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कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

कहीं भी, कुछ भी कहेनेकी सातत्यपूर्ण स्वतंत्रता – ३

गांधीका खूनी कोंगी है

शाहीन बाग पदर्शनकारीयोंका संचालन करनेवाली गेंग है वह अपनेको महात्मा गांधीवादी समज़ती है. कोंगी लोग और उनके सांस्कृतिक समर्थक भी यही समज़ते है.. इन समर्थकोमें समाचार माध्यम और उनके कटारलेखकगण ( कोलमीस्ट्स) भी आ जाते है.

ये लोग कहते है, “आपको प्रदर्शन करना है? क्या लोक शाही अधिकृत मार्गसे प्रदर्शन करना  है? तो गांधीका नाम लो … गांधीका फोटो अपने हाथमें प्रदर्शन करनेके वख्त रक्खो… बस हो गये आप गांधीवादी. ”

कोंगी यानी नहेरुवीयन कोंग्रेस [इन्दिरा नहेरुघांडी कोंग्रेस I.N.C.)] और उनके सांस्कृतिक साथीयोंकी गेंगें यह समज़ती है कि गांधीकी फोटो रक्खो रखनेसे आप गांधीजीके समर्थक और उनके मार्ग पर चलनेवाले बन जाते है. आपको गांधीजी के सिद्धांतोको पढने की आवश्यकता नहीं.

गांघीजीके नाम पर कुछ भी करो, केवल हिंसा मत करो, और अपनेको गांधी मार्ग द्वारा  शासन का प्रतिकार करनेवाला मान लो. यदि आपके पास शस्त्र नहीं है और बिना शस्त्र ही प्रतिकार कर रहे है तो आप महात्मा गांधीके उसुलों पर चलने वाले हैं मतलब कि आप गांधीवादी है.

देशके प्रच्छन्न दुश्मन भी यही समज़ते है.

हिंसक शस्त्र मत रक्खो. किन्तु आपके प्रदर्शन क्षेत्रमें यदि कोई अन्य व्यक्ति आता है तो आप लोग अपने बाहुओंका बल प्रयोग करके उनको आनेसे रोक सकते हो. यदि ऐसा करनेमें उसको प्रहार भी हो जाय तो कोई बात नहीं. उसका कारण आप नहीं हो. जिम्मेवार आपके क्षेत्रमें आने वाला व्यक्ति स्वयं है. आपका हेतु उसको प्रहार करनेका नहीं था. आपके मनाकरने पर भी, उस व्यक्तिने  आपके क्षेत्रमें आनेका प्रयत्न किया तो जरा लग गया. आपका उसको हताहत करनेका हेतु तो था ही नहीं. वास्तवमें तो हेतु ही मुख्य होता है न? बात तो यही है न? हम क्या करें?

शाहीन बागके प्रदर्शनकारीयोंको क्या कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक कहा जाय?

अहिंसक मार्ग द्वारा प्रदर्शन करने वाले कहा जाय?

निःशस्त्र क्रांतिकारी प्रदर्शनकारी कहा जाय?

गांधीवादी कहा जाय?

लोकशाहीके रक्षक तो ये लोग नहीं है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध “नया नागरिक नियम”के सामने है.

इन प्रदर्शनकारीयोंका विरोध राष्ट्रीय नागरिक पंजिका (रजीस्टर) बनानेके प्रति है.

इन प्रदर्शन कारीयोंका विरोध राष्ट्रीय जनगणना पंजिका बनानेके प्रति है.

ये प्रदर्शनकारी और कई मूर्धन्य लोग भी मानते है कि प्रदर्शन करना जनताका संविधानीय अधिकार है. और ये सब लोकशाहीके अनुरुप और गांधीवादी है. क्यों कि प्रदर्शनकारीयोंके पास शस्त्र नहीं है इसलिये ये अहिंसक है. अहिंसक है इसलिये ये महात्मा गांधीके सिद्धांतोके अनुरुप है.

इन प्रदर्शन कारीयोंमें महिलाएं भी है, बच्चे भी है. शिशु भी है. क्यों कि इन सबको विरोध करनेका अधिकार है.

