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दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?

दायें पप्पु, बांये पप्पु, आगे पप्पु, पीछे पप्पु बोले कितने पप्पु?

पप्पु पप्पु और पप्पु

पप्पुयुगका पिता वैसे तो मोतीलाल नहेरु है, लेकिन उनको तो शायद मालुम ही नहीं होगा कि वे एक नये पप्पु-युगकी नींव रख रहे है.

पहेला पप्प कौन?

आदि पप्पु यानी कि रा.गा. (राहुल गांधी) ही है किन्तु पप्पु युगका निर्माण तो नहेरुने ही किया. नहेरु ही प्रथम पप्पु है. यानी कि पप्पु-वंश तो नहेरुसे ही प्रारंभ हुआ.

क्या नहेरु पप्पु थे?

सोच लो. यदि आपने किसीको अमुक काम करनेसे मना किया. और इतिहासका हवाला भी दिया. भयस्थान भी बताये. फिर भी यदि आप वो काम करते हो तो लोग आपको पप्पु नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.

(१) जी हाँ, नहेरुने ऐसा ही किया था. सप्टेंबर १९४९में तिबट पर चीन ने आक्रमण किया, तो नहेरुने सरदार पटेलके पटेलके संकेत और चेतावनी को नकारा और कहा कि चीनने उसको आश्वासन दिया है कि वह तिबटके साथ शांतिसे नीपटेगा. यह तो कहेता बी दिवाना और सूनता भी दिवाना जैसी बात थी.  और १९५१ आते आते चीनने तिबट पर कबजा कर दिया. इस अनादर पर भी नहेरुने दुर्लक्ष्य दिया. और चीनसे घनिष्ठ मैत्री संबंध (पंचशील) का  अनुबंध किया.

(२) तिबटको अब छोडो. पंचशीलके बाद भी चीनकी सेनाका अतिक्रमण प्रारंभ हो गया और जब वह बार बार होने लगा तो संसदमें प्रश्न भी उठे. नहेरुने संसदमें जूठ बोला. आचार्य क्रिपलानीने इसके उपर ठीक ठीक लिखा है.

(३) चीनकी घुस खोरीको अब छोडो. १९४७में नहेरुको गांधीजीने बताया कि शेख अब्दुल्ला पर सरदार पटेल विश्वास करते नहीं है. और लियाकत अली कश्मिरके राजाको स्वतंत्र रहेनेको समज़ा रहे है. काश्मिर न तो पाकिस्तानमें जा सकता है, न तो वह स्वतंत्र रह सकता है. काश्मिरको तो भारतके साथ ही रहेना चाहिये. लेकिन नहेरुने महात्मा गांधीकी बात न मानी और शेख अब्दुल्ला पर विश्वास किया.

(४) नहेरु इतने आपखुद थे कि राजाओंकी तरह उनके उपर कोई नियम या सिद्धांत चलता नहीं था. एक तरफ वे लोकशाहीका गुणगान करते थे और दुसरी तरफ उन्होंने शेख अब्दुलाको खुश करनेके लिये बिनलोकशाहीवादी अनुच्छेद ३७०/३५ए अ-जनतांत्रिक तरीकेसे संविधानमें सामेल किया. अस्थायी होते हुए भी जब तक वे जिन्दा रहे तब तक उसको छेडा नहीं, और १९४४से कश्मिरमें स्थायी हुए हिन्दुओंको ज्ञातिके आधार पर और मुस्लिम स्त्रीयोंको लिंगको आधार बनाके मानवीय और जनतांत्रिक अधिकारोंसे वंचित रक्खा.

इसको आप पप्पु नहीं कहोगे तो क्या कहोगे?

क्या इन्दिरा गांधी पप्पु थी?

१९७१की इन्डो-पाक युद्धमें भारतकी विजयका श्रेय इन्दिराको दिया जाता है. यह एक लंबी चर्चाका विषय है. किन्तु जरा ये परिस्थिति पर सोचो कि पाकिस्तान किस परिस्थितिमें युद्ध कर रहा था और बंग्लादेशकी मुक्ति-वाहिनी (जिसको भारतकी सहाय थी) किस परिस्थितिमें युद्ध कर रही थीं. भारतीय सेनाको यह युद्ध जीतना ही था उसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था. और सेनाने तो अपना धर्म श्रेष्ठता पूर्वक निभाया.

किन्तु इन्दिरा यदि पप्पु नहीं थी तो उसने अपना धर्म निभाया? नहीं जी. जरा भी नहीं. जो परिस्थिति उस समय पाकिस्तानकी थी और जो परिस्थिति भारतकी थी, यदि इन्दिरामें थोडी भी अक्ल होती तो वह कमसे कम पाकिस्तान अधिकृत कश्मिर तो वह ले ही सकती थी. यदि ऐसा किया होता तो भारतने जो अन्य जीती हुई पाकिस्तानकी भूमि, और पाकिस्तानी युद्धकैदीयोंको परत किया उसको क्षम्य मान सकते थे. पाकिस्तानके उपर पेनल्टी नहीं लगायी, खर्चा वसुल नहीं किया उसको भी लोग भूल जाते.

बंग्लादेशमें ३० लाख हिन्दुओंकी कत्ल किसने छूपाया?

बंग्लादेशके अंदर पाकिस्तानकी सेनाने  ४०लाख लोगोंकी हत्या की थी इनमें ३० लाख हिन्दु थे १० लाख मुस्लिम थे. इन्दिरा गांधी जब भूट्टोके साथ सिमलामें बैठी थी तब क्या उसको इस तथ्य ज्ञात नहीं था? वास्तवमें उसको सबकुछ मालुम था. तो भी उसने न तो बंग्लादेशके साथ कोई भारतके श्रेय में कोई अनुबंध (एग्रीमेन्ट) किया न तो पाकिस्तानके साथ कोई भारतीय हितमें कोई अनुबंध किया. इतना ही नहीं, एक करोड निर्वाश्रित जो भारतमें आ गये थे उनको वापस भेजनेके बारेमें प्रावधानवाला कोई भी अनुबंध किसीके साथ नहीं किया.

