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Posts Tagged ‘फुटपाथ’

किसी भी नगरको/ग्रामको/विस्तारको बदसूरत और गंदा कैसे किया जाय … 

गत ब्लोगमें हमने गोदरेज गार्डन सीटीकी व्यवस्थाका संक्षेपमें विवरण किया था. और यह प्रश्न चिन्ह लगाया था कि क्या गोदरेज गार्डन सीटी गंदा और अराजकता वाला विस्तार बनने के काबिल है?

हम कुछ गीने चूने परिबलोंका विवरण करेंगे.

किसी भी विस्तारको बदसूरत करनेमें और अराजकतायुक्त करनेमें प्रजाकी मानसिकता भी प्रभावशाली होती है. यदि नियम (बाय लॉज़ – कानून) बनानेमें उसकी उपेक्षा की तो “विस्तार”में अराजकता फैल सकती है. अराजकताकी शक्यताकी हम बादमें चर्चा करेंगे.

विस्तारको बदसूरत करने वाले परिबल, आकृति (डीज़ाईन)बनावटकी गुणवत्ताका चयन (स्पेसीफीकेशन)  और  कामकी कुशलता का मिश्रण है. यदि आकृति ठीक नहीं है तो क्षतिग्रस्त होनेकी क्षमता अधिक होती है. यदि आकृति सहीं हैकिंतु गुणवत्ता कनिष्ठ प्रकारकी है तो भी उसकी क्षतिग्रस्त होने की शक्यता अधिक है. यदि ये दोनों सही है लेकिन कामकी कुशलता (पुअर वर्कमेनशीप) यथा योग्य नहीं है तो भी वह निर्माण क्षतिग्रस्त हो सकता है.

निर्माण परिपूर्ण होनेके बाद ऐसे प्रकारके निर्माणके, रखरखाव में अधिक खर्च आता है. दुरस्त करने की गतिक्षतिग्रस्त होनेकी गति से कम है तो भी निर्माण गंदा बदसूरत हो सकता है.

एक बात ध्यानमें रखना चहिये कि हम जो उदाहरण लेते हैं वह आज तो छूटपूटकी घटनाए हैं. लेकिन यदि रखरखाव शिघ्राति  शिघ्र नहीं किया गया तो क्षतिग्रस्त विस्तारकी घटनाओं वाले स्थल, बढते जायेंगे और अंतमें विस्तार बदसूरत दिखेगा.

यातायात मार्गकी चौडाईः  आंतरिक मार्गकी चौडाई, आज तो जो दो लेन (१+१=२) वाली है वह सही लगती हैलेकिन भविष्यमे पांच सालके बाद) याता यातकी समस्या हो सकती है. मुख्य मार्ग जो चार लेनका (२+२=४) है उसके विषयमें भी ऐसा कहा जा सकता है.

08 good main road

आंतरिक मार्गोंकी और मुख्य्त मार्गोंकी  आकृतिसूचित गुणवत्ता और निर्माणकी गुणवत्ता सही है.

09 good internal street road

सायकल मार्ग (द्विचक्र वाहन यातायात) भी सही ही है.

किंतु पदयात्रीयोंके लिये जो मार्ग है उसकी आकृति और निर्माणकी गुणवत्ता सही नहीं है.

पेड पौधेंकी जो भूमि है वह नीची है और फुटपाथके दाहिने बाजु का स्तर उंचा हैऔर निर्माणकी वर्कमेनशीप पुअर होने से फुटपाथके किनारे के पत्थर निकल जाते है. यदि इनको शिघ्राति शिघ्र रीपेर किया जाय और किनारे वाले पेडपौधोंकी भूमि उंची कि जाय तो फुटपाथको क्षतिग्रस्त बनने की घटनाओंको रोका जा सकता है.

01 can break at any time

क़ोंट्राक्टरोंका अपना काम होनेके बाद सबस्टांडर्ड रीसरफेसींग वर्क.

05 gas agency does not reinstate properly

जैसे कि गेस एजंसी जब अपना लाईन बीठाती है तो जो खोदाई होती है उनको ढंगसे री-सरफेसींगका काम नहीं करती है. ईनमें गोदरेज प्रोपर्टीज़ की तरफसे शायद नीगरानी नहीं रक्खी गई है. तो इनकी क्षतिग्रस्त स्थलोंकी छूटपूट घटनाएं मिलती है.

मानवीय असभ्यताः
06 why to walk on footpath

रहेनेवालोंको भी नियमका पालन करना चाहिये. लेकिन यदि गोदरेज प्रोपर्टीज़वाले उनको दंडित नहीं करेंगे तो उनकी आदतमें सुधार लाना असंभव है.