इन विरोधीयोंके समर्थक बोलते है कि यह प्रदर्शन दिखाते है कि अब महिलाएं जागृत हो गई हैं. अब महिलायें सक्रिय हो गई हैं, बच्चोंका भी प्रदर्शन करनेका अधिकार है. इन सबकी आप उपेक्षा नहीं कर सकते. ये प्रदर्शन कारीयों के हाथमें भारतीय संविधानकी प्रत है, गांधीजीकी फोटो है, इन प्रदर्शनकारीयोंके हाथमें अपनी मांगोंके पोस्टर भी है. इनसे विशेष आपको क्या चाहिये?

वैसे तो भारतकी उपरोक्त गेंग कई बातें छीपाती है.

ये लोग मोदी-शाहको गोली मारने के भी सूत्रोच्चार करते है, गज़वाहे हिंदके सूत्रोच्चार भी करते है,      

यदि उपरोक्त बात सही है तो हमें कहेना होगा कि ये लोग या तो शठ है या तो अनपढ है. और इनका हेतु कोई और ही है.

निःशस्त्र और सत्याग्रह

निःशस्त्र विरोध और सत्याग्रहमें बडा भेद है. यह भेद न तो यह गेंग समज़ती है, न तो यह गेंग समज़ना चाहती है.

(१) निःशस्त्र विरोधमें जिसके/जिनके प्रति विरोध है उनके प्रति प्रेम नहीं होता है.

(२) निःशस्त्र विरोध हिंसक विरोधकी पूर्व तैयारीके रुपमें होता है. कश्मिरमें १९८९-९०में हिन्दुओंके विरोधमें सूत्रोच्चार किया गया था. जब तक किसी हिन्दु की हत्या नहीं हुई तब तक तो वह विरोध भी अहिंसक ही था. मस्जिदोंसे जो कहा जाता था उससे किसीकी मौत नहीं हुई थी. वे सूत्रोच्चार भी अहिंसक ही थे. वे सब गांधीवादी सत्याग्रही ही तो थे.

(३) सत्याग्रहमें जिनके सामने विरोध हो रहा है उसमें उनको या अन्यको दुःख देना नहीं होता है.

(४) सत्याग्रह जन जागृति के लिये होता है और किसीके साथ भी संवाद के लिये सत्याग्रहीको तयार रहेनेका होता है.

(५) सत्याग्रही प्रदर्शनमें सर्वप्रथम सरकारके साथ संवाद होता है. इसके लिये सरकारको लिखित रुपसे और पारदर्शिता के साथ सूचित किया जाता है. यदि सरकारने संवाद किया और सत्याग्रहीके तर्कपूर्ण चर्चाके मुद्दों पर   यदि सरकार उत्तर नहीं दे पायी, तभी सत्याग्रहका आरंभ सूचित किया जा सकता है.

(६) सत्याग्रह कालके अंतर्गत भी सत्याग्रहीको संवादके लिये तयार रहना अनिवार्य है.

(७) यदि संविधानके अंतर्गत मुद्दा न्यायालयके आधिन होता है तो सत्याग्रह नहीं हो सकता.

(८) जो जनहितमें सक्रिय है उनको संवादमें भाग लेना आवश्यक है.

शाहीन बाग या अन्य क्षेत्रोंमे हो रहे विरोधकी स्थिति क्या है?

(१) प्रदर्शनकारीयोंमे जो औरतें है उनको किसीसे बात करनेकी अनुमति नहीं. क्यों कि जो गेंग, इनका संचालन कर रहा है, उसने या तो इन प्रदर्शनकारीयोंको समस्यासे अवगत नहीं कराया, या गेंग स्वयं नहीं जानती है कि समस्या क्या है? या गेंगको स्वयंमें आत्मविश्वासका अभाव है. वे समस्याको ठीक प्रकारसे समज़े है या तो वे समज़नेके लिये अक्षम है.

(२) प्रदर्शनकारी और उनके पीछे रही संचालक गेंग जरा भी पारदर्शी नहीं है.

