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बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

बीजेपीकी पराजय ही हमारी विजय है

याद करो पाकिस्तानी शासकोंकी संस्कृति “भारतकी पराजय ही हमारी विजय है”

जब हम क्रिकेटकी बात करते हैं तो पाकिस्तानके जनमानसमें यह बात सहज है कि चाहे पाकिस्तान विश्वकपकी अंतिम स्पर्धामें पराजित हो जाय, या पाकिस्तान सुपरसीक्समेंकी अंतिम स्पर्धामें भी हार जाय, तो भी हमें हमारी इन पराजयोंसे दुःख नहीं किन्तु भारत और पाकिस्तानकी जब स्पर्धा हो तो भारतकी पराजय अवश्य होनी चाहिये. भारतकी पराजयसे हमें सर्वोत्तम सुखकी अनुभूति होती है.

TRAITOR

ऐसी ही मानसिकता भारतमें भी यत्‌किंचित मुसलमानोंकी है. “यत्‌ किंचित” शब्द ही योग्य है. क्यों कि मुसलमानोंको भी अब अनुभूति होने लगी है है कि उनका श्रेय भारतमें ही है. तो भी भारतमें ओवैसी जैसे मुसलमान मिल जायेंगे  जो कहेंगे कि “यदि पाकिस्तान भारत पर आक्र्मण करें, तो भारत इस गलतफहमीमें न रहे कि भारतके मुसलमान भारतके पक्षमें लडेंगे. भारतके मुसलमान पाकिस्तानी सैन्यकी ही मदद करेंगे.” ओवैसीका और कुछ मुल्लाओंका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहासका ज्ञान कमज़ोर है, क्यूं कि भारतका हिन्दु-मुस्लिम संबंधोंका इतिहास ओवैसीकी मान्यताको पुष्टि नहीं करता. जब हम ओवैसी को याद करें तो हमें तारेक फतह को भी याद कर लेना चाहिये.

 उपरोक्त मानसिकताके पोषणदाता नहेरुवीयन्स और नहेरुवीयन कोंग्रेस है. ऐसी मानसिकता  केवल मुसलमानोंकी ही है, ऐसा भी नहीं है. अन्य क्षेत्रोमें यत्‌किंचित भीन्न भीन्न नेतागणकी भी है.

ऐसी मानसिकता रखनेवालोंमें सबसे आगे साम्यवादी पक्ष है.

साम्यवादी पक्ष स्वयंको समाजवादी मानता है. समाजवादमें केन्द्रमें मानवसमाज होता है. और तत्‌ पश्चात मनुष्य स्वयं होता है. इतना ही नहीं साम्यवादके शासनमें पारदर्शिता नहीं होती है. साम्यवादी शासनमें नेतागण अपने लिये कई बातें गोपनीय रखते हैं इन बातोंको वे राष्ट्रीय हितके लिये गोपनीय है ऐसा घोषित करते है. इन गोपनीयताको मनगढंत और मनमानीय ढंगसे गुप्त रखते हैं.

दुसरी खास बात यह है कि ये साम्यवादी लोग साधन शुद्धिमें मानते नहीं है. तात्पर्य यह है कि ये लोग दोहरे या अनेक भीन्न भीन्न मापदंड रखते हैं और वे अपनी अनुकुलताके आधार पर मापदंडका चयन करते है. उनका पक्ष अहिंसामें मानता नहीं है, किन्तु दुसरोंकी तथा कथित या कथाकथित हिंसाकी  निंदा वे बडे उत्साह और आवेशमें आकर करते हैं. उनका स्वयंका पक्ष वाणी-स्वातंत्र्यमें मानता नहीं है, किन्तु यदि वे शासनमें नहीं होते हैं तो वे  कथित वाणी स्वातंत्र्यकी सुरक्षाकी बातें करते है और उसके लिये आंदोलन  करते हैं. यदि उनके पक्षका शासन हो तो वे विपक्षके वाणी स्वातंत्र्य और आंदोलनोंको पूर्णतः हिंसासे दबा देतें हैं.

जब साम्यवादी पक्षका शासन होता है, तब ये साम्यवादी लोग, अपना शासन अफवाहों पर चलाते है. साम्यवादी शासित राज्योंमें उनके निम्नस्तरके नेतागण तक भ्रष्टाचार करते हैं. साम्यवादीयोंकी अंतर्गत बातें राष्ट्रीय गोपनीयताकी सीमामें आती है. किन्तु यही लोग जब विपक्षमें होते है तो पारदर्शिताके लिये बुलंद आवाज़ करते है.

साम्यवादका वास्तविक स्वरुप क्या है?

वास्त्वमें साम्यवाद, “अंतिमस्तरका पूंजीवाद और निरंकुश तानाशाहीका अर्वाचीन मिश्रण है.” इसका अर्थ यह है कि शासकके पास उत्पादन, वितरण और शासनका नियंत्रण होता है. यह बात साफ है कि एक ही व्यक्ति सभी कार्यवाही पर निरीक्षण नहीं कर सकता. इसके लिये पक्षके सारे नेता गण अपने अपने क्षेत्रमें मनमानी चलाते है और भ्रष्टाचार भी करते हैं. भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी अंतिम स्तर तक पहूंच जाती है. किन्तु साम्यवादीयोंको इसकी चिंता नहीं होती है. क्यों कि वे पारदर्शितामें मानते नहीं है, इस लिये साम्यवादके शासनमें सभी दुष्ट बातें गुप्त रहती है.

