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जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1
Posted in માનવીય સમસ્યાઓ, tagged अमित शाह, आतंकवाद, आरजेडी, आर्षदृष्टा, इन्दिरा, एवोर्ड वापसी, कत्लेआम, कश्मिर, कुशल, खालिस्तान, गठबंधन, जंगल राज, जय प्रकाश नारायण, जवान, जेडीयु, ठगबंधन, दाद्री, नरेन्द्र मोदी, नहेरु, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरुवीयन कोंग्रेसका साथी पक्ष, नींभर, नीतिवान, नीतीश, परस्त, परिणाम, प्रक्रिया, प्राथमिकता भारतका हित, बहुमत, बिहार चूनाव, बीजेपी, भारतीय संविधान, भीन्दरानवाले, महानुभाव, लालु, वंशवादी, शहीदी, शिख, श्रेय, संवेदनहीन, सत्ता, सत्यका आधार, सियासत, स्वकेन्दी, हिन्दु, हिन्दुओंको चेतावनी on November 11, 2015| 5 Comments »
जो भय था वह वास्तविकता बना (बिहारका परिणाम) – 1
क्या यह सत्य और श्रेयकी जित है?
नहीं. यह सत्यकी जित नहीं है.
सत्य और श्रेय है वह जनताके बहुमतसे सिद्ध नहीं होता है.
हम जिन चूनावी प्रक्रियाओंके आधार पर जनताका अभिप्राय प्राप्त कर रहे है वह हमेशा सत्य को पुरस्कृत नहीं करता.
बहुमत, सत्यका आधार नहीं बन सकता. बिहारकी जनताने जिस गठबंधनको जित दिलाई, इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि सत्य, उस गठबंधनके पक्षमें था जो जिता था.
सत्य किसके पक्षमें था?
सत्य बीजेपीके पक्षमें था.
सत्य किसको कहेते हैं?
यहां पर सत्यका अर्थ है,
(१) ऐसा कोनसा पक्ष है कि जिसके पास भारतकी समस्याओंकी अधिक जानकारी है?
(२) ऐसा कौनसा पक्ष है जो इस समस्याओंका समाधान सुचारु रुपसे कर सकता है?
(३) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास आर्षदृष्टि है?
(४) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचि है और उसके उपर प्रतिबद्ध है?
(५) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास अपनी कार्यसूचिकी प्रणाली भी सुनिश्चित है?
(५) ऐस कौनसा पक्ष है जो अधिक नीतिवान है?
(६) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके पास व्यापक संगठन है?
(७) ऐसा कौनसा पक्ष है जिसके लिये “प्राथमिकता भारतका हित” है?
श्रेय पक्ष बीजेपी ही है
ऐसा पक्ष केवल और केवल बीजेपी ही है जिसके नेता नरेन्द्र मोदी है. इसके उपर यदि किसीको संदेह हो तो इसकी चर्चा हो सकती है. इससे यदि कोई श्रेयतर नेता है तो बताओ.
नीतिओंकी स्पष्टता, आर्षदृष्टि और नीतिमत्ता इनका अभाव, वह जेडीयु है.
हम आरजेडी, नहेरुवीयन कोंग्रेस, एस पी, एनसीपी, आदिकी बातें नहीं करेंगे. इन सबके काले करतूत इतिहासके पन्नोंपर पर विद्यमान है. वे सभी पक्ष, एक दुसरेके अवलंबनके लिये विवश है. ये सभी राजकीय समीकरणों के आधार पर बनाई गई चूनावी गेमके से जिन्दा है. आवश्यकता होने पर एक होते है और आवश्यकता यदि न हो तो एक दुसरेके दुश्मन बनते हैं.
बीजेपी भी ऐसे गठबंधनके लिये विवश बनता है. जैसे कि बीजेपी, शिवसेना, एमएनएस, एल जे पी, डी.एम.के. या ए.डी.एम. के साथ गठबंधन करती है. किन्तु बीजेपीने कभी भ्रष्टाचार के साथ समझौता नहीं किया.
यह बात सही है कि, कोई विस्तारमें अपने अस्तित्वको बनानेके लिये बीजेपीने ऐसे प्रादेशिक संकुचित मानसिकता वाले पक्षोंसे समझौता किया है. यदि प्रमाणभान की प्रज्ञासे देखा जाय तो बीजेपी की मात्रा अन्य पक्षोंकी तरह असीम नहीं है.
जेडीयुने आरजेडी और नहेरुवीयन कोंग्रेससे गठबंधन किया. ये दोनों पक्ष एक समय उसके सैधांतिक आधार पर दुश्मन नंबर एक थे.
नहेरुवीयन कोंग्रेस तो एक स्वकेन्द्री, वंशवादी और देशकी जनताको विभाजित करने वाला सरमुखत्यार शाहीमें मानने वाला पक्ष है. इसके पास स्वकेन्द्रीय सत्ता प्राप्त करनेके अतिरिक्त, कोई अन्य कार्य सूचि नहीं है. इसने ही उच्च न्यायालयकी अवमानना करके जनतंत्रको नष्ट भ्रष्ट करदिया था. महात्मा गांधीके निकटके साथीयों तकको इसने बिना कोई अपराध और बिना कोई न्यायिक प्रक्रिया, कारवासमें अनियतकाल के लिये बंद किया था और मरणासन्न किया था. ये सब बातें एततकालिन इतिहासके पन्नों पर विद्यमान है. तो भी जेडीयुने इस कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. इससे जेडीयुकी मानसिकताका दर्श्न होता है. आरजेडी नेता भी १९७७में जनता पक्षके सदस्य थे और उन्होंने नहेरुवीयन कोंग्रेसको नष्ट करनेका प्रण लिया था. जब जनता पक्ष तूट गया और जनता दल भी तूटा, तो लालु यादवने अपने लिये एक वंशवादी पक्ष बना लिया. इसने केवल सत्ताके लिये ही नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथ गठबंधन किया. लालु यादव अपने कौभांडोके कारण कारावाससे बचने के लिये ये सब करते रहे. उनके शासनको “जंगल राज”का प्रमाणपत्र नीतीशकुमार स्वयंने दिया था.