(३) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंग को सरकारके प्रति प्रेम नहीं है, वे तो गोली और डंडा मारनेकी भी बातें करते हैं.

(४) प्रदर्शनकारीयोंको और उनके पीछे रही संचालक गेंगको गांधीजीके सत्याग्रह के नियम का प्राथमिक ज्ञान भी नहीं है, इसीलिये न तो वे सरकारको कोई प्रार्थना पत्र देते है न तो समाचार माध्यमके समक्ष अपना पक्ष रखते है.

(५) समस्याके विषयमें एक जनहितकी अर्जी की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालयमें है ही, किन्तु ये प्रदर्शनकारीयोंको और उनके संचालक गेंगोंको न्यायालय पर भरोसा नहीं है. उनको केवल प्रदर्शन करना है. न तो इनमें धैर्य है न तो कोई आदर है.

(६) कुछ प्रदर्शनकारी अपना मूँह छीपाके रखते है. इससे यह सिद्ध होता है कि वे अपने कामको अपराधयुक्त मानते है, अपनी अनन्यता (आईडेन्टीटी) गोपित रखना चाहते है ताकि वे न्यायिक दंडसे बच सकें. ऐसा करना भी गांधीजीके सत्याग्रहके नियमके विरुद्ध है. सत्याग्रही को तो कारावासके लिये तयार रहेना चाहिये. और कारावास उसके लिये आत्म-चिंतनका स्थान बनना चाहिये.

(७) इन प्रदर्शनकारीयोंको अन्य लोगोंकी असुविधा और कष्टकी चिंता नहीं. उन्होंने जो आमजनताके मर्गोंका अवैध कब्जा कर रक्खा है और अन्योंके लिये बंद करके रक्खा है यह एक गंभीर अपराध है. दिल्लीकी सरकार जो इसके उपर मौन है यह बात उसकी विफलता है या तो वह समज़ती है कि उसके लिये लाभदायक है. यह पूरी घटना जनतंत्रकी हत्या है.

(८) सी.ए.ए., एन.सी.आर. और एन.पी.आर. इन तीनोंका जनतंत्रमें होना स्वाभाविक है इस मुद्दे पर तो हमने पार्ट-१ में देखा ही है. वास्तवमें प्रदर्शनकारीयोंका कहेना यही निकलता है कि जो मुस्लिम घुसपैठी है उनको खूला समर्थन दो और उनको भी खूली नागरिकता दो. यानी कि, पडौशी देश जो अपने संविधानसे मुस्लिम देश है, और अपने यहां बसे अल्पसंख्यकोंको धर्मके आधार पर प्रताडित करते है और उनकी सुरक्षा नहेरु-लियाकत करार होते हुए भी नहीं करते है और उनको भगा देते है. यदि पडौशी देशद्वारा भगाये गये इन बिन-मुस्लिमोंको भारतकी सरकार नागरिकत्त्व दे तो यह बात हम भारतीय मुस्लिमोंको ग्राह्य नहीं है.

मतलब कि भारत सरकारको यह महेच्छा रखनी नहीं चाहिये कि पाकिस्तान, नहेरु-लियाकत अली करारनामा का पाकिस्तानमें पालन करें.

हाँ एक बात अवश्य जरुरी है कि भारतको तो इस करारनामाका पालन मुस्लिम हितोंके कारण करना ही चाहिये. क्यों कि भारत तो धर्म निरपेक्ष है.

“हो सकता है हमारे पडौशी देशने हमसे करार किया हो कि, वह वहांके अल्पसंख्यकोंके हित और अधिकारोंकी रक्षा करेगा, चाहे वह स्वयं इस्लामिक देश ही क्यों न हो. लेकिन यदि हमारे पडौशी देशने इस करारका पालन नहीं किया. तो क्या हुआ? इस्लामका तो आदेश ही है कि दुश्मनको दगा देना मुसलमानोंका कर्तव्य है.

“यदि भारत सरकार कहेती है कि भारत तो ‘नहेरु-लियाकत अली करार’ जो कि उसकी आत्मा है उसका आदर करते है. इसी लिये हमने सी.ए.ए. बनाया है. लेकिन हम मुस्लिम, और हमारे कई सारे समर्थक मानते है कि ये सब बकवास है.