उस समय आतंकवाद भारतमें तो नहीं था. भारतके बाहर तो था ही. प्रधानमंत्री होनेके नाते और “भारतीय गुप्तचर सेवा” के आधार पर भारतके बाहर तो अति उग्रतावाली आतंकी गतिविधियां  अस्तित्वमें थीं ही. वे प्रवृत्तियां कहाँ कहाँ अपना विस्तार बढा सकती है वह भी प्रधानमंत्रीको अपने बुद्धिमान परामर्शदाताओंसे (एड्वाईज़रोंसे)   मिलती ही रहेती है. यह तो आम बात है. किन्तु इन्दिराने भारतके हितकी उपेक्षा करके भूट्टो की यह बात मान ली “यदि मैं पाकिस्तान अधिकृत काश्मिरकी समस्या आपके साथ हल कर दूं और तत्‌ पश्चात्‍ मेरी यदि हत्या हो जाय तो उस डील का क्या मतलब.” फिर इन्दिराने “इस मसलेको आपसमें वार्ता द्वारा ही हल करना” ऐसा अनुबंध मान लिया. इसका भी क्या लाभ हुआ. पाकिस्तानने आतंकीओ द्वारा और कई समस्याएं उत्पन्न की. सिमला अनुबंधन तो पप्पु ही मान्य कर सकता है.  

 राजिव गांधी ने पीएम पदका स्विकार करके, श्री लंकाके आंतरिक हस्तक्षेप करके और शाहबानो न्यायिक निर्णयको निरस्त्र किया यह बात ही उसका पप्पुत्त्व सिद्ध किया.

सोनिया, राहुल और प्रियंका का पप्पुत्त्व सिद्ध करनेकी आवश्यकता नहीं.

यह पप्पुत्त्वकी महामारी ममता, मुलायम, लालु, शरद पवार … आदि कोंगीके सहयोगी पक्षोमें ही नहीं लेकिन बीजेपीके सहयोगी शिवसेनामें भी फैली है.

शिवसेनाका पप्पुत्व तो शिवसेना अपने सहयोगी बीजेपी के विरुद्ध निवेदन करके सिद्ध करता ही रहेता है.

उद्धव ठाकरेका क्या योगदान है? भारतके हितमें उसमें क्या किया है? यह उद्धव ठाकरे अपने फरजंद आदित्यको आगे करता है. आदित्यका क्या योगदान है? उसका अनुभव क्या है? क्या किसीने कहा भी है कि वह आदित्य के कारण चूनाव जीता है? शिवसेना स्वयं अपने कुकर्मोंके कारण मरणासन्न है किन्तु वह भी कोंगीकी तरह पगला गया है. चूनावमें शिवसेनाकी सफलता  अधिकतम ४५ प्रतिशत है. जब की बीजेपीकी सफलता ६५ प्रतिशत है.

“५०:५०” का रहस्य क्या है?

५० % मंत्री पद बीजेपीके पास और ५०% मंत्री पद शिवसेनाके पास रहेगा यदि दोनोंको समान बैठक मिली. किन्तु शिवसेनाको तो बीजेपीसे आधी से भी कम बैठकें मिली. और फिर भी उसको चाहिये मुख्य मंत्रीपद. यह तो “कहेता भी दिवाना और सूनता भी दिवाना” जैसी बात हुई. गठ बंधनको जो घाटा हुआ उसमें शिवसेना जीम्मेवार है. उसका हक्क तो १/३ मंत्री पद पर भी नहीं बनता है.

शिवसेना के विरुद्ध क्या क्या मुद्दे जाते है.

शिवसेनाका साफल्य केवल ४० प्रतिशत है. मतलब वह तृतीय कक्षामें पास हुआ है.

बीजेपीका साफल्य ६५% है. मतलब विशिष्ठ योग्यताके समकक्ष है.

बीजेपी उसको ५० प्रतिशत मंत्रीपद देनेको तयार है. लेकिन शिवसेना को तो इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री पद भी चाहिये.

मतलब की तृतीय कक्षामें पास होनेवाला आचार्य बनना चाहता है.

इतना ही नहीं किन्तु शिवसेना अपने पक्षके वंशवादी प्रमुखकी संतान को आचार्य बनाना चाह्ता है.

पप्पुके आगे पप्पु, पप्पुके पीछे पप्पु बोले कितने   पप्पु?

पप्पुको डीरेक्ट हिरो बना दो

क्या किया जाय?

शिवसेना के आदित्य को मुख्य मंत्री के बनानेके लिये = शिवसेना+कोंगी+एनसीपी

शिवसैनी पप्पुको पप्पुकी कोंगीका और शरदकी कोंगीका सहयोग लेके मुख्य मंत्री और सरकार बनाने दो. शिवसैनी पप्पुको भी पता चल जायेगा कितनी बार वीस मिलानेसे एक सौ बनता है (गुजरातीमें मूँहावरा है “केटला वीसे सो थाय” तेनी खबर पडशे.)

शिरीष मोहनलाल दवे

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पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी … और ….

नरेन्द्र मोदीकी कार्यशैलीके बारेमें अफवाहोंका बाज़ार अत्याधिक गरम है. क्यों कि  अब मोदी विरोधियोंके लिये जूठ बोलना, अफवाहें फैलाना, बातका बतंगड करना और कुछ भी विवादास्पद घटना होती है तो मोदीका नाम उसमें डालना, बस यही बचा है.

