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जे.एन.यु. जीन्ना नहेरु युनीवर्सीटी, मार दिया जाय, न कि, छोड दिया जाय. पार्ट – ३
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अराजकता, अर्थघटन, आईसोलेशन, आतंकवाद विघातक, आतंकवादी साहित्य, कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकार, गांधी साहित्य, घटनाचक्र, जीन्ना नहेरु युनीवर्सीटी, जे.एन.यु., तर्क, न्याय, न्यायालय, पतियाला कॉर्ट, मनोविश्लेषण, माहिति, माहोल, मेरा रक्त, वकील, वकीलोंकी स्ट्राईक, वितंडावादी पत्रकारित्व, विश्वविद्यालय शिक्षण संस्था, समाचार माध्यम, सरकारी सेवामें बाधा, सुभास चंद्र बोस, ३०००+ कश्मिरी हिन्दुओंकी कत्ल on February 21, 2016| 1 Comment »
My blood is boiling on the episode of Jinna Nehru University (JNU), and the reaction of Pseudo-s which includes Nehruvian Congress and its culturally associates gangs inclusive of some of the media. These people are trying to present this case to make it political and as a conflict between two parties viz. BJP and Anti-BJPs. These people are illogical and talks without material or they talk with misinterpreted material. Expose these traitors. Hit them back very hard. Ask the Government to arrest them and to prosecute them.
जे.एन.यु. जीन्ना नहेरु युनीवर्सीटी, मार दिया जाय, न कि, छोड दिया जाय. पार्ट – ३
मेरा रक्त उबल जाता है, जब जीन्ना नहेरु विश्वविद्यालय की घटना पर दंभी और ठग लोगोंकी प्रतिक्रिया और चापलुसी देखता हूँ.
ये सब लोग कुछ वकीलोंके लॉ हाथमें लेनेकी घटना पर अत्याधिक कवरेज देते हैं. और देश विरोधी सुत्रोंको न्यायलयके अर्थघटनके हवाले छोड देते हैं.
क्या उनका शाश्वत ऐसा चरित्र रहा है?
वे कहेते हैं कि वकीलोंका काम न्यायालय के द्वारा न्याय दिलाना है, और यहां पर वकील स्वयं न्याय देने बैठ गये.
तथा कथित महानुभावोंका यह तर्क आंशिक रुपसे सही है.
लेकिन सभी वकीलोंको आप मात्र ही मात्र वकीलके रुपमें नहीं देख सकतें. वकील भी शाश्वत वकील नहीं होता है. वह भी आवेशमें आ जाता है. देशप्रेम एक ऐसी संवेदनशील अभिव्यक्ति है कि, कोई भी देशप्रेमी आवेशमें आजा सकता है. याद करो, सुभाषचंद्र बोस, अपनी बिमार मां को छोडके देशप्रेमके कारण निकल पडे थे.
एक और जो कदाचित कुछ लोगोंको अप्रस्तूत लगे तो भी इसको समज़े.
वकीलोंको कभी आपने स्ट्राईक जाते देखा है?
हाँ अवश्य देखा है.
वकीलोंका काम न्यायालय के द्वारा न्याय दिलाना है, और यहां पर वकील स्वयं न्याय देने बैठ गये. क्या वे स्वयंको न्याय दिला नहीं सकते हैं? यदि ऐसा ही है तो वे वकील बने ही क्यों? लिकिन मैंने देखा है कि कोई वर्तमान पत्रने वकीलोंकी ट्राईकके बारेमें ऐसी टीका की नहीं.
तब ये उपरोक्त महानुभावोंका तर्क “वकीलोंका काम न्यायालय के द्वारा न्याय दिलाना है” कहां गायब हो जाता है?
याद रक्खो, इसमें आक्रमक वकीलका कोई स्वार्थ नहीं था.
वकीलकी पतियाला कॉर्टकी घटनाको उसके परिपेक्ष्यमें लेनी चाहिये और सीमा के बाहर जाके महत्व देना नहीं चाहिये. क्राउडकी आवेशकी अभिव्यक्ति और प्रतिक्रिया भीन्न होती है इस बातको बहुश्रुत विद्वानोंको समज़ना चाहिये.
आप कहोगे कि यह तर्क जे.एन.यु. के छात्र समूहको क्यों लागु करना नहीं चाहिये?
आप घटनाक्रम देखिये और प्रमाणभानकी प्रज्ञा और प्राथमिकता की प्रज्ञाका उपयोग किजीये.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रमाणित एक आतंकवादीको सज़ा दी.
आप कहोगे कि क्या सर्वोच्च न्यायालयके दिये हुए न्याय के विरुद्ध बोलनेकी आज़ादी नहीं है?
हां न्यायालयके दिये हुए न्याय के विरुद्ध बोलनेकी आज़ादी है.
लेकिन सभी आज़ादी असीमित नहीं है. न्याय मात्र, माहिति, तर्क और घटनाचक्रसे संलग्न होता है. यदि आतंकीको न्याय दिलाने के लिये कन्हैया और उसके साथीयोंके पास कुछ और, माहिति थी तो आतंकीको बचाने के लिये उन्होंने उस माहितिको, न्यायालयके सामने प्रस्तूत क्यूँ नहीं किया?
कन्हैया और उसके साथीयोंका उत्तरदायित्व
कन्हैया और उसके साथीयोंका सर्वप्रथम यह उत्तरदायित्व बनता है कि इस बातको समज़ाएं. दुसरी बात यह है कि यदि उनके पास जो माहिति और तर्क है उससे वे जनता को समज़ावें कि कैसे वह आतंकी निर्दोष था. सुत्रोच्चार करनेसे सत्य सिद्ध नहीं हो जाता है.
विश्वविद्यालय एक शिक्षण संस्था है. शिक्षण संस्था और न्यायालय दोनोंका क्षेत्र भीन्न भीन्न है. शिक्षण संस्थाका उपयोग कन्हैया और उसके साथीयोंने जो किया इससे शिक्षण संस्थाके कार्यमें बाधा पडती है. शिक्षाका अधिकार भी मानव अधिकार है. इसका हनन करना मानव अधिकारका हनन है. यदि यह शिक्षा संस्था सरकारी है तो सरकारी सेवामें बाधा डाली है ऐसा अर्थघटन भी अवश्य हो सकता है. उतना ही नहीं एक संस्था जिस कार्यके लिये है उसके बदले उसका उपयोग जबरदस्तीसे दूसरे कार्यमें किया गया वह भी गुनाह बनता है.
जनतंत्र संवादसे चलाता है
बिना तर्क, और वह भी देशके विरुद्ध और देशका विभाजन, देशके समाजका विभाजन और विघातक बातोंको फैलाके जनताको गुमराह करना जघन्य अपराध ही बनता है. बिना तर्क, बिना तथ्य और देशके विरुद्ध बात करनेकी आज़ादी किसीको नहीं दी जा सकती. जनतंत्र संवादसे चलाता है, सूत्रोंसे और महाध्वनिसे नहीं.