“कोई भी “करार” (एग्रीमेन्ट) का आदर करना या तो कोई भी न्यायालयके आदेशका पालन करना है तो सर्व प्रथम भारत सरकार को यह देख लेना चाहिये कि इस कानूनसे हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंकी ईच्छासे यह विपरित तो नहीं है न ! यदि हमारे पडौशी देशके हमारे मुस्लिम बंधुओंको भारतमें घुसनेके लिये और फिर भारतकी नागरिकता पानेके लिये अन्य प्रावधानोंके अनुसार प्रक्रिया करनी पडती है तो ये तो सरासर अन्याय है.

“हमारे पडौशी देश, यदि अपने संविधानके  विपरित या तो करारके विपरित आचार करें तो भारत भी उन प्रावधानोंका पालन न करें, ऐसा नहीं होना चाहिये. चाहे हमारे उन मुस्लिम पडौशी देशोंके मुस्लिमोंकी ईच्छा भारतको नुकशान करनेवाली हो तो भी हमारी सरकारको पडौशी देशके मुस्लिमोंका खयाल रखना चाहिये.

“भारत सरकारने, जम्मु – कश्मिर राज्यमें  कश्मिरी हिन्दुओंको जो लोकशाही्के आधार पर नागरिक अधिकार दिया. यह सरासर हम मुस्लिमों पर अन्याय है. आपको कश्मिरी हिन्दुओंसे क्या मतलब है?

“हमारा पडौशी देश यदि अपने देशमें धर्मके आधार पर कुछ भी करता है तो वह तो हमारे मुल्लाओंका आदेश है. मुल्ला है तो इस्लाम है. मतलब कि यह तो इस्लामका ही आदेश है.

भारतने पाकिस्तान से आये धर्मके आधार पर पीडित बीन मुस्लिमोंको नागरिक  अधिकार दिया उससे हम मुस्लिम खुश नहीं. क्यों कि भारत सरकारने हमारे पडौशी मुस्लिम देशके मुस्लिमोंको तो नागरिक अधिकार नहीं दिया है. भारत सरकारने  लोकशाहीका खून किया है. हम हमारे पडौशी देशके मुस्लिमोंको भारतकी नागरिकता दिलानेके लिये अपनी जान तक कुरबान कर देंगे. “अभी अभी ही आपने देखा है कि हमने एक शिशुका बलिदान दे दिया है. हम बलिदान देनेमें पीछे नहीं हठेंगे. हमारे धर्मका आदेश है कि इस्लामके लिये जान कुरबान कर देनेसे जन्नत मिलता है. “हम तो मृत्युके बादकी जिंदगीमें विश्वास रखते है. हमें वहा सोलह सोलह हम उम्रकी  हुरें (परीयाँ) मिलेगी. वाह क्या मज़ा आयेगा उस वख्त! अल्लाह बडा कदरदान है.

“अय… बीजेपी वालों और अय … बीजेपीके समर्थकों, अब भी वख्त है. तुम सुधर जाओ. अल्लाह बडा दयावान है. तुम नेक बनो. और हमारी बात सूनो. नहीं तो अल्लाह तुम्हे बक्षेगा नहीं.

“अय!  बीजेपीवालो और अय … बीजेपीके समर्थकों, हमें मालुम है कि तुम सुधरने वाले नहीं है. अल्लाह का यह सब खेल है. वह जिनको दंडित करना चाहता है उनको वह गुमराह करता है. “लेकिन फिर भी हम तुम्हें आगाह करना चाहते है कि तुम सुधर जाओ. ता कि, जब कयामतके दिन अल्लाह हमें पूछे कि अय इमान वाले, तुम भी तो वहां थे … तुमने क्या किया …? क्या तुम्हारा भी कुछ फर्ज था … वह फर्ज़ तुमने मेहसुस नहीं किया… ?