लेकिन, ऐसा होते हुए भी …

हाँ साहिब, ऐसा होते हुए भी … पाकिस्तानके (१०० प्रतिशत शुद्ध) बुद्धिजीवीयोंको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. बोलो. पाकिस्तान जो मोदीके बारेमें जानता है वह हमारे स्वयं प्रमाणित बुद्धिजीवी नहीं जानते.

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पाकिस्तानके १००% शुद्ध बुद्धि वाले हसन निस्सार साहिबने अपनी इच्छा प्रगट की है कि पाकिस्तानको चाहिये एक नरेन्द्र मोदी. हमारे १०० प्रतिशत शुद्ध बुद्धिजीवी “मोदी चाहिये” इस बात बोलनेसे हिचकिचाते है.

बुद्धिजीवी

हमारे वंशवादी पक्षोंको ही नहीं किन्तु अधिकतर मूर्धन्यों, विश्लेषकों, कोलमीस्टोंको, चेनलोंको तो चाहिये अफज़ल गुरु. एक नहीं लेकिन अनेक. अनेक नहीं असंख्य. क्यों कि इनको तो भारतके हर घरसे चाहिये अफज़ल गुरु.

हाँजी, यह बात बिलकुल सही है. जब जे.एन.यु. के कुछ तथा कथित छात्रोंने (जिनका नेता २८ सालका होनेके बाद भी भारतके करदाताओंके पैसोंसे पलता है तो इसके छात्रत्व पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है ही)  भारतके टूकडे करनेका, हर एक घरसे एक अफज़ल पैदा करनेका,  भारतकी बर्बादीके नारे लगाते थे तब उनके समर्थनमें केज्री, रा.गा., दीग्गी, सिब्बल, चिदु, ममता, माया, अखिलेश, अनेकानेक कोलमीस्ट, टीवी चेनलके एंकर और अन्य बुद्धिजीवी उतर आये थे.  तो यह बात बिलकुल साफ हो जाती है कि उनकी मानसिकता अफज़ल के पक्ष में है या तो उनका स्वार्थ पूर्ण करनेमें यदि अफज़ल गुरुका नाम समर्थक बनता है तो इसमें उनको शर्म नहीं.

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जो लोग यु-ट्युब देखते हैं, उन्होने ने पाकिस्तानके हसन निस्सार को अवश्य सूना होगा. जिनलोंगोंने उनको नहीं सूना होगा वे आज “दिव्य भास्कर”में गुणवंतभाई शाहका लेख पढकर अवश्य हसन निस्सार को युट्युब सूनेंगे.

हमारा दुश्मन नंबर वन, यानी कि पाकिस्तान. वैसे ही पाकिस्तानका दुश्मन नंबर वन यानीकी भारत. तो पाकिस्तानके बुद्धिजीवीयोंको भी उनके लिये चाहिये नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधान मंत्री. और देखो हमारे तथा कथित बुद्धिजीवी हमारे समाचार माध्यमोंमें विवाद खडा करते है कि नरेन्द्र मोदी आपखुद है, नरेन्द्र मोदी कोमवादी है, नरेन्द्र मोदी जूठ बोलता है, नरेन्द्र मोदीने कुछ किया नहीं ….

पाकिस्तानको जो दिखाई देता है वह इन कृतघ्न को दिखाई देता नहीं.

अब हम देखेंगे ममताका नाटक और उस पर समाचार माध्यमोंका यानी कि कोलमीस्ट्स, मूर्धन्य, विश्लेषक, एंकर, आदि महानुभावोंला प्रतिभाव.

घटनासे समस्या और समस्याकी घटना

ममता स्वयंको क्या समज़ती है?

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उनका खेल देखो कि वह किस हद तक जूठ बोल सकती है. पूरा कोंगी कल्चरको उसने आत्मसात्‍ कर लिया है.

यह वही ममता है. जिस जयप्रकाश नारायणने, भ्रष्टाचारके विरुद्ध इन्दिरा गांधीके सामने, आंदोलन छेडा था उस जयप्रकाश नारायणकी जीपके हुड पर यह ममता नृत्य करती थी. एक स्त्रीके नाते वह लाईम लाईटमें आ गयी. आज वही ममता कोंगीयोंका समर्थन ले रही है जब कि कोंगीके संस्कारमें कोई फर्क नहीं पडा है.

ऐसा कैसे हो गया? क्योंकि ममताने जूठ बोलना ही नहीं निरपेक्ष जूठ बोलना सीख लिया है. सिर्फ जूठ बोलना ही लगाना भी शिख लिया है. निराधार आरोप लगाना ही नहीं जो संविधान की प्रर्कियाओंका अनादर करना भी सीख लिया है. “ चोर कोटवालको दंडे”. अपनेको बचाने कि प्रक्रियामें यह ममता, मोदी पर सविधानका अनादर करनेका आरोप लगा रही है.

ऐसा होना स्वाभाविक था.

गुजरातीभाषामें एक मूँहावरा है कि यदि गाय गधोंके साथ रहे तो वह भोंकेगी तो नहीं, लेकिन लात मारना अवश्य शिख जायेगी. लेकिन यहां पर तो गैया लात मारना और भोंकना दोनों शिख गयी.

