यह मानना नहीं चाहिये कि उसका अभिप्राय वह पक्षकी विचारधारा है. यदि महाठग गठबंधन आरएसएस या वीएचपी के उच्चारणोंको बीजेपीकी विचारधारा मानता है तो

कोमवादी और आतंकवादी मुस्लिम जो कुछ भी बोले वह युपीएकी विचारधारा है 

जैसे अधिकतर मुसलमान और कुछ अन्य जुथ नहेरुवीयन कोंग्रेस या तो उसके सांस्क्रुतिक पक्षके सुनिश्चित मतदाता है. वे कई बातें अनापसनाप बोलते हैं और कुतर्क भी करते हैं. उनकी बातें भी तो  नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्क्रुतिक साथीयोंकी विचारधारा है समज़नी चाहिये. समाचार माध्यमको ऐसा ही समज़ना चाहिये. वे दोहरा मापदंड क्यों चलाते है? अकबरुद्दीन ओवैसी, फारुख, ओमर, गीलानी, आजमखान, लालु, पप्पु, अरुन्धती, तित्सा, मेधा, आदि आदि जो भी कोमवादको बढावा देनेवाले उच्चारण करते है वे सब नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथी है वे जो कुछभी बोले वह नहेरुवीयन कोंग्रेसकी ही विचार धारा है.

विडंबना और कुतर्क तो यह है कि, नहेरुवीयन कोंग्रेस तो उसके प्रवक्ताओंके भी कई उच्चारणोंको उनकी निजी मान्यता है ऐसा बताती है. यहां तक कि यदि नहेरुवीयन कोंग्रेसका उप प्रमुख, नहेरुवीयन कोंग्रेसके मंत्री मंडलने पारित प्रस्ताव विधेयक को फाडके फैंक तो भी वह इस घटनाका उल्लेख पक्षके  उपप्रमुखका नीजी अभिप्राय बताता है. बादमें उसी प्रस्तावमें संशोधन करता है. वैसा ही इस नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोमवादी नेताओंके विरोधी प्रतिभावोंके चलते शाहबानो की न्यायिक घटनाके विषय पर संविधानमें संशोधन किया था. तात्पर्य यह है कि ऐसे सुनिश्चित मतदाता जुथोंके मंतव्य, वास्तविक रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विचारधारा होती ही है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंका स्थान आजिवन कारावासमें या फांसीका फंदा ही है. आरएसएस या वीएचपी के लोग तो बीजेपीके शासनके सहयोगी भी नहीं है. दोनोंकी प्राथमिकताए और मान्यताएं भीन्न भीन्न है. तो इनके भी बयान बीजेपीका सरकारी बयान नहीं माने जा सकते.

बिहारमें दंभी धर्मनिरपेक्षोंका विभाजनवादी नग्न नृत्य

बीजेपी एक राष्ट्रीय पक्ष है. अमित शाह, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, आदि सब भारतके नागरिक है.

महाठगगठबंधनके नेताओं की विभाजनवादी  मानसिकताका अधमाधम प्रदर्शन देखो.

बिहारमेंसे बाहरीको भगाओ

अमित शाह, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, आदि को नीतीशकुमार और उसके साथी बाहरी मानते है. ऐसे बाहरी लोगोंको बिहारमें प्रचारके लिये नहीं आना चाहिये. बिहारमें केवल बिहारी नेताओंको ही चूनाव प्रचारके लिये आना चाहिये.

इसी मानसिकतासे नीतीशकुमार अपनी चूनाव प्रचार सभामें जनताको कहेते थे कि आपको चूनाव प्रचारमें कौन चाहिये, बिहारी या बाहरी?

तात्पर्य यह है कि, बिहारमें चूनाव प्रचारका अधिकार केवल बिहारीयोंका ही है. बाहरी लोगोंका कोई अधिकार मान्य करना नहीं चाहिये. महाठगगठबंधनके किसी नेताने नीतीशकी ये विभाजन वादी मानसिकताका विरोध नहीं किया. इतना ही महाठगगठबंधनके लोगोंने तालीयां बजायी. समाचार माध्यमके विश्लेषकोंने भी इसका विभाजनवादी भयस्थानको उजागर नहीं किया क्यों कि वे हर हालतमें बीजेपीको परास्त करना चाहते थे. महाठगगठबंधनके नेताओंका यह चरित्र है कि देशकी जनता विभाजित हो जाय और देश कभी आबाद बने और वे सत्तामें बने रहें और मालदार बनें.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका ध्येय रहा है कि, देशकी जनता विभाजित होती ही रहे और खुदका हित बना रहे.

बाहरी और बिहारीसे क्या निष्कर्ष निकलता है?

महागठबंधन बिहारकी जनताको यह संदेश देना चाह्ता है कि बिहारमें हमे चूनाव प्रचारमें भी बाहरी लोग नहीं चाहिये. यदि चूनाव प्रचारमें भी बाहरी और बिहारीका भेद करना है तो व्यवसाय और नौकरीमें तो रहेगा ही. जो लोग केवल चूनाव प्रचारके लिये आते है वे तो बिहारीयोंको कोई नुकशान नहीं करते. वे लोग तो उनको भूका मारते है तो उनकी नौकरीकी तकमें कमी करते हैं, नतो उनकी व्यवसायकी तकोंमें कमी करते है तो उनके आवासकी तकोंमे कमी करते हैं, तो भी महाठगगठबंधन बाहरी लोगोंके प्रति एक तिरस्कारकी भावना बिहारी जनतामें स्थापित करनेका भरपूर प्रचार करता है.