ये तीनोंने मिलके बिहार पर कमसेकम ४० वर्ष राज किया है. तो भी ये पक्ष बिहारका विकास नहीं करपाये. ये सब बिहारको पछात राज्यकी कक्षा की मान्यता मिले ऐसी वार्ताएं करते रहे. तदुपरांत समाजकी विभीन्न जातियोंके लिये शिक्षा और नौकरीमें आरक्षण मिलता ही रहे ऐसी प्रतिक्रिया भी प्रदर्शित करते रहे.
इन तीनों पक्षकी अपेक्षा बीजेपीका व्यवहार व्यवस्थित रहा है. इसलिये बीजेपी की विजय चूनावमें होना अपेक्षित था और श्रेय भी था.
किन्तु बीजेपी और उसके साथी पक्ष बिहार चूनावमें पराजित हुए
बीजेपी एक ऐसा पक्ष है जो भारतकी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर पर गर्व रखता है. उसका स्वदेशीमें विश्वास है. स्वदेशी उत्पादनमें मानता है और स्वदेशी भाषाओं उपर गर्व रखता है. विदेशीओं द्वारा लिखित आधारहीन भारतीय इतिहासमें वह विश्वास नहीं रखता है. तद उपरांत वह परशुराम, राम, कृष्ण आदि पौराणिक या महाकाव्यके पात्रोंको ऐतिहासिक मानता है.
बीजेपी और खास करके नरेन्द्र मोदी मानते है कि सभी समस्याओंका मूल, शिक्षाका अभाव और कामका अभाव है. इसलिये दो प्राथमिकता बननी चाहिये. एक है, शिक्षासे कौशल्य, और दुसरा है भूमिगत संरचना यानी कि, उर्जा, मार्ग, परिवहन, जल संचय, जलवितरण आदिके विकाससे उत्पादनमें वृद्धि. इस प्रकार विकास करनेसे हर समस्याका निवारण हो जायेगा चाहे वह जातिगत हो या आर्थिक हो.
नरेन्द्र मोदीके पास इन सबकी दृष्टिके उपरांत विदेशी संबंधोंके बारेमें और सुरक्षा संबंधित प्रश्नों के बारेमें सुनिश्चित आयोजन है. उत्पादन, कार्य, और प्रबंध के विषयमें नरेन्द्र मोदीके पास निर्धारित और सुनिश्चित प्रणालीयोंका आयोजन है. बीजेपी एक मात्र ऐसा पक्ष है जिसके पास नरेन्द्र मोदी जैसा एक मात्र नेता है जो बिना थके निस्वार्थ भावसे १८ घंटा काम करता है. सुभासचंद्र बोस, दयानंद सरस्वती, विवेकानन्द, महात्मा गांधी और सरदार पटेलके बाद केवल नरेन्द्र मोदी ही एक मात्र नेता भारतको उपलब्ध हुआ है जो अन्य सबसे एक हजार मिल आगे है.
बीजेपीकी पराजयको वक्र दृष्टिसे मुल्यांकन करनेवाले स्वार्थ परायण दल समूहः
जो महाठगबंधनवाले पक्ष थे उनका हित तो स्वयंका विजय पाना हो यह बात तो स्वाभाविक है. किन्तु जो विद्वज्जन अपनेको तटस्थ मानते है और जो दृष्य श्राव्य और वाच्य समाचार माध्यम है उनको चाहिये था कि वे केवल समाचार ही दें, और अपनी तरफसे तारतम्य वाली समाचार शिर्ष पंक्तियां न बनावें. जो मूर्धन्य लोग समाचार माध्यममें या तो एंकर है या कोलमीस्ट (कटार लेखक) है वे तर्कबद्धतासे और प्रमाणभानकी प्रज्ञाका उपयोग करके समाचारोंका विश्लेषण करें और मूल्यांकन करनेमें मापदंड भी समान ही रखें.
समाचार माध्यमों द्वारा कौनसी बातें उछाली गई?
बीजेपी नेतागणसे संबंधितः
(१) शेतानको लालुजीकी जीभ पर बैठने का एड्रेस किसने दिया?
(२) ‘ ‘-वाले शर्म करो. पहेले अपना ४० सालका हिसाब बताओ.
(३) मैं क्या बाहरी हुं. मैं क्या पाकिस्तानका प्रधान मंत्री हुं …. …. ?
(४) अनामत पर पुनर्विचारणा होनी चाहिये
(५) मैं स्वयं पीछडी जातिका हुं और मुझपर क्या गुजरी है वह मैं जानता हुं..
(५) लालुजी किस कारणसे चूनावमें प्रत्याशी नहीं बने, इसका कारण तो बताओ लालुजी,
(७) यदि एनडीए की पराजय हुई तो पटाखे पाकिस्तानमें फूटेंगे
(८) यह महागठबंधन एक स्वार्थबंधन है. डीएनए चेक करना चाहिये. ये तीनों पक्षके नेता एक मंच पर क्यों नहीं आ सकते हैं?
(१०) नीतीश कुमारने जनतंत्रमें “मंत्र तंत्र”का आश्रय लिया है. यह वीडीयो क्लीप सोसीयल मीडीया पर बहुत चली.
(११) जिनको गोमांस खाना हो वे पाकिस्तान चले जाय.
(१२) यदि यहां गोमांस खाया तो मैं गला काट दूंगा.
महागठबंधन के उच्चारणः
(१) नीतीशकुमारने २००२ के गुजरातके दंगोंका उल्लेख किया
(२) बिहारीयोंको बाहरी चाहिये कि बिहारी?
(३) काला धनके डेढलाख हमारे एकाउन्टमें अभीतक जमा क्यों नहीं हुए,
(४) मांस खाने वाले असंस्कारी होते है, ऐसा जब मैंने कहा तब मेरी जबानपर शेतान बैठा था.
(५) गौमांस तो हिन्दु भी खाते है.
