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सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१
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सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-१
यदि आप बछडेकी सरे आम और वह भी सडक पर हत्या कर सकते है और बछडेके मांसको पका सकते है और मांसका वितरण कर सकते है और भोजन समारंभ कर सकते है तो अब तुम कई सारे कार्य कर सकते हो. सोमनाथका मंदिर तोडने के लिये आगे बढो. प्रदर्शन करना, कानुन भंग करना जनतंत्रमें आपका अधिकार है.
लोग पूछेंगे आप किससे बात कर रहे हो? कौन तोडेगा सोमनाथका मंदिर?
नहेरुवीयन कोंग्रेस ही सोमनाथका मंदिर तोड सकती है. सामान्य मुसलमान लोगोंके लिये यह बसकी बात नहीं है. यदि नहेरुवीयन कोंग्रेस द्वारा सोमनाथका मंदिर तोडा जाय तो भारतके अधिकतर मुसलमान अवश्य आनंदित होगे. पाकिस्तान के लोग भी आनंदित होगे. इससे पाकिस्तान और हिंदुस्तानके संबंधोंमे सुधार आयेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसका और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका ध्येय मुसलमानोंको आनंदित करना ही तो है.
“दो बैलोंकी जोडी”
गाय के ब्रह्मरंध्रके हिस्सेमें परमेश्वरका वास है. वैसे तो गायमें सभी देवताओंका वास है. किन्तु सबसे वरिष्ठ, ऐसे देवाधिदेव महादेव ब्रह्मरंध्रमें बिराजमान है. देवताओंके अतिरिक्त सप्तर्षियोंका भी वास है. गाय का दूध, गोबर और मूत्र, औषधि माना जाता है. हमारे बंसीभाई पटेल, कुछ वर्षोंसे केवल गायके दूध पर ही जीवन व्यतित कर रहे हैं. वे ९५ वर्षके है और तंदुरस्त है.
महात्मा गांधीकी कार्य सूचिमें मदिरा-निषेधके पश्चात् गौ-वंश वध निषेध आता था. उसके पश्चात् स्वावलंबन और अहिंसा आदि “मेरे स्वप्नका भारत और हिन्द स्वराज”में लिखी गई कार्य सूचिमें आते थे.
नहेरुको महात्मा गांधीकी यह मानसिकता पसंद नही थी. किन्तु नहेरुका कार्य सूचिमें प्रथम क्रम पर सत्ता, और उसमें भी सर्वोच्च शक्तिमान प्रधानमंत्री पद था. यदि वे निर्भय होकर सामने आते और “मनकी बात” प्रदर्शित करते तो उनके लिये प्रधानमंत्रीका पद आकाशकुसुमवत बन जाता.
इस कारणसे नहेरुने महात्मा गांधीका कभी भी विरोध नहीं किया.
भारतीय संविधानमें ही मदिरा-निषेध, गौवध-निषेध और अहिंसक समाजकी स्थापना, ऐसे कर्य-विषयोंका समावेश किया जाय ऐसी महात्मा गांधीकी महेच्छा थी. ये बातें महात्मागांधीके “हिन्द-स्वराज्य”में स्पष्ट रुपसे लिखित है. संविधानकी रचनाके कालमें तो कई सारे महात्मा गांधीवादी, विद्यमान थे. नहेरुने तो कोई संविधान लिखा नहीं. हां नहेरुने भारतका इतिहास जो अंग्रेजोने लिखा था उसका “कोपी-पेस्ट” किया था. नाम तो डीस्कवरी ऑफ ईन्डीया लिखा था, किन्तु कोई डीस्कवरी सुक्ष्मदर्शक यंत्रसे भी मिलती नहीं है.
बाबा साहेब आंबेडकरने भारतका संविधान लिखा है. नहेरुने केवल स्वयंको जो विपरित लगा उनको निर्देशात्मक सूचिमें समाविष्ठ करवा दिया. निर्देशात्मक सुचिमें समावेश करवाया उतना ही नहीं, उनको राज्योंके कार्यक्षेत्रमें रख दिया.
उत्तर प्रदेश सर्वप्रथम राज्य था जिसने गौवध निषेध किया. उस समय नहेरुने आपत्ति प्रदर्शित की थी, और त्याग पत्र देनेकी भी धमकी भी दी थी, किन्तु तत्कालिन पंतप्रधानने उनकी धमकीकी अवगणना की.
नहेरु अपने को धर्म निरपेक्ष मानते थे और वे अपने अल्पसंख्यकोंको अनुभूति करवाना चाहते थे कि वे (स्वयं परिभाषित परिभाषाको, स्वयं द्वारा ही प्रमाणित) धर्मनिरपेक्षता पर प्रतिबद्ध थे.
नहेरुकी यह मानसिकता, नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण और उनसे अभिभूत अनुयायीगणमें भी है. अभिभूत शब्द ही सही है.
एक समय था जब कोंग्रेसका पक्षचिन्ह दो-बैलोकी जोडी था. बैल भी गायकी ही प्रजातिमें आता है. १९६९में नहेरुवीयन कोंग्रेसका, नहेरुकी फरजंद ईदिरा गांधीकी नेतागीरीवाली, और कोंग्रेस संगठनकी सामुहिक नेतागीरीवाली, कोंग्रेसमें विभाजन हुआ. कोंगी [कोंग्रेस (आई)], कोंगो [कोंग्रेस (ओ)].