हमने देखा है कि पश्चिम बंगालमें २५ साल नहेरुवीयन कोंग्रेसका और तत्‌पश्चात्‌ ३३ साल साम्यवादीयोंका शासन रहा. इनमें नहेरुवीयन कोंग्रेस प्रच्छन्न साम्यवादी सरकार थी और ज्योतिर्‍ बसु और बुद्धदेव बसु तो स्वयं सिद्ध नामसे भी साम्यवादी थे. १९४७में भी पश्चिम बंगाल राज्य एक बिमारु राज्य था और आज भी वह बिमारु राज्य है. १९४७में भी पश्चिम बंगालमें, रीक्षा आदमी अपने हाथसे खिंचता था और आज २०१७में भी रीक्षा आदमी खिंचता है.

आप पूछेंगे कि जिस देशमें साम्यवादी शासन विपक्षमें है तो वहां साम्यवादी पक्ष क्या कभी  शासक पक्ष बन सकता है?

हां जी. और ना जी.

साम्यवादी पक्ष की विचार प्रणालीयोंका हमें विश्लेषण करना चाहिये.

जब कहीं साम्यवादी पक्षका शासन नहीं होता है तो वे क्या करते हैं?

साम्यवादीयोंका प्रथम कदम है कि देशमें असंतोष और अराजकता फैलाना

असंतोष कैसे फैलाया जा सकता है?

समाजका विभाजन करके उनके विभाजित अंशोंमें जो बेवकूफ है उनमें इस मानसिकताका सींचन करो कि आपके साथ अन्याय हो रहा है.

भारतीय समाजको कैसे विभाजित किया जा सकता है?

भारतीय समाजको ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, शुद्र, हिन्दु, मुस्लिम, ईसाई, घुसपैठी, शिख, दलित, भाषावादी, पहाडी, सीमावर्ती, ग्राम्य, नगरवासी, गरीब, मध्यम वर्गी, धनिक, उद्योगपति, श्रमजिवी, कारीगर, पक्षवादी, अनपढ, कटार लेखक (वर्तमान पत्रोंके कोलमीस्ट), युवा, स्त्री, आर्य, अनार्य, काले गोरे,  आदिमें विभाजित किया जा सकता है.  इन लोगोंमें जो बेवकुफ और नासमज़ है उनको उकसाया जाता है.

कैसे फसाया जाता है?

यादव, जाट, ठाकुर, नीनामा, दलित आदि लोगोंने जो आंदोलन चलाये वे तो सबने देखा ही है.

वैश्योंमें जैनोंको कहा गया कि तुम हिन्दुओंसे भीन्न हो. तुम अल्पसंख्यकमें आ जाओ.

मुस्लिमोंको कहा कि ये घुसपैठी लोग तो तुम्हारे धर्मवाले है, उनका इस देशमें आनेसे तुम्हारी ताकत बढेगी.

पहाडी, वनवासी, सीमावर्ती क्षेत्रवासी, दलित आदि लोगोंको कहा कि तुम तो इस देशमे मूलनिवासी हो, इन आर्यप्रजाने तुह्मारा हजारों साल शोषण किया है. हम दयावान है, तुम ईसाई बन जाओ और एक ताकतके रुपमें उभरो. वॉटबेंक तुम्हारी ताकत है. तुम इस बातको समज़ो.

“दुश्मनका दुश्मन मित्र”

चाणक्यने उपरोक्त बात देशके हितको ध्यानमें रखके कही थी. किन्तु प्रच्छन्न और अप्रच्छन साम्यवादी लोगोंने यह बात स्वयंके और पक्षके स्वार्थके लिये अमल किया और यह उनकी आदत है.

ऐसी कई बातें आपको मिलेगी जो देशकी जनताको विभाजित करनेमें काम आ सकतीं हैं.

युवा वर्गको बेकारीके नाम पर और उनकी तथा कथित परतंत्रिता पर बहेकाया जा सकता है. उनको सुनहरे राजकीय भविष्यके सपने दिखाकर बहेकाया जा सकता है.

जो कटार लेखक विचारशील और तर्कशील नहीं है, लेकिन जिनमें बिना परिश्रम किये ख्याति प्राप्त करनी है, उनको पूर्वग्रह युक्त बनाया जाता है. उन लोगोंमें खास दिशामें लिखनेकी आदत डाली जाती है और वे नासमज़ बन कर उसी दिशामें लिखने की आदतवाले बन जाते है.

जैसे कि, 

डीबी (दिव्य भास्कर)

डीबी (दिव्य भास्कर)में ऐसे कई कटार लेखक है जो हर हालतमें बीजेपीके विरुद्ध ही लिखनेकी आदत बना बैठे हैं. उनके “तंत्री लेख”के निम्न दर्शित अवतरणसे आपको ज्ञात हो जायेगा कि यह महाशय कितनी हद तक पतित है.

आपने “कन्हैया”का नाम तो सुना ही होगा, जो समाचार माध्यमों द्वारा पेपरका शेर (पेपर टायगर) बना दिया गया था.  कन्हैयाके जुथने (जो साम्यवादीयोंकी मिथ्या विचारधारासे  बना है) भारतके विरुद्ध विष उगलने वाले नारे लगाये थे.