(६) मांस तो मांस ही है चाहे वह गायका हो, घोडेका हो या कुत्तेका हो.
(७) मुझे शेतान कहा,
(८) अमित शाह नरभक्षी है, वह नरपिशाच है,
(९) बीजेपीवालोंने काला जादु करके मुझ पर फैन गिराया. मैं काला जादु जानता हुं और “काला कबुतर” मीर्च मसाले मंत्र पढके उसको भगाउंगा.
(१०) देखो यह फोटो जिसमें नरेन्द्र मोदी अपना हाथ ज्योतीषीको दिखाते है.
नरेन्द्र मोदीका चूनाव मंत्र “विकास” था. लेकिन महागठबंधनके नेता हमेशा जातिवादकी बातें करते थे और आरएसएसके एक नेताने कहा कि “अनामत” पर पुनर्विचारणा होना चाहिये. यह सुनकर महागठबंधनके नेताओंमे लड्डु फूटने लगे. वैसे भी उनका गठबंधन “जातिवाद”के आधार पर ही हुआ था. और विकासके आधार पर प्रचार करना उनके लिये कठिन था. क्यों कि बिहारके कई विस्तारोमें, मकान, पानी, मार्ग, बीजली और शिक्षासंस्थाओंकी सुविधाएं नहीं है. उद्योग भी इसके कारण अल्प मात्रामें है. बीजेपीको कोमवाद परस्त कह्ना और कोमवादका मुद्दा उठाना यह तो वैसे भी फैशन है.
दाद्रीनामके एक देहातमें जो हुआ, चूं कि वह हिन्दुओंने किया था, ये सब इस बात पर तूट पडे. और उसको गौमांसके साथ, नागरिक स्वतंत्रता और हिन्दुओंकी असहिष्णुता के साथ जोड दिया. इस बातको जिस सीमातक ले गये इससे ऐसा लगता है कि यह एक सोची समझी व्यूहरचना थी जिसको नकारा नही जा सकता.
सियासती महानुभावोंका एवोर्ड वापसीका सीलसीला
इस घटनाको लेके बीजेपी–आरएसएस विरोधी और नहेरुवीयन कोंग्रेस परस्त, अभिनेता, कवि, लेखक, विवेचक, समाजसेवी, आदि तथा कथित महानुभावोंने, सरकार तरफसे दिये गये पुरस्कार एक के बाद एक ऐसा करके लौटाने लगे, ताकि, समाचार माध्यम, चूनावप्रचार अंतर्गत समयमें पूरा वातावरण बीजेपी–आरएसएस की असहिष्णुताके विरोधमें बना हुआ रख सके.
यदि इस घटनापर विश्लेषण किया जाय तो भूतकालमें ऐसी ही नहीं किन्तु इससे हजारों लाखों दफा बडी कई मानव हनन और मानव अधिकार हननकी घटनाएं घटी तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
नहेरुकी नीतिके कारण और भारतीय सीमाको असुरक्षित रखनेसे और हमारे जवानोंको शस्त्रोंसज्ज न करनेके कारण १९६२में हजारों जवानोंको बेमौत शहीद होना पडा. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९७२में सिमला समझौता अंतर्गत इन्दिरा गांधीने भारतकी जितको पराजयमें परिवर्तित करके हजारों शहीदोंके बलिदानोंपर पानी फेर दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९७५–१९७६ मे आपतकाल घोषित करके विरोधी आवाजको बंध करने के लिये ६००००+ लोगोंको कारावासमें अनियत कालके लिये बंद कर दिया. समाचार माध्यमों पर सेन्सरशीप डाल दी. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इन्दिराने युनीयन कार्बाईडसे क्षतियुक्त डील किया और भोपालगेस दुर्घटना हुई और सेंकडो मौत हुई और हजारों लोग, शरीरसे स्थायी रुपसे अपंग हुए. इन गेसकांड पीडितोंको, क्षतियुक्त डील के कारण मुआवझा नही मिला. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इस घटनाके दोषी एन्डरशनको अर्जुनसिंह और राजीवगांधीने भगा दिया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
इन्दिरा गांधीने, खालिस्तानी आतंकवादी भींदराणवालेको संत घोषित करके उसको बढावा दिया, इससे खालिस्तानी आतंकवाद और सीमापारके आतंकवादको बढावा मिला. इसी कुकर्मके कारण इन्दिराकी हत्या हुई. इस नहेरुवीयन कोंग्रेसीयोंने हजारों निर्दोष शिखोंका कत्लेआम किया. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
सीमापारका आतंकवाद कश्मिरमें बढने लगा और जो हिन्दु कश्मिरमें १५% थे उनके उपर अत्याचार होने लगे और हिन्दु जनसंख्या १९८९ तक ५% हो गयी. तब तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
१९९०में खुले आम, वर्तमान पत्रोंमें इस्तिहार देके, मस्जिदोंमेंसे लाऊडस्पीकर द्वारा घोषणा करवाके, दिवारों पर पोस्टरों लगाके, हिन्दुओंको चेतावनी दी, कि निश्चित दिनांकके अंतर्गत या तो इस्लाम कबुल करो या कश्मिर छोड दो. यदि यह स्विकार्य नहीं है तो मौत के लिये तयार रहो. ६०००+ हिन्दुओंका कत्लेआम हुआ. ५००००० हिन्दुओंको अपना घर और राज्य छोडने पर विवश किया जो आज २५ सालके बाद भी, वे या तो तंबुमें रहेते है या खोलीमें रहेते है. १९९० पहेले भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनका साथी “एन. एफ” कश्मिर में राज करते थे, और १९९०के बाद नहेरुवीयन कोंग्रेस और उसके साथी पक्षोंने १५ साल राज किया तो भी नहेरुवीयन कोंग्रेस और उनके साथी पक्षोंके कानोंमें जू तक नहीं रेंगी. इन शासकोंने कश्मिरी हिन्दुओंके मानव अधिकारोंके सतत होते हुए हननके विषयमें केवल उपेक्षा की. तो भी इन महानुभावोंकी संवेदनशीलताको जरासी भी हानि नहीं पहोंची. ये लोग नींभर और संवेदनहीन रहे.