बिहारीबाहरी द्वंद्वका क्या असर पड सकता है. यदि बिहारमें बाहरी आवकार्य नहीं है तो जो बिहारके लोग बाहर और वह भी खास करके मुंबई, गुजरात आदि राज्योंमे जाके वहांके लोगोंकी नौकरीकी तकोंमें कमी करते हैं, वहांके लोगोंकी व्यवसायी तकोंमें कमी करते हैं और वहां जाके झोंपडपट्टी बनाके असामाजिक तत्वोंको बढावा देते हैं वहां पर महाठगगठबंधनका यही संदेश जाता है कि बिहारी लोग आपके केवल चूनाव प्रचार करनेके लिये आने वाले चाहे वह देशका प्रधान मंत्री क्यों हो, उसको बहारी समज़ते है और अस्विकार्य बनते है. महाराष्ट्रके नीतिन गडकरी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नरेन्द्र मोदी बाहरी है ऐसा थापा, बिहारकी जनता मारती है, तो बिहारके लोग भी गुजरात, महाराष्ट्र, मुंबई आदिमें बाहरी ही है. ये बिहारके बाहरी लोगोंको नौकरी और व्यवसाय आदिके लिये अस्विकार्य बनाओ. महाठगगठबंधनके नेताओंने यही संदेश दिया है, इस लिये यदि महाराष्ट्र, गुजरात और युपीके लोग बिहारीयोंको बाह्य समज़के उसको नौकरी, व्यवसाय, सेवा आदिके लिये अस्विकार्य करें तो इस आचारकी भर्त्सना करना अब तो बिहारीयोंका हक्क है नतो महाठगगठबंधनके लोगोंका हक्क है.

महाठगगठबंधनने अपने स्वार्थ लिये देशकी जनताको एक विनाशकारी संदेश दिया है, उसके लिये उसमें संमिलित तत्वोंके उपर न्यायिक कार्यवाही होनी चाहिये. उनकी संस्थाकी या और उनके स्थान होद्देकी जो भी बंधारणीय मान्यता हो उसको तत्काल निलंबित करना चाहिये और न्यायिक कार्यवाहीके फलस्वरुप मान्यता रद होनी चाहिये.

यदि ऐसा नहीं होगा तो एक विनाशक प्रणाली स्थापित होगी जो देशकी एकता पर वज्राघात करेगी.

शिरीष मोहनलाल दवे.

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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1

क्या  यह सत्य और श्रेयकी जित है?

नहीं. यह सत्यकी जित नहीं है.

सत्य और श्रेय है वह जनताके बहुमतसे सिद्ध नहीं होता है.

हम जिन चूनावी प्रक्रियाओंके आधार पर जनताका अभिप्राय प्राप्त कर रहे है वह हमेशा सत्य को पुरस्कृत नहीं करता.

बहुमत, सत्यका आधार नहीं बन सकता. बिहारकी जनताने जिस गठबंधनको जित दिलाई, इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि सत्य, उस गठबंधनके पक्षमें था जो जिता था.

सत्य किसके पक्षमें था?

सत्य बीजेपीके पक्षमें था.

सत्य किसको कहेते हैं?

यहां पर सत्यका अर्थ है,

() ऐसा कोनसा पक्ष है कि जिसके पास भारतकी समस्याओंकी अधिक जानकारी है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जो इस समस्याओंका समाधान सुचारु रुपसे कर सकता है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास आर्षदृष्टि है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचि है और उसके उपर प्रतिबद्ध है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचिकी प्रणाली भी सुनिश्चित है?

() ऐस कौनसा पक्ष है जो अधिक नीतिवान है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास व्यापक संगठन है?

() ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके लियेप्रामिकता भारतका हितहै?

 

श्रेय पक्ष बीजेपी ही है

ऐसा पक्ष केवल और केवल बीजेपी ही है जिसके नेता नरेन्द्र मोदी है. इसके उपर यदि किसीको संदेह हो तो इसकी चर्चा हो सकती है. इससे यदि कोई श्रेयतर नेता है तो बताओ.

नीतिओंकी स्पष्टता, आर्षदृष्टि और नीतिमत्ता इनका अभाव, वह जेडीयु है.

हम आरजेडी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, एस पी, एनसीपी, आदिकी बातें नहीं करेंगे. इन सबके काले करतूत इतिहासके पन्नोंपर पर विद्यमान है. वे सभी पक्ष, एक दुसरेके अवलंबनके लिये विवश है. ये सभी राजकीय समीकरणों के आधार पर बनाई गई चूनावी गेमके से जिन्दा है. आवश्यकता होने पर एक होते है और आवश्यकता यदि हो तो एक दुसरेके दुश्मन बनते हैं.

बीजेपी भी ऐसे गठबंधनके लिये विवश बनता है. जैसे कि बीजेपी, शिवसेना, एमएनएस, एल जे पी, डी.एम.के. या .डी.एम. के साथ गठबंधन करती है. किन्तु बीजेपीने कभी भ्रष्टाचार के साथ समझौता नहीं किया.

यह बात सही है कि, कोई विस्तारमें अपने अस्तित्वको बनानेके लिये बीजेपीने ऐसे प्रादेशिक संकुचित मानसिकता वाले पक्षोंसे समझौता किया है. यदि प्रमाणभान की प्रज्ञासे देखा जाय तो बीजेपी की मात्रा अन्य पक्षोंकी तरह असीम नहीं है.

जेडीयुने आरजेडी और नहेरुवीयन कोंग्रेससे गठबंधन किया. ये दोनों पक्ष एक समय उसके सैधांतिक आधार पर दुश्मन नंबर एक थे.

