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Posts Tagged ‘फरजंद’

साहिब (जोकर), बीबी (बहनोईकी) और गुलाम(गण)

जोकर, हुकम (ट्रम्प) और गुलाम [साहिब, बीबी (बहनोईकी) और गुलाम]

गुजरातीमें एक कहावत है “भेंस भागोळे, छास छागोळे, अने घेर धमाधम”

एक किसानका संयुक्त कुटुंब था. भैंस खरीदनेका विचार हुआ. एक सदस्य खरीदनेके लिये शहरमें गया. घरमें जोर शोर से चर्चा होने लगी कि भैंसके संबंधित कार्योंका वितरण कैसे होगा. कौन उसका चारा लायेगा, कौन चारा  डालेगा, कौन गोबर उठाएगा, कौन दूध निकालेगा, कौन दही करेगा, कौन छास बनाएगा, कौन  छासका मंथन करेगा ….? छासके मंथन पर चिल्लाहट वाला शोर मच गया. यह शोरगुल सूनकर, सब पडौशी दौडके आगये. जब उन्होंने पूछा कि भैंस कहाँ है? तो पता चला कि भैस तो अभी आयी नहीं है. शायद गोंदरे (भागोळ) तक पहूँची होगी या नहीं पता नही. … लेकिन छास का मंथन कौन करेगा इस पर विवाद है.

यहां इस कोंगीके नहेरुवीयन कुटुंबकवादी पक्षका फरजंदरुपी, भैंस तो अमेरिकामें है, और उसको कोंगी पक्षका एक होद्दा दे दिया है, तो अब उसका असर चूनावमें क्या पडेगा उसका मंथन मीडिया वाले और कोंगी सदस्य जोर शोरसे करने लगे हैं.

कोंगीलोग तो शोर करेंगे ही. लेकिन कोंगीनेतागण चाहते है कि वर्तमान पत्रोंके मालिकोकों समज़ना चाहिये कि, उनका एजन्डा क्या है! उनका एजन्डा भी कोंगीके एजन्डेके अनुसार होना चाहिये. जब हम कोंगी लोग जिस व्यक्तिको प्रभावशाली मानते है उसको समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी प्रभावशाली मानना चाहिये और उसी लाईन पर प्रकाशन और चर्चा होनी चाहिये.

कोंगी नेतागण मीडीया वालोंको समज़ाता है कि;

“हमने क्या क्या तुम्हारे लिये (इन समाचार माध्यमोंके लिये) नहीं किया? हमने तुमको मालदार बनाये. उदाहरणके लिये आप वेस्टलेन्ड हेलीकोप्टरका समज़ौता ही देख लो हमने ४० करोड रुपयेका वितरण किया था. सिर्फ इसलिये कि ये समा्चार माध्यम इस के विरुद्ध न लिखे. हमने जब जब विदेशी कंपनीयोंसे व्यापारी व्यवहार किया तो तुम लोगोंको तुम्हारा हिस्सा दिया था और दिया है. तुम लोगोंको कृतज्ञता दिखाना ही चाहिये.

हमारी इस भैसको कैसे ख्याति दोगे?

मीडीया मूर्धन्य बोलेः “कौन भैस? क्या भैंस? क्यों भैंस? ये सब क्या मामला है?

कोंगीयोंने आगे चलाया; “ अरे वाह भूल गये क्या ?हम कोंगी लोग तो साक्षात्‌ माधव है.

“मतलब?

“मा”से मतलब है लक्ष्मी. “धव”से मतलब है पति. माधव मतलब, लक्ष्मी के पति. यानी कि विष्णु भगवान. हम अपार धनवाले है. हम धनहीन हो ही नहीं सकता. इस धनके कारण हम क्या क्या कर सकते हैं यह बात आपको मालुम ही है?

नहिं तो?

मूकं कुर्मः वाचालं पंगुं लंगयामः गिरिं

अस्मत्‍ कृपया भवति सर्वं, अस्मभ्यं तु नमस्कुरु

[(अनुसंधानः मूकं करोति वाचालं, पंगुं लंगयते गिरिं । यत्कृ‌पा तं अहम्‌ वन्दे परमानंदं माधवं ॥ )

उस लक्ष्मीपति जो अपनी कृपासे  “मुका” को वाचाल बना सकता है और लंगडेको पर्वत पार करनेके काबिल बना देता है उस लक्ष्मी पतिको मैं नमन करता हूँ.]   

लेकिन यदि लक्ष्मीपतियोंको, खुदको ऐसा बोलना है तो वे ऐसा ही बोलेंगे कि हम अपनी कृपासे मुकोंको वाचाल बना सकते है और लंगडोंको पर्वत पार करवा सकते है, इस लिये (हे तूच्छ समाचार माध्यमवाला, हम इससे उलटा भी कर सकते हैं), हमें तू नमन करता रह. तू हमारी मदद करेगा तो हम तुम्हारी मदद करेंगे. धर्मः रक्षति रक्षितां.

भैंसको छा देना है अखबारोंमें

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आर्टीस्टका सौजन्य

वाह क्या शींग? वाह क्या अंग है? वाह क्या केश है? वाह क्या पूंछ है…? वाह क्या चाल है? वाह क्या दौड है? वाह क्या आवाज़ है? इस भैंसने तो “भागवत” पूरा आत्मसात्‌ किया ही होगा…!!!

“हे मीडीया वाले … चलो इसकी प्रशंसा करो…

और मीडीया वालोंने प्रशंसाके फुल ही नहीं फुलोंके गुलदस्तोंको बिखराना चालु कर दिया. अरे यह भैंस तो अद्दल (असल, न ज्यादा, न कम, जैसे दर्पणका प्रतिबिंब) उसके दादी जैसी ही है.  जब दिखनेमें दादी जैसी है तो अवश्य उसकी दादीके समान होशियार, बुद्धिमान, चालाक, निडर …. न जाने क्या क्या गुण थे इसकी दादीमें …. सभी गुण इस भैंसमें होगा ही. याद करो इस भैंसके पिता भैंषाको, जिसको, हमने ही तो “मीस्टर क्लीन” नामके विशेषणसे नवाज़ा था. हालाँ कि वह अलग बात है कि बोफोर्सके सौदेमें उसने अपने  हाथ काले किये. वैसे तो दादीने भी स्वकेन्द्री होने कि वजहसे आपात्काल घोषित करके विरोधीयोंको और महात्मा गांधीके अंतेवासीयोंको भी  कारावासमें डाल दिया था. इसीकी वजह से इसकी दादी खुद १९७७के चूनावमें हार गयी थी वह बात अलग है. और यह बात भी अलग है कि वह हर क्षेत्रमें विफल रही थीं. और आतंकवादीयोंको पुरस्कृत करनेके कारण वह १९८४में भी हारने वाली थी. यह बात अलग है कि वह खुदके पैदा किये हुए भष्मासुरसे मर गई और दुसरी हारसे बच गई.  

गुजराती भाषामें “बंदर” को “वांदरो” कहा जाता है.

लेकिन गुजरात राज्यके “गुजरात”के प्रदेशमें “वादरो”का उच्चारण “वोंदरो” और “वोदरो” ऐसा करते है. काफि गुजराती लोग “आ” का उच्चारण “ऑ” करते है. पाणी को पॉणी, राम को रॉम …. जैसे बेंगाली लोग जल का उच्चार जॉल, “शितल जल” का उच्चार “शितॉल जॉल” करते है. 

सौराष्ट्र (काठीयावाड) प्रदेशमें “वांदरो” शब्दका उच्चारण “वांईदरो” किया जाता है.

अंग्रेज लोग भी मुंबईके “वांदरा” रेल्वेस्टेशनको “बांड्रा” कहेते थे. मराठी लोग उसको बेंन्द्रे कहेते थे या कहेते है.

तो अब यह “वाड्रा” आखिरमें क्या है?

वांईदरा?  या वांद्रा?  या वोंदरा?

याद करो …

पुर तो एक ही है, जोधपुर. बाकी सब पुरबैयां

महापुरुषोंमें “गांधी” तो एक ही है, वह है महात्मा गांधी, बाकी सब घान्डीयां

हांजी, ऐसा ही है. अंग्रेजोंके जमानेसे पहेले, गुजरातमें गांधी एक व्यापारी सरनेम था. लेकिन अंग्रेज लोग जब यहां स्थायी हुए उनका साम्राज्य सुनिश्चित हो गया तब “हम हिन्दुसे भीन्न है” ऐसा मनवाने के लिये पारसी और कुछ मुस्लिमोंने अपना सरनेम “गांधी”का “घान्डी” कर दिया. वे बोले, हम “गांधी” नहीं है. हम तो “घान्डी” है. हम अलग है. लेकिन महात्मा गांधीने जब नाम कमाया, और दक्षिण आफ्रिकासे वापस आये, तो कालक्रममें  नहेरुने सोचा कि उसका दामात “घांडी”में से वापस गांधी बन जाय तो वह फायदएमंद रहेगा. तो इन्दिरा बनी इन्दिरा घान्डीमेंसे इन्दिरा गांधी. और चूनावमें उसने अपना नाम लिखा इन्दिरा नहेरु-गांधी.

तो प्रियन्का बनी प्रियंका वाड्रा (या वांईदरा, या वांदरा या वादरा या वाद्रे)मेंसे बनी प्रियंका वांइन्दरा गांधी या प्रियंका गांधीवांइन्दरा.

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आर्टीस्टका सौजन्य

हे समाचार माध्यमके प्रबंधको, तंत्री मंडलके सदस्यों, कोलमीस्टों, मूर्धन्यों, विश्लेषकों … आपको इस प्रियंका वांईदराको यानी प्रियंका गांधी-वांईदराको राईमेंसे पर्वत बना देनेका है. और हमारी तो आदत है कि हमारा आदेश जो लोग नहीं मानते है उनको हम “उनकी नानी याद दिला देतें है”. हमारे कई नेताओने इसकी मिसाल दी ही है. याद करो राजिव गांधीने “नानी याद दिला देनेकी बात कही थी … हमारे मनीष तीवारीने कहा था कि “बाबा रामदेव भ्राष्टाचारसे ग्रस्त है हम उसके धंधेकी जाँच करवायेंगे” दिग्वीजय सिंघने कहा था “सरसे पाँव तक अन्ना हजारे भ्रष्ट है हम उसकी संस्था की जांच करवाएंगे, किरन बेदीने एरोप्लेनकी टीकटोंमें भ्रष्टाचार किया है हम उसको जेलमें भेजेंगे”, मल्लिकार्जुन खडगेने कहा “ हम सत्तामें आयेंगे तो हर सीबीआई अफसरोंकी फाईल खोलेंगे और उसकी  नानी याद दिला देंगे, यदि उन्होने वाड्राकी संपत्तिकी जाँच की तो … हाँजी हम तो हमारे सामने आता है उसको चूर चूर कर देतें हैं. वीपी सिंह, मोरारजी देसाई, और अनगीनत महात्मागांधीवादीयोंको भी हमने बक्षा नहीं है, तो तुम लोग किस वाडीकी मूली हो. तुम्हे तुम्हारी नानी याद दिला देना तो हमारे बांये हाथका खेल है. सूनते हो या नहीं?

“तो आका, हमें क्या करना है?

तुम्हे प्रियंका वादरा गांधीका प्रचार करना है, उसका जुलुस दिखाना है, उसके उपर पुष्पमाला पहेलाना है वह दिखाना है, पूरे देशमें जनतामें खुशीकी लहर फैल गई है वह दिखाना है, उसकी बडी बडी रेलीयां दिखाना है, उसकी हाजरजवाबी दिखाना है, उसकी अदाएं दिखाना है, उसका इस्माईल (स्माईल) देखाना है, उसका गुस्सा दिखाना है, उसके भीन्न भीन्न वस्त्रापरिधान दिखाना है, उसका केशकलाप दिखाना है, उसके वस्त्रोंकी, अदाओंकी, चाल की, दौडकी स्टाईल दिखाना है और उसकी दादीसे वह हर मामलेमें कितनी मिलती जुलती है यह हर समय दिखाना है. समज़े … न … समज़े?

“हाँ, लेकिन आका! भैंस (सोरी … क्षमा करें महाराज) प्रियंका तो अभी अमेरिकामें है. हम यह सब कैसे बता सकते हैं?

“अरे बेवकुफों … तुम्हारे पास २०१३-१४की वीडीयो क्लीप्स और तस्विरें होंगी ही न … उनको ही दिखा देना. बार बार दिखा देना … दिखाते ही रहेना … यही तो काम है तुम्हारा … क्या तुम्हें सब कुछ समज़ाना पडेगा? वह अमेरिकासे आये उसकी राह दिखोगे क्या? तब तक तुम आराम करोगे क्या? तुम्हे तो मामला गरम रखना है … जब प्रियंका अमेरिकासे वापस आवें तब नया वीडीयो … नयी सभाएं … नयी रेलीयां … नया लोक मिलन… नया स्वागत …  ऐसी वीडीयो तयार कर लेना और उनको दिखाना. तब तक तो पुराना माल ही दिखाओ. क्या समज़े?

“हाँ जी, आका … आप कहोगे वैसा ही होगा … हमने आपका नमक खाया है …

और वैसा ही हुआ… प्रियंका गांधी आयी है नयी रोशनी लायी है …. वाह क्या अदाएं है … अब मोदीकी खैर नहीं ….

प्रियंका वादरा अखबारोंमें … टीवी चैनलोंमें … चर्चाओंमे ..,. तंत्रीयोंके अग्रलेखोंमें … मूर्धन्योंके लेखोंमें … कोलमीस्टोंके लेखोमें … विश्लेषणोंमें छाने लगी है …

प्रियंका वादराको ट्रम्प कार्ड माना गया है. वैसे तो यह ट्रम्प कार्ड २०१३-१४में चला नहीं था … वैसे तो उसकी दादी भी कहाँ चली थीं? वह भी तो हारी थी. वह स्वयं ५५००० मतोंसे हार गयी थी. वह तो १९८४में फिरसे भी हारने वाली थी … लेकिन मर गयी तो हारनेसे  बच गयी.

प्रियंका वांईदरा ट्रम्प कार्ड है. ट्रम्प कार्डको उत्तरभारतके लोग “हुकम” यानी की “काली” या कालीका ईक्का  केहते है. प्रियंका ट्रम्प कार्ड है. कोंगीके प्रमुख जोकर है. कोंगीके बाकी लोग और मीडीया गुलाम है.

साहिब यानी कोंगी पक्ष प्रमुख (यानी जोकर), (वांईदराकी) बीबी और दर्जनें गुलाम कैसा खेल खेलते है वह देखो.

“आँखमारु जोकर” गोवामें पूर्व सुरक्षामंत्री (पनीकर)से मिलने उनके घर गया था. उसने बोला कि “ … मैं पनीकरसे कल मिला. पनीकरने बताया कि राफेल सौदामें जो चेन्ज पीएम ने किया वह उसको दिखाया नहीं गया था.” ताज़ा जन्मा हुआ बच्चा भी कहेगा कि, इसका अर्थ यही होता है कि “जब रा.गा. पनीकरको मिलने गया तो पनीकरने बताया कि राफैल सौदामें जो चेन्ज किया वह पीएमने तत्कालिन रक्षा मंत्रीको दिखाया नहीं था.”