और अब देखो यहां क्या हुआ? दाद्री देहातमें एक गरीब मुस्लिमकी हत्या हुई. युपी जो नहेरुवीयन कोंग्रेसके साथी पक्ष द्वारा शासित राज्य है तो उत्तर दायित्वतो उसका ही बनता है, किन्तु इन सियासती महानुभावोंने इस घटनाका उत्तर दायित्व बीजेपी केन्द्रकी बीजेपी सरकार पर डाल दिया. चूं कि मृत व्यक्ति मुस्लिम था और चूं कि मारने वाले हिन्दु थे. यदि मारने वाले हिन्दु है तो बीजेपी को उत्तरदायी बता दो. क्या इसमें कोई तर्क है? यहा क्या बुद्धिगम्य है?
वास्तवमें महानुभावोंका तारतम्य और प्रतिभाव निरपेक्ष रुपसे एक प्रपंच है और निरपेक्ष रुपसे कोमवादको उकसाना है. ये सभी महानुभाव को कोमवाद फैलाने के आरोप पर न्यायिक कार्यवाही करनी चाहिये. और उनको कारावास में रखना चाहिये.
(क्रमशः)
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्ज़ः बिहार चूनाव, प्रक्रिया, परिणाम, बीजेपी, जय प्रकाश नारायण, भारतीय संविधान, बहुमत, सत्यका आधार, श्रेय, नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, आर्षदृष्टा, नीतिवान, प्राथमिकता भारतका हित, कुशल, ठगबंधन, गठबंधन, आरजेडी, लालु, जंगल राज, जेडीयु, नीतीश, नहेरुवीयन कोंग्रेस, नहेरु, इन्दिरा, वंशवादी, स्वकेन्दी, सत्ता, जवान, शहीदी, दाद्री, नहेरुवीयन कोंग्रेसका साथी पक्ष, महानुभाव, एवोर्ड वापसी, सियासत, परस्त, संवेदनहीन , नींभर, कश्मिर, हिन्दु, शिख, भीन्दरानवाले, खालिस्तान, आतंकवाद, कत्लेआम, हिन्दुओंको चेतावनी
मुस्लिमोंका कश्मिरी हत्याकांड, आतंक और सीमाहीन दंभ
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मुस्लिमोंका कश्मिरी हत्याकांड, आतंक और सीमाहीन दंभः
यदि आप मनुष्य है तो आपका रक्त उबलना चाहिये
आप मनुष्य है यद्यपि कश्मिरी हिन्दुओंकी दशकोंसे हो रही यातनाओंके विषय पर केन्द्रस्थ शासकोंकी और कश्मिरके शासकोंकी और नेताओंकी मानसिकता और कार्यशैलीसे यदि, आपका रक्त क्वथित (ब्लड बोइलींग) नहीं होता है और आप इस सातत्यपूर्ण आतंकके उपर मौन है तो निश्चित ही आप आततायी है.
इस आततायीओंमें यदि अग्रगण्योंकी सूचि बनानी है तो निम्न लिखित गण महापापी और अघोर दंडके योग्य है.
नहेरुवीयन कोंग्रेसः
हमारे देशके गुप्तचर संस्था सूचना देती रहेती थी कि, आतंकवादीयोंके भीन्न भीन्न समूह अफघानिस्तानमे अमेरिका और सोवीयेत युनीयन के शित युद्धमें क्या कर रहे हैं.
ओसामा बीन लादेन भी कहा करता था कि द्वितीय लक्ष्य भारत है. शित युद्ध अंतर्गत भी एक आतंकी समूह, शिख आतंकवादीयोंके संपर्कमें था. शिख आतंकवादी समुह भी पाकिस्तान हस्तगत कश्मिरमें प्रशिक्षण लेता रहता था. शित युद्ध का एक केन्द्र पाकिस्तान भी था. अमेरिकाकी गुप्तचर संस्था सीआईए, पाकिस्तानकी गुप्तचर संस्था आईएसआई, अमेरिका समर्थित आतंकी समूहोंके साथ (उदाहरण = अल कायदा), संवाद और सहयोगमें थे.
खालिस्तानी आतंकवाद का संपर्क पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई एस आई से था. इस प्रकार पाकिस्तानके शासनको और पाकिस्तानस्थ आतंकी समूहोंके लिये भारतमें आतंकवादी जाल स्थापित करना सुलभ था.
जब शित युद्धका अंत समीप आने लगा (१९८०), तो आतंकवादी संगठनोंने भारतको लक्ष्य बनाया जिसमें खालिस्तानी आतंकवाद मुख्य था. यह एक अति दीर्घ कथा है किन्तु, खालिस्तानी आतंकवाद ने स्वर्णमंदिरपर पूरा कबजा कर लिया था. जब इन्दिरा गांधीको आत्मसात् हुआ कि अब खालिस्तानके आतंकवादी की गतिविधियोंके फलस्वरुप उसकी सत्ता जा सकती है तब उसने १९८४में स्वर्णमंदिर पर आक्रमण करवाया. ४९३ आतंकवादी मारे गये. १९०० व्यक्तियोंका अता–पता नहीं. तत् पश्चात् सिख आतंकवाद बलवान हुआ और इन्दिरा गांधीकी आतंकीयोंने हत्या की.
इस प्रकार आतंकवादने अपना जाल फैलाया. १९८८में शितका युद्ध संपूर्ण अंत हुआ और मुस्लिम आतंकी समूहका भारतमें प्रवेश हुआ. वीपी सिंह और चन्दशेखरने सिख आतंकवादका अंत तो किया किन्तु वे मुस्लिम आतंकवादको रोकनेमें असमर्थ बने क्योंकि वीपी सिंहने दलित आरक्षण पर अधिक प्राथमिकता दी, और चन्द्र शेखरने अपना धर्मनिरपेक्ष चित्र बनाने पर अधिक ध्यान दिया. इसका कारण यह था कि भारतीय जनता पक्ष विकसित हो रहा था औरस इन दो महानुभावोंको अपना वोटबेंक बनाना था.