नहेरुवीयन कोंग्रेस तो एक स्वकेन्द्री, वंशवादी और देशकी जनताको विभाजित करने वाला सरमुखत्यार शाहीमें मानने वाला पक्ष है. इसके पास स्वकेन्द्रीय सत्ता प्राप्त करनेके अतिरिक्त, कोई अन्य कार्य सूचि नहीं है. इसने ही उच्च न्यायालयकी अवमानना करके जनतंत्रको नष्ट भ्रष्ट करदिया था. महात्मा गांधीके निकटके साथीयों तकको इसने बिना कोई अपराध और बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया, कारवासमें अनियतकाल के लिये बंद किया था और मरणासन्न किया था. ये सब बातें एततकालिन इतिहासके पन्नों पर विद्यमान है. तो भी जेडीयुने इस कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. इससे जेडीयुकी मानसिकताका दर्श्न होता है. आरजेडी नेता भी १९७७में जनता पक्षके सदस्य थे और उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसको नष्ट करनेका प्रण लिया था. जब जनता पक्ष तूट गया और जनता दल भी तूटा, तो लालु यादवने अपने लिये एक वंशवादी पक्ष बना लिया. इसने केवल सत्ताके लिये ही नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. लालु यादव अपने कौभांडोके कारण कारावाससे बचने के लिये ये सब करते रहे. उनके  शासनकोजंगल राजका प्रमाणपत्र नीतीशकुमार स्वयंने दिया था.

ये तीनोंने मिलके बिहार पर कमसेकम ४० वर्ष राज किया है. तो भी ये पक्ष बिहारका विकास नहीं करपाये. ये सब बिहारको पछात राज्यकी कक्षा की मान्यता मिले ऐसी वार्ताएं करते रहे. तदुपरांत समाजकी विभीन्न जातियोंके लिये शिक्षा और नौकरीमें आरक्षण मिलता ही रहे ऐसी प्रतिक्रिया भी प्रदर्शित करते रहे.

इन तीनों पक्षकी अपेक्षा बीजेपीका व्यवहार व्यवस्थित रहा है. इसलिये बीजेपी की विजय चूनावमें होना अपेक्षित था और श्रेय भी था.

किन्तु बीजेपी और उसके साथी पक्ष बिहार चूनावमें पराजित हुए

बीजेपी एक ऐसा पक्ष है जो भारतकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व रखता है. उसका स्वदेशीमें विश्वास है. स्वदेशी उत्पादनमें मानता है और स्वदेशी भाषाओं उपर गर्व रखता है. विदेशीओं द्वारा लिखित आधारहीन भारतीय इतिहासमें वह विश्वास नहीं रखता है. तद उपरांत वह परशुराम, राम, कृष्ण आदि पौराणिक या महाकाव्यके पात्रोंको ऐतिहासिक मानता है.

बीजेपी और खास करके नरेन्द्र मोदी मानते है कि सभी समस्याओंका मूल, शिक्षाका अभाव और कामका अभाव है. इसलिये दो प्राथमिकता बननी चाहिये. एक है, शिक्षासे कौशल्य, और दुसरा है भूमिगत संरचना यानी कि, उर्जा, मार्ग, परिवहन, जल संचय, जलवितरण आदिके विकाससे उत्पादनमें वृद्धि. इस प्रकार विकास करनेसे हर समस्याका निवारण हो जायेगा चाहे वह जातिगत हो या आर्थिक हो.

नरेन्द्र मोदीके पास इन सबकी दृष्टिके उपरांत विदेशी संबंधोंके बारेमें और सुरक्षा संबंधित प्रश्नों के बारेमें सुनिश्चित आयोजन है. उत्पादन, कार्य, और प्रबंध के विषयमें नरेन्द्र मोदीके पास निर्धारित और सुनिश्चित प्रणालीयोंका आयोजन है. बीजेपी एक मात्र ऐसा पक्ष है जिसके पास नरेन्द्र मोदी जैसा एक मात्र नेता है जो बिना थके निस्वार्थ भावसे १८ घंटा काम करता है. सुभासचंद्र बोस, दयानंद सरस्वती, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और सरदार पटेलके बाद केवल नरेन्द्र मोदी ही एक मात्र नेता भारतको उपलब्ध हुआ है जो अन्य सबसे एक हजार मिल आगे है.

बीजेपीकी पराजयको वक्र दृष्टिसे मुल्यांकन करनेवाले स्वार्थ परायण दल समूहः

जो महाठगबंधनवाले पक्ष थे उनका हित तो स्वयंका विजय पाना हो यह बात तो स्वाभाविक है. किन्तु जो विद्वज्जन अपनेको तटस्थ मानते है और जो दृष्य श्राव्य और वाच्य समाचार माध्यम है उनको चाहिये था कि वे केवल समाचार ही दें, और अपनी तरफसे तारतम्य वाली समाचार शिर्ष पंक्तियां बनावें. जो मूर्धन्य लोग समाचार माध्यममें या तो एंकर है या कोलमीस्ट (कटार लेखक) है वे तर्कबद्धतासे और प्रमाणभानकी प्रज्ञाका उपयोग करके समाचारोंका विश्लेषण करें और मूल्यांकन करनेमें मापदंड भी समान ही रखें.

समाचार माध्यमों द्वारा कौनसी बातें उछाली गई?

बीजेपी नेतागणसे संबंधितः

() शेतानको लालुजीकी जीभ पर बैठने का एड्रेस किसने दिया?

() ‘   ‘-वाले शर्म करो. पहेले अपना ४० सालका हिसाब बताओ.

() मैं क्या बाहरी हुं. मैं क्या पाकिस्तानका प्रधान मंत्री हुं …. …. ?

() अनामत पर पुनर्विचारणा होनी चाहिये

() मैं स्वयं पीछडी जातिका हुं और मुझपर क्या गुजरी है वह मैं जानता हुं..