न्यायके लिये न्यायालय है. न्यायालयके सुनिश्चित प्रणालीयोंके द्वारा ही न्याय लेना तर्कसंगत है. यदि ऐसा नहीं हुआ तो अराजकता फैल जायेगी. यदि कोई अराजकता फैलानेकी दिशामें प्रयत्न करता है तो उसको देशद्रोह ही समज़ना पडेगा.
(Curtsy of the Cartoonists)
वितंडावादी पत्रकारित्व और अफवाहें
एक समाचार पत्रके कटारीयाभाईने (केतन भगतभाईने) जे.एन.यु. की घटनाकी प्रतिक्रियाको बीजेपी और एन्टी-बीजेपीका मामला बताया. कुछ समाचार पत्रोंने इस प्रतिक्रियाको “बीजेपीका दांव निस्फळ” ऐसा सिद्ध करने की कोशिस की.
एक समाचार पत्रने एक ऐसा तर्क दिया कि “गांधीवादी साहित्य यदि किसीके पाससे मिले तो वह गांधीवादी नहीं हो जाता है, उसी तरह यदि किसीके पाससे आतंकवादी साहित्य मिले तो वह आतंकवादी नहीं बन जाता”.
आमकक्षाके व्यक्तिको इसमें तथ्य दिखाई दे यह संभव है.
किन्तु सूत्रोंका अर्थघटन, उनको अलिप्त (आईसोलेटेड) रखकर, घटनाका अर्थघटन, घटनाको अलिप्त रखकर, वास्तविक सत्यको समज़ा नहीं जा सकता.
निम्न लिखित एक घटनाको समज़ो.
एक अश्वेत अपने घरमें बैठा था. इतनेमें खीडकी खूली और एक श्वेत शक्ख्स दिखाई दिया. तो अश्वेतने उसको गोली मार दी.
अब अश्वेत पर मुकद्दमा चला. न्यायाधीशने पूरी बातें सूनके अश्वेतको निर्दोष बताया. यदि न्यायाधीश इस घटनाको आईसोलेशनमें देखता तो?
किन्तु न्यायाधीशने इस घटनाका संदर्भ और माहोल देखा. वह जो माहोल था उसके आधार पर न्यायाधीशने उसको छोड दिया. वह क्या माहोल था? उस देशमें श्वेत और अश्वेत आमने सामने आगये थे. श्वेत लोगोंने हाहाकार मचा दिया था. श्वेत लोग, अश्वेतको देखते ही गोली मारने लगे थे. इसमें अफवाहें भी हो सकती है.
माहोल ऐसा था. वह अश्वेत अपने घरमें बैठा था. खीडकी खूली और एक श्वेत शक्ख्स दिखाई दिया. तो अश्वेत बहूत गभरा गया. अश्वेतको लगा कि वह श्वेत उसको गोली मार देगा. अश्वेतके पास बंदूक थी उसने गोली मार दी. वास्त्वमें वह श्वेत तो एक सीधा सादा निर्दोष श्वेत था.
कश्मिरमें हिन्दुओंके साथ क्या हुआ?
नहेरुवीयन कोंग्रेसके नहेरुवीयन फरजंद राजीव गांधीकी केन्द्रमें सरकार थी. उसकी सहयोगी सरकार कश्मिरमें थी. हिन्दुओं पर यातनाएं बढ रही थीं. १९८७से मुस्लिमोंने आतंककी सभी सीमाए पार कर दी. मस्जीदोंसे लाउड स्पीकर बोलने लगे. दिवारोंपर पोस्टर चिपकने लगे, समाचार पत्रोंमे चेतावनी छपने लगी, लाउड स्पीकरके साथ घुमने वाले वाहनोंमेसे लगातार आवाज़ निकलने लगी कि ऑ! हिन्दुओ ईस्लाम कबुल करो या तो कश्मिर छोडके भाग जाओ. यदि ऐसा नहीं किया तो मौतके लिये तैयार रहो. कश्मिर सिर्फ मुस्लिमोंका है. मुस्लिम लोग इश्तिहारमें कट-ऑफ डेट भी बताते थे.
नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथी पक्षोंने भारतकी जनताको अनभिज्ञ रक्खा.
समाचार माध्यम मौन रहे.
कश्मिरकी सरकार निस्क्रीय रही.
सुरक्षा दल निस्क्रीय रहा. ३०००+ हिन्दुओंकी खुल्ले आम कत्ल हुई. ५०००००+ हिन्दुओंको भगाया.
अपने ही देशमें हिन्दु निर्वासित हो गये वे भी आज तक २५ साल तक.
न कोई गिरफ्तारी हुई,
न कोई एफ.आई.आर. दर्ज हुई,
न कोई जांच एजन्सी बैठी,
न कोई मानव अधिकारकी बात हुई,
न कोई इस्तिफा मांगा गया,
न तो हिन्दुओंकी तरफसे कोई प्रतिकार हुआ.
न कोई फिलम बनीं,
न कोई वार्ता लिखी गयी,
न किसीने मुस्लिम असहिष्णुता पर चंद्रक वापिस किये,
वास्तवमें हर कत्ल और हर निर्वासितके पीछे एक बडी दुःखद कहानी है
ऐसे कश्मिरके कुछ लोग जे.एन.यु. में आये और उन्होंने आजादीके सुत्रोच्चार किया. भारतको टूकडे टूकडे करनेकी बात की, और हमारे दंभी मूर्धन्य विश्लेषक महानुभाव इन सुत्रोंको आईसोलेशनमें रखकर अर्थघटन करके बोलते है कि कोई गद्दारीका केस नहीं बनता.
वास्तवमें तो जो आज़ादीकी बाते करते हैं उनको दुसरोंके यानी कि, कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकारोंकी रक्षा करना चाहिये. जो दुसरोंके मानव अधिकारोंका हक्क छीन लेते हैं और दशकों तक उनको वंचित रखते हैं. ऐसे लोगोंका आज़ादीकी बात करनेका हक्क बनता नहीं है. और वैसे भी उनको कौनसी आज़ादी चाहिये और किससे आज़ादी चाहिये? कौनसा संविधान चाहिये? कश्मिर तो भारतीय संस्कृतिका अभीन्न अंग है. वहां उनकी ही त सरकार है.
महात्मा गांधी और आतंकी का फर्क समज़ो
“गांधी साहित्य घरमें रखनेसे कोई गांधीवादी माना नहीं जा सकता” इसका हम विश्लेषण करें
गांधीवादी साहित्य एक विचार है. उसमें तर्क है. गांधीवादी बनना एक लंबी प्रक्रिया है.
आतंकवाद एक आवेश है आतंकवाद एक संकूचित आचार है.
आतंकवाद विभाजनवादी है और विघातक है. आतंकवादीका मनोविष्लेषण करना एक शैक्षणिक वृत्ति हो सकती है.
चूंकि गांधी साहित्य और आतंकवादी साहित्य एक दुसरेसे विरुद्ध है, जिनके पास आतंकवादी साहित्य होता है उसको सिद्ध करना होता है कि उसका आतंकवादसे कोई संबंध नहीं है. आतंकवाद प्रस्थापित न्यायप्रणाली और जनतंत्र के विरोधमें है इस लिये वह समाजके लिये घातक भी है. जिन लोगोंके पाससे ऐसा साहित्य मिलता है, उसकी प्रश्नोत्तरी होती है, उसके साथीयोंकी, संबंधीयोंकी, रिस्तेदारोंकी भी प्रश्नोत्तरी होती है. यदि उसमें विरोधाभास मिले तो उसका आतंकवादीयोंसे संबंध सिद्ध हो जाता है.