उमर खालिद और कई उनके साथी गण “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा, आदि कई सारे सूत्रोच्चार किये थे. कन्हैया उसके पास ही खडा था. न तो उसके मूंहपर नाराजगी थी, न तो उसने सूत्रोच्चार करने वालोंको रोका था, न तो उसने इन सूत्रोच्चारोंसे विपरित सूत्रोच्चार किये, न तो इसने इन देश द्रोहीयोंका विवरण पूलिसको या युनीवर्सीटी के संचालकोंको दिया, न तो इसने बादमें भी ऐसे सूत्रोच्चार करनेवालोंके विरुद्ध कोई उच्चारण किया. इसका मतलब स्पष्ट है कि उसने इन सूत्रोंको समर्थन ही किया.

अब हमारे डीबीभाईने “१ मार्च २०१७” के समाचार पत्र पेज ८, में क्या लिखा है?

तंत्री लेखका शिर्षक है “राष्ट्रप्रेम और गुन्डागर्दी के बीचकी मोटी सीमा रेखा”

विवरणका संदेश केवल  एबीवीपी की गुन्डागर्दीका विषय है.

संदेश ऐसा दिया है कि “सूचित विश्वविद्यालयमें बौधिकतावादी साम्यवादीयोंका अड्डा है और बौद्धिकता जिंदा है. ये लोग जागृत है…

दुसरा संदेश यह है कि “गुजरात यदि शांत है तो यह लक्षण अच्छा नहीं है.” इन महाशयको ज्ञात नहीं कि नवनिर्माणका अभूतपूर्व, न भूतो न भविष्यति, आंदोलन गुजरातमें ही हुआ था और वह कोई स्वार्थ के लिये नहीं किन्तु भ्रष्टाचार हटानेके लिये हुआ था. इतना ही नहीं वह संपूर्ण अहिंसक था और जयप्रकाश नारायण जैसे महात्मा गांधीवादीने इस आंदोलनसे प्रेरणा ली थी. डी.बी. महाशय दयाके पात्र है.

डी.बी. भाई आगे चलकर लिखते है कि “जागृत विद्यार्थीयोंके आंदोलन एनडीए के शासनमें  बढ गये हैं. डीबीभाईने  गुरमहेरका नामका ज़िक्र किया है. क्योंकि एबीवीपीके विरोधियोंको बौद्धिकतावादी सिद्ध करनेके लिये यह तरिका आसान है.

यदि गुरमहेरने कहा कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं मारा लेकिन युद्धने मारा है” तो इसमें बौद्धिकता कहांसे आयी? यदि इसमें “डी.बी.”भाईको बौद्धिकता दिखाई देती है तो उनके स्वयंकी बौद्धिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता ही है. भारतीय बल्लेबाज युवराजने गुरमहेरकी इस बातका सही मजाक उडाया है, कि “शतक मैंने नहीं मारा… शतक तो मेरे बल्लेने मारा है”.

पाकिस्तान

एक देश आक्रमणखोर है, वही देश आतंकवादी भी है, उसी देशने भारत पर चार दफा आक्रमण भी किया होता है, उसी देशका आतंक तो जारी ही है. इसके अतिरिक्त भारतीय शासन और भारतके शासक पक्षोंने मंत्रणाओंके लिये कई बार पहेल की है और करते रहते हैं इतना ही नहीं यदि बीजेपीकी बात करें, तो बीजेपीने भारत पाकिस्तानके बीच अच्छा माहोल बनानेका कई बार प्रयत्न किया, तो भी भारत देशमें जो लोग कहेते रहेते है कि “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ और पाकिस्तानको समर्थन देनेका संदेश देना और कहेना कि “मेरे पिताको पाकिस्तानने नहीं लेकिन युद्धने मारा है” इस बातमें कोई बौद्धिकता नहीं है. जब आपने “पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत तेरे टूकडे होगे, हमें चाहिये आज़ादी, छीनके लेंगे आज़ादी, कितने अफज़ल मारोगे, हर घरसे फज़ल निकलेगा … “ इन सूत्रोंका विरोध न किया हो और भारत विरोधी सूत्रोंकी घटनाके बारेमें प्रश्न चिन्ह खडा किया हो, तो समज़ लो कि आप अविश्वसनीय है. गुरमहेरका कर्तव्य था कि वह ऐसे सूत्र पुकारने वालोंके विरोधमें खुलकर सामने आतीं.

वास्तवमें ट्रोल भी ऐसे दोहरे मापदंडों रखने वाले होते है. कन्हैया, उमर खालिद, गुरमहेर आदि सब ट्रोल है. ऐसे बुद्धिहीन लोगोंको ट्रोल बनाना आसान है. समाचर पत्र वाचकगण बढानेके लिये और टीवी चेनलके प्रेक्षकगण बढानेके लिये और अपना एजंडा चलाने के लिये उनके तंत्री के साथ कई कटारीया (कटार लेखक), और एंकर संचालक स्वयं ट्रोल बननेको तयार होते हैं.

डी.बी.भाईने आगे लिखा है “गत वर्षमें देश विरोधी सूत्रोच्चार विवाद के करनेवालोंकी पहेचान नहीं हो सकी है.” डी.बी. भाईके हिसाबसे सूत्रोच्चार हुए थे या नहीं … यह एक विवादास्पद घटना है.