 

यदि फुटपाथ है तो निवासीयोंको फुटपाथ पर चलने की आदत डलनी चाहिय

स्वच्छता पर आघात

पशुओंके प्रति दया भावना का प्रदर्शन करना भारतीयोंकी आदत है. इस आदतके गुणदोषमें  पडें परंतु यह दयाभावना के कारण गंदकी फैलानी नहीं चाहिये.

07 we want to feed animals at the cost of cleanliness

स्वच्छताके उपकरण और स्वच्छता कर्मचारीयोंकी नासमज़ः

सफाई कामदारोंकी समज़ है कि उनको केवल पेडपौधोंके पत्तेकागज़के टूकडे,प्लास्टिक बेग्ज़ और उसके टूकडे … आदि ही को कचरा समज़ना है. कुत्तोंकी वीष्टागाय भेंसका गोबर आदि को उठाना सफाईके अंतर्गत नहीं आता है. इसके कारण जब वे सुखकर मीट्टी बनजाता है तब वह हवामें उड जाता है.  वैसे तो गायभैंस कम दिखाई देते है इसलिये ऐसी घटनाएं  छूट पूट मिलतीं हैकिंतु भविष्यमें इनमें वृद्धि हो सकती है.

गोदरेज प्रोपर्टीज़का काम व्यापारी और निवासी आवास पैदा करना है  कि अवैध व्यवसाय दिलाना

गोदरेज गार्डन सीटी में कोमर्सीयल केंद्र है. सीटी सेंटरमें कई सारी सुयोग्य तरिकेसे निर्मित दुकाने हैं. इसका निर्माण परिपूर्ण नहीं हुआ होगा.

लेकिन हमारे कुछ व्यवसायी लोगोंको मुफ्त मे व्यवसाय करने की जगह चाहिये. इसकी दो वजह है. एकः यह कि पुलीस या तो सुरक्षा कर्मीको खुश रखना और मुफ्तमें जगहका व्यवसायके लिये उपयोग करना.

हाथ लारी” एक ऐसा ही व्यवसाय है. जिसमें व्यक्ति एक हाथ-लॉरीमें सब्जी-तरकारी फैलाके ग्राहकोंकी प्रतिक्षा करता है. और ग्राहक भी उसकी लॉरीमेंसे सब्ज़ी तरकारी खरीदता है.

प्रारंभमें एक हाथलॉरीवाला, एक हाथलॉरीमे सब्ज़ी लगाके एक मार्गकी फुटपाथ पर पार्ट टाईम खडा रहेता है.

फिर वह अपना खडा रहनेकी समय मर्यादा बढाता रहेता है.

05 hand lorry with spreaded material

फिर वह एक लॉरीमें तीन लॉरीका सामान लाता है. वह सामान फुटपाथ पर फैला देता है. फिर वह और किसमका भी सामान लाता हैजैसे कि नारीयलवॉटरमेलनकेले … आदि.

ऐसा करनेके समयके अंतर्गत उसकी सुरक्षा दलो सें पुख्ता दोस्ती हो जाती है. शायद उपरी स्तरके कर्मचारी/अधिकारीगणके साथ भी परोक्ष प्रत्यक्ष संबंध प्रस्थापित हो जाते है.

तो एक दुसरा हाथ लॉरीवाला भी पैदा हो जाता है. उसका  भी ऐसे ही इतिहासका पुनरावर्तन होता है. 

05b one more larywala

फिर तो क्या कहेनाबलुन वाला आता हैखिलौना वाला आता हैगन्नेका रसवाला  जाता है. फुलवाला आता हैमोची आता हैपंक्चर रीपेरर आता है… ऐसे फुटपाथ पर अतिक्रमण बढता ही रहता है.

इसकालके अंतर्गत कई कर्मचारीगण/अधिकारीगणका तबादला होता रहेता है इस लिये किसीकी जीम्मेवारी फिक्स करना उच्चस्तरीय अधिकारीगण योग्य समज़ते नहीं है.

इस प्रकार समयांतर कालके अंतर्गत अराजकता फैल जाती है. गोदरेज गार्डन सीटीमें अराजकता के बीज बोये है. आज जो छूटपूट घटना है और जिसको निवारा जा सकता हैयदि गोदरेज गार्डन सीटीके अधिकारीयोंकी मानसिकता यही रही तो पांच सालमें अराजकता फैल सकती है.