ममता गेंगका ओर्गेनाईझ्ड क्राईमका विवरणः

ममताके राजमें दो चीट-फंडके घोटाले हुए. कोंगीने अपने शासनके दरम्यान उसको सामने लाया. ममताने दिखावेके लिये जाँच बैठायी. कोंगी यह बात सर्वोच्च अदालतमें ले गयी. सर्वोच्च अदालतने आदेश दिया कि सीबीआई से जाँच हो. सीबीआईने जाँच शुरु की. जांचमें ऐसा पाया कि टीएमसी विधान सभाके सदस्य, मंत्री, एम. पी. और खूद पूलिसके उच्च अफसरोंकी घोटालेके और जाँचमें मीली भगत है. सीबीआईने पूलिससे उनकी जाँचके कागजात भी मांगे थे जिनमें कुछ काकजात,  पूलिसने गूम कर दिये. इस मामलेमें और अन्य कारणोंसे भी सीबीआई ने कलकत्ताके पूलिस आयुक्तकी पूछताछके लिये नोटीस भी भेजी और समय भी मांगा. पूलिस आयुक्त भी आरोपोंकी संशय-सूचिमें थे.

गुमशुदा पूलिस आयुक्तः

आश्चर्यकी बात तो यह है कि पूलिस आयुक्त खूद अदृष्य हो गया. सीबीआईको पुलिस आयुक्तको “गुमशुदा” घोषित करना पडा. तब तक ममताके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. हार कर सीबीआई, छूट्टीके दिन,  पूलिस आयुक्त के घर गई. तो पुलिस आयुक्तने सीबीआई के अफसरोंको गिरफ्तार कर दिया और वह भी बिना वॉरन्ट गिरफ्तार किया और उनको पूलिस स्टेशन ले गये. किस गुनाहके आधार पर सी.बी.आई.के अफसरोंको गिरफ्तार किया उसका ममताके के पास और उसकी पूलिसके पास उत्तर नही है. यदि गिरफ्तार किया है तो गुनाह का अस्तित्व तो होना ही चाहिये. एफ.आई.आर. भी फाईल करना चाहिये.

यह नाटकबाजी ममताकी पूलिसने की. और जब सभी टीवी चेनलोंमे ये पूलिसका नाटक चलने लगा तो ममताने भी अपना नाटक शुरु किया. वह मेट्रो पर धरने पर बैठ गयी. उसके साथ उसने अपनी गेंगको भी बुला लिया. सब धरने पर बैठ गये. पूलिस आयुक्त भी क्यों पीछे रहे? यह चीट फंड तो “ओर्गेनाईझ्ड क्राईम था”. तो ममताआकाको तो मदद करना ही पडेगा. तो वह पूलिस आयुक्त भी ममताके साथ उसकी बगलमें ही धरने पर बैठ किया.

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धरना काहेका है भाई?

ममता कौनसे संविधान प्रबोधित प्रावधान की रक्षाके लिये बैठी है?

ममता किसके सामने धरने पर बैठी है?

पूलिस कमिश्नर जो कायदेका रक्षक है वह  कैसे धरने पर बैठा है?

पूलिस आयुक्त ड्युटी पर है या नहीं?

कुछ टीवी चैनलवाले कहेते है कि वह सीवील-ड्रेसमें है, इसलिये ड्युटी पर नहीं?

अरे भाई, वह वर्दीमें नहीं है तो क्या वह छूट्टी पर है?

इन चैनलवालोंको यह भी पता नहीं कि वर्दीमें नहीं है इसका मतलब यह नहीं कि वह ड्युटी पर नहीं है. पूलिओस आयुक्त कोई सामान्य “नियत समयकी ड्युटी” वाला सीपाई नहीं है कि उसके लिये, यदि वह वर्दी न हो तो ड्युटी पर नहीं है ऐसा निस्कर्ष निकाला जाय.

सभी राजपत्रित अफसर (गेझेटेड अफसर) हमेशा २४/७ ड्युटी पर ही होते है ऐसे नियमसे वे बद्ध है. यदि पूलिस आयुक्त केज्युअल लीव पर है तो भी उसको ड्युटी पर ही माना जाता है. यदि वह अर्न्ड लीव (earned leave) पर है तभी ही उनको ड्युटी पर नहीं है ऐसा माना जाता है. लेकिन ऐसा कोई समाचार ही नहीं है, और किसी भी टीएमसीके नेतामें हिमत नहीं है कि वह इस बातका खुलासा करें.

ममता ने एक बडा मोर्चा खोल दिया है. सी.बी.आई. के सामने पूलिस. वैसे तो सर्वोच्च अदालतके आदेश पर ही सी.बी.आई. काम कर रही है तो भी.

इससे ममताके पूलिस अफसरों पर केस बनता है, ममता पर केस बनाता है चाहे ममता कितनी ही फीलसुफी (तत्त्व ज्ञानकी) बातें क्यूँ न कर ले.

कुछ लोग समज़ते है कि प्र्यंका (वाईदरा) खूबसुरत है इसलिये उसकी प्रसंशा होती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. प्रशंसाके लिये तो बहाना चाहिये. हम यह बात भी समज़ लेंगे.

अब सर्वोच्च न्यायालयमें मामला पहूँचा है.

लेकिन सर्वोच्च अदालत क्या है?

सर्वोच्च अदालतके न्याय क्या अनिर्वचनीय है?

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्ति) क्यों? जो जिता वह सिकंदर (नहेरुवीयन कोंग रहस्य)-७
(इस लेखको “अनीतियोंसे परहेज क्यों? जो जिता वह सिकंदर-६” के अनुसंधानमें पढें)

कोंग्रेस और उसके साथीयोंने वोटींग मशीनमें गडबडी की है और बहुत आसानीसे कर सकते है. सावधान.

