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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

जाति आधारित राज्य रचनाकैसे की जा सकती है? उसकी प्रक्रिया कैसी होनी चाहिये?

हमने जब देशकी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये देशका विभाजन किया तब हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने कुछ गलतीयां की थी. वे गलतीयां हमे जातिआधारित और धर्म आधारित राज्य रचना करनेमें दोहरानी नहीं चाहिये)

तो चलो हम आगे बढें

नहेरुवीयन तुम आगे बढो

एक बात सबको समज़नी है कि हमारी मीडीयाके अधिकतर संचालकगण और नहेरुवीयन कोंग्रेस (नहेरुवीयन कोंग्रेससे मतलब है नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, उसके विद्वान लेखकगण और उसके समर्थक मतदाता गण)  “जैसे थे वादीहै. और यह तथ्य सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है. यदि बीजेपी का कोई भी नेता या बीजेपीके समर्थक गुटका कोई भी नेता सिर्फ एक निवेदन कर दें किआरक्षणके प्रावधान पर पुनर्विचारणा आवश्यक है, और इसके उपर बीजेपीके नेतागण मौन रहे तो नहेरुवीयन कोंग्रेसका चूनाव जीतनेका काम हो ही गया. लेकिन हम जानते है कि बीजेपीको भी चूनाव जीतना है, लिये वह आरक्षण के विरुद्ध नहीं बोलेगी.

तो अब कया किया जाय?

() नहेरुवीयन कोंग्रेसमें वैसे तो हर जातिके लोग है. उनसे उन जातिके नेताओंका पता लगाओ. उनको कैसे अपने पक्षमें लेना इस बातमें तो नहेरुवीयन कोंग्रेस अनुभवी है. उनसे अपनी जातिके लिये आरक्षणका आंदोलन करवाओ. उस नेताको बोलो कि आंदोलनमें कमसे कम ५०००० से १००००० की संख्या तो होने ही चाहिये. जो जितनी जनसंख्या आंदोलनमें लायेगा उसको प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाबसे ५०० रुपये मिलेगा. मान लो कि एक लाख जनसंख्या हुई तो पांच करोड रुपये खर्च हुए.

(.) युपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्र, कर्नाटक, ओरीस्सा, तामिलनाडु, केराला, महाराष्ट्र, इन राज्योंमें ही आंदोलन करनेका है. हरेक के दो, तीन बडे नगरोंमें ही करनेका. एक समयके आंदोलनका पचास करोड रुपये हुए. दस बार आंदोलन करवाया तो पांच हजार करोड रुपये हुए. यह कोई ज्यादा पैसा नहीं हुआ. इससे दो गुना तो माल्याने बेंकका लोन लिया था जो आज तक भरा नहीं है. नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये तो यह बडी बात है ही नहीं.

() मीडीया वाले, नहेरुवीयन कोंग्रेसको खुश होकर सहयोग करेंगे क्यों कि, इसमें उनको भी तो लाभ है. भूतकालमें भी मीडीयाकर्मीयोंने खूब लाभ करवाया है. जातिवादसे भारतको कैसे कैसे लाभ किया उस पर आप चेनलोंमें चर्चा चालु करें. यदि कहीं भी मौत होती है या अत्याचार होता है तो वह व्यक्ति कौनसी जातिका है उसके उपर चर्चा करें. आपके पास तो असामाजिक तत्त्वोंकी कमी तो है ही नहीं. तत्वोंको बीजेपीमें, बजरंग दलमें, विश्वहिन्दु परिषदमें भर्ती कराओ. फिर उनको बोलो कि वे उन जातिके व्यक्तिओंको चूने जो आपके द्वारा बनाई हूई सूचीमें आरक्षणके लिये समाविष्ठ है और गरीब भी है. एक सप्ताहमें सात जिलेमें हररोज एक अत्याचार करवाओ. और हररोज चेनलमें इस अत्याचारके विरुद्ध चर्चा चलाओ. मीडीयावाले भी खुश रहेंगे क्यों कि उनको घर बैठे मसाला मिल जायेगा और चर्चा का मौका भी मिल जायेगा. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण बीजेपीके शासनकी भर्त्सना करते रहेंगे. ये लोग दलित जातियोंके प्रति ही नहीं किन्तु हर गरीब जनताके प्रति बीजेपी कितनी संवेदन हीन है और नहेरुवीयन कोंग्रेस कितनी प्रतिबद्ध है यह बात लगातार बोलते रहेंगे. साथ साथ गरीबोंके हितके लिये राज्योंकी पूनर्र्चनाकी बात भी चलती रहेगी. नहेरुवीयन कोंग्रेस पैसे खर्च करनेमें सक्षम है, गुजरातके ४४ एमएलए को हवाई जहाजमें बैठाके हजार मील दूर रीसोर्टमें कैसा मजा करवाया यह बात तो हम जानते ही है.

() नहेरुवीयन कोंग्रेसको जनताको भरोसा दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चना में उनकी जातिका पूरा ध्यान रखा जायेगा. मुस्लिम जनताको और ख्रिस्ती जनताको भी अहेसास दिलाना पडेगा कि राज्योंकी पूनर्र्चनामें उनको लाभ ही लाभ होगा.

() नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रचार करेगी कि जाति आधारित राज्य रचनासे हरेक जातिका संस्कार, संस्कृति और विकासके द्वार खूल जायेंगे. इस काम के लिये नहेरुवीयन कोंग्रेस जनगणना करवायेगी ताकि हरेक जातिको और धर्मको विकसित होनेका अवसर मिले.

() जनगणना कैसे होगी?

(.) आपके लिये सर्व प्रथम क्या है. धर्म, जाति, भाषा या देश?

(.) जो लोग देश लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग धर्म लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा

(.) जो लोग जाति लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) जो लोग भाषा लिखेंगे उनका लीस्ट अलग बनेगा.

(.) भाषामें तीन प्राथमिकता रहेगी. मातृभाषा, हिन्दी या तमील, अंग्रेजी.

(.) हर हिन्दु व्यक्ति अपना धर्म, जाति, उपजाति, उपउप जाति, उपउपउपजाति, गोत्र, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गुरु आदि के बारेमें सरकारको माहिति देगा.

(.) हर मुस्लिम व्यक्तिको लिखवाना पडेगा कि वह सिया, सुन्नी, अहेमदीया, सुफी, दिने इलाही, वहाबी, शरियती, या जो भी कुछ भी हो वह है.