डरपोक नारेबाज़
एक सूत्रोच्चारी भगौडेके पिताश्रीने कहा कि उसका पुत्र देशद्रोही नहीं है. जब उसके पुत्र द्वारा किये गये देशविरोधी सुत्रोच्चारके बारेमें उससे प्रश्न पूछा गया, तो उसने कहा कि उसका निर्णय अदालत को करने दो. जो दिखाई देता है वह उसको देखना नहीं है. आज़ादीके नारे लगानेवाला खुदके लिये सुरक्षाकी मांग करता है. वह भूल जाता है कि आज़ादीकी लडत तो निडर लोगोंका काम है. क्या गांधीजी और शहिद भगत सिंहने कभी ब्रीटीश सरकारसे सुरक्षाकी मांग की थी?
अराजकताका माहोल बनाना चाहते हैं
कई दंभी समाचार माध्यम समाजके विघातक परिबलोंको उत्तेजित करते है. अनामत उसका उत्तम उदाहरण है. ये समाचार माध्यमके लोग इसकी तात्विक और तार्किक चर्चा कतई नहीं करते. जाटों और पाटीदारोंके अनरेस्टके समाचारोंको बेहद कवरेज देतें हैं ताकि उनका उत्साह बढे. ये लोग ऐसा माहोल बनाते है कि सरकार उनकी समस्यामें बराबर फंसी है. समाचार माध्यम सरकारकी निस्फलता पर तालीयां बजाता है. समाजके इन वर्गोंकी विघातक प्रवृत्तियोंको समाचार माध्यम उजागर नहीं करता और न हि उसकी बुराई करता है. मार्ग यातायात रोक देना, रेलको उखाड देना, रेल रोकना, रेलरुटोंकों रद करनेके कारण रेलको नुकशान होना, बस स्टोपोंको जला देना, पूलिस चौकीको जला देना, आदिकी निंदा ये समाचार माध्यम कभी नहीं करता. लेकिन पूलिस एक्सन पर इन्क्वायरी की मांगको और पूलिस एक्सेसीस की मांगको उजागर करते हैं और उसको ही कवरेज दिया करते है. जाट और पाटीदार के समाचार साथ साथ देते हैं ताकि पाटीदारोंका उत्साह बढे और फिरसे जोरदार आंदोलन करें ताकि समाज जीवन अस्तव्यस्त हो जाय. और वे जनता को बतादें कि देखो बीजेपीके राजमें कैसी अराजकता फैल गयी है.
शिरीष मोहनलाल दवे
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क्या म्युनीसीपल कमीश्नरमें स्मार्ट सीटी बनानेकी क्षमता है?
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क्या म्युनीसीपल कमीश्नरमें स्मार्ट सीटी बनानेकी क्षमता है?
नरेन्द्र मोदीने कहा कि हम स्मार्ट सीटी बनायेंगे और सीटीके रहेनेवालोंका भी सुझाव लेंगे.
यदि ऐसा है तो कभी स्मार्ट सीटी बन ही नहीं पायेगा.
नगरनिगम आयुक्त (म्युनीसीपल कमीश्नर) से लेकर साफाई वाले तकके पास कोई दृष्टि ही नहीं है.
सबसे पहेले तो इन सभीको “यह नगर अपना है” यह भावना होना आवश्यक है. यदि ऐसी भावना होती है तभी स्मार्ट सीटी की दृष्टि उनमें आ सकती है.
आप प्रश्न करोगे कि
यह “यह नगर अपना है ऐसी भावना” का
अर्थ क्या है?
म्युनीसीपालीटीके प्रत्येक कर्मचारीको यह आत्मसात होना आवश्यक है कि वह समझे कि उसको अपना कर्तव्य निभानेके लिये पैसे मिलते है. अपना कर्तव्य निभानेवाले कार्यको, देशकी सेवा समझना आवश्यक है.
किन्तु वास्तवमें ऐसा है क्या?
यदि नियमके शासनको लागु किया जाय तो नगरनिगम आयुक्त (म्युनीसीपल कमीश्नर) से लेकर सफाईवाले तक निलंबित हो जायेंगे. निलंबित ही नहीं वे कारावासमें भी भेजे जा सकते हैं.
नगरनिगम आयुक्त (म्युनीसीपल कमीश्नर) और उसकी सेनाके अधिकारीगण जैसे कि वॉर्ड अधिकारी, नगर आयोजन अभियंता (टाउन प्लानींग एन्जीनीयर्स) और संविदाकारगण (कोन्ट्राक्टर्स) सब कारावासमें जा सकते है. इन लोगोंके कार्यपर अनुश्रवण (मोनीटरींग) करनेवाले नगर विकासके सचिव, और निगमके जनप्रतिनिधिगण भी पदच्युत हो सकते है. अपने पदके लिये अयोग्य घोषित किये जा सकते है.
इन अधिकारीयोंमें संकलनक्षमता न होने के कारण अन्य भी कई समस्याएं उत्पन्न होती है और विद्यमान समस्याओंमे वृद्धि होती है.
यह समस्या है जन असुविधाः
उदाहरणः ५० लाखसे उपर जनसंख्यावाले अहेमदाबादमें एक भी पदमार्ग (फुटपाथ) ऐसा नहीं है कि जिसपर पादयात्री बिना कष्ट चल सके. अपंग और वृद्ध की चक्रपीठयान (व्हील चेर)को चलानेकी तो समास्या तो विचारो ही नहीं. इसका विचार मात्र करना नगरके अधिकारीयोंके बुद्धिसे पर है. ऐसा हाल भारतके हर नगरका है.
अनधिकृत संनिर्माणः
व्यापक मात्रामें हुए अनधिकृत संनिर्माण (अनओथोराईझ्ड कंस्ट्रक्सन), अनअधिकृत उपयोग, जनमार्ग पर अतिक्रमण, अस्वच्छता और अनियमित और निरंकुश वाहनव्यवहार, इस सबके लिये कौन उत्तरदायी है? अवश्य ही जिनको इन नियमोंको सुनिश्चित और अनुशासित रखनेके लिये वेतन मिलता है वे उत्तरदेय है. यदि इनमें क्षति आती है तो उनको दंडित करना ही अनिवार्य है.
यदि नियमपालनहीनता व्यापक है तो नगरनिगमका आयुक्त ही अवश्य उत्तरदायी बनता है.
यदि नगर निगमका कोई अधिकारी ऐसा कहे कि उनके उपर जनप्रतिनिधियोंका दबाव होता है, तो ऐसे अधिकारीको वह जनप्रतिनिधिसे लिखित आवेदन मांगे और उनको लिखित अवगत करें कि आपका आदेश या प्रार्थना नियमसे सुसंगत नहीं है. और इस पत्रसे जनताको भी अवगत करें. यदि वह ऐसा नहीं करता है तो उसको पदच्यूत करना चाहिये. क्यूं कि अधिकारीका कर्तव्य नियमसे चलना है. उसने ऐसी शपथ ली होती है.