“तब हम भारतके मुस्लिम बडे गर्वसे अल्लाह को कहेंगे अय परवरदिगार, हमने तो अपना फर्ज खूब निभाया था. हमने तो कई बार उनको आगाह किया था कि अब भी वखत है सुधर जाओ … लेकिन क्या करें …

“अय खुदा … तुम हमारा इम्तिहान मत लो.  जब तुमने ही उनको गुमराह करना ठान लिया था… तो तुमसे बढ कर तो हम कैसे हो सकते? या अल्लाह … हम पर रहम कर … हम कुरबानीसे पीछे नहीं हठे. और अय खुदा … हमने तो केवल आपको खुश करने के लिये कश्मिर और अन्यत्र भी इन हिन्दुओंकी कैसी कत्लेआम की थी और आतंक फैलाके उनको उनके ही मुल्कमें बेघर किया था और उनकी औरतोंकी आबरु निलाम की थी … तुमसे कुछ भी छीपा नहीं है…

“ … अय खुदा ! ये सब बातें तो तुम्हें मालुम ही है. ये कोंगी लोगोंने अपने शासनके वख्त कई अपहरणोंका नाटक करके हमारे कई जेहादीयोंको रिहा करवाया था. यही कोंगीयोंने, हिन्दुओंके उपर, हमारा खौफ कायम रखनेके लिये, निर्वासित हिन्दुओंका पुनर्‌वास नहीं किया था. अय खुदा उनको भी तुम खुश रख. वैसे तो उन्होंने कुछ कुरबानियां तो नहीं दी है [सिर्फ लूटमार ही किया है], लेकिन उन्होंने हमे बहूत मदद की है.

“अय खुदा … तुम उनको १६ हुरें तो नहीं दे सकता लेकिन कमसे कम ८ हुरें तो दे ही सकता है. गुस्ताखी माफ. अय खुदा मुज़से गलती हो गई, हमने तो गलतीमें ही कह दिया कि तुम इन कोंगीयोंको १६ हुरे नहीं दे सकता. तुम तो सर्व शक्तिमान हो… तुम्हारे लिये कुछ भी अशक्य नहीं. हमें माफ कर दें. हमने तो सिर्फ हमसे ज्यादा हुरें इन कोंगीयोंको न मिले इस लिये ही तुम्हारा ध्यान खींचा था. ८ हुरोंसे इन कोंगीयोंको कम हुरें भी मत देना क्यों कि ४/५ हुरें तो उनके पास पृथ्वी पर भी थी. ४/५ हुरोंसे यदि उनको कम हुरें मिली तो उनका इस्लामके जन्नतसे विश्वास उठ जायेगा. ये कोंगी लोग बडे चालु है. अय खुदा, तुम्हे क्या कहेना! तुम तो सबकुछ जानते हो. अल्ला हु अकबर.

शिरीष मोहनलाल दवे

चमत्कृतिः

एक कोंगी नेताने मोदीको बडा घुसपैठी कहा. क्यों कि मोदी गुजरातसे दिल्ली आया. मतलब कि गुजरात भारत देशके बाहर है.

एक दुसरे कोंगी नेताने कहा कि मोदी तो गोडसे है. गोडसेने भी गांधीकी हत्या करनेसे पहेले उनको प्रणाम किया था. और मोदीने भी संविधानकी हत्या करनेसे पहेले संसदको प्रणाम किया था.

शिर्ष नेता सोनिया, रा.गा. और प्री.वा.  तो मोदी मौतका सौदागर है, मोदी चोर है इसका नारा ही लगाते और लगवाते है वह भी बच्चोंसे.

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हिन्दु और लघुमतीयोंको एक दुसरेसे क्या अपेक्षा है और अपेक्षा क्या होनी चाहिये? – २

जब देशकी जनता गरीब होती है वह किसीभी बात पर झगडा करने के लिये तैयार हो जाती है. और जिनका उद्देश्य सिर्फ सत्ता और पैसा है वह हमेशा दुसरोंकी अज्ञानताका लाभ लेकर देशको और मानवजातको चाहे कितना ही नुकशान क्युं न होजाय, दुसरोंको गुमराह करके मत बटोरके अपना उल्लु सीधा करती है.

लेकिन वास्तवमें ये हिन्दु और मुस्लिम कौन है और कैसे है?