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आर्टीस्टका सौजन्य

ऐसा कहेना रा.गा.के चरित्रमें और कोंगी संस्कारमें आता ही है. रा.गा.के सलाहकारोंने रा.गा.को सीखाया ही है कि तुम ऐसे विवाद खडा करता ही रहो कि जिससे बीजेपी के कोई न कोई नेताके लिये बयान देना आवश्यक हो जाय. फिर हम ऐसा कहेगें कि हमारा मतलब तो यही था लेकिन बीजेपी वाले गलत अर्थमें बातोंको लेते हैं, और बातोंका बतंगड बनाते हैं. उसमें हम क्या करें? और देखो … मीडीया मूर्धन्य तो हमारे सपोर्टर है. उनमेंसे कई हमारे तर्क का अनुमोदन भी करेंगे. कुछ मूर्धन्य जो अपनेको तटस्थता प्रेमी मानते है वे बभम्‌ बभम्‌ लिखेंगे और इस घटनाका सामान्यीकरण कर देंगे. मीडीयाका कोई भी माईका लाल, रा.गा.के उपरोक्त दो अनुक्रमित वाक्योंको प्रस्तूत करके रा.गा.का खेल बतायेगा नहीं. 

कोंगीकी यह पुरानी आदत है कि एक जूठ निश्चित करो और लगातार बोलते ही रहो. तो वह सच ही हो जायेगा. १९६६ से १९७४ तक कोंगी लोग मोरारजी देसाईके पुत्रके बारेमें ऐसा ही बोला करते थे. इन्दिराका तो शासन था तो भी उसने जांच करवाई नहीं और उसने अपने भक्तोंको जूठ बोलने की अनुमति दे रक्खी थी. क्यों कि इन्दिरा गांधीका एजन्डा था कि मोरारजी देसाईको कमजोर करना. यही हाल उसने बादमें वीपी सिंघका किया कि, “वीपी सिंहका सेंटकीट्समें अवैध एकाउन्ट है”. “मोरारजी देसाई और पीलु मोदी आई.ए.एस. के एजन्ट” है….

ऐसे जूठोंका तो कोंगीनेताओंने भरपूर सहारा लिया है और जब वे जूठे सिद्ध होते है तो उनको कोई लज्जा भी नहीं आती. सत्य तो एक बार ही सामने आता है. लेकिन मीडीयावाले जो सत्य सामने आता है, उसको,  जैसे उन्होंनें असत्यको बार बार चलाया था वैसा बार बार चलाते नहीं. इसलिये सत्य गीने चूने यक्तियोंके तक ही पहूँचता है और असत्यतो अनगिनत व्यक्तियों तक फैल गया होता है. इस प्रकार असत्य कायम रहेता है. 

“समाचार माध्यम वाले हमारे गुलाम है. हम उनके आका है. हम उनके अन्नदाता है. ये लोग अतार्किक भले ही हो लेकिन आम जनताको गुमराह करने के काबिल है.

ये मूर्धन्य लोग स्वयंकी और उनके जैसे अन्योंकी धारणाओ पर आधारित चर्चाएं करेंगे.

जैसे की स.पा. और बस.पा का युपीका गठन एक प्रबळ जातिवादी गठबंधन है. हाँ जी … ये मूर्धन्य लोगोंका वैसे तो नैतिक कर्तव्य है कि जातिवाद पर समाजको बांटने वालोंका विरोध करें. लेकिन ये महाज्ञानी लोग इसके उपर नैतिकता पर आधारित तर्क नहीं रखेंगे. जैसे उन्होंने स्विकार लिया है कि “वंशवाद” (वैसे तो वंशवाद एक निम्न स्तरीय मानसिकता है) के विरुद्ध हम जगरुकता लाएंगे नहीं.

हम तो ऐसी ही बातें करेंगे कि वंशवाद तो सभी राजकीय दलोंमे है. हम कहां प्रमाणभान रखनेमें मानते है? बस इस आधार पर हम सापेक्ष प्रमाण की सदंतर अवगणना करेंगे. उसको चर्चाका विषय ही नहीं बनायेंगे. हमें तो वंशवादको पुरस्कृत ही करना है. वैसे ही जातिवादको भी सहयोग देना है. तो हम जातिवादके विरुद्ध क्यूँ बोले? हम तो बोलेंगे कि, स.पा. और ब.स.पा. के गठबंधनका असर प्रचंड असर जनतामें है.  ऐसी ही बातें करेंगे. फिर हम हमारे जैसी सांस्कृतिक मानसिकता रखनेवालोंके विश्लेषणका आधार ले के, ऐसी भविष्यवाणी करेंगे कि बीजेपी युपीमें ५ से ७ सीट पर ही सीमट जाय तो आश्चर्य नहीं.

यदि हमारी भविष्यवाणी खरी न उतरी, तो हम थोडे कम अक्ल सिद्ध होंगे? हमने तो जिन महा-मूर्धन्योंकी भविष्यवाणीका आधार लिया था वे ही गलत सिद्ध होंगे. हम तो हमारा बट (बटक buttock) उठाके चल देंगे.

प्रियंका वांईदरा-घांडी खूबसुरत है और खास करके उसकी नासिका इन्दिरा नहेरु-घांडीसे मिलती जुलती है. तो क्यों न हम इस खुबसुरतीका और नासिकाका सहारा लें? हाँ जी … प्रियंका इन्दिरा का रोल अदा कर सकती है.

“लेकिन इन्दिरा जैसी अक्ल कहाँसे आयेगी?

“अरे भाई, हमें कहां उसको अक्लमान सिद्ध करना है. हमें तो हवा पैदा करना है. देखो … इन्दिरा गांधी जब प्रधान मंत्री बनी, यानी कि, उसको प्रधान मंत्री बनाया गया तो वह कैसे छूई-मूई सी और गूंगी-गुडीया सी रहेती थी. लेकिन बादमें पता चला न कि वह कैसी होंशियार निकली. तो यहां पर भी प्रियंका, इन्दिरासे भी बढकर होशियार निकलेगी ऐसा प्रचार करना है तुम्हे. समज़ा न समज़ा?

“अरे भाई, लेकिन इन्दिरा तो १९४८से अपने पिताजीके साथा लगी रहती थी और अपने पिताजीके सारे दावपेंच जानती थी. उसने केरालामें आंदोलन करके नाम्बुद्रीपादकी सरकारको गीराया था. इन्दिरा तो एक सिद्ध नाटकबाज़ थी. प्रारंभमें जो वह, संसदमें  छूई-मूई सी रहती थी वह भी तो उसकी व्युहरचनाका एक हिस्सा था. सियासतमें प्रियंकाका योगदान ही कहाँ है?

“अरे बंधु,, हमे कहाँ उसका योगदान सिद्ध करना है. तुम तो जानते हो कि, जनताका बडा हिस्सा और कोलमीस्टोंका भी बडा हिस्सा १९४८ – १९७०के अंतरालमें, या तो पैदा ही नहीं हुआ था, या तो वह पेराम्बुलेटर ले के चलता था.

“लेकिन इतिहास तो इतिहास है. मूर्धन्योंको तो इतिहासका ज्ञान तो, होना ही चाहिये न ?

“नही रे, ऐसी कोई आवश्यकता नहीं. जनताका बडा हिस्सा कैसा है वह ही ध्यानमें रखना है. हमारे मूर्धन्य कोलमीस्टोंका टार्जेट आम जनता ही होना चाहिये. इतिहास जानने वाले तो अब अल्प ही बचे होगे. अरे वो बात छोडो. उस समयकी ही बात करो. राजिव गांधीको, तत्कालिन प्रेसीडेन्ट साहबने, बिना किसी बंधारणीय आधार, सरकार बनानेका न्योता दिया ही था न. और राजिव गांधीने भी बिना किसी हिचकसे वह न्योता स्विकार कर ही लिया था न? वैसे तो राजिवके लिये तो ऐसा आमंत्रण स्विकारना ही अनैतिक था न? तब हमने क्या किया था?  हमने तो “मीस्टर क्लीन आया” … “मीस्टर क्लीन आया” … ऐसा करके उसका स्वागत ही किया था न. और बादमें जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तो हमने थोडी कोई जीम्मेवारी ली थी? ये सब आप क्यों नहीं समज़ रहे? हमे हमारे एजन्डा पर ही डटे रहेना है. हमें यह कहेना है कि प्रियंका होशियार है … प्रियंका होंशियार है … प्रियंकाके आनेसे बीजेपी हतःप्रभः हो गयी है. प्रियंकाने तो एस.पी. और बी.एस.पी. वालोंको भी अहेसास करवा दिया है कि उन्होंने गठबंधनमें जल्दबाजी की है. … और … दुसरा … जो बीजेपीके लोग, प्रियंकाके बाह्य स्वरुपका जिक्र करते हैं और हमारे आशास्वरुप प्रचारको निरस्र करनेका प्रयास कर रहे है … उनको “ नारी जातिका अपमान” कर रहे … है ऐसा प्रचार करना होगा. हमे यही ढूंढना होगा कि प्रियंकाके विरुद्ध होने वाले हरेक प्रचारमें हमें नारी जातिका अपमान ढूंढना होगा. समज़े … न समज़े?

कटाक्ष, चूटकले, ह्युमर किसीकी कोई शक्यता ही नहीं रखना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२

सोमनाथका मंदिर कैसे तोडा जाय? भाग-२

असत्यवाणी नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंका धर्म है

यह कोई नई बात नहीं है. नहेरुने खुदने चीनी सेनाके भारतीय भूमिके अतिक्रमणको नकारा था. तत्पश्चात्‌ भारतने ९२००० चोरसवार भूमि, चीनको भोजन-पात्र पर देदी थी. ईन्दिरा गांधी, राजिव गांधी आदिकी बातें हम २५ जूनको करेंगे. किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेस अलगतावादी मुस्लिम नेताओंसे पीछे नहीं है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने सांस्कृतिक फरजंदोंसे सिखती भी है.

यह कौनसी सिख है?

शिवसेना नहेरुवीयन कोंग्रेसका फरज़ंद है.

जैनोंके पर्युषणके पर्व पर मांसकी विक्री पर कुछ दिनोंके लिये रोक लगाई तो शिवसेनाके कार्यकर सडक पर उतर आये. और उन्होंने इस आदेशके विरोधमें मांसकी विक्री सडक पर की. (यदि वेश्यागमन पर शासन निषेध लाता तो क्या शिवसेनावाले सडक पर आके वेश्यागमन करते?)

गाय-बछडेका चूनाव चिन्हवाली नहेरुवीयन कोंग्रेसने शिवसेनासे क्या सिखा?

नहेरुवीयन कोंग्रेसको शिवसेनासे प्रेरणा मिली.

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यह बात नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारके अनुरुप है. नहेरुवीयन कोंग्रेसने चिंतन किया. निष्कर्ष निकाला कि गौवध-बिक्री-नियमन वाला विषय उपर प्रतिकार करना यह मुस्लिमोंको और ख्रीस्तीयोंको आनंदित करनेका अतिसुंदर अवसर है.

केन्द्र सरकारने तो गौ-वंशकी यत्किंचित प्रजातियोंकी विक्रीके नियमोंको सुग्रथित किया और नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यथेच्छ रक्खी क्षतियोंको दूर किया ताकि स्वस्थ और  युवापशुओंकी हत्या न हो सके.

अद्यपर्यंत ऐसा होता था कि कतलखाने वाले, पशुबिक्रीके मेलोंमेंसे, बडी मात्रामें  पशुओंका क्रयन करते थे. और स्वयंके निश्चित चिकित्सकोंका प्रमाणपत्र लेके हत्या कर देते थे.

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आदित्यनाथने अवैध कतलखानोंको बंद करवाया तो नहेरुवीयन कोंग्रेसवालोंने और उनके सांस्कृतिक साथीयोंने कोलाहल मचा दिया और न्यायालयमें भी मामला ले गये कि शासक, कौन क्या खाये उसके उपर अपना नियंत्रण रखना चाहता है. अधिकतर समाचार माध्यमोंने भी अपना ऐसा ही सूर निकाला.

बीजेपीने गौ-वंशकी यत्किंचित प्रजातियोंकी विक्रीके नियमोंको सुग्रथित करनेवाला जो अध्यादेश जारी किया तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको लगा कि कोमवाद फैलानेका यह अत्याधिक सुंदर अवसर है.

केरलमें नहेरुवीयन कोंग्रेसके कई सदस्य सडक पर आ गये. एक बछडा भी लाये. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने बछडेको सरे आम काटा भी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने बछडेके मांसको सडक पर ही एक चूल्हा बनाके अग्निपर पकाया भी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंने इस मांसको बडे आनंदपूर्वक खाया भी.

भोजनका भोजन विरोधका विरोध

अपने चरित्रके अनुरुप नहेरुवीयन कोंग्रेस केवल जूठ ही बोलती है और जूठके सिवा और कुछ नहीं बोलती. तो अन्य प्रदेशके नहेरुवीयन नेताओंने तो ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है और बीजेपी व्यर्थ ही नहेरुवीयन कोंग्रेसको बदनाम कर रही है ऐसे कथन पर ही अडे रहे. लेकिन जब यह घटनाकी वीडीयो क्लीप सामाजिक माध्यमों पर और समाचार माध्यमों पर चलने लगी तो उन्होंने बडी चतुराईसे शब्द प्रयोग किये कि “केरलमें जो घटना घटी उसकी हम निंदा करते है. ऐसी घटना घटित होना अच्छी बात नहीं है चाहे ऐसी घटना बीजेपीके कारण घटी हो या अन्योंके कारण. हमारे पक्षने ऐसे सदस्योंको निलंबित किया है.” नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण घटनाका विवरण करनेसे वे बचते रहे. एक नेताने कहा कि हमने सदस्योंको निलंबित किया है. अन्य एक नेताने कहा कि हमने निष्कासित किया है. क्या नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण अनपढ है? क्या वे सही शब्दप्रयोग नहीं कर सकते?

मस्जिदमें गयो तो ज कोन

केरलकी सरकार भी तो साम्यवादीयोंकी गठबंधनवाली सरकार है. सरकारने कहा कि “हमने कुछ  व्यक्तियोंपर धार्मिकभावना भडकानेवाला केस दर्ज किया है.

साम्यवादी पक्षके गठबंधनवाली सरकार भी नहेरुवीयन कोंग्रेससे कम नहीं है. वास्तवमें यह किस्सा केवल धार्मिक भावना भडकानेवाला नहीं है. केरलकी सरकारके आचार पर कई प्रश्नचिन्ह उठते है.

कौन व्यक्ति पशुकी हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति पशु की हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति कोई भी स्थान पर पशुकी हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति किसी भी अस्त्रसे पशुकी हत्या कर सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति कहीं भी चुल्हा जला सकता है?

क्या कोई भी व्यक्ति कहीं भी खाना पका सकता है?