अब देखो. अनधिकृत संनिर्माण की समस्याका समाधान इन लोगोंने कैसे निकाला?
समस्याका समाधान अधिकारीगण, न्यायालय, जनप्रतिनिधिगण और निर्माणकर्ता (बील्डर) सबने मिलीभगत करके यह समाधान निकाला?
सर्वप्रथम आप अवगत हो जाओ कि, नगर निगमके आयुक्त, उसकी सेनाके अधिकारीगण, निर्माण कर्ता सबने मिलके संयुक्त आयोजित दुराचार (ओर्गेनाईझ्ड क्राईम) किया. बलिका बकरा क्रेता (परेचेझर) को बनाया.
चोर (निर्माण कर्ता बील्डर) दृश्यमान है, चोरीका माल (अवैध निर्माण) दृष्यमान है, चोरीकरने देनेवाला चोकीदार (अधिकारीगण) दृश्यमान है, और जिसको ठगा (क्रेता परचेझर) भी दृश्यमान है. किन्तु, क्यों कि इन दुराचारका आचरण करने वाले नगर निगमके आयुक्त, उसकी सेनाके अधिकारीगण, निर्माण कर्ता जिन्होंने मिलके संयुक्त प्रपंच किया उनकी दंडसे रक्षा करना है. उन्होने क्या किया? जो ठगा गया है उससे दंड वसुल किया. कैसे?
एक समयका समाघात मूल्य (इम्पेक्ट फी), क्रेतासे (परचेझरसे) वसुल कर लो. वार्ता संपूर्ण.
यह समाधान तो चौपट राजाने जो समाधान निकाला था उससे भी मूर्खतापूर्ण है.
सर्व प्रथम यह वास्तविकतासे अवगत हो जाओ कि, अवैध निर्माणसे वाहनव्यवहारमें और जनसुविधाओंमें क्षति आती है. इससे अकस्मात भी होते है. अनधिकृत निर्माण है वह अनाधिकृत है. समय चलते अधिक आपत्तियां बढ सकती है.
यदि किसीने वाहनव्यवहार नियमका भंग किया तो क्या आप उनसे ईम्पेक्ट फी लेके उसको नियमका सतत उलंघन करनेकी अनुमति दे सकते हैं?
अनाधिकृत निर्माणका वास्तविक और अर्थपूर्ण समाधान
जो अनधिकृत निर्माण है उसके उपर समाघात मूल्य (इम्पेक्ट फी)के स्थान पर समाघात कर (ईम्पेक्ट टेक्ष) लागु करना अनिवार्य है. वह प्रतिवर्ष लागु होना चाहिये. प्रत्येक वर्ष इस करमें २० प्रतिशतस वृद्धि होगी. निर्माण कर्तासे पांच सालका कर वसुल किया जायेगा. तभी निर्माण कर्ताको निर्माण के उपयोगकी अनुमति मिलेगी. ऐसी अनुमतिके अभावमें यदि निर्माणकर्ता, निर्माणके किसी भी भागका विक्रय करता है तो वह विश्वास घाती माना जायेगा और सीधा कारावास जायेगा.
ऐसा नियम बनने के पश्चात, नये निर्माणके लिये वोर्ड अधिकारी और अभियंता उत्तदायी होगा. और वे पदच्यूत होगे. वैसे भी उनके उपर न्यायिक कार्यवाही आज भी हो सकती है.
अतिक्रमणकी समस्याका समाधानः
अतिक्रमण एक आपराधिक आचार है. उसमें तो जो दोषी है वह कारावासमें ही जायेगा. इसमें पुलिस तंत्र उत्तरदायी है. पुलिस विभाग स्वयंके स्नेही गुंडोसे सप्रेम हप्तावसुली करता है.
मार्गपर पशुओंका मूक्त चलनः
समस्याका समाधान करनेमें नगर निगमके अधिकारीयों कि मूर्खताः
अधिकारीयोंने समस्याका समाधानका मार्ग क्या निकाला?
स्थान स्थान निविदा लगा दी, कि मार्ग पर पशुओंको मुक्त चलनके लिये रखना दंडनीय है. फोन करो “ ……..”. फिर पशुपाल वह फोन क्रमांक पर काला रंग लगा देता है, ताकि वाचन अशक्य बने. अधिकारी समझता है कि उसका कर्तव्य समाप्त हो गया.
इसी समस्याका एक और समाधान अधिकारीयोंने यह बनाया कि, पशुओंको पकडनेका काम संविदाकार (कोन्ट्राक्टर)को देदो. इसमें तीन प्रकारके लाभ है. अधिकारी संविदके (कोन्ट्राक्टके) लिये निविदा (नोटीस) देगा, और इससे संविदाका अनुमोदन (एप्रुव) करनेमें धनप्राप्ति होगी.
तत् पश्चात संविदाकारसे सातत्यसे धनप्राप्ति होती रहेगी क्यूं कि संविदकार भी पशुओंके स्वामीसे पशु न पकडने के लिये धनप्राप्ति कर लेगा. इसमें इन अधिकारीयोंका भाग निश्चित करेगा.
तृतीय लाभ यह है कि यदि प्रश्न उठा कि, मार्ग पर इतने सारे पशु क्यूं है? तो अधिकारी कहेगा कि देखो हमने तो ये ये काम किये? इतने सारे नोटीस बोर्ड लगायें और इतनी संख्यामें पशुओंको पकडे. पशुओंको रखनेका स्थान जो निश्चित किया है उसका विस्तार ही इतना कम है कि हम ज्यादा पशुओंको पकड नहीं सकते.
समस्याका वास्तविक अर्थपूर्ण समाधान यह हो सकता हैः
जैसे वाहनको रजीस्ट्री क्रम संख्या दे ते हैं उसी तरह पालतु पशुओं को भी रजीस्ट्री क्रम संख्या दो. पशुओंको पकडना आवश्यक नहीं है. केवल सी.सी केमेरा या निरीक्षण प्रवास करके फोटो लेके दंड वसुली करो.
वाहन व्यवहारमें अराजकताः
समस्याः मार्ग उपर “लेन मार्कींग”, “वाहन पार्कींग मार्कींग”, “ पर्याप्त ट्राफिक सीग्नल”, “झीब्रा क्रोसींग”, “स्टोप मार्कींग रेखा”, “वेग सीमा बोर्ड” आदि कई जगह होते नहीं है.
समस्याका समाधान अधिकारीयोंने क्या निकाला?
चार ट्राफीक पुलीस, ट्राफीक सीग्नल पर के पास रख दी. ये चार पुलिस वाहन व्यवहारका नियमन करेती है. किन्तु प्रत्येक प्रहरमें तो ऐसा किया नहीं जा सकता, इसलिये मध्यान्हसे पहेले यत किंचित प्रहर और मध्यानके पश्चात् एक दो तीन प्रहर तक पुलिस रखी जायेगी. कुछ वाहन चालकोंको पकडेगी और कुछ सुनिश्चित किया हुआ दंड वसुल करेगी. जिसमें कुछ दंड अलिखित भी रहेगा जो स्वयं और उपरी अधिकारीके लिये निश्चित रहेगा.