गाय बछडावाली नहेरुवीयन कोंग्रेस
ईन्दीरा गांधीमें नहेरुके सभी कुलक्षण प्रचूर मात्रामें थे. अपने पक्षका चिन्ह उसने गाय-बछडा रक्खा जिससे हिन्दुओंको और खास करके कृषक और गोपाल समाजको आकर्षित किया जा सके. ईन्दिरा गांधीने आचारमें भी जनताका विभाजन, धर्म और ज्ञातिके आधार पर किया. जब वह शासन करनेमें प्रत्येक क्षेत्रमें विफल रही तो उसने आपत् काल घोषित किया.
इस आपात् काल अंतर्गत विनोबा भावे ने ईन्दिरा गांधीको पत्र लिखा की “गौ-हत्या”का निषेध किया जाय, नहीं तो वे आमरणांत अनशन पर जायेंगे. आपात्कालके अंतर्गत तो समाचार माध्यममें शासनके विरुद्ध लिखना निषेध था. इस लिये विनोबा भावे के पत्रको प्रसिद्धि नहीं मिली. ईन्दिरा गांधीने आश्वासन दिया की वह गौ-हत्या पर निषेध करेगी और उसने समय मांगा. विनोबा भावे तो शतरंजके निपूण खिलाडी थे. उनको तो परीक्षा करनेकी थी कि इन्दिरा गांधी पूरी तरह मनोरोगी हो गई है या नहीं. विनोबा भावेको लगा कि ईन्दिरा गांधी पूर्णतया मनोरोगी नहीं बन गयी है किन्तु रोग अवश्य आगे बढ गया है. इसलिये उन्होने आचार्य संमेलन बुलाया. इसकी बात हम यहां नहीं करेंगे.
विनोबा भावे को यह अनुभूति नहीं हुई कि जब कोई पक्षका नेता स्वकेन्द्री और दंभी बन जाता है तो ऐसी मानसिकता उनके पक्षके अधिकतर सदस्योंमें भी आ जाती है. ये लोग तो अपने नेतासे भी आगे निकल जाते है. और शिर्षनेतागणको यह उचित भी लगता है क्यों कि पक्षके एक सदस्यने यदि कोई अभद्र व्यवहार किया और पकडा गया, तो शिर्ष नेतागण स्वयंको उससे वे सहमत नहीं है ऐस घोषित कर सकते है और आवश्यकता अनुसार स्वयंको वे, उससे असहमत और भीन्न है ऐसा दिखा सकते है.
नियमोंवाला संविधान किन्तु आचारमें मनमानी
नहेरुवीयन कोंग्रेसने नियम तो ऐसे कई बनाये है. किन्तु नियम ऐसे क्षतिपूर्ण बनाये कि वे नियम व्यंढ ही बने रहे. ऐसे नियम बनानेका उसका हेतु अबुध जनता को भ्रमित करनेका था. उनका कहना था कि “देखो, हमने तो नियम बनाये है, किन्तु उसका पालन करवाना शासनका काम है. यदि कोई राज्यमें विपक्ष का शासन है तो नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसा कहेगी कि “यह तो राज्यका विषय है” यदि वहां पर नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन है तो उसका कथन होगा “हमने विवरण मांगा है ….” या तो “अभी तो केस न्यायालयके आधिन है … देखते हैं आगे क्या होता है. … हम प्रतिक्षा कर रहे हैं”. यदि न्यायालयने नियम तोडनेवालेके पक्षमें न्याय दिया तो नहेरुवीयन कोंग्रेस कहेगी कि “हम अध्ययन कर रहे है कि कैसे संशोधन किया जाय.”
नहेरुवीयन कोंग्रेस द्वारा आपने गौ-मांस-भोजन-समारंभ तो देखे ही है.
निर्देशात्मक नियमोंका दिशा सूचन
समाजमें सुधार आवश्यक है. किन्तु समाज अभी पूरी तरह शिक्षित हुआ नहीं है. इसीलिये क्रमशः सुधार लाना है. निर्देशात्मक नियमोंका यह प्रयोजन है. वे दिशासूचन करते हैं. यदि कोई राज्यका शासन नियम बनानेकी ईच्छा रखता है तो वह निर्देशात्मक नियमकी दिशामें विचारें और नियमका पूर्वालेख, नियमको उसी दिशामें, आचारके प्रति, शासनको प्रतिबद्ध करें. यही अपेक्षा है. निर्देशित दिशासे भीन्न दिशामें या विरुद्ध दिशामें नियम बनाया नहीं जा सकता.
नहेरुवीयन कोंग्रेस शासित राज्योंमें, जो नये नियम बने, वे अधिकतर निर्देशित सिद्धांतोसे विपरित दिशामें है. जैसे कि मद्य-निषेध. उन्नीसौसाठके दशकमें महाराष्ट्र स्थित नहेरुवीयन कोंग्रेसने मद्यनिषेधके नियमोंको सौम्य बनया ताकि ज्यादा लोग मद्यपान कर सके.