हम सब जानते है कि उमर खालिदकी और उसके साथीयोंकी जो विडीयोक्लीप झी-न्युज़ पर दिखाई गयी थी वह फर्जी नहीं थी. तो भी “डी.बी.भाई” इन सूत्रोच्चारोंको और उनके करनेवालोंको विवादास्पद मानते है. डि.बी.भाईकी अबौद्धिकता और उनके पूर्वग्रहका यह प्रदर्शन है. “डी.बी.भाइ” आगे यह भी लिखते है कि, “उमर खालिद और कन्हैयाको अनुकुलता पूर्वक (एबीवीपी या बीजेपी समर्थकोंने) देशद्रोहीका लेबल लगा दिया. “

डी.बी.भाईका यह तंत्री लेख, पूर्वग्रहकी परिसीमा और गद्दारीकी पहेचान नहीं है तो क्या है?

ये लोग जिनके उपर देशकी जनताको केवल “सीधा समाचार” देनेका फर्ज है वे प्रत्यक्ष सत्य को (देश विरोधी सूत्रोच्चार बोलनेवालोंकी क्लीपको) अनदेखा करके वाणीविलास करते हैं और अपनी पीठ थपथपाते है. महात्मा गांधी यदि जिंदा होते तो आत्महत्या कर लेते, क्यों कि ऐसे समाचार पत्रोंके कटारीया लेखकोंद्वारा जनताको गुमराह करनेका सडयंत्र जो चलता है.

ये लोग ऐसा क्यों करते हैं?

इन्होंने देश दो हिस्सेमें विभाजित हो गया है. नरेन्द्रमोदीके नेतृत्वको माननेवाला बीजेपी और बीजेपी-विरोधी. जो भी देशके विरोधीयोंकी टिका करते है उनको ये अप्रच्छन्नतासे प्रच्छन्न लोग, “मोदी भक्त, बीजेपीवादी, एबीवीपीवादी, असहिष्णु, कोमवादी …” ऐसे लेबल लगा देते है और स्वयंको बुद्धिवादी मानते है.

बीजेपीका मूल्यहीन तरिकोंसे विरोध क्यों?

नहेरुवीयन कोंग्रेस अपने अस्तित्वको खोज रही है. पैसे तो उसने ६० सालके शासनमें बना लिया. लेकिन भ्रष्टाचारके कारण सत्तासे हाथ धोना पडा. भ्रष्टनेतागणसे और वंशवादसे बाहर निकलनेकी उसकी औकात नहीं है.

समाजवादी पक्ष, बीएसपी, एनसीपी, टीएमसी, जेडीयु, एडीएमके, डीएमके, ये सभी पक्ष एक क्षेत्रीय पक्ष और वंशवादी पक्ष बन गये है. उनका सहारा अब केवल साम्यवादी पक्ष बन गया है. उनको अपना अस्तित्व रखना है. हर हालतमें उनको बीजेपीको हराना है चाहे देशमें कुछ भी हो जाय. नहेरुवंशीय शासनके कारण ये सभी पक्षोंकी मानसिकता सत्तालक्षी और स्वकेन्द्री बन गयी है. उनके पास कुछ छूटपूट राज्योंका शासन और  सिर्फ पैसे ही बचे हैं. पैसोंसे वे कटारीया लेखकोंकी ख्याति-भूखको उकसा सकते है, पैसोंसे वे अफवाहें फैला सकते है, सत्यको भी विवादास्पद बना सकते हैं, असत्यको सत्य स्थापित कर सकते हैं.

“वेमुला” दलित नहीं था तो भी उसको दलित घोषित कर दिया और दलितके नाम पर बहूत देर तक इस मुद्देको उछाला और बीजेपीको जो बदनाम करना था वह काम कर दिया.

देश विरोधी नारोंको जो फर्जी नहीं थे और विवादास्पद भी नहीं थे उनको फर्जी बताया और विवादास्पद सिद्धकरनेकी कोशिस की जो आज भी डी.बी. भाई जैसे कनिष्ठ समाचार माध्यम द्वारा चल रही है.

नहेरुवीयन कोंग्रेसने ६०साल तक हरेक क्षेत्रमें देशको पायमाल किया गया है. नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके सांस्कृतिक अनुयायीओंको, यह बात समज़में नहीं आती कि कोई एक पक्षका एक नेता, दिनमें अठारह घंटा काम करके, ढाई सालमें ठीक नहीं कर सकता. मूर्धन्य लोग यह बात भी समज़ नहीं सकते कि नरेन्द्र मोदी और बीजेपीका कोई उनसे अच्छा विकल्प भी नहीं है. लेकिन ये मानसिक रोगसे पीडित विपक्ष और उसके सहयोगी देशके हितको समज़ने के लिये तयार नहीं है. वे चाहते हैं कि देशमें अराजका फैल जाय और परिणाम स्वरुप हमें मौका मिल जाय कि देखो बीजेपीने कैसी अराजकता फैला दी है.

साम्यवादी लोग देशप्रेम और धर्ममें (रीलीजीयनमें) मानते नहीं है. उनके लिये सैद्धांतिक रीतसे ये दोनों अफीम है. लेकिन ये लोग फिर भी आज़ादी, सहनशीलता, वाणीस्वातंत्र्यकी बात करते है और साथ साथमें देशको तोडनेकी और हिंसाको बढावा देनेकी बातें करते हैं, पत्थरबाजी भी करते हैं या करवाते हैं, मूंह छीपाके देश विरोधी सूत्रोच्चार करते है और जब गिरफ्तार होते है तो जामीन (बेल्स) पर भी जाने लिये तयार होते जाते है. और इन्ही लोगोंको डीबीभाई जैसे समाचार पत्र बुद्धिवादी कहेते हैं. परस्परकी सहायताके लिये साम्यवादी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरुवीयन कोंग्रेसके सांस्कृतिक साथी, कट्टरवादी मुस्लिम, पादरीयोंकी जमात एकजुट होके काम करती है.