वास्तवमें पशुओंको काटनेकी आचार संहिता है. यह आचार संहिता कतलखानोंके नियमोंके अंतर्गत निर्दिष्ट है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस एक, ठग-संगठन है. जनतंत्रमें अहिंसक विरोध प्रदर्शित करना एक अधिकार है. किन्तु कानूनभंगका अधिकार नहीं है. सविनय कानूनभंग करना एक रीति है. किन्तु उसमें आपको शासनको एक प्रार्थनापत्र द्वारा अवगत कराना पडता है कि आप निश्चित दिवस पर, निश्चित समयपर, निश्चित व्यक्तिओं द्वारा, निश्चित नियमका, भंग करनेवाले है. नियमभंगका कारणका विवरण भी देना पडता है. और इन सबके पहेले शासनके अधिकृत व्यक्ति/व्यक्तियोंसे चर्चा करनी पडती है. उन विचारविमर्शके अंतर्गत आपने यह अनुभूति हुई कि शासनके पास कोई उत्तर नहीं है, तभी आप सविनय नियमभंग कर सकते है. जब नहेरुवीयन कोंग्रेसके शिर्षनेताओंको भी महात्मागांधीके सविनय कानूनभंगकी प्रक्रिया अवगत नहीं है तो इनके सिपोय-सपरोंको क्या खाक अवगत होगा? केरलकी घटना तो एक उदाहरण है. ऐसे तो अगणित उदाहरण आपको मिल जायेंगे.

नहेरुवीयन कोंग्रेस करनेवाली है मानवभ्रूणका भोजन-समारंभ

नहेरुवीयन कोंग्रेसको मानवभ्रुणके मांसके भोजन के लिये भी आगे आना चाहिये. साम्यवादी लोग, नहेरुवीयन कोंग्रेसको अवश्य सहयोग करेंगे, क्यों कि, चीनमें मानवभ्रुणका मांस खाया जाता है. साम्यवादी लोगोंका कर्तव्य है कि वे लोग चीन जैसे शक्तिशाली देशकी आचार संहिताका पालन करें वह भी मुख्यतः जिन पर भारतमें निषेध है. और नहेरुवीयन कोंग्रेस तो साम्यवादीयोंकी सांस्कृतिक सहयोगी है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसके प्रेरणास्रोत

तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजा तो मुसलमानोंके प्रेरणास्रोत है. ऐसे मुसलमान कोई सामान्य कक्षाके नहीं है. आप यह प्रश्न मत उठाओ कि तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजाओंने तो हमारे मुसलमान भाईओंके पूर्वजोंका कत्ल किया था. किन्तु यह बात स्वाभाविक है जब आप मुसलमान बनते है तो आपके कोई भारतीय पूर्वज नहीं होते, या तो आप आसमानसे उतरे है या तो आप अरबी है या तो आप अपने पूर्वजोंकी संतान नहीं है. इसी लिये तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमान राजा आपके प्रेरणास्रोत बनते है. यदि आप सीधे आसमानसे उतरे हैं तो यह तो एक चमत्कार है. किन्तु मोहम्मद साहब तो चमत्कारके विरुद्ध थे. तो आप समज़ लो कि आप कौन है. किन्तु इस विवादको छोड दो. ख्रीस्ती लोग भी मुसलमान है. क्यों कि मुसलमान भी ईसा को मसिहा मानते है. या तो मुसलमान, ख्रीस्ती है, या तो ख्रीस्ती, मुसलमान है. जैसे वैष्णव लोग और स्वामीनारयण लोग हिन्दु है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक साथीयोंको मुसलमानोंका अपूर्ण कार्यको, पूर्ण करना है, इस लिये उनका कर्तव्य बनता है कि जो कार्य मुसलमानोंने भूतकालमें किया उसीको नहेरुवीयन कोंग्रेस आगे बढावे. मुसलमानोंने सोमनाथके मंदिरको बार बार तोडा है. हिन्दुओंने उसको बार बार बनाया है. तो अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका धर्म बनता है कि वे पूनर्स्थापित सोमनाथ मंदिरको भी ध्वस्त करें.

देशको तो तैमुर, महम्मद गझनवी, महम्मद घोरी, अल्लौदीन खीलजी, आदि मुसलमानोंने लूटा था. अंग्रेजोने भी लूटा था. नहेरुवीयन कोंग्रेस ६० वर्षों तक लूटती ही रही है, किन्तु नहेरुवीयन कोंग्रेसने अभीतक सोमनाथ मंदिर तोडा नहीं है. तो अब नहेरुवीयन कोंग्रेस वह भी तोडके बता दें कि वह अल्पसंख्यकोंके प्रति कितनी प्रतिबद्ध है.

शिरीष मोहनलाल दवे

 

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके शासनकी परिभाषा है आतंकवाद और हत्याओंकी शृंखला

IMPOSITION OF EMERGENCY

साभार आर के लक्ष्मणका कटाक्ष चित्र

जून मास वैसे तो नहेरुवीयनोंकी और उनके पक्षकी निम्नस्तरीय और आततायी मानसिकताको याद करनेका समय है. सन्१९७५में नहेरुवीयन कोंग्रेसकी यह मानसिकता नग्न बनकर प्रत्यक्ष आयी. २५मार्च का दिन भारतके इतिहाससे, नष्ट होनेवाली कालीमाका जन्म दिन है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके काले करतूतोंकी  जितनी ही भर्त्सना करो, कम ही है. यह कलंक एक वज्रलेप है.

आपातकाल १९९५ से १९७७.

आप कहोगे कि यह तो भूतकालकी वार्ता है. आज इसका क्या संदर्भ है? आज इसका क्या प्रास्तुत्य है?

इसका उत्तर है

यह नहेरुवीयन कोंग्रेस आज भी जीवित है. वह प्रभावशाली है. उसके पास अकल्पनीय मात्रामें धन है. अधिकतर समाचार माध्यम उसके पक्षमें है. इस पक्षकी और इस पक्षके नेताओंकी मानसिकतामें कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया है. याद करो. १९७७में हार कर यही नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता पर आयी थी.  

कलंकोसे भरपूर नहेरु शासनः

१९६२ के युद्ध में हुई भारतकी घोर पराजयके कारण, नहेरुने मन बना लिया था. स्वयंके सिंहासन रक्षा तो उन्होंने करली. किन्तु वह पर्याप्त नहीं है.

नहेरुने अपने १९४७से १९६२के कार्यकालमें अनेकानेक कलंकात्मक कार्य किये थे. इतिहास उसको क्षमा करनेवाला नहीं था.

कौभाण्डोंकी यदि उपेक्षा करें, तो भी, ऐसी कई घटनाएं भूगर्भमें थी कि जिनसे, नहेरुका नाम निरपेक्षतासे लज्जास्पदोंकी सूचीमें आजाना निश्चित था.

सुभाषविवाद, चीनकी विस्तारवादी नीति, सीमा सुरक्षाकी उपेक्षा, सीमा सुरक्षा सैनिको सुसज्ज करनेके विषयोंकी  अवहेलना, व्यंढ समाजादवाद, दंभी धर्म निरपेक्षता और स्वकेन्द्री नीति के कारण नहेरुको अपयश मिलनेवाला था.

नहेरुने क्या विचारा?

यदि कुछ दशकों पर्यंत उसकी संतान इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री बन जाय, तो नहेरुके काले कारनामों पर पर्दा पड सकता था. इस हेतुसे नहेरुने चीनके आक्रमण के पश्चात अपने पक्षके प्रतिस्पर्धीयोंको सत्तासे विमुख रखनेकी व्यूह रचाना बनायी. कुछजैसे थे वादीयोंका मंडल नहेरुने बनाया. नहेरुने उनको समझाया. नहेरुने अपनी मृत्यु शैयासे इन जैसे थे वादीयोंसे वचन लिया कि वे इन्दिराको ही प्रधान मंत्री बनायेंगे. येजैसे थे वादीयोंकासमूहसीन्डीकेटनामसे ख्यात था.

नहेरुवीयन फरजंद, जो बिना किसी योग्यता, केवल नहेरुकी फरजंद होनेके नाते, “जैसे थे वादीयोंकी कृपासे १९६६में प्रधान मंत्री बन गयी थी. उस समय कई सारे वरिष्ठ और कार्य कुशल नेता थे. वे प्रधान मंत्री पदके लिये योग्य भी थे और उत्सुक भी थे. इनमें गुलजारीलाल नंदा और मोरारजी देसाई मुख्य थे.

समाचार माध्यम को नहेरु पसंद थे. क्यों कि स्वातंत्र्य संग्राममें वे एक प्रमुखवस्त्र परिधान और प्रदर्शन शैलीके  युवामूर्ति” (आईकोन) थे. समृद्ध व्यक्तियोंको आम कोंगी नेताओंकी सादगीवाली मानसिकता स्विकृत नहीं थी. समाचार माध्यमने नहेरुकी सभी क्षतियां गोपित रक्खी थी. समाचार माध्यम, नहेरुके लिये, शाश्वतअहो रुपं अहो ध्वनिकिया करता था, जैसे कि आज सोनिया और राहुलकी प्रशंसा किया करता है.

इन्दिरा गांधी एक सामान्य कक्षाकी औरत थी.

इन्दिरा गांधीको सत्ता मिल गई. उसको सहायकगण भी मिल या. इनमें साम्यवादी और कुछ नीतिभ्रष्ट युवा भी थे. नहेरुवीयनोंका गुरु था रुस. गुरु साम्यवादी था. साम्यवादी नेता कपट नीतिमें निपूण होते है. विरोधीयोंमें भेद कैसे उत्पन्न करना, अफवाह कैसे प्रसारित करना, जनसमुदायको विचारोंसे पथभ्रष्ट कैसे करना, निर्धनोंको निर्धन ही कैसे रखना, गुप्तचरोंसे विरोधीयोंके विषयमें कैसे विवाद उत्पन्न करना इन सर्व परिबलोंका उपयोग कैसे करना इस विषय पर रुस, नहेरुवीयनोंको पर्याप्त सहयोग करता रहा.

किन्तु रुसको भारतकी जन संस्कृतिका परिपूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता था. इस लिये १९७३ के पश्चातकालमें इन्दिराको सर्व क्षेत्रीय विफलता मिलने लगी. वह अपने पिताकी तरह आपखुद भी थी. दोनों संसदोंमे निरपेक्ष बहुमत और अधिकतम राज्योंमें अपने खुदने प्रस्थापित मुख्य मंत्री होते हुए भी, इन्दिराको सर्वक्षेत्रीय विफलता मिलीसर्व क्षेत्रीय विफलताके कारण समाचार माध्यम उसके हाथसे जा सकते थे. इसका प्रारंभ हो गया था. जन आंदोलनका भी प्रारंभ हो गया था. नियमका शासन मृतप्राय हो रहा था. यदि इन्दिराके हाथसे सत्ता गई तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी मृत्यु निश्चित थी. तीन कार्य अतिआवश्यक थे. विरोधीयोंकी प्रवृत्तियों पर संपूर्ण प्रतिबंध, समाचार माध्यम पर संपूर्ण नियंत्रण और धनप्राप्ति.

भारतके संविधानमें आपात्कालका प्रावधान कैसे हुआ था?

१८५७के जनविद्रोहको असफल करने के पश्चात अंग्रेज शासनने भारतकी आपराधिक संहितामें संशोधन किया. नागरिक अधिकारोंको स्थगित करना और उस अंतर्गत न्यायिक प्रक्रियाको निलंबित करना. इस प्रकार अंग्रेज शासनने, भारतमें आपातकाल घोषित करनेका प्रावधान रक्खा था.

आपातकालमें ऐसे प्रावधानोंसे क्या क्या हो सकता था?

भारतके मानव अधिकारोंको विलंबित किया जा सकता था.

शासन, किसी भी व्यक्तिको गिरफ्तार कर सकती थी.

गिरफ्तार करनेके समय और बादमें भी, गिरफ्तार करनेका आधार बताना आवश्यक नहीं है.

गिरफ्तार व्यक्तिको सरकार अनियतकाल पर्यंत कारावासमें रख सकती है.

गिरफ्तार की हुई व्यक्तिपर न्यायिक कार्यवाही करना अनिवार्य नहीं है.

व्यक्तियोंके संविधानीय अधिकारोंको विलंबित किया जाता है. तात्पर्य यह है कि कोई समूह बना नहीं सकते, चर्चा नहीं कर सकते. प्रवचन नहीं कर सकते. यदि ऐसा करना है तो शासनसे अनुमति लेनी पडेगी. शासन अपना प्रतिनिधि भेजेगा और उसकी उपस्थितिमें संवाद हो सकेगा.

समाचार माध्यम शासनके विरुद्ध नहीं लिख सकते, यत्किंचित भी करना है उसके लिये शासनकी अनुमति लेना अनिवार्य था.

इन्दिराने गणतंत्रकी हत्या क्यों कि?

१२ जुन १९७५ को नहेरुवीयन कोंग्रेसकी लज्जास्पद पराजय हुई. यह वही नहेरुवीयन कोंग्रेसथी जिसके पास ३ साल पहेले किये गये चूनावमें १८३ मेंसे १४० बैठकें जित गयी थीं.

१३ जुनको ईलाहाबाद उच्च न्यायालयने ईन्दिरा गांधीका चूनाव रद किया. इतना ही नहीं उसको संसद सदस्यके पदके लिये सालके लिये अयोग्य घोषित किया. यदि वह संसद सदस्यता के लिये भी योग्य नहीं रही, तो प्रधान मंत्री पदके लिये भी अयोग्य बन जाती है.

१८ जुनको गुजरातमें जनता मोरचा की सरकार बनी.

बिहारने नारा दिया “गुजरातकी जित हमारी है अब बिहारकी बारी है.

देशव्यापी आंदोलन होने वाला था.

इन्दिरा गांधीने आंतरिक आपातकाल घोषित किया.

नहेरु भी ऐसी परिस्थितिमें ऐसा ही करते. किन्तु वह स्थिति आनेसे पहेले वे चल बसे.

किन्तु आपातकाल की वार्ता करनेसे पहेले हम इस कथांशको अधिगत कर कि, नहेरु इस प्रकार प्रधान मंत्री बने थे?

जब भारतका स्वातंत्र्य निश्चित हुआ तो प्रधान मंत्री किसको बनाना वह प्रश्न सामने आया.

नहेरु बडे नेता अवश्य थे किन्तु सबसे बडे नेता नहीं थे.

उस समय भारतमें कोंग्रेस पक्षका संगठन व्यापक था. कन्याकुमारीसे लदाख और बलुचिस्तानसे अरुणाचल तक कोंग्रेस पक्ष फैला हुआ था. प्रत्येक ग्राम, नगर, तहेसील, जिला और प्रांतमें कोंग्रेसकी समितियां थी. हरेक प्रांतका संचालन प्रांतीय समिति करती थी. प्रधान मंत्रीके पदके लिये प्रधान मंत्री पदके लिये सुझाव मंगवाये गये थे. एक भी समितिने जवाहरलाल नहेरुका सुझाव नहीं दिया.