असहिष्णुताकी वोट बेंक बनाओ
धर्म के आधार पर विभाजन इस हद तक कर दो कि लोग अन्य धर्मके प्रति असहिष्णु बन जाय. हिन्दुओंको विभाजित करना तो सरल है.
वेमुला, अखलाक, कन्हैया जैसे प्रसंगोंको कैसे हवा दी गयी इस बातको हम सब जानते है. यदि कोई हिन्दु जरा भी असहिष्णु बने तो पूरे हिन्दुओंकी मानसिकताकी अपकिर्ती फैला दो.
नहेरुवीयन कोंग्रेसने ऐसी परिस्थिति बना दी है कि यदि कोई सुरक्षाकर्मी, जीपके आगे किसी पत्थरबाज़ को बांध दे और सुरक्षा कर्मीयोंको पत्थरबाज़ोंसे बचायें और परिणाम स्वरुप आतंक वादियोंसे जनताकी भी सुरक्षा करें, तो फारुख और ओमर जैसे मुस्लिम लोग आगबबुला हो जाते हैं.
यदि फारुख और ओमर इस हद तक जा सकते है तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको तो फारुख और ओमरसे बढकर ही होना चाहिये न !!
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) भाग – २
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अमित शाह, अस्विकार्य, आवास, उछाल, कोमवाद, गजेन्द्र गडकरी, गठबंधन, गुजरात, गौ, घटना, चूनाव, दंभी, दाद्री, धर्मनिरपेक्ष, नरेन्द्र मोदी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नौकरी, बिहार, बिहारी, बीजेपी, महाठग, युपी, राजनाथ सिंह, विकास, विचारधारा, विभाजन, व्यवसाय, संदेश, संविधान, समाचार माध्यम, सुनिश्चित मतदाता on November 13, 2015| Leave a Comment »
जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) भाग – २
दाद्रीकी घटानाको उछालके यह महाठग महाधूर्त महागठबंधन काफी सफल रहा.
सफल होनेका श्रेय, समाचार माध्यम, नहेरुवीयन कोंग्रेस, महा गठबंधन और कुछ दंभी धर्मनिरपेक्ष गेंग, ये चारों चंडाल चौकडीने मिलके जो महाठग बंधन करके जो रणनीति बनायी थी उसको जाता है.
महागठबंधन और महागठबंधनमें क्या भेद है?
महागठबंधन नहेरुवीयन कोंग्रेस, आरजेडी और जेडीयु इन तीनोंने मिलकर एक चूनावी और सत्तामें भागीदारी करने के लिये एक गठबंधन बनाया है वह है. महाठग गठबंधन एक ऐसा गठबंधन है जिनका एक मात्र हेतु बीजेपीको चूनावमें हराना है. और अपने धंधे चालु रखना है. उनके अनेक धंधेमें सत्ताकी प्रत्यक्ष और परोक्ष भागबटाइ, अयोग्य रीतीयोंसे पैसे कमाना और देशकी आम जनताको गुमराह करके गरीबी कायम रखना ताकि आम जनता विभाजित और गरीब ही रहे.
महाठग–गठबंधनकी पूर्व निश्चित प्रपंचकारी और विघातक योजना
बीजेपीने विकासके मुद्दे पर ही अपना एजन्डा बनाया था. किन्तु यदि परपक्ष, यानी उपरोक्त महाठगोंका गठबंधन, कोमवादका मुद्दा उठावे तो उसको कैसे निपटा जाय, उसके लिये बीजेपी संपूर्ण रीतसे सज्ज नहीं था. महाठग–गठबंधन, दाद्रीकी घटनाको, मीडीया और दंभी धर्मनिरपेक्ष गेंग के सहारे कोमवाद पर ले गया.
जब भी चूनाव आता है और जब हवा नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विरुद्धमें होती है तो कोमी भावना भडकाना नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनमें और उसके सांस्कृतिक पक्षके शासनमें एक आम बात है.
आरएस एस, वीएचपी और कुछ बीजेपी नेता भी बेवकुफ बनकर, समाचार माध्यमोंकी हवामें आके उसको हिन्दुमान्यताके परिपेक्ष्यमें आक्रमक बनके प्रत्याघात देने लगतें हैं. वास्तवमें बीजेपीको गौ–वध वाले कोमवादी उस मुद्देको तर्क और अप्रस्तूतताके आधार पर लेजाके उसका खंडन करनेका था. बीजेपी नेतागण उपरोक्त महाठग बंधनी पूर्व निश्चित चाल नहीं समझ पाये. बीजेपी नेतागण को समझना चाहिये कि नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावकी रणनीति बनानेमें उस्ताद है. इसी कारण वह महाभ्रष्ट होनेके बावजूद, भारत जैसी महान और प्राचीन धरोहरवाले देश पर ६० वर्ष जैसे सुदीर्घ समयका शासन कर पाई.
शत्रु को कभी निर्बल समझना नहीं चाहिये.
आरएसएस और वीएचपीमें बेवकूफोंकी कमी नहीं है. ये लोग कई बार सोसीयल मीडीयामें वैसे भी फालतु, असंबद्ध और आधारहीन वार्ताएं लिखा करते हैं, जिससे बीजेपीकी भी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाते है.