() लालुजी किस कारणसे चूनावमें प्रत्याशी नहीं बने, इसका कारण तो बताओ लालुजी,

() यदि एनडीए की पराजय हुई तो पटाखे पाकिस्तानमें फूटेंगे

() यह महागठबंधन एक स्वार्थबंधन है. डीएनए चेक करना चाहियेये तीनों पक्षके नेता एक मंच पर क्यों नहीं सकते हैं?

(१०) नीतीश कुमारने जनतंत्रमें मंत्र तंत्रका आश्रय लिया है. यह वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर बहुत चली.

(११) जिनको गोमांस खाना हो वे पाकिस्तान चले जाय.

(१२) यदि यहां गोमांस खाया तो मैं गला काट दूंगा.

महागठबंधन के उच्चारणः

() नीतीशकुमारने २००२ के गुजरातके दंगोंका उल्लेख किया

() बिहारीयोंको बाहरी चाहिये कि बिहारी?

() काला धनके डेढलाख हमारे एकाउन्टमें अभीतक जमा क्यों नहीं हुए,

() मांस खाने वाले असंस्कारी होते है, ऐसा जब मैंने कहा तब मेरी जबानपर शेतान बैठा था.

() गौमांस तो हिन्दु भी खाते है.

() मांस तो मांस ही है चाहे वह गायका हो, घोडेका हो या कुत्तेका हो.

() मुझे शेतान कहा,

() अमित शाह नरभक्षी है, वह नरपिशाच है,

() बीजेपीवालोंने काला जादु करके मुझ पर फैन गिराया. मैं काला जादु जानता हुं औरकाला कबुतरमीर्च मसाले मंत्र पढके उसको भगाउंगा.

(१०) देखो यह फोटो जिसमें नरेन्द्र मोदी अपना हाथ ज्योतीषीको दिखाते है.    

नरेन्द्र मोदीका चूनाव मंत्रविकासथा. लेकिन महागठबंधनके नेता हमेशा जातिवादकी बातें करते थे और आरएसएसके एक नेताने कहा कि अनामतपर पुनर्विचारणा होना चाहिये. यह सुनकर महागठबंधनके नेताओंमे लड्डु फूटने लगे. वैसे भी उनका गठबंधनजातिवादके आधार पर ही हुआ था. और विकासके आधार पर प्रचार करना उनके लिये कठिन था. क्यों कि बिहारके कई विस्तारोमें, मकान, पानी, मार्ग, बीजली और शिक्षासंस्थाओंकी सुविधाएं नहीं है. उद्योग भी इसके कारण अल्प मात्रामें है. बीजेपीको कोमवाद परस्त कह्ना और कोमवादका मुद्दा उठाना यह तो वैसे भी फैशन है.

दाद्रीनामके एक देहातमें जो हुआ, चूं कि वह हिन्दुओंने किया था, ये सब इस बात पर तूट पडे. और उसको गौमांसके साथ, नागरिक स्वतंत्रता और हिन्दुओंकी असहिष्णुता के साथ जोड दिया. इस बातको जिस सीमातक ले गये इससे ऐसा लगता है कि यह एक सोची समझी व्यूहरचना थी जिसको नकारा नही जा सकता.

सियासती महानुभावोंका एवोर्ड वापसीका सीलसीला

इस घटनाको लेके बीजेपीआरएसएस विरोधी और नहेरुवीयन कोंग्रेस परस्त, अभिनेता, कवि, लेखक, विवेचक, समाजसेवी, आदि तथा कथित महानुभावोंने, सरकार तरफसे दिये गये पुरस्कार एक के बाद एक ऐसा करके लौटाने लगे, ताकि, समाचार माध्यम, चूनावप्रचार अंतर्गत समयमें पूरा वातावरण बीजेपीआरएसएस की असहिष्णुताके विरोधमें बना हुआ रख सके.

यदि इस घटनापर विश्लेषण किया जाय तो भूतकालमें ऐसी ही नहीं किन्तु इससे हजारों लाखों दफा बडी कई मानव हनन और मानव अधिकार हननकी घटनाएं घटी तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

नहेरुकी नीतिके कारण और भारतीय सीमाको असुरक्षित रखनेसे और हमारे जवानोंको शस्त्रोंसज्ज करनेके कारण १९६२में हजारों जवानोंको बेमौत शहीद होना पडा. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

१९७२में सिमला समझौता अंतर्गत इन्दिरा गांधीने भारतकी जितको पराजयमें परिवर्तित करके हजारों शहीदोंके बलिदानोंपर पानी फेर दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

१९७५१९७६ मे आपतकाल घोषित करके विरोधी आवाजको बंध करने के लिये ६००००+ लोगोंको कारावासमें अनियत कालके लिये बंद कर दिया. समाचार माध्यमों पर सेन्सरशीप डाल दी. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

इन्दिराने युनीयन कार्बाईडसे क्षतियुक्त डील किया और भोपालगेस दुर्घटना हुई और सेंकडो मौत हुई और हजारों लोग, शरीरसे स्थायी रुपसे अपंग हुए. इन गेसकांड पीडितोंको, क्षतियुक्त डील के कारण मुआवझा नही मिला. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

इस घटनाके दोषी एन्डरशनको अर्जुनसिंह और राजीवगांधीने भगा दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

इन्दिरा गांधीने, खालिस्तानी आतंकवादी भींदराणवालेको संत घोषित करके उसको बढावा दिया, इससे खालिस्तानी आतंकवाद और सीमापारके आतंकवादको बढावा मिला. इसी कुकर्मके कारण इन्दिराकी हत्या हुई. इस नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने हजारों निर्दोष शिखोंका कत्लेआम किया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

सीमापारका आतंकवाद कश्मिरमें बढने लगा और जो हिन्दु कश्मिरमें १५% थे उनके उपर अत्याचार होने लगे और हिन्दु जनसंख्या १९८९ तक % हो यी. तब तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