एक ही मंत्रः “नरेन्द्र मोदीको रोको”

कोंगी को और उसके साथीयोंको नरेन्द्र मोदीके बारेमें प्रतित हो गया है कि, अब वे लोग नरेन्द्र मोदीकी जितको रोक नहीं पायेंगे. इसलिये अब कोंगी और उसके साथी, नरेन्द्र मोदीकी जितको कमसे कम कैसे करें, इस बात पर व्युह रचना करने लगे है.
समाचार माध्यम और कुछ महानुभाव, कोंगी और उनके साथीयोंको हो सके उतनी मदद करने को तैयार है.

कोंगी के साथीमें बोलीवुडके कुछ महानुभाव आते हैं. ये महानुभाव लोग अपनेको विचारक, विश्लेषक और धर्मनिरपेक्ष समझते है.

इन महानुभावोंमें महेश भट्ट जैसे लोग है. कुछ मूर्धन्योंमें गुजरातके कान्ति भट्ट, शीला भट्ट जैसे पत्रकार और प्रकाश शाह, तुषार गांधी जैसे अपनेको गांधीवादी मानने वाले लोग आते हैं. अमर्त्य सेन जैसे अपने को नव्य अर्थशास्त्री माननेवाले लोग आते है.

बेताज बादशाह और बेताज बेगम

“प्रियंका” नहेरुवीयन संस्कारका निम्नतम कक्षाका सेम्पल

कुछ समाचार माध्यमके द्वारा बनाये गये महानुभाव भी आते है जिसमें हालमें प्रियंका वाड्रा है. प्रियंका वाड्रा को प्रियंका गांधीके नामसे, लोगोंको मनाया जाता है. समाचार माध्यमोंकी ऐसी प्रवृत्ति इस लिये है कि वह सोनीया गांधी की पुत्री है. यह सोनीया गांधी, राजीव गांधीकी पत्नी है. राजीव गांधी, इन्दिरा गांधी का पुत्र है. यह इन्दिरा गांधी जो लग्नके समय पर “घांडी” थी जिसको बातमें गांधी करवाया गया. इन्दिरा का लग्नके समय क्या नाम था, और “घान्डी”का “गांधी” कैसे हुआ?. राजीव का नाम, सोनीयाका नाम, और राहुलका असली नाम क्या था और क्या है, इन सबके बारेमें सामाजिक समाचार माध्यमोंमें (ओन लाईन सोसीयल मीडीयामें) चर्चा होती है. लेकिन दृष्य-श्राव्य और मुद्रित माध्यमोंमें इन बातोंको प्रसिद्ध करना नामुमकिन है. इन समाचार माध्यमोंमे निडरता नहीं है. इसके कई प्रयोजन है. मुख्य प्रयोजन पैसेके आदान-प्रदान का विषय है. व्यक्तिगत अंगत गुप्तताका प्रश्न है. ऐसा नहीं है कि यह सब सरकारी और न्यायिक दस्तावेजों पर नहीं है. सुब्रह्मनीयन स्वामीने बताया है कि, राजीव, सोनीया और राहुलने अपने प्रतिज्ञा लेखोंमे अपनी शैक्षणिक योग्यता के प्रमाण पत्रोंके बारेमें असत्य लिखा है. स्वामीने उन बातोंको न्यायालयोमें पडकारा भी है. इन बातोंको सुब्रह्मनीयन स्वामी स्वयं अपनी जनसभाओंमें खुल्ले आम बोलते है, तो भी समाचार माध्यम इन बातोंको प्रकाशित करते नहीं है. इससे आप समझ जाओ कि अंतरगत मामला क्या हो सकता है.

नरेन्द्र मोदीके बालकी खाल निकालो

उपरोक्त सभी व्यक्ति विशेषोंको मालुम है कि बीजेपीकी जो हवा देशमें चल रही है उसका स्रोत नरेन्द्र मोदी है. इसलिये नरेन्द्र मोदीको बदनाम करनेमें, जो कुछ भी हो सकता वह सब करो. नरेन्द्र मोदी जो कुछ भी कहे उसमें बालकी खाल निकालो.

अखबारी फरजंद प्रियंका वाड्रा

प्रियंका वाड्रा को अगर पक्षीय दृष्टिसे देखा जाय तो वह एक शून्य है. लेकिन समाचारी माध्यमने उसको आगे कर दिया है. मानो कि इन्दिरा गांधीकी रुह (भटकते भटकते) उसमें आ गई है. और समाचारके व्यापारी जैसे अखबारोंको अपना आपतकालका धर्म याद आ गया है.
इस औरतने नरेन्द्र मोदीको ताने मारना शुरु कर दिया है. अखबारी व्यापारीयोंने उसके तमाम उच्चारणोंको उछाला. नरेन्द्र मोदीको मालुम है कौन कहां है. इसलिये उसने कहा कि, प्रियंका उसकी बेटी जैसी है.

नरेन्द्र मोदीका बडप्पन

प्रियंकाने इसको ऐसे उछाला मानो नरेन्द्र मोदीने उसको गाली दी. सभी समझदार वयस्क अपने से छोटोंको बेटे-बेटी समान समझना चाहिये ऐसा समझते हैं. और छोटोंको चाहिये कि अपनेसे जो बडे हैं उनको माता-पिता समान माने. यही भारतकी संस्कृति है. नरेन्द्र मोदीने वैसा ही कहा जो भारतके संस्कार के अनुरुप है. दुसरी बात यह है कि उम्रमें छोटा व्यक्ति अगर गलती करें, और असभ्यता दिखावें तो बडा व्यक्ति उसको माफ कर दे. नरेन्द्र मोदीने वही किया.