जनताके कई पढे लिखे लोग यह नहीं समझ सकते की आरएसएस और वीएचपी के लोग सिर्फ मतदाता है. यह बात सही कि, वे बीजेपीके निश्चित मतदाता है. हर सुनिश्चित मतदाता अपने मनपसंद पक्षका प्रचार करता है ऐसा नहीं है. इसका अर्थ यह नहीं कि हर सुनिश्चित मान्यतावाला मतदाता अपने पक्षका प्रचार करे ही नहीं. क्यों कि किसी मतदाताको आप प्रचार करनेमेंसे रोक नहीं सकते. यदि वह अपने पक्षका प्रचार करे या तो पर–पक्षके उठाये गये प्रश्नोंका उत्तर दें तो यह मानना नहीं चाहिये कि उसका अभिप्राय वह पक्षकी विचारधारा है. यदि महाठग गठबंधन आरएसएस या वीएचपी के उच्चारणोंको बीजेपीकी विचारधारा मानता है तो …
कोमवादी और आतंकवादी मुस्लिम जो कुछ भी बोले वह युपीएकी विचारधारा है
जैसे अधिकतर मुसलमान और कुछ अन्य जुथ नहेरुवीयन कोंग्रेस या तो उसके सांस्क्रुतिक पक्षके सुनिश्चित मतदाता है. वे कई बातें अनापसनाप बोलते हैं और कुतर्क भी करते हैं. उनकी बातें भी तो नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्क्रुतिक साथीयोंकी विचारधारा है समज़नी चाहिये. समाचार माध्यमको ऐसा ही समज़ना चाहिये. वे दोहरा मापदंड क्यों चलाते है? अकबरुद्दीन ओवैसी, फारुख, ओमर, गीलानी, आजमखान, लालु, पप्पु, अरुन्धती, तित्सा, मेधा, आदि आदि जो भी कोमवादको बढावा देनेवाले उच्चारण करते है वे सब नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथी है वे जो कुछभी बोले वह नहेरुवीयन कोंग्रेसकी ही विचार धारा है.
विडंबना और कुतर्क तो यह है कि, नहेरुवीयन कोंग्रेस तो उसके प्रवक्ताओंके भी कई उच्चारणोंको उनकी निजी मान्यता है ऐसा बताती है. यहां तक कि यदि नहेरुवीयन कोंग्रेसका उप प्रमुख, नहेरुवीयन कोंग्रेसके मंत्री मंडलने पारित प्रस्ताव विधेयक को फाडके फैंक तो भी वह इस घटनाका उल्लेख पक्षके उपप्रमुखका नीजी अभिप्राय बताता है. बादमें उसी प्रस्तावमें संशोधन करता है. वैसा ही इस नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोमवादी नेताओंके विरोधी प्रतिभावोंके चलते शाहबानो की न्यायिक घटनाके विषय पर संविधानमें संशोधन किया था. तात्पर्य यह है कि ऐसे सुनिश्चित मतदाता जुथोंके मंतव्य, वास्तविक रुपसे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी विचारधारा होती ही है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओंका स्थान आजिवन कारावासमें या फांसीका फंदा ही है. आरएसएस या वीएचपी के लोग तो बीजेपीके शासनके सहयोगी भी नहीं है. दोनोंकी प्राथमिकताए और मान्यताएं भीन्न भीन्न है. तो इनके भी बयान बीजेपीका सरकारी बयान नहीं माने जा सकते.
बिहारमें दंभी धर्मनिरपेक्षोंका विभाजनवादी नग्न नृत्य
बीजेपी एक राष्ट्रीय पक्ष है. अमित शाह, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, आदि सब भारतके नागरिक है.
महाठग–गठबंधनके नेताओं की विभाजनवादी मानसिकताका अधमाधम प्रदर्शन देखो.
बिहारमेंसे बाहरीको भगाओ
अमित शाह, नरेन्द्र मोदी, राजनाथ सिंह, स्मृति ईरानी, आदि को नीतीशकुमार और उसके साथी बाहरी मानते है. ऐसे बाहरी लोगोंको बिहारमें प्रचारके लिये नहीं आना चाहिये. बिहारमें केवल बिहारी नेताओंको ही चूनाव प्रचारके लिये आना चाहिये.
इसी मानसिकतासे नीतीशकुमार अपनी चूनाव प्रचार सभामें जनताको कहेते थे कि आपको चूनाव प्रचारमें कौन चाहिये, बिहारी या बाहरी?
तात्पर्य यह है कि, बिहारमें चूनाव प्रचारका अधिकार केवल बिहारीयोंका ही है. बाहरी लोगोंका कोई अधिकार मान्य करना नहीं चाहिये. महाठग–गठबंधनके किसी नेताने नीतीशकी ये विभाजन वादी मानसिकताका विरोध नहीं किया. इतना ही महाठग–गठबंधनके लोगोंने तालीयां बजायी. समाचार माध्यमके विश्लेषकोंने भी इसका विभाजनवादी भयस्थानको उजागर नहीं किया क्यों कि वे हर हालतमें बीजेपीको परास्त करना चाहते थे. महाठग–गठबंधनके नेताओंका यह चरित्र है कि देशकी जनता विभाजित हो जाय और देश कभी आबाद न बने और वे सत्तामें बने रहें और मालदार बनें.
नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथीयोंका ध्येय रहा है कि, देशकी जनता विभाजित होती ही रहे और खुदका हित बना रहे.
बाहरी और बिहारीसे क्या निष्कर्ष निकलता है?
महागठबंधन बिहारकी जनताको यह संदेश देना चाह्ता है कि बिहारमें हमे चूनाव प्रचारमें भी बाहरी लोग नहीं चाहिये. यदि चूनाव प्रचारमें भी बाहरी और बिहारीका भेद करना है तो व्यवसाय और नौकरीमें तो रहेगा ही. जो लोग केवल चूनाव प्रचारके लिये आते है वे तो बिहारीयोंको कोई नुकशान नहीं करते. वे लोग न तो उनको भूका मारते है न तो उनकी नौकरीकी तकमें कमी करते हैं, नतो उनकी व्यवसायकी तकोंमें कमी करते है न तो उनके आवासकी तकोंमे कमी करते हैं, तो भी महाठग–गठबंधन बाहरी लोगोंके प्रति एक तिरस्कारकी भावना बिहारी जनतामें स्थापित करनेका भरपूर प्रचार करता है.
बिहारी–बाहरी द्वंद्वका क्या असर पड सकता है. यदि बिहारमें बाहरी आवकार्य नहीं है तो जो बिहारके लोग बाहर और वह भी खास करके मुंबई, गुजरात आदि राज्योंमे जाके वहांके लोगोंकी नौकरीकी तकोंमें कमी करते हैं, वहांके लोगोंकी व्यवसायी तकोंमें कमी करते हैं और वहां जाके झोंपडपट्टी बनाके असामाजिक तत्वोंको बढावा देते हैं वहां पर महाठग–गठबंधनका यही संदेश जाता है कि बिहारी लोग आपके केवल चूनाव प्रचार करनेके लिये आने वाले चाहे वह देशका प्रधान मंत्री क्यों न हो, उसको बहारी समज़ते है और अस्विकार्य बनते है. महाराष्ट्रके नीतिन गडकरी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नरेन्द्र मोदी बाहरी है ऐसा थापा, बिहारकी जनता मारती है, तो बिहारके लोग भी गुजरात, महाराष्ट्र, मुंबई आदिमें बाहरी ही है. ये बिहारके बाहरी लोगोंको नौकरी और व्यवसाय आदिके लिये अस्विकार्य बनाओ. महाठग–गठबंधनके नेताओंने यही संदेश दिया है, इस लिये यदि महाराष्ट्र, गुजरात और युपीके लोग बिहारीयोंको बाह्य समज़के उसको नौकरी, व्यवसाय, सेवा आदिके लिये अस्विकार्य करें तो इस आचारकी भर्त्सना करना अब न तो बिहारीयोंका हक्क है नतो महाठग–गठबंधनके लोगोंका हक्क है.
महाठग–गठबंधनने अपने स्वार्थ लिये देशकी जनताको एक विनाशकारी संदेश दिया है, उसके लिये उसमें संमिलित तत्वोंके उपर न्यायिक कार्यवाही होनी चाहिये. उनकी संस्थाकी या और उनके स्थान होद्देकी जो भी बंधारणीय मान्यता हो उसको तत्काल निलंबित करना चाहिये और न्यायिक कार्यवाहीके फलस्वरुप मान्यता रद होनी चाहिये.
यदि ऐसा नहीं होगा तो एक विनाशक प्रणाली स्थापित होगी जो देशकी एकता पर वज्राघात करेगी.
शिरीष मोहनलाल दवे.
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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1
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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1
क्या यह सत्य और श्रेयकी जित है?
नहीं. यह सत्यकी जित नहीं है.
सत्य और श्रेय है वह जनताके बहुमतसे सिद्ध नहीं होता है.
हम जिन चूनावी प्रक्रियाओंके आधार पर जनताका अभिप्राय प्राप्त कर रहे है वह हमेशा सत्य को पुरस्कृत नहीं करता.
बहुमत, सत्यका आधार नहीं बन सकता. बिहारकी जनताने जिस गठबंधनको जित दिलाई, इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि सत्य, उस गठबंधनके पक्षमें था जो जिता था.
सत्य किसके पक्षमें था?
सत्य बीजेपीके पक्षमें था.
सत्य किसको कहेते हैं?
यहां पर सत्यका अर्थ है,
(१) ऐसा कोनसा पक्ष है कि जिसके पास भारतकी समस्याओंकी अधिक जानकारी है?
(२) ऐसा कौनसा पक्ष है जो इस समस्याओंका समाधान सुचारु रुपसे कर सकता है?
(३) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास आर्षदृष्टि है?
(४) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचि है और उसके उपर प्रतिबद्ध है?
(५) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचिकी प्रणाली भी सुनिश्चित है?
(५) ऐस कौनसा पक्ष है जो अधिक नीतिवान है?
(६) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास व्यापक संगठन है?
(७) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके लिये “प्राथमिकता भारतका हित” है?
श्रेय पक्ष बीजेपी ही है
ऐसा पक्ष केवल और केवल बीजेपी ही है जिसके नेता नरेन्द्र मोदी है. इसके उपर यदि किसीको संदेह हो तो इसकी चर्चा हो सकती है. इससे यदि कोई श्रेयतर नेता है तो बताओ.