(.) हर ख्रिस्ती व्यक्तिको मुस्लिमोंकी तरह अपनी माहिति देगा.

(.४९ अन्य धर्मवाले भी ऐसा ही करेंगे.

ये सब माहिति गुप्त रखी जायेगी.

()  इस प्रकारकी जनगणनाके बाद उनका वर्गीकरण किया जायेगा, हरेक वर्गका उपवर्गीकरण, उपवर्गका उपउपवर्गीकरण, उपउपवर्गीकरणका उपउपउप वर्गीकरण किया जायेगा.

() हर प्रकारके वर्गीकरणकी जनसंख्या निकाली जायेगी.

() मुख्य वर्गधर्मरहेगा. धर्मके आधार पर राज्य बनाया जायेगा.

() धर्मका एक दुसरेके साथ प्रमाणका कलन किया जायेगा. भारतकी कुलभूमिमें हर धर्मके हिस्सेमें कितनी भूमि आयेगी उसका कलन किया जायेगा.

यक्ष राज्य

(१०) जिन्होनेंसर्व प्रथम देशलिखा है उनके लिये सीमा वर्ती विस्तार रहेगा. इस प्रकार, राजस्थान, गुजरात, कोंकण, कर्नाटककेराला, तमीलनाडु, ओरीस्सा, पश्चिम बंगाल, पूरा उत्तरपूर्व, हिमालयसे संलग्न विस्तार, पूरा जम्मु और काश्मिर राज्य इन सब राज्योंको मिलाके सीमा रेखासे २५० किलोमीटर अंदर तक के विस्तारवाला यक्षराज्य बनेगा. यक्षराज्यसे मतलब है सीमाका राज्य.

(११) यक्षराज्यकी सुरक्षा रेखा पर सुरक्षा सेना के निवृत्त कर्मचारीयोंको बसाया जायेगा.

(१२) यक्ष राज्य पूरा केन्द्र शासित राज्य रहेगा.

हिन्दु राज्य

(१३) यक्ष राज्यके पीछेहिन्दु राज्य आयेगा. हिन्दु राज्यमें जातिके आधारपर जिल्ले बनेंगे. हर जिल्लेमें जातिके उपजाति के आधार पर तहेसील बनेंगे. हर तेहसीलमें गोत्रके आधार पर नगर और ग्राम बनेंगे. एक नगरमें या ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेंगे. एक गोत्र इसलिये कि, समान  गोत्रमें शादी नहीं हो सकता. एक गोत्रकी कन्या और वही गोत्रका दुल्हा एक दूसरेके बहेन और भाई बनते है. इस प्रकार कन्याओंको सुरक्षा प्रदान होगी. क्यों कि कोई अपनी बहेनको छेडता नहीं.

प्रकीर्ण धर्म राज्य

(१४) हिन्दु राज्यके पीछे जिन्होनेंप्रकिर्ण धर्म वाले मतलब कि यहुदी, अन्य बिनख्रिस्ती, बिनमुस्लिम धर्म वाले आयेंगे. जिनके धर्मके आधार पर जिल्ला और या तहेसील और या नगर/ग्राम बनेंगे.

ख्रिस्ती राज्य

(१५) प्रकीर्ण धर्म राज्यके पीछे ख्रिस्ती राज्य आयेगा. ख्रिस्ती धर्मके वर्गीकरणके हिसाबसे उनके जिल्ला, तेहसील और नगर/ग्राम रहेंगे.

मुस्लिम राज्य

(१५) ख्रिस्ती राज्यके पीछे मुस्लिम राज्य आयेगा. मुस्लिम धर्मके आंतरिक वर्गीकरण के हिसाब से उसके राज्यमें जिल्ला, तहेसील, नगर/ग्राम आदि बनेंगे.

भाषा प्रथमका क्या?

(१६) जिन्होनेभाषा प्रथमलिखाया है उनको केन्द्रसे यक्षराज्य और हिन्दु राज्यकी सीमासे लेकर भौगोलिक केन्द्र तक एक यथा योग्य चौडाईवाला विस्तार अंकित किया जायेगा उसमें भीन्न भीन्न भाषा प्राधान्यवाले का विस्तार आयेगा.

(१७) हरेक धर्मराज्यको आर्टीकल ३७०की सुविधा मिलेगी.

देशका धर्मजाति आधारित पूनर्र्चनाका सैधांतिक चित्र देखो. और भारतका प्रास्तावित चित्र भी देखो.

india राज्य

india

ध्रर्मजाति आधारित राज्यके लाभ

() धर्म, जाति और भाषाको लेकर आंतरिक युद्धकी शक्यताका निर्मूलन

() जाति आधारित आरक्षणकी समस्याका निर्मूलन

() आतंकवादका निर्मूलन आसान

() काश्मिरकी आतंरिक समस्याका निर्मूलन

() नये राज्योंकी मांग अशक्य

() मतबेंककी सियासत नष्ट,

धर्म और जाति आधारित राज्यों की समस्याएं क्या हो सकती है? और उनको कैसे हल किया जाय?

() जनताका स्थानांतरणः कोम्प्युटरकी मददसे प्रवर्तमान नगर और ग्राममें मकानका विस्तार और संख्यामें उपलब्धता और धर्मके आधार पर वर्गीकृत व्यक्तिओंकी उचितताके आधार पर आबंटन.  और उस आधारपर सरकार द्वारा आयोजन करके स्थानांतरण.

() एक नगर/ग्राममें एक ही गोत्रके लोग रहेते है तो शादीकी समस्या कैसे हल की जाय? शादीईच्छुक लोगोंकी और वाग्दत्त/वाग्दत्ताओंकी आवन जावन बढेगी तो सरकारका टेक्ष टीकीटों द्वारा राजस्व बढेगा.

() एक धर्मके लोगोंका अन्य राज्यमें धार्मिक स्थल है. इससे राज्यका पर्यटन व्यवसाय बढेगा.

() सभी राज्य क्लोझ्ड सरकीटमें है, इसलिये क्लोझ्ड सरकीट मार्गव्यवहार बढेगा और देशकी तरक्की होगी. व्यवसायमें वृद्धि होगी

() एक ही जातिके लोग परस्पर झगडेंगे इस कारण जनताका एक ही उपउपउप ज्ञातिमें और विभाजन होगा, तो इससे नये नगर बनेंगे और विकास होगा. नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसे विभाजनोंका लाभ ले सकती है. इस लिये नहेरुवीयन कोंग्रेसके संस्कारको क्षति नहीं आयेगी.

