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Posts Tagged ‘मामला गरम’

साहिब (जोकर), बीबी (बहनोईकी) और गुलाम(गण)

जोकर, हुकम (ट्रम्प) और गुलाम [साहिब, बीबी (बहनोईकी) और गुलाम]

गुजरातीमें एक कहावत है “भेंस भागोळे, छास छागोळे, अने घेर धमाधम”

एक किसानका संयुक्त कुटुंब था. भैंस खरीदनेका विचार हुआ. एक सदस्य खरीदनेके लिये शहरमें गया. घरमें जोर शोर से चर्चा होने लगी कि भैंसके संबंधित कार्योंका वितरण कैसे होगा. कौन उसका चारा लायेगा, कौन चारा  डालेगा, कौन गोबर उठाएगा, कौन दूध निकालेगा, कौन दही करेगा, कौन छास बनाएगा, कौन  छासका मंथन करेगा ….? छासके मंथन पर चिल्लाहट वाला शोर मच गया. यह शोरगुल सूनकर, सब पडौशी दौडके आगये. जब उन्होंने पूछा कि भैंस कहाँ है? तो पता चला कि भैस तो अभी आयी नहीं है. शायद गोंदरे (भागोळ) तक पहूँची होगी या नहीं पता नही. … लेकिन छास का मंथन कौन करेगा इस पर विवाद है.

यहां इस कोंगीके नहेरुवीयन कुटुंबकवादी पक्षका फरजंदरुपी, भैंस तो अमेरिकामें है, और उसको कोंगी पक्षका एक होद्दा दे दिया है, तो अब उसका असर चूनावमें क्या पडेगा उसका मंथन मीडिया वाले और कोंगी सदस्य जोर शोरसे करने लगे हैं.

कोंगीलोग तो शोर करेंगे ही. लेकिन कोंगीनेतागण चाहते है कि वर्तमान पत्रोंके मालिकोकों समज़ना चाहिये कि, उनका एजन्डा क्या है! उनका एजन्डा भी कोंगीके एजन्डेके अनुसार होना चाहिये. जब हम कोंगी लोग जिस व्यक्तिको प्रभावशाली मानते है उसको समाचार माध्यमोंके मालिकोंको भी प्रभावशाली मानना चाहिये और उसी लाईन पर प्रकाशन और चर्चा होनी चाहिये.

कोंगी नेतागण मीडीया वालोंको समज़ाता है कि;

“हमने क्या क्या तुम्हारे लिये (इन समाचार माध्यमोंके लिये) नहीं किया? हमने तुमको मालदार बनाये. उदाहरणके लिये आप वेस्टलेन्ड हेलीकोप्टरका समज़ौता ही देख लो हमने ४० करोड रुपयेका वितरण किया था. सिर्फ इसलिये कि ये समा्चार माध्यम इस के विरुद्ध न लिखे. हमने जब जब विदेशी कंपनीयोंसे व्यापारी व्यवहार किया तो तुम लोगोंको तुम्हारा हिस्सा दिया था और दिया है. तुम लोगोंको कृतज्ञता दिखाना ही चाहिये.

हमारी इस भैसको कैसे ख्याति दोगे?

मीडीया मूर्धन्य बोलेः “कौन भैस? क्या भैंस? क्यों भैंस? ये सब क्या मामला है?

कोंगीयोंने आगे चलाया; “ अरे वाह भूल गये क्या ?हम कोंगी लोग तो साक्षात्‌ माधव है.

“मतलब?

“मा”से मतलब है लक्ष्मी. “धव”से मतलब है पति. माधव मतलब, लक्ष्मी के पति. यानी कि विष्णु भगवान. हम अपार धनवाले है. हम धनहीन हो ही नहीं सकता. इस धनके कारण हम क्या क्या कर सकते हैं यह बात आपको मालुम ही है?

नहिं तो?

मूकं कुर्मः वाचालं पंगुं लंगयामः गिरिं

अस्मत्‍ कृपया भवति सर्वं, अस्मभ्यं तु नमस्कुरु

[(अनुसंधानः मूकं करोति वाचालं, पंगुं लंगयते गिरिं । यत्कृ‌पा तं अहम्‌ वन्दे परमानंदं माधवं ॥ )

उस लक्ष्मीपति जो अपनी कृपासे  “मुका” को वाचाल बना सकता है और लंगडेको पर्वत पार करनेके काबिल बना देता है उस लक्ष्मी पतिको मैं नमन करता हूँ.]   