द्वीतीय समाधान यह है कि यह ट्राफिक पुलिस कभी कभी एक गुलाबका पुष्प भी देगी. ताकि वाहन चालक आनंदित रहे.
अभी अभी अहेमदाबादमें वाहन परिवहन विभाग, ट्राफिक पुलिसको, बीलबुक के स्थान पर एक विजाणु यंत्र देनेवाली है, जिससे वह पुलिस, दंडनीय व्यक्तिको चलान दे सकें. यदि यंत्रमें क्षति आयी तो?
क्या हमारे मार्ग परिवहन मंत्री बेवकुफ है?
लगता ऐसा ही है.
हमारे केन्द्रीय मार्ग-परिवहन मंत्रीने एक और समाधान निकाला है, कि मार्ग अकस्मातको रोकने के लिये सरकार मार्ग परिवहन के लिये कुछ संस्थाएं स्थापित स्थापित करेगी ताकि वाहन चालकोंमें वाहनपरिवहन के नियमोंका ज्ञान हो.
अरे भाई क्या बिना वाहनचलन अनज्ञप्ति (ड्राईवींग लाईसन्स) वाले वाहन चालकसे या वाहनपरिवहनके नियमोंसे अज्ञात वाहनचालक लोग ही क्या वाहनपरिवहन के नियमोंका उलंघन करते है?
समास्याका समाधान
समास्याका समाधान यही है कि सर्व प्रथम आप मार्ग परिवहनके नियंत्रण की संज्ञा और बोर्ड सुचारु और सुनिश्चित योग्य स्थान पर लिखें. आप हर चतुर्मार्ग (क्रोस रोड) पर, और हर ५०० मीटर परके अंतर पर सीसीकेमेरा लगावें. उसके लिये एक उत्कृष्ठ सोफ्ट वेर प्रणाली स्थापित करे ताकि कोई भी नियमका भंग करने वाला छूट न पावे.
सीसीकेमेराकी विजाणु प्रणाली क्या हो सकती है?
जो वाहन परिवहन नियमका अनादर करेगा, उस वाहनको सीसी केमेरा प्रणाली परिलक्षित (आईडेन्टीफाय) करेगी और अभिलेखित (नोटीफाय) करेगी.
वह दंडनीय व्यक्तिको ईमेल द्वारा निवेदित करेगी, कि आपके वाहनने मार्ग परिवहन नियम “ .., “ का भंग किया है. आपके द्वारा आपका वाहनके क्रयनके (वाहनको परचेझ करनेके) समय वाहन परिवहन रजीस्ट्री कार्यालयमें रजीस्ट्री क्रमांक लेने के या अपना स्वामित्व रजीस्ट्री करवाने के समय जो बेंक एकाउन्ट सूचित किया था उस बेंक एकाउन्ट नंबरसे हमने दंड वसुली कर दी है.
आपकी जानकारीके लिये हमने आपके वाहन परिवहन नियम भंग करनेकी जो वीडीयो क्लीप ली थी उसको इस ई-मेलके साथ संलग्न की है. यदि आपको लगता है कि आपके उपर लगाया गया दंड उचित नहीं है तो आप, “ … “ न्यायालयमें अपना पक्ष रखनेके लिये जा सकते हैं. यदि न्यायालय आपके पक्षमें आदेश देगा तो हमे वह मान्य होगा और हम आपके एकाउन्टमें दंडकी रकम जमा कर देंगे.”
अकस्मातके समय ही मार्गपरिवहन नियमन पुलिस अकस्मातके समय पर उस स्थान आयेगी. अन्य सभी कार्य सीसीकेमेरा सोफ्टवेर विजाणु प्रणाली ही करेगी. वह पुरी सक्षम होगी. और यह हो सकता है.
सीसीकेमेरा सोफ्टवेर विजाणु प्रणाली सक्षमता क्या क्या होगी?
वाहन परिवहन संकेतोंके नियमोंका अनादर,
१ अन्य वाहनसे आगे जानेके लिये लेन परिवर्तित करते रहेना, यानी कि एक लेन पर नहीं रहेना और बार बार लेन बदलना,
२ मार्गके लेनके मध्यमें वाहन नहीं चलाना,
३ यदि द्वीचक्री वाहन है तो एक लेनमें दो से अधिक हो जाना,
४ एक द्वी चक्री वाहन पर बिना सुरक्षा टोपी बैठना,
५ वाहनमें सुनिश्चित संख्यासे ज्यादा व्यक्तियोंका बैठना,
६ सुरक्षा पट्टी नहीं बांधना,
७ एक हाथसे वाहन चलाते चलाते दुसरे हाथसे मोबाईल फोन पकड कर बातें करना,
८ वेग सीमा का उलंघन करना,
९ दो वाहनोंके बीचमें योग्य अंतर नहीं रखना,
१० संकेत-दीप (ट्राफीक सिग्नल) न होने वाले झीब्राक्रोसींग पर पादयात्रीको प्राथमिकता न देना,
११ आने वाले झीब्रा क्रोसींग के संकेत बोर्ड से ले कर झीब्रा क्रोसींग तक, वाहनको ५ किमी/कलाकसे ज्यादा वेगसे चलाना,
१२ अयोग्य स्थान पर वाहन पार्कींग करना (जहां वाहन पार्कींगका मार्कींग नहीं है वहां वाहन पार्क करना),
१३ अयोग्य रीतसे यानी की वाहनको पार्कींगके मार्कींगके केन्द्र में पार्कींग न करके वाहनको टेढा, आगे या पीछे पार्कींग करना,
१४ विकलांग पार्कींग स्थान पर विकलांग न होते हुए भी वाहन पार्क करना, (भारतमें यह विचारना नगर निगमके नियामकके मस्तिष्ककी विचार सीमासे पर है)
१५ निम्न लिखित गतिसीमाका उलंघन करनाः
१५.१ द्रुतगति मार्ग पर ६०-८०-१०० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम
१५.२ राज्य मार्ग पर वेग सीमा ४०-६०-८० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम
१५.३ नगरके राजमार्ग पर वेग सीमा २०-४०-६० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम
१५.४ नगरके सामान्य मार्ग पर २०-४० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम
१५.७ नगरकी गली के मार्ग पर १०-२० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम
१५.८ कोलोनीके मार्ग पर ५-१० किमी/कलाक या यातायातके अनुसार कम
१६ इन सीमाओंका जो उलंघन करेगा उसको सीसी केमेरा प्रणाली परिलक्षित (आईडेन्टीफाय) करेगी और अभिलेखित (नोटीफाय) करेगी.
१७ सी.सी. केमेरासे नारी के साथ अभद्र व्यवहार, चोरी, डकैती, मारपीट, अकस्मात, गुन्हाखोरी, आतंकवादकी गतिविधियां, अपहरण, मार्ग पर होता अतिक्रमण, आदि कई असामाजीक प्रवृतियां पर अंकूश आजायेगा.