अग्निशामक तकनिकी सुविधाएं और उसके नियमके अंतर्गत प्रावधान

अग्निप्रतिरोधक उपकरण, अग्निशामक व्यवस्थाएं और आपातकालिन व्यवस्था रखना आदिके बडे कठिन नियम है. उसमें एक नियम है बहु मंज़िला इमारतमें आपातकालमें निवासीयोंको निश्चित जगहसे उठानेका. इस जगहको फायर रेफ्युज खंड (फायर रेस्क्यु रुम) कहेते है. निश्चित मंज़िल पर दो ऐसे खंड आमने सामनेकी दिशामें छोर पर रक्खे जाते है. दो इस लिये कि यदि एक छोरका खंड आगके कारण उस आगकी दिशामें उपलब्ध नहीं होता है तो तो दुसरा छोरवाला खंड काममें  जाता है. निवासीयोंको वहां इकठ्ठा करके क्रॅनकी मददसे बचाया जा सकता है. फायर रेस्क्यु खंड एक स्वतंत्र खंड होता है. उसमें  तो कोई निवासी अपना सामान रख सकता है  तो उसका नीजी उपयोग कर सकता है. इस खंडको बंद करना निषेध है. इस खंडमें प्रवेश होता है पर द्वार नहीं रखा जा सकता. उसी प्रकार उसमें गेलेरी होती है उसमें उसको बंद करनेकी खीडाकीयां नहीं होती. ता कि आपात कालमें आसानीसे निवासीयोंको निकाले जा सके.

लेकिन यहां गोदरेज गार्डन सीटीके बहुमंज़िला इमारतोमें इसका अक्षरसः पालन नहीं किया गया. दोमेंसे एक फायर रेस्क्यु खंडको करीबी निवासीको ऐसे ही व्यक्तिगत उपयोगकी सुविधा दे दी गई है.

01 fire rescue room02 break open wall of Fire rescue room

04 fire rescue room exclisive use

नियम के अनुसार फायर रेस्क्यु खंड को कोई निवासी अपने अंगत स्वार्थ के लिये उपयोगमें ले नहीं सकता. किंतु गोदरेज गार्डन सीटीके अधिकारीयोंने फायर रेस्क्यु खंडमें विशेष वीज सुविधा भी उपलब्ध करवायी है. फायर रेस्क्यु खंडमें वीज सुविधा होती है. और उसमें एक लेंप होल्डरका प्रावधान होता है. सामान्य परिस्थितियोंमे इस लेंप होल्डरमें लेंप    लगाना होता है ताकि असामान्य परिस्थितिमें लेंपका अन्वेशण करना न पडे. रेस्क्यु खंड दो होते है. एक मुख्य और एक विकल्पके लिये अतिरिक्त (स्टेंड बाय). कौन मुख्य और कौन विकल्प केलिये अतिरिक्त यह कोई नामाभिधानका विषय नहीं है. दोनों ही एकदुसरेके परिपेक्ष्यमें विकल्पीय है. जैसे की दो स्टेर केस होते है  तो एक यदि आग की घटनामें उपलब्ध नहीं है तो दुसरा जो सामने के छोर पर है वह उपलब्ध होता ही है. तो यहां गोदरेज गार्डन सीटीमें क्या हुआ कि निवासीको फेसीलीटेट करने के लिये उसके पासवाले रेस्क्यु खंडमे तो दिवारको तोडके प्रवेश द्वार तो लगवाही दिया पर उसके लिये फायर रेस्क्यु खंडमें लेंप भी लगवा दिया और ट्युबलाईटभी लगवा दिया. अब फायर रेस्क्यु खंडकी बीजलीका कंट्रोल किसके पास है और उसका विद्युत का बील किसको आता है यह संशोधन का विषय है.

भारतमें और खास करके उत्तरभारतीयोंकी (खास करके राजस्थान, पंजाब, यु.पी, बिहार और गुजराती भी कम नहीं) आदत है कि गैरकानूनी तरीके से उपलब्ध जगहोंका उपयोग करना. और अधिकारीगण/कर्मचारीगण भी वैसे ही चरित्रवाले होनेसे अवैध तरीकेसे आंखे बंद कर देते है.

इसका समाधान क्या है?

कौटिल्यने कहा है कि, आमजनता तो “दंड” से ही सावधान रहेती है. 

“गोदरेज गार्डन सीटी”में और क्या करने कि आवश्यकता है?

गोदरेज गार्डन सीटी बडी आसानीसे स्मार्ट सीटी विस्तार बन सकता है. अभी तो यह विकसित हो ही रहा है तो इसमें अभीसे जनताको सुव्यवस्थित और सुसंस्कृत की जा सकती है.

(१) प्रत्येक मार्ग पर जैसे कि मुख्य मार्ग पर गति-सीमा ४० कि. आंतरिक मार्ग पर १५ कि. और क्लस्टरके अंदर ५/१० कि. की सीमा रक्खी जा सकती है. गतिसीमा के सूचना बॉर्ड रखना चाहिये.