नहेरुने अपना आवेदन पत्र दिया था. महात्मा गांधीने नहेरुको बुलया. उनको कहा कि आपका नामका सुझाव एक भी प्रांतीय समितिने नहीं भेजा है. इससे यह निष्पन्न होता था कि, नहेरु नंबर वन से अतिदूर थे. नहेरु यदि लोकतंत्रमें श्रद्धा रखते होते तो उनको अपना आवेदन पत्र वापस लेना अनिवार्य था. किन्तु नहेरु लोक तंत्र में मानते ही नहीं थे. लोकतंत्रकी गाथा करना, केवल उनकी व्यूह रचना का भाग था.

नहेरुको प्रारंभसे ही अवगत था कि, जनतामें वे सर्व स्विकार्य नहीं थे. युवावर्गमें भी उनका क्रम सुभाषसे पीछे था. इस लिये वे १९३९के कोंग्रेसके प्रमुख पदके चूनावमें सुभाषके सामने पदके लिये आवेदनपत्र नहीं भरा. सुभाष के कोंग्रेसके छोडनेके बाद भी लोकप्रियतामें कई नेता नहेरुसे आगे थे. इस कारणसे नहेरुने एक समाजवादी गुट कंग्रेसमें ही बना दिया था. लेकिन सामान्य कोंग्रेसीको तथा अन्य वरिष्ठ नेताओंको तथा कथित समाजवादमें रुचि नहीं थी. इस लिये कंग्रेसके संगठन पर नहेरुका इतना प्रभाव नहीं था कि वे प्रधानमंत्री बन सके.

नहेरुने अपनी व्यूह रचना मनमें रक्खी थी. उन्होंने अपना उत्पात मूल्यको (न्युसन्स वेल्युको) कार्यरत करने का निश्चय किया. नहेरुने कंग्रेसका विभाजन करने का विचार किया. कंग्रेसके अंदर उनका समाजवादी गुट तो था ही. उतना ही नहीं कोंग्रेसके बाहर भी एक समाजवादी पक्ष था. यदि आवश्यकता पडे तो साम्यवादी पक्ष कि सहायता ली जा सकती थी. इन सबको मिलाके एक प्रभावशाली पक्ष बन सकता था.

महात्मा गांधीने नहेरुको प्रज्ञापित किया. प्रधान मंत्रीके पदके लिये एक भी प्रांतीय समितिने आपके (नहेरुके) नामका सुझाव नहीं दिया है. इस पर नहेरुकी क्या प्रतिक्रिया थी? नहेरुको क्या करना योग्य था? तब नहेरुको अपना आवेदन पत्र वापस ले लेना चाहिये था. किन्तु अपना आवेदन पत्र वापस लेनेके स्थान पर, नहेरु खिन्नतायुक्त अन्यमनस्क मूंह बनाके चल दिये.

गांधीजीको विश्वास हो गया कि नहेरु कोई पराक्रम करनेवाले है. यह पराक्रम था कोंग्रेसका विभाजन करनेका. उस समय भारतके सामने अन्य कई समस्याएं थीं, जिनमें भारतको अविभाजित रखना मुख्य था. कई राजा स्वतंत्र रुपमें रहेना चाहते थे. द्रविडीस्तान, दलितीस्तान, सिखीस्तान की मांगे भी हो रही थी. यदि उसी समय कोंग्रेसका विभाजन हो जाय तो कोंग्रेस निर्बल हो जाय और देशकी एकता के लिये एक बडा संकट पैदा हो जाय. गांधीजीको अवगत था कि, यदि पाकिस्तान भारतसे भीन्न बनने के अतिरिक्त,  भारत ज्यादा विभाजित होनेसे बचाना ही प्राथमिकता होनी आवश्यक है. संविधान आनेके बाद, चूनावमें तो नहेरुको सरलतासे प्रभावहीन किया जा सकता है. महात्मा गांधीने सरदार पटेलको मना लिया और वचन ले लिया कि वे देशके हितमें सहायता करेंगे और कोंग्रेसको विभाजित नहीं होने देंगे. सरदार पटेल ने वचन दिया.

इस पार्श्व भूमिकामें नहेरु प्रधान मंत्री बने.

नहेरु प्रधान मंत्री बन गये तो, तत्पश्चात उन्होंने अपने एक एक करके सभीको विरोधीयोंको कोंग्रेस छोडने पर निरुपाय किया. जब तक यह लोकतंत्र, स्वयंके लिये वास्तविक रुपमें आपत्तिजनक नहीं बना तत्पर्यंत नहेरुने  लोकतंत्रको आनंदप्रमोदके स्वरुपमें चालु रक्खा,. जब भी लोकतंत्र आपत्तिजनक बना तब उन्होने ऐसी व्युहरचनाएं बनाई जो लोकतंत्रके सिद्धांतोंसे विरुद्ध थी और अशुद्ध भी थी.

इन्दिरा गांधी, नहेरुकी तरह व्युह रचनामें और मानवव्यवहारमें निपूण नहीं थी. इन्दिराको अपने पद पर लगे रहेने के लिये कंग्रेसको तोडना पडा. और १९७५में अपने पद पर लगे रहेने के लिये मानव अधिकारों पर और संविधानीय अधिकारों पर प्रहार करना पडा.

आपतकाल घोषित करनेसे क्या हुआ?

हजारों लोग कारावासमें बंद हुए. उनके कुटूंबीजनोंको या तो उनके मित्रोंने संम्हाला यातो उनको अति कठिन परिस्थितियोंसे पसार होना पडा. अनेक लोग रोगग्रस्त भी हुए.

नागरिक अधिकारोंकी सुरक्षाके लिये न्यायालय अर्थ हीन बना.

सरकारी गुप्तचर संस्थासे लोग भयग्रस्त हुए.

इतना ही नहीं सुरक्षा कर्मचारी किसी भी व्यवसाय करने वालेको भय दिखाने लगा कि तुम यद्वा तद्वा असामाजिक कार्य कर रहे हो सा मैं शासनमें सूचन कर दुंगा. ऐसा मैं करुं, इस लिये तुम मुझे इतनी रिश्वत दे दो.

सभा प्रदर्शन पर निषेध था. शासनके विषय पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रुपसे भी कुछ नहीं लिख सकते. क्यों कि आपने जो लिखा उसका मनस्वी अर्थघटन शासनका नियंत्रक अधिकारी करेगा.

आपतकालमें अनधिकृत धन राशी का कितना स्थानांतर और हस्तांतरण हुआ इसके लिये एक महाभारत से भी बडा ग्रंथ लिखा जा सकता है. आपातकालके अत्याचार, शासकीय अतिरेक, मानव अधिकारका हनन इन सबके अन्वेषण शाह आयोग द्वारा किया गया. शाह आयोगने, एक मालवाहक भर जाय इतना बडा विवरण दिया है.

इन्दिरा गांधीने यह क्यूं नहीं सोचा कि इससे भारतकी गरिमाको हानि पहूंचेगी?

भारत एक महान देश क्यूं माना जाता है?

क्यों कि उसकी संस्कृति सिर्फ पूरानी ही नहीं किन्तु सुग्रथित, वैभवशाली, वैज्ञानिक विचार धारासे प्लावित, पारदर्शी और लयबद्ध है. भारतमें धर्मका प्रणालिगत अर्थघटन नहीं है. भारतमें विरोधी विचार आवकार्य है. चार्वाक भी है और मधुस्छंदा भी है. ६००० सालसे अधिक प्राचीन वेद आज भी उतने ही मान्य और आदरीणीय है, जितना वे पहेले थे. तत्वज्ञान जो है वह शाश्वत है. और जिवनके सभी घटक प्रणालीयोंमे एक सूत्रित है. यतः भारत विश्वका एक मात्र ऐसा देश है जो अतिप्राचीन समयसे विभीन्नविघटित, प्रकिर्ण, भौगोलिकतामें अति विस्तीर्ण होने पर भी एक देशके नामसे प्रख्यात है. इसका उल्लेख वेद पुराणोंमें भी विस्तारसे है. उसने अपनी संस्कृतिको जीवित रक्खा.

ऐसे भारतने १५० सालसे चलनेवाले एक सुसज्ज, सुग्रथित और नियमसे चलनेवाले विदेशी शासनका, अहिंसाके शस्त्रसे अंत किया. प्राचीन कालसे अर्वाचीन काल तक विश्वमें कहीं भी ऐसा मुक्तिसंग्राम नहीं हुआ. अहिसा आधारित संग्राम बलिदान देनेमें पीछे नहीं है. अहिंसा में भीरुता नहीं किन्तु शाश्वत निडरता रहती है. यह बात भारतने ही सिद्ध की. इस भारतके अहिंसक स्वातंत्र्य संग्रामसे अन्य कई देशोंने बोध लिया.

ऐसे देशकी प्रतिष्ठाको इन्दिरा गांधीने सिर्फ अपने स्वार्थ के लिये धूलमें मिला दीया.

जो जगजिवनराम अंग्रेजोंकी गोलीसे नहीं डरते थे वे कारावास और अपमृत्युसे डरने लगे. जो यशवंतराव चवाण स्वयंको शिवाजी, प्रदर्शित करते थे वे भी कारावाससे डरने लगे.

गुरुता लघुता पुरुषकी आश्रयवस ते होय, वृन्दमें करि विंध्य सो, दर्पनमें लघु होय.

इसका अर्थ है, व्यक्तिकी उच्चता व्यक्ति जिसके साथ है उसके पर अवलंबित है. यदि व्यक्ति निम्न कोटीके साथ है तो आप भी निम्न कोटीके बन जाता है.

अहो सज्ज संसर्ग कस्योन्नति कारक, पुष्पमालाप्रसंगेन सुत्रं शिरसि धार्यते.

यदि व्यक्ति उच्च कोटीके संसर्गमें रहेता है तो उसकी कोटी भी उन्नत बन जाती है. जैसे पुष्पमाला मस्तिष्क  पर चढती है तो साथमें सुत्र (धागा) भी मस्तिष्क पर चढ जाता है.

इन्दिरा गांधीने पातकालके विषय पर अपने पक्षमें यह कहा कि, वह आवश्यक था. उसने कई कारण भी दिये. हम उसकी चर्चा नहीं करेंगे.

किन्तु जब स्वयं इन्दिरा चूनावमें ५५००० मतोंसे हार गयी तो उसने पातकालका अंत घोषित कर दिया. उसने आपातकालके अंतर्गत ही चूनाव करवाया ताकि जनतामें भय कायम रहे.

इसका अर्थ तो यही हुआ कि आपातकालका कारण वह स्वयं थी. यदि शासकीय व्यवस्था अस्तव्यस्त थी तो उसकी स्वयंकी पराजयकी दुसरी क्षणसे वह व्यवस्था स्वस्थ तो नहीं हो जा सकती?

यदि इन्दिराकी दृष्टिमें और नीतिमें आपातकाल आवश्यक था और यदि वह स्वयंसे प्रस्थापित सिद्धांतोमें सत्यकी अनुभूति करती थी, स्वयंके निर्णयोंमें दृढताकी आग्रही थी, तो उसको स्वयंकी पराजय के पश्चात भी आपातकाल को चालु ही रखना चाहिये था. आपातकाल चालु रखना या उसका अंत करना, अनुगामी शासक पर छोड देना चाहिये था. किन्तु उसने ऐसा नहीं किया क्यों कि वह भीरु थी और अनुगामी सरकारसे भयभीत थी. वह भीरु थी उसका दुसरा उदाहरण यह था कि उसको शाह आयोग के प्रत्यक्ष स्वयं को प्रस्तूत करने कि निर्भयता नहीं दिखायी. यदि इन्दिरा स्वयंको प्रस्तूत करती तो …?

नहेरु और इन्दिरामें कोई वास्तविक भीन्नता नहीं थी.

दोनों नीतिहीन थे. नहेरु अपनी व्यूहरचनासे और उत्पात मूल्यसे प्रधान मंत्री बने और छल कपटवाली कूटनीतिसे प्रधान मंत्री बने रहे. इन्दिरा गांधी, अपने पिताके कारण प्रधानमंत्री बनी. फिर नीति हीनतासे और जनतंत्र को अस्तव्यस्त करके वह प्रधान मंत्रीके पद पर चालु रही.

इन्दिरा गांधी, जो स्वयं, इतिहासके दस्तावेजों पर सत्तालोलुपथी, और अपनी सत्ताकी रक्षाके लिये सारे देशको कारावास ग्रस्त करती थी, वह विपक्षके नेताओंको जो कारावासमें बंद थे उनको सत्ता लालची कहा करती थी. वह खुद, विपक्षके नेतांओंके प्रदर्शनको, शासनमें विघ्नकारी घोषित कहा करती थी, उसके स्वयं के नेतागण, चूं कि नहेरुवीयन कोंग्रेस गुजरातमें विपक्षमें था, सातत्यतासे बाबुभाई जशभाई पटेल की जनता पार्टीके शासनकी विरुद्ध प्रदर्शन, धरणा, व्याख्यान, निवेदन, आवेदन और गालीप्रदान किया करते थे. और जनता पार्टी के विरुद्ध बोलनेमें कोई निषेध नहीं था. आपातकालमें निषेध था तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेसके विरुद्धमें नहीं बोलनेका.

INDIRA WAS A FRAUD

सौजन्य आरके लक्ष्मण का कटाक्ष चित्र

आतंकवाद और कपटपूर्ण हत्याः

यदि कोई कहे कि नहेरु और इन्दिरा आतंक वादी थे और कपटयुक्त हत्या (फेक एन्काउन्टर) करनेवाले थे तो?

खुदको क्षति करके अन्यका भला करो यह सज्जनका लक्षण है.

अपने विरोधीको नष्ट करके स्वयं को और अपने मित्रको लाभ करो उसको आप क्या कहोगे?

श्यामप्रसाद मुखर्जीका कश्मिरमें क्या हुआ? शेख अब्दुल्ला किसका मित्र था? शेख अब्दुल्लाके लिये नहेरुने क्या क्या नहीं किया?

समाजवादके नाम पर नहेरुने चीन से स्नेह किया. सीमा पर सैन्य सुसज्ज नहीं रखा. जब चीनने खुल्ला क्रमण किया तो सैन्यके पास कपडे नहीं थे, जूते नहीं थे, शस्त्र नहीं थे…. और ऐसे जवानोंको कहा कि जाओ युद्ध करो. इसको आप क्या कहोगे? आतंक कहोगे या फेक एनकाउन्टर?

१९७१में भारतीय सैन्य वीरतासे लडा. कश्मिरका जो भूभाग पाकिस्तानके पास था उसमेंसे भी, कुछ भाग हमारे सैन्यने ले लिया. हमारे सैन्यने ९२००० दुश्मनके सैनिकोंको गिरफ्तार भी किया. पूर्वपाकिस्तानको स्वतंत्र करवाया. हमारे कई सैनिकोंने बलिदान भी दिया. और भारतकी इस विजयका पूरा श्रेय इन्दिराने लिया.

इस युद्धके पूर्व इन्दिराने घोषणा की थी इस समय हम जिता हुआ भू भाग वापस नहीं देंगे, दुश्मनसे हानि वसुलीका दंड करेंगे. ९२००० पाक सैनिकोकों एक वर्ष तक खिलाया पिलाया उसका मूल्य वसुल करेंगे, एक कोटीसे ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठोंको वापस भेजेंगे, इनका भी हानिवसुलीका दंड देंगे. एक परिपूर्ण ऐसी संधि करेंगे कि पाकिस्तान कभी हमसे आंख उंची करके देख सके.