यह सब करनेसे नगर एक सामान्य नगर बनेगा. स्मार्ट सीटी नहीं.
सीटीको स्मार्ट बनानेसे पहेले शासनके अधिकारीयोंको स्मार्ट बनाओ. किन्तु ये शासनके अधिकारी गण, न्यायालय, जनप्रतिनिधिगणमें से ९९ प्रतिशत भ्रष्ट है. शासनके सर्वोच्च अधिकारीको (सचिवालय के सचिव, नगर पालिकाके कमीश्नर आदि सबको पदभ्रष्ट कर दो. और उनके स्थान पर मेनेजमेन्टके निष्णात व्यक्तिओंको नियूक्त कर.
अहो !! आश्चर्यम्
अहमदाबाद घाटलोडिया विस्तारके एक मार्गका “गौरव पथ” नाम करण किया गया.
इसका आधार क्या था? सभी दुकानके बोर्ड एक कद और एक रंगके बनाये गये थे. और सब दुकाने अपनी फुटपाथ साफ रखते थे.
किन्तु क्या इतना ही करना गौरव पथ की योग्यता है.
गौरव पथ कैसा होना चाहिये?
१ जो निवास स्थानीय विस्तार है, उसमें व्यवसायकी दुकान बनाने पर निषेध होना चाहिये,
२ एक भी निर्माण अतिक्रमण और अनधिकृत नहीं होना चाहिये,
३ मार्ग पर वाहनका पार्कींगका निषेध होना चाहिये,
४ मार्ग की लघुतम लेन संख्या ३+३ होना चाहिये,
५ वर्षा ऋतुमें जल निकासकी योग्य व्यवस्था होनी चाहिये जिससे जल संचय मार्ग पर न हो,
६ प्रत्येक आवास संकुलमें स्वयंके वाहन और अतिथि के वाहनकी पार्कींग व्यवस्था होनी चाहिये,
७ सभी आवास और निर्माण मार्गके स्तरसे उंचे होना चाहिये,
८ मार्ग परके वाहनव्यवहार के संकेत बोर्ड और नगर पालिकाके आवास क्रम संख्या के बोर्ड होना चाहिये,
९ मार्गकी फुटपाथ समतल और लघुतम चौडाई ५ मीटर की होनी चाहिये जिससे विकलांग अपना हाथसे चलने वाला त्रीचक्री वाहन चला सके और शिशुका त्रीचक्री वाहन (स्ट्रोलर) भी फुटपाथ पर चल सके.
यदि ऐसा है तो उसका गौरव ले सकते है और उसका नाम गौरव पथ रख सकते है. नगरके सभी मार्ग गौरव पथ होने चाहिये.
शिरीष मोहनालाल दवे
टेग्झः
नगर, म्युनीसीपल कमीश्नर, सेना, जनप्रतिनिधि, सचिव, न्यायाधीश, न्यायालय, ईम्पेक्ट फी, कर, गौरव पथ, अतिक्रमण, अनधिकृत, निर्माण, आवास, मार्ग, वाहनव्यवहार
नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है? – 3
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नरेन्द्र मोदी जब प्रधान मंत्री बन जाय, तब भारतीय जनता उनसे क्या अपेक्षा रखती है? – 3
सूचना आयोग सुधारः (रेफोर्मस इन पब्लिक इन्फोर्मशन)
हालमें सूचना आयोगके चार स्तर है.
(१) मुख्य सूचना आयुक्त (२) सूचना आयुक्त (३) सूचना अधिकारी (४)सहायक सूचना अधिकारी,
केन्द्र सरकार संचालित या उसकी अनुसूचित संस्थाएं और राज्य सरकार संचालित या उसकी अनुसूचित संस्थाएं जिनको सरकारसे लोक कोषमेंसे वेतन, दान, अनुदान मिलता हो या सरकारी कर, उपकर, शुल्क में मुक्ति, शिथिलीकरण, राहत, मिलती हो ऐसी संस्थाएं आती है. इन संस्थाओंका मुख्य अधिकारी सूचना अधिकारी होता है. और उसी संस्थाका एक नियुक्त अधिकारी सहायक सूचना अधिकारी होता है.
सहायक सूचना अधिकारी
सहायक सूचना अधिकारी, जनतासे सूचना अनुरोध प्राप्त करता है.
यह अधिकारी, अपनी संस्थाके समुचित अधिकारीसे एक मासकी अवधि अंतर्गत सूचना उपलब्ध करके अनुरोधकको देता है. सूचनाके नीचे वह अपेलेट प्राधिकारी का नाम और पता और अपीलकी समयावधि अनुसूचित करता है.
यदि सूचना अनुरोधकको इसमें कोई क्षति है ऐसा लगता है तो वह अपेलेट प्राधिकारी को अपील कर सकता है. इस प्रकार (३), (२) और (१), क्रमानुसार अपेलेट प्राधिकारी है.
प्राधिकारी (४) और (३), संस्थाके खुदके अधिकारी होते है. और संस्था को ही वे जिम्मेवार होते है. उनका वेतन भी संस्था ही करती है. और ये अधिकारी संस्थाके हितमें (संस्थाके अधिकारीयोंकी क्षतियोंको छिपाने का) काम करते दिखाई देते हैं.
जनताका सूचना अनुरोधकके बारेमें अनुभव कैसा है?
सूचना आयुक्त अपनेको हमेशा, और सूचना अधिकारी अपनेको कभी कभी, जैसे वे खुद न्यायालय चला रहे न हो.
सूचना अधिकारी और सूचना आयुक्त सुनवाई प्रक्रिया चलाते हैं. सूचना अनुरोध पत्र सरल होता है. और उसका उत्तर भी सरल होना चाहिये. किन्तु सूचना प्रदान करने वाली संस्था और समुचित अधिकारी हमेशा सूचना छिपानेकी कोशिस करता है. असंबद्ध सूचना देता है या तो टीक न शके ऐसे आधरपर अनुरोधित सूचना नकार देता है या अनुरोधित सूचना सतर्कता अधिकारीके अन्वेषण के अंतर्गत है, ऐसा उत्तर दे के उसको टाल देता है. अगर आप सूचना अनुरोधक है और अगर आप मिली हुई सूचनासे संतुष्ट नहीं है और अगर आपको सूचना आयुक्त के स्तर पर जाना पडा तो आपको एक साल लग सकता है.
सूचना अधिकारीयोंके पास स्वतंत्र कर्मचारी गण या कार्यालय नहीं है
सिर्फ सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त के पास ही अपना कर्मचारीगण और कार्यालय होता है. बाकी के सब सूचना अधिकारी, उनका कर्मचारी गण और कार्यालय अपने अपने अंतर्गत संस्थाओंका खुदका होता है.
जहां कहां भी अगर कोई अनियमितता, नियमका उल्लंघन, अनादर, कपट आदिका आचरण हुआ है ऐसी आपको शंका है और अगर आपने सूचना अधिकारके अधिनियम के अंतर्गत अनुरोध पत्र दिया तो समझ लो कि आपको सूचना आयुक्त तक जाना ही पडेगा. अगर आप पूर्ण समय के लिये इस कामके लिये प्रबद्ध है तभी आप अंत तक मुकद्दमाबजी करनी पडेगी.