(२) प्रत्येक प्रवेशद्वार के पास सीसीटीवी केमेराका प्रबंध किया जाना चहिये.

(३) प्रत्येक क्लस्टरमें सदस्यके लिये स्मार्टकार्डसे प्रवेश किया जा सकता है,

(४) प्रत्येक बिल्डींगमे प्रत्येक स्तर (फ्लोर) पर भी सीसीटीवी केमेरा का प्रबंध होना चाहिये. सुरक्षा कर्मचारी निवासीसे बात करके सुनिश्चित करेगा कि आगंतुक को प्रवेश देना है या नहीं, यदि निवासीने अनुमति दी, तो वह आगंतुक वहीं पर ही गया या कहीं और गया.

(५) प्रत्येक मार्ग पर भी सीसीटीवी केमेरा का प्रावधान किया जाना चाहिये ताकि सभी कोई सज्जनता पूर्वकका व्यवहार करें और यातायातके नियमोंका भंग करनेसे बचे.

(६) सीसीटीवी केमेरासे अतिक्रमण पर कडा निरीक्षण रखा जा सकता है.

कर्मचारीको नियमपालनके लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये. यदि ऐसा नहीं हुआ तो समज़ लो 

अराजकताका आरंभ है.

 

शिरीष मोहनलाल दवे

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किसी भी नगरको/ग्रामको बदसूरत और गंदा कैसे किया जाय …. १

हाँ जी, नगर, ग्राममें आयोजित विस्तार, देहात, टाउनशीप, निवासीय या संकीर्ण मकान या मकानोंके समूह आदि सब कुछ आ जाता है. इसको कैसे बदसूरत और गंदा किया जा सकता है, उसकी हम चर्चा करेंगे.

अहमदाबाद स्थित शास्त्रीनगर कैसे बदसूरत और गंदा किया गया, हम इसका  उदाहरण लेंगे.

कोई भी विस्तारमें यदि एक वसाहतका निर्माण करना है तो सर्व प्रथम उसका आयोजन करना पडता है. प्राचीन भारतमें यह परंपरा थी. प्राचीन भारतमें एक शास्त्र था (वैसे तो वह शास्त्र आज भी उपलब्ध है. लेकिन इसकी बात हम नहीं करेंगे. हम स्वतंत्र भारतकी बात करेंगे. १९४७के बादके समयकी चर्चा करेंगे.

अहमदाबादमें एक संस्था है. यह संस्था सरकार द्वारा नियंत्रित है. इसका नाम है गुजरात हाउसींग बोर्ड. इसने आयोजन पूर्वक अनेक वसाहतोंका निर्माण किया है.

शास्त्रीनगर वसाहतका आयोजन कब हुआ था वह हमें ज्ञात नहीं. लेकिन इसका निर्माण कार्य १९७१में आरंभ हुआ था.

आयोजनमें क्या होता है?

(१) जी+३ के मध्यम वर्ग (एम-४, ऍम-५) उच्च कनिष्ठ वर्ग (एल-४), कनिष्ठ वर्ग(एल-५) के बील्डींग ब्लोकोंका निर्माण करना.

(२) सुचारु चौडाई वाले पक्के मार्गका प्रावधान रखना, चलने वालोंके लिये और विकलांगोंकी और अशक्त लोगोंकी व्हीलचेरके लिये योग्य चौडाई वाली फुटपाथ बनाना

(३) र्शोपींग सेन्टरका प्रावधान रखना,

(४) बीजली – पानीका आयोजन करना,

(५) भूमिके विषयमें

(५.१) विद्यालयका प्रावधान रखना

(५.२) उद्यानके लिये प्रावधान रखना

(५.३) हवा और प्रकाश रहे इस प्रकार भूमिका उपयोग करना,

(५.४) कोम्युनीटी हॉलके लिये प्रावधान रखना,

(५.५) क्रीडांगणके लिये प्रावधान रखना,

(६) बाय-लॉज़ द्वारा वसाहतको नियंत्रित करना,

(७) सामान्य सुविधाएं यानीकी बीजली, पानी देना.

(८) कुडे कचरेके निकालके लिये योग्य तरीकोंसे प्रबंधन करना

 आयोजनमें क्या कमीयाँ थीं?