किन्तु इन्दिराने, सिमला संधिके अंतर्गत परिपूर्ण विजयको घोर पराजय में परिवर्तित कर दिया. भारतकोविशाल शून्य” प्राप्त हुआ. पाकिस्तानका जो भी भूभाग पराभूत हुआ था वह सब उसको मिल गया. कश्मिरका जो भूभाग पाकिस्तानके पास था उसमेंसे भी कुछ भाग हमारे सैन्यने ले लिया वह भी इन्दिराने पाकिस्तानको दे दिया. इन्दिराने ९२००० पाकिस्तानी सैनिकोंको मुक्त कर दिया. पाकिस्तान ने हमारे ४०० सैनिकोंको मुक्त नहीं किया. कोई बांग्लादेशी वापस नहीं भेजा. और अधिक बांग्लादेशी घुसखोर आये. इतना ही नहीं बांग्लादेशने हिन्दुओंको भयभित करके बांग्लादेश त्यागने पर विवश किया.

आप भारतीय सैनिकोंके बलिदानको क्या कहोगे? क्या उनके बलिदान का ध्येय यह था कि अपना देश पराजित देशके सामने नतमस्तक हो जाय? यदि उनका ध्येय यह नहीं था तो इन भारतीय सैनिकोंकी मृत्युको आप फेक एनकाउन्टर नहीं कहोगे क्या कहोगे?

जय प्रकाश नारायण की हत्या

इन्दिरा गांधीने आपतकाल अंतर्गत महात्मा गांधीके अंतेवासी जयप्रकाश नारायणको कारावासमें, चिक्तित्सा की और उनको मरणासन्न कर दिया. यह एक हत्या ही थी.

इन्दिरा गांधीने युनीयन कार्बाईडका संविद अनुबंध (कोन्ट्राक्ट डील) किया, किन्तु वह क्षतिपूर्ण था. आकस्मिक विपत्ति का प्रावधान इतना क्षतिपूर्ण था कि भोपालके गेस पीडितोंका जीवन अस्तव्यस्त हो गया. इतना ही नहीं, जो युनीयन कार्बाईडका प्रमुख एन्डरसन था, उनको भाग जानेमें मुख्य मंत्री और कोंगी फरजंद राजीव गांधीने मदद की.

इन निर्दोंषोंकी पायमाली को आप क्या कहोगे? यह आतंक नहीं है तो और क्या है?

लिखित और अलिखित, घोषित और अघोषित आपतकाल केवल और केवल नहेरुवीयनोंने ही लगाया था और लगाते रहे है. रामलीला मैदान मे रावण लीला जैसे अनेका अनेक उदाहरण आपको मिल सकते है.

क्या आपातकालके समय अडवाणी शिशु थे?

नहेरुवीयन शासनके समय अडवाणी पेराम्बुलेटर (बालगाडी) ले के नहीं चलते थे. उस समय अडवाणी ५०+ के वयस्क थे. १९७७१९७९ के अंतर्गत अडवाणी उच्च कक्षाके मंत्री भी थे. उस समय भविष्यमें कोई सत्तालोलुप प्रधान मंत्री आपातकाल घिषित करके मानव अधिकारोंको निर्मूलन कर सके, इस विषय पर पर्याप्त चर्चा विचारणाके बाद एक विधेयक बनाया था और उसको संसदसे अनुमोदित करवाया था. उस समय तो अडवाणी ने स्वयंकी तरफसे प्रस्तूत विधेयके प्रारुप लेखमें रुप परिवर्तनके लिये कोई संशोधन प्रस्तूत नहीं किया था. क्या वे कोई शुभ समय की प्रतिक्षामें थे?

प्रतिक्षा करो … चौधरी चरण सिंघका आत्मा .

क्रमशः

शिरीष मोहनलाल दवे.

 टेग्झः

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Nehruvian withdraws whole bank

Nehruvian withdraws whole bank

ईन्टरनेट वेबसाईट और सोसीयल नेट वर्कींग पर सरकार क्या कर सकती है और क्या करेगी?

सरकार और वह भी नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकार और उसके सहयोगी पक्ष कुछ भी कर सकते है.

आप कहेंगे कि सहयोगी पक्ष क्यों ऐसे काले और जनतंत्र के खिलाफ कार्यवाहीमें कोंग्रेस को समर्थन देगा? तो जवाब है, नहेरुवीयन कोंग्रेसको समर्थन करने वाले तभी उसको समर्थन कर सकते हैं जब उनको नहेरुवीयन कोंग्रेसकी जो आततायी करतूतें इतिहासिके पृष्ठों पर देशके लिये एक कालीमा के रुपमें प्रस्थापित है और उनको ज्ञात भी है तो भी वे यह नहेरुवीय कोंग्रेसका समर्थन करते है, उसका मतलब यही है कि इन पक्षोंको भी ऐसे कर्मोंसे कोई छोछ नहीं है. और आप देख सकते हैं कि मुलायम, माया, ममता करुणा, शरद, लालु, अजितसिंघ और  साम्यवादी जैसे लोंगोका इतिहास और कार्य शैली कैसी है?

मुलायम सिंह वोटबेंक को धर्म के नाम से आगे बढाना चाहते है. मुलायम को मुल्ला मुलायम क्यों कहते थे इसबातके लिये आप कोई भैया जि से ही पूछीये.

मायावतीका संस्कार ईन्दीरा गांधी जैसा है वह सत्ताके लिये कोई भी हद तक जा सकती है.और मायावतीके पास सिद्धांतोका संपूर्ण अभाव है. कल तक वह कहती थी कि “तिलक तराजु और तलवार इसको मारो जूते चार.” अब वह कहती है “ये हाथी नहीं गणेश है” चलो इसको तो हम यह समझकर भूल सकते हैं कि उसको लगा कि सबको साथ लेके चलना है. उसको भी ईन्दीरा गांधी की तरह अपने गुरु-पूर्वजोंकी  प्रतिमाएं स्थापित करके इतिहासमें जनता के पैसोंसे अमर होना है. बाजपाई सरकारको क्षुल्लक बातोंसे अयोग्य दबाव लाके समर्थन वापस लेनेकी बात उठाती थी. मायावतीके दोहरे मापदंड है. खुदके लिये और अन्य लोगोंके लिये.

ममता बेनर्जीने बाजपाई सरकारको समर्थन दिया था. लेकिन उसका वर्तन तो मायावतीसे भी बढकर था. जिसके तडमें लड्डु उसके तडमें हम. कहा जाता है कि उसने माओवादीयोंके साथ और नक्षलवादीयोंके साथ प्रच्छन्न समर्थन गत विधान सभा चूनावमें लिया था. जो लोग बाजपायी को समर्थन करे और जब बीजेपी को बहुमत न मिले तो उसके विरोंधी और लोकशाही मूल्योंका विद्धंश के लिये कुख्यात पार्टी (नहेरुवीयन कोंग्रेस) का समर्थन करें उसका भला कैसे विश्वास किया जा सकता है. जो व्यक्ति सर्वोदय नेता लोकमान्य जयप्रकाश नारायणकी जीप पर खडी होकर नृत्य करती है, और समय आने पर उसी जयप्रकाश नारायण को मृत्युके मूखमें ढकेलने वाली नहेरुवीयन कोंग्रेस सरकारका भी समर्थन कर सकती है, उसके उपर तो दिमागकी बिमारी वाले विश्वास कर सकते है.

करुणानीधिका किस्सा तो जग प्रसिद्ध है.और ईसके वर्णन की कोई आवश्यकता नहीं है.

शरद पवार वैसे तो पहेले कोंग्रेस (ओ) में थे. फिर यशवंतराव चवाण के साथ नहेरुवीय कोंग्रेसमें गये. कटोकटी (इमरजेन्सी) मे वह नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी रहे. १९७७में वे अलग हुए. फिर पता नहीं कितने दलबदल किये. कहा जाता है कि इनके बारेमें दाउदसे अच्छा कोई नहीं जानता. अगर आप के पास फर्जी करेन्सी नोट है और अगर यह बात सिद्ध हो गयी तो वह करेन्सी नोटकी किमत शून्य हो जाती है. अरबों रुपये के फर्जी स्टेम्प पेपर

बने थे और वे बिल्डरोंको और अन्योंको वितरित हुए थे. सरकार पने रिकोर्डसे पता लगवा सकती है कि, ये फर्जी स्टेम्प पेपर कहां कहां उपयोगमें आये. इतनी तो गुंजाइश तो सरकारमें होनी ही चाहिये. लेकिन ऐसा क्यों नहीं होता है? फर्जी स्टेम्प पेपरका मूल्य शून्य क्यों नहीं बनजाता है? यह सब कमाल किसकी है?

लालुजिने अपनी सरकार एसी चलाई जो ढोरोंकी खास भी ढंगसे वितरण न कर पायी. वास्तवमें सरकारी अफसरोंका और खासकरके उत्तरभारतमें तो बांये हाथकी सरकारी अफसरोंकी कमाई एक विशिष्ठ योग्यता मानी जाती है. और जब ये सरकारी अफसरोंको पता चलता है कि उनका मंत्रीवर्य भी अपन जैसा ही है तब तो उनकी सीमा ओर विस्तृत हो जाती है.

अजितसिंघके पिताश्री चरणसिंहको इन्दिरागांधीने विश्वास दिलाया था कि उसकी पार्टी चरण सिंह को सहाकार करेगी और दोनोंने मिलकर मोरारजी देसाई की जनतापार्टीकी सरकारको लघुमतिमें लादी थी. बादमें इन्दीरा गांधीने चरणसिंहका विश्वासघात करके उनको सहाकर नहीं दिया था. और चरण सिंहको मूंहकी खानी पडी थी. तो भी उनका यह पूत्र अजितसिंह इस विश्वास घातको भूल कर सिर्फ सत्तामें भागके लिये उसी ईन्दीराई नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधनमें है. इससे ज्यादा पिताजीकी नालेशी क्या हो सकती है? और ऐसे “प्रहारजनिता व्यथाको” गर्दभकी तरह भूल जाने वालेका क्या विश्वास कर सकते है?

अगर नहेरु की पूत्री सीनीयर न होने पर भी भारतकी प्रधानमंत्री बन सकती है तो लालुप्रसाद यादव की पत्नी क्यों मुख्य मंत्री बन न सके? अगर नहेरुवीयन कोंग्रेसके एक प्रधान मंत्री की एक पुत्रवधू कोमन समान मंचपर आके विपक्ष के कोई नेता के साथ चर्चा नहीं कर सकती और समाचार माध्यम पूत्रवधूमें कोइ अपूर्णता और टिकात्मकता देखना नहीं चाहते तो  लालुजिकी पत्नी को भी समान मंचपर गोष्टि करना कैसे जरुरी है? साध्यम इति सिद्धम्‌. समाचारमाध्यमके मालिकोंके लिये और उनके कटार मूर्धन्योंके लिये तो “तेरी बी चूप और मेरी बी चूप हो गई”. मीडीया बिकाउ है इसका इससे उत्कृष्ट उदाहरण क्या हो सकता है?

साम्यवादीयोंका कोई देश और धर्म नहीं होता. जनताको उल्लु बनानेके लिये उसको आघात देते रहो और जनताको गुमराह करते करते अपना शासन करते रहो. पश्चिम बंगालमें तीन दसक तक साम्यवादी शासन रहा. क्या पश्चिम बंगालमेंसे गरीबी हट गई? क्यां वहां पर आदमीसे खिंचीजानेवाली रीक्षाके स्थान पर सीएनजीसे चलने वाली रीक्षा आ गई या दी गई? हरि हरि करो. ऐसा कुछ हुआ नहीं. सीएनजी क्या !! सायकल रीक्षा भी नहीं आयी.

अहमदाबादमें एक सप्ताहमें ही नरेन्द्र मोदीने सभी पेट्रोलकी रीक्षाओंको सीएनजी रीक्षामें परिवर्तित करदीया था. अहमदाबादमें १९५१के बाद सायकल रीक्षा ही खतम हो गई. १९५२से अहमदाबादमें ऑटोरीक्षा ही है. जो नरेन्द्रमोदीने एक सप्ताहमें किया वह नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादी पक्ष साठ सालमें भी नहीं कर पाये.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और साम्यवादीयोंमें क्या फर्क है? खास कोई नहीं. जो निघृष्ट कार्य नहेरुवीयन कोंग्रेस खुदके उपर आपत्ति आने पर विरोधीयों और जनताके उपर करती है वह कार्य साम्यवादी लोग हर हालतमें करते है.

Media wants to make a paper tigress

Media wants to make a paper tigress

कोंग्रेसके उपर आपत्ति आयी तो पैसे के लिये बेंकोका राष्ट्रीयकरण किया, नैपूण्य के स्थानपर युनीयनबाजी को प्रोत्साहन दिया. अन्याय और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने वाले विरोधियोंको अनियत कालके लिये कारावासमें डालदिया, समाचार माध्यमोंपर सेन्सरशीप लगा दी, यहां तक कि, अगर कोई केसमें उच्च न्यायालयमें सरकारकी पराजय हूई तो ऐसे सरकारी पराजयके समाचार पर भी सेन्सरशीप रही. अपनवालोंको लूटका अलिखित स्वातंत्र्य दे दिया. ऐसे तो कई कूकर्म इमर्जेन्सीमें हूए. यह साम्यवादी पक्ष तो चाहता था कि, इमर्जेन्सीके अंतर्गत नहेरुवीयन कोंग्रेस साम्यवादी पक्षमें विलिन हो जाय या तो संपूर्ण साम्यवादी तौर तरिके अपनाके एक नये साम्यवाद स्थापनेकी क्रांतिकारी कदम उठावे. लेकिन साम्यवादी लोग यह समझ नहीं पाये के कि भारतमें लोकशाही विचारधारा और सुसुप्त जनशक्ति असाधारण और गहरी थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपने सर्वोच्च नेताके कारण मूंहकी खानी पडी तो भी यह नहेरुवीयन कोंग्रेस ने कोई शिख नहीं ली. वह आज भी विरोधियोंको येनकेन प्रकारेण फर्जी किस्से बनानेमें व्यस्त रहेती है. और खुदके सच्चे किस्सेके बारेमें मौन रहेती है और समाचारमाध्यम भी इन पर मौन रहे वैसा कारोबार करती है.

VOTE FOR MOMMY

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ऐसे समाचर माध्यमोंको सेन्सरशीपकी जरुरत भी क्या है? पैसे फेंको और जो करवाना हो वह करवा लो, जो लिखवाना हो, वह लिखवा लो, जो कटवाना हो वह कटवालो. जिनको यह नहेरुवीयन कोंग्रेसवाले झुकवाना चाहते हैं वे तो साष्टांग दंडवत प्रणाम करनेके लिये भी तैयार है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस अब क्या कर सकती है? वह विरोधीयों के उपर फर्जी केस बना सकती है. जैसा उसने वी.पी. सिंह के उपर सेन्ट कीट के गैरकानुनी एकाउन्ट केस का किया था.