लेकिन यदि लक्ष्मीपतियोंको, खुदको ऐसा बोलना है तो वे ऐसा ही बोलेंगे कि हम अपनी कृपासे मुकोंको वाचाल बना सकते है और लंगडोंको पर्वत पार करवा सकते है, इस लिये (हे तूच्छ समाचार माध्यमवाला, हम इससे उलटा भी कर सकते हैं), हमें तू नमन करता रह. तू हमारी मदद करेगा तो हम तुम्हारी मदद करेंगे. धर्मः रक्षति रक्षितां.

भैंसको छा देना है अखबारोंमें

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आर्टीस्टका सौजन्य

वाह क्या शींग? वाह क्या अंग है? वाह क्या केश है? वाह क्या पूंछ है…? वाह क्या चाल है? वाह क्या दौड है? वाह क्या आवाज़ है? इस भैंसने तो “भागवत” पूरा आत्मसात्‌ किया ही होगा…!!!

“हे मीडीया वाले … चलो इसकी प्रशंसा करो…

और मीडीया वालोंने प्रशंसाके फुल ही नहीं फुलोंके गुलदस्तोंको बिखराना चालु कर दिया. अरे यह भैंस तो अद्दल (असल, न ज्यादा, न कम, जैसे दर्पणका प्रतिबिंब) उसके दादी जैसी ही है.  जब दिखनेमें दादी जैसी है तो अवश्य उसकी दादीके समान होशियार, बुद्धिमान, चालाक, निडर …. न जाने क्या क्या गुण थे इसकी दादीमें …. सभी गुण इस भैंसमें होगा ही. याद करो इस भैंसके पिता भैंषाको, जिसको, हमने ही तो “मीस्टर क्लीन” नामके विशेषणसे नवाज़ा था. हालाँ कि वह अलग बात है कि बोफोर्सके सौदेमें उसने अपने  हाथ काले किये. वैसे तो दादीने भी स्वकेन्द्री होने कि वजहसे आपात्काल घोषित करके विरोधीयोंको और महात्मा गांधीके अंतेवासीयोंको भी  कारावासमें डाल दिया था. इसीकी वजह से इसकी दादी खुद १९७७के चूनावमें हार गयी थी वह बात अलग है. और यह बात भी अलग है कि वह हर क्षेत्रमें विफल रही थीं. और आतंकवादीयोंको पुरस्कृत करनेके कारण वह १९८४में भी हारने वाली थी. यह बात अलग है कि वह खुदके पैदा किये हुए भष्मासुरसे मर गई और दुसरी हारसे बच गई.  

गुजराती भाषामें “बंदर” को “वांदरो” कहा जाता है.

लेकिन गुजरात राज्यके “गुजरात”के प्रदेशमें “वादरो”का उच्चारण “वोंदरो” और “वोदरो” ऐसा करते है. काफि गुजराती लोग “आ” का उच्चारण “ऑ” करते है. पाणी को पॉणी, राम को रॉम …. जैसे बेंगाली लोग जल का उच्चार जॉल, “शितल जल” का उच्चार “शितॉल जॉल” करते है. 

सौराष्ट्र (काठीयावाड) प्रदेशमें “वांदरो” शब्दका उच्चारण “वांईदरो” किया जाता है.

अंग्रेज लोग भी मुंबईके “वांदरा” रेल्वेस्टेशनको “बांड्रा” कहेते थे. मराठी लोग उसको बेंन्द्रे कहेते थे या कहेते है.

तो अब यह “वाड्रा” आखिरमें क्या है?

वांईदरा?  या वांद्रा?  या वोंदरा?