() जिस व्यक्तिका राज्य पूनर्रचनाके बाद जन्म हुआ वह जब वयस्क हुआ तो वह अपनी पसंदका राज्य कर सकता है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः नहेरुवीयन कोंग्रेस, मीडीयाकर्मी, लेखक, विद्वान, सांस्कृतिक सहयोगी पक्ष, धर्म, जाति, भाषा, उप, उप-उप, उप-उप-उप, ईष्टदेव, ईष्टदेवी, गोत्र, यक्ष, हिन्दु, राज्य, प्रकिर्ण, ख्रिस्ती, मुस्लिम, यहुदी

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नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये सुनहरा मौका

“जातिवाद आधारित राज्य रचना” की मांग रक्खो

जी हाँ, नहेरुवीयन कोंग्रेसके लिये, प्रवर्तमान समय एक अतिसुनहरा मौका है. सिर्फ नहेरुवीय कोंग्रेस ही नहीं लेकिन उसके सांस्कृतिक साथीयोंके लिये भी यह एक सुनहरा मौका है. इस मुद्देका लाभ उठा के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता भी प्राप्त कर सकती है.

आप पूछोगे कि ऐसा कौनसा मुद्दा है जिस मुद्देको उछाल के नहेरुवीयन कोंग्रेस सत्ता प्राप्त कर सकती है?

अब आप एक बात याद रख लो कि जब भी हम “नहेरुवीयन कोंग्रेस” शब्दका प्रयोग करते है आपको इसका निहित अर्थ “नहेरुवीयन कोंग्रेस पक्ष और उसके सांस्कृतिक साथी” ऐसा समज़ना है. क्यों कि समान ध्येय, विचार और आचार ही तो पक्षकी पहेचान है.

तो अब हम बात आगे चलावें

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय

नहेरुवीयन कोंग्रेसका ध्येय नहेरु वंशको आगे बढाना है, नहेरुवीयन वंशज के लिये सत्ता प्राप्त करना है ताकि वे सत्ताकी मौज लेते रहे और अन्य लोग स्वंयंके परिवार और पीढीयोंकी आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा और सुख के लिये पैसा कमा सके.

तो अब क्या किया जाय?

देखो, अविभक्त भारतमें हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंकी समस्या थी. तो नहेरुने हिन्दु राष्ट्र और मुस्लिम राष्ट्रके फेडर युनीयनको नकार दिया और पाकिस्तान और भारत बनाया. लेकिन कुछ समय बाद मतोंकी भाषा राष्ट्रभाषा और राज्य भाषाकी समस्याओंका महत्व सामने आया. तो हमने (नहेरुवीयन कोंग्रेसने)  भाषाके आधार पर राज्योंकी रचना की.

अब इसमें क्या हूआ कि हिन्दु-मुस्लिम झगडोंकी समस्या तो वहींकी वहीं रही लेकिन इस समस्या पर आधारित अन्य समस्याएं भी पैदा हूई. उसके साथ साथ भाषा के आधार पर और समस्याएं पैदा होने लगी. भूमि-पुत्र और जातिवाद आधारित समस्याएं भी पैदा होने लगी.

आप कहेंगे कि क्या इन समस्याओंका समाधान करने की नहेरुवीयन कोंग्रेसने कोशिस नहीं की?

अरे वाह !! आप क्या बात कर रहे हो? नहेरुवीयन कोंग्रेसने तो अपने तरीकेसे समस्याका हल करनेका पूरी मात्रामें प्रयत्न किया.

नहेरुवीयन तरीका क्या होता है?

कोई भी समस्या सामने आये तो उसको अनदेखा करो. समस्या कालचक्रमें अपने आप समाप्त हो जायेगी…

अरे वाह !! यह कैसे?

देखो हिन्दु-मुस्लिम समस्याको हल ही नहीं क्या. इसके बदले नहेरुने जीन्नाके साथ झगडा कर दिया. फिर हिन्दुस्तान पाकिस्तान हो गया. और हिन्दु-मुस्लिम झगडा तो कायम रहा.

समस्याका समाधान

तिबट अपनी आझादी बचाने के लिये संघर्ष कर रहा था. हमारी समस्या थी कि तिबटकी सुरक्षा कैसे करें !! तो नहेरुने चीनके साथे दोस्ती करके तिबट पर चीनका प्रभूत्व मान लिया. लेकिन एक और समस्या पैदा हुई कि चीन हमारे देशकी सीमाके पास आ गया और उसने घुसखोरी चालु की. तो नहेरुने पंचशील का करार किया. तो कालक्रममें चीनने भारत पर आक्रमण कर दिया. जरुरतसे ज्या भूमि पर कब्जा कर दिया. तो हमारा पूराना सीमा विवाद तो रहा नहीं. वह तो हल हो गया. नया सीमा विवादका तो देखा जायेगा. तिबटकी समस्या हमारी समस्या रही ही नहीं.

पाकिस्तान हमारा सहोदर है. पाकिस्तानमें आंतरविग्रह हुआ तो पूर्वपाकिस्तानसे घुस खोर लाखोंकी संख्यामें आने लगे. तो हमारे लिये एक समस्या बन गई. इन्दिरा गांधीने यह समस्या प्रलंबित की. तो पाकिस्तानने भारतकी हवाई पट्टीयों पर आक्रमण कर दिया. हमारी सेनाने पाकिस्तानको परास्त किया तो भारतको घुसखोरोंके साथ साथ ९००००+ युद्ध कैदीयोंको खाने पीनेका इंतजाम करना पडा. सिमला करार किया और युद्ध कैदी पश्चिम पाकिस्तानको ही परत कर दिया. तो कालचक्रमें आतंकवाद पैदा हो गया. तो हिन्दु लोग विस्थापित हो गये. उनका पूनर्वसनकी समस्या पैदा गई. होने दो. ऐसी समस्याएं तो आती ही रहती है. विस्थापित हिन्दुओंकी समस्याको नजर अंदाज कर दो. हिन्दु लोग अपने आप निर्वासित कैंपसे कहीं और जगह अपना मार्ग ढूंढ लेगे. नहेरुवीयनोने कुछ किया नहीं. आतंकी मुस्लिम लोग भारतमें घुसखोरी करने लगे और बोंब ब्लास्ट करने लगे. आतंकी मुस्लिम अपना अपना गुट बनाने लगे. स्थानिक मुस्लिमोंका सहारा लेने लगे. उनको गुट बनाने दो हमारा क्या जाता है. एक समस्या को हल नहीं करनेसे कालांतरमें अनेक और समस्याएं पैदा होती है. और मूल समस्याका स्वरुप बदल जाता है. तो उसको नहेरुवीयन लोग समाधान मान लेते है और मनवा लेते है.