सूचना आयोगका पूनर्गठन क्यों?
हालमें सहायक सूचना अधिकारी और सूचना अधिकारी, संस्थासे संलग्न होते है. वे संस्थाको समर्पित होते है और उसके उपर संस्थाके उच्च अधिकारी के लिखित अलिखित आदेशोंका पालन करना पडता है.
कामकी निविदा (टेन्डर नोटीस), निविदा दस्तावेज (टेन्डर डोक्युमेन्ट), मूल्यांकन (इवेल्युएशन), संविदा (कोन्ट्राक्ट), में कहीं न कहीं क्षति रक्खी जाती है ता कि, निवेदक के साथ सौदाबाजी कि जा सके, या ईप्सित निवेदकको अनुमोदन और स्विकृति दे सकें. याद करो युनीयन कार्बाईड के साथ कि गई संविदा. संविदा ही दूर्घटना के कारण पीडित लोंगोंको हुई हानि का प्रतिकर संपूर्ण क्षतियुक्त था. ऐसा संविदा दस्तावेज बनानेमें गैर कानुनी पैसे की हेराफेरी नकारी नहीं जा सकती. यह तो एक बडी घटना थी. लेकिन ऐसे कई काम होते है जिनमें संस्थाका उच्च अधिकारी अंतिम निर्णय लेता है. इसमें भी गैर कानुनी तरिकेसे पैसे की हेराफेरी होती है. और इस कारण जब सूचना अधिनियम के अंतर्गत आवेदन आता है तो संस्थागत अधिकारी हमेशा सच्चाईको छिपानेकी कोशिस करता है.
ऐसी ही परिस्थिति जनपरिवाद (पब्लीक कंप्लेइन्ट) पर कार्यवाही करनेमें होती है.
परिवाद (कंप्लेईन्ट) पत्रपर कार्यवाही करने वाला संस्थागत अधिकारी ही होता है. और वह अपने क्षतिकरने अधिकारी/कर्मचारीकी प्रतिरक्षा (डीफेन्ड) करनेका प्रयत्न करता है और समुचित कार्यवाही करता नहीं है. एक परिवाद आयोग की रचना आवश्यक है. यह परिवार आयोग संस्थाके सतर्कता अधिकारीसे उत्तर मांगेगा. और जिस प्रकार जन सूचना अभियोगके अंतरर्गत कार्यवाही होती है, वैसी ही कार्यवाही परिवादकके प्रार्थना पत्र पर होगी. जनपरिवादका काम लोकपाल / लोकायुक्त के कार्यक्षेत्रमें आता है.
परिवाद और सूचनाका संमिलन (मर्जर) क्यों
वास्तवमें देखा जाय तो हर एक माहिति/सूचना के अनुरोध आवेदन पत्र की पार्श्व भूमिमें एक प्रच्छन्न परिवाद होता है. लोकपाल और सूचना आयुक्त के अधिकारी, कर्मचारी (अधिकारी) को दंडित कर सकते है.
इस प्रकार सूचना आयोगका नाम जन सूचना और जन परिवाद आयोग रहेगा या लोकपाल/लोकाअयुक्त रहेगा. इस आयोगका कुछभी नाम देदो. आवश्यकता के अनुसार अधिकारी संयूक्त कोई स्तर पर संमिलित या भिन्न भिन्न रहेंगें. हम अब इसको सूचना व लोक आयोग कहेंगे.
जन सूचना और जन परिवाद आयोग (सूचना व परिवाद लोकायुक्त अयोग) एक संपूर्ण स्वतंत्र आयोग होना चाहिये.
सूचना व लोकायुक्त अयोग अधिकारीसे लेकर मुख्य आयुक्त तक सभी अधिकारी गण, उनके कर्मचारी गण और उनके कार्यालय स्वतंत्र और अलग होना चाहिये.
सूचना व लोकायुक्त अधिकार के अंतर्गत सभी अधिकारी गण और कर्मचारी गण को निरपेक्ष और अर्थपूर्ण बनानेके लिये प्रशिक्षण देना चाहिये.
सूचना अधिकारीका कार्यक्षेत्र और लोक आयोग का कार्यक्षेत्र हालमें विभाजित है. सूचना अधिकारीको संस्थासे अलग करके सूचना अधिकारका वह लोक आयोगका कार्य क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्रके आधारपर विभाजित होना चाहिये.
कोई भी संस्था जो सूचना अधिकार अधिनियम जो केन्द्र और राज्य सरकारके अंतर्गत क्षेत्रमें आती हैं, उसको अपना वेब साईट रखना पडेगा. उसमें सरकार द्वारा अपेक्षित विवरण रखना बाध्य रहेगा.
सूचना अनुरोध और परिवाद आवेदन पत्र ग्रहण केन्द्रः
ग्राम सूचना अनुरोध व परिवाद पत्र ग्रहण केन्द्रः (ग्राम पंचायतकी सीमा अंतर्गत स्थित केन्द्र) सहायक जन अधिकारीः
यह अधिकारी अपने भौगोलिक सीमाके अंतर्गत आनेवाले निवासीका (और अन्य क्षेत्रके निवासीका भी) सूचना–अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र लेगा.
सरकारकी पारदर्शिकाके बारेमें जनताको उत्साहित करना आवश्यक है. इस प्रकारसे जनकोष (पब्लिक एकाऊन्ट)से प्रत्यक्ष या परोक्ष रीतिसे लाभान्वित संस्थाओं पर और सरकारी शासन पर सुचारु और व्यापक अनुश्रवण (मोनीटरींग) होना आवश्यक है.
जिस प्रकारसे मोबाईल के सीमकार्ड का वितरण के लिये ग्रहण केन्द्र निजी अभिकर्ताओंको (प्राईवेट एजन्सीयोंको) रखा जाता है उसी प्रकार सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र ग्रहण के लिये भी निजी अभिकर्ताओंको अनज्ञप्ति (लाईसेन्स) देना चाहिये.
अनुरोध व आवेदन पत्र
सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र विहित प्ररुप (प्रीस्क्राईब्ड फोर्मेट) में होंगे. यह विहित प्ररुप पत्र रू. ५/- की शुल्क पर इसी कार्यालय से मिलेगा. अगर चाहे तो सूचना अनुरोधक या परिवादक उसी विहित प्ररुपोंमें ए–४ कद वाले पत्रमें लिखके या मुद्रित करके दे सकता है. सूचना अनुरोधकको अपने अभिज्ञान पत्र (आडेन्टीटी कार्ड) की अधिकृत प्रतिलिपि (सर्टीफाईड कोपी) और उसका क्रम और स्थायी (जहांका वह मतदाता है) पता देना पडेगा. यदि वह अपना अनुरोध पत्र गुप्त रखना चाहता है तो उसको यह शर्त लिखनी पडेगी.