याद करो …

पुर तो एक ही है, जोधपुर. बाकी सब पुरबैयां

महापुरुषोंमें “गांधी” तो एक ही है, वह है महात्मा गांधी, बाकी सब घान्डीयां

हांजी, ऐसा ही है. अंग्रेजोंके जमानेसे पहेले, गुजरातमें गांधी एक व्यापारी सरनेम था. लेकिन अंग्रेज लोग जब यहां स्थायी हुए उनका साम्राज्य सुनिश्चित हो गया तब “हम हिन्दुसे भीन्न है” ऐसा मनवाने के लिये पारसी और कुछ मुस्लिमोंने अपना सरनेम “गांधी”का “घान्डी” कर दिया. वे बोले, हम “गांधी” नहीं है. हम तो “घान्डी” है. हम अलग है. लेकिन महात्मा गांधीने जब नाम कमाया, और दक्षिण आफ्रिकासे वापस आये, तो कालक्रममें  नहेरुने सोचा कि उसका दामात “घांडी”में से वापस गांधी बन जाय तो वह फायदएमंद रहेगा. तो इन्दिरा बनी इन्दिरा घान्डीमेंसे इन्दिरा गांधी. और चूनावमें उसने अपना नाम लिखा इन्दिरा नहेरु-गांधी.

तो प्रियन्का बनी प्रियंका वाड्रा (या वांईदरा, या वांदरा या वादरा या वाद्रे)मेंसे बनी प्रियंका वांइन्दरा गांधी या प्रियंका गांधीवांइन्दरा.

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आर्टीस्टका सौजन्य

हे समाचार माध्यमके प्रबंधको, तंत्री मंडलके सदस्यों, कोलमीस्टों, मूर्धन्यों, विश्लेषकों … आपको इस प्रियंका वांईदराको यानी प्रियंका गांधी-वांईदराको राईमेंसे पर्वत बना देनेका है. और हमारी तो आदत है कि हमारा आदेश जो लोग नहीं मानते है उनको हम “उनकी नानी याद दिला देतें है”. हमारे कई नेताओने इसकी मिसाल दी ही है. याद करो राजिव गांधीने “नानी याद दिला देनेकी बात कही थी … हमारे मनीष तीवारीने कहा था कि “बाबा रामदेव भ्राष्टाचारसे ग्रस्त है हम उसके धंधेकी जाँच करवायेंगे” दिग्वीजय सिंघने कहा था “सरसे पाँव तक अन्ना हजारे भ्रष्ट है हम उसकी संस्था की जांच करवाएंगे, किरन बेदीने एरोप्लेनकी टीकटोंमें भ्रष्टाचार किया है हम उसको जेलमें भेजेंगे”, मल्लिकार्जुन खडगेने कहा “ हम सत्तामें आयेंगे तो हर सीबीआई अफसरोंकी फाईल खोलेंगे और उसकी  नानी याद दिला देंगे, यदि उन्होने वाड्राकी संपत्तिकी जाँच की तो … हाँजी हम तो हमारे सामने आता है उसको चूर चूर कर देतें हैं. वीपी सिंह, मोरारजी देसाई, और अनगीनत महात्मागांधीवादीयोंको भी हमने बक्षा नहीं है, तो तुम लोग किस वाडीकी मूली हो. तुम्हे तुम्हारी नानी याद दिला देना तो हमारे बांये हाथका खेल है. सूनते हो या नहीं?

“तो आका, हमें क्या करना है?

तुम्हे प्रियंका वादरा गांधीका प्रचार करना है, उसका जुलुस दिखाना है, उसके उपर पुष्पमाला पहेलाना है वह दिखाना है, पूरे देशमें जनतामें खुशीकी लहर फैल गई है वह दिखाना है, उसकी बडी बडी रेलीयां दिखाना है, उसकी हाजरजवाबी दिखाना है, उसकी अदाएं दिखाना है, उसका इस्माईल (स्माईल) देखाना है, उसका गुस्सा दिखाना है, उसके भीन्न भीन्न वस्त्रापरिधान दिखाना है, उसका केशकलाप दिखाना है, उसके वस्त्रोंकी, अदाओंकी, चाल की, दौडकी स्टाईल दिखाना है और उसकी दादीसे वह हर मामलेमें कितनी मिलती जुलती है यह हर समय दिखाना है. समज़े … न … समज़े?

“हाँ, लेकिन आका! भैंस (सोरी … क्षमा करें महाराज) प्रियंका तो अभी अमेरिकामें है. हम यह सब कैसे बता सकते हैं?