नीतिओंकी स्पष्टता, आर्षदृष्टि और नीतिमत्ता इनका अभाव, वह जेडीयु है.
हम आरजेडी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, एस पी, एनसीपी, आदिकी बातें नहीं करेंगे. इन सबके काले करतूत इतिहासके पन्नोंपर पर विद्यमान है. वे सभी पक्ष, एक दुसरेके अवलंबनके लिये विवश है. ये सभी राजकीय समीकरणों के आधार पर बनाई गई चूनावी गेमके से जिन्दा है. आवश्यकता होने पर एक होते है और आवश्यकता यदि न हो तो एक दुसरेके दुश्मन बनते हैं.
बीजेपी भी ऐसे गठबंधनके लिये विवश बनता है. जैसे कि बीजेपी, शिवसेना, एमएनएस, एल जे पी, डी.एम.के. या ए.डी.एम. के साथ गठबंधन करती है. किन्तु बीजेपीने कभी भ्रष्टाचार के साथ समझौता नहीं किया.
यह बात सही है कि, कोई विस्तारमें अपने अस्तित्वको बनानेके लिये बीजेपीने ऐसे प्रादेशिक संकुचित मानसिकता वाले पक्षोंसे समझौता किया है. यदि प्रमाणभान की प्रज्ञासे देखा जाय तो बीजेपी की मात्रा अन्य पक्षोंकी तरह असीम नहीं है.
जेडीयुने आरजेडी और नहेरुवीयन कोंग्रेससे गठबंधन किया. ये दोनों पक्ष एक समय उसके सैधांतिक आधार पर दुश्मन नंबर एक थे.
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो एक स्वकेन्द्री, वंशवादी और देशकी जनताको विभाजित करने वाला सरमुखत्यार शाहीमें मानने वाला पक्ष है. इसके पास स्वकेन्द्रीय सत्ता प्राप्त करनेके अतिरिक्त, कोई अन्य कार्य सूचि नहीं है. इसने ही उच्च न्यायालयकी अवमानना करके जनतंत्रको नष्ट भ्रष्ट करदिया था. महात्मा गांधीके निकटके साथीयों तकको इसने बिना कोई अपराध और बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया, कारवासमें अनियतकाल के लिये बंद किया था और मरणासन्न किया था. ये सब बातें एततकालिन इतिहासके पन्नों पर विद्यमान है. तो भी जेडीयुने इस कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. इससे जेडीयुकी मानसिकताका दर्श्न होता है. आरजेडी नेता भी १९७७में जनता पक्षके सदस्य थे और उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसको नष्ट करनेका प्रण लिया था. जब जनता पक्ष तूट गया और जनता दल भी तूटा, तो लालु यादवने अपने लिये एक वंशवादी पक्ष बना लिया. इसने केवल सत्ताके लिये ही नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. लालु यादव अपने कौभांडोके कारण कारावाससे बचने के लिये ये सब करते रहे. उनके शासनको “जंगल राज”का प्रमाणपत्र नीतीशकुमार स्वयंने दिया था.
ये तीनोंने मिलके बिहार पर कमसेकम ४० वर्ष राज किया है. तो भी ये पक्ष बिहारका विकास नहीं करपाये. ये सब बिहारको पछात राज्यकी कक्षा की मान्यता मिले ऐसी वार्ताएं करते रहे. तदुपरांत समाजकी विभीन्न जातियोंके लिये शिक्षा और नौकरीमें आरक्षण मिलता ही रहे ऐसी प्रतिक्रिया भी प्रदर्शित करते रहे.
इन तीनों पक्षकी अपेक्षा बीजेपीका व्यवहार व्यवस्थित रहा है. इसलिये बीजेपी की विजय चूनावमें होना अपेक्षित था और श्रेय भी था.
किन्तु बीजेपी और उसके साथी पक्ष बिहार चूनावमें पराजित हुए
बीजेपी एक ऐसा पक्ष है जो भारतकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व रखता है. उसका स्वदेशीमें विश्वास है. स्वदेशी उत्पादनमें मानता है और स्वदेशी भाषाओं उपर गर्व रखता है. विदेशीओं द्वारा लिखित आधारहीन भारतीय इतिहासमें वह विश्वास नहीं रखता है. तद उपरांत वह परशुराम, राम, कृष्ण आदि पौराणिक या महाकाव्यके पात्रोंको ऐतिहासिक मानता है.
बीजेपी और खास करके नरेन्द्र मोदी मानते है कि सभी समस्याओंका मूल, शिक्षाका अभाव और कामका अभाव है. इसलिये दो प्राथमिकता बननी चाहिये. एक है, शिक्षासे कौशल्य, और दुसरा है भूमिगत संरचना यानी कि, उर्जा, मार्ग, परिवहन, जल संचय, जलवितरण आदिके विकाससे उत्पादनमें वृद्धि. इस प्रकार विकास करनेसे हर समस्याका निवारण हो जायेगा चाहे वह जातिगत हो या आर्थिक हो.