जातिवादी समस्या भी ऐसी ही थी. अछूतोंके लिये आरक्षण रक्खा. अछूतोंका उद्धार नहीं किया लेकिन उनके कुछ नेताओंका उद्धार किया. और आरक्षण कायम कर दिया. तो और जातियां कहेने लगी हमें भी आरक्षण दो. नहेरुवीयनोंने एक पंच बैठा दिया और जिनको भी आरक्षण चाहीये वे अपनी जातिका नाम वहां दर्ज करावें. अब आरक्षणका व्याप बढने लगा. जिसने भारत पर दो शतक राज्य किया वे मुस्लिम लोग कहेने लगे हम भी गरीब है हमें भी आरक्षण दो. तो नहेरुवीयनोंने कहा कि तुम्हे अकेलेको आरक्षण देंगे तो हम तुम्हारा तुष्टी करण करते है ऐसा लोग कहेंगे. इस लिये उन्होने “लघुमति”के लिये विशेष प्रावधान किये. रामके वंशज रघुवंशी कहेने लगे हमे भी आरक्षण दो. क्रुष्णके वंशज यादव कहेने लगे हमें भी आरक्षण दो. अब जब भगवानके वंशज आरक्षण मांगने लगे तो और कौन पीछे रह सकता है?

जटने बोला हमें भी आरक्षण दो. महाराष्ट्रके ठाकुरोंने बोला कि हमें भी आरक्षण दो. अब हुआ ऐसा कि कमबख्त सर्वोच्च अदालतने कहा कि ४९ प्रतिशतसे अधिक आरक्षण नहीं दे सकते. तो अब क्या करें?

आरक्षण, हिन्दु-मुस्लिम और हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याओंका कोई पिता है तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस है. उसको सहाय करने वाले भी अनेक बुद्धिजीवी है उनका एजंडा भी नहेरुवीयनोंकी तरह “जैसे थे”-वादी है. ये लोग वास्तवमें दुःखी जीवनका कारण पूर्वजन्मके पाप मानते है इसलिये समस्याके समाधान पर ज्यादा चिंता करना आवश्यक नहीं है. सब लोग अपनी अपनी किस्मत लेके पैदा होते है. इसलिये समस्याओंका समाधान ईश्वर पर ही छोड दो. ईश्वरके काममें हस्तक्षेप मत करो.

लेकिन हमसे रहा नहीं जाता है. हम नहेरुवीयन कोंग्रेसका आदर करते है. कटूतासे हम कोसों दूर रहते है. त्याग मूर्ति नहेरुवीयन कोंग्रेसको सत्ता प्राप्त करनेका और वह भी यावतचंद्र दिवाकरौ तक उसीके पास सत्ता रहे ऐसा रास्ता हम दिखाना चाहते है.

यह रास्ता है कि नहेरुवीयन कोंग्रेस ऐसी छूटपूट जातिवादी आधारित आरक्षण और धर्म आधारित आरक्षणके बदले धर्म और जाति आधारित “राज्य रचना”की मांग पर आंदोलन करें. ऐसा आंदोलन करनेसे उसको सत्ताकी प्राप्ति तो होगी ही, उतना ही नहीं, धर्म आधारित और जाति अधारित राज्य रचनासे हिन्दु-मुस्लिम समस्याएं, हिन्दु-ख्रिस्ती समस्याएं, मुस्लिम-ख्रिस्ती समस्याएं, भाषा संबंधित समस्याएं जातिवादी समस्याएं, आरक्षण संबंधी समस्याएं, आर्टीकल “३५-ए” संबंधित समस्या, आर्टीकल ३७० संबंधित समस्या, पाकिस्तान हस्तक काश्मिर समस्या, आतंकी समस्या, पत्थरबाज़ोकी समस्या आदि कई सारी समस्याएं नष्ट हो जायेगी.

आप कहोगे ऐसा कैसे हो सकता है?

आप कहोगे भीन्न भीन्न जातिके, भीन्न भीन्न धर्मके लोग तो बिखरे पडे है और राज्य तो भौगोलिक होगा है. धर्म और जाति आधारित राज्य रचना करनेमें ही अनेक समस्याएं पैदा होगी. और यदि ऐसी राज्य रचना हो भी गई तो इसके बाद भी कई प्रश्न उठेंगे जिनका समाधान असंभव है. यदि आप समास्याओंके समाधानके लिये नहेरुवीयन तरीका अपनावें तो ठीक है लेकिन आपको पता होना चाहिये कि समस्याको हल ही नहीं करना, समस्याका समाधान नहीं है. मान लो कि नहेरुवीयन कोंग्रेसने जाति आधारित और धर्म आधारित राज्य रचनाके मुद्दे पर आंदोलन चलाया और सत्ता प्राप्त भी कर ली, तो वह कैसे जाति और धर्म पर आधारित राज्य रचना करेगी. यदि आप नहेरुवीयन कोंग्रेसकी अकर्मण्यता पर विश्वास करते है तो आप दे सकते है कि नहेरुवीयन कोंग्रेसका क्या हाल हुआ. समस्याका समाधान किये बिना नहेरुवीयन कोंग्रेस अब सत्ता पर नहीं रह सकती.

अरे भाई, हम अब नहेरुवीयन कोंग्रेसका उद्धार करनेके लिये प्रतिबद्ध है और हम उसको एक क्षति-रहित फोर्म्युला वाली सूचना देना चाहते है.

(क्रमशः)

शिरीष मोहनलाल दवे

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क्या आप भारतके होतैषी है? और फिर भी क्या आप इनमेंसे कोई एक  वर्गमें भी आते हैं?

अगर हां, तो सावधान !

हम वार्ता करेंगे इन वर्गोंकी जो भारतकी संस्कृति और भारतका भविष्य उज्वल बनाने के लिये भयावह है, विघ्नरुप है और बाधक भी है.

ये लोग कौन कौन है?