इनलोगों द्वारा अपना उल्लु सिधा करने के लिये ट्रोल पैदा किये जाते है. यदि कोई ट्रोल नेता बनने के योग्य हो गया तो वह नहेरुवीयन कोंग्रेस, साम्यवादी और उनके सांस्कृतिक पक्षमे शोभायमान हो जाता है. गुजरातके नवनिर्माणके आंदोलनमें ऐसे कई ट्रोल घुस गये थे, जो आज या तो नहेरुवीयन कोंग्रेसमें शोभायमान है या तो उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका सांस्कृतिक पक्ष बना लिया है.

ऐसे कई स्वकेन्द्री ट्रोल जिनमें कि, लालु, नीतीश, मुल्लायम, ममता, अजित सींघ, केज्रीवाल आज शोभायमान है.

शिरीष मोहनलाल दवे

टेग्ज़ः

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अनीतियोंसे परहेज (त्यागवृत्तिक्योंजो जिता वह सिकंदर-2

के अनुसंधानमें इसको पढें

नहेरुवीयन कोंग्रेससे सावधान रहेनेके लिये और देशको बुराईयोंसे मुक्त करनेके लियेनहेरुवीयन कोंग्रेसकी आचार नीतियां और चूनाव रणनीतियां समझना आवश्यक है.

नहेरुने कैसी चूनावी रणनीतियां अपनाई थी और खुदकी सत्ता कैसे बनाई रखी थीवह हमने इसके पूर्वके लेखमें देख लियानहेरु खुदकी सत्ता टिकानेकी व्युहरचना बनानेमें चालबाज थेउन्होने कैसे मोरारजी देसाई और अन्य विरोधीयोंको हटाया वह हमने देख लियाउनकी व्युह रचनामें साधन की अशुद्धि गर्भित थीलेकिन कोई उसको नीतिमत्ताके तर्क के आधार पर चूनौति नहीं दे सकता था  तो समाधान कारी टीका कर सकता था.

नहेरुकी तरह  ईन्दीरा गांधी अपने समकक्षको दूर करनेकी और उसको निरर्थक बनानेकी फिराकमें रहती थीं.

मोरारजी देसाई और सीन्दीकेटके नेतागण ईन्दीरा गांधीके समकक्षही नहीं लेकिन काफि सीनीयर थेइस लिये ईन्दीरा गांधीने उनको हटानेकी योजना बनाई

ईन्दीरा गांधी नहेरुकी सभी रण नीतियोंसे वह अवगत थीचूनाव जितने के लिये और या सत्ता बनाये रखने के लिये साम्यवादीयोंकी रणनीति ऐसी रही कि जनताके साथ मानसिक जर्क (आंचकेदेनेवाली राजकीय घोषणाये करते रहो.  जनताको विभाजित करो और विरोधीयोंको बदनाम करते रहोसमाचार माध्यम पर प्रभूत्व रखो और उसका भी उपयोग करो.

जर्क देने वाली प्रवृत्तिः

पूर्व रजवीयोंके वर्षासन और विशेषाधिकारोंका अंतः

१४ बडी बेंको का राष्ट्रीय करणः

आम कारीगरोंको कम मुल्यवाला उधार:

ये सब करनेकी क्या जरुरत पडी?

ईन्दीरा गांधीने कहा मेरे पिताजी यह सब करना चाहते थे लेकिन ये सीन्डीकेट के नेता गण उनको करने देते नहीं थेमुझे गरीबी हटानी हैइसलिये मेरा नारा है “गरीबी हटाओ”.

समाचार माध्यमोंने ईन्दीरा गांधीको अभूत पूर्व प्रसिद्धि दीक्यों कि एक बडे पक्षमें नेतागाण एक दूसरेके विरुद्ध बाते करेंवे समाचार पत्रोंके लिये बीलकुल नयी बात थी.

राष्ट्र प्रमुख का चूनाव  पडा थासींडीकेटके नेतागण चाहते थे कि संजिव रेड्डी राष्ट्रप्रमुखपक्षीय कारोबारीके बहुमत सभ्य संजिव रेड्डीके पक्षमें थेईन्दीरा गांधी इसी कारण उनको चाहती नहीं थींउन्होने अपना उम्मिदवार पर्दे के पीछे तयार कर दियावह थे एक मजदूर नेता मानेजाने वाले वीवी गीरी.

इन्दिराका फतवा

ईन्दीरा गांधीने “आत्माकी आवाज”का एक सूत्र चलाया किराष्ट्रप्रमुखके चूनावमें सभी संसदोंको आत्माकी आवाजके अनुसार मत देना चाहियेआत्माकी आवाजका गर्भित अर्थ था वीवी गीरीको मत देनाराजकीय विश्लेषकोंने समझ लिया कि यह एव शक्ति परिचय का दाव हैविपक्ष बिखरा हुआ थाजो विपक्ष लेफ्टीस्ट थे उन्होने ईन्दीरा गांधीके उम्मिदवारको मत देनेका मन बनायाकोंग्रेसमें जिन्होने घोषित किया कि वे आत्माकी आवाजको पुरस्कृत करते हैउनको समाचार माध्यमोंने रेडियो सहितजरुरतसे ज्यादा प्रसिद्धि दी.