(१) जी+३ के मकान तो बनवायें लेकिन प्लानरको मालुम नहीं था कि जनतामें विकलांग और वृद्ध लोग भी होते है. इस कारण उन्होंने यह समाधान निकाला कि जिसके कूटुंबमे वृद्ध होय उनको यदि आबंटनके बाद ग्राऊन्ड फ्लोरका आवास बचा है तो उनको चेन्ज ओफ निवास किया दिया जायेगा.  आपको आश्चर्य होगा कि सरकार द्वारा निर्मित आवासोंका मूल्य तो कम होता है तो ग्राउन्ड फ्लोरका आवास बचेगा कैसे? शायद सरकारने सोचा होगा कि, आज जो युवा है वे यावदचंद्र दिवाकरौ युवा ही रहेंगे या तो युवा अवस्थामें ही ईश्वरके पास पहूँच जायेंगे.

हाँ जी, आपकी बात तो सही है. लेकिन यहां पर आवासकी किमत मार्केट रेटसे कमसे कम ४०% अधिक रक्खी थी. ग्राउन्ड फ्लोरके निवास और तीसरी मंजीलके निवासकी किमत भी समान रक्खी थी.

वैसे तो “लोन”की सुवाधा खुद हाउसींग बोर्डने रक्खी थी, इस लोनकी सुविधाके कारण लोअर ईन्कम ग्रुप वालोंने मासिक हप्ते  ज्यादा होते हुए भी और लोनका भुगतान करनेकी मर्यादा सिर्फ दश सालकी होते हुए भी, अरजी पत्र भरा और मूल्यका २०% सरकारमें जमा किया.

समस्या एम-५ और एम-४ के आबंटनमें आयी. क्यों कि उसका मूल्य ५५००० रुपये रक्खा था और मासिक हप्ता ₹ ६००+ रक्खा था. उस समय कनिष्ठ कक्षाके अधिकारीयोंका “होमटेक  वेतन” भी बडी मुश्किलसे रु. ९००/- से अधिक नहीं था. इस कारणसे ९५% निवास खाली पडे रहे. उतना ही नहीं उसी  विस्तारमें आपको उसी किमतमें डाउन पेमेंट पर स्वतंत्र बंगलो मिल सकता था. स्टेम्प ड्युटी भी १२.५ प्रतिशत थी. मतलब कि, आपको एम-४ और एम-५ टाईपका निवास करीब ६५०००/- रुपयेमें पडता था. 

राष्ट्रीयकृत बेंकोंकी लोन प्रक्रिया भी इतनी लंबी थी कि सामान्य आदमीके बसकी बात नहीं थी.  

सरकारी समाधानः

सरकारने ऐसा समाधान निकाला कि, यदि आवास निर्माण संस्था सरकारी निर्माण संस्था है तो ऐसी संस्था द्वारा दिये गये “आबंटन पत्र” प्रस्तूत करने पर ही लोनको मंजूर कर देनेका.

मासिक आयकी जो सीमा रक्खी थी वह रद कर दी,

कई सारे निवास सरकारके विभागोंने, अपने कर्मचारीयोंके सरकारी आवास के लिये खरीद लिये.

लोनके कार्य कालकी सीमा दश सालके बदले बीस साल कर दिया.

निर्माणका काम अधूरा था तो भी सबको पज़ेशन पत्र दे दिये क्यों कि कोंट्राक्टरको दंड वसुलीसे बचा शकें.

(२) शास्त्रीनगरका आयोजन तो उस समयके हिसाब से अच्छा था. समय चलते महानगर पालिकाने नगरके मार्गोंको आंशिक चौडाईमें पक्का भी कर दिया.

प्रारंभके वर्षोंमें वर्षा ऋतुमें बस पकडने के लिये आधा किलोमीटर चलके जाना पडता था. सरकारका चरित्र है कि कोई काम ढंगसे नहीं करनेका. पक्के मार्ग आंशिक रुपसे ही पक्के थे. इससे कीचडकी परेशानी बनती थी. दोनों तरफकी भूमिको तो कच्चा ही रक्खा रक्खा जाता था. फूटपाथ बनानेका संस्कार नगर पालिकाके अधिकारीयोंको नहीं था (न तो आज भी है).

(३) हाउसींगबोर्डने शोपींग सेन्टर तो अच्छा बनाया था. एम-४ टाऊप आवासोंके ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकानें बनी थीं.

(४) बीजली पानीका प्रबंध उस जमानेके अनुसार अच्छा था.

(५.१) स्कुलके लिये भूमि तो आरक्षित थी. लेकिन आज पर्यंत स्कुल क्युं नहीं बना यह संशोधनका (अन्वेषणका) विषय है.

(५.२) उद्यान नहीं बनवाया,

(५.३) कोम्युनीटी सेन्टर नहीं बनवाया

(५.४) क्रिडांगणका मतलब यही किया गया कि भूमिको खुल्ला छोड देना.