१९९०में खुले आम, वर्तमान पत्रोंमें इस्तिहार देके, मस्जिदोंमेंसे लाऊडस्पीकर द्वारा घोषणा करवाके, दिवारों पर पोस्टरों लगाके,  हिन्दुओंको चेतावनी दी, कि निश्चित दिनांकके अंतर्गत या तो इस्लाम कबुल करो या कश्मिर छोड दो. यदि यह स्विकार्य नहीं है तो मौत के लिये तयार रहो. ६०००+ हिन्दुओंका कत्लेआम हुआ. ५००००० हिन्दुओंको अपना घर और राज्य छोडने पर विवश किया जो आज २५ सालके बाद भी, वे या तो तंबुमें रहेते है या खोलीमें रहेते है. १९९० पहेले भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनका साथी “एन. एफ” कश्मिर में राज करते थे, और १९९०के बाद नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने १५ साल राज किया तो भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी पक्षोंके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. इन शासकोंने कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकारोंके सतत होते हुए हननके विषयमें केवल उपेक्षा की. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.

और अब देखो यहां क्या हुआ? दाद्री देहातमें एक गरीब मुस्लिमकी हत्या हुई. युपी जो नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्ष द्वारा शासित राज्य है तो उत्तर दायित्वतो उसका ही बनता है, किन्तु इन सियासती महानुभावोंने इस घटनाका उत्तर दायित्व बीजेपी केन्द्रकी बीजेपी सरकार पर डाल दिया. चूं कि मृत व्यक्ति मुस्लिम था और चूं कि मारने वाले हिन्दु थे. यदि मारने वाले हिन्दु है तो बीजेपी को  उत्तरदायी बता दो. क्या इसमें कोई तर्क है? यहा क्या बुद्धिगम्य है?

वास्तवमें महानुभावोंका तारतम्य और प्रतिभाव निरपेक्ष रुपसे एक प्रपंच है और निरपेक्ष रुपसे कोमवादको उकसाना है. ये सभी महानुभाव को कोमवाद फैलाने के आरोप पर न्यायिक कार्यवाही करनी चाहिये. और उनको कारावास में रखना चाहिये.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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२५ जुन नहेरुवीयन कोंग्रेस बनी भारतका एक कलंक

अहो आश्चर्यम्

DEMOCRACY MEANS

२५ जुन भारतके लिये एक लज्जास्पद दिन है. यह प्रजातंत्रकी मृत्यु का दिन था. और उसकी हत्यारी थीं नहेरुवीयन कोंग्रेसकी उनके द्वारा एक मात्र मान्य नेत्री इन्दिरा गांधी.

वैसे तो १९७० के चूनावमें इन्दिराके पक्षको प्रचंड बहुमत मिला था.

पाकिस्तानकी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण और भारतके जवानोंकी वीरता और व्युहरचानाके कारण भारतको भव्य विजय प्राप्त हुई थी. इस विजयका श्रेय भी इन्दिराने लिया था. समाचार माध्यमोंने भी यही बात चलायी.

इसके उपरांत इन्दिराने संविधानमें कई संशोधन करके अपनी सत्ता बढाई. उसने ऐसे भी प्रयत्न किये कि मानव अधिकारों को भी क्षति पहोंचानेकी संसदको सत्ता मिले. किन्तु इसमें वह विफल रही. क्यों कि सर्वोच्च न्यायालयने इस प्रस्तावको नकार दिया और कहा कि मानव अधिकार और प्राकृतिक अधिकार को नष्ट नहीं किया जा सकता. क्यों कि यह तो प्रजासत्ताककी नींव है.

वैसे तो इन्दिरा गांधी अपने पक्षमें सर्वेसर्वा थी और अधिकतर राज्योंमें भी उसके खुदके नियुक्त मुख्य मंत्री थे. तो भी इन्दिरा गांधी देशकी आर्थिक स्थितिमें कोई सुधार करनेमें असफल रहीं.

कोंग्रेसके विभाजनके बाद सीन्डीकेटके नेतागण तो उसके सामने स्पर्धाके लिये रहे नहीं. किन्तु पक्षमें भी वह कोई सर उठाके चले और कोई भी अच्छे कामका श्रेय खुदके नाम पर ले ले वह इन्दिराको पसंद नहीं था. उसने हमेशा स्वयंकी सत्ताको कोई ललकारने वाला रहे उसीमें व्यस्त रहीं. वीपी सिंघ, बहुगुणा, ललितनारायण मिश्र आदि उनमें मुख्य थे. प्रथम दो थे इनको निकाल दिया. तीसरेकी मृत्यु हो गई. और दो बचे. वे थे यशवंत राव चौहाण और जगजिवन राम.

सर्व क्षेत्रीय विफलताके कारण १९७३से जन आंदोलन का प्रारंभ हुआ. १९७४ उसके प्रचंड बहुमतवाली गुजरातकी विधानसभाका विसर्जन करना पडा. १९७५में इन्दिराका खुदका चूनाव रद हो गया, उतना ही नहीं किन्तु वह स्वयं सालके लिये अयोग्य घोषित की गयी. गुजरातकी विधानसभा चूनावमें उसका पक्ष सत्तासे विमुख हो गया. स्वयं को बचाने के लिये और सत्ता पर चालु रहेने के लिये वह साम्यवादीयं की तरह कुछ भी कर सकती थी. इन्दिराने आंतरिक आपातकाल घोषित किया. आपतकालमें क्या हुआ वह हमने देख लिया. इस विषय पर इसी वेबसाईट पर कई और लेख है. आप कृपया उनको पढें.