ईन्दीरा गांधीके प्रशंसकोंने  संजिव रेड्डीके खिलाफ बिभत्स पत्रिकाएं संसदके मध्यस्थ खंडमें फैलाईयह बात गैर कानुनी थीफिर भी हवा ईन्दीरा गांधीके पक्षमें थी इसलिये इन सब बातोंको नजर अंदाज किया गयाकोई रोक टोक हुई नहीं.

राष्ट्रप्रमुख के मतदान प्रक्रिया में दुसरी पसंदका प्रावधान हैउस दुसरी पसंदके मतोंको भी लक्षमें लेनेसे वीवी गीरी निर्वाचित घोषित किये गयेइस प्रकार कोंग्रेसके मान्य उम्मिदवार परास्त हुएईन्दीरा गांधीने खुदकी शक्तिको बढाने के लिये अपने पक्षके उम्मिदवार को परास्त करवायाइसके बाद उसने असाधारण सभा बुलाई और अपना खुदका पक्षप्रमुख और कारोबारी नियुक्त कीकथा तो बहुत लंबी हैअसली कोंग्रेस कौनक्योंकि मूलभूत कोंग्रेसकी महासभा भी बुलाई गई थीजो ईन्दीराके पक्षमें थे वे ईन्दीराकी महासभामें गये और जो ईन्दीराके पक्षमें नहीं थे वे मूल कोंग्रेसकी महासभामें गये.

ईन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको कोंग्रेस (जे), इस नामसे उल्लेख होने लगाक्योंकि इसके पक्ष प्रमुख जगजीवनराम थेमूल कोंग्रेसके प्रमुख नीलम संजिव रेड्डी थे इस लिये इस कोंग्रेसको कोंग्रेस (एनसे उल्लेखित किया गयादुसरे भी नाम थे . कोंग्रेस आर (रुलींग) [या तो कोंग्रेस आई (ईन्दीरा)], कोंग्रेस  (ओर्गेनीझेशन).

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थेउनको परास्त करना जरुरी थाबदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय थालेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल थामोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

यहांसे ईन्दीरा गांधीने शुरुकिया राजकीय नीतिहीन दावपेंच.

जनताको विभाजित करो और चूनाव जितोः

१९६९७०का चूनाव

जनताको कैसे विभाजित करें?

गरीबी हटाओका नारा एक नारा मात्र नहीं थालेकिन इसके पीछे ऐसा प्रचार था किनहेरुवीयन वंशके लोग तो गरीबी हटाने के लिये प्रतिबद्ध थे लेकिन ये बुढ्ढे लोग (स्वतंत्रताके आंदोलनमें भागलेनेवाले नेतागण जो पक्षके उपर प्रभूत्व रखते थे वे ६०६५के उपरके हो गये थेनहेरुको आर्थिक क्रांति करनेसे रोक रहे थेइसके साथ एक प्रचार यह भी हुआ किअब कोंग्रेसका नेतृत्व युवा नेता (ईन्दीरा गांधी)के पास  गया हैअब प्रत्याघाती नेताओंको उखाडके फैंक दो.

युवावर्ग ही नहीं लेकिन जो मूर्धन्यवर्ग थाराजकीय विश्लेषक थे वे भी ईन्दीरा गांधीकी बातोंमें  गये थे क्यों कि बडे नामवाले भी विवेक शक्तिमें कमजोर हो शकते है या तो उनका खुदके स्वार्थसे विमुक्त नहीं हो सकते हैसाधानशुद्धिप्रमाणभानप्रास्तुत्य के तर्ककी क्षमता हरेक के बसकी बात होती नहीं होती है.

नाम बडे लेकिन दिल कमजोर हो ऐसे कई नेता कोंग्रेसमें थेजो सबके सब सर्व प्रथम ईन्दीराकी कोंग्रेसमें लग गयेइन नामोंमे जगजिवनरामयशवंतराव चवाणललित मिश्राबहुगुणावीपी सिंग आदि कई सारे थे.

सीन्डीकेट के अन्य नेतागण को छोड दे तो मोरारजी देसाई अपने राज्यमें भूमिगत नेता थेउनको परास्त करना जरुरी थाबदनाम करनेमें तो तरुण तर्क नामका जुथ सक्रीय थालेकिन चूनावमें खास करके गुजरातमें मोरारजी देसाईके प्रभूत्वको खतम करना मुस्किल थामोरारजी देसाईको और उनके साथीयोंको चूनावमें कैसे हराया जाय?

गुजरातमें १९६९का कोमी दंगा

गरीब और अमीर इसमें तो थोडासा भेद उत्पन्न कर दिया थालेकिन वह पर्याप्त नहीं था१९६९में कैसे हिन्दु मुस्लिमका दंगा हुआ यह एक बडे संशोधनका विषय हैयह एक लंबी कहानी हैपरिणाम यह हुआ किमोरारजीदेसाईके प्रभूत्ववाली गुजरातकी कोंग्रेस (), के खिलाफ मुस्लिम मत हो गयाऔर १९६९७०के संसद चूनावमें देशमें इन्दीरा गांधीके कोंग्रेस पक्षको भारी बहुमत मिलागुजरातमें भी उसको २४मेंसे  बैठक मिली जो एक आश्चर्य था क्योंकि गुजरातमें इन्दीरा गांधी उतनी लोकप्रिय नहीं थींयह हो सकता है किमुस्लिम मतोंका धृवीकरण हो गया था१९६८ तक मुस्लिम लोग सामान्य प्रवाहमें थेबीन कोंग्रेसी विपक्षमें भी मुस्लिम नेता थेबीन कोंग्रेसी विपक्षमें स्वतंत्र पक्षसंयुक्त समाजवादी पक्ष और कुछ स्थानिक पक्ष थेलेकिन १९६९के दंगो द्वारा देशके मुस्लिम समुदायको संदेश दे दिया था कि बीन कोंग्रेसी पक्ष मुस्लिमों की रक्षा कर नहीं कर सकता.