नरेन्द्र मोदीके पास इन सबकी दृष्टिके उपरांत विदेशी संबंधोंके बारेमें और सुरक्षा संबंधित प्रश्नों के बारेमें सुनिश्चित आयोजन है. उत्पादन, कार्य, और प्रबंध के विषयमें नरेन्द्र मोदीके पास निर्धारित और सुनिश्चित प्रणालीयोंका आयोजन है. बीजेपी एक मात्र ऐसा पक्ष है जिसके पास नरेन्द्र मोदी जैसा एक मात्र नेता है जो बिना थके निस्वार्थ भावसे १८ घंटा काम करता है. सुभासचंद्र बोस, दयानंद सरस्वती, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और सरदार पटेलके बाद केवल नरेन्द्र मोदी ही एक मात्र नेता भारतको उपलब्ध हुआ है जो अन्य सबसे एक हजार मिल आगे है.
बीजेपीकी पराजयको वक्र दृष्टिसे मुल्यांकन करनेवाले स्वार्थ परायण दल समूहः
जो महाठगबंधनवाले पक्ष थे उनका हित तो स्वयंका विजय पाना हो यह बात तो स्वाभाविक है. किन्तु जो विद्वज्जन अपनेको तटस्थ मानते है और जो दृष्य श्राव्य और वाच्य समाचार माध्यम है उनको चाहिये था कि वे केवल समाचार ही दें, और अपनी तरफसे तारतम्य वाली समाचार शिर्ष पंक्तियां न बनावें. जो मूर्धन्य लोग समाचार माध्यममें या तो एंकर है या कोलमीस्ट (कटार लेखक) है वे तर्कबद्धतासे और प्रमाणभानकी प्रज्ञाका उपयोग करके समाचारोंका विश्लेषण करें और मूल्यांकन करनेमें मापदंड भी समान ही रखें.
समाचार माध्यमों द्वारा कौनसी बातें उछाली गई?
बीजेपी नेतागणसे संबंधितः
(१) शेतानको लालुजीकी जीभ पर बैठने का एड्रेस किसने दिया?
(२) ‘ ‘-वाले शर्म करो. पहेले अपना ४० सालका हिसाब बताओ.
(३) मैं क्या बाहरी हुं. मैं क्या पाकिस्तानका प्रधान मंत्री हुं …. …. ?
(४) अनामत पर पुनर्विचारणा होनी चाहिये
(५) मैं स्वयं पीछडी जातिका हुं और मुझपर क्या गुजरी है वह मैं जानता हुं..
(५) लालुजी किस कारणसे चूनावमें प्रत्याशी नहीं बने, इसका कारण तो बताओ लालुजी,
(७) यदि एनडीए की पराजय हुई तो पटाखे पाकिस्तानमें फूटेंगे
(८) यह महागठबंधन एक स्वार्थबंधन है. डीएनए चेक करना चाहिये. ये तीनों पक्षके नेता एक मंच पर क्यों नहीं आ सकते हैं?
(१०) नीतीश कुमारने जनतंत्रमें “मंत्र तंत्र”का आश्रय लिया है. यह वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर बहुत चली.
(११) जिनको गोमांस खाना हो वे पाकिस्तान चले जाय.
(१२) यदि यहां गोमांस खाया तो मैं गला काट दूंगा.
महागठबंधन के उच्चारणः
(१) नीतीशकुमारने २००२ के गुजरातके दंगोंका उल्लेख किया
(२) बिहारीयोंको बाहरी चाहिये कि बिहारी?
(३) काला धनके डेढलाख हमारे एकाउन्टमें अभीतक जमा क्यों नहीं हुए,
(४) मांस खाने वाले असंस्कारी होते है, ऐसा जब मैंने कहा तब मेरी जबानपर शेतान बैठा था.
(५) गौमांस तो हिन्दु भी खाते है.
(६) मांस तो मांस ही है चाहे वह गायका हो, घोडेका हो या कुत्तेका हो.
(७) मुझे शेतान कहा,
(८) अमित शाह नरभक्षी है, वह नरपिशाच है,
(९) बीजेपीवालोंने काला जादु करके मुझ पर फैन गिराया. मैं काला जादु जानता हुं और “काला कबुतर” मीर्च मसाले मंत्र पढके उसको भगाउंगा.
(१०) देखो यह फोटो जिसमें नरेन्द्र मोदी अपना हाथ ज्योतीषीको दिखाते है.
नरेन्द्र मोदीका चूनाव मंत्र “विकास” था. लेकिन महागठबंधनके नेता हमेशा जातिवादकी बातें करते थे और आरएसएसके एक नेताने कहा कि “अनामत” पर पुनर्विचारणा होना चाहिये. यह सुनकर महागठबंधनके नेताओंमे लड्डु फूटने लगे. वैसे भी उनका गठबंधन “जातिवाद”के आधार पर ही हुआ था. और विकासके आधार पर प्रचार करना उनके लिये कठिन था. क्यों कि बिहारके कई विस्तारोमें, मकान, पानी, मार्ग, बीजली और शिक्षासंस्थाओंकी सुविधाएं नहीं है. उद्योग भी इसके कारण अल्प मात्रामें है. बीजेपीको कोमवाद परस्त कह्ना और कोमवादका मुद्दा उठाना यह तो वैसे भी फैशन है.