सूचना अनुरोध पत्र और परिवाद पत्र दोनोंका का विहित प्ररुप दो पृष्ठमें होगा. प्रथम पृष्ठ पर सूचना अनुरोधकका, समुचित संस्था का, और सहायक सूचना अधिकारी का विवरण होगा. द्वितीय पृष्ठपर अनुरोधित सूचनाका या परिवादका(कंप्लेईन्टका) विवरण होगा. दोनों पृष्ठपर हस्ताक्षर होगे. दूसरा पृष्ठ ही समुचित संस्थाको भेजा जायेगा.
प्रत्येक पत्र पर एक अनन्य क्रम संख्या लिखी जायेगी, जो दोनों पृष्ठोंको इस क्रम संख्यासे संमिलित होगी.
सहायक अधिकारी इस पत्रको स्कॅन करके उसकी सोफ्ट प्रतिलिपि बनायेगा. और समुचित संस्थाके उच्च या अनुसूचित अधिकारी को प्रेषण पत्रके साथ ईमेल कर देगा. इसकी एक प्रतिलिपि आवेदकको मुद्रित करके और यदि उसका ईमेल पता है तो एक प्रतिलिपि उसको ईमेल करेगा.
आवेदक अपने पत्रके साथ रू.१००/- फी, चेकसे या नकद से जमा करेगा. चेक से अगर फीस जमा कि है तो फीस जमा होने पर सहायक अधिकारी दूसरे ही कामके दिन पर उस आवेदन पत्र पर कार्यवाही करेगा.
पुरे भारतमें लोक व सूचना आयुक्त के बेंक खाता इस प्रकार रहेंगे.
केन्द्र सरकार आयोग खाता
(राज्य का नाम) सरकार आयोग खाता.
यह राज्य और केन्द्रके आयोगोंकी बेंक खाता की सूचि हरेक अधिकारी के कार्यालयमें प्रमुख स्थान पर स्थायी प्रकारसे प्रदर्शित होगी.
सहायक अधिकारी, आवेदन पत्र को समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीको या सूचित अधिकारीको भेज देगा. आवेदन पत्र का रेकोर्ड रखेगा.
सूचना खर्च
संस्थासे सूचना प्रदान खर्चका मूल्य के विषय पर उत्तर मिलने पर, सहायक सूचना अधिकारी, सूचना अनुरोधकको १५ दिन के अंतर्गत खर्च रकम सूचना आयुक्त के खाता क्रम संख्यामें जमा करनेका निर्देश देगा. जब सूचना अनुरोधक सूचना–खर्च रकम जमा करेगा, तब सूचना अधिकारी संस्थाको सूचित करेगा. संस्था वह सूचना की सोफ्ट लिपि सहायक सूचना अधिकारीको भेजेगी. और सहायक सूचना अधिकारी उसको मूद्रित करके सूचना अनुरोधकको प्रेषित करेगा. यदि ईमेल पता है तो वह उसके उपर भी प्रेषित करेगा.
संस्था को जो परिवाद पत्र भेजा गया है उसका एक मासके अंदर उत्तर देगी. यदि परिवाद का किस्सा गंभीर अस्तव्यस्तताका या घोर असुविधाका है तो और इस प्रकार की प्रार्थना कि गई है तो सहायक अधिकारी इसको अपेलेट अधिकारीको प्रेषित करेगा और अपेलेट अधिकारी इसके उपर निर्णय करके उत्तरकी कालसीमा पर निर्णय करेगा और समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीको प्रेषित करेगा.
अगर समुचित संस्थाके शिर्ष अधिकारीने एक मासके अंतर्गत या सूचित काल सीमा के अंतर्गत उत्तर नहीं दिया या तो अधिक समयावधि मांगी तो यह बात वह आवेदकको सूचित करेगा. यह भी सूचित करेगा कि, अपेलेट प्राधिकारी कौन है और उसका पता क्या है.
यदि राज्य सरकारके अंतर्गत वह संस्था आती है तो प्रथम अपेलेट प्राधिकारी तेहसिल (या झॉन) विस्तारका सूचना व परिवाद सहायक लोक आयुक्त होगा.
यदि केन्द्र सरकारके अंतर्गत वह संस्था आती है तो प्रथम अपेलेट प्राधिकारी जिला विस्तारका सहायक आयुक्त होगा.
बुथ समूह या वॉर्ड सूचना व परिवाद सहायक अधिकारीः जहां ग्राम पंचायत नहीं होती है, किन्तु नगर पालिका या वॉर्ड होते है, वहां पर यह कार्यभार के आधार पर बुथ समूह विस्तार में यह अधिकारी होगा. वह ग्राम के सहायक अधिकारी के समान कार्य करेगा.
सूचना व परिवाद आयोग (राज्य)
तहेसिल या झॉनः (राज्य) सूचना व लोक सहायक लोक आयुक्त. यह अधिकारी राज्य सरकार के कार्यक्षेत्रमें आती समुचित संस्थासे संलग्न सूचना व परिवाद के आवेदकोंके प्रथम अपेलेट प्राधिकारी है.
जिला विस्तारः (राज्य) सूचना व परिवाद लोक आयुक्तः लिये द्वितीय अपेलेट प्राधिकारी है.
राज्य विस्तारः (राज्य) सूचना व परिवाद आयुक्त. यदि (राज्य) सहायक सूचना व परिवाद लोकायुक्त निर्णय पर आवेदक असंतुष्ट है तो वह राज्यके सूचना व परिवाद आयुक्त के पास अंतिम अपील करेगा.
उसके बाद भी असंतूष्ट है तो उच्च न्यायलयमें जायेगा.
केन्द्रीय विस्तारः केन्द्रीय सूचना व परिवाद आयोगः
जिला विस्तारः (केन्द्र) सूचना व परिवाद सहायक लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें प्रथम अपेलेट प्राधिकारी.
राज्य विस्तारः (केन्द्र) सूचना व परिवाद लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें द्वितीय अपेलेट प्राधिकारी.
राष्ट्र विस्तारः (केन्द्र) सूचना व परिवाद मुख्य लोक आयुक्त. यह प्राधिकारी केन्द्र सरकारके कार्यक्षेत्रके अंतरर्गत आती संस्थाके विषयके बारेमें अन्तिम अपेलेट प्राधिकारी.
इनके निर्णयसे यदि आप असंतुष्ट है तो सर्वोच्च अदालतमें जाना होगा.
यह एक रुपरेखा मात्र है. इसको कानुनी भाषामें विधेयक प्रारुपमें शब्द बद्ध करना है और कार्य प्रणालीका विस्तारसे विवरण करना आवश्यक है.
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः सूचना, अनुरोध, सहायक अधिकारी, आयुक्त, आयोग, ग्राम, बुथ समूह, तेहसिल, वॉर्ड, झॉन, जिल्ला, राज्य, राष्ट्र, समयावधि, न्यायालय, उच्च सर्वोच्च, मुख्य, कामकी निविदा, टेन्डर नोटीस, संविदा, कोन्ट्राक्ट, जन परिवाद, पब्लीक कंप्लेइन्ट, प्रतिरक्षा, डीफेन्ड, संमिलन, मर्जर, पारदर्शिता, प्रतिलिपि, अपेलेट, प्राधिकारी