(६) शास्त्रीनगरके सुचारु रखरखावके लिये सरकारने बाय-लॉज़ तो अच्छे बनाये थे. लेकिन सरकारी कर्मचारी-अधिकारीगण तो आखिर नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कार प्रभावित सरकारी ही होते है. इन सरकारी अधिकारीयोंको काम करना और दिमाग चलाना पसंद नहीं होता है. “यह काम हमारा नहीं है” ऐसा तो आपने कई बार सूना होगा. यदि कोई काम उनका नही है तो जिस सरकारी विभागका वह काम हो उसको ज्ञात कर देनेका काम सरकारी कर्मचारी/अधिकारीके कार्यक्षेत्रमें है ऐसा इनको पढाया नहीं जाता है.

(६.१) हाउसींग बोर्डने शीघ्राति शीघ्र निवास स्थानोंका वहीवट पांच से सात ब्लॉकोंकी सोसाईटीयां बनाके इन सोसाईटींयोंको दे दिया.

(६.२) भारतके लोग अधिकतर स्वकेन्द्री है और आलसी होते है. स्वकेन्द्री होने के कारण जो लोग ग्राउन्ड फ्लोर पर रहेते थे उन्होने एपार्टमेन्टके आगेकी १० फीट भूमि पर कबजा कर लिया. सार्वजनिक जगह यदि सुप्राप्य है तो उसके उपर कबज़ा जमाना भरतीयोंका संस्कार है खास करके उत्तरभारतीयोंका जिनमें गुजराती लोग भी इस क्षेत्रमें आ जाते हैं. उनके उपर रहेने वालोंने विरोध किया तो झगडे होने लगे. सात ब्लॉकोंकी जगह हर ब्लॉक की एक सोसाईटी बन गई. एक ब्लोकके अंदर भी ग्राउन्ड फ्लोर और उपरके फ्लोर वाले झगडने लगे.

(६.३) ज्यों ज्यों अतिक्रमण बढता गया त्यों त्यों शास्त्रीनगरकी शोभा घटने लगी. शास्त्रीनगर एक कुरुप वसाहतके रुपमें तेज़ीसे आगे बढने लगा था.

(६.४) जब अतिक्रमणकी फरियादें बढ गयी तो सरकारने सबको छूट्टी देदी.

(६.५) अब शास्त्रीनगरका कोई भी निवासी दश फीट तक अपना रुम या गेलेरी आगे खींच सकता था. उसको सिर्फ एक हजार रुपये हाउसींग बॉर्डमें जमा करवाने पडते थे.

(६.६) एक हजार रुपया हाउसींग बॉर्डमें जमा करने के बाद, न तो कोई सोसाईटीके पारित विधेयककी नकल प्रस्तूत करना आवश्यक था, न तो कोई विधेयक जरुरी था, न तो कोई विज्ञापन देना आवश्यक था, न तो पडौशीका “नो ओब्जेक्सन” आवश्यक था, न कोई प्लान एप्रुव करवाना आवश्यक था, न तो किसीका कोई निरीक्षण होना आवश्यक माना गया. कुछ निवास्थान वालोंने तो तीनो दिशामें दश दश फीट अपना एपार्टमेन्ट बढा दिया.

(६.७) यदि शास्त्रीनगरके निवासी ऐसी छूटका लाभ ले, तो हाउसींग बोर्ड स्वयं क्यों पीछे रहे?

(६.८) हाउसींग बोर्डने शास्त्रीनगरकी चारो दिशामें, जी+२ के कई सारे मकान बना दिये. सभी मकानोंके ग्राउन्ड फ्लोर वालोंने ग्राउन्ड फ्लोर पर दुकाने बना दी. हाउसींग बोर्डने भी ऐसा ही किया. अब ऐसा हुआ कि जो भी ग्राउन्ड फ्लोर वाले थे उनमेंसे अधिकतर लोगोंने अपना रोड-फेसींग रुमोंको दुकानमें परिवर्तित कर दिया.

(६.९) मुख्य मार्ग पर वाहनोंका यातायात बढ गया. फूटपाथकी तो बात ही छोड दो, मार्गपर चलनेका भी कठीन हो गया.

हाउसींग बोर्डके कर्मचारीयोंकी और अधिकारीयोंकी कामचोरी और अकुशलताके बावजुद १९७६ से १९७९ तक शास्त्रीनगर एक सुंदर और अहमदाबादकी श्रेष्ठ वसाहत था. लेकिन धीरे धीरे उसमें सरकारी कर्मचारी-अधिकारी, गुन्डे, व्यापारी और हॉकर्सकी मिलीभगतसे  अतिक्रमण बढता गया.

(७) बीजली सप्लाय तो अहमदाबाद ईलेक्ट्रीसीटी कंपनीका था इससे उसमें कमी नहीं आयी. लेकिन जो पानीकी सप्लाय थी वह तो अतिक्रमण-रहित आयोजन के हिसाबसे था. इस कारण पानीकी कमी पडने लगी.