शासन किसीको भी पकड सकता था और कारावासमें भेज सकता था. सिर्फ शासनके अधिकृत अफसरको  न्यायधीशके सामने कहेनाका था कि यह समाज और शासनके लिये खतरा है.

एक न्यायाधीशने एक आरोपीको जब उसके सामने प्रस्तूत किया तो पुलिस अफसरसे पूछा की इसको क्यूं पकडा है? पूलिस प्रोसीक्युटरने बताया कि वह देश विरोधी कार्य कर रहा है.

न्यायधीशने पूछा कि वह क्या कर रहा है?

आरोपीने बोला, मैंने तो कुछ भी किया नहीं है.

न्यायधीशने प्रोसीक्युटरसे पूछा कि किस आधार पर शासनने उसको पकडा है.

प्रोसीक्युटरने बोला कि आपातकालमें कारण और आधार बतानेकी आवश्यकता नहीं.

न्यायधीशने बोला कि आप चाहे आरोपी को बाताओ, लेकिन मुझे तो बताओ. चलो मेरी केबिनमें और मुझे बताओ.

प्रोसीक्युटरने बोला कि आपको बताना भी आपातकालमें आवश्यक नहीं है.

न्यायधीश ने बोला कि आरोपके आधारका अस्तित्व होना तो आवश्यक है ही. यदि आप न्यायालयको भी नहीं कहोगे तो इसका अर्थ तो यह हुआ कि आप किसीको भी कुछ भी करोगे.

शासनने बताया कि आपातकालमें शासन चूं कि संविधानके अधिकार स्थगित हुए है, शासन चाहे तो मनुष्यका प्राण भी ले सकता है.

न्यायधीशने कहा कि, संविधान के अधिकार स्थगित हुए है. संविधानके अधिकार नष्ट नही हुए है. इस लिये आरोपके आधारका अस्तित्व होना अनिवार्य है. और न्यायालयके प्रत्यक्ष तो प्रस्तूत करना ही पडेगा.

भारतके न्यायतंत्रकी निडरतासे इन्दिरा को बेहद नफरत थी. सर्वोच्च न्यायालयके मुख्य नायाधीश जब निवृत्त हुए तब उसने उच्चताके क्रममें चौथे क्रमवाले न्यायधीश, जो इन्दिराको सपर्पित थे उनको मुख्य न्यायाधीश बनाया. इससे वरिष्ठ क्रमके तीनों न्यायाधीशोंने त्यागपत्र दे दिया. अब सर्वोच्च न्यायालय इन्दिराके समर्पित हो गया. किन्तु  इन्दिराको लगा कि पूरा न्यायतंत्र उसको समर्पित नहीं हो सकता किन्तु सर्वोच्च न्यायालय समर्पित हो गया है तो इससे भी लाभ तो होगा ही. संसदकी अवधि कभी की समाप्त हो गयी थी और जो समय चल रहा था वह विस्तारित अवधिका था. विदेशोंमें इन्दिरा अपकीर्तित हो गयी थी. चूनाव करना आवश्यक हो गया था. उसके विश्वस्त गुप्ततंत्रने उसको बता दिया था कि आपतकालके विरुद्ध कोई कुत्ता भी नहीं भोंका है, तो इन्दिराने चूनावकी घोषणा कर दी.

किन्तु भारतीय संस्कृतिमें लोकतंत्रका मूल सहस्त्रों वर्ष पूराना है. और उस बीसवीं सदीके सत्तरके दशकके  समय माहात्मा गांधीवादीके समयके कई नेता जीवित थे. आरएसएस के सेवकोंने भी पूरा समय दिया. आरएसएसका व्यापक संगठन है. वह यदि सुग्रथित, सुनिश्चित और लयबद्ध रीतिसे बिना भेदभावसे एक ध्येय पर कार्य करें तो वह क्या कर सकता है यह बात उसने भारतमें १९७७में सिद्ध कर दिया.

इन्दिरा गांधी स्वयं ५५००० मतोंसे हारी. एक सरमुखत्यार, आपतकाल चालु रखके और समाचार माध्यमोंको एक मात्र स्वयंको ही समर्पित रखके चूनाव घोषित करें, तो भी, केवल उसका पक्ष ही नहीं स्वयं भी पराजित हो जाय, ऐसा विश्वमें कहीं हुआ नहीं है. केवल भारतमें ही हुआ और केवल भारतमें ही ऐसा हो सकता है.

मोरारजी देसाईको प्रधानमंत्री पदके लिये क्यों चूना गया?

१९७०के चूनावमें इन्दिरा प्रवाहमें पूरे देशमें कोंग्रेस (संस्था) हार गयी. अन्य दलोंका भी यही हाल हुआ था. केवल गुजरातमें मोरारजी देसाई वाली कोंग्रेसको अधिक बैठकें मिली. जयप्रकाश नारायणके आंदोलनमें और गुजरातके नवनिर्माण आंदोलनमें मोरारजी देसाईकी बडी भूमिका रही थी. वैसे भी वे वरिष्ठ थे और प्रशासनमें दक्ष थे. १९७७के चूनावमें भी कोंग्रेस (संगठान)की श्रेष्ठ भूमिका रही.

मोरारजी देसाई जनता पार्टीके नेता हुए. और प्रधान मंत्री बने.

किन्तु अपनेको महात्मा गांधीके सच्चे अनुयायी मानने वाले चौधरी चरण सिंहकी तबियत गुदगुदाई और उन्होने शासनकी अंतर्गत ही सियासत चालु कर दी. एक स्थिति ऐसी आयी कि मोरारजी देसाईने उनको पदभ्रष्ट भी कर दिया. और कहा कि तुम अपना चूनाव चिन्ह भी लेलो और जनता पार्टीसे अलग हो जाओ. उस समय चरण सींग के पास केवल ४० सदस्य थे. वे यदि चले भी जाते तो और कम सदस्य उनके साथ जाते. किन्तु अटल बिहारी बाजपाइ ने मोरारजी देसाईको मना लिया और आश्वासन दिलाया कि अब चरण सिंघ पुनरावृत्ति नहीं करेंगे.