“अरे बेवकुफों … तुम्हारे पास २०१३-१४की वीडीयो क्लीप्स और तस्विरें होंगी ही न … उनको ही दिखा देना. बार बार दिखा देना … दिखाते ही रहेना … यही तो काम है तुम्हारा … क्या तुम्हें सब कुछ समज़ाना पडेगा? वह अमेरिकासे आये उसकी राह दिखोगे क्या? तब तक तुम आराम करोगे क्या? तुम्हे तो मामला गरम रखना है … जब प्रियंका अमेरिकासे वापस आवें तब नया वीडीयो … नयी सभाएं … नयी रेलीयां … नया लोक मिलन… नया स्वागत …  ऐसी वीडीयो तयार कर लेना और उनको दिखाना. तब तक तो पुराना माल ही दिखाओ. क्या समज़े?

“हाँ जी, आका … आप कहोगे वैसा ही होगा … हमने आपका नमक खाया है …

और वैसा ही हुआ… प्रियंका गांधी आयी है नयी रोशनी लायी है …. वाह क्या अदाएं है … अब मोदीकी खैर नहीं ….

प्रियंका वादरा अखबारोंमें … टीवी चैनलोंमें … चर्चाओंमे ..,. तंत्रीयोंके अग्रलेखोंमें … मूर्धन्योंके लेखोंमें … कोलमीस्टोंके लेखोमें … विश्लेषणोंमें छाने लगी है …

प्रियंका वादराको ट्रम्प कार्ड माना गया है. वैसे तो यह ट्रम्प कार्ड २०१३-१४में चला नहीं था … वैसे तो उसकी दादी भी कहाँ चली थीं? वह भी तो हारी थी. वह स्वयं ५५००० मतोंसे हार गयी थी. वह तो १९८४में फिरसे भी हारने वाली थी … लेकिन मर गयी तो हारनेसे  बच गयी.

प्रियंका वांईदरा ट्रम्प कार्ड है. ट्रम्प कार्डको उत्तरभारतके लोग “हुकम” यानी की “काली” या कालीका ईक्का  केहते है. प्रियंका ट्रम्प कार्ड है. कोंगीके प्रमुख जोकर है. कोंगीके बाकी लोग और मीडीया गुलाम है.

साहिब यानी कोंगी पक्ष प्रमुख (यानी जोकर), (वांईदराकी) बीबी और दर्जनें गुलाम कैसा खेल खेलते है वह देखो.

“आँखमारु जोकर” गोवामें पूर्व सुरक्षामंत्री (पनीकर)से मिलने उनके घर गया था. उसने बोला कि “ … मैं पनीकरसे कल मिला. पनीकरने बताया कि राफेल सौदामें जो चेन्ज पीएम ने किया वह उसको दिखाया नहीं गया था.” ताज़ा जन्मा हुआ बच्चा भी कहेगा कि, इसका अर्थ यही होता है कि “जब रा.गा. पनीकरको मिलने गया तो पनीकरने बताया कि राफैल सौदामें जो चेन्ज किया वह पीएमने तत्कालिन रक्षा मंत्रीको दिखाया नहीं था.”

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आर्टीस्टका सौजन्य

ऐसा कहेना रा.गा.के चरित्रमें और कोंगी संस्कारमें आता ही है. रा.गा.के सलाहकारोंने रा.गा.को सीखाया ही है कि तुम ऐसे विवाद खडा करता ही रहो कि जिससे बीजेपी के कोई न कोई नेताके लिये बयान देना आवश्यक हो जाय. फिर हम ऐसा कहेगें कि हमारा मतलब तो यही था लेकिन बीजेपी वाले गलत अर्थमें बातोंको लेते हैं, और बातोंका बतंगड बनाते हैं. उसमें हम क्या करें? और देखो … मीडीया मूर्धन्य तो हमारे सपोर्टर है. उनमेंसे कई हमारे तर्क का अनुमोदन भी करेंगे. कुछ मूर्धन्य जो अपनेको तटस्थता प्रेमी मानते है वे बभम्‌ बभम्‌ लिखेंगे और इस घटनाका सामान्यीकरण कर देंगे. मीडीयाका कोई भी माईका लाल, रा.गा.के उपरोक्त दो अनुक्रमित वाक्योंको प्रस्तूत करके रा.गा.का खेल बतायेगा नहीं. 