केजरीवाल, किरन बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव जैसे लोगपर भी सरसव जैसे दोषोंको पहाड जैसे बताके कार्यवाही कर रही है और समाचारपत्रोमें उनको बदनाम करवा रही है.

लेकिन आमजनताकी आवाज जो ईन्टर्नेटके जरिये चल रही है उसको बंद कैसे करें इस समस्या पर नहेरुवीयन कोंग्रेस अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. जनमाहिति अधिकारको तो उसने नष्टप्राय कर दिया है. कैसे? जो भी कोई जनमाहिति अधिकारी होते हैं वे सबके सब तो वही विभागसे संलग्न होते है. जो हमेशा विलंब नीति अपनाके बाद कोई न कोई बहाना बनाके माहितिको टालनेका प्रयास करते है. जब आप माहिति कमिश्नरके पास पहोंचते है तब कमिश्नरोंकी नियुक्ति पर्याप्त और अपूर्ण होने के कारण केसोंका ढेर पडा होता है. जैसे न्यायमें देरी वह न्याय का इन्कार के बराबर है, वैसे भी माहिति देनेमें अपार विलंब भी माहिति न देनेके बराबर ही हो जाता है.

मैं दाउदका नमक खात हूं

मैं दाउदका नमक खात हूं

ऐसा ही अब जनसामान्य जो चर्चाप्रिय है और भ्रष्टाचारके विरुद्धमें अपना स्वर उंचा करते है, और वह भी ईन्टर्नेट माध्यम के द्वारा तो यह नहेरुवंशी कोंग्रेस इनलोंगोंके उपर आक्रमण के लिये तैयार है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस कैसे तैयार है?

जो भी भारतीय स्थानिक वेबसाईट है वे सब तो समाचार माध्यमोंकी तरह व्यंढ ही है.

इनके लिये व्यंढ शब्दका उपयोग करना भी व्यंढ लोगोंका अपमान करनेके बराबर है. कारण यह है कि व्यंढ लोग तो  सिर्फ प्रजननके लिये ही व्यंढ है. इन लोगोंमे शूरविरता और देशप्रेमकी कमी होना जरुरी नहीं है.

लेकिन ये भारतस्थ वेबसाइट वाले तो डरपोक और बीना प्रतिकार किये आत्मसमर्पण करनेमें प्रथमकोटीके है. ये लोग समाचार माध्यमोसे कोइ अलग मनोदशा रखनेवाले नहीं है.

तो यह वेब साईट पर आक्रमण करवाना कौन चाहता है? कौन करवायेगा? और कैसे करवायेगा?

नहेरुवंशवादी कोंग्रेसको वेबसाईटकी स्वतंत्रता और पसंद नहीं है. क्योंकि वेबसाईट के सदस्य नहेरुवीयन कोंग्रेसके तथा कथित कारनामे पर आपसमें चर्चा करते है और इससे नहेरुवीयन कोंग्रेसकी कमीयां बाहर आती है. नहेरुवीयन कोंग्रेसको अपनी कमीयोंको दूरकरना चाहती नहीं है. क्योंकि अगर दूर करेगी तो देशकी उन्नति हो जायेगी और देशकी उन्नति का मतलब है लोग पढे लिखे और समझदार हो जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसकी असलियतको पहचान जायेंगे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्तासे हटा देंगे. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्तासे हट जायेगी तो जो अन्य सरकार आयेगी वो उसके उपर न्यायिक कार्यवाही करेगी. अगर नयी सरकार, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंपर  न्यायिक कार्यवाही करेगी तो वे सभी नेतागणकी चूनावके लिये योग्यता नष्ट हो जायेगी अन्तमें उनको जेल जाना पडेगा. इतना ही नहीं लेकिन ये नहेरुवीयन फरजंदोने जनताके पैसोंसे जो बनी इमारतें और योजनाओंका नाम खुदके नामसे जोडा है, वे सब हट जायेगा. उनके बूत हट जायेंगे और उनके सभी अव्वल नंबरके नेताओंका नाम दूर्योधन, शकूनी, शिशुपाल, मंथरा, आदिके क्रममें आजायेगा. यह बात तो छोडो लेकिन उनको अपने रक्त-काला धनसे हाथ धोना पडेगा.

Only left hand drive

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इसीलिये नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाईट की स्वतंत्रता पर अपना प्रभाव लाना चाह्ती है. लेकिन इसमें नहेरुवीयन कोंग्रेसको मदद कौन कर सकता है?

नहेरुवीयन कोंग्रेसको उसके साथीपक्ष मदद कर सकते है. क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्षकी मनोवृत्तियां और चरित्र भी नहेरुवीयन कोंग्रेस की मनोवृत्तियां और चरित्रके समकक्ष हि है. अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस चूनावमें हार भी गई तो ये पक्ष नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्योंका रक्षण करनेमें अपना दिलसे योगदान करेंगे क्योंकि नहेरुवीयन कोंग्रेसने भी समय समय पर इन पक्षोंके सदस्योंकी रक्षा की है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस वेबसाइट पर अपना प्रभाव डालने के लिये किसका सहारा लेगी?

नहेरुवीयन कोंग्रेस ये काम पुलीस डीपार्टमेन्टके द्वारा करवायेगी. क्योंकि यह डिपार्टमेन्ट हो एक ऐसा डिपार्टमेन्ट है जो हमेशा गलत काम करनेमें प्रथम क्रम में रहेता है. जो डिपार्टमेन्ट फर्जी एनकाउन्टर करता है वह क्या क्या नहीं कर सकता!!

वह आपके पेजको हैक करसकता है. वह आपके पेजपर कुछभी आपत्ति जनक लिखके आपके पेज को और आपको बदनाम करके आपके पेजको सेन्सर करके उसको नष्ट कर सकता है.

ऐसा अगर न भी करें, तो भी आपके पेज को बेवजह ही नष्ट कर किया जा सकता है. वजह यही बतायेगा कि आपने नहेरुवीयन कोंग्रेसके खिलाब बेबुनियाद लिखा है और इसलिये आपका पेज नष्ट किया गया है. और यह पता लगानेके लिये भी आपको महिनों तक वेबसाईट के साथ लिखावट करनी पडेगी तब कहीं यह वेबसाईटवाला आपको बतायेगा कि पूलिसकी सूचना पर उसने आपका पेज नष्ट किया है. फिर आपको पूलिस-डिपार्टमेन्टसे “जन माहिति अधिकार”का उपयोग करके और उसके बाद न्यायालयमें जाके अपने हक्क के लिये लडना होगा. इसमें आपका कमसे कम एक साल चला जायगा. अगर आपके पास पैसे है तो ऐसे वेबसाईटसे और सरकारसे नुकशान वसुली करवा पायेंगे. लेकिन ऐसा करनेमें आपको सिर्फ यह काम के लिये हि हाथ धोके पीछे पडना पडेगा.

नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्ष चाहतें है कि जनता यथावत ही रहे. सबकुछ यथावत ही रहे ताकि वे लोगभी अपना काम यथावत ही कर सके और अपनी बहत्तर पेढीयोंका उद्धार करसके.

वे यह नहीं चाहते हैं कि आप लोग अपने मित्रोंके साथ माहिति और विचारोंका आदानप्रदान करे भ्रष्टाचार और असत्य के सामने आवाज उठानेके लिये कोई योजना बनावे.

ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके सदस्य खुद कुछभी अनापसनाप बोलसक्ते हैं. उनके उपर कोइ पाबंदी नहीं. उनके पक्षीय महामंत्री बेबुनियाद आरोप लगा सकते है, और सरकारी प्रसार माध्यमभी उसका खुलकर प्रसारण करेंगे. उसमें इस नहेरुवीयन कोंग्रेसको कोई कठिनाई और आपत्ति या बेइमानी दिखाई नहीं देती. लेकिन अगर आप रामराज्यकी बात करेंगे तो उनको आपत्ति होगी और आपका वेबसाईट परका पेज नष्ट होगा.

वैसे तो लोकतंत्रमें आप आपके मित्रोंके साथ कुछभी विचार विनिमय कर सकते है. लेकिन नहेरुवीयन कोंग्रेस एक दंभी, स्वकेन्द्री और आपखुद चरित्र और संस्कार होने के कारण आपके अधिकार पर कोई भी आघात कर सकती है. और ये कमीना पोलीस तंत्र ये नहेरुवीयन कोंग्रेसके आदेशोंका पालन करने के बारेमें दिमागसे अंध है और अगर नहेरुवीयन कोंग्रेस उसको कहेगी कि “हमारे आगे झुको” तो यह पोलीस तंत्र “साष्टांग दंडवत प्रणाम” करने लगेगा. जो खुद भ्रष्ट और नीतिहीन है उसकी करोडराज्जु होती ही नहीं है.

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जिस देशमें गंगा बहेती है

जिस देशमें गंगा बहेती है


वोट की राजनीति करने वालोंको करो अलविदा (एक नुक्कड संवाद रुपी नौटंकी)

वॉटकी राजनीति कौन करता है और कौन करवाता है?

वॉटकी राजनीति नहेरुवीयन कोंग्रेस करवाती है.

नहेरुवीयन कोंग्रेस कौन है?

नहेरुवीयन कोंग्रेस वह है जिसका चूनाव चिन्ह पंजा है

इसको नहेरुवीयन कोंग्रेस क्युं कहेते हो?

क्योंकि जवाहरलाल नहेरुने इस पार्टी को अपनी घरेलु और वंशवादी पार्टी बना ली है.

घरेलु पार्टीका मतलब क्याहै?

घरेलु पार्टीका मतलब है जवाहरलाल मोतीलाल नहेरु के वंशसे संबंधित औलाद ही कोंग्रेस पार्टीका नंबरवन होद्देपर रह सकती है. यह स्थान उसके लिये १०० परसेन्ट आ रक्षित है. और वह ही सर्वेसर्वा रहेगी.

नंबरवन होद्दा और सर्वेसर्वा का मतलब क्या है?

नंबरवन मतलब उसके उपर कोई रहेगा नहीं, वह जो कहेगा वह सबको मानना पडेगा. अगर कोई उपलब्धि आ पडी तो इसका श्रेय इस नंबर वन को ही देना पडेगा. और इतना ही नहीं जो कुछ भी विफलता आयी सामान्यतः तो विफलता ही आतीं हैं तो उन सबकी जिम्मेवारी कोई न कोई नेताको अपने सरपर लेनी पडेगी.

इसका मतलब क्याविफलताकी जिम्मेवारी कैसे ठोकी जायेगी?

नंबर वन यानीकी नहेरुवंशकी तत्कालिन औलाद तय करेगी कि बलीका बकरा किसको बनाया जाय.

वह कैसे?

जैसे कि चीनके सामने हमारी युद्धमें घोर पराजय हुई तो जिम्मेवार कृष्ण मेनन को बनाया गया, पहेली तीन पंचवर्षीय योजना अंतर्गत आर्थिक क्षेत्रमें विफलता हुई तो सीन्डीकेटको जिम्मेवार बनाया गया. स्टेटबेंकमें ६० लाखका गफला हुआ तो नगरवाला को बनाया गया. युनीयन कार्बाईडका गेस कांड हुआ तो एन्डरसन को बनाया और उसके साथ कुछ लेनदेन करके उसको देशके बाहर भगा दिया. शिख और मुस्लिम आतंकवाद के लिये पाकिस्तानको जिम्मेवार बनाया गया. शेर बजारमें गफला हुआ तो हर्शद महेता और नरसिन्ह रावको बनाया गया

लेकिन नरसिंह राव तो प्रधान मंत्री थे ?

हां, लेकिन वे नंबरवन सोनिया गांधीका कहेना नहीं मानते थे और जो उपलब्धियां उन्होने की थी वे सबका श्रेय अपने पर ले रहे थे इसलिये उनको हटाना जरुरी था और कोई कुत्ते को मारना है तो उसको पागल ठहेराना नहेरुवंशके फरजंदोका स्वभाव है.

लेकिन अभी अभी जो कौभान्ड हुए उनका क्या?

देखो कोमनवेल्थ गेम के लिये कलमाडी है. टु-जी कौभान्ड के लिये राजा है. आदर्श टावर के लिये महाराष्ट्र के मंत्री है. महंगाइ के लिये शरद पवार है.

लेकिन शरद पवार को तो कहां हटाया है?

हां, ये बात भी सही है. लेकिन याद रखो जिनको भी हटाये है वे सब ऊच्चतम न्यायालयसे जब डांट पडी तब ही हटाये हैं. जबतक उच्चन्यायालयसे डांट न पडे, चूप रहेनाका और अपनेवालों के गुनाहोंपर कोइ कदम नहीं उठानेका.  

लेकिन इससे तो पंजेकी यानी कि, नहेरुवीयन कोंग्रेसकी आबरु जाती है. इसके बारेमें यह पण्जा क्या करता है? क्या उपाय अजमाता है?

इसके तो अनेक उपाय है इसके पास. मिसालके तौर पर नंबरवनकी गलतीयांको के कारण मिली विफलताओंके लिये विपक्षको यातो विरोधीयों को जिम्मेवार ठहेरानेका  और उसके लिये प्रचार माध्यमोंका सहारा लेनेका. ताकि जनताको लगे कि दोष तो नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्षके नंबरवनका नहीं, लेकिन उसके विरोधीयोंका है.

लेकिन शासककी विफलताओंको विरोधीयोंकी विफलता कैसे प्रस्थापित कर सकते हैं?

प्रसार मध्यमों द्वारा और वितंडावाद पैदा करके ऐसा काम किया जा सकता है.

लेकिन आम जनता तो ऐसी निरक्षर और अनपढ है वह कैसे शब्दोंके जालवाली विवादकी भाषा समझ पायेगी?

पंजेने और उसके साथीयोंने इसलिये तो आमजनताको निरक्षर और अनपढ रखा है. यह व्यायाम तो पंजा अपने शासनके ६० सालसे लगातार करता आया है ताकि आमजनता कुछ समझ न सके. पंजा आम जनता को भ्रममें रखके और उन सब निरक्षर और अनपढ को हमेशा प्रचार माध्यमों द्वारा गुमराह करता है.

लेकिन यह निरक्षर और अनपढमें फर्क क्या है?

निरक्षर वह है जो गरीब होने के कारण स्कुलमें जा नहीं सकता और इसलिये कुछ भी पढनेके काबिल नहीं है. और अनपढ वह है जो गरीब होनेकी वजहसे मझदुरी करनेमें ही व्यस्त रहेता है और इसलिये वह ग्यानकी पुस्तके पढ नहीं सकता. इसलिये वह सच्ची बात समझनेमें कमजोर रहता है, और पंजा उसे उल्लु बना सकता है.

लेकिन जो लोग पढे लिखे है वह इनको सच्ची बात बता देंगे तो?

क्या तुम बुद्धु हो? तुम्हें मालुम नहीं कि ऐसे पढे लिखे और मध्यम वर्गके भी कइ लोग लालची और भ्रष्ट होते है. उनको ये वोटके सौदागर खरीद सकते है. तुम्हे मालुम तो है कि सबसे ज्यादा धनिक पक्ष यह नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष तो है.