प्रियंकाका कमीनापन

लेकिन प्रियंकामें न तो वह संस्कार है न तो वह संस्कृति है न तो उसको बडोंका आदर करना कभी शिखाया गया है. उसने अपने चाचा संजय गांधीके पुत्र वरुण गांधीको भी “पथभ्रष्ट” कह चूकी है. नरेन्द्र मोदीके उस उच्चारण “वह मेरी बेटी जैसी है” को भी प्रियंकाने धुत्कार दिया, मानो कि नरेन्द्र मोदी एक अछूत व्यक्ति है और वह बडे होने पर भी आदरके पात्र नहीं है.

नरेन्द्र मोदी एक ऐसा व्यक्ति है जो गरीब के घरमें जन्म ले कर अपने आप अपनी कर्मशीलता, अपना कौशल्य और अपने श्रमसे, जीवनकी हर कक्षाके संकटोंसे लडकर सन्मार्ग पर चलकर इस उच्च पद पर पहूंचा है. वह सबके मानका लायक है. प्रियंकाको उसका आदर करना चाहिये. अगर प्रियंकाका संस्कार ऐसा नहीं है तो उसको मौन रहेना चाहिये.

प्रियंकाने नरेन्द्र मोदीका अपमान किया. उसने कहा कि नरेन्द्र मोदी अपने को मेरे पिताके समान न समझे. मेरे पिताजी राजीव गांधी थे. नरेन्द्र मोदी अपनेको राजीव गांधीके बराबर न समझे. मेरे पिताजी कि तुलनामें वह कुछ नहीं है. ऐसा विकृत अर्थ नहेरुवीयन फरजंद ही ले सकते है.

देखो इन नहेरुवीयनोंका संस्कार

अगर कोई बडा आदमी अपना बडप्पन दिखाता है तो नहेरुवीयन हमेशा अपना पामरपन दिखाते हैं. इन्दिरा गांधी भी, मोरारजी देसाईका अपमान करनेमें पीछे रही नहीं थी. उसने जयप्रकाश नारायणका भी अपमान किया था. उसने अपनेसे उम्रमें बहुत बडी और कर्मशीलतामें भी कई गुना बडी व्यक्तियोंका अपमान किया था उतना ही नहीं उनको बेवजह जेल में अनियतकालके लिये बंद भी कर दिया था. इन्दिराकी इस पोतीसे आप, उच्च संस्कारकी कैसे अपेक्षा रख सकते है?

इन्दिराकी इस पोतीमें यह समझने कि अक्ल होनी चाहिये कि, राजीव गांधी अपनी कर्मशीलता, कुशलता और श्रमसे प्रधान मंत्री नहीं बने थे. उस समय एक ऐसे राष्ट्रपति थे जो इन्दिरा गांधीके इतने अहेसानमंद थे कि इन्दिरा गांधीके कहेने पर झाडु लगानेके लिये भी तैयार थे.. इस राष्ट्रपतिने इन्दिरा गांधीकी हत्याके बाद तूरंत ही बिना मंत्रीमंडलके अनुरोध ही, राजीवको प्रधान मंत्रीका शपथ ग्रहण करवाया था. यह बात भारतीय संविधान और लोकशाहीके विरुद्ध थी. लेकिन भारतकी लोकशाही और संविधानको नहेरुवीयन फरजंदोने मजाक और मस्ती समझ लिया है. संविधान और लोकशाही मूल्योंकी अवमानना करना नहेरुवीयन फरजंदोंका संस्कार रहा है.

नरेन्द्र मोदी भारतीय संवैधानिक आदरणीय पदस्थ नेता है

नरेन्द्र मोदी भारतीय संविधानसे प्रस्थापित प्रक्रियाओंसे पसार होकर जनता द्वारा निर्वाचित जन प्रतिनिधि है. यह राज्य कोई ऐसा वैसा राज्य नहीं है. यह राज्य एक ऐसा राज्य है जिसकी संस्कृति अति प्राचीन है. इस बातको छोडकर, अगर अर्वाचीन इतिहासको देखें, तो भी इस भूमिने, दयानंद सरस्वती, महात्मा गांधी और सरदार पटेल जैसे युगपुरुषोंको पैदा किया है. नहेरु तो खास करके महात्मा गांधीका और सरदार पटेलका अत्यंत ही ऋणी रहा है. अगर महात्मा गांधी ने हस्तक्षेप न किया होता और सरदार पटेलने त्याग दिखाया न होता तो जवाहरलाल नहेरुका प्रधान मंत्री बनना असंभव था.

कृतघ्न और अनपढ औलाद

नहेरु तो कृतघ्न थे ही लेकिन उनकी संतान भी कृतघ्न निकली. नहेरु और इन्दिरा गांधीने गुजरातीयोंका और गुजरातकी अत्यंत अवमानना की है. प्रियंकाने भी वैसी ही कृतघ्नता दिखाई. नरेन्द्र मोदी की उम्रका, उसके बडप्पनका और उसके संविधानिक पदको जानबुझ करके नजर अंदाज करके नरेन्द्र मोदीको अपमानित किया है. यह बात नहेरुवीयनका निम्न स्तर प्रदर्शित करती है. वास्तविकता देखो तो नरेन्द्र मोदी एक उत्कृष्ट और उच्चस्तरीय नेता है. उसके उच्चारणमें गहनता और नाविन्य होता है. उसके उच्चारणमें माहिती, तर्क और संशोधन होता है. वह अगर कठोर शब्द या मनोरंजन करता है तो भी उसमें गर्भित वैचारिक गहनता होती है. नहेरु, इन्दिरा, सोनीया, राहुल और अब प्रियंका जैसा वाणी विलास और छीछरापन, नरेन्द्र मोदीके वक्तव्यमें नहीं होता है. नरेन्द्र मोदीके सामने ये नहेरुवीयन किसी गिनतीमें नहीं है.

मोदी विरोधी अब क्या करेंगे?