कोंगीकी यह पुरानी आदत है कि एक जूठ निश्चित करो और लगातार बोलते ही रहो. तो वह सच ही हो जायेगा. १९६६ से १९७४ तक कोंगी लोग मोरारजी देसाईके पुत्रके बारेमें ऐसा ही बोला करते थे. इन्दिराका तो शासन था तो भी उसने जांच करवाई नहीं और उसने अपने भक्तोंको जूठ बोलने की अनुमति दे रक्खी थी. क्यों कि इन्दिरा गांधीका एजन्डा था कि मोरारजी देसाईको कमजोर करना. यही हाल उसने बादमें वीपी सिंघका किया कि, “वीपी सिंहका सेंटकीट्समें अवैध एकाउन्ट है”. “मोरारजी देसाई और पीलु मोदी आई.ए.एस. के एजन्ट” है….

ऐसे जूठोंका तो कोंगीनेताओंने भरपूर सहारा लिया है और जब वे जूठे सिद्ध होते है तो उनको कोई लज्जा भी नहीं आती. सत्य तो एक बार ही सामने आता है. लेकिन मीडीयावाले जो सत्य सामने आता है, उसको,  जैसे उन्होंनें असत्यको बार बार चलाया था वैसा बार बार चलाते नहीं. इसलिये सत्य गीने चूने यक्तियोंके तक ही पहूँचता है और असत्यतो अनगिनत व्यक्तियों तक फैल गया होता है. इस प्रकार असत्य कायम रहेता है. 

“समाचार माध्यम वाले हमारे गुलाम है. हम उनके आका है. हम उनके अन्नदाता है. ये लोग अतार्किक भले ही हो लेकिन आम जनताको गुमराह करने के काबिल है.

ये मूर्धन्य लोग स्वयंकी और उनके जैसे अन्योंकी धारणाओ पर आधारित चर्चाएं करेंगे.

जैसे की स.पा. और बस.पा का युपीका गठन एक प्रबळ जातिवादी गठबंधन है. हाँ जी … ये मूर्धन्य लोगोंका वैसे तो नैतिक कर्तव्य है कि जातिवाद पर समाजको बांटने वालोंका विरोध करें. लेकिन ये महाज्ञानी लोग इसके उपर नैतिकता पर आधारित तर्क नहीं रखेंगे. जैसे उन्होंने स्विकार लिया है कि “वंशवाद” (वैसे तो वंशवाद एक निम्न स्तरीय मानसिकता है) के विरुद्ध हम जगरुकता लाएंगे नहीं.

हम तो ऐसी ही बातें करेंगे कि वंशवाद तो सभी राजकीय दलोंमे है. हम कहां प्रमाणभान रखनेमें मानते है? बस इस आधार पर हम सापेक्ष प्रमाण की सदंतर अवगणना करेंगे. उसको चर्चाका विषय ही नहीं बनायेंगे. हमें तो वंशवादको पुरस्कृत ही करना है. वैसे ही जातिवादको भी सहयोग देना है. तो हम जातिवादके विरुद्ध क्यूँ बोले? हम तो बोलेंगे कि, स.पा. और ब.स.पा. के गठबंधनका असर प्रचंड असर जनतामें है.  ऐसी ही बातें करेंगे. फिर हम हमारे जैसी सांस्कृतिक मानसिकता रखनेवालोंके विश्लेषणका आधार ले के, ऐसी भविष्यवाणी करेंगे कि बीजेपी युपीमें ५ से ७ सीट पर ही सीमट जाय तो आश्चर्य नहीं.

यदि हमारी भविष्यवाणी खरी न उतरी, तो हम थोडे कम अक्ल सिद्ध होंगे? हमने तो जिन महा-मूर्धन्योंकी भविष्यवाणीका आधार लिया था वे ही गलत सिद्ध होंगे. हम तो हमारा बट (बटक buttock) उठाके चल देंगे.

प्रियंका वांईदरा-घांडी खूबसुरत है और खास करके उसकी नासिका इन्दिरा नहेरु-घांडीसे मिलती जुलती है. तो क्यों न हम इस खुबसुरतीका और नासिकाका सहारा लें? हाँ जी … प्रियंका इन्दिरा का रोल अदा कर सकती है.