१९८८के अंतर्गत मुस्लिम आतंकवादीयोंने कश्मिर में अपनी जाल प्रसारित कर दी थी. शासन, समाचार पत्र, मुद्रक, मस्जिदें, सभी मुस्लिम संस्थाओंके साथ उनका संपर्क हो गया था.
१९८९ अंतर्गत इन आतंकीयोंने हिन्दुओंको अतिमात्रामें पीडा देना प्रारंभ किया. और १९८९ तक उन्होंने ऐसी स्थिति प्राप्त कर ली कि, वे ध्वनिवर्धक यंत्रोंसे साक्षात रुपसे वाहनोंमें घुम कर, मस्जिदोंसे, स्पष्ट धमकी देने लगे, यदि हिन्दुओंको (सिख सहित), कश्मिरमें रहेना है तो मुस्लिम धर्म अंगिकार करो या तो कश्मिर छोडके पलायन हो. यदि ऐसा नहीं किया तो आपकी अवश्य ही हत्या कर दी जायेगी.
१९ जनवरी, १९९० अन्तिम दिवस
इस घोषणाका अंत यह नहीं था. मुस्लिमोंने १९ जनवरीको अंतिम दिन भी घोषित किया. सार्वजनिक सूचना के विशाल मुद्रित पत्र सार्वजनिक स्थानों पर, भित्तियोंपर (ओन ध वॉल्स), निश्लेषित (पेस्टेड) किये गये, समाचार पत्रोंमें भी यह सूचना सार्वजनिक की गयी कि कश्मिरमें रहेना है तो मुस्लिम धर्म अंगिकार करो या तो कश्मिर छोडके पलायन हो. यदि ऐसा नहीं किया तो आपकी अवश्य ही हत्या कर दी जायेगी.
इस समय अंतर्गत क्या हुआ?
पुलिस मौन रहा,
स्वयंको धर्मनिरपेक्ष प्रदर्शित करनेवाले अखिल भारतके नहेरुवीयन कोंगी नेतागण मौन रहा. यह कोंग, उस समय भी कश्मिरके शासक पक्षमंडळका एक अंग था, तो भी मौन और निस्क्रीय रहा.
कश्मिरके स्वयंको धर्मनिरपेक्ष प्रदर्शित करनेवाले मुस्लिम नेता मौन रहे, हाशीम कुरैशी, शब्बीर एहमद, शब्बीर शाह, अब्दुल गनी, मुफ्ती मोहमद, फारुख, ओमर, यासीन मलिक, गुलाम नबी आझाद, सज्जद एहमद किच्लु, सईद एहमद कश्मिरी, हसन नक्वी, आदि असंख्य नेतागण मौन रहे
कश्मिरके मुस्लिम शासनके मंत्रीगण जिनका नेता फरुख अब्दुल्ला जो हमेशा अपने पुर्वजोंके बलिदानोंकी वार्ताएं करके अपनी पीठ थपथपाता है, वह भी अपनी गेंगके साथ सर्व मौन रहा.
इन लोगोंने तो जनकोषसे लाखों रुपयोंका वेतन लिया था. उनका तो धर्म बनता है कि अपने राज्यके नागरिकोंका और उनके अधिकारोंका रक्षण करे. किन्तु यह फारुख तो अपने कबिलेके साथ अंतिम दिन १९ जनवरी १९९०के दिनांकको ही विदेश पलायन हो गया.
आज २५साल के पश्चात् वह कहता है कि हिन्दुओंके उपर हुए अत्याचारके लिये वह उत्तरदायी नहीं है क्यों कि वह तो कश्मिरमें था ही नहीं (पलायनवादी का तर्क देखो. वह समझतता है कि कश्मिरमें आनेके बाद भी और १० साल सत्ता हस्तगत करनेके बाद भी उसका कोई उत्तरदायित्व नहीं है. यह स्वयं आततायी संगठनोंका हिस्सा समझा जाना चाहिये)
कश्मिरके भारतीय नागरिक सुरक्षा सेवा अधिकारी गण (ईन्डीयन पोलीस सर्वीस ओफिसर्स = आई.पी.एस. ओफिसर्स)), नागरिक दंडधराधिपति सेवा अधिकारीगण (ईन्डीयन अड्मीनीस्ट्रटीव सर्वीस ओफीसर्स = आई.ए.एस ओफीसर्स) मौन रहे. इन लोगोंने तो जनकोषसे लाखों रुपयोंका वेतन लिया है. इनका भी धर्म बनता है कि अपने राज्यके नागरिकोंका और उनके अधिकारोंका रक्षण करे.
समाचार प्रसारण माध्यम जिनमें मुद्रित समाचार पत्र, सामायिक, दैनिक आदि आते हैं, और विजाणुं माध्यम जिनमें सरकारी और वैयक्तिक संस्थाके दूरदर्शन वाहिनीयां है और ये सर्व स्वयंको जन समुदायकी भावनाएं एवं परिस्थितियोंको प्रतिबींबित करने वाले निडर कर्मशील मानते हैं वे भी मौन रहे,
यही नहीं पुरे भारतवर्षके ये सर्व कर्मशील मांधाता और मांधात्रीयां मौन रहे, सुनील दत्त, शबाना, जावेद अख्तर, महेश भट्ट, कैफी आझमी, नसरुद्दीन शाह, झाकिर नायक, अमिर खान, शारुख खान, ए आर रहेमान, अकबरुद्दीन ओवैसी, इरफान हब्बीब, मेधा, तिस्ता, अरुन्धती, आदि असंख्य मौन रहे,
अमेरिका जो अपनेको मानव अधिकारका रक्षक मानता है और मनवाता है, और मानवताके विषय पर वह स्वयंको जगतका पितृव्यज (पेटर्नल अंकल) मनवाता है, वह भी मौन रहा, उसकी संस्थाएं भी मौन रही,
भारतवर्ष के भी सभी अशासकीय कर्मशील, धर्मनिरपेक्षवादी कर्मशील, महानुभाव गण (सेलीब्रीटी), चर्चा चातूर्यमें निपूण महाजन लोग भी मौन रहे.