नरेन्द्र मोदी विरोधी सब यह सोचते है कि बीजेपीको पूर्ण बहुमत न मिले उसके लिये जो कुछ भी करना पडे वह करो. युएसका सहारा लो, १९६२में जब चीनने भारत पर आक्रमण किया तो उस सेना को यानी कि, चीनकी सेनाको “मुक्ति सेना का स्वागत करो” ऐसे कहेनेवाले साम्यवादीयोंका सहारा लो, नक्सलवादीयोंका सहारा लो, माओ वादीयोंकासहारा लो, पाकिस्तानी आतंक वादीयोंका सहारा लो, मुलायम, माया, जया, ममता, दाउद, उसके नेटवर्क आदि सबका सहारा लो और मोदीको कैसा भी करके बहुमतसे रोको.

अगर नरेन्द्र मोदीको बहुमत मिल गया तो भी कोंगी नेतागण परास्त होने वाला नहीं है. १९७७ में जनता पार्टीको ३४५ सीटें मिली थीं. इन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंका सहारा लेके, जनता पार्टीकी छोटी छोटी बातोंको चमका कर उसके विभिन्न नेताओंको उकसाया था. इसमें चरणसिंह मुख्य थे. चरणसिंह और राजनारायणने एक ग्रुप बनाया था, और उन्होने जोर्ज फर्नान्डीस, मधु लिमये, मधुदंडवते को अलग कर दिया था. चरणसिंग बेवकुफ बन गये. यशवंतराव चवाण जो इन्दिरा गांधी से अलग हो गया था और अपना एक पक्ष बना लिया था उसको भी इन्दिराने बेवकुफ बनाया था. चरण सिंग, यशवंतराव चवाण और इन्दिरा गांधी तीनोंने मिलकर जनता पक्षकी काम करती सरकारको तोडी थी.

जब जनता पार्टीकी सरकार तूटी तो जयप्रकाश नारायणने बोला था “पूरा बाग उजड गया”. तब बाजपाईने उनको बोला कि हम फिरसे बाग खीला देंगे.
लेकिन इस बागको खीलानेमें बाजपाईको २० साल लग गये. और वह भी पूरी तरह खील नहीं पाया.

नरेन्द्र मोदी यह सब जानता है. कोंगी भी देशके बागको उजाडनेमें माहिर है. लेकिन हमारे देशमें जो राजकीय विश्लेषक है, समाचार माध्यमोंके मूर्धन्य है वे बेवकुफ ही नहीं स्वकेन्दी और मनमानी तटस्थाके घमंडी है. वे प्रमाणभानहीन और दंभी है. ये लोग आपात कालमें भी समयकी मांग को पहेचान नहीं सकते. जनता इन मूर्धन्योंसे देशको बचानेकी आशा नहीं रख सकती.

बीजेपीके अंदर और उसके सहयोगीयोंके अंदर भी कुछ तत्व ऐसे हैं कि वे आत्म-ख्यातिकी लालचमें बीजेपीको नुकशान पहूंचा सकते है. ऐसे तत्व हमने गुजरातमें देखें है. केशुभाई पटेल, दिलीप पारेख सुरेश महेता, शंकरसिंह वाघेला उनमें मुख्य है. समाचार माध्यमोंने हमेशा नरेन्द्र मोदी के विरुद्धमें इन बेवकुफ और आत्मकेन्द्री नेताओंको ज्यादा प्राधान्य दिया है. और नरेन्द्र मोदीको नीचा दिखानेकी भरपुर कोशिस की है.

१९७७ वाली जनता पार्टी जो ३४५ बैठक जीत गयी थी, उनमें जो सत्ताके लिये भ्रष्ट साधनकी शुद्धिमें मानते थे वे मोरारजी देसाईसे अलग हो गये. जो बेवकुफ थे या बेवकुफ भी थे वे सरकार तूटने पर हतःप्रभ हो गये.

समाचार माध्यम व्यापारका एक क्षेत्र

बीजेपीको ऐसे बेवकुफ, स्वार्थी और स्वकेन्द्री नेताओंसे बचना होगा. नरेन्द्र मोदी वैसे तो मोरारजी देसाईकी अपेक्षा सियासतमें ज्यादा कुशल है. लेकिन जो समाचार माध्यम है वह एक व्यापारका क्षेत्र बन गया है. समाचार माध्यम वाले अब बिल्डींग कंस्ट्रक्सन कंपनीया बनाने लगे है. इससे पता चल जाना चाहिये कि अब यह वर्तमान पत्र और टीवी चेनल वाले काले धंधेमें कितने डूबे हुए है. समाचार माध्यम की अब सामान्य कक्षाके आदमी पर ज्यादा असर पड सकती है. समाचार माध्यम अब जनताको सुशिक्षित करे ऐसा नहीं है. उनका ध्येय हरहालतमें पैसा कमाना है. वे जनताको सुशिक्षित करनेके स्थान पर जनताको गुमराह करने पर तुले हुए है.

तो अब जनताको क्या करना होगा?

जनताको समज लेना पडेगा कि, नरेन्द्र मोदी पर अभी कई मुसीबतें आने वाली है. उसमें आतंकी हमले के अतिरिक्त सियासती हमले भी होंगे. वे बडे जोरदार होंगे. अगर नरेन्द्र मोदी उसके विरोधीयों पर कार्यवाही नहीं करेगा तो ये विरोधीगण चूप बैठने वाला नहीं है. इन लोगोंको जेल भेजना इतना मुश्किल नहीं है. उनके कई काले धंधे है. जिसमें उनकी आर्थिक आय और संपत्ति जो प्रमाणसे कहीं ज्यादा ही है वह मुख्य है. दुसरे उनके असामाजिक तत्वोंके साथके संबंध है. इनके उपर कार्यवाही की जा सकती है. लेकिन इसके बारेमें बडी गुप्ततासे कदम उठाने पडेंगे. और ऐसा पूर्ण और मजबुत बहुमत आने पर ही यह सब संभव हो सकता है.