दाद्रीनामके एक देहातमें जो हुआ, चूं कि वह हिन्दुओंने किया था, ये सब इस बात पर तूट पडे. और उसको गौमांसके साथ, नागरिक स्वतंत्रता और हिन्दुओंकी असहिष्णुता के साथ जोड दिया. इस बातको जिस सीमातक ले गये इससे ऐसा लगता है कि यह एक सोची समझी व्यूहरचना थी जिसको नकारा नही जा सकता.
सियासती महानुभावोंका एवोर्ड वापसीका सीलसीला
इस घटनाको लेके बीजेपी–आरएसएस विरोधी और नहेरुवीयन कोंग्रेस परस्त, अभिनेता, कवि, लेखक, विवेचक, समाजसेवी, आदि तथा कथित महानुभावोंने, सरकार तरफसे दिये गये पुरस्कार एक के बाद एक ऐसा करके लौटाने लगे, ताकि, समाचार माध्यम, चूनावप्रचार अंतर्गत समयमें पूरा वातावरण बीजेपी–आरएसएस की असहिष्णुताके विरोधमें बना हुआ रख सके.
यदि इस घटनापर विश्लेषण किया जाय तो भूतकालमें ऐसी ही नहीं किन्तु इससे हजारों लाखों दफा बडी कई मानव हनन और मानव अधिकार हननकी घटनाएं घटी तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
नहेरुकी नीतिके कारण और भारतीय सीमाको असुरक्षित रखनेसे और हमारे जवानोंको शस्त्रोंसज्ज न करनेके कारण १९६२में हजारों जवानोंको बेमौत शहीद होना पडा. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९७२में सिमला समझौता अंतर्गत इन्दिरा गांधीने भारतकी जितको पराजयमें परिवर्तित करके हजारों शहीदोंके बलिदानोंपर पानी फेर दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९७५–१९७६ मे आपतकाल घोषित करके विरोधी आवाजको बंध करने के लिये ६००००+ लोगोंको कारावासमें अनियत कालके लिये बंद कर दिया. समाचार माध्यमों पर सेन्सरशीप डाल दी. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इन्दिराने युनीयन कार्बाईडसे क्षतियुक्त डील किया और भोपालगेस दुर्घटना हुई और सेंकडो मौत हुई और हजारों लोग, शरीरसे स्थायी रुपसे अपंग हुए. इन गेसकांड पीडितोंको, क्षतियुक्त डील के कारण मुआवझा नही मिला. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इस घटनाके दोषी एन्डरशनको अर्जुनसिंह और राजीवगांधीने भगा दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इन्दिरा गांधीने, खालिस्तानी आतंकवादी भींदराणवालेको संत घोषित करके उसको बढावा दिया, इससे खालिस्तानी आतंकवाद और सीमापारके आतंकवादको बढावा मिला. इसी कुकर्मके कारण इन्दिराकी हत्या हुई. इस नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने हजारों निर्दोष शिखोंका कत्लेआम किया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
सीमापारका आतंकवाद कश्मिरमें बढने लगा और जो हिन्दु कश्मिरमें १५% थे उनके उपर अत्याचार होने लगे और हिन्दु जनसंख्या १९८९ तक ५% हो गयी. तब तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९९०में खुले आम, वर्तमान पत्रोंमें इस्तिहार देके, मस्जिदोंमेंसे लाऊडस्पीकर द्वारा घोषणा करवाके, दिवारों पर पोस्टरों लगाके, हिन्दुओंको चेतावनी दी, कि निश्चित दिनांकके अंतर्गत या तो इस्लाम कबुल करो या कश्मिर छोड दो. यदि यह स्विकार्य नहीं है तो मौत के लिये तयार रहो. ६०००+ हिन्दुओंका कत्लेआम हुआ. ५००००० हिन्दुओंको अपना घर और राज्य छोडने पर विवश किया जो आज २५ सालके बाद भी, वे या तो तंबुमें रहेते है या खोलीमें रहेते है. १९९० पहेले भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनका साथी “एन. एफ” कश्मिर में राज करते थे, और १९९०के बाद नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने १५ साल राज किया तो भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी पक्षोंके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. इन शासकोंने कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकारोंके सतत होते हुए हननके विषयमें केवल उपेक्षा की. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
और अब देखो यहां क्या हुआ? दाद्री देहातमें एक गरीब मुस्लिमकी हत्या हुई. युपी जो नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्ष द्वारा शासित राज्य है तो उत्तर दायित्वतो उसका ही बनता है, किन्तु इन सियासती महानुभावोंने इस घटनाका उत्तर दायित्व बीजेपी केन्द्रकी बीजेपी सरकार पर डाल दिया. चूं कि मृत व्यक्ति मुस्लिम था और चूं कि मारने वाले हिन्दु थे. यदि मारने वाले हिन्दु है तो बीजेपी को उत्तरदायी बता दो. क्या इसमें कोई तर्क है? यहा क्या बुद्धिगम्य है?
वास्तवमें महानुभावोंका तारतम्य और प्रतिभाव निरपेक्ष रुपसे एक प्रपंच है और निरपेक्ष रुपसे कोमवादको उकसाना है. ये सभी महानुभाव को कोमवाद फैलाने के आरोप पर न्यायिक कार्यवाही करनी चाहिये. और उनको कारावास में रखना चाहिये.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
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२५ जुन नहेरुवीयन कोंग्रेस बनी भारतका एक कलंक
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