और ये दोनो क्यों बेवकुफ बनते रहते है?

मुस्लिम और हिन्दु वास्तवमें एक ही जाति है. इसाकी प्रथम सदी तक हिन्दु राजाएं इरान तक राज करते थे. विक्रममादित्यने अरबस्तान तक अपना साम्राज्य फैलाया था. अगर आर्योंके आगमन वाली कल्पनाको सही माने तो भी अरबस्तान वाले भी आर्य जाति के है. अगर भारतसे लोग बाहर गये इस थीयेरीका स्विकार करे तो भी अरबस्तानके लोग और भारतके लोग एक ही जातिके है. एक ही जातिके हो या न हो अब जाति कोई महत्व रखती नहीं है.

फिर टकराव क्युं?

इस्लाम क्या है?

इससे प्रथम यह विचार करो कि इस्लाम क्यों आया? जब कोई भी प्रणालीमें अतिरेक होता है तो एक प्रतिकारवाला प्रतिभाव होता है.

प्रणालीयां समाजको लयबद्ध जिनेके लिये होती है. प्रणालीयां संवादके लिये होती है. प्रणालीयां आनंदके लिये होती है. अगर इसमें असंतुलन हो जाय और समाजके मनुष्योंकी सुविधाओंमें यानी कि आनंदमें असंतुलन हो जाय तब कोई सक्षम मनुष्य आगे आ जाता है और वह विद्रोहवाला प्रतिकार करता है.

इश्वरकी शक्तियों पर समाज निर्भर है. इन शक्तियोंको आप कुछ भी नाम दे दो. आप उनका भौतिक प्रतिक बनाके उनको याद रखो और उसकी उपासना करो. उस उपासनाओंकी विधियां बनाओ. उनकी विधियोंके अधिकारीयोंको सत्ता दो. यह पूरा फिर एक प्रपंच बन जाता है. समाजके युथोंके सुखोंमें असंतुलन हो जाता है. कोई न कोई कभी न कभी ऐसा व्यक्ति निकलेगा जो इनका विरोध करेगा.

अरबस्तानमें महोम्मद साहब हुए. और भारतमें दयानंद सरस्वती हुए. दयानंद सरस्वतीसे पहेले भी कई लोग हुए थे. शंकराचार्यने कर्मकांडका विरोध किया था. भारतमें किसी विद्रोहीने तिरस्कार और तलवारका उपयोग किया नहीं था. क्यों कि भारतमें धर्म-चर्चा एक प्रणाली थी. अरबस्तानमें मोहम्मद साहबके जमानेमें ऐसा कुछ था नहीं. उस समय शासकके हाथमें सर्व सत्ता थी.

मोहम्मद साहबने मूर्त्तिपूजाका और विधियोंका विरोध किया. और वैज्ञानिक तर्कसे सोचनेका आग्रह किया. उस समय जो उच्च लोग थे वे लोग जो अनाचार दुराचार करना चाहते थे वे इश्वरके नामपर करते थे. दारु पीना है? ईश्वरको समर्पित करो और फिर खुद पीओ. जुआ खेलना है? तो ईश्वरके नाम पर करो.

भारतमें भी आजकी तारिखमें ऐसा ही है. कृष्ण भगवानके नाम पर जुआ खेला जाता है. देवीके नाम पर दारु पीया जाता है. ईश्वरके नाम पर भंग पी जाती है. देवदासीके नाम पर व्यभिचार किया जाता है. आचार्य रजनीशने संभोगसे समाधि पुरस्कृत किया है. जब मानव समाजमें समुहोंके बीच सुखोंमे असंतुलन होता है तब दंगा फसाद और विद्रोह होता है.
मोहम्मद साहबने अपने जमानेमें जो जरुरी था वह किया.