लेकिन युपीकी और बिहारकी सियासत ही भीन्न है या वह कुछ भी हो चरणसींगने अपने गुटके सदस्यों और इन्दिरा, यशवंतराव चवाणके पक्षकी सहायता लेके मोरारजी देसाई की सरकारको गिरायी. चरण सिंहने इन्दिरा और चवाणसे आश्वासन लिया था कि वे संसदमें उनको प्रधानमंत्री बननेमें सहयोग देंगे. किंतु जब संसदमें बहुमत सिद्ध करने का समय आया तो इन्दिराने उनके विरुद्ध मतदान किया. इन्दिराने कहा मैंने तो केवल जनता पक्षकी सरकारके पतनके लिये ही आपको सहयोग दिया था. आपको प्रधानमंत्री तो बनने दिया, किन्तु यह आवश्यक नहीं कि हम आपको लगातार सहयोग देते रहें. इस प्रकार संसदमें प्रधानमंत्रीकी बैठक पर चौधरी चरण सिंह केवल ४५ सेकंड के लिये ही बैठ पाये. यह वही चरण सिंग थे जो इन्दिरा गांधीको प्रथम क्रमके दुश्मन मानते थे. उन्होंने इन्दिरा गांधीको, बिना कोइ पूर्व योजना बनाये गिरफ्तार भी किया था, किन्तु न्यायालयके सामने प्रस्तूत करने के समय सुयोग्य आधार होने के कारण न्याधीशने इन्दिराको मुक्त कर दिया था. यह सब अधिगत होने पर भी चरणसिंगने इन्दिरा गांधीका सहयोग लिया और जनता द्वारा सुस्थापित शासनका पतन करवाया. प्रयोजन केवल स्वयंको येनकेन प्रकारेण प्रधान मंत्री बननेका था.

यह मोरारजी देसाईने अपने १८ मासके शासन दरम्यान अर्थतंत्रमें पर्याप्त सुधार ला दिया था. संविधानमें भी पर्याप्त संशोधन कर दिया था ताकि, कोई स्वकेन्द्री और आपखुद व्यक्ति गणतंत्रको हानि कर सके.

चरण सिंह हंगामी प्रधानमंत्री बने रहे. इन्दिराने नीलम संजिव रेड्डीको मनवाकर संसद्का विसर्जन करवा दिया. चरणसिंगके कारण पुरा जनता पक्ष अपकीर्तित हो गया. १९८०का चूनाव जनता पक्ष हार गया. इन्दिरा पुनः सत्ता पर गई.

वह पुनः आपातकाल ला सकी. किन्तु सर्वोदय संस्थाओंको चून चून कर कष्ट दिया. सर्वोदयवाले भी अपनी संस्थाकी रक्षाके लिये इंदिराको समर्पित हो गये. आरएसएसवाले भी निवृत हो गये.

राम मनोहर लोहिया, राज गोपलाचारी, मसाणी, दांडेकर, मधु दंडवते, मधु लिमये और जयप्रकाश नारायण नारयण के अभावमें २००४ से २००८ तकके नहेरुवीयन कोंग्रेसके कुकर्मोंका उत्तर मागने वाला और ऊंचे स्वरमें बोलने वाला कोई बचा नहीं था.

लालकृष्ण अडवाणीकी रामरथ लेके देशमें कोमवाद फैलानेके लिये दोषित मानके कडी आलोचना की जाती थी, और रामजन्म भूमि पर स्थित बाबरी मस्जिदका ढांचा गिराने के लिये उनको कारावासमें भेजनेका कहा जाता था, वही समाचार माध्यम आज उनकी कथित लोकशाही संकट के विधानोंपर प्रशंसा के पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं. जब जब अडवाणीने नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध विसंवादी उच्चारण किया है तब तब समाचार माध्यमोंने और मोदीसे जलने वालोंने अडावाणी पर पुष्पोंकी वर्षा की है.  

अडवाणी को अवश्य पेटमें दर्द है. किन्तु अडवाणीको समझना आवश्यक है कि १९९९२००४ वे स्वयं गृह मंत्री थे. यदि वे दक्ष होते तो वे अपने कार्य द्वारा दक्षता और मस्तिष्क द्वारा व्युहरचना के आधार पर पुनःविजय प्राप्त कर सकते थे. मान लिजीये एक बार विफल हो गये. तो भी २००९ में तो अडवाणीके पास अति सानुकुल परिस्थिति थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके कौभाण्ड, आपखुदी और शिथिल शासन चरमसीमा पर था. इतना ही नहीं आपतकालकी नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मानसिकता ही एक वज्रास्त्र है. किन्तु बीजेपीके अन्य नेताओं को छोड दो तो भी, अडवाणीको स्वयंको इस शस्त्रका उपयोग करना नहीं आता है. नहेरुवीयन कोंग्रेस, जिसके लिये आज भी इन्दिरा और नहेरु उतने ही पूज्य है जितने पूर्वकालमें थे. और इसीकारणनहेरुवीयन आपातकालबीजेपीके नेताओंके लिये एक वज्रास्त्र है यदि उसका उपयोग करना चाहे तो.

२०१४ के चूनावके पूर्व यदि अडवाणी प्रधानमंत्री पदके लिये प्रस्तूत किये जाते तो बीजेपीकी पराजय निश्चत थी. संघने बीजेपी पर मोदीके लिये दबाव नहीं डाला था. किन्तु आम जनताका क्या मत है वह संघ और बीजेपीनेता अधिगत कर पाये इसी कारणसे बीजेपी ने मोदी का नाम प्रस्तूत किया या करना पडा.