(१) ये लोग, अपनेको स्वयं प्रमाणित मूर्धन्य मानते है और अति-वाचाल है,

(२) ये लोग भारतके इतिहाससे या तो अर्धदग्ध है, या तो इन लोगोंने क्षतियुक्त इतिहास, ज्यों का त्यों पढ लिया है, और उसका स्विकार करके अपनी मान्यता बना ली है. वे लोग अपनी इस मान्यताके उपर अटल है,

(३) ये लोग अपनी मान्यताओंको नकारने वाले साहित्यका वाचन करना उचित मानते नहीं है, इस लिये आप उनको शिक्षित नहीं कर सकते.

(४) ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

(५) ये लोग देश द्रोही हो सकते है,

(६) ये लोग “जैसे थे” वादी हो सकते है,

(७) ये लोग नकात्मक मानसिकता वाले हो सकते है,

(८) ये लोग मूर्ख और मूढ हो सकते है,

(९) ये लोग नहेरुवंशके चाहक या/और उनकी विचार/आचार धाराके चाहक हो सकते है,

(१०) ये लोग महात्मा गांधीके विरोधी, या/और उनकी विचारधारा के विरोधी हो सकते है,

(११) ये लोग गोडसेके चाहक या/और उसकी आचार धाराके चाहक हो सकते है,

(१२) ये लोग अहिंसा और हिंसा कहां योग्य है और कहां योग्य नहीं है इस बातको अवगत करनेकी वैचारिक शक्ति नहीं रखते है,

(१३) ये लोग भारतके हितमें क्या है और कैसी व्युह रचना बनानी आवश्यक है, इन बातोंको अवगत करनेमें असमर्थ है  या/और,  जिन लोंगोंने नरेन्द्र मोदीका और भारतीय हितोंका पतन करनेकी ठान ली है उनकी व्युहरचनाको अवगत करनेकी उनमें क्षमता नहीं है,

(१४) ये लोग जिन्होनें अपना उल्लु सीधा करनेके लिये भारतकी जनताको और/या भारतको और विभाजित करनेका अटल निश्चय किया है,

(१५) ये लोग जो अपना उल्लु सीधा करनेके लिये, नरेन्द्र मोदी और बीजेपीके विषयमें आधार हीन, या/और विवादास्पद वार्ताएं बनाते हैं, उछालते हैं और हवा देते हैं,

(१६) ये लोग जो, या तो अपने धर्मके विषयमें अंध है, या परधर्मके बारेमें या/और परधर्मीयोंके विषयमें सतत धिक्कारकी मानसिकता या/और आचार रखते है,  

(१७) ये लोग स्वयंको धर्मनिरपेक्षके रुपमें प्रस्तूत करते हैं, किंतु उनके रोम रोममें, नरेन्द्र मोदी या/और, बीजेपी या/और सनातन धर्म या/और भारतीय प्राचीन धरोहर के प्रति अस्विकृतिकी मानसिकता या/और घृणा है,

(१८) ये लोग एक विवादास्पद तारतम्य की सत्यताको सिद्ध करनेके लिये दुसरे विवादास्पद तारतम्यका आधार लेते है और अपने निर्णय को तर्कयुक्त मानते है और मनवाते है,

(१९) ये लोग पाश्चात्य साहित्य, इतिहास लेखन, दृष्टिकोण, प्रणालियां या/और व्यक्तियोंसे अभिभूत है.

इन सबकी वजह यह है कि, इन लोगोंमें प्रमाणभानकी और प्राथमिकताकी प्रज्ञा नहीं है, इस लिये ये लोग आपसे एक निश्चित विचार बिन्दु पर चर्चा नहीं करपायेंगे और करेंगे भी नहीं. वे दुसरा विचार बिंदु पकड लेंगे,

अगर आप इनमेंसे कोई भी एक वर्गमें आते है और तत्‌ पश्चात्‌  भी स्वयंको भारतके हितमें आचार रखने वाले मानते हैं, तो आप अवश्य आत्ममंथन करें. यदि आप आत्ममंथन नहीं करेंगे तो भारतके हितैषीयोंको आपसे सावध रहेना पडेगा.

(१) ये लोग, अपनेको स्वयं प्रमाणित मूर्धन्य मानते है और अति-वाचाल है;

भारत ही नहीं किन्तुं दुनियाका मध्यमवर्ग सोसीयल मीडीयासे संबंधित है. समाचार माध्यममें भी कई लोग ऐसे है, जो अपनेको मूर्धन्य मानते है और इस प्रकारसे अपने अभिप्राय प्रकट करते रहेते हैं.

समाचारपत्र और विजाणुमाध्यम का प्राथमिककर्तव्य है कि वे जनताकी अपेक्षाएं और मान्यताओंको प्रतिबिंबित करें और उनके उपर सुज्ञ व्यक्तियोंकी तात्विक चर्चा करवायें.

जो व्यक्ति चर्चा चलाता है उसका कार्यक्षेत्र संसदमें जो कार्यक्षेत्र संसदके अध्यक्षका होता है, उसको निभाना है, किन्तु वह ऐसा करनेके स्थानपर अपनेविचारसे विरोधी विचार रखने वाले पक्षके वक्ताके प्रति भेदभावपूर्ण वर्तन करता है. कई बार वह चर्चाको, उस चर्चा बिन्दुसे दूर ले जाता है. चर्चाको निरर्थक कर देता है. बोलीवुडके हिरोकी तरह वह खुदको ग्लोरीफाय करता है. अर्णव गोस्वामी, पंकज पचौरी, करण थापर, राजदिप सरदेसाई, राहुल कनवाल, विनोद दुआ, पून्यप्रसून बाजपाई, आशुतोष, निधि कुलपति, बरखा दत्त, नलिनी सिंग, आदि कई सारे हैं. जिनकी एक सुनिश्चित एवं पूर्वनिश्चित दिशा होती है.  चर्चाद्वारा वे उसई दिशामें हवा बनानेका प्रयास करते हैं. अधिकतर विजाणु संचार प्रणालीयां ख्रिस्ती और मुस्लिम संस्थाओंने हस्तगत की है, इस लिये उनकी दिशा और सूचन पूर्वनिश्चित होता है.

प्रभु चावला, डॉ. मनीषकुमार, संतोष भारतीय, सुरेश चव्हाण जैसे सुचारु रुपसे चर्चा चलाने वाले चर्चा संचालक अति अल्प संख्यामें हैं.