(८) कुडा कचरा को नीपटानेका प्रबंधन तो पहेलेसे ही नहीं था. क्यों कि नहेरुवीयन कोंग्रेस गंदकीको समस्या मानती नहीं है.

(९) कई सालोंसे शास्त्रीनगर प्रारंभिक अवस्थाकी तुलनामें दोज़ख बन गया है. कई लोग अन्यत्र चले गये है.

हाउसींग बॉर्डके लिये गीचताकी समस्या कोई समस्या ही नहीं थी.  हाउसींग बोर्डने मुख्यमंत्री आवास योजनाके अंतर्गत अंकूरसे रन्नापार्कके रोड पर नारणपुरा-टेलीफोन एक्सचेन्जके सामनेवाली अपनी ज़मीनके उपर आठ दश नये अतिरिक्त दश मंजीला मकानकी योजना पूर्ण कर दी है. इसमें भी कई सारी दुकानें बनायी है. वाहनोंके पार्कींगके लिये कोई सुविधा भी नहीं रक्खी है. इश्तिहारमें पार्कींग की सुविधाका जिक्र था. लेकिन हाउसींग बोर्डके अधिकारी/कोंट्राक्टरोंकी तबियत गुदगुदायी तो पार्कींग भूल गये.

(१०) यह विस्तार पहेलेसे ही गीचतापूर्ण है. इस बातका खयाल किये बिना ही हमारे सरकारी अधिकारीयोंने इस विस्तारको और गंदा करने की सोच ली है और वे इसके लिये सक्रीय है.

इस समस्याका समाधान क्या है?

(१) हाउसींग बॉर्डमें और नगर निगममें जो भी सरकारी अधिकारी जीवित है उनका उत्तरदायीत्व माना जाय और उनके उपर कार्यवाही करके उनकी पेन्शनको रोका जाय. उनकी संपत्ति पर जाँच बैठायी जाय ताकि अन्य कर्मचारीयोंको लगे कि गैर कानूनी मार्गोंसे पैसे बनानानेके बारेमें कानून के हाथ लंबे है और कानूनसे कोई बच नहीं सकता. जो भी कमीश्नर अभी भी सेवामें है उनको निलंबित कर देना चाहिये और उनके उपर कार्यवाही करनी चाहिये.

(२) केवल कमीश्नर उपर ही कार्यवाही क्यों?

(२.१) कमीश्नर अकेला नहीं होता है. उसके पास आयोजन करने वाली, निर्माण पर निगरानी रखनेवाली, रखरखाव और अतिक्रमण करनेवाले पर कार्यवाही करने के लिये पूरी टीम होती है. यह बात सही है कि कमीश्नर ये सभी कार्य स्वयं नहीं कर सकता. किन्तु उसका कर्तव्य है कि वह अपनी टीमों के कर्मचारी/अफसरोंका उत्तरदाइत्व सुनिश्चिते करें.

यदि कोई जनप्रतिनिधिने उसके पर दबाव लाया है तो वह उसका नाम घोषित करे. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग करें और ऐसे जन प्रतिनिधियों को प्रकाशमें लावें. वैसे तो इन अधिकारीयोंका मंडल भी होता है. वे अपने हक्कोंके  लिये लडते भी है. किन्तु उनको स्वयंके सेवा धर्मके लिये भी लडना चाहिये. जो नीतिमान आई.ए.एस अधिकारी है वह अवश्य लड सकता है. यदि उसको अपने तबादलेका भय है तो वह न्यायालयमें जा सकता है. वह अपने उपर आये हुए टेलीफोन संवादोंका रेकोर्डींग न्यायालयके सामने रख सकता है.

(३) लेकिन ये आई.ए.एस अधिकारीगण ऐसा नहीं करेंगे. क्यों कि उनकी जनप्रतिनिधियोंके साथ, अपने कर्मचारीयोंके साथ, कोन्ट्राक्टरोंके साथ और बील्डरोंके साथ मिलीभगत होती है. जिनके साथ ऐसा नहीं होता है वे लोग ही दंडित होते है.

(३.१) बेज़मेंटमें कानूनी हिसाबसे आप गोडाउन नहीं बना सकते. यह प्रावधान “फायर प्रीवेन्शन एक्ट के अंतर्गत है. ऐसे गोडाउनमें आग भी लगी है और नगरपालिकाके अग्निशामक दलने ऐसी आगोंका शमन ही किया है. लेकिन ऐसे गोडाऊन आग लगनेके बाद भी चालु रहे है. बेज़मेन्टमें कभी दुकाने नहीं हो सकती. क्यों कि दुकानमें भी सामान होता है. उसके उपर भी “फायर प्रीवेन्शन एक्ट लागु पड सकता है. लेकिन नगर पालिका के मुखीया (कमीश्नर)की तबीयत नहीं गुदगुदाती कि वे ऐसी दुकानों पर कार्यवाही करें.