क्या मोदीकी तरह अडवाणी परियोजनाएं सोच सकते है? नहीं.

क्या मोदीकी तरह अडवाणी नवतर संकल्प कर सकते है?

क्या मोदीकी तरह अडवाणी व्यूहरचानाएं कर सकते है? नहीं.

क्या मोदीकी तरह अडवाणी प्रवचन कर सकते है? नहीं.

क्या नरेन्द्र मोदीकी तरह १८ कलाक, अडवाणी काम कर सकते है? नहीं.

यदि ऐसा होता तो अडवाणी २००४ और २००९ में बीजेपीको चूनाव में विजय दिला सकते थे.

अडवाणी को अपातकाल कैसा था वह योग्य प्रमाणमें अवगत है, अधिगत और अनुभूत भी है.

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उन्होने ऐसे सियासतसे भरपुर और स्वयंके पक्षके उच्चस्थ और लोकप्रिय नेताको हानि पहोंचे ऐसा  उच्चारण प्रथमवार नहीं किया है. अडवाणीने ऐसा अनेक बार किया है.

नरेन्द्र मोदीको चूनाव प्रचारके लिये मुख्य प्रचारक घोषित किया गया तब भी अडवाणीने ऐसे विसंवादी उच्चारण किया था. आदवाणीने शिवराज चौहाण और सुष्मा स्वराजको भी उकसाया था. किन्तु इन दोनोंको भूतलकी परिस्थिति ज्ञात थी.

उस समय भी समाचार माध्यमोंने इस वार्ता को उछाली थी.

तत्पश्चात जब नरेन्द्र मोदीका नाम प्रधानमंत्रीके पदके अभ्यर्थी के लिये अनुमोदित किया तब भी अडवाणीने इसमें विसंवादी उच्चारण करके अपनी मनोवृत्तिका प्रदर्शन किया था. उन्होंने पक्षके लिये अतिप्रतिकुल स्थिति उत्पन्न की थी.

इस समय जब नरेन्द्र मोदीने वैश्विक संबंधोंमें दूरगामी और देशके लिये सानुकुल परिवर्तन के लिये अनेक कदम उठाये हैं और सर्वत्र नरेन्द्र मोदी और उसकी सरकारको कीर्ति मिल रही है उस समय यह अडवाणीने असंबद्ध और अनुचित विसंवादीआपतकाल की शक्यता है और लोकतंत्र असुरक्षित हैऐसे उच्चारण किये.

हो सकता है कि अडवाणीके पेटमें पीडा हो. किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि वह इस प्रकार अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित करनेकी चेष्टा करें.

समाचार माध्यम और नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध गुट नरेन्द्र मोदीको धराशायी करने के लिये उत्सुक है उसको तो यही चाहिये कि बीजेपीमें कोई चरणसिंग पैदा हो.

अडवाणीको तो, नरेन्द्र मोदीके विरोधीयोंको मोदीकी निराधार भर्त्सनाके लिये, अवसर देना था वह दे दिया. नरेन्द्र मोदीके विरोधीयोंने अपना काम कर दिया. नरेन्द्र मोदीको जो आघात पहोंचाना था वह पहुंचा दिया. इतना सबकुछ कर देनेके बाद अडवाणीने कहा कि स्वयंने तो कोंग्रेसको अनुसंधानमें रख कर उचारण किया था.

अरे भैया अडवाणी, यदि आपातकाल प्रसिद्ध कुकर्म कुत्सित कोंग्रेसके संदर्भमें उच्चारण किया था तो उसका नाम क्यों नहीं लिया?

राम लीला मैदानमें मध्य रात्रिको रामदेवके साथ जो हुआ, टीम अन्ना हजारेके साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसने जो व्यवहार किया, उनके बारे में जो कहा गया कि वे सरसे पांव तक भ्रष्ट है. किरण बेदीके उपर जो आक्षेप हुए, नहेरुवीयन कोंग्रेसने उस समयके उसके विरोधीयोंके साथ जो वर्तन और गाली प्रदान किया, उस समय हे अडवाणी, आपने क्या किया? यदि उस समयआपातकाल की शक्यता है और लोकतंत्र असुरक्षित हैकहा होता तो अडवाणीजी आप कुछ विश्वसनीय बनते.

जनता हैरान है कि आप इस उम्रमें और वह भी अद्यतन वर्तमान समयमें तात्विक सबूतके अभावमें निश्चयात्मक साध्य सिद्ध हो गया मानके क्यों चलते है? जब आपसे पूछा गया तो आपने कोंग्रेसका संदर्भ बताया. स्पष्टीकरण ऐसा करते है. वास्तवमें यह आपका स्पष्टीकरण है ही नहीं. आपको आपकी सीमा ज्ञात होनी आवश्यक है.

लोग यही मानेंगेकी चरणसिंगकी रुह आपमें घुसी है. चरणसिंहने जो किया इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसको दूर करनेमें जनताको ३५ वर्ष लग गये. आप नरेन्द्र मोदीके विकासके यज्ञमें हड्डीयां क्यों डालते है? एकबात ध्यानसे समझ लो, अब आप प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. यदि राष्ट्र पति बनना है तो जीव्हा पर और स्वयंकी मंशापर अंकुश रक्खो

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः आपातकाल, २५ जुन, नहेरुवीयन कोंग्रेस, इन्दिरा गांधी, मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण, चरणसिंग, रुह, पराजय, विसंवाद, अडवाणी, नरेन्द्र मोदी, प्रधान मंत्री   

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