जितके कारण और विधानसभा चूनाव

१९७१में पाक– युद्धमें भारतके लश्करको भारी विजय मिलीउसका श्रेय इन्दीरा गांधीको दिया गया१९७१की जितके बाद घुसखोरोंको वापस भेजनेकि कार्यवाही करके सामान्य स्थिति करनेके बजायअन्य राज्योंमें और गुजरातमें भी चूनाव करवाये और विधानसभाके चूनावोंमें भी इन्दीरा की कोंग्रेसको भारी बहुमत मिलागुजरातमें १६८ बैठकमेंसे १४० बैठक उनको मिलीं.

मुस्लिम मतोंका धृवीकरण के साथ साथ नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेताओ द्वारा जाती विभाजन द्वारा विभाजन भी शुरु कर दियानवनिर्माणका आंदोलन ग्राम्य विस्तार तक फैला नहीं था और वैसे भी ज्ञातिप्रथा ग्राम्यविस्तारमें ज्यादा असरकारक होती हैइसलिये ग्राम्य विस्तारमें यह विभाजन करना आसान था.

चूनाव प्रपंच और गुड  गवर्नन्स अलग अलग है     

इन्दीरा गांधी सियासत के प्रपंच करनेमें माहिर थींलेकिन वहीवट (गवर्नन्स)में माहिर नहीं थींविदेश नीति रुस परस्त थीसिमला करार में ईन्दीरा गांधीने देशकी विजयको पराजयमें परिवर्तित कर दिया थाइन्दीरा गांधी बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठोंको वापस नहीं भेज सकी थीं.  महंगाई और करप्शन बहुत बढ गयेइन्दीरा गांधी खुद साधन शुद्धिमें मानती नहीं थी और सिर्फ वोटबेंक पोलीटीक्समें मानती थींइसलिये बेंकोका वहीवट रसाताल गयासमाचार माध्यम की आंखे भी खुल गई थींगुजरातमें भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन हुआ जिसमें सौ से उपर छात्रनहेरुवीयन सरकार द्वारा किये गये गोलीबारमें मार दिये गयेसर्वोदयी नेतागण भी इन्दीराके विरुद्ध हो गये थे.

इतना ही नहीं उनका खुदका चूनाव उच्चन्यायालयमें चल रहा थागुजरातका नवनिर्माणका लोक आंदोलन व्यापक हो रहा थाईन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाला चूनावमें उसका पक्ष हार सकता हैगुजरातमें विधानसभा भंग करनी पडी थीऔर नया चूनाव भी देना पडा थाउसमें उसका पक्ष खाम (क्षत्रीयआदिवासी और मुस्लिम मतोंका धृवी करण हो गया था तो भी पक्ष विरोधी वातावरणके कारण कमजोर पड गया था और जनता मोरचाने शासन धुरा ले ली थीगुजरातके भ्रष्टाचार के विरुद्धके लोक आंदोलन के आधार पर ऐसा आंदोलन पूरे देशमें व्यापक हो रहा थाविपक्ष एक हो रहा थाइन्दीराको लगा कि १९७६में आने वाले चूनावमें उसका पक्ष हार सकता है.

सबका मुंह बंद करनेके लिये इन्दीरा गांधीने आपातकालकी घोषणा कीऔर विरोधियोंको जेल भेज दियासमाचार के उपर सेन्सरशीप लागु कीसभासरघस पर प्रतिबंध लागु कर दियेक्योंकि इन्दीरा गांधीने समझा किसमाचार माध्यम के कारण और विरोधियोंके कारण ही कोंग्रेसका जनाधार जा रहा हैआपात काल भी इन्दीरा गांधीको भारी पड रहा थाक्यों कि उनके पास गवर्नन्सका कौशल्य नहीं थागवर्नन्स एक सुस्थापित चेनलसे चलता हैयह एक बुद्धि और विवेक शक्तिका काम हैयह कोई मुनसफ्फीसे संबंधित नहीं हैसियासतमें लचिलापन चल सकता हैगवर्नन्समें लचिलापन और मनमानी चल सकती नहीं हैइन्दिरागांधी गवर्नन्स में कमजोर थींजो आपखुद होते है वे मानवके अंदरके आंतर प्रवाहको नहीं जान सकतेइन्दिराने सोचा कि समाचार माध्यम सरकार की बुराई नहीं करते हैऔर सरकारके बारेमें अच्छी अच्छी बातें ही बताते है तो जनता कोंग्रेसको  ही मतदान करेगीआपतकाल अपने भारसे ही तूट पडा थाइन्दिरा गांधीने समाचार माध्यमोंमे खुदके पक्षका एक पक्षीय प्रचार द्वारा चूनाव जितनेका प्रयास कियालेकिन वह असफल रही क्यों कि विपक्ष और जनताके सुज्ञ लोग घर घर जाके लोकशाही का प्रचार कियाइतना ही नहीं यह भी पता चला किभारतीयोंकी सांस्कृतिक विरासत इतनी कमजोर पड गई नहीं थी कि वह विवेक शून्य बनके दृष्यमान श्रेय और अश्रेय समज  सके.