मौन ही नहीं अकर्मण्य रहे,
अकर्मण्य भी रहे आज पर्यंत, २५ हो गये,
क्या इन महानुभावोंकी प्रकृति है मौन रहेनेकी?
नहीं जी, इन महानुभावोंका किंचिदपि ऐसी प्रकृति नहीं है.
गुजरातके गोधरा नगरके कोंग्रेससे संबंधित मुस्लिमोंने २००२ में हिन्दु रेल–यात्रियोंको जीवित अग्निदाह देके भस्म कर दिया तो हिन्दु सांप्रदायिक डिम्ब हिंसा प्रसरित हो गयी और उसमें हिन्दु भी मरे और मुस्लिम भी मरे. इस डिंब हिंसाचारमें मुस्लिम अधिक मरे. कारण था प्रतिक्रिया.
शासनने योग्य प्रतिकारक और दडधरादिक कार्यवाही की, इसमें कई मारे गये. मुस्लिम भी मारे गये और हिन्दु भी मारे गये. हिन्दु अधिक मारे गये.
दोनों संप्रादयके लोगोंके आवासोंको क्षति हुई.
तस्माद् अपि, उपरोक्त दंभी धर्मनिरपेक्ष, प्रत्येक प्रकारकी प्रणालीयोंने और महानुभावोंने अत्यंत, व्यापक, और सुदीर्घ कोलाहल किया, और आज, उसी २००२ के गुजरात डिंब विषय भी कोलाहल चलाते रहेते है.
क्या कश्मिरी मुसलमान लोग और नेतागणकी प्रकृति सांप्रदायिक कोलाहल करने की है?
कश्मिरी मुसलमानोंने ही हत्या करनेवालोंको साथ दिया था और हिन्दुओंको अन्वेषित करनेमें हत्या करनेवालोंको संपूर्ण सहायता की थी.
इतना ही नहीं इन नेताओंने और मुस्लिम जनसामाजने हिन्दुओंको आतंकित करनेमें कोई न्यूनता नहीं रक्खी थी.
अमरनाथ यात्रीयों पर हिंसायुक्त आक्रमण
अमरनाथ एक स्वयंभू शिवलिंग है. हिन्दुओंका यह एक श्रद्धा तीर्थ है. यह तिर्थयात्रा ई.पूर्व ३०० से भी पूर्व समयसे चली आती है. २ मई से, २९ अगस्त तक यात्राका समय है.
१९९०में मुस्लिमोंने जो नरसंहार और आततायिता प्रदर्शित की. कश्मिरका शासन और केन्द्रीय भारतीय नहेरुवीयन कोंग्रेसका शासन, निंभर रहा. इससे मुसलमानोंका उपक्रम बढा. उन्होने आतंककी भयसूचना दे डाली. इस कारण दोनों भीरु शासनने १९९०से १९९५ तक अमरनाथ यात्रा स्थगित कर दी.
सन. ९९९६ से शासनने अनुमति देना प्रारंभ किया. प्रत्येक वर्ष कश्मिर के मुस्लिम, हिन्दु यात्रीयोंको धमकी देते हैं. और हमारे जवान यात्रीयोंकी सुरक्षा करते है. कश्मिर शासनका स्थानिक सुरक्षादल कुछ भी सुरक्षा देता नहीं है. अमरनाथ यात्रा पहलगांवसे प्रारंभ होती है और मुस्लिम आतंकी कहींसे भी हमला कर देते हैं. प्रतिवर्ष आक्रमण होता है. कुछ यात्री आहत हो जाते हैं. उनमें शारीरिक पंगुता आ जाती है. कुछ यात्री हत्यासे बच भी नहीं सकते. सन. २०००मे एक बडा हत्याकांड हुआ था उसमें १५००० का सुरक्षा दल होते हुए भी १०५ हिन्दु मारे गये. इनमें ३० यात्रीयोंको तो पहलगांवमें ही मार दिया.
अमरनाथ श्राईन बोर्डः
सन २००८में अमरनाथ यात्रीयोंकी सुरक्षा और सुविधाओंको ध्यानमें रखते हुए, केन्द्रीय शासन (नहेरुवीयन कोंग्रेस) और कश्मिरके मुस्लिम शासनने एक संमतिपत्र संपन्न किया कि, अमरनाथ श्राईन बोर्डको ९९ एकड वनभूमि उपलब्ध करवाई जाय.
इसका प्रयोजन यह था कि सुरक्षाके उपरांत, यात्रीयोंके लिये श्रेयतर आवासोंका निर्माण किया जा सके. वैसे तो ये सब आवास अल्पकालिन प्रकारके रखने के थे.
तथापि, आप मुसलमानों का तर्क देखिये.
इस प्रकार भूमि अधिग्रहण करनेसे अनुच्छेद ३७०का हनन होता है.
मुस्लिमोंका दुसरा तर्क था कि, आवासोंका निर्माण करनेसे पर्यावरण का असंतुलन होता है.
ये द्नों तर्क निराधार है. अमरनाथ श्राईन बोर्ड स्थानिक शासनका है. इस कारणसे अनुच्छेद ३७० का कोई संबंध नहीं. जो आवास सूचित किये थे वे प्रासंगिक और अल्पकालिन प्रकारके थे. इस कारणसे उनका पर्यावरण के असंतुलनका तर्क भी अप्रस्तुत था.
इस प्रकार कश्मिर के मुस्लिमोंने जो तर्क रक्खा था वह मिथ्या था. “मुसलमान लोग तर्क हीन और केवल दंभी होते है” इस तारतम्यको भारतके मुसलमानोंने पुनःसिद्ध कर दिया.