इस्लाम यह कहता है

ईश्वर एक है. उसका कोई आकार नहीं. उसकी कोई जाति नहीं. वह किसीका संबंधी नहीं. वह जगतकी हर वस्तुसे नजदिकसे नजदिक है. वह सर्वत्र है और सबकुछ देखता है. वह ज्योतिके रुपमें प्रगट होता है. आपका कर्तव्य है कि आप सिर्फ उसकी ही उपासना करें. यह उपासना नमाजकी विधिके अनुसार करो. और दिनमें पांच बार करो. ईश्वर दयावान है. अगर आप, उनसे, अपने कुकर्मोंकी सच्चे दिलसे माफी मांगोगे तो वह माफ कर देगा.

ईश्वरको ईमान प्रिय है. इसलिये ईमानदार बनो.

वैज्ञानिक अभिगम रक्खो,

आप सुखी है? तो इसका श्रेय ईश्वरको दो.

आपने कुछ अच्छाकाम किया है? तो समझो की ईश्वरने आप पर कृपा है की है, कि उसने इस अच्छे कामके लिये आपको पसंद किया. आप इसका श्रेय ईश्वरको दो.

आप देखो कि आपका पडोसी दुःखी तो नहीं है न? उसको मदद करो. उसको भोजन करानेके बाद आप भोजन करो.

आप संपन्न है तो इसका एक हिस्सा इश्वरको समर्पित करो.

जिसको धनकी जरुरत है उसको धन दो और मदद करो. उससे व्याज मत लो.

अगर कोई गलत रास्ते पर जा रहा है और समझाने पर भी सही रास्ते पर नहीं आता है, तो समझलो कि यह ईश्वर की इच्छा है. ईश्वर उसको गुमराह करेगा और सजा देगा.

ईश्वरने तुम्हारे लिये वृक्षोंपर और पौधोंपर सुंदर भोजन बनाया है. तुम उसको ईश्वरकी कृपाको याद करते करते आनंदसे खाओ. (अगर इनकी कभी कमी पड गई तो) जिंदा रहेनेके लिये फलां फलां प्राणीयोंका मांस इश्वरको समर्पित करके खाओ.

यह है इस्लामके आदेश जो मोहम्मद साहबने अपने लोगोंको राह पर चलनेके लिये बतायें.

और भी कई बाते हैं लेकिन वह सब उस जमानेमें अनुरुप होगी ऐसा प्रस्तूत करने वालोंको लगा होगा इसलिये प्रस्तूत किया होगा. लग्न कैसे करना, किससे करना, कितनी बार करना, कितनोंके साथ करना चाहिये आदि आदि. यह कोई चर्चा और कटूताका विषय बनना नहीं चाहिये.

वैसे तो मनुस्मृतिकी कई बाते हम आज मानते नहीं है.

हिन्दु धर्म क्या है?

सत् एक ही है. वह ब्रह्म है. वह निराकार, निर्विकार और निर्गुण है. वह पूर्ण है. पूर्णमेंसे पूर्ण लेलो तो पूर्ण ही बचता है.

उसको कोई जानता नहीं न तो कोई जान सकता है न कोई वर्णन कर सकता है. जो भी कहो वह ऐसा नहीं है. वह ईन्द्रीयोंसे पर है.

ब्रह्ममेंसे ज्योतिरुप अग्नि निकला और जगत बनाया. यह अग्नि (महोदेवो) ईश्वर है. वह सर्वत्र है और वह ही सब है. वह अग्रमें (आरंभमें) है, मध्यमें है और अंतमें भी वही है.

सब क्रियाओंका कारण है. लेकिन ब्रह्ममेंसे जगत क्यों बना, सिर्फ इसका कारण नहीं है.

ईश्वर ब्रह्म ही है. ईश्वर जगतका संचालन करता है. उसने व्यवस्था बनाई है. और सबको कर्मके अनुसार फल मिलता है.

ईश्वर अनुभूतिका विषय है. भक्ति, कर्म, योग और ज्ञान के द्वारा आप उनको पा सकते है.

आप उसकी किसीभी रुपमें उपासना कर सकते है.

सभी चीजें सजिव है. वनस्पति भी सजीव है. वृक्षमें बीज है और बीजमें वृक्ष है. रसादार फल खाओ और बीजको वृक्ष होने दो. पर्ण खाओ लेकिन वृक्षको जिन्दा रखो. सबको जीनेका अधिकार है. सबका कल्याण हो. सबको शांति हो.