१९८०का चूनाव

इन्दीरा गांधीने १९६९  से १९७५ तक के कार्यकालमें काफी पैसे जमा किये थे ऐसा माना जाता है.

गुजरातके इन्दीरा कोंग्रेसके मुख्य मंत्री जब १९७२७३में इन्दिरा की ईच्छा  होने पर भी मुख्यमंत्री बने और बादमें जन आंदोलनके कारण उनको पदभ्रष्ट करना पडा तो वे इन्दीरा गांधीके विरुद्ध हो गये और उन्होने एक किताब लिखी थीकि इन्दीरा गांधीने तेल-मीलरोंसे कैसे और कितने पैसे वसुल किया थाउत्पादन पर सरकारका संपूर्ण अंकूश थाअंकूश पैसेसे बिकते थेयुनीयन कार्बाईड का सौदा भी जानबुझकर क्षतियुक्त रक्खा गया सौदा था१९७७के संसदीय चूनावमें अहमदाबादके ख्यातनाम वकिल चंद्रकांत दरुने बताया था कि उसने मुगलसराई रेल्वे वेगन के चीफको आदेश दिया था कि वह एक करोड रुपया दे दे१९७९८० के चूनाव के समय इन्दीरा गांधीने संसदीय टीकटे एक एक करोडमें बेची थीआपतकाल दरम्यान ऐसा कहा जाता है किजमाखोरोंसे और रीश्वत खोरोंसे धमकीयां दे के इन्दीरा गांधीने बहुत सारे पैसे ईकठ्ठे किये थेआज जो राजकारणमें पैसेकीशराबकी और बाहुबलीओंकी जो बोलबालाए दिखाई देती हैउसके बीज नहींलेकिन इस बरगदके पेडकी जडे और विस्तार इन्दीरा गांधीने बनाया है.

१९७७ में जब आखीरमें इन्दीरा गांधीको लगा कि उस चूनावमें पैसे बिखरना काममें आने वाला नहीं हैतो उसने उम्मिदवारोंको उनके भरोसे छोड दिये थेनहेरुवीयन कोंग्रेसके कई लोगकी डिपोझीट जप्त हुई उसकी वजह भी यही थी.

१९७७ तकके जमा किये हुए पैसे इन्दीरा गांधीको १९८०के चूनावमें काम आयेचरण सिंह जिन्होने खुदको महात्मा गांधी वादी मनवाया थावे इन्दिरासे बिक गयेमोरारजी देसाईकी कामकरने वाली सरकारको गिरायानये चूनाव प्रचार दरम्यान खूब पैसे बांटे गये होगेसमाचार माध्यम वैसे ही बिकनेको तैयार थे और उन्होने नहेरुवीयन कोंग्रेसका भरपूर प्रचार किया और जनता फ्रंटकी भरपूर निंदा कीईन्दीरा गांधीको फिरसे निरपेक्ष बहुमत मिला.

१९८०१९८४ के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादका जन्म हुआ और प्रसार भी हुआपंजाबकी सियासतमें दो गुटोंमेसे एक को कमजोर करनेके लिये इन्दीरा गांधीने भीन्दरानवाले को संत बनाके बडा कियाइन्दीरा गांधी वैसे भी अनिर्णायकता की कैदी थींइन्दीरा गांधीने जैसी उसने बंग्लादेशी घुसपैठोंको निकाल देनेमें अनिर्णायकता और कमजोरी रक्खीवैसा ही उन्होने भीन्दराणवाले की खुल्ले आम होती हुई बैंकोंमे होती डकैत आतंकी हुमलोंके बारेमें कियाईन्दीरा गांधीने आतंकीयोंको सुवर्णमंदिरमें लगातरा शस्त्रोके साथ घुसने दिये और आश्रय लेने दियादुनियामें ऐसा कोई देश नहीं है जहां अगर खूनी धर्मस्थानमें घुस जाय तो सरकार उस धार्मिक स्थानमें जाके खूनी को  पकड सकेभारतमें भी अगर कोई चोर धर्मिक स्थानमें जाके घुस गया है तो पुलीस वहां नहीं जा सकतीऐसा कोई कानुन नहीं हैलेकिन इन्दीरा गांधीने अनिर्णायकता की कैदी होनेकी वजहसे और समय बीतानेके लियेएक कानुन पास किया किअगर आतंक वादी धार्मिक स्थानमें जायेंगे तो पुलीस वहां जाके उनको पकड सकती हैजब सरसे पानी गुजरने लगा और वे बदनाम होने लगीं तब उसने ब्रीटनको विश्वासमें लेके सुवर्ण मंदिर पर हमला किया और उसमें भींदराणवाले मारा गयालेकिन बहुत देर हो चूकी थीकई भीन्दराणवाले पैदा हो चूके थे.

(क्रमशः)

शिरीषमोहनलालदवे

टेग्झः  नहेरुवीयन, चूनावी, प्रपंच, रणनीति, सत्ता, गरीबीहटाओ, समाचारमाध्यम, इन्दिरा, आत्माकीआवज, मोरारजीदेसाई, कोमीदंगा, भ्रष्टाचार, आंदोलन, आपातकाल, चरणसिंग, स्वर्णमंदिर, आतंकवाद, सीमापार

 

 

 

         

 

 

   

 

          

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