कुछ कटारलेखक (कॉलमीस्ट) होते हैं जो मनमानीसे समाचारपत्रमें वे अपनी अपनी कॉलम चलाते है. वे सब बंदरके व्यापारी होते है.

सोसीयल मीडीयामें कई मध्यम वर्गके, मेरे जैसे लोग भी होते है. जो अपने वेबसाईट ब्लॉग चलाते है और अपनी प्रतिक्रिया देते रहते हैं.

इनमें हर प्रकारके लोग होते हैं. कुछ लोग अ-हिन्दु होते हुए  भी हिन्दु नाम रखकर, हिन्दुओंको असंमंजसमें डालनेका काम करते है. अल्पसंख्यक होने पर भी नरेन्द्र मोदी और बीजेपीको समर्थन करनेवाले बहुत ही कम लोग आपको सोसीयल मीडीयामें मिलेंगे.

(२) ये लोग भारतके इतिहाससे या तो अर्धदग्ध है, या तो इन लोगोंने क्षतियुक्त इतिहास ज्यों का त्यों पढ लिया है और उसका स्विकार करके अपनी मान्यता बना ली है और अपनी इस मान्यताके उपर अटल है;

aryan invasion

अंग्रेज सरकार के हेतु और कार्यशैलीसे ज्ञात होते हुए भी,  अज्ञानी की तरह मनोभाव रखना इन लोगोंका लक्षण है.

यह बात दस्तावेंजों द्वारा सिद्ध हो गई है कि अंग्रेज सरकारका ध्येय भारतीय जनताको विभाजित करके उनको निर्बल बनाना और निर्‍विर्य बनाना था. भारतके प्राचीन ग्रंथोंको आधारहीन घोषित करना. उनको सिर्फ मनगढंत मनवाना, और अ-भारतीयोंने जो लिखा हो या तो खुदने जो तीकडमबाजी चलाके कहा हो उसको आधारभूत मनवाना और उनको ही शिक्षामें संमिलित करना, अंग्रेजोंकी कार्यशैली रही है.

उन्होने पौराणिक इतिहासको नकार दिया. उन्होने “आर्य” को एक प्रजाति घोषित कर दिया. उन्होंने आर्योंकों आक्रमणकारी और ज्यादा सुग्रथित व्यवस्थावाले बताया. भारतमें इन आर्योंका आगमन हुआ, आर्योंको, उनके घोडेके कारण विजय मीली. उन्होने भारतवासी प्रजाको हराया. उन्होने उनके नगर नष्ट किये. उन्होने पर्वतवासी, जंगलवासी आदिवासीयों पर भी आक्रमण किया. सबको दास बनाया.

इस प्रकार भारतको आदिवासी, द्रविड और आर्य जातिमें विभाजित कर दिया. आज करुणानिधि, जयललिता, मायावती, उत्तरपूर्वके वनवासी नेतागण आदि सभी लोगोंकी मानसिकता जो हमें दिखाई देती है, यह बात इस विभाजनवादी मान्यताका दुष्‌परीणाम है.

अंग्रेज सरकारने दुषित, कलुषित और अनर्थकारी इतिहास पढाके, भारतवासीयोंमें अपने ही देशमें अपने ही देशकी उत्तमोत्तम धरोहरसे वंचित रहेनेकी मानसिकता  पैदा की है. इन दुषित मान्यतांके मूल इतने गहन है कि अब अधिकतर विद्वान उसके उपर पुनः विचार करना भी नहीं चाह्ते, चाहे इस इतिहासमें कितना ही विरोधाभास क्यूं न हो.

इन विषयों पर चर्चा करना आवश्यक नहीं है. क्यों कि कई सुज्ञ लोगोंने जिन्होनें भारतीय वेद, उपनिषद और पुराण और आचारोंद्वारा लिखित ग्रंथोंका अध्ययन किया है उन्होनें इस विभाजनवादी मान्यतामें रहे विरोधाभासोंको प्रदर्शित करके अनेक प्रश्न उठाये है. इन प्रश्नोंका तार्किक उत्तर देना उनके लिये अशक्य है. इस विभाजनवादी मान्यताको दयानंद सरस्वती, सायणाचार्य, सातवळेकर और अनेक आधुनिक पंडितोंने ध्वस्त किया है. इसके बारेमें ईन्टरनेट पर प्रचूरमात्रामें साहित्य उपलब्ध है.  

विभाजनवादी अंग्रेज सरकारने भारतीयोंको कैसे ठगा?

जो लोग अपनेको आदिवासी मानते हैं वे समझते है कि भारतमें स्थायी होनेवाले आर्योंने हमपर सतत अन्याय किया है. हमारा शोषण किया है. ये जो नये आर्य (अंग्रेज ख्रिस्ती) आये है वे अच्छे हैं. ख्रिस्ती बनाके उन्होने हमारा उद्धार किया है.

उदाहरण के आधार पर, आप, मेघालयकी आदिवासी “खासी” प्रजा को ही लेलो. पहेले उनकी भाषा सुग्रथित लिपि देवनागरी लिपि की पुत्री, बंगाली लिपिमें लिखी जाती थी. लेकिन जब वहां ख्रिस्तीधर्मका प्रभाव बढा और उनको एक अलग राज्यकी कक्षा मिली, तो उन्होने रोमन लिपि अक्षर लिपि है, जो उच्चारोंके बारेमें अति अक्षम है उस “रोमन” लिपिको अपनी लिपि बना ली.

आदिवासी जनताके मनमें ऐसी ग्रंथी उत्पन्न कर दी है कि उनको भारतीय साहित्य, कला, स्थापत्य और संस्कृति पर जरा भी गौरव और मान  ही न रहे. वे इनको पराया  मानते है.   

मुस्लिम लोग तो अपनेको भारतीय संस्कृतिको अपना अंग मानते ही नहीं है. उनकी तो मान्यता है कि, भारतके आर्य तो एक विचरित जातिके थे. उन्होने भारतकी मूल सुसंस्कृत जनताकी संस्कृतिको ध्वस्त किया. इन भारतीयोंको हमने ही सुसंस्कृत किया है.

भारतीय गुलामी

भारतीय जनता हमेशा युद्धमें हारती ही रही है, कुछ लोग इस गुलामीका अंतराल २३०० से १२०० सालका मानते है.