जो लोग आज नरेन्द्र मोदीके पक्षमें है उनको धिरज पूर्वक नरेन्द्र मोदीके पक्षमें ही रहेना होगा. चाहे नरेन्द्र मोदी पर कितने ही विवाद क्यूं न किया जाय.

एक लडकीके उपर तथा कथित जसुसी,
नरेन्द्र मोदीने जो अपनी पत्नीका नाम आवेदन पत्रमें लिखा,
गीने चूने उद्योगपतियोंको मुफ्तके दाम जमीन आबंटन … इत्यादि कई अर्थहीन विवाद, समाचार माध्यम द्वारा बडे चावसे नरेन्द्र मोदीके विरुद्ध चमकाया जाता है. और भी कई विवाद उछाले जायेंगे. तब जो जनता आज नरेन्द्र मोदीके साथ है, उसको अपने आप पर विश्वास रखकर मोदीके पक्षमें ही रहेना पडेगा. नरेन्द्र मोदीके चमत्कार देखनेके लिये जनताको धिरज और विश्वास रखना पडेगा. समाचार माध्यमोंके समाचारसे मतिभ्रष्ट नहीं होना है.

क्या जनता और जो मूर्धन्य लोग आज मोदीके साथ है वे ये सब समझ पायेंगें?

दंगे करवाना और बोम्ब ब्लास्ट करवाना कोंगका पेशा है

एक बात याद रक्खो कि फारुख और ओमर नया मोरचा खोल रहे है. कोंगी और उसके साथी लोग नया गेम खेल रहे है. वे नरेन्द्र मोदीके प्रधान मंत्रीकी शपथ के बाद कई जगह पर बोम्ब ब्लास्ट करवाने कि योजना बना सकते है. इस शक्यताको कतई नकारा नहीं जा सकता.

नहेरुवीयन कोंग और उनके कश्मिरके साथी फारुख और फरजंदका ट्रेक रेकार्ड देखोः

http://www.satp.org/satporgtp/countries/india/states/jandk/data_sheets/index.html

२००१ को भी याद करो. गुजरात के तत्कालिन मूख्य मंत्री केशुभाई पटेल गुजरातमें बीजेपीको सम्हाल नहीं सके, भूकंप ग्रस्त गुजरातको नवनिर्मित करनेमें वे अशक्त रहे थे. जनतामें केशुभाई और बीजेपी मजाकका विषय बनने लगे थे.

नरेन्द्र मोदी ने सख्त कदम उठाके गुजरातको और बीजेपी को और भूकंपग्रस्त गुजरातको विकासके रास्ते पर ला दिया. एक दफा नरेन्द्र मोदीने बोला कि बीजेपीके ५ सालके शासनमें कोमी दंगे बंद हो गये है. तो इससे नहेरुवीयन कोंगीयोंके पेटमें उबला हुआ तेल पडा और उन्होने की गई साजीशके अनुसार गोधराके एक स्थानीय नेता द्वारा साबरमती एक्सप्रेसका डीब्बा जलाया गया जिसमें अयोध्यासे आनेवाले सभी यात्री जला दिया गया. यह एक ठंडे दिमागसे की गई साजीश थी. एक नहेरुवीयन कोंगीने तो बोला भी था कि नरेन्द्र मोदीने “बीजेपीके शासनमें कोमी दंगे बंद हो गये है ऐसा निवेदन करके लघुमति कोमको दंगे करनेके लिये उकसाया है. कोंग चाहती है कि नरेन्द्र मोदी को मुस्लिमोंकी भावनाको ऐसे निवेदनो द्वारा भडकाना नहीं चाहिये था.

कोंग, दंगा करवानेमें और बोम्ब ब्लास्ट करवानेमें माहिर है. जब भी कोंग और उसके समसंस्कृति साथी मुसिबतमें होते हैं या तो वोटबेंक की राज नीतिको बडे पैमाने पर उजागर करनी होती है, तब वह दंगा करवाती है.

१९६९में मोरारजी देसाईकी कोंग्रेस, जो कोंग्रेस (ओ) नामसे जानी जाती थी वह इन्दिरा कोंगके लिये गुजरातमें एक चूनौति थी. उस समय केन्द्रमें इन्दिराका शासन था. कोंगीने ९९६९में अहमदाबादमें बडे पैमाने पर दंगे करवाये थे.

https://www.youtube.com/watch?v=-u92rWqUhaY

असममें बंग्लादेशी घुसपैठीयोंके कारण स्थानिक प्रजा के साथ दंगे करवाये. पूर्वोत्तर राजको आतंकवादीयों द्वारा पीडित ही रक्खा. युपी बिहारमें तो कई प्रकारके सियासती दंगे करवाते ही रहते है. अब वहां बीजेपी शक्ति बढी तो आजमगढमें दंगे करवाये. आतंकवाद की जड कोंग ही है. दाउदका नेटवर्क कोंगकी कृपासे ही बढा है. दाउदका नेटवर्क बोम्ब ब्लास्टमें सामेल है.

समझ लिजीये कि, जब नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बन जायेगा तब कोंग के पैसोंका मुख्य उपयोग दंगा करवाना ही होगा. और इन सभी दंगोंका कारण नरेन्द्र मोदीका शासन ही बताया जायेगा.

कोंग और उसके साथीयोंको दंगे करनेमेंसे रोकने के लिये उनके उपर जांच आयोग बैठा देना पडेगा.

शिरीष मोहनलाल दवे

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