सत्य और अहिंसा अपनानेसे ध्येयकी प्राप्ति होती है.

ईश्वरीय शक्तियोंका आदर करो. और उनको उनका हिस्सा दो. उसके बाद उपभोग करो.

माता प्रथम शक्ति है. द्वीतीय शक्ति पिता है. तृतीय शक्ति जो तुम्हारे घर महेमान आया है वह है. तुम्हारा शिक्षक चतुर्थ शक्ति है. और पंचम शक्ति ईश्वर है.

यह पृथ्वी तुम्हारा कुटुंब है. कोई पराया नहीं है.

तुमने जो काम पसंद किया उसको निभाना तुम्हारा कर्तव्य (धर्म) है. तुमने जिस कामका अभ्यास नहीं किया उस काममें चोंच डालना ठीक नहीं है (अधर्म है). तुमने जिस कामका अभ्यास किया उसमें तुम्हारी मृत्यु हो जाय तो चलेगा. लेकिन अगर तुम अपने केवल स्वार्थको केन्द्रमें रखकर जिसका तुम्हे अभ्यास नहीं उसको करोगे तो समाजके लिये वह भय जनक है.

तुम जो भी कर्म करते हो वह अलिप्त भावसे करो.

कुछ भी तुम्हारा नहीं है. न तुम कुछ लाये हो न तुम कुछ ले जाओगे. तुम तो निमित्त मात्र हो.

तुम कुछ भी करते नहीं हो. सब कुछ ईश्वर करता है. कार्य करनेवाला ईश्वर है, कार्य भी ईश्वर है और क्रिया भी ईश्वर है. हम सब एकमात्र परमात्मा के अंश है. लेकिन अज्ञानताके आवरणके कारण हम अपनेको दुसरोंसे अलग है ऐसा अनुभव करते है.

विगतके लिये पढेः

NOT EVEN TWO. ONE AND ONE ONLY
https://treenetram.wordpress.com/2012/05/08/547/

“जो खुदको भले ही नुकशान हो जाय तो भी दुसरोंके लाभके लिये काम करता है वह सत्पुरुष है.

“जो दुसरोंको नुकशान न हो इस प्रकारसे अपने लाभका काम करता है वह मध्यम कक्षाका पुरुष है.

“जो अपने लाभके लिये दुसरोंका नुकशान करता है वह राक्षस है.

“जो ऐसे ही (निरर्थक ही) दुसरोंको नुकशान करता है वह कौन है वह हमें मालुम नहीं. (भर्तृहरि).

जो उपकार करनेवालेको भी (जनताको) नुकशान पहुंचाके अपना उल्लु सीधा करता है वह नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी हैं.

देशने नहेरुवीयनोंको क्या क्या नहीं दिया. ६० साल सत्ता दी, अरबों रुपये दिया, अपार सुविधाएं दी, तो भी उन्होने देशको लूटा और देशकी ७० प्रतिशत जनताको गरीब और अनपढ रक्खा, ता कि वह हमेशा उनके उपर आश्रित रहे. ये राक्षसके बाप है.

GODDESS OF KNOWLEDGE AND COMMUNICATION CAN TAKE US TO ETERNAL TRUTH

जो हिन्दु और मुस्लिम जनताके बीचमें जो समस्याएं है वह कैसे दूर की जाय? इन दोनोंको कैसे जोडा जाय?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

 smdave1940@yahoo.com

टेग्झः हिन्दु, मुस्लिम, अरबस्तान, विक्रमादित्य, इस्लाम, प्रणाली, समाज, लयबद्ध, आनंद, संवाद, असंतुलन, विद्रोह, प्रतिकार, ईश्वर, शक्ति, युथ, महोम्मद साहब, विज्ञान, ईमान, दयानंद सरस्वती, शंकराचार्य, मूर्त्तिपूजा, दारु, ब्रह्म, जगत, कार्य, फल, व्यवस्था, संचालन, निमित्त, ज्ञान

विस्तृत जानकारी के लिये निम्न लिखित लींकके लेखको पढे.

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