अलक्षेन्द्रने भारत के एक सीमान्त राजा पर्वतराजको हराया, तो बस समझ लो पूरे भारतकी गुलामी प्रारंभ हो गई. या तो कोई मुस्लिम राजाने १२०० साल पहेले सिंधके राजाको हराया तो १२००से पूरा भारत गुलाम हो गया. बस साध्यं इति सिद्धं. 

वास्तवमें क्या था?  वास्तवमें मुस्लिम राजाओंको ६०० साल तक भारतके अधिकतर राजाओंको हराने के लिये परिश्रम करना पडा था.

विजयनगरका साम्राज्य एक मान्यताके अनुसार मोगल साम्राज्यसे भी बडा था. मुगलसाम्राज्यका जो स्वर्णयुग और मध्यान्हकाल था उस अकबर के समयमें भी, अकबरको राणा प्रतापको हराना पडा था. और बादमें राणाप्रतापने अपना युद्ध जारी रखके चित्तोर को छोडकर अपनी धरती वापस ले ली थी. औरंगझेबके समयमें भी शिवाजी जैसे विद्रोही थे जिन्होने औरंगझेबकी सत्ता को नष्टभ्रष्ट कर दिया था.

एक बात और है. क्या मुगलका समय भारतीयोंके लिये गुलामीका समय था?

शेरशाह के समयसे ज्यादातर मुस्लिम राजाओंने भारतको अपना ही देश समझा है. भारतीय संस्कृतिका आदर किया है. उन्होने ज्यादातर एक भारतीय राजाके संस्कारका ही आचारण किया है. दुराचारी तो कोई न कोई राजा होता है चाहे वह हिन्दु हो या मुस्लिम हो.

किन्तु अंग्रेज सरकारने यह पढाया कि मुस्लिम धर्मवाले राजा मुस्लिम होनेके कारण हिन्दुओंकी कत्लेआम किया करते थे. अगर ऐसा ही होता तो अकबर और औरंगझेबके सैन्यमें हिन्दु सैनिक नहीं होते और शिवाजीके सैन्यमें मुस्लिम सैनिक नहीं होते. इतना ही नहीं, बहादुर शाह जफर जिसका राज्य सिर्फ लालकिलेकी दिवालों तक सीमित था, तो भी  उसके नेतृत्वमें विप्लव करना और उसको भारतका साम्राट बनाना ऐसा १८५७में निश्चित हुआ था. यदि मुस्लिम राजा हिन्दुस्तानी बन गये नहीं होते तो ऐसा नहीं होता. इस बातसे समझ लो कि मुगल साम्राज्य विदेशी नहीं था. जैसे शक, पहलव, गुज्जर, हुन जैसी जातियां भारतके साथा हिलमिल गई, वैसे ही मुस्लिम जनता भी भारतसे हिलमील गई थीं. अंग्रेजोने अत्याचारी मुस्लिम राजओंका इतिहास बढाचढाके पढाया है.

कोई देश गुलाम कब माना जायेगा?

कोई देश तभी गुलाम माना जायेगा जब उसकी धरोहर नष्ट कर दी जाती है. राजा बदलनेसे देश गुलाम नहीं हो जाता. मुस्लिम राजाओंने और मुस्लिम जनताने भी भारतकी कई प्राणालीयोंका स्विकार किया है. अगर आप पंजाबी मुस्लिम (पाकिस्तान सहितके),  और पंजाबी हिन्दु के लग्नमें जाओगे तो पाओगे कि दोंनोमें एकसी पगडी पहेनते है. स्त्रीयां एक ही प्रकारके लग्नगीतें गातीं हैं. ऐसा ही गुजरातमें हिन्दु और मुस्लिमोंका है. हां जी, लग्नविधि भीन्न होती है. वह तो भीन्न भीन्न प्रदेशके हिन्दुओंमे भी लग्न विधिमें भीन्नता होती है.

भारतके मुस्लिम कौन है? अधिकतर तो हिन्दु पूर्वजोंकी संतान ही है. भारत पर मुस्लिम युगका शासन रहा है तो कुछ राजाओंने जबरदस्ती की ही होगी. उन्होने लालच भी दिया  होगा. कुछ लोगोंने राजाका प्रियपात्र बननेके लिये भी धर्म परिवर्तन किया होगा. सम्राट अशोकने ज्यादातर भारतीयोंको बौद्ध बना दिये थे. किन्तु भारतीय तत्वज्ञान और प्रणालीयां इतनी सुग्रथित और लयबद्ध है कि, सनातन धर्मने अपना वर्चस्व पुनः प्राप्त कर लिया. आदि शंकराचार्यने बौद्धधर्मको नष्टप्राय कर दिया.

क्या मुस्लिमोंने हिन्दुओं पर बेसुमार जुल्म किये थे?

अपना उल्लु सीधा करने के लिये कई लोग अफवाहें फैलाते हैं और शासक सम्राट को मालुम तक नहीं होता है. ऐसी संभावना संचार प्रणाली कमजोर होती है वहां तो होता ही है. कभी शासक, इसका लाभ भी लेता है.

१९७५में जब नहेरुवीयन महाराणीने आपातकाल लगाया तो कई सारे नहेरुवीयन नेताओंने और कार्यकरोंने अपना उल्लु सीधा किया था. वैसे तो संचारप्रणाली इतनी कमजोर नहीं थी किन्तु इस नहेरुवीयन फरजंदने सेन्सरशीप लगाके जनतामें वैचारिक आदानप्रदानको निर्बल कर दिया था. जब इन्दीरा हारी तो उसने घोषित किया कि उसने तो कोई अत्याचारके आदेश नहीं दिये थे.

औरंगझेब एक सच्चा मुसलमान था. वह अपनी रोटी अपने पसीने के पैसे से खाता था. राजकोषके धनको वह खुदका धन मानता नहीं था. वह सादगीसे रहता था. शाहजहांके समयसे चालु मनोवृत्तिवाले  अधिकारीओंको औरंगझेबकी नीति पसंद न पडे यह स्वाभाविक है. वे अपना उल्लु सीधा करनेके लिये और औरंगझेबका स्नेह पानेके लिये या तो अपनी शासन शक्ति बढानेके लिये औरंगबके नामका उपयोग करते भी हो. औरंगझेबको कई बातें पसंद भी हो. उसने उच्च ज्ञातिके हिन्दुको मुस्लिम धर्म स्विकृत करने के  लिये (वन टाईम लम्पसम मूल्य) १००० रुपये, और गरीब के लिये हर दिनके ४ रुपये निश्चित किये थे. अगर सिर्फ अत्याचार ही करने के होते तो ऐसा लालच देना जरुरी नहीं था. अवगत करो, कि उस समयमें रु. १०००/- और प्रतिदिन रु.४/- कोई कम मूल्य नहीं था. उन हिन्दुओंको प्रणाम करो कि वे विभाजित होते हुए भी हिन्दुधर्मके पक्षमें रहे.