कश्मिरके मुसलमानोंने अमरनाथ श्राईन बोर्ड और जम्मु–कश्मिर शासनके इस संमति–अभिलेखका प्रचंड विरोध किया. पांच लाख मुस्लिमोंने प्रदर्शन किया और कश्मिरमें व्यापक “बंध” रक्खा. भारतका पुरा मुस्लिम जन समाज, हिन्दुओंको कोई भी सुविधा मिले उसके पक्षमें होता ही नही है. –
आप कहेंगे इसमें कश्मिरके अतिरिक्त भारतके मुसलमानोंके संबंधमें क्यों ऋणात्मक भावना क्यों रखनी चाहिये?
जो मुसलमान स्वयं मानवीय अधिकारोंके पक्षमें है, ऐसा मानते है, जो मुसलमान स्वयंको धर्मनिरपेक्ष मानते हैं, जो मुसलमान स्वयंको भारतवासी मानते हैं, इन मुसलमानोंका क्या यह धर्म नहीं है कि वे अपने हिन्दुओं की सुरक्षा और सुविधा पर अपना तर्क लगावें और कश्मिर के पथभ्रष्ट मुसलमान भाईओंके विरुद्ध अपनी प्रतिक्रिया प्रदर्शित करें, आंदोलन करें, उपवास करें?
नहीं. भारतके मुसलमान ऐसा करेंगे ही नहीं. क्यों कि वे अहिंसामें मानते ही नहीं हैं. समाचार माध्यमके पंडितोंने भी, इस विषयके संबंधमें मुस्लिम और शासकीय नेताओंको आमंत्रित करके कोई चर्चा चलायी नहीं. समाचार माध्यमोंके पंडितोंको केवल कश्मिरके मुसलमानोंने कैसा लाखोंकी संख्यामें एकत्र होके कैसा अभूतपूर्व आंदोलन किया उसको ही प्रसारण करनेमें रुचि थी. उनको मुस्लिम नेताओंकों और नहेरुवीयन कोंगके नेताओंको आमंत्रित करके उनके प्रमाणहीन तर्कोंको धराशाई करनेमें कोई रुचि नही थी. नहेरुवीयन कोंग्रेसके नेतागण तो वैसे ही दंभी, असत्यभाषी, ठग, सांप्रदायिक, मतोंके व्यापारी, आततायी, कायर और व्यंढ है. उन्होंने तो मुसलमानोंके चरित्रको, स्वयंके चरित्रके समकक्ष किया है.
कश्मिर पर आयी वर्षा की सद्य प्राकृतिक आपदाएं
इसी वर्षमें कश्मिर पर वर्षाका प्राकृतिक प्रकोप हुआ.
भारतके सैन्यका, कश्मिरी मुसलमान वैसे तो अपमान जनक वर्तन करनेमें सदाकाल सक्रिय रहेते है. क्यों कि, मुसलमानोंकी हिंसात्मक मानसिकताको और उनके आचारोंको, भारतीय सैनिक, यथा शक्ति, नियंत्रित करते है.
भारतीय सैनिकोंका ऐसा व्यावहार, मुसलमानोंकों अप्रिय लगता है. ये मुसलमान लोग स्थानिक सुरक्षाकर्मीयोंकी भी हत्या करते है.
यह मुसलमान लोग हिन्दुओंके लिये और स्वयंके लिये भीन्न भीन्न मापदंड रखते हैं.
नरेन्द्र मोदीने गुजरातमें मुसलमानोंकी सुरक्षा की, और तीन ही दिनोमें परिस्थितिको नियंत्रित कर दिया था तो भी मुसलमानोंने और दंभी जमातोंने अपना जठर फट जाय, उतनी नरेन्द्र मोदीकी निंदा की थी. आज भी करते है. तद्यपि नरेन्द्र मोदी हमेशा अपना राज–धर्मका पालन करते रहे, और जिन मुस्लिमोंने ३०००+ कश्मिरी हिन्दुओंका कत्ल किया था और लाखों हिन्दुओंके उपर आतंक फैलाके कश्मिरसे भगा दिया था, उन्ही मुस्लिमोंके प्राणोंकी रक्षाके लिये नरेन्द्र मोदीने भारतीय सैनिकोंको आदेश दिया. और उन्ही भारतीय सैनिकोंने स्वयंके प्राणोंको उपेक्षित करके इन कृतघ्न और आततायी कश्मिरके मुस्लिमोंके प्राण बचाये.
अब आप कश्मिरके घोषित, श्रेष्ठ मानवता वादी,
समाचार माध्यम संमानित वासिम अक्रम की
मानसिकता देखो.
इस वासिम अक्रम कश्मिरका निवासी है. उपरोक्त उल्लेखित प्राकृतिक आपदाके समय इस व्यक्तिने कुछ मुसलमानोंके प्राणोंकी रक्षा की. इस कारणसे प्रसार माध्यम द्वारा उसका बहुमान किया गया. उससे प्र्श्नोत्तरी भी की गयी. इस व्यक्तिने वर्णन किया कि उसके माता–पिताके मना करने पर भी वह स्वयंमें रही मानवतावादी वृत्तिके कारण घरसे निकल गया और प्राकृतिक आपदा पीडित कश्मिरीयोंके प्राणोंकी रक्षा की.
इसी व्यक्तिने बीना पूछे ही यह कहा कि, भारतीय सैनिकोंने भी अत्यंत श्रेष्ठ काम किया. लेकिन उनका तो वह धर्म था. उनको तो अपना धर्म निभानेके लिये वेतन मिलता है. (किन्तु मैंने तो मानवधर्म निभानेके लिये वेतनहीन काम किया).
इससे अर्थ निकलता है कि मानवतावादी कर्म तभी कहा जा सकता है कि, आप बिना वेतन काम करो. वासिमने बिना वेतन काम किया इसलिये वह मानवता वादी है.
लेकिन इससे एक प्रश्न उठता है.
उसने हिन्दुओंके लिये क्या किया?