लेकिन यह पंजे के साथ मतलब कि नहेरुवंशीय कोंग्रेसके साथ और कौन कौन हैऔर वॉटकी राजनीति क्या है?

नहेरुवंशीय कोंग्रेसने देश उपर निरपेक्ष बहुमतसे तीन दशक तक शासन किया. अगर वह चाहतातो देशमें चमत्कार भी कर सकता था. युरोपीय देश तो द्वीतीय विश्वयुद्धमें पायमाल हो गये थे, तो भी उंचा उठ गये. हमारा देश उनसे भी उंचा उठ सकता था. कमसे कम गरीबी हठ सकती थी और रोटी कपडा मकान और काम तो सबको मील सकता ही था. लेकिन इन लोगोंने ऐसा कुछ किया ही नहीं. अपने ही जेब भरे और अपने वालोंको फोरेनकी बेंकोंमें बेकायदा अकाउन्ट में अरबों रुपये जमा किये और सदस्यों की वेतन और पेन्शन बढाने लगे. आज देशमें ४० करोडकी आबादीकी महिनेकी आय ५०० रुपये से कम है और ये संसदके सदस्यका मासिक वेतन एक लाख के करिब है. सब भत्ता मिलाके ढाई लाखके उपर जाता है. और फोरेनकीं जमा राशी और अपने धंधेकी आय तो अलग.

मतलब कि, इनको तो चांदी ही चांदी है. अरे चांदी चंदी क्या. सोना ही सोना…. और प्लेटीनम ही प्लेटीनम है. तो ये वोटकी राजनीति क्या है?

वॉटकी राजनीति आमजनताको एक दूसरेके साथ टकरानेकी और फिसाद करवानेकी है.

ये टकराव कैसे होता है?

ये टकराव धर्मके नाम पर, जातिके नामपर, विस्तारके नाम पर, भाषाके नामपर संप्रदायके नाम पर जनता को आपसमें टकराओ. और अपना उल्लु सीधा करो.

पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेस यह सब कैसे करती है?

यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशी कोंग्रेस मुसलमानोंको कहती है,  तुम खतरेमें हो. तुम्हारी सभी मस्जीदे खतरेमें हैं. तुम्हारा धर्म खतरेमें है. तुम्हे हम रिययतें देंगे. तुम्हारे धर्म की रक्षा हम ही कर पायेंगे. हम तुम्हें अनेकानेक पत्नी करनेकी छूट देगे. फलां फलां लोग तो कट्टरवादी है. वे तुम्हे अनेकानेक पत्नीयां करनेकी छूट्टी नहीं देंगे. आगे चलकर न जाने क्या क्या तुम पर अत्याचार करेंगे. तुम तो उससे दूर ही रहो.

लेकिन अगर मुसलमान ये पंजे को पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसको यह कहेगा कि हम तो पहेले भी गरीब थे और आज भी गरीब है. तुमने हमारे लिये कुछ किया नहीं है.  तो यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशी कोंग्रेस ये मुसलमान भाईयोंको क्या कहेगी?

 अरे बुद्धु यह पंजापंजा मतलबकी नहेरुवंशीकोंग्रेस इन मुस्लिमभाइओं को कहेगी  किहमारे कारण तो तुम अभी जिन्दा हो. अगर हम नहीं होते तो ये लोग को तुम्हे तलके खा जाते.

लेकिन भैया १९७७ से १९७९ में जनता पार्टीका शासन था. बीचमें दो तीन साल जनतादलका शासन था, १९९९ से २००४ तक भी ये पंजेका,  पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसका शासन नहीं थाउस समय तो मुस्लिमभाइओंको तो कोइ हानी नहीं हुई. उसका क्या?

अरे भैया मुसलमान भाई भी तो गरीब होते है. उनको भी तो अनपढ और गंवार रखे है. गरीब अनपढ थोडे सवाल कर सकते है?

लेकिन जो पढे लिखे मुस्लिम होते है वे तो ऐसे सवाल कर सकते है ने?

अरे भाइ बुद्धु, जैसे अखबारको खरीदा जाता है, वैसे पैसेवाले को भी लालच दे जा सकती है. ऐसे सवाल अगर करते भी है तो उसको छपा नहीं जाता. ऐसे मुस्लिम नेताओंको, पंजापंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेस सम्हाल लेता है. और यह पंजा, पंजा मतलब की नहेरुवंशीय कोंग्रेस उनको कहेती है देखो हम कैसा इन कट्टर वादीयों के खिलाफ बोलते ही रहते है. हम उन्हे क्या क्या नहीं कहते! हम उन्हे सरसे पांव तक भ्रष्ट ऐसा कहते है. हम उनको आतंकवादि कहते हैं, हम उन्हे अलगतावादि कहते है, हम उन्हे मुडीवादीयोंके पीठ्ठु कहेते हैं, हम उन्हे देशको बरबाद करने वाले कहते हैं, हम उन्हे सफ्रोनवादी और सफ्रोनके साथी कहते हैं, हम उन्हें तुम गरीबोंके दुश्मन कहते हैं. हम उनको मौतके सौदागर कहते हैं. ये सब हम तुम्हारे लिये सिर्फ तुम्हारे लिये करते है.

लेकिन यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसअन्य जनता को कैसे विभाजीत करता है?

यह पंजा,पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसग्रामवासीयोंको कहेगी कि ये शहरवाले सब पैसे वाले है. वे तुम्हे लुटते आये है. शहरमें बडे बडे उद्योगपति होते हैवे तुम्हारा उत्पादन सस्तेमें ले लेते है. और खुदका किया हुआ उत्पादन तुम्हे महंगेमे बेचते है. तुम्हारे भाइ लोग जो शहरमें नौकरी के लिये जाते है उनको भी कम वेतन देके शोषण करते हैं. हम उसके उपर कार्यवाही करते है तो वे लोग न्यायालय में चले जाते हैं और तुम्हे मालुम तो है कि, न्यायालयमें जब मामला चला जाता है तो हालत क्या होती है! हम खुद न्यायालयसे परेशान है. लेकिन हमने ठान रखी है कि हम सबको सीधा कर देंगे. तुम हमे वॉट दो. हम सबमें सुधार लायेंगे.

लेकिन न्याय व्यवस्था और सब नीति नियम तो यह पंजेने पंजा मतलबकी नहेरुवंशीयकोंग्रेसने अपने साठ सालके शासन दरम्यान ही बनाये है. तो उन्होने ये साठ साल दरम्यान फेरफार क्यों नहीं किया ऐसा अगर ग्रामीण जनता प्रश्न करेगी तो यह पंजा क्या जवाब देगा?

अरे भाई ऐसा सवाल तो शहरकी गरीब जनता भी कर सकती है !!. लेकिन गरीब जनता सवाल थोडा कर सकती है? सवाल करनेवालेका जेब गरम करके, या लालच देके या कुछ सौगाद देके या तो बाहुबली की उपस्थितिमें कोई सवाल थोडा कर सकता है?

बाहुबली तो सवाल कर सकता है न!!

अरे बुद्धु, बाहु बली तो पंजेका साथी भी तो होता है.

अगर बाहुबलीकी गैर मौजुदगीमें ऐसा सवाल कर दीया तो?

अरे भाई जब जेब गरम करदी हो या थोडी और ज्यादा पीला दी हो तो कोइ भला क्या सवाल कर सकता है!!.

अच्छा तो यह तो बात हुई ग्राम्यजनता और शहरकी जनताका टकराव करवने की. और कौनसे टकराव है?

अरे भाई सबसे बडा टकराव तो जाति भेदका है.

वह क्या है?

ठाकुर, पंडित, लाला और जटको लडाओ.

वह कैसे?

यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसठाकुरको बोलेगा कि तुम तो राजा हो. तुम्हारा तो शासन होना ही चाहिये. वो पंडित हुआ तो क्या हुआ. उसको कहो पाठशाला चलावे. देखो हमने तुम्हारी जातिका ही उम्मिदवार रख्खा है. उसको ही वोट देना है. ये पंडित, लाला और जट तो कोई कामके नहीं

यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसपंडितको बोलेगा कि, अरे पंडितजी देखो यह नहेरु जी भी तो पंडित है. हमने पंडितोंका हमेशा आदर और खयाल रखा है. उनको हमेशा नंबरवन दिया हुआ है. आप पंडितोंकी तो बनी बनाई पार्टी है. हम पंजे, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेस वाले तो आपके शरणमें है. आपको ही हमे डूबोना है या तारना है.

यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसये लाला मतलब बनीयाको ऐसा बोलेगीअरे भाई लालाजीहमने आपका हमेशा खयाल किया है. हमारे शासनकी वजहसे ही आप दिन दुगुने और रात चौगुने बढे है. हम तो चाहते है आप और ज्यादा कमाओ. आप ही जो है वो दया धरम करम करते है. आपसे तो धरती टीकी हुई है. और देखो महात्मा गांधी तो बनीया ही तो थे. उनका हम कितना आदर करते है. जितना हम जवाहरलाल और ईन्द्रा का नाम नहीं लेते उतना हम महात्मा गांधीका नाम लेते हैं. समय समय पर मौका मिलने पर उनकी तस्विर भी लगाते है. ये पंडित और ठाकुर तो ईतने कामके कहां? लेकिन क्या करे कभी गधेको भी बाप बनाना पडता है.

यह पंजा, यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेस जाट को ऐसा बोलेगी, अरे भाई जट. तुम तो जगतका बाप हो. तुम जब धान पकाते हो तो यह सारी दुनिया खाना खा सकती है. तुम जगतके तात होते हुए भी आज तुम्हे लालाके सामने हाथ फैलाना पडता है. पहेले के जमानेमें तो ये लाला और ठाकुरने तुम पर क्या क्या अत्याचार नहीं किये? तुम तो ठीक तरहसे याद भी नहीं कर सकते हो. परंतु हमे तो सब कुछ याद है. हम भूलाकर भी नहीं भूला सकते. ये तो तुम्ही हो जो ईतना सहन करने पर भी उन सबको अन्नपूर्णा की तरह खाना खिला रहे हो. देखो, यह वल्लभभाइ पटेल भी तो जट थे. लेकिन अगर वल्लभभाई पटेल न होते तो देशका क्या हाल होता.!!  लेकिन ये पंडित और ठाकुर लोग उनसे कितने जलते थे. अब ये बात तो पूरानी हो गयी. तुम तो भूल भी गये हो .  लेकिन चरण सिंग को भी बादमें लगा कि किसानोंका आदर तो हमारा पंजा पक्ष,  पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेस पक्ष ही कर सकता है. और उनका सुपुत्र आज हम पंजेको, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसमें ही शोभायमान है. हमने तुम्हे कितनी रीयायतें दी हैंतुम इसकी गिनती भी नहीं कर सकते. लेकिन तुम्हारी सब रीयायतें ये सब लाला वेपारी लोग और बाबु लोग चाउं कर जाते है. हमारे तुम्हे दुये हुए हर सौ पैसेमेंसे ये लोग ९५ पैसे खा जाते है. हम अब बहुत कडक होने वाले है. हमारा यह द्रढ संकल्प है. और हम हमारे संकल्पमें वचन बद्ध है. हम हमारे सभी संकल्प पूरा करनेमें मानते है. और किया भी है. हमने वादा किया और बैंकोका राष्ट्रीय करण कियाहमने वादा किया ठाकुरोंका सालियाणा बंद किया. ठाकुरोंको मूंहकी खिलाई. 

लेकिन भैया, पंजेने यह पंजा, पंजा मतलबकी नहेरुवंशीय कोंग्रेसने ऐसा तो कोई वादा उस वख्त किया नहीं था  कि, वह बेंकोका राष्ट्रीयकरण करेगी और ठाकुरोंका सालियाणा बंद करेगी. 

अरे बुद्धु उस समयके कई लोग और नेतागण तो मर भी गये. और किसकों सबको सबकुछ याद रहता है. अगर कोई बोलेगा तो हब कहेंगे वह जुठ बोलता है. और सियासत करता है. ऐसे लोग सिर्फ सियासत करनेमें ही माहीर है. उनको जनता की कहां पडी हैये तो हम है कि गरीबोंके लिये मर मीटते हैं. हमने देखो तुम लोगोंको फसलकी अच्छी किमत मिले ईसलिये वॉलमार्ट जैसी कंपनीयांको ला रहे थे लेकिन ये विपक्षी लोगोंने ठान ली थी कि उसको आने देना ही नहीं है. तुम्हे फसल की अच्छी किमत मीले तो ये लोगोंको जलन होती है. तुम उनको पहेचान लो.

और भैयाये पंजे वाले पंजे वाले मतलब कि नहेरुवीयन कोंग्रेस वाले दलित लोंगो को क्या कहेंगे?

अरे बुध्धु दलितोंको बहेकाने नेके लिये तो उनके पास कुबेरका भंडार है. यह पंजा, पंजा मतलब नहेरुवंशी कोंग्रेस पक्ष उनको कहेगा; हे दलित भाइओ, ये आप अति पीडितजनसमाज है. ये तिलक तीराजु और तल्वारने आपके उपर हजारों सालसे अत्याचार गुजारे है. आपके साथ इन्होनें पशुसे भी ज्यादा अत्याचार किया है. ये लोग आपको पशुसे भी तूच्छ समझते थे और अभी भी समझ रहे है. ये लोगका पूरा साहित्य आपके उपर किये अत्याचारोंसे भरपूर है. वह द्रोण जीसको ये लोग आचार्य कहेते है उसने एक लव्यका कैसा हाल किया था? अरे उसको तो जाने दो, राम जैसे राम जो इन लोगोंके भगवान है उसने शंबूक जो आपके जातिका था उसका खामोंखा शिरच्छेद किया था. और सूपर्णखा जिसने सिर्फ मेरेजके लिये राम और लक्ष्मण को प्रपोझ किया तो उसके नाक कान काट दिये थे. ऐसे तो कई अनगिनत अपराध इन लोगोंने किये है. आप ने सब कुछ सह लिया. दूर की बात जाने दो. बाबा साहेब आम्बेडकर जो पढेलिखे थे तो भी उनके उपर घोर अत्याचार किये थे. अगर उनके उपर किये गये अत्याचारोंके बारे में लिखा जाय तो एक महाभारतके समान दलदार पुस्तक बन सकती है. और आप देखो. हमारी इन्दीरागांधीने उनके बोलने पर सेन्सरशीप डाली और कुछ नेताओंको इमर्जेन्सीमें १८मास जेलमें रखा तो मानो कि, आभ तूट पडा ऐसी हवा चलाई. आपके उपर तो इन लोगोंने हजारो सालकी इमर्जेन्सी चलाई थी तो भी कानमें जू तक रेंगी नहीं थी. और हमने जब आपके लिये आरक्षण की बात चलाइ तो ये लोग चील्लाने लगे. हम पंजे वाले,  पंजेवाले मतलब नहेरुवंशी कोंग्रेस पक्ष, आपको उंचा उठानेके लिये वचन बद्ध है. दूनियाकी कोई भी ताकत हमे इसमेंसे रोक नहीं सकती. चाहे हमें अपनी जान भी क्यों न देनी पडे हम आपको उंचा उठाके ही रहेंगे हम तुम्हारी औरतको भी उंचा उठायेंगे.मतलब कि  हें हें हें . और देखो, ये मायवती ने दलित होते हुए भी आपके लिये क्या किया? कुछ नहीं. खुदने पांच सौ रुपयेकी नोटेंका हार पहना और खुदके बूत लगाये. आपको कभी एक भी नोट मीली? नहीं न!! वह तो खुद के लिये और सत्ताके लिये काम करती है. आप तो पहेले भी गरीब और पीछडे हुए थे आज भी वैसे ही है.