“लेकिन इन्दिरा जैसी अक्ल कहाँसे आयेगी?

“अरे भाई, हमें कहां उसको अक्लमान सिद्ध करना है. हमें तो हवा पैदा करना है. देखो … इन्दिरा गांधी जब प्रधान मंत्री बनी, यानी कि, उसको प्रधान मंत्री बनाया गया तो वह कैसे छूई-मूई सी और गूंगी-गुडीया सी रहेती थी. लेकिन बादमें पता चला न कि वह कैसी होंशियार निकली. तो यहां पर भी प्रियंका, इन्दिरासे भी बढकर होशियार निकलेगी ऐसा प्रचार करना है तुम्हे. समज़ा न समज़ा?

“अरे भाई, लेकिन इन्दिरा तो १९४८से अपने पिताजीके साथा लगी रहती थी और अपने पिताजीके सारे दावपेंच जानती थी. उसने केरालामें आंदोलन करके नाम्बुद्रीपादकी सरकारको गीराया था. इन्दिरा तो एक सिद्ध नाटकबाज़ थी. प्रारंभमें जो वह, संसदमें  छूई-मूई सी रहती थी वह भी तो उसकी व्युहरचनाका एक हिस्सा था. सियासतमें प्रियंकाका योगदान ही कहाँ है?

“अरे बंधु,, हमे कहाँ उसका योगदान सिद्ध करना है. तुम तो जानते हो कि, जनताका बडा हिस्सा और कोलमीस्टोंका भी बडा हिस्सा १९४८ – १९७०के अंतरालमें, या तो पैदा ही नहीं हुआ था, या तो वह पेराम्बुलेटर ले के चलता था.

“लेकिन इतिहास तो इतिहास है. मूर्धन्योंको तो इतिहासका ज्ञान तो, होना ही चाहिये न ?

“नही रे, ऐसी कोई आवश्यकता नहीं. जनताका बडा हिस्सा कैसा है वह ही ध्यानमें रखना है. हमारे मूर्धन्य कोलमीस्टोंका टार्जेट आम जनता ही होना चाहिये. इतिहास जानने वाले तो अब अल्प ही बचे होगे. अरे वो बात छोडो. उस समयकी ही बात करो. राजिव गांधीको, तत्कालिन प्रेसीडेन्ट साहबने, बिना किसी बंधारणीय आधार, सरकार बनानेका न्योता दिया ही था न. और राजिव गांधीने भी बिना किसी हिचकसे वह न्योता स्विकार कर ही लिया था न? वैसे तो राजिवके लिये तो ऐसा आमंत्रण स्विकारना ही अनैतिक था न? तब हमने क्या किया था?  हमने तो “मीस्टर क्लीन आया” … “मीस्टर क्लीन आया” … ऐसा करके उसका स्वागत ही किया था न. और बादमें जब बोफोर्स का घोटाला हुआ तो हमने थोडी कोई जीम्मेवारी ली थी? ये सब आप क्यों नहीं समज़ रहे? हमे हमारे एजन्डा पर ही डटे रहेना है. हमें यह कहेना है कि प्रियंका होशियार है … प्रियंका होंशियार है … प्रियंकाके आनेसे बीजेपी हतःप्रभः हो गयी है. प्रियंकाने तो एस.पी. और बी.एस.पी. वालोंको भी अहेसास करवा दिया है कि उन्होंने गठबंधनमें जल्दबाजी की है. … और … दुसरा … जो बीजेपीके लोग, प्रियंकाके बाह्य स्वरुपका जिक्र करते हैं और हमारे आशास्वरुप प्रचारको निरस्र करनेका प्रयास कर रहे है … उनको “ नारी जातिका अपमान” कर रहे … है ऐसा प्रचार करना होगा. हमे यही ढूंढना होगा कि प्रियंकाके विरुद्ध होने वाले हरेक प्रचारमें हमें नारी जातिका अपमान ढूंढना होगा. समज़े … न समज़े?

कटाक्ष, चूटकले, ह्युमर किसीकी कोई शक्यता ही नहीं रखना है.

शिरीष मोहनलाल दवे

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