हो सकता है कि १९९०में वह दूधपीता बच्चा हो. लेकिन उसके पिता तो दूध पिता बच्चा नहीं था. और अन्य मुसलमान लोग तो दूधपीते बच्चे नहीं थे. ओ वासिम ! २००५ से तो तू बडा हो ही गया था. तो तभीसे तो तू हिन्दुओंको सुरक्षित रीतिसे कश्मिरमें अपने घरोंमें बसा सकता था. इसमें तुम्हारी मानवता कहां गई? हिन्दुओंके विषयमें तू क्यों अपनी मानवता दिखाता नहीं है?
जिसकी मानवताको माध्यमोंने प्रसारित किया, उसको कभी यह पूछा नहीं गया कि कश्मिरी हिन्दुओंके बारेमें उसने क्या किया? उनके प्रति क्यों मानवता नहीं दिखाता है?
कश्मिरी हिन्दुओंका पुनर्वासः
कश्मिरमें मुफ्तीसे मिलीजुली बीजेपीकी सरकार आयी. उसने कश्मिरके प्रताडित, प्रपीडित, निष्काषित निर्वासित हिन्दुओंके पुनर्वासके लिये एक योजना बनायी.
एक भूखंडको सुनिश्चित करके उसमें आवासें बनाके निर्वासितोंका पुनर्वास किया जाय. ऐसी योजना है. उसमें प्राकृतिक आपदासे विस्थापित मुसलमानोंको भी संमिलित किया जा सकता है.
किन्तु यह योजना पर, मुसलमानोंकी संमति नहीं. संमति नहीं उतना ही नहीं प्रचंड विरोध भी है.
इन मुसलमानोंने पूरे राज्यको बंध रखनेकी घोषणा कर दी.
उनका कुतर्क है कि हिन्दु लोग, कश्मिरकी जनताका एक अतूट सांस्कृतिक अंग है, और ऐसा होने के कारण हम मुसलमान लोग उनको ऐसा भीन्न आवसमें रहेने नहीं देंगे. हम चाहते हैं कि ये कश्मिरी हिन्दु लोग हमारे अगलबगलमें ही रहें. हम इसीको ही अनुमति देंगे कि हिन्दुओंका पुनर्वास उनके मूलभूत आवासमें ही हो. हम संयुक्त आवासमें ही मानते है.
वास्तवमें मुसलमानोंका यह तर्क निराधार है.
क्यों कि इस नूतन आवास योजनामें मुसलमानोंके लिये निषेध नहीं हैं. प्राकृतिक आपदासे विस्थापित या और कोई भी मुसलमानको इस आवासमें संमिलित किया जा सकता है. इतना ही नहीं कोई भी कश्मिरी हिन्दु यदि ईच्छा हो तो उसके लिये अपने मूलभूत आवासमें जानेका भी विकल्प खुल्ला है.
इन मुसलमानोंका एक तर्क और भी है.
हिन्दुओंके लिये भीन्न आवास योजना का अर्थ है, कश्मिरमें इस्राएल स्थापित करना. हम हिन्दु–मुस्लिमोंके बीच ऐसी दिवार खडी करना नहीं चाहते.
यह तर्क भी आधारहीन है.
हिन्दुओंने कभी संप्रदायके नाम पर युद्ध किया नहीं. हिन्दुओंने कभी अन्य संप्रदायका अपमान किया नहीं. इतिहास इसका साक्षी है.
इस्राएल, यहुदीओं की तुलना भारत और हिन्दुओंसे नहीं हो सकती. हां यह बात अवश्य कि मुसलमानोंकी तुलना मुसलमानोंसे हो सकती है. भारतके मुसलमानोंने एक भीन्न भूखंड भी मांगा और अपने भूखंडमें हिन्दुओंकी सातत्यपूर्ण निरंतर हत्याएं की.
मुसलमानोंने अपने भूखंडमें हिन्दुओंके उपर अत्याचार भी किये. इतना ही नहीं उन्होंने खुदने पूरे भारतमें अपनी दिवालोंवाली बस्तियां बनायी उसको विस्तृत भी करते गये और हिन्दुओंके आवासों पर कब्जा करते गयें. हिन्दुओंको भगाते भी गये.
कश्मिरमें तो मुसलमानोंने सभी सीमाओंका उल्लंघन किया, सभी सभ्यता नष्ट करके नम्र, सभ्य और अतिसंस्कृत हिन्दुओंका सहस्रोंमें संहार किया, उनको घरसे निकाला दिया और १९९०से आजकी तारिख तक उनको अपने मानवीय अधिकारोंसे वंचित रक्खा.
और ये हिन्दु कौन थे?
ये ऐसे हिन्दु थे जिन्होंने कभी मुसलमानोंसे असभ्य और हिंसक आचार नहीं किया. ऐसे हिन्दुओंके उपर इन मुसलमानोंने कृतघ्नता दिखाई. और अब ये मुसलमान, हिन्दुओंके उपर अपने प्रेमकी बात कर रहे हैं. कौन कहेगा ये मुसलमान विश्वसनीय है और प्रेमके योग्य है?
जब १९९०में जब मुसलमानोंने ३०००+ हिन्दुओंकी खुल्ले आम हत्यायें की जाती थीं, तब इनमेंसे एक भी माईका लाल निकला नहीं जो हिन्दुओंके हितके लिये आगे आयें.
इन मुसलमानोंका विरोध इतना तर्कहीन और दंभसे भरपुर होने पर भी इसकी चर्चा योग्य और तर्क बद्ध रीतिसे कोई भी समाचार माध्यमने नहीं की. समाचार माध्यम न तो, हिन्दुओंके मानव अधिकारके विषय पर सक्रीय है न तो वे उत्सुक है.
शिरीष मोहनलाल दवे
टेग्झः आई.सी.आई., सी.आई.ए., मानव अधिकार, हनन, शित युद्ध, पाकिस्तान, अमेरिका, सोवियेत युनीयन, खालिस्तानी, यासीन मलिक, फारुख, ओमर, गुलाम नबी, आई.पी.एस., आई.ए.एस., शासन, महानुभाव, कर्मशील, मांधाता, पंडित