लेकिन भैया, आपने जो कुछभी बूरा बूरा पंडित, ठाकुर लाला और जट के बारेमें कहा वह सब तो ये पंजेको ही लागु पडता है, तो ये सब बाते दलित वर्ग मानेगा कैसे? एक दो प्रधान मंत्री को छोडके सभी प्रधान मंत्री युपीमेंसे ही तो आये थे और वे सभी ये पंजेवाले मतलब कि नहेरुवंशी कोंग्रेसके यातो उनसे मिले हुए पक्ष वाले थे, उन्होने क्या किया? ऐसा अगर कोई सवाल करेगा तो ये पंजा, पंजा यानी कि, नहेरुवंशीय कोंग्रेस पक्ष वाले क्या जवाब देगा और युपीमें इस पक्षने ही तो कमसे कम तीस साल तक एक चक्री शासन किया हैतो भी आज इन्हीका फरजंद युपीकी जनता को भीखमंगी कहेता है ऐसा क्यों?

अरे भाई, यह पंजा, पंजा यानी कि, नहेरुवंशी कोंग्रेस इस सबमें माहिर है. सवाल करनेवाला कैसा है उसके अनुसार ये पंजेकी क्रिया होती है. समाचार प्रसारणवाले तो यानी कि, प्रसार माध्यमवाले तो ऐसा सवाल करेंगे ही नहीं, क्यों कि, वे तो डरपोक है. इमर्जेन्सीमें देखा ही था न कि जब उनको नमन करने का बोला तो वे लोग ये पंजेके पैरमें साष्टांग दंडवत प्रणाम करने लगे थे. और इस समय तो ये लोग बिकनेके काबिल है. इसलिये यह पंजेको उसका तो डर ही नहीं है. जो व्यक्ति या लोकसेवक शूरवीर बनके ये पंजेकी पंजेकी मतलब नहेरुवंशी कोंग्रेस पार्टीकी या उसके नंबरवन को सवाल जवाबमें फंसाने की कोशिस करेगा उनके पीछे गुप्तचर लग जायेंगे और उनके उपर धमकीयों के अलावा जांचपडताल और फरजी मामले दर्ज हो जायेंगे. मालुम नहीं है वीपी सिंग के उपर फर्जी सेंट कीट की बेंकमें एकाउन्ट होनेका मामला दर्ज हुआ था! बाबा रामदेव के उपर भी कई मामले दर्ज हो गये है. रामलिला मैदानमें सोती हुई जनताके उपर लाठीमार हुआ था और एक औरतकी मौत तक इस मारमें हुइ थी. बाबा रामदेवको लगा कि जान बची तो देशके लिये आगे कुछ भी कर सकते है. तो जान बचाने के लिये उनको भागना पडा. ये पंजा जान भी ले सकता है. देशमें ऐसि कई राजकीय मौत हुई है जिसका आजतक पता नहीं. और ये पंजेवाले पक्षने अन्ना हजारेको भी नहीं बक्षा है. उनको भी यह पंजा कहता है कि अन्ना हजारे सरसे लेकर पांव तक भ्रष्टा चारमें डूबे हुए है.

लेकिन भैया ये आरएसएस क्या है. और उसका नाम ये पंजा बारबार क्योंलेता है?

ये आरएसएसवाले लोग वैसे तो देशप्रेमी है. किन्तु उनमेंसे कुछ लोग वैचारिक तरिकेमें अधुरे है. और उनलोंगोंमें अधिरता है. कुछ लोग मंदिर और संस्कृति की रक्षाके बारेमें ना समझीकी बाते करते है. यह पंजा, पंजा यानी कि, नहेरुवंशी कोंग्रेस पार्टी के नेता गुप्त तरिकोंसे इन आरएसएस वाले कुछ नेताओंको बेवकुफ बनानेके लिये उकसाता है और गुप्त व्यवहारसे उनको सूचना करता है कि तुम कुछ बोलो. नहीं तो ये तुम्हारे साथी कोई राजकीय दबाव न होने पर कुछ भी नहीं करेंगे. देखो वैसे तो हम भी तो हिन्दु ही है. और हमारे समयमे ही मंदिर के द्वार खुले थे. और हमारे समयमें ही मस्जीद तोडी गई थी. उसका मतलब तुम लोग समझ सकते हो. ये मुस्लिमों को अगर ऐसा लगेगा कि वे यहा सुरक्षित है तो वे लोग और घुसपैठ करेंगे इसलिये तुम्हे तो मुस्लिम और इस्लामके विरुद्ध लिखते ही रहेना है. अगर तुम लिखते नहीं रहोगे तो तुम और क्या करोगे? जनता को पता कैसे चलेगा कि तुम लोग राष्ट्रभक्त हो? जब तुम मुस्लिम और इस्लामके खिलाफ बोलोगे और लिखोगे तभी तो जनता को पता चलेगा कि तुम लोग राष्ट्र भक्त हो. तुम्हे महात्मा गांधीके खिलाफ भी लिखना ही चाहिये. आखर तुम्ही तो अखंड भारतके दृष्टा हो. हम तो कुछ ऐसा लिख नहीं सकते. तुम लिख सकते हो क्योंकि तुम लोग तो पढे लिखे हो और विद्वान हो. तुम ये भी बात चलाओ कि नहेरु को प्रधान मंत्री किया और वल्लभ भाइ पटेलको नहीं किया ये महात्मा गांधीका घोर अपराध था. और देश उसको कभी माफ नहीं कर सकता. क्योंकि उसका फल देश आज भी भूगत रहा है. मैं वैसे तो पंजे वाला हूं लेकिन मैं क्या करुं मेरी तो मजबुरी है. जब हमारे पक्षके प्रधान मंत्री खुद मजबुर हो सकते है तो मैं और मेरे जैसे तो पहेलेसे ही मजबुर होते है.

लेकिन भैया कोई ऐसा सवाल करेगा कि सरदार पटेलने नहेरुको चीनकी विस्तारवादी नीतिके बारेमें सचेत किया था, और नहेरुने उसकी अनदेखी कि थी, इतना ही तीबेटके उपर चीन के आक्रमण किया तो नहेरुने क्यों तीबेट को मदद नहीं कि? और नहेरु सरकारने तीबेटके उपर चीनका सार्वभौमत्व क्यों मान्य किया था? और चीन की घुसपैठको भी क्यों अनदेखी कि थी? इसके बारेमें संसदको क्यों गुमराह किया था? और चीन के साथ की सरहद को क्यों अरक्षित रखी थी? और इन सब की वजहसे तो चीनने भारतपर आसानीसे विजय पायी थी. आज हमारी ६२००० वर्ग माईल जमीन चीनके कब्जेमें है. नहेरुने तो उस समय प्रण लिया था कि उसका पक्ष मा भारतकी उस धरतीको वापस लिये बीना चैनसे बैठेगा नहीं. उस प्रणको निभानेके लिये पंजेने क्या किया? हमारे जवानोने जो पाकिस्तान पर विजय दिलायी थी उस विजयको इन्दीरा ने भूट्टोके साथ सिमला करार करके पराजयमें पलट दी थी और काश्मिर समस्या सुलझानेका खुबसुरत मौका गवा दीया था जिसके कारण आज तक भारत परेशान है,  ईन्दीराने खालीस्तानी लीडर भींदरानवालेको सन्त घोषित किया और उसने पाकिस्तानका सहारा लेके आतंकवाद फैलाया था और खुल्लेआम स्वर्णमंदिरपर कबजा कर लिया था, खालिस्तानी आतंक वीपी सिंग और चंद्र शेखर तक चला था और इस दरम्यान पाकिस्तानी आतंकवादीयोंको नेटवर्क बीछानेका मौका मील गया.  और हम पाकिस्तानी आतंकसे आज तक परेशान है. ये सब बातें छोड के ये आरएसएसवाले महात्मागांधी पर क्यों उबलेंगे और लिखेंगे?

 अरे बुद्धु ऐसी बाते लिखनेका तो पंजेवाले यानी कि, नहेरुवंशी कोंग्रेस उसे पैसे दिलायेगी. अगर वे ईन्दीरा गांधी और नहेरुके खिलाफ कुछ भी लिखेंगे तो यह पंजा कुछ भी कर सकता है. प्रसारमाध्यमोंसे और पंजेवाले पीठ्ठुओंसे गालीयोंकी भोंछार कर सकता है. महात्मा गांधीके अनुयायी तो बेचारे अहिंसक होते है. वे तो कुछ बोलेंगे भी नहीं.

लेकिन भाई साब इससे पंजेको क्या फायदा होगा?

अरे बुद्धु, जो गांधीजी के उपर आदर रखते है उनको लगेगा कि, ये आरएसेस वाले तो बेवकुफ है तो उसको आदर करने वाला पक्ष भी बेवकुफ ही हो सकता है. चलो किसीको ही वॉट नहीं देंगे. इस प्रकार जो पंजेके विरोधमें है उनकी लो-वोटींग होगी. दूसरी तरफ अल्पजन संख्यकों को डराया है तो उनकी हेवी वोटींग होगी. तो फायदा तो पंजेवाला का यानी कि, नहेरुवंशी कोंग्रेसको ही है न. समझेने तुम अभी?

हां भैया तुम्हारी बात तो सही है. लेकिन दुसरा ये पंजेवाले क्या कर सकते है?

देखो ये जो प्रसारमाध्यमके संचालक और अखबारों के तंत्री और कटार लेखकों उन सबको बोलेगा कि, तुम ऐसे विषय खोज निकालो कि जनताका ध्यान हमारे काले कामोंसे हट कर दूसरे विषयों पर चला जाय.

 

तूम ऐसा करो;

 

अन्ना हजारे गांधीवादी है या नहीं? अगर वे गांधीवादी है तो कितना है? और कितना नहीं है? इन सब पर बुद्धि जीवीयोंकी सरफोडी चलाओ.

 

अन्ना कितना विफल रहे? अन्ना ने तो महाराष्ट्रके बाहर कुछ किया ही नहीं है. उनको देशके प्रश्नोंका क्या पता, वे तो ज्यादा पढे लिखे भी नहीं है,

 

अन्नाके साथी लोग के बारेमें अफवाहें फैलाओ. उनके साथीयों के बारेमें बालकी खाल निकालो. उसमें फूट पाडो. फूट नहीं पडती है तो भी लिखोके फूट पडी है. उनके निवेदनोंको तोड मरोडके लिखो. उनके पीछे सीबीआइ लगा दो.

 

बाबा राम देवके बारेमें और उसके दवाइ और योगके बारेमें अफवाहें फैलाओ. वे रामलीला मैदानसे डरकर भाग गये उसको बढा चढाके बार बार लिखो, बाबा राम देवके साम्राज्य के बारेमें लिखो और उसमें घोटाले ही घोटले ऐसा लिखो. है नहीं है तो भी घोटाले है ऐसी हवा फैलाओ. उसके उपर जांच बैठाओ. जैसे हमने मोरारजी देसाई और वीपी सिंगके बारेमें किया था उससे भी बढकर इनलोंगोंके बारेमें करो.

 

अगर समय है तो राम मंदिर के बारेमें चर्चा करो और चर्चा चलाओ. वीएचपी और बजरंगदल के लिडरोंको उकसाओ और नहीं उकसते है तो उनकी टीका करो. कोई न कोई माई का लाल तो मिल ही जायेगा जो राम मंदिर ही नहीं लेकिन ताजमहालके बारेमें भी मुसलमानोंके खिलाफ लिखने वाला होगा. उतना ही नहीं मुसलमानोंने क्या क्या अत्याचार हिन्दुओंके उपर किये थेऔसके उपर अलगसे लेख लिखवाओ और उसको बहेकाओ. ये आरएसएसवालोंमेंसे कई लोग तो ऐसा लिखने के लिये आतुर होते हैं.

 

लेकिन भैया, इससे क्या होगा?

 

अरे बुद्धु, ऐसा लिखने से मुस्लिमोंको लगेगा कि ये सभी हिन्दु धर्मके बारेमें सोचने वाले ही है. और अगर इनका शासन आया तो हम लोग तो कहींके भी नहीं रहेंगे. ये लोग जरुर बदला लेंगे. हमें तो ये पंजे के शरणमें ही जाना चाहिये.

 

तो भैया, पंजा, पंजा मतलब नहेरुवंशी कोंग्रेस इस तरह, विखवाद और विभाजनकी अफवाहों के जरिये देशकी जनताको विभाजित करनेका कलुशित काम कर रही है और काला-लाल-धन विदेशोंमे जमा करवा रही है, आतंक वादको हवा दे रही है यही ना?

 

हां बुद्धु हां,इसिलिये मैं कहेता हुं कि इस वॉटबैंक की और काला-लाल धनकी राजनीति पैदा करने वाले और चालाने वाले पंजेसे देशको बचाओ.

समझो, आज कोंग्रेस और उसके सहयोगी शासित सभी राज्य सबसे पीछडे हुए है. इसका कारण पंजे की और उनके सहयोगी पक्षोंकी वोट की राजनीति ही है. हमारे देशके पास क्या कुछ नहीं है?

उज्वल इतिहास, विद्वत्ता पूर्ण साहित्य  और मांधाता, राम, कष्ण, चंद्रगुप्त मौर्य, विक्रमादित्य, हर्ष जैसोंकी धरोहर है. अगत्स्य, वशिष्ठ, व्यासकौटिल्य, बुद्ध, शंकराचार्य, विवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती, जैसे विद्वानोंकी परंपरा है, विशाल और उच्च हिमालय, विशाल समूद्र तट, अफाट रण प्रदेश, विस्तृत और गाढ वनप्रदेश क्या क्या नहीं है हमारे पास? विशाल मानव साधन को क्या हम उर्जा श्रोत और धरतीको नवसाध्य करनेमें नहीं लगा सकते? लगा सकते हैं जरुर लगा सकते हैं. लेकिन पंजेने साठ सालमें यह सब क्युं नहीं किया? उनके ही सभी प्रधान मंत्री थे तो भी हमारा राज्य और हमारा देश क्यों गरीब, बेकार और पिछडा रहा? इसलिये कि यह पंजा यही चाहता था कि, गरीब गरीब ही रहे और अनपढ अनपढ ही रहे तो वे खुद और उसके अपन वाले विदेशोंमें काला-लाल धन अवैध  तरिकोंसे धन जमा कर सके और चूनाव के समय पर वोटोंकी राजनीति कर सके.    

शिरीष दवे

 

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