(३.२) अनधिकृत निर्माण, कर्मचारी/अफसरोंकी लापरवाही, भ्रष्टता, न्यायालयके हुकमोंका अनादर, न्यायालयमें नगरपालिकाकी तरफसे केवीएट दाखिल करने की मनोवृत्तिका अभाव, न्यायालयके हूकमोंमें क्षतियां आदि विषयके समर्थनमें के कई मिसाले हैं कि जिनमें सरकारी (न्यायालय सहित) अधिकारीयोंकी जिम्मेवारी बन सकती है और वे दंडके काबिल होते है.

(३.३) अब यह दुराचार इतना व्यापक है कि न्यायालयमें केस दाखिल नहीं हो सकता. लेकिन विद्यमान सरकारी अफसरों (केवल कमीश्नरों) पर कार्यवाही हो सकती है. इन लोगोंको सर्व प्रथम निलंबित किया जाय, और आरामसे उनके उपर कार्यवाही चलती रहे.

(४) कमीश्नर फुलप्रुफ शासन प्रणाली बनवाने के काबिल है. यदि आप उनके लिये बनाये गये गोपनीय रीपोर्टकी फॉर्मेटके प्रावधानोंको पढें, तो उनकी जिम्मेवारी फिक्स हो सकती है. उनके लिये यह अनिवार्य है कि वे नीतिमान हो, उनकी नीतिमत्ता शंकासे बाहर हो, वे आर्षदृष्टा हो, वे स्थितप्रज्ञ हो, कार्यकुशल हो, कठिन समयमें अपनी कुशलता दिखानेके काबिल हो, सहयोग करने वाले हो, उनके पास कुशल संवादशीलता हो, आदि …

(५) एफ.एस.आई. कम कर देना चाहिये.

(५.१) आज अहमदाबदमें एफ.एस.आई १.८ है. भावनगरके महाराजाके कार्यकालमें भावनगरमें एफ.एस.आई. ०.३ के करीब था. मतलब की आपके पास ३०० चोरस मीटरका प्लॉट है तो आप १०० चोरस मीटरमें ही मकानका निर्माण कर सकते है. उस समय भावनगर एक अति सुंदर नगर था. हर तरफ हरियाली थी. आप जैसे ही “वरतेज” में प्रवेश करते थे वैसे ही आपको थंडी हवाका अहेसास होता था.

(५.२) नहेरुवीयन कोंग्रेसने एफ.एस.आई. बढा दिया. १९७८के बाद भावनगरका विनीपात हो गया. आज वह भी न सुधर सकनेवाला नगर हो गया है. भारतके हर नगरका ऐसा ही हाल है.  

(६) ऐतिहासिक धरोहरवाले मकानोंको छोडके, अन्य विस्तारोंका री-डेवलपमेन्ट (नवसंरचना) कराया जाय. इस प्रकारकी नव संरचनाके के नीतिनियम और प्रक्रिया इसी ब्लोग-साईट पर अन्यत्र विस्तारसे विवरण दिया है.

(७) आई.ए.एस. अधिकारीयों की नियुक्ति बंद कर देना चाहिये. क्यों कि इनमें ९९.९ अधिकारी अकुशल और भ्रष्ट है. इनकी नियुक्तिमें गोलमाल होती है. कैसी गोलमाल होती है उसके बारेमें प्रत्यक्ष और परोक्ष अनेक सबूत है. हम इनकी चर्चा नहीं करेंगे.

(८) कमीश्नरोंकी नियुक्ति ५ सालके कोन्ट्राक्ट पर होनी चाहिये. उनकी नियुक्तिके पूर्व और कार्यकाल समाप्त होने के पश्चात उनकी संपत्तिकी जांच होनी चाहिये.

(९) स्मार्ट सीटीकी परिभाषा निम्न कक्षाकी है. यह परिभाषा व्यापक होना चाहिये. “यदि गुन्हा किया तो १०० प्रतिशत पकडा गया और दंड होगा ही” ऐसा सीस्टम होना चाहिये. और यह बात  असंभव नहीं है.

 “नगर रचना कैसी होनी चाहिये” इसके बारेमें यदि किसीको शिख लेनी है तो वह “गोदरेज गार्डन सीटी, जगतपुर, अहमदाबाद-३८२४७०”की मुलाकात लें.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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