हां जी, मुस्लिमोने भारतके कई मंदिर तोडे. मंदिर तोडनेका और जहां मंदिर तूटा है, वहां ही अपना धर्मस्थान बनाना यह बात ईसाई और मुस्लिम शासक और धर्मगुरुओंकी नीति और संस्कार रहा है. ऐसा व्यवहार इन दोंनोंने ईजिप्त, पश्चिम एसिया, ओस्ट्रेलीया, अफ्रिका और अमेरिकामें किया ही है. यहां तक कि ईसाईयोंने और कुछ हद तक मुस्लिमोंने भी, पराजितोंकी स्थानिक भाषाको भी नष्ट कर दिया है.

किन्तु भारतमें ये लोग ऐसा नहीं कर पाये. क्यों कि भारतीय तत्वज्ञान, भारतीय भाषाएं और भारतीय प्रणालियां,  भारतीय जिवनके साथ ईतनी सुग्रथित है कि उनको नष्ट करने के लिये ये लोग भारतमें अक्षम सिद्ध हुए.

ऐसा क्यों हुआ? कौटिल्यने कहा था कि एक सरमुखत्यार राजासे एक गणतंत्रका नेता १०० गुना शक्तिशाली है. कारण यह है कि सरमुखत्यार की शक्ति उसका सैन्य है. गणतंत्रके नेताकी शक्ति उसका सैन्य ही नहीं किन्तु साथ साथ जनता भी है. गणतंत्रमें चर्चा और विचारोंका आदानप्रदान क्षेत्र व्यापक रुपसे होता है. और जो निर्णय होता है वह सुग्रथित और उत्कृष्ट होता है. भारतीय सनातन तत्वज्ञान कर्मधर्म, प्रणालियां आदि सहस्रोंसालोंके आचारोंके अनुभवओंसे सुग्रथित है और अपनी एकात्मताकी रक्षा करते हुए परिवर्तन शील भी रहा है. धर्मके बारेमें चर्चा करना और वैश्विक भावना रखकर तर्कबद्ध निर्णय करना, अन्य धर्माचार्योंके मस्तिष्ककी सीमाका क्षेत्र है ही नहीं.

ऐसे कई कारण है कि जिनकी वजहसे सनातन धर्म सनातन बना. हम उनकी चर्चा नहीं करेंगे.

किन्तु हमें किससे क्यूं सावधान रहेना है?

(३) ये लोग अपनी मान्यताओंको नकारने वाले साहित्यका वाचन करना उचित मानते नहीं है, इस लिये आप उनको शिक्षित नहीं कर सकते.

हमें नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक साथी पक्षोंसे सावधान रहेना है, क्योंकि वे कुत्सित इतिहासके आधारपर भारतको विभाजित करने वाले ठग है.

इन नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने महात्मा गांधीवादी जयप्रकाश नारायण तक को, छोडा नहीं था, उनको हम कैसे क्षमा दे सकते है?

इन नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने गांधीजीके सिद्धांतोंका और तथा कथित समाजवाद का नाम मात्र लेकर, अशुद्ध आचारद्वारा सत्ता प्राप्तिका ध्येय  रक्खा है. देशके उपर ६० सालके निरंकुश शासन करने के पश्चात भी, प्राकृतिक संशाधन प्रचूर मात्रामें होने के पश्चात भी, उत्कृष्ट संस्कृति होनेके पश्चात भी, गरीबोंका और समाजका उद्धार किया नहीं है. केवल और केवल खुदकी संपत्तिमें वृद्धि की है. देशको रसाताल किया है. इन लोगोंका तो कभी भी विश्वास करना नहीं चाहिये. ये लोग सदाचारी बन जायेंगे ऐसा मानना देशद्रोह के समकक्ष ही मानना अति आवश्यक है.

यदि आप, अंग्रेजी शासकोंने जो कुत्सित और विभाजनवादी इतिहास पढाया उसको अगर विश्वसनीय मानते है, और उनसे अतिरिक्त इतिहासक सत्यको मानना नकारते है तो, निश्चित ही समझलो, कि भारतका विकास एक कल्पना ही रह जायेगा.

चौथा कौनसा वर्ग है जिनसे हमें सावध रहेना है?

(४) ये लोग बीजेपी या/और नरेन्द्रके विरोधी हो सकते है,

(क्रमशः)

चमत्कृतिः

एक ऐसी बात है कि, औरंगझेबने काशीमें इतने ब्राह्मणोंकी हत्या की, कि, उनके उपवित (जनेउ) का वजन ही, ४० मण था.

चलो देखें उसका कलनः

एक उपवितका वजन = ग्राम

४० मण उपवित (जनेउ).

एक मण = ४० किलोग्राम = ४०००० ग्राम,

४० मण = ४० x ४०००० = १६००००० ग्राम.

एक जनेउ = ग्राम = ब्राह्मण

१६०००००/ = ३२०००० ब्राह्मणोंकी हत्या. क्या बनारसमें तीन लाख ब्राह्मण की हत्या हुई थी?

अगर आधे ब्राह्मणोंको मार दिया, तो बचे लितने. ३२००००. दुसरे किसीकोभी नहीं मारे तो मान लो कि ५० % ब्राह्मण थे और बाकी अन्य थे तो काशीकी जनसंख्या हुई १२६००००/-

इनता बडा नगर उस जमानेमें दुनियामें कहीं नहीं था. आग्रा सबसे बडा नगर था और उसकी जनसंख्या ५००००० पांच लाख थी.

अगर ३० हजार मनुष्योंकी हत्या होती है तो भी निरंकुश महामारी फैल सकती है.

  

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्झः इतिहास, अंग्रेज, संस्कृति, संस्कार, सुग्रथित, लयबद्ध, तर्कबद्ध, धरोहर, विभाजनवादी, भाषा, धर्म, सनातन, मुस्लिम, ईसाई, राजा शासक, गणतंत्र, कौटिल